क्या सुख - दुख हमारे कर्म का आधार है ?

कर्म से ही भाग्य बनता है । कर्म से ही जन्म - जन्म का अन्तर होता है । फिर भी भाग्य , बिना कर्म  के कुछ नहीं है । जीवन के उतार - चढाओ  को भाग्य कहते हैं । कर्म का दूसरा नाम भाग्य है । यही कर्म , सुख - दुख का आधार है ।
यहीं " आज की चर्चा " का विषय है । इसी पर आये विचार : -

यह कहावत युगों से चली आ रही है "जैसा करोगे वैसा भरोगे "।ये तो सही है ।हमारे कर्म, व्यवहार, स्वभाव दूसरों को अवश्य प्रभावित करते हैं।हम अपने स्वार्थ वश यदि कोई भी गलत कर्म करते हैं तो कुछ समय के लिए खुशी तो मिलती है लेकिन मन में कहीं न कहीं आत्मग्लानि तो रहती ही है ।अच्छे कर्म करने वालों को के प्रति सभी की सोच सकारात्मक रहती है ।अधिक से अधिक लोग उसके संपर्क में रहते हैं ।सत्कर्म करने वाला सदा निडर और सुरक्षित जीवन जीता है और दूसरों के प्रति उदार रहता है तो भविष्य में भी उसका जीवन सरलता से बीतता है ।नकारात्मक सोच वाले व्यक्ति सदा पकड़े जाने के डर से कुंठित रहते हैं ।गलत कर्म करने वाला कभी न कभी अपमानित होता ही है और ताउम्र उसे इसका कहीं न कहीं भुगतान करना ही पड़ता है ।इसलिए कह सकते हैं कि सुख दुःख हमारे कर्मों का आधार है।ये कोई वंशानुगत या पूर्वजों के कर्म से नहीं, अपने किए कर्मों से बनता है ।
- सुशीला शर्मा 
जयपुर - राजस्थान
कर्म करने पर दो प्रकार की प्रतिक्रियाएं होती है, बाह्य प्रतिक्रिया अर्थात हमारे कर्म के हम स्वयं के अलावा अन्य साक्षीगण तथा दूसरी अपने अंतस की प्रतिक्रिया। ये दोनों ही अपने कर्म के प्रति हमारा दृष्टिकोण निर्मित करता हैऔर नकारात्मक दृष्टिकोण से दु:ख की तथा सकारात्मक दृष्टिकोण से सुख की उत्पत्ति होती है। पहले तो दु:ख - सुख का आधार कर्म है और फिर इसी से कमर प्रभावित होने लगते हैं।
 - डा. चंद्रा सायता
इंदौर - मध्यप्रदेश
सुख-दुःख हमारे कर्म के आधार हैं, यह बिलकुल सही है ।सकारात्मक कर्म और सबके हित में किया गया कर्म शुरुआत में भले ही बहुत प्रभावशाली प्रतीत न होता हो ,लेकिन उसका परिणाम हमेशा सुखद होता है ।उसी तरह नकरात्मक कर्म, जिसका आधार दूसरे को कष्ट पहुँचाना या केवल निज स्वार्थ पर आधारित हो उसका परिणाम अंत में दुखदायी ही होता है ।
- रंजना वर्मा
रांची - झारखण्ड
मुझे ऐसा नहीं लगता है । सुख और दुःख ये तो जीवन पथ के विभिन्न पड़ाव हैं ।आप उसको कैसे ग्रहण करते हैं , यह मुख्य बात है । अवसाद में बिताया सुख भी दुःख बन जाता है । अच्छे कर्म करना अपना कर्तव्य है । उससे दुःख में कमी अवश्य आती है । चार लोगों का सान्निध्य प्राप्त होता है ।
- संगीता गोविल
पटना - बिहार
सुख-दुःख हमारे कर्म का आधार है,ऐसा माना जाना आध्यात्मिक आधार है,जिसे नकारा नहीं जाना चाहिए।
जन्म या यूँ कहें कि चेतन्य के साथ ही हमारे जीवन में आनंद और पीड़ा की अनुभूति आरंभ हो जाती है। वैज्ञानिक दृष्टि से यह अनुभूति हमारे तन और मन से सम्बद्ध एक तंत्र,प्रणाली या यूँ समझें कि व्यवस्था है,जिसका व्यवस्थापक ईश्वर है। जो जन्म और मृत्यु दाता याने जीवनदाता  है। इसीलिए ईश्वर है।
- नरेन्द्र श्रीवास्तव
गाडरवारा - मध्यप्रदेश
यह बिलकुल सही  है | आज का किया गया कर्म ही हमारे आने वाले समय को प्रभावित करता है  अगर आज कोई सकारत्मक कदम उठा रहे है तो वो भविष्य में फल अवश्य देगा | आज की की हुई मेहनत कभी न कभी रंग जरुर लती है | यह हो सकता है कि हमारे किए हुए कार्यों का फल आने वाली पीढ़ी भुगते |
- नीलम नांरग
हिसार - हरियाणा
सुख -दुख तो आनी जानी है |किसी भी व्यक्ति के जीवन में सुख का सबेरा भी आता है और दुख का अंधियारा भी |ये सब हमारे अगले जन्म के कर्मों ,इस जन्म के कर्मों और संस्कारों का ही फल है |कई बार व्यक्ति अपने सुख से खुश और दूसरे के सुख से दुखी होता है;ये उसकी सोच ही है जो ऐसा करने को बाध्य करता है|राम जी के वनवास गमन पर आए कष्टों पर लक्ष्मण जी ने भी कहा था -
काऊ न कोउ सुख दुख का दाता 
निज कृती कर्म भोग फल भ्राता |
हाँ,हमें सुख में अतिउत्साहित और दुख में घबराना नहीं चाहिए | 
           - सविता गुप्ता 
           राँची - झारखंड
रामचरित मानस में बाबा गोस्वामी तुलसीदास जी कहते हैं कि ~
" कर्म प्रधान विस्व करि राखा |
 जो जस करइ सो तस फल चाखा ||" 
परमपिता परमात्मा के सृष्टि संचालन में यह सम्पूर्ण सृष्टि कर्मों के अधीन ही कार्य कर रही है | जैसी फसल आज बोयेंगे कुछ समय बाद वैसा ही फल अवश्य ही पायेंगे | यह सृष्टि का अटल नियम है | हमारे पौराणिक ग्रन्थों में कर्म का विस्तृत विवरण मिलता है | यहाँ तक कि स्वयं ईश्वर को भी कर्मबन्धन का फल न्यायपूर्वक भोगना पड़ता है | व्यक्ति जैसा भी कर्म करते हैं उन्हें उसी के अनुरूप फल भी भोगना पड़ता है | 
यदि हमारे कर्म परोपकार परहित, ईश्वरीय सेवा प्रार्थना जैसे अच्छे हैं तो हमें सुख की प्राप्ति होती है | 
और यदि हिंसा, असत्य, मद, मोह, क्रोध जैसे विकारों के अधीन मनुष्य परपीडन करने लगता है तब यही बुरे कर्म कहलाते हैं और व्यक्ति अनेक प्रकार के शारीरिक, मानसिक दुखों में घिर जाते हैं | 
- सीमा गर्ग मंजरी
मेरठ - उत्तर प्रदेश
बिल्कुल कर्म प्रधान विश्व कर राखा। कर्म ही सुख व दुख का कारण है ।कर्मो के आधार पर ही हमे प्रतिफल मिलता है ।जिस प्रकार हम देते है जो जैसा जिसको वैसा ही हमे वापस मिलता है ।एक आवाज की तरह प्रतिध्वनि की तरह ही हूबहू बापस मिलती है।धर्म भी यही कहता है ।बाकी मेरा अनुभव भी यही कहता है ।हम जैसा बोयेंगे फसल भी बेसी ही मिलती है ।कांटे बोने से कभी पुष्प नही खिल सकते।इसलिए हम कह सकते है ।हमारे सुख दुख कर्मो के आधार पर ही निर्भर है।
- बबिता चौबे शक्ति
दमोह - मध्यप्रदेश
सुख -दुःख हमारे हमारे कर्म का आधार है मैं इससे सहमत हूँ ।प्रकृति का नियम है हम उसे जो देते हैं वही हमेंं लौट कर मिलता है ।विज्ञान के अनुसार भी ब्रह्माण मे घूमती तरंगें  हर कर्म का प्रतिकर्म देती हैं ।किया हुआ बुरा कर्म एक ही नहीं कई पीढ़ी को दुःख देता है ।इतिहास इसका गवाह है ।अन्त में माँ की सीख के साथ चर्चा का अन्त करती हूँ   ...पेड़ तो बोया बबूल का आम कहाँ से होय  ..।
- कमला अग्रवाल
गाजियाबाद - उत्तर प्रदेश
वर्तमान का सुख और दुख भूतकाल में किए गये कर्मों का प्रसाद है। इस प्रसाद को धैर्य के साथ भोग लिजीए इसी में आनंद है। 

भविष्य में हमें वही मिलेगा जो वर्तमान में दूसरों को देंगे। इसलिए वर्तमान में किया गया भलाई का कर्म ही हमारे भविष्य का पूंजी है अगर हम चाहते हैं कि भविष्य में हमें दुख ना मिले तो वर्तमान में किसी को भी अपने कर्मों से दुखी मत दिजिए। जीवन का एक सिध्दांत कि " कर भला तो हो भला "

किसी को हमें पराजित करने की कोशिश नहीं करनी चाहिए बल्कि उसके दिल को जीत कर उससे कुछ भी हासिल किया जा सकता है जी। किसी को हरा कर उससे कुछ छीन लेना उसको दुखी करेगा जो हमारे भविष्य के लिए दुख का आधार शिला बन जायेगा।
- लक्ष्मण कुमार
सिवान - बिहार
सबकी अपनी व्यक्तिगत राय होती है और मैरी यह व्यक्तिगत राय है की सुख दुःख का सीधा सम्बन्ध हमारे कर्मों से होता है 
अच्छे किये हुए कर्मों का फल सुखदायक होता है और बुरे कर्मों का फल दुखदायक होता है आम मनुष्य यह बात इसलिए नहीं समझता क्योंकि अच्छे कर्मों का अच्छा फल प्राप्त करने मैं इतना अधिक समय लगता है की मनुष्य का विश्वास डगमगा जाता है !!
- नंदिता बाली 
सोलन - हिमाचल प्रदेश
सुख व दुःख जीवन के दो महत्वपूर्ण अंग हैं एक के बिना दूसरे का महत्व नहीं ।हां हमारे द्वारा किया गया कर्म समय-समय पर प्रभावित करता है कई बार हम कर्म से अपने जीवन की दिशा बदलने में समर्थ होते हैं वहीं कर्महीनता जीवन का उद्देश्य ही समाप्त कर देती ।श्रीमद्भागवत गीता भी कर्म के अनुसार फल की बात करती है ।समय व स्थान भले बदले हों आवश्यकताओं का रूप अलग हुआ हो अनुभव के साथ ज्ञान व विज्ञान जुड़ा हो पर सुख दुःख का कहीं न कहीं आधार अभी भी कर्म ही है ।
- शशांक मिश्र भारती 
शाहजहांपुर - उत्तर प्रदेश
हाँ .....ये 100% सत्य है ,मन की संतुष्टि ही सबसे बढ़ कर सुख और दुःख है !अच्छे-बुरे कर्मो का असार  पहले मन से शुरु होता है, सकारत्मक  सोंच से हीं कर्म अच्छे होते हैं ।जब कर्म अच्छे होंगें तो सुख अपने आप होगी ।सुकर्म करने वाले सबकी चहेता होता है ,नाकारात्मक कर्म का सुख क्षणिक होता है जो अपने स्वार्थ के लिए होता है:_
#कर भला तो हो भला #
#बोया पेड़ बबूल का तो आम कहाँ से होए #
ये कहावत हम लोग अपने पूर्वजों से सुनते आए हैं ।
- राजकांता राज 
पटना (बिहार )
कर्म  का  प्रभाव  हमारे  मन  को  प्रभावित  करता  है  ।  सद्कर्म  जहां  हमारे  मन  को  असीम  शांति  प्रदान  करते  हैं  वहीं  गलत  कर्म,  मन  को  कचोटते  रहते  हैं  ।  वैसे  कर्म  के  अलावा  भी  सुख- दुःख  के   कई  कारण  हैं  ।  हमारी  सकारात्मक  नकारात्मक  सोच .......हमारे  संस्कार......पारिवारिक  तथा  आसपास  का  वातावरण ......शिक्षा ......समाज  में  हमारी  स्थिति......संकुचित  एवं  विस्तृत  विचारधारा   आदि ।  सुख-दुःख  वो  अहसास  हैं  जिन्हें  हम  महसूस  करते  हैं  ।  कोई  धरती  पर  आकाश  ओढ़  कर  निश्चित  होकर  सोते  हैं  और  कोई   मखमली  गद्दों  पर  भी  नींद  के  लिए  तरसते  हैं  । 
          - बसन्ती पंवार 
          जोधपुर - राजस्थान 
यह सही है कि हमारा कर्म ही सुख-दुख का आधार है। हम कर्म करते हैं तो सुख की प्राप्ति होती है और कर्म नहीं करेंगे तो दुख मिलेगा। लेकिन कभी-कभी अच्छे कर्म करने पर भी दुख मिलता है।  परंतु , वह क्षणिक होता है। हमारे अच्छे और बुरे कर्मों का प्रभाव हमारे जीवन पर पड़ता है और हमारे आने वाली पीढ़ी पर भी पड़ता है । इसलिए सच्चाई का साथ देना चाहिए , व्यवहार कुशल पूर्वक होना चाहिए, ये सभी हमारे अच्छे कर्म हैं। अच्छे कर्मों से सुख मिलेगा और बुरे कर्मों से दुःख मिलेगा ।भले ही थोड़ी देर के लिए बुरे कर्मों से सफलता मिल भी जाए, लेकिन उसका परिणाम घातक ही होता है।
- मीरा प्रकाश
 पटना - बिहार 
सुख दुख  व्यक्ति  के कर्मो  का प्रतिफल  है जीवन  एक  वाणिज्य है पूर्व  और  वर्तमान  कर्म  का  लेखा-जोखा है सुख दुख  की अनुभूति  व्यक्ति  के  perception  पर  निर्भर  करता  है इसलिए  प्रसाद  समझ  कर अपनाने  मे ही  भलाई  है दोनो  का अपना  एक  अलग  ही  पहचान  एवम्  महत्व  एक  के बिना  दूसरा  अस्तित्व  अधूरा  है
- डाँ. कुमकुम वेदसेन 



राजकुमार शर्मा ( सम्पादक : हरियाणा मुद्रिका समाचार पत्र ) , हरकेश शर्मा ( शिव सेना ) व बीजेन्द्र जैमिनी ( सम्पादक : जैमिनी अकादमी समाचार पत्र )




Comments

  1. अच्छी परिचर्चा सभी को बधाई

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