क्या समय के साथ परिवर्तन संसार का नियम है ?

समय एक सत्य है । जिससे इन्कार नहीं किया जा सकता है । फिर भी कुछ लोग समय को भुल जाते हैं । परन्तु समय परिवर्तनशील है ।यह संसार का नियम है । यही " आज की चर्चा " का प्रमुख विषय है । देखते हैं आये विचारों को : -

बिल्कुल है ।यदि ये सत्य ना होता तो मनुष्य आदिमानव से वर्तमान स्थिति तक नहीं पहुँच पाता ।समय गतिशील है और निरंतर विकास की ओर बढ़ता है ।मानव मस्तिष्क ईश्वर की ऐसी अद्भुत रचना है जहाँ प्रति क्षण कुछ नए बदलाव होते रहते हैं और उनसे तालमेल रखने के लिए प्रत्येक व्यक्ति को अपने जीवन में भी बदलाव लाना ही पड़ता है ।युग परिवर्तन के साथ यदि देखें तो हमारी प्रकृति में भी काफी उठा पटक देखने को मिलती है ।अतिवृष्टि, अनावृष्टि,सूखा, भूकंप आदि के कारण मौसम तक में बदलाव नजर आ रहा है ।समय के साथ ही हमारी सोच, विचारधारा, खान-पान रहन-सहन हर चीज में परिवर्तन स्वाभाविक है ।इसलिए समय के साथ परिवर्तन संसार की स्वाभाविक प्रतिक्रिया  है ।
- सुशीला शर्मा
जयपुर - राजस्थान
जी हाँ, बिल्कुल परिवर्तन संसार का अटल नियम है |
हम देखते हैं कि ~सत्ययुग से कलियुग तक के चतुर्युगी काल में सृष्टि में निरन्तर परिवर्तन होता रहा है |इस भौतिक जगत में सब कुछ नश्वर है | हर पल यहाँ परिवर्तन होता है | 
प्रातः भोर भये की लालिमा युक्त सूर्य के देवदर्शन काल से लेकर यामिनी की आगमन तक समय प्रहर में निरन्तर दिन रात परिवर्तन होता रहता है |इस सृष्टि जगत में परमपिता परमात्मा की अदृश्य, अलौकिक शक्ति स्वरूप रितु चक्र में नियमानुसार परिवर्तित होता रहता है | कालदण्ड के भय से सूर्य चाँद  सितारे,पृथ्वी, सप्तर्षि की उत्तर दिशा एवं अन्य अनेक ग्रह समयानुसार उदित एवं अस्त होते रहते हैं | 
मानव जीवन काल को देखे तो माता के गर्भनाल से प्रसूतावस्था तक शिशु में अंग उपांगो का निरन्तर विकास होता है |शैशवकाल से लेकर किशोरावस्था, युवावस्था, प्रौढावस्था, वृद्धावस्था तक आते आते प्रत्येक प्राणी के तनमन में निरन्तर परिवर्तन होता रहता है | प्रकृति नियमों में बँधे जीव की आयु का स्वयमेव ही क्षरण होता रहता है | जन्म लेने के साथ ही प्रत्येक प्राणी मृत्यु की ओर अग्रसर होने लगता है |प्रत्येक आती हुई श्वांस के साथ शरीर से बाहर निकलने वाली हर श्वांस के साथ जीव की आयु निरन्तर क्षीण हो रही है | अतः यह निश्चित है कि परिवर्तन ही संसार का अटल नियम है |
- सीमा गर्ग मंजरी
 मेरठ - उत्तर प्रदेश
अवश्य ! समय के साथ परिवर्तन संसार का नियम है। प्रकृति भी अपना प्रभाव दिखाती है। मानव का स्वभाव ऐसा होता है कि वह निरंतर एक ही ढर्रे पर अधिक दिनों तक चल नहीं सकता। जल्दी ही उबने लगता है। कुछ नया करने या पाने की चाहत उसे परिवर्तन की ओर ले जाता है। चाहे खाने-पीने की आदत हो या पहनावा। सोच में भी समय के साथ परिवर्तन आता है। कभी-कभी परिपक्वता की कमी जिस सोच को सही मान बैठती है, परिपक्वता आने पर वह गलत लगने लगती है, या अपूर्ण लगने लगती है। उम्र और जानकारी (ज्ञान) के बढ़ने के साथ क‌ई विचार निर्रथक लगने लगते हैं। आज़ का फैशन कल पुराना लगेगा और हम एक न‌ए तरीके के लिए लालायित हो उठेंगे। बदलाव ज़रूरी भी है, परंतु बदलाव सकारात्मक और सार्थक होने चाहिए। परिवर्तन सबके लिए मंगलदायक हों, तभी यह संसार आनंददायक बना रहेगा।
- भोला नाथ सिंह
बोकारो - झारखण्ड
परिवर्तन  संसार  के  साथ  साथ  प्रकृति  के  भी  नियम है ।मौसम  से शुरू  करते  है मौसम  चार  भागो  मे बदलता  रहता  है पेड़ो  की  भी  यही  दस्तूर  है । मानव  शरीर  की भी  यही क्रम  है  शैशवास्था  बाल्यावस्था  यौवनावस्था  प्रौढावस्था वृद्धा वस्था  । मानव स्वभाव  की भी  यही विशेषता  है शारीरिक  रूप  विकास  के साथ  स्वभाव  मे भी  परिवर्तन  होते रहते है परिवर्तन  विकास  का सूचक  है विचारो  का परिवर्तन शील होना  अच्छे  सामंजस्य  की पहचान  है ।रहना सहन खानपान  सभी  इस परिवर्तन  की लीला  मे  समाहित  है इसलिए  जो जितना  परिवर्तन शील  है वह उतना  ही  उन्नत  है।
- डाँ. कुमकुम वेदसेन
मुम्बई - महाराष्ट्र
हां समय के साथ परिवर्तन संसार का  नियम है इसी का नाम ही  नियति है इस संसार में जड़ और चेतन दो वास्तविकता है   जड़ मैं  विकास और चेतन  में जागृति अर्थात यह संसार विकास और जागृति नियति क्रम में होता ही रहता है यह संसार परिवर्तनशील है परिवर्तन क्रमिक रूप से होता है  सम अर्थात बनने की क्रिया मध्यम अर्थात बने रहने की क्रिया विषम अर्थात बिगड़ने या प्रलय होने की  क्रिया इस तरह हर वस्तु में सम विषम और मध्यम गुण पाया जाता है यह क्रम से परिवर्तन होते रहते हैं इसी का नाम है परिवर्तनशील संसार अर्थात परिवर्तन संसार का नियम है।
- उर्मिला सिदार
रायगढ़ - छत्तीसगढ़
बिलकुल परिवर्तन तो संसार का नियम है। इस संसार में कुछ भी स्थिर नहीं है, सब गतिमान है। कहा भी गया है कि गति ही जीवन है। इस गतिशीलता का परिणाम ही परिवर्तन है। और ये परिवर्तन ही विकास का आधार है। ये विकास मानव स्वरूप का हो, जीव जन्तुओं का हो अथवा भौगोलिक परिस्थितियों का हो। ये गतिशीलता और परिवर्तन ही जीवन और विकास का प्रमाण है।
            - रूणा रश्मि
          राँची - झारखंड
गीता में भगवान् श्री कृष्ण जी ने कहा था की परिवर्तन संसार का नियम है . और मुझे ऐसा लगता है की ये बात बिलकुल ही सही है जो हम लोग हमेशा ही देखते हैं और सुनते है. आज हम जिस समाज में रहते हैं . अगर उसी के बात करें तो हम सब देखेंगे की हम लोग क्या थे और अब क्या है और आगे पता नहीं क्या होंगे. ऐसा नहीं लगता है  आपको ! मुझे तो लगता है . और मै सोचती भी हूँ , पता नहीं क्या होगा ? हमारे परिवार का हमारे समाज का , हमारे देश का . क्यूँ जिस तरह से हमारा परिवर्तन हो रहा है . उससे तो यही लगता है . की हम पिछले युग से भी बहुत ही तेज चल रहे हैं. जो किसी और युग में नहीं हुआ होगा . वो अब हमारे इस युग में हो रहा है . जहा तक मुझे याद है और जहा से मुझे याद आता  है . आज मै अपने जिन्दगी का एक लम्बा समय गुज़ार चूकी हूँ. तो इतना तो मुझे भी पता चल गया है . की समाज पहले कहा था और आगे कहा जायेगा ....और अभी क्या है. जितने बदलाव हमारे सोच पर हमारे जीवन शैली पर हमारे समाज पर काम पर और तो और रिश्ते मेंआये  है. मतलब जो परिवर्तन हमारे रिस्तो में हुए हैं ..शायद ही कोई क्षेत्र हो जहा हुआ होगा. क्यूँ आप खुद सोचेंगे  .क्यूँ की आज का जो सोचने समझने का  दायरा इतना सिमट चूका है की इंसान ने कभी सोचा भी नहीं होगा की हम लोगों की सोच इतना बदल और सिमट जायेगा . नहीं कभी नहीं. क्यूँ वो आशा के विपरीत हो रहा है . उसका क्या कारण हो सकता है . वो कैसे बदल सकते है . उसको सुधर कैसे सकते हैं. सब कुछ जवाब हमारे पास है. लेकिन हम खुद कुछ न करना चाहते है और करवाना चाहते हैं.  तो फिर कैसे संभव है ...कभी कीसी मे सोचा है क्या. ....नहीं कभी नहीं .....आज के रिश्ते कब बनते हैं...और कब टूट जाते है. ये ना बनाने वाले जानते हैं. ना ही तोड़ने वाले जानते हैं. अभी तो मैं कुछ कहना नहीं चाहती हूं .....पर कहनेको  अभी     बहुत कुछ बाकी है.....वो हम आगे आपके साथ बाटना चाहूगी ....समय परिवर्तन शील है पर यह समय कुछ अधिक ही बदल रहा है , हमारे देश में तो ऐसा समय आ गया ही की रिस्ते सिर्फ और सिर्फ पैसे से बनते है ... और चलते हैं.....और शायद पैसे के कारन ही टूटते हैं.  ऐसा मैं क्यूँ कह रही हूँ क्यो  की मैंने जो अपने इस जिन्दगी में देखा है ..पाया है ....बस मैं उसी के आधार परआपको  बता रही हूँ...और शायद आप में से भी कई लोग इस बात से सहमत होंगे...क्यूँ अभी हर जगह पैसा और पैसे का बोलबाला है ....पैसे के आगे सारे रिस्ते नाते ख़तम हो जाते हैं....और पैसे के आगे रिश्ते बन जाते हाँ.....सिर्फ माँ का प्यार को छोड़ कर ....क्यूँ माँ की ममता और प्यार न कभी ख़रीदा जा सकता है न बेचा जा सकता है.. दोस्तों मैंने इस जिन्दगी में बहुत से ऐसे पल देखे हैं ...जिन्हें सोच कर मुझे भी तरस आता है ...इस समाज और समाज में रहने वाले लोगों पर..... क्यूँ यहाँ के लोग ऐसे अपने विचार बदलते है. जैसे की वो अपने जिन्दगी की साँसे लेते है. जितने वार वो साँसे लेते हैं उनके मन में विचार भी उसे के अनुसार बदलते है....क्या ऐसे सही है...और क्या बताऊँ ....लोग तो ऐसे भी हैं आज शादियाँ होती है और टूटती है, खेल बन गई है जिंदगी प्यार भी सोच समझ कर स्टेंटस देख कर किया जाता है । यह सब समय का परिवर्तन हैं हमारे आस पास जो जिन्हें देख कर पता नहीं क्या सोचूं ....समझ में नहीं आता है...जितने जयादा पैसे वाले लोग उतनी उनकी बनाबटी रिश्ते....मैंने  ये देखा है.......ये मेरी सोच नहीं ...बल्कि देखा हुआ नजारा है...... चलिए मै तो यही कहना चाहती हूं ....दोस्तों सबकुछ बदलना चाहिए ....लेकिन हमारे देश की भारतवर्ष की संस्कृति है.. सभ्यता है ....उसके साथ खिलवार और असभ्यता  का प्रचालन नहीं होना चाहिये हमारा परिवार पहले जैसे होना चाहिए...कैसा समाज होना चाहिए....ये हमें सिखने की जरुरत नहीं .....क्यूँ ये सभी हमें संस्कार के रूप में पहले से चले आ रहे हैं. एक पिता , एक संतान . एक  माता और एक पुत्री, पत्नी बहन का क्या महत्व है हमारे जीवन में  ...ये शायद किस्सी औरदेश  में शायद ही मिल पाए....क्यूँ जिस देश में हम लोग पैदा हुए है....वो मुझे विरासत में मिली है...ऐसे हमें बेकार में बर्बाद नहीं करना चाहिए....समय के साथ परिवर्तन हो पर इतना भी नहीं की परिवार बिखर जाये समाज ।समाज  न रहे परिवर्तन जरुरी है पर एक सिमा में  कोई भी चीज पहले जैसी नहीं रहती सब बदलता है शरीर भी नश्वर है परिवर्तन ही जीवन है ।जो वस्तु है जीव है मौसम है सब बदलते हैं परिर्वतन जीवन का शाश्वत सत्य है 
- डॉ. अलका पाण्डेय 
मुम्बई - महाराष्ट्र
समय गतिमान है। काल या समय- परिवर्तन संसार का शाश्वत नियम है। जड़ हो या चेतन, कोई भी चिरस्थाई नहीं है।  भारतीय अवधारणा और डार्विन के विकासवादी सिद्धांत में भी ऐसा दर्शनीय होता है ।व्यक्ति ही विश्व परिवार की सबसे छोटी इकाई है। व्यक्ति से परिवार, परिवार से समाज, समाज से राष्ट्र और राष्ट्र से विश्व का निर्माण होता है। देखा जाए तो इस परिवर्तन में या बदलाव  के मूल में स्वयं एक व्यक्ति ही है जिसमें बदलाव होता है। व्यक्ति के बदलते ही संसार बदलने लगता है जैसे-- अंगुलिमाल का बौद्ध भिक्षु बन जाना। सूर्य, चंद्र ,तारे, जड़- चेतन प्रकृति सबके सब परिवर्तनशील हैं । इन सबसे ही काल की गणना, युगों का नामांकन तथा हर युग में तत्कालीन सामाजिक, भौगोलिक, राजनीतिक, धार्मिक परिस्थितियों के अनुसार मनुष्य के विचारों में परिवर्तन सहज ही होने लगता है  ।ऐसे ही  स्वतंत्रता से पूर्व का भारत और  आज  के भारत का  विकासशील रूप जो विकसित देशों की गणना में शामिल होने वाला है यह सब समय- समय का परिवर्तन ही तो है ।
- डॉ रेखा सक्सेना
मुरादाबाद - उत्तर प्रदेश
समय के साथ परिवर्तन संसार का नीयम है ।यह प्रत्यक्ष दिखाई पड़ता है ।समय पर सुबह होती है समय पर रात ,समय पर रितुऐं आती हैं ।समय के साथ आयु की चार अवस्थायें बीतती हैं ।यह परिवर्तन ही है कि पाषाण युग से आज तक कितने बदलाव हुए ।हम चाँद पर क्या है यह जानने को बेकरार हैं ।हमारे आचार-विचार ,सोच ,करनी सबमें बदलाव आ गया । यह बात दूसरी है परिवर्तन संसार और मानवता की भलाई के लिए हो तो सुखद है ।परिवर्तन तो प्रकृति का अटल नीयम है यह चलता रहेगा ।
- कमला अग्रवाल
गाजियाबाद - उत्तर प्रदेश
ईश्वर द्वारा रचित यह सृष्टि अद्भुत और अनुपम है। यहाँ सूरज, चाँद, सितारे  हैं तो प्राकृतिक नजारे भी हैं। प्राणियों और वनस्पतियों का समूह है,जीवन और.मृत्यु है। सूर्योदय से सूर्यास्त और सूर्यास्त से सूर्योदय तक एक नियति चक्र है जो घूमता रहता है । यही ऊर्जा देता है।यही समय है।सब कुछ इसी में निहित है। नियति चक्र के इस क्रम में सब कुछ नित नये रूप में प्रभावित होते हैं। चौबीस घंटे के इस चक्र में परिस्थितियां बदलती चलती हैं। ऋतु बदलती है,मौसम बदलता है।विकास होता है।ह्रास होता है।कुछ नष्ट होता है तो कुछ नया बनता है। कुछ जीर्णशीर्ण होता है तो कुछ परिपक्व होता है। यही परिवर्तन है। यही संसार का नियम है।यही नियति है। जैसा कल था आज नहीं है। जैसा आज है,कल नहीं रहेगा।
- नरेन्द्र श्रीवास्तव
 गाडरवारा - मध्यप्रदेश
यह सही है कि समय के साथ परिवर्तन संसार का नियम है। संसार में कुछ भी एक जगह ठहरा हुआ नहीं रह सकता। प्रकृति में होने वाले परिवर्तन इस बात को पूरी तरह सार्थक करते हैं और सचेत करते हैं कि समय के साथ संसार में, प्रकृति में, जीवन में होने वाले परिवर्तनों को सृष्टि के शाश्वत नियम के अनुसार स्वीकारते हुए , उसके साथ चलने के लिए स्वयं को तैयार करते रहना चाहिए, अन्यथा कष्ट मिलना तो स्वाभाविक है ही, व्यक्ति प्रगति और सामंजस्य करने में भी पिछड़ जाता है।
- डा० भारती वर्मा बौड़ाई
देहरादून - उत्तराखंड
परिवर्तन प्रकृति का नियम है |पूरा ब्रह्मांड ही परिवर्तशील है|पेड़ों पर पत्ते ,फल,फूलों का आना जाना|हमारे शरीर के पुराने सैल का नये मे परिवर्तन आर्थिक,शारीरिक,व्यक्तित्व सब समयानुसार परिवर्तित होते रहते हैं |ऋतुएँ,युग ,देह सब सृष्टि के नियमानुसार बदलते रहते हैं |संसार में कुछ भी स्थिर नही |जो संसार में आया है एक दिन पंचतत्व में विलीन हो जायेगा संसार का यही नियम है|
                  - सविता गुप्ता 
                राँची - झारखंड
जी हाँ! समय के साथ बदलाव आवश्यक प्रक्रिया है । क्योंकि आने वाली नस्ल हमेशा कुछ नया ले कर आती है । उस नए को अपनाना जरूरी होता है । वरना हम पीछे छूट जाएंगे । इसके साथ ही हम एक नई जादुई दुनिया से अलग रह जाएंगे । नई दुनिया का चमत्कार सीख कर हम अपने में संतुष्ट होते हैं । जो आत्मिक संतोष देता है ।
- संगीता गोविल
पटना - बिहार
समय के साथ परिवर्तन महत्वपूर्ण है क्योंकि यह प्रकृति का नियम है और जो भी प्रकृति के विरुद्ध चलेगा वो सिर्फ और सिर्फ विनाश को निमंत्रण देगा। दूसरा महत्वपूर्ण पहलू यह है कि जो परिवर्तन को नहीं अपनाएगा वह दुनिया की भीड़ में अकेला और सबसे पीछे रह जाएगा।अतः सकारात्मक सोच के परिवर्तन को अपनाने में ही समझदारी है।
-अजय  गोयल
गंगापुर सिटी - राजस्थान
परिवर्तन से तात्पर्य बदलाव से  है । जैसे- जैसे समय बीतता है वैसे - वैसे क्रमिक विकास भी होता जाता है । प्रकृति अचानक से कई परिवर्तन करती है जो उसमें अपने आपको ढाल लेता है वो बचता है अन्य नष्ट हो जाते हैं ।उदाहरण के लिए डायनासोर विशालकाय प्राणी होने के बाद भी अपने अस्तित्व को नहीं बचा सका जबकि अन्य सूक्ष्मजीव  बचे रह गए  ।
सबसे अधिक बदलाव प्रकृति में हो रहा है । मानव की कार्यशैली प्राकृतिक संसाधनों का अंधाधुंध दोहन कर रही है जिसका असर अत्याधिक  गर्मी, वर्षा व ढंड के रूप में दिखता है । पहले जो मास निर्धारित थे विभिन्न ऋतु परिवर्तनों के उनमें अब क्रमिक परिवर्तन साफ दिख रहा है । ओजोन परत का क्षय, ग्रीन हाउस प्रभाव , विषैले कार्बनिक तत्व ये सब जीव जंतुओं के विकास को बाधित कर रहे हैं ।असमय आने वाली प्राकृतिक आपदाएँ जैसे भू स्खलन, ज्वालामुखी, भूकम्प आदि प्रकृति द्वारा दिये गए संदेश हैं कि हमें उसके नियमों को भंग करने पर ऐसे दुष्परिणामों को भुगतना पड़ेगा  । अंततः यही कह सकते हैं कि प्रकृति के अनुगामी बनें और उसके संकेतों को समझकर नियम विरुद्ध आचरण न करें ।
- छाया सक्सेना प्रभु
जबलपुर - मध्यप्रदेश
ईश्वर की अद्भुत रचना है समय के साथ साथ परिवर्तन तो प्रकृति का नियम है । इस क्रम मे कुछ नष्ट होता है तो कुछ नया होता है । यही संसार का नियम है । आज हमारे समाज सब कुछ मे बदलाव हुए है।  मै एक बात तो जरूर कहना चाहुंगा क्या हमारे समाज मे परिवर्तन हुआ है तो दहेज लेना और देना इसमे परिवर्तन भी तो होनी चाहिए । आज हमारे समाज में क्या थोड़ी भी इंसानियत नहीं है किसी नेता या बड़े आदमी में जब कोई नेता चलता है तो उसके पीछे पुलिस और गरीब किसान देखकर प्रणाम करते हैं वह हाथ भी नहीं उठाता अरे हाथ जोड़ना चाहिए नेता को लेकिन मैं देखता हूं कि नेता नहीं गरीब किसान ही हाथ जोड़कर प्रणाम क्यों करता है क्यों जो खेती करता है फसल उगाता है देश के अमीर आदमियों तक भोजन पहुंच जाता है अपने सूखी सूखी रोटी खाकर जीता है किसान भाइ अच्छी फसल सब्जी उगाकर देश की सेवा में देते हैं लेकिन कोई किसान गरीब का इज्जत नहीं करता शायद नेता लोग अपने आप को महान समझते हैं लेकिन आज किसान भाइयों फसल उगाना अनाज पैदा करना बंद कर दे तो अनाज का एक दाना भी नेताजी के मुंह में नहीं जाएंगे और वह किसान के पैर पर गिरने लगेंगे  पूरा अमीरी खत्म हो जाएगी  लेकिन बेचारा किसान खेती करता है मेहनत करता है पानी डीजल जुताई का पैसा देकर फसल अच्छी होगी यह सोचकर उगाता है बाजार ले जा कर सस्ते दामों में बेचना पड़ता है है लेकिन क्या है बाजार में ले जाकर बेचने पर भी उसको बढ़िया पैसा नहीं मिलती है और सब्जी अनाज सस्ते दामों में बेचना पड़ता है वही देखो नेता की वजह से आज दुनिया में शराब है जो कि एक महंगी बिकने लगती है किसान किसान की वजह से यह दुनिया चलता है आज किसान भाइयों फसल उगाना बंद कर दे तो आज देश के हर एक कोने में महामारी हो सकती है जीना हराम हो जाएगा लेकिन आज कोई इस किसान को फसल उगाने के लिए सरकारी योजनाओं के तहत इनाम नहीं दिया जाता है क्या वजह है किसान घुट-घुट कर मर जाते हैं उनकी लाशें कई दिनों तक पड़ी रहती है पैसा की वजह से लेकिन कोई नेता देखने नहीं आते वही वोट मांगने के लिए द्वारे-द्वारे घूमने चले आते हैं किसान भाइयों की मौत देखने के लिए एक नेता नहीं आ सकते हैं उनके श्रद्धांजलि देने नहीं आ सकते हैं तो क्या हमारे किसान भाइयों इस नेता को वोट दे सकते हैं एक किसान मडई में रहकर टूटी हुई झोपड़ी में रह कर अपना समय बिताता है वही नेता लोग अपने के लिए एक महल बना लेते हैं महल में राज करने लगते हैं क्या गरीब के लिए यह सब नहीं है जब किसान भाई बैंक में अपना पैसा उठाने जाते हैं लाइन में लगना पड़ता है वह बोलते हैं कि आज नहीं मिलेगा कल मिलेगा कल जाते हैं तो कल नहीं परसो मिलेगा ऐसा करके उनको बहुत हारान करते हैं वही नेता लोग चले जाते हैं तो उनको कुर्सियां थमा दी जाती है और बोलते हैं कि बैठिए नेताजी चाय पानी बिस्कुट भी पिलाया जाते हैं क्या और फिर बाद में उनको पैसा थमा दिए जाते हैं वही किसान भाइयों के लिए सब नहीं उन को खदेड़ दिए जाते हैं क्यों ऐसा आप लोग को आवाज उठानी चाहिए  क्या यही है मानवता का प्रतीक हमारे समाज में हमारे किसान भाइयों पसीना खून बहा करके दिन रात मेहनत करके खेती करता है फिर भी उनका कोई इज्जत नहीं कोई सम्मान नहीं क्यों यह भी हमने देखा है कि यदि नेता के पास कोई किसान कंप्लेन करने जाता है नेता उनकी बातों को अनसुनी कर देता है किसान अपने कमाए हुए पैसों से केस करता है फिर भी क्या है नेता लोग अपने  पैसे के बल पर उन गरीब किसानों को दबा देते उल्टा किसान पर ही केस हो जाता है आज हमारे समाज में यदि किसान नहीं होती तो यह देश नहीं चलता एक   रोटी के लिए हमारे देश के हर एक महान नेता हमारे देश की हर एक अमीर आदमी का जीना हराम हो जाता क्या एक बार इन किसान भाइयों के लिए कोई सोचता है यदि समय के साथ परिवर्तन संसार का नियम है । दहेज प्रथा मे भी परिवर्तन हो यही हमारी अभिलाषा है 
- लक्ष्मण कुमार
सिवान - बिहार
समय  के  साथ  परिवर्तन  प्रकृति  का  नियम  है  यदि  ऐसा  न  हो  तो  सबकुछ  ठहर  जाएगा  ।  जैसा  कि  सर्वविदित   है  कि  ठहरा  हुआ  जल  कुछ   समय   बाद  किसी  काम  का  नहीं  रहता  ।  संसार  में  अगर  जो  जैसा  है  वैसा  ही  रहे  तो.......इसलिए  प्रकृति  में  जो  भी  सजीव  है,  उनमें  लगातार  बदलाव  होता  रहता  है  ।  पेड़- पौधे  बढ़ते.....फूल-फल  देने  के  पतझड़ .....फिर  नई  कोंपलें......नया  जन्म  ऐसे  ही  मानव  की  परिवर्तित  अवस्थाएं......यहां  तक  कि  उसके  विचारों  में  समयानुसार  बदलाव  ।  प्रकृति  में  सूखा,  बाढ़ .....अतिवृष्टि......अनावृष्टि ......भूकंप  आदि  इस  प्रकार  से  परिवर्तित  होते  रहते  हैं  ।
         - बसन्ती पवांर 
          जोधपुर - राजस्थान 
समयानुसार प्रकृति परिवर्तित होती रहती है ।सुबह से शाम का होना, ऋतु परिवर्तन ,सब अविरल गति से बदलते रहते हैं । इसलिए समय के साथ परिवर्तन संसार का नियम है जिसे हम सब जानते हैं । कहा गया है कि ,,"सब दिन होत ना एक समाना " यह अक्षरशः सत्य है। पतझड़ के बाद बहार आना निश्चित है । हमें भी समयानुसार जरुरत के मुताबिक अपने रुढ़िवादी नियम और विचारों में भी  परिवर्तन  करनी चाहिए । आजकल  " हाई-टेक" टेक्नोलॉजी के जमाने में वैसे भी बहुत कुछ आपरूपी परिवर्तित हो रहा है । इसलिए इस नये जमाने में हमें भी समय के साथ ही  परिवर्तन के सांसारिक नियम के साथ साथ आगे बढ़ना है ।
- डॉ पूनम देवा
पटना - बिहार
हां समय के साथ परिवर्तन संसार का नियम है यह विकासशील ताकि पहचान है रुका हुआ तो पानी भी शरण पैदा करता है इस वक्त को तो परिवर्तनशील होना ही है
- नीलम पांडे
गोरखपुर - उत्तर प्रदेश

" मेरी दृष्टि में " समय के साथ परिवर्तन अवश्य होता है । इसे प्राकृतिक का नियम भी कहते  हैं । एक  उदाहरण से स्पष्ट करता हूँ कि 1989 मे मेरा एक परिचर्चा के आयोजन में एक महीना लगता था । आज यहीं आयोजन एक दिन मे सम्भव हो जाता है । अतः समय के साथ परिवर्तन अवश्य होता है । यह प्राकृतिक का नियम भी हैं ।
                                                 - बीजेन्द्र जैमिनी


हिन्दी साहित्य सम्मेलन , प्रयाग 
द्वारा " समस्या और समाधान " में बोलते हुये 
बीजेन्द्र जैमिनी
दिनांक : 20-21 मार्च 1993
मुख्य अतिथि : पूर्व राष्ट्रपति ज्ञानी जेल सिंह
स्थान
हिन्दू महासभा
बिरला मन्दिर
दिल्ली 
इस कार्यक्रम में बोलते हुए बीजेन्द्र जैमिनी ने मांग की थी कि पंजाब विश्वविद्यालय , चण्डीगढ़ में पंजाबी भाषा सिखने के लिए कोर्स करने का माध्यम सिर्फ अग्रेजी भाषा में  है । हिन्दी माध्यम से नहीं होता था । अब हिन्दी माध्यम से पंजाबी सिखाने का कोर्स होना लगा है । यह सब बीजेन्द्र जैमिनी की मांग से सम्भव हुआ है ।




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