क्या प्लास्टिक का उपयोग घर परिवार में बढ़ रहा है ?

         घर परिवार में प्लास्टिक का उपयोग बहुत तेजी से बढ़ रहा है । इस ओर हम सब को देना चाहिए । प्लास्टिक का उपयोग किसी भी स्तर पर उचित साबित नहीं हो सकता है । फिर भी इस स्थिति से हम अनजान क्यों बने हुये हैं ?  यही " आज की चर्चा " का मुख्य उद्देश्य है । फिलहाल आये विचारों को देखते हैं : -
                                       
बिल्कुल बढ़ रहा है ।घर की लगभग पचहत्तर प्रतिशत वस्तुएँ प्लास्टिक से बनी हुई हैं।रसोई घर में सजे रंग बिरंगे आकर्षक डिब्बे, क्रॉकरी, डस्टबिन, पॉलीथिन आदि आदि ।हमारी सारी  ग्राॅसरी, सब्जियाँ,फल, नमकीन, चिप्स, कुरकुरे और भी हजारों खाद्य पदार्थ प्लास्टिक पैकेट में पैक होकर आते हैं ।इससे आगे बढ़ें तो बड़े बड़े घरेलू उपकरण भी  आज उत्तम क्वालिटी के प्लास्टिक  से बनाए जाते हैं जैसे पंखे, वाशिंग मशीन, फर्नीचर, आदि ।सभी की आकर्षित करने वाली  बाॅडी सुपर प्लास्टिक की बनाई जा रही हैं ।बच्चों द्वारा प्रयोग किए जाने वाले खिलौने, टिफिन, बोतल,पैन हर चीज प्लास्टिक की ही बनी होती है ।कोई भी घर इससे अछूता नहीं है ।
- सुशीला शर्मा
जयपुर - राजस्थान
यह सच है कि आज घर और परिवारों में भोजन, पानी, शीतल पेय पदार्थों, दूध, कोल्ड ड्रिंक्स, तेल, दवाओं की पैकिंग के साथ-साथ दैनिक उपयोग की वस्तुएं- रेनकोट, वस्त्र, घड़ियां ,खिलौने, मेज, कुर्सियां साथ में उनके कवर इत्यादि में प्लास्टिक का खूब प्रयोग हो रहा है। स्कूली बच्चों के लिए प्लास्टिक की बोतलें लंच बॉक्स में खाना और पानी का इस्तेमाल रोजमर्रा की जिंदगी में हम सब कर रहे हैं । आज यूज एंड थ्रो के जमाने में प्लास्टिक की वस्तुओं के प्रयोग की अहमियत बहुतायत में देखी जा रही है। सच मायने में, हम सब स्लो पाइजन ले रहे हैं। पॉलिथीन पर बैन सरकार का अच्छा कदम है।व्यक्तिगत स्तर पर हम सबको  प्लास्टिक- निर्मित वस्तुओं और पैकिंग इत्यादि से बचना चाहिए।
 - डॉ रेखा सक्सेना
मुरादाबाद - उत्तर प्रदेश
आज घर _घर में प्लास्टिक का उपयोग बहुतायत हो रहा है । दूसरे शब्दों में हम कह सकते हैं कि,, प्लास्टिक ने हमारे घरों में पूरी तरह से वर्चस्व हासिल कर लिया है। सुबह-सुबह प्लास्टिक पैकेट के दूध से लेकर रात तक ना जाने हम सब कितने तरह के सामानों के लिए प्लास्टिक का उपयोग करते हैं ।हम सभी ये भी जानते हैं कि प्लास्टिक अत्यन्त हानिकारक है। हमारे स्वास्थ्य के लिए,,हमारी मिट्टी के लिए,, हमारे पशु पक्षी सब के लिए यह जानलेवा बनता जा रहा है । हम सब को सरकार के साथ ही इसको पूर्णतः  "बैन" करने में सहयोग करने की अतिआवश्यकता है। 
- डॉ पूनम देवा
पटना - बिहार
मैं इस बात से सहमत हूँ कि प्लास्टिक का उपयोग हमारे जीवन में बढ़ रहा है ।सुबह ,जीवन की शुरुआत हुई नहीं कि हम प्लास्टिक के संपर्क में आने लगे । पैरों में चप्पल डाली प्लास्टिक ,टूथ ब्रश पकड़ा प्लास्टिक ,बोतल से पानी निकाला  प्लास्टिक ,ब्च्चों का टिफिन लगाया वो डब्बा भी  प्लास्टिक का ,बिजली का स्वीच दबाया वो भी प्लास्टिक का था । नहाने की बाल्टी वो भी प्लास्टिक , घर के बिजली के सभी उपकरणों में प्लास्टिक का इस्तेमाल होता है ।गृहणी का रसोई घर रंग -बिरंगे प्लास्टिक के समानों से सजा है ।दवाईयों की एक से एक सुन्दर पैकिंग देखने को मिलती है । मेरी नजर तो घर की ही वस्तुओं पर अटक रही है कितना प्लास्टिक का इस्तेमाल है बाहरी दुनिया की बात का कहना ही क्या ।विज्ञान का क्षेत्र हो या शिक्षा का कोई भी प्लास्टिक से अछूता नहीं है ।घर की साज -सज्जा प्लास्टिक बिन अधूरी लगती है ।यह हमारे जीवन में दीमक की तरह घर कर चुका है ।
- कमला अग्रवाल
गाजियाबाद - उत्तर प्रदेश
हम सब प्लास्टिक के उपयोग के इतने आदी हो चुके है कि इसकी हानियाँ जानते हुए भी अपने आप को इसके प्रयोग से बचा नही पा रहे है क्योंकि यह सुविधाजनक है और हर चीज़ इसी मे  पैक मिलती है । हमें इसका विकल्प ढूँढना होगा जो इतना ही सुविधाजनक हो और हानिकारक ना हो
- नीलम नांरग
हिसार - हरियाणा
प्लास्टिक का उपयोग घर परिवार में बढ नहीं रहा है अपितु दशकों से घर बना चुका है उससे पीछा छुड़ाने के लिए हम सबको व सरकार को बड़े प्रयास करने पड रहे हैं ।चाहे एक बार उपयोग वाली अथवा कईबार नुकसान ही कर रही है जितना कम से कम प्रयोग हो वही सभी के हित में है ।
- शशांक मिश्र भारती
 शाहजहांपुर - उत्तर प्रदेश
प्लास्टिक अर्थात्  संश्लेषित या अर्ध संश्लेषित कार्बनिक ठोस पदार्थों का समूह । इससे उपयोगी वस्तुओं को बनाया जाता है । आजकल हमारे आस पास इन पदार्थों की भरमार है , दैनिक जीवन की लगभग सभी वस्तुएँ इससे बनी होती हैं । सबसे अधिक इसका उपयोग पैकिंग में होता है । मजबूती में बेजोड़, कम मूल्य, सर्व सुलभ, आकर्षक डिजायन के चलते इनका प्रयोग नित्य बढ़ता जा रहा है जिससे पर्यावरण प्रदूषित हो रहा है । क्योंकि इनके बनने से क्लोरो फ्लोरो कार्बन का उत्सर्जन बढ़ जाता है साथ ही साथ सिंगल यूज़ वाली प्लास्टिक जो हम कचरे के रूप में फेंकते हैं उससे निरन्तर भूमि  बंजर  रही है  क्योंकि  इसका विघटन न होने के कारण ये हमेशा उसी अवस्था में बनी रहती है जिसमें इसे  फेंका गया था । अतः सभी बुद्धिजीवी वर्ग का ये कर्तव्य है  कि प्लास्टिक का उपयोग जहाँ तक संभव हो न करें , हमेशा कपड़े या जूट का थैला लेकर ही बाजार जाएँ ।
- छाया सक्सेना प्रभु
जबलपुर - मध्यप्रदेश
प्लास्टिक की क्रांति आ गई हर वस्तु प्लास्टिक की प्लास्टिक हमारे रोज़ की ज़िंदगी कावअभिन्न अंग बन गया है 
पहले जहां फूल , कांस्य, ताँबे का जलन था फिर आया एलिमूनियम, स्टील , आदि और तो प्लास्टिक ने हमें जकड़ लिया है बुरी ,तरह हर उपकरण प्लास्टिक का बनने लगा सस्ता होने से लोगों ने इसे अपना लिया । पर यह कितना हानि कारक है मानव जीवन के लिये ,अब बताने की जरुरतनही सब को समझ आ रहा है सरकार प्रतिबंध भी लगा रही है । भारत में अगर प्लास्टिक प्रदूषण की बात करें तो यहां ये समस्या और विकराल हो जाती है। यहां प्लास्टिक कचरे का निस्तारण तो दूर, इसके सही से कलेक्शन और रख-रखाव की व्यवस्था भी नहीं है। आलम ये है कि भारत में सड़क से लेकर नाली, सीवर और घरों के आसपास प्लास्टिक कचरा हर जगह नजर आता है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के आंकड़ों के अनुसार देश में प्रतिदिन लगभग 26 हजार टन प्लास्टिक कचरा निकलता है। प्लास्टिक ज़िन्दगी का एक अहम हिस्सा बन चुका है। अमूमन हर चीज़ के लिए प्लास्टिक का इस्तेमाल हो रहा है, वो चाहे दूध हो, तेल, घी, आटा, चावल, दालें, मसालें, कोल्ड ड्रिंक, शर्बत, स्नैक्स, दवायें, कपड़े हों या फिर ज़रूरत की दूसरी चीज़ें सभी में प्लास्टिक का इस्तेमाल हो रहा है। बाज़ार से फल या सब्ज़ियां ख़रीदो, तो वे भी प्लास्टिक की ही थैलियों में ही मिलते हैं। प्लास्टिक के इस्तेमाल की एक बड़ी वजह यह भी है कि टिन के डिब्बों, कपड़े के थैलों और काग़ज़ के लिफ़ाफ़ों के मुक़ाबले ये सस्ता पड़ता है। पहले कभी लोग राशन, फल या तरकारी ख़रीदने जाते थे, तो प्लास्टिक की टोकरियां या कपड़े के थैले लेकर जाते थे। अब ख़ाली हाथ जाते हैं, पता है कि प्लास्टिक की थैलियों में सामान मिल जाएगा। अब तो पत्तल और दोनो की तर्ज़ पर प्लास्टिक की प्लेट, गिलास और कप भी ख़ूब चलन में हैं। लोग इन्हें इस्तेमाल करते हैं और फिर कूड़े में फेंक देते हैं। लेकिन इस आसानी ने कितनी बड़ी मुश्किल पैदा कर दी है, इसका अंदाज़ा अभी जनमानस को नहीं है। दरअसल, प्लास्टिक कचरा पर्यावरण के लिए एक गंभीर संकट बन चुका है। केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के मुताबिक़ देश में सबसे ज़्यादा प्लास्टिक कचरा बोतलों से आता है। साल 2015-16 में करीब 900 किलो टन प्लास्टिक बोतल का उत्पादन हुआ था। राजधानी दिल्ली में अन्य महानगरों के मुक़ाबले सबसे ज़्यादा प्लास्टिक कचरा पैदा होता है। 
प्लास्टिक कचरा ही रि-साइकिल किया जाता है, बाक़ी का 90 फ़ीसद कचरा पर्यावरण के लिए नुक़सानदेह साबित होता है।
रि-साइक्लिंग की प्रक्रिया भी प्रदूषण को बढ़ाती है। रि-साइकिल किए गए या रंगीन प्लास्टिक थैलों में ऐसे रसायन होते हैं, जो ज़मीन में पहुंच जाते हैं और इससे मिट्टी और भूगर्भीय जल विषैला बन सकता है। जिन उद्योगों में पर्यावरण की दृष्टि से बेहतर तकनीक वाली रि-साइकिलिंग इकाइयां नहीं लगी होतीं उनमें रि-साइकिलिंग के दौरान पैदा होने वाले विषैले धुएं से वायु प्रदूषण फैलता है। प्लास्टिक एक ऐसा पदार्थ है, जो सहज रूप से मिट्टी में घुल-मिल नहीं सकता। इसे अगर मिट्टी में छोड़ दिया जाए, तो भूगर्भीय जल की रिचार्जिंग को रोक सकता है। इसके अलावा प्लास्टिक उत्पादों के गुणों के सुधार के लिए और उनको मिट्टी से घुलनशील बनाने के इरादे से जो रासायनिक पदार्थ और रंग आदि उनमें आमतौर पर मिलाए जाते हैं, वे भी अमूमन सेहत पर बुरा असर डालते हैं। स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि प्लास्टिक मूल रूप से नुक़सानदेह नहीं होता, लेकिन प्लास्टिक के थैले अनेक हानिकारक रंगों, रंजक और अन्य तमाम प्रकार के अकार्बनिक रसायनों को मिलाकर बनाए जाते हैं। रंग और रंजक एक प्रकार के औद्योगिक उत्पाद होते हैं, जिनका इस्तेमाल प्लास्टिक थैलों को चमकीला रंग देने के लिए किया जाता है। इनमें से कुछ रसायन कैंसर को जन्म दे सकते हैं और कुछ खाद्य पदार्थों को विषैला बनाने में सक्षम होते हैं। रंजक पदार्थों में कैडमियम जैसी जो धातुएं होती हैं, वो सेहत के लिए बेहद नुक़सानदेह हैं। थोड़ी-थोड़ी मात्रा में कैडमियम के इस्तेमाल से उल्टियां हो सकती हैं और दिल का आकार बढ़ सकता है। लम्बे समय तक जस्ता के इस्तेमाल से मस्तिष्क के ऊतकों का क्षरण होने लगता है। हालांकि पर्यावरण और वन मंत्रालय ने रि-साइकिल्ड प्लास्टिक मैन्यूफैक्चर एंड यूसेज़ रूल्स-1999 जारी किया था। इसे 2003 में पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम-1968 के तहत संशोधित किया गया है, ताकि प्लास्टिक की थैलियों और डिब्बों का नियमन और प्रबंधन सही तरीक़े से किया जा सके। भारतीय मानक ब्यूरो (बीआईएस) ने धरती में घुलनशील प्लास्टिक के 10 मानकों के बारे में अधिसूचना जारी की थी, मगर इसके बावजूद हालात वही 'ढाक के तीन पात' वाले ही हैं। प्लास्टिक के कचरे की समस्या से निजात पाने के लिए प्लास्टिक थैलियों के विकल्प के रूप में जूट से बने थैलों का इस्तेमाल ज़्यादा से ज़्यादा किया जाना चाहिए। साथ ही प्लास्टिक कचरे का समुचित इस्तेमाल किया जाना चाहिए। देश में सड़क बनाने और दीवारें बनाने में इसका इस्तेमाल शुरू हो चुका है। प्लास्टिक को इसी तरह अन्य जगह इस्तेमाल करके इसके कचरे की समस्या से निजात पाई जा सकती है। बहरहाल, प्लास्टिक कचरे से निपटने के लिए बेहद ज़रूरी है कि इसके प्रति जनमानस को जागरूक किया जाए, क्योंकि इस मुहिम में जनमानस की भागीदारी बहुत ज़रूरी है। इसके लिए जन आंदोलन चलाया जाना चाहिए।
- डॉ .अलका पाण्डेय 
मुम्बई - महाराष्ट्र
बिल्कुल प्लास्टिक के अन्धाधुन्ध प्रयोग के कारण ही हमारे आसपास का वायुमंडल प्राकृतिक आपदा,विपत्तियों  की श्रेणी में आ खडा हुआ है |सभी घर परिवारों में प्लास्टिक की वस्तुओं का खाने पीने के सामान में बेहद मात्रा में उपयोग होता है | प्लास्टिक के बर्तनों में गरम खाना खाने से या गर्म चाय, काफी, दूध आदि पीने से प्लास्टिक के बर्तन गर्म होकर खतरनाक जहर जैसा केमिकल बनाते हैं | जो व्यक्ति के शरीर में जाकर जहर का निर्माण करते हैं | और व्यक्ति अनजाने में ही भयंकर बीमारियों के शिकार हो रहे हैं | हमारी सरकार भी जनता को जाग्रत करने के लिए एवं प्लास्टिक प्रयोग न करने के लिए करोडों रूपये खर्च कर देती है |किंतु, पता नहीं मानव फिर भी क्यों नहीं समझते ? प्लास्टिक की वस्तुओं का अधिक उपयोग करने के कारण हमारे भारतीय समाज में कैंसर जैसी भयानक बीमारी ने खूब पाँव पसारे हैं |बड़ी, बड़ी नामचीन हस्तियों से लेकर गरीब दीन हीन व्यक्ति भी कैंसर रोगों के शिकार होकर काल का ग्रास बन रहे हैं | अतः प्लास्टिक के प्रयोग से अवश्य ही बचें एवं अन्यों को प्लास्टिक वस्तुओं का उपयोग न करने के लिए सजग, सावधान अवश्य ही करें | 
-  सीमा गर्ग मंजरी 
मेरठ  - उत्तर प्रदेश
सही हैं आजकल प्लास्टिक का उपयोग घर- बाहर हर जगह बढ़ गया हैं। अपने घर मे नजर डाले तो रोजमर्रा के उपयोग में प्लास्टिक की बोत्तल, कोल ड्रिंक्स, दूध, कंटेनर, कुर्सी टेबल, खिलौने,  कुरकुरे, चिप्स, कवर से लेकर लंच बॉक्स तक पलास्टिक का इस्तेमाल हम सभी धड़ल्ले से कर रहे है, ये जानते हुए की इसका उपयोग हमारे लिए बेहद खतरनाक साबित होगा। सरकार पॉलीथिन बैग पर बैन लगाई पर आज भी बाज़ारों में अवैध रूप से इस्तेमाल हो रहा है। जनता और सरकार दोनों को जागरूक होना होगा। पॉलीथिन के उपयोग से हमारी धरती भी उर्वरता क्षमता खो रही हैं जिससे कि उपज जितना होना चाहिए नहीं हो पा रहा हैं।
    - प्रेमलता सिंह
 पटना - बिहार
यह सही है कि आजकल हर परिवार में प्लास्टिक उपयोग बढ़ रहा है क्योंकि रोजमर्रा की चीजों से लेकर बड़ी-बड़ी वस्तुएं प्लास्टिक से या तो निर्मित है या उनमें पैक हो कर के आते हैं खाद्य पदार्थों को ही ले लें तो लगभग 80 परसेंट खाद्य पदार्थ प्लास्टिक के पैकेट में पैक हो कर के आते हैं आज हम जान रहे हैं कि प्लास्टिक का प्रयोग हमें नुकसान दे रहा है लेकिन फिर भी हम उस से बच नहीं पा रहे हैं ना चाहते हुए भी उसके उपयोग को छोड़ नहीं पा रहे हैं एक बार फिर हमें पीछे लौटना पड़ेगा कागज की पैकिंग की तरफ
   - नीलम पांडे
गोरखपुर - उत्तर प्रदेश
आज घर क्या दुनियां में कोई भी पहलू ऐसा नहीं जो प्लास्टिक से अछूता हो! अरे हमारे दिनचर्या में तो प्लास्टिक की मेन भूमिका है बिना प्लास्टिक  का तो काम ही नहीं  है! टूथब्रश, टूथपेस्ट, पानी की बॉटल, टिफिन बॉक्स, दूध की थैली, दवाई की शीशी बॉल हमारे सिन्थेटिक कपड़े  और स्कूल बैग आदि आदि गिनती करते जाए अंत नहीं है! विद्युत कुचालक होने की वजह से तार के उपर प्लास्टिक का आवरण होता है  !घर में फ्रीज, टीवी, स्वीचबोर्ड, मोबाइल ,वास़िग मशीन, यानिकी गिनती नहीं  है ! किचन में काम आने वाले डब्बे, कुकर के हैंडल,मिक्सी ,क्वाइल पेपर आदि आदि---।
आज हम कागज और कपड़े की थैली उपयोग में ला रहे हैं ताकि हम प्रदुषण और इसके जहर से बचे किंतु आज प्लास्टिक  हम पर इतना हावी हो गया है या हमे प्लास्टिक रुपी जोंक ने इतनी बुरी तरह जकड़ लिया है कि हम खुद ही नहीं चाहते की प्लास्टिक  की थैली बंद हो बस हमें  उससे मिलने वाली सुविधा ही दिखती है !थैली  हल्की होती है, वजन ज्यादा लेती है, फटती नहीं सबसे बड़ी बात पानी का कोई फलक नहीं पड़ता सामान खराब नहीं  होता! कलरफूल प्लास्टिक  के डब्बे, टब, सजाने की वस्तुएं सभी हमें  आकर्षित करती हैं! किचन में  तो डिब्बों में सामान रख हम खुश होते हैं चूंकि ट्रांसपेरेंट होने की वजह से चीज वस्तु ढूँढने में  समय नहीं  लगता धोने में भी ज्यादा मेहनत नहीं  लगती किंतु हम उससे होने वाले नुकसान को  देखें कि हमे कितना जहर दे रहा है फिर भी थोड़ी देर सोचते हैं पुनः उसका उपयोग करते हैं  ! जीवन की दिनचर्या  से इसे निकाल दें तो हम अधूरे हो जाते हैं !सब छोड़ अपनी सुविधा की ओर मुड़ जाते हैं! 
दवाइयाँ  भी प्लास्टिक  की शीशी बॉल में  आती है! मालूम हैं जहर उगल रही है ,हमारे ठीक होने की तो बात जाने दो हम खतरनाक बीमारी ले रहे हैं  किंतु मेडिकल वाले बंद नहीं  करते चूंकि सस्ती भी होती है और फुटती नहीं  !आज हम अपनी  सुविधा ही ना देखें! प्लास्टिक  से जो विनाश के परिणाम को देखें  तो यह हमें  राक्षस नजर आता है! पशु पक्षी समुद्री जीव और हमारी धरती माता भी बंजर हो रही है! 
इस बात में  तो दो राय नहीं है कि  प्लास्टिक हम पर  हावी हो गई  है  न चाहकर भी .....।
- चन्द्रिका व्यास
मुम्बई - महाराष्ट्र
प्लास्टिक का उपयोग दशकों से हो रहा है |नित नए आकर्षक रूप ,रंग,आकार -प्रकार की प्लास्टिक की वस्तुएँ बाज़ार में उपलब्ध है|ये हल्की ,सुंदर ,बहुउपयोगी होती है|ये हमारे जीवन के हर कार्य कलापों में आसानी से रच -बस गई हैं |जिनको अपने जीवन से पूरी तरह हटाना असंभव प्रतीत हो रहा है |कुछ साल पहले तक हम प्लास्टिक के दुष्प्रभाव से अनभिज्ञ थे |किंतु आज जब हम जान गए हैं कि इसके इस्तेमाल से मानव जीवन को तो ख़तरा है ही ;साथ ही प्रकृति ,वन -उपवन ,पशु -पक्षी पूरे पर्यावरण पर भयानक असर हुआ है |भारत सरकार भी जागरूक और प्रयत्नशील है प्लास्टिक से मुक्ति के लिए ,लेकिन प्रत्येक नागरिक की भागीदारी भी अति आवश्यक है |अब समय आ गया है प्लास्टिक को ‘ना’कहने की तभी हम स्वस्थ और स्वच्छ वातावरण में साँस ले पाएँगे |
                  - सविता गुप्ता 
               राँची - झारखंड
प्लास्टिक का उपयोग घर परिवार का अभिन्न अंग बन गया है। बचपन से लेकर मरण तक हम इसके शिकंजे में आसानी से, सहजता से सच कहें तो आधुनिकता दिखान के चक्कर में फसे हैं। सब से खतरनाक तो मह बात है कि हम प्लास्टिक के चावल, अंड़े, गोभी, व अन्य कयी फल रोज खा रहे हैं। इस से खतरनाक मीठा ज़हर क्या होगा। हमे सावधान हो जाना चाहिए और जीवन को प्रकृति से पुनः जोड़ने का सद्प्रयास करना चाहिए। यदि हम अपने बच्चों का भविष्य सुरक्षित रखना चाहते हैं तो प्लास्टिक को सख्ती से ना कहें।
- ड़ा.नीना छिब्बर
 जोधपुर - राजस्थान
हमारे घर ही नहीं आसपास छोटी बड़ी सभी दुकानों में प्लास्टिक का उपयोग अत्यधिक बढ़ गया है। हमारे घरों में खासकर रसोई घर में प्लास्टिक की बहुलता अत्यधिक हो गई। प्लास्टिक के सजावटी बर्तन हों या फिर रंग बिरंगे डब्बे हों, यहाँ तक कि माइक्रोवेव में उपयोग आने वाले भी प्लास्टिक के ही बर्तन ज्यादा होते हैं। ये जानते हुए भी कि ये प्लास्टिक के बर्तन हमारे स्वास्थ्य के लिए कितने हानिकारक होते हैं हम अपनी सुविधा और शौक से वशीभूत होकर इनका उपयोग करने से परहेज कतई नहीं करते हैं। बाजार से वस्तुएं खरीदकर लाने के लिए भी हम कपड़े या किसी अन्य प्रकार की अपनी थैली का उपयोग करने के बजाय दुकानदार से प्लास्टिक की थैली ही माँगते हैं। यद्यपि प्लास्टिक के उपयोग को बंद करने के लिए समाज में जागरूकता आई है, साथ ही सरकार भी इसके लिए कड़े नियम बना रही है जिसका उल्लंघन करने पर आर्थिक दंड का भी प्रावधान है। तथापि अभी हमें थोड़ा और जागरूक होने की आवश्यकता है जिससे हम अपने घर ही नहीं अपने आसपास भी प्लास्टिक के उपयोग को प्रतिबंधित करें और इसके दुश्प्रभाव से बच सकें।
       - रूणा रश्मि
      राँची - झारखंड
      प्लास्टिक सुविधाजनक, आकर्षक, कम मूल्य, विविध रंगों  में होने के कारण घर-परिवार ही, जीवन के हर क्षेत्र में अपनी मजबूत पकड़ ही नहीं बना चुका बल्कि आदत और स्वभाव में समाहित ही हो गया है। लेकिन यह भी सच है कि अब लोग प्लास्टिक से हो रहे खतरों से परिचित हो चुके हैं, भविष्य में होने वाले खतरों के बारे में भी जानने लगे हैं। इसी कारण धीरे-धीरे ही सही,प्लास्टिक घर-परिवार से बाहर निकलने लगा है। लोगों में चेतना जगने लगी है। स्वास्थ्य के प्रति जागरूक होने लगे हैं, बच्चे भी अब अपना टिफिन और पानी स्टील के टिफिन बॉक्स और बोतल में लेकर जाने लगे हैं।लोग अब कपड़े का थैला लेकर सब्जी लेने जाते हैं, प्लास्टिक की चीजों का उपयोग भी धीरे-धीरे छोड़ रहे हैं तो भविष्य के लिए यह सुखद संकेत भी है। वो दिन अब ज्यादा दूर नहीं हैं जब प्लास्टिक घर-परिवार से सदा के लिए बाहर निकल जायेगा। आज की यह परिचर्चा भी लोगों को प्लास्टिक का उपयोग न करने के लिए और अधिक जागरूक करेगी.. ...ऐसा मेरा विश्वास है ।
- डा० भारती वर्मा बौड़ाई
देहरादून - उत्तराखंड
हाँ, बढ़ रहा था । लेकिन अब थमने लगा है । अब कम-से-कम बाजार जाने वाले हर शख्स के हाथ में थैला दिखता है । फिर भी इतने अंदर तक पैठ हो जाने के बाद बहुत समय लगेगा इससे बाहर आने में । लोगों की मानसिकता बदल रही है । 30 प्रतिशत लोग जागरूक हुए हैं ,लेकिन अभी भी लोग लापरवाही करते हैं और इसे आकस्मिक बता कर बचने की कोशिश करते हैं । आज जहाँ भी जमीन की खुदाई होती है प्लास्टिक का अंबार खड़ा हो जाता है । कई जगह अब कागज के थैले मिलते हैं । परंतु इतना काफी नहीं है ।जरूरत है सतर्कता की ।अगर हम अपने प्रति सतर्क होंगे तो शायद हमें जल्द ही इस भयानक दैत्य से छुटकारा मिल जाए ।
- संगीता गोविल
पटना - बिहार
प्लास्टिक  कम  लागत  तथा  इधर-उधर  ले  जाने  की  सुविधा  के  कारण  बेहद  लोकप्रिय  हुआ  ।  इसकी  दुनिया  बहुत  बड़ी  है  और  इसका  साम्राज्य  चारों  ओर  फैला  हुआ  है ।  इसके  अंधाधुंध  उपयोग  के  कारण  लोग  कई  प्रकार  की  बीमारियों  के  शिकार  हो  रहे  हैं  ।  ये  पर्यावरण  के  लिए  भी  खतरा  बन  चुका  है  । यह  हमारी  जिंदगी  से  कुछ  इस  तरह  चिपक  गया  है  जैसे  बदन  से  चमड़ी  । यदि  हम  प्लास्टिक  कंटेनरों  का  उपयोग  करते  हैं  तो  केवल  कोड  संख्या  2, 4, 5  के  कंटेनरों  का  ही  उपयोग   करें  ये  खाद्य  ग्रेड  प्लास्टिक  है ।  हमें  कोड  संख्या  3  और  5  से  बने  कंटेनरों  से  बचना  चाहिए  तथा  प्लास्टिक  की  थैलियों  से  भी  । 
        - बसन्ती पंवार 
        जोधपुर - राजस्थान 


" मेरी दृष्टि में " प्लास्टिक का विरोध चारों ओर हो रहा है । फिर भी हमारे घरों में प्लास्टिक का उपयोग बहुत तेजी से बढ़ रहा है । क्या हम इस के कारणों से अनजान है । नहीं ! ये हमारी लापरवाही है । अतः हम सब को अपने - अपने घरों को प्लास्टिक से मुक्त करने के प्रयास शुरू करने चाहिए । तभी हम प्लास्टिक के विरोध में अपनी भूमिका स्पष्ट कर सकते हैं । यहां कुछ विचार चर्चा की शीर्षक के अनुकूल नहीं है । फिर भी विचार शामिल किये गये हैं । विषय एकदम स्पष्ट है कि घर परिवार में प्लास्टिक का उपयोग ........ ।
                                      - बीजेन्द्र जैमिनी

हिन्दी साहित्य सम्मेलन , प्रयाग
द्वारा
राष्ट्रभाषा सम्मेलन
सोलन - हिमाचल प्रदेश
दिनांक : 30 मई 1998
सम्मेलन के प्रधानमंत्री श्रीघर शास्त्री को अपना समाचार पत्र 
" जैमिनी अकादमी " दिखाते हुए बीजेन्द्र जैमिनी


Comments

  1. ऊपर दिए गए सभी सभी साथियों के वक्तव्य से मैं पूर्ण तरह से सहमत हूँ। आज हमारी ज़िन्दगी का प्लास्टिक अहम हिस्सा बन चुका है और हमारे लिए यह एक विचारणीय मुद्दा बन चुका है
    - शारदा गुप्ता
    इन्दौर - मध्यप्रदेश
    ( " आज की चर्चा " WhatsApp ग्रुप से साभार )

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