करियर बनाने में कोचिंग की क्या भूमिका होनी चाहिए ?

आधुनिक दुनियां में करियर बनाने के लिए कोचिंग लेना बहुत ही  आवश्यक हो गया है । बिना कोचिंग के तो स्कूल की प्रथम कक्षा में भी दाखिला नहीं होता है । करियर में तो कोचिंग लेते लेते भी सफलता के लिए लम्बा संघर्ष करना पड़ता है । फिर भी करियर में सफलता कितने लोगों को मिलती है। इसलिए करियर में कोचिंग की भूमिका बढ रहीं है । यही " आज की चर्चा " का प्रमुख विषय है । अब आये विचारों को देखते हैं : -
जी!कोचिंग सैंटर तो अब शिक्षण केंद्र  ही बन गए हैं.  जहाँ तक कैरियर बनने की बात है,तो एकाग्रचित्त  होकर, ध्यानपूर्वक  पढ़ते हुए   परिश्रम करके सफल होना अब इन्हीं  कोचिंग  सेंटर में संभव है.न अब छते हैं, जहाँ अध्ययन  करते थे,न आंगन हैं, जहाँ मौसम के अनुकूल बैठकर पढ़कर राहत हो.  प्रतिस्पर्धा के दौर में सब दौड़ना चाहते हैं. अत्युत्तम प्रबुद्ध शिक्षक-गण ही अब यहाँ पढ़ाते हैं,अत:अब इनकी सशक्त भूमिका ही मान्य मानी जा सकती है.
- डाँ. अंजु लता सिंह
दिल्ली
करियर बनाने में कोचिंग की भूमिका एक सही मार्गदर्शन कराने वाले की है अगर समय से सही तरीके से मिल जाये पर यदि व्यवसाय का रूप ले ले अथवा माता पिता के द्वारा थोपी गई हो तो कोई औचित्य नहीं ।आजकल जिस तरह से कोचिंग का रूप और केन्द्रीकरण दिख रहा है सुखद व भविष्यनिर्माता नहीं कहा जा सकता ।कई कोटा से वापसी कर मेरी बिना किसी कोचिंग वाली बेटियों के साथ पढ रहे हैं ।
- शशांक मिश्र भारती
 शाहजहांपुर - उत्तर प्रदेश
कैरियर बनाने के लिए कोचिंग की महत्वपूर्ण भूमिका है ।लेकिन आज इस आधुनिक युग के व्यक्ति इतना स्वार्थी हो गया है। वह अधिक धन कमाने की चाहत में अपना  कर्तव्य भूल बैठा है । उसी तरह से गुरु स्कूल मेंशिक्षा को सिर्फ नौकरी समझ कर बैठ गए हैं और सिर्फ पैसे कमाना चाहते हैं।
स्कूलों को स्कूलों के बच्चों को अपनी कोचिंग सेंटरों में लाने के लिए स्कूलों से जुड़ जाते हैं। जिससे अधिक से अधिक धन कमा सकें। स्कूल तो केवल नाम मात्र के लिए रह गया है ।
नीट ,यूपीएससी, इंजीनियरिंग, आदि कॉम्पिटेटिव एग्जाम्स के लिए हर शहर में कोचिंग भारी मात्रा में है। कोचिंग सेंटर और कैरियर एक सिक्के के दो पहलू बन चुके हैं। मां बाप अपने बच्चों को किसी भी तरह  डॉक्टर, इंजीनियर बनाना चाहते हैं। अभी तो आपको तय करना है कि बच्चे के कैरियर के लिए कोचिंग कितना आवश्यक है। यह आपको सोचना है।
         - प्रीति मिश्रा
         जबलपुर - मध्य प्रदेश
आज कोचिंग की दुनिया दीमक की तरह हमारे समाज की हर संध तक घर कर गई है जो गरीब, अमीर हर परिवार का खून चूस रही है ।बच्चों और अभिभावकों में इनमें दाखिला लेने की दौड़ हो रही है ।हर माता-पिता अपनी संतान के लिए कर्ज लेकर भी इनमें दाखिला करवाने के लिए तैयार बैठा है क्योंकि यहाँ जगह मिलते ही वह अपने बच्चों को इंजिनियर और डाक्टर के रूप में सपने संजोने लगते हैं ।बच्चे में चाहे इतनी क्षमता हो या नहीं ।आज कोचिंग सैन्टर में अधिकतर उच्च श्रेणी के बच्चे अधिक जाते हैं जिन्हें सिर्फ थोड़े से गाइडेंस की जरूरत होती है ,लेकिन वहाँ की फीस इतनी अधिक होने के कारण कई बच्चे वंचित रह जाते हैं । यदि ये सैन्टर शिक्षा को व्यापार के रूप में ना लेकर युवाओं का वास्तविक भविष्य निर्माण करना चाहते हैं तो सबसे पहले फीस पर नियंत्रण करना चाहिए ।भारतीय संस्कृति में तो  शिक्षा दीक्षा को महा दान कहा गया है फिर इसमें व्यावसायीकरण क्यों? सुना है जितना नामी कोचिंग सेंटर है उनके शिक्षकों का वेतन लाखों में निर्धारित होता है ।चार घंटे के लेक्चर की यदि इतनी कीमत बच्चों से वसूली जाती है तो वे गुरु नहीं बल्कि व्यापारी वर्ग है जो स्वयं द्वारा ली गई शिक्षा का हर्जाना बच्चों के अभिभावकों से वसूली कर रहे हैं ।नाम रखते हैं "गुरुकुल , करियर पाइंट ,और शुल्क लाखों में, वो भी एडवांस ।फिर चाहे कोई बच्चा मुकाम हासिल करे या ना करे ।इसकी गारंटी ये नहीं लेते ।यदि वास्तव में ये बच्चों का भविष्य बनाना चाहते हैं तो उन्हें मरीचिका ना दिखाएँ ।बच्चे की क्षमता के आधार पर उसकी दिशा निर्धारण में सलाहकार बनें ना कि बिना सोचे समझे एडमीशन देकर गुमराह करें ।मानते है कि आज तकनीकी शिक्षा में सहायता करने में माता-पिता अक्षम्य हैं लेकिन शिक्षा विस्तार के लिए इन पर अंकुश आवश्यक है ।कोचिंग सेंटर यदि देश के भविष्य की सच्ची सेवा करना चाहते हैं तो बालकों की मदद करें और व्यापारीकरण कम करें ।
- सुशीला शर्मा
जयपुर - राजस्थान
आज प्रतियोगिता के दौर में कोचिंग क्लासेज़ की बाढ़ सी आ गई है । हर बच्चा कालेज या स्कूल न जा कर अच्छी कोचिंग क्लासेज़ की खोज में रहता है । मानो कोचिंग के बिना उनका केरियर बन ही नहीं सकता ।  फ़ीस की बात न कि जाये तोबेहतर  है मनमानी फ़ीस  वसूलते है । कोचिंग सेंटर पर भी कुछ अंकुश लगाने की जरुरत है फ़ीस  निर्धारित करने की ताकी हर बच्चा कोचिंग ले सके . यह हर विघार्थी के लिये सुगम होना चाहिये , अमीर गरीब सब फ़ीस  दे पाये 
शिक्षा को व्यापार बना दिया है । इन कोचिंग सेंटर ने जो नहीं होना चाहिये । बडें कोचिंग सेंटर तक तो साधारण व्यक्ति अपने बच्चों को भेज ही नहीं पाता है । प्रशिक्षक का काम होता है प्रशिक्षण लेने वाले के विचारों, अवधारणाओं और चिंताओं को बाहर निकालना। इसके लिए पहले वे उन्हें यह निश्चय करने में मदद करते हैं कि वे ठीक किस विषय में बात करना चाहते हैं और जो कहा जाता है उसे दोहराते हैं ताकि प्रशिक्षण लेने वाला स्वयं अपने विचारों और अवधारणाओं को ‘सुन’ सके। प्रशिक्षक द्वारा अपनी अवधारणाओं के योगदान से लगातार इन्कार करना आवश्यक है, ताकि प्रशिक्षण लेने वाला स्वयं अपने समाधान सोच सके। सबसे आम आदत है स्थिर बैठना और कुछ न कहना; यह प्रशिक्षण देना सीखने में आपके लिए सबसे बड़ी चुनौती हो सकता है। 
प्रशिक्षक और प्रशिक्षण लेने वाले में तारतम्य का होना बहुत जरुरी है फिस ले पर शिक्षा का व्यवसायीकरण न करे 
शिक्षा और शिक्षक पूज्यनीय रहे तो ही समाज का व देशको विकास प्रगति पर होगा 
- डॉ अलका पाण्डेय
मुम्बई - महाराष्ट्र
कोचिंग का उद्देश्य  बच्चों और युवाओं को इस योग्य बनाना कि वे अपने पाठ्य पुस्तकीय ज्ञान को और निखार सकें, जो समझ में न आ रहा हो उसे समझ कर अपनी नींव मजबूत कर सकें । यहाँ  संस्थान को एक सही राह दिखाना होता है  जिससे विधार्थी अपनी क्षमता व रुचि के अनुसार कार्य क्षेत्र का चयन कर उसमें विशिष्टता हासिल कर सके । परन्तु अक्सर देखने में आता है कि कोचिंग स्टेटस सिंबल बनती जा रही है । हर अभिवावक अपने बच्चों को  कोचिंग भेजकर निश्चिंत हो जाता है कि नामी संस्थान उसे अवश्य ही सफल बनायेगा । बच्चों की मानसिक क्षमता व रुचि के अनुरूप उन्हें प्रेरक व्यक्तवों द्वारा उत्साहित करना साथ ही ऐसा वातावरण बनाना जिससे उनमें भटकाव न हो और वे अपना करियर चुन सकें ।
- छाया सक्सेना प्रभु
जबलपुर - मध्यप्रदेश
प्रथम मैं यह कहूंगी हमारी पहली पाठशाला घर है और शिक्षिका और गुरु मां पिता है क्योंकि वही हमें सही तरीके से जानते हैं कि हमें आगे क्या करना है चाहिए और क्या कर सकते हैं ? अपने बच्चे की योग्यता और पसंद को उनसे बेहतर कौन जान सकता है ? हां शिक्षा आज एक व्यवसाय के तराजू में तौली जाने लगी है साधारण लोगों को बच्चों को शिक्षा देने के लिए खुद को बेचने की नौबत आ जाए यह कहना अतिशयोक्ति नहीं लगती!  यह सच है हर माता-पिता बच्चों को उच्च शिक्षा प्रदान करना चाहते हैं किंतु ध्यान रहे उन्हें उनकी रूचि के अनुसार ही पढ़ाएं ! जिसमें उसकी योग्यता हो उसे वही करने देना चाहिए ! प्रतिस्पर्धा का जमाना है आज हम तकनीकी शिक्षा में अपने बच्चों की पढ़ाई में सहायता नहीं कर सकते क्योंकि क्यूरीकलम भी अलग-अलग है तो क्या करें अतः हम ट्यूशन अथवा कोचिंग सेंटर की सहायता लेते हैं किंतु उनकी फीस ,स्कूल की फीस ,अन्य खर्चे को देखते हुए फिर विचार करने के लिए बाध्य हो जाते हैं भेजें या नहीं ? पर जहां बच्चों के भविष्य का ख्याल आता है भेजने की कोशिश करते हैं किंतु उससे फायदे भी है हां इसमें कोई दो राय नहीं कि उनकी फीस पर अंकुश लगाया जाए ताकि सभी बच्चे इसका फायदा उठा सकें ! कोचिंग क्लास के फायदे तो है -
(1) रिवाइजिंग कांसेप्ट पूर्ण होता है यदि घर पर समय नहीं मिलता अथवा वैसा माहौल नहीं है तो रिवीजन हो जाता है !
(2) आसान तरीके से एक निश्चित समय की अवधि में कठिन समस्या भी सुलझा लेते हैं !
(3) हर साल पाठ्यक्रम में पैटर्न बदलते हैं जिसे हम माता-पिता नहीं बता सकते जो वे वहां समझ लेते हैं !
(4) प्रतिभा के साथ समय- प्रबंधन की शिक्षा देते हैं छात्रों को इस तरह तैयार करते हैं कि समय पर सभी प्रश्नों का जवाब भी दे देते हैं और रिवीजन भी कर लेते हैं !
(5) समय सदुपयोग की ट्रेनिंग भी देते हैं सभी विषयों को कितना कितना समय दिया जाए ताकि सभी विषय की तैयारी हो जाती है ! हमेशा टैस्ट लेते रहते हैं  माहौल ऐसा बनाते हैं जैसे परीक्षा हाल में बैठे हैं उससे एक फायदा यह भी होता है कि परीक्षा का डर दूर हो जाता है! 
     कोचिंग के साथ-साथ अभिभावकों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है ! माता-पिता को उसकी हर बारीक से बारीक बात पर नजर रखनी चाहिए !  बच्चों के साथ हमारे बात करने का तरीका अथवा उनके साथ कैसे पेश आए इसका ध्यान रखना चाहिए !उनके लिए घर पर माहौल ऐसा बनाएं कि वह पढ़ सके !
अंत में  मैं यही कहूंगी आज की तारीख में पढ़े लिखे होने के बावजूद तकनीकी शिक्षा में हम अपने बच्चों की मदद नहीं  कर पाते  एवं प्रतिस्पर्धा  का जमाना भी है अतःकरियर के लिए कोचिंग का महत्व तो है!
- चन्द्रिका व्यास
मुम्बई - महाराष्ट्र
करियर से तात्पर्य किसी भी व्यक्ति की नौकरी (जीविका) या रोजगार संबंधी स्थिति से है। इसके लिए प्रारंभ से ही माता-पिता अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा देने के लिए अपनी आर्थिक क्षमताओं के अनुसार स्कूल या कॉलेज फिर विश्वविद्यालय में भेजते हैं ।सरकारी विद्यालयों में पढ़ाई न के बराबर होती है। इंग्लिश मीडियम के नामी-गिरामी कॉलेज में कहीं पढ़ाई अच्छी भी होती है, तो उनको इतना अत्यधिक वर्क देकर के मानसिक दबाव बना दिया जाता है, जिससे उबरने के लिए या सही समय और कम समय में अधिक अच्छी पढ़ाई के लिए कोचिंग की शरण में जाना पड़ता है। व्यवसायिक शिक्षा एवं करियर बनाने की दिशा में अग्रसर कोचिंग संस्थानों ने बहुतायत से जिले स्तर से लेकर के राजधानी तथा देश में नामी-गिरामी रूप में अपनी पैठ बना रखी है। प्रतिस्पर्धा के दौर में करियर और कोचिंग एक दूसरे के पूरक नजर आते हैं करियर बनाने हेतु कोचिंग सेंटर को चाहिए कि वह छात्र-छात्राओं की शारीरिक और मानसिक श्रम करने की योग्यता उनकी विषयगत रूचि, अभिरुचि, आर्थिक क्षमता तथा शत-प्रतिशत नौकरी पा जाने काबिल का ही एडमिशन लें अन्यथा फीस वापसी की शर्त हो; जिससे कोचिंग करने के उपरांत यदि मन -माफिक करियर नहीं चुन पाते तो पछतावा और धन- हानि नहीं होगी।
- डॉ. रेखा सक्सेना
मुरादाबाद - उत्तर प्रदेश
केरियर, जीवकोपार्जन का महत्वपूर्ण हिस्सा है।इससे न केवल व्यक्ति की वर्तमान जीवन- शैली का निर्धारण होता है बल्कि  भविष्य भी तय होता है। माता-पिता,गुरु,परिवार, समाज, पड़ौसी,मित्रों के अलावा व्यक्ति की शिक्षा और योग्यता भी करियर बनाने में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से अहम सहायक होते हैं। जैसे-जैसे सामाजिक विकास हुआ,जाग्रति हुई,जरूरतों में बदलाव आया, नये अविष्कार हुये, नये व्यवसाय प्रारंभ हुए । इसी कड़ी में करियर को लेकर भी  विकल्प के रास्ते खुले और उन्हें सही मार्गदर्शन के लिये कोचिंग के रूप में विविध संस्थानों का जन्म हुआ। ये आगे चलकर पसंदगी के साथ इतने सफल और उपयोगी साबित हुये कि उनका व्यापक ढंग से विस्तार  हुआ। आज ये स्थिति है कि हर विद्यार्थी या यूँ कहें कि हर युवा कोचिंग के माध्यम से अपना करियर संवारना चाहता है। उनकी नजर में कोचिंग ऐसी सुलभ जगह है,जहां से वह अपनी रुचि के अनुसार इच्छित जाब के विषय में न केवल पूरी जानकारी प्राप्त कर सकता है बल्कि उसके लिये आवश्यक तैयारी भी समुचित तरीके से कर सकता है। कोचिंग के इस बढ़ते चलन में कोचिंग के संचालकों पर अब बहुत बड़ी जिम्मेदारी और जबाबदारी है कि वे अपने संस्थानों से अधिक से अधिक योग्य प्रतियोगी तैयार करें जो उनका अपना भविष्य तो सुंदर बनायें ही,संबंधित कोचिंग का भी यश फैलावें। इसके लिये उन्हें न केवल अपने संस्थानों से दिये जाने वाले प्रशिक्षण को बल्कि वहां उपलब्ध सुविधाओं और वातावरण को भी बेहतर बनाना चाहिए।  योग्य शिक्षक, बेहतर शिक्षा, आवश्यक अनुशासन, निष्पक्ष अध्यापन, समुचित व्यवस्था, स्वच्छ और सौहार्दपूर्ण वातावरण, नीतिगत फीस, नियमों का निष्ठा से परिपालन, आदि अनेक बिंदुओं पर गंभीरता से सरल,सहज और सरसता से निर्वहन करना चाहिए। संचालित होने वाली हर गतिविधियों पर ध्यान रखना चाहिए।सजग रहना चाहिए और किसी भी अप्रिय स्थिति बनने पर त्वरित निदान के लिये तत्पर रहना चाहिए। संचालक के साथ-साथ,संरक्षक और पालक बनके अपना नैतिक दायित्व निभायेंगे तो राष्ट्रीय और सामाजिक स्तर से हितकर होगा, श्रेयस्कर होगा।
- नरेन्द्र श्रीवास्तव
 गाडरवारा - मध्यप्रदेश
कोचिंग  एक  व्यवसाय  अवश्य  बना परन्तु सही  मार्गदर्शन  भी दिया। उस उचित मार्गदर्शन  के फलस्वरूप  आज  के समय  गांव  हो या शहर करीब  हर घर  से इंजीनियर  निकल रहे है। डॉक्टर  भी बन रहे  है । इसके अलावा भी अनेको क्षेत्र  मे जैसे बैकिंग  कम्प्यूटर  टेक्नोलॉजीज  मीडियाओं भी अन्य  क्षेत्र  मे युवा वर्ग  सफलता  हासिल  कर  रहा है
दो पीढियो  का  तुलनात्मक  अध्ययन  के आधार  पर  यह  निश्चित  तौर  पर  कहा जा सकता है कि कोचिंग  की सकारात्मक  भूमिका  है इस मे बहुत  ऐसे परिवार  जिनके  पास  जानकारी  का अभाव  है उनलोगो के लिए  कोचिंग  एक मार्गदर्शक  बन जाता है व्यवसाय  बन  जाने  के कारण  व्यापार  अवश्य  बन  गया  है इसके लिए  किसी  न किसी  प्रकार  का प्रतिबंध  होना आवश्यक  है। 100% विद्यार्थी  के लिए  यह जरूरी  नही  है कोचिंग । हर  पहलू  के दो रूप होते है  ।जहा  सकारात्मक  पक्ष  है वहा  नकारात्मक  का होना  जायज  है  
- डाँ. कुमकुम वेदसेन
मुम्बई - महाराष्ट्र
आज के समय में कोचिंग दीमक बन कर बच्चों और उनके परिवारों को खोखला बना रही है। आज की पढ़ाई ऐसी है कि उसमें माता-पिता अधिक मार्गदर्शन नहीं कर पाते। इसलिए प्रतियोगिताओं में निकलने के लिए विवश होकर कोचिंग का विकल्प अपनाना पड़ता है। कहीं आवश्यक होकर कोचिंग लेनी पड़ती है तो कहीं अपने स्टेटस और दिखावे को बरकरार रखने के लिए कोचिंग करवाई जाती है।  कोचिंग व्यापार न बने, मनमानी फीस न वसूली जाये, बच्चों को पढ़ाना उद्देश्य हो, उन्हें इस तरह मार्गदर्शन दिया जाये कि वे उससे घर में भी स्वयं मेहनत करके पढ़ सकें।  माता-पिता कोचिंग को अपना स्टेसस सिंबल न बना कर अपनी और बच्चे की शैक्षिक क्षमता के अनुसार कोचिंग करवायें तभी कोचिंग अपनी भूमिका कैरियर के लिए सार्थक रूप में निभा सकती है।
- डा० भारती वर्मा बौड़ाई
देहरादून - उत्तराखण्ड
आजकल कोचिंग सेंटर व्वसाय का रूप धारण कर चुका हैं। माता- पिता भी इसे स्टेटस सिंबल की तरह देख रहे हैं। मेरे रिश्तेदार या पड़ोसी का बच्चा टॉपर कोचिंग में पढ़ता हैं तो मेरा बच्चा क्यों नहीं। इसी का फायदा कोचिंग सेंटर वाले उठाते हैं और मनमानी पैसा वसूलते हैं। कोचिंग जरूरी है क्यूंकि तकनीकी शिक्षा में सहायता मिलती हैं।बच्चों का कॉन्सेप्ट क्लियर होता हैं। आजकल ज्यादातर पढ़ाई इंग्लिश भाषा मे होता हैं माता -पिता अगर इंग्लिश  नहीं जानते तो मजबूरी वश बच्चों को कोचिंग सेंटर में एडमिशन करवाते हैं, मजबूरी का फायदा कोचिंग सेंटर वाले उठाते हैं।गलती गार्जियन और कोचिंग दोनों का हैं , जो गलत पर आवाज नहीं उठाते हैं। शिक्षा का व्यवसायिकरण गलत है। ऐसे में तो गरीबों के बच्चे शिक्षा से वंचित रह जाएंगे।
   -  प्रेमलता सिंह
      पटना - बिहार
आज के आधुनिक युग में शिक्षा अतिमहत्वपूर्ण है|हर व्यक्ति सफल ,कामयाब होना चाहता है|सफलता के लक्ष्य को पाने के लिए वह हर तरह की कोशिश करता है |आज हर क्षेत्र में स्पर्धा हद से ज़्यादा है ,चाहे वह शिक्षा हो या नौकरी पाने की कोशिश |जिसकी पूर्ति के लिए व्यक्ति अपने सामर्थ्य के अनुसार छोटी या बड़ी से बड़ी क़ीमत चुका कर कोचिंग संस्थानों का रूख करता है| कोचिंग संस्थान कई दशकों से एक व्यापार का रूप ले लिया है|हर गली नुक्कड़ पर कोचिंग संस्थान कुकरमुत्तों की तरह खुल गए हैं जहाँ पैसे वाले माँ-बाप
समयाभाव के कारण या दिखावे में आकर अपने बच्चों का दाख़िला करा कर निश्चित हो जाते हैं |नर्सरी के बच्चों से लेकर बारहवीं के ,प्रतियोगि परीक्षा हो या नौकरी या कंप्यूटर कई तरह के कोचिंग संस्थान मोटी कमाई कर रहें हैं |इन संस्थानों को कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता की विद्यार्थी लाभान्वित हो रहा है या नहीं |सरकार को इन संस्थानों पर अंकुश लगाना चाहिए जिन्होंने शिक्षा देने के बजाए एक धंधा बना रखा है| 
                              - सविता गुप्ता 
                              राँची - झारखंड
आज इक्कीसवीं सदी में केरियर बनाने में कोचिंग की
भूमिका चारों ओर दिखाई दे रही है । केरियर बनाने में माता - पिता , शिक्षक , बच्चे , मित्रों  की  और कॉन्सिलिंग करनेकफ4 वालों की भूमिका मुख्य होती है । छात्र को भविष्य में क्या बनना है ? यह तो उसकी रुचियों पर निर्भर करता है छात्र को क्या बनाना है । आज माता -पिता  दोनों ही काम पर जाते हैं ।आज उन्हें भी समय ही नहीं होता है वे अपने बच्चों को पढ़ाने का समय नहीं मिलता है । इसलिए वे अपने बच्चों की कौंसिल कराते हैं । कौंसिलिंग के परीक्षण  कराने पर बच्चे की किस विषय में ज्यादा योग्यता है । उसे उसी विषय को लेकर केरियर बनाना की सलाह लेते हैं । आज के युग में छात्रों के लिए  विविध विषयों पर स्कोप होने से कोचिंग की केरियर बनाने में महत्त्वपूर्ण  भूमिका निभा रहा है । बच्चों की असली क्षमताओं को पता लगाने के लिए कॉन्सिलिंग आज की जरूरत बन गयी है ।
- डॉ मंजु गुप्ता 
 मुंबई - महाराष्ट्र
कोचिंग कक्षाएँ जब आरंभ हुई थीं  तो उन का उद्देश्य छात्रों को परीक्षा की पूर्व तैयारी करवाना, प्रश्नपत्र को विधिवत किस प्रकार से हल किया जाए ,सामान्य ज्ञान व अति लघुआत्मक उत्तर करने की विधि सीखाना होता था। कोचिंग  कक्षा  में बच्चों को एक साथ अनेक विषय की शिक्षा समूह में मिलती है। आपस में प्रतिस्पर्धा होने से  जोश बना रहता है । पर वर्तमान में यह एक ऐसा व्यवसाय बन गया है जिसका उदेश्य पैसा कमाना ही बन गया है।  करियर बनाने में कोचिंग की भूमिका नगण्य है ।यदि कोचिंग से ही सफलता मिलती तो उस में पढ़ने वाले सभी रोजगार में होते। कोचिंग चलाने वाले शिक्षकों का उद्देश्य कमाई के साथ सही मार्गदर्शन देना होना चाहिए। कोचिंग को चमकदार ,आकर्षक , मुनाफे वाला व्यवसाय नहीं सही मार्गदर्शक बनना चाहिए।करियर बनाने में छात्र की अपनी मेहनत का सब सा बड़ा हाथ है।
- ड़ा.नीना छिब्बर
जोधपुर - राजस्थान
कैरियर जिंदगी का मुख्य मुद्दा है । हमारी जिंदगी कैरियर पर ही आधारित है । अच्छा कैरियर ऊंचाई पर पहुंचा देता है , नहीं तो व्यक्ति खाई में गिर जाता है । साथ ही अपने परिवार को भी ले डूबता है । इसलिए कैरियर के प्रति सतर्कता बहुत जरूरी है । इसमें कोचिंग की अहम भूमिका होती है । यह युवा के पथ प्रदर्शक   का काम करता है। कोचिंग वाले को युवाओं की योग्यता आँकनी चाहिए और उनके भविष्य का निर्धारण करने में उनकी मदद करनी चाहिए। अनेक युवा अपने भविष्य का फैसला करने में असमर्थ होते हैं। अलग-अलग लोगों की सलाह उन्हें भटकाव देती है। कोचिंग की बड़ी जिम्मेदारी है कि उनके भटकाव को सही दिशा दे। युवाओं की परेशानी को कमाई का रास्ता न बनाएं।
- संगीता गोविल
पटना - बिहार

          " मेरी दृष्टि में " करियर के लिए कोचिंग एक सिक्के के दो पहलू की तरह हैं । शायद एक उदाहरण से अधिक स्पष्ट होगा । एक लड़का इंजीनियरिंग करने के बाद कहीं सफल नहीं हो रहा था । उस लड़के ने कोचिंग सैन्टर खोल लिया । वह कोचिंग सैन्टर चलता चलता एक विदेशी कम्पनी में इंजीनियर लग गया । यही करियर में कोचिंग का कमाल यानि भूमिका है ।
                                            - बीजेन्द्र जैमिनी


                    

Comments

  1. अच्छी व सार्थक चर्चा सभी को बधाई

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  2. ,🙏 जी आपके विचारों से भी सहमत हूँ । लेकिन यहाँ हमारी समझ से शुरुआती दौर से ही कोचिंग का दायित्व बढ़ जाता है ।

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