क्या गुस्से में दिमाग सहीं निर्णय ले पाता है ?
गुस्से में कुछ भी हो सकता है । बड़े से बड़े अपराध हो जाते हैं । ऐसी स्थिति में कोई भी निर्णय लेने से बचना चाहिए । यही सबके हित में होता है । यही " आज की चर्चा " का प्रमुख विषय है। देखते हैं आये विचारों को : -
गुस्से में दिमाग कभी भी सही निर्णय नहीं ले सकता ।गुस्सा एक तीव्र नकरात्मक उर्जा है ।यह व्यक्ति की सोचने समझने की शक्ति समाप्त कर देता है,इस अवस्था में सही निर्णय लेना सम्भव नहीं है ।यह मनुष्य का एक सामान्य अवगुण भी है ।कोई यह नहीं कह सकता कि उसे गुस्सा नहीं आता ।किसी में इसकी मात्रा थोड़ी होती है तो किसी में ज्यादा ।बेहतर यही यही होता है कि गुस्से हम कोई महत्वपूर्ण निर्णय न लें ,पहले खुद को शांत करें,फिर निर्णय ले।
- रंजना वर्मा
रांची - झारखण्ड
नही कदापि नहीं ग़ुस्सा विवेकहीन बना देता है कुछ समय के लिये मनुष्य अच्छाबुरा भूल जाता है ...
क्रोध एक प्राकृतिक भावना है
आधुनिक जीवनशैली किसी भी व्यक्ति को तनाव में धकेल सकती है। अब जबकि हजारों लोगों को अपने रोजगार और घरों से हाथ धोना पड़ रहा है और यहां तक कि सेवानिवृत्त लोगों की सुरक्षित राशियां भी बाजारी उथल-पुथल के कारण गायब होती जा रही हैं - इस लिहाज से इस काल को ‘ऐज ऑफ एनग्जाइटी’ या व्यग्रता का युग कहा जा सकता है। इसके विपरीत, यह भी सच है कि कुछ लोग चाहे उनकी आर्थिक या पारिवारिक स्थिति कैसी भी हो, हमेशा तनाव में रहते हैं। दरअसल, वह पैदाइशी तनावग्रस्त होते हैं।
बेचैनी और तनाव भी बढ़ाते हैं क्रोध
तनाव डर से अलग होता है। इनसान या किसी अन्य जीवित प्राणी को डर उसके सामने मौजूद किसी चीज से लगता है। इसके विपरीत तनाव में व्यक्ति अपनी निर्णय करने की क्षमता को लेकर उलझा रहता है। व्यक्ति इस दौरान ‘तब क्या होगा’ के भंवर में फंसकर रह जाता है। लेकिन जब डर कामकाज से उलझने लगता है तो तनाव ‘क्लीनिकल एनग्जाइटी डिसॉर्डर’ का रूप ले लेता है, जिसके अपने कई रूप हैं जिनमें पैनिक, सोशल एनग्जाइटी, फोबिया, ऑब्सेसिव-कम्पलसिव, पोस्ट ट्रॉमेटिक स्ट्रेस और सबसे ऊपर एनग्जाइटी डिसॉर्डर हैं।
धैर्य की कमी
- खाना जल्दी खाना
- बैचेनी
- काम-काज के दौरान चिड़चिड़ापन
- गुस्से के दौरान खुद को नुकसान पहुंचाना
ये हैं गुस्से के प्रमुख कारण
नींद
सोना अचेतन की अवस्था होती है। सोने से शरीर के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य में सुधार होता है। सोने के दौरान लगातार इस्तेमाल होने वाले मांसपेशियां और जोड़ रिकवर होते हैं। रक्तचाप कम होता है और हृदय गति कम होती है। उसी दौरान शरीर में ग्रोथ हार्मोन का स्नवण होता है। इस दौरान ही दिमाग रोजमर्रा की सूचनाओं को एकत्रित करने का काम करता है।तनाव, लंबे समय तक कार्य, जीवनशैली के कारण सोने की समस्याएं होती है। बिना पूरी नींद के दिमाग और शरीर सही तरीके से फंक्शन नहीं कर पाता। पर्याप्त नींद न लेने से कई तरह की बीमारियां होती है। स्वस्थ रहने के लिए पर्याप्त नींद और आराम आवश्यक है।
पूरी नींद लें
- कॉफी, चाय, कोला, चॉकलेट का सेवन सीमा में करें। निकोटीन, एल्कोहल और कैफीन से आपकी नींद पूरी नहीं हो पाती।
- अपने दिमाग और शरीर को रिलैक्स होने का समय दें।
- मेडिटेशन करें, किताब पढ़ें, संगीत सुनें और एरोमाथेरेपी करें।
- सोने और जागने की दिनचर्या बनाएं।
सकता है।
गुस्से पर करें काबू
- गुस्से पर नियंत्रण रखने के लिए बेहतर है कि आप सकारात्मक और क्रिएटिव काम करें
- गुस्सा होने पर किसी म्यूजिकल इंस्ट्रुमेंट को बजाएं
- कमरे को साफ करें, पिक्चर देखने जाएं, थोड़ा घूम आएं
- कुछ भी ऐसा करें जिससे आपका ध्यान कुछ देर के लिए बंट जाएं
- मजाक तनाव दूर करने का सबसे बेहतर तरीका है।
- शोध दर्शाते हैं कि तनाव को दूर करने के लिए पानी पीना चाहिए। यह तनाव को दूर करता है
- समय पर खाना खाने से, कसरत करने से और पर्याप्त आराम करने से गुस्सा कम आता है
- योगा, मेडिटेशन और कांगनेटिव तकनीक भी तनाव और गुस्से को दूर करने में कारगर है
दिमाग को ठंडा रखें
अकसर गुस्से के दौरान किसी को समझाने के लिए कहा जाता है कि अपने दिमाग को ठंडा रखो। हाल ही एक शोध में एक बात सामने आई है कि अगर दिमाग को ठंडा रखा जा सकें तो हृदय और पक्षाघात के खतरों को काफी हद तक कम किया जा सकता है।
ग़ुस्सा बहुत ही ख़तरनाक होता है
यह आदमी को सही ग़लत का फ़र्क़ , नहीं कर पाता दुश्मन पैदा करता है दोस्त दूर हो जाते है ।
घर वाले भी उससे दूर रहते है वह लोगों के दुख का कारण बनते है
कोशीश यह होनी चाहिऐ ग़ुस्सा हमारे जीवन से दूर रहे ।
- डॉ अलका पाण्डेय
मुम्बई - महाराष्ट्र
बच्चों जैसा सवाल लगता है परंतु है महत्वपूर्ण। दुनिया में जितने भी गलत काम होते हैं वह क्षणिक क्रोध के कारण होते हैं। भले ही व्यक्ति कितना भी अच्छा हो, उच्च से उच्च डिग्रीधारी हो, ज्ञानी- ध्यानी हो, यदि उसमें लेशमात्र भी क्रोध आता है और वह उस समय स्वयं पर नियंत्रण नहीं रख पाता तो वह क्षण उसके लिए घातक सिद्ध हो सकता है। 99% क्रोध के अतिरेक में दिमाग सही निर्णय नहीं ले पाता।
इसके विपरीत शांत दिमाग शांति की ही बात करता है। वह बड़े निर्णय लेने में हिचकचाता है। शांति से की गई बात को सभी सहजता से लेते हैं। राम जी की सहजता काम न आई। लक्ष्मण जी के क्रोधित व्यवहार के आगे सुग्रीव जी झुक गए और काम बन गया। सो कई बार दिमाग का क्रोधित अवस्था में लिया हुआ निर्णय भी इतना सही साबित होता है जितना शांत- मन सपनों में भी कभी सोच नहीं सकता।
- संतोष गर्ग
मोहाली - चंडीगढ़
लोगों में सहनशक्ति की कमी और ईगो की भावना बलवती होती जा रही है इसलिए वर्तमान समय में लोग जरा-सी बात पर आग बबुला हो जाते हैं । जरा-सी बात को अपना प्रेस्टीज पाॅइंट बनाकर गुस्से से भड़क उठते हैं । गुस्से की स्थिति में कदापि कोई निर्णय नहीं लेना चाहिए क्योंकि ऐसी अवस्था में दिमाग हमारे काबू नहीं होता और लिए गए निर्णय गलत ही नहीं, कभी-कभी घातक भी सिद्ध होते हैं जिसका पछतावा ताउम्र बना रहता है । वर्तमान समय में जो हत्याएँ, आत्महत्याएं, मारपीट, झगड़े, रिश्तों में दरारें आदि गुस्से में लिए गए निर्णय का ही परिणाम है । ये तन-मन-धन तीनों का विनाश करता है । गुस्सा स्वयं के लिए व सामने वाले दोनों के विवेक का हरण कर लेता है अतः जब गुस्से जैसा कोई कीड़ा दिमाग में कुलबुलाने लगे तो तुरंत कुछ समय के लिए उस स्थान से दूर चले जाना चाहिए ।
- बसन्ती पंवार
जोधपुर -राजस्थान
दिमाग गुस्से मे कभी भी सही निर्णय नही ले सकता है।गुस्सा एक ऐसी नकारात्मक उर्जा है जो दिमाग को असंतुलित कर देता है ।असंतुलन की अवस्था मे लिए गए निर्णय हमेशा गड़बड़ होते है उबलते हुए पानी मे कभी भी अपनी परछाई नही दिखती है। गुस्सा एक स्वभाविक नकारात्मक भावना है जिसमे हार्मोनल उथल-पुथल की स्थिति बन जाती है ऐसे समय मे लिए गए निर्णय को भी सही होने की संभावना कम रहती है। लेकिन अपवाद भी हर स्थिति के होते है कभी-कभी गुस्से मे लिया निर्णय फलदायी भी बना है ।
- डाँ. कुमकुम वेदसेन
मुम्बई - महाराष्ट्र
गुस्सा या क्रोध का अर्थ है- आपे से बाहर होना, यानि इंद्रियों का संयम खो देना। यथा- उच्च स्वर में चिल्लाना, अपशब्द बोलना ,आंखें लाल- पीली करना, कभी-कभी सामने खड़े व्यक्ति, जिसने गुस्सा करने वाले की भावनाओं को आहत पहुंचाई हो; उस पर आक्रामक प्रहार करके उसका प्राणान्त भी कर डालना, तोड़फोड़ करना ; यह सब एक गुस्सैल व्यक्ति के लक्षण हैं। इस स्थिति में गुस्सा व्यक्ति को विवेकहीन बना देता है ; उचित- अनुचित की समझ से कोसों दूर होकर कभी-कभी व्यक्ति अपना ही अनिष्ट कर बैठता है। इससे गुस्सैल व्यक्ति के परिवार का वातावरण क्लेशमय हो जाता है; फलस्वरूप अनेक घटनाक्रम जन्म लेते हैं और कभी-कभी तो यह प्रक्रिया अंतहीन चलती रहती है । स्वास्थ्य पर भी गुस्से का कुप्रभाव पड़ता है। हाई ब्लडप्रेशर, हार्टअटैक, दिमाग की नस फट जाना जैसे घातक रोग जन्म लेने लगते हैं। दिल दिमाग की विकृत स्थिति में वह व्यक्ति किसी भी प्रकार का सही निर्णय नहीं ले पाता है। रावण, परशुराम ,दुर्वासा, गौतम ऋषि जैसे महान लोग भी इस मनोविकार से ग्रस्त थे; जिसके परिणाम सर्व विदित ही हैं। अतः इस दूषित मनोविकार, आवेश जो दकहते अंगारे के समान है। इसे शांत करने के लिए पारिवारिक स्तर से ही धैर्य, सहनशीलता, व क्षमा इत्यादि गुणों की नींव डालनी चाहिए। शास्त्रों में भी कहा गया है--
"क्षमा बड़न को चाहिए
छोटन को उत्पात
का विष्णु को घट गयो
जो भृगु मारी लात।।"
अन्यथा तो--
" जहां कुमति तहं विपति निधाना।"
अत: गुस्सा बुद्धि को भ्रष्ट कर देता है; जिससे व्यक्ति उचित निर्णय नहीं ले पाता।
- डॉ रेखा सक्सेना
मुरादाबाद - उत्तर प्रदेश
जी हाँ गुस्से में सही निर्णय नहीं ले सकते हैं । क्योंकि गुस्से में हमारी मानसिक क्षमताएँ , शक्ति असुरी शक्ति में परिवर्तित हो जाती है । हमारा मस्तिष्क आवेग से भर जाने से हम सही निर्णय नहीं ले पाते हैं । नकारत्मक शक्ति हम पर हावी होब्जाति है ।हमारे साथ हमारा परिवेश भी हमें चिढ़ाता है । सारी अच्छी परिस्थिति , अच्छाइयाँ साकारत्मकता हमारी नकारात्मकता में परिवर्तित हो जाती है । हम यूँ कह सकते है कि गुस्सा हमारी सेहत , सफलता में बाधक है ।
तपस्वी ज्ञानी दुर्वासा के गुस्से का तो रामायण में बखान है ।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण से गुस्सा के कारण हमारे हार्मोन्स में एड्रिनल ग्रन्थि में रासायनिक परिवर्तन होते हैं । जिससे हमारा मन , दिमाग अशांत हो जाता है । क्रोध जैसा दुर्गुण मानसिक , शारीरिक , संवेगात्मक स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है । यह हमारे लिए बीमारी है और कई रोगों को जन्म देते हैं । इन्द्रियाँ अपनी शक्ति , तेज खो बैठती है । मन , मस्तिष्क की चित्तवृत्तियाँ जब बिगड़ जाती है । कामनाओं की पूर्ति नहीं होती है । तब क्रोध का जन्म होता है । क्रोध करने में हमारी शक्ति , ऊर्जा , ओज का ज्यादे से ज्यादा प्रयोग होता है । जिससे जीवन की शक्ति तेज खत्म होने लगती है । मस्तिष्क के ज्ञान तन्तु , कोशिकाएँ नष्ट हो जाती हैं । बल , बुद्धि क्षीण होने लगती है । गुस्सा तो इंसान अपने आप कभी नहीं करता है । इसमें दो या अधिक व्यक्ति में आपस में किसी विचार में सहमति नहीं होती है । तब यह मतभेद उग्र रूप ले लेता है । तभी क्रोध का कारण बनता है । जो हमारे जीवन के लिए हानिकारक है । भारतीय संस्कृति हमें अध्यात्म , जीवन -मूल्यों से जोड़ती है । जिसमें लोभ , हिंसा , क्रोध , जलन का स्थान नहीं है । क्योंकि क्रोध ही तनाव , हिंसा को जन्म देता है ।यह हमारे दुख का कारण है । हमारी धड़कनों की लय में तालमेल नहीं रहता है । धड़कनों की गति तेज हो जाती है । हम अशांत हो जाते हैं। लड़ाई करने की नोबत आ जाती है । गुथमगुथा करना क्रोध का ही परिणाम है । हमारी आत्मा का स्वरूप आनन्द का है , सत्यं , शिवं , सुंदरं का है । क्रोध आने पर यह स्वरूप नष्ट हो जाता है । मारने , मरने का दुष्परिणाम समाज में दिखायी देता है । क्रोध करने परबचेहरा का आकार बिगड़ जाता है । डरावना चेहरा हो जाता है । महाभारत में द्रौपदी की व्यंग्य उक्ति अँधे का बेटा अँधा दुर्योधनवके लिए जग जाहिर है । परिणाम तो युद्ध में कौरव वंश हो समूल नष्ट हो गया । क्रोधी परशुराम ने क्षत्रिय विहीन धरा कर दी थी ।
सीसीए , नागरिकता बिल संशोधन की आगजनी , क्रोध , उबाल , सारी दुनिया देख रही है । सार्वजनिक संपत्तियों का विनाश , , शारीरिक , मानसिक पीड़ाओं , आघातों को इंसान इंसान को दे रहा है । गुस्सा ही विध्वंस का नाम है । क्रोध से नीति अनीति बन जाती है । मुनि भृगु ने गुस्से से भगवान विष्णु के हृदय पर लात मारी थी । विष्णु जी का बड़ाप्पन उन्होंने मुनि को क्षमा कर दिया । क्रोधी इंसान को हर बात उल्टी लगती है । कहावत है जिस घर में क्रोध रहता है । उन घरों में घड़ा भी सूख जाता है । उबलते दूध में जब हम पानी की छींटे मारते हैं । तो दूध शांत हो के बैठ जाता है । ऐसे ही क्रोधी के सामने हम मौन हो जाएँ । विवाद होगा ही नहीं । कहा भी है एक चुप सौ को हरावे । क्रोध तो खुद का विनाश तो करता है । समाज , राष्ट्र का भी नाश होता है ।
अंत में मैं दोहे में कहती हूँ : -
क्रोधी से घर , जगत में , होती खूब अशांति ।
सारी बातें गलत लगे , दूर रहे है शांति ।
होय क्रोध जब चरम पे , नहीं देख परिणाम ।
मार - पिटाई युद्ध हैं , इस के दुष्परिणाम ।
होय क्रोध से चेहरा , लाल पीत - सा रंग ।
पड़े शीघ्र झुर्रियाँ , सभी बिगड़ते अंग ।
- डा मंजु गुप्ता
मुम्बई - महाराष्ट्र
गुस्से में लिया हुआ निर्णय कभी भी सही नहीं हो सकता। गुस्सा एक नकारात्मक भाव है और यह नकारात्मकता ही अपने आसपास बिखेर कर दूसरों की सकारात्मकता का हरण करता है। गुस्से के आवेश में लिए निर्णय अपने लिए ही नहीं दूसरों के लिए भी हानिकारक होते हैं। अधिकतर देखने में आता है कि लोग गुस्से में घर छोड़ कर चले जाते हैं, आत्महत्या का प्रयास करते हैं, घर के लोगों को मारते-पीटते हैं, घर की चीजें तोड़ते हैं, हल्ला मचाते हैं, दूसरे अर्थ में कहा जाये तो अपने गुस्से से लोगों को आतंकित करते हैं। ऐसी स्थिति में लिए निर्णय सही कैसे हो सकते हैं । क्रोध अपनी ही हानि और मृत्यु का कारण भी बनता है। इसलिए गुस्सा आने पर व्यक्ति को उसे नियंत्रित करने का प्रयास करना चाहिए, अकेले बैठ कर आत्मचिंतन करना चाहिए। उसके बाद ठंडे दिमाग से लिए निर्णय ही सही हो सकते हैं।
- डा० भारती वर्मा बौड़ाई
देहरादून - उत्तराखंड
गुस्से में दिमाग सही निर्णय नहीं ले पाता ! हमारे बड़े बूढ़े कहते हैं ना कि जब बहुत खुश होते हैं तब भी हमें तुरंत कोई निर्णय नहीं लेना चाहिए मालूम है ना राजा दशरथ ने खुशी-खुशी में कैकई को वचन दे दिया था परिणाम क्या हुआ राम को 14 वर्ष का वनवास फिर यहां तो गुस्से में लिए गए निर्णय का प्रश्न है कैसे सही हो सकता है ? किसी भी स्थिति में निर्णय लेने से पहले उसे थोड़ा समय देना चाहिए ! गुस्से के समय उसका दिमाग स्थिर और शांत नहीं होता वह विवेकहीन हो जाता है उसके सोचने समझने की शक्ति क्षीण हो जाती है ! यदि गुस्से के समय हम तुरंत जवाब देते हैं तो कुछ भी हो सकता है ! हमें नुकसान भी हो सकता है ! पानी का कुंड है उसमें ऊपर शीतल स्वच्छ पानी है और तली पर माटी है यदि तली पर पत्थर फेंके तो माटी उपर आ जाती है और पानी गंदा हो जाता है किंतु कुछ समय के बाद पूरा शुद्ध पानी ऊपर आ जाता है क्योंकि धीरे-धीरे माटी बैठ जाती है और पानी ऊपर आ जाता है !हमने कुछ नहीं किया थोड़ा समय दिया अपने आप काम हो गया ठीक उसी प्रकार गुस्से के साथ है गुस्से के समय हमारा दिमाग भी अस्थिर और अशांत होता है थोड़ा वक्त दिया जाए तो दिमाग की माटी यानी क्रोध धीरे-धीरे बैठ जाता है और पुनः स्थिरता आ जाती है ,क्रोध शांत हो जाता है !लक्ष्मण ने भी तो क्रोध में आकर सूर्पनखा की नाक काट दी थी तो आपको मालूम ही है रावण ने क्या किया ! अंत में यही कहूंगी क्रोध में लिया गया निर्णय सही नहीं होता
"क्रोध का अस्त्र चालक को ही घायल करता है "!
- चन्द्रिका व्यास
मुम्बई - महाराष्ट्र
गुस्से में व्यक्ति सही निर्णय नहीं ले पाता क्योंकि इस अवस्था में दिमाग में कई कैमिकल चेंज होते हैं, एड्रनिलिन हार्मोन स्त्रवित होने लगता है जिससे व्यक्ति का हाव - भाव बदल जाता है और एक नकारात्मक ऊर्जा उसके अंदर आ जाती है जिसके फलस्वरूप वो या तो खुद हानि पहुँचाता है या दूसरे को । विज्ञान के अनुसार इस प्रभाव के पीछे सेरोटोनिन नामक हार्मोन का स्तर प्रभावी होता है । परिस्थितियों के बदलाब पर गुस्सा आना स्वाभाविक होता है किंतु उस पर नियंत्रण न रख पाना अस्वाभाविक होता है । अक्सर मानसिक रूप से कमजोर व्यक्ति जल्दी क्रोधित हो जाते हैं जिससे आस पास का माहौल बिगड़ जाता है । गुस्से के मनोविज्ञान को समझने हेतु व्यक्ति का वातावरण व उसकी शारीरिक , मानसिक स्थित को समझना भी आवश्यक होता है । यदि व्यक्ति खुश नहीं रहता तो वो अनचाहे ही ऐसी परिस्थिति निर्मित करता रहता है जिससे शांति भंग हो । सात्विक भोजन, योग, प्राणायाम, सद साहित्य , सकारात्मक वातावरण से गुस्से पर नियंत्रण पाया जा सकता है ।
- छाया सक्सेना प्रभु
जबलपुर - मध्यप्रदेश
मनुष्य का दिमाग ईश्वरीय वरदान है ।यह सुपर काम्पयूटर से भी अधिक शक्तिशाली है ।मानव में संवेदनाओं को प्रकट करने के लिए कयी भावनात्मक तरीके हैं ।हमारा शरीर दिमाग के आदेशानुसार संचालित होता है । गुस्सा, ईर्ष्या, जलन ,सही कामों को भी गल्त राह की ओर मोड़ देती है ।रचनात्मक आवेग और गुस्से में अंतर है ।जब हम गुस्से में होते हैं तो शरीर में भी रासायनिक परिवर्तन होता है । हृदयगति बढ़ जाती है ।हाथ पैर काँपने लग जाते हैं । अधिकतर तो अपनी वाणी पर भी नियंत्रण नहीं रख पाते तब दिमाग सही निर्णय कैसे ले सकता है ।निर्णय के लिए शांत माहौल व सोच जरूरी है। गुस्सा अग्नि है जो भस्मासुर की तरह स्वयं का विनाश करती है ।
- ड़ा.नीना छिब्बर
जोघपुर - राजस्थान
गुस्सा अर्थात क्रोध का अर्थ है स्वयं की अक्षमता का प्रदर्शन । अक्षम व्यक्ति सही निर्णय नही ले पाता। क्रोध मनुष्य का आवेश गति है आवेश में लिया गया निर्णय कभी सही नहीं हो पाता क्योंकि आवेशित होकर मनुष्य अपना सुध बुध खो देता है सुध बुध स्वभाव गति मे ही संचारित होता है अतः स्वभाव गति मैं ही मनुष्य सही निर्णय ले पाता है। स्वभाव गति में जीने वाला व्यक्ति ही सक्षम व्यक्ति कहलाता है अर्थात जो भी कार्य करता है सोच समझकर ही करता है अज्ञानता में या अक्षमता में या आवेशित भाव में किया गया कार्य कभी भी सही नहीं होता ना सही निर्णय ले पाता। अतः मनुष य को क्रोध आने के पहले जरूर सोच विचार करना चाहिए।तब निर्णय लेना चाहिए। गुस्सा में मनुष्य सही निर्णय नहीं ले पाता।
- उर्मिला सिदार
रायगढ़ - छत्तीसगढ़
गुस्से में दिमाग कभी भी सही निर्णय नहीं कर पाता क्योंकि उस समय वह सिर्फ खुद को सही समझता है ।उसका विवेक काम नहीं करता, वह भला-बुरा कुछ नहीं समझना चाहता ।उसका रक्त चाप बढ़ने से मस्तिष्क में हलचल होने लगती है ।नकारात्मक विचार ही दिमाग का संतुलन खराब कर देते हैं और वह सामने वाले को अपना दुश्मन मान लेता है ।मानव प्रवृत्ति के कारण वह अपनी गलती स्वीकार नहीं करता और इसीलिए सही निर्णय नहीं ले पाता ।जब गुस्सा शांत होता है तब उसे अपनी गलती का एहसास होता है।
- सुशीला शर्मा
जोधपुर - राजस्थान
गुस्सा, आवेश, प्रज्जवलन जैसे शब्दों से आप क्या अनुमान लगाते हैं। ये बहुत साफ है कि ऐसे शब्द हमारे मन की उस अवस्था को बताते हैं, जहां हम आपा खो चुके होते हैं। हमारी बुद्धि-विवेक का ह्रास हो जाता है और हम मन के पूरी तरह नियंत्रण में आ जाते हैं। ऐसे में अक्सर आपा खो बैठने की हालत हो जाती है और अंतिम रूप से पश्चाताप के अलावे कुछ भी हाथ नहीं लगता है। निश्चित रूप से यह एक दयनीय अवस्था होती है, जहां हम दूसरे को दुःख तो पहुंचाते ही हैं लेकिन इससे बुरी बात ये है कि इसमें अंतिम रूप से हमारा ही नुकसान होता है। व्यवहारिक जीवन में इससे बड़ा दुःख और कुछ नहीं हो सकता कि गुस्सा की अवस्था में हम दूसरे को दुःख पहुंचाना चाहते हैं किंतु इसमें हमारा बहुत अधिक बिगड़ जाता है। मानसिक संतुलन का इस तरह क्षरण कितना उचित है? भावावेश, भावातिरेक और मानसिक उद्देलन की अवस्थाएं खतरनाक होती हैं। अनियंत्रित तरीके से शरीर का रोम-रोम नकारात्मक रूप से प्रभावित होने के कारण निर्णय शक्ति खत्म हो जाती है। इस दशा में प्रायः गलत फ़ैसले हो जाते हैं, जो जीवन भर के लिए अभिशाप साबित होते हैं। गहराई से देखा जाए तो गुस्सा केवल भावातिरेक की स्थिति है। जब भी कोई डिमांड पूरी नहीं होती, अपेक्षा पर कोई खरा नहीं उतरता या फिर अहंकार को चोट पहुंचती है तब ऐसी अवस्था में गुस्सा का जन्म होता है। ऊपरी तौर पर यह एक सहज-स्वाभाविक स्टेज मालूम होता है लेकिन हकीकत में ये सहजता से अलग बिल्कुल थोपी गई अवस्था है। गुस्सा कभी भी सहज हो ही नहीं सकता वरन् ये अपेक्षाओं की प्रतिपूर्ति न होने का परिणाम होता है। क्रोधाग्नि की ज्वाला भयंकरतम ज्वालाओं में शुमार है। इसका प्रभाव एकतरफा या एकपक्षीय न होकर बहुपक्षीय और बहुआयामी होता है। ये न सिर्फ कारक को नष्ट करने में सक्षम है बल्कि इसके आसपास जो भी होता है, उसे भी हानि पहुंचाने में सक्षम है। एक बार ग़ुस्से का शिकार बन जाने पर इससे बहुत कठिनाई से पिंड छूट पाता है। और हम अपना और हमारे सहयोगियों का अहित करते है ग़ुस्सा हमेशा कष्ट कारक होता है । वह कभी भी सही निर्णय नहीं ले पाता वह ज़िद्द में आवेश में अपना अहित करता है । ग़ुस्सा नकारात्मक सोच पैदा करता है कठिनाइयों को जन्म देता है ।
- अश्विन पाण्डेय
मुम्बई - महाराष्ट्र
नहीं । गुस्सा आदमी के सोचने समझने की शक्ति को समाप्त कर देता है । क्योंकि उसकी सारी शक्ति उग्रता को बनाये रखने में खर्च हो जाती है । निर्णय लेने की क्षमता उग्रता के नीचे दब जाती है । इसलिए कोई भी निर्णय शांतचित्त होने पर ही लेना चाहिए।
- संगीता गोविल
पटना - बिहार
जी हां गुस्से में ही दिमाग सही निर्णय ले पाता है।क्योंकि गुस्से में एक ही बात में दिमाग लीन हो जाता है।फिर वह सब बोल देता है।जो शांति में नहीं बोला जा सकता।जैसे द्वापर युग के महाभारत ग्रंथ में लिखा है कि कुन्ती ने कर्ण को कान से पैदा किया था।तो कान टेस्ट टयूब भी नहीं है।ऐसे में शांति से तो कभी नहीं पूछा जा सकता।क्योंकि कान से बच्चे पैदा नहीं हो सकते और पागलपन के बिना उक्त प्रश्न पूछना सम्भव नहीं है। गुस्से के कारण ही द्रोपदी ने केश खुले रखे थे।जिसके कारण भयंकर युद्ध हुआ।खून की नदियां बहीं और उसके बाद सम्पूर्ण शांति ही शांति अर्थात सम्पूर्ण शांति।जिस पर प्रमाणित हो गया कि शांति चाहते हो तो युद्ध के लिए तैयार रहो।
1962 में यदि चीन को भारत पर गुस्सा नहीं आता और वह गुस्से में भारत पर हमला ना करता तो भारत कभी शक्तिशाली नहीं बनता।सर्जीकल स्ट्राइक और चंद्रयान टू एवं थ्री भी दूसरे देशों की सफलता और अपनी असफलता से उपजे गुस्से का ही परिणाम है। इसके अलावा त्रेता युग की बात करें तो सीताहरण, पवनपुत्र द्वारा श्रीलंका दहन से लेकर अग्निपरीक्षा और माता सीता का धरती में समाना सब गुस्से के ही परिणाम हैं। अब विद्वान शांतिप्रिय शांतिदूत बताएं की यदि द्रोपदी गुस्सा में केश खुले ना रखती तो क्या जीवन भर चीरहरण करवाती रहती?इसी प्रकार माता सीता गुस्सा ना करते हुए धरती में ना समा जाती तो क्या धोबियों के धातक शब्द सुनती रहती?
- इन्दु भूषण बाली
जम्मू - जम्मू कश्मीर
गुस्सा आया और वो काम पर लग गया ।इस गुस्से ने तो कमाल कर दिया ।गुस्से से हर बार गलत ही हो कोई जरूरी नही ।हालांकि गुस्से से नुकसान की संभावना ज्यादा ही होती है फिर भी यह जीवन के लिए जरूरी भी है ।बस गुस्से के साथ विवेक का होना जरूरी है ।
गोविन्द राज पुरोहित
जोधपुर - राजस्थान
" मेरी दृष्टि में " गुस्से से तो अपने शरीर का भी नुकसान पहुचता है । शरीर के अगं बेकार हो जाते हैं । कई बार तो मौत तक हो जाती है । यह भी सत्य है कि हर इंसान को गुस्सा आता है । किसी का कम , किसी को ज्यादा ।
- बीजेन्द्र जैमिनी
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