क्या प्रत्येक नागरिक की भूमिका से गणतंत्र सफल होता है ?

छब्बीस जनवरी को गणतंत्र दिवस के रूप में मनाया जाता है । 1950 को सविधान लागू हो गया । दो साल 11 महीने 18 दिन में सविधान तैयार हुआ । जिसमें 7635 संशोधन प्रस्तावित किया गयें तथा 2473 पर विस्तार से चर्चा हूई ।284 सदस्यों ने हस्ताक्षर किये हैं और सविधान छब्बीस जनवरी को लागू हुआ । सविधान के प्रति प्रत्येक नागरिक की भूमिका भी है। जिससे अधिकार प्राप्त होते हैं । यहीं " आज की चर्चा " का विषय भी है । आये विचारों को देखते हैं : - 
गणतंत्र का अर्थ है जनता का शासन -  यहाँ हर व्यक्ति को एक समान अधिकार दिए गए हैं । प्रत्येक व्यक्ति का मत अमूल्य होता है उसके मत से जनमत तैयार होता है और जिसके पक्ष में जनमत हो उसकी सरकार बनती है । कार्यों के सफल संचालन हेतु जहाँ सभी  नागरिकों को मौलिक अधिकार दिए गए हैं तो वहीं उनके कुछ कर्तव्य भी हैं जिनका पालन अनिवार्य होता है । जब तक जनमानस जागरुक नहीं होगा तब तक सही मायनों में लोकतंत्र स्थापित नहीं किया जा सकता । हमें जाति  भेद, धर्म भेद से ऊपर उठकर राष्ट्रहित में कर्म करने चाहिए क्योंकि देशभक्ति से बड़ा कोई धर्म नहीं होता ।कहा भी गया है *जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि न गरीयसी* अभी भी समय है एक जुट होकर केवल और केवल राष्ट्रहित में चिंतन करें और अपने कर्तव्यों का पालन करें जिससे विश्व का सबसे बड़ा लिखित गणतंत्र सफल हो सके ।
जय हिन्द जय हिन्दी 
- छाया सक्सेना प्रभु
जबलपुर - मध्यप्रदेश
बिल्कुल सही है क्योंकि यह जनता का, जनता के लिए, जनता द्वारा शासन है।प्रत्येक भारत वासी के हाथ में इसकी बागडोर है और यदि कोई भी नागरिक इसकी मर्यादा को भंग करता है या अराजकता फैलाता है तो हमारे गणतंत्र को अवश्य ठेस पहुँचती हैक।हमारा  संविधान  संप्रभुता सम्पन्न लोकतंत्रात्मक गणराज्य है ।इस के द्वारा ही हमें स्वतंत्र जीवन जीने, अपनी उन्नति करने, धन कमाने, धर्म का पालन करने तथा देश के हित में कार्य करने के अधिकार मिले हैं ।देश की एक इकाई भी यदि सर्वोच्च कार्य करती है तो वो पूरे देश को आगे बढ़ाने में मददगार होती है ।देश की शांति, सुरक्षा, उन्नति ,विकास सबकुछ नागरिकों पर ही निर्भर है ।यदि मुट्ठीभर लोग भी धरना प्रदर्शन करते हैं, सार्वजनिक सम्पत्ति को नुकसान पहुँचाते हैं तो देश में तनाव की स्थिति आ जाती है।गणतंत्र की रचना ही जनहित को ध्यान में रखकर रची गई है और ये प्रत्येक भारतीय के लिए पूजनीय है ।जनता बड़ी सोच समझकर ही अपने प्रतिनिधि चुन कर सरकार का गठन करते हैं और यदि वे जनहित के प्रति वफादार नहीं होते तो जनमत में इतनी ताकत है कि वो ऐसी सरकार को हटा भी सकती है ।इसलिए सौ प्रतिशत  सत्य है कि  नागरिक की भूमिका से ही गणतंत्र सफल होता है ।
- सुशीला शर्मा
जयपुर - राजस्थान
गणतंत्र का अर्थ होता है जनता का तंत्र |अर्थात उस राष्ट्र की सत्ता जनहित के लिए हो; जहाँ प्रत्येक व्यक्ति को अधिकार होता है कि वह अपने विचार रख सके या विरोध कर सके |अपनी संविधान के प्रति श्रद्धा पूर्वक स्वतंत्र और आज़ाद महसूस कर सकें |अपनी इच्छा से नेता चुन सके |
प्रत्येक व्यक्ति को समान क़ानून व्यवस्था मिले|जिससे वह अपने अधिकारों के सहारे राष्ट्र का निर्माण कर सके|इसके लिए सभी को एकजुट होकर देश को आगे बढ़ाने में मदद करना होगा जिसके लिए प्रत्येक व्यक्ति की भागीदारी आवश्यक है |
                     -  सविता गुप्ता 
                     राँची - झारखंड
 हां प्रत्येक नागरिक की भूमिका से ही गणतंत्र सफल होता है पहले तो यह जाना चाहिए कि गणतंत्र है क्या साधारण भाषा में गण मतलब जनों का समूह और उसके शासन की व्यवस्था यश को इस प्रकार भी कह सकते हैं कि ऐसी शासन व्यवस्था जिसमें परंपरागत राजा रानी के शासन की बजाय जनता के द्वारा ही चुनाव प्रक्रिया द्वारा चुने गए जनप्रतिनिधि का शासन। 26 जनवरी 1950 को हमारी शासन व्यवस्था को चलाने के लिए लाल किले मैं प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद ने तिरंगा पर आया था आजादी के मतवाले उस समय सारे नेता सभी लोग बहुत बुद्धिजीवी थी सब एक से बढ़कर एक महापुरुष थे आज हमारे शासन में ऐसे जनप्रतिनिधियों की कमी है सुचारू रूप से शासन को चलाने के लिए योग्य जनप्रतिनिधियों का ही चुनाव करना चाहिए या यूं कहें जो मिट्टी से जुड़े रहते हैं वह हमारी सारी मूलभूत आवश्यकताओं को समझेंगे और उसके लिए कानून भी बनाएंगे आज आम आदमी के दर्द को कोई नहीं महसूस करता सब अपनी राजनीति में लगे रहते हैं गणतंत्र दिवस को सफल बनाने के लिए शिक्षित और योग्य व्यक्ति का चुनाव ही करें वंदे मातरम जय हिंद जय भारत 
- प्रीति मिश्रा 
जबलपुर - मध्य प्रदेश
 अवश्य सफल हो सकता है लेकिन अभी वर्तमान में नहीं हो पा रहा है । हमारे राष्ट्र हित में चिंतन करने वाले विचारकों से प्रत्येक नागरिकों की भूमिका से गणतंत्र सफल होने की कामना की गई है। लेकिन वर्तमान में अधिक नागरिकों को गणतंत्र का अर्थ पता ही नहीं है तो कैसे भूमिका अदा करेंगे कुछ लोगों को पता भी है तो गणतंत्र सफलता के राष्ट्र में प्रमाण देखने को नहीं मिल रहा है। गणतंत्र सफल की कामना हर मानव जरूर करता है लेकिन गणतंत्र सफल कैसे हो इसका चिंतन नहीं कर पा रहा है, जब चिंतन में विचार ही नहीं आएगा तो गणतंत्र की कामना करना व्यर्थ है क्योंकि कोई भी व्यवहार कार्य करने के पहले क्रिया का स्वरूप चिंतन से विचार में स्पष्ट होता है विचार में आने से ही व्यवहार कार्य किया जाता है। अगर नागरिकों को गणतंत्र की अर्थबोध हो जाएगा तो अर्थ समझ में आने से जरूर गणतंत्र सफल होगा गणतंत्र का अर्थ है गणअर्थात जनता की अखंड समूह, तंत्र का मतलब है व्यवस्था अर्थात संपूर्ण देश की जनता ओं की व्यवस्था जनता की संपूर्ण व्यवस्था होने को ही गणतंत्र सफल कहा जाएगा वर्तमान में जो जनता अर्थात नागरिकों की वर्तमान में जो व्यवस्था बनी है,वह कमी पड़ रहा है अतः वर्तमान में विभिन्न क्षेत्रों में अव्यवस्था और समस्या देखने को मिल रहा है इस समस्या से मुक्ति पाकर ही मनुष्य नागरिक की भूमिका अदा करते हुए गणतंत्र सफल हो सकता है अतः यही कहा जा सकता है कि प्रत्येक नागरिक की भूमिका से गणतंत्र सफल होगा जब नागरिक को उसकी भूमिका का पता होगा। 
- उर्मिला सिदार
 रायगढ़ - छत्तीसगढ़
 गणतंत्र यानी जनता द्वारा नियंत्रित प्रणाली ! जी हां हमारा देश लोकतंत्र गणराज्य है इसमें जनता के लिए जनता द्वारा शासन का प्रावधान है  अतः पद की सर्वोच्चता आम आदमी भी अपनी योग्यता और जनमत के अधिकार के अनुसार प्राप्त कर सकता है ! साधारण रूप में ही है अपने परिवार में देखते हैं  प्रत्येक सदस्य किसी भी रूप में अपने परिवार को सहयोग करता है फिर यह तो पूरे देश और समाज के निर्माण की बात है जिसके शासक भी हम जनता है और प्रजा भी! जन सुविधा सभी को समान रुप में मिले ! देश के संसाधनों पर हमारा समान रूप से अधिकार है चाहे हम किसी भी क्षेत्र ,समूह ,और समुदाय के हों इसके लिए हम सभी नागरिक की जिम्मेदारी है कि हम इस पर ध्यान दें आखिर संविधान की ,हमारे गणराज्य की आधारशिला हम ही तो हैं । हमारा देश लोकतांत्रिक है अतः सभी का सहयोग होना चाहिए देश के वीर जवानों ने अपनी नागरिक होने का फर्ज अपने प्राणों का बलिदान देकर अंग्रेजों की गुलामी से आजादी देकर चुकाया ! तो क्या हम अपने संविधान के नियमों को महत्व नहीं दे सकते ! अरे हमे तो पूरे अधिकार के साथ इस दिन को सफल बनाने का बीड़ा उठा लेना चाहिए  ! हमारा तो देश के प्रति समर्पण का भाव होना चाहिए!  तभी देश आगे बढ़ेगा! अंत में  कहना चाहूंगी  गणतंत्र को सफल बनाने में  प्रत्येक नागरिक का सहयोग महत्वपूर्ण  है ! तभी तो हमारे प्रधानमंत्री आदरणीय मोदी जी का "सबका साथ सबका विकास का नारा सार्थक होगा " !
- चन्द्रिका व्यास
मुम्बई - महाराष्ट्र
जी हां, यह सच है कि  लोकतांत्रिक गणतंत्र में प्रत्येक नागरिक की भूमिका निसंदेह महत्वपूर्ण है; क्योंकि यहां जनता के लिए जनता द्वारा शासन का प्रावधान है ;इसी सैद्धांतिक रूप से देश के सर्वोच्च पद पर एक आम नागरिक भी पद आसीन हो सकता है। इस तरह प्रत्येक नागरिक की महत्ता को इंगित करता ,ऐसा शासन ही गणतंत्र है। यानि गणतंत्र की महत्वपूर्ण इकाई जनता है और जनता द्वारा नियंत्रित प्रणाली से शासन चालित होता है। यह संवैधानिक व्यवस्था 26 जनवरी 1950 को पूरी तरह लागू हो गई थी; जिसके अंतर्गत संविधान में प्रत्येक नागरिक के लिए स्वतंत्र जीवन- यापन के लिए समता, समानता, सुरक्षा एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, शोषण के विरुद्ध आवाज, धार्मिक स्वतंत्रता, संस्कृति और शिक्षा संबंधी अधिकार, सामूहिक एवं व्यक्तिगत रूप से यह मौलिक अधिकार प्रदान किए गए थे; जो व्यक्ति एवं समाज के विकास में सब प्रकार से सफलतादायक हैं।    फिर प्रश्न यह उठता है कि इतने अधिकारों को पाने के बाद हम सभी भारतीय नागरिक अपने कर्तव्यों के प्रति कितने जागरूक हैं? होना यह चाहिए कि भारत  का प्रत्येक नागरिक अपने कर्तव्यों का समुचित पालन करें। अपनी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता एवम् प्राप्त शक्तियों का दुरुपयोग ना करे। अतः ईमानदारी और सजगता से देश के गणतंत्र को अखंड, चिरस्थायी और सफल बनाए रखने के लिए; हमारे जो कर्तव्य हैं ,उनके पालन में कोई भी, किसी प्रकार की कोताही ना बरते; तभी एक परम पावन गणतंत्र की भूमिका में हमारा सहयोग सफल होगा।
 हमारा गणतंत्र अमर रहे।
- डॉ. रेखा सक्सेना
मुरादाबाद - उत्तर प्रदेश
आज हम दुनिया के सामने सिर ऊंचा कर गर्व से कह सकते हैं कि हमारा लोकतांत्रिक गणराज्य अपना 71वां  गणतंत्र दिवस मनाते हुए और भी मजबूती व तेज गति से विकास के पथ पर अग्रसर हो रहा है। इसी के साथ हम पृथ्वी के रसातल को नापने से लेकर आसमान की ऊंचाईयों को छूने तक में खुद को समर्थ पा रहे हैं। यह तमाम देशवासियों के लिए कम गौरव की बात नहीं है। यहां विचारणीय है कि अकल्पनीय प्रगति को पंख देने वाले इस गणतंत्र को अपनाने की आखिर देश को आवश्यकता क्या थी? हम अपने गणतंत्र को आखिर कितना समझ पाए हैं और इसकी मजबूती के लिए आखिर हम क्या कर रहे हैं। दरअसल यह तो अमूमन सभी जानते हैं कि 26 जनवरी 1950 को हमारा संविधान लागू हुआ, जिससे दुनिया में यह संदेश गया कि हमने एक ऐसी लोकतांत्रिक प्रणाली को आत्मसात कर लिया जिसमें जनता का, जनता के लिए और जनता द्वारा शासन किया जाएगा। इस प्रकार गणतंत्र का सीधा अर्थ गण के मजबूत तंत्र से है। इसे लोकतंत्र या जनतंत्र भी कहा गया, जिसका अर्थ भी लोक का तंत्र, या जन का तंत्र अर्थात सर्वोच्च शक्ति जनता में निहित बताई गई है। इसी के तहत देश के तमाम मतदाताओं को सर्वोच्च शक्ति प्रदान की गई है कि वो देश की दिशा और दशा तय करने के लिए अपने प्रतिनिधि के तौर पर नेता चुनें। ये चुने हुए प्रतिनिधि संविधान में निहित अधिकारों का उपयोग करते हुए शासन चलाने का काम करते हैं। इसलिए राष्ट्र का मुखिया राजा नहीं बल्कि प्रधान सेवक होता है, जो संसद और आमजन के प्रति जवाबदेह होता है। कहने और सुनने में यह बात लोकलुभावन लगती है, लेकिन सैद्धांतिक रूप से तैयार संविधान को व्यावहारिक रूप में लाना अपने आप में सबसे बड़ी चुनौतीभरा काम होता है। गौर करें कि हमारा संविधान प्रत्येक नागरिक को स्वतंत्रता के साथ जीने का विशेषाधिकार प्रदान करता है, लेकिन अफसोस कि नागरिकों के अधिकार हनन के मामले भी बहुतायत में सामने आते रहते हैं। तब यह शर्म का विषय हो जाता है जब देश में अपराध का ग्राफ बढ़ता हुआ दिखाई देता है, क्योंकि गणतंत्र को सबसे ज्यादा नुक्सान यदि किसी बात से होता है तो वह भ्रष्टाचार, हिंसा, आतंकवाद, लूट-डकैती, हत्या और व्यभिचार समेत घपलों और घोटालों से ही होता है। इनके सामने आमजन घुटने टेकता नजर आता है तो दिल में एक टीस उठती है और दिगाम में सवाल उठता है कि क्या यही दिन देखने के लिए हमारे असंख्य सम्माननीय स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों ने देश को आजादी दिलाने के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर किया था? आखिर अंग्रेजी हुकूमत के जुल्मों-ज्यादती के खिलाफ उठ खड़े होने वाले आजादी के मतवालों ने तो यही सोचा था कि जब देश आजाद होगा और अपने लोगों का शासन होगा तो सभी लोग खुशी-खुशी न सिर्फ जीवन-यापन कर सकेंगे बल्कि तरक्की के रास्ते भी आसानी से तय कर पाएंगे। पर कहीं न कहीं चंद भ्रष्टाचारियों और अपराधियों ने मिलकर हमारे देश के तंत्र को खासा नुक्सान पहुंचाने और गण की पकड़ को कमजोर करने का दुस्साहस कर रखा है। हमारे सिस्टम में आ चुके ऐसे तमाम तरह के वायरसों से मिलकर लड़ने की आवश्यकता है। कमजोर करने वाले तो हमें धर्म, जाति, संप्रदाय ही नहीं बल्कि बोली-भाषा, क्षेत्रीयता, खान-पान और पहनावे से लेकर रंग-रुप के नाम पर लड़वाने और अलग-अलग करके कमजोर करने की भरपूर कोशिश करेंगे। हमें समझना होगा कि अनेकता में एकता हमारी पहचान और शक्ति प्रदान करने वाली जीत है। इसी दम पर हमारे पूज्य सेनानियों ने अंग्रेजों की दासता रुपी बेड़ियों को काटने का सफल कार्य किया। आज हमें उसी एकता के सूत्र से दूर करने की भरसक कोशिशें की जा रही हैं। ये बाहरी तत्व नहीं हैं, लेकिन कहने में हिचक नहीं कि ये सच्चे देशभक्त भी नहीं हैं, जो लोगों को यह बतलाते हैं कि आपके आस-पड़ोस में रहने वाला आप जैसा नहीं बल्कि दुश्मनों जैसा कोई दूसरा ही है, जिससे आपको खतरा बताया जाता है और पूरे समाज को नुक्सान पहुंचाने वाला निरुपित कर दिया जाता है। ये प्रयोग सभी के लिए एक समान किए जाते हैं। ऐसा नहीं है कि सभी लोग एक समान होते हैं। कुछ अच्छे तो कुछ बुरे भी होते हैं, लेकिन अच्छे और बुरे में भेद करने के लिए भी संविधान में दिशा निर्देश हैं और उसके लिए कार्यपालिका से लेकर विधायिका और न्यायपालिका भी मौजूद है। इसलिए बार-बार समझाइश दी जाती है कि यदि किसी ने गलत किया भी है तो उसे सजा देने का अधिकार भीड़ को कतई नहीं हो सकता है बल्कि उसके लिए पर्याप्त कानून व्यवस्था है। अपराधी को जेल की सलाखों के पीछे भेजने में यदि कोई दिक्कत है तो यह व्यवस्था का सवाल है, इसे दुरुस्त करने की आवश्यकता है। इसके लिए जरुरी है कि संविधान सम्मत कदम उठाए जाएं न कि देश में अराजकता फैलाने और बहुतायत लोगों को अपराधी बनाने जैसी छूट दे दी जाए। पिछले कुछ सालों में भीड़ द्वारा निहत्थे लोगों की हत्या किए जाने की जो घटनाएं सामने आई हैं उससे तमाम शांतिप्रिय जिम्मेदार नागरिकों के माथे पर चिंता की लकीरें गहरी हो गई हैं। मतलब साफ है कि कहीं न कहीं गणतंत्र को मजबूत करने में हमसे चूक हो रही है, इसलिए देश में गरीबी, बेरोजगारी समेत घपले-घोटाले, संगीन अपराधों में बढ़ात्तरी हो रही है। भूलिये मत कि गणतंत्र के प्रभावी होने के लिए जरुरी है कि प्रत्येक नागरिक पूरी ईमानदारी से अपने दायित्वों का निर्वहन करे। इसी के साथ कर्ता-धर्ताओं और दशा व दिशा तय करने वाले हमारे जिम्मेदार माननियों को भी चाहिए कि योजनाएं ऐसी बनें और फलीभूत हों कि हर हाथ को काम मिले, कोई निरक्षर न रहे और उत्तम स्वास्थ्य के साथ ही साथ कानून का राज हो, ताकि सभी लोग मिलकर देशहित में आगे बढ़ सकें। आइये हम सभी71वां  गणतंत्र दिवस पर शपथ लें कि देशहित सर्वोपरी होगा ताकि एक बार फिर भारत सोने की चिढ़िया कहला सके और विश्वगुरु होने का जो सपना हमारे बुजुर्गों ने देखा उसे पूरा किया जा सके। हम सब की जवाबदेही है , हम अपने दायित्वों का निर्वहन इमानदारी से करे तभी गणतंत्र सफल व कामयाब होगा । जय हिंद!
- डॉ. अलका पाण्डेय
मुम्बई - महाराष्ट्र
हमारा व्यक्तिगत और सामाजिक जीवन सुखद,संपन्न शांतिमय, सौहार्दमय, सुव्यवस्थित, शांतिमय और सीमामय हो इसके लिये हमारे विद्वान और राजनेताओं ने  व्यक्ति के अधिकारों और कर्तव्यों  के साथ-साथ व्यवस्था के संधारण और संचालन के लिये शासन और  प्रशासन की अवधारणा की और सभी के लिये  नीति निर्धारण कर संविधान की संरचना की। यही गणतंत्र है। इस आधार पर हमें यह ध्यान रखना ही होगा कि हम व्यक्ति और परिवार के सदस्य के साथ-साथ देश के नागरिक भी हैं। सुखद और सरस जीवन जीने के लिये हम सभी की अपनी-अपनी अनेक अनिवार्य और ऐच्छिक आवश्यकताएं हैं याने हम परस्पर निर्भर भी हैंऔर सहयोगी भी। इसके सफल संचालन के लिये हमें अपने अधिकारों और कर्तव्यों का दृढ़ता से पालन करना होगा। हमें ध्यान रखना होगा कि हमारी सीमाएं वहीं तक हैं जहां से दूसरे की शुरू होती हैं। हमें अच्छा व्यक्ति भी बनना है और अच्छा नागरिक भी।तभी हम हमारी नैतिक जिम्मेदारी को निभाने में सफल होंगे और अपना  और औरों का जीवन सरल ,सरस और सुविधामय बना सकेंगे। यही सच्ची देशभक्ति होगी और सफल गणतंत्र होगा।
- नरेन्द्र श्रीवास्तव
 गाडरवारा - मध्यप्रदेश
गणतंत्र 'गण' से बना तंत्र है । इस तंत्र में जो कुछ भी होता है केवल गण के लिए होता है ।अगर गण ही उसमें शामिल न हों तो तंत्र बिखर जाता है । नागरिक गणतंत्र की ईकाई है । नागरिक का एक-एक क्रियाकलाप गणतंत्र को तेजी से आगे बढाता है या पीछे ले जाता है । यही वह कदम है जो हमारे लिए प्रमुखता से उठाने की जरूरत है । हमारी भूमिका सही होगी तभी हमारा गणतंत्र सुचारू रूप से चलेगा ।
- संगीता गोविल
पटना - बिहार
हाँ जी बिलकुल सफल होता है । देश के लोगों से ही लोकतंत्र बनता है। हमारे नागरिक, केवल गणतंत्र के निर्माता और संरक्षक ही नहीं हैं, बल्कि वे ही इसके आधार स्तम्भ हैं। हमारा हर नागरिक, हमारे लोकतन्त्र को शक्ति देता है - हर एक सैनिक, जो हमारे देश की रक्षा करता है; हर-एक किसान, जो हमारे देशवासियों का पेट भरता है; हर-एक पुलिस और अर्ध-सैनिक बल, जो हमारे देश को सुरक्षित रखता है; हर-एक मां, जो देशवासियों का पालन-पोषण करती है; हर-एक डॉक्टर, जो देशवासियों का उपचार करता है; हर-एक नर्स, जो देशवासियों की सेवा करती है; हर-एक स्वच्छता कर्मचारी, जो हमारे देश को साफ़-सुथरा और स्वच्छ रखता है; हर-एक अध्यापक, जो हमारे देश को शिक्षित बनाता है; हर एक वैज्ञानिक, जो हमारे देश के लिए इनोवेशन करता है; हर-एक मिसाइल टेक्नोलॉजिस्ट, जो हमारे देश की क्षमता को एक नयी ऊंचाई पर ले जाता है; हर-एक जागरूक आदिवासी, जो हमारे देश के पर्यावरण और प्राकृतिक संसाधनों को सुरक्षित रखता है; हर-एक इंजीनियर, जो हमारे देश को एक नया स्वरुप देता है; हर-एक कामगार, जो हमारे देश का निर्माण करता है; हमारे वरिष्ठ नागरिक, जो गर्व के साथ यह देखते हैं कि वे अपने लोकतंत्र को कितना आगे ले आये हैं; हर-एक युवा, जिसमे हमारे देश की ऊर्जा, आशाएं, और भविष्य समाए हुए हैं; और हर-एक प्यारा बच्चा, जो हमारे देश के लिए नए सपने देख रहा है।
26 जनवरी, 1950 को, भारत एक गणतंत्र के रूप में स्थापित हुआ। हमारे राष्ट्र निर्माण की यात्रा में, यह दूसरा महत्त्वपूर्ण पड़ाव था। हमें आजादी हासिल किये हुए, लगभग ढाई साल ही बीते थे। लेकिन संविधान का निर्माण करने, उसे लागू करने और भारत के गणराज्य की स्थापना करने के साथ ही, हमने वास्तव में, ‘सभी नागरिकों के बीच बराबरी’ का आदर्श स्थापित किया, चाहे हम किसी भी धर्म, क्षेत्र या समुदाय के क्यों न हों। समता या बराबरी के इस आदर्श ने, आज़ादी के साथ प्राप्त हुए स्वतंत्रता के आदर्श को पूर्णता प्रदान की। एक तीसरा आदर्श भी था, जो हमारे लोकतंत्र के निर्माण के सामूहिक प्रयासों को, और हमारे सपनों के भारत को, सार्थक बनाता था। यह था, बंधुता या भाईचारे का आदर्श! मिलजुलकर रहने और काम करने का आदर्श!
नागरिकों के चरित्र का निर्माण करना, परिवारों द्वारा अच्छे संस्कारों की नींव डालना, गली – मुहल्ले - गांव और शहर में भाईचारे का माहौल बनाना, छोटे-बड़े कारोबारों की शुरुआत करना, संस्थाओं को सिद्धांतों और मूल्यों के आधार पर चलाना, और समाज से अंध-विश्वास तथा असमानता को मिटाना, ये सभी राष्ट्र-निर्माण की दिशा में महत्वपूर्ण योगदान 
है। आज भी, हमारे बहुत से देशवासी, सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े हुए हैं। वे गरीबी में, किसी तरह, अपनी जिन्दगी गुजार रहे हैं। हमारे इन भाइयों और बहनों को सम्मान देते हुए उनकी बुनियादी जरूरतों को पर्याप्त मात्रा में पूरा करना, और विकास के अवसर निरंतर प्रदान करते रहना, हमारे लोकतन्त्र का सबसे महत्वपूर्ण उद्देश्य है। उनके जीवन को खुशहाल बनाना ही, हमारे लोकतन्त्र की सफलता की कसौटी है। गरीबी के अभिशाप को, कम-से-कम समय में, जड़ से मिटा देना हमारा पुनीत कर्तव्य है। यह कर्तव्य पूरा करके ही, हम संतोष का अनुभव कर सकते हैं।हर नागरिक अपना काम इमानदारी से कर देश के संविधान को सफल बना सकता है बना रहे है । कुछ बदलाव की जरुरत है 
- अश्विनी पाण्डेय 
मुम्बई - महाराष्ट्र

" मेरा दृष्टि में " गणतंत्र के अवसर पर स्पष्ट करना चाहता हूं कि सविधान कानून का शासन है । जो सभी के अधिकारों की रक्षा करता है । कोई भी सविधान से बाहर नहीं है । यही भारतीयता की प्रभुता की स्पष्ट व्याख्या है 
                                                 - बीजेन्द्र जैमिनी


Comments

  1. बिल्कुल प्रत्येक नागरिक की भूमिका गणतंत्र को निभाने के लिए अहम होती है यह भूमिका तभी सफल होगी जब हरेक नागरिक चाहे कोई भी हो अपने कर्त्तव्य का निर्वहन जिम्मेदारी से करेगा तभी लोकतंत्र की सफलता है मौलिक अधिकार स्वंय ही प्राप्त हो जायेंगे अगर प्रशासक निष्पक्ष और ईमानदारी से देश के लिए काम करें।

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