कैसे करें अहंकार पर नियंत्रण ?

अहंकार  से किसी का भला हुआ नहीं है । अहंकार से विकास रूक जाता है । अहंकार से तो इंसान अकेला पड़ जाता है । जबकि अहंकार पर नियन्त्रण करने के लिए प्रयास करना चाहिए । कैसे करना चाहिए । यही " आज की चर्चा " का प्रमुख विषय है । अब आये विचारों को भी देखते हैं : -
अहंकार शब्द संस्कृत के *अहम्* शब्द से लिया गया है जिसका तात्पर्य *मैं* से है। अमुक कार्य मैंने किया या मैं ही करूंगा सब पर अपना साम्राज्य स्थापित करने की मनुष्य की यह प्रवृत्ति, एक ऐसी कालकोठरी ; जहां वह विनाशक बेड़ियों में आबद्ध  कारावास की सजा भोगता है। अहंकार से ग्रस्त मनुष्य को अपने स्व का बोध नहीं हो पाता। भले ही वे व्यक्ति चाहे कितना ज्ञानी और भगवान का भक्त हो; उदाहरण स्वरूप- रावण चार वेद, छह शास्त्रों का ज्ञाता तथा शिव का परम भक्त भी था; फिर भी *अहम्* *ब्रह्मास्मि* की दुष्ट प्रवृत्ति से ग्रस्त महारोगी ही था। उसका अहंकार इतना बढ़ गया था कि उसने विशाल चट्टान की भांति जीवन के सुपथ और सत्य पथ या आध्यात्मिक पथ को भी रोक दिया था।
            अहंकार जैसे नासूर पर नियंत्रण के लिए सर्वप्रथम व्यक्ति को सात्विक आहार पर विशेष ध्यान देना चाहिए। क्योंकि तामसिक आहार दुष्ट प्रवृत्तियों को बढ़ावा देता है। दूसरे पारिवारिक जीवन से ही बच्चे में परोपकार, विनम्रता, सहनशीलता, धैर्य, दया, बड़ों का आदर- सम्मान, आस्तिक और नास्तिक स्थितियों का ज्ञान, परस्पर प्रेम और सद्भाव जैसे सद्गुणों के विकास एवं व्यवहार पर विशेष ध्यान देना चाहिए।
    तीसरे व्यक्ति को सोचना होगा कि *मैं* के होने से परमात्मा नहीं होता और जब *मैं* मिट जाता है तब वह हमारी सांसों में समा कर यही स्वर गुंजायमान कराता है--- "सर्वे भवंतु सुखिनः सर्वे संतु निरामया/
 सर्वे भद्राणि पश्यंतु मा कश्चित् दुख भाग भवेत्"।
              मेरे विचार से  इस भावना के पालन से भी सारा अहंकार तिरोहित हो जाएगा।
- डॉ रेखा सक्सेना
मुरादाबाद - उत्तर प्रदेश
      अहंकार एक ऐसा अवगुण है कि यह कब चोरी-छिपे व्यक्ति के अंदर अपना स्थान बना कर अपनी जड़ फैला लेता है पता ही नहीं चलता। तब यह व्यक्तिव के विकास में बाधक तो बनता ही है साथ ही व्यक्ति को अलोकप्रिय भी बनाता है। एक कहावत अधिकतर कही जाती है कि अहंकार तो विद्वान होते हुए भी,रावण का भी नहीं रहा, उसी के चलते हुई गल्तियों से रावण का पतन, यहाँ तक कि मृत्यु भी हुई, तो हम मानव तो बहुत साधारण हैं।
          अब प्रश्न यह उठता है कि इस अहंकार पर कैसे नियंत्रण किया जाये? मेरे विचार से सत्साहित्य का अध्ययन तो करना ही चाहिए क्योंकि अहंकार के वशीभूत हुआ व्यक्ति अपने को स्वयं सबसे बड़ा ज्ञानी समझता है। अध्ययन उसकी इस कमी को दूर करने में सहायक हो सकता है। दूसरी बात... बच्चों के साथ समय बिताना और खेलना चाहिए ताकि बच्चों की सहजता और सरलता से वह कुछ कुछ सीख सके। तीसरी बात... वृद्धजनों के साथ वृद्धाश्रम में जाकर उनकी सेवा करनी चाहिए। जीवन में सभी को इस अवस्था में आकर सहारे की आवश्यकता सबको पड़ती है। इस सत्य को समझ कर अहंकार से दूर जाने में व्यक्ति सक्षम हो सकता है।
- डा० भारती वर्मा बौड़ाई
देहरादून - उत्तराखंड
संयम और मौन से काफ़ी हद तक हम अहंकार पर काबू पा सकतें हैं । अहंकार व्यक्ति का सर्वनाश कर देता है,,जिसका सबसे बड़ा उदाहरण रावण जैसा, पंडित और ज्ञानी व्यक्ति । हमें सदा अपनी इंद्रियों पर काबू रखनी चाहिए तभी शायद हम अहंकार पर भी नियंत्रण रख सकते हैं। सदैव अपना संतुलन बनाए रखने से भी अहंकार पर काबू पाया जा सकता है । सतगुण, सुविचार पर हमें ध्यान देनी चाहिए ।वृक्ष भी फलों से लदे होकर झुक जाते हैं ,उसी प्रकार हमें भी विनम्रता अपनाना चाहिए ना कि अहंकार जैसे दुर्गुण को । बुद्धि, विवेक,संयम  विनम्रता के द्वारा हम अहंकार पर नियंत्रण रख सकते हैं।
- डॉ पूनम देवा
पटना - बिहार 
हर मानव में अंहकार निहित पर व विकार बन जाता है तब दुर्गुण कहलाता है । अहंकार के दो मुख्य कारण ज्ञान और धन हैं। “लेकिन कोई भी व्यक्ति यदि ये दोनों तत्व होते हुए भी, आध्यात्मिक व्यवहार जैसे- धार्मिक पूजा, शास्त्रों का अध्ययन, तीर्थयात्राओं मे सम्मिलित होना और मंत्र का जाप या ध्यान करना जैसे कार्य करता है, तो उसमें अहंकार बहुत कम होता है।“ संतों के पास इस अहंकार का केवल एक अंश होता है,क्योंकि वें उनकी "मैं या स्वयं की भावना" से मुक्त हो चुके हैं। और अब  उनके पास केवल 'आध्यात्मिक भावना या भव या शुद्ध अहम' है, जोकि उन्हें अपने  आध्यात्मिक अनुभव, कि- 'मैं आत्मा हूँ' की एक भावना से प्राप्त हुआ है। हम अपने भौतिक शरीर, भावनाओं और धारणाओं के साथ पहचाने जाते है। जो हमारे अवचेतन मन में विभिन्न विचारों या संस्कारों जैसे- तेज-मिज़ाज़ व्यक्तित्व, इच्छाएं,पसंद और नापसंद के कर्ण होते हैं, जहाँ जीवन का एकमात्र उद्देश्य "सांसारिक खुशी" प्राप्त करना होता है। 
केवल एक अहंकार को समाप्त करके ही, आध्यात्मिक ज्ञान को प्राप्त किया जा सकता है। जब तक एक व्यक्ति में- 'मैं', 'मुझे', 'मेरी' की भावना बानी रहती है, तब तक वह भगवान या ब्राह्मण को नहीं जान सकता है। "लेकिन हम अहंकार को नष्ट करने की प्रक्रिया को कैसे शुरू करते हैं?" 
जागरुक बनने के साथ आरंभ करें और अपने दोषों को स्वीकार करके आगे बढ़ने की शुरुआत करो। अर्थात दूसरों के दोषों की ओर इशारा करना बंद करें। स्वार्थ भी अहंकार का एक अन्य स्रोत है। या शारीरिक रूप में (मुझे दुख नहीं होना चाहिए), मौखिक रूप में (क्या वे जो मेरे साथ अच्छा व्यवहार करते हैं, जानते हैं कि- मैं कौन हूँ?) या मनोवैज्ञानिक रूप में (मेरी इच्छाओं का पालन किया जाना चाहिए?)। अहंकार को कम करने के लिए, अपने भाषण में- 'मैं', मुझे 'मेरा' जैसे शब्दों का प्रयोग ना करें। केवाल अपने लिये ही नहीं दूसरों के लिये भी कार्य करें। बच्चों के साथ खेलें जो कि- “आपकी स्थिति को और आपके अहंकार को भूलने मे आपकी मदद करते हैं।“  
साधना एक ऐसा प्रयास है जो- “प्रतिदिन अहंकार को नष्ट करती है और भगवान का एहसास कराती है।“ भगवान की सेवा या सतसेवा आप सभी के लिए इस भावना के साथ कि- “आप सभी भगवान के सेवक हैं”, के रूप में आप सभी के लिये भगवान के द्वारा दी हुई एक भेंट हैं।“ 
आध्यात्मिक प्रेम या प्रीत बिना उम्मीद का प्यार है। इसलिए, दूसरों के बारे में भी सोचो, ना कि सिर्फ अपने बारे में। जब स्वयं के लिए प्यार कम हो जाता है, तो अहंकार कम हो जाता है। आध्यात्मिक प्यार पूर्ण रूप से ईश्वर के प्रेम और उनकी कृतियों, जिसमें परिवार बिना किसी उम्मीद के शामिल हैं। भगवान की कृपा से हम अपने अहंकार और अपने खुद के नाम के बारे में भूला जाते हैं। भगवान के नाम का जाप करने के बजाय, उसके नाम के साथ विलय हो जाओ। अहंकार के खिलाफ सचेत रहो और एक आध्यात्मिक भावना को मन में रखो और मुझसे भगवान उनके नाम का जाप करने से प्रभावित हो रहे हैं। दूसरा उपाय अपनी प्रार्थना को बदलना है, अपने आपको उन घटनाओं के प्रति सचेत होने के लिये कहो जो आपमें अहंकार को बढ़ाती है और आपसे उन घटनाओं के लिये अहंकार को कम करने के लिये कहा जाता है। अपने आप से शाश्वत प्रश्न पूछने के लिये कहो कि- 'मैं कौन हूँ?'जिसका जवाब आपके अंदर ही निहित है। अपने अंदर देखो और तब आप अपने पूरे दिल से कहोगे कि- "मैं कोई नहीं हूँ।" वस आपने अंहकार पर विजय पा लि , 
- अश्विन पाण्डेय 
मुम्बई - महाराष्ट्र
कबीर की वाणी याद करें 
जब मैं था तब हरि नहीं, अब हरि हैं मैं नाहिं।
सब अंधियारा मिट गया, जब दीपक देख्या माहिं।।
सबसे पहले स्वयं को पहचाने कि हमें किस बात का अहंकार है ।तन, मन, धन तो नश्वर है फिर उन पर कैसा अहंकार? एक बार किसी अहंकारी व्यक्ति ने महापुरुष से पूछा गया कि मैं अपने अहंकार पर कैसे नियंत्रण करूँ? महापुरुष बोले, "प्रतिदिन किसी अस्पताल, अनाथाश्रम या असहाय लोगों के मोहल्ले में जाकर उनकी सेवा करो, मदद करो, उनके साथ कुछ समय व्यतीत करो ।"जब उसने कुछ दिन ऐसा किया तो जीवन का वास्तविक रूप देखने को मिला कि अमीर और गरीब हर किसी को एक न एक दिन दूसरों पर आश्रित होना ही पड़ता है और यदि हम विनम्रता का भाव ना रखेंगे तो कोई हमारी सहायता करने आगे नहीं आएगा ।मनुष्य सामाजिक प्राणी है ।वह अकेले जीवन व्यतीत नहीं कर सकता ।हमें छोटे से छोटे व्यक्ति की भी आवश्यकता पड़ती है ।सरल और सादगीपूर्ण जीवन को आधार बनाएँ, सबके साथ विनम्र रहें, वाणी में मधुरता लाएँ, आध्यात्मिक पुस्तकों का अध्ययन करें ,जितना उचित हो जरूरतमंद की आर्थिक मदद करें, प्रेम और त्याग को जीवन का उद्देश्य बनाएँ, समभाव रखें ।फिर देखें आपका अहंकार कैसे स्वतः ही नियंत्रित होता जाएगा ।खुश रहें और खुश करें ।
- सुशीला शर्मा
जयपुर - राजस्थान
अहंकार एवं बड़ेपन की भावना है । जीवन की अजीब विसंगति है। मनुष्य चाहकर भी अहं को झुका नहीं पाता, अहं की पकड़ को ढीली नहीं कर पाता। यह जानते हुए भी कि स्वयं को बड़ा मानने का अहं जीवन के हर मोड़ पर व्यक्ति को अकेला कर देता है। हर मनुष्य में अहंकार की मनोवृत्ति होती है। वह दूसरे को नीचा दिखाकर अपने को ऊंचा दिखाना चाहता है। आदमी का सबसे बड़ा रस इस बात में होता है कि और सब छोटे बने रहें, मैं बड़ा बन जाऊं। कितना स्वार्थी एवं संकीर्ण बन गया इंसान कि उसे अपने सुख के सिवाय कुछ और नजर ही नहीं आता। स्वयं की अस्मिता को ऊंचाइयां देने के लिए वह कितनों के श्रम का शोषण, भावनाओं से खिलवाड़ एवं सुख का सौदा करता है। उसकी अंतहीन महत्वाकांक्षाएं पर्यावरण तक को जख्मी बना रही हैं। आखिर इस अनर्थकारी परंपरा एवं सोच पर कैसे नियंत्रण स्थापित हो? अहंकार प्रत्येक व्यक्ति के अन्तःकरण में ऐसा प्रतिष्ठित है कि वह छूटता ही नहीं। वह चाहता यही है कि मैं बड़ा रहूं, दूसरे छोटे रहें। यदि दूसरे छोटे न हों तो बड़ा बनने का अर्थ ही क्या रहा? तो फिर बहुत कुछ धन, पदार्थ, पद, सत्ता होने का भी अर्थ क्या है? यह एक कठिन समस्या है। इसी से जब सत्ता का अहं जागा तो विलासिता और क्रूरता आई। ज्ञान का अहं जागा तो जीवन के आदर्शों को बौना बनना पड़ा। शक्ति का अहं जागा तो युद्ध के खतरों ने भयभीत किया और समृद्धि का अहं जागा तो मनुष्य-मनुष्य के बीच असमानताएं आ खड़ी हुईं। जीवन में कई दफा ऐसा ही होता है, जब हमें अपने आप पर बहुत गर्व होता है। हमें अपने स्वाभिमानी होने का एहसास होता है। पर धीरे-धीरे यह स्वाभिमान अहंकार का रूप लेने लगता है। हम अहंकारी बन जाते हैं और दूसरों के सामने दिखावा करने लगते हैं। यह भूल जाते हैं कि हम चाहें कितने ही सफल क्यों न हो जाएं, व्यर्थ के अहंकार और झूठे दिखावे में पड़ना हमें शर्मिंदा कर सकता है। फिर भी मनुष्य की यह दुर्बलता कायम है कि उसे कभी अपनी भूल नजर नहीं आती जबकि औरों की छोटी-सी भूल उसे अपराध लगती है। काश! पड़ोसी के छत पर बिखरा गंदगी का उलाहना देने से पहले हम अपने दरवाजे की सीढ़िया देख लें कि कितनी साफ है। सच तो यह है कि अहं ने सदा अपनी भूलों का दंड पाया है।
अंहकार पर नियंत्रण करने के लिये हर व्यक्ति को श्रेष्ठ समझो 
अपने से बड़ों सबको महत्व दो व ईश्वर पर आस्था रखो । 
सब में कोई न कोई विशेष गुण होता है यह हम समझ जायेग्  हमारा अंहकार ख़त्म हो जायेगा 
संत्संग करो यह बहुत जरुरी है 
मानव को मानव बनाने के लिये 
अंहकार रुपी शत्रु को नाश करने के लिये । 
- डॉ अलका पाण्डेय
मुम्बई - महाराष्ट्र
अहंकार, मनुष्य के अंदर बैठा एक अपरिपक्व शैतान है|जो हर व्यक्ति में विद्यमान है।जो व्यक्ति अहंकार में द्धुत होकर अपने आपको सर्वोच्च ,सर्वश्रेष्ठ समझता है उसका पतन निश्चित होता है|अब तक हर युग में जितनी लड़ाइयाँ हुई सब घमंड ,अहंकार के वजह से लड़ी गई हैं |अहंकार में हँसता खेलता परिवार बिखर जाता जिसके साथ कई  ज़िन्दगियाँ जुड़ी होती है |बनता हुआ काम भी अहंकार के कारण बिगड़ जाता है |  थोड़ा सा संयम ,सब्र ,मौन,शांत या झुककर हम अपने अहंकार पर क़ाबू पा सकते हैं |जिससे हमारा क़द घटने के बजाय बढ़ता ही है |जैसे -फलों से भरा पेड़ तना नही रहता वह हमेशा झुका रहता है|वैसे ही गुणों से ,अपनी जीत से या धन दौलत से भरे इंसान को घमंड नहीं करना चाहिए उन्हें सर्वदा विनम्र बने रहना चाहिए |
                          -  सविता गुप्ता 
                         राँची - झारखंड
अहंकार ऐसी भावना है जो किसी अपने से नीचे को देख कर उपजती है । इस पर नियंत्रण करने का आसान तरीका है कि अपने अतीत को याद करें । जिससे ऊपर उठ कर आप यहाँ आये हैं । जैसे हमारा बचपन किन अभावों से गुजरा है? यहाँ तक कैसे पहुंचे? तभी हम वास्तविक धरातल पर रह सकेंगे। दूसरे की तकलीफ समझ सकेंगे । साथ ही अपनी उपलब्धि को बाँट सकेंगे ।
- संगीता गोविल
पटना - बिहार
घमंड तथा गर्व में बहुत थोड़ा फ़र्क़ होता है।घमंड धीरे धीरे अहंकार का रूप ले लेता है और मनुष्य के पतन की शुरुआत हो जाती है।अहंकारी मनुष्य अपनी हर बात को सही समझता है,गलत विचार को सही साबित करने के लिए गलत रास्ते अपनाता है।अपने कार्यों पर गर्व करना अच्छी बात है पर ये समझना कि वो ही सर्वश्रेष्ठ है,उसकी बराबरी कोई नहीं कर सकता,ये विचारधारा ही हमें अहंकारी बना देती है।ज़रूरी ये है कि हम दूसरों के कार्यों की तारीफ करें,मन मे ये ख़याल न आने दें कि हमसे अच्छा और कोई नहीं।खुद को चाटुकारों से दूर रखें,झूठी तारीफ से खुश न हों।अपने कार्यों का सही मूल्यांकन करें,दूसरों की उपलब्धियों को सम्मान दें तभी हम अहंकार पर नियंत्रण कर पाएंगे
               - संगीता सहाय
            रांची - झारखण्ड
अहंकार हर हाल मैं मैं अपनी जय चाहता है, विजय चाहत में पूरी विश्व वसुधा के सहार के रूप में ही ना हो। इसी अहंकार के आपसी टकराव के कारण यह वसुधारा कई बार रक्त रंजित हुई है, लहूलुहान हुई है अब तक इस संसार में हजारों युद्ध हो चुके हैं, अपार जनधन की हानी हो चुकी है आज फिर अहंकार आतंकवाद व साम्राज्यवाद के रूप में तांडव किया जा रहा है, पर जब अहंकार मिटान लगता है। हृदय में भागवत प्रेम का "होने लगता है तब व्यक्ति जीत कर भी हार जाता है और समुच्चय यह हार ही उसकी जीत होती है। उदाहरण के लिए कलिंग युद्ध में विजय होने के बाद भी सम्राट अशोक व्याकुल हो उठे। उस युद्ध में भारी रक्तपात हुआ देखकर उनका मन विचलित हो उठा। हजारों मासूमों की चीखे, हजारों माताओं की गोद सूनी, सुहागिनों के हाथों की दुली मेहंदी उससे बेचैन कर गई। भारी आत्मग्लानि हुई, पश्चाताप हुआ और वे शांति व प्रेम की शरण में चले गए बुद्ध की शरण में चले गए प्रेम से किसी को भी जीता जा सकता है अहंकार मनुष्य को कैंसर की तरह खा जाता है। १)अहंकार से बचने के लिए हमें प्रेम और शांति के मार्ग पर चलना चाहिए। 
२) जब अहंकार उत्पन्न हो तब आप जिस भगवान को मानते हैं उसका ध्यान करना चाहिए 
३) आप चाहे तो मंदिर जा सकते हैं।
४) हमारे वेद ग्रंथ को पढ़ सकते हैं बड़े महापुरुषों के प्रवचन को सुनने से आपका अंका नष्ट होगा या आप अच्छा साहित्य पढ़ें। 
५) अपने मन को सत्कर्म में लगाएं। 
- प्रीति मिश्रा 
जबलपुर -मध्य प्रदेश प्रदेश
अहंकार मानव का सबसे बड़ा दुश्मन है ! जिन लोगों ने अहंकार को अपनी शक्ति बनाया उनका पतन हुआ है!
 हृदय से अहंकार को बाहर निकाल दे तभी हम अच्छे मानव की गिनती में आते हैं ! राजा रावण कितना बड़ा ज्ञानी था !  उसे अपने ज्ञान का अहंकार था कि मेरे जैसा भक्त और ज्ञानी कोई नहीं है ! वास्तव में यह हकीकत थी! स्वयं प्रभु भी उसकी भक्ति और ज्ञान के कायल थे किंतु जब उसने ज्ञान को अहंकार की शक्ति बनाया उसका पतन हुआ ! यदि कोई हमारे कार्य की प्रशंसा करें तो हमें विनम्र होकर उसका आभार करना चाहिए और ऐसा कहे आपकी कृपा से यहां तक पहुंचा हूं कहने से ही आपको अहंकार नहीं छुता क्योंकि आप दूसरों के प्रति विनम्र हैं ! त्याग की भावना होनी चाहिए !त्याग से शांति मिलती है ! गरीबों की मदद करना , उन्हें दान देना ,अस्पताल मंदिरों में डोनेट कर यदि आप अपने आप को बड़ा समझते हैं इसका मतलब वह त्याग नहीं अहंकार है ! जिस त्याग से अभिमान जागे वह त्याग नहीं है ! त्याग से शांति मिलनी चाहिए ! सही मायने में सच्चा त्याग तो अभिमान का त्याग है !  स्वयं को हमें अधिक महत्व नहीं देना चाहिए वरना हममें अहंकार की भावना आ जाती है ! कभी-कभी हम स्वाभिमानी व्यक्ति को भी अहंकारी समझने लगते हैं ! स्वाभिमान में विनम्रता होती है जैसे मैं स्वयं कर लूंगा नम्रता के साथ कहता है किंतु यही बात अहंकार में मैं कर सकता हूं काफी फर्क पड़ता है !अतः  अंत में  यही कहूंगी कि अहंकार को नियंत्रण में करने के लिए हममें विनम्रता तो होनी ही चाहिए ! किसी भी चीज का घमंड नहीं करना चाहिए धीरे-धीरे यही घमंड और अहंकार का रूप ले लेता है ! एवं त्याग अहंकार का होना चाहिए !
- चन्द्रिका व्यास
मुम्बई - महाराष्ट्र
जीवन में सफल होना है या यूँ कहें कि जीवन को सुख-शांति मय करना है तो अपने भीतर ' ' 'अहंकार'  नहीं आने देना है। अहंकार को कोई भी पसंद नहीं करता। न घर के, न पड़ौसी,न परिजन ,न मित्र और न ही परिचित -अपरिचित।
ऐसे में जीवन में एक न एक बार  ऐसा अवसर आता ही है जब ये लोग आपको ऐनमौके पर करारा जबाब देकर सबक सिखाने का मौका नहीं छोड़ते। तब सिवाय पछताने के कुछ भी नहीं रह जाता। अतः हम सबको सदैव इससे बचकर रहना चाहिए। इसका सबसे सरल उपाय है हमारा सकारात्मक होना। सहज ,सरल और विनम्र रहना। औरों से अपने को छोटा समझना। सभी से प्रेममय व्यवहार करना। उनको मान-सम्मान देना। छोटी-छोटी अप्रिय  बातों को नजरअंदाज करना।क्रोध, हठ और आपाखोने से बचना।  व्यवहार में नेकी,निष्ठा, निश्छलता और निष्पक्षता होना। वार्तालाप में मान,ज्ञान,मधुरता और स्पष्टता झलकना। इन सबसे आपको वह सब सहज प्राप्त होगा जो आप औरों से चाहते हैं और अहंकार में जो संभव है ही नहीं। अतः अहंकार पर नियंत्रण रखें और मिलनसार, मृदु भाषी बनें। जीवन इतना सुखद, सरस और शांतिमय  होगा ,आपने कल्पना भी नहीं की होगी।
- नरेन्द्र श्रीवास्तव
गाडरवारा - मध्यप्रदेश
भारतीय संस्कृति ,  अध्यात्म में अंहकार को मानव जीवन के विनाश का मूल बताया है । रामायण में एक प्रसंग है - बड़े भाग्य मनुष्य तन पावा । सुर दुर्लभ गुण ग्रन्थन गावा । मानव जीवन हमें बड़े भाग्य से मिलता है । जिसके लिए देवता भी तरसते हैं । साहित्यिक मनीषियों, सन्तों महापुरुषों ने अंहकार को अवगुण  के रूप में परोसा है ।जो हकीकत है । अंहकार होता क्या है ? अंहकार मानव जीवन में निषेधात्मक भाव है । यह घमंड आसुरी  संपदा है । जो मानव को  दुर्गुणों की ओर ले जाती है । अच्छाई से दूर रखती है । मानव के व्यक्तित्व का नकारात्मक पहलू है । जिसमें व्यक्ति में ,  मैं को यानी स्वयं को दूसरोंसे श्रेष्ठ मानता हूँ । मैं सुंदर हूँ । मैं यह हूँ आदि । आज इंसान के पास दो पैसे ज्यादा आ जाते हैं । भौतिक समृद्धि ज्यादा हो जाती है । तो उसमें अंहकार का भाव आ जाता है । जो हमारे मस्तिष्क पर हावी होकर हमारे विधायक भावों को खत्म करना शुरू कर देता है ।  अंहकार का आवेश  ही क्रोध का जन्मदाता है । अंहकारी व्यक्ति को दूसरों की अच्छाइयां  बुरी लगती हैं । क्योंकि उसके आँखों खुद को सर्वश्रेष्ठ का चश्मा चढ़ जाता है । जिसकी परिणीति  से  पीड़ा ,  चोट ही है ।जीवन दुखदायी हो जाता है । अहं से भरा व्यक्ति दोस्रो को नीचा दिखाने में लगा रहता है । अंहकारी को अपनी आत्मप्रशंसा करनी अच्छी लगती है । नकारात्मक सारे अवगुण जैसे लोभ , क्रोध , द्वेष , जलन जैसी बुराइयों  को अपना दोस्त मानता है । प्रेम , अहिंसा , दया करुणा जैसे सद्गुणों  को शत्रु  मानता है ।  जिसने भी अंहकार को अपने जीवन में अपनाया है उसका कुल समूल नष्ट हो गया । महाज्ञानी रावण को  उसका अंहकार ही ले डूबा । दुर्योधन के अंहकार से महाभारत का युद्ध हुआ । वंश ही उजड़ गया । आज 21 वीं सदी में  स्वार्थ के वशीभूत मानव के लिए अंहकार  चुनोती बना हुआ है  ।  वह अंहकार के दुष्परिणामों को नहीं भुगते उसके लिए उसके लिए उसे सद्गुणों जैसे क्षमा , विनम्रता , प्रेम आदि को अपनाना होगा । जो उसे शारीरिक , मानसिक सन्तोष , शांति देगा । महापुरुष की जीवनी , सद्साहित्य पढ़ना होगा । सत्संग  का लाभ लेना होगा । इन के चरित्रों को अपने जीवन में उतारना होगा । तामसिक इस वृत्ति को नकारने के लिए अध्यात्म की संस्था का लाभ उठा सकते हैं । कितने दुर्गुणों से भरे व्यक्तियों का इन संस्थाओं में जाकर प्रवचनो को सुन के अंहकार गायब हो गया ।  वहीं संस्था के सदस्य बन उनके कामों में हाथ बाँटते हैं ।  बुद्ध और अंगुलीमाल को दुनिया जानती है । अंगुलीमाल के अंहकार को  बुद्ध ने   खत्म किया था । संसार को तोड़ों नहीं जोड़ा का पाठ पढ़ाया । बुद्ध ने डरे हुए समाज को अंगुलीमाल के भय से मुक्त कराया था । ईश भक्ति में जब ही मानव में अंहकार आया । ईश उससे दूर हो जाते हैं ।  कई  बार अर्जुन के अहम को श्री कृष्ण ने तोड़ा था । दूब को जरा भी अभिमान नहीं रहता  है । लोग उसे अपने  पैरों के नीचे कुचलते हैं । मौसम की मार आँधी , ओला , गर्मी को सह कर भी हरी बन के पर्यावरण की रक्षक बनी रहती है । उसमें सहिष्णुता , विनम्रता , धीरज , निस्वार्थ जैसे सात्विक गुण से भरी है । कहा भी जिसके पास जो होता है । वही वह देता है । राष्ट्र में लिंग , वर्ण , जाति , वर्ग भेद नहीं हो । सभी सामान हो । हमें उस कटुता के वितान को सद्गुणों के अस्त्र से भेदन करना होगा । अंहकारबके विनाश की आग तभी हम शांत कर सकते हैं । अंत में दोहों में मैं कहती हूँ 
जहाँ अहं का रोग हो , वहाँ उग्रता छाय ।
कृष्ण  कौरव भोज न खा , विदुर साग खाय ।
- डॉ मंजू गुप्ता 
 मुंबई - महाराष्ट्र
अंहकार ही मनुष्य के पतन का कारण होता है अंहकार पर जो नियंत्रण करता है वह जीवन में सुखी हो जाता है। अहंकार को नियंत्रण करने के लिये मन में जो अकड़ पल रही है उस अकड़ को खत्म कर ना होगा अहंकार का सबसे बड़ा कारण अहं ब्रह्मा अस्मि इस भ्रम से पार पाना होगा विनम्रता से मन को समझना होगा।
- हीरा सिंह कौशल
 मंडी - हिमाचल प्रदेश
अहंकार  पद, प्रतिष्ठा,  यश  आदि  पाकर  फूलता-फलता  है  ।  क्रोध,  घृणा, ईर्ष्या,  द्वेष,  स्वार्थ  इत्यादि  के  साथ  इसका  परिवार  बढ़ता  रहता  है  ।  यह  एक  ऐसी  बीमारी  है  जो  व्यक्ति  की  अच्छाइयों  को  समाप्त  कर  देती  है  ।  व्यक्ति  स्वयं  से  दूर  होता  चला  जाता  है  ।   इसे  नियंत्रित  करना  आसान  नहीं  है  तो  असंभव  भी  नहीं  है  ।  ऐसे  व्यक्ति  को  चाहिए  कि  वह  मैं  से  हम  की ओर  चले  ।  विचार  करे  कि  जीवन  तो  पानी  का  एक  बुलबुला  है  जिसे  फूटने  में  एक  पल  भी  नहीं  लगता  ।  अर्थात  मृत्यु  को  प्रतिपल  याद  रखना  चाहिए  ।  अपने  से  निम्न  स्तर  के  लोगों  के  विषय   में  सोचें  उनके  दुःख-दर्द  को  महसूस  करें   ।  प्रेम,  दया,  धैर्य,  सहिष्णुता,  सेवा,  त्याग,  परोपकार  जैसे  उच्च  साहित्य  को  पढ़ कर  गुनना  । दूसरों  के  दर्द  को  अपने   भीतर  महसूस   करने  का  प्रयास  करना,  उनके  स्थान  पर  स्वयं  को  रखकर  देखना  ।  योग,  व्यायाम,  ध्यान  द्वारा  अपने   तन-मन  को  सात्विक  रखना  ।  किसी  के  साथ  ऐसा  व्यवहार  नहीं  करना  जैसा  कि  हम  खुद  अपने  प्रति  नहीं  चाहते  । " करत-करत  अभ्यास  से  जड़मति  होत  सुजान .....।"  की  तरह  अभ्यास  और  प्रयास   से  अहंकार  को  नियंत्रित  किया  जा  सकता  है  । 
         - बसन्ती पंवार 
         जोधपुर - राजस्थान 
 अहंकार के कारण ही काम , क्रोध, लोभ व मोह जैसे दुर्गुणों की मानव मन में पैठ होती है । सब कुछ केवल मेरा हो ये चाह ही जाने -अनजाने अहंकार को जन्म देती है । इसकी गिरफ्त में एक बार जो पड़ता है वो अपने कुटुंब सहित गर्त में समा जाता है । अहंकार पर नियंत्रण रखने हेतु ही प्राचीन काल से ही ऋषि मुनि - सर्वजन हिताय व वसुधैव कुटुंबकम जैसी सोच रखते हुए अपने शिष्यों को भी यही सिखाते थे । भागवत गीता में कर्म करो पर  कर्ता बनने की भूल मत करो यही संदेश बार - बार दिया गया । जब ये विचार पनपता है कि ये सब मैंने किया तो वहीं से अधिकार की भावना जन्म लेती है और अहंकार अपना अस्तित्व जमा लेता है । निष्काम भाव से कर्म करते हुए सब कुछ ईश्वर को समर्पित करते चलो । यही सोच आपको अहंकारी होने से बचायेगी व मानसिक शांति भी बनी रहेगी ।
- छाया सक्सेना प्रभु
जबलपुर - मध्यप्रदेश
अहम्  या  इगो का विस्तृत रूप  ही अंहकार  है । इसकी  वृद्धि  झूठी  प्रशंसा  से हो जाती  है नासमझी  और  ज्ञान  के अभाव  मे होती  है 
इस पर नियंत्रण  करने के  लिए  कुछ  मुख्य  तरीके  है ।
आलोचना  या अपनी  बुराई  सुनने  का धैर्य  पैदा  करना।इस संबंध  मे यह  दोहा  है कि 
निन्दक  नियरे  राखिए  आगंन  कुटि  छबाए  बिन साबुन  पानी  बिना  निर्मल  करे सुनाए 
आत्ममूल्याकंन  कर अपनी  गलतियो  को सुधारना ।
व्यवहारिक  तौर  पर  सारी कहना  या माफी मांगने की प्रवृत्ति  को विकसित  करने से  अहंकार  पर  नियंत्रण  किया  जा सकता है । उपहार  मे मिले  वस्तु  का  मान  सम्मान  करने की  प्रवृत्ति  जागृत  करना ।प्राय  यदि  अपने स्टेटस  के अनुसार  उपहार  न पाने अनजाने  मे यह अहंकार  दिख  जाता  है  । अमीर  गरीब  ऊचॅ  नीच का भेद  होने से  अहंकार  सामने  आ  जाता  है। व्यवहारिक नियंत्रण  बहुत  जरूरी  है  सत्संग  अच्छी  पुस्तक  का अध्ययन  भी  नियंत्रण  के तरीके  है  विचारो  मे परिपक्वता  अति आवश्यक  है। प्राणायाम  मानव  को  अध्यात्म  से जोड़ता  है जानते  तो  सभी  है पर  अनुपालन  कम  करते  है।ठोकर  लगने  परिवार एहसास  होता  है  और  फिर  बदलने  की ओर  बढते  है चलिए  जब  जागे तभी  सबेरा ।
- डाँ. कुमकुम  वेदसेन 
मुम्बई - महाराष्ट्र
आदमी जब किसी भी क्षेत्र में  विषय वस्तु को पाने के लिए प्रयास करता हैं उस समय वह एक नन्हा पौधा होता हैं। जो थोड़ी सी आंधी, बारिश व धरातलीय परिवर्तन से क्षतिग्रस्त हो जाता हैं ।मगर जैसे ही वह परिपक्व हो पेड़ रूपी   आवरण में आता हैं  तो   उसकी क्षमताएं बढ जाती हैं और वह  अहंकार का रूप धारण कर लेती हैं। हमारे शास्त्रों में ऐसा कहा गया है  कि  फलों से लदा पेड़ हमेशा झुका रहता है और जितना ही सीधा  पेड़ होता है वह उतना ही अहंकार से  भरा रहता है ।
अहंकार से बचने के लिए सबसे सरल उपाय है आपको अपनी कठिनाइयों का वह समय हमेशा याद रखना चाहिए। जिन्होंने आपकी मदद की है उन व्यक्तियों को हमेशा रखना चाहिए ।जो प्रयास कर रहे हैं उन व्यक्तियों की मदद करनी चाहिए। वह ना तो अहम को बढ़ावा देगा बल्कि आपको एक परिपथ को मनुष्य बनाएगा।
- मोनिका शर्मा मन
गुरुग्राम - हरियाणा
...सभी धार्मिक पुस्तकों/पुस्तिकाओं में सौदाहरण बताया गया है कि अहंकार विनाश का आधार है। फिर भी हर मनुष्य अहंकारी होते हैं और विनाश करवा कर भी नहीं चेत पाते हैं। क्यों कि अंत के पहले पता नहीं होता उन्हें कि वे अहंकारी थे। जब  वे जानते/मानते नहीं कि वे अहंकारी हैं तो नियंत्रण कैसे करेंगे...! अहंकारी का विनाश होने तक उनपर नियंत्रण कठिन है।
- विभा रानी श्रीवास्तव
पटना - बिहार
अहंकार पर व्यक्ति के लिए नियंत्रण लगभग असंभव सा है विरले ही संसार में होते हैं जो स्वयं अहंकार का नाश कर पाते हैं अन्यथा इसके नियंत्रण के लिए अच्छे गुरु मार्गदर्शक बुजुर्ग किसी सच्चे हितैषी का दायित्व अधिक रहा है उसके द्वारा अपनों के अहंकार नियंत्रण से इतिहास भरा पड़ा है ।
अब सवाल यह है कि यदि अहंकार पैदा ही न होने दिया जाए तो कैसा नियंत्रण ॽ इसके आवश्यक है कि हम अपनी वास्तविकता न भूलें धैर्य सदा अवलम्ब रहे ।भरत हनुमान बुद्ध नानक विवेकानंद गांधी शास्त्री व एपीजे कलाम जैसे चरित्र हमारे आचरण को प्रभावित करें । निश्चय ही हम जल से भरे हुए घड़े सा हो जायेंगे न कि अधभर गगरी छलकत जाय।
- शशांक मिश्र भारती 
शाहजहांपुर - उत्तर प्रदेश
अहंकार संबंधों को तोड़ता है एवं विश्वास संबंधों को जोड़ता है । अहंकार को नियंत्रण किया जा सकता है । अहंकार  अर्थात अज्ञानता ,अज्ञानता के कारण ही मनुष्य अहंकार करता है ज्ञानी व्यक्ति कभी भी अहंकार नहीं करता क्योंकि उसे पता है की सत्य क्या है अर्थात सत्य ही ज्ञान है अतः ज्ञान का सही उपयोग कैसे करना है उसे  पता रहता है। इसलिए मनुष्य विश्वास  के साथ जीते हुए अहंकार से मुक्ति पा सकता है। विश्वास के साथ अर्थात विवेक के साथ , जब मनुष्य   विवेक के साथ    जीता है तो अहंकार तिरोहित हो जाता है। अर्थात अहंकार नियंत्रित हो जाता है। 
 - उर्मिला सिदार  
रायगढ़ - छत्तीसगढ़


             " मेरी दृष्टि में " अहंकार से बचाने के लिए " मैं " को अपने व्यवहार से खत्म करना चाहिए । तभी कुछ अहंकार पर नियन्त्रण हो सकता है । अगर जीवन से अहंकार से छुटकारा मिल गये तो जीवन सत्यम् शिवम् सुदरम् बन जाऐगा ।
                                                    - बीजेन्द्र जैमिनी

हिन्दी दिवस समारोह का.सामुहिक फोटो 
दिनांक :14 सितम्बर 1998

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