क्या गलतफहमी रखना गलती करने से ज्यादा खतरनाक होता है ?

गलतफहमी रखना तो सबसे अधिक हानिकारक सिद्ध होता है । यह सच्चाई है । कोई मानें या ना मानें । फिर भी इस ओर ध्यान बहुत कम लोग देते हैं । जबकि गलतफहमी आमने - सामने अपनी राय ना रखने की वजह से उत्पन्न होती है । यही सब कुछ " आज की चर्चा " का प्रमुख विषय हैं । देखते हैं आये विचारों को : -
गलतफहमी किसी मनोविकार से कम नहीं है। गलती इंसान करता है और अहसास होने पर वह दुहराता नहीं है लेकिन गलतफहमी वह घुन है कि अगर उसको दूर न किया जाय तो जीवन अपना , दूसरे का और यहाँ तक कि इंसान जीवन तक खत्म कर देता/लेता है ।
- रेखा श्रीवास्तव
कानपुर - उत्तर प्रदेश
हां  यह सोलह आने सच है यदि इंसान से गलती होती है तो वह सुधारने की कोशिश करता है और उस गलती को पुनः नहीं  दोहराता! गलती उसके लिए उसका अनुभव बन जाती है गलती से वह कुछ सीखता ही है और जीवन में अनुभव जैसी अमूल्य पूंजी भी पाता है! किंतु गलतफहमी में पाना तो दूर की बात है हम अपनों को भी खो देते हैं गलतफहमी एक ऐसा कैंसर का कीड़ा है जो धीरे-धीरे हमारे सभी प्रिय जनों को हमारे रास्तों को अपनी गिरफ्त में ले लेता है ! गलतफहमी शंका का वह बीज है जो बहुत ही जहरीला होता है ! गलतफहमी एक मनोविकार से कम नहीं है बिल्कुल सही कहा है ! गलतफहमी में आदमी के सोचने समझने की शक्ति क्षीण 
 हो जाती है! उसकी सोच संकीर्ण भावनाओं से ग्रस्त होती है लोगों से भरोसा उठना , शंका करना  अपराध की भावना जागृत होना एवं सभी को शंका की दृष्टि से देखता है इन सभी का निवास गलतफहमी का घर होता है ! गलतफहमी पैदा ना हो इसके लिए संबंधों में व्यवहार में रिश्तो में सभी में पारदर्शिता होनी चाहिए व्यवहार हो चाहे रिश्ते आपस में बात करते समय सभी बातें क्लियर होनी चाहिए उसमें पारदर्शिता होनी चाहिए वरना मतभेद आने पर उसे लगता है मुझे धोखा मिला है और गलतफहमी का शिकार हो जाता है ! 
संबंध में गांठ आ जाये तो भी बात करना बंद नहीं करना चाहिए चूंकि बात करने से ही गलतफहमी दूर की जा सकती है वरना परिणाम घातक हो सकते हैं !
- चन्द्रिका व्यास
मुम्बई - महाराष्ट्र
बिल्कुल सही है ।यदि मनुष्य गलती करता है तो उसे सुधारा जा सकता है, माफी मांग कर मन का बोझ कम किया जा सकता है लेकिन गलतफहमी का शिकार व्यक्ति हमेशा अंधकार में अटकलें लगाता रहता है और अपनी आत्मा को चोट पहुँचाता रहता है । गलतफहमी अच्छे से अच्छे संबंध में भी दरार डाल देती है ।यहाँ तक कि कभी-कभी व्यक्ति अपराध भी कर बैठता है ।उसे भलेबुरे का ज्ञान नहीं रहता ।दिन रात उल्टे सवालों में उलझा रहता है किसी से बात स्पष्ट नहीं करता ।इसलिये समाधान नहीं हो पाता ।
- सुशीला शर्मा
जयपुर - राजस्थान
यह सच्च है गलतफहमी रखना गलती करने से ज्‍यादा खतरनाक होता है। गलतफहमी का एक पल इतना जहरीला होता है, जो प्‍यार भरे सौ लम्‍हों को एक क्षण में भुला देता है।
आपने अक्सर लोगों को कहते सुना होगा ...
“मुझे कोई समझता ही नहीं “
कितनी बड़ी ग़लतफ़हमी..
यह शिकायत आपको तकरीबन हर कहीं सुनने को मिल जाएगी, ‘“”हर पत्नी कहती मिलेगी ..
“मैं ही हूँ जो तुम्हें निभा रही हूँ और कोई होती तो कब की नौ दो ग्यारह ...
ग़लतफ़हमी के क्या कहने ..खेर गलती और गलतफहमी के बीच में एक बहुत ही पतली रेखा होती है, जिसको भांपने की जरूरत होती है। गलती से ज्यादा यह गलतफहमी हानिकारक होती है। एक छोटी-सी गलतफहमी बरसों के बने हुए रिश्तों को कुछ ही क्षण में तबाह कर देती है। गलतफहमी हमारे जीवन में आने वाली अनगिनत समस्याओं की शृंखला का एक संकेत है, जिसे समय पर समझना अति आवश्यक है। अत: एक बेहतर दुनिया में बेहतर जीवन जीने के लिए यह अनिवार्य है कि हम बेहतर समझ को धारण करें, ऐसी समझ को, जो हमें गलतफहमियों से बचाए। इसके लिए सबसे पहले हमें सभी से सौहार्दपूर्ण, प्रिय, सुलभ और सरल होना पड़ेगा, ताकि उन्हें हमारे साथ व्यवहार करने में न तो कोई भी तरह का संकोच महसूस हो और न ही इसको लेकर उनके मन में कोई शंका रहे। हमारी अंतरात्मा साफ है और अभिव्यक्ति विनम्र और सटीक है, तो फिर किसी भी प्रकार की गलतफहमी के लिए हमारे जीवन में तनिक गुंजाइश भी बाकी नहीं रहेगी। हम बड़ी सहजता से सौहार्दपूर्ण संबंधों को बनाने में कामयाब रहेंगे। कभी-कभी किसी छोटी गलती या गलतफहमी की वजह से अपनों के साथ बहस हो जाती है और ये बहस इतनी बढ़ जाती है कि रिश्तों में दरारें आ जाती है। बाद में महसूस होता है कि शायद वो गलती इतनी बड़ी नहीं थी जितनी बात आगे बढ़ गई। कोई भी विवाद या बहस किसी रिश्ते से बढ़ कर नहीं हो सकता। पहले इसके वजह से बेवजह मेरा सबों से झगड़ा हो जाय करता था। मैनें गौर किया कि सामने वाला भले ही वो गलत/सही ही दे रहा है, लेकिन मेरे सही/गलत जवाब बताने से उसके अहम् को ठेस पहुंची है। इस परिस्थिति में आप आगे बढ़कर माफी मांग लिया करो। अगर सामने वाले के साथ अपना रिश्ता बनाए रखना है तो उसके अहम् का जरूर ख्याल रखे। रिश्ते बचाने के लिए कभी कभी झुकना भी जरूरी होता है। ग़लतफ़हमी जितनी जल्दी हो प्यार से दूर कर ले वर्ना जिंदगी नासुर बन जायेगी यदि ग़लतफ़हमी का शिकार आपका अपना है। ग़लतफ़हमी दूर न की गई तो वह कोढ़ की तरह बढ़ती रहती है और आदमी का जीना दूभर हो जाता है / गलती तो सुधारी जा सकती है पर ग़लतफ़हमी को दूर करना पड़ता है 
- डॉ अलका पाण्डेय
मुम्बई - महाराष्ट्र
गलतफहमी पालना गलती करने से ज्यादा ख़तरनाक होती है, क्योंकि गलती करने पर उसका परिणाम दिखता है  जिसे भविष्य में सुधार करने की गुंजाईश रहती है, परंतु गलतफहमी मन में रहने के कारण खुल कर व्यक्त नहीं हो पाती और मनुष्य पूर्वाग्रह से ग्रस्त हो जाता है फिर उम्र भर उसी के साथ जीता है, चाहे सामने वाला पूरी तरह से बदल भी जाए पर पाली हुई गलतफहमी नहीं बदल पाती। बाद में यह नासूर बन जाता है जो अत्यंत ही भयानक होता है।
    -  गीता चौबे "गूँज"
रांची - झारखण्ड
गलतफहमी एक धारणा है जो परिस्थितिजनक संभावित है। तत्समय इसका पता नहीं चलता। हम जो समझ बैठते हैं,वही सच मानकर चलते हैं। बाद में पता लगता है कि हमने जो समझा-सोचा था वैसा कुछ भी नहीं है। लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी होती है। या तो रिश्ते या काम बिगड़ चुके होते हैं या खत्म हो गये होते हैंं। तब सिर्फ पछताने के कुछ नहीं रह जाता। गलतफहमी की वजह से हम अपना बहुत ही मूल्यवान नुकसान कर बैठते हैं। ऐसी भूल, गलती, नासमझी जो भी कहें जीवन में कभी ना होने पाये इसके लिए हमारी समझदारी यह होगी कि यदि कभी ऐसी स्थिति बनती है तो उसको नजरअंदाज करें या समय रहते उसका निवारण कर लेवें।
जीवन जितना अमूल्य है, गलतफहमी रखकर नुकसान कर लेना उतना ही खतरनाक। अतः परिस्थितियों, मनःस्थितियों को सहजता और उदारता से लेते हुये धैर्यवान, बुद्धिमान और समझदार बनें।
- नरेन्द्र श्रीवास्तव
गाडरवारा - मध्यप्रदेश
 मित्र पड़ोसी, रिश्तेदार, परिवारिक सदस्य आदि कोई व्यक्ति यदि मन के अंदर शक पाल लेता है, वह अपने मित्र को भी शत्रु बना लेता है। १ अगर रिश्ते मैं गलतफहमी हो जाए तो वह टूट जाते हैं शक एक ऐसा कीड़ा है जो दीमक की तरह मनुष्य के दिमाग को चट कर जाता है, उसके सोचने की शक्ति को नष्ट कर देता है। महापुरुषों ने भी कहा है कि जैसा सोचोगे वैसे ही विचार मन में उत्पन्न होते हैं। २ मानव को हर हाल में आशावादी होना चाहिए निराशावादी व्यक्ति ही गलत सोच को जन्म देता है। ३ गलतफहमी के कारण ही युद्ध की स्थिति उत्पन्न हो  जाती है, इसलिए हमेशा बात को साफ करना चाहिए।५ अगर कोई मनुष्य गलत बातें किसी के खिलाफ कहता है तो उसे ध्यान नहीं देना चाहिए और अगर मन में गलत विचार आए हैं तो उस व्यक्ति के पास जाकर बात करना चाहिए बात करने से हर समस्या हल होती है। ६ गलतफहमी के आधार पर समाज में बहुत तरह की अफवाहें भी फैलाते हैं जैसे कभी किसी को बच्चा चोर के न, भगवान के नाम पर, कभी गाय इत्यादि यह सब समाज में खतरनाक रूप धारण कर लेती हैं। 
- प्रीति मिश्रा 
जबलपुर - मध्य प्रदेश
गलतफहमी रखना और गलती करना....दो अलग बातें हैं और दोनों एक-दूसरे से एकदम अलग हैं। गलती व्यक्ति अनजाने में करता है और समझ आने पर समय पर उसे सुधार भी लेता है, पर गलतफहमी शक्की स्वभाव के कारण होती है। इसमें व्यक्ति सही-गलत समझने की शक्ति खो देता है और अपनी समझ को ही ठीक और सर्वोपरि समझता है। लड़-झगड़ कर, आपस में बात करके गलतफहमी को दूर कर लेना चाहिए, नहीं तो गलतफहमीऐसी आग है जो स्वयं को भी जलाती है और दूसरे को भी जला कर नष्ट कर देती है।  गलतफहमी रखना गलती करने से ज्यादा खतरनाक है, अतः इससे बचना चाहिए। यदि किसी कारण से हो जाये तो शीघ्र ही प्रयास कर समाप्त कर देनी चाहिए, गाँठ बना कर मन में पालते नहीं रहना चाहिए।
- डा० भारती वर्मा बौड़ाई
देहरादून - उत्तराखंड
जी गलती में सुधार शीर्घ हो जाता है पर गलतफहमी समस्याओं को जन्म ही नहीं देती अपितु आपसी विश्वास को भी कमजोर करती है अतः जहाँ तक संभव हो गलतफहमी न पैदा होने दे यदि किसी कारण हो जाये तो शीघ्रता से दूर करना चाहिए ।इसका सबसे बड़ा उपाय है आपसी विश्वास पैदा करना ।अन्यथा इस खतरनाक स्थिति से सबकुछ समाप्त हो सकता है ।
- शशांक मिश्र भारती 
शाहजहांपुर - उत्तर प्रदेश
जी ,गलतफहमी पालना भी एक प्रकार की गलती ही है |गलतफहमी धीमा ज़हर जैसा ख़तरनाक होता है जिस वजह से व्यक्ति मन ही मन घुटता  रहता हैं |बिना तथ्य के तह में गए गलत धारणा बना कर रिश्तों में दरार पैदा कर लेता है |
कई बार दो व्यक्ति की दोस्ती किसी तीसरी को रास नहीं आती ;ईर्ष्यावश वो गलतफहमी पैदा कर देता है |हमें चाहिए कि यदि ग़लतफ़हमी हो भी गई हो तो अंदर ही अंदर घुटने या वाद -विवाद में न पड़कर खुल कर बात कर के गलतफहमी सुलझा लें और प्रसन्न रहे |
                  - सविता गुप्ता 
                 राँची - झारखंड
गलती  अनजाने  मे  होती  है गलतफहमी  मिथ्या  धारणा  है जो पूर्वाग्रह  से पैदा  होती  है ।false  perception  ही  तो  गलतफहमी  है। इंसान  का विश्वास  कमजोर  हो जाना  गलतफहमी  की  पहली  सीढ़ी  है दूसरी  मन  मे शक  पैदा  होना तीसरी हर वक्त  डर  के  साये  मे  रहना ।
अब  यह सोचने  और  समझने  की  बात  है कि  जो  इंसान  डर शक अविश्वास  से घिरा  रहे  तो  उसकी  दुनिया  अन्दर बाहर  दोनो  ओर  से  ही कमजोर  रहेगा तो  खतरनाक  तो  होगा  ही । अगर  समय  रहते  इसे  सुलझा  लिया  गया  तो  ठीक  वरना  यह  मनोविकार  या Mental  illness  बन  जाता  है  और जीवन  भर  नासूर  बन  घर  परिवार  के  वातावरण  मे  अशांति  अंधेरा  हो  जाता  है
- कुमकुम वेदसेन 
मुम्बई - महाराष्ट्र
जी हाँ,  गलतफहमी से व्यक्ति के सोचने समझने की शक्ति लुप्त हो जाती है जिससे वो पूर्वाग्रह से ग्रसित हो सभी निर्णय करता है । जबकि गलती व्यक्ति से जाने  अनजाने होती  है जिसका वो प्राश्चित कर सकता है ।  किसी के प्रति गलतफहमी मन में एक बार बैठ जाये तो वो आसानी से दूर नहीं होती । इसकी मुख्य वज़ह  शक की बीमारी है ।  शक्की व्यक्ति  धीरे - धीरे अपने सारे रिश्तों को  खो देता है । 
किसी ने सही ही कहा है कि शक की दवा हकीम लुकमान के पास भी नहीं है । आपसी मेलजोल व नियमित संवाद के माध्यम से रिश्तों में पनपती गलतफहमी को दूर किया जा सकता है ।इसीलिए कहा जाता है झगड़ा करना बुरा नहीं है पर बिना बोले मन में गाँठ  बना कर उसे बढ़ाते जाना उचित नहीं है ।
- छाया सक्सेना प्रभु
जबलपुर - मध्यप्रदेश
क्या गलतफहमी रखना गलती करने से ज्यादा खतरनाक होता है। गलतफहमी में कोई भी प्रिया की घटनाएं स्पष्ट नहीं होती है और गलती   में  क्रिया की घटनाएं स्पष्ट होती है की यह कार्य गलत है अतः गलती का एहसास होने से क्षमा मांगा जा सकता है। लेकिन गलतफहमी में मनुष्य कुछ नहीं कर पाता है और अंदर ही अंदर गलतफहमी की वजह से अर्थात क्रिया का स्पष्ट ना होने से मन  उद्वेलित होता रहता है  जिससे मनः  स्थिति ठीक नहीं रहती है अतः हम जो भी कार्य व्यवहार करते जिससे वह सही नहीं हो पाता है अतः गलतफहमी गलती से अधिक घातक सिद्ध होता है।
 और अर्थ का अनर्थ स समझ कर मनः  स्थिति खराब कर लेते हैं। जहां भी गलतफहमियां होती है  वहां  क्रिया की स्पष्टता पर ध्यान देना चाहिए।
- उर्मिला सिदार
रायगढ़ - छत्तीसगढ़
मेरे राय से गलतफहमी रखना ज्यादा खररनाक है गलती करने से। मान लीजिए किसी ऐसे दोस्त या आदमी के बारे में जिसे आप बहुत अच्छी तरह से जानतीं हैं। मगर किसी दूसरे ने आपसे उसके बारे में कोई गलत बात बता दी हो, चाहे उसने कही हो या ना? थोड़ी देर के लिए आप नकारात्मक ऊर्जा से भर जातें है। क्या -क्या सोचने लगते हैं। कोई भी बात हो उसे आपस में सुलझा ले , मिलकर उस व्यक्ति से। गलतफहमी कभी ना पालें।
- अनीता मिश्रा सिद्धि 
हजारीबाग - झारखण्ड
जी हाँ गलतफहमी रखना  गलती से भी ज्यादा खतरनाक है ।
जॉर्ज बर्नार्ड शॉ  का यह वाक्य हमारे जीवन का आईना है ।
गलतफहमी का तो रिश्तों से सीधे नाता जुड़ा होता है ।
गलतफहमी पनपने में वक्त नहीं लगता है । हमारे पक्के दोस्त ने  अपने कार्यक्रमो में हमें नहीं बुलाया तो  हम
गलतफहमी के शिकार हो जाते हैं । हमारे अपने दोस्त के प्रति गलत विचार  पनपने लगते हैं । रिश्ते में दीवार खींच जाती है ।
 हमारा आज का समाज  गलतफहमी से भरा हुआ । दो जनों में अच्छी दोस्ती है । तो तीसरे दोस्त  से यह देखी नहीं जा रही है । तो वह दोस्त दोनों दोस्तों में ईर्ष्या का बीज बो देगा ।  फिर परिणाम तो विपरीत ही मिलेगा । ऐसा तो मेरे साथ  होता आया है । तनाव में रहने से अच्छा है । इसका हल सोचें । इसका तो मेरा समाधान जो मैंने किया है । उस दोस्त , व्यक्ति से उस गलतफहमीवाली बात पर आराम से चर्चा करती हूँ। तर्कसंगत जवाब दे कर  गलतफहमी को दूर करके हितैषी , शुभचिंतक बन के रिश्तों को जोड़ देती हूँ । क्योंकि साकारत्मक सोचवाले ही यह काम कर सकता है । क्योंकि गलतफहमी  का वायरस एक बार दिमाग में घुस गया तो कैंसर की तरह जीवन लीला लेता है । गलतफहमी  के हम चपेट  में  नहीं आएँ तो हमें उसके  पास जाकर तभी गलतफहमी को दूर करनी  चाहिए ।बुद्धिमान व्यक्ति अपनी समझदारी से  गलतफहमी को सुलझा लेगा ।  मैं कहूँगी रिश्ते तोड़ने के लिए नहीं होते है । जोड़ने के लिए होते हैं । दोहा में मैं कहती हूँ :-
गलतफहमी में है गलत ,  लिखा तो  न तू पाल ।
रहे रोग दूर इससे ,   नहीं  फिर  चले चाल ।
- डॉ मंजु गुप्ता 
मुंबई - महाराष्ट्र
गलती और गलतफह़मी दोनों ही मानवीय दोष हैं। एक सेर तो दूसरा सबा सेर। मानव- जीवन में मन या मस्तिष्क की क्रियाविधि या फिर कुछ बोलने से गलतियां हो जाती हैं।मनुष्य उसका परिणाम भोगने के साथ एहसास होने पर दुखी होकर उसे सुधारने की कोशिश भी करता है। गलती पर पछता कर क्षमा प्रार्थी भी हो सकता है; लेकिन किसी बात का सही अर्थ ना समझना, कभी-कभी परिवार, समाज , देश के लोगों से बातचीत या अपने साथ काम करने वाले लोगों के साथ नकारात्मक भावनाओं का इस्तेमाल बड़ा ही घातक हो जाता है ;क्योंकि किसी व्यक्ति को सही गलत के मापदंडों पर नहीं आंक सकते। कभी-कभी व्यक्ति कहना कुछ चाहता है, और जो कहता है उसका मतलब, लोगों की दृष्टि में कुछ और हो जाता है। अतः कही गई किसी बात का सही अर्थ ना समझना, गलतफहमी के दुष्प्रभावों को जन्म देता है। आज पारिवारिक, सामाजिक, राजनीतिक जीवन में अधिकतर लोग *गलतफहमी* के शिकार हो रहे हैं।यथा- राजनीतिक स्तर पर नागरिकता संशोधन एक्ट के बारे में विपक्ष एवं जनता की गलतफहमियां और उसके ज्वलंत खतरनाक दुष्परिणाम सर्व विदित ही हैं। मेरी दृष्टि में तो गलतियां सुधार की अपेक्षा रखती हैं ; पर *गलतफह़मियाँ* विस्फोटक ज्वालामुखी का रूप ले लेती हैं। 
- डॉ. रेखा सक्सेना
मुरादाबाद - उत्तर प्रदेश
 इंसान गलतियों का पुतला है। नादान बच्चों से लेकर बड़े-बड़े महापुरुषों से भी स्वयं की नज़रों में प्रतिदिन कोई न कोई गलती होती रहती है। जाने- अनजाने में गलती करना या हो जाना कोई बड़ी बात नहीं है। हां! मैं ही बहुत बड़ा समझदार हूँ, ज्ञानी हूं, अब मुझे कुछ नहीं सीखना, मुझसे बड़ा कोई नहीं.. यह गलतफहमी अगर हमने पाल रखी है तो गलती करने से ज्यादा खतरनाक है। दूसरी ओर कोई व्यक्ति अच्छा कार्य करता है, समाज सेवा करता है अथवा आगे बढ़कर किसी भी प्रकार से  औरों की सहायता करता है तो हमारे दिमाग में सबसे पहले यह बात आएगी उसका अपना कोई स्वार्थ है। इसी तरह सामने वाले व्यक्ति के मन में कुछ नहीं होता और हम भूत- भविष्य में उलझे हुए उसके लिए अनेक गलतफहमियां पाल लेते हैं जो गलतियों से ज्यादा खतरनाक होती हैं। 
 - संतोष गर्ग
मोहाली - चंडीगढ़
शीशा और रिश्ता दोनों ही बड़े नाजुक होते हैं दोनों में केवल एक ही फर्क होता है शीशा गलती से टूटता है और 
रिश्ते गलतफहमी से "
गलतफहमी एक बीमारी की तरह है जो किसी भी अच्छे भले रिश्ते को खराब कर देती है। पहले यह रिश्ते में कड़वाहट लाती है और फिर दूरियां बना देती है। यदि आपके रिश्ते में भी यह बीमारी जन्म ले चुकी है तो उसे तुरंत दूर कर लें। ये 6 आसान तरीके इस काम में आपकी मदद करेंगे।
गलती को सुधार सकते है पर ग़लतफ़हमी नहीं सुधारी जा सकती ....
जब कभी आपका पार्टनर अपनी जिम्मेदारियों को निभाने या उठाने से कतराता है, तो गलतफहमी पैदा होने लगती हैं। ऐसे सवाल मन में उठना तब स्वाभाविक होता है- क्या वह मुझे प्यार नहीं करता? क्या उसे मेरा ख्याल नहीं है? गलतफहमियां आपके बीच न आएं इसके लिए दोनों को अपनी जिम्मेदारियां खुशी से उठानी चाहिए। ग़लतफ़हमी पैदा ही न होने दे ..
गलतफहमियाँ तो होती ही रहती हैं। कुछ छोटी-मोटी होती हैं जिन्हें जल्द ही दूर किया जा सकता है। मगर, कुछ बहुत बड़ी होती हैं जिनसे व्यक्‍ति बुरी तरह परेशान हो जाता है, क्योंकि लाख कोशिशों के बावजूद भी वे दूर नहीं होतीं। गलतफहमियाँ तो ग़लतफ़हमियाँ है दूर कर लो बेहतरी इसी में की पनपने ही न दे । कोई हमारे बारे में गलत राय कायम कर ले, यह जानना हमें कभी-भी अच्छा नहीं लगता। लेकिन, अगर मामले को सुलझाने के लिए आप अपनी तरफ से पूरी कोशिश करते हैं और प्रेम और क्षमा के सिद्धांतो व गीता के उसूलों को अमल में लाते हैं, तो मुमकिन है कि आपको भी इसके मीठे फल ही मिलेंगे।फिर गलती तो होगी पर ग़लतफ़हमी नहीं होगी ।
- अश्विनी पाण्डेय 
मुम्बई - महाराष्ट्र
ग़लतफहमी होना व पालना ही सबसे बड़ी गलती है . ग़लतफहमी का जन्म होता सुनी सुनायी पर विश्वास करना अथवा लोगों के बहकावे मैं आ जाना .यदि हम केवल वर्त्तमान पर विश्वास करें , केवल प्रत्यक्ष को मानें तो काफी हद तक ग़लतफहमी से बचा जा सकता है क्यूंकि ग़लतफहमी ज़हरीली होती है .
- नंदिता बाली 
सोलन - हिमाचल प्रदेश
गलतफहमी भी तभी होती है जब सामने वाला शंका भरे काम करता है । हर रिश्ते की कुछ न कुछ अहमियत होती है । उसे मजबूत बनाने के लिए पारदर्शिता जरूरी है। तभी डोर मंझती है और हर गलत-सही में साथ बना रहता है । लेकिन जिसे गलतफहमी होती है , उसे सीधे सामने वाले से बात करनी चाहिए । क्योंकि गलती करने वाला तो परिणाम नहीं जानते हुए या मजबूरी में कर रहा है ।लेकिन गलतफहमी तो मन की सोच है, जो हमारे मन के अनुसार दूसरे के लिए सोच बनाती है। जब कि दूसरे की सोच अलग होती है। यही उसे ज्यादा खतरनाक बनाती है ।
- संगीता गोविल
पटना - बिहार

               " मेरी दृष्टि में " गलतफहमी को सुधारा जा सकता है । वो भी सिर्फ संवाद के माध्यम से सम्भव है ।सिर्फ आगे बढ कर पहल करने की जरूरत होती है । पहल करने से कोई इंसान छोटा नहीं होता है । यही गलतफहमी का समाधान हो सकता है ।
                                              - बीजेन्द्र जैमिनी

डाँ. जयनारायण कौशिक ( निदेशक : हरियाणा साहित्य अकादमी  ) अपनी पुस्तकों का सैट  , बीजेन्द्र जैमिनी को भेंट करते हुए
दिनांक : 14 सितम्बर 1998 
हिन्दी दिवस समारोह
जैमिनी अकादमी द्वारा समारोह के मुख्य अतिथि के रूप में डाँ. जय नारायण कौशिक



Comments

  1. अच्छी व उपादेय चर्चा बधाई
    शशांक मिश्र भारती

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