क्या शिक्षा से गरीबी की लड़ाई लड़ी जा सकती है ?

सरकार गरीबों को शिक्षा देने के लिए अनेक प्रकार के कार्यक्रम चलाती है । जिस का उद्देश्य सिर्फ रोजगार ही होता है । क्योंकि शिक्षा से ही रोजगार मिलने की सम्भावना सबसे अधिक होती है । रोजगार से ही गरीबी दूर होती है । यह सब जानते हैं । यही " आज की चर्चा " का उद्देश्य भी है। अब आये विचारों पर भी नज़र डाल लेते हैं : - 
आज का समय प्रतिस्पर्धा और महत्वाकांक्षाओं का है जिसमें बड़ी तेजी से स्वयं के, गति के, जीवन के समीकरण बहुत तेजी से बदल रहे हैं। पुस्तकीय ज्ञान और उच्च शिक्षा की डिग्रियाँ होने मात्र से ही गरीबी की लड़ाई नहीं जा सकती। उसके साथ कौशल भी जुड़ा होना आवश्यक है और  हुनरमंद होना भी। केवल शिक्षित होना ही नहीं, अपने विषय में विशेषज्ञता भी आज मायने रखती है। शिक्षा व्यक्ति को निखारती है, उसमें आत्मविश्वास भरती है, अज्ञान के तमस को हर संस्कारित करती है, व्यावहारिक ज्ञान ग्रहण करने योग्य बनाती है। शिक्षा, कौशल और हुनर....जब इन सबका संगम होता है तो गरीबी की लड़ाई ही नहीं, कोई भी लड़ाई लड़ी जा सकती है और जीती भी जा सकती है।
- डा० भारती वर्मा बौड़ाई
देहरादून - उत्तराखंड
अवश्य लड़ी जा सकती है! शिक्षा  ज्ञान  का एक ऐसा माध्यम है जो हमारी हर तकलीफों को दूर कर सकता है ! अज्ञानता ही हमारे हर कार्य में बाधक बनती है! आज एक किसान भी खेती करने की नई तकनीकीयां से शिक्षित होकर फसल की अच्छी पैदावार करता है !परिऋम तो वह पहले भी गधे की तरह करता था किंतु आज ट्रेक्टर पानी के पंप उत्तम खाद , बीज की वजह से अपने उसी खेत से दोगुना, चारगुना फसल प्राप्त करता है और अच्छे पैसे कमाता है!  हर गरीब शिक्षा के माध्यम से अपने बच्चों का जीवन सार्थक करना चाहता है वह अपनी विरासत के रुप में अपनी गरीबी उसे नहीं  देना चाहता! हां! अपनी हैसियत के अनुसार पढ़ते हैं! सभी इंजीनियर  डाक्टर तो नहीं बनते किंतु थोड़ी भी शिक्षा प्राप्त होती है तो वह अपना लघु उद्धयोग अथवा अन्य कोई भी छोटा मोटा काम तो कर ही सकता है! काम कोई छोटा नहीं होता हां! परिऋम  के साथ शिक्षा समाहित हो जाए तो जरूर कुछ बड़ा कर सकता है! आज शिक्षा इतनी महंगी हो गई है  फिर भी एक स्वीपर एवं घर काम करने वाली बाई, मज़दूर  भी चाहते हैं कि उसका बच्चा पढ़े और उनकी गरीबी दूर हो चूंकि आज वे भी शिक्षा का महत्व समझते हैं  !जरुरी नहीं सभी को उचित शिक्षा प्राप्त करने का सौभाग्य मिलता है  किंतु शिक्षा के क्षेत्र में आज छोटे छोटे ऐसे भी कोर्स हैं जिससे आप स्वतंत्र अपना काम कर सकते हो! अंत में यही कहूंगी कि शिक्षा ही वह दरवाजा है जिसे खोलकर ज्ञान प्राप्त कर हम अपनी गरीबी दूर कर सकते हैं  !
- चन्द्रिका व्यास
मुम्बई - महाराष्ट्र
क्या शिक्षा से गरीबी की लड़ाई लड़ी जा सकती है , जरूर । शिक्षा का सही उपयोग धनाढ्य भले ही न.बनाये लेकिन गरीबी से उबार सकती है । हाँ उसके लिए दृढ़ इच्छाशक्ति का होना भी जरूरी है । शिक्षित कोई भी कार्य कर सकता है , भले ही उसका प्रतिफल कम मिले ।
         मैं स्वयं इसका उदाहरण हूँ - जीवन के एक संक्रमण काल में - मैंने पुस्तकाकार  लघु प्रश्नोत्तरी बनाई , जितने विषयों में परास्नातक थी । लोगों की थीसिस लिखी । अखबार के लिए वार्षिकी लिखी और उस समय को बिता लिया ।
- डाँ. रेखा श्रीवास्तव
कानपुर - उत्तर प्रदेश
"शिक्षयेत क्षालयेत  अनेन सह शिक्षा"अर्थात वही शिक्षा है जो हमारे मन ,वचन और कर्म में आई मलिनता का निवारण अनेकानेक प्रक्रियाओं के द्वारा कर देती है .इसी संदर्भ में हनुमान जी महाराज कहते हैं -
श्री गुरु चरण सरोज रज ,
निज मन मुकुर सुधार .अर्थात अपने गुरु के चरणों की धूल को 
मस्तिष्क पर धारण करके प्रभु श्री राम के गुणों का यशोगान करता हूँ जो कि चारों फल (धर्म ,अर्थ ,काम और मोक्ष )के प्रदाता हैं .जब तक आपके मन दर्पण पर मलीनता रूपी अंधकार व्याप्त रहेगा ग़रीबी की लड़ाई तो क्या अपने आप में खड़े (स्व अस्थ )नहीं रह पाएंगे .
बड़े भाग मानुष तन पावा ,
सुर दुर्लभ सद ग्रंथहि गांवां l 
हमारा मनुष्य जन्म अनेकों पूर्व जन्म के संचित पुण्य कर्मों का प्रतिफल है और मानव जीवन में चारों पुरुषार्थों में धर्म के बाद अर्थ 
का स्थान आया तातपर्य यह है कि धर्माचरण के द्वारा अर्जित  अर्थ से 
 अपने कल्याण के साथ-साथ लोक कल्याण के मार्ग के पथिक बनते हुए अंत में मोक्ष की प्राप्ति करें .ऐसी शिक्षा और दीक्षा हमनें प्राप्त की है तो निःसंदेह हम शिक्षा के द्वारा ग़रीबी की लड़ाई लड़ सकते हैं .तुलसीदास जी ने कहा है -"पर हित सरिस धरम नहि भाई l पर पीड़ा सम नहि अधमाई ll "शिक्षा हमारेव्यक्तित्व को ऐसा निखारती है कि हम ग़रीबी की लड़ाई लड़ने को आतुर हो जाते हैं और आतुरता किसी भी संग्राम को जीतने का अमोघ अस्त्रहै .
विद्यावान गुनी अति चातुर ,
राम काज करिबे को आतुर l
हमारा मानव समुदाय विद्यावान (शिक्षित )गुनी (शिक्षा का जीवन में अंगीकार )करते हुए चातुर्य के साथ ,आतुरता के साथ ग़रीबी की लड़ाई लड़ेगा तो निःसंदेह भारत भूमि वसुधैव कुटुंबकम की ओर अग्रसर होगी .पहले हम -
माँ बाप को ही पैसा समझते थे हम ,
आज पैसे को ही माँ बाप समझते हैं हम l 
परिवेश दो हैं -
तेरा मेरा घर शीशे का है ,तू भी देखे ,मेँ भी देखूँ .
तेरे मेरे हाथ में पत्थर ,मैं भी सोचूँ ,तू भी सोच .
यदि शिक्षा का उद्देश्य जीवकोपार्जन के साथ साथ ग़रीबी उन्मूलन करना हो जाये तो हम कह उठेंगे -
सियाराम मय सब जग जानी ,करहु प्रणाम जोरी जुग पानी .
- डाँ. छाया शर्मा
अजमेर - राजस्थान
जी हाँ ! शिक्षा से गरीबी की लड़ाई लड़ सकते है। शिक्षा के द्वारा गरीबों को मजबूत कर सकते हैं । भारत में गरीबी से कितने गरीब बच्चों के सपने पूरे नहीं होते हैं । लेकिन शिक्षा जे आभूषण पहन कितने गरीब बच्चे देश , समाज के लिए मिसाल बन के ताउम्र देश कल्याण में लगा देते हैं । हजारों  गरीब , बेसहारों का सहारा बन जाते हैं ।  समाज में इनकी स्थिति सोचनीय है । क्योंकि गरीबी होने के कारण अपने पेट भरने की चिंता रहती है ।जिससे ये अनपढ़ रह जाते हैं । जिनसे इनका सम्पूर्ण विकास नहीं हो पाता है । सरकार इनकी सुरक्षा  , शिक्षा के लिए समय - समय  पर  योजना  लाती है । शिक्षा के हथियार से समाज में बदलाव ला सकते हैं ।  गरीबों की शिक्षा को लोक संस्कृति का सहारा ले सकते हैं । नुक्कड़ नाटकों , नृत्य , गीत , कविता के माध्यम से गरीब समाज , लोगों को  पढ़ने के लिए हम प्रेरित  कर सकते हैं । स्कूलों में  मिलने वाले मिड डे मील , निःशुक्ल शिक्षा से गरीब माता - पिता अपने  बच्चों को स्कूल में भेज रहे हैं ।
1970 में   इंदिरा गाँधी के जमाने में दिया नारा '  गरीबी हटाओ ' राजनैतिक  नारा ही बन के रह गया है ।
  मोदी सरकार ने सरकारी योजनाओं से इनकी तकदीर में बदलाव लाया है । कौशल विकास योजनाओं से उन्हें शिक्षा दी जा रही है।  जिससे वे आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बन रहे हैं ।  आभावों में रहने वाले गरीबों के  बच्चों के  लिए स्कूलों में  शिक्षा लेने का हमारे प्रधानमंत्री मोदी जी ने आग्रह किया । गरीबी हर क्षेत्र में शिक्षा का शत्रु है ।गरीब छात्र कुपोषण , स्वास्थ्य समस्याओं के शिकार हो जाते हैं । जो उनके सीखने , पढ़ने में संकट पैदा करता है । 
 गरीबी होने से समाज में  ये लोग कोहराम मचाते हैं । असमाजिक तत्व बनके  व्यवस्थाओं का चीरहरण करते हैं । चोर , लुटेरे , स्मग्लर ,  गुंडे आतंकी बन गलत काम करके , अपराध करके अपना जीवन निर्वाह करते हैं ।
अंत में सही शिक्षा से लोग गरीबी से मुक्ति पा सकते हैं ।ज्ञान से पाकर अपनी और देश उन्नति , विकास कर सकते हैं ।
भारत में कई सारे बच्चों का बचपन गरीबी में बीता । लेकिन शिक्षा के पंखों से आसमान छुआ है । मिसाल के तौर पर हमारे भूतपूर्व राष्ट्रपति मा अबदुल कलाम   ने ज्ञान , मेहनत , लगन से सफल मिसाइल मैन बने । उनका ऋण देश नहीं चुका सकता है । शिक्षा से जीवन बदल सकते हैं । वित्तीय संकटों से उभर सकते हैं । 
- डॉ मंजु गुप्ता
 मुंबई - महाराष्ट्र
सभी के साथ मैं भी सहमत हूँ कि शिक्षा माध्यम बन सकती है अगर हम तकनीकी ज्ञान के साथ उसे जोड़ दें । उसके बाद भी  शिक्षा का अर्थ केवल डिग्री नहीं हो, अनिवार्य है । आजकल हर युवा अपना खर्च खुद वहन करना चाहता है । वे लोग इसके लिए थोड़े समय का काम करते हैं या छोटे बच्चों को पढ़ाते हैं । संघर्ष तो करना पड़ता है, यह तभी संभव है जब आपने ईमानदारी से पढ़ाई की हो । बेटी को घरों में काम करने की मशीन और बेटा को लोफरगिरी करने की हिम्मत दोनों ही शिक्षा के अस्तित्व को नगण्य बना देता है । पहले शिक्षा के महत्व को समझें तभी गरीबी से निजात मिल सकती है ।
- संगीता गोविल
पटना - बिहार
शिक्षा से हमें ऊर्जा मिलती है।ज्ञान,बुद्धि और विवेक में वृद्धि होती है। समझदारी और सामर्थ्यवान बनने की ताकत मिलती है। जीवन के आसपास की बारीकियों को जानने,समझने और निर्णय लेने में निपुणता में समृद्धता आती है।  इतनी विशेषताएं लिये ' शिक्षा ', जिजीविषाके लिये अहम साबित होती है और जीवन में सुख, सरसता,वैभव और संपन्नता के लिये वरदान बनती है। संक्षेप यह कि शिक्षा से गरीबी की लड़ाई न केवल लड़ी जा सकती है बल्कि जीती भी जा सकती है।
- नरेन्द्र श्रीवास्तव
गाडरवार - मध्यप्रदेश
शिक्षा गरीबी दूर करने का माध्यम है लेकिन केवल शिक्षा से गरीबी की लड़ाई नहीं लड़ी जा सकती ।कितने ही शिक्षित लोग बेरोजगार घूम रहे हैं ।गरीबी की लड़ाई परिश्रम और सूझ -बूझ के जरिए लड़ी जा सकती है ।मैंने बढ़ई ,लोहार ,राजमिस्त्री देखे , थे तो अँगूंठा छाप लेकिन अपने बच्चों को पढ़ा रहे थे ।कहने काअर्थ है, गरीब व्यक्ति अपने हुनर और परिश्रम के बल पर अपनी गरीबी से छुटकारा पा लेता है । शिक्षा के लिए आर्थिक मजबूती भी चाहिए होती है ।शिक्षा सबके लिए जरुरी है कि वह अपने अधिकारों को पहचान सके ।मेरे घर में मेरी सहयोगी ने ,इतनी ठन्डऔर बारिश  में ,एक दिन भी छुट्टी नहीं ली  ,उसका विचार है पैसे जमाकर कोई रोजगार खोलना । जब कि वह अशिक्षित  है  ।   मेरे विचार से केवल शिक्षा गरीबी दूर नहीं कर सकती है ।
- कमला अग्रवाल
गाजियाबाद - उत्तर प्रदेश
क्या  शिक्षा  से गरीबी  की लड़ाई  लड़ी  जा सकती  है? 
शिक्षा  ही एक  ऐसा  दीपक  है जिसमे तमस  को दूर  किया  जा  सकता है  । शिक्षा  का लौ गरीबो के  घर  मे यदि  जल  गये  तो मन  धन तन तीनो कारको  मे रौनक  आना  हो है
शिक्षा बहुमुखी  है  इस  बहुमुखी  शिक्षा  के  प्रति  भ्रांति  पैदा  हो जाती  है शिक्षा  का  आधार  डिग्री  सिर्फ  समझते  है और  गलत  तरीके  से  ऐसी  डिग्री  हासिल  कर कामयाब  होने  की कोशिश  मे लगे रहते  और सफलता  नही  मिलने  पर हतोत्साहित  होते है और  शिक्षा  दोषी  बन  जाता  है
शिक्षा  का  दूसरा  पहलू   शिक्षा  के  बल  पर  ही  जीवन  पथ  को  प्रकाशित  किया  है शिक्षित व्यक्ति  ही एक  स्वस्थ समाज  का  निर्माण  कर  सकेगा 
शिक्षा  ही वह धन है जो कीचड  मे फूल खिलाती  है शिक्षा   के साथ  परिश्रम  आत्मविश्वास  और कुछ  करने  की  मन  मे लगन  का  होना आवश्यक  है।गरीबी  की लड़ाई  तभी  लडी  जा सकती  है
- डाँ. कुमकुम वेदसेन
मुम्बई - महाराष्ट्र
शिक्षा अवश्य ही गरीबी की लड़ाई लड़ने में मददगार साबित होती है। एक पढ़ा लिखा इंसान परिस्थितियों का आकलन भलीभाँति कर सकता और तदनुकूल ही जीवन पथ पर अग्रसर होता है। हाँ, ये अवश्य है कि ये शिक्षा मात्र डिग्री हासिल करने की न हो। आजकल तो रोजगार के भी अनेकानेक आयाम हैं। अपनी अभिरुचि के अनुसार किसी भी विशेष क्षेत्र में शिक्षा ग्रहण कर रोजगार प्राप्त किया जा सकता है। थोड़ा अनुभव ग्रहण करने के बाद या थोड़ी सी अच्छी योग्यता होने पर स्वरोजगार भी शुरू किया जा सकता है जिससे अपने साथ साथ कुछ और लोगों के भी जीविकोपार्जन में सहायक बना जा सकता है।
       अतः शिक्षा गरीबी से लड़ने में अवश्य ही मददगार साबित होता है।
                - रूणा रश्मि
                 राँची - झारखंड
शिक्षा से गरीबी की लड़ाई लड़ी जा सकती है।शिक्षा ही वो माध्यम है जो हमारे अंदर कोई न कोई हुनर पैदा करती है ।वही हुनर यदि व्यक्ति काम में ले और मेहनत करे तो अपना गुजारा करने लायक तो कमा ही सकता है ।आज हमारे समाज में शिक्षित बेरोजगारों की संख्या इसलिए बढ़ती जा रही है क्योंकि सामान्य शिक्षा लेकर भी वह चाहता है कि मुझे कुर्सी में बैठने की नौकरी मिल जाए ।अपने पुश्तैनी कारोबार छोड़कर सरकारी नौकरी पाने के लिए भागता फिरता है ।यदि बेसिक शिक्षा के साथ व्यक्ति अपने घरेलू व्यवसाय, कृषि, हाथकरघा, आर्ट क्राफ्ट के पुश्तैनी कार्यों की ट्रेनिंग ले तो स्वरोजगार कर अपने व्यवसाय में चार चाँद लगा सकता है ।आज हमारे युवा इसी गलत धारणा का शिकार हो रहे हैं कि डिग्री लेते ही उन्हें ऊँची नौकरी मिले चाहे उसमें इतनी नाॅलेज हो ही नहीं ।इंजीनियरिंग, डाक्टरी करने के लिए लाखों बच्चे कोचिंग क्लास में पैसा बर्बाद कर रहे हैं ।मात्र पाँच प्रतिशत ही बच्चे आईआईटी, डाक्टरी में चुने जाते हैं।बाकी डिप्रेशन का शिकार हो जाते हैं।काम कोई भी छोटा नहीं होता और मेहनत कभी भी व्यर्थ नहीं होती, तो हर व्यक्ति चाहे तो काम की कमी नहीं है ।कामचोर, मक्कार, आलसी लोगों के कारण ही गरीबी पनपती है वर्ना साधारण रूप से रहने के लिए रोटी, कपड़ा, मकान तो हर शिक्षित व्यक्ति जुटा सकता है ।
- सुशीला शर्मा
जयपुर - राजस्थान
यह कहावत पुरानी हो गई की शिक्षा गरीबी को कम  कर सकती है ? आज के दौर में नही । बहुत से कारण है । 
आज एक बड़ा पांव बेचने वाला एक ग्रेजुएट से ज़्यादा कमा लेता है । पहले शिक्षा , व शिक्षक दोनो का सम्मान होता था अब ......
शिक्षा व शिक्षक दोनों का स्तर गिर गया है नोट लो और काम बनाओ ....
मैं यह मानती हूँ , शिक्षा बहुत जरुरी है हमारी सोच हमारी व्यवस्था पर शिक्षा बहुत असर पड़ता है । पर ग़रीबी कम करने में अपनी क्षमताओं पर कहीं कम पड रही है । आओ कारण देखते है ... 
दो सौ साल की गुलामी के बाद जब देश आजाद हुआ तो हमारे सामने कई चुनौतियाँ और सपने थे। उन चुनौतियों और सपनों को पूरा करने के लिये सँविधान को मुख्य आधार बनाया गया। जनता के मुख्य अधिकार शिक्षा पर विशेष बल देने पर जोर दिया गया और माना गया कि जब तक शिक्षा देश के जन जन तक नहीं पहुँचेगी तब तक देश के सर्वांगीण विकास की परिकल्पना असम्भव है। इसके लिये शिक्षा सँस्थानों की स्वायत्तता और शिक्षा में सरकारी निवेश पर विशेष जोर देने की बात कही गयी। जिससे गरीब और दबे पिछड़े लोग कम फीस में शिक्षा प्राप्त करके देश के विकास में अपना योगदान प्रदान कर सकें। लेकिन दुर्भाग्य से शिक्षा के क्षेत्र में सरकारी निवेश में लगातार कमी आयी है। खासतौर पर खुली अर्थव्यवस्था और भूमण्डलीकरण के दौर के आने के बाद। अचानक विश्व बैंक का दखल विभिन्न देशों की नीतियों को प्रभावित करने लगा। निजीकरण की बाढ़ सी आने लगी। मुनाफा आधारित अर्थव्यवस्था को सरकार से तरजीह मिलने लगी। बिना निजीकरण के मुनाफा आधारित अर्थ व्यवस्था की परिकल्पना असम्भव है। शिक्षा व्यवस्था के बुरे हाल का अन्दाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि बेरोजगारी के जमाने में चतुर्थ श्रेणी की नौकरियों के लिये भी एमबीए और पीएचडी धारक बड़ी सँख्या में अप्लायी कर रहे हैं। पूरे देश में बेरोजगारी का क्या आलम है ये बताने की जरूरत नहीं है।
अगर शिक्षा व्यवस्था में कुछ गुणात्मक बदलाव की पहल सरकार को करनी है तो उसको बाजार परक गरीब विरोधी नीतियों को छोड़कर नये सिरे से इसके विभिन्न पहलुओं पर विचार करना होगा। शिक्षा में सरकारी फन्डिंग को बढ़ाना होगा (कम से कम दस प्रतिशत), शिक्षकों और कर्मचारियों को बड़ी सँख्या में स्थायी करना होगा। सँसाधनों का विस्तार करना होगा। शिक्षा व्यवस्था के विभिन्न अव्यवों को भी एक जुट होकर सरकार पर भारी दबाव बनाने की जरुरत है। 
। अगर जल्दी ही कारगर कदम नहीं उठाये गये तो और ज्यादा भयावह परिणामों की आशँका है। मगर सरकार  ऐसे ही नहीं मानने वाली है। उसके लिये देश भर की ट्रेड यूनियन्स को मिलकर सरकार पर दबाव बनाना होगा। छात्रों, शिक्षकों, कर्मचारियों को एक होकर सड़कों पर  उतरना होगा और शिक्षा को देशव्यापी मुद्दा बनाना होगा। आन्दोलन करने पड़ेंगे जिससे सरकार पर दबाव बने और वो माँगे मानने को तैयार हों। सरकारी नौकरियाँ बढ़ानी होगी रिश्वत खोरी कम करना होगा । पढ़े लिखे कितने बैरोजगार घुम रहे है नौकरी नहीं मिल रही हताशा से आत्महत्या कर रहे है। पढ लिख कर पान की दुकान नहीं लगा सकता , नौकरी मिल नहीं रही बेचार जाय तो जाये कहाँ ....  
बहुत विस्तृत विषय दिया आपने मेरा खुन खौल उठा बहुत कुछ लिख सकती हूँ पर कुछ सिमा है आपकी - यह शोध का विषय है इसपर बड़ी चर्चा रखवाये 
- डॉ . अलका पाण्डेय 
मुम्बई - महाराष्ट्र
जो व्यक्ति अपने दैनिक जीवन की आवश्यक आवश्यकता रोटी, कपड़ा ,मकान की भी पूर्ति नहीं कर पा रहा है। वास्तव में सच्चे मायनों में वही गरीब है। इसके लिए वह मेहनत, मजदूरी करके अपना पेट भर सकता है, फिर भी मेहनत- मजदूरी से मिलने वाले पारिश्रमिक की गणना तथा बाजार- मूल्यों के ज्ञान के लिए मेहनतकशों का शिक्षित होना भी जरूरी है;  क्योंकि शिक्षा सर्वांगीण विकास का पर्याय है। गरीब व्यक्ति समाज और राष्ट्र के लिए अभिशाप है ।अतः गरीबी मिटाने यानी अभिशप्त जिंदगी सुधारने  के लिए शिक्षा पर ध्यान देना अनिवार्य है। साक्षर , सुशिक्षित होने पर  ही व्यक्ति आत्मनिर्भर बनकर अपने परिवार के साथ बेहतर जीवन यापन कर सकता है । शिक्षा से ही गरीबों के बच्चे डॉक्टर, इंजीनियर, आई एस, एस पी जैसे सर्वोच्च पदों पर अधिकारी बन सकते हैं तथा देश की समृद्धि का गौरव बढ़ाने मैं सक्षम हो सकते हैं।     आज राजधानी से लेकर जिलों तक न जाने कितने बच्चे भीख मांगते हुए दिखाई देते हैं: क्योंकि "वुभिक्षितम किम न करोति पापम"। जिसके लिए अशिक्षित परिवार एवं समाज उत्तरदायी हैं। ऐसे नाकारा लोगों के लिए सरकार और समाजसेवी संस्थाएं अतिरिक्त शिक्षणसंस्थाओं की व्यवस्था करें और उन्हें शिक्षा और रोजगार के अवसर दें। सभ्य,समुन्नत शिक्षित व्यक्ति ही विकासशील राष्ट्र की पहचान है। सोने की चिड़िया कहाने वाला देश के हम वासी हैं। हम न गरीब थे और न अब हैं। बल्कि बढ़ती जनसंख्या के दुष्परिणाम और राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं की वजह से *गरीबी* शब्द डिक्शनरी में आज के दौर में रेखांकित होने लगा है। थोपी हुई और मानी हुई गरीबों को दूर करने में शिक्षा ही एक सर्वांगीण विकासमुखी कारक सिद्ध होती है।
- डॉ.रेखा सक्सेना
मुरादाबाद - उत्तर प्रदेश
अवश्य ,शिक्षा के पथ पर चल कर हम अपने जीवन पथ  को प्रकाशित कर  सुखमय बना सकते हैं |शिक्षित व्यक्ति ही एक स्वस्थ समाज प्रदान कर सकता है |राह में आए बाधाओं को हम बुद्धि के बल से ही जीत सकते हैं |कितने ऐसे उदाहरण हैं ,जिन्हें गुदड़ी के लाल कहा जाता है ;जिन्होंने शिक्षा प्राप्त कर न सिर्फ़ अपने परिवार की ग़रीबी दूर की बल्कि समाज में प्रतिष्ठित पद पर विराजमान हुए |ज्ञान वो धन है जिससे कीचड़ में भी कमल खिलाया जा सकता है |शिक्षा से ग़रीबी क्या बड़ी से बड़ी लड़ाई न सिर्फ़ लड़ी जा सकती है बल्कि जीती जा सकती है |
                    -  सविता गुप्ता 
                   राँची - झारखंड
शिक्षा ज्ञान का माध्यम है ।पशुता को मानवता की ओर ले जाने का मार्ग है ।उसमें संस्कार जुड़ने से सोने पर सुहागा हो जाता है पर आजकल की शिक्षा कुछ लोगों को रोजगार नौकरी दे गरीबी दूर कर सकती है सबकी नहीं ।उसके लिए शिक्षा को रोजगार व तकनीक से जोड़ना होगा माध्यमिक शिक्षा के बाद नये आधार विकसित करने होंगे जो स्वेच्छापूर्वक रास्ता तयकर आगे की शिक्षा के साथ-साथ रोजगार भी पाने में समर्थ हो सकें।शिक्षा की पूर्णता के बाद अलग से नौकरी या रोजगार के लिए हाथ-पांव न मारना पड़े ।
- शशांक मिश्र भारती 
शाहजहांपुर - उत्तर प्रदेश
व्यक्ति जब शिक्षा ग्रहण करेगा तो उसमें कौशल विकास होगा।  इंसान जब सक्षम बनेगा तो नौकरी करेगा ।जब नौकरी करेगा तो स्वतः ही गरीबी दूर हो जायेगा।
    - प्रेमलता सिंह
 पटना - बिहार
सिर्फ  शिक्षा  से  ही  गरीबी  की  लड़ाई  नहीं  लड़ी  जा  सकती  मगर  यह  भी  सच  है  कि  शिक्षा  इसमें  महत्वपूर्ण  भूमिका  निभाती  है  । कहते  हैं--पढ़े- लिखे  की  चार  आॅखें  होती  है  अर्थात  वह  शिक्षा  से  अपनी  बुद्धिकौशल  का  विकास  कर, गरीबी  को  परास्त  कर  सकता   है  लेकिन  शिक्षा  व्यक्ति  का  सर्वागीण  विकास  करने  वाली  होनी  चाहिए  तभी  उसकी  सोच  परिष्कृत  हो  सकती  है  जिससे  वह  धैर्यपूर्वक  और  सूझबूझ  से  अपने  अर्जित  ज्ञान  का  उपयोग  कर,  अपना  जीवन  स्तर  सुधार  सकता  है  । 
          - बसन्ती पंवार 
         जोधपुर - राजस्थान 
शिक्षा शब्द संस्कृत के शिक्ष धातु में अ  प्रत्यय लगाने से बनता है । जिसका अर्थ सीखने और सिखाने की प्रक्रिया है । ये अपने सीमित अर्थ में विद्यालय और महाविद्यालय में स्थिति शिक्षण संस्थानों तक सीमित है जबकि व्यापक अर्थ में अपने चारों ओर के वातावरण जिससे हम सीखते हैं , अनुभव व अवलोकन करते हैं उससे सम्बंधित है ।
मोटिवेशनल गुरु पंडित विजय शंकर मेहता जी के अनुसार आप को हर कार्य अपनी आर्थिक हैसियत के अनुसार ही करना चाहिए किन्तु जब बच्चों की शिक्षा का प्रश्न हो तो अपनी आय से भी अधिक खर्च करने में नहीं हिचकना चाहिए । शिक्षा से गरीबी की लड़ाई लड़े जाने का सबसे सटीक उदाहरण  पटना स्थित सुपर 30 नामक कोचिंग संस्थान है जहाँ गणितज्ञ , शिक्षाविद आनन्द कुमार जी गरीब  प्रतिभावान विधार्थियों का चयन कर उन्हें निःशुल्क आवास, भोजन व शिक्षा देकर आई आई टी जैसी  प्रतियोगी परीक्षा के योग्य बनाते हैं । पूरा खर्च वे स्वयं वहन करते हैं । गरीबी के चलते वे स्वयं तो आई आई टी में प्रवेश नहीं ले सके पर उन्होंने न जाने कितने बच्चों के पंखों में उड़ान भर दी है।
कहने का अर्थ ये है कि शिक्षा द्वारा  गरीबी मिटाई जा सकती है ।
- छाया सक्सेना प्रभु
जबलपुर - मध्यप्रदेश
शिक्षा से ज्ञान अर्जित किया जाता है । यदि व्यक्ति बुद्धिमान है और साथ मे ज्ञानी भी है तो धन कमाने के रास्ते सरल हो जाते है। एक शिक्षित व्यक्ति धन कमाकर गरीबी को दूर कर सकता है, परन्तु कम पढ़ा लिखा हुआ व्यक्ति भी अपने परिश्रम से धन कमाकर गरीबी दूर कर सकता है । अर्थात कहने का तात्पर्य यह है कि शिक्षित व्यक्ति ही धन कमाकर गरीबी दूर कर सकता है, बल्कि एक निरक्षर व्यक्ति भी अपने परिश्रम से धन कमाकर अपने गरीबी को दूर कर सकता है ।
शिक्षित होने का अर्थ धन कमाना ही नहीं होता ज्ञान के लिये बहुत आवश्यक है, परन्तु धन कमाने के लिए ज्ञान, बुद्धि व जी तोड़ परिश्रम की आवश्यकता होती है। जिससे आसानी से गरीबी दूर किया जा सकता है
-डॉ. अर्चना दुबे 'रीत'
मुम्बई - महाराष्ट्र
जी यकिनन शिक्षा से गरीबी की लड़ी लड़ी जा सकती है । यह शय प्रतिशत सही है। शिक्षा जीवन के हर क्षेत्र की समस्याओं से समझदारी से लड़ने की अद्भुत ताकत देती है। जो व्यक्ति सुशिक्षित है वही सच्चा धनवान है । धन ,मान, सम्मान ,कोई लूट सकता है पर शिक्षा एक ऐसा धन है जो कोई चुरा नहीं सकता है।गरीबी धन की, अक्ल की, समझ की, व्यवहार की ,मानसिकता की अर्थात किसी भी प्रकार की गरीबी का मुकाबला शिक्षा ही कर सकती है। शिक्षित व्यक्ति धनी हैः
ड़ा.नीना छिब्बर
जोघपुर - राजस्थान

" मेरी दृष्टि में " शिक्षा से सब कुछ मिलता है। जीवन स्तर से लेकर रोजगार तक शिक्षा से मिलने की सम्भावना सबसे अधिक होती है । कभी - कभी शिक्षा से रोजगार नहीं मिल पाता है । परन्तु जीवन स्तर में सुधार के साथ साथ गरीबी से लड़ना आसान अवश्य हो जाता है ।
                                                    - बीजेन्द्र जैमिनी

 फोटो : 14 सितम्बर 1997 
मेरे बच्चे      
बेटी : लोहिनी       
बेटा : उमेश जैमिनी



Comments

  1. आपके द्वारा जैमिनी जी निरन्तर अच्छी व प्रभावी चर्चा का आयोजन बधाई
    - शशांक मिश्र भारती
    शाहजहांपुर - उत्तर प्रदेश
    ( WhatsApp ग्रुप से साभार )

    ReplyDelete
  2. सार्थक चर्चाओं से अवश्य ही नवनीत निकलेगा ।

    ReplyDelete

Post a Comment

Popular posts from this blog

वृद्धाश्रमों की आवश्यकता क्यों हो रही हैं ?

हिन्दी के प्रमुख लघुकथाकार ( ई - लघुकथा संकलन ) - सम्पादक : बीजेन्द्र जैमिनी

लघुकथा - 2023 ( ई - लघुकथा संकलन )