हीनभावना से कैसे बचा जाऐं ?

हीनभावना से हमेशा बचना चाहिए । ताकि जीवन में आगे बढा जा सके । जो काम से भागता हो , अकेला रहता है । वह हीनभावना से गस्त हो सकता है । परिवार व दोस्तों का  साथ नहीं छोडना चाहिए । तभी हीनभावना से बचा जा सकता है । यही " आज की चर्चा " का विषय है । अब आये विचारों को देखते हैं : -

हीन भावना तब उत्पन्न हो जाती है जब हम खुद को अन्य की अपेक्षा कम आंकने लगते हैं। आत्मविश्वास कि कमी भी इसकी एक बड़ी वजह है। एक गुणी इंसान भी आत्मविश्वास की कमी से इसका शिकार हो जाता है।अपने गुणों को बता भी नहीं पाता।नजरे मिलाकर बात करने से कतराते हैं। लोगों से मिलना जुलना, अपनी बातें रखना, लोगों को सहजता से सुनना। बहुत जरूरी है। अपनी सही बातों पर डटे रहना भी आवश्यक है अपने कार्य क्षमता को निखारना।उन लोगों से दूर रहना जो सदा आपका मजाक उड़ाते हैं।
- रेणु झा
रांची - झारखण्ड
हीन भावना तभी आती है जब हम किसी दूसरे के गुण, अथवा यूं कहो उसकी योग्यता के साथ  अपनी कमियां अथवा खामियों की तुलना करते हैं ! हीन भावना से बचना है तो हमें अपनी कमियों की जगह खूबियों को पहचानना होगा !
अधिकतर घर में यदि दो बहन या दो भाई हो और उनमें से एक बहन सुंदर गोरी है तो दूसरी को लगता है कि सभी उसी को ज्यादा प्यार करते हैं भाई के लिए भी यदि एक पढने में होशियार और कुछ ज्यादा चंचल है दूसरा कुछ कमजोर है तब भी हीन भावना आना स्वाभाविक है और एैसे वक्त में घर वालों को भी सावधानी रखनी होगी कि तुलनात्मक व्यवहार न हो ! हीन भावना से बचने के लिए हमें अपने विचार सकारात्मक रखने होंगे  !खुद पर पूर्ण विश्वास रखना चाहिये ! किसी की काबिलियत को देख जलन की भावना नहीं रखनी चाहिए ! किसी भी प्रकार के दुख को लंबे समय तक पाल कर नहीं रखना चाहिए वर्ना अवसाद में भी जा सकते हैं ! अपनी कमियों को तो सामने खडा़ कर कोई कार्य न करे वर्ना कार्य आरंभ होने से पहले ही नकारात्मक भाव आ जाते हैं ! हीनभावना न आए इसके लिए पहले अपनी तुलना दूसरों से कर अपनी कमजोरियां न गिनें !आत्मविश्वासी और सकारात्मक बनें !  अपने गुणों की तारीफ स्वयं करें !
खुद से प्यार करें ,अपने को किसी से कम न आंके , विद्वेष और जलन की भावना न लायें! स्वयं के कार्य में मस्त और आनंद से रहें!किसी भी बात को दिल से न लगायें वर्ना दुख होता है !आयाराम गयाराम समझ छोड़ देना चाहिये तभी हम आगे बढ़ सकते हैं !
- चन्द्रिका व्यास
मुम्बई - महाराष्ट्र
किसी भी व्यक्ति के अंतर्मन में हीन भावना तभी आती है जब वो दूसरों से अपनी तुलना करता है और स्वयं को कमतर आँकता है।कुछ विशेष सामाजिक परिस्थितियों में ये हीन भावनाएं जाग्रत होकर अंतर्मन से निकल कर बाहर आ जाती हैं और तब व्यक्ति हीन भावना से प्रत्यक्ष तौर पर ग्रसित नजर आता है।  इस बीमारी से बचने के लिए सर्वप्रथम तो हमें ये बात समझनी होगी कि संसार में कोई भी व्यक्ति सभी दृष्टि से परिपूर्ण नहीं होता है। कुछ न कुछ कमियाँ हर इंसान में होती ही हैं। इसलिए हमें दूसरों से अपनी तुलना छोड़ कर, अपने अंदर छुपी अच्छाइयों को ही देखना चाहिए जिससे हमारे अंदर एक सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह होगा और हम उत्साह और उमंग के साथ जीवनपथ पर अग्सर होंगे। हाँ अपनी कमियों का आकलन समय समय पर अवश्य करना चाहिए जिससे स्वयं को परिस्कृत कर हम अपनी मंजिल की ओर अग्रसर हो सकें।
           - रूणा रश्मि
        राँची - झारखंड
ईश्वर ने हर व्यक्ति को विशेष बनाया है ।कोई न कोई हुनर, प्रतिभा हरेक के अंदर होती है इसलिए हमें कभी भी स्वयं को दूसरों के साथ तुलना नहीं करनी चाहिए ।आपके अंदर जो काबलियत है, उस पर गर्व करें, क्योंकि वो शायद दूसरों में ना हो ।हमारा शरीर, हमारी बुद्धि, स्वभाव, आचरण, मृदु भाषा ईश्वर का वरदान है ।हमें अपने जीवन में आत्मसम्मान, आत्मविश्वास, बनाए रखना चाहिए और स्वयं को कभी भी हीन नहीं समझना चाहिए।कुछ लोग 'अध जल गगरी छलकत जाय 'होते हैं ।सिर्फ बड़ी बड़ी बातें करते हैं ।गंभीरता से उनके स्वभाव का आंकलन करें तो उनमें छिछोराप, दिखावा, चाटुकारिता, बनावटीपन अधिक नजर आता है ।इसलिए आप विनम्र, शांत और गंभीरता बनाए रखें ।दुनिया में आपको चाहने वाले भी बहुत हैं ।अपने आप को कुछ लोगों के आंकलन से तय ना करें ।खुद से प्रेम करें, कभी कभी अपनी प्रशंसा स्वयं करें, अपने काम की, सौदर्य की, सादगी की, स्वभाव की ।अधिक से अधिक लोगों से मिलें, बात करें, स्वयं से उनका परिचय सहजता से करवाएँ ,फिर देखिए आपके कितने चहेते, प्रशंसक आपसे जुड़ते जाएँगे ।खुश रहें, स्वस्थ रहें और मस्त रहें ।
- सुशीला शर्मा
जयपुर - राजस्थान
हीन भावना दरअसल अपने को सबसे कमतर आँकने की भावना है| अब यहाँ ध्यान  देने की बात ये है कि जब कोई हमें कम कह रहा हो तो हम तर्क  से उसका मुंह बंद कर देंगे| जब हम खुद को ही कम समझ रहे हों तो क्या करेंगे? यहीं पर होता है हीन भावना का जन्म| जब हम अपने को हारा हुआ महसूस करते हैं|   मित्रों, आज के जीवन का सबसे प्रसिद्द वाक्य क्या है?
                               सब कहते हैं कि हीन भावना से निकलने के लिए  आत्मविश्वास बढाओ| बहुत सारे लेख व् वीडियो भी आप को इस बात पर मिल जायेंगे| परन्तु आत्मविश्वास आसानी से नहीं बढ़ता| इसके कम होने के पीछे हमारी गहरी जडें  हैं| अगर आप स्त्री हैं और किसी छोटे शहर से हैं, तो आपने, औरतें ये नहीं कर सकती, वो नहीं कर सकती इतनी बार आपने सुना होगा कि आपके मन में नकारात्मक डर गहरे बैठ गया होगा| इसके अतरिक्त भी बहुत सारी  वजहें हो सकती हैं जो बचपन में कही-सुनी गयी जिसके कारण हमारा मन हीन भावना से भर गया हो और  आत्मविश्वास कम हो गया हो|                
                             अगर आप का आत्मविश्वास कम है तो इसका साफ़ मतलब है कि आप को आप की खूबियों की पहचान नहीं है|   आप अपने को दूसरों से कमतर समझते हैं| इसीलिए हीन भावना का शिकार रहते हैं | ऐसे में आप को किसी से मिलने जाना पड़े जिसने उस क्षेत्र में बहुत अच्छा किया हो जहाँ आपने पहला कदम रखा है|  तो आप को  भय लगना स्वाभाविक हैं| भले ही आप आत्मविश्वास को बढाने पर काम कर रहे होंगे पर  अचानक से हीन भावना के शिकार हो जायेंगे |
यहाँ मैं कुछ टिप्स दे रही हूँ जो आपके काम आएँगी-
अपनी बॉडी लेंगुएज पर ध्यान दें
                      हमारा शरीर हमसे ज्यादा बोलता है, या यूँ कहें कि ये, वो सब बोल देता है जो हम नहीं बोलना चाहते|   जब किसी से मिलने जाए तो अपनी बॉडी लेंगुएज द्वारा अपना कम आत्मविश्वास प्रकट न होने दें| ध्यान  रखे –
नाख़ून न कुतरे
हाथ पर हाथ न रगडें
बातों में हकलाहट न हो
सर झुका कर बात न करें
बहुत ज्यादा बोल कर या बिना वजह हंस कर अपनी हीन भावना छुपाने का प्रयास न करें |
अपनी उपलब्धियों को याद कमाना  कि आप को लग रहा है कि आज आप उनसे बहुत कम हैं , पर अतीत में कभी आप उनके बराबर या आगे भी रहे होंगे| आप उसी अतीत को याद करिए, जब आप उनके समकक्ष थे| इसके अतिरिक्त अपनी उन उपलब्धियों को याद करिए जो आप को जीवन में मिली हैं|  इससे आप का आत्मविश्वास बढेगा व् हीन भावना कम होगी | 
अपने करेक्टर से बाहर निकले       
                               अगर आप का आत्मविश्वास स्त्री, किसी विशेष धर्म, जाति या समुदाय का होने के कारण बहुत कम है तो अपने करेक्टर से बाहर निकलिए | आप खुद को केवल इंसान समझिये | दूसरा जिससे आप मिलने जा रहे हैं वो भी इन्सान ही है| तो फिर डर कैसा? बेफिक्र हो कर मिलिए, बात करिए|
थोड़ी देर के लिए किसी दूसरे करेक्टर में घुस जाइए
            ये तो आपने पढ़ा ही होगा कि ये जीवन एक नाटक है और हम सब इसके पात्र हैं | अब इसे आप हकीकत बना दीजिये | कहने का मतलब ये है कि आप एक पात्र है जो अपना करेक्टर प्ले कर रहा है | ये वो करेक्टर है जिसका आत्मविश्वास बहुत कम है | इसके अन्दर हीन भावना है | इस कारण ये पात्र किसी से मिलना नहीं चाहता| अब थोड़ी देर के लिए मान लीजिये की आप वो होते जो आप बनने  की कल्पना करते हैं|  आप सोंच लीजिये कि आप वो है|  
समझिये हीन भावना के सच को 
                               हीन भावना का जन्म तब होता है जब हम बाहरी व्यक्ति पर अपने को अच्छा समझे जाने, स्वीकार किये जाने की अपेक्षा रखते हैं|  जब ये अपेक्षा खत्म हो जायेगी तो हीन भावना अपने आप खत्म हो जायेगी| इसके लिए आप को समझना होगा कि हम सब एक वृत्त में घूम रहे हैं, आज जिसके पीछे हम भाग रहे हैं वो किसी और के पीछे भाग रहा है| कहने का मतलब ये है कि जिसे हम आत्मविश्वास से भरा समझ रहे हैं कहीं पर वो भी कमजोर है| सबसे खास बात ये है कि ये बस एक यात्रा ही तो है, जिसे भरपूर ख़ुशी के साथ जीना है| न आगे की चिंता में न पीछे की याद में|  हीनभावना से ग्रसित होकर हम इस अनमोल  यात्रा का आनंद क्यों खोएं|  इसलिए हीन भावना से निकल कर यात्रा का आनंद लेना है तो गुनगुनाना होगा ...
आत्मविश्वास पैदा करे , और सब से श्रेष्ठ समझे अपने आप को
- डॉ अलका पाण्डेय 
मुम्बई - महाराष्ट्र
योग्यताओं,  क्षमताओं  के बावजूद  व्यक्ति का  निष्क्रिय होना भी  हीन भाव को जन्म देता है । जैसा कि गुलजार जी ने भी लिखा है-----
" टहनी पर बैठा था वो  /  डूबने से डर लगता था / न तैरा, ना उड़ा, न डूबा,/ बस टहनी पर बैठे-बैठे ही सूख गया "।
 जीवन में  बहुत से लम्हे ऐसे आते हैं, जब बहुत से डर, बहुत सी दुश्वारियां हमारे सामने होती हैं , लेकिन हमें  आत्मविश्वास के साथ उनका सामना करना होता है और आगे भी बढ़ना होता है। मन में कोई ग्रंथि नहीं पालनी होती है ।
जीवन के हर क्षेत्र में मानक निश्चित होते हैं, जब व्यक्ति तदनुसार अपनी योग्यता को उससे कम आंकता है, तब वह हीन भाव से ग्रस्त हो जाता है। फलस्वरुप सफलता और सम्मान के रास्ते में रुकावट आने लगती है, परंतु इनसे हार मानकर, नकारात्मक सोच द्वारा आत्ममंथन भी न करना और निष्क्रिय रहना और दूसरे की समुन्नति से स्वयं की तुलना कर अपने को बेहद कम आंकना ,जो कि गहरा हीन भाव  है, इससे व्यक्ति के कदम स्वयं अपराध की ओर तथा  आत्महत्या जैसे विनाश की ओर भी बढ़ जाता है। इससे बचने के लिए जीवन में अपनी रुचि योग्यता एवं प्रतिभा के अनुरूप रचनात्मक कार्यों की ओर उन्मुख होना चाहिए। अपनी मौलिकता और अपनी सफलता का मार्ग खोजना तथा अपनी आत्मा की आवाज भी सुनना चाहिए ।
- डॉ  रेखा सक्सेना
मुरादाबाद - उत्तर प्रदेश
हीनभावना तभी आती है जब हम खुद को दूसरे से कमतर समझते हैं ।हीनभावना से बचने का सबसे अच्छा उपाय है कि खुद से प्यार करें ।आप जैसे हैं, उसी रूप में खुद को स्वीकार करें ।हर कोई में  कुछ न कुछ खास जरूर होता है।आप उसकी तलाश करें ।जब हम महसूस करेंगे कि हममें भी कुछ खास बात है और हम भी किसी से कम नहीं तब हममें हीनभावना पनप नहीं सकती।
       हीनभावना का पूरा मामला व्यक्ति की क्षमताओं पर निर्भर करता है।क्षमतावान व्यक्ति पहाड़ों से चट्टानों को तोड़कर रास्ता बना लेता है।अगर कभी आप महसूस करें कि आप हीनभावना के शिकार  हो रहे हैं या हो गये हैं तो अपनी क्षमताओं को बढ़ाने की दिशा मे सचेष्ट हो जाये।वैसे लोगों से दूरी बना लेनी चाहिए जो आपकी बातें नहीं सुनते या आपका उपहास करते हैं ।
          - रंजना वर्मा
        रांची - झारखण्ड
हीन भावना से ग्रसित होने से हमें बच के रहना चाहिए ।  हीन भावना का मुख्य कारण है इच्छा , लालसाएं ,,जिसका कोई अंत नहीं होता है। हमें संतोषी और आत्म निर्भर  बनने की जरूरत है तभी हम हीनभावना से बच सकते हैं । व्यक्ति को सदैव अपने से नीचे की ओर देखना चाहिए तब काफी हद तक हम इस भावना से बच सकते हैं , लेकिन इसके विपरित अगर  अपने से ऊपर देखते हैं तो हम में हीनभावना व्याप्त हो सकती है उनके,वैभव को देखकर ।हम भी वहीं ऐशों आराम,वैभव की कामना करने लगते हैं जो पूर्ण न हो तो फिर हीनभावना से घिर जाते हैं। हमें अपने हर हाल में खुश रहने की आदत डालनी चाहिए । दूसरों से तुलना तो बिल्कुल नहीं करनी चाहिए ।चाह की कोई सीमा नहीं होती है, इसलिए "संतोषम परमं सुखम"  इस बात का पालन करने पर हम इस हीनभावना से बच सकतें हैं ।
- डॉ पूनम देवा
पटना - बिहार
हीनभावना प्रायः अवचेतन मन में बैठी रहती है|व्यक्ति अपने आप को दूसरे से कमतर समझने लगता है |शारीरिक क़द काठी या रंग -रूप हो ,आर्थिक,सामाजिक ,भौतिक 
बौद्धिक,शैक्षिक या कार्यालय हो हरक्षेत्र में स्पर्धा का बोल बाला है |जिस दौड़ मे इंसान आगे निकल कर शीर्ष पर पहुँचना चाहता है ;न मिलने पर संवेदनशील व्यक्ति कई बार हीन भावना से ग्रसित हो जाता है |
        एसी परिस्थिति में व्यक्ति को दूसरे से तुलना नहीं करनी चाहिए |कोई व्यक्ति हर तराज़ू में खरा नहीं उतर सकता सब में कोई ना कोई कमियाँ अवश्य होती है |अपने अंदर की कला को आगे लाने की कोशिश करनी चाहिए |बिंदास ,बेफिक्र और हर परिस्थिति में ख़ुश रह कर सीखने की प्रवृत्ति रखनी चाहिए |ईर्ष्या की भावना व्यक्ति को घुन की तरह खा जाता है |दुनिया में आपसे भी ज़्यादा दुखी और कमियों वाले इंसान हैं उन्हें देखकर  परिपक्व बनिये |मनुष्य जीवन अत्यंत क़ीमती है आप ख़ुशक़िस्मत हैं जो इस योनि में पैदा हुए| सकारात्मक सोच रखिए |हीन भावना कभी पास नहीं आएगी |
                      - सविता गुप्ता 
                     राँची - झारखंड
हीनभावना मनुष्य में परिस्थितिवश उत्पन्न होने वाली भावना है । जब दिमाग उलझन में हो और सामने से नकारात्मक सुनने को मिले तो व्यक्ति क्षुब्ध हो जाता है अपना विश्लेषण तुलनात्मक तरीके से करने लगता है । यही वृति उसे गिराती चली जाती है । इससे बचने के लिए व्यक्ति को नकारात्मक सुनने से बचना होगा । उसे समझना होगा कि कोई भी अपने आप में परिपूर्ण नहीं है । उलझन के लिए तो पहले आत्मविश्लेषण जरूरी है । हमारे पास क्या है और परिस्थिति के अनुसार क्या चाहिए ? फिर उसे पाने की सलाह दूसरे से लेनी चाहिए । भटकाव को मन में जगह न दें । तभी इस मानसिक स्थिति से मनुष्य निपट पायेगा ।
- संगीता गोविल
पटना - बिहार
हमारे अंदर हीनता तभी आती है, जब हम स्वयं ही अपने को कम आंकते हैं। हीनता से ग्रस्त मनुष्य स्वयं को ही नहीं परख पाता और सही मूल्यांकन न होने के कारण अवसाद में चला जाता है। इससे बचने का तरीका है स्वयं से स्वयं की मुलाकात।इस मुलाकात से ही हम खुद को जान पाते हैं और अवगुणों को सुधार गुणों को निखार सकते हैं। हम दुनिया भर के लोगों से मिलते हैं पर स्वयं से मिलने का समय नहीं है। हर रोज की कम से कम दस मिनट की यह मुलाकात हमारी हीनता को नष्ट करने में मददगार साबित होती है।
             - गीता चौबे
            रांची - झारखंड
जब हम  स्वयं  को दूसरे व्यक्तियों की तुलना में कमजोर पाते हैं तभी हम हीन भावना का शिकार होते हैं ।सकारात्मक भावना ,हीन भावना को दूर करने का अच्छा माध्यम है ।हम अपने अन्दर छुपे गुण को पहचाने और प्रयासरत हो उसे शीर्ष तक पहुँचाये ।अपने गुणों और कर्म केआधार पर हम भी सब लोगों के बराबरी में पायेंगे ।साथ ही हमारे आस-पास के लोगों को भी हमारा प्रोत्साहन करना चाहिए ।महा दार्शनिक सुकरात कुरुप थे लेकिन उसे उन्होंने कभी आड़ेनहीं आने दिया और ज्ञान को ही जीवन का माध्यम बनाया ।अतः स्वयं का प्रयास हर मुश्किल से उबारता है ।
- कमला अग्रवाल
गाजियाबाद - उत्तर प्रदेश
हीन भावना से बचने के लिए अच्छा पढ़ें, अच्छों को दोस्त बनायें, अपने शुभचिंतकों की जगह हितचिंतकों को ढूंढे जो आपके गलत होने पर आपको बेखौफ टोककर सही कर सकता हो।
- दर्शना जैन
खंडवा - मध्यप्रदेश
प्रत्येक व्यक्ति को अपने कर्मानुसार ही मानव जीवन जीवन में यश, अपयश, हानि,लाभ ,सुख, दुख,भोग,ऐश्वर्य आदि की प्राप्ति होती है | जब व्यक्ति स्वयं अपने पास जो उपलब्ध होता है | उस स्थिति से सन्तुष्टि नहीं रहता |  वरन् भौतिक चमक दमक में उलझा व्यक्ति सामने वाले के सुखों को देखकर ईर्ष्या भाव रखने लगता है | अपने पास जो है उससे खुशी न मानकर जो प्राप्त नहीं है | सदैव उसके लिए ईश्वर को उलाहना देता रहता है | दूसरों से शिकायत करता और रोता रहता है |तब वह व्यक्ति हीनभावना का शिकार हो जाता है | ऐसी स्थिति में व्यक्तिे स्वयं के जीवन के साथ स्वभाव में कटुता का समावेश तो करता ही है साथ ही वह दूसरों के जीवन में भी जहर घोलने का काम करने लगता है | हीनभावना के शिकार व्यक्ति की वाणी विषवमन करने लगती है | धीरे, धीरे नकारात्मक विचारों, से घिरकर व्यक्ति मानसिक दुर्बलता के अधीन हो जाता है | ऐसे हीनभावना के शिकार व्यक्ति को चाहिए कि ~ वह अपने से सुविधा सम्पन्न व्यक्तियों को  जीवन से अपने जीवन की तुलना नहीं करना चाहिए |निम्न जीवन यापन करने वाले लोगों के जीवन का आंकलन करके अपने आप को सुन्दर जीवन देने के लिए सदैव ईश्वर को धन्यवाद देना चाहिए |अपने सद्गुणों को निखारना चाहिए |अपनी मनोभावना को स्वच्छ एवं शांतचित्त रखना चाहिए |व्यक्ति को अपने जीवन में दृढ़ संकल्प के साथ कर्मशीलता की डगर पर चलते रहना चाहिए | यहाँ पर केवल व्यक्ति की सोच, विचार और मानसिकता में ही अन्तर होता है | हमारे पास एक गिलास आधा दूध का भरा हुआ है |तो ऐसी स्थिति में सकारात्मक दृष्टिकोण रखने वाले व्यक्ति के लिए वह गिलास तृप्तिकारक और क्षुधा को शान्त करने वाला होगा | तो दूसरी ओर नकारात्मक दृष्टिकोण रखने वाले व्यक्ति के लिए वह गिलास आधा खाली देखकर मन ही मन जलन और कुुढन के कारण बन जायेगा |ईश्वर प्रदत्त यह मानव जीवन  अनमोल दिव्य उपहार के रूप में मिला है |प्रत्येक व्यक्ति को परिश्रम के द्वारा हीन भावना से बचते हुये जीवन को सफल एवं सुखद बनाने का प्रयत्न करना चाहिए |
- सीमा गर्ग मंजरी 
मेरठ - उत्तर प्रदेश
हीनभावना से बचने के लिए कभी भी अपनेविशेष गुणों को अनदेखा नहीं करें। उनको हरहाल में विकसित करें , प्रसारित करें। आप खुदका सम्मान करें। दूसरे कभी‌ आपको बढ़ते हुएनहीं देखना चाहते अतः उनकी बातों पर आप बिल्कुल ध्यान नहीं दें।आप अपने विशिष्ट गुणों को उभारें, दमित नहीं करें। आप स्वयं को श्रेष्ठ मानकर चलें। हीनभावना कोसों दूर भाग खड़ी होगी।
- डॉ सरला सिंह स्निग्धा
दिल्ली
हीनभावना से बचने का सबसे अच्छा उपाय यही है कि हमारे अंदर जो कुछ है उसे पहचाने उसी के सहारे आगे बढ़े दूसरों से अनावश्यक तुलना न करें अपनी अपनी क्षमताएं पहचाने ।आगे बढ़ने के प्रयास न केवल हीनभावना कम करके समाप्त करेंगे अपितु नये-नये रास्ते भी खोल देंगे ।हीन भावना का लम्बे समय तक रहना कईबार बड़ा कष्ट कारक होजाता है अतः उससे जितनी जल्दी हो सके बाहर निकलना चाहिए ।
- शशांक मिश्र भारती 
शाहजहांपुर -उत्तर प्रदेश
हीन  भावना  प्रायः  लोगों  के  अवचेतन  मन  में  बैठी  रहती  है  ।  यह  अपनी  योग्यताओं  को  कम  आंकने  की  स्थिति  को  उजागर  करती  है  जो  एक  तुलनात्मक  अवस्था  है  लेकिन  दुनिया  में  कोई  किसी  के  जैसा  नहीं  हो  सकता,  प्रत्येक  में  कोई  न  कोई  विशिष्टता  होती  है  बस  उसे  ही  खोजने  और  तराशने  की  आवश्यकता  है  ।  स्वयं  की  ओर  ध्यान  देना ....खुद  पर  विश्वास  करना .....दृढ़  आत्मविश्वास ......सकारात्मक  सोच  आदि  पूरे  परिवेश  को  बदलने  की  क्षमता  रखते  हैं  । हीनता,  एक  निराधार  भावना  है  जो  सिर्फ  व्यक्ति  की  सोच  का  परिणाम  है  ।  किताबों  से  दोस्ती .....व्यस्त  जीवनशैली ....अपनी  संपूर्ण  ऊर्जा  परिश्रम  तथा  अच्छे  कार्यों  में  लगाएं  । 
        - बसन्ती पंवार 
        जोधपुर - राजस्थान 
हीनभावना एक स्वभावगत मनोरोग माना जा सकता है। इससे पीड़ित,स्वभावतः सीधा, सरल और ईमानदार होता है। शर्मीलापन और संकोचीपन पीड़ित के स्वाभाव में इतना अधिक होता है कि वह सामर्थ्य और श्रेष्ठ होते हुये भी ना तो कुछ कर पाता है और ना ही कुछ करना चाहता है। वह ऐसे अवसर से बचकर निकलना चाहता है।                      हीनभावना की वजह का क्षेत्र व्यापक है। स्वास्थ्य, योग्यता, अपराध, अपंगता, रूप, रंग, जाति, वर्ग आदि ऐसी अनेक वजहों में से कोई भी वजह हीनभावना के रूप में पीड़ित के दिलोदिमाग में बैठ जाती है जो उसे उबरने नहीं देती।
पीड़ित के मन में हीनभावना ,भय के रूप में छिपी होती है कि "लोग क्या सोचेंगे।" उसकी यही सोच भयभीत कर उसे सामर्थ्यवान होते हुये भी कुछ नहीं करने देती। यह सोच और यह भय निकालने के लिये उसे इस सोच को लेकर बेपरवाह होने की सोच लानी होगी। लोग क्या सोचेंगे, क्या कहेंगे,इससे क्या लेनादेना? कितने लोग सोचेंगे,कब तक सोचेंगे और सोचेंगे या कहेंगे भी नहीं ये कैसे तय होगा? ये सामने वाले को सोचने और करने दो। पीड़ित को इससे क्या लेना ... क्या करना? जब ऐसी हिम्मत , ऐसा हौसला, ऐसा खयाल दिलोदिमाग में आ जायेगा, उसे लोगों की सोच को लेकर बेपरवाह होना आने लगेगा, तभी हीनभावना दूर हो पायेगी। पीड़ित को स्वतः और उसके हितैषियों, आत्मीयों को इसके लिये प्रयास और प्रोत्साहित करना होगा ।
- नरेन्द्र श्रीवास्तव
गाडरवारा - मध्यप्रदेश
आज की चर्चा  का विषय  प्रबुद्ध वर्ग के विचारों से समाज का मार्गदर्शन करेगा । हम यह जाने कि हीन भावना क्या है ?
मेरे  मतानुसार जब मानव अपनी योग्यता को कम आंकता है और अपने  मानक स्तर से कम होने के भाव पैदा कर लेता  हैं ।तो उसमें   हीनभावना या हीनता मनोग्रंथि (Inferiority complex) धर कर जातीहै । जिसका निवास प्रायः अवचेतन मन में होता है । एडलर के अनुसार, " प्रौढ़ व्यक्तियों में विकसित हीनता की वह भावना जिसका कारण यह होता है कि वे अपने बचपन की अवधि में उत्पन्न हीनता की भावना पर नियंत्रण नहीं पा सके हैं जब वे छोटे थे और दुनिया के बारे में उनका ज्ञान सीमित था।"  सुपर 30 मूवी    गरीब छात्रों की हीनभावना से ग्रस्त और निवारण का  सबसे बढ़िया उदाहरण है । सुपर 30 के संस्थापक श्री आनन्द कुमार से दुनिया परिचित है । जो आईआईटी के लिए गरीब छात्रों को निःशुल्क कोचिंग देते हैं । इन गरीब छात्र की स्पर्धा जब अमीर कॉन्वेंट के छात्रों से होती है । ये गरीब वर्ग उन अमीर विद्यार्थियों का सामना नहीं कर पाता है । उनकी वेशभूषा , अंग्रेजी बोल -चाल ,  योग्यता के सामने गरीब वर्ग अपनी पढ़ाई को भी भूल जाता है ।अपनी नकारत्मकता से वे हीनता की भावना से ग्रसित हो जाते हैं । उन गरीब छात्रों को अंग्रेजी भाषा का ज्ञान करा , गंवारूपन को बाहर निकाल  उन्हीं तरह समकक्ष  बनाके हीनता के भावों को बाहर निकाला । उन गरीब छात्रों में उत्साह , उमंग , विश्वास पैदा किया । अवसादित व्यक्ति को निराशा को अवचेतन मन से बाहर निकालना होगा ।
इसके लिए उन लोगों को सद साहित्य पढ़ाना होगा ।
महापुरुषों की जीवनी , सन्त महात्माओं के सत्संग का लाभ देना होगा । जिनसे उनमें नकारात्मक , निराशा के भावों का विनाश हो । हीनता से ग्रसित व्यक्ति को अपने अंदर आत्मविश्वास का भाव जगाना होगा । हमें अपनी नकारात्मक सोच को मन से निकाल बाहर करना होगा । असुरक्षा , ईर्ष्या , द्वेष , जलन के भावों पर अंकुश लगाना होगा । क्योंकि यही भावना मानव को हीनता की ओर ले जाती है । 
हर व्यक्ति में कोई विशेषता होती है । उसे पहचान के अपनी सारी शक्ति उसमें लगा के अपनी श्रेष्ठता  सिद्ध कर सकता है । जैसे भारतीय मुक्केबाज मेरी कॉम जिनका कद कम है । उन्होंने 8 बार विश्व चैम्पियन जीत के अपने कद की ऊँचाई बढ़ायी । सकारात्मक , आशावान बनना होगा । 
हम अपनी सकारात्मक सोच ,ऊर्जा , शक्ति उस दिशा में  
लगाएँ    जिससे हमें बेहतर , सही , उत्कृष्ट परिणाम मिले। हम समाज को प्रेरित कर सकें । 
  -डॉ मंजु गुप्ता 
 मुंबई - महाराष्ट्र
हीन भावना वह मानसिक स्थिति है जहाँ व्यक्ति अपने आप को दूसरे से कमतर समझने लगता है । उसे दूसरों को बढ़ते देखकर जलन होने लगती है । अक्सर आलसी व  मानसिक रूप से कमजोर व्यक्ति जल्दी ही निराश हो जाते हैं ।  आर्थिक आधार पर भी हीन भावना ज्यादा देखने को मिलती है । साथ ही ऐसे लोग जो गुणों को न देखकर , व्यक्ति के पद, जाति, धर्म व उससे होने वाले लाभ को ध्यान में रखते हैं वे अपने से कमतर व्यक्तियों को दीन- हीन मानते हैं ।
*हीन भावना से बचने के उपाय-*
1. अपने आप को समय के साथ- साथ उपडेट करते रहें ।
2. अपनी योग्यता व गुणों का मूल्यांकन स्वयं करें  ।
3. अपनी कार्यक्षमता को पहचान कर लक्ष्य निर्धारित करें और निरन्तर उसे प्राप्त करने हेतु संकल्पबद्ध रहें ।
4. खुद के प्रति ईमानदार रहें ।
5. सकारात्मक चिंतन करें ।
6. अपनी कार्यक्षमता को निखारते रहें ।
7. अच्छे लोगों की संगत में रहें ।
8. समय के साथ होने वाले परिवर्तनों को सहजता से स्वीकार करें ।
9. परिश्रम को महत्व दें, आराम दायक स्थिति को छोड़कर  मानवता के हितार्थ कार्य करें ।
अंततः यह कहा जा सकता है कि अपनी रुचि के अनुरूप कार्य करने से अवश्य ही आप अपनी योग्यता को बढ़ाकर हीन भावना से बच सकते हैं ।
- छाया सक्सेना प्रभु
जबलपुर  - मध्यप्रदेश
1 आत्मविश्वास  को  बढाना 
2  अपनी तुलना किसी  से न करे
3 दूसरे द्वारा  की  गई  बुराई  निन्दा को दिल से  नही  लगाना
4  ईर्ष्या  की  प्रवृत्ति  से दूर रहे 
5  परिस्थिति  को perceive  करने का  सकारात्मक  नजरिया  अपनाने 
6  कभी  भी  दुखदायी  घटना  को मानस पटल  पर न लावे
7  वर्तमान  समय  मे भी  पारिवारिक  या अन्य  परिवेश  मे  होनेवाली  निन्दनीय  व्यक्ति  और  व्यवहार  की पुनरावृत्ति  न अन्य  से चर्चा  मे करे  क्योंकि  ये सभी  नकारात्मक  energy है ये  आत्मविश्वास  को कमजोर  करते  है 
8  अपने आप  से प्यार  करे
9 अपनी  प्रतिभा  की गुणगान  करे 
10 खूब melodious song  को सुने  और बोलने  की प्रयास  करे 
11 आपसे अच्छा  इस दुनिया  मे कोई नही है
-डाँ. कुमकुम वेदसेन
मुम्बई - महाराष्ट्र
यदि हम आज अपने आसपास देखे तो हमें हीन भावना करने वाले लोग बहुत ही मिल जाएंगे। क्योंकि आजकल इंसान अपने दुख से दुखी नहीं है बल्कि दूसरों के सुख से दुखी है। जो इंसान अपने दिल में दूसरों के प्रति हीनभावना रखते है। एक दिन उनके पास कुछ नहीं रहता है। क्योंकि उन्हें यह ही नहीं मालूम हो पाता कि जिनके प्रति वह हीनभावना रखते है उनके प्रति हीनभावना रखते हुए वह अपना क्या-क्या खो देते है। और अंत में ऐसे व्यक्ति अकेले रह जाते है। इसलिए हमें जितना अधिक हो सके हीनभावना को अपने आप से दूर ही रखना चाहिए। हीनभावना से व्यक्ति अपने आपको ही नहीं बल्कि दूसरों को भी नुकसान पहुंचाता है। यदि हमारे मन में किसी के प्रति कोई भी हीनभावना पनप रही हो तो उस समय हमें ईश्वर का सुमिरन करना चाहिए। क्योंकि ईश्वर हमारे मन को शांत रखता है। जिससे हमारे मन में दूसरों के प्रति हीनभावना खत्म हो जाती है।
   - नीरू देवी
       इन्द्री (करनाल) हरियाणा
जब हम दूसरों से अपनी तुलना करते हैं तो दूसरे को अपने से श्रेष्ठ और अपने को दूसरे से कम आँकने लगते हैं तब मन में हीन भावना जन्म लेने लगती है, ईर्ष्या करने की प्रवृत्ति बढ़ जाती है, लोगों से बात करने में व्यक्ति कतराने लगता है और व्यक्तित्व का ह्रास होने लगता है।
           प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि इस हीन भावना से कैसे बचा जाये? किसी से भी अपनी तुलना न करें। कोई भी किसी के जैसा नहीं हो सकता। अपनी श्रेष्ठता, अपने गुणों को किसी से कम न समझें। ऐसा करने से आत्मविश्वास दृढ़ बना रहता है और हम अपने किसी भी काम में अपना श्रेष्ठ देने में समर्थ होते हैं। पुस्तकों को अपना साथी बनायें, नकारात्मक विचार रखने वालों की संगति से बचें, अपना आत्मविश्लेषण स्वयं करें, अपनी रुचि के काम करें, अपनी हॉबी विकसित करें, सेवा कार्य करे,सार्थक लगने वाले कामों में व्यस्त रहें, सकारात्मक सोच रखें तो हीन भावना कभी आ ही नहीं सकेगी।
- डा० भारती वर्मा बौड़ाई
देहरादून - उत्तराखण्ड
मुझे लगता है इंसान एक ऐसा पुतला है जिसमें हर तरह की भावनाएँ होती ही होती हैं। स्वयं को बहुत ऊँची चीज़ समझने वाले लोगों को जब करीब से देखा तो  अपनी कमियों को छिपाते-दबाते और कई बार  तो इसी वजह से असामान्य व्यवहार करते भी दिखाई दिये। 
अब सवाल यह है कि हमारे अंदर हर तरह की भावनाओं का संतुलन कैसे हो क्योंकि मुझे लगता है सबसे बड़ी उपलब्धि यह है कि जीवन मेँ हर चीज़... रूप-रंग, आर्थिक हालात, स्वास्थ्य, बुद्धि...  सब सामान्य मिले जो कि कभी नहीं होता। कब किसे सबकुछ मिला है? अब इस मन का क्या कीजै जो अपने हर प्राप्य को भूल, दूसरों से अपनी तुलना करने में व्यस्त रहता है? अपनी खूबियों को पहचानना होगा और कमियों से लोहा लेने के लिए संकल्पित होना होगा, मेहनत करनी होगी।
इसके अतिरिक्त हमें पग-पग पर ऐसे लोगों से पाला भी तो पड़ता रहता है जो अपने क्षुद्र स्वार्थों के लिए सामने वाले को छोटा दिखाने के लिए किसी भी हद तक चले जाते हैं। कई बार इतना आसान नहीं है पर 'स्व' को बचाने के लिए संघर्ष भी जरूरी है।
हौसला न छोड़, कर सामना जहाँ का
वो बदल रहा है देख, रंग आसमाँ का
ये शिकस्त नहीं, ये फतह का रंग है
जिंदगी हर कदम, इक नई जंग है।
- श्रुत कीर्ति अग्रवाल 
पटना - बिहार

" मेरी दृष्टि में " हीनभावना तो जीवन में बहुत बड़ी समस्या है । सबसे पहले हीनभावना की पहचान होनी चाहिए । हीनभावना की पहचान हो गई तो बहुत जल्द हीनभावना से बच सकते हैं । इसमें डाक्टर की भी सलाह ले लेनी चाहिए ।इससे लाभ अवश्य होगा । हीनभावना से ग्रस्त को कभी अकेले नहीं रहना चाहिए । इसके परिणाम अच्छे नहीं होते हैं ।                                                 - बीजेन्द्र जैमिनी


कार्यक्रम का संचालन करते हुए बीजेन्द्र जैमिनी
व्यवस्था परिवर्तन यात्रा
पानीपत
दिनांक : 28 अगस्त 2006 
यात्रा में शामिल : -
संस्थापक : श्री बजंरग लाल अग्रवाल
रास्ट्रीय उप अध्यक्ष : अरपित अनाम , आचार्य पंकज

Comments

Popular posts from this blog

वृद्धाश्रमों की आवश्यकता क्यों हो रही हैं ?

हिन्दी के प्रमुख लघुकथाकार ( ई - लघुकथा संकलन ) - सम्पादक : बीजेन्द्र जैमिनी

लघुकथा - 2023 ( ई - लघुकथा संकलन )