क्या प्रभु को प्राप्त करने का सबसे बड़ा मार्ग भक्ति है ?

प्रभु को पाने के लिए सर्वश्रेष्ठ मार्ग भक्ति ही है । बिना भक्ति के तो इंसान राक्षस प्रवृत्ति का बन जाता है । जो अपराध की दुनियां का हो जाता है । इसलिए भक्ति मार्ग ही सर्वश्रेष्ठ माना जाता है । यही " आज की चर्चा " का प्रमुख विषय है । अब आये विचारों को देखते हैं : -
यह सच है कि भक्ति से ईश्वर को प्राप्त किया जा सकता है। ईश्वर के प्रति परम अनुराग, पवित्र प्रेम ही भक्ति है। सांसारिक आसक्ति से परे भक्तों का सच्चा समर्पण ही भक्ति है। भक्ति पूज्य के प्रति श्रद्धा से जुड़ी होती है। जब हम ईश्वर को अपनी आत्मा मानने लगते हैं और सोचते हैं कि ईश्वर हर पल मेरे साथ है, मुझसे अलग है ही नहीं, जैसा कि भगवान कृष्ण ने हम सबको अपने पाने की राह दिखाते हुए कहा है कि" जो पुरुष सभी प्राणियों में द्वेष भाव से रहित निस्वार्थ भाव से सबसे प्रेम, दया का भाव रखता है ।माया, ममता, अहंकार से दूर सुख- दुख दोनों अवस्थाओं में समान भाव से क्षमाशील है; जो सदैव इंद्रियों को अनुशासित रखकर संतुष्ट रहता है, श्रद्धा भाव के साथ निरंतर मेरे में मन रमाए रखता है; ऐसा ही भक्त मुझे प्रिय है"।
 भक्ति में कर्मकांड से दूर भाव धारा को महत्व देना होता है; क्योंकि भगवान भाव के भूखे होते हैं। पदार्थों के नहीं। शबरी के जूठे बेर, सूरदास की बांह पकड़ना, दुर्योधन के छप्पन भोग त्यागना, विदुर की पत्नी के हाथों पवित्र प्रेम की आकुलता में केले के छिलके का भोग ही स्वीकारना, सबके सब इन भक्तों का मन, ध्यान प्रभु की प्राप्ति के लिए निश्चल ह्रदय और प्रेम की एकाग्र पराकाष्ठा ही ध्येय रहा है। यह सच है जब हम ऐसा भाव रखते हैं कि एक मात्र परमेश्वर ही मेरी भक्ति  का साध्य है। वही हमारे सर्वस्व हैं। तो यह अनन्य प्रेम, निर्दोषी , अव्यभिचारी होकर प्रभु- प्राप्ति करा देता है।
 कबीर ने भी कहा है --------"प्रेम गली अति सांकरी,
 तामे दो न समाहि ।
 जब मैं था तब हरि नहीं,
 अब हरि हैं मैं नाहिं।।
 अतः परमब्रह्म प्रभु को पाना है; तो अहम् को त्याग कर *एकनिष्ठभक्ति* होना जरूरी है।
- डॉ. रेखा सक्सेना
मुरादाबाद - उत्तर प्रदेश
पहले हमें भक्ति को समझना होगा। भक्ति विश्वास है , जो पूर्ण रूपेण समर्पण को दर्शाता है। आप तन-मन समर्पित कर देते हैं । इससे जो प्रेम उत्पन्न होता है वह सार्वजनिक होता है। यही प्रेम दूसरे के मुख पर प्रसन्नता ला कर ईश्वर के दर्शन करता है। बस इसी तारतम्य में बंध कर हम ईश्वर तक पहुँच पाते हैं । भक्ति और प्रभु के तार विश्वास पर टिके हैं। एक ऐसी शक्ति जिस पर व्यक्ति अंधविश्वास करता है , उसके हर सही-गलत को सिर झुका कर स्वीकार करता है, जिसके किये पर कोई सवाल नहीं करता है, वही ईश्वर का रूप है। वही भक्ति है । वही प्रेम है  वही अंतरात्मा की शुद्धि है ।
- संगीता गोविल
पटना - बिहार
भक्ती और प्रेम ही है जो हमें प्रभु से मिला सकता है 
ईश्वर को प्राप्त करने का सबसे उत्तम और सरल उपाय प्रेम ही है। प्रेम भक्ति का प्राण भी होता है। प्रेम के बिना इंसान चाहे कितना ही जप, तप, दान कर ले, ईश्वर को प्राप्त नहीं कर सकता है। दुनिया का कोई भी साधन प्रेम के बिना जीव को ईश्वर का साक्षात नहीं करा सकता है। गोस्वामी तुलसीदास ने भी कहा है कि भगवान के प्रति प्रेम ही भक्ति का सबसे सुगम मार्ग होता है। एक कथा पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने कहा कि देवता अपने दुखों को लेकर भगवान आशुतोष से मिलने के लिए पहुंचे और अपनी समस्याएं बताईं। तब उन्होंने कहा कि इन समस्याओं का समाधान केवल प्रभु श्रीराम ही कर सकते हैं। तब देवताओं ने कहा कि उनको प्राप्त करने के लिए तो हमें वैकुंठ लोक और क्षीर सिंधु में जाना पड़ेगा। क्योंकि भगवान श्रीराम वहीं पर निवास करते हैं। लेकिन भगवान शंकर ने कहा कि उन्हें पाने के लिए किसी लोक में जाने की जरूरत नहीं है। सभी देवतागण प्रेमभाव से यहीं प्रार्थना करें तो उनका साक्षात किया जा सकता है। उन्होंने बताया कि फिर वहीं पर प्रभु श्रीराम ने अपना साक्षात कराया। पंडित ने कहा कि प्रेम में ही परमात्मा को प्राप्त करने की असीम शक्ति होती है। प्रेम के अभाव में सारी योग्यताएं धरी रह जाएगी। गुरु नानक ने भी कहा है कि प्रेम के बिना परमात्मा को प्राप्त नहीं किया जा सकता है। संत कबीरदास ने भी ढाई अक्षर प्रेम को ही ज्ञान की पराकाष्ठा माना है। उन्होंने कहा कि बिना प्रेम के शस्त्रज्ञान बोझा ढोने के समान होता है। शबरी के प्रेम से भावुक हो गए श्रद्धालू
पड़ित कुलदीप शर्मा ने बताया कि शबरी, मीरा, निषाद, गोप-गोपी, वानर और अन्य वनवासियों ने प्रेम से ही ईश्वर को पाया। उन्होंने कहा कि शबरी के प्रेम के कारण ही प्रभु श्रीराम उनकी कुटिया में आए थे। अचानक भगवान को आता देखकर शबरी घबरा गई। क्योंकि उसकी कुटिया में प्रभु को खिलाने के लिए कुछ भी नहीं था। वह चिंता में थी कि प्रभु का स्वागत कैसे करूं, लेकिन शबरी के प्रेम ने भगवान की भक्ति का रहस्य खोल कर रख दिया। प्रेम के वशीभूत होकर प्रभु श्रीराम उनके झूठे फलाहार को भी खां गए। उन्होंने संसार के सभी रसों से ऊपर रखकर शबरी के फलाहार के रस को सुरस यानि उपरति की संज्ञा दी। यानि दुनिया में सुरस से बड़ा कोई रस नहीं है। ऐसे में भगवान श्रीराम अपने भक्त के प्रेम बंधन में बंध गए। प्रभु को शबरी के प्रेम में इतना आनंद आया कि सभी जगहों पर शबरी के फलाहार और उसके रस का जिक्र किया। कथा के उपरांत मंदिर में आरती हुई। इसके बाद श्रद्धालुओं को प्रसाद का वितरण किया गया। भक्ति से श्रेष्ठ मानव जीवन में कुछ भी प्राप्त नहीं हो सकता । जीवन में कितना भी संग्रह करो उसका नाश होगा, जीवन में कितना भी संयोग हो एक दिन वियोग होगा, जीवन को कितना भी अच्छी तरह जीयो उसका अंत मृत्यु में होगा । इसलिए जीवन में भक्ति करके प्रभु तक पहुंचना ही श्रेष्ठ है 
- डां अलका पाण्डेय
मुम्बई - महाराष्ट्र
भक्ति, आराधना ,सेवा ये सब ऐसे भाव हैं जो हमें सुख संतुष्टि ,ख़ुशी देते हैं |जो प्रभु द्वारा ही रचित होते हैं|जिसे पाकर हमें ईश्वर के होने का आभास होता हैं|कण कण में ईश्वर विराजमान है |बस हमें अपने अंदर की शक्ति को  प्रेम ,दया ,करूणा रूपी भक्ति से देखना होगा तो अवश्य प्रभु को प्राप्त किया जा सकता है | हम भिन्न भिन्न तरह से प्रभु की भक्ति करते हैं,,कोई पत्थर पूजता हैं,कोई शांत चित्त होकर याद करता है,किसी को पेड़ तो किसी को पशु पूजन से ही तृप्ति मिलती है |साधन अनेक है किंतु ध्येय एक और वह है प्रभु भक्ति |
               - सविता गुप्ता 
               राँची - झारखंड
     हां प्रभु को प्राप्त करने का सबसे बड़ा मार्ग भक्ति है।जैसे आत्मा का परमात्मा में विलय का बड़ा मार्ग भक्ति ही है।क्योंकि भक्ति का दूसरा नाम परिश्रम है और बिना कड़े परिश्रम के कुछ भी मिलना सम्भव ही नहीं है।
     उदाहरण के तौर पर जिस प्रकार हम किसी डिप्लोमा अथवा डिग्री की परीक्षा को उत्तीर्ण करने के लिए कड़ा परिश्रम करते हैं।उसी प्रकार अपने प्रिय को प्राप्त करने अर्थात प्रभु अर्थात ईश्वर को प्राप्त करने की क्रिया को भक्ति कहते हैं और भक्ति के अलावा कुछ भी संभव नहीं।
    इस भक्ति को मजनू ने लैला को पाने के लिए,रांझे ने हीर को पाने के लिए,पुन्नु ने शशि को पाने के लिए अलग-अलग भक्ति के कीर्तिमान स्थापित किए।इसी प्रकार पहाड़ को रेत कर रास्ता बना कर एक व्यक्ति ने अभी-अभी कीर्तिमान बनाया है।यह सब विभिन्न प्रकार की प्रभु भक्तियां हैं और आत्मा को परमात्मा में लीन करने के विभिन्न मार्ग भी हैं।
- इन्दु भूषण बाली
जम्मू - जम्मू कश्मीर
प्रभु को प्राप्त करने का सबसे बड़ा मार्ग भक्ति ही है फिर चाहे आप किसी भी तरह से करें ! जीव तो ईश्वर का ही अंश है और वह प्रभु के अधीन है जीव एक है किंतु ईश्वर तो एक ही है !पृथ्वी पर जिसने भी जन्म लिया है वह अपनी इस जन्म को संवारना चाहता है वह ईश्वर के प्रति अपनी भक्ति को साकार रूप दे वह मोक्ष चाहता है अथवा प्रभु में विलीन हो जाना चाहता है रास्ता कुछ भी हो चाहे सेवा भाव हो अथवा दान ,त्याग, तीर्थ, ज्ञान ,धर्म ,व्रत ,तप ,जप ,यज्ञ ,गुरु की सेवा आदि आदि किंतु मनसा या ध्येय  तो एक ही है प्रभु को पाना और मोक्ष की प्राप्ति !नदियां किधर से भी आए किंतु मिलती तो एक ही जगह पर है सभी सागर में मिल जाती है यहां सिर्फ वह प्रभु को पाना चाहता है ! हनुमान की भक्ति दास के भाव लिए हैं वे प्रभु के चरणों में रह सदा उनकी सेवा करना चाहते थे अतःअपने निश्चल दास भावना की भक्ति के कारण वे राम के परम भक्त रहे ! गोलियां  प्रेम भक्ति को लेकर थी कृष्ण के प्रेम में इतनी पागल थी या खो जाती थी कि उन्हें कण कण में  कृष्ण ही दिखते थे !भक्ति में कई ऐसे भी हैं जो दिन-रात प्रभु के चरणों में रह सेवा करते हैं भक्ति करते हैं उन्हें मोक्ष चाहिए वह केवल मरणोंपरांत प्रभु के चरण में मोक्ष चाहता है पुनर्जन्म नही ! मनुष्य मैं  का त्याग कर यानी कि अहंकार का त्याग कर अपना अस्तित्व परमात्मा में विलीन करना चाहता है यह भी भक्ति का एक तरीका है हमारे ऋषि मुनि योग से प्रभु को पा लेते थे आज हम प्रभु को पाने के लिए क्या करते हैं मंदिर जाते हैं ,सत्संग करते हैं, तीर्थ ,त्याग, व्रत, दान, सेवा आदि आदि! यही मार्ग आज भागदौड़ वाली जिंदगी में हम कर पाते हैं किंतु जो भी करें ऋद्धि से करें! यहां मैं कहना चाहूंगी सब छोड़ केवल अहंकार का त्याग कर ,समभाव रख गरीबों की सेवा मदद करें , माता पिता की सेवा, गुरु को मान देऔर उनकी आत्मा को तृप्त कर उनका आशीर्वाद ले वही सच्ची भक्ति है आत्मा ही परमात्मा है जीव अनेक है ईश्वर एक है !
अंत में कहूंगी प्रभु की भक्ति में शक्ति है बस हमें उन पर विश्वास करना है ईश्वर को मानने एवं उसकी अपरंपार महिमा को अपनी आत्मा से स्वीकार करें सत्संग करें और प्रभु भक्ति में डूब जाए ! ईश्वर सदा हमारे साथ है
- चन्द्रिका व्यास
मुम्बई - महाराष्ट्र
प्रभू को पाने का सब से बड़ा मार्ग भक्ति है ।यह कहना पूर्णतः सत्य नहीं होगा. ।यदि हम भक्ति को पूजा पाठ, विधिवत मंत्रोच्चार और वेदों के अनुसार ले तो आज कल तो यह संभव ओर व्यवहारिक भी नहीं है। ईश्वर को पाने के लिए सच्चे मन से उसे याद कर लेना ही पर्याप्त है। ईश्वर स्वय़ ही कहते हैं कि माता पिता की सेवा, निरिह पशु पक्षियों की देखभाल और समय पर इमानदारी से अपने कामों को पूरा करना ही उस से मिलने का सरलतम मार्ग है। भक्ति के तै कयी रूप ओर विधान हैं। इसलिए दीन दुखियों की सेवा में ईश को पाना सरल है।
- ड़ा.नीना छिब्बर
जोधपुर - राजस्थान
क्या प्रभु को प्राप्त करने का सबसे बड़ा मार्ग भक्ति है ॽ यह प्रश्न देखने में जितना सरल लगता है उतना है ।जिस तरह से भक्ति के अनेक रूप हैं वैसा ही प्रभु का मार्ग है ।कोई ज्ञान से  कोई कर्म से कोई प्रेम से पाना चाहता है ।साथ ही कुछ एकेश्वरवाद कुछ बहुदेववाद व सगुण और निर्गुण मार्ग हैं ।महत्वपूर्ण मार्ग नहीं है ।महत्वपूर्ण है कि चलने वाले की नीति नियति व आ।आस्था विश्वास कितना है ।वह अपने प्रभु को पाने के लिए कहाँ तक जा सकता है कि स तरह के खतरे उठा सकता है ।तभी थय है कि सबसे बडा मार्ग कौन सा है ।
- शशांक मिश्र भारती 
शाहजहांपुर - उत्तर प्रदेश
*रामहि केवल प्रेम पियारा ।*
*जान लेय जो जाननि हारा।।*
ये सही है कि भक्ति का मार्ग अपनाकर हम प्रभु को पाना चाहते हैं किन्तु प्रभु  सच्चे मन से निःस्वार्थ सेवा भाव से मिलते हैं । जब हम दीन दुखियों की मदद करते हैं ,  गुरुजनों का, माता पिता, भाई - बंधुओ का हृदय से सम्मान करते हैं तो हमें प्रभु मिलते हैं । भक्ति निर्गुण और सगुण दोनों प्रकार की होती है किंतु बिना धैर्य और विश्वास के कुछ भी नहीं मिलता । भक्तिभाव से हमें मानसिक शांति जरूर मिल सकती है परन्तु ईश्वर तक पहुँचने का मार्ग तो केवल श्रेष्ठ कर्मों द्वारा ही संभव हो सकता है । हर जीव में परमात्मा का निवास होता है इसलिए हमें किसी को जाने अनजाने कष्ट नहीं पहुँचाना चाहिए ।
*मो सम दीन न दीन हित, तुम समान रघुबीर ।*
*अस बिचारि रघुबंस मणि, हरहु विषम भव भीर ।।*
जब हम अपना सब कुछ प्रभु को समर्पित करके विनत भाव से प्रार्थना करते हैं तो अवश्य ही प्रभु हमारे सभी पापों को दूर कर हमें अपनी शरण में लेते हैं ।
- छाया सक्सेना प्रभु
जबलपुर - मध्यप्रदेश
यह कथन शत प्रतिशत सही है भक्ति  में शक्ति है इसलिए प्रभु को प्राप्त करने का सही मार्ग सिर्फ भक्ति  है भक्ति करने के अनेक तरीके हैं मन से प्यासे को पानी  पिलाना भी  एक भक्ति है हृदय से भगवत स्मरण भी भक्ति है बुजुर्ग की सेवा मान सम्मान करना अद्भुत भक्ति  है मंदिर जाना भी तो एक सर्वविदित भक्ति है  मन और विश्वास से किया गया  हर व्यवहार भक्ति का एक रूप है  जिसके माध्यम से प्रभु को प्राप्त किया जा सकता है
डाँ. कुमकुम वेदसेन 
मुम्बई - महाराष्ट्र
प्रभु को प्राप्त करने का सबसे बड़ा मार्ग निस्वार्थ भक्ति है सच्चे दिल से प्रभु को याद करने से ही वह मिल जाते हैं। नाम लेने मात्र से वे भक्तों की पुकार सुन लेते हैं। प्रेम से पुकारो तो प्रभु भक्तों के बस में हो जाते हैं। मीरा ने कृष्ण को भक्ति मार्ग से ही पाया था। अर्जुन ने कृष्ण को, शबरी ने राम को प्रेम से पुकारने पर प्रभाव भक्तों के पास दौड़े चले आते हैं। सबसे सरल और सहज मार्ग प्रेम ही है। भक्तों के प्रेम से शिव जी को तपस्या करने पर बे राक्षसों को भी वरदान दे देते थे। उदाहरण हमारे वेद ग्रंथों में मौजूद हैं। भगवान तो भक्त के बस में है ऐसा उन्होंने स्वयं गीता में कहा है।
- प्रीति मिश्रा 
जबलपुर - मध्य प्रदेश
संसार से जब विदा होंगे तो भक्ति के अलावा कुछ भी साथ जाने वाला नहीं है । मानसिक रूप से सदैव हर परिस्थिति में प्रभु के साथ जुड़े रहना चाहिए और प्रभु का संग करके रखना चाहिए । संसार से निसंग होने के लिए सत्संग की आवश्यकता होती है । जब प्रभु प्रेम से अपने भक्त से मिलते हैं तो उस भक्ति के बीच में आये हुये जीव को प्रभु मुक्ति दे देते हैं जिससे प्रभु को अपने भक्त से प्रेम करने में बाधा नहीं आये । जैसे कोई हवाई अड्डे पर हम अपने बहुत प्रिय और प्रेमी मित्र के साथ मिल रहे हो और प्रेम से बाते कर रहे हो तभी एक भिखारी आये तो हम बिना बहस किये ही उसे पैसा निकाल कर दे देते हैं जिससे हमारे मित्र के साथ प्रेम संवाद में कोई बाधा नहीं आये । वैसे ही प्रभु भक्ति के बीच में बाधा देने वाले संसारी जीव को मुक्ति दे देते हैं जिससे प्रभु अपने भक्तों से प्रेम करते रहे और उसमें बाधा नहीं आये । पढ़े -
प्रभु की माया हमें प्रभु से दूर करने के लिए है । माया का कार्य ही है कि हमें प्रभु से दूर करना । माया "जीव" और "शिव" का मिलना नहीं होने देती । माया एक तरह से हमारी परीक्षा लेती है और इस परीक्षा में उत्‍तीर्ण होने पर ही हम प्रभु तक पहुँच सकते हैं । किसी भी विषय में सफलता प्राप्‍त करने के लिए परीक्षा देनी पड़ती है । वैसे ही प्रभु के पास पहुँचने के लिए माया रूपी परीक्षा देनी होती है । माया रूपी परीक्षा में उत्‍तीर्ण हुये तो ही प्रभु के पास पहुँच सकते हैं । माया रूपी परीक्षा में उत्‍तीर्ण होने का मतलब क्‍या है ? माया के बीच रहकर, माया में न उलझकर अगर हम प्रभु भक्ति करने में सफल होते हैं तो प्रभु के द्वार हमारे लिए खुल जाते हैं ।जैसे बड़ी परीक्षा में उत्‍तीर्ण होने पर भाग्‍य के द्वार खुल जाते हैं वैसे ही माया की परीक्षा में उत्‍तीर्ण होने पर सबसे बड़ा द्वार यानी प्रभु का द्वार खुल जाता है । प्रभु माया रूपी परीक्षा क्‍यों लेते हैं ? प्रभु माया रूपी परीक्षा लेकर यह देखना चाहते हैं कि क्‍या इसे पार करके, इसमें बिना उलझे जीव मेरे तक पहुँचने की इच्‍छा रखता है और इसके लिए प्रयास करता है । या फिर माया से भ्रमित होकर प्रभु से दूर हो जाता है । प्रभु को परीक्षा लेने का अधिकार है । प्रभु के पास कौन कौन पहुँच सकता है इसके लिए परीक्षा है । परीक्षा सिर्फ मानव जीवन में ही होती है । अन्‍य योनियों में नहीं होती । मानव जीवन में सभी इस परीक्षा का हिस्‍सा होते हैं चाहे वह अमीर हो या गरीब या किसी भी धर्म, मुल्‍क और रंग के क्‍यों न हो । परीक्षा में उत्‍तीर्ण होने के लिए हमें पढ़ाई करनी पड़ती है । माया की परीक्षा में उत्‍तीर्ण होने के लिए हमें भक्ति करनी पड़ती है । अगर हमने मानव जीवन इहलोक हेतु कमाई करके व्‍यर्थ कर दिया तो हमारे में और पशु पक्षी में क्‍या अंतर है । मनुष्‍य जन्‍म तो वास्‍तव में इहलोक के साथ साथ परलोक की कमाई के लिए होता है । पर हम इस जन्‍म के लिए उपयोगी मुद्रा कमाते हैं और इस जन्‍म के बाद के लिए उपयोगी मणि कमाना भूल जाते हैं । इस जन्‍म हेतु ही मुद्रा कमाई तो फिर पशु पक्षी से ज्‍यादा हमने मनुष्‍य जन्‍म लेकर क्‍या कमाया ? पशु पक्षी भी इस जन्‍म हेतु भोजन और रहने की व्‍यवस्‍था की कमाई करते हैं । हमने भी अगर खाने के लिए भोजन, रहने के लिए व्‍यवस्‍था और पहनने के लिए कपड़े की कमाई की तो पशु पक्षी से ज्‍यादा हमने क्‍या किया । मानव जीवन हमें ऐसी कमाई करने हेतु नहीं मिला है । मानव जीवन हमें इस जन्‍म में काम आये और जन्‍म के बाद भी काम आये ऐसी कमाई करने हेतु मिला है । ऐसी कमाई हमने की तो यह हमें सदैव के लिए जन्‍म मरण के चक्‍कर से मुक्ति दे देगी । यह कमाई है भक्ति की कमाई क्‍योंकि भक्ति के बल पर ही परलोक का सुधरना और जन्‍म मरण के बंधन से मुक्ति संभव है  भक्ति की कमाई जीवन में करते हैं तो माया रूपी परीक्षा में हम उत्‍तीर्ण हो जाते हैं । जितनी जितनी भक्ति जीवन में बढती जायेगी माया का प्रभाव जीवन में उतना उतना कम होता चला जायेगा । माया और भक्ति दोनों विपरीत हैं । माया का कार्य है हमें प्रभु से दूर करना और भक्ति का कार्य है हमें प्रभु के समीप ले जाकर प्रभु से मिला देना ।
प्रभु की माया रूपी परीक्षा में उत्‍तीर्ण होने का सबसे सफल उपाय भक्ति है । भक्ति होगी तो माया का प्रभाव नहीं होगा ।
भक्ति की कमाई सिर्फ मनुष्‍य जन्‍म में ही कर सकते हैं । इसलिए मानव जीवन को सफल करने का सबसे उत्‍तम उपाय है कि प्रभु की भक्ति करना । भक्ति की कमाई से मनुष्‍य जीवन तो सफल होगा ही, साथ ही आवागमन से सदैव के लिए मुक्ति मिल जायेगी । भक्ति सीधे हमें प्रभु तक पहुँचा देती है 
इसलिए जीवन में अविलम्‍ब माया का साथ छोड़कर भक्ति का मार्ग पकड़ना चाहिए जिससे मानव जीवन को सफल किया जा सके । मानव जीवन का उद्देश्य ही भक्ति होनी चाहिए ।
- अश्विन पाण्डेय
मुम्बई - महाराष्ट्र
     अटूट श्रद्धा, विश्वास को मन में लिए समर्पित भाव से भक्ति करें, प्रेम करें, सत्कर्म करें, सेवा करें....सभी से प्रभु को पाया जा सकता है, क्योंकि इनके माध्यम से जिस सुख, संतोष, हर्ष और उल्लास की अनुभूति होती है वह प्रभु को प्राप्त करने के समान ही होती है। जब कोई भी प्रेम से प्रभु को पुकारता है वह अवश्य उसे मिलते हैं। भक्तों की प्रेममय भक्ति ही प्रभु की प्राप्ति का सबसे बड़ा मार्ग है। यह प्रेम हम सृष्टि के कण-कण से करें, दीन-दुखियों, पशु-पक्षियों, माता-पिता, वृद्धों से करें... सभी प्रभु को ही पाने के माध्यम हैं।
- डा० भारती वर्मा बौड़ाई
मुम्बई - महाराष्ट्र
प्रभु को तो प्रेम और भाव से ही प्राप्त किया जा सकता हैं, मन मे उनके प्रति श्रध्दा और विश्वास यदि दृढ़ हो तो परमेश्वर को हम आसानी से पा सकते हैं। हमे उनको अपने मात-पिता मानकर उन्हें ही अपना सर्वेसर्वा मानकर जीवन मे जो भी हमारे साथ घटित हो रहा है, वह सब उनकी कृपा दृष्टि से हो रहा है। ऐसा दृढ़ विश्वास हो तो उन्हें आसानी से प्राप्त कर सकते हैं।परिशुद्ध प्रेम में इतनी ताकत है।कि उसका वर्णन शब्दो मे नही किया जा सकता।उदाहरण:शबरी के झूठे बेर प्रभु राम ने शबरी के परिशुद्ध प्रेम की खातिर ही गृहण किये थे।प्रभु को भक्ति से ज्यादा नि:स्वार्थ भाव और प्रेम से प्राप्त किया जा सकता हैं।
-  वन्दना पुणतांबेकर
इन्दौर - मध्यप्रदेश
 हां प्रभु को  प्राप्त करने का सबसे बडा मार्ग भक्ती है।
भक्ती का अर्थ है भय से मुक्तीऔर ज्ञान से युक्ती से ही प्रभु को प्राप्त किया जा सकता है।भक्ती एक ऐसा शक्ति है। विशेष शक्ति के द्वारा प्रभु को पा सकते हैं।
- उर्मिला सिदार
रायगढ़ - छत्तीसगढ़
कबीरदास जी ने कहा है -साँच बरोबर तप नहि ,झूठं बरोबर पाप l जाके ह्रदय साँच है ,ताके ह्रदय आप ll अर्थात सत्य के बराबर कोई तपस्या नहीं है और झूंठ के बराबर कोई पाप नहीं ,जिसके ह्रदय में सत्य है उसजे ह्रदय मेसाक्षात प्रभु का निवास होता है l प्रश्न यह उठता है कि ऐसे व्यक्ति को प्रभु की प्राप्ति के लिए विभिन्न मार्गों पर चलने की आवश्यकता क्यों है ?फिर भी प्रभु प्राप्ति के लिए ज्ञान मार्ग और भक्ति मार्ग में से कौनसा मार्ग श्रेष्ठ है ?ज्ञानार्जन से अधिक ज्ञान का अनुभव महत्वपूर्ण है ,बुद्धि से ज्यादा भावनाएं महत्वपूर्ण होती हैं l मस्तिष्क से अधिक दिल की बात सुननी चाहिए l इस स्थान को "ज्ञान गुदड़ी "कहते हैं l लोक में यह प्रसंग उध्दव गोपी संवाद के रूप में जाना जाता है l भक्तिकालीन कवियों ने इस प्रसंग से यह सिद्ध किया है कि प्रभु प्राप्ति का सबसे सरल मार्ग भक्ति मार्ग है l कालांतर में शंकराचार्य जी ने भज गोविंदम ,भज गोविंदम गुरु मध्य गा कर यह स्थापित किया है कि प्रभु प्राप्ति का सरल ,सहज मार्ग भक्ति मार्ग है l मीरा के भक्ति मार्ग की परिणति तो देखिये -संत महंत कीन्हें पण तू जीवत री श्याम समां गई री मीरां lभक्ति मार्ग आनंद से परिपूर्ण होता है l भौतिक जगत दुःख से भरा है l कहा गया है -"ब्रह्म सत्यम ,जगत मिथ्या "l मानव जीवन में अध्यात्म एवं आधिभूत का मिश्रण आपको प्रभु की प्राप्ति करा सकता है l लेकिन हम भीतिक जगत में हैं और मन के अधीन हमारा शरीर है l भक्ति मार्ग में साधना के माध्यम से हम प्रेम की परिणति आनंद के रूप में करें l कलियुग में भगवान को कैसे प्राप्त करें ?तो देखिए -कलियुग केवल नाम अधारा ,सुमिर सुमिर नर उतरहिं पारा l
- डाँ. छाया शर्मा
अजमेर - राजस्थान
हमारे धर्म ग्रंथों में नवधा भक्ति का उल्लेख मिलता है । श्रीमद्भगवद्गीता में भगवान कृष्ण ने, जिन नौ प्रकार की भक्ति का वर्णन किया है, वे ; और रामचरित मानस में भगवान राम ने, शबरी को जो नवधा बताई उनमें, बहुत कुछ समानता है । दोनों का सार यह है कि-
श्रवण
कीर्तन 
स्मरण 
अर्पण 
वंदन
दास्य भाव
सखा भाव
चरण सेवा
आत्म निवेदन 
इनमें से , एक में भी सिद्धि प्राप्त हो जाए , तो ईश्वर की प्राप्ति हो सकती हैं ।इसके अतिरिक्त सकाम और निष्काम   भक्ति का भी वर्णन है ।
*भक्तों के भी चार प्रकार बताए गए हैं-*
*आर्त-* जो कष्ट  निवारण के लिए भक्ति करता है ।
*जिज्ञासु-* जो ईश्वर की परख करने के लिए भक्ति करता है ।
*अर्थार्थी-* धन वैभव की आकांक्षा से भक्ति करने वाला ।
*ज्ञानी -* ज्ञानप्राप्ति हेतु भक्ति करने वाला ।
वर्तमान में मनुष्य की मानसिक स्थिति में विचलन, और विज्ञान के आविष्कार के कारण, मनुष्य स्वयं को सर्वेसर्वा मान बैठा है ;  न तो उसके पास समय है, न धैर्य है ; मन की  शुचिता है, न आस्था है ; और न ही ईश्वर को पाने की चाह ।
वह तो बस, वर्तमान को किसी तरह जी लेना चाहता है । हर ओर छल, कपट, धोखा, झूठ, हिंसा आदि का ही बोलबाला है । हर कोई दिग्भ्रमित है । यदि प्रभु को पाने की चाह हो, तब तो भक्ति के मार्ग पर चलने का विचार उचित है  ; किन्तु आज हर कोई, खुद ही खुदा बन बैठा है । आजकल हवा में *भक्त* शब्द खूब तैर रहा है । किसी राजनीतिक दल विशेष के समर्थकों के लिए व्यंग्य स्वरुप इस शब्द का प्रयोग होता है । वास्तव में, ये जो भक्त है ; सर्वप्रथम तो, वो ईश्वर के भक्त नही । दूसरे ये सकाम भक्त हैं । स्वार्थवश किसी के प्रति भक्ति का प्रदर्शन मात्र  करते हैं । *जहाँ लाभ,वहाँ मैं* वाली बात है । खैर । यह बात शत-प्रतिशत सत्य है, कि  ईश्वर को प्राप्त करने का सबसे बड़ा मार्ग भक्ति ही है ; किंतु वर्तमान में या कलयुग में यह संभव नहीं , कि घंटो धूनी रमा कर बैठा जाए । दूसरा छद्म रूप में बाबाओं ने जो धर्म की दुकानें सजा रखी हैं, और वहाँ जो अनाचार पनप रहे हैं,उससे लोगों की धार्म के प्रति आस्था खंडित हुई है । किसी पर भी विश्वास करना कठिन हो गया है  । वर्तमान समय को देखते हुए, कहा जा सकता है कि-
*घट घट में अर्थात हर आत्मा में ईश्वर का निवास है* 
अतः ,सत्यता, ईमानदारी, सेवा और परोपकार ही सबसे बड़ी भक्ति है ; और  उससे प्राप्त आत्मसंतुष्टि ही, ईश्वर प्राप्ति  ।
- वंदना दुबे,
  धार - मध्य प्रदेश

" मेरी दृष्टि में "  भक्ति से इंसान में सकारात्मकता पैदा होती है ।  सकरात्मक इंसान ही कामयाबी हासिल करता है । भक्ति के बिना इंसान का कोई स्वरूप नहीं है । भक्ति ही इंसान को देवता बना देती है ।
                                                - बीजेन्द्र जैमिनी




Comments

  1. परिचर्चा में सभी ने मनःपूर्वक विचार व्यक्त किए हैं। भक्ति में मूलतः समर्पण है। समर्पण होगा तो शक्ति दोगुनी हो जाएगी। अतः भक्ति में शक्ति कहां जाता है।

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