क्या कोई भी प्रतिभाशाली इंसान जन्म से होता है ?

प्रतिभाशाली व्यक्ति कोई साधारण नहीं होता है । वह लगनशील अर्थात् ईमानदारी से मेहनत करने वाला इंसान होता है । जो अपने कर्मों के बल पर प्रतिभा को प्राप्त करता है । यही इन का भाग्य होता है। यही कर्म का चमत्कार है । यही " आज की चर्चा " का प्रमुख उद्देश्य है । देखते हैं आये विचारों कों : -
नहीं, मेरे विचार में प्रतिभा जन्मजात नहीं होती है ।
मानव  एक सामाजिक प्राणी है । समाज के बीच में रहकर  अनुकरण के द्वारा ही व्यक्ति बहुत कुछ सीखता है ।
कुछ गुण भले ही मनुष्य के मन में सुप्तावस्था में हो सकते हैं ।
 किंतु बेहतर परवरिश और विशेष देखभाल के द्वारा उन गुणों को निखारना चाहिए । सजग निरीक्षण और अभ्यास के द्वारा बालकों को प्रतिभाशाली अवश्य ही बनाया जा सकता है ।
परिजनों को चाहिए कि जिस क्षेत्र में बालक की प्रतिभा मुखरित हो । उसी ओर बढ़ने के लिए प्रेरित करना चाहिए ।
-  सीमा गर्ग मंजरी
मेरठ - उत्तर प्रदेश
भारत में 16 संस्कारों में से एक गर्भाधान संस्कार भी है । प्राचीनकाल  में विवाह का उद्देश्य, अच्छे पुत्र को जन्म देना ही होता था; इसलिए उसके गर्भ धारण से लेकर, उसके युवा होने तक उसको दिये जाने वाले संस्कारों पर, विषेश ध्यान दिया जाता था । तीन माह का गर्भस्थ शिशु सीखने लगता है। इसीलिए गर्भवती स्त्री के लिये अच्छे वातावरण, अच्छे साहित्य के अध्ययन, मन प्रसन्न रखने वाले कार्यों को महत्व दिया जाता था ; ताकि स्वस्थ और प्रतिभाशाली शिशु का जन्म हो । शिशु को कुछ गुण तो माता-पिता के गुणसूत्रों से प्राप्त होते और कुछ वातावरण और परिवेश से । छोटे बच्चों में कोई विशेष गुण देखकर, हम अचंभित हो जाते हैं ; और अनायास ही मुँह से निकल पड़ता है - यह तो ईश्वर की देन है ! या किसी पूर्व जन्म प्रभाव है ! वास्तव में किसी बच्चे में कुशाग्र बुद्धि, नृत्यकला और संगीत की समझ, वाकपटुता, शिक्षा और विज्ञान के प्रति झुकाव, खेल विशेष की योग्यता आदि गुण जन्म से ही परिलक्षित होने लगते  हैं । किसी भी बालक के विकास को जितना वंश से  आयातित गुण प्रभावित करते हैं, उतना ही वातावरण भी प्रभावित करता है । कई बार देखने में आता है एक सामान्य व्यक्ति भी अपनी  मेहनत और लगन से, किसी कार्य में सिद्धहस्त हो जाता है । फिर भी कहना चाहूँगी कि, एक ही माता-पिता की संतानों में रुचि, स्वभाव एवं आदतों की भिन्नता पाई जाती है , उनकी आईक्यू में भी भिन्नता होती है । लोगों की यह राय है कि बालक के गुण और प्रतिभा को पहचान कर उसे विकसित किया जाना चाहिए । पर जो गुण जन्मजात ही होंगे वही द्रष्टव्य होंगे न ! क्योंकि बाद में भी वह उन्ही चीजों की ओर आकर्षित होगा जो उसके स्वभाव और रुचि के अनुकूल हों । अतः मैं कहूँगी- हाँ,इंसान जन्म से ही प्रतिभाशाली होता है ।
- वंदना दुबे 
  धार - मध्य प्रदेश 
हर इंसान में कुछ कुछ विशेष गुण होते हैं आवश्कता है पहचानने की है । आप अब तक सफ़ल हुए लोगों में से किसी का भी इतिहास उठा कर देख लीजिये | आप पायेंगे कि उनमें एक बात समान है, और वह यह है कि उन्होंने अपनी प्रतिभा को पहचाना और केवल उसी पर ध्यान दिया |बहरहाल सफ़लता का सार केवल इसी बात में निहित है कि अपनी विशेष प्रतिभा का पता लगाना और उस के विकास पर पूरा ध्यान देना | अब आप सोच रहे होंगे कि आपके अंदर ऐसी कौन सी विशेषता है जो आपको दूसरों से भिन्न करती है | क्या कोई ऐसी विशेषता है भी ? तो मैं आपसे कहूँगा कि दुनिया में हर इन्सान के अन्दर कोई न कोई प्रतिभा ज़रूर होती है |हम में से ज्यादातर लोगों के लिए अपनी प्रतिभा को ढूंढ पाना एक कठिन काम होता है , या यूँ कहें कि शायद वे इस विषय पर ध्यान ही नहीं देते | प्रकृति ने हम सभी को अलग अलग बनाया है | सभी एक दूसरे से भिन्न हैं और सभी के अन्दर एक विशेष गुण होता है | अपने अन्दर की विशेष योग्यता को समझने के लिए पहले ज़रूरी है कि हम यह जानें कि आखिर ये विशेष गुण या प्रतिभा क्या होती है | आईये, विशेष प्रतिभा के चारित्रिक गुणों को समझें |कोई ऐसा कार्य जो आप दूसरों की अपेक्षा अधिक निपुणता से करते हैं, यानि की आपका टेलेंट |कोई भी ऐसा काम जो आप पूरी लगन और मेहनत के साथ करते हैं |जिसे करने में आप कभी थकते नहीं और इसका भरपूर आनंद उठाते हैं |जो आपको और आपके आसपास के लोगों को उत्साहित करता हैं |
जिसे आप कुशलता, और अधिक कुशलता के साथ करना चाहते हैं और आपको उसमें सुधार की भरपूर संभावनाएं दिखाई देती हैं |हम में से ज्यादातर लोग अपनी योग्यताओं और प्रतिभाओं का विकास करने की बजाय उन्हें दबाते हैं | याद कीजिये अपने बचपन के दिन, आप में से कुछ लोगों को संगीत बहुत पसंद था, कुछ को चित्रकारी, कुछ को क्रिकेट खेलना और शायद कुछ को अभिनय करना | ऐसा नहीं है की आपको सिर्फ ये पसंद ही था बल्कि कुछ ने तो इन क्षेत्रों में अवार्ड्स भी जीते | सभी लोग आपकी प्रशंसा करते थे और कहते थे की तुम बड़े होकर इस क्षेत्र में बड़ा नाम करोगे | पर शायद समय के साथ हमने उन प्रतिभाओं को दबा दिया |
अपने को जाने प्रतिभा पहचाने और विकसित करे 
- अश्विनी पाण्डेय
मुम्बई - महाराष्ट्र
हां, प्रतिभा तो जन्म से ही होती है। वो कहते हैं न कि
"होनहार बिरवान के होत चिकने पात"
 किंतु उस जन्मजात प्रतिभा को और भी निखारने के लिए हमें अत्यधिक मेहनत की आवश्यकता होती है। अपनी जन्मजात प्रतिभा को मेहनत और लगन से निखार कर ही हम प्रगति के पथ पर अग्रसर हो सकते हैं। बिना परिश्रम प्रतिभा भी किसी काम की नहीं होती है। यदि हम अपनी जन्मजात प्रतिभा के भरोसे निश्चिंत होकर बैठे रहेंगे तब हमारी वह प्रतिभा भी धीरे-धीरे समाप्त हो जाएगी। इसलिए प्रतिभा जन्मजात भी हो तो भी मेहनत के बिना सफलता किसी को नहीं मिल सकती है। किंतु इतना अवश्य है की यदि किसी में प्रतिभा जन्मजात नहीं है तब भी वह इंसान अपनी मेहनत और लगन के बल पर अपने में प्रतिभा को उत्पन्न कर सकता है और कठिन परिश्रम से सफलता की प्राप्ति कर सकता है।
        -  रूणा रश्मि
        राँची - झारखंड
कहावत है कि पूत के पैर पालने में ही दिख जाते हैं।लेकिन मनुष्य का स्वभाव परिवर्तनशील है ।हर व्यक्ति के स्वभाव में समय, परिस्थिति और आसपास के परिवेश का भी प्रभाव पड़ता है ।जैसे-जैसे व्यक्ति बड़ा होता जाता है उसकी सोच, आवश्यकताएँ भी बदलती रहती हैं ।आवश्यक नहीं कि जो बचपन में विलक्षण बुद्धि हो, युवावस्था में भी वैसा ही रहे ।इसका हम निश्चित आंकलन नहीं कर सकते ।अनेक बार देखा गया है कि जो बच्चे बचपन में कमजोर होते हैं वे बड़े होकर विलक्षण प्रतिभा के धनी हो जाते हैं ।कई बचपन में प्रतिभाशाली होते हैं लेकिन बड़े होकर फेलियर रहते है।इसलिए कोई भी प्रतिभाशाली इंसान जन्म से होता है यह कहना कठिन है।
- सुशीला शर्मा
जयपुर - राजस्थान
तथ्यों के आधार पर देखे तो व्यक्ति की प्रतिभा उसको अंशानुगत प्राप्त होती हैं,परन्तु उसे पहचान कर निखारना पड़ता हैं, यह काम लगन और मेहनत के बिना संभव नही हो पाता।कोई कितना भी प्रतिभावान क्यो न हो, उसे अपनी प्रतिभा को निखारने के लिए सतत प्रयास करना पड़ता हैं, ओर तभी उसको लक्ष्य की प्रति होती हैं।अन्यथा उसके प्रतिभा को कोई मोल नही।
       वन्दना पुणतांबेकर
इन्दौर - मध्यप्रदेश
कुछ लोगों में , जन्म जात प्रतिभा होती है , कुछ मेहनत से प्रतिभा पैदा करते है  प्रत्येक व्यक्ति में कोई न कोई क्षमता या प्रतिभा अवश्य होती है, पर हो सकता है कि वह सही समय पर उसे पहचान कर, उसका पूरा सदुपयोग न कर पाए। प्रत्येक व्यक्ति में कोई न कोई जन्मजात प्रतिभा अवश्य होती है। यदि हम उसे पहचान सकें तो फिर जीवन में कोई भी आगे बढ़ने में बाधा नहीं बन सकता। कई बार हम इसी भय से कोई नया कार्य नहीं करना चाहते कि कहीं हम असफल न हो जाएं। यह केवल एक बहाना है, जो आपको किसी भी नए सौदे में सफल नहीं होने देता। हमें स्वयं से निरंतर पूछते रहना चाहिए कि अपनी प्राकृतिक प्रतिभा के पहचानने से हमें क्या लाभ या हानि हो सकती है। एक बार जब यह एहसास हो जाए कि प्राकृतिक प्रतिभा को पहचानने से हमें कोई हानि नहीं होगी तो उसके बाद यह देखना चाहिए कि प्राकृतिक झुकाव को न पहचान कर हम क्या गंवा रहे हैं। हमें यह भी देखना होगा कि जीवन में दूसरों पर दोषारोपण करते रहने से कभी कोई हल नहीं मिलता। हमें स्वयं ही अपनी भूलों का परिणाम भुगतना होता है। छिपी प्रतिभा को पहचानने के लिए यह सोचें कि क्या करने से आपको प्राकृतिक रूप से आनंद व प्रसन्नता प्राप्त होती है। यह प्रबंधन, सार्वजनिक रूप से भाषण देना, किसी भी काम को लगन से करना, खाना पकाना, अच्छे वस्त्र पहनना, जीवन को व्यवस्थित व सरल बनाना, सदैव प्रसन्नचित्त रहना, दूसरों से सहजता से पेश आना या अपना चीयर लीडर बनने जैसी कोई भी बात हो सकती है। प्रतिभा की पहचान का एक तरीका यह भी हो सकता है कि आप नए विचारों को मुक्त मन से स्वीकारें व उनके लिए अपनी प्रतिक्रिया देखें। जिन कामों को आप पूरी सहजता व सरलता से करते हैं, उन्हें अनदेखा न करें, उनका मोल जानें। यदि आप किसी काम को बड़ी आसानी से (जैसे सांस लेना) कर पाते हैं तो इसका अर्थ है कि आप उसमें दक्ष हैं। इससे आपको अपनी प्रतिभा पहचानने में सहायता मिलेगी। हो सकता है कि आपको यह बड़ी बात न लगे, पर कोई दूसरा इसे बड़ी उपलब्धि मान सकता है। आपको हमेशा अपनी पूरी प्रतिभा को सपनों को साकार करने के लिए प्रयोग में लाना है। मन ही मन सफलता को घटित होते देखना है। समय-समय पर स्वयं से पूछें कि जीवन में किन घटनाओं या परिस्थितियों से आप कुंठित होते हैं, फिर उन्हें जीवन से घटाने का प्रयास करें। हो सकता है कि इसमें समय लगे, किंतु यदि ऐसा न किया तो जहां हैं, वहीं खड़े रह जाएंगे। ऐसा करने के बाद ही अपनी क्षमताओं का संपूर्ण उपयोग कर पाएंगे।
हम सभी कम से कम, अवचेतन तौर पर तो जानते ही हैं कि किस कार्य में श्रेष्ठ प्रदर्शन दे सकते हैं। वही हमारी वास्तविक प्रतिभा है। हमारी श्रेष्ठ प्रतिभा इतनी प्राकृतिक होती है कि उसे पहचान पाना थोड़ा कठिन होता है, किन्तु कोई दूसरा हमारे लिए यह कार्य नहीं कर सकता। हमें स्वयं देखना है कि जो कार्य हमारे लिए बहुत सहज व सरल है, वह क्या मोल रखता है। हो सकता है कि उसी में हमारी जन्मजात व प्राकृतिक प्रतिभा छिपी हो। दुर्भाग्यवश कभी-कभी हम ही दूसरी तरह के कामों में लिप्त होकर, अपनी प्रतिभा को अनदेखा कर जाते हैं। कुछ कार्य ऐसे हैं, जो हमें मुश्किल लगते हैं, पर दूसरों के लिए आसान होते हैं, प्रयत्न यही हो कि हम किसी बंधी-बंधाई लीक पर चलने की बजाए ऐसे वातावरण को प्रोत्साहित करें, जिसमें हमारी प्राकृतिक प्रतिभा खुल कर सामने आ सके। हम उसके बल पर समाज या देश की कुछ सेवा कर सकें। हमारे पास किसी भी कार्य को उचित रूप से करने का अच्छा व प्रभावी वातावरण होना चाहिए। वहां अच्छे साधन होने के साथ-साथ दूसरों से बेहतर संबंध भी होने चाहिए।
कुछ काम ऐसे हैं, जिन्हें आप अपनी प्राकृतिक प्रतिभा के बल पर कर पाएंगे, किंतु कुछ के लिए आपको दूसरों के सहयोग, सहायता व मार्गदर्शन की आवश्यकता होगी। अपनी पूरी प्रतिभा व क्षमता को बाहर लाने का पूरा प्रयास करें, ताकि अपने चुने गए क्षेत्र में श्रेष्ठ प्रदर्शन का अवसर हाथ से न निकल जाए। मेहमनत , लगन और दृढ़ संकल्प के साथ आप कोई काम करने की ठानेंगे तो सफलता मिलेगी आप की प्रतिभा भी निखर कर आयेगी , 
- डॉ अलका पाण्डेय
मुम्बई - महाराष्ट्र
कुछ प्रतिभा इंसान की जन्मजात होती है परन्तु यह निखरती, जन्म लेने के पश्चात,निरंतर प्रयास और अभ्यास के बाद ही है ।उदाहरण के तौर पर यदि किसी की आवाज मधुर है,लेकिन वह एक प्रतिभाशाली गायक अपने निरंतर अभ्यास और साधना के बदौलत ही बनता है । अतः हम कह सकते हैं कि इंसान में प्रतिभा जन्म से हो सकती है,मगर उसे प्रतिभाशाली होने के लिए निरंतर अभ्यास और प्रयास करना होता है ।अपनी प्रतिभा की पहचान और उसे निखारने के लिए आत्मविश्वास भी होना जरूरी है ।
 - रंजना वर्मा
रांची - झारखण्ड
सभी लोगों में  जन्मजात प्रतिभा होती है । सभी अलग अलग तरह से प्रतिभाशाली होते है । कुछ लोग अपनी प्रतिभा को समय रहते पहचान जाते हैं और मेहनत के बल पर उसको निखार लेते है । कुछ की प्रतिभा वक़्त और हालात के आगे दब जाती है । जन्मजात प्रतिभा होते हुए भी मेहनत बहुत ज़रूरी है
- नीलम नांरग
हिसार - हरियाणा
प्रतिभा ,इंसान में उपलब्ध एक अलौकिक और नैसर्गिक विशेषता है जो  सामान्यतः हरेक में कोई न कोई और  किसी न किसी रूप में समाहित रहती है।यह प्रयास और अवसर से निखरती भी है और प्रदर्शित भी होती है। ये दोनों के अभाव में यह उपलब्धि स्वयंमेव कमजोर और नष्ट भी हो सकती है। अतः ये तो माना ही जाना उचित और यथार्थ भी होगा कि इंसान में प्रतिभा, जन्म के साथ निहित होती है । अनेक ऐसे उदाहरण देखने मिलते हैं, जिनमें बच्चे में बचपन में ही असाधारण प्रतिभा देखने मिली है। उसका श्रेय उनके पालकों, परिजनों और फिर संबंधित संस्थाओं को दिया जाना चाहिए। ये,वे ही लोग हैं जिन्होंने बच्चे की प्रतिभा को जल्द पहचान लिया। सामान्यतः ऐसे वे लोग होते हैं जो उस प्रतिभा के गुणी होते हैं और जब वे ऐसे किसी छुपे प्रतिभाशाली के सम्पर्क में  आते हैं तो उनको उसे परखने में देर नहीं लगती। इस विषय को लेकर एक स्लोगन याद आ रहा है, जो इस मंतव्य को और भी सरल कर देगा। अनेक प्रतिष्ठानों में लिखा मिलता है " गाड मेक ए मेन,आई मेक ए जैंटलमैन " । उस लिखे का इस संदर्भ में समझा जि सकता है।" प्रतिभा ईश्वरीय है और उसे सजना- संवारना इंसान का।" आस्तु।
- नरेन्द्र श्रीवास्तव
 गाडरवारा - मध्यप्रदेश
बिल्कुल प्रतिमा जन्मजात होती है और उसी के कारण रुचि पैदा होती है । बड़े बड़े खिलाड़ी और कलाकार इसका उदाहरण हैं ।
- रेखा श्रीवास्तव
कानपुर - उत्तर प्रदेश
जन्म से ही हर व्यक्ति के अंदर कोई न कोई प्रतिभा छुपी होती है ;  बस आवश्यकता है उसे पहचान कर निखारने की । जिस प्रकार हीरा  कोयले का ही एक रूप है  जब उसे जौहरी मिलता है तो वो उसे तराश कर अनमोल बना देता है और हीरा चमकने लगता है । इसी तरह सोना और चाँदी भी एक धातु हैं  इनसे आभूषण बनाने हेतु इन्हें ठोका पीटा जाता है यहाँ तक कि आग में गलाया जाता है फिर  इससे मनचाहे आकार  में ढाल कर आभूषण बनाते हैं । पत्थर से भी जीवंत मूर्तियाँ बन जाती हैं बस एक कुशल कारीगर होना चाहिए जो उसे तराश कर उसमें प्राण भर दे । अक्सर सुनने को मिलता है कि अमुक व्यक्ति के पास गॉड गिफ्टेड प्रतिभा है ;  पर उस बच्चे या उस व्यक्ति को भी अपनी प्रतिभा को लगातार निखारना पड़ता है । यदि व्यक्ति मन में  ठान ले कि उसे कुछ कर गुजरना है तो दुनिया की कोई ताकत उसे रोक नहीं सकती । रहीम का ये दोहा हमें प्रेरणा देता है -
करत करत अभ्यास के,  जड़मति होत सुजान ।
रसरी आवत जात है, सिल पर पड़त निशान ।।
अंततः यही कहा जा सकता है कि हम सभी जन्म से प्रतिभावान है बस अपनी प्रतिभा को पहचान कर श्रेष्ठ गुरु के निर्देशन में निरंतर अभ्यास करते रहना चाहिए ।
- छाया सक्सेना प्रभु
जबलपुर - मध्यप्रदेश
प्रतिभा  जन्मजात  होती  है पर उस प्रतिभा  को  निखारने  मे परिवार  समाज  का अतुलनीय  भूमिका होता  है । यदि  उचित  परिवेश नही  मिला  तो  कितनी  प्रतिभा  सुषुप्त  रह जाती है । कहा  ही  गया  है  कि  यह  बच्चा  gifted  child है। होनहार  बिरवान  के होते  चिकने  पात । यह बिल्कुल  ही  सत्य  है सामान्य  से बिलकुल  अलग  होते  है।वैसे  हर इंसान  मे  कुछ  न कुछ  विशेष  गुण  अवश्य  ही होते  है सिर्फ  एक  जौहरी  की आवश्यकता  होती  है जो उसे पहचान  कर तराश  सके । तराशने  के बाद  ही कोयला  हीरा  बन  पाता है
डाँ. कुमकुम वेदसेन
मुम्बई - महाराष्ट्र
पूत के पांव पालने में ही दिखते हैं।
कभी-कभी कर्मशील व्यक्ति अपनी मेहनत और लगन से 
भी प्रतिभाशाली इंसान बन जाता है उसकी अच्छी संगत, महापुरुषों का जीवन से शिक्षा प्राप्त करके व प्रतिभाशाली बन सकता है। अभ्यास करते-करते मूर्ख भी रोज वही चीज पड़ेगा तू पंडित बन जाएगा ।इतिहास मैं अनेक उदाहरण है।
करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान रसरी आवत जात ते सिल पर परत निशान। हर इंसान के अंदर कुछ ना कुछ प्रतिभाओं और अच्छाई सबको देखकर भेजता है इस दुनिया में बस उसको निखारने के लिए एक पारखी नजर चाहिए होती है उसके पीछे किसी ना किसी का योगदान होता है जो उसकी इस प्रतिभा को पहचान कर उसे निकालता है यह गुरु उसकी मां या उसके शिक्षक कोई भी हो सकता है। हमें अपनी प्रतिभा को निखार कर जीवन में आगे बढ़ना चाहिए मेहनत कर रहे हैं और प्रतिभावान हैं तो 1 दिन आपको सफलता जरूर मिलेगी
जन्म से आपके अंदर लाख प्रतिभा हो और आप मेहनत ही ना करें तो आपके अंदर एक अच्छा इंसान ना हो तो आपकी प्रतिभा धूमिल पड़ जाएगी। प्रतिभा को दिखाने के लिए दिन रात लक्ष्य प्राप्ति के लिए मेहनत करनी पड़ती है। कर्म ही पूजा है सिद्धांत पर चलेंगे तभी आप प्रतिभावान बनेंगे।
- प्रीति मिश्रा
 जबलपुर - मध्य प्रदेश
प्रतिभा से तात्पर्य अपूर्व बौद्धिक शक्ति या फिर किसी विषय, परिस्थिति को यकायक समझ रखने वाली असाधारण बुद्धि ही प्रतिभा है। ऐसी जन्मजात प्रतिभा के धनी बिरले लोग ही होते हैं, ऐसे लोग परिस्थितियों के भी दास नहीं होते। साहित्य के क्षेत्र में सूर ,कबीर के साथ-साथ संगीत के क्षेत्र में जाने-माने स्वर सम्राट रविंद्र जैन की प्रतिभा जन्मजात ही है। अधिकांश प्रतिभाएं अर्जित ही होती हैं; जो अपनी साधारण बुद्धि, शारीरिक- मानसिक क्षमता तथा परिस्थिति के अनुकूल होने पर परिश्रम के उपरांत विकसित होकर प्रतिभाशाली लोगों की श्रेणी में गिनी जाती है। आज के दौर में तो 99%, 100% अंक लाने वाले सैकड़ों विद्यार्थी प्रतिभाशाली ही कहे जाएंगे। जन्मजात प्रतिभाओं की संख्या बाढ़ स्वरूप नहीं होती।
- डॉ. रेखा सक्सेना
मुरादाबाद - उत्तर प्रदेश
प्रतिभा शब्द का अर्थ है विलक्षण बौद्धिक शक्ति ।
वह विशिष्ट और असाधारण मानसिक शक्ति या गुण जिससे मनुष्य किसी काम में बहुत अधिक योग्यता के कार्य कर दिखलाता है। जिस में बौद्धिक क्षमता ज्यादा होती है । वही इंसान प्रतिभासंपन्न होता है । जी हाँ प्रतिभाशाली इंसान जन्म से ही होता है ।  किसी भी बच्चे में जन्मजात तरह - तरह की प्रतिभा होती है ।प्रतिभा का आरक्षण कोटा नहीं होता है । विद्या की तरह इंसान से प्रतिभा को कोई नहीं छीन सकता है । नहीं कोई चोरी कर सकता है । न ही अपने दर्द , पीड़ा को दूसरे को बाँट नहीं सकता है । उसी तरह प्रतिभा को बाँट नहीं सकते हैं । हमारे धर्म ग्रन्थ , इतिहास साक्षी है । अनेक प्रतिभाशाली  सन्त , महात्माओं , लोगों ने बचपन से ही अजूबे , चमत्कार दिखाएँ  हैं । असंभव को संभव कर दिखाया है । प्रभु राम , श्री कृष्ण की बाल लीलाएँ उनकी  विलक्षण  प्रतिभाओं का बखान करती हैं । श्रीकृष्ण जी का जमुना जी के कालिया नाग  को मार के गेंद का  जमुना से बाहर लाना ।  उनकी प्रतिभा का परिचायक है । बाल उम्र में राजसी ठाठ-  बाट छोड़के राम का  14 साल के लिए तपस्वी रूप में वनवास में जाकर राक्षसों को मार के सुराज्य स्थापित करना ,विभीषण राक्षस का राममय होना ।उनकी मेधावी प्रतिभा को दर्शाता  है ।  बचपन में स्वामी विवेकानन्द जी का  कोई भी किताब को एक बार में पढ़के पूरी की पूरी याद हो जाना । ताउम्र भारत माता के लिए  समर्पित रहे । अमेरिका के धर्म सम्मेलन में जाकर सर्वश्रेष्ठ वक्ता के रूप दिया भाषण सारी दुनिया ने ताली बजाकर स्वागत किया था । सभी क्षेत्रों जैसे रासजनीति , कला , साहित्य , संगीत , विज्ञान आदि मेंबेक से एक प्रतिभाशाली लोग हुए हैं ।जिनका लोहा दुनिया ने माना है । 37 वर्ष की उम्र में  अशोक ने अपने पिता समुद्रगुप्त की मृत्यु के बाद 22 वर्ष  की उम्र में राजपाट संभाला था ।और अशोक ने 37 वर्ष की उम्र में  कलिंग का युद्ध जीत के कभी भी युद्ध न करने का प्रण लिया था । सिकन्दर 20 वर्ष की उम्र में सिंहासन पर बैठकर विश्व विजय का सपना देखा था ।
संगीत के क्षेत्र में लता जी अपनी सुरीली आवाज का कमाल 13 साल की उम्र से दिखाया । वर्ष 1942 ई में लताजी के पिताजी का देहांत होने  से  (1948) में पार्श्वगायिकी में कदम रखा तब इस क्षेत्र मे राजकुमारी , नूरजहां आदि का नाम था ऐसे में लता जी को अपनी पहचान बनाना इतना आसान नही था.आज सारी दुनिया उनके नाम को जानती है ।आदि शंकराचार्य जी ने 15 वर्ष की आयु में समस्त वेद - वेदांगों का अध्ययन कर लिया था ।16वर्ष में सन्यास ले के देश भ्रमण किया ।  32 वर्ष की आयु में भारत की चार दिशाओं में तीर्थ मठ की स्थापना करके विविधता में एकता , एक भारत श्रेष्ठ भारत की मिसाल है । हेमामालिनी की नृत्य , अभिनेत्री की प्रतिभा कौन नहीं जानता है । आध्यात्मिक दृष्टि से पिछले  जन्म के कर्म संस्कारों से   इस जन्म में प्रतिभा  मिलती है ।
 निष्कर्ष यही निकलता है । मेधावी मानव को पूर्वजन्म के   संचित संस्कारों का इस जन्म में लाभा मिलता है ।
प्रतिभा का होता नहीं  , आरक्षण  सरकार ।
जन्मजात अर्जित  करें , पूर्व जन्म संस्कार ।
- डॉ मंजु गुप्ता 
 मुंबई - महाराष्ट्र
व्यक्ति जन्म से प्रतिभाशाली तो होता है परंतु उसके बाद पालन-पोषण पर निर्भर करता है। जैसे कहते हैं कि यदि बीज उत्तम क्वालिटी का है तो फल भी उतना ही बढ़िया होगा लेकिन उस फल को सही वातावरण न मिलने पर उसकी संभाल सही तरीके से ना हो तब बीज की उत्तम क्वालिटी का क्या अर्थ रह जाता है? जन्म से ज्यादा पालन-पोषण प्रतिभाशाली बनाता है। जब पैदा होने के बाद बच्चे को कहीं गुरुकुल आदि में भेजा जाता है तो वह प्रतिभा संपन्न होकर लौटता है। मैं स्वयं जब पहली बार हारमोनियम बजाने लगी तब बायाँ हाथ आगे बढ़ाया तो मेरे संगीत गुरु जी ने पूछा कि पहली बार बजा रही हो? मैंने कहा, 'जी'। तब उन्होंने मुझे दाएँ हाथ से बजाने को कहा और सही हुआ। कहने का भाव है कि जन्म के बाद जैसा वातावरण मिलता है वैसी ही प्रतिभा उस इंसान में विकसित होती है। उसे जैसे गढ़ा जाता है वह वैसा ही बनता है। बीज का काम फूटना है, जन्म लेना है और उसके बाद आकार तो पालने वाला देता है। हां! यदि इन्सान को जन्म और पालन दोनों में सही गुणवत्ता मिले तो उसे कहा जाता है जन्म से ही प्रतिभाशाली है पर प्रत्येक मनुष्य को नहीं कह सकते। 
- संतोष गर्ग
मोहाली - चंडीगढ़
कुछ लोग जन्मजात प्रतिभाशाली होते हैं। समय पाकर, श्रम के संयोग से उनकी प्रतिभा निखार पाती है। कुछ प्रतिभा व्यक्ति उचित वातावरण, घर के उत्साहवर्धक परिवेश और अपने माता-पिता के सही मार्गदर्शन से प्राप्त करता है और अपने श्रम से उसे निखारता है।  श्रम दोनों ही स्थिति में अपनी भूमिका का निर्वाह करके प्रतिभा को निखारता है। कई बार जन्मजात प्रतिभाएँ निर्धनता और उचित मार्गदर्शन के अभाव में काल कवलित हो जाती हैं और कई बार दृढ़ इच्छाशक्ति और भाग्य से मिले सहयोग और मार्गदर्शन से जन्मजात और अर्जित की हुई प्रतिभाएँ सफलता के शिखर पर पहुँचती हैं।
         तो प्रतिभाएँ जन्मजात भी होती हैं और अर्जित भी की जाती है। असाधारण श्रम उन्हें निखारता है।
- डा० भारती वर्मा बौड़ाई
देहरादून - उत्तराखण्ड
 हर बच्चा जन्म से ही प्रतिभाशाली होता है। प्रतिभा को वातावरण अध्ययन ,अभ्यास से  परिष्कृत किया जाता है ,अर्थात तराशा जाता है। हर बच्चा जन्म से जिज्ञासु होता है, न्याय का याचक होता है, सत्य वक्ता होता है, सही कार्य व्यवहार करना चाहता है। जैसा संस्कार देना चाहते हैं बच्चा वैसे ही हो जाते है।क्योकि बच्चो मे उपरोक्त गुण पाया जाता है। बच्चो मे जन्मजात प्रतिभाशाली स्तुसी पाया जाता है।जो अध्ययन ,अभ्यास से प्रकाशित होता है। अतः इंसान जन्म से प्रतिभाशाली होता है।
- उर्मिला सिदार
रायगढ़ - छत्तीसगढ़
इसमें एक बात मैं कहूंगी कि बहुत से बच्चों में वंशानुगत प्रतिभा आती है और इसे तो विज्ञान भी स्वीकारते है कि सात पीढ़ी तक के गुण बच्चों में आते हैं अच्छे हो या बुरे हां ! किंतु यदि बच्चा प्रतिभावान है तो माता-पिता को उसकी प्रतिभा दिखाई दे जाती है फिर उसे निखारना उनका काम है कलाकार हो किसी भी क्षेत्र में संगीत ,शिल्पकार , ड्रेस डिजाइनर वगैरह वगैरह अथवा खेल में रुचि ,शिक्षा के क्षेत्र में ,अथवा व्यापार व्यवसाय में रुचि है धीरे-धीरे उसके व्यवहार और रुचि से पता चल ही जाता है और हमें उसकी रुचि देखकर उसकी प्रतिभा को बढ़ाना है  किंतु साठ से सत्तर परसेंट पक्का है कि उसकी रुचि घर में पिता दादा को देखते हुए घर के वातावरण के अनुसार बन ही जाती है किंतु जरूरी नहीं है वर्तमान स्थिति में बहुत सी लाइन है जिसमें वह अपनी रुचि बताता है यदि उसकी रुचि खेल में है तो जरूरी नहीं वह पढ़ कर ही कुछ कर सकता है खेल में भी वह अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन कर सकता है ! जैसे क्रिकेट ,स्विमिंग ,तीरंदाजी ,कबड्डी ,टेबल टेनिस ,बैडमिंटन ,गोल्फ  आदि आदि! प्रतिभावान बच्चे रास्ते में आने वाली बड़ी से बड़ी कठिनाई को अपने संघर्ष से पार कर जाते हैं उदाहरण भीमराव आंबेडकर ---प्रतिभावान बच्चों की प्रतिभा सूर्य की तरह बादलों में छुप कर भी अपना काम करती अपनी चमक बादल के छटते मौका मिलते ही अपनी किरणे बिखेर घिरे बादलों के बीच से निकलकर प्रकाशवान हो ही जाती है !बहुत से बच्चों में देखा गया है इतनी प्रखर बुद्धि होती है कि कठिन से कठिन प्रश्न पूछने पर भी तुरंत जवाब देते हैं ,ड्राइंग अच्छी कर लेते हैं ,छोटी उम्र में गाना गाते हैं ,ढाई 3 साल में तो पापा गोदी में लेकर कंप्यूटर में काम करते हैं तो कंप्यूटर सीख जाते हैं किंतु उसकी यह प्रतिभा पिता भांप जाता है और उसे आगे बढ़ाता है ना कि बच्चा है कहकर छोड़ देता है ! इसे हम गॉड गिफ्ट कहते हैं किंतु इस गॉड गिफ्ट की प्रतिभा को पहचान कर उसे निकालना भी पड़ता है कुदरत ने हमें जीवन दिया है जीने के सभी साधन दिए हैं बाकी उसको कैसे उपयोग में लेना है वह तो हमें ही करना होगा !
अंत में कहूंगी प्रतिभा बचपन से हो अथवा वातावरण या वंशानुगत अथवा ईश्वर का प्रसाद बन मिली हो किंतु निखारना तो हमें ही होता है प्रतिभा हो अथवा खरा सोना ताप में  रहकर ही निकलता है।
- चन्द्रिका व्यास
मुम्बई - महाराष्ट्र
      आदरणीय प्रतिभा है ही कहां है?जो प्रतिभाशालियों पर चर्चा करें?इसलिए कौन जन्म से और कौन परिश्रम से प्रतिभाशाली बना प्रश्न ही पैदा नहीं होता?
      प्रतिभा एक शब्द है।जिसे मैंने कौडियों के दामों में बिकते देखा है।प्रतिभाशालियों को मैंने समाचार-पत्र बेचते देखा है।उदाहरण के लिए, बूट पालिस एवं बजरी छानते हुए भी मैंने देखा है।   मैंने देखा है प्रतिभाहीनों को ऊँचे-ऊँचे आसनों पर विरामान होते हुए।जिससे कहावत चरिथार्थ होते देखी है कि रामचंद्र कह गए सिया से, 'ऐसा कलयुग आएगा हंस चुगेगा दाना दुनका और कौवा मोती खाएगा।
                              - इन्दु भूषण बाली 
                             जम्मू - जम्मू कश्मीर 

" मेरी दृष्टि में " प्रतिभाशाली इंसान जिस परिवेश में पैदा होता है। उस का प्रभाव अवश्य पड़ता है । परिवेश वाली प्रतिभा को आसानी से प्राप्त कर लेती है । बाकी प्रतिभा को कही ना कहीं से अवश्य सिखना पड़ता है 
                                                    - बीजेन्द्र जैमिनी



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