क्या आत्मविश्लेषण से सफलता के द्वार खुलते हैं ?

              आत्मविश्लेषण से जीवन की अच्छाई - बुराई के बारें में जानकारी होती है । उसके बाद आगे का सफर से सफलता की उम्मीदें बहुत अधिक बढ जाती है । यही सब कुछ " आज की चर्चा " प्रमुख विषय है । चर्चा में आये विचारों को देखते हैं : -                           
आत्म विश्लेषण से ही तो हमने को बेहतर पहचानते है क्षमताओं को अपनी कमजोरी अपनी शक्ती पहचान कर सही दिशा में निरन्तर प्रगति के द्वार खोल सकते है । हर लम्हा हमें यह कहकर झकझोरता  है कि हम केवल सदियों पुराना इतिहास ही नहीं दुहराएं, स्वयं नया इतिहास भी रचें। हमें कोई औरों के नाम से न पहचाने, हम अपने संकल्प एवं कर्म से स्वयं को नई पहचान दें। खुद नए पदचिह्न स्थापित करें। अगर हमने आंखें खोलकर वस्तुस्थिति को देखना नहीं सीखा, वैचारिक आग्रहों से मुक्त होकर आत्मविश्लेषण नहीं किया, सही दिशा का निर्णय नहीं लिया तो फिर वह समय कभी नहीं आएगा जिसकी हमें प्रतीक्षा है। हर कोई स्वयं का नया भविष्य गढ़ सकता है जिसके इर्द-गिर्द सोच की मौलिक दिशाएं उद‌्घाटित होती हैं। इन दिशाओं के उद‌्घाटन के लिए संकल्प हमारी बहुत बड़ी शक्ति है और इसके द्वारा बहुत बड़ा परिवर्तन हो सकता है। शास्त्रों में तीन प्रकार की शक्तियों का उल्लेख किया जाता है- इच्छाशक्ति, संकल्पशक्ति और एकाग्रता की शक्ति। ये तीन शक्तियां कम या ज्यादा मात्रा में हर व्यक्ति के पास होती हैं। कोई भी इन तीन शक्तियों से हीन नहीं है। लेकिन सवाल इन्हें जागृत करने का है। संकल्प शक्ति जिसने जगा ली, सचमुच वह अजेय बन सकता है। व्यक्ति, समाज और राष्ट्र को जागृत करने के लिए संकल्प ही बड़ा आधार है। संकल्प सो गया तो राष्ट्र भी सोया रह जाता है। इसलिए संकल्प की दृढ़ता का प्रयोग सफल एवं सार्थक जीवन के लिए नितांत अपेक्षित है।
कुछ लोग संकल्प लेने से घबराते हैं। उन्हें यह ज्ञान ही नहीं कि संकल्प के बिना किसी का विकास नहीं हो सकता। उपनिषद में कहा गया- संकल्पजा सृष्टिः। कोई भी सृष्टि हुई है, नया निर्माण हुआ है तो संकल्प के द्वारा हुआ है। आप नया मकान बनवाते हैं, नई फैक्ट्री बैठाते हैं तो इसके पीछे आपका दीर्घकालिक चिंतन होता है। चिंतन के बाद उसके लिए संकल्पित होते हैं, तब कहीं जाकर वह संकल्प यथार्थ का आकार लेता है। जिसके मस्तिष्क में कल्पना नहीं, संकल्प नहीं वह मंजिल को नहीं पा सकता। जहां स्वीकृत संकल्पों का पालन नहीं होता,जहां दोहराया नहीं जाता वहां चारित्रिक न्यूनता आती है, शिथिलता आती है, व्यक्ति कमजोर होता जाता है। श्रम, संकल्प और सफलता इन तीनों की एक युति है। श्रम हो और संकल्प हो तो सफलता सुनिश्चित हो जाती है। इसमें प्रोत्साहन का भी बड़ा योग होता है। दूसरों के द्वारा और विशेषकर मार्गदर्शक की ओर से अगर प्रोत्साहन न मिले तो संकल्प के प्रति रुचि यथावत नहीं रह पाती और सफलता भी संदिग्ध हो जाती है। संकल्प करने वाले का उचित पुरुषार्थ नहीं है तो भी उसमें मंदता आ जाती है। पुरुषार्थ हो और विवेकपूर्ण पुरुषार्थ हो तो संकल्प फलवान बनता है। लेकिन यह जानना जरूरी है कि संकल्प प्रारंभ में गीली मिट्टी का लोंदा होता है। उसे घड़ा बनाकर तुरंत उसमें पानी नहीं भरा जा सकता। पानी तभी उसमें टिकेगा, जब घड़ा आंच में पक जाएगा। जीवन की कठिन परिस्थितियां उस आंच का काम करती हैं जिसमें पक कर घड़ा पानी को धारण करने और उसे शीतल करने की क्षमता हासिल करता है। हमें संकल्प को दृढ़ करना होता है। संकल्प का मूल्यांकन करें तो वह जीवन में बड़े बदलाव लाएगा। जीवन को अनूठा एवं विलक्षण बनाने के लिए हमें शस्त्र नहीं, संकल्प चाहिए। इसी से चिंतन, निर्णय और कार्यान्वय की प्रक्रिया में दूरियां मिटेंगी, शांति का उजाला होगा, सबके अभ्युदय का मार्ग प्रशस्त होगा । आत्मविश्रलेषण से ही हम निरन्तर सफलता के मार्ग प्रशस्त कर सकते है । 
- डॉ अलका पाण्डेय
मुम्बई - महाराष्ट्र
      प्रश्न का उत्तर जीवन के खुले प्राँगण में देना कुछ असम्भव सा है।चूंकि आत्मविश्लेषण करते-करते मेरी आयु के कई दशक बीत चुके हैं।किंतु उसके बावजूद सत्य यही है कि जीवन जीने के हर पड़ाव पर आत्मविश्लेषण अति आवश्यक है।वह भले सफलता हो या असफलता हो।  उल्लेखनीय है कि परिश्रम सफलता की कुंजी माना गया है।तब इस सच्चाई से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि श्रमिकों से अधिक परिश्रम कोई भी नहीं करता।फिर भी वह जीवन भर सफलता से कोसों दूर रहते हैं और उसे हर रोज़ कुआं खोद कर ही पानी नसीब होता है। नसीब अर्थात भाग्य कि बात करें तो भी इस बात पर आत्मविश्लेषण की अत्यंत आवश्यकता है कि दिल्ली में भाजपा द्वारा समस्त राजनैतिक योद्धाओं को चुनावी रण में उतारने के बावजूद भी उनकी सफलता के भाग्य का उदय नहीं हुआ अर्थात सफलता का द्वार नहीं खुला।इसलिए भाजपा के पास आत्मविश्लेषण के अलावा अन्य कोई विकल्प ही नहीं बचा है।  विकल्प की बात करें तो विकल्प के विकल्प भी सफल व्यक्तियों के ही दास होते हैं और असफल व्यक्तियों के पास आत्मविश्लेषण के विकल्प भी समाप्त हो जाते हैं।जैसे दशकों राज करने वाली कांग्रेस का दिल्ली चुनाव में खाता भी नहीं खुला।ऐसे में वह क्या आत्मविश्लेषण करेगी।  अत: सफलता प्रत्येक मानव, दल, देश इत्यादि के भाग्य में नहीं होती और ना ही सदा के लिए किसी की दास बनती है।जबकि आत्मविश्लेषण करना प्रत्येक पागल या बुद्धिमान मानव, धर्म, दल, मित्र, शत्रु, देश इत्यादियों का मौलिक अधिकार एवं कर्त्तव्य है।
- इंदु भूषण बाली
जम्मू - जम्मू कश्मीर
आत्म विश्लेषण का अर्थ करें तो आत्म का अर्थ खुद , स्वयं का , विश्लेषण का अर्थ अवलोकन करना । अपने मन के भीतर में देखना , निरीक्षण करना है । हमारे मन में व्याप्त वृत्तियों के अच्छाई , बुराई की जड़ को ढँढ़ना  है । अर्थात् हमारे में जितनी भी नकारात्मकता द्वेषपूर्ण भावनायें , गलत विचार पैदा हुए हैं  उस के कारण का पता लगाना है और उसे खत्म करना। यूँ कह सकते हैं कि आत्म निरीक्षण का अर्थ है अपने विचारों और कार्यों की समालोचना करना । हमें अपने विचारों जो गलत हैं और जो सही हैं । उन पर न्याय पूर्ण सम दृष्टि से जानना है । बुराइयाँ  हमारी गलत आदत , विचार पद्धति के कारण ही उत्पन्न  होती हैं। मनुष्य  जिस वस्तु को चाहता है । उसे किसी न किसी रूप में प्राप्त करना होता है । मनुष्य गलत काम करता है । तब वह यह नहीं सोचता कि यह काम गलत है । अपना हित सोचता है । क्षणिक सुख पाता है । जैसे किसी में नशे करने के लिए शराब पीने आदत पड़ गयी । तो उस व्यक्ति को शराब पीने से ही शांति , मन को अच्छा लगेगा । जबकि शराब हमारे स्वास्थ के लिये हानिकारक है । शराब पीने की अनिष्टकारी प्रवृति कहेंगे । यही हमारा पक्षपात रहित हो के आत्म मंथन करना है । खुद का निरीक्षण करना है । मानव अपना आत्मविश्लेषण करके बुराइयाँ दूर करने में सहायक  हो सकता है । अपने अंदर इसे नकार के ही शराब से छुटकारा पा सकता है ।  इस के  लिए सही सोच , संकल्प लेना होगा । यही अच्छाई  करने का संकल्प हमारा सद्गुण में आएगा । इस तरह से मानव दैनिक जीवन में अपने बारे में नहीं सोचता है । दूसरों के बारे में छानबीन करना अच्छा लगता है । मानव अपने अंदर निष्पक्ष होके झाँके । गलत काम करने को हमारी आत्मा से न की आवाज आती है । लेकिन हम उसकी सुनते नहीं हैं । हम अपने उस गलत विचार के  प्रति पक्षपात रवैया अपनाते हैं कहते हैं। हमें अपने गुण और दोष देखने के लिए  सच्चा दृष्टिकोण रखें। मनुष्य आत्म दुर्बल तभी तक रहता है जब तक वह आत्म निरीक्षण  का  सच्चा स्वरूप नहीं अपनाता है ।झूठे का सहारा ले के  स्वार्थपूर्ण आचरण से  जीवन में उन्नति नहीं मिलती है । झूठ की पोल तो एक दिन खुल ही जाती है ।  जो हमारे  लिये दुखदायी और विनाश  का कारण होता है । समाज को जिन सन्तों महापुरुषों ने समाज को  जगाया है ।जैसे बुद्ध , महावीर , गांधी  आदि  ने अपना आत्मावलोकन किया है । मानव जाति को मूल्यों की धरोहर दी । सच , प्रेम , अमन जैसे अस्त्र दिए हैं । जिससे हम आत्मिक सुख प्राप्त कर इह लोक के साथ परलोक को  सुधारें ।  सच्चाई का पालन करने का ही मतलब है प्रभु का दर्शन । जो अनुपम है। जो सच की अनुभूति कर लेता है । वह उसे जीवनपर्यन्त निभाता है । सत्य को जिसने भी धारण किया है । उन्होंने अपने चरित्र को  ऊँचा किया है । सत्  , सद्गुणों के संस्कारों की शक्ति  कुसंस्कारों की अपेक्षा सौ गुनी होती है । हमें से कुविचारों को छोड़ना चाहिए । जो हमारे मानसिक , संवेगात्मक रूप से हानिकारक है । रावण महाज्ञानी था । देवता उसकी कैद में थे । सीता अपहरण किया  । तो भी रावण सीता का स्पर्श नहीं कर सका । जवाब स्प्ष्ट है । छल , द्वेष , कपट , अनीति रावण  संग रहती थी । पतिव्रता सीता के पास सच की शक्ति का तपोबल था  । कहा भी जैसे बोओगे वैसी फसल मिलेगी । जो। अपने साथ रखोगे वही साथ जाएगा । जब आदमी मरने के चरण में होता है । तब उसे अपनी अच्छाई , बुराई नजर आती है । यह बुरा काम मुझे नहीं करना चाहिए था । यह आत्मावलोकन जीते जी समय पर कार लेता तो पश्चाताप नहीं होता है । इसीलिए कहा है सत्यं वद । धर्म्म चर ।  हमें अपने अच्छे , बुरे विचारों को जानना ही हमारा आत्मज्ञान है । जिस तरह से सूप सार को अपने पास रखता है । थोथे गंद को बाहर फेंक देता है । ऐसे ही मानव को अच्छाइयों को ग्रहण करना चाहिए । अपने लिए जो अहितकारी है , बुरी चीज , बुरी बात हैं। उसे अपने अंदर से बाहर फेंक देना चाहिए । मानव को  मन की वैचारिक , भावनात्मक , सामाजिक  अस्थिरता  से बाहर निकल के आत्मिक शक्ति से जुड़ के  भावों में साकारत्मक सन्तुलन को लाना होगा । तभी वह अपने जीवन में सफलता के लिये पथ प्रशस्त करेगा । मन का , भीतर का आत्मावलोकन करना होगा । वही उसकी शक्ति का स्रोत है । कोई  व्यक्ति किसी से लड़ाई , झगड़ा मार पीट करता है । तो हम उस व्यक्ति के प्रति खराब नजरिया बना लेते हैं ।  जब हम उस व्यक्ति से  गुस्सा नहीं होकर प्रेम से बात करते हैं । तो वह व्यक्ति अपने बुरे बर्ताब के लिए माफी मांग लेता है । इन भावों का जन्म हमारे भीतर से ही होता है । आत्मचेतना की यह माफी का भाव  उस बुरे व्यवहार का दर्पण है । यही  आत्मविश्लेषण का सच्चा सफल द्वार कहूँ तो अतिशयोक्ति नहीं होगी । आत्म अवलोकन से मानव अपने त्रिताप दैहिक , दैवीय , भौतिक ताप   को मिटा सकता है । आत्मनिरक्षणं हमारी मूल्यों , नैतिक दौलत को बढ़ाता है । जो हमारे चारित्रिक ,पारिवरिक   , सामाजिक , जहाँ बाहर हम  डेस्क स्थान  पर बैठ कर काम करते हैं । हमारे उन्नयन में सहायक होती है । आज की इक्कीसवीं सदी में मानव आत्मावलोकन करता तो स्वार्थ की बू नहीं आती । वृद्धाश्रम नहीं खुलते ।  बम , विस्फोट , हथियार बनाने की होड़ नहीं होती । युद्ध जैसे खेल मानव नहीं खेलता । संबंधों में कड़वापन नहीं होता । अंत में भौतिक संपदा काम नहीं आती है । रिश्ते ही काम में आते हैं ।अंत में मैं दोहे में कहती हूँ : -
मंथन  अच्छे -बुरे भाव का ,  मन देय  आत्मज्ञान ।
आत्मविश्लेषण करके , मिले अलौकिक ज्ञान ।
आत्मनिरीक्षण  से खुले , विकास -उन्नति द्वार ।
धारे मानव गर इसे , होता बेड़ापार
- डॉ मंजु गुप्ता 
 मुंबई - महाराष्ट्र
हंड्रेड परसेंट सच है यह बात कि यदि हम अपने अंदर विश्लेषणात्मक विश्लेषण करें तो हमें यह पता चल जाएगा गलती कहां कर रहे हैं यदि हम हम बार बार गलती कर रहे हैं तो हमें यह सोचना चाहिए शांति से सोचने पर हमें पता चल जाएगा और तरीका बदल देने से हमें सफलता मिल जाएगी जिसे हम परीक्षा में बार-बार सफल नहीं हो रहे हैं तो हमें अपने तरीके को बदलना चाहिए हमको हर हाल में सफलता कदम चूमती है विजय होने के लिए पहले पूर्व अवलोकन कर लेना चाहिए तोलमोल कर बोलना चाहिए महापुरुष आत्म विश्लेषण के कारण ही महापुरुष बनते हैं बुरा देखन में चला बुरा न मिलया कोई आपन दिल जो खोजा मुझसे बुरा न कोई..... ।
- प्रीति मिश्रा
 जबलपुर - मध्य प्रदेश
आत्म विश्लेषण से ही  सफलता के द्वार खुलते है यह बात एक दम सच है ।व्यक्ति जब निर्णय लेता है तब उसका विवेक उस समय साथ नही देता कुछ समय बाद आत्म विश्लेषण से ही सटीक निर्णय लेने की स्थिति मे पहुंचता है जो उसे सफलता के मार्ग तक ले जाता है ।
- गोविन्द राज पुरोहित 
जोधपुर - राजस्थान
व्यक्ति का यह स्वभाव होता है कि वह कार्य अच्छा होने का श्रेय तो स्वयं लूटता है लेकिन काम बिगड़ जाने का आरोप तुरंत दूसरों पर मढ़ देता है । ऐसा करते हुए न तो वह मननशील दिखाई देता है, न गंभीर ,न ईमानदार और न ही न्यायप्रिय । वह केवल स्वार्थी, अवसरवादी, वाचाल, निंदक और दमनकारी दिखाई देता है । ऐसा नहीं कि व्यक्ति अपनी गलतियों से अनजान रहता है; बल्कि अपने अपमान की आशंका और किसी पूर्वाग्रह के कारण, वह अपनी ग़लती स्वीकार करने को तैयार नहीं होता । स्वयं को सही और दूसरों को गलत सिद्ध ठहराने की कोशिश में, वह इतना उलझ जाता है ,कि कोई सकारात्मक स्वस्थ विचार उसे प्रभावित नहीं करते और जब इस  हठधर्मिता में वह जीता है, तब वह उन्ही विचारों मे गुत्थमगुत्था होता रहता है । लेकिन, जब एकान्त में गंभीरता से वह मनन और आत्मविष्लेण करता है, तब पाता है, कि उसकी गलती भी कम नहीं थी। बस,इस अहंकार के बादल छंटते ही, उसे उचित-अनुचित का भान हो जाता है । फिर वह बिगड़े कार्यों और संबंधों की मरम्मत में जुट जाता है । और कहते हैं न-अच्छी दिशा में उठाया गया एक कदम भी सफलता की ओर ले जाता है । आत्म विष्लेषण ही वह कुंजी है जो सफलता के द्वार खोलती है ।
- वंदना दुबे 
  धार - मध्य प्रदेश
आत्म विश्लेषण से आत्ममंथन से हम सही ग़लत का फ़र्क़ समझ सकते हैं और नई योजना नये रास्ते सफलता के खोल सकते है आत्म विश्लेषण बहुत जरुरी है । अतीत की गलतियों के बारे में सोचकर अपना समय बर्बाद करना आसान है। अक्सर हम उन रिश्तों का विश्लेषण करते रहते हैं जो किसी कारणवश सफल नहीं पाये। कभी हम अपनी की हुई गलतियों की समीक्षा करते लगते हैं तो कभी उन व्यावसायिक फैसलों के बारे में सोचने लगते हैं जिससे लाभ मिल सकता था। हम लगातार इस अफसोस में अपना समय गुजारते हैं कि काश मैंने सही फैसला लिया होता। लेकिन एक बार के लिए आप इन सब बातों के बारे में सोचना छोड़ दें। खुद के प्रति इतना कठोर ना बनें। आप एक मनुष्य हैं और मानवों को बनाया ही इस तरह से गया है कि वो गलतियां करता रहता है। जब तक आप वही गलतियां फिर से नहीं दुहरा रहे और अतीत की गलतियों से सबक लेकर सही फैसला ले रहे हैं, तब तक आप सही राह पर हैं। उन गलतियों को स्वीकार कर आप जीवन में आगे बढ़ें। जैसा कि मार्क ट्वैन ने लिखा है, “बुद्धिमानी इसी बात में है कि बुरे अनुभव के साथ रुकने के बजाय हमें सावधानी के साथ उससे बाहर निकल आना चाहिए, वर्ना ऐसा न हो कि हमारी स्थिति उस बिल्ली की तरह हो जाए जो एक बार एक गर्म स्टोव के ढ़क्कन पर बैठ जाये तो फिर वापस कभी उस गर्म स्टोव के ढ़क्कन पर नहीं बैठती, जो अच्छा है। लेकिन अब वह कभी ठंडे स्टोव पर भी नहीं बैठेगी।
इस बात का एहसास करना कि गलतियां सभी करते हैं, हमारे आगे बढ़ने के लिए जरूरी है। हमारा आगे बढ़ना स्वच्छंद होना चाहिए। हमें परफेक्ट बनने की चाह को त्यागने और जीवन को विचारशील तरीके से देखने की आवश्यकता है। हो सकता है कि ऐसा करने पर हमारे जीवन का बहाव पहाड़ की उस जलधारा के जैसा हो जाये जो पत्तों से भरे जंगलों से गुजरती है और संघर्ष करती हुई अपनी गरिमा के साथ बहती रहती है। हम अंतत: अपने सच्चे स्वरूप और स्वभाव को देख शांति पा सकते हैं। व्यक्तिगत ज्ञान और आत्मज्ञान के उच्च स्तर को पाने का शानदार तरीका यह है कि आप अपने जर्नल के पन्ने के बाईं तरफ अपने जीवन में की गई दस बड़ी गलतियों के बारे में लिखें। और फिर दाईं तरफ उन सबकों की लिस्ट बनाएं जो आपने उन गलतियों से सीखी है और जिसे सीखने के बाद आपको भविष्य में इस बात का लाभ भी मिला है। आप शीघ्र ही महसूस करेंगे कि अतीत की उन गलतियों के बिना आपका जीवन बेरंग और उदास है। इसलिये खुद के प्रति उदार बनें और जीवन को इसके वास्तविक स्वरूप में देखने की कोशिश करें जिसके अंतर्गत आत्मविश्लेषण, व्यक्तिगत विकास और जीवनभर का सबक आता है।
- अश्विनी पाण्डेय
मुम्बई - महाराष्ट्र
 हां जी आत्म विश्लेषण से ही सफलता के द्वार खुलते हैं। आत्म विश्लेषण का मतलब है आत्मा क्या सही है क्या गलत है इसकी मूल्यांकन करती है। गलत की समीक्षा और सही का मूल्यांकन होता है ।इसी का नाम है आत्म विश्लेषण अर्थात आत्मा सही गलत का विश्लेषण  करती  है। आत्मा सत्यग्राही होती है। आत्मा सत्य ग्रहण कर सत्य ,कार्य व्यवहार करती है, तभी सफलता का द्वार खुलता है ।बिना सत्य कार्य व्यवहार के सफलता नही मिलती। किसी भी क्षेत्र मे कोई भी कार्य करते है ,तो उस कार्य की प्रक्रिया के बारे मे सही जान कारी नही हो पाने  से कार्य का परिणाम असफल हो जाता है।  आत्मा का मन वाला भाग सही गलत का  विश्लेषण नहीं कर पाने से कार्य गलत हो जाता है । अतः आत्म विश्लेषण से कार्य करने से ही सफलता मिलती है। बिना आत्म विश्लेषण के सफलता पाना संभव नहीं है अतः हम जो भी कार्य करते हैं तो कार्य के पूर्व आत्म विश्लेषण करना जरूरी है ,तभी हम सफलता प्राप्त कर सकते हैं और हर आदमी सफलता के साथ ही जीना चाहता है अतः आत्म विश्लेषण करना हर मनुष्य के लिए आवश्यक है बिना आत्म विश्लेषण के जीना दुर्लभ हो जाता है अर्थात जीवन में सफलता नहीं मिलती है।
- उर्मिला सिदार
रायगढ़ - छत्तीसगढ़
किसी भी कार्य की सफलता और असफलता के बाद हम अपने ही मन से पूछते हैं कि मैं कहां गलत था और कहां सही ! मन और आत्मा पर्यायवाची है हमारा आत्मा विश्लेषण वह दर्पण है जो हमें स्वयं को स्वयं से परिचित कराता है ! कई बार हम किसी को दोषी ठहराते हुए अपनी गलतियों की टोकरी उसके सिर पर रख खुद को सही ठहराने की कोशिश करते हैं और विजय माला पहन खुश होते हैं ! ठंडे दिमाग से जब हम सोचते हैं अपना आत्म विश्लेषण करते हैं तब हमें महसूस होता है हमने कैसे विजय प्राप्त की अपनी गलती का एहसास होता है यूं कहें अपनी कमियां और खुबियां दिखाई देती है !
हमेशा ध्यान रखना चाहिए कि आत्म विश्लेषण निष्पक्ष हो !
आत्म विश्लेषण करते समय हम अपनी कमियां और खूबियां दोनों को ढूंढते हैं !किसी लक्ष्य को प्राप्त करने में असफलता मिलती है तो हम आत्ममंथन द्वारा स्वयं से ही प्रश्न करते हैं कि इतने संघर्ष करने के बाद भी मुझे सफलता क्यों नहीं मिली है ?  आत्मा तो एक दर्पण है और दर्पण कभी झूठ नहीं बताता ! आत्म विश्लेषण करने से हमें दर्पण में हमारी कमजोरियां दिखाई दे देती है दिखाई देती है जैसे समय प्रबंधन पर ध्यान नहीं दिया सफलता को लेकर ओवरकॉन्फिडेंस का होना ,कार्य क्षमता को और विकसित करना होगा ,कुशलता का होना ,वाणी में मिठास ढूंढने लगते हैं और पुनः सफलता की ओर हमारा अगला कदम बढा़ते हैं! इस समय हम पूरा ध्यान रखते हुए काम करते हैं और अपने लक्ष्य को प्राप्त करने में सफल होते हैं ! इसी तरह क्रोध करते वक्तहम किसी के साथ अभद्र व्यवहार करते हैं  एवं अपमानित करते हैं किंतु क्रोध शांत होने के बाद हम ठंडे दिमाग से सोचते हैं या यूं कहो उस बात का विश्लेषण अपनी आत्मा को सामने रख करते हैं तब हमें आत्म ग्लानि होती है कि यह मैंने क्या कह दिया इस समय हमारी आत्मा निष्पक्षता दिखाती है और माफी मांग कर अपनी गलती मानती है स्वयं की गलती को स्वयं से ही कबूल करवाना यही आत्म विश्लेषण और आत्ममंथन है !
वह कहते हैं ना कभी भी हम दुविधा में हो तो उस समय हमें अपनी अंतरात्मा जो कहे वही सुनना चाहिए क्योंकि आत्मा सदा शुद्ध होती है आत्मा से अधिक पवित्र कोई हो ही नहीं सकता आपकी अपनी आत्मा ही आपकी मार्गदर्शक है और सही मार्गदर्शक साथ हो तो सफलता तो मिलनी ही मिलनी है !
अंत में कहूंगी संयम और धैर्य के साथ किसी भी लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए निष्पक्ष आत्म विश्लेषण करें तो हमें सफलता अवश्य मिलेगी !
- चन्द्रिका व्यास
मुम्बई - महाराष्ट्र
सही कहा ।हर व्यक्ति अपनी अच्छाइयों और कमजोरियों से भली-भांति परिचित होता है और समझता है कि वो कहाँ सही है और कहाँ गलत ।कहते हैं ना 'करत करत अभ्यास के, जड़मति होत सुजान।और इसी के आधार पर यदि कोई कार्य सफल नहीं होता तो आत्मविश्लेषण कर वह अपनी की गई गलती को पहचान कर पुनः पुनः अभ्यास कर सफलता प्राप्त कर लेता है । मानव जीवन में आत्मविश्लेषण के अनेक विषय होते हैं और हर व्यक्ति के विषय भिन्न भिन्न होते हैं ।जो लोग स्वयं को जानना चाहते हैं, बेहतर बनना चाहते हैं चाहे वो कार्यक्षेत्र हो अथवा स्वभाव, तो स्वचिंतन या आत्मविश्लेषण अति आवश्यक है ।कोई दूसरा हमें सिर्फ मार्ग दर्शन कर सकता है या हमारी कमजोरियों को उजागर कर सकता है लेकिन सुधारने के लिए  हमें विश्लेषणात्मक अध्ययन करना है कि हमें कौन सा सुधार पहले करना है ताकि सफलता प्राप्त कर सके।इसलिए सफलता पाने के लिए आत्मविश्लेषण आवश्यक है ।
- सुशीला शर्मा
जोधपुर - राजस्थान
प्रथम तो आत्मविश्लेषण से तात्पर्य है;  कि मैं क्या हूं, कैसा हूं, कितनी समर्थ है, कितना सफल हूं, कितना असफल; किसी भी क्षेत्र में। ऐसी चिंतना सोच या आत्म विश्लेषण से व्यक्ति स्व मूल्यांकन अगर करता है; तो उसके द्वारा किए गए निर्णय या कार्य उसको शत-प्रतिशत सफलता दिला सकते हैं। चाहे वह विश्लेषण उसकी सकारात्मकता के लिए हो; चाहे नकारात्मक सोच के लिए। चाहे व्यक्तिगत लाभ के लिए हो; चाहे सामूहिक लाभ के लिए। आजकल यह आत्म विश्लेषण राजनीतिक क्षेत्र में व्यक्तिगत और भौतिकवादी हो गया है ।हर व्यक्ति स्वयं को अधिक प्रतिष्ठित एवं सम्मानित करने का आधार इसी को मानता है। आज के दौर में व्यक्ति अपना आत्म विश्लेषण नहीं करता; बल्कि दूसरे का विश्लेषण करता है। उदाहरण के लिए टी वी की  राजनीतिक बहस । जो कि गलत है.।सही मायने में देखा जाए; तो ईशोन्मुखी या गुरु को साक्षी कर किया गया आत्मविश्लेषण से चित्त पावन और सफल एवं सकारात्मक दिशा में प्रगति के पथ को निर्दिष्ट कर देता है। इसी में व्यक्ति और समाज का कल्याण भी है; जहां सफलता सर्वतोन्मुखी होती है।
- डॉ. रेखा सक्सेना
मुरादाबाद - उत्तर प्रदेश
आत्मविश्लेषण अर्थात अपने कर्म धर्म लक्ष्य प्राप्ति अप्राप्ति को जानना समझना और फिर वैसा ही निर्णय लेना ।यह बहुत आवश्यक है ।इसे हम न केवल हम अपनी गलतियों को सुधारते हैं सफलता के नये नये द्वार भी खोल लेते हैं ।अतः समय समय पर आत्मविश्लेषण तो करना ही चाहिए ।
- शशांक मिश्र भारती 
शाहजहांपुर - उत्तर प्रदेश
आत्मविश्लेषण  द्वारा  हम  अपने  भीतर  झांक  सकते  हैं  और  गलतियों  को  सुधार कर  सफलता  के  मार्ग  पर  अग्रसर  हो  सकते  हैं  ।  प्रतिदिन  सोने  से  पूर्व  अपना  आत्मविश्लेषण  अवश्य  करना  चाहिए  जिससे  दिनभर  की  गई  गतिविधियों  की  जानकारी  के  साथ  अच्छे- बुरे, सही-गलत,  घर-परिवार,  रिश्ते,  समय  का  सदुपयोग  अथवा  आलस्य-प्रमाद  इत्यादि  पर  विश्लेषण  कर  अपनी  कमजोरियाँ,  क्षमताओं  का  आंकलन  किया  जा  सकता  है ।  तदनुसार  स्वयं  में  बदलाव  कर, गलतियों  को  सुधारा  जा सकता  है । इस  प्रकार  जब  निरंतर  आत्मविश्लेषण  होता  रहेगा  ( महिला- पुरुष,  छोटे- बड़े,  छात्र-छात्राएँ , बिज़नेस मेन  आदि  सभी ) तो  धीरे-धीरे  सफलता  के  द्वार  खुलते  चले  जाएंगे  । 
      - बसन्ती पंवार 
        जोधपुर ( राजस्थान )
आत्मविश्लेषण करना एक अच्छी आदत होती है, इससे हम अपने जीवन को अच्छा ही नहीं बल्कि बेहतरीन बना सकते हैं। हाँ, लेकिन इतनी सावधानी और सजगता जरूरी है कि आत्मविश्लेषण निर्भीकता, सूक्ष्मता और पारदर्शिता के साथ हो। यह इतनी संयत,संंयमी और मनोवैज्ञानिक हो कि आप स्वयं अपनी कमियों,विकारों, गुण-दोषों का अवलोकन कर उन्हें दूर करने का साहस और संकल्प  की सामर्थ्य रखते हों। जरा-सी भूल-चूक,जरा-सा भी मोह और स्वार्थ आपको सफल होने में बाधित बन सकता है। जीवन ,गुणों और दोषों से भरा होता है। गुण ,विशेषताऐं पैदाकर सकारात्मकता को बढ़ाकर संवारने का काम करते हैं और दोष विकार पैदा कर नकारात्मकता को बढ़ावा देने का काम करते हैं । आत्मविश्लेषण इक मंथन की प्रक्रिया है जिसके द्वारा हम अपने गुण-दोषों को पहचानने का अवसर और सामर्थ्य रखते हैं। हम इसमें जितने सामर्थ्यवान होंगे , उतने ही हम अपने गुण- दोषों  को पहचानने में पारंगत होंगे तत्पश्चात हमारी जिम्मेदारी है कि स्वयं के इन सारे दोषों को से दूर करें और  निहित गुणों से जीवन को सुसज्जित करें। इसमें जितने सफल होते चलेंगे सफलता पाते चलेंगे। तात्पर्य यह कि आत्मविश्लेषण से हमें अपने को दोषों ओर विकारों से याने अपनी कमियों और खामियों से मुक्त बनाते हुये सिर्फ और सिर्फ विशेषताओं और खूबियों से युक्त रखना है। इसे दुष्कर कार्य को यूँ भी सहज और सरल कर सकते हैं कि हमें अपने गुणों को बढ़ाना और अवगुणों का खात्मा करना है।
- नरेन्द्र श्रीवास्तव
 गाडरवारा - मध्यप्रदेश
हां,, बिल्कुल,,किसी भी कार्य का शुभ आरम्भ सोच विचार कर हीं व्यक्ति को करना चाहिए । आत्मविश्लेषण एक ऐसी मानवीय प्रकिया है जो व्यक्ति को सही और बुरे का  सही "दर्पण" दिखलाती है और ऐसा कहा  भी गया है कि " दर्पण झूठ ना बोले" जो‌ अक्षरशः सत्य है । फलत: जब हम आत्मविश्लेषण करते हैं तो हमें सही ज्ञान या मार्गदर्शन मिलता है जो हमारे लिए सफ़लता का द्वार खोलने में अहम् भूमिका निभाता है । इसलिए आत्मविश्लेषण से सफ़लता के द्वार खुलते हैं इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं है ।
- डॉ पूनम देवा
पटना - बिहार
आत्मविश्लेषण से व्यक्ति  स्वतः अपना मूल्यांकन कर पाता है किन बिंदुओं पर वो कमजोर है या उसकी कौन सी खूबी है जिसे वो अभी तक नजरअंदाज कर रहा था ये भी पता चलता है ।  यदि स्वयं को सुधारने हेतु  सच्चे मन से,  दृढ़ संकल्प के साथ , स्वनियंत्रण व पूर्णानुशासन से कोई कार्य करता है  तो उसे सफल होने से कोई नहीं रोक सकता है। पहले व्यक्ति असफल ही होता है  पर मन में कुछ कर गुजरने की चाह उसे  सच्चे मन से आत्मविश्लेषण करने पर विवश करती है ; जिसके परिणामस्वरूप वो  अवश्य ही  एक न एक दिन किसी न किसी मुकाम पर पहुँचे हैं और सफलता के पर्याय बन कर उभरे हैं । 
- छाया सक्सेना प्रभु
जबलपुर - मध्यप्रदेश
आत्मविश्लेषण  जिसे  हम आत्मनिरीक्षण  भी  कहा  जा सकता है । ऋषि  मुनिया ने आत्मविश्लेषण  के  माध्यम  से ही  वेद  ऋचा  ग्रंथ व्यवहार प्रणाली संबधित  उपदेश  की  रचना  की है । आत्मविश्लेषण  एक  चिन्तन  है जिसमे  एकाग्र  होकर  स्वयं  के उचित  अनुचित  व्यवहारो  का  आत्मदर्शन  करते है और गलतियो  को  सुधारने  के मार्ग  खोजते  है। इसे दार्शनिक  ने to  look  within  him  भी  कहा  है ऐसा  करने  के  लिए  प्रबल  इच्छाशक्ति  की आवश्यकता  है। will power  हर  इंसान  के पास  होता  है पर मात्रा  का  अन्तर होता  है जो संकल्प शक्ति  के रूप  मे  जाना  जाता है । वैचारिक  तौर  पर  हर  मानव यह कहने से पीछे  नही  हटते हैकि मै  संकल्पवान  हू  पर व्यवहारिक  तौर पर  बहुत  कम  संकल्पित  मिलते  है। इच्छाशक्ति  संकल्पशक्ति  और  कार्यकर्ता तीनो  मिलकर  ही एक नया  इतिहास  बनाते  है। इतिहास  के पन्ने  भूगोल  के पन्ने  आत्मविश्लेषण  के  ही  तो  परिणाम  है। आज  प्रतिदिन   दूनिया  मे होनेवाले  अच्छा  और बुरा  घटना  के प्रति  टी वी  पर चर्चा  सुनते  और  देखते है यह सामूहिक  आत्मविश्लेषण  का  ही  तो  उदाहरण  है। जिसके  माध्यम  से समस्या  का  हल  निकाला  जाता  है । यह  सोलहो  आना  सत्य  है  कि आत्मविश्लेषण  ही  वह  शस्त्र  है जिससे सफलता  का  द्वार  खुलता  है
- डाँ. कुमकुम  वेदसेन 
मुम्बई - महाराष्ट्र
आत्म विश्लेषण सच में सफलता का द्वार है। आत्म विश्लेषण के द्वारा ही हम अपनी कमियों और उसके कारणों को जान पाते हैं। इतना ही नहीं हम अपने सकारात्मक पहलुओं और सद्गुणों को  तथा अपनी कार्यक्षमता को भी जान पाते हैं। अपनी कार्यक्षमता ,कुशलता। और श्रेष्ठ गुणों को और परिमार्जित कर हम सफलता के लक्ष्य को आसानी से प्राप्त कर सकते हैं। इसलिए आत्म विश्लेषण निहायत ही जरूरी है। हमें नित्य प्रतिदिन अपने कार्यों और विचारों का विश्लेषण करना चाहिए , जिससे हम अगले दिन  नई उर्जा तथा उत्साह के साथ अपनी कमियों पर विजय प्राप्त कर सफलता के सोपान चढ़ते हैं।
- नीलम पाण्डेय
  गोरखपुर - उत्तर प्रदेश
बिल्कुल । आत्मविश्लेषण तो जिंदगी का वह पहलू है जो हर मनुष्य को कुछ-कुछ दिनों के अंतराल में करना चाहिए । इससे अपने द्वारा किये गए गलत और सही फैसले का पता चलता है।उसे सुधार कर जब वह आगे बढ़ता है तो निश्चित ही सफलता बाहें फैलाये मिलती है । लेकिन सबसे मुश्किल काम है विश्लेषण करना। लेकिन अपने अहंकार के कारण व्यक्ति विश्लेषण करना नहीं चाहता है। उसे अपनी हार बर्दास्त नहीं या यूं कहें अपने को गलत साबित होने से डरता है। यही कारण है कि आजकल सफलता के लिए व्यक्ति को ज्यादा संघर्ष करना पड़ता है।
- संगीता गोविल
पटना - बिहार

      " मेरा दृष्टि में " आत्मविश्लेषण से ज्ञान प्राप्त होता है । जो सफलता प्राप्त करने के लिए बहुत ही आवश्यक है । सफलता के मूल मन्त्र को समझने में सहायक है । यहीं सफलता का द्वार है । समझने के लिए आत्मविश्लेषण जरूरी है ।
                                                     - बीजेन्द्र जैमिनी


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