क्या टेंशन छोड़ कर बच्चों को परीक्षा में आत्मविश्वास रखना चाहिए ?

बिना टेंशन के कोई भी कार्य आसानी से किया जा सकता है । जिससे आत्मविश्वास पैदा होता है । यही  बच्चों की परीक्षा में  आत्मविश्वास की आवश्यकता होती है । यहीं " आज की चर्चा " का विषय रखा गया है । आये विचारों को देखते हैं : -
टेन्शन  एक  मानसिक अवस्था  है जिसकी उत्पत्ति  प्रेशर  से होती  है यदि  प्रेशर को  सकारात्मक  रूप से योजनाबद्ध  कर आगे  बढने  से यह टेन्शन  स्वत  कम होता  जाएगा  और  आत्मविश्वास  बढने  लगेगा । परीक्षा  जीवन  का बहुत  ही  महत्वपूर्ण  कारक  है जिसमे  टेन्शन  होना  स्वाभाविक  है उम्र  चाहे  जो भी  हो  ।इस टेन्शन  कार कारण  हमारी  समाजिक  परिवेश  है जिसे हम  स्वयं  पैदा  कर लेते  है और  नयी  या युवापीढी  को स्थानांतरित  भी  कर  डालते  है  प्रतिदिन  के  जुमले  से।परीक्षा  को हम मैत्रीपूर्ण  नही  रखते  है प्राय परीक्षा  के लिए  तरह-तरह  के कथन  देते  रहते  है जैसे  तुम्हारा  परीक्षा  होनेवाला  है तुम्हे  खूब  पढ़ाई  करनी  है अच्छे  अंक  लाने  है ।तुम्हे सबसे  आगे  रहना  है  इतने कम अंक  से काम  नही  चलेगा  कही  अच्छे  संस्था  मे  नामांकन  नही  होगा  वगैरह  वगैरह  इन  सारे  जुमले  से स्वभाविक  तौर पर  एक  टेन्शन  होगा  क्योंकि  दबाब  बना  है और यदि  किसी  कारणवश  यह नकारात्मक  होगा गया  तो  टेन्शन  की सीमा  बहुत  बढ  जाएगी  और शरीर  मे  नकारात्मक  ऊर्जा  आने  लगेगी  नरभसनेश  होगा  आत्मविश्वास  कमजोर  होगा  साथ ही साथ  तरह-तरह  के शारीरिक  बीमारी  भी  जैसे  बार  बार  सर्दी-जुकाम  पेट  मे दर्द  खुजली  होने  लगेगे । मेरी सलाह  है कि  टेन्शन  या  प्रेशर  आने से तुरन्त  समाधान  के तरीके  पर सोचकर काम करना  शुरू  कर दे  इससे  टेन्शन  की  स्थिति  ही  बदल जाएगी ।
- डाँ. कुमकुम  वेदसेन 
मुम्बई - महाराष्ट्र
    टेंशन शब्द वह शब्द है।जिसमें प्रधानमंत्री से लेकर संतरी तक ग्रस्त हैं।उक्त भयंकर रोग का निदान मात्र और मात्र आत्मविश्वास है।फिर जीवन सशक्तिकरण की परीक्षा हो या सशक्त राष्ट्रनिर्माण की परीक्षा हो।परीक्षा परीक्षा ही होती है।जिसमें टेंशन अज्ञानता का अंधेरा मात्र है। इस अंधेरे को लुप्त कर प्रकाशमान बनाने का एक मात्र उपाय है।जिसे आत्मविश्वास कहते हैं।जिसे महिला और पुरुष के सहयोग के बिना भी पैदा किया जा सकता है।यह भी बताना आवश्यक है कि यह दम्पति द्वारा पैदा की गई संतान से भी कहीं शक्तिशाली है। क्योंकि मेरा दावा है कि जीवन में धन, सम्पति और यहां तक कि पुत्रधन के होते हुए जीवन की छोटी से छोटी परीक्षा में भी मात संभव है।किंतु जिसके पास आत्मविश्वास है।वह धरती पर हो या पाताल में या आकाश में उड़ क्यों न रहा हो, उसे कोई भी परीक्षा असफल नहीं कर सकती।कहने का अभिप्राय यह है कि आत्मविश्वास वह औषधि है।जिसके आगे टेंशन तो क्या कोई भी रोग ठहर ही नहीं सकता और इसका कोई दुष्प्रभाव भी नहीं होता।
- इन्दु भूषण बाली
जम्मू - जम्मू कश्मीर
आत्मनिश्वास के साथ साथ ईमानदारी से मेहनत करनी है यदि परीक्षा की तैयारी ही नहीं तो आत्मविश्वास होते हुये भी आप पास नहीं होंगे । टेंशन भी वही लोग लेते हैं जो साल भर पढ़ाई नहीं करते , मेहनत करने वाले अपने पर भरोसा रख शांत रहते है । सबसे बड़ी शिक्षा यही है कि भीतर के विद्यार्थी को कभी मरने मत देना. आत्मविश्वास जड़ी-बूटी नहीं है. जीवन में सब कुछ है लेकिन आत्मविश्वास न हो तो कुछ नहीं कर सकते. मेहनत में ईमानदारी होनी चाहिए. कुँछ बातें ध्यान से समझेंगे याद करेंगे को परीक्षा की टेंशन नहीं होगी 
इन बातों पर अमल करें ....
बिना कुछ तय किए आगे बढ़ते रहिए. अपने आप को फोकस करना है तो खुद को खुलापन में छोड़ दीजिए. माता पिता की भी कुछ नैतिक ज़िम्मेदारी है वह निभाये ..
दूसरे के बच्चों से अपने बच्चों की तुलना ना करें, मां-बाप बच्‍चों पर अपनी इच्छा न थोपें. माता-पिता को बच्चों का ध्यान रखना चाहिए. ईमानदारी से मेहनत करें. कठिन परिश्रम से ही आत्मविश्वास बढ़ाया जा सकता है.शब्द भंडार बढ़ाएं, छात्रों को नए नए शब्द सीखने चाहिए, इसके ढेर सारे लाभ हैं.एक लक्ष्य तय कर लें और फिर उसको हासिल करने के लिए रणनीति बनाएं .जहां आप अध्ययन कर रहे हैं, वहां पर एक खुशबूदार अगरबत्ती जला दें ताकि आपका मन स्वस्थ रह सके। परीक्षा आते ही रट्टू तोते न बन जाएं बल्कि पढ़ाई पर ध्यान दें व बस पढ़ते जाएं। परीक्षा से कम से कम 2 माह पूर्व पुन: रिवीजन करें। परीक्षा के दिन तनाव में न रहें।
पढ़ाई करते वक्त शांत वातावरण का होना जरूरी होता है। जहां तक हो सके, अकेले न पढ़ें। हो सके तो ग्रुप में ही अध्ययन करें, इससे आपको नींद नहीं आएगी व साथ मिलने से पढ़ाई में मन लगेगा। मन पर किसी भी प्रकार का तनाव न रखें। हमेशा प्रसन्नचित रहने से मन स्वस्थ रहेगा जिससे कि पढ़ाई में मन लगेगा। जो पढ़ें, उसे थोड़ी देर बाद एक पन्ने पर लिखें व देखें कि जो पढ़ा, उसमें से कितना सही है। किसी भी प्रकार से मन में संकोच न लाएं, नहीं तो असफलता का विचार आएगा। यदि आप में आत्मविश्वास होगा तो आप हर मुसीबतों का सामना डटकर कर सकते हैं। बस अब टेंशन दूर आत्मविश्वास से भरा दिल रिज़ल्ट की चिंता नहीं , अव्वल आना ही है ।
- डॉ अलका पाण्डेय 
मुम्बई - महाराष्ट्र
टेंशन को छोड़कर बच्चों को परीक्षा आत्मविश्वास के साथ देनी चाहिए क्योंकि टेंशन में सही काम भी गलत हो जाता है शरीर के अंग भी स्थल पर जाते हैं और सोचने समझने की शक्ति भी नष्ट हो जाती है नकारात्मक सोच उत्पन्न हो जाती है परीक्षा तो साल भर की मेहनत का परिणाम है मेहनत के बल पर बड़े से बड़े काम भी आसान हो जाते हैं चींटी पहाड़ चढ़ जाती है छोटा मनुष्य पर आत्मविश्वास रखें तो वह एवरेस्ट पर चढ़ सकता है हमेशा सोच ऊंची रखनी चाहिए करत करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान रसरी आवत जात है सिल पर परत निशान रोज अभ्यास करने से हमारे मस्तिष्क में सब चीजें याद हो जाएगी और परीक्षा में हमारे अंदर आत्मविश्वास बढ़ेगा तनाव हमारे लिए फायदेमंद भी है और मुस्कान दे दी है किसी भी कार्य की चिंता का होना उस कार्य को करने के लिए एक दबाव डालता है महावीर ओं की वीरता का यही स्रोत उनके आत्मविश्वास को बढ़ाता है वैज्ञानिक भी आत्मविश्वास के बल पर बड़ी से बड़ी खोज करते हैं उस परीक्षा में वह भी उस दिन होते हैं उसी परीक्षा के बल पर मनीष ने चांद पर कदम रखा और उसी आत्मविश्वास के बल पर भगवान ईश्वर को हम मानते हैं। आत्मविश्वास के बल पर बड़ी से बड़ी जंग जाती है। इतिहास में अनेकों उदाहरण है। परीक्षा के समय हमें अपने आत्मविश्वास को बनाए रखना चाहिए विश्वास व अमुक अचूक ब्रह्मास्त्र है जो जीवन की जगत की हर जंग को जीत सकता है चाहे वह भौतिक हो चाहे आध्यात्मिक जगत हो विश्वास की महत्वता सर्वोपरि होती है।
- प्रीति मिश्रा
 जबलपुर - मध्य प्रदेश
परीक्षा और तनाव का संबंध ऐसा है कि जितना सोचो  उतना ही बढ़ता जाता है। कितना भी पढ़ा हुआ हो तो भी चिंता बनी रहती है। अच्छे नंबरों का तो जमाना गया, अब तो नंबरों का प्रतिशत महत्वपूर्ण हो गया है। विद्यालय और घर में माता-पिता, अड़ोसी-पड़ोसी, नाते-रिश्तेदार... सभी यही बात बोलते रहते हैं, अच्छा प्रतिशत नहीं बना तो कैरियर किसी काम का नहीं बनेगा, तट्यूशन का झमेला अलग... ये सारी बातें बच्चों में तनाव तो बढ़ाती ही हैं, उनके आत्मविश्वास को भी कम करती हैं और स्वास्थ्य पर भी बुरा प्रभाव डालती है ।   पूरे वर्ष जो अपनी नियमित दिनचर्या के अनुसार अपनी पढ़ाई करता है उसे चिंता तो होती है पर वह चिंता तनाव नहीं बनती। इसलिए सबसे महत्वपूर्ण यह है पढ़ाई की अपनी नियमित दिनचर्या का पालन हो। माता-पिता सकारात्मक वातावरण बनाने में सहयोग करे, उत्साहित करें, पर पढ़ाई को बच्चे के लिए बोझ न बनने दें, उसका मनोबल मजबूत करें, उसमें यह भावना जगायें कि वह अपने श्रम से अपनी क्षमता के अनुसार अच्छा परिणाम ला सकता है। बच्चों को अपना आत्मविश्वास बनाये रखना चाहिए और यह तभी बनेगा जब नियमित दिनचर्या और नियमित श्रम होगा तो परीक्षा में बेहतर परिणाम आने से कोई नहीं रोक सकता।  
- डा० भारती वर्मा बौड़ाई
    देहरादून -  उत्तराखंड
 मनुष्य की आवेश गति हैं। आवेश में रहकर मनुष्य विकसित नहीं हो पाता । टेंशन छोड़कर बच्चों को आत्मविश्वास के साथ परीक्षा की तैयारी करनी चाहिए।   आत्मविश्वास मनुष्य के लिए जीने का धरातल है बिना आत्मविश्वास के मनुष्य व्यवस्थित होकर नहीं जी सकता है ।परीक्षा एक ऐसी क्रिया है जिससे अपने अंदर कितने जानकारियां हैं उसे स्मरण लेख के द्वारा परीक्षा कॉपी में प्रदर्शित करते हैं अगर आत्मविश्वास है और आत्मविश्वास के साथ बच्चे जानकारी का अध्ययन किए हैं। तो परीक्षा का परिणाम अच्छा आएगा ।बिना आत्मविश्वास के अध्ययन नहीं किया जाता ।आत्म विश्वास के बिना मनुष्य कमजोर पड़ जाता है।आत्मविश्वास से ही मनुष्य आगे बढता है।अतः टेंशन छोड़कर बच्चों को आत्मविश्वास के साथ परीक्षा देना चाहिए।
- उर्मिला सिदार
रायगढ़ - छत्तीसगढ़
 किसी भी कार्य को करते समय हम पूर्ण आत्मविश्वास के साथ कहते हैं कि मैं इसमें सफल होकर रहूंगा अथवा रहूंगी ! आत्मविश्वास होना बहुत अच्छी बात है किंतु उसके साथ संघर्ष , मेहनत ,लगन, जिद्द और दृढ़ संकल्पता आती है तो उसे सफलता प्राप्त करने में कोई नहीं रोक सकता ठीक परीक्षा में बच्चों में आत्मविश्वास के साथ मेहनत लगन भी होनी चाहिए ! यदि हम साल भर पढ़ते ही नहीं फिर तो परीक्षा में टेंशन आना ही है ! यह एक मानसिक तनाव है और तनाव जिसे हम प्रेशर कहते हैं किसी भी प्रकार की चिंता से आता है यूं कहो हम में नकारात्मकता के भाव पनपने लगते हैं और यह दबाव हम स्वयं अपने दायरे के दीवार के बाहर तक ले आते हैं तब तनाव या टेंशन आ ही जाता है ! सिर्फ भगवान को फूल माला चढ़ने अथवा मंदिर जाने से कुछ नहीं होता ! सब त्यागकर ईश्वर के रंग में  पूर्ण डूब जाते हैं तब ईश्वर मिलते हैं ,उसी प्रकार आत्मविश्वास के साथ मेहनत ,लगन है तो ही परीक्षा में टेंशन नहीं आता !परीक्षा की टेंशन तो थोड़ी बहुत होती है टेंशन नहीं होने से उसे सीरियसली नहीं लेते और बेदरकारी करते हैं ! किसी भी लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए हमें पहले से ही भूमिका बना लेनी चाहिए ! बच्चों को माता-पिता का पूर्ण साथ होना चाहिए !परीक्षा के समय खाने और सोने का समय का ध्यान रखना चाहिए ! घर का माहौल ऊर्जात्मक होना चाहिए ! बच्चों की सोच में सकारात्मकता लानी चाहिए ,दूसरों से तुलना न करें ! अपनी इच्छा बच्चों पर नहीं थोपना चाहिए ,सबसे बड़ी बात उसे जो करना है उसकी रुचि अनुसार वही करें ! परीक्षा में घर से निकलते समय शांति एवं प्यार से भेजें ! टेंशन ना लेना तुम कर सकते हो ,जितना कर सको सही करना फिर देखो बच्चे में कैसे आत्मविश्वास के साथ सकारात्मक ऊर्जा आती है ! अंत में कहूंगी उपर्युक्त बातों को ध्यान में रखें तो परीक्षा में टेंशन आएगा ही नहीं और आत्मविश्वास जाग उठेगा !
- चन्द्रिका व्यास
मुम्बई - महाराष्ट्र
बिलकुल सही, बच्चों को टेंशन छोड़कर परीक्षा में आत्मविश्वास रखना चाहिए।    टेंशन यानि तनाव या फिर चिंता, ये सारी चीजें  हमारे मन मष्तिस्क को बहुत ही नकारात्मक तरीक़े से प्रभावित करती हैं। जब कभी भी हम किसी भी समस्या को लेकर टेंशन में होते हैं तो हम समाधान के लिए उचित तरीके से नहीं सोच पाते हैं और उपयुक्त निर्णय लेने में भी सक्षम नहीं होते हैं। ठीक उसी प्रकार परीक्षा के समय यदि बच्चे टेंशन करेंगे तो प्रश्नों का हल सही तरीके से नहीं सोच पाते हैं और गलती कर बैठते हैं। एक सर्वविदित कहावत भी है:--
   "चिन्ता से चतुराई  घटे,
    दुख से घटे शरीर। "
इसलिए परीक्षा के समय में बच्चों को चिन्ता छोड़कर पहले तो सही मार्गदर्शन के साथ पूरी लगन से पढ़ाई करनी चाहिए, फिर पूरे आत्मविश्वास के साथ परीक्षा कक्ष में प्रश्नों को हल करना चाहिए।
            - रूणा रश्मि
          राँची - झारखंड
बिल्कुल सही है।आत्मविश्वास से ही जीत संभव है ।जो बच्चे सालभर लगातार मेहनत करते हैं और विषयों का गंभीरता से अध्ययन करते हैं वे टेंशन फ्री रहते हैं लेकिन जो परीक्षा आने पर ही सतर्कता दिखाते हैं वे अपने अधकचरे ज्ञान के कारण मानसिक तनाव और टेंशन में आ जाते हैं ।कभी-कभी तो वे अपना आत्म विश्वास भी खो देते हैं।जिन्होंने परीक्षा की पूरी तैयारी की होती है उनमें धैर्य बना रहता है ।वे गलतियाँ भी कम करते हैं ।इसलिए परीक्षा के समय आत्मविश्वास रखना आवश्यक है ।
- सुशीला शर्मा
जयपुर - राजस्थान
तनाव किसी भी क्षेत्र में कमजोरी का परिचायक है ।बच्चों को विशेषकर परीक्षा में अपने को तनाव से पूर्ण तया मुक्त रखना होगा ।इसके लिए आवश्यक है अपनी दिनचर्या व पढने का पूर्व निर्धारित कार्यक्रम साथ परीक्षा कक्ष में कुछ कर सकने का विश्वास ।साथ ही बच्चों के माता-पिता या अन्य बड़ों को बच्चों को परीक्षा के समय अन्य दायित्वों से मुक्त कर देना चाहिए ।उनपर किसी प्रकार का दबाव टोंकाटाकी न हो ।इस समय उनकी इच्छा और अपेक्षा का भी ध्यान रखा जाये ।
तो आत्मविश्वास तो रहेगा ही तनमन स्वस्थ भी रहेगा ।
- शशांक मिश्र भारती 
शाहजहांपुर - उत्तर प्रदेश
लगातार  नकारात्मक  बातों  से  नकारात्मक  सोच  बनती  है  जो  आत्मविश्वास  को  कमजोर  करती  है  मन-मस्तिष्क ऊहापोह  की  स्थिति  में  आ  जाते  हैं ।  कोई  भी  कार्य  सही   तरीके  से  करना  असंभव  सा  हो  जाता  है  अथवा  लगने  लगता  है । जो  छात्र  वर्षभर  नियमितरूप  से  अध्ययन  करते  हैं,  वे  अपेक्षाकृत  कम  चितिंत  रहते  हैं  ।  लेकिन  किसी  कारणवश  या  आलस्य-प्रमाद  के  कारण  नियमित  अध्ययन  नहीं  कर  पाए  हों  तो  जितना  भी  समय  बचा  है,  उसका  आत्मविश्वास  के  साथ  भरपूर  उपयोग  करने  से  सफलता  की  उम्मीद  की  जा  सकती  है  । परसेंटेज  का  दबाव  तो  छात्रों  पर  रहता  ही  है ।  ऐसी  स्थिति  में  तानाकशी  व  तुलना  के  स्थान  पर  पारिवारिक  सदस्यों  का  सकारात्मक  तथा  उत्साहवर्धक  सहयोग  अति  आवश्यक  है,  तभी  छात्रों  का  आत्मविश्वास  दृढ़  हो  सकेगा  ।
       - बसन्ती पंवार 
          जोधपुर  - राजस्थान 
'टेंशन' स्वभाव की स्वभाविक प्रतिक्रिया है। जो हरेक में होती है। कुछ लोग इसे प्रकट नहीं होने देते और कुछ प्रकट कर देते हैं। बच्चों के लिए परीक्षा में 'टेंशन' होना यही स्वाभाविक प्रतिक्रिया है। पढ़ाई और परीक्षा में अंतर  होता है। बच्चे यदि पूरे सत्र में मन लगाकर खूब पढ़ें तब भी उनके लिए परीक्षा में संदेह रहता ही है। वे टेंशन में यह भी सोच लेते हैं कि ऐसा न हो परीक्षा में वह जो पढ़ा है,उसे भूल जायें और मौके पर कुछ याद न आये। टेंशन में वे यह भी सोचने से नहीं चूकते कि जो पढ़ा या पढ़ाया गया है उससे हटके कुछ न पूछ लिया जावे। ऐसा हो गया तो मेरा क्या होगा।? तात्पर्य यह कि टेंशन होना स्वभावगत प्रतिक्रिया है। लेकिन इसे न होने के प्रयास करना ही चाहिए और यह आत्मविश्वास बनाने से ही संभव है और आत्मविश्वास को मजबूत करने के लिए आत्मबल का होना जरूरी है।आत्मबल तभी आपके पक्ष में होगा जब आप संबंधित विषय में पारंंगत होंगे। पारंगत होने के लिए निरंतर अभ्यास और मेहनत करनी होगी। जो बच्चे पूरे सत्र मनन लगाकर पढ़ाई नहीं करेंगे उन्हें परीक्षा में टेंशन होगा ही। लेकिन जो बच्चे पूरे सत्र ध्यान से पढाई करते हैं इसके बाद भी टेंशन रखते हैं तो उन्हें सकारात्मक रहते हुए अपनेआप पर आत्मविश्वास रखना चाहिए। बच्चों में आत्मविश्वास जगाने के लिए उनके पालकों और अध्यापकों की भी जिम्मेदारी है कि वो बच्चों को रिजल्ट को लेकर किसी भी प्रकार के दंड देने का भय न जतावें। बच्चों के परीक्षा को लेकर यह टेंशन भी रहता है कि यदि रिजल्ट बिगड़ गया तो उनके मम्मी-पापा उसे खूब डांटेंगे या इससे भी बड़ा कोई दंड देंगे। बच्चे कोमल और संवेदनशील होते हैं,उन्हें परीक्षा और रिजल्ट को लेकर भयभीत न करते हुये प्रेम और अपनापन दिखलाते हुये उनमें आत्मविश्वास बनाये  रखने में मददगार। बनना चाहिए।
- नरेन्द्र श्रीवास्तव
 गाडरवारा - मध्यप्रदेश
सर्वप्रथम हम टेंशन यानी तनाव  के बारे में जाने । तनाव से पूरा विश्व पीड़ित है । तनाव से   पीड़ित  मानव शारीरिक  मानसिक , संवेगात्मक बीमारियों से घिर जाता है । चिंता हमारे  जीवन में चिता समान है । जीते जी हमें मुर्दा बना देती है । तनाव के लिए प्रतिकूल परिस्थियाँ जिम्मेदार होती हैं । तनाव की निरन्तरता से आत्म हत्या की प्रवृतियाँ मानव समाज में बढ़  जाती है । वॉलीवुड  के सितारे दीपिका पादुकोण , कंगना आदि तनाव यानी अवसाद की शिकार हुयी थी ।  डॉक्टरों के प्रयासों से वे तनावमक्त हुयी । अब वे  दवेध , विश्व में सफलता की मिसाल हैं अब हम आत्मविश्वास का अर्थ है अपनी शक्ति एवं अपनी योग्यता , क्षमता पर भरोसा करें । यानी आत्मनिष्ठा । तनाव हमारे साथ नहीं रहें ।तो हमें  अपने अंदर की कुंठा , निराशा को निकालने होंगे । हमें अपनी दमित इच्छाओं को जीवन से निकालें । हमें अपनी सोच बदलनी होंगी ।  कहा भी है जैसी दृष्टि वैसी सृष्टि । सोच बदल तो नजारे बदल जाएँगे । भक्तिकाल के कवि गोस्वामी तुलसीदास ने  सदियों पहले कहा , 
बिगड़ी जन्म अनेक की , सुधरे अब ही आज ।
कहने का मतलब यह है कि कई  जन्मों से हमारी स्थिति बिगड़ी हुई है  । तनाव , दुखों से ग्रसित हैं । हमें चिंता नहीं करेंगे । तो हम तनाव रहित हो जाएँगे। हमें तनावग्रस्त व्यक्ति , बच्चों से संवाद करना चाहिए । उन्हें अकेलापन महसूस न होने दें । जिस्म दर्द पर मरहम का काम करेंगे । योग , प्राणायाम करें । हम हँसे । जिससे हमारे  मस्तिष्क में से एंडोर्फिन नामक हार्मोन निकलता है । जो प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है । तनाव की पीड़ा को कम कर देता है । तनाव वाले व्यक्ति की परेशानियों को सुनके उनका हल निकालें ।
इस तरह उनका आत्मविश्वास पैदा होगा । बच्चे तनाव से बच जाएँगे । जी हाँ ऊपर की चर्चा से पता लग गया तनाव हमारे दुख का जनक है ।इसलिए तनाव छोड़ के बच्चे आत्मविश्वास से परीक्षा देनी चाहिए ।  हमारे प्रधानमंत्री मा नरेंद्र मोदी जी ने भारत में '  परीक्षा पे चर्चा  ' विषय ले के विद्यालयों में स्पर्धा करायी थी ।16 फ़रवरी 2019 को जो बच्चे चुने गए थे दिल्ली के  ताल कटोरा स्टेडियम  में परीक्षा पे चर्चा कार्यक्रम  में कहा था , " सबसे बड़ी शिक्षा यही है । भीतर के विद्यार्थी को कभी मरने नहीं देना । आत्मविश्वास जड़ी -बूटी नहीं है । जीवन में सब कुछ है । आत्मविश्वास नहीं है तो कुछ नहीं कर सकते । पीएम मोदी जी ने  बच्चों को परीक्षा में टेंशन भगाने को लेकर ' एग्जाम वारियर्स ' की किताब लिखी है । जी परीक्षा की टेंशन  से निजात के टिप्स हैं ।  .......अभिवाकों को यह किताब अपने बच्चों को  पढ़ाएँ ,  खुद भी पढ़ें । " 
मैं शिक्षिका रही हूँ । क्लास टीचर होने के नाते बच्चों में  परीक्षा में आत्मविश्वास बढ़ाने के अनुभव बता रही हूँ ।
 बच्चों में आत्मविश्वास बढ़ाने के लिये मेहनत , लगन  , एकाग्रता से पढ़ाई करें। विद्यार्थियों को गैजेट्स से दूर रखें । दूरदर्शन , मोबाइल से नाता तोड़े । बच्चे की कमजोरी  और क्षमता को जाने ,हमेशा अभिभावक बच्चे के प्रति सकारात्मक रहे । इसका सबसे उत्कृष्ट उदाहरनबलबर्ट आइंस्टीन से ले सकते हैं । बचपन में वे पढ़ाई में कमजोर थे । अध्यापक उन्हें मानसिक विकलांग कहते थे । उन्हें स्कूल से भी निकाला था । बाद वे सापेक्षता के सिद्धांत के आविष्कारक बने  । कहने मतलब है । हमें कभी भी निराश नहीं होना चाहिए ।
बच्चों को अंग्रेजी की स्पेलिंग्स हिज्जे में याद करवाएँ ।
बच्चों को अभिभावक पूरा समय दें ।बच्चे आपके हैं । वे आपकी दौलत है । उन पर पूरा ध्यान देना होगा । उन पर फोकस करना होगा ।  मैंने यह अनुभव किया । जिनके माँ - पिता ने बचपन से ही बच्चों की पढ़ाई करने में ध्यान दिया । उन बच्चों ने अपना लक्ष्य प्राप्त किया । भविष्य उनका उज्ज्वल बना है । बच्चों को अखबार , पत्रिका कहानियाँ आदि पढ़ने की आदत हो । जो शब्दकोश तो बढ़ाते  हैं संग में ज्ञान भी ।हर रोज घर में पढ़ने की बच्चों में आदत डालें । खेल के समय खेल । पढ़ाई के समय पढ़ाई बच्चों की करवाएँ ।
जल्दी सोना जल्दी उठना सूत्र अपनाएँ ।सुबह  का शांत  वक्त पढ़ने के लिए सबसे ज्यादा अनुकूल होता है । पाठ जल्दी याद हो जाता है ।बच्चों के मन व्याप्त भय को निकालना होगा । जिसके लिए अभिभावक बच्चों को ज्यादा नमंबर लाने का दवाब न डाले । बच्चों के मन  में पलने वाली नाकारत्मकता को बाहर निकालें ।  बच्चों को पौषिक डाइट दे । हल्का खाना दें जो शीघ्रता से पच जाए ।   नारियल पानी ,छाछ भी दें । समय - समय पर उनको फल , खाना , दूध  आदि दें ।
परीक्षा के डर से बच्चे चिड़चिड़े हो जाते हैं । ऐसे में उनसे प्यार का व्यवहार करें । गुस्सा , डाँट  न लगाएँ । हर विषय का पाठ्यक्रम  परीक्षा से पहले याद कराएँ । परीक्षा में सिर्फ रिवीजन कराएँ । अभिभावक बच्चों को हर  विषय के पेपर बनाके टेस्ट लेनी की प्रेक्टिस करे ।  उनका डर छूमंतर हो जाएगा । आत्मविश्वास बढ़ेगा । परीक्षा में पेपर देख के बच्चा घबराएगा नहीं ।  तरोताजा महसूस करेगा ।कभी भी अपने बच्चे की तुलना कक्षा के किसी भी बच्चे से नहीं करें । नहीं तो उनमें हीनता का भाव पैदा होगा । कहानियों से पाठ सिखाएँ । अभिभावक अपने बच्चों को डाँटे नहीं । उनकी क्षमता को प्रोत्साहित करें । उन्हें उनकी योग्यता , क्षमता , आई क्यू स्तर के अनुसार परीक्षा की तैयारी कराएँ । इन अचूक अनुभवों से बच्चे अच्छा प्रदर्शन परीक्षा में दिखाएँगे । अंत में  अपने दोहे में कहती  हूँ : -
  स्वयं के जीवन में हो  , नहींं आत्मविश्वास ।
ढले देख के नर उन्हें  , सफल लोग जो खास ।
- डॉ मंजु गुप्ता 
 मुंबई - महाराष्ट्र
आत्मविश्वास से ही सारे कार्य संभव होते हैं । जो बच्चे साल भर नियमित पढ़ते हैं;  उन्हें परीक्षा का भय नहीं होता   क्योंकि उन्हें केवल रिवीजन करना होता है जबकि जो  कुछ दिनों पहले ही किताब खोलते हैं वे मन ही मन डर जाते हैं और एग्जाम फोबिया के शिकार हो जाते हैं ।
विद्याधन उद्यम बिना कहा जु पावे कौन ?
बिना डुलाये न हिले, ज्यौं पंखे की पौन ।।
टेंशन से कभी भी किसी समस्या का हल नहीं मिलता इसलिए  खूब पढें , सफलता का कोई शार्ट कट नहीं होता , आत्मविश्वास से अवश्य ही सुखद परिणाम मिलते हैं ।
अतः उम्मीद का दामन न  छोड़ें ।
- डाँ. छाया सक्सैना प्रभु
जबलपुर  - मध्यप्रदेश
परीक्षा को सभी तनाव के रूप में लेते हैं, लेकिन अब इसे उत्सव के रूप में मनाने की जरूरत है। पैरेंट्स बच्चों से यह कहे कि जो पढ़ाएं जितना पढ़ा वह काफी है, बस हम तेरे साथ हैं। तो बच्चों का आत्मविश्वास अपने आप बढ़ जाएगा। घर के माहौल से लेकर परीक्षा हॉल के अंदर तक बच्चों को ऐसा माहौल देना चाहिए जिससे वह तनाव में न आए और खुशी और पॉजीटिव एनर्जी के साथ पर्चे हल करें। परीक्षा के डर को हावी होने से रोकने की जिम्मेदारी पैरेंट्स और टीचर दोनों की है। दोनों अगर अपनी जिम्मेदारी समझेंगे तो बच्चो सहज रहेंगे जिसका परिणाम बेहतर ही होगा। जब भी बच्चों के परिक्षा नजदीक आता है हमे किसी भी प्रकार के दबाव नहीं डालना चाहिए बल्कि हमे उनके मदद करनी है और प्यार से समझााना है, हमें जब बच्चा कुछ पुछे तो अगर हमें उनके बारे में पता होता है, तो अच्छे से समझा कर बताना चाहिए कभी भी परिक्षा के समय डाटना और चिल्लाना नहीं है इससे बच्चे के ऊपर बुरा प्रभाव पड़ता है उनका ध्यान भटक जाता है। परिक्षा के समय ध्यान एकाग्र होना बहुत जरूरी है उनको ज्यादा जोर नहीं देना चाहिए इससे उनका दिमाग प्रभावित हो सकता है। बच्चों पुरी तरह ख़ुश रहेगा तो परीक्षा अच्छे नम्बरों से पास करेंगे , डरा हुआ बच्चा जो आता है वह भी भूल जाता है । टेंशन नहीं करके मेहनत करना चाहिए और खोखला आत्मविश्वास से काम बिगड़ता है बनता नही , आत्मविश्वास पूरी तैयारी और दृढ़ता के साथ हो तो परीक्षा देने में मज़ा आता है 
-अश्विनी पाण्डेय
मुम्बई - महाराष्ट्र
  एक समय था, जब बड़े और संयुक्त परिवार हुआ करते थे । प्रेम, सहयोग, सहनशीलता, सेवा और सबसे अधिक सीमित संसाधनों के साथ आनंद पूर्वक जीवन व्यतीत करना ही, लोगों का उद्देश्य होता था । धार्मिक क्रियाकलाप और संस्कार ; हर परिवार की प्राथमिकता में शामिल थे । परिवार और आसपास के बच्चों के साथ बच्चे कहाँ बड़े हो जाते थे ; पता नहीं चलता था । न उनके हठ को महत्व दिया जाता था और न ही 
कभी उनके अहं को पोषित किया जाता था । दंडित होने के थोड़ी देर बाद ही बच्चा उसे भूल कर ,पुनः सामान्य हो जाता था। तब तनाव जैसे शब्द चलन में नहीं थे । जब संयुक्त और बड़े परिवार सीमित हुए तबसे बच्चों में भी सहनशीलता, सहयोग, सेवा के स्थान पर स्वार्थ और एकाकीपन दिखाई देने लगे । अभिभावक  अपनी महत्वाकांक्षा अपने बच्चों के माध्यम से पूरी करने की इच्छा रखने लगे । केवल और केवल किताबी शिक्षा और ऊँचे पद तथा अच्छी आय की चाह में उन्होने बच्चों से इतनी अधिक उम्मीद कर ली , कि उसे संस्कार और जीवन मूल्य सिखाना तो दूर ;  अन्य बच्चों की तुलना द्वारा उसे केवल तनाव देने का ही काम किया ।
इसमें शिक्षा और परीक्षा नीतियों ने आग में घी का काम किया । शालाओं में  दंड का प्रावधान समाप्त होने से छात्र उत्छृंखल भी हुए जिससे शिक्षक किसी तरह अपनी ड्यूटी पूरी कर स्वयं को मुक्त लेते हैं  । अब जब परीक्षा के दिन निकट आते हैं, तो छात्र का  तनावग्रस्त हो जाना स्वाभाविक है । अभिभावकों को भी चाहिए कि बच्चे पर, अधिक अंक लाने का दबाव न बनाएं, अन्य सहपाठी से उसकी तुलना न करें  , उसने जितना भी अध्ययन अब तक किया है उसे ही पक्का कर लेने को कहें, ऐन परीक्षा के समय अधिक से अधिक पढ़ लेने की मानसिकता; उलझन और भ्रम पैदा कर सकती है । बच्चे को पूरी नींद और पौष्टिक भोजन की आवश्यकता होगी ,अतः इन बातों का ध्यान रखते हुए घर में स्वस्थ वातावरण भी निर्मित किया जाए । शिक्षकों का भी दायित्व है कि वे धैर्य और शांति से सहयोगात्मक ढंग से छात्रों की समस्याओं का निवारण करें । छात्र शांति से अध्ययन कर, प्रश्न-पत्र हल करें । यदि कोई पर्चा बिगड़ भी गया, तो अगले पर्चे की अच्छी तैयारी करे । तीव्रगति से लिखने की क्षमता का विकास करे और उस निर्धारित समय में ही हर प्रश्न हल करने की कोशिश करे ।
ऐसा करने से निश्चित ही विद्यार्थी का तनाव दूर होगा और उसमें परीक्षा हेतु  आत्मविश्वास उत्पन्न होगा ।
- वंदना दुबे 
   धार - मध्य प्रदेश 

" मेरी दृष्टि में "  परीक्षा के समय किसी भी तरह की टेंशन नहीं होनी चाहिए । इसके लिए मां - बाप और अध्यापक वर्ग  को विशेष ध्यान देना चाहिए । ताकि बच्चें टेंशन में ना रहें । यहीं आज की चर्चा का उद्देश्य है ।
                                                     - बीजेन्द्र जैमिनी



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