क्या कभी दोस्त भी दुश्मन बन जाता है ?

सबसे पहले देखते हैं कि दोस्त कहते किसे हैं ? जो इंसान आपकी तरक्की से खुश होता है । वह वास्तव में आप का दोस्त है । यही आज के परिवेश में दोस्त की परिभाषा है । अब आते हैं कि दोस्त कब दुश्मन बनता है ? जब वह आपकी तरक्की में बाधा डालना शुरु कर दे तो समझ लेना चाहिए कि अब दोस्त तो दुश्मन बन गया है । यही " आज की चर्चा " का प्रमुख विषय है । बाकि आये विचारों को देखते हैं कि ये क्या कहते हैं : -
       दोस्त ही नहीं अपना-आप भी दुश्मन बन जाता है।जब समय शत्रु बन जाए।इसलिए कहा गया है कि समय बलवान है। समय प्राकृति की भांति परिवर्तनशील है और सूर्य की भांति उदय व अस्त होता है।अत: जब समय प्रतिकूल होता है।तब दोस्त तो क्या दुश्मन भी मित्र बन जाते हैं।बस धैर्य बनाए रखना आवश्यक है।चूंकि जब अच्छाई ना रही तो बुराई की क्या औकात है।
- इंदु भूषण बाली
जम्मू - जम्मू कश्मीर
दोस्ती एक ऐसा उपहार है जो बहुत ही प्यारा और अनूठा रिश्ता होता है। हम अपने सारे रिश्ते जन्म से जुड़े हुए रहते हैं मां बाप भाई बहन आदि दोस्ती केवल एक ऐसा रिश्ता है जिसको हम स्वयं ही चुनते हैं जो हमारा सच्चा दोस्त नहीं होता हमारे पास स्वार्थ केवल जुड़ा रहता है ऐसे मतलबी इंसान कभी किसी के दोस्त या सखा नहीं होते वह कुछ दिनों बाद साथ रहने के बाद अपने आप समझ आ जाता है क्योंकि इंसान की फितरत स्वार्थी होती है। दुनिया में अच्छे लोग भी हैं जिनके कारण यह दुनिया टिकी है जो दोस्ती का सच्चा रिश्ता और मतलब समझते हैं कभी किसी का सच्चा मित्र नहीं हो सकता वह देश के लिए और व्यक्ति के लिए जयचंद की भांति होते हैं।कृष्ण और सुदामा की दोस्ती जिसकी बरसों से मिसाल दी जाती है और लोग दोस्ती में भी उसी की कसमें खाते हैं।यदि परिवार में भी हम दोस्ती रखें और एक निर्मल रिश्ता का कायम रखें तो हर रिश्ते सुधर जाएं और कभी किसी की किसी से दुश्मनी ना हो एक दोस्त ही दोस्त को सच्चा ज्ञान देता है और उसके भले बुरे में उसके साथ खड़ा रहता है।
 **सच्चा दोस्त वही जो तुमको,
ज्ञान की ज्योति दिखलाता है।* 
- प्रीति मिश्रा 
जबलपुर - मध्य प्रदेश 
अवश्य दोस्त ही दुश्मन बन जाते है और सबसेखतरनाक दुश्मन...
ऐसे दोस्तों का आप क्या करेंगे जिन्हें अपना समझकर आप दिल खोलकर रख दें, अपने सुख-दुख की सारी बातें उड़ेल दें, पर वो आपकी खिल्ली उड़ाएँ? हल्का महसूस करने की जगह घंटों और कई बार दिनों तक आप अपनी समस्याओं से नहीं, बल्कि अपने दोस्त के व्यवहार को लेकर सुलगते रहेंगे.
बार-बार खुद को कोसते रहेंगे कि मुझे क्या पड़ी थी यह सब बताने की... । एक अच्छे दोस्त को खो देने का दुख बहुत तकलीफ़ पहुँचा सकता है, यह डिप्रेशन की गर्त में भी धकेल सकता है.भरोसा दोस्ती की बुनियाद होता है और दोस्तों की सोहबत नाउम्मीदियों से निकलने का एक भरोसेमंद रास्ता.
आपका दोस्त ही आपका गलत इस्तेमालकर सकता है 
यदि आपका मित्र आपका इस्तेमाल करने को सोचे तो वह चाहे तो आपको आसानी से कंट्रोल कर सकता है। इसके लिए वह आपकी भावनाओं का इस्तेमाल कर सकता है, जिसके बाद उसकी पसंद के हिसाब से आप अपनी पसंद-नापसंद को बदलना आरंभ कर देते हैं। आप पर है उनका पुरा कंट्रोल
यदि उसे कोई इंसान नहीं पसंद है तो वह उसे आपका दोस्त तक  कभी नहीं बनने देगा। आपके जीवन के अहम फैसलों के पीछे प्लानिंग आपके इसी ‘सो कॉल्ड बेस्ट फ्रेंड’ की हो सकती है।
ये दोस्त कम दुश्मन होते है । 
यह सच है कि सच्चे मित्र हर समय आपके लिए मौजूद होते हैं। आप एक आवाज़ लगाएंगे तो वे मदद करने के लिए दौड़े चले आते हैं। लेकिन जब यही अच्छे मित्र दुश्मनों जैसा बर्ताव करने लगें तो यह आवाज़ तो क्या आपके फोन करने पर भी जवाब नहीं देते। क्योंकि वे जानते हैं उनकी कौन सी हरकत आपको बुरी और कौन सी बात अच्छी लग सकती है। इसलिए जहां उन्हें शक होता है कि उनकी किसी बात का आप बुरा मान गए हैं, वह झट से उसे छिपाने के लिए ऐसा कोई काम कर देते हैं कि शक की कोई गुंजाइश ना रहे। इस बात का सबसे अधिक फायदा वे अपना काम निकलवाने के लिए भी करते हैं। जो काम आप बिलकुल भी करना चाहते, वे काम आप अपने बेस्ट फ्रेंड के केवल एक ‘प्लीज़’ कहने पर जरूर करते हैं। सम्भल कर रहें ऐसे दोस्तों से और दोस्ती बहुत सोच विचार कर करें ...
- अश्विनी पाण्डेय
मुम्बई - महाराष्ट्र
अनेक बार ऐसा देखने में आया है जब अंतरंग मित्र भी एक दूसरे के दुश्मन बन गए।रिश्ते विश्वास की बुनियाद पर टिके होते हैं ।चाहे सगे-संबंधी हों या मित्र ।विश्वास का धागा बहुत कमजोर होता है जो एक झटके में ही टूट जाता है और लाख कोशिश करने पर भी नहीं जुड़ता ।जुड़ता भी है तो पहले जैसा विश्वास नहीं रहता ।कई बार तो उनमें इतनी दुश्मनी हो जाती है कि एक-दूसरे की जान के प्यासे हो जाते हैं ।एक-दूसरे को नुकसान पहुँचाने की कोशिश में लगे रहते हैं ।कोई भी रिश्ता अटूट नहीं होता ।कभी न कभी उसमें तकरार हो ही जाती है फिर चाहे दोस्त ही क्यों ना हो ।
- सुशीला शर्मा
जयपुर - राजस्थान
कभी नहीं अक्सर हमारा जिगरी दोस्त ही हमारा सबसे बड़ा दुश्मन बन जाता है । खून का रिश्ता ना होते हुए भी दोस्त हमारे जीवन में काफी महत्वपूर्ण बन जाते हैं। स्कूल के दोस्त कॉलेज के दोस्त ऑफिस के दोस्त  या फिर घर के बगल में रहने वाला दोस्त । यह कोई भी हो सकते हैं... आपके भी कई दोस्त होंगे लेकिन उन सबमें एक खास ऐसा जरूर होगा जिसके साथ आप हर तरह की बातें साझा करते हैं।
दोस्त के लिए कुछ भी करेंगे
यह बातें पढ़ते हुए जरूर आपके दिमाग में ऐसे ही किसी मित्र की छवि बन रही होगी, जो आपके लिए बेहद खास है। जिसके लिए आप किसी अन्य दोस्त से झगड़ा भी मोल ले सकते हैं। वह आपके लिए बेस्ट से भी बेस्ट है, इसलिए उसके बारे में गलत विचार लाना आप सोच भी नहीं सकते।
लेकिन यदि आपसे कोई आकर यह दे कि वही दोस्त आपके लिए बुरा साबित हो रहा है तो क्या आप इस बात पर विश्वास करेंगे? शायद नहीं... क्योंकि जो दिल के पास होते हैं उनके बारे में बुरा ख्याल भी हम ला नहीं पाते। लेकिन एक शोध के मुताबिक ऐसा वाकई मुमकिन है कि आप का सच्चा मित्र आपका सबसे बड़ा दुश्मन बन सकता है।
लेकिन हर कोई ऐसा नहीं होता
खैर हम पर्सनली किसी को भी कुछ कहना नहीं चाहते... यह बात आपके मित्र पर लागू हो यह कतई जरूरी नहीं है। लेकिन ऐसे कई लोग हैं जिन्होंने ऐसी स्थिति का अनुभव किया है, जिसमें उनका सच्चा मित्र ही उन्हें धोखा दे देता है। परन्तु ऐसा क्यों होता है?
इसका एक सरल जवाब है उस मित्र का स्वार्थ... शायद अपने किसी फायदे के लिए वह आपको इस्तेमाल कर रहा था। या फिर वह सही मायने में आपका सच्चा मित्र था ही नहीं, बस मित्रता का नाटक कर रहा था। कारण इसके अलावा भी कई सारे हो सकते हैं लेकिन सबसे पहले आपको यह जानने की जरूरत है कि वह आपको धोखा आखिरकार दे कैसे सकता है। वह कहावत तो आपने सुन ही रखी होगी... ‘घर का भेदी लंका ढाए’... बस आगे समझाने की शायद जरूरत नहीं है। आप जिसके साथ सबसे ज्यादा बातें साझा  करते हैं वही आपके राज़ जानता है। हमारा ख़ास दोस्त हमारे बारे में सारी तो नहीं लेकिन अधिक बातें तो जानता ही है। और हमें धोखा देने के लिए यह राज़ काफी हैं...
आपको किस बात से डर लगता है, कौन से राज़ के खुल जाने का भय सताता है, आपकी कमज़ोरी क्या है और किस तरह की स्थिति आप बिलकुल भी बर्दाश्त नहीं कर सकते। यह सब आपका दोस्त अच्छे से जानता है और जो व्यक्ति आपके बारे में इतना कुछ जानता हो यदि वही आपको नुकसान पहुंचाने की सोचे तो ना केवल आर्थिक बल्कि मानसिक रूप से आप वाकई घायल हो सकते हैं। लेकिन एक बड़ा झटका देने के अलावा आपके दोस्त आपको छोटे-मोटे नुकसान भी देते रहते हैं। जैसे कि आपके माता-पिता के सामने खुद की ही प्रशंसा करना। फर्ज़ कीजिए आपके स्कूल का रिजल्ट घोषित हुआ है, और उसके अगले दिन ही आपका बेस्ट फ्रेंड घर आता है और आपके पैरेंट्स के सामने ही आपके कम नंबरों के सामने अपने अच्छे नंबर आने की खुशी ज़ाहिर करता है। हो सकता है उस समय आपके माता-पिता कुछ ना भी कहें, लेकिन उसके जाने के बाद कई दिनों तक आपको ताने सुनने पड़ते हैं। वे जानते हैं कि आपको कैसे नुकसान पहुंचाया जा सकता है, इसलिए बस वही करते हैं। जब हम किसी के बारे में जरूरत से अधिक जान लेते हैं तो अपने चालाक दिमाग का इस्तेमाल कर उसे क़ाबू में करना भी जानते हैं। इसके अलावा लड़कों को खासतौर पर ऐसे दोस्तों के कारण खासी परेशानियां झेलनी पड़ती हैं। जैसे कि ऐसे दोस्त पैसे मांगकर ले तो जाते हैं लेकिन कभी वापस नहीं करते। आपका सारा सामान आपसे पूछकर या कई बार बिना पूछे भी ले जाते हैं इस्तेमाल करने के लिए, लेकिन यह सामान आप तक कब वापस आएगा या फिर आएगा भी या नहीं, इसका  कोई भरोसा नहीं होता । 
ऐसे दोस्तों का आप क्या करेंगे जिन्हें अपना समझकर आप दिल खोलकर रख दें, अपने सुख-दुख की सारी बातें उड़ेल दें, पर वो आपकी खिल्ली उड़ाएँ? हल्का महसूस करने की जगह घंटों और कई बार दिनों तक आप अपनी समस्याओं से नहीं, बल्कि अपने दोस्त के व्यवहार को लेकर सुलगते रहेंगे.
बार-बार खुद को कोसते रहेंगे कि मुझे क्या पड़ी थी यह सब बताने की...
एक अच्छे दोस्त को खो देने का दुख बहुत तकलीफ़ पहुँचा सकता है, यह डिप्रेशन की गर्त में भी धकेल सकता है.
भरोसा दोस्ती की बुनियाद होता है और दोस्तों की सोहबत नाउम्मीदियों से निकलने का एक भरोसेमंद रास्ता.अच्छा दोस्त जहां ज़िंदगी की हर मुसीबत में सहारा बन जाता है । 
दोस्ती पर नाज होता है । वहीं स्वार्थी लोगों की दोस्ती जी का जंजाल बन जाती है । राजकपूर जी की फ़िल्म का यह गाना ......
दोस्त दोस्त न रहा ......
दोस्तों को दुश्मन बनते देर नहीं लगती 
और दोस्त जब दुश्मनो में शामिल होता है । बहुत ख़तरनाक होता है 
- डॉ अलका पाण्डेय
मुम्बई - महाराष्ट्र
प्रश्न बड़ा कठिन है उतना ही महत्वपूर्ण भी ।संसार ने श्री राम सुग्रीव हनुमान शनि कर्ण दुर्योधन श्री कृष्ण सुदामा श्री कृष्ण अर्जुन की दोस्ती को सुना अनुभव किया उसके हर प्रकार के परिणाम अनुभव किये ।समय-समय पर देश समाज व परिवार में दोस्ती दिखती है जिसका आरम्भ छात्र जीवन या बचपन के खेलकूद से होता है ।दो दोस्त आपस में विश्वास कितना रखते हैं एक दूसरे के लिए समर्पण त्याग कितना है ।स्वार्थी या निस्वार्थ भाव ऊपर तात्कालिक परिस्थिति समाज देश का परिवेश तय कर देगा कि दोस्त दुश्मन बनेगा अथवा नहीं ।सच्चे दोस्त पहले से अब तक दोस्त के लिए तन मन धन यहां तक जीवन भी लुटाते दिखे हैं ।आज भी सच्चे दोस्त दुश्मन बने हों संख्या नगण्य है ।
- शशांक मिश्र भारती 
शाहजहांपुर - उत्तर प्रदेश
अक्सर गलतफहमियों के चलते दोस्तों को दुश्मन बनते देखा जाता है । दोस्ती अर्थात दो या दो से अधिक लोगों का भावनात्मक, विचारात्मक आधार पर रिश्ता जहाँ अधिकतर  वैचारिक साम्यता देखने को मिलती है । जब दोस्ती में *हम* की जगह *मैं* की भावना घर करती है तभी से उसमें दरार पड़नी शुरू हो  जाती है । दोस्ती का सबसे बड़ा दुश्मन अहंकार, ईर्ष्या, प्रतिस्पर्धा, स्वार्थ,  व लालची स्वभाव होता है । यदि वास्तव में दोस्ती है तो उन्हें आपस में विश्वास रखना चाहिए  कि यदि मेरा दोस्त ऐसा कर रहा है तो अवश्य ही उसमें  मेरे लिए कुछ भला ही होगा । किसी भी रिश्ते में जब शक को बल मिलता है तो उसका अंत होता है ।
याद रखें -
रूठे सुजन मनाइए जो रूठे सौ बार ।
रहिमन फिर फिर पोइए टूटे मुक्ता हार ।।
ये दोस्ती भी अनमोल है अतः इसे  मणि माणिक्य से युक्त हार की तरह सहेजें ।
- छाया सक्सेना प्रभु
जबलपुर - मध्यप्रदेश
व्यक्तिगत  अनुभव  दोस्त  प्राय दोस्त  ही होता  है  दोस्ती  मे कभी  दुश्मनी  हो ही नही  सकती  है इसमे  न प्रतिस्पर्धा  ईर्ष्या  की  भावना  होती है  सिर्फ  समर्पण  की भावना  होती है एक दूसरे के  बिना  रह  नही  पाते  अटूट  विश्वास  सम्बन्ध  बना रहता है  स्कूल  के  दोस्त  कालेज  के  दोस्त  आफिस के  दोस्त  पडोस  के दोस्त  ।दोस्तो  की  लम्बी  श्रृंखला होती है  पर एक खास  दोस्त जो अपना होता  है। कुछ  परिस्थिति  मे देखा  गया है कि  कहलाते तो दोस्त है  पर स्वार्थ वश दुश्मनी  कर बैठते  है।  परख  की  कमी  के  कारण  विश्वास  का रूप  बदल  जाता  है कहा ही  गया  है कि  घर  का भेदिया  लंका  ढाही दोस्त  बनकर  दोस्ती  को लूटना एक भावनात्मक  आघात  है ।
- डाँ. कुमकुम  वेदसेन 
मुम्बई - महाराष्ट्र
दोस्त यदि दुश्मन बन जाए तो इससे हमारी अयोग्यता ही साबित होगी ; कि हमनें ऐसे दोस्त का चयन किया जो अवसर पाते ही दुश्मन हो गया । इससे हमारी ,मित्रता की परख की क्षमता पर ही प्रश्न चिन्ह लगते है । पर कभी-कभी भोलेपन और नादानी में ऐसे लोगों पर भी विश्वास कर लिया जाता है, जो नकली चेहरे के साथ मित्रता का हाथ बढ़ाते हैं ।दोस्त या मित्रता शब्द का अर्थ बहुत व्यापक है । मित्रता पर, विचारकों एवं कवियों ने समय-समय पर अपने विचार रख कर, लोकहित में, समाज को सचेत करने का भरसक किया है ; बावजूद इसके लोग मित्रता में धोखा खा जाते हैं ।
संगत अच्छी ही हो इसकी बाध्यता नहीं ।
मित्र आदर्श हो यह भी जरूरी नहीं ;
क्योंकि मित्रता करने वाला भी तो स्वयं अनेक गुणावगुण से युक्त होता  है । कई बार किसी के कोई एक गुण से प्रभावित होकर भी मित्रता प्रगाढ़ता का रूप ले लेती है । मित्र का सर्वगुण संपन्न होना भी कोई शर्त नहीं । यह तो बस ,एक दूसरे का साथ निभाने का, एक स्वैच्छिक पावन संकल्प मात्र होता है । यह आवश्यक नहीं कि उन मित्रों के बीच किसी प्रकार का वैचारिक मतभेद न हो, यह भी आवश्यक नहीं कि उनके बीच कोई स्वार्थ और अपेक्षा न हो । "मुसीबत के समय मित्रता के कसौटी पर खरा उतरने" का सीधा अर्थ ही यह है, कि एक दूसरे से आशा और अपेक्षा रखना । जब किसी बात पर मतभेद होता है , तभी असली  मित्र की पहचान होती है ; क्याकि मित्र परस्पर एक दूसरे की प्रवृत्तियों से अवगत रहते हैं । बावजूद इसके , वे एक दूसरे को दोष देने के अलावा, उनके अवगुणों और गुप्त बातों को सार्वजनिक करने लगते हैं ।
निंदा द्वारा  प्रतिष्ठा को क्षति पहुँचाने का प्रयास होता है ।
आपसी संवाद में शून्यता विवाद को जन्म देती है ।
बस यही वह स्थित होती है जब मित्र दुश्मन हो जाता है । 
- वंदना दुबे 
  धार - मध्य प्रदेश 
       यह कहा जाता है कि लोग जब घोड़ा खरीदते हैं तो पर्याप्त जाँच-परख करते हैं तब जाकर घोड़ा खरीदते हैं, मित्र बनाते समय हम ऐसी कोई सावधानी नहीं बरतते। बाद में उसके दुष्परिणाम जब सामने आते हैं तो हम विचलित- व्यथित होते हैं।  आज कृष्ण-सुदामा, राम-सुग्रीव, कर्ण-दुर्योधन, कृष्ण-अर्जुन जैसी दोस्ती मिल पाना असंभव है। किसी भाग्यशाली को ऐसी दोस्ती मिल भी सकती है। आज के परिवेश में जब तक स्वार्थ सधता है तब तक तू मेरा सबसे अच्छा मित्र, स्वार्थ सधना बंद हुआ तो तू कौन और मैं कौन वाली स्थिति आ जाती है। कवि रहीम के अनुसार तो सच्चे मित्र की पहचान विपत्ति काल में ही होती है। स्वार्थ, अहंकार, शक, अवसरवादिता, अत्यंत अंतरंगता.... ये सब दोस्त से दुश्मन बनने में बहुत बड़ी भूमिका निभाते हैं। धीरे-धीरे गति पकड़ती दोस्ती का दोस्त दीर्घकालिक होता है, तेजी से गति पकड़ती दोस्ती का दोस्त अल्पकालिक होता है और दुश्मन बनते उसे देर नहीं लगती है।  दोस्त किसी को भी बनायें, पर उसके समक्ष अपनी कमजोरियाँ उजागर न करें तो दोस्त अवश्य दोस्त बना रह सकता है। वैसे माता-पिता से बढ़ कर कोई सच्चा दोस्त नहीं होता है।
- डा० भारती वर्मा बौड़ाई
देहरादून - उत्तराखण्ड
 दोस्त कभी दुश्मन नहीं बनता है। दोस्त हमेशा अपने मित्र की दुख सुख में भागीदारी निर्वहन कर अपने सच्चे दोस्त का परिचय देता है। दोस्त कभी भी अपने दोस्त का अहित नहीं करता ,ना चाहता है ,बल्कि दोस्त की विकास और जागृति के लिए प्रसन्नता पूर्वक अपना मन ,तन, धन को समर्पित करने के लिए  उत्सवित रहता है। यही गुण सच्चे दोस्त का गुण है । हां इस संसार में ऐसे भी दोस्त होते हैं जो अंदर कुछ और बाहर कुछ होते हैं। जो जैसा दिखता है, वैसे होता नहीं ,जो जैसा होता है, वैसा दिखता नहीं । कुछ ऐसे दोस्त होते हैं जो अपना मतलब निकालते  तक दोस्त मानते हैं।  मतलब निकल जाने के बाद पहचानते नहीं। ऐसी स्थिति में दोस्त दुश्मन बन जाता है ।  ऐसे दोस्त स्वार्थी होते हैं । स्वार्थ पूरा होने पर जो मैत्री  दायित्व और कर्तव्य होते है,भूल जाते है। ऐसी स्थिति में दुश्मनी पैदा होती है । वास्तव में मूल रूप में देखा जाए तो दोस्त वही हैं जो हर पल, हर क्षण दोस्त के सहयोग के लिए तत्पर और दोस्त के प्रति संवेदनशील होता है। स्वार्थ आड़े आने पर दुश्मन बन जाता है। यह स्थिति दोस्त की गुणों का पहचान न होने के कारण होता है ,कभी दोस्त भी दुश्मन बन जाता है,नासमझी के कारण।
- उर्मिला सिदार
रायगढ़ - छत्तीसगढ़
मित्रता का दावा बहुत से लोग करते हैं और मित्रों पर भरोसा भी बहुत किया जाता है परंतु अनेक बार मित्रता भी एक धोखा या अभिनय मात्र साबित हो जाती है !
कवि रहीम ने कहा है --
कही रहीम संपति सगे,
 बनत बहुत बहु रीत ,
बिपति कसौटी जे कसे
 सोई सांचे मीत! 
विपत्ति में जो हर प्रकार से साथ देता है वही हमारा सच्चा मित्र होता है ! सोने के खरे खोटे होने की परख भी तो कसौटी में कसने के बाद होती है फिर यह तो मित्र है ! सच्ची मित्रता के लिए हम कृष्ण सुदामा की दोस्ती का उदाहरण लेते हैं क्या आज वैसी दोस्ती मिलती हैं ? सच्चा दोस्त जीवन में एक भी मिल जाए तो स्वयं को भाग्यशाली समझना चाहिए ! सच्चा मित्र दुर्लभ होता है आज की जो स्थिति है उसे देखकर दोस्ती से लोगों का विश्वास ही उठ गया है ! वह कहते हैं ना जर ,जोरू ,और जमीन यह तीनों ही अविश्वास के विवाद की जड़ है ! दोस्ती में भी इसी के चलते दुश्मनी पैदा हो जाती है और दोस्त दुश्मन हो जाता है आज हमें सच्चे दोस्त को परखना टेढ़ी खीर हो गई है बाहर कुछ और भीतर से कुछ और किंतु फिर भी जीवन में एक मित्र और दोस्त का होना जरूरी है !जिससे हम अपने दिल की बात शेयर कर सके जो हमारी सारी कमजोरियों को ढक दें !जिसका विपत्ति के समय खड़े रहना बेझिझक कहना मैं हूं ना ! सारी परेशानी स्वयं ओढ़े लेता है और मित्र को नई ऊर्जा देता है ,वही सच्चा मित्र है ! दोस्ती में दुश्मनी तब भी आ जाती है जब हम किसी दूसरे के बहकावे में आकर आंखे खुली रख कर भी अविश्वास करते हैं तब दोस्ती दुष्मनी का रूप ले लेती है ! अंत में कहूंगी दोस्ती में खुलकर बातें होनी चाहिए और पूर्ण विश्वास होना चाहिए पति-पत्नी भी एक सच्चे दोस्त ही होते हैं जो विपत्ति में एक दूसरे के साथ विश्वास लिए जीवन पर्यंत खड़े रहते हैं !
- चन्द्रिका व्यास
मुम्बई - महाराष्ट्र
जीवन में दोस्त भी दुश्मन बन जाता है जब दोस्ती के मध्य "मनोविकार अपना घर "बना लेते हैं l निर्विकारी व्यक्ति तो यही दुआ माँगता है -"बने चाहे दुश्मन जमाना हमारा ,सलामत रहे दोस्ताना हमारा l"दोस्ती की सलामती की दुआ मांगने वाले आखिर दुश्मन क्यों बन जाते हैं ,यह एक विचारणीय प्रश्न है ...I सुदामा ने कृष्ण से पूछा -"दोस्ती का असली मतलब क्या होता है ?कृष्ण ने मुस्कराकर कहा -"जहाँ मतलब ,वहाँ दोस्ती कहाँ l"
दोस्ती में दूसरा विघटनकारी तत्व है हमारा अहंकार ,घमंड ,ईगो अर्थात जो हम हैं उसे स्वीकार नहीं करना और जो हम हैं नहीं उसे स्वीकार करना l
तीसरा बड़ा कारण -दोस्ती में किसी प्रकार का खून का रिश्ता नहीं होता लेकिन विश्वाश की प्रेम डोर दोस्ती को आपस में बांधे रखती है l रहीम दास जी ने कहा है -
"रहिमन धागा प्रेम का ,मत तोड़ो छिटकाय l 
टूटे से फिर न जुड़े ,जुड़े गांठ पड़ जाये l"
गांठ में सरलता नहीं होती है चाहे वह रस्सी में ,शरीर में विचारों या व्यवहार में हो ,वह आपकी दोस्ती को छिन्न भिन्न कर देगी ,दुश्मनी में बदल देगी l 
तेरे हर दर्द का अहसास है मुझे ,
तेरी मेरी दोस्ती पर नाज़ है मुझे l
कयामत तक न बिछुड़ेंगे ,ए मेरे दोस्त 
कल से भी ज्यादा भरोसा है आज मुझे ll 
इस भरोसे को छिन्नभिन्न करने वाली सबसे बड़ी ताकत है हमारा स्वार्थ l मानस में भी कहा है -
सुर नर मुनि सबकी यह रीति ,स्वार्थ लाभ करें सब प्रीति ll 
अगर हमारी दोस्ती में ऐसा परिवेश है तो दोस्त दुश्मन बनकर रहेंगे l इसे ब्रह्मा जी भी नहीं टाल सकते l कहा गया है -दोस्त एक ऐसा चोर होता है जो आँखों से आँसू ,चेहरे से परेशानी और दिल से मायूसी यहाँ तक कि जिंदगी से दर्द और बस चले तो हाथों की लकीरों से मौत तक चुराले l ऐसा चोर यदि आपके जीवन में है तो केवल एक ही परिस्थति में आपका दुश्मन नहीं बनेगा "जब आँसू हो दोस्त के और आँखे हों हमारी l"मानव जीवन में दुर्जनों की प्रशंशा की अपेक्षा सज्जनों की गाली अच्छी है l तुलसीदास जी ने भी मानस में कहा है -
बरबस नरक देहु विधाता ,
दुष्ट संग  स्वर्ग कबहुँ न देहु विधाता l "
- डाँ. छाया शर्मा
अजमेर - राजस्थान
विषय है कि कभी- कभी दोस्त भी दुश्मन बन जाता है। यह ठीक है ;पर कब ? जब एक मित्र को दूसरे के यश, मान- सम्मान, धन- वैभव, उन्नति को देखकर अप्रकट ईर्ष्या, स्वार्थ  का भाव पनपने लगे; तो दोस्ती को दुश्मनी में बदलते देर नहीं लगती। अतः सच्ची दोस्ती करने से पहले एक सच्चे मित्र के लक्षणों को भली प्रकार से समझ लेना चाहिए। शास्त्रों में कहा भी गया है -------
 "पापान्निवारयति योजयते हिताय/
 गुह्यं च गूहति गुणान प्रकटीकरोति।
 आपदगतं च न जहाति ददाति काले/
 सन्मित्रलक्षणमिदं प्रवदन्त्ति सन्त:" ।।
जो पाप रोकता है ,हित में जोड़ता है, गुप्त बात रखता है, गुणों को प्रकट करता है, आपत्ति आने पर साथ नहीं छोड़ता है, समय आने पर( जो आवश्यक हो) देता है। सत्पुरुष इन्हीं को सन्मित्र के लक्षण कहते हैं। आज हम लोग मित्र बनाने में यही गलती करते हैं। अस्थिर, चंचल- चित्त, स्थूल बुद्धि, अहंकार की प्रवृत्ति वाले से मित्रता नहीं हो सकती। ऐसे दुर्जनों की मनोवृत्ति को भाप कर ही मित्रता करनी चाहिए; अन्यथा मित्रता का मुखौटा लगाए दुष्ट मित्र सदैव अपने साथी मित्र के सत्कार, कृतकार्य पाने के  बाद भी कृतघ्न रहता है । सच्चा मित्र वही है; जो धनी हो या निर्धन, सदैव मित्र के हित की, निस्वार्थ भाव से कामना करें यथा--- कृष्ण- सुदामा की मित्रता । मित्रता दूध और पानी के समान हो ।दूध पानी को और पानी, दूध को, अपने रंग में रंग ले। तुलसीदास जी ने भी कहा है ----
"आपद काल परखिए चारि
 धीरज धर्म मित्र अरू नारि।।
आज चमक- दमक, भौतिक विलासितापूर्ण जीवन में, मित्र की परख करना अत्यंत कठिन हो गया है; क्योंकि स्वार्थ, धोखा, लालच में दोस्त भी यश, धन संपदा जैसे लाभ पाने के लिए कभी-कभी मित्र के साथ विश्वासघात भी कर देता है; जो जीवनभर सच्चे मित्र को उसका यह दुख सदैव सालता रहता है । आज के दौर में मित्र बनाना बड़ा चुनौतीपूर्ण कार्य है।कभी- कभी बचपन की दोस्ती, जीवनपर्यन्त ऐतिहासिक उदाहरण भी बन जाती है; पर कभी-कभी अभिशाप भी।अत:भावों, ,विचारों में सहयोग व सामंजस्य सच्ची दोस्ती के लिए श्रेयस्कर है ।
- डाॅ.रेखा सक्सेना
मुरादाबाद - उत्तर प्रदेश
दोस्ती की बुनियाद विश्वास और प्रेम होती है ।जैसे ही ये बुनियाद हिलती है, गहरी दोस्ती भी दुश्मनी में बदल जाती है ।जहाँ समर्पण और विश्वास दो दोस्तों को अपने सगे से भी सगा बना देता है वहीं जब विश्वास टूटता तो एक दूसरे पर से भरोसा उठ जाता है ।यह एक दूसरे की दोस्ती  को खत्म तो करता ही ,प्रेम का भी विनाश करता है ।जहाँ प्रेम न हो वहाँ दोस्त आसानी से दुश्मन बन सकते है ।दोस्ती बहुत बहुमूल्य खजाना है ।इसे बड़े प्यार से सम्भालने की आवश्यकता होती है ।यह सभी रिश्तों से न्यारा और जिन्दगी भर साथ निभाने वाला होता है।
    -  रंजना वर्मा
रांची - झारखण्ड
दोस्त भी दुश्मन तब बनता है जब वह मिथ्या दोस्ती का ढोंग करता है व सच्चा दोस्त होता नहीं है .ऐसी  जूठी दोस्ती के उदाहरण आम मिल जाएंगे .दोस्त बनकर धोखाधड़ी करने वाले दोस्त भी आम मिल जाएंगे .सच्चा दोस्त सारी ज़िन्दगी दोस्त ही रहता है , दोस्त को धोखा देना तो दूर , धोखे की बात सोच भी नहीं सकता !! मनमुटाव अयश्य हो सकता है पर धोखा , कभी नहीं !!
- नंदिता बाली 
सोलन - हिमाचल प्रदेश
वर्तमान  समय  में  कृष्ण  सुदामा  जैसी  दोस्ती  की  कल्पना  नहीं  की  जा  सकती  ।  इतिहास  में  ऐसे  कई  उदाहरण  और  कहानियां  भरी  पड़ी  है,  जब  एक  दोस्त  ने  दूसरे  के  साथ  छल  किया  और  एक-दूसरे  के  जानी  दुश्मन  बन  गए  ।   जहां  विचारों  का  सामंजस्य  होता  है  वहां  दोस्ती   होती  है  ।  बुजुर्ग  कहा  करते  थे  कि  दोस्ती  और  दुश्मनी  सदा  बराबर  वालों  मे  होनी  चाहिये  ।  दोस्ती  मे  दोस्त  लगभग  अपनी  सभी  बातें  एक-दूसरे  को  बताकर  अपना  मन  हल्का  करते  हैं  ।  इस  प्रकार  वे  एक-दूसरे  के  ऐसे  राज  से  भी  वाकिफ  हो  जाते  हैं,  जिनका  खुलना  परेशानी  का  सबब  भी  बन  सकता  है  ।  परिस्थितिवश  जब  दोनों  में  से  किसी  एक  पर  स्वार्थ  हावी  हो  जाता  है  तो  वे  राज  की  बातें  उगल  दी  जाती  है  जो  जीवन  में  परेशानियों  का  कारण  बन  जाती  है  ।  दोस्ती  दुश्मनी  में  बदल  जाती  है  ।   जब  हम  खुद  ही  अपना  राज,  राज  नहीं  रख  पाते  तो  दोस्त  से  इसकी  उम्मीद  नहीं  की  जा  सकती  । 
        - बसन्ती पंवार 
         जोधपुर  -  राजस्थान 
सच्ची और पक्की दोस्ती के जितने किस्से और उदाहरण हमें देखने मिलते हैं,उससे कहीं अधिक दोस्ती टूट जाने के भी मिलते हैं। दोस्ती का रिश्ता पवित्र और प्रेममयी होता है । इसमें एक ही वस्तु है जो मखमली  और मुलायम होने के साथ- साथ अत्यधिक नाजुक होती है और वह है विश्वास ... भरोसा। प्रत्यक्ष में दोस्ती देखने में बहुत सुंदर लगती है और होती भी है परंतु अप्रत्यक्ष में यह निभाने में बहुत ही दुष्कर और भारी होती है। हर पल,हर डगर गिरकर टूटने और बिखरने का अंदेशा रहता है। जो इसे गिरने से बचाने की सामर्थ्य रखते हैं, वे काबिल-ए-दोस्त होते हैं। दोस्त का रिश्ता खून का रिश्ता नहीं होता। वह दिल का होता है। इसका प्रारंभ परिचय से होता है। मेलजोल होता है। अपनत्व पनपता है...बढ़ता है... और बढ़ता चला जाता है। अच्छे दोस्त और सच्ची दोस्ती के लिये यह बहुत ही आवश्यक है कि जो पारस्परिक भरोसे का सामंजस्य है,उसे टूटने न दें। उसमें दृढ़ता बनाये रखें। दृढ़ता प्रेम और पवित्रता से आती है। पवित्रता के लिये निश्छल, निस्वार्थ, निष्ठा , त्याग, का निहित होना बहुत आवश्यक है। इनमें से यदि कोई भी एक कम या छद्म होता है तो पवित्रता की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता और ऐसी स्थिति में दोस्ती कमजोर रहेगी। जिसके कभी भी टूटने,बिखरने की गुंजाइश और संभावना रहेगी। इसमें एक और दुःखद बात यह भी होगी कि यदि इस दोस्ती में स्वार्थ, चालाकी, ईर्ष्या,धोखा का छद्मावरण हो गया तो इसके दुःश्परिणाम भयंकर हो सकते हैं। जो कभी एक-दूसरे पर जान छिड़कते थे वे एक-दूसरे की जान लेने को आकुल हो जाते हैंँ।कट्टर दुश्मन बन जाते हैं।
   जीवन में अच्छे और सच्चे दोस्त का होना बहुत महत्वपूर्ण ही नहीं अत्यधिक आवश्यक है। हम सभी को चाहिए कि हम जिसके भी दोस्त हों,सच्चे दोस्त बनें।
- नरेन्द्र श्रीवास्तव
 गाडरवारा - मध्यप्रदेश
दोस्त क्या होता है ? पहले हम यह जाने रहीम का दोहा है 
कहि रहीम संपति सगे , बनत बहुत रीति ।
बिपति - कसौटी जे कसे , सोई सांचे मीत ।
नीति , मैत्री का यह दोहा सबने पढ़ा है ।
कहने का मतलब यही है कि जब व्यक्ति के पास दौलत होती है । तब उसके सगे संबन्धी मित्र बन  जाते हैं । जो विपत्ति के समय साथ वही सच्चा मित्र है । इस प्रसंग में प्रभु कृष्ण और गरीब मित्र सुदामा की , दुर्योधन संग  कर्ण ,  द्रौपदी की कृष्ण के संग सखा की दोस्ती बेमिसाल है ।  महाभारत काल में  द्रौपदी के चीर हरण के समय उसके बल , शक्ति  वीर यौद्धा  पाँच पति रक्षा नहीं कर सके । सखा कृष्ण ने अपनी सखी द्रौपदी का चीर बढ़ाकर रक्षा की थी । मेरे अनुसार - दोस्त  दोस्ती के तट का  आस्था का संगम होता है । जहां मैत्री के दोनों किनारे एकाकार हो जाते हैं   । दोस्ती तीर्थ का संगम है । जहाँ सिर्फ प्रेम , विश्वास , सच , समर्पण श्रद्धा और मैत्री के तट  जुड़ते है ।  दोस्ती अर्थात दो हस्तियों का , दो व्यक्तित्व का मिलन है।जो हमारे जीवन में दुख  -सुख में साथ निभाता है । हमें गलत मार्ग  पर जाने से रोकता है । 
हमारी गलतियों को सुधार  करवाता है । हम अपनी हर बात किसी को नहीँ कह पाते हैं ।लेकिन  अपने दोस्त  से कह पाते हैं ।
दोस्त वही जो दोस्त के काम आए । इस कसौटी पर जो  खरे उतरे हैं ।
दोस्त शब्द का अर्थ होता  है जो हमारे दोष  का अस्त कर दे । वही दोस्त है और दोस्ती यानी दो हस्ती आपस में मिलती हैं ।
गांधी जी ने भारत की  आजादी के लिए मानवता की सेवा कर विवेक से  मानव जाति से मित्रता की । जहाँ पर अमीरी - गरीबी , छूत - अछूत , ऊँच - नीच की खाई को पाटा था । गाँधी जी का कोई मित्र दुश्मन हो जाता था । उसे भी अपना दोस्त बना लेते थे । ऐसी थी गांधी जी की सोच और व्यक्तित्व । गीता में कहा है जो सबके प्रति समान दृष्टि का भाव रखता है ।समस्त प्राणियों के हिट में संलग्न रहते हैं , सबका मित्र है ।महावीर ने सत्य की साक्षात अनुभूति से मैत्री की । यह अनुभूत सत्य है , जो अपना मित्र होगा । महावीर , बुद्ध , मीरा  ,कबीर , रहीम , ईसा , मदरटेरसा, गांधी  आदि हमारे जीवन में संवेदनाओं , नीति , मैत्री के रूप में विद्यमान हैं । 
जब दोस्त में  अपने दोस्त की तरक्की , संपन्नता , प्रसिद्धि , भैतिक उन्नति आदि की वजह से दोस्त के  प्रति ईर्ष्या , द्वेष  जलन , स्वार्थब आदि नकारात्मक भाव जन्म लेते हैं । जो  निराशा , अज्ञान अंधकार के की ओर उन्हें ले जाते हैं । निश्चित रूप  से  वह दोस्त दुश्मन बन जाता है ।  मौर्य शासन काल में घनानन्द के शासन में चाणक्य और राक्षस  की दुश्मनी को दुनिया जानती  है । लेकिन चाणक्य ने शिष्य राजा  चन्द्रगुप्त के शासन काल में महामात्य के पद से सेवानिवृत्त होकर राक्षस की  दुश्मनी भुलाकर निष्ठावान  राक्षस को महामात्य बनाया । अगर कोई गलत फहमी आपस में हो गयी है तो हमें आपस में मिलाकर सुलझाना होगा ।  ईश्वर की कृपा से हमें अच्छे दोस्त मिलते हैं । ईश का उपहार दोस्त होते हैं जो हमें खुशी आनन्द देते हैं । विपरीत  परिस्थितियों में मित्र सहायता करता है  । मैं तो सभी जन - मन को गले लगाती हूँ । सभी को मित्र मानती हूँ । दुश्मनी जैसे शब्द की नकारत्मकता  से नफरत करती हूँ । मैत्री , मित्रता करना मेरे चिंतन का अनमोल अंग है और इकोलॉजी का विधायक भाव भी है। भारत के राष्ट्रपति स्व एपीजे कलाम ने कहा है -
एक सच्चा दोस्त वो होता है जो तब चलकर आपके पास आए । जब सारी दुनिया आपको अकेला छोड़ कर चली जाए ।
अंत में मैं दोहे में कहती हूँ : -
है  मैत्री की  पौध  में,  ,भावों  की है  भूख 
सींचे  जो  दिल से नहीं , तब यह जाती सूख ।
 मित्रता दिल से दिल को ,  मंजु ताउम्र  जोड़ ।
साथ निभाए  मन  इसे ,    नहीं  मित्र का तोड़  ।
-  डॉ मंजु गुप्ता 
 मुंबई - महाराष्ट्र
आज का  वर्तमान समय पूर्णतः मिलावटी हो गया है । इसलिए समयानुसार आज बहुत बार दोस्त की दोस्ती भी मिलावटी सरीखी होती जा रही है ।सब मतलबी होते जा रहे हैं । फिर भी इस समय भी कुछ ऐसे दोस्त होते हैं जो हमारे "सच्चे दोस्त" होते हैं और आजीवन हमारे सुख _ दुःख में साथ निभाते हैं । हमें दोस्ती बहुत सोच समझकर हीं करनी चाहिए क्योंकि आजकल व्यक्ति अपने फायदे के लिए कुछ भी कर सकता है फिर दोस्त से दुश्मनी हीं क्यूं ना हो जाए । दोस्त दुश्मन बन जाता है यह कोइ अतिशयोक्ति नहीं है ,,इस तरह के अनेक उदाहरण है । दोस्ती के लिए कोई सच्चा दोस्त अपनी जान तक दे  देता है ,,तो कोई दोस्त अपने दोस्त का जब दुश्मन  बन जाए तो दुश्मनी में जान ले भी सकता है । इसी दुनिया में हम सुदामा और कृष्ण  की दोस्ती का  मिशाल देते हैं । जूडस ने भी प्रभु  ईसु क्राइस्ट को धोखा दिया था ३० पीस सिल्वर के लिए धोखा दे दिया था ।
- डॉ पूनम देवा
पटना - बिहार

" मेरी दृष्टि में " जीवन में एक अच्छा दोस्त मिल जाऐं तो भगवान की भी आवश्यकता नहीं है । क्योंकि भगवान को तो आज तक किसी ने नहीं देखा है । यह सत्य है । फिर भी जीवन में अच्छे दोस्त की तलाश हमेशा रहती है ।
                                                        - बीजेन्द्र जैमिनी


Comments

  1. पिछले दिनों बड़े प्रयासों से आज की चर्चा की निरन्तरता सक्रियता गम्भीरता व विषय पर प्रस्तुतीकरण के आधार पर चर्चा आरम्भ से जनवरी अन्त तक अंकना की जो निम्नवत है
    आ,अलका पांडेय प्रथम
    आ,छाया सक्सेना द्वितीय
    श्री सीबी व्यास तृतीय
    आ,संगीता गोविल चतुर्थ
    आ,कुमकुम वेदसेन पंचम
    सभी को बहुत बहुत बधाई व शुभकामनाएं
    शशांक मिश्र भारती शाहजहांपुर उत्तर प्रदेश
    ( WhatsApp ग्रुप से साभार )

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