क्या अनुशासन ही लक्ष्य और सफलता के बीच का पुल है ?

लक्ष्य से लेकर सफलता के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है अनुशासन !  बिना अनुशासन के तो ना लक्ष्य तैयार होता है और ना ही सफलता मिलती है । इन सब का उद्देश्य की पूति के लिए " आज की चर्चा " का आयोजन रखा गया है । अब देखते हैं आये विचारों को : - 
जीवन के मुल्यो के पालन को ही अनुशासन कहा जा सकता है ।समाज के मान्य नियम का पालन ही अनुशासन है और जो भी अनुशासित है वह अपने लक्ष्य को हासिल कर ही लेता है इसमे कोई संशय भी नही है लक्ष्य प्राप्त  करना ही सफलता है ।ये आपस मे एक कङी का काम भी करती है ।
- गोविन्द राज पुरोहित
जोधपुर - राजस्थान
नियम और अनुशासन... ये दो चीजें व्यक्ति के जीवन में महत्वपूर्ण स्थान रखती हैं। यदि कोई व्यक्ति स्वयं के लिए कोई नियम ही न बनाये तो हम सोच सकते हैं कि उसका जीवन कितना दिशा विहीन और निरर्थक हो सकता है।
        इसलिए हर व्यक्ति जीवन में अपने लिए स्वयं कुछ नियम बनाता है, उन पर चलते हुए, उनका पालन करते हुए नियमित जीवन जीता है। तब वह अपने लिए लक्ष्य निर्धारित करता है। नियमित जीवन जीने के कारण व्यक्ति अनुशासित रहता है तो ऐसे में अपने निर्धारित किये हुए लक्ष्य को प्राप्य करने के लिए वह श्रम में अपना शत-प्रतिशत देकर उसे प्राप्त करने में समर्थ होता है, अपनी शक्ति से अधिक कार्य कर पाता है, असंभव को संभव करने की योजना बना कर, उस पर कार्य करके, उसे संपन्न करता है। हमारे प्रधानमंत्री आदरणीय नरेंद्र मोदी जी का नियमित और अनुशासित जीवन आज सभी के लिए आदर्श और प्रेरणदायक बन चुका है।
        इसके विपरीत किसी यदि अनियमित और अनुशासित जीवन जीने वाले व्यक्तियों को देखें तो वे अपना समय तो व्यर्थ करते ही है, अपने करणीय करणीय कार्य भी नहीं कर पाते। ऐसे व्यक्ति ही “ समय नहीं मिलता “ का राग अलापते हुए देखे जाते हैं।   इसलिए निसंकोच यह कहा जा सकता है कि अनुशासन ही लक्ष्य और सफलता के बीच का सशक्त और महत्वपूर्ण पुल है।
- डा० भारती वर्मा बौड़ाई
देहरादून - उत्तराखण्ड
मनुष्य को लक्ष्य और सफलता प्राप्त करने के लिए अनुशासन ही नहीं इन पाँच स्तरो से गुजर कर लक्ष्य और सफलता को प्राप्त कल सकता है।पहलाअनुकरण, दूसरा अनुसरण ,तीसरा आज्ञा पालन ,चौथा अनुशासन ,पाँचवा स्व अनु शासन।  स्वअनुशासन से ही मनुष्य सफलता प्राप्त कर सकता है।
- उर्मिला सिदार
रायगढ़ - छत्तीसगढ़
विद्यार्थी हो या अन्य व्यक्ति ,जीवन और समाजमें ढंग से रहने ,इसे सुव्यवस्थित ढंग से चलाने आदि के लिएसभी के लिए अनुशासित जीवन व्यतीत करना आवश्यक हुआ करता है l अनुशासन के अभाव में जीवन -समाज उच्श्रंखल हो कर विश्रंखल एवं विघटित हो जाया करते हैं l अनुशासन के अभाव में किसी भी तरह की प्रगति एवं विकास कार्य सम्भव नहीं होते l अनुशासित व्यक्ति ही जीवन में हर कार्य करने में सफल हुआ करता है l प्रायः देखा जाता है कि जो विद्यार्थी अपना प्रत्येक कार्य नियम और अनुशासन का पालन करते हुए सम्पन्न किया करते है वे सभी के स्नेह सम्मान के अधिकारी होते है I कहते है जिसने मन को जीत लिया ,उसने खुदा को जीत लिया l जो छात्र विविध आकर्षणों से भरी जिंदगी को अनुशासित कर लेते हैं ,वे सफलता की सीढ़ियों को चढ़ते जाते हैं l महात्मा गाँधी कहते थे -"अनुशासन व्यवस्था के लिए वही काम करता है जो तूफान और बाढ़ के समय किला और जहाज l
- डाँ. छाया शर्मा
अजमेर - राजस्थान
अनुशासन, लक्ष्यों और उपलब्धि के बीच का सेतु है।
हर किसी की जिन्दगी में समान अवसर आते है जो लोग इन अवसरों का सही उपयोग करते है वही लोग सफलता की एक नयी परिभाषा लिख पाते है जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में अनुशासन आवश्यक है। पारिवारिक और सामाजिक जीवन में तो कहीं ज्यादा अनुशासन की आवश्यकता होती है। यदि अनुशासन का पालन नहीं किया जाए, तो जीवन उच्छृंखल बन जाएगा। हम इतिहास व पुराण उठाकर देखें, तो हमें इसके अनेक उदाहरण मिल जाएंगे, जहां अनुशासन से महत्वपूर्ण सफलताएं और उपलब्धियां हासिल हुई हैं। ये उपलब्धियां हमारे लिए प्रेरणा का प्रबल स्तंभ बनीं। आज जीवन की आपाधापी बढ़ गई है, लोग कम समय में अधिक से अधिक सफलताएं प्राप्त कर लेना चाहते हैं। वह येन-केन-प्रकारेण ढंग से लक्ष्य प्राप्ति के लिए दौड़ते रहते हैं। वे अनुशासन का पालन करना जरूरी नहीं समझते, लेकिन इसके विपरीत सच्चाई यह है कि जहां जितना अच्छा अनुशासन है, वहां उतनी ही शांति व सुख है। यह एक कटु सच्चाई है कि अनुशासन के बिना सफलता नहीं हासिल की जा सकती। जिस देश के लोग अनुशासित हैं, जहां की सेना अनुशासित है, वह देश निरंतर प्रगति के पथ पर अग्रसर होता रहेगा, वह सभी क्षेत्रों में आगे बढ़ता रहेगा। अनुशासन का पहला पाठ हम घर से सीखते हैं। घर ही वह प्रथम पाठशाला है, जहां हमें भली-भांति अनुशासन की शिक्षा मिलती है। यह शिक्षा केवल पुस्तक के पन्नों को उलटने से नहीं मिलती, बल्कि वयस्कों के या स्वयं के अनुशासन से बच्चों को मिलती है। बड़ों के आचरण का प्रभाव छोटों पर पड़ता है, इसलिए हमें अनुशासनबद्ध रहकर जीवनयापन करना चाहिए। अनुशासन का पाठ हमें जीवन में निरंतर आगे बढ़ाता है। अनुशासन की पहली पाठशाला परिवार होता है और दूसरी विद्यालय। इसके बिना एक सभ्य समाज की कल्पना करना दुष्कर है। एक स्वस्थ समाज के निर्माण और संचालन में उस आबादी का बड़ा हाथ होता है, जो अपने किसी भी रूप में अनुशासनरूपी सूत्र में गुंथे होने से संभव हो पाता है। दरअसल, अनुशासन की प्रक्रिया रैखिक ही नहीं, बल्कि चक्रीय भी होती है। वह पीछे की और लौटती है, पर ठीक उसी रूप में नहीं। ऐसे में अगर अनुशासन को सरल रेखा खींच कर उसका स्वरूप निर्धारित करने का प्रयास किया जाए तो उसमें दुर्घटना की संभावनाएं हैं। जबकि ‘अनुशासन के बिना न तो परिवार चल सकता है और न ही संस्था और राष्ट्र।’ इसकी व्यापकता का अंदाजा इससे भी लगाया जा सकता है कि अनुशासन शब्द समाज की सबसे छोटी इकाई परिवार से लेकर ‘विश्व-समाज’ की अवधारणा तक अपने विभिन्न अर्थों के साथ किसी न किसी रूप में जुड़ा होता है। लेकिन अपने मूल अर्थ में अनुशासन का अभिप्राय एक ही होता है। देखना यह है कि क्या अनुशासन का स्वरूप भी सभी जगह एक-सा होता है, या परिवार, समाज, राष्ट्र और विश्व आदि हर स्तर पर इसका स्वरूप भी अलग-अलग होगा।
ज्यादातर शिक्षक विद्यालय में अनुशासन के सही अर्थों से अनभिज्ञ होते हैं। उन्हें यह कहते सुना जा सकता है कि बिना डर के बच्चे पढ़ेंगे कैसे! और खेलने से क्या होता है? अधिकतर विद्यार्थी खेलों में रुचि रखते हैं और इस कई ऐसे मौके आते हैं जब विद्यार्थी एक खिलाड़ी के रूप में खुद से नियमों का पालन करता है। वह आगे चल कर समाज के एक नागरिक के रूप में भी जारी रहता है। वास्तव में खेल ‘आत्मप्रेरित अनुशासन’ प्राप्ति का सबसे उपयुक्त माध्यम हैं, जिसे गांधीजी ने व्यक्तिगत अनुशासन कहा है। जब तक कोई भी व्यक्ति अपने आप अनुशासन और नियम-पालन में बंध नहीं जाता, तब तक उसे दूसरे से वैसा कराने की आशा करना व्यर्थ है। एक प्राचीन कहानी है, जिसमें अपने बच्चे के अधिक मिठाई खाने की शिकायत लेकर आई मां को गुरु नानक सात दिन बाद आने का समय देते हैं। इन सात दिनों तक खुद मीठा खाना छोड़ कर ही वे बालक को मीठे के अवगुणों के बारे में समझाते हैं। आत्मप्रेरित अनुशासन ही मानवीय मूल्यों के लिए जगह बना पाता है। पहले शिक्षा के अंतर्गत आने वाले ‘सामुदायिक कार्यों में भागीदारी’ और ‘विद्यार्थियों के व्यवहार’ को महज खानापूर्ति के रूप में किया जाता था, जो अनुशासन विषयक पूर्णांकों के संबंधित है। जैसा कि उसके अंकों का प्राप्तांकों से कोई संबंध नहीं था। पर अब जबकि शिक्षा व्यवस्था में अपेक्षित बदलाव के तहत ‘सतत एवं व्यापक मूल्यांकन’ जैसी अवधारणा का समावेश हो चुका है, विद्यार्थी का संपूर्ण मूल्यांकनकर्ता उसका शिक्षक ही होगा।
लक्ष्य और उपलब्धियों के बीच का पुल है अनुशासन
- डॉ अलका पाण्डेय
मुम्बई - महाराष्ट्र
मन को शासित करने के पीछे कुछ नियम होना; यह जीवन में अनुशासन है। दूसरे शब्दों में मर्यादाओं का अतिक्रमण न करना भी अनुशासन है। मर्यादा, अनुशासन जीवन के किसी लक्ष्य और उसमें मिलने वाली सफलता के लिए एक सेतु ही है; जिसके सहारे जीवन को सुचारू रूप से चलाने के लिए प्रारंभ में परिवार एवं विद्यालय स्तर पर ही अनुशासन में रहने की हिदायतें दे दी जाती हैं- यथा परिवारिक स्तर पर बड़ों की आज्ञा मानना, घर पर किसी बाहर वाले के आने पर उसके सामने नहीं बैठना, न ही अनर्गल बातें व व्यवहार करना, खानपान, शयन, आचार, व्यवहार में घर के नियमों के अनुसार चलना। ऐसे ही विद्यालय में शिक्षक का मान- सम्मान करना, प्रार्थना- सभा में, उत्सवों में शांतिपूर्ण ढंग से क्यू में रहना यानी समवेत सहभागिता में भी  विद्यालय के नियमों व आचार- संहिता का पालन करना। यही सब नित्य आचार व्यवहार मर्यादित अनुशासित जीवन जीते हुए व्यक्ति एक दिन जीवन के निर्धारित लक्ष्य में सफलता पाने की दिशा में अभ्यस्त हो जाता है; उसे सब सहज लगने लगता है। आज के दौर में अनुशासन से लक्ष्य में सफलता बेमानी व्यक्तिगत वर्चस्व को वैध- अवैध तरह से स्थापित करती दीख पड़ती है। पता चला चुनाव का लक्ष्य जनता के साथ-साथ सब को अनुशासन में रहने के लिए धारा 144 का अनुशासन चलाया जाता है; इसके बावजूद नेताओं द्वारा और जनता द्वारा भी, 144 धारा का उल्लंघन अक्सर देखा गया और चुनावी लक्ष्य पूरा हो गया। किसी क्षेत्र में सफल रहा, तो कहीं असफल। अनुशासनात्मक मर्यादाओं की सीमाओं को तोड़ना आज मानव की नियति बनती जा रही है जो कि ठीक नहीं। फिर भी किसी लक्ष्य को तभी सफल माना जाएगा जब वह लोकमंगल की भावना से उपजा अनुशासनात्मक हो।
- डॉ. रेखा सक्सेना
मुरादाबाद - उत्तर प्रदेश
जब हम पैदा होते हैं, तो उसके बाद हमें अलग – अलग लोगों द्वारा अच्छी आदतें सिखाई जाती है, ये अच्छी आदतें हमें इसलिए सिखाई जाती है, ताकि हम एक अच्छे इन्सान बन सकें. ये आदतें हमें हमारे बड़ों यानि हमारे माता – पिता एवं शिक्षकों द्वारा प्रदान की जाती है, जोकि हमारे जीवन को आसान बना देती है. उन सभी अच्छी आदतों में सबसे अच्छी आदत है, अनुशासन का पालन करना. वे हमें बचपन से ही अनुशासन जैसी अच्छी आदतों को अपनाने के लिए प्रेरित करते हैं कोई व्यक्ति हो या संस्था हो या राष्ट्र हो, जब वे अपने विकास के लिए कुछ नियम निर्धारित करते हैं, तो उसे अनुशासन कहा जाता है. अतः दूसरे शब्दों में कहें तो अनुशासन एक ऐसी आदत है, जोकि मनुष्य जीवन में बहुत मायने रखती है. अनुशासन को यदि अलग – अलग किया जाये, तो अनु और शासन दो शब्द मिलते हैं, जिसका अर्थ होता है खुद के ऊपर शासन करना. यानि यदि आप नियमित रूप से नियमों का पालन करते हैं, तो इससे आपका दिमाग एवं शरीर दोनों नियंत्रित रहते हैं. रोजमर्रा की जिन्दगी में आप सुबह से उठकर रात तक जो भी कार्य करते हैं, वह आपका रोज का नियम होता है और जब आप उन नियमों का पालन करते हैं, तो इसे अनुशासन कहा जाता है. सकारात्मक अनुशासन :- सकारात्मक अनुशासन वह है, जो व्यवहार के सकारात्मक बिन्दुओं पर ध्यान केन्द्रित करता है. यह व्यक्ति में एक तरह का सकारात्मक विचार उत्पन्न करता है, कि कोई व्यक्ति अच्छा या बुरा नहीं होता, बल्कि उसके व्यवहार अच्छे या बुरे होते हैं. किसी बच्चे के माता – पिता उन्हें समस्या सुलझाने के कौशल सिखाते हैं और साथ ही उन्हें विकसित करने के लिए उनके साथ काम करते हैं. माता – पिता अपने बच्चे को अनुशासन सिखाने के लिए शिक्षण संस्थाओं में भेजते हैं. यह सभी पहलू सकारात्मक अनुशासन को बढ़ावा देते हैं. और इसे प्रोत्साहित किया जाना चाहिये.
नकारात्मक अनुशासन :- नकारात्मक अनुशासन वह अनुशासन है जिसमें यह देखा जाता है, कि कोई व्यक्ति क्या गलत कर रहा है, जिससे उस पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है. किसी व्यक्ति को आदेश देना एवं उन्हें नियमों और कानूनों को पालन करने के लिए मजबूर करना नकारात्मक अनुशासन होता है. सीमा आधारित अनुशासन :- सीमा आधारित अनुशासन सीमाएं निर्धारित करने और नियमों को स्पष्ट करने के लिए होता है. इस अनुशासन के पीछे एक सरल सिद्धांत है, कि जब एक बच्चे को यह पता होता है, कि यदि वे सीमा से बाहर जाते हैं, तो इसका परिणाम क्या होता है, तो ऐसे बच्चे आज्ञाकारी होते हैं. उनका व्यवहार सकारात्मक होता हैं और वे खुद को हमेशा सुरक्षित महसूस करते हैं.
व्यवहार आधारित अनुशासन :- व्यवहार में संशोधन करने से सकारात्मक और नकारात्मक दोनों ही परिणाम होते हैं. अच्छा व्यवहार प्रशंसा या पुरस्कार के साथ आता है, जबकि दुर्व्यवहारों के कारण नकारात्मक परिणामों को हवा मिलती है, इसलिए इससे काफी नुकसान भी होता है.
आत्म अनुशासन :- आत्म अनुशासन का अर्थ है, अपने मन और आत्मा को अनुशासित करना जो बदले में हमारे शरीर को प्रभावित करते हैं. इसके लिए हमें अपने आप को अनुशासित होने के लिए प्रेरित करना होगा. यदि हमारा दिमाग अनुशासित रहेगा, तो हमारा शरीर अपने आप ही अच्छे से कार्य करेगा.
अनुशासित होना जीवन में कई फायदे और लाभ प्राप्त करने का एक तरीका है. इससे होने वाले कुछ लाभ इस प्रकार हैं –
केन्द्रित रहने में सहायक :- अनुशासित होने से व्यक्ति को अपने काम, गतिविधियों या लक्ष्यों के प्रति केन्द्रित रहने में मदद मिलती है. वे व्यक्ति जिनका लक्ष्य मजबूत होता है, वे अधिक केन्द्रित होते हैं, और रोजमर्रा की जिन्दगी में समय पर काम करने के लिए तैयार रहते हैं. अनुशासन के साथ किसी भी व्यक्ति को अपने मन को अपने काम या लक्ष्यों पर ध्यान केन्द्रित रखने में सहायता मिलती है, जिससे मानसिक समस्याओं से बचा जा सकता है.
दूसरों से सम्मान मिलता है :- अनुशासन दूसरों से सम्मान प्राप्त करने में मदद करता है. बहुत से लोग अपने कार्य करने वाली जगह में दूसरों से सम्मान पाने के लिए संघर्ष करते हैं. लेकिन सम्मान पाने का सबसे आसान तरीका अनुशासित होना है. आसपास के लोग अनुशासित व्यक्ति का सम्मान करते हैं. यदि आप अनुशासित रहते हैं, तो इससे दूसरे अन्य व्यक्तियों की नजर में आप सम्मान के पात्र हो जाते हैं, और वे आपको अपना रोल मॉडल भी मान सकते हैं.
स्वस्थ रखता है :- अनुशासित जीवन में कुछ आदतें हैं, जो नियमित होती है. जैसे भोजन, दवा, नहाना, व्यायाम करना, सही समय पर चलना और सोना आदि. व्यायाम और अन्य नियमित आदतें शरीर और दिमाग को इतनी अच्छी तरह से ट्यून करती है, जिससे व्यक्ति हमेशा स्वस्थ रहता है. यहाँ तक कि पुरानी बीमारी के लिए नियमित समय पर दवाएं लेने से भी जल्द ठीक होने में मदद मिलती है. समय पर भोजन करना बहुत महत्वपूर्ण होता है क्योंकि भोजन भी एक तरह की दवा होती है.
सक्रीय रहने में मददगार :- अनुशासन जीवन के लिए सकारात्मक दृष्टिकोण का एक तरीका है. जोकि अंदर से उत्साह और आत्मविश्वास को जगाता है. इसलिए यदि आप हमेशा सक्रिय रहते हैं तो इससे आलस आपसे कोषों दूर रहता है. आप हमेशा उन लोगों की आदतों को अपनायें जो अनुशासित होते हैं, क्योंकि वे दूसरों की तुलना में भोजन, नींद और नियमित व्यायाम जैसी अनुशासित आदतों के कारण सक्रीय रहते हैं. इससे आपको सक्रीय रहने में मदद मिलेगी.
आत्म नियंत्रण :- जो व्यक्ति खुद अनुशासन में रहते हैं उनका स्वयं पर अधिक नियंत्रण होता है. वह बात करते समय अपने व्यवहार में सावधानी बरतते है. उनका व्यवहार आदि खुद को मूर्खतापूर्ण समस्याओं में फंसने से बचाता है. इससे वह लोगों के साथ अच्छे संबंध भी बनाता है.
चीजों को प्राप्त करने और खुश रहने में मदद करता है :- अनुशासित होने से चीजों को तेजी से और सही समय पर पूरा करने में मदद मिलती है. हालाँकि कुछ चीजें अन्य कारणों से देर से होती है. किन्तु फिर भी अनुशासित रहने वाला व्यक्ति अपने खुद के अनुशासन के कारण दूसरों की तुलना में तेजी से काम करता है. इससे उसके मन को शांति मिलती है और वह व्यक्ति खुश रहता है.
एक दिन में अधिक समय देता है :- एक अनुशासित व्यक्ति के पास एक अनुशासनहीन व्यक्ति की तुलना में एक दिन में अधिक समय होता है. तो अधिक समय का मतलब यह है कि उनके पास अतिरिक्त कार्यों या अन्य पेंडिंग कार्यों को करने की अधिक सम्भावना होती है, और वे अपने कार्यों को बखूबी कर भी लेते हैं.
तनाव मुक्त रहने में मदद करता है :- किसी को प्रतियोगी परीक्षा या दैनिक दिनचर्या के काम के दौरान तनाव होता है, जोकि हमारी आंतरिक चिंता को बढ़ा देता है. इससे हमारे काम के परिणाम पर भी असर पड़ता है. अनुशासित रहकर परीक्षा के लिए अध्ययन करने और रोज की दिनचर्या के काम अच्छी तरह से करने में मदद मिलती है. अनुशासन के कारण कार्य को अच्छी तरह से एवं समय पर किया जा सकता है. ताकि कोई तनाव न हो. इसलिए अनुशासन का एक फायदा यह भी है कि यह तनाव मुक्त रहने में मदद करता है जिससे आपका आत्म सम्मान बढ़ता है. अनुशासन हमारे जीवन के लिए इसलिए भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि जब हम अनुशासन में रह कर काम करते हैं तो हमारा वह काम शांति से और अच्छे से हो जाता है. और जब हमारा काम आसानी से हो जाता है तो हमे आंतरिक ख़ुशी मिलती है और हमारा मन भी शांत रहता है.  कई सफल व्यक्ति जिन्होंने अपने जीवन में काफी सफलता हासिल की हो वह अपनी इस सफलता का श्रेय अनुशासन को देते हैं. उनकी सफलता की राह में ज्ञान, संचार या कौशल से अधिक अनुशासन अहम भूमिका निभाता है.
अनुशासन ही सफलता का पुल है जो सफलता प्राप्ति में सहायक होता है 
- अश्विनी पाण्डेय
मुम्बई - महाराष्ट्र
अनुशासन का महत्व कही पर नकारा नहीं जा सकता ।यह तो लक्ष्य और सफलता के बीच कि पुल है ।इसमें तो और अधिक महत्वपूर्ण हो जाता है ।कारण अनुशासन के बिना कोई प्रयास नियमित नहीं हो सकते और न ही  लक्ष्य पर बढने के लिए आवश्यक उत्साह कर्म की निरन्तरता सक्रियता गम्भीरता हो पायेगी ।निराशा से आशा भटकाव से ठहराव लाने का काम हमारे अंदर का अनुशासन करता है ।विश्व के लगभग सभी सफल व्यक्तित्वों ने ईसको जीवन में उतारने के साथ साथ जीवन की सफलता के द्वारा सिद्ध भी किया है ।अतः यह कहने में कोई संकोच नहीं कि अनुशासन लक्ष्य और सफलता के मध्य का सेतु है ।दोनों का अपना अपना महत्व है अपना अपना अस्तित्व भी पहाड़ व खाईं की तरह या नदी के दो कभी न मिलने वाले किनारों की भाँति ।जिनके बिना नदी की कल्पना भी नहीं की जा सकती ।
- शशांक मिश्र भारती
 शाहजहांपुर - उत्तर प्रदेश
अनुशासन ही सफलता का मूल है । जब तक हम अपने लिए कोई नियम नहीं बनाते तब तक न तो लक्ष्य पूरा होगा न ही सफलता मिलेगी । अनुशासन रूपी पुल को पार कर जो भी व्यक्ति अपनी दिनचर्या व कार्यशैली को निर्धारित करेगा वो अपना नाम स्वर्णिम अक्षरों में अंकित करवा सकेगा । 
सफलता का मूल मंत्र संघर्ष और लगनशीलता है जिसे पालन करने के लिए स्वानुशासन अत्यंत आवश्यक होता है ।
- छाया सक्सेना प्रभु
जबलपुर - मध्यप्रदेश
लक्ष्य मानव जीवन के सफ़र का वह विंदु है जिसके लिए निरन्तर क्रियाशील रहता है । और अनुशासन वह नियम है जिसके माध्यम से आगे बढ़ते हुए सफलता पाते है। 
इसलिए लक्ष्य और सफलता के बीच की कड़ी को पुल कहा जाए तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। हर सफलता के पीछे अनुशासन है का हाथ  है। अनुशासन के द्वारा ही सफल संचालन होता है । घर हो या संस्था सरकार हो या बाजार रेलवे  हो या बैंक हर मोड़ पर नियम के तहत ही हर काम सुचारू रूप से सफल होता है।  यह  नियम व्यक्ति स्वयं बनाता है ।
प्रकृति के भी नियम है  उसी नियम के अनुसार संसार गतिमान है ठीक इसी ‌तरह मानव जीवन भी अनुशासन को पुल बनाकर लक्ष्य को प्राप्त करने में सफलता  हासिल कर लेता है
- डाँ. कुमकुम वेदसेन 
मुम्बई - महाराष्ट्र
हर व्यक्ति के जीवन का कोई न कोई लक्ष्य होता है । सबके लक्ष्य पृथक हो सकते हैं बल्कि होते भी हैं ।  किसी भी मंजिल तक पहुँचने के लिए  सबसे पहले, लक्ष्य ( Goal ) निर्धारित किया जाता है । उसके पश्चात उस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए मनोयोग से प्रयास होते हैं ; तभी सफलता हासिल हो सकती है । इसके लिए पूरा ध्यान लक्ष्य पर केन्द्रित होना आवश्यक है ।बीच में ही मैदान छोड़ कर भाग जाने वालों को कभी सफलता नहीं मिलती। टाल-मटोल और बहानेबाजी न करते हुए ,अपने लक्ष्य को सदा याद रख कर ,उस पर अडिग रहने वाला ही सफल होता है । लक्ष्य में सफलता हेतु परिश्रम और कार्य के प्रति समर्पण बहुत आवश्यक है ।यह भी संभव है, कि एक बार में सफलता न मिले ; किंतु  पिछली गलतियों को न दोहराते हुए , पिछले अनुभवों का ध्यान में रखकर पुनः प्रयास किये जाने पर, सफलता मिलती ही है ।
अब प्रश्न यह है कि- क्या अनुशासन ही, लक्ष्य और सफलता के बीच का पुल है ? 
तो हाँ, अप्रत्यक्ष रूप से तो यह बात सत्य है- क्योंकि लक्ष्य में सफल होने के लिये कार्य और व्यवहार दोनों का अनुशासन बहुत जरूरी है जैसा कि मैंने ऊपर बताया कि -
लक्ष्य पर अडिग रहना, बहानेबाजी और टाल मोल की प्रवृत्ति से बचना , सकारात्मक सोच और धैर्य यह व्यवहारिक अनुशासन है। ज्ञान में वृद्धि , अपने पिछले अनुभव  एवं दूसरों के अनुभव का लाभ, समर्पण, परिश्रम , लगन के साथ ही एकाग्रता ; यह कार्यात्मक अनुशासन हैं । अतः कहा जा सकता है कि, मूल रूप से अनुशासन ही, लक्ष्य और सफलता के बीच का सेतु है ।
- वंदना दुबे,
  धार - मध्य प्रदेश 
अनुशासन और परिश्रम से ही हम सफलता को प्राप्त कर सकते हैं अपने जीवन में यह तो निर्धारित ही करना पड़ता है कि हमें प्रातः काल उठना और अपनी सारी दिनचर्या को समय के अनुसार बांध लेना चाहिए सब काम समय पर करने वाला ही अपने जीवन में अपने लक्ष्य को प्राप्त करता है परिश्रम सफलता प्राप्त करने का महत्वपूर्ण साधन है।
जीवन की आकांक्षाओं को पूर्ण करने के लिए सर्वोत्तम साधन है श्रम जीवन को गति देता है यदि व्यक्ति श्रम नहीं करता तो उसका जीवन निष्क्रिय हो जाते हैं आलसी हो जाता है परिश्रम व्यक्ति ही धन प्राप्त करता है और अनुशासन में रहने वाला ही महान बनता है जो अनुशासन में रहता है वह अपना सब काम समय पर कर लेता है और लक्ष्य को भी प्राप्त करता है परिश्रम व्यक्ति को यदि सफलता ना भी मिले तो वह विचलित नहीं होता असफलता के कारण जानकर उन्हें दूर करने का प्रयास करता है श्रम के बल पर ही बड़े बड़े साम्राज्य खड़े हुए हैं श्रम से मनुष्य निरोगी रहता है श्रम साधना करने वाले को यश की प्राप्ति होती है।
"देखकर बाधा विविध बहु विघ्न घबराते नहीं।
रही भरोसे भाग्य के दुख भोग 
पछताते नहीं।"
- प्रीति मिश्रा
 जबलपुर - मध्य प्रदेश
वस्तुतः अनुशासन मनुष्य के सर्वांगीण विकास का प्रमुख साधन है ! जीवन की सफलता का रहस्य अनुशासन में ही छुपा है! अनुशासन यानी कि स्वयं शासन करना अर्थात अपने नियमों के अनुसार काम करना एवं स्वयं पर नियंत्रण रखना किंतु स्वयं शासित नियम होने के बावजूद इसका पालन करना इतना आसान नहीं है यह बहुत बड़ी समस्या है! इसकी शिक्षा हमें बचपन से दी जाती है अपने परिवार से एवं विद्यार्थी जीवन में विद्यालय से ! अनुशासन के पालन से जीवन में अनेक सदगुण विकसित होते हैं !अनुशासन से जीवन में संयम ,नियम, विवेक ,विनम्रता का तो उदय होता है हम अपना उत्तरदायित्व भी समझने लगते हैं हमारा मनोबल बढ़ता है और हमारा आलसीपन भी जाता रहता है ! विद्यार्थी जीवन में अनुशासन में समय का भी पाठ पढ़ाया जाता है ! समय की बचत कर हमें कैसे समय का सदुपयोग करना चाहिए हम अपनी दिनचर्या जल्दी जल्दी निपटा कुछ समय बचा लेते हैं तो वह बचा हुआ समय हम दूसरे काम में खर्च कर सकते हैं !
किसी भी लक्ष्य को प्राप्त कर हम अपनी सफलता की सीढ़ी चढ़ना चाहते हैं तो हमें अनुशासन के नियम का पालन करना ही पड़ेगा क्योंकि अनुशासन है तो विनय ,विवेक ,संयम, समय प्रबंधन ,जिम्मेदारी ,सकारात्मक सोच,आत्मविश्वास ,मनोबल ,और कितने गुणों की खान है सभी अपने आप व्यक्ति में आ जाते हैं !जिसमें यह सब गुण है उसके लक्ष्य प्राप्ति की सफलता को कोई नहीं रोक सकता !
स्वयं को नियंत्रण में रख आलस्य त्याग समय का ध्यान रख लक्ष्य को प्राप्त करने में सफल होना ही अनुशासन है !
वक्त और सागर की लहरें किसी के रोकने से नहीं रुकती! 
अतः अंत में कहूंगी अनुशासन ही लक्ष्य और सफलता के बीच का पुल है !
- चन्द्रिका व्यास
मुम्बई - महाराष्ट्र
बिलकुल, अनुशासन ही लक्ष्य और सफलता के बीच पुल है।अनुशासन एक खूबसूरत और संयोजित जिन्दगी का अभिन्न अंग है ।अगर हम किसी मुश्किल लक्ष्य को हासिल करना चाहते है तो हमें बहुत ही संयमी एवं एक अत्यंत अनुशासित दिनचर्या को अपनाना नितांत आवश्यक है  ।एक बार जब हमें एक अनुशासित दिनचर्या की आदत हो जाती है तो हमारा जीवन अत्यंत सुगम एवं सरल हो जाता है ।हमें कोई भी कार्य जो दूसरे को मुश्किल और असाध्य प्रतीत होता है,आसान और बिना अतिरिक्त प्रयास के साध्य हो जाता है । अनुशासित दिनचर्या दुर्लभ लक्ष्य प्राप्ति हेतु निश्चय ही एक पुल साबित हो जाता है ।
   - रंजना वर्मा
रांची - झारखण्ड
लक्ष्य और सफलता के बीच का पुल अनुशासन ही हो सकता है। जीवन के प्रत्येक चरण में , प्रकृति के बदलाव में,पशु -पक्षियों के आवागमन में भी एक स्वरचित  ,स्वचलित अनुशासन होता है।  हर कण, हर अणु ,यदि कुछ विशाल या महान करना है तो वो क्रमानुसार ही होगा। शासन के साथ जब अनु जुड़ता है अर्थात हम स्वयं अपने को समयानुसार ,सही मार्ग की और शासित करते हैं। सब से पहले  लक्ष्य की ओर तटस्थ और पैनी नजर रख कर कार्य करने की मानसिक इच्छा होनी चाहिए। फिर सफलता के प्रति सकरात्मक दृष्टिकोण रख कर अनुशासित रह कर मेहनत करने से सफलता मिलती है ।वक्त जरूर लग सकता है। पहले पहलतो अनुशासन में रहने में कठिनाई होती है। प्रलोभन  ड़गमगा देते हैं पर एक बार जब उसे आदत में ढ़ाल लें तो वो सहज लगता है। लक्ष्य को पाने के लिए अनुशासन आवश्यक है।
ड़ा.नीना छिब्बर
जोधपुर - राजस्थान
मेरे अनुसार लक्ष्य को पाने के कई रास्ते हैं जैसे उचित ज्ञान, परिश्रम, साधना, दृढ़ निश्चय आदि। यह अवश्य है कि उचित ज्ञान चाहिए तो पढ़ने और जानने की उत्कंठा और पूर्व में अर्जित अनुभव भी लक्ष्य को प्राप्त करा सकता है। उदाहरणस्वरूप मुझे कोई शोध पत्र लिख कर प्रकाशित करवाना है, और शोध कार्य मैंने पहले ही कर रखा है, तब मेरी लक्ष्यप्राप्ति आसान हो जाती है। इस कार्य को मैं अनुशासित होकर करूं अथवा अनियमित पूर्ण कर ही लूंगा। हाँ, लेकिन मैंने यदि यह लक्ष्य निर्धारित किया कि मुझे कल तक शोध पत्र लिख कर प्रकाशन को भेजना है तब मुझे अनुशासित भाव से कार्य करने की ज़रूरत है।
लक्ष्य पूर्ति हेतु अनुशासन रखा जाए अथवा नहीं यह लक्ष्य की प्रकृति पर भी निर्भर करता है। कई बार अनुशासन होना आवश्यक है तो कभी नहीं भी। लेकिन केवल अनुशासन ही लक्ष्य को प्राप्त करवा सकता है, हमें सफलता दिलवा सकता है, मैं इस बात से इत्तेफाक नहीं रखता। समर्पण, परिश्रम, ज्ञान, स्मार्टनेस आदि कारक भी उतने ही महत्वपूर्ण हैं।
- डॉ. चन्द्रेश कुमार छतलानी
उदयपुर - राजस्थान
जी हाँ , ! सर्वप्रथम हम अनुशासन का अर्थ जाने। अनुशासन दो शब्दों के मेल से बना है । अनु और शासन 
अनु का अर्थ अनुसार और शासन का अर्थ नियम , विधान , कानून आदि । अर्थात कानून,  नियम के अनुसार चले । 
स्व जवाहर लाल नेहरू ने कहा था " अनुशासन राष्ट्र का जीवन रक्त है । " अनुशासन मानव सभ्यता का प्रथम सौपान है । अनुशासन  हमारे व्यक्तिगत जीवन से लेकर सामाजिक , राष्ट्रीय जीवन तक फैला हुआ का पाठ हमें बचपन से ही  अपने घर में  मिलता है । परिवार ही अनुशासन की पाठशाला होती है । फिर हम स्कूल जाने लायक होते हैं । स्कूल  हमारी अनुशासन की पाठशाला होती है ।  जब हम कमाने के लिए बाहर जाते हैं । तो उस वर्क प्लेस  पर हमें अनुशासन  में रहकर काम करना होता है । हमारी जीवन प्रक्रिया में आँख खोलने से बंद होने तक हमें अनुशासन में रह कर ही जीना होता है । अनुशासन चक्रीय प्रक्रिया है । जिसने नियमों का उल्लंघन किया ।तो परिणाम हानिकारक ही मिलेगा । 
 हमारी प्रकृति , ब्रह्मांड सभी अनुशासित हैं ।  सूरज समय से निकलता है । समय पर ही अस्त होगा । नियम से पृथ्वी अपनी धुरी पर घूमती है । यूँ कह सकते है कि पारिवारिक , सामाजिक , राष्ट्रीय जीवन में  अनुशासन का होना नितांत जरूरी है ।  अगर हमें ट्रेन से किसी स्थान पर  जाना है । तो हमें सही समय पर ट्रेन के लिये पहुँचना होगा । नहीं तो ट्रेन हमें छोड़कर कर गंतव्य के लिए चली जाएगी ।  ट्रेन भी हमें अनुशासन का पाठ सिखाती है । जहाँ भी , जिसने भी  अनुशासित होके  लक्ष्य को हासिल किया ।उसके लिए  अनुशासन लक्ष्य की सफलता  का पुल बना । अनुशासन से सभी क्षेत्रों में प्रगति संभव है । बुद्ध ,  महावीर,  संत , महापुरुष आदि सभी ने कठोर नियमों का पालन कर , निज पर अनुशासन करके नर से नारयण बने । युग पुरुष महात्मा गांधी जी का जीवन चरित्र  मर्यादित , अनुशासित था । आज वे हमारे बीच में प्रासंगिक हैं । जब समाज , लोग अनुशासनहीन हो जाते हैं ।  परिणाम भयानक दिखते हैं । सीसीए , एनआरसी के विरोध में अधिकतर सभी विश्वविद्यालयों , जेएनयू आदि की छात्रों की मार - पीट , तोड़ -फोड़ , हिंसा , आगजनी , आदि अनुशासनहीनता का नग्न नाच राष्ट्र के साथ सारी दुनिया ने देखा । गलत गतिविधियों के लिए सरकार को  इन्हें  कड़ा दंड देना होगा । शाहीन बाग में युवक द्वारा बन्दूकसे हवा में फायर करना । राष्ट्र विरोधी नारे लगाना । युवाओं , छात्रों , समाज का आक्रोश  लक्ष्य की  उद्देश्यहीनता , असफलता , गिरते मानवीय - मूल्यों ,  नाकारात्मकता , गिरता शिक्षा का स्तर के अंधकार  को दर्शाता है । शाहीन बाग में बैठी जनता सीएए कानून  को हटाने के लिये दिसम्बर 2019 से  धरना देके अभी तक विरोध कर रही है । मानसिक संकीर्णता को दर्शाता है । जब कि यह कानून जनहित में बना है । हमारे खेल-  कूद, गाइड , एनसीसी  जीवन में अनुशासनके महत्त्व  को बताते हैं ।  
अनुशासन हमें तनाव रहित बनाता है , श्रेष्ठ भी  बनाता है । सरहद पर खड़ा प्रहरी देह की सुरक्षा के लिए खड़ा अनुशासन का प्रतीक है ।हमारी जल , थल , नभ  सेना अनुशासित है । हमारे आजादी के आंदोलन सब अनुशासित थे । हमने आजाद होने में  सफलता  पायी । हम राष्ट्र की पहचान अनुशासित नागरिकों से कर सकते हैं । अनुशासन सफलता प्राप्त करने का सेतु है ।  हमारे देश में विविध जाति , धर्म , वर्ण के लोग ले रहे हैं । विविधता में एकता है । इसकी वजह  अनुशासन में बंधे सांप्रदायिक सद्भाव , शांतिपूर्ण सह -अस्त्तिव  के भाव है । तभी तो भारत की  बसुधैव कुटुम्बकम की खुशबू से विश्व महकता है ।  विश्व मानव , विश्व समाज  की  परिकल्पना के मूल में अनुशासन है । अनुशासन भारतीय संस्कृति की आत्मा है । जो हमें मूल्यों से मिलता है । राष्ट्र का भविष्य  हमारे नोनिहाल हैं । उन बच्चों में बचपन से ही अनुशासन के बीज बो  देने चाहिए । पाठ्यक्रम में अनुशासन  विषय पढ़ाया जाए । मेरा खुद का जीवन  अनुशासन से मंडित रहा है ।
अनुशासन की डोर से बंधकर ही 8 किताबें लिख के लक्ष्य को  सफलता मिलना मेरे जीवन के मील के पत्थर हैं । मेरी  कलम मुझे अनुशासित , गतिशील रखती है ।
दोहे में मैंकहती हूँ : -
गूँजे घण्टे , शंख हैं ,  गूँजी कहीं अजान ।
अनुशासित सुर  - ताल हैं , देते जीवन ज्ञान । 
- डॉ मंजु गुप्ता 
 नवी मुंबई - महाराष्ट्र
       जी हाँ लक्ष्य और सफलता का पुल अनुशासन ही है।जैसे कि अर्जुन द्वारा मछली की आँख भेद कर लक्ष्य को प्राप्त करने के पीछे अनुशासनात्मक अभ्यास ही तो था।
       अनुशासन के बिना खान-पान, पढ़ाई-लिखाई, कारोबार, जीवन का सफर,शोध, उपचार, साफ-सफाई,और छोटे से छोटे या बड़े से बड़े  युद्ध के लक्ष्य की सफलता अनुशासन के बिना प्राप्त नहीं की जा सकती।
-इन्दु भूषण बाली
जम्मू - जम्मू कश्मीर

" मेरी दृष्टि में " जीवन के सभी क्षेत्र में अनुशासन काम आता है अनुशासन से ही लक्ष्य से लेकर सफलता अर्जित होती है । बिना अनुशासन के दुनियां में कुछ भी सम्भव नहीं है । यह दुनियां का सत्य है ।
                                                  - बीजेन्द्र जैमिनी



Comments

  1. अनुशासन परिश्रम लगन से ही सफलता हासिल की जा सकती है
    - मुरारी लाल शर्मा , पानीपत - हरियाणा
    ( WhatsApp ग्रुप से साभार )

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  2. सफल व्यक्ति वह होते हैं जो जीवन में एक नया मुकाम, उपलब्धि चाहते हैं।
    जीवन में सफलता के लिए अनुशासन जरूरी है, अनुशासन के साथ लक्ष्य की ओर बढ़ना चाहिए तब जाकर सफलता मिलती है ।

    नौशाद वारसी
    समस्तीपुर, बिहार
    ( WhatsApp ग्रुप से साभार )

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