क्या अंधविश्वास से संघर्ष की क्षमता कमजोर होती है ?

सबसे पहले अंधविश्वास कहते किसे है ? जो वैज्ञानिकता से बाहर है उसे अंधविश्वास कहते हैं । जो हमेशा संघर्ष को कमजोर तो क्या ? संघर्ष को तोड़ देता है । अंधविश्वास कभी किसका नहीं होता है । यही " आज की चर्चा " का प्रमुख विषय है । आये विचारों को देखते हैं : - 
विश्वास  अगर  अन्धा  हो तो क्षमता  अवश्य  ही  कमजोर  पड़  जाएगी ।क्षमता  का विकास  विश्वास  के बल  पर किया  जाता  है।विश्वास  के साथ  किया  गया  हर  कार्य  मे सफलता  हासिल  होती  है।आज दिव्यागं  के जीवन  की  सफलता  इसी  विश्वास  पर  है जीवन  मे  यदि  किसी  ने लक्ष्य  बना  कर  विश्वास  के साथ  परिश्रम  किया  है  तो  उन्हे  सफलता  मिली  है। वस्तु  के प्रति  दिशा  के प्रति  रस्मी रिवाज  के प्रति  कितने  अंधविश्वास  समाज  मे फैले  है मृत्यु  के बाद  किये  गये  दान भी  मेरी  समझ  मे  एक  अंधविश्वास  ही  है। जीवित  रहने  पर  सुविधा  का  अभाव  रहना  और मृत्यु  के बाद  आत्मा  को  संतुष्ट  करने  की यह परम्परा  अंधविश्वास  ही  तो है जिसमे  कितने  परिवार  की आर्थिक  स्थिति  चरमरा जाती  है  यह क्षमता  का  कमजोर  होना  ही  है
- डाँ. कुमकुम  वेदसेन 
मुम्बई - महाराष्ट्र
जी हाँ, अंधविश्वास के चक्कर में पड़कर  व्यक्ति अपनी ऊर्जा को व्यर्थ के टोटकों में बर्बाद करता है । जैसे काली बिल्ली द्वारा रास्ता काटना,  खाली घड़े का दिखना, कौवे का काँव- काँव करना, गुरुवार को पैसे का  लेन- देन न करना, राशिफल पढ़कर अपने कार्यों की रूप रेखा बनाना, शनिवार को नाखून व बाल न कटवाना इसी तरह बहुत से अंधविश्वासों की सूची है  जिसे अधिकतर लोग मानते दिख जाते हैं और वे इसे भावनात्मक निर्णय कहते हैं । पीढ़ी दर पीढ़ी ये जानकारी हस्तांतरित होती रहती है । हमें तर्कों के आधार पर वैज्ञानिकता पूर्ण निर्णय लेना चाहिए । हालाकि  हर तथ्य विज्ञान की कसौटी पर नहीं परखे जा सकते इन्हें अपनी परिस्थितियों व परम्परा के अनुसार मानना ही पड़ता है ।
संघर्ष की क्षमता इन सब चक्करों से प्रभावित अवश्य होती है क्योंकि हम स्वयं पर विश्वास न करके इन कार्यों के चिंतन में अपनी शक्ति लगा देते हैं । क्या आपने कभी गौर किया कि अधिकांश वही लोग क्यों सफल होते हैं जिनके पास खोने के लिए कुछ नहीं होता । इसका कारण साफ है वे पूर्ण मनोयोग से संघर्ष करते हैं बिना किसी अंधविश्वास को माने ।  
इन अंधविश्वासी चक्करों में वही व्यक्ति पड़ता है जिसका पेट भरा होता है तथा सब सुख सुविधाओं को भोगते हुए जीवन जीता है ।
- छाया सक्सेना प्रभु
जबलपुर - मध्यप्रदेश
जहां अंधविश्वास की जड़ें है वहाँ जीवन संघर्षो भरा है , सारा समय अंधविश्वास व ढकोसलों में बिक जाता है 
झाड़फूंक, बाबाओं के चक्कर में जिंदगी फँस कर रह जाती है । ढकोसलों को जीवन में स्थान देने का मतलब अंधविश्वास के खतरे को मोल लेना है. जहाँ पर प्रत्यक्ष शोषण होता है, वहाँ पर लोग इस बात को मानते हैं. आज भी गाँवों के लोग काला जादू, भानमती के विषय को लेकर एक-दूसरे से लड़ते-झगड़ते हैं. खूनखराबा होता है. हजारों रुपयों की क्षति भी होती है. इसे रोकना जरूरी हो गया है. देश में स्वास्थ्य संबंधी सुविधाओं की बहुत कमी है. इसके विरुद्ध आवाज उठाने की बजाय लोग दैवी इलाजों के जरिए अपना शारीरिक और मानसिक नुकसान तो कर ही लेते हैं, साथ ही समाज में एक गलत संदेश भी पहुँचाते हैं. मानसिक बीमारियों के कारण तो और भी गंभीर हालात पैदा होते हैं. ‘मन बीमार होता है’ की बात देश के लोग हजम नहीं कर पाते
बाबा के शब्द मानो मोक्ष का मार्ग खोल देते हैं. मंत्रमुग्ध कर देनेवाले वातावरण में तल्लीन हुए भक्तों से एक ही संदेश मिलता है, ‘हमारे जीवन की पूरी जिम्मेदारी बाबा ने ली है, यह भाग्य खुल जाने का संकेत है. जीवन की सारी चिंताएँ मिट गई हैं. सुख, शांति, संतोष, संपन्नता के महाद्वार खुलनेवाले हैं. बाबा के आशीर्वाद से हमें एक ही समय में भौतिक, भावनात्मक, आध्यात्मिक, पारलौकिक अधिकार प्राप्त हो गए हैं.’ यह मानसिकता एक गूढ़ वातावरण तैयार करती है जिसमें मनुष्य प्रश्नों को सुलझाने के लिए जरूरी विवेक खो देता है. वह अपनी और समाज की बुद्धि, श्रम और समय को मुफ्त गँवा देता है. मनुष्य का सबसे करारा शस्त्र उसकी बुद्धि है. मानवीय संस्कृति का विकास उसकी प्रज्ञा के विकास से संबद्ध रहा है. ‘बुद्धि से जाँच लूँगा और साबित होने पर ही मान लूँगा’—यह शास्त्रीय दृष्टिकोण की प्रतिज्ञा होती है. उस प्रतिज्ञा को भुलाकर ही चमत्कारों पर विश्वास किया जा सकता है. चमत्कारों को स्वीकार करना मानसिक गुलामी की शुरुआत होती है. ढकोसले के कारण यह गुलामी और भी मजबूत होती है.हमें इन सब से ऊपर उठना है ।  अंधविश्वास की जड़ को ही समूल नष्ट करना होगा । अंधविश्वास हमें दीमक की तरह खा जाता है 
- डॉ अलका पाण्डेय
मुम्बई - महाराष्ट्र
संघर्ष करने की क्षमता कैसी है ।संघर्ष करने वाला कौन है उसके लक्ष्य क्या हैं ।कुछ करने उसके बाद बनने के लिए कहाँ तक जा सकता है ।इस पर निर्भर करता है कि अंधविश्वास प्रभावित करेगा अथवा नहीं ।कुछ लोग जन्मजात अन्धविश्वासी होते हैं उनको समझाना या उनकी बात करना किसी पत्थर पर सिर मारने के समान है ।कुछ समय-समय पर होते हैं यह जल्दी समझ भी जाते हैं ।कुछ बिल्कुल अन्धविश्वासी नहीं होते पर विश्वास जरूर रखते हैं परिणामस्वरूप यही सर्वाधिक संघर्ष की क्षमता भी रखते हैं ।
आजकल के कुछ चैनल सोशलमीडिया भी अन्धविश्वास के सहयोगी सा दिखते हैं । कुल मिलाकर अंधविश्वास और संघर्ष दोनों अपने स्थान पर हैं वैसा ही प्रभावकारी भी ।
- शशांक मिश्र भारती 
शाहजहांपुर - उत्तर प्रदेश
 यह वाक्य सही है कि कोई भी मनुष्य अंधविश्वास में जीता है तो उसकी संघर्ष अर्थात विकास करने की क्षमता कमजोर होती है। अंधविश्वास अर्थात अंधकार में जीना याने की अज्ञानता में जीना ,अज्ञानता में जीता हुआ व्यक्ति जितना भी संघर्ष करें , सफलता प्राप्त नहीं कर सकता। अंधविश्वास में संघर्ष की क्षमता कमजोर होती है क्योंकि अंधविश्वास में सच्चाई नहीं  होती झूठ की राह पर चलते हैं तो संघर्ष की क्षमता धीरे-धीरे कमजोर होती है और मनुष्य का  विश्वास कम होने लगता है मनुष्य  का जीने का आधार  विश्वास ही होता है। बिना विश्वास के जीना अर्थात शंका में जीना होता है अतः अंधविश्वास से  संघर्ष की क्षमता कमजोर होने लगती है और मनुष्य विनाश की ओर जाता है।
- उर्मिला सिदार
रायगढ़ - छत्तीसगढ़
 अंधविश्वास यानी कि विश्वास का अंधा होना किसी भी लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए हम अपने संघर्ष और पूर्ण आत्मविश्वास के साथ कार्य करते हैं तो हमारी यही क्षमता हमें हमारे लक्ष्य तक पहुंचाती है! हाथ पर हाथ लेकर बैठने से अथवा भगवान पर छोड़ देने से नहीं होगा ! ईश्वर ने स्वयं कहा है "कर्म करो फल की इच्छा ना करें" आज भी गांव के पिछड़े लोग ही नहीं शहर के पढ़े लिखे लोग भी अंधविश्वास के कूप में मंडूप की तरह बैठे हैं !तिलिस्मी जादू नहीं है कि आप अंधविश्वास में पुजारी के पास जाकर राहु केतु की दशा को ऊपर नीचे करेंगे और काम हो जाएगा ! लक्ष्य प्राप्त करने के लिए संघर्ष तो करना ही होगा ! मैथिलीशरण गुप्त ने भी कहा है प्रभु ने तुमको कर दान किए सब वांछित वस्तु विधान कि तुम प्राप्त करो उनको ना हो फिर है किसका यह दोष कहो कुछ काम करो कुछ काम करो....
कुछ लोग पिछड़ेपन का लाभ उठाकर गांव में ऐश्वर्य बटोरने में लगे होते हैं ,ऐसे में अधंविश्वास में ही अपना भगवान ढूंढते रहते हैं !पंडित, पुजारी , तांत्रिक उन्होंने इसे अपना व्यवसाय बना लिया है और जहां अंधविश्वास है वहां तो संघर्ष करना ही होगा अंधविश्वास की प्रक्रिया को बंद करने के लिए गांव में सरपंचों के द्वारा लोगों  में शिक्षा के प्रति जागृति उत्पन्न करनी होगी और अपने अधिकार और कर्तव्य के प्रति चेतना जगाना होगा , शिक्षा के प्रति उदासीनता तोड़नी होगी , शिक्षा से कर्तव्य बोध होता है ,दबी कुचली नैतिकता और मानवता को उठाना होगा ,अंधविश्वास से हमारा मानसिक ह्रास होता है ! हम अपने स्वास्थ की जिम्मेदारी भी दैविक शक्ति पर छोड़ देते हैं !अंधविश्वास में किसी पर विश्वास ना करें परमात्मा से बड़ी शक्ति कोई नहीं है अतः अपने पर विश्वास ,भरोसा ,अपने काम पर भरोसा करें और संघर्ष करें ! अंत में  कहूंगी ईश्वर प्रदत्त शरीर की क्षमता का मूल्य संघर्ष कर आंके एवं आत्म विश्वास और भरोसे  के साथ लक्ष्य प्राप्त  करे  बाकी हरि इच्छा बलवान!
- चन्द्रिका व्यास
मुम्बई - महाराष्ट्र
सही है कि अंधविश्वास से संघर्ष की क्षमता कमजोर हो जाती है ।ऐसे लोग कामचोर होते हैं इसलिए उन्हें ये लगता है कि कोई टोटका करने से या प्रचलित अंधविश्वासी बातों से उनके काम बन जाएँगे । कुछ लोग सफलता पाने के लिए शार्टकट रास्ते खोजते हैं और गलत सलाहकारों के हत्थे चढ़ जाते हैं ।ऐसे ही कुछ मानते हैं कि भगवान से मन्नत माँगने से काम हो जाएगा ।कई अनर्गल उपचार भी कर बैठते हैं ।व्यक्ति की संघर्ष क्षमता तो कम होती ही है साथ ही कई अपराध भी कर बैठते हैं ।इसीलिए मनुष्य को अपने बल, बुद्धि और विवेक पर विश्वास करना चाहिए ।
- सुशीला शर्मा
रायगढ़ - छत्तीसगढ़
हां अंधविश्वास से संघर्ष करने की क्षमता कमजोर हो जाती है
इस संसार में सब कुछ बिकता है, धर्म विविधता है।लोग धर्म के नाम पर व्यापार कर रहे हैं और वह अच्छे से फल-फूल रहा है जिसकी जितनी अच्छी प्रवचन शैली होती है उतनी तगड़ी की फीस होती है दुनिया में धर्म को अंधविश्वास दुकानों में सजा हुआ मिल रहा है। गुड लक के नाम पर बाजारों में अनेक सामान दिख रहे हैं बाजारों में स्टोन, फ्रेंड्स हुई, वास्तु से जुड़ी हुई ढेर सारी चीजें मिल रही हैं।यदि विद्यार्थी पढ़ाई ना करें धर्मगुरु की बातों में आकर अंगूठी पहन ले पूजा पाठ करें तो क्या वह परीक्षा में उत्तीर्ण हो सकता है?
कहीं किसी काम के लिए हम को समय पर पहुंचना है जैसे परीक्षा देने के लिए या इंटरव्यू में, बिल्ली रास्ता काट दे या कोई छींक दे तो हम रुक जाएं और देर से पहुंचे तो वह हमारा काम क्या सफल हो पाएगा? अंधविश्वास हमारे समाज में फैले हैं । अंधविश्वास के चलते हीमनुष्य के संघर्ष करने की क्षमता भी कम हो जाती है उदाहरण के लिए किसी बच्चे को यदि कोई ज्योतिषी कह दे कि यह बच्चा बड़ा होकर कलेक्टर बनेगा वह पढ़ लेना तो क्या यह संभव है। अंधविश्वास का सहारा कमजोर लोग लेते हैं। कर्मशील व्यक्ति कर्म करता है यह सब बातें नहीं मानता। मनुष्य जीवन में कर्म को सर्वश्रेष्ठ मानना चाहिए गीता में भगवान कृष्ण ने भी अर्जुन को कर्म करने की शिक्षा दी है स्वयं भगवान युद्ध जीता सकते थे उसको लेकिन फिर भी कर्म करने की ज्ञान दिया दिया। राम के जन्म में भी भगवान राम ने कर्म को ही कर्म किया। वह चाहती तो एक चुटकी में रावण को मार सकते थे। आलसीलोग ही अंधविश्वास को मानते हैं। अंधविश्वास मनुष्य को कमजोर बनाता है। जीवन विश्वास और संघर्ष से ही चलता है भगवान भरोसे नहीं।
- प्रीति मिश्रा 
जबलपुर - मध्य प्रदेश
जी हाँ ,  अंधविश्वास से संघर्ष की क्षमता कम होती है ।
पहले हमें अंध विश्वास का शाब्दिक अर्थ करना होगा ।
अंध का अर्थ अंधा , विश्वास का अर्थ भरोसा । मानव  जब किसी बात पर आँख मूंदकर विश्वास कर लेता है । अंग्रेजी में इसे ब्लाइंड फेथ कहते हैं ।इस अंधविश्वास की परिभाषा यूँ कर सकते हैं । सामाजिक रूढ़िवादी ख्यालों से हम प्रभावित होकर हम कार्य करते हैं । जिसके कारण हमें मालूम नहीं हैं । वह अंधविश्वास ही है ।  अवधारणाएं धारणाएँ   हमारी मानसिकता पर निर्भर है । बिल्ली रास्ता काट देगी तो हमारा  अनर्थ हो जाएगा । यह मैं बचपन से सुनाती आ रही हूँ । 
यह हमारी मानसिकता ही तो है । हम इसे कैसे लेते हैं ।
मेरे साथ तो बिल्ली ने कितनी बार बिल्ली के द्वारा रास्ता काटा गया है । मेरे लिए इस प्रपंच का कोई  स्थान नहीं है । 
 मानव के द्वारा निर्मित रूढ़िगत  विचारधारा को भोली भाली जनता को समाज के ठगों , पंडितों , भट्ट , पंडे , ओझा , बाबाओं , लोगों के द्वारा मानव जाति  को   लूटना और उनकी कमाई का साधन है तो अतिशयोक्ति न होगी ।उदाहरण के तौरपर  ज्योतिष का पंडित  कहता है ।  तेरा शनि दोष है । इससे छुटकारा पाने के लिये  5 हजार रुपये से उपचार करना होगा । मारे सनातन  धर्मग्रन्थों में ये बात ही नहीं है । 
कितने धर्मगुरु काले धागे बाँधने  की सलाह देते हैं । तुम्हारी नजर   उतर जाएगी । कंपनियां इसी धागे बनाने का व्यापार से कमाई  कर रही हैं ।आज अनपढ़ों के साथ पढ़े - लिखे व्यक्ति इस अंधविश्वास के शिकार में मूर्ख बन रहे हैं । बलात्कारी बाबा आशाराम के प्रति अंधश्रद्धा भक्तों की सारी दुनिया देखी है । मेरे को आशाराम के प्रति अंधश्रद्धा के बारे में  एक महिला भक्त ने प्रतिक्रिया दी कि हमारे गुरु जी का बालबांका न होगा । वह तो पानी की तरह पारदर्शी चरित्र है । शनि भारी था । जेल से बाहर आ जाएँगे । शंकर भगवान को भी साढ़े साती लगी थी । वह गुफा में बंद रहे थे । किस तरफ इक्कीसवीं सदी का  समाज जा रहा है । मैं तो कहूँगी अंद्धविश्वास का  कैंसर  समाज को खा  रहा है । इनके चक्करों में लोग पड़े हुए हैं । जो आदमी को खत्म करने में लगा है । अंधविश्वास तो  सर्वकालिक   सर्वदेशीय है । भारत में ही नही पूरे विश्व अंधविश्वास की चपेट में है । महाराष्ट्र पुणे में नरेंद्र दाभोलकर ने अंधविश्वास , काला जादू के विरोध में मुहिम चलायी थी ।उन्होंने जादू , टोना , तांत्रिक क्रियाओं के  विरोध  में संघर्ष किया था । इनकी हत्या कई  साल से चल रहे आंदोलन के कारण हुयी थी । दैवीय शक्ति के नाम पर समाज को डराया जाता है । जो अपराध है । भूत भगाने की क्रिया भी शामिल है । उन्होंने अंध श्रद्धा समिति को बनाया था । 
वरकरी समाज  को गुमराह किया गया कि तुम्हारी जो धार्मिक  विट्ठल पालकी  यात्रा निकलती है  ।उस पर पाबंदी लग जाएगी । विधयेक रोकने का यह षड्यंत्र ही था ।
महाराष्ट्र सरकार  ने इस अंधविश्वास के खिलाफ  अध्यादेश लाने की बात की थी । फिलहाल यह बिल अब ठंडे बस्ते में पड़ा है । दाभोल की हत्या से कानून बनना नहीं रुक सकता है । सरकार को कानून बनाने के लिए गम्भीरता दिखानी होगी ।
अंधश्रद्धा विधेयक बिल को  पूरे भारत में लागू करना  चाहिए । अंधश्रद्धा का विरोध होना इक्कीसवीं सदी में जरूरी है ।
इन भीखमंगों पर हमें भरोसा नहीं करना होगा । ये अपना
भूत , डंकिनी  , तंत्र मंत्र आदि का भय ,  जादू दिखा के अपना परिवार का पेट भरते हैं ।समाज इनके पीछे नहीं जाए  
 समाज को जागरूक होना होगा । अंद्धविश्वास मनाव जाति , राष्ट्र के विकास , प्रगति में बाधक है । अंद्धविश्वास का हाल ही  का किस्सा है । शहर की पढ़ी - लिखी लड़की की शादी गाँव में हो गयी । नया परिवेश , नया माहौल  , नए लोगो के बीच  मीसम उसे रास नहीं आया और बीमार हो गयी । ससुर जी ने झाड़ - फूक वाले  को बुलाकर उसे बीमार बहू को दिखाया । झाड़ - फूंक वाले ने बहू के सिर से 5 बार नारियल घूमा के उसमें एक सफेद  सा टुकड़ा रख के पानी की छिटें
मारी । वह सफेद टुकड़ा पानी के संसर्ग में आ के जलने लगा ।  नारियल को जलता देख के यह चमत्कार मान के पूरा घर हैरान होगया ।झाड़ -फूंक वाला कहने लगा  आपकी बहू पर चढ़ी भूतनी जल रही है । अब बहू का बुखार कल तक उतर जाएगा । परेशान  ससुर जी से 5 हजार रुपये ले कर झाड़ - फूंक वाला  चला गया । यह  खेल  पढ़ी -लिखी बीएस , सी पास बहू के साथ हुआ था । तभी  वह वहीं बैठे ससुर , पति के सामने बोली नारियल में जो आग बिना माचिस के  लगी है ।  अपने आप नहीं लगी है । उसमें सोडियम का टुकड़ा डाला है । जो पानी के साथ से जल उठा है । यह एक रसायनिक क्रिया थी । मेरा बुखार इस ओझे के झाड़ - फूक से नहीं उतरेगा । डाक्टर की दवाई से उतरेगा । मूर्ख  पति , ससुर जी 5 हजार रुपये के लिए अपने  माथे पीट रहे थे । यह झूठे लोग  चमत्कार के नाम पर  समाज को गुमराह कर रहे हैं । 
कर्नाटक के मुख्यमंत्री की कार पर एक कौआ दस मिनट बैठ गया तो उनके चमचों ने   कौए को अपशकुन मान के 35 लाख रुपये की नयी कर मंगवा दी । देश में  ऐसे मंत्री अंधविश्वास  के विरोध में कानून  बनाने में  समर्थन देंगे क्या ?  जबकि यह इस कानून के कभी समर्थक रहे हैं । यह घटना हर चैनल ने दूरदर्शन पर खूब दिखायी थी ।
हमारे संविधान के अनुच्छेद 4 के 51 ए में लिखा है कि हम ऐसी घटनाओं की पड़ताल करना हमारा नैतिक कर्तव्य है ।
 अंधविश्वास हमारी राह का रोड़ा बन के हमारे संघर्ष करने को रोकता है ।  हमें अंद्धविश्वास से मुक्त होने के लिये अपना ज्ञान बढाना  होगा । हमें वैज्ञानिक सोच विकसित करनी होगी । ढोंगी -पाखंडी अपनी जीविका चलाने के लिए चमत्कार कर 
अंधश्रद्धा  जे नाम पर लूटते हैं । उसे अपनी सोच से बदलना होगा । भारतीय ब्राह्मण पुराण तो इसकी वकालत करता  है । हमें अपना ज्ञान के बल से इसे जड़ से उखाड़ना होगा ।
अंत में मैं दोहे में कहती हूँ :-
मिटे अंधविश्वास तम,  जलाके दीप ज्ञान ।
करें दूर अंधभक्ति , धार के हम विज्ञान ।
- डॉ  मंजु गुप्ता 
मुंबई - महाराष्ट्र
संघर्ष व्यक्ति की बुनियाद है । संघर्षरत व्यक्ति ही जीवित कहलाते हैं । इसके लिए शक्ति की आवश्यकता होती है । लेकिन अंधविश्वास ऐसी विडंबना है जिससे सभी लोग कहीं-न-कहीं जुड़े हैं । अगर विडंबना ने हाथ पकड़ लिया तो फिर सारी लगन का नाश अवश्य होता है । वह दौड़ती गाड़ी में ब्रेक का काम करता है । व्यक्ति उधेड़बुन में पड़ जाता है और वही वह पल होता है जब कर्मपथ पीछे छूट जाता है । इसलिए कर्म के पथ पर आगे बढ़ते समय केवल लक्ष्य सोच कर आगे बढ़ो। अंधविश्वास को बीच में पनाह नहीं देना है ।
- संगीता गोविल
पटना - बिहार
अंधविश्वास, समाजिक परंपरायें एवं मान्यताएं हैं जो तत्कालीन प्रतिनिधियों के तत्समय की स्थितियों,अनुभव और ज्ञान   के आधार पर मान्य कर ली गईं। आज भले ही इन्हें रूढ़िवादी कहा जा रहा है,परंतु यह सत्य है कि इन मान्यताओं को माने जाने वाले अत्यधिक हैं और समाज में इन्हें निर्विवाद रूप से स्वीकारा भी गया है। आज के ज्ञान और विज्ञान के विकसित युग में यद्यपि अब भी इन मान्यताओं और परंपराओं के प्रति रुचि और उत्साह शनैः शनैः कम हो रहा है । लोग  इन्हें लेकर वादविवाद , विमर्श, मंथन और चिन्तन के साथ -साथ सार भी निकाल कर सामाजिक आडंबर, अनावश्यकता, अतिभार आदि के तर्कों से जागरूकता भी लाने का प्रयास भी कर रहे हैं  और खुशी की बात है कि लोगों को में समझ में भी आने लगी है। इसके लिये मीडिया,कैमरे, मोबाइल बहुत उपयोगी साबित हुये हैं। जिनके द्वारा  फिल्म बनाकर उसके पीछे छुपे आडंबर,झूठ और पाखंड की वास्तविकता से परिचय कराया गया है। मगर अभी बहुत समय लगना संभावित है और यह स्वभाविक है। समाज का एक पक्ष ऐसा भी है जो इन अंधविश्वासों की आड़ में लोगों को बहकावे में लाकर मजे लेता है और माहौल बिगाड़ता है। संक्षिप्त में कह सकते हैं कि अंधविश्वास अज्ञानता के सिवाय कुछ नहीं है। इससे हमारी संघर्ष की क्षमता  कमजोर तो होती है,हमारा कीमती समय भी नष्ट कर हमारे उत्साह, विश्वास और मनोबल को भी नुकसान पहुंचाकर संकट में डालने का काम भी करती है।
- नरेन्द्र श्रीवास्तव
गाडरवारा - मध्यप्रदेश
अंधविश्वास और संघर्ष मुझे जीवन में परस्पर विरोधी दिखाई पड़ते हैं। अंधविश्वास से प्रभावित हुआ व्यक्ति अज्ञानता के अंधेरे में घिरता चला जाता है, बेसिर-पैर की निराधार बातों पर विश्वास करके अपने वास्तविक कर्म से विमुख हो जाता है। कर्म छूटता है तो संघर्ष अपने आप कम होने लगता है।
     अंधविश्वास से प्रभावित शिक्षित और अशिक्षित दोनों होते हैं। कुछ इस इससे शीघ्र निकल जाते हैं और कुछ इसी की जंजीरों से बँधे रह कर अपना नुकसान करते हैं। अंधविश्वास का अर्थ ही है अंधा विश्वास। अब यह किसी बात, किसी मान्यता पर करें या किसी व्यक्ति पर... हर स्थिति में नुकसान अंधविश्वास को मानने वाले का ही होता है। अतएव अंधविश्वास को अपने ऊपर हावी न होने दें। इससे प्रभावित व्यक्ति कर्मविमुख होकर संघर्ष से भागता है, समय, ऊर्जा, धन, रिश्ते सभी कुछ खो बैठता है, संघर्ष करने की क्षमता नहीं रहती, निराशा के भँवर में फंसा
जीवन में असफल व्यक्ति बनता है।
- डा० भारती वर्मा बौड़ाई
देहरादून - उत्तराखण्ड
बिना सोचे समझे लिया जाने वाला निश्चय, अंधविश्वास है। हजारों वर्षों से चली आ रही मान्यताएं या परंपराओं को कोई तोड़ना नहीं चाहता;  यह सोचकर अनिष्ट न हो जाए। ग्रह, नक्षत्र, जादू ,टोना, टोटका, ताबीज, ज्योतिष सब के सब, स्वार्थ- सिद्धि के उपाय हैं।जो आंख बंद करके इनमें विश्वास करते हैं; वे सोचते हैं, बिना परिश्रम के स्वार्थ सिद्धि हो जाएगी। नौकरी ,पुत्र ,स्वास्थ्य, धन- प्राप्ति के लिए लोग ,सोशल मीडिया, टी.वी तथा न्यूज़ पेपर में भी प्रसारित अवैज्ञानिक अंधविश्वासों के सहारे रहते हैं। दृढ़ संकल्प व अथक परिश्रम, तथ्यात्मक वैज्ञानिक ज्ञान, अंधविश्वासी लोगों के बस की बात नहीं है। जब 'मिले यूं तो करे क्यों'। कभी-कभी बिल्ली के भाग्य से छींका टूटता है पर कितने प्रतिशत का, यह एक प्रकार से, स्वयं से छलावा है। देखा जाए तो अंधविश्वास से जीवन- यापन करने वाले लोग अपनी क्षमताओं और धन का ह्रास करते हैं। अतः व्यक्ति को अंधविश्वास की जगह आत्मविश्वास से यथोचित संघर्ष को महत्व देना चाहिए।
- डॉ.रेखा सक्सेना
मुरादाबाद - उत्तर प्रदेश
     अंधविश्वास और संघर्ष दोनों अलग-अलग पहलु हैं।जो अंधविश्वास करता है।वो संघर्ष करता ही नहीं है।वैसे  भी देश में संघर्षकर्ताओं की संख्या बहुत ही कम रह गई है।
    विडम्बना तो यह है कि परिश्रम और संघर्ष का अंतर भी बहुत कम लोग जानते हैं।संघर्षरत लोग जैसे-जैसे संघर्ष करते हैं।अंधविवासी उनका उपहास उड़ाते हैं।जिससे संघर्षकर्ताओं के संघर्ष की क्षमता बढ़ जाती है।
-इंदु भूषण बाली
जम्मू - जम्मू कश्मीर
बिलकुल अंधविश्वास से संघर्ष की क्षमता कमजोर होती है ।अगर कोई हाथों की लकीर देखकर कोई यह कह देता है कि इस काम में आपको सफलता नहीं मिलेगी,क्योंकि आपकी हाथों की लकीर में वह नहीं है ।जिस कार्य के लिए हम जी जान लगा रहे होते ,और जब हम विश्वास करते हैं कि वह हमारे हाथों की लकीर में नहीं है तो हमारे संघर्ष करने क्षमता पर यह असर जरूर डालती है ।अतः अंधविश्वास कर्म करने क्षमता को कमजोर करती है ।इसलिए हमें अंधविश्वास पर यकीन न कर अपने कर्म पर भरोसा करना चाहिए ।निरंतर प्रयास मंजिल अवश्य प्रशस्त करता है ।
 - रंजना वर्मा
रांची - झारखण्ड
देखिए ! बिना संघर्ष के कुछ भी प्राप्त नहीं होता। हम सब जानते हैं कि विश्वास और हौंसलों में ही जान होती है। अंधविश्वास तो व्यक्ति को निठल्ला और कमज़ोर बनाता है। यदि नैया को खूंटे पर बांधकर सोचें कि किसी जादू मंत्र से वह एक से दूसरे किनारे स्वतः ही पहुंच जाएगी तो यह अंधविश्वास है जो कर्म की गति को कमजोर बनाता है। कोई बच्चा यदि सोचे कि किसी ज्योतिष ने कह दिया कि वह पास हो जाएगा और हाथ पर हाथ धरकर बैठा रहे व परीक्षा की तैयारी नहीं करे तो वह निश्चित ही फेल होगा। इस तरह अंधविश्वास के अनेक उदाहरण हैं जो मंजिल का छोर तो दूर की बात है मंजिल की ओर बढ़ने से भी रोक देते हैं। 
- संतोष गर्ग
 मोहाली - चंडीगढ़
कमजोर ही नहीं ख़त्म कर देती है अंधविश्वास आदमी को खोँखला व कमजोर कर देता है सोचने समझने की शक्ति क्षीण हो जाती है । शाब्दिक अर्थों में जाएँ तो अंधविश्वास का मतलब हुआ – आँखें मूंदकर विश्वास कर लेना या बिना जाने समझे विश्वास करना. तात्पर्य निकाला जा सकता है कि विषय को जाने समझे बिना, विश्वास कर लेना – संक्षिप्त में अंधविश्वास कहलाता है. आदिकाल में मनुष्य का क्रिया क्षेत्र संकुचित था इसलिए अंधविश्वासों की संख्या भी अल्प थी। ज्यों ज्यों मनुष्य की क्रियाओं का विस्तार हुआ त्यों-त्यों अंधविश्वासों का जाल भी फैलता गया और इनके अनेक भेद-प्रभेद हो गए। अंधविश्वास सार्वदेशिक और सार्वकालिक हैं। विज्ञान के प्रकाश में भी ये छिपे रहते हैं। अभी तक इनका सर्वथा उच्द्वेद नहीं हुआ है। भारत में अंध विश्वास की जड़े बहुत गहरी हो चुकी हैं अंधविश्वासों का सर्वसम्मत वर्गीकरण संभव नहीं है। इनका नामकरण भी कठिन है। पृथ्वी शेषनाग पर स्थित है, वर्षा, गर्जन और बिजली इंद्र की क्रियाएँ हैं, भूकंप की अधिष्ठात्री एक देवी है, रोगों के कारण प्रेत और पिशाच हैं, इस प्रकार के अंधविश्वासों को प्राग्वैज्ञानिक या धार्मिक अंधविश्वास कहा जा सकता है। अंधविश्वासों का दूसरा बड़ा वर्ग है मंत्र-तंत्र। इस वर्ग के भी अनेक उपभेद हैं। मुख्य भेद हैं रोग निवारण, वशीकरण, उच्चाटन, मारण आदि। विविध उद्देश्यों के पूर्त्यर्थ मंत्र प्रयोग प्राचीन तथा मध्य काल में सर्वत्र प्रचलित था। मंत्र द्वारा रोग निवारण अनेक लोगों का व्यवसाय था। विरोधी और उदासीन व्यक्ति को अपने वश में करना या दूसरों के वश में करवाना मंत्र द्वारा संभव माना जाता था। उच्चाटन और मारण भी मंत्र के विषय थे। मंत्र का व्यवसाय करने वाले दो प्रकार के होते थे-मंत्र में विश्वास करने वाले और दूसरों को ठगने के लिए मंत्र प्रयोग करने वाले।
होते है वहआदमी  कोऔर पागल बना देते है 
आदमी का सारा जीवन अंधकार 
हो जाता है । 
- अश्विनी पाण्डेय
मुम्बई - महाराष्ट्र

                      " मेरी दृष्टि म़े " संघर्ष ही जीवन है । परन्तु अंधविश्वास तो जीवन में बाधा है । जिससे संघर्ष कमजोर हो जाता है । बिना संघर्ष के जीवन कुछ भी नहीं है । दुनियां के हर जीव को अपने जीवन में संघर्ष करना पड़ता है । यह दुनियां का सत्य है ।
                                                        - बीजेन्द्र जैमिनी



Comments

  1. लाभदायक चर्चा, संघर्ष के बिना कोई सफल नहीं होता ।

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