आपने अपनी जिंदगी से क्या सीखा है ?

कहते हैं कि इंसान सारी जिंदगी कुछ ना कुछ सिखता रहता है । ऐसा मेरे साथ भी हुआ है और आप सब के साथ भी हो रहा होगा । यही जीवन चक्र है । इस जीवन चक्र से सबको सीखना चाहिए । यही " आज की चर्चा " का प्रमुख विषय है । आये विचारों को भी देखते हैं : -
जिन्दगी हमें कुछ ना कुछ निरन्तर सिखाती हीं रहती है । जब तक ज़िन्दगी है  हमारी, ना जाने हम कितने मुकाम से गुजरते हैं और इसी दरमियान हमारे सिखने की प्रक्रिया भी जारी रहती है ।  हमनें ज़िन्दगी में बहुत सारे उतार,चढ़ाव देखे हैं । जिन्दगी ने मुझे यह जरूर सीखाया है कि धैर्य,संयम और मेहनत से हम लगभग सब चीज पा  सकते हैं । हमें सदा सकारात्मक सोच रखनी चाहिए,, नकारात्मक से दूर रहने की कोशिश करनी चाहिए । कभी भी कोई बुरी परिस्थिति में घबराना नहीं चाहिए बल्कि उसके समाधान के लिए सोचना चाहिए।हर  वक्त हमें जिंदगी को जिंदादिली के साथ जीना चाहिए ,रात_ दिन ,धूप_ छांव तो आते जाते हीं रहेंगे । इसलिए मैं ने यह सीखा है कि ऊपरवाले ने हमें जो जिन्दगी दी है उसका भरपूर  सद उपयोग करें ,, क्योंकि सच हीं कहा गया है ,,"जिंदगी मिलेगी ना दुबारा "। जिन्दगी में जितना हो सके हमें दूसरों का सहयोग करना चाहिए मेरी ऐसी कोशिश होती है । जिन्दगी से मैंने यही सीखा है कि हम एक अच्छे इंसान बने और हमारी इंसानियत आजीवन बनीं रहे।
- डॉ पूनम देवा
पटना - बिहार
हां मैंने अपनी जिंदगी से यह सीखा कि हमें काम करना चाहिए हमारे शरीर एक मशीन की तरह है उसको जितना चलाएंगे उतना ही हम स्वस्थ रहेंगे और दिमाग पर स्वस्थ रहने के लिए अच्छी चीजों में सत्कर्म अच्छे साहित्य में लगाएंगे तभी यह चलेगा दिमाग का हम लोग एक पसंद भी यूज़ नहीं कर पाते बड़े बड़े महान वैज्ञानिक आइंस्टीन ने भी अपने दिमाग को सब तीन पर्सेंट यूज किया था इसलिए यह सब चीजें जितना हम खर्च करेंगे उतना ही पड़ेगी और अपनी उन्नति से ही देश और परिवार सब की उन्नति संभव है सकारात्मक सोच रखने के लिए हमें काम करना चाहिए कोई भी काम छोटा बड़ा नहीं होता ईश्वर चंद्र विद्यासागर आदि समाज सुधारक भी सब कोई महत्वता देते हैं मुझे मैथिलीशरण गुप्त की बहुत अच्छी लगती है जो हम बचपन से सुनते रहे हैं।
नर हो ,न निराश करो 
मन को कुछ काम करो , कुछ काम करो
जग में रहकर कुछ नाम करो
 यह जन्म हुआ किस अर्थ में अहो
समझो जिसमें यह व्यर्थ ना हो
कुछ तो उपयुक्त करो तन को
नर हो न निराश करो मन को। …......
-प्रीति मिश्रा 
जबलपुर-  मध्य प्रदेश
जीवन में शिक्षण एक सतत प्रक्रिया है । जन्म से लेकर मृत्यु शैय्या तक, सीखने की यह प्रक्रिया जारी रहती है । यह बात अलहदा है, कि कोई अपने पूर्वाग्रह के कारण, इसे खुले दिल से स्वीकार न करे ; पर सीखने-सिखाने का क्रम तो सतत्  चलता ही रहता है और ऐसा न होने की स्थिति में विकास अवरुद्ध हो जाता है ।  विकास के अवरुद्ध होने से कुंठा, निराशा, घृणा, ईर्ष्या, आवेश आदि मनोविकारों का मन पर आधिपत्य हो जाता है, जिससेे विकास ,अब विपरीत दिशा की ओर बढ़ने लगता है  और  मानसिक विकृति की संभावना बढ़ जाती है । सरिता और तालाब के जल में यही फर्क रहता है ।
कहते हैं न शुद्ध मन में ही पवित्र विचार उत्पन्न हो सकते हैं ।
जीवन में ऐसे कई अवसर आते हैं ; जब आप किसी से छले जाते हो और यही वह नाजुक समय होता है, जब व्यक्ति की बदला लेने की प्रवृत्ति जोर मारती है । इस समय स्वयं को संयत करके, अपनी पूरी ऊर्जा को, किसी सकारात्मकता की ले जाने वाला व्यक्ति एक प्रतिमान स्थापित करता है  और इन सबसे विलग ;  वह स्वयं पर जीत की उपलब्धि का जश्न मनाता है । कहते हैं न! एक मौन विवाद को टालने के लिए पर्याप्त होता है । मेरे जीवन में भी ,कई ऐसे अवसर आए, जब कुछ अधकचरा ज्ञान रखने  लोग , जो अति आत्मविश्वास से भरकर अपनी ही बात को सर्वोपरि मान , अपनी मर्यादा की सीमा का उल्लंघन करने लगे । तब स्वयं को मौन रखकर  विवाद को खत्म कर देना ही यथोचित था । क्यूँकि समय आने पर सत्य प्रकट हो ही जाता है । इसलिए इन सबसे दूर,  मैंने स्वयं को सकारात्मकता की ओर मोड़ कर अपनी दबी-छुपी रुचियों, जैसे- पाक कला, संगीत, लेखन, हस्तकला , ड्रेस डिज़ाइन आदि को साकार रूप देना शुरू किया जिससे दिमाग की वर्जिश तो हुई ही ;
*व्यस्तता एवं खुशी* दुर्लभ 
 उपलब्धि के रूप में प्राप्त हुई ।
- वंदना दुबे 
  धार - मध्यप्रदेश
मैने अपनी जिंदगी से बहुत कुछ सीखा है ।घर से 26 साल बाहर रहकर भाँति भाँति के लोगों से मिलने का मौका मिला जिसने लोगों को पहचानना सिखा दिया ।मेरी संवेदनशीलता का लोगों ने फायदा उठाया लेकिन मैने अपने आदर्शो और स्वभाव में कभी भी कटुता नहीं आने दी ।सबकी सहायता करना मेरा स्वभाव है ।हाँ, जिंदगी में आगे बढ़ने के लिए जरूर दूसरों से प्रेरणा ली ।लेकिन महसूस ये हुआ कि इस दुनिया में नाम कमाने के लिए लोग कई समझौते करते हैं और दूसरों को अंजान समझते हैं ।ऐसा नहीं होता मेहनत की सफलता का स्वाद अलग ही होता है ।अपनी जिंदगी के अनुभव से यही सीखा कि संतोषी, निश्छल, प्यार, अपनापन और सबको आदर करो तो जीवन नैया निर्विघ्न चलती है ।
- सुशीला शर्मा
जयपुर - राजस्थान
जिंदगी से हम बहुत कुछ सीखते है , संघर्षो में राह बनाना , अपने पराये का भेद यू कहे ज़िंदगी हमें बहुत कुछ सिखाती है ....
जिंदगी हमें बहुत कुछ सिखाती है। यही जिंदगी हमें अपने और पराए का मतलब समझाती है। जिंदगी हमें संदेश देती है कि नदी की तेज धाराओं की तरह आपको निरंतर आगे बढ़ना है, आपको कठिनाई का सामना करते हुए हर मुश्किल को तोड़कर सिर्फ अपने जीवन राह पर अग्रसर होना है, कभी भी पीछे पलटकर ना देखना। जिंदगी हमें संदेश देती है... कि अपनी गलतियों से सीख लेनी चाहिए। गलती करना अच्छी बात है इससे आपको शिक्षा मिलती है लेकिन गलतियों को कभी भी जीवन में दोहराना नहीं चाहिए। जीवन हमें सिखाती है लोगों की मदद करना अगर आप किसी की मदद करते हैं तो आपको अपने में ही खुशी महसूस होगी.. यह दुनिया तो वैसे ही स्वार्थी है लेकिन आप भी उन्हीं की तरह बन जाएंगे तो दुनिया में और आप में अंतर ही क्या होगा ? जिंदगी हमें सिखाती है अपने परिवार वालों पर समर्पित रहना, बहुत कम लोगों को ऐसा परिवार नसीब होता है जो हमेशा उनके साथ रहे उन्हें आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित करें। जिंदगी हमें अपने अनमोल चीजों को हिफाजत करना सिखाती है क्योंकि हर के जीवन में अनमोल चीजें बहुत मायने रखती है। मानव जीवन एक "अग्नीपथ" की तरह है जिसमे आप को उस अग्नि पथ पर चलते हुए निरंतर आगे बढ़ना है। जीवन चिड़ियों की तरह हमें चहकना सिखाती है। हमारा जीवन ईश्वर द्वारा दिया गया सबसे बड़ा और सबसे सुंदर उपहार है। यह हमें इतने सारे अच्छे लोगों के साथ रहने, इतनी सारी यादें साझा करने, इतने सारे क्षणों को संजोने के लिए देता है, इतने सारे अनुभव प्रदान करता है और सबसे महत्वपूर्ण प्रकृति का आनंद लेने, भगवान के सुंदर जीवों के साथ रहने, ईश्वर और प्रकृति की रचनाओं की सुंदरता का आनंद लेने का अवसर देता है। हमारा जीवन इतने अच्छे लोगों के साथ जुड़ा हुआ है। जीवन हमें अलग-अलग उम्र में बहुत सी चीजें सिखाता है। एक बच्चे के रूप में, हम कई नई चीजें सीखते हैं, हम समाज के साथ बातचीत करना सीखते हैं, हम चीजों को करने के नए तरीके सीखते हैं, हम दोस्त बनाना सीखते हैं और कुछ हद तक, हम सीखते हैं तय करना कि हमारे लिए क्या सही है और क्या गलत है। जब हम बड़े होते हैं, तो जीवन हमें संदेश देता है कि हमें अपने भविष्य को बेहतर बनाने के लिए कुछ कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। जीवन हमें संदेश देता है कि इस धरती पर कई अच्छे लोग हैं जो दूसरों के लिए बहुत उदार हैं लेकिन साथ ही, कुछ बुरे लोग भी हैं जो हमें नुकसान पहुंचा सकते हैं।
जीवन हमें यह भी संदेश देता है कि भगवान की रचनाएँ जैसे नदी, सूर्य आदि कभी किसी के साथ किसी भी प्रकार की पक्षपात नहीं करते हैं। इसी तरह, हमें भी हर जीव के साथ समान व्यवहार करना चाहिए। जीवन हमें संदेश देता है कि हमें अन्याय के प्रति अपनी आँखें बंद नहीं करनी चाहिए, बल्कि हमें इसके खिलाफ लड़ना चाहिए। हमारा जीवन भगवान का बहुत अनमोल तोहफा है और हमें इसके प्रत्येक क्षण को खुशी से जीना चाहिए। जिंदगी खुद को खोजने का सफर नहीं है बल्कि खुद को निर्माण करने का सफर है, आप जितने गंभीर, संवेदिनशील और अपने लक्ष्य को लेकर साफ होंगे, मंजिल उतनी ही जल्दी आपको नसीब होगी। मै अपने सन्दर्भ में तो कहूंगा की आपको गलतियां करनी चाहिए, सीखना चाहिए, दुहराना नहीं चाहिए। खुद को आप जितना अकेला रख पाएंगे, आपके पास उतना वक्त खुद को सोचने के लिए होगा। जिंदगी जितनी पहले जिसको सबक सिखाती है, वो इंसान उतना ही जल्दी आगे जाता है। आप लड़िये समाज या परिवार के उन शक्तियों से जो उड़ने से पहले ही आपके पंखों को कतरना चाहते है, बेशक गिरिये भी लेकिन कोशिश करिये की आप रुके ना। अपने ऊपर किसी का वश नहीं होने दीजिये, किसी के बुराई से टूटिये मत, बाकि अगर आप इतना कर लिए तो आपको कौन रोकेगा भाई और कब तक !
जिंदगी खुद को खोजने का सफर नहीं है बल्कि खुद को निर्माण करने का सफर है, आप जितने गंभीर, संवेदिनशील और अपने लक्ष्य को लेकर साफ होंगे, मंजिल उतनी ही जल्दी आपको नसीब होगी।गलती कर , सीखना चाहिए, दुहराना नहीं चाहिए। खुद को आप जितना अकेला रख पाएंगे, आपके पास उतना वक्त खुद को सोचने के लिए होगा। जिंदगी जितनी पहले जिसको सबक सिखाती है, वो इंसान उतना ही जल्दी आगे जाता है। आप लड़िये समाज या परिवार के उन शक्तियों से जो उड़ने से पहले ही आपके पंखों को कतरना चाहते है, बेशक गिरिये भी लेकिन कोशिश करिये की आप रुके ना। अपने ऊपर किसी का वश नहीं होने दीजिये, किसी के बुराई से टूटिये मत, बाकि अगर आप इतना कर लिए तो आपको कौन रोकेगा भाई और कब तक !
अस्तित्व वर्तमान तक ही सीमित है। 
आपने कल क्या किया, आप कल क्या करोगे यह सब बातें कोई भी मतलब नहीं बनाती यदि आप अपने वर्तमान से ध्यान हटा कर इन्हीं के बारे में सोच सोच कर खुद को ख्वामख्वाह परेशान रखते हैं। जीवन आपसे है और आप जीवन से। यह जो भी है, आज ही है। यदि आप मात्र विचारों से अपने आपके होने का प्रमाण इस धरती पर छोड़ सकते तो लोगों को मेहनत करने की ज़रूरत नहीं पड़ती। यदि आप चाहते हैं कि वर्तमान में बंधे आपके जीवन को कोई कल भी याद करे तो कोई ऐसा काम कर के जाइए जिसके कारण लोग आपको भुला न सकें।
माता पिता ही हमारा जीवन है क्योंकि उन्ही के कारण हमने इस धरती पर जन्म लिया है ! उन्होंने ही हमे चलना और आगे बढ़ना सिखाया है ! उनके न जाने कितने संघर्षों के कारण आज हम इस मोकाम तक पहुंच पाए है ! वह बस यही चाहते है कि उनका बच्चा कहीं पढ़ लिख कर दुनिया मे नाम कमाए तो मेरे हिसाब से हमारे माता पिता यानी हमारी ज़िंदगी हमे यही संदेश देती है की हमे पढ़ लिख कर और अच्छे कार्य कर कर इस दुनिया मे अपना नाम बनाना चाहिए ! हमे अच्छे कर्म करने चाहिए, गरीबों की मदद करनी चाहिए, भगवान को हमेशा याद करना चाहिए और हमेशा अपने माता पिता की सेवा करनी चाहिए ! ज़िन्दगीसे हमने यही सब सिखा है । 
जिंदगी रोज़ हमें कुछ नये अनुभव देती है और उन्हीं से हम सिखते है । 
- डॉ अलका पाण्डेय
मुम्बई - महाराष्ट्र
      जिंदगी एक पहेली है।जिसकी कोई सहेली नहीं है।बच्पन को छोड़ जीवन भर वह अपनी आत्मा पर बोझ बनी रहती है।
     जीवन से सीख की बात पर मंथन करें,तो स्पष्ट होता है कि यह एक महा चक्रव्यूह है।जिसमें हर कोई जकड़ा हुआ है।कोई धन में,कोई परिवारिक मोह में,कोई मान-सम्मान में,कोई राजनीति में, कोई भ्रष्टाचार में लिप्त होकर देश का सत्यनाश कर रहा है।    उक्त मंथन से स्पष्ट हुआ कि संतुष्ट कोई नहीं है।असंतुष्ट भ्रष्टाचरियों को देखा कि वह अपना इमानदारी से कमाया हुआ धन भी खा ना सके और परलोक सिधार गए।अपनी बात करूं तो जन्म से लेकर अब तक यह जानने का प्रयास कर रहा हूँ कि मैं जीवित हूँ या अन्यों की भाँति मृत हूँ।वर्तमान खौड़ (जम्मू) से दिल्ली तक 600 किलोमीटर पदयात्रा भी उन्हीं प्रयासों की एक इकाई मात्र ही है।
- इन्दु भूषण बाली
जम्मू - जम्मू कश्मीर
मैंने अपनी ज़िन्दगी से सीखा है जब भी जीवन में कोई मुश्किल की घड़ी आती है तब भी निराश नही होना चाहिए हमेशा अपना विश्वास बनाए रखना चाहिए । एक ओर बात भगवान भी उनकी सहायता करता है जो अपनी सहायता स्वयं करते है । अच्छे काम के लिए पहला क़दम स्वयं उठाए फिर भगवान भी साथ देगा और आपके आस पास के लोग भी । 
  -  नीलम नारंग
हिसार - हरियाणा
सीखने सिखाने की कोई उम्र नहीं होती ; जीवन भर ये पाठशाला चलती रहती है । अपने कार्यव्यवहार में स्वनुशासन अवश्य होना चाहिए । चूँकि मनुष्य सामाजिक प्राणी है इसलिए उसे *मैं* से उठकर *हम* की ओर कार्य करना चाहिए । जिस तरह प्रकृति परिस्थिति के अनुसार स्वयं में बदलाब करती है वैसे ही हमें भी अनुकूलन की प्रवृत्ति को अपनाते हुए केवल लेने की सोच के साथ ही जीवन नहीं बिताना चाहिए । हम प्रकृति व समाज को कितना दे सकते हैं इस ओर भी  सोचना चाहिए ।
*सत्य ही शिव ही है और शिव ही सुंदर* है इस परिकल्पना को अपनाते हुए जो भी जीवन जीता है उसके हृदय में आनन्दरूपी ज्योति प्रज्वलित होती रहती है ; जिसके प्रकाश से वह न स्वयं दीप्तिमान होता है वरन आसपास के लोगों को भी लाभ पहुँचाता है । सार्थक दिशा में लक्ष्य बना कर; सकारात्मक सोच के साथ कर्म  अवश्य करना चाहिए । तन मन की सुंदरता हेतु योग व प्राणायाम  भी जीवन का हिस्सा हो । जैसा अन्न वैसा मन ; ये बात पूर्णतया सही  है इसलिए आहार की शुद्धता पर विशेष ध्यान देना, भोजन सात्विक हो , ईमानदारी के पैसे से कमाया हुआ हो । हमें धन के अर्जन के साथ ही उसके खर्च पर भी जरूर ध्यान देना चाहिए ।  अपनी आय का 10 % नेकी के कार्यों में खर्च करना चाहिए क्योंकि हमें वो पूँजी भी कमानी है जो हमारे साथ जायेगी । केवल भोग विलास की वस्तुओं पर व्यय करते हुए नहीं जीना चाहिए ।  खुद के लिए तो जानवर भी जीता है हम तो मानव हैं ; हमें *सर्वजनहिताय* , *वसुधैव कुटुंबकम* की सोच को अपनाते हुए कार्य करना चाहिए । अपने जीवन के मुख्य रूप से तीन ऋण - देव ऋण, पित्र ऋण व गुरु ऋण अवश्य चुकाने चाहिए । आचार्य पुरुषोत्तम जी महाराज के अनुसार मानव जन्म से पाँच प्रकार का ऋणी होता है- देव ऋण, पितृ ऋण, गुरु ऋण, लोक ऋण और भूत ऋण। यज्ञ के द्वारा देव ऋण, श्राद्ध और तर्पण के द्वारा पित्र ऋण, विद्या दान के द्वारा गुरु ऋण, शिव अराधना से भूत ऋण से मुक्ति मिलती है ।शास्त्रों में वर्णित है  जब तक जीव ऋण से मुक्त नहीं होता तब तक पुन: जन्म से छुटकारा नहीं मिल सकता।अन्ततः यही कहा जा सकता है कि श्रेष्ठ साहित्य, वेद पुराणों का अध्ययन,   धर्म की रक्षा, सत्य के साथ, प्रकृति के अनुगामी बनकर जीवन मूल्यों को सहेजते हुए ही जीवन जीना चाहिए जिससे मानवता आप गर्व कर सके और आप समाज के प्रेरक बन सके ।
- छाया सक्सेना प्रभु
जबलपुर - मध्यप्रदेश
जिंदगी एक ऐसी पाठशाला है जिसमें अंतिम साँस लेने तक व्यक्ति सदा कुछ न कुछ सीखता है। हर पल सीखने को मिलता है। अरुणाचल प्रदेश के शिक्षा विभाग में अध्यापिका के रूप में मेरे जीवन के चौबीस वर्ष बीते। वहाँ से मिले पाठ बहुत महत्वपूर्ण रहे। मैंने व्यक्ति की पहचान करना सीखा। अवसरवादी किस तरह से स्वार्थ साधते हैं और आपके वक्त पर किस तरह अनजान बन किनारा कर जाते हैं...इसे जाना। अपना स्वाभिमान रख कर आत्मनिर्भर  बनना सीखा। नकारात्मकता के बीच अपनी सकारात्मकता को बनाये रखना सीखा। मौन कैसे बहुत सारी समस्याओं का समाधान बनता है, अपने अंदर विकसित की गयी रूचियाँ किस तरह समय का सदुपयोग करना सिखाती हैं, बुराइयों से दूर रखती हैं, कैसे हमें साधारण से असाधारण बनाती हैं...यह सीखा। सबसे बढ़ कर....मानवता का धर्म निभाना सीखा। मैं तो उस ईश्वर का नित्य धन्यवाद करती हूँ जिसने मुझे जीवन देकर एक अच्छा और सच्चा इंसान बनने का अवसर प्रदान किया है। 
- डा० भारती वर्मा बौड़ाई
देहरादून - उत्तराखण्ड
जिंदगी एक पाठशाला है और इस पाठशाला में रहते हुए हम बहुत कुछ सीखते हैं यानिकी जीवन के अंतिम क्षण तक हमें कुछ ना कुछ सीखने मिलता है यूं कहो जो सिखते हैं वही हमारा अनुभव है और यही अनुभव हमें ज्ञानी बनाता है ! इस ज्ञान की शिक्षा देने वाला गुरु जीवन में हमारे साथ चलने वाले लोग तो है ही किंतु उसके अलावा हमारा व्यवहार, आचरण, कर्म,  वाणी आदि आदि अनेक कारणों से हमारी जिंदगी में  मनुष्य के यह गुण भी स्वयं उनकी जिंदगी में अनुभव देने वाले गुरू बन जाते हैं! मैने भी अपनी उतार चढ़ाव वाली जिंदगी से बहुत सीखा और यह अंतिम सीख नहीं जब तक जीवन है सिखती  रहूंगी! जीवन में  मैने सीखा किसी भी प्रकार के कार्य को अंजाम देने से पहले हमें अपनी व्यवहार वाणी आचरण को ध्यान में रखना चाहिए ! कितने भी कठिन कार्य हो हमें अवश्य सफलता प्राप्त होगी ! जिंदगी में कभी हार नहीं माननी चाहिए सदा मैं कर सकता हूं /सकती हूं के साथ दृढ़-संकल्पता
के साथ आगे बढ़ना चाहिए । प्रतिशोध की भावना नहीं रखनी चाहिए  ! संघर्ष  से कभी नहीं  भागना चाहिए ! मनुष्य का जीवन अनेक संघर्षों से भरा है और जिंदगी में संघर्ष से निरंतर जूझते रहने के कारण दूसरी दिशा में हमारा ध्यान ही नहीं जाता किंतु यही अनुभव हमें जीवन युद्ध में थके व्यक्ति की मदद करने के लिए प्रेरित करता है जब हम दूसरे की मदद करते हैं तो हमें आत्म शांति मिलती है !जिंदगी हमें यह भी सिखाती है क्योंकि संघर्षों के दौर से गुजरने की तकलीफ उसका अनुभव होता है ! प्रत्येक व्यक्ति  स्वाभिमानी होता है कोई किसी के सहारे जीना नहीं चाहता फिर भी जीवन में ऐसे क्षण जरूर आते हैं जब दूसरों के सहानुभूति की अपेक्षा रहती है ऐसे समय बिना किसी निःस्वार्थ भावना की उसकी मदद करनी चाहिए और मदद लेने वाले को भी अहं नहीं रखना चाहिए ! मैने जिंदगी से यह भी सीखा हमें माता-पिता से मिले संस्कार नहीं भूलना चाहिए! अपने माता पिता को प्रथम गुरु मान उनकी सेवा करनी चाहिए! गुरु ईश्वर के समान होता है! गणेश जी ने भी तो माता पिता की परिक्रमा करके पूरे ब्रह्माण्ड की परिक्रमा कर ली!  जिंदगी से मैंने यह भी सिखा जैसे-जैसे उम्र बढ़ती है जीवन का अनुभव भी बढ़ता है किंतु समय कम रह जाता है आदमी परिपक्वता की ओर पूर्ण रूप से बढ़ता है और जिंदगी यही सिखाती है कि अहंकार 
  का त्याग कर हमें अपना विवेक जागृत रखना चाहिए विवेक से ही हम उस पर अंकुश लगा सकते हैं और नम्रता भी आ जाती है विनम्रता आ गई यानी कि हम आत्मा पर विजय पा लेते हैं क्योंकि हमारे भले बुरे कर्म के आधार पर ही हमें फल की प्राप्ति होती है ! अंत में सार यही कहूंगी कि यह पृथ्वी कर्मभूमि और हमारा जीवन कर्म क्षेत्र है सभी कर्म करने के लिए स्वतंत्र होते हैं जो जैसा कर्म करेगा वैसा फल पाएगा ! मैं अब इस उम्र में प्रभु का नाम लेना चाहती हूं और जब तक जीवन है दूसरों के लिए काम आती रहूं! मृत्युबाद भी अपने अंगों का दान करने की भी इच्छा रखती हूं ! जिंदगी के अब तक के सफर में मैने यही सीखा है!
- चन्द्रिका व्यास
मुम्बई - महाराष्ट्र
जिन्दगी एक प्रयोगशाला है और सीखना एक प्रक्रिया जो निरन्तर चलती है ।व्यक्ति जितना सीखता है उसे लगता है कि अभी कम है ।गहरे समुद्र के लाखों मोतियों से मात्र एक मोती सा। मैंने अपनी जिंदगी से यह सीखा है कि निरन्तर आगे बढ़ने के लिए प्रयास करो जिन्दगी जिन्दगी की तरह जीवन के सार्थक उद्देश्य तय जियो ।अपने अपनों के साथ पड़ोस परिवार समाज व देश को भी अनुभव हो कि कोई जी रहा है ।संभवतः सृष्टि में आने  मानव जीवन का उद्देश्य भी होगा ।ईश्वर ने अपनी प्रयोगशाला में भेजा होगा ।
- शशांक मिश्र भारती
 शाहजहांपुर - उत्तर प्रदेश
अपनी  जिन्दगी  से सीख मिली  कि आत्मनिर्भर  बनो  हर  पक्ष  मे परम्परागत  विचारो  मे परिमार्जन करते  रहो 
आत्मसम्मान  की हमेशा  ख्याल  रख कर  आगे  बढे 
व्यवहार  मे लचीलापन  अवश्य  रखे हवा  पानी मौसम  की तरह  बदलने  का प्रयास  करते  रहना  ,खुद  खुश  रहे  और  आसपास  भी  खुशिया  फैलाते  रहे .समय  प्रबंधन  मेरे  जीवन  की  विशेष  पहचान  है .जिह्वा  पर  नियंत्रण  कर  अभिव्यक्ति  और  भोजन  पर नियंत्रण 
अहंकार  को  फटकने  न देना 
जीवन  एक  पाठशाला  है हर  उम्र  और हर  अवस्था  ने जीने की सीख  दी है  ऐसा  कुछ  अनूठा  करो  जो एक  प्रेरणास्रोत  रहे 
ईश्वर  पर अपने  उपर  परिवार  परिवार विश्वास  भरोसा  रखे
संगीत  को जीवन  में अवश्य  स्थान  दे यदि किसी  कारणवश  जिंदगी  मे  कोहरा  छाया  है वक्त  उस  कोहरे  को  भी  खत्म  करेगा 
ईश्वर  के घर में देर है पर  अंधेर  नही 
 परिवार  से  बड़ा  कोई  नही है  हमेशा  एक  दूसरे  के  प्रति  समर्पित  रहे  सकारात्मक  विचार  पर महत्व  दे 
कोई  ऐसा  घर  नही  है  जॅहा  उच  नीच  न होती  पर  उसे  कभी  भी  चर्चा  का विषय  बनने  दे ।
आर्थिक  समाजिक  व्यवहारिक  शारीरिक  तौर  पर  सहायता  के लिए  तत्पर  बने 
प्रतिक्रिया  मे मधुरता  बनी रहे 
पाठशाला  की  सीख  अनवरत  है।
डाँ. कुमकुम  वेदसेन  
मुम्बई - महाराष्ट्र
जीवन का हर पल,हर कदम हमें अनुभव और ज्ञान भी देता चलता है। कुछ बातें हमें पढ़ने ,सुनने और देखने से सीखने से मिलती हैं तो बहुत सारी बातें हम पर बीतने से । जिन्दगी के दोनों ही रूप हमारे लिए अनुभव का ख़जाना होते हैं,जिनका सार निकाल कर हमें औरों को बताना चाहिए ताकि उनके लिए वे प्रेरणादायक, दिशावर्धक और मार्गदर्शक बनकर उनके सुखद जीवन के लिए सुरक्षा कवच बन सकें। समय के साथ हमारी उम्र बढ़ती चलती है,याने हमारी जिन्दगी के जिये गये पलों की संख्या याने हमारा संघर्ष... हमारे अनुभव।इसीलिए जो जितना बुजुर्ग, उतना अनुभवी... उतना विशेष।
इसी क्रम में हम भी अब तक जितना जी चुके हैं,वहां तक के जीवन-संघर्ष से अपने अनुभवों का सार निकाल सकते हैं और औरों के लिए उन नीतियों, उन व्यवहारिक बातों का ज्ञान बता सकते हैं जो उनके व्यक्तिगत और सामाजिक जीवन में प्रेममय, शांतिमय और सौहार्दमय वातावरण के लिए सुखदायक बन सकती हैं। इस संदर्भ में मेरी पहली सीख है कि हमारा प्रथम ध्येय रहे  कि हमारे मित्र भले ही न हों परंतु शत्रु एक भी ना हों। इसके लिए हम जीवन में गुस्सा होना, रूठना, हठ करना, स्वार्थी बनना छोड़कर,क्षमाशील बनना होगा। हम अच्छे ना बन पायें तो कोई बात नहीं परंतु हम बुरे ना बनने पायें,ऐसा प्रयास जरूर करें। हमें अपने खानपान और विचारों में भी ध्यान रखना चाहिए। दोनों ही बातें हमारे स्वास्थ्य को प्रभावित करती हैं। जीवन में स्वस्थ रहना बहुत आवश्यक और महत्वपूर्ण है। कहा भी गया है "पहला सुख, निरोगी काया"। इसके साथ हमें अपने कर्तव्यों का निष्ठा से पालन करना चाहिए, इससे आपको अपने अधिकारों के लिए संघर्ष नहीं करना पड़ता। और भी अनुभव और सीख हैं... अभी  बस इतना ही।
- नरेन्द्र श्रीवास्तव
 गाडरवारा - मध्यप्रदेश
मेरा जीवन परमात्मा का अनमोल उपहार है। पूर्व जन्मों के सुकृत्यों के फलस्वरुप सात्विक, संस्कारी एवं साहित्यिक परिवेश से युक्त परिवार में जन्म पाकर जीवन को सहज जीने का सुंदर अवसर मिला है। जहां हमने सीखा- बड़ों का मान- सम्मान, शिष्टाचार, सादा जीवन- उच्च विचार, कर्म पर अधिकार। प्रेम पूर्ण वातावरण में पले, परिवर्धित उच्चशिक्षा पाकर सदैव सर्वोदय की भावना बलवती हुई। दांपत्य जीवन में आने के बाद भी मैंने सीखा और महसूस किया कि जीवन में सामंजस्य और संतुलन ही सफल सुखी जीवन का आधार है ।मेरा जीवन आध्यात्मिकता से अधिक जुड़ाव के कारण देवत्व के गुणों से पूर्ण संतोषप्रद सुखी एवं समृद्धि शाली है।जिसके लिए ईश्वर को कोटि- कोटि धन्यवाद।
- डॉ रेखा सक्सेना
मुरादाबाद - उत्तर प्रदेश
 जिंदगी ने सब अच्छा ही अच्छा दिया।नजरिया ही सकारात्मक हो गया। बुराई में छुपी अच्छाई को नज़र ढूंढ ही लेती है। उसने सिखायाजैसा खाली हाथ आया , वैसा खाली हाथ जाएगा।फिर काहे का नफ़ा और काहे का नुकसान।
कर्म के रूप में अभिनय करते रहो, जिंदगी यूं ही कट जाएगी।
स्थितप्रज्ञ होकर सृष्टि के रंग देखो।
- डा. चंद्रा सायता
 इंदौर - मध्यप्रदेश
जब से होश संभाला तब पता लगी कि जिंदगी कितनी खूबसूरत है । तब से जिंदगी से खुद मैं शिक्षार्थी बनके सीख रही हूँ । जब जन्म लिया हमारे अंग - प्रत्यंग उम्र के हिसाब से शारीरिक , मानसिक बदलाब ,  अंतःस्रावी ग्रंथियों  रासायनिक हार्मोनल  परिवर्तन आने से कद - काठी सब में परिवर्तन आया । कल का शैशव आज हमारे पास नहीं है । वहीं से हमारी जिंदगी ने माता - पिता के सान्निध्य में संस्कार सीखे । उस अतीत की नींव पर मूल्यों  को सीख  के हमारी जिंदगी टिकाऊ बनी है । यही नैतिकता के पाठ से मेरी जिंदगी सौपान दर सौपान शिखर पर है चढ़ती चली गयी । यही मूल्य अपने बच्चों को सिखाए । जिस तरह बिखरे फूल धागे में पिरोके माला बन जाती है । फूलों के संसर्ग में रहनेवाला धागा भी सुगंधित हो जाता है ।  जिंदगी ने मुझे खुद के जीवन के साथ दूसरे के जीवन में  अच्छाइयों की खुशबू  बिखरें ।
 जिंदगी ने मुझे सिखाया बाधाएँ ताउम्र आनी है । हम लक्ष्य तक पहुँचने के लिए पैरों में कितने भी छाले पड़ें ।तब तक हमें चलते जाना है । जब तक हम लक्ष्य हासिल नहीं कर लें । कितनी मुश्किलें आएँगी । हमें बीच राह में भटकना नहीं है । हिम्मत नहीं हारनी है ।हजार कदम चलने के लिए हमें एक कदम तो रखना ही होगा ।  तभी मंजिल मिलती है ।
   हमें लक्ष्य पाने के लिए धैर्य जैसे गुण को जिंदगी अपनाने के लिये कहती है । इसलिए कहा भी है , सब्र का फल मीठा होता है । जो सपने थे उसे मेरी जिंदगी ने पूरे दिल , दिमाग से पूरे किए । जिंदगी यही बोलती है मुझ से अभी और नया काम करना है । रुकना नहीं है ।  मेरी उन्नति को देख  के जो मेरे निंदक बन गए हैं । जिंदगी ने उनकी बातों को गौर से सुन अपने साथ रखा । जिससे मैं अपनी कमियों को सुधार सकूँ । 
शिक्षिका थी तो जिंदगी ने न जाने भारत के कितने बच्चों का भविष्य गढ़ दिया । इसी प्रसंग में मैने प्रौढ़ शिक्षा भी आस-पास की सोसाइटी के वाचमैन , कामवाली चतुर्थ श्रेणी के लोगो को दी । वे लोग मेरे हमदर्द बन मेरे साथ खड़े हैं । मुझे उन सबका प्यार मिला है ।मेरे संदर्भ में  नेकी कर कुएँ में डाल वाली कहावत गलत सिद्ध हुयी है ।  विद्यालय में बच्चों की  , समाज में , व्हाट्सएप ग्रुप मैं , जो मेरे संसर्ग में आता है । वही यही कहता आप हमारी  प्रेरणा हो  । मेरी जिंदगी मेरे साथ बाहरवालों को अच्छे कामों को प्रेरित कर दें । यह तो मेरे सपने को साकार करता है । सन 2000 में मैं इकलौती नवी मुंबई की महिला साहित्यकार थी । मेरे इंटरव्यू तभी से अब तक नामचीन अखबारों  दूरदर्शन चैनल , आकाशवाणी पर आएँ हैं । जिंदगी को  कलम  लिखती गयी । सफलता मिलती रही । समाज के दुख , दर्द  को कलम ने गुना है । 
जिंदगी ने  इन जिंदगियों से  सीखा है ।कबीर जी का दोहा है जो तोको काँटा बोय  , बोय तू उसको फूल ।
अर्थात मानव जीवन में प्रकृति की तरह बनके परोपकार करना है ।  मैं तो सबका हित करना पसंद करती हूँ ।
क्योंकि मेरी  जिंदगी को जो  भी कुछ मिला है । वह समाज की देन है । इसलिए मेटि जिंदगी का फर्ज है ।वह भी समाज को वापस दे । मेरी जिंदगी किसी से भेद- भाव ,  ऊँच - नीच जैसी दीवार नहीं खींचती है । सभी ईश्वर के बंदे हैं ।  मरने के सभी को एक ही स्थान परमात्मा की शरण में जाना है । फिर यह भेदभाव कैसा । मरने के बाद तो मुर्दा अकड़ जाता है । जीते जी यह अकड़ यह क्यों ।जिंदगी ने मुझे सादा जीवन उच्च विचार जैसे सूत्र को दिया ।  बनावटी , दिखावटी लोग तो धड़ाम से नीचे  ही गिरते हैं । मैं कभी भी कोई काम कल के लिये नहीं छोड़ती हूँ ।जो काम करना है । उसे अभी करना है । टालना मेरी आदत नहीं है । हर काम मैं मेहनत , आत्मविश्वास के साथ करती हूँ ।काम सफल होते हैं ।कमल की तरह जिंदगी निर्लिप्तता को मानती है ।मेरी जिंदगी की साँस भी यही मुझे सिखाती है । संसार में आना - जाना जीवन का क्रम है । अंदर जाती साँस यही कहती है कि संसार की अच्छाइयों को साकारत्मकता  , गुणों को  धारण करो ।हमारी  बाहर निकलती साँस यह कहती है कि मन की मलिनता , अवगुण , नकारात्मकता को बाहर निकालो । हर दिन मेरी जिंदगी नया सवेरा बन के नयी सीख ले के आती है । दो हाथों  की ताकत से समाज  के लिए हितकारी  काम करो । चाहे आप लिख के करो , चाहे आप वृक्षारोपण करके करो ।  किसी को मदद चाहिए तो जरूर करें । यही मुझे सिखाया मेरी जिंदगी में ।
अंत। में मैं दोहे में कहती हूँ - 
जीवन सार्थक है वही ,   परहित में हो काम ।
हम बुजुर्ग के अनुभव से , ले लाभ प्रात- शाम  ।
- डॉ मंजु गुप्ता 
 मुंबई - महाराष्ट्र
जिंदगी वो भी अपनी ,उस से सीख। एक सतत क्रिया प्रतिक्रिया। जब से होश संभाला है। जिंदगी के कयी रूप देखे। समय के साथ समझ बढ़ी और यह समझ आने लगा कि जिंदगी के उतार चढ़ाव हमे मजबूत बनाते हैं। सब से महत्पूर्ण बात जो मैंने सीखी वह है बात -बात पर रोना सब से बड़ी कमजोरी है ।यूँ तो कहते हैं कि आँसू औरतों का हथियार है पर मैने इसे भीतरी ताकत बनाया है। जिन बातों या घटनाओं से सामान्यतः लोग जल्द आहत होते हैं मैं अपनी आत्मशक्ति ,आत्मविश्वास से आगे बढ़ जाती हूँ। रिश्तों को सहेजने में यदि आत्मसम्मान भी जाए तो मैं तैयार हूँ ।  टूटने से झुकना  बेहतर ।जिंदगी   जिंदादिली से जी जाए ।ईश्वर ऐसे पल दे तो धन्य । समय किसी के लिए रूकता नहीं है इसीलिए मैं समय का सद उपयोग करने का भरसक प्रयास करती हूँ। यह सीख मुझे अपनी जिंदगी के अनुभवों से मिली है।  सब से बड़ा सबक जीवन चलने का नाम। हार मिले तो पुनः प्रयास।अपनी जिंदगी की सब से बड़ी सीख मैं यह मानती हूँ कि (नो डिप्रेशन ओनली इम्प्रेशन)।
यही मूल मंत्र है 
- ड़ा.नीना छिब्बर 
जोधपुर - राजस्थान

                " मेरी दृष्टि में " अपनी जिंदगी से हर कोई सीखता है । जिसे हम अनुभव भी कहते है । जिंदगी का अनुभव अनमोल होता है । 
                                                    - बीजेन्द्र जैमिनी


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