अच्छे लोग हमेशा दुःख क्यों पाते हैं ?

अक्सर देखा गया हैं कि वह बहुत अच्छा इंसान है परन्तु किस्मत का माड़ा है बहुत दुःखी रहता है । लगता है कि पिछले जन्म के कर्म का फल है । ऐसा आपने देखा होगा या सुना होगा । यही " आज की चर्चा " का प्रमुख विषय है । अब देखते हैं आये विचारों को : -
सुखिया सब संसार है, खावै और सोय।
दुखिया दास कबीर है, जागै और रोय।।
कबीर के दोहे का अर्थ है कि जो लोग स्वार्थी, स्वांतःसुखाय,सिर्फ  अपनी चिंता करने वाले हैं वे अपना पेट भरकर चैन की नींद लेते हैं लेकिन जो अच्छे लोग हैं वे अपने साथ-साथ दूसरों की चिंता भी करते हैं और दूसरों के दुःख को अपना समझते हैं ऐसे लोग हमेशा दुःख पाते हैं ।वे  दिन -रात दूसरों के दुख दूर करने के बारे में योजनाएँ बनाते रहते हैं ।ऐसे व्यक्ति सीधे और सरल, मितभाषी, विनम्र, सहनशील और निष्कपट होते हैं ।कुटिल लोग उन्हें भला-बुरा कहते हैं तो भी  वे पलट कर अपशब्द नहीं कहते ।चालाक व्यक्ति उल्टे तरीके से अपने काम करवा लेते हैं लेकिन सीधे-सीधे लोगों के काम बन तो जाते हैं पर समय लगता है ।चाहे जो भी हो लेकिन अच्छे लोगों के कारण  ही हमारी नैतिकता, मर्यादा, संस्कृति, सभ्यता का परचम विश्व में फहराता है ।
- सुशीला शर्मा
जयपुर - राजस्थान
अच्छे लोग हर स्थिति परिस्थिति को व्यवहारिक तरीके से सोचते हैं। जैसे जब लाल बहादुर शास्त्री रेल मंत्री थे तो रेल हादसे होने पर उन्होंने अपने पद को छोड़ दिया था। जो भी महापुरुष, ज्ञानी व्यक्ति होता है वह बुरा देखकर दुखी हो जाता है और सारी जिम्मेदारी स्वयं की मानता है जैसे गौतम बुद्ध राजा होते हुए भी अपने राज्य को छोड़कर सब की सेवा में लग गए और संसार को असतो मा  का पाठ पढ़ाया।अच्छे लोगों के अंदर आध्यात्मिक क्षमता होती है वह सुख-दुख बराबर बना रहता है जरा सा रोग कष्ट और मृत्यु यह तो शरीर के साथ जुड़ी हुई प्रक्रिया आए हैं। विधि ने भी ऐसी व्यवस्था की है कि हमारे शरीर के अंदर प्रतिरोधक क्षमता भी होती है जो रोगों से लड़ने में हमारी मदद करती है उसी तरह मन की भी कुंठित विकृतियों को योग के द्वारा बदला जाता है मानसिक संरचना में व्यक्ति के चित्र और प्रवृत्ति में संस्कार प्रारब्ध पर निर्भर होते हैं जिस प्रकार कर कर्म  को लेकर हम आते हैं। शुभ लाभ हमारे संस्कार के साथ चलते रहते हैं और जन्म से ही पूर्व आत्मा का उद्देश्य निश्चित रहता है उसी के आधार पर कर्मों का फल मिलता है जीवन तो एक नाटक है हम सब भगवान की कठपुतली बनकर जीने के रूप में जीते हैं।
- प्रीति मिश्रा 
जबलपुर - मध्य प्रदेश
दोस्तों आपने देखा होगा कि दुनिया में अच्छे लोग ही ज्यादा दुखी रहते हैं ,ऐसा नहीं कि उन्हें सफल होने का रास्ता नहीं मालूम। अच्छे लोग को सबकुछ मालूम होता है किन्तु कुछ कारण होते हैं जिनके कारण वो सदैव दुखी जीवन व्यतीत करते हैं। आइये जानते हैं इन कारणों को -
किस्मत की मार-बहुत बार अच्छे लोग किस्मत के सामने हार जाते हैं। वो जो चाहते हैं उन्हें कभी नहीं मिलता। हालांकि वो परेशानियों से लड़ना जानते हैं। सफलता कैसे मिलनी है उन्हें पता हैं और इस तरह की परेशानी से निकलना भी जानते हैं लेकिन उनकी भावनाएं कोई समझ नहीं पाता। उनमें ये हुनर होता है कि वे कुछ भी ना होने का बहाना नहीं बनाते बल्कि जो है उसका सम्मान करते हैं और इसलिए वो रास्ते बनने का इंतजार नहीं करते, बल्कि रास्ते बना लेते हैं 
उन्हें 'ना' बोलना नहीं आता है- अच्छे इंसान आपको कभी किसी चीज़ के लिए ना नहीं बोलते हैं। चाहे उसके लिये उन्हें कितनी भी मेहनत करनी पड़े। वे हमेशा दूसरों की मदद करने के लिए तैयार रहते हैं। इसी कारण लोग उनसे काम निकलवाने के लिये नहीं सोचते हैं। आप चाहे उनके काम आएं या न आएं वो आपके काम ज़रूर आते हैं। इससे ये होता है कि वो खुद भी कभी-कभी मुसीबत में पड़ जाते हैं। 
किसी पर भी जल्दी भरोसा कर लेना- जो इंसान किसी पर भी जल्दी भरोसा कर लेते हैं उन्हें हमेशा लोगों से धोखा ही मिलता है मगर फिर भी वो आपको धोखा देने के बारे में नहीं सोचते हैं। बल्कि धोखे के बावजूद भी वो आपकी हमेशा मदद करते हैं इसलिए आज के जमाने में इंसान को आंख बंद करके किसी पर भी भरोसा नहीं करनी चाहिए। वरना उन्हें दुख के अलावा और कुछ नहीं मिलेगा।
दूसरों को कभी दुख नहीं पहुंचाते- अच्छे लोग दुख का मतलब जानते हैं इसलिए वो सोचते हैं कि कभी किसी को हर्ट ना करें हालांकि उनके लिए भी लोग यही सोचे ऐसा जरुरी नहीं होता है। जो लोग सिर्फ अपने बारे में सोचते हैं, वो दूसरो को हर्ट करने से पहले एक बार भी नहीं सोचते हैं। जो इंसान अच्छे होते हैं वो इस बात का ध्यान ज़रूर रखते हैं की उनकी किसी बात का लोगों को बुरा न लग जाए। साफ दिल के इंसान अपनी खुशी से पहले दूसरों की खुशी के बारे में सोचते हैं। अपनी जरूरतों को पूरा करने से पहले दूसरों की ज़रूरतों को पूरा करते हैं। अच्छे इंसान हमेशा आपको आगे बढ़ने की हिम्मत देते हैं अपनी भावनाओं को नहीं दिखाना चाहते।
- अश्विनी पाण्डेय
मुम्बई - महाराष्ट्र
सुख दुख एक सिक्के के दो पहलू होते हैं । जिस घटना के लिए हम दुखी हों जरूरी नहीं कि सामने वाला उससे दुखी हो । यह एक मानसिक व शारीरिक अनुभूति  हैं । जब व्यक्ति दूसरे के दुख से द्रवित होता है तो वो उसे दूर करने की कोशिश करता है और यथा संभव उसकी मदद भी करता है । पर कई बार देखने में आता है कि व्यक्ति अच्छा होते हुए भी अचानक से सांसारिक कष्टों की चपेट में आ जाता है । तब वह स्वयं से प्रश्न पूँछता है कि मैंने तो किसी के साथ गलत किया ही नहीं फिर भी मेरे साथ ऐसा क्यों हो रहा है । तब उसे भगवान याद आते हैं और उसे अंतरात्मा से जबाव मिलता है - 
दुख में सुमिरन सब करें, सुख में करे न कोय।
जो सुख में सुमिरन करे ,तो दुख काहे  होय ।।
जहाँ यथार्थवादी सोच के अनुसार व्यक्ति के कर्म उसके सुख दुःख के जिम्मेदार होते हैं तो वहीं अध्यात्मवादी सोच के अनुसार व्यक्ति के पूर्व जन्मों के कार्यों का लेखा जोखा ही सुख दुख का आधार है ।
अब प्रश्न है कि अच्छे लोग ही हमेशा दुख क्यों पाते हैं तो इसका उत्तर साफ है कि वे ईमानदारी से अपने कार्यों का प्रतिफल स्वीकार करते हैं  तथा बिना किसी लाभ के दूसरों की मदद करते हैं जिससे उनके दुःख वे स्वयं ले लेते हैं और परहित सरस धरम  नहिं भाई को चरितार्थ करते हुए सेवा भाव से कार्य करते हैं और बाहरी रूप से दुखी होकर भी मानसिक   प्रसन्न रहते हैं ।
- छाया सक्सेना प्रभु
जबलपुर - मध्यप्रदेश
सुख  दुख  अपने  कर्मो  का लेखा है
सुख दुख  एक  सिक्के  के दो  पहलू है 
यदि अच्छे लोगो  को  दुख  हमेशा  मिलता  है तो  सुख के भी  भागीदार  वही  होगे चूकि  एक दूसरे  के बिना  अस्तित्व हीन  है ।ईश्वर  दंड  उसे  देता  है जिन्हे  उन पर अटूट  विश्वास  है ।
दुख  की घड़ी  सहनशीलता  और  धैर्य  की  कड़ी  परीक्षा  है
एक छोटी  कथा  है एक  नाला  प्री पत्थर  रखा  था  सभी  उस प्री पैर  रखकर  नाला  पार  कर रहे थे  एक  आदमी ने देखा  कि यह तो  हनुमान  की मूर्ति  है उसने उसे हटाकर  दूसरी  ओर  कर दिया बस हनुमान  जी  प्रकट हो गये और उसने इंसान  से कहा कि तुम मुझे  बिना  नारियल फोडे कैसे हाथ  लगाया  वह इंसान  हाथ  जोड़कर  कहने  लगा सभी  तो  आपके उपर पैर रखकर  जा रहे  थे तो उन्होने  कहा वे तो  नास्तिक  थे। सारांश यह है कि जो अच्छे  होते  है वे ईश्वर  के करीब  होते है। सुख दुख  तो नजर  नजर  की बात  है जिसे  हम दुख  समझते  है वह मेरे  लिए  सुख होता है।
यह तो भावनाओ  का  खेल  है। अच्छा  बुरा  मानव  का  नजरिया  है । 
डाँ. कुमकुम  वेदसेन 
मुम्बई - महाराष्ट्र
अच्छे  लोग  अपनी  अच्छाई  सह्रदयता  के  कारण  दुःख  पाते  हैं  ।  क्योंकि  वे  स्वयं  दुःख  उठाकर  भी  दूसरों  के  दुःख  को  दूर  करने  का  प्रयास  करते  हैं  ।  ये  ऐसे  व्यक्ति  होते  हैं  जो  कहते  हैं  कि  अपने  लिए  तो  सभी  जीते  हैं,  दूसरों  के  लिए  जीने  का  नाम  ही  जीवन  है  ।  ये  स्वयं  का  घर  फूंक  तमाशा  देखते  हैं,  दूसरों  का  दर्द  अपने  भीतर  महसूस  करते  हैं  और  जुट  जाते  हैं  येनकेन  प्रकारेण  उन्हें  सुखी  करने  में  ।  ऐसा  करते  हुए  वे  स्वयं  के  तन-मन-धन  को  भूल  जाते  हैं  ।  ऐसे  लोग  हमेशा  दुःख  पाते  हैं  ।  परन्तु  उन्हें  मन  में  एक  अलौकिक  सुख  महसूस  होता  है,  जो  उन्हें  आत्मिक  संतोष  प्रदान  करता  है  ।   कहते  हैं  ना  कि-  " अंत  भला,  सो  भला  ।"  तो  ये  चाहे हमेशा  दुःख  पाते  रहे  हों  मगर  फिर  भी  अंत  में  उनके  साथ  अच्छा  ही  होता  है  । 
        - बसन्ती पंवार 
          जोधपुर  - राजस्थान 
मानव के हृदय में दो तरह के भाव विद्यमान रहते हैं ।जिसमें  अच्छे भाव और बुरे भाव  हैं । अच्छे भाव मनुष्य को अच्छाइयों की ओर अग्रसर करते हैं । बुरे भाव  मनुष्य को बुराइयों की ओर प्रेरित करते हैं । त्रेतायुग में एक ही  नाम राशि के राम , रावण थे । राम गुण  , व्यक्तित्व , कामों से पुरूषोत्तम राम कहलाए । विद्वान रावण  दुर्गुणों से राक्षस ही कहलाया । द्वापर में कृष्ण प्रभु और कंस अत्याचारी कहलाया गया । मानव जिस  गुण , अवगुण को को धारे  वही सोच बन जाती  है । समाज में अच्छे लोग अच्छाइयों के  काम करते  हुए भी दुखी रहते हैं । जिसके संवेंगात्मक , मनोवैज्ञानिक कई कारण हैं । अब मैं कहती हूँ कि अच्छे लोग कौन होते हैं ? जिनके हॄदय संवेदनाओं से भरा होता है । जिनमें दया , प्रेम , करुणा , परोपकार , अहिंसा , क्रोध  का न होना आदि मानवीय ,  साकारात्मक गुणों से ओतप्रोत होता है । ये लोग अपने , परिवार , समाज , देश , विश्व  के लिए अच्छा करने की सोच रखते हैं । इस बात को मैं उदाहरण से समझाती हूँ - बुराइयों के प्रतीक  अत्याचारी क्रूर राजा  हिरण्यकश्यप को हर कोई जानता है । जो अपने को भगवान से बड़ा मानता  था । इसके अत्याचारों से प्रजा दुखी थी । अपने पुत्र प्रह्लाद को  भगवान का नाम नहीं जपने देता था । वह पिता हिरण्यकश्यप  उसे अपने नाम को जपने के लिये कहता था । 
 माता के अच्छे  संस्कारों से पल्लवित   सदाचारी प्रह्लाद ने अपने पिता की बात नहीं मानी । उसे मारने के लिए अपने पिता के द्वारा  दी गयी होलिका संग  आग में जलने जैसी कई भीषण प्रक्रियाओं से गुजरने के बाद भी वह जिंदा रहा था । बुराई का प्रतीक होलिका जल गयी थी । इसी बात से पता चलता है कि अच्छे लोगों की समाज को भी जरूरत होती है ।  अच्छे लोगों को हमेशा दुख उठाने होते हैं ।  क्योंकी इन्हें दूसरों का हित , परोपकार ,  अच्छाई करनी होती है । इसके लिए इन्हें कठिन परीक्षाओं से गुजरना पड़ता है । इन्हें शारीरिक , मानसिक , मनोवैज्ञानिक , संवेंगात्मक   आदि प्रताड़नाएँ , पीड़ा  को सहते हैं । इनके   मानवीय गुणों के  भंडार , इनकी  सोच अच्छाई करने को प्रेरित करती है।  हीरे  की प्रारंभिक अवस्था में चमक नहीं होती है ।जब हम उसे  तराशते हैं । तब वह अनमोल , कीमती बन जाता है । सोना आग में तपकर ही कंचन होता है । इसी तरह अच्छे लोगों को मुश्किलों , परेशानियों , संघर्षों , मुसीबतों का सामना करना होता है । ऐसे अच्छे ,  दुखी लोग दूसरे के जीवन में  आननंद लाते हैं । दूसरों के बारे में सोचते हैं । जिन्हें किसी की मदद की जरूरत नहीं होती है । यह अपने लक्ष्य के लिये खुद ही रास्ता बनाते हैं । इनका हृदय उदार होता है ।   ईमानदारी , दया के कारण दूसरों पर भरोसा कर लेते हैं । चाहे बाद वे लोग इन्हें धोखा दें । इन पर किस्मत की मार भी मेहरबान रहती है । इसलिए इन्हें दुखी रहना पड़ता है । जबकि इन्हें प्रतिकूल परिस्थितियों से उबरना आता है । यह दूसरों की खुशी के बारे में सोचते हैं , न कि अपनी खुशी के बारे में । दूसरों के लिए जीना इन्हें अच्छा लगता है । परोपकारी  दधीचि ने तो इंद्र को वज्र बनाने के लिए अपने शरीर की हड्डियाँ दान कर दी थी ।  वफादार पन्नदायी ने अपने पुत्र का बलिदान देशभक्ति के लिए कर दिया था । आज कोई माँ दूसरों की परेशानी को अपनी परेशानी मान के इतना बड़ा बलिदान कर सकती है क्या ? जवाब न में ही होगा । ऐसे व्यक्ति  में  किसी भी काम के लिए दूसरों को न करने की आदत नहीं होती है ।
कहावत भी है- 
करने की सौ शिकायत , न करने की एक शिकायत  ।
एक बार रक्षाबंधन पर  रात्रि के समय हिंदी के साहित्यकार  सूर्यकांत निराला जी अपनी धर्म बहन महादेवी  जी के घर राखी बाँधने के लिए आए । महादेवी जी ने दरवाजा नहीं खोला ।  रात में  निराला जी वहीं बाहर बैठ के सुबह का इंतजार करने लगे । सुबह जब महादेवी जी दरवाजा खोला तो ठिठुरते  भाई निराला जी को बैठा देखा । कहने का मतलब यही है । दुख सह  लेंगे उफ न करेंगे । 
 एक बार महादेवी जी ने स 1942 में  साहित्यकार  संसद भवन इलाहाबाद में बनाया । कवियों को आना -जाना लगा रहता था । निराला जी भी आए थे ।  सर्दी वे काँप रहे थे । तो महादेवी जी ने  उन्हें सुंदर रेशमी शनील की रजाई उपहार में दी । अगले दिन वही रजाई निराला जी ने ठंड से काँपते गरीब को दे दी ।  इन मिसालों से यही ज्ञात होता है । अच्छे लोग दूसरा का हित करना जानते हैं । वे दूसरों के लिये बने हैं । जिनमें स्वार्थ लेश मात्र  नहीं होता है । खुद  को दुखी में रहना सही लगता है । अच्छे लोग दुखी न रहे तो ये अपने बारे में भी सोचे । क्योंकि खुद भी समाज , देश हित , खुशी के लिए फिट रहना जरूरी है। इन्हें अपनी आत्मा की आवाज भी सुननी  चाहिए ।अंत में  प्रभु कृष्ण ने  गीता में कहा है 
कर्म करो फल की चिंता न करो ।
यह मंत्र जो धार  ले तो जीवन में किसी भी व्यक्ति को दुख नहीं देगा ।
 दोहे में कहती हूँ :-
अच्छा है न रह इसमें ,  अच्छे दुखिया लोग ।
 मैं के संग परहित का ,  हो खुशियों का रोग ।

  कभी दुखी मत ये  रहें , सुखद से रख लगाव ।
दुखी सुखी कर जाय  है ,    अच्छाई   के भाव ।
- डॉ मंजु गुप्ता 
 मुंबई - महाराष्ट्र
मेरे विचार से अच्छे लोग अपने से ज्यादा सामने वाले कि परिस्थितियों पर ध्यान देते है और उनसे एक भावनात्मक रूप से जुड़ कर सोचते है, अपने से पहले वो दूसरे व्यक्ति को उनके किसी भी निर्णय से समस्या न हो पीड़ा न उठानी पड़े आदि बातों को बहुत गौर से सोचते है और सोचने मे दिमाग की जगह दिल से सोचते हैं उन्हें किसी भी गलत प्रभाव या गलत कारणों के कारण कुछ गलत घटना घटित होती है तो इसका दोषी वो अपने आपको मानने लगते है और अधिकतर परहित के बारे मे सोचते है वो कभी भी और किसी भी काम मे अपना व्यक्तिगत स्वार्थ सामने नही लाते हैं और वो दूसरों के सुख में ही अपना सुख देखते है सर्वजन हिताय सर्वजन सुखाय की भावना से भरे होते है जो आज के इस हालात में बहुत कठिन होता है और सभी को खुश रख पाना बहुत मुश्किल है इसलिए व्यवहारिक रूप से सोचने वाला व्यक्ति सदैव दुखी रहता है।
- मंजुला ठाकुर
भोपाल - मध्यप्रदेश
अक्सर लोग एक सवाल करते हुए दिख जाते हैं – “अच्छे लोगों के साथ बुरा क्यों होता है?”..... दूसरे शब्दों में कहें तो यह यही हुआ कि अच्छे लोग दुखी क्यों रहते हैं। हालांकि यह कहते हुए शब्दों में चिंता से अधिक दया भाव होते हैं, जो संभवत: अच्छे लोगों के लिए दुखी रहना एक प्रकार से तय परिस्थिति मान ली जाती है। पर क्या यही सत्य है? क्या इसे मानकर अच्छाई से किनारा कर लिया जाना चहिए?
सबसे पहले तो यह कि ‘अच्छे लोग’ किसे कहा जाना चाहिए? या यह कि अच्छे लोगों की श्रेणी में कौन-कौन आ सकते हैं? मानवीय धरातल पर आकर सोचें तो इस संसार में रहते हुए वास्तव में अच्छे और बुरे की कोई परिभाषा ही नहीं है, वस्तुत: जो है वे हैं परिस्थितिजन्य मानवीय व्यवहार। इन मानवीय व्यवहारों के लिए भी कई कारक जिम्मेदार होते हैं जैसे तत्काल हालात, अपनी सोच, सक्रियता और सक्षमता आदि।
अमूमन जिस भाव में अच्छा होना आंका जाता है वह है दयालुता का स्वभाव। दयालु लोग प्राय: लोगों के काम आते हैं लेकिन अधिकांश समय उन्हें अपने संदर्भ में इसका सकारात्मक परिणाम नहीं मिलता या ज्यादातर समय हालात उनके विपरीत होते हैं। आखिर इसकी वजह क्या है? क्या यह उनकी किस्मत होती है? या उनकी ही सोच या स्वभाव की कोई गलती? मनोवैज्ञानिक धरातल पर विश्लेषण करें तो ये तीन कारण इसकी मुख्य वजह होते हैं:
दूसरों के लिए जीना / दूसरों की खुशी में खुश होना
दयालु स्वभाव के लोग दूसरों की मदद के लिए हमेशा तत्पर रहते हैं। इन्हें खुद के लिए कुछ करने से ज्यादा दूसरों के लिए कुछ करने में खुशी मिलती है। यही वजह होती है कि जहां जरूरत पड़ने पर ये हर किसी के काम आते हैं, वहीं इनकी एक खास बात यह होती है कि किसी की मदद करने के लिए ये अपनी जरूरतों को दरकिनार करने से भी पीछे नहीं हटते। पर इनके दुख का कारण यह नहीं होता, बल्कि सामने वाले का स्वार्थी रवैया होता है।
वास्तव में देखें तो अपनी सीमाओं से बढ़कर और अपनी परेशानियों को किनारे रखकर किसी की मदद करना ही इनके लिए दुख का कारण बन जाता है। ऐसे व्यक्तियों के लिए लोग यह मानकर चलते हैं कि ये हर वक्त उनके साथ ही होंगे और खुद से पहले उनके बारे में सोचेंगे। उनसे मदद की चाह रखने वाले लोग भले ही इनके लिए कुछ ना करें लेकिन इनसे कभी भी “ना” नहीं सुनना चाहते।
एक क्षेत्रीय कहावत है – “करने की सौ शिकायत, ना करने की एक शिकायत”... यही इन दयालु लोगों के साथ भी होता है। जब कभी किसी हालात में पड़कर ये सामने वाले को गलती से भी कुछ करने के लिए “ना” कह दें या परिस्थितिवश मदद ना कर पाएं तो सामने वाले व्यक्ति के मन में यह बात आ जाती है कि अब ये उनके काम नहीं आएंगे। नतीजा यह होता है कि वे उनकी बातों, सोच, निर्णयों को अनदेखा करना शुरु कर देते हैं। यही बात इन्हें दुखी करती है।
आपको यह समझने की जरूरत है कि यह आपका बुरा रवैया नहीं है जिसके लिए आपको दुखी होना चाहिए या पछताना चाहिए, बल्कि यह सामने वाला का स्वार्थ है जो किसी की जरूरतों को समझें बिना हमेशा उसकी मदद लेना चाहता है। इसे समझते हुए आप पछतावे के भाव से निकल जाएं और अपनी प्राथमिकताओं के साथ चलें। बार-बार ऐसा होना आपका दिल दुखाएगा और हो सकता है मदद करने के अपने स्वभाव को ही आप गलत मानने लगें, जबकि ऐसा नहीं है। इसलिए अपने दिल की सुनें, और अपने कड़वे अनुभवों का प्रभाव अपने स्वभाव पर ना आने दें।
खुद की परवाह करना स्वार्थी बनना नहीं होता
दयालु लोगों में एक और जो बात होती है वह यह कि ये अपने लिए शायद ही कभी जी पाते हैं। इनकी प्राथमिकताओं में कभी परिवार, कभी रिश्तेदार, तो कभी दोस्त आ जाते हैं। कभी ये बच्चों के स्कूल भागते हैं, कभी परिवार के साथ छुट्टी मनाते हैं, तो कभी दोस्तों के खुशी-गम में शरीक होते हैं, परिणाम यह होता है इनके पास खुद के लिए ही खाली समय नहीं होता कि अपने शौक पूरे कर सकें।
क्योंकि इनका हर कदम दूसरों को खुश करने के लिए होता है, उसे पूरा करते हुए ये अपने सपनों को पूरा करने के लिए काम नहीं कर पाते। आपको अपनी इस सोच में थोड़ा सुधार लाने की आवश्यकता है। आपको यह समझने की जरूरत है कि खुद के लिए सोचना स्वार्थी बनना नहीं होता और दूसरों के लिए सोचने का मतलब यह नहीं होता कि आप खुद के लिए बिल्कुल ना सोचें।
नि:स्वार्थ भाव से किसी की मदद करना और बात होती है लेकिन नि:स्वार्थ होने का अर्थ खुद की जरूरतों को भूल जाना नहीं होता। आपको याद रखना चाहिए कि भगवान ने हर इंसान को शरीर और मन दिया है, इसकी जरूरतों और खुशियों का खयाल रखना हर व्यक्तिगत इंसान की जिम्मेदारी होती है। अपनी इस जिम्मेदारी को पूरा करना गलती नहीं हो सकती। हां, स्वार्थी होने और जिम्मेदार होने के बीच का फर्क अवश्य समझ लें। कभी ऐसा नहीं होना चाहिए कि अपना हित साधने के लिए किसी अन्य का बुरा किया जाए या समर्थ होते हुए भी जरूरत में किसी के काम ना आएं तो यह स्वार्थ ही कहलाएगा।
उम्मीद करना....
तीसरी और एक बहुत जरूरी चीज जो है, वह है ‘उम्मीद रखना’। आपने किसी की मदद इसलिए नहीं की ताकि वह बदले में आपकी भी मदद करे या आपको सम्मान दे या आपके बारे में सोचे। आपका दिल और दिमाग ऐसा करना सही मानता है इसलिए आपने वह किया, फिर अगर बाद में आपके उस काम को पहचान या सम्मान नहीं मिला, तो आपको दुखी नहीं होना चाहिए। अगर ऐसा है तो यह दिखाता है कि उन कामों के बदले आप भी कोई इच्छा रख रहे हैं और यही इस जगह आपके दुख का कारण बनता है।
आपको यह समझने की जरूरत है कि सक्षम होते हुए किसी के लिए कुछ करना, यहां तक कि अगर आपने अपने विवेक के साथ किसी के लिए कोई त्याग किया तो वह भी आपने अपना नैतिक कर्त्तव्य और इंसानी धर्म पूरा किया है, संभव है भविष्य में अपको इसका पुरस्कार मिले, लेकिन इसके लिए आपको किसी अच्छे परिणाम की उम्मीद नहीं करनी चाहिए। गीता के वह ऊक्ति याद रखें – “कर्म करो, फल की चिंता मत करो।“ यह वह राह है जो हर हाल में आपको दुखी नहीं होने देगा।
-डॉ अलका पाण्डेय
मुम्बई - महाराष्ट्र
अच्छे इंसान और अच्छे नागरिक बनना ना तो असंभव है और ना ही कठिन। बस,दृढ़ इच्छाशक्ति की आवश्यकता होती है। जिसके लिये संतोषी,धैर्यवान और त्यागी बनना पड़ता है। वैभव की चकाचौंध में, प्रतिस्पर्धा की अंधी दौड़ में यही मुश्किल हो रहा है। जितना बने,जैसे बने समेटते चलो, यह लालची सोच जबसे लोगों के बीच पनपती जा रही है। योग्यता और मेहनत ,ज्ञान और विवेक, संयम और सोहाद्र,निष्ठा और नैतिकता, मान- सम्मान और अपनत्व,संस्कृति और संस्कार इन सबसे परे हो, हममें क्रूरता, हठ, हिंसा, चालाकी जैसे मनोविकार हमारे दिल और दिमाग में इस तरह हावी हो रहे हैं कि हम लगातार और हर प्रकार से स्वार्थ सिद्ध करने में ही लगे रहते हैं। इन सबके बीच कुछ ऐसे लोग भी है जो ऐसे दूषित और कलुषित विकारों से दूर हैं,सहृदयी, नेक और चरित्रवान हैं याने ' अच्छे लोग' हैं। परंतु जब   इनका सम्पर्क ऐसे लोगों से होता है तो उनके व्यवहार और आचरण को देखकर विकल और विचलित हो जाते हैं। इनका निःश्छल मन दुःख और संताप से भर जाता है। यही नहीं , वो लोग इनकी सहृदयता का,इनकी ईमानदारी का सम्मान करने की छोड़ो बल्कि उपहास तक करते हैं और अपने स्वभाव और व्यवहार से व्यक्ति और समाज को नुकसान पहुंचाने मे कोई कसर बाकी नहीं रखते। यही कारण है कि अच्छे लोग हमेशा दुःख पाते हैं।
- नरेन्द्र श्रीवास्तव
गाडरवारा - मध्यप्रदेश
 अच्छे लोग हमेशा दुख पाते हैं यह बात जब हम सोचते हैं तो हमें लगता है ऐसा क्यों ? इसका भी कारण है वह कहते हैं ना "काजी क्यों दुबले सारे गांव की फिक्र " अच्छे लोग सदा अपने से पहले दूसरों के दुख को महसूस करते हैं  !खुद ठंड में ठिठुरेंगे किंतु दूसरों को कंबल ओढायेंगे इसका मतलब यह है कि उसमें दया और त्याग की भावना है ! स्वयं को दुख देकर भी उसे आत्म शांति मिलती है और आत्मा की शांति से बड़ा कोई सुख नहीं होता ! यदि एक बड़ा भाई छोटे भाई के भविष्य की खातिर अपनी पढ़ाई का त्याग कर उसे पढ़ाता है सोचता है कि पढ़ लिख जाएगा तो आगे सुख ही सुख है किंतु कभी-कभी सोच उल्टी पड़ जाती है एवं धोखा मिलता है और आगे दुख ही दुख मिलता है ! हम सोचते हैं शायद हमारे पूर्व जन्म के कर्म ऐसे रहे होंगे जिससे सुख नहीं मिलता ! लोग भी उसे दयनीय दृष्टि से देखते हैं और वह सब के दुख के बारे में सोचने वाला बेचारा की गिनती में आ जाता है ! यह उनका नजरिया है !कभी कभी दान धर्म करने वाला ,नित्य प्रभु को याद करने वाला, विवेकी, दया त्याग प्रेम की भावना रखने वाला भी व्यापार में घाटा खाता है और सारा वैभव जाने पर वह दुखी हो जाता है यानिकी उसे असफलता ही मिलती है किंतु वह विचलित नहीं होता और अपने विवेक , त्याग की भावना एवं संस्कार को नहीं छोड़ता और सब को साथ लेने की जो भावना रहती है वह बरकरार रखता है !
अंत में कहूंगी जो दूसरों की खुशी में अपनी खुशी ढूंढता है वह दुखी कैसे हो सकता है ! उदाहरण के लिए हमारे प्रधानमंत्री आदरणीय मोदी जी ही हैं जो अपने देश जनता के सुख को अपना सुख मानते हैं तभी तो सबकी सुनते हैं ! ऐसे महान सोच रखने वालों से ही देश का परचम अडिग है!
- चन्द्रिका व्यास
मुम्बई - महाराष्ट्र
अच्छे लोग ही हमेशा दु:ख पाते हैं यह सर्वदा सत्य नहीं है। हाँ, बहुलता अवश्य है।क्योंकि ईश्वर भी शायद जानता है कि दु:ख को झेल पाने और बर्दाश्त करने की शक्ति केवल और केवल उनमें है। ऐसे लोग दु:खों का सामना पूर्ण हिम्मत से कर उससे पार पा लेते हैं जबकि दूसरे इससे शीघ्र ही हार जाते हैं और गलत कदम चुन लेते हैं। यही कारण है कि अच्छे लोग हमेशा दु:ख पाते हैं।
- अजय गोयल
गंगापुर सिटी - राजस्थान
यह जानना होगा कि अच्छे लोग, हम किसे कहें? अच्छे लोग सदैव दैवीय गुणों से महामंडित होते हैं। निस्वार्थ, परोपकार ,साहस जिम्मेदार, करुणावान त्याग, समर्पण, लोकमंगल में अपने समय व श्रम को लगाने वाले, अहंकार से कोसों दूर, लोभ- लालच से परे, हमेशा सेवाभाव के धनी लोगों को अच्छे लोग की संज्ञा से विभूषित किया जा सकता है।
 प्रश्न है कि क्या इतने गुणों से युक्त देवत्व की भूमिका में रमण करनेवाले समाजसेवी  अच्छे लोग, हमेशा दुख क्यों पाते हैं? तो यह भली-भांति समझ लेना चाहिए,कि अच्छे लोगों द्वारा किए जाने वाले श्रेष्ठ परमार्थिक मार्ग में बड़ी रुकावटें आती हैं।हमारे पड़ोसी, हमारे घरवाले, मित्र और साथ ही समाज का ऐसा तवका जो सदैव चालाकी, बेईमानी, लोभ, मोह, स्वार्थ से मात्र स्वयं के लिए जीवन जीना जानता है, तो वही लोग अच्छे लोगों के हितैषी व शुभचिंतक का बाना पहन कर, सबसे पहले अड़ंगे लगाते हैं; और किसी शुभ कार्य का कोई श्रेय ना ले जाए, ऐसा सोच कर उसे मानसिक- शारीरिक दुख देने को तत्पर रहते हैं। फिर भगवान भी तो कदम कदम पर ऐसे लोगों की परीक्षा लेते हैं; क्योंकि उन्हें देखना होता है कि अमुक व्यक्ति इस अच्छाई या अच्छे कार्यों के कर्ता का पात्र भी है या नहीं।
सब गुणों से युक्त व्यक्ति सत्कार्य करके भले ही दारुण दुख भोगे, पर उसको एक आत्मिक सुख की जो प्राप्ति होती है; तो वह दूसरे की दृष्टि में भले ही दुख हो ,पर उसकी दृष्टि में नहीं। राम कृष्ण जैसे देवता, ईश्वरचंद्र विद्यासागर जैसे असंख्य अच्छे व्यक्तियों का जीवन इसका उदाहरण भी है। 
अच्छे कार्य में लगे विशेषकर अच्छे लोगों के लिए दुख उठाना अवश्यंभावी है। इसीलिए अच्छाई की गति भी धीमी रहती है- जैसा कि कहा भी गया है--" नेकी नौ कोस, बदी सौ कोस।
-  डॉ. रेखा सक्सेना
मुरादाबाद - उत्तर प्रदेश
  सर्व सुख में मेरा  सुख समाया हुआ  है। ऐसे समझने वाले अच्छे लोगों हमेशा सर्व सुख के लिए ही सोचते हैं यही उनका दुख का कारण होता है क्योंकि वह दूसरों के दुख को स्वयं एहसास करता है और दुखी हो जाता है क्योंकि अपना सुख को सर्व सुख में देखने की चेष्टा करता है तभी उनको सर्व सुख में ही आत्म संतुष्टि मिलती है सर्व सुख ना होने से ही वे दुखी होते हैं ऐसे व्यक्ति ज्ञानी पुरुष होते हैं अतः वह सभी का कल्याण चाहते हैं उनके जिंदगी में जो भी बधाएं आती है उसे गंभीरता से सोच विचार कर समाधान करने की चेष्टा करते  हुए विचलित नहीं होते ।अन्य लोगों को ऐसा लगता है अच्छे लोगों को ही दुख मिलता है दुख तो हर मनुष्य को अपने कर्मों से ही मिलता है लेकिन अच्छे लोग चाहते हैं कि जैसे मैं अच्छा हूं वैसे सब अच्छा बने दूसरों की अच्छाई ना होना ही अच्छे लोगों का दुख का कारण होता है इसीलिए अच्छे लोग हमेशा चिंतन करते हैं , कि समाज में मेरी क्या भागीदारी होनी  चाहिए और वह हमेशा समस्या से समाधान की ओर अपना मन, तन ,धन को  उत्साहित होकर अर्पण समर्पण करता है। अच्छे लोगों को दूसरों की दुख से दुखी होना उनका प्रवृत्ति हो जाता है इस दुख का निवारण करने के लिए वह हर पल ,हर क्षण प्रयासरत रहता है। अच्छे लोग संवेदनशील होने के कारण  ही दुख पाते हैं।
- उर्मिला सिदार
रायगढ़ - छत्तीसगढ़
     अद्भुत लगता है कि अच्छे लोग हमेशा दु:ख पाते हैं।जबकि अच्छाई ही उनके सम्पूर्ण दु:खों का कारण है।यही नहीं अच्छाई और अच्छे कर्म करने की प्रेरणा देने वाले देव अर्थात शनिदेव जी को भी इस दुनिया ने बदनाम कर रखा है।उन्हें शत्रु, कष्टदायक और और ना जाने क्या-क्या कहा जाता है।
    जबकि सत्य यह है कि वह मित्र हैं और शीघ्र प्रसन्न होने वाले देवता हैं।चूंकि उन्होंने अपने सम्पूर्ण जीवन में पिता एवं अन्य देवताओं से पीड़ा-प्रताड़ना पाई है।   वह कुकर्मियों को सुधरने की चेतावनी भी देते हैं और यदि कोई ना सुधरे तो वह दण्ड देकर सुधार भी देते हैं।  मेरे जीवन के शोध में भी यही निष्कर्ष निकला है कि मेरे दु:खों का आधार भी अच्छे कर्मों का फल है।
- इंदु भूषण बाली
जम्मू - जम्मू कश्मीर
 अच्छे लोगों की अच्छाइयां ही उन्हें परेशान करती हैं।  वह 'जियो और जीने दो' के सिद्धांत के अनुसार चलते हैं और चाहते हैं कि उसके संगी- साथी, रिश्तेदार व अन्य दुनिया के लोग भी उनके अनुसार ही करें। संसार में ऐसा नामुमकिन है। अच्छाई है तो बुराई भी होगी, गोरा है तो काला भी, गुण है तो अवगुण भी होंगे। तभी तो इसे माया का चक्कर कहा गया है। जो लोग अपनी अच्छाई तो जानते हैं परंतु यह नहीं जानते कि दूसरों की बुराई के कारण ही उनका अच्छापन है। वह औरों की गलतियां बुराइयां देख- देख कर दुखी रहते हैं। जिस दिन वह औरों की 99 प्रतिशत बुराईयों में 1% अच्छाई देख लेंगे तो दुखी नहीं होंगे। जिस दिन अपनी 99 प्रतिशत अच्छाई को न देखकर अपनी 1% गलती देख लेंगे तो दु:खी नहीं होंगे। उनके दु:ख का कारण वह स्वयं है। अपनी ही अज्ञानता के कारण वह दु:खी रहते हैं। 
- संतोष गर्ग
मोहाली - चंडीगढ़
अच्छे लोग अपने आगे किसी को दुःखी नहीं देख सकते हैं । दूसरे का दुःख भी अपने सर लेते हैं । इसलिए दुनिया को लगता है कि वे दुःखी हैं । सारा दुःख उनको ही मिलता है ।अच्छाई को समझ पाना भी मुश्किल है । कोई भी उनकी अच्छाइयों को शक की निगाहों से देखता है । आज जब सभी बुराइयों में होड़ लगाए हैं, उस बीच में अच्छाई की किरण गलतफहमी पैदा करती है। मानव उससे डर कर प्रहार करता है। अच्छाई इससे दुःखी हो जाती है । इसलिए वो हमेशा दुःखी रहते हैं ।
- संगीता गोविल
पटना - बिहार

            " मेरी दृष्टि में " सोने को शुद्ध करने के लिए आग पर तपाना पड़ता है । तभी शुद्ध सोना कहलाता है । इस प्रकार बिना दुःख के इंसान सोना नहीं बनता है । अतः दुःखों के तप से वह सफल इंसान बनता है ।
                                                 - बीजेन्द्र जैमिनी



Comments

Popular posts from this blog

वृद्धाश्रमों की आवश्यकता क्यों हो रही हैं ?

हिन्दी के प्रमुख लघुकथाकार ( ई - लघुकथा संकलन ) - सम्पादक : बीजेन्द्र जैमिनी

लघुकथा - 2023 ( ई - लघुकथा संकलन )