क्या हमारे अनुभव ही हमारे शब्द बनतें हैं ?

हमारे जीवन पर अनुभव हमेशा हावी रहता है । जो हर क्षेत्र में स्पष्ट नज़र आता है । यही शब्दों के माध्यम से वाणी या लेखन के द्वारा सबके सामने आ जातें हैं ।यही " आज की चर्चा " का प्रमुख उद्देश्य है । अब आये विचारों को देखते हैं : - 
 मानव जीवन अनुभव पर ही आधारित होता है। जो अनुभव हमारे जीवन में आते हैं। और न जाने हम जीवन में कितने उतार-चढ़ाव देखते हैं। इसी से हमें सहन शक्ति मिलती है। और आगे जाकर वह हमारा स्वभाव बन जाती है। या फिर ऐसा कहें कि इन अनुभवों से कोई अति अग्र भी हो जाता है। और कोई अति सरल और वह हमारा स्वभाव बन जाता है। अनुभव का जीवन में अधिक महत्व होता है। अनुभवों से हम क्या ग्रहण करते हैं,अच्छाई या बुराई, जो हम अनुभव से ग्रहण करते हैं। वह विचार हमारे मस्तिष्क में अंकित हो जाते हैं। और हम उसी को अपने व्यवहार में लाते हैं। उदाहरण- एक बालक रोज अपने पिता को मारपीट करते देखता है,तो वह आगे चलकर एक बुरा व्यक्ति बन जाता है। उसी प्रकार उसकी छोटी बहन भी वह सब देखती है। लेकिन हर  रोज वह मंदिर जाकर अपना दुख भगवान को सुनाती है। और भगवान को  ही अपना सब कुछ मानकर सद विचार जीवन में धारण करती है। मंदिर के दिव्य वातावरण में वह घर के वातावरण को भूलकर।मंदिर की सुखद अनुभूतियों को अपने व्यवहार में उतारती हैं। एक ही मां-बाप की दोनों संताने एक ही घर में पले बड़े बच्चे,एक अच्छा एक बुरा।तो हमें यह डिसाइड करना है। कि हमें क्या ग्रहण करना चाहिए। अच्छाई या बुराई हम अपनी आत्मा और मन को जिस तरह के विचारों की खुराक देते हैं। वैसे ही बन जाते हैं। और वह हमारे दैनिक जीवन का हिस्सा बनकर हमारे शब्द बन जाते हैं।और हमारे व्यवहार
में उतरे अनुभवों के यह शब्द ही हमारे व्यक्तित्व का निर्माण करते हैं।उसी के अनुरूप हमारी पहचान करवाते है।
   - वंदना पुणतांबेकर
       इन्दौर - मध्यप्रदेश
बुरा जो देखन मैं चला बुरा ना मिलिया कोय
जो दिल देखा आपना मुझ सा बुरा ना कोय।।
        जी हाँ दोस्तों - - - अपने नजरिए से दुनिया को देखते हुए जो अनुभव प्राप्त होते हैं वे ही हमारे अनुभव होते हैं उनसे ही हमें सकारात्मक शब्द प्राप्त होंगे और उनका शुभ प्रयोग और प्रयोजन होगा। अगर हम सिर्फ एक तरफा अनुभवों से प्राप्त शब्दों का ही प्रयोग करेंगे तो वे शब्द नकारात्मक निषेधात्मक होने का खतरा बना रहता है और उसमें निष्पक्षता और निरपेक्षता का अभाव होगा। अतः मैं मानती हूँ कि शब्द अनुभवजन्य होते हैं इसलिए हमें अनुभवों को सदैव सापेक्ष नजरों से आकलित करना चाहिए। मन के भीतर ही मंदिर और श्मशान होते हैं। अच्छे अनुभवों को मन के मंदिर में बसाए रखें और बुरे अनुभवों को मन के श्मशान में भस्म कर दें तभी हमारे शब्द वे बनेंगे कि
ऐसी बानी बोलिए मन का  आपा खोय
औरन को सीतल करें आपहिं सीतल होय।।
        -  हेमलता मिश्र "मानवी" 
       नागपुर - महाराष्ट्र
हां हमारे अनुभव ही हमारे शब्द बनते हैं। मानव अपने अनुभव के आधार पर ही अपने विचारों को व्यक्त करता है प्रकृति ने यह अधिकार सत मानव को ही दिया है कि हम अपने अनुभव से बहुत कुछ सीख सकते हैं। बुजुर्गों की सलाह बहुत जरूरी रहती है क्योंकि उनके पास जीवन का सार रहता है। सभी महापुरुषों की जीवनी में देखो तो उनके आदर्श बड़े पुराने लेखक या उनकी जीवनी से प्रभावित रहते हैं। अनुभव एक ऐसा चीज है जो कोई नहीं सिखा सकता वह मनुष्य को खुद ठोकर खाने के बाद ही आता है। किसको कहेगा प्रवचन मत दो यह बातें सुनने को तैयार नहीं होता। उदाहरण के लिए छोटे बच्चे को हम कितना भी चलना सिखा ले वह धीरे-धीरे अपने कदम को बढ़ाते हुए ही चलता है एक दो बार खिलता है सभी वचनों सकता है यही कानून गाड़ियां साइकिल चलाने में भी हैं ठोकरे ही मनुष्य को असली अनुभव देती हैं आत्म विश्लेषण करें तो हम स्वयं हैं इस पर विजय हो सकते हैं। अपने अनुभव को हम एक साकार रूप देने के लिए पूरे जीवन की यात्रा सीखने और सिखाने में ही व्यतीत कर देते हैं।
- प्रीति मिश्रा 
जबलपुर - मध्य प्रदेश
क्या हमारे अनुभव  ही हमारे शब्द बनते हैं?
 अनु याने अनुक्रम भव याने होना। इस अस्तित्व में जो चीज अनुक्रम से है उसे जान लेना ही अनुभव है ।अनुभव आत्मा को होती है क्योंकि आत्मा अस्तित्व की दृष्टा अर्थात सत्य की दृष्टा होती है। सत्य हर मानव के अंदर आचरण अर्थात भाव के रूप में विद्यमान है ।इसी भाव को शब्द के रूप में भाषा देकर व्यक्त की जाती है ।  हर  भाषा का शब्द होता है ,हर शब्द का अर्थ होता है। उसी अर्थ कों समझना  ही अनुभव है । जो व्यक्ति अनुभव संपन्न होगा वह अपने अनुभव को आचरण के रूप में अर्थात भाव के रूप में व्यक्त करेगा। तभी अनुभव, शब्द एवं शब्द का अर्थ के रूप में व्यक्त होता है बिना अनुभव के कोई अर्थ बनता है ,ना शब्द बनता है शब्द उसी का बनता है ,जो अस्तित्व में वस्तु है। उस वस्तु को इंगित करने के लिए शब्द बनते हैं जो भाषा के रूप में व्यक्त होता है ।भाषा के मूल में भाव होता है ।इसी भाव को समझना और  व्यक्त करना ही अनुभव है।अतः यह कहना उचित होगा की हमारे अनुभव ही हमारे भाव को शब्द के रूप में व्यक्त करते हैं । हमारे अनुभव ही भाषा के  माध्यम से भाव को शब्द के रूप में व्यक्त करते हैं। अतः सत्य का अनुभव होना सभी के लिए आवश्यक है। अनुभव बिना शब्द का कोई  अर्थ नहीं बनता और अर्थ को समझे बिना जीना नहीं बनता, जीने के लिए हर मनुष्य को शब्द का अर्थ को समझना आवश्यक है।
- उर्मिला सिदार
रायगढ़ - छत्तीसगढ़
हां मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है समाज में रहते उसे सभी प्रकार के अनुभव होते हैं कुछ खट्टे कुछ मीठे ! अनुभव क्या है ? जिस कार्य को अंजाम दे हम उससे कुछ सीखते हैं वह हमारा अनुभव कहलाता है ! अनुभव हमारे ज्ञान में वृद्धि है जिसे हम शब्दों में दूसरों में बांटते हैं ! अनुभव शब्द बन जाते हैं कुछ मीठी यादें पल भर के लिए हमारे मानस पटल पर आकर हमें गुदगुदाती है  ! प्रफुल्लित मन होने से हमारे स्वभाव में भी तब्दीली आती है उस समय हमारी वाणी में सरस्वती का जो वास होता है उसमें शब्द वीणा की तरह झंकृत होते हैं ! ठीक विपरीत कड़वा अनुभव मिलने से हमारी भावनाओं के अनुरूप शब्द होते है ! हां अनुभव ही हमारे शब्द बन जाते हैं क्योंकि अनुभव से जो हमारे सोच, विचार में जो परिपक्वता आती है वहीं से हमारे उत्कृष्ट शब्दों का सृजन होता है! हां हमारा अनुभव यदि सकारात्मकता का भाव लिए है ,अथवा मीठी यादों को लिए मधुरता का है ,अथवा अन्य सुखद अनुभव का हो तो शब्द हमारी रचनात्मक शैली का रूप ले लेते हैं ! उम्र के बढ़ने के साथ-साथ हमारा अनुभव भी बढ़ता है उम्र के इस अनुभव को जो शब्द मिलते हैं वह अपनी मर्यादा के अनुसार नापतोल के होते हैं वर्तमान में वे बच्चों से किसी भी कार्य क्षेत्र में अथवा यूं ही अपना अनुभव का ज्ञान बांटना चाहते हैं तब कहते सुना है यूं ही धूप में बाल सफेद नहीं हुए ! अंत में  कहूंगी कुछ अनुभव बचपन में  अपने आप होते हैं  एवं बुजुर्गों का अनुभव वर्तमान  पीढ़ी को शब्दों द्वारा सकारात्मकता की ओर ले जाता है! मैं भी आप तक अपने अनुभव को कहानी, कविता, लेख शब्दों के माध्यम से पहुंचाती हूं!
- चन्द्रिका व्यास
मुम्बई - महाराष्ट्र
भाषा अभिव्यक्ति का माध्यम है । अभिव्यक्ति, अनुभूति से आती है और अनुभूति अनुभव से उत्पन्न होती है । 
अनुभवु > अनुभूति > अभिव्यक्ति > भाषा या शब्द ।
साहित्य में भाव और भाषा का ही महत्व है । भाव अनुभव जन्य होते है । दूसरे शब्दों में जब अनुभव और अनुभूति उद्गार का रूप लेते हैं तो ये उद्गार या भाव ही शब्द बन कर बाहर आते हैं । उदाहरण स्वरूप-
किन्हीं शब्दों को हम, घाव पर मरहम काम करते हुए पाते हैं, तो किन्हीं शब्दों को घाव पर नमक छिड़कते हुए  पाते हैं ,कोई शब्द  मिश्री-सी मिठास लिए होते हैं , तो कोई आदेश और उपदेश दे कर मार्ग प्रशस्त करते हैं , तो कोई शब्द क्रोध के तटबंध तोड़ते हुए , भय का संचार करते हैं । कहने का अर्थ यह है कि;अनुभूति जब अभिव्यक्ति का रूप लेती है, तो उसमें एक सत्यता दिखाई देती है जिसके कारण वह बहुत प्रभावी होती है, दिलों को छूती हैं । लोगों में एक नए भाव के संचार के साथ, नया  परिवर्तन लाती है । दुख की अनुभूति और उसकी अभिव्यक्ति श्रोता और पाठक की आँखों को अश्रुओं से भर देती है , सुख की अनुभूति और फिर उसकी अभिव्यक्ति से खुशी का संचार होता है ; मन नाचने लगया है,घृणा की अनुभूति और उसकी अभिव्यक्ति लोगों में नफरत के साथ ही लड़ाई-झगड़े और दंगे करवा देती है । इस प्रकार, अनुभव जब शब्द का रूप लेता है, तो उसे व्यक्त करने वाले व्यक्ति में, एक आत्मविश्वास, नवीनता और सत्यता दिखाई देता है । वर्ना तो कही-सुनी और पढी हुई बातें, भाषा चातुर्य के साथ रखने से भाषा को चमत्कृत करने के अलावा और कुछ नहीं ,क्योंकि भाव तो अनुभूति और अनुभव से ही आते है और वही दिलों को प्रभावित नहीं करते हैं  । इसलिए हाँ, हमारे अनुभव ही शब्द बनते हैं ।
- वंदना दुबे 
धार - मध्य प्रदेश
       सत्य तो यही है कि हमारे अनुभव ही हमारे शब्द बनते हैं।इसलिए कड़वे अनुभव कड़वे शब्दों को और मीठे अनुभव मीठे शब्दों को जन्म देते हैं।यह प्राकृतिक एवं प्रावृतिक भी है।न्युटनस ला भी यही कहता है।चूंकि क्रिया पर ही प्रतिक्रिया होती है। कल्पना परिकल्पना से हमें जो अनुभव होता है।वही तो शब्द बनेंगे।बाप बेटी से और भाई बहन से जब बात करेंगे तो शब्द अलग होंगे।पति पत्नी से बात करेंगे तो शब्द अलग होंगे। पुरुष के पुरुष मित्र से और महिला मित्र से वार्तालाव के शब्दों में भी स्वयं अंतर आ जाएगा।क्योंकि दोनों में दोनों के अनुभव अलग-अलग हैं।कटुता और मधुरता स्वभाविक होती है और स्वभाव का आधार अनुभवों पर टिका होता है।कुल मिलाकर हमारे अनुभव ही हमारे शब्द बनते हैं।
                              - इन्दु भूषण बाली
                              जम्मू - जम्मू कश्मीर
सर्वप्रथम हम अनुभव के बारे में जाने । हिंदी प्रयोग  अथवा परीक्षा  द्वारा प्राप्त ज्ञान अनुभव कहलाता है। प्रत्यक्ष ज्ञान अथवा बोध। स्मृति (याददास्त) से भिन्न ज्ञान।तर्कसंग्रह के अनुसार ज्ञान के दो भेद हैं - स्मृति और अनुभव। संस्कार मात्र से उत्पन्न ज्ञान को स्मृति और इससे भन्न ज्ञान को अनुभव कहते हैं। जिस तरह के हमारे अनुभव होते हैं । उसे जामा शब्द ही पहनाते हैं । हर व्यक्ति के अनुभव और हालात अलग - अलग होते हैं । वे शब्द ही उसके जीवन के मर्म को पहचान देते हैं । उदाहरण के तौर पर मैं  '  गाय ' बारे में कुछ कहती हूँ । तो गाय का शब्द चित्र हमारे करीब होता है और आँखों के समाने खींच जाता है । उससे हमारा संबन्ध स्थापित हो जाता है । गाय के  बारे में सारे अनुभव शब्दों के रूप में  गाय की आवाज , दूध हमारे मस्तिष्क में फ़िल्म की तरह उतरने लगते है ।  पुराने जमाने में मनुष्य की याद इतनी गहन होती थी । वे अपना ज्ञान एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को  मौखिक रूप में देता था । शास्त्रों का , अनुभवों का  ये  कंठस्थ ज्ञान शब्दों के रूप में ही परिमाणित था । धीरे - धीरे मनुष्य की ज्ञान की चेतना में उस युग के मुकाबले याददाश्त कम होती चली गयी । मानव अपना ज्ञान कंठस्त रूप नहीं दे सकी । फिर ज्ञान का लिखित रूप शब्दों के रूप में  हम पढ़ , देख , सुन सकते हैं ।
हम इन शब्दों का अपनी भावनाओं के अनुरूप अपने जीवन में प्रयोग करते हैं । गुस्सा में हम शब्द बाण के रूप में गाली , गलौच के रूप में मुँह से बाहर निकाल देते हैं । वे अपना सन्देश शब्दों के माध्यम से समाज को दे देता है । यूँ कहे शब्द हमारी संस्कृति की वाहिका है ।हम अपने त्योहारों को परम्परागत रूप से पीढ़ी दर पीढ़ी के रूप में परोसते हैं । 
कहावत है मन के हारे हार है मन के जीते जीत हैं ।
ये शब्द ही हम जिस रूप में हम  लें । शब्द हमारी शक्ति है । शब्द हमारे उत्सव है । सुख - दुख की अभव्यक्ति है ।
गीतकार शैलेन्द्र ने तीसरी कसम के शिल्पकार के रूप में भारत की ग्रामीण संस्कृति के संग  अपने जीवन के अनुभवों को गीतों में उतार दिया था । साहित्यकार , कवि , लेखक अपने जीवन के अनुभवों को कविता , कहानी , निबंधों , आलेखों आदि के माध्यम से बिखरे हुए जीवन के शब्दों को कलम से व्यवस्थित करके किताबों के रूप में उनको  अपना घर, पहचान  दे देते हैं।समाज का प्रहरी बन के जागरूक करता है ।साहित्य का मूल्यांकन , समीक्षा शब्दों के माध्यम से  अनुभवों से करते हैं । अनुभव हमारे निजी , व्यक्तिगत होते हैं जो सृजनधार्मिता को विस्तार देते हैं ।
 सामाजिक चेतना को दिशा देता है । 
हिंदी महाकाव्य ' पृथ्वीराज रासो ' में  मुहम्मद गौरी को शब्द - भेदी बाण से मारने का वर्णन है । रामायण में ऐसा ही बाण का उल्लेख है । राजा दशरथ ने श्रवण कुमार पर छोड़ा था ।  
शब्द हमारे उम्मीदों का दीपक है । जो निराशासवादी  स्याह  अँधेरों को हरने की ताकत रखता है । अंत में दोहों में मैं कहती हूँ : -
सकारात्मक   हम  रह के , भगाएँ अंधकार ।
अनुभवों के दीपक से , बलें शब्द संसार । 

लेखक  की दृष्टि रचती ,  अनुभवी शब्द ज्ञान ।
कबीर तुलसी की कलम , भगाए जग  अज्ञान ।
- डा मंजु गुप्ता 
 मुंबई - महाराष्ट्र
बोलना,और सही समय में सही शब्दों का उपयोग करना ,,ये समझने वाली बात है । कुछ सीखने पर व्यक्ति निश्चय ही ज्यादा परिपक्व हो जाता है । अनुभव हमें और भी गूढ़  बनाती है । व्यक्तिगत जीवन में हम अनगिनत दौर से गुजरते हैं ,जिसके कारण हममें नित्य नए अनुभव का समावेश होता जाता है ।जीवन के अनगिनत रंग,और उतार _ चढ़ाव से  ही हमारा सम्पूर्ण जीवन निर्मित होता है । फलत: हमारे अनुभव से हमारे शब्द भी उसी रंग में रंग जातें हैं । इसलिए कहा भी जाता है कि  फलां व्यक्ति बहुत अनुभवी हैं अतः हमें उसकी बातें सुननी चाहिए । इसलिए हम पढ़ाई के द्वारा तो शब्द सीखते हीं हैं पर अनुभव से बोले गये शब्द,, शब्दों में  चार चांद लगा देते हैं ।
- डॉ पूनम देवा
पटना - बिहार
ये शत प्रतिशत सत्य है कि हमारे अनुभव ही हमारे शब्द बनते हैं। हम अपनी जीवन यात्रा में जो कुछ अपने आसपास देखते और महसूस करते हैं वही हमारी रचनाओं में प्रतिबिंबित होता है। हमारे अनुभव हमारे अंतर्मन में ही कहीं निहित होते हैं और वही हमारी रचनाधर्मिता को प्रभावित करते हैं। समाज में घटित अच्छी बुरी सभी प्रकार की घटनाओं का प्रभाव हमारी सृजनशीलता पर पड़ता है। कभी कभी तो किसी अत्यंत ही निंदनीय घटनाओं से आहत हमारे व्यथित मन की त्वरित प्रतिक्रिया भी हमारी रचनाओं का स्वरूप ले लेती हैं। वहीं सुखद घटनाओं की त्वरित  अभिव्यक्ति भी हम सृजनशीलता के द्वारा करते हैं। हाँ, कभी कभी रचनकार अपने कल्पना लोक में भी विचरण करते हैं और तदनुसार सृजन करते हैं।
                  - रूणा रश्मि
                 राँची - झारखंड
बिल्कुल सही अनुभव ही हमारी अभिव्यक्ति का स्त्रोत होते है । हमारा जीवन अनुभवों की खान है हम प्रतिपल कुँछ न कुछ नया अनुभव करते रहते है हमारा अनुभव वो गम का हो ख़ुशी का हो, वह विचार बनता है फिर विचार शब्द गंढता  है । शब्द सबके सामने मुखरित हो अनुभव सुनाता है । बिना शब्दों के हम अनुभवों को बाँट ही नहीं सकते है । हमारे अंदर ही ँघुट कर रह जायेगे । बचपन से ही हम बड़ों के अनुभव सुनते आते है , आग से दूर रहो  गहरे पानी में मत जाओ , बिजली के तार को मत छुओ । परन्तु हम जब उस का अनुभव कर लेते है तब समझ आता है क्यों मना किया जा रहा था । दूसरों के अनुभवों से जो सबक लेता है वही होशियार कहलाता है । 
ओखली में सर रख कर तो सभी सिख जाते है । 
अनुभवों का बड़ा महत्व है हमारे जीवन में अनुभव ही है जो कभी गीत लिखवाते हैं कभी भजन कभी वीर रस हमारे भाव जैसे अंदर जन्म लेते है , वैसे ही शब्द निकलते है । 
अनुभव से ही हम दूसरे का व अपना मार्ग प्रशस्त कर सकते है । ख़राब अनुभव को छोड़ कर अच्छे अनुभवों से साकारात्मक सोच से जीवन को समाज कल्याण के कार्योमें लगा जीवन सफल बना सकते है । हम जब लिखते है तब बहुत सोचते है और अनुभव हमारी मददत करते है । हम जब अनुभव के जहाज से उतर आते हैं तो भीतर की कुलबुलाहट, बैचैनी और ख़ुशी होती है। जिसे हम बाँटना चाहते हैं। खुद को जल्दी से जल्दी खाली करना चाहते हैं। क्या हम सबके साथ ऐसा ही होता है? इसी बात पर एक विचार दिमाग में काफी समय से चल रहा था कि सबसे बेहतर रास्ता क्या हैं, जिसके जरिये हम खुद के विचारों को पंख लगा सके। एक बहुत ही खास तरीका सामने होता है। लिख डालो। शेयर करो। लोगो से बताओ भाई। मगर हर बार हम सब कुछ लिखते रहे या लिख पाए इसके  लिए भी मोटिवेशन की जरुरत होती हैं। मेरे साथ तो ये जायज हैं। बहुत ज्यादा देर तक सोच कर ,समझ कर , एक निष्कर्ष पर पहुंच कर मैं नहीं लिख पाती। ऐसे में मेरे  विचारों का झरना रुक सा जाता है। ऐसा अक्सर होता है। इसलिए ही मैंने इस बात पर थोड़ा सा समय बिताया हैं। सारी बातों को याद किया है। फिर से ,एक बार लिखने लग जाती हूँ । 
लिखना समय में बंध जाना हो गया। लिखना कभी भी मेरे लिए नियमित सा नहीं रहा। हालांकि कोशिश बहुत की थी मैंने। कई बार डायरी खरीद के ले आई थी। दोस्त भी बनाया था उसे। पर मेरे लिए लिखना कभी सोचा-समझा फैसला नहीं था। सो मन के हिसाब से चली। और मैं तब लिखती हूं, जब मैं लिखना चाहती हूं। कई बार लगता है कि ये लिखूं या वो लिखूं। मगर वो लम्बे समय तक कायम नहीं हो पता।एक अनुभव दुसरे में रचने बसने लगता है तब शब्दों से खेलती हूँ बस खेलती हूँ , बस फिर क्या कोई न कोई कहानी तैयार हो जाती है । अनुभव को हम तभी सही ढंग से प्रस्तुत कर पायेंगे जब हमारे पास पर्याप्त शब्द कोश होगा 
- डा. अलका पाण्डेय
मुम्बई - महाराष्ट्र
यह बिल्कुल सही है कि अनुभव ही शब्दों के रूप में निकलते हैं। अनुभवजनित शब्द सामने वाले के मस्तिष्क पर ज्यादा असर करते हैं, क्योंकि वे परिपक्वता की  आंच पर पके हुए होते हैं जो सफलता और असफलता का स्वाद चखे होते हैं। असफलताओं के अनुभव सफलताओं के मार्ग प्रशस्त करते हैं। चिहे वह स्वयं के हों या दूसरों के अनुभव से पगे शब्द सदा सकारात्मकता की ओर ही प्रेरित करते हैं।
          - गीता चौबे " *गूँज"* 
           राँची - झारखंड
शब्द हमारी भाषा,भावना और अभिलाषा की अभिव्यक्ति का माध्यम हैं । इसके लिये हमें शब्दों  का जानकर होना बहुत जरूरी है। जानकार ,ज्ञान है जो अनुभव   से शनैः शनैः विकसित होता है। शिशुओं का उदाहरण इसे समझने का सबसे अच्छा और सटीक उदाहरण है। शिशु का पालन-पोषण जिस भाषा के बोलने वाले परिवार के बीच होता है,शिशु के बोलने की शुरुआत और फिर उसकी बोलचाल उसी भाषा के उन्हीं शब्दों से होने लगती है,जो वह सुनता रहता है। यह सुनना ही एक तरह से उसका अनुभव है। जिसमें फिर अध्ययन भी शामिल होकर शब्द ज्ञान को बढ़ाता चलता है। यही ज्ञान और अनुभव हमारी अभिव्यक्ति की सामर्थ्य को शब्दों से सजाती और संवारने का सलीका सिखलाती है। हमारे सामाजिक और व्यक्ति गत जीवन में हमारा व्यवहार बहुत महत्वपूर्ण है। व्यवहार  हमारे आचरण से और आचरण, हमारे संवादों से तय होता है। संवाद के लिये हम जिन शब्दों को उपयोग में लाते हैं,उनका चयन सही और सरस होना आवश्यक है। शब्दों से जहां आप किसी को अपना बना सकते हैं तो वहीं दूसरी ओर अपनों को शत्रु भी। कहा गया है कि शब्द  तलवार से भी गहरे घाव देने का काम कर सकते हैं तो मरहम लगाने का भी। हमें सुखद और सफल जीवन जीने के लिये,हमारे व्यवहार को अपने अनुभवी मधुर संवादों से सोहाद्रमय बनाना का अनवरत प्रयास करते रहना चाहिए।
- नरेन्द्र श्रीवास्तव
 गाडरवारा - मध्यप्रदेश
जीवन के हर पड़ाव पर हमे अच्छे -बुरे अनुभवों  से गुजरते हैं। यही अनुभव जीवन को परिपक्व बनाते हैं । यह अनुभव ही शब्द बन कर हमारी भाषा और  भावनाओं को नया  रंग रूप और ध्वनि देते हैं।दूसरों के अनुभव जो हम पढ़ते या सुनते हैं वो भी हमारी समझ  में वृद्धि तो करते हैं पर जो स्वानुभूति है वो ही शब्दों को सच्चा अर्थ देती हैं।  मंजिल पाने के लिए  अपने ही कदमों को थकाना पड़ता है।  शब्द मात्र अर्थहीन अक्षर ही रहेंगें जब तक  भाव उसमें रंग  नहीं भरते हैं।
- ड़ा.नीना छिब्बर
जोधपुर - राजस्थान
बिना अनुभव शब्द केवल शब्द होते हैं जिनका न कोई विशेष प्रभाव होता है और न ही वैसी महत्ता जो ज्ञान के साथ-साथ आनुभव से मेरे सामने आती है ।जीवन जीने आगे बढ़ने में मिलने वाले अनुभव का विशेष महत्व रहता है ।ठीक वैसे ही जैसे कि नये बालक व बुजुर्ग में होता है ।पुराने डाक्टर नये मास्टर में रहता है । अतः यह कहने में कोई संकोच नहीं है कि अनुभव ही हमारे शब्दों की प्रस्तुतीकरण के पीछे है ।
- शशांक मिश्र भारती 
शाहजहांपुर - उत्तर प्रदेश
जी हाँ, अनुभव ही शब्दों का जामा पहन कर  व्यक्त होते हैं । यही कारण है कि किसी के प्रति हमारा व्यवहार अधिक मीठा या कड़वा या सामान्य होता है । जिसके प्रति हम जैसी भावना रखते हैं वैसे ही शब्दों का प्रयोग करते हैं । अक्सर बृद्ध लोगों को कहते सुना जा सकता है मैंने धूप में बाल सफेद नहीं किये हैं अर्थात वो जो कह रहे हैं वो सत्य है । आसपास के परिवेश , सकारात्मक चिंतन और कई बार पूर्वाग्रह का अनुभवजन्य असर भी व्यक्ति की कार्यशैली से परिलक्षित होता है ।
उदाहरण के रूप में बच्चे को कितना भी समझाओ कि आग तुम्हें जला देगी पर वो नहीं मानता है ; नजर बचा कर अवश्य छूता है । और फिर जल जाने पर ही उसे अनुभव होता है और जल गए जल  गए चिल्ल्लाता है । हर व्यक्ति अपनी गलती से सीखता फिर  अनुभव करता है और उसे शब्दों द्वारा अन्य लोगों को समझाता है ।
- छाया सक्सेना प्रभु
जबलपुर - मध्यप्रदेश
हर शब्द  मे  एक  अनुभव  होता  है शब्दो  की रहना  अनुभव  पर  की जाती रही है शब्दो  मे परिपक्वता  होती है 
जीवन  का हर  पल  एक शिक्षक  है जो जीवन  के  सही  तरीके  को  बताता  है  घर  मे  बच्चे  अपने  माता-पिता  के अनुभव  से शिक्षा  लेते  है माता  पिता  अपने  बुजुर्ग  के  अनुभव से  सीखते  है और इस तरह  कडी  बनती  रहती  है  
जीवन  मे हर वक्त  ऐसा  समय  आता  है जब  हमे अनुभवी  व्यक्ति  का  सहारा  लेना  पडता  है। शिक्षा  के क्षेत्र  मे  स्कूल  से  लेकर  कालेज  तक  की  नियुक्ति  मे  अनुभव  की  प्रधानता  है चिकित्सा  के  क्षेत्र  मे  अनुभव  की  प्रधानता  है 
अविष्कार  और  विज्ञान  के क्षेत्र  मे  अनुभव  की प्रधानता  है
समाजिक  और व्यवहारिक  चुनौतियो  मे  भी  अनुभव  की  प्रधानता  है। सार  यह है  कि  शब्दो  की रचना  अनुभवजनित  है । अनुभव एक  रीढ  की  हड्डी  है जिसपर  विकास  समाधान  और  अविष्कार  होता  आया  है
- डाँ. कुमकुम  वेदसेन 
मुम्बई - महाराष्ट्र
जीवन  से  मृत्यु  तक  सीखने  की  प्रक्रिया  सतत्  चलती  रहती  है  और  अनुभवों  का  भंडार  भरता  जाता  है  ।  उम्र  के  अनुसार  हमारे  हाव-भाव,  सोच-विचार,  समझ  और  प्रस्तुतीकरण  में  अनुभव  की  गहराई  दृष्टिगोचर  होने  लगती  है  ।  परिपक्वता,  गंभीरता,  धैर्य  आदि  हर  क्षेत्र  में  झलकने  लगते  हैं  । परिवार,  समाज,  शिक्षा,  परिवेश,  सकारात्मक-नकारात्मक  सोच,   कार्य,  मीडिया,  संचार  के  साधन  आदि  भी  शब्दों  को  प्रभावित  करते  हैं ।  उसी  के  अनुसार  व्यक्ति  की  सोच  और   शब्द  बनते  हैं  ।  जो  कभी  प्रेरणा  बनते .....कभी  हताशा...... तो  कभी हंसी-खुशी  का  माहौल  तो  कभी  झगड़े  का  कारण  ।  
         - बसन्ती पंवार 
           जोधपुर  - राजस्थान 
यह सही है हमारे अनुभव ही नहीं, दूसरों के अनुभव भी, जिन्हें हम सुनते हैं वे हमारे शब्द बनते हैं।  जीवन में हमें नित नये अनुभव होते हैं। उनके विषय में हम बातचीत करते हैं, ये ही हमारी अभिव्यक्ति का साधन बन कर साहित्य की विविध विधाओं में आकार ग्रहण करते हैं। लेखक/कवि  अपने अनुभवों को शब्दों में व्यक्त करते है, चित्रकार रंगों से अपने चित्र में, नर्तक अपने नृत्य में, फोटोग्राफर अपने कैमरे से लिए चित्रों में। अनुभवों का संसार बहुत बड़ा है.. इसलिए अनुभव अभिव्यक्ति पाने के लिए साधन खोजते हैं। जो जिस में सक्षम होता है उस रूप में अपने अनुभवों को अभिव्यक्त करता है और साहित्य तथा कला का संसार समृद्ध होता रहता है।
- डा० भारती वर्मा बौड़ाई
देहरादून - उत्तराखण्ड
इससे तो मैं भी सहमत हूँ । हमारी सोच उसी के अनुरूप निर्णय लेने के लिए बाध्य हो जाती है , जो हमने बीती जिंदगी में भोगा है या अनुभव किया है । वही शिक्षा हम अपने दूसरों को भी देते हैं । बीती घटनाओं का निचोड़ ही हमारे आदर्शवाद की आधारशिला होती है । बेशक वे दूसरों के लिए गलत हों । यहीं से वैचारिक टकराहट शुरू होती है । तर्क-वितर्क की वजह बनाती है ।
_ संगीता गोविल
पटना - बिहार

" मेरी दृष्टि में "  जीवन में अनेंक अनुभव ऐसें होते हैं । जो बार - बार सामने आते है । कामयाब व्यक्ति इन से बहुत कुछ सिखता है। यही जीवन का सार है । जो देर सबेरे शब्द बन कर दुनियां में अपनी धूम मचाते हैं ।
                                                    -  बीजेन्द्र जैमिनी





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