रिश्तों में क्या.- क्या होना आवश्यक है ?

रिश्तों में बहुत कुछ आवश्यक होता है ।परन्तु विश्वास सबसे अधिक महत्वपूर्ण होता है । जहाँ विश्वास नहीं रहा होता है वहाँ कुछ भी सम्भव नहीं होता है । विश्वास के लिए एक दूसरे से कुछ भी छुपाना नहीं चाहिए । सभी मुद्दों पर खुल कर बात चीत करना चाहिए । यही विचार विमर्श ही विश्वास को पैदा करता है । यही " आज की चर्चा " का विशेष उद्देश्य सम्भव हो सकता है । आएं विचारों को भी देखना चाहिए : -
आजकल  के  रिश्ते  वन-डे  में  सिमटकर  रह  गए  हैं  जिनमें  न भावनाएं,  न  अहसास,  न  विश्वास,  न  संवेदनाएं  ।  राधा-कृष्ण  जैसे  आत्मिक  प्यार  की  तो  अब  कल्पना  भी  नहीं  की  जा  सकती  । प्यार  अब  विज्ञापन  की  तरह  है  जिसमें  सत्यता  नहीं  सिर्फ  दिखावे  का  आकर्षण  होता  है  । समय  भी  यूज़  एंड  थ्रो  का  ही  है,  इसमें  प्यार,  अपनापन,  रिश्ते  सभी  यूज़  होने  के  बाद  दूर  हो  जाते  हैं  अथवा  उन्हें  दूर  कर  दिया  जाता  है  क्योंकि  यूज़  होने  के बाद  वे  यूज़लेस  जो  हो  जाते  हैं  ।  रिश्तों  में  आपसी  विश्वास,  अपनापन,  निःस्वार्थता,  त्याग,  समर्पण  की  भावना  के  साथ-साथ  मन  से  निभाया  जाना  चाहिए  जो  दिखावे  तथा  औपचारिकता  से  दूर  हो,  जिस  पर  आॅख  बंद  कर  भरोसा  किया  जा  सके  ।  इतना  अपनापन  कि  मीलों  की  दूरी  भी  कोई  मायने  नहीं  रखे  ।  इतने  विश्वास  के  साथ  कोई   कह  सके  कि  दूर  ही  सही,  कोई  इतना  अपना  है  कि  एक-दूसरे  का  दर्द  महसूस  करते  हैं  । 
      - बसन्ती पंवार 
        जोधपुर  - राजस्थान 
संबंधों में प्रेम, त्याग ,समर्पण की भावना होनी चाहिए। काफी मजबूत होता है जब आपस में परस्पर एक-दूसरे का आदर भाव हो प्रकृतिक जैसे हम से प्रेम करते हैं उसी तरह का प्रेम होना चाहिए जैसे नदी अपना जल नहीं पीती पेड़ अपना फल नहीं खाते। निस्वार्थ होना चाहिए क्योंकि अगर हम स्वार्थ बस किसी से भी जुड़ेंगे चाहे वह मित्र हो या हमारे घरेलू रिश्ते सब बिगड़ जाते हैं वह निश्चल होना चाहिए जैसे कृष्ण और सुदामा का प्रेम था। मीरा और कृष्ण का प्रेम था। राधा कृष्ण जी की अमर प्रेम की मिसाल हैं। हमारे वेद ग्रंथ और संस्कृति में बहुत लोग ऐसे हैं जो निश्चल भाव से समाज सेवा करते हैं और सच्ची प्रेम की पराकाष्ठा को छूते हैं। मदर टेरेसा, गांधीजी, बड़े संत, आदि महापुरुषों ने अपना पूरा जीवन प्रेमी समर्पित कर दिया है। देश में प्रेम को सर्वोपरि माना गया है और हमारी भारतीय संस्कृति प्रेम में ही निहित है।
 *पोथी पढ़ पढ़ जग मुआ पंडित भया न कोय।
 ढाई अक्षर प्रेम का पढ़े सो पंडित होय।।* 
- प्रीति मिश्रा
 जबलपुर - मध्य प्रदेश
रिश्ते तो बंधन हैं जो अपनी इच्छा से किसी के साथ जोड़ देते हैं । जिस व्यक्ति को हम अपनी जिंदगी का भागीदार बनाना चाहते हैं, सुख-दुख बाँटना चाहते हैं, गीले-शिकवे करना चाहते हैं , अपनी जरूरतों को पूरा करने में उसकी सहायता चाहते हैं । उसमें सबसे पहले तो समझदारी हो, एक दूसरे को समझ पाने की क्षमता हो । इन सबसे ज्यादा विश्वास हो । इसमें कभी भी अहम बीच में नहीं आना चाहिए। नजरिये को समझ कर कोई भी निर्णय करना ही रिश्ते को सही तरीके से निभाना है।
- संगीता गोविल
पटना - बिहार
मानवीय रिश्तों की इमारत चार प्रमुख  स्तंभों पर खड़ी दिखाई देती है। जो स्तंभ रिश्तों की इमारत को मजबूती और खूबसूरती प्रदान करते हैं वे हैं : -
विश्वास 
प्रेम 
संवेग और संवेदना   तथा
संवाद
विश्वास रिश्तों को आकार देता है । विश्वास की उपस्थिति में बहुत-सी अन्य कमियाँ गौण हो जाते हैं । संदेह और शंका का कोई स्थान नहीं रह जाता है। विश्वास के रहते रिश्तों में मधुरता बनी रहती हैं और इसी विश्वास से प्रेम परिपुष्ट होता है । 
चूंकि रिश्ते का लाक्षणिक अर्थ 'प्रेम' ही है; अतः जनसामान्य की भी यही मान्यता है, कि रिश्तों के लिये, निश्छल और निस्वार्थ 'प्रेम' सबसे पहली और आवश्यक शर्त है । परन्तु, मैं इससे एक कदम आगे बढ़ कर , इसमें यह भी शामिल करना चाहती हूँ  , कि रिश्तों में प्रेम का, मात्र होना ही नहीं ; अपितु  प्रेम का प्रदर्शन भी आवश्यक है । और ऐसा न होने पर विश्वास डगमगाता है जिससे  शून्यता स्थान बना लेती है, फिर यही शून्यता नीरसता में बदल जाती है । जैसा कि मैंने कहा कि रिश्तों में प्रेम का प्रदर्शन बहुत आवश्यक है क्योंकि संवेगों के दमित और कुंठित होने से रिश्ते फलते फूलते नहीं । इसलिए जहाँ विश्वास हो, प्रेम हो ; वहीं खुशी भी हो, आश्चर्य भी हो, क्रोध भी हो और उत्साह भी हो। और ऐसे ही अन्य संवेग भी मौजूद हों । संवेगों के साथ ही रिश्ते में संवेदना भी हो जहाँ प्रेम होगा वहाँ दया भी होगी और ममता भी  । भावविहीन, संवेगविहीन, संवेदना विहीन और संवादविहीन रिश्ते मृतप्राय हो जाते हैं ।रिश्ते जीवंत रहें इसके लिए यह जरूरी है कि आपसी संवाद बना रहे । संवादहीनता रिश्तों में दूरी लाकर पुनः मेल के सारे रास्ते  बंद कर देती है । अतः संवाद के साथ भाषा की मर्यादा का भी विशेष ख्याल रहे ; क्योंकि  व्यक्ति एक थप्पड़ तो भूल जाता है, किंतु किसीकी असंतुलित, अमर्यादि भाषा उसके मन को हमेशा काँटे की तरह बेधती है । इसलिए भाषा की मर्यादा का रखते हुए, संवाद कायम रहे । 
निष्कर्षतः कहा जा सकता है कि जहाँ रिश्ते- प्रेम से अंकुरित होते है, विश्वास से पुष्पित होते हैं , संवेदनाओं से महसूस होते है तो संवाद से जीवित भी रहते हैं । अतः इन सबको जीवन में समाविष्ट करते हुए रिश्तों का भरपूर आनंद लें ।
- वंदना दुबे 
 धार - मध्य प्रदेश 
अधिकतर लोगों की यही आशा होती है कि ‘मेरा परिवार मेरे रिश्ते नाते दार मेरे परिचित , दोस्त , खुशहाल, हँसता-खेलता रहे। मेरी खुशियों में मेरे अपने  शरीक हो ही लेकिन जब मैं थका-हारा, दुःखी, परेशान होकर घर लौटूँ तब भी मुझे वहाँ वही प्यार, विश्वास और सबका साथ मिले। सबके होते हुए मुझे कभी भी अकेलापन महसूस न हो। मेरे अपने  मेरा सबसे बड़ा सहारा हो।’ लेकिन देखते ही देखते इस सपने को किसी की नज़र लग जाती है। अपने पराए लगने लगते हैं। उनका हँसना, बोलना यहाँ तक कि उनका अस्तित्त्व भी इंसान को परेशान करने लगता है। जिससे उसके जीवन में एक मायूसी छा जाती है। रिश्तों में कड़वाहट बढ़ती जाती है। नतीजा, कुछ लोग व्यसनों को गले लगाते हैं। कुछ घुट-घुटकर ज़िंदगी काँटते रहते हैं। लेकिन ज़रा सी सुझ बुझ  रिश्ते-नातों को दुबारा सही नज़र से देखनेवाले हैं, जो आपको रिश्तों का सही अर्थ बताएगी, रिश्तों में होनेवाली गलतियों का एहसास दिलाएगी।अपनी कमीयां पहचाने और सुधार करे रिश्तों में संवाद बहुत जरुरी है 
संवाद : -
मुश्किल से मुश्किल समस्या भी आपसी वार्तालाप से हल हो सकती है। अगर आपसी रिश्तों में कुछ वाद है तब उसके लिए एक संवाद-का निर्माण करें। जहाँ पर आप अपने विचारों को स्पष्ट रूप से प्रकट कर सकें, साथ ही औरों के विचार भी सुन सकें। आपसी संवाद का बहुत बड़ा लाभ यह होता है कि हमें हमारे और बाकी लोगों के विचारों के बारे में स्पष्टता मिलती है। रिश्तों के प्रति सबका दृष्टिकोण मालूम होता है। परिवार में यदि कुछ गलतफहमी हो तो वह भी संवाद के कारण दूर होती है। सब एक-दूसरे को समझ सकते हैं और संवाद से रिश्ते और गहरे होते जाते हैं।
अवधारणा..
वार्तालाप के दौरान आपको पता चलता है कि ‘मैं क्या-क्या सोच रहा था और हकीकत क्या है।’ सामनेवाले को कुछ कहते, करते देखकर आपके अंदर जो विचार चलते हैं, उन विचारों को आप पक्का करते हों। जैसे, ‘वह मुझे अकड़ू समझता है’ ऐसा आप कहते हैं। जिसका वास्तविक अर्थ होता है, ‘मुझे ऐसा लग रहा है कि उसे ऐसा लग रहा है- मैं अकड़ू हूँ।’ इसका अर्थ ही आपको पक्का मालूम नहीं है, आप सिर्फ ऐसा मानते हैं। इस मान लेनेवाली, अंदाज़ करनेवाली बात को हीअवधारणा कहते है  ऐसी अनगिनतअवधारणा ,इंसान एक-दूसरे के बारे में बनाकर, दुःख को बढ़ावा देता है।
लोगों को उनके दुःख, उदासी या व्याकुल अवस्था से बाहर निकालने के लिए भी आप अपनी भूमिका बखूबी निभा सकते हैं। जैसे- उनके साथ बातचीत करेें, उन्हें उस घटना का मकसद समझाएँ। लेकिन आपका समझाना उन्हें पसंद न आए तब थोड़ी देर रुकें। फिर से अलग ढंग से समझाने का प्रयास करें। आपकी यह सच्चाई, आपका प्रेम उन्हें सिखाएगा कि ‘नकारात्मक बातों के पीछे से कुछ अच्छा आ रहा है, यह समझ रखते हुए उस अदृश्य सकारात्मता को देखना सीखें।’ यह समझ मिलने के साथ आपके आपसी रिश्ते भी मज़बूत बनते जाएँगे और अपने-अपने सबक अनुसार सीखते हुए सभी का विकास भी होता जाएगा। कई बार हमारे रिश्तो  का या जिन्हें हमारे प्रति बहुत प्यार है, ऐसा बाहर का कोई सदस्य आपसी मनमुटाव मिटाने के लिए आगे बढ़ता है। रिश्ता टूटने से, बिखरने से उसे बचाना यही उसका उद्देेश्य होता है। लेकिन यदि झगड़ा देखने से उसकी चेतना गिरती है और फिर डर से रिश्तों को देखा जाता है कि ‘यह अब सुलझनेवाला नहीं है’ तब उसकी धुंधली दृष्टि ही उसे आगे बढ़ने से रोक सकती है। ऐसे में खुशी से उपस्थित रहने की आवश्यकता है। क्योंकि आपकी योग्य उपस्थिति में ही झगड़ा करनेवालों का अहंकार पिघलकर मनमुटाव दूर होने की संभावना होती है। क्या आप सचमुच अपने रिश्तेदारों से प्यार करते हों? यदि ‘हाँ’ तो एक महत्वपूर्ण बात याद रखें- ‘रिश्तों को, लोगों को काबू में करने से आप भी दुःखी हो जाएँगे। लेकिन जब अनुमति देंगे तब आप खुश हो जाएँगे।’ कोई भी रिश्ता या लोग कंट्रोल करने से अपनाएँ नहीं जाते बल्कि उनकी इच्छा के अनुसार आप उन्हें जीने की अनुमति देते हैं तब आपका यह विश्वास ही उन्हें रिश्तों का दायरा निभाना सिखाता है। हर समस्या अपने साथ एक समाधान लेकर आती है। लोग जब अपने आपसे सही सवाल पूछते हैं तब उसका हल सामने दिखाई देता है। आम तौर पर उपाय ढूँढ़ने के बजाए ‘समस्या है’ इस बात में लोग ज़्यादा उलझते हैं। इसलिए रिश्तों में किसी भी प्रकार की समस्या हो तो उसका समाधान उसमें ही छिपा है, इस विश्वास से सही सवाल पूछकर उसका जवाब प्राप्त करें। अकसर रिश्तो  में लोग पाना चाहते हैं। दूसरों से मिले इसलिए वे देते हैं। लेकिन इस बात को हमेशा ध्यान में रखें कि आप ही (प्रत्यक्ष में ‘आप जो हो वह’) प्रेम हों। आपमें इतना प्रेम भरा हुआ है कि कितना भी बाँटेेंगे तब भी यह झरना बहता ही रहेगा। इस समझ को जीवन में जैसे-जैसे उतारते जाएँगे, रिश्तों के प्रति होनेवाली आपकी शिकायतें कम होती जाएँगी। औरों की तरह आपके जीवन में भी लोग आते-जाते रहेंगे। कुछ लोगों को आप प्रेम दे रहे होंगे और बाद में वे आपके साथ नहीं होंगे तब भी आपको दुःख नहीं होगा। क्योंकि आपने लोगों को आने-जाने की अनुमति दी है। आपकी समझ बढ़ रही है कि ‘आप ही प्रेम हों’। यहाँ पर लोगों को प्यार देते वक्त आपने कुछ अलग प्रयास किया, ऐसी बात नहीं है, यह आपको स्पष्ट है बल्कि आप प्रेम दे पाएँ, आपको मौका मिला इसलिए आप ईश्वर को धन्यवाद ही देंगे। इन सारी बातों को अपने जीवन में उतारने का आप पूरा प्रयास करें। आपकी सच्ची लगन, सही सोच और समझ ही आपके रिश्तों को स्वर्ग समान सुंदर व मज़बूत बनाएगी।
- अश्विनी पाण्डेय
मुम्बई - महाराष्ट्र
          कुछ रिश्ते ईश्वर हमारे लिए बनाता है और कुछ रिश्ते हम स्वयं चुनते और बनाते हैं। रिश्ते ईश्वर के बनाये हुए हों या मानव के.... आपसी समझदारी, बहुत ही कम से कम अपेक्षा, त्याग की भावना, निस्वार्थता, अहंकार न होना... ये भावनाएँ होनी बहुत आवश्यक हैं। स्वार्थ पर टिके रिश्ते बहुत नहीं चलते। जहाँ ‘ मैं’ प्रबल होता है वहाँ अहंकार का प्रवेश सुगमता से हो जाता है जो रिश्तों को खोखला कर देता है। ऊपर से रिश्ते सही दिखाई देते हैं पर अंदर उनमें ऊष्मा नहीं होती। बिना किसी अपेक्षा के रिश्ते स्थायी बनते है। हम अपेक्षा न करें बस आवश्यक होने पर सहयोगी बन अपने रिश्तों के लिए उपलब्ध हों... यह बहुत आवश्यक है।
        रिश्ते बहुत कोमल होते हैं। किसी पौधे की तरह इनकी सार-संभाल करनी होती है। रिश्ते संभालने में पूरा जीवन लग जाता है, पर टूटने में एक पल भी नहीं लगता। इसलिए अनावश्यक हस्तक्षेप से बचते हुए , कुछ बातों का ध्यान कर अपने रिश्तों को सदा के लिए जीवित रखना चाहिए। रिश्ते जीवन की अनमोल पूँजी है। यह जिसके पास है उससे बड़ा धनी कोई नहीं है।
- डा० भारती वर्मा बौड़ाई
देहरादून - उत्तराखण्ड
रिश्तो में क्या-क्या होना आवश्यक है? अर्थात सम्बन्ध कैसा होना चाहिए ?संबंध का अर्थ है पूर्णता के अर्थ में बंधन मनुष्य को पूर्ण होने के लिए ही संबंधों की आवश्यकता होती है। जो व्यक्ति संबंधों को पहचान कर मूल्यों का निर्वहन करता है अर्थात भावों के साथ जीता है, वही संबंध जिंदगी भर खुशनुमा वातावरण देता है ।रिश्ते निभाने या संबंधों में जीने के लिए विश्वास, सम्मान, स्नेह, श्रद्धा, गौरव, कृतज्ञता, ममता ,वात्सल्य और प्रेम भाव का होना अनिवार्य होता है इन्हीं भावों का निर्वहन से हमारे संबंध अटूट बने रहते हैं ।इन भावों का निर्वाहन न हो पाने से रिश्ते बिखर जाते हैं और हमारा जीवन जीने का जो मकसद होता है वह अपूर्ण रह जाता है अर्थात हम तृप्त नहीं हो पाते। विश्वास मूल्य मानव का जीने का धरातल है ।इसके बिना मानव एक पल भी आगे नहीं बढ़ेगा ।सभी में विश्वास का होना अनिवार्य है ।कृतज्ञता मूल्य महा मूल्य है ,कोई भी व्यक्ति कृतज्ञता भाव से सम्मान के साथ संबंध को बनाए रखता है वही  व्यक्ति विकास की बुलंदी को छुता है। अतः मूल्यों के साथ निर्वहन से ही रिश्ते बने रहते हैं ।मूल्य  का रिश्ते निभाने में विशेष महत्व होता है।
- उर्मिला सिदार
रायगढ़ - छत्तीसगढ़
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है और वह समाज में अनेक रिश्तो से जुड़ा होता है ! सबका अपना-अपना महत्व और स्थान होता है रिश्ते सामाजिक संबंध का आधार है और रिश्तो में कड़वाहट मनुष्य में मानसिक अशांति पैदा करती है !रिश्तो की डोर अत्यधिक नाजुक होती है यह हम पर निर्भर करता है कि उस नाजुक डोर को हम किस तरह संभाल कर रखते हैं !
रहीम ने अपने दोहे में कहा है -"रहिमन धागा प्रेम का मत तोड़ो चटकाय टूटे से फिर ना जुड़े जुड़े गांठ पड़ जाए "
 प्रथम हमारे रिश्तों में मनमुटाव और किसी भी प्रकार की दुर्भावना नहीं आनी चाहिए क्योंकि इस तरह के भावों की गांठ रास्तों में आ जाए तो हम कितना भी प्रयास करें संबंध में मधुरता नहीं आती ! रिश्तो में विश्वास और समर्पण का भाव होना चाहिए रिश्तो में पारदर्शिता होनी चाहिए हमें अपनी बातें आपस में शेयर करनी चाहिए किसी भी तरह का मानसिक तनाव लिए बिना अपनी बात खुलकर साफ-साफ कहना चाहिए कोई भी बात छुपानी नहीं चाहिए खासकर पति पत्नी के संबंध में !  संयुक्त परिवार में पारदर्शिता होनी चाहिए रिश्तो में प्यार का होना अति आवश्यक है रिश्ता चाहे कोई भी हो प्यार जीवन में मिठास भर देता है ! लप लप करती हमारी जिह्वा प्यार की मीठी बोल बोल दे तो बड़ी से बड़ी जंग जीती जा सकती है रिश्तो में प्यार का एहसास होना चाहिए ! दुख सुख में एक दूसरे के काम आए उसे समय दे संघर्ष के समय रिश्ता कंधे का सहारा बन खड़ा हो मैं हूं ना कह खड़ा हो अपना कीमती समय निकाल कर दे ,धूप में जो ठंडी छांव का एहसास दे ,यानिकी दुख सुख में सदा साथ दे ! पति पत्नी के रिश्ते ऐसे ही मजबूत होते हैं !  रिश्तो में समझ होनी चाहिए भाई बहन के रिश्ते माता-पिता का रिश्ता पति पत्नी का रिश्ता सभी रिश्तों की मर्यादा है सभी रिश्तो को हमे दिल से निभाना चाहिए !हमें हमारे रिश्तो में अपनापन लगना चाहिए !
रिश्तो में सामंजस्यता होनी चाहिए संयुक्त परिवार में सभी बड़े चाचा चाची दादा-दादी माता पिता से समान आदर भाव बनाए रखना चाहिए एवं अपनी बात एक दूसरे को किसी पर थोपनी नहीं चाहिए सभी को अपनी बात कहने का मौका देना चाहिए सामंजस्यता बनाए रखने की जरूरत होती है तभी संयुक्त परिवार बना रहता है ! अंत में कहूंगी जीवन रुपी धागे में रिश्तो को मोती की तरह पिरोएं और मर्यादा की चमक से अद्भुत सौंदर्य बिखेरें!
- चन्द्रिका व्यास
मुम्बई - महाराष्ट्र
रिश्तों में मिठास होनी चाहिए, यह तो सभी कहते हैं,परन्तु यदि जीवनपर्यन्त यह स्थिति रहे, क्या संभव है? रिश्तों में भी स्वादि्ष्टता होनी चाहिए।रूठना- मनाना, गलतफहमी होना फिर उसका दूर होना खट्टापन ,चरपरापन आदि मसालों का होना रिश्तों की उम्र  बढ़ाता है। लेकिन साथ ही एक शर्त भी है कि उपर्युक्त किसी भी मसालें  की अति नहीं होनी चाहिए।संतुलन के लिए रिश्तों में गहराई होना चाहिए और संस्कारों के माध्यम से स्नेह की स्निग्धता हृदयतल में सदैव रहनी चाहिए, ताकि हम भटकने के बाद भी सम्भल सकें। अहं कभी रिश्तों से बड़ा न होने पाए। इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए।
- डा. चंद्रा सायता
इंदौर - मध्यप्रदेश
रिश्तों में सबसे पहले विश्वास और संजीदगी होना चाहिए। रिश्तों की विश्वास रूपी तुरपन अगर एक बार भी उधड़ जाये तो उसे सिलने में हजारों गाँठ लग जाती हैं। और दूसरी सबसे जरूरी चीज है रिश्तों में संजीदगी। रिश्तों के धागे बड़े कच्चे होते हैं उन्हें संजीदगी से निभाना होता है। जरा सी लापरवाही उन्हें  संजीवन रिश्ते नहीं रिसते आजीवन बना देती है। प्रस्तुत है रिश्तों पर एक रचना। 
रिश्ते -

        कहने सुनने में एक शब्द मात्र
             लेकिन अपनी संपूर्णता में
जीवन मृत्यु के बीच की कड़ी 
     रिश्तों की भूमिकाओं में बंधी 
          जिंदगी बीतती जाती है भरी - भरी
लेकिन - - -
हर रिश्ते की खाली टहनियों पर 
  भावनाओं के फूल नहीं खिलते
रिश्ते और रास्तों के खेलों में 
कभी-कभी हार कर भी जीत जाते हैं 
मगर अक्सर जीत कर हार का आभास होता है 
              समस्त भौतिकता से परे कुछ              
 अतीन्द्रिय अनाम रिश्ते बदल जाते हैं 
       दिशाएं जीवन की
जिनसे बंधे क्षण - -
 सिर्फ़ क्षण नहीं रहते
  अपितु बन जाते हैं एक पूरा जीवन 
अनाम रिश्तों से बंधा ह्रदय - -
 मन जीता है एक-एक क्षण में कई जीवन ---
और तृष्णा बनी ही रहती है कि 
जीवन एक ही क्यों है अनाम अतीन्द्रिय 
रिश्तों के लिए 
               जो सचमुच रिश्ते हैं रिश्ते नहीं ।

हेमलता मिश्र " मानवी "
 नागपुर - महाराष्ट्र
रिश्ते जब बनते हैं,तो उसमे सर्व प्रथम विश्वास,अपनापन ,प्रेम, एक दूसरे के प्रति समर्पण की भावना ,त्याग की भावना  ये सब बातें हो,और मुख्य एक दूसरे  को समझना अतिआवश्यक होता हैं। तभी एक सुंदर और मजबूत रिश्ते को जन्म होता हैं,जीवन में रिश्तो का मोल अनमोल होता हैं।उसे हर कीमत पर सहेज कर रखना चाहिए।अहम और वहम में रिश्तो की डोर कमजोर पड़ जाती है।अतः रिश्तो को मजबूत बनाना है।तो उनमें इन सब भवनाओं का होना अति आवश्यक है।
- वन्दना पुणतांबेकर
इन्दौर - मध्यप्रदेश
प्रेम , आदर , सम्मान , विश्वास , आत्मीयता , अंहम का त्याग , वाणी में संयम , त्याग , सहनशीलता, अनदेखा करने की आदत, और छोटी छोटी बहुत सी बातें .....
रिश्ते बड़े नाज़ुक होते हैं इन्हें। प्यार ,विश्वास ,भरोसे की डोर से हमें सहजना होता है । हमें रिश्तों को इतना सहेजना है कि उनमें गाँठ रूपी कोई दरार न पड़े। आपसी समझ, प्रेम और विश्वास के बूते पर कई वर्षों तक ही नहीं, कई पीढ़ियों तक भी संबंध टिकाए जा सकते हैं, परंतु इसके लिए दोनों पक्षों में इस प्रगाढ़ता के लिए आतुरता होना आवश्यक है। रिश्तों को सहेजने एवं लंबे समय तक बनाए रखने हेतु निम्न बातों पर गौर कर सकते हैं - 
अहम का त्याग : -
किसी भी पक्ष द्वारा अहम रखने या सदैव 'मैं' का महत्व सिद्ध करने पर रिश्तों में खटास पड़ सकती है। स्वस्थ रिश्ते बनाने हेतु अहम का त्याग और 'मैं' को साइड में रखकर 'हम' की भावना को महत्व देना होगा। 
अपेक्षाओं का भंडार : —-
नाते-रिश्ते में कुछ जायज अपेक्षाएँ रखना स्वाभाविक हैं, परंतु जब एक के बाद एक अपेक्षाएँ भंडार का रूप ले लें तब उन्हें पूर्ण करना संभव नहीं हो पाता। खासकर तब, जब अपेक्षाएँ रखने वाला पक्ष स्वयं उन अपेक्षाओं की पूर्ति न करता हो। याद रखें चाह न रखने पर कार्य पूर्ण होने की संतुष्टि अधिकतम होती है। मात्र अपेक्षाओं पर टिके संबंध खोखले होते हैं। 
औपचारिकता नहीं, आत्मीयता : -
रिश्तों में औपचारिकता के मुकाबले आत्मीयता का महत्व होना चाहिए। हमेशा मेल-मिलाप की औपचारिकता आज के इस महानगरीय और आपाधापी वाले जीवन में संभव नहीं है, परंतु आवश्यक कार्यों पर मेल-मिलाप का अभाव या कम्युनिकेशन गैप का होना रिश्तों में दूरियाँ पैदा कर सकता है। 
छोटी-छोटी बातों को अनदेखा करना : -
कभी-कभी छोटी गलतफहमियाँ संबंधों में मनमुटाव भर देती हैं। बेहतर होगा कि ऐसी गलतफहमियों को आपस में बैठकर दूर कर लिया जाए और उन्हें भुला दिया जाए। 
अनावश्यक हस्तक्षेप :-
रिश्तों में निहित किसी भी पक्ष द्वारा अन्य के जीवन में संबंधों के जोर पर अनावश्यक हस्तक्षेप करने से बचना चाहिए और बिन माँगी सलाह भी नहीं देना चाहिए। केवल अपना महत्व सिद्ध करने हेतु की गई दखलंदाजी से संबंध बनने की बजाय बिगड़ सकते हैं। 
माफी माँगना और माफ करना : -
गलती होने पर माफी माँगना एवं अन्य पक्ष द्वारा माफ करना दोनों ही बातें आवश्यक हैं। गलती का अहसास होने पर माफी माँगना कमतरता नहीं है और अपनी अकड़ भुलाकर माफ करने से ओहदा और ऊँचा ही होता है। 
स्पष्टता रखें : -
संबंधों को सुदृढ़ करने हेतु उनमें स्पष्टता होना अतिआवश्यक है। किसी की बात इधर या उधर कहने से अच्छा है उस व्यक्ति के सामने स्पष्ट रूप से अपनी बात रखी जाए। 
रिश्तों में थोड़ी स्पेस दें : -
प्रत्येक रिश्ते में थोड़ी स्पेस की आवश्यकता होती है। अनावश्यक दबाव से रिश्ते उबाऊ होने लगते हैं। 
वाणी संयम : -
वाणी में संयम बहुत जरुरी है , यही सम्बध बनाती भी है और बिगाड़ती भी है ।  हमारी वाणी संबंधों को निभाने हेतु सबसे महत्वपूर्ण होती है। हमेशा तानों, उलाहनों, सीखों और नसीहतों भरी वाणी से रिश्तों में अलगाव हो सकता है। यदि किसी को कटु सत्य कहना आवश्यक भी हो तो भी शब्दों का चयन उचित रूप से करें। शब्दों के चयन से ही आपकी छवि के स्तर का अनुमान लगाया जा सकता है। कहते हैं यह बिना हड्डी की बित्ता  भर ज़बान बडे बडे कमाल करती है ,दोस्त को दुश्मन और दुश्मन को दोस्त पल में बनाती है । इन्ही सब बातों का रिश्तों में ख़्याल करेंगे तो रिश्ते दिनों दिन मज़बूत होते जायेगे । 
डॉ अलका पाण्डेय
मुम्बई - महाराष्ट्र
     रिश्तों में सर्वप्रथम रिश्ते होने चाहिए।उन रिश्तों में रिश्तों की खुश्बु, महक, अकर्षण,मिठास,समर्पन,विश्वास,पवित्रता इत्यादि सर्वगुण सम्पन्न होने चाहिए।रिश्तों से शत्रुता,विद्वेष,कड़वाहट, सौतेलेपन की दुर्गन्ध कभी,कहीं व किसी भी प्रस्थितियों में नहीं आनी चाहिए।आपसी सहयोग के लिए रिश्तों से रिश्तों का दृष्टिकोन पारदर्शी एवं स्पष्ट होना चाहिए।  मतभेदों की तनावपूर्ण स्थितियों में भी अपने विवेक अनुसार वार्ता का साहस होना चाहिए।रिश्तों की मर्यादा एवं ज्ञान होना चाहिए।रिश्तों अनुसार अपने अधिकार एवं कर्त्तव्यपालन का सम्पूर्ण ज्ञान होना चाहिए।रिश्तों के आपसी मान-सम्मान का पर्याप्त संज्ञान होना चाहिए।
                                    - इन्दु भूषण बाली
                                    जम्मू - जम्मू कश्मीर
रिश्ते कुछ ईश्वर प्रदत और कुछ मानव निर्मित होते हैं। सभी जीवों को जीने के लिए रिश्ते चाहिए हीं।सुख दुख ,हर्ष शोक , आनंद उत्साह में  अकेले तो रह नही सकता। रिश्तों का सहारा आवश्यक है। रिश्तों में सबसे पहले आत्मिय मिठास होनी चाहिए।  एक दूसरे के प्रति विश्वास। जब हम अतरंग हो कर अपने प्रिय रिश्ते में मन की भीतरी परतें खोलते हैं। तब सब से प्रथम है उसे गोपनीय रखना रिश्ते की मर्यादा है।  रिश्ते मौसम की तरह रंग बदलते नही होने चाहिए। रिश्तों में जमीन जायदाद के झगड़े भी कड़वाहट के बिना निपटे ऐसा प्रयास करना चाहिए। रिश्तों में छोटे बड़़ों का उचित सम्मान होना चाहिए। रिश्तों को संभालने के लिए यदि गम खाना पड़े, झुकना पड़े तो पल भर भी सोचना नहीं चाहिए। अमावस्या में तारों सा. गर्मी में छाया सा सर्दी में रजाई की गरमाहट सा होता है अच्छा रिश्ता। जिस ने रिश्ते संभाल लिए उसने सब संभाल लिया। सब से धनवान वो  जिस की एक पुकार पर रिशतेदार आ जाए, सुख दुख बाँट ले।
- ड़ा.नीना छिब्बर
जोधपुर - राजस्थान
हम अपनी जिन्दगी जिन अपनों के साथ गुजारते या गुजारना चाहते हैं और ऐसे वो जो हमारी जिन्दगी में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप में जुड़े हुये हैं,जिनसे पारिवारिक ,सामाजिक और व्यवहारिक रिश्ता होता है,हमारा और उनका ये नैतिक दायित्व है कि हम इन रिश्तों को अपनत्व और मधुर रखते हुये बखूबी निभाते चलें। इसके लिये सामंजस्य बनाना बहुत जरूरी है और सामंजस्य के लिये हमारा उदार होना महत्वपूर्ण होता है।  हमारे चरित्र और व्यवहार में नेकी और निष्ठा  के साथ-साथ बोली में मर्यादा, सम्मान और माधुर्य होना चाहिए। जिससे जो रिश्ते हैं,उनकी जो मर्यादाएं हैं,उनका पालन करना बहुत महती भी है और आवश्यक भी। पीठ-पीछे बुराई करना, इधर की बात उधर करना, मन में कुछ,ऊपर कुछ, शेखी,आडंबर,ढीठता,स्वार्थ, चालाकी आदि से परे रहकर शालीनता ,शुचिता और स्पष्टता आवश्यक है। इन सबके अलावा मेरी दृष्टि में एक बात और बहुत आवश्यक है वह है छोटी-छोटी बातों को हमें नजरअंदाज करना आना चाहिए और जब भी कोई संदेह हो,उसका बड़ी सहजता से दूर कर लेना चाहिए। रिश्ते में विश्वास होना और निभाना निहायत जरूरी है। रिश्तों में जहाँ तक बने, रुपयों के लेनदेन से दूर ही रहें । सामान्यतः संबंध इसी लेनदेन की वजह से बिगड़ते हैं।
संक्षेप में कहना चाहूँगा कि जीवन में रिश्ते  होना जीवन को सुगंधित करना है,हमें अपने चरित्र और व्यवहार से उन्हें निभाना और संवारे रखना है।
- नरेन्द्र श्रीवास्तव
 गाडरवारा - मध्यप्रदेश
जिस तरह मनुष्य को जीने के लिए जल और वायु चाहिए; वैसे ही मानवीय रिश्तो में *परस्पर*स्नेह** और *आत्मीयता* अति अनिवार्य है। इन दो के मूल में ही वाणी में संयम, करुणा, सेवा, मान- सम्मान, प्रेम, एहसास, विश्वास, सदाचार, सहयोग जैसे गुणों का सहज ही विकास होने लगता है; जिनके होने पर ही एक सफल परिवार और परिवार के सदस्यों के बीच एक मजबूत अटूट रिश्ता जीवनपर्यंत बना रहता है। इनके अभाव में रिश्तो का परिवारों का टूटन, विघटन और शारीरिक, मानसिक पतन निश्चित रूप से देखने में आ रहा है आज माता- पिता, बहन- भाई, पति- पत्नी सभी रिश्तो को जीवंत बनाए रखने में आत्मीयता आवश्यक है। जिसके होने से व्यक्तिवादी संकीर्णता से ऊपर उठकर वसुधैव कुटुंबकम जैसी आत्मीय भावना बलवती होने लगेगी। ऐसा होने पर वैश्विक स्तर पर भी हमारे रिश्ते सुधरने लगते हैं; जैसा कि विगत वर्षों में आदरणीय मोदी जी ने यह सब कर दिखाया है।
- डाॅ.रेखा सक्सेना
मुरादाबाद - उत्तर प्रदेश
 रिश्तों का आधार प्रेम होता है । प्रेम से ही संसार चल रहा है इस को प्रतिपादित करने हेतु कबीर दास जी लिखते हैं -
*प्रेम गली अति साँकरी जामे दो न समाय* 
रिश्तों की पूँजी आपसी प्रेम, विश्वास, समर्पण, त्याग, सहजता के साथ- साथ  एक दूसरे को पर्याप्त स्पेस देना है;  जिससे व्यक्ति रिश्ते को एक अनचाहा बंधन  न मानकर खुशहाल जीवन जी सके । आज के परिपेक्ष्य में हर व्यक्ति महत्वाकांक्षी है सबका अपना जीवन है , सबके अपने लक्ष्य हैं पर अक्सर देखने में आता है कि एक पक्ष ही रिश्तों को निभाते हुए लगातार समझौते पर समझौता किए जाता है जिससे ऊपरी तौर पर तो सब कुछ सामान्य दिखता है पर मन कहीं न कहीं खोखला हो जाता है ; एक बोझिल उदासी जीवन में आने लगती है जिसका असर रिश्तों में पड़ना स्वाभाविक है ।
अतः  मैं को त्याग कर हम की भावना के साथ पूर्ण विश्वास से सम्बन्धों को सहेजेंगे तभी रिश्तों की खूबसूरती  पुष्पित और पल्वित होगी जिससे जीवन रूपी बगिया महक उठेगी ।
- छाया सक्सेना प्रभु
जबलपुर - मध्यप्रदेश
रिश्ते  मे  प्रेम  और  विश्वास  अमूल्य  है। प्रेम  और  विश्वास  की नींव  को मजबूत  बनाने  के लिए त्याग  समर्पण  ,वाणी  मे  संयम, आदर सम्मान, सहनशीलता, अहम  का  त्याग  ,अनदेखा  करने  की प्रवृत्ति जैसे  व्यवहारो  मे शामिल  करना  श्रेयस्कर  होता  है रिश्तो  का  होना  और  निभाना  दोनो  दो बात  है  कुछ  रिश्ते  बने  होते है कुछ  रिश्ते  बनाए  जाते  है रिश्ते  मे कभी  भी  दीवार  न खडा  करने  का प्रयास  करे  हमेशा  पुल बनावे । झुकना  और माफी  दो  ऐसी कला  है जो टूटी  दीवार  को  भी  जोड़ने  मे  पीछे  नही  हटती और  दीवार  के जगह  पर  पुल  बना देती  है 
एक चुप्पी  जो  इतनी  मीठी  है कि रूठे  को  भी  मना  लेती है। मुस्कान  और  ऑखो की ऑसू  रिश्ते  को  मजबूत  बनाती है । जीवन  के रिश्ते  मे खूब  मिठास  लाये ।
डाँ .कुमकुम  वेदसेन 
मुम्बई - महाराष्ट्र
मेरे विचार से किसी भी रिश्ते में प्रेम , विश्वास और सम्मान ये तीन चीजें होनी चाहिए। रिश्ते का चाहे जो भी नाम हो।
- नीलम पाण्डेय
गोरखपुर - उत्तर प्रदेश
हमें ईश्वर ने 84 लाख योनियों के बाद सर्वश्रेष्ठ  , विवेकशील मानव  जन्म  दिया है । मानव  से निर्मित  परिवार , समाज  में  नैतिकता का  आत्मधर्म का मूल तत्व  अहिंसा के गुण को जिसने धारण किया है । उस घर , परिवार में सत्यं -शिवं- सुंदरं का साक्षात दर्शन होता है । उल्लास ,  आनन्द , खुशियों से भरा परिवार किसे नहीं अच्छा लगता है ? जिसमें  परिवार के  हर सदस्य के चेहरे पर मुस्कान झलकती हो । मिलजुलकर खाते -पीते हैं । एक का दुख दूसरे का दुख बन जाता है । उनके लिए  सुबह ईद तो शाम दीवाली बन जाती है ।
अहिंसा परिवार के सच , प्रेम , करुणा , सहयोग , मैत्री , परोपकार, शांति , मर्यादा , अनुशासन  आदि  ये सारे सद्गुण , साकारत्मक ऊर्जा समायी हुई । ये  जीवन व्यापी नैतिक गुण , संस्कार 
जिस मानव , समाज , परिवार धारण करता है । वह वास्तव में जीवंत परिवार है ।  ये सारे गुण मानव से मानव को जोड़ता है । नदियाँ ,  वृक्ष  हवा , धूप , प्रकृति , मिट्टी , धरती आदि  अपना जीवन परहित में लगाके खुश रह के गतिमान रहती  हैं । सद्कर्म करने की प्रेरणा देती हैं । इक्कीसवीं सदी में परिवार , समाज , देश , विश्व में  मेरा ,  मैं का भाव चहुँ ओर दिखायी देता है । स्वार्थ में लिप्त मानव अच्छा - बुरा , नैतिक - अनैतिक , सच - झूठ , शील , अश्लील  आदि में फर्क ही नहीं दिख रहा है । इंसानियत के चोले को उतार फेंक दिया है ।
    भौतिकता की दौड़ में मानव दो वक्त चैन से खाना भी नहीं खाता है । शारीरिक सुख प्राप्ति के लिये अपनी कमानाओं को बढ़ा रहा है । नित्य नए अविष्कार , गजट , सामान बाजार में उपलब्ध है । मॉल संस्कृति , ऑन लाइन शॉपिंग का चलन बढ़ता जा रहा है । संचार की तकनीकी क्रांति इंटरनेट  से विश्व एक गाँव बन गया है ।  मोबाइल , कंप्यूटर , मीडिया, आवागमन के साधनों  आदि  से  दूरियाँ दूर हुयी । लेकिन दिलों ने  दिल से दूरियाँ कर ली ।आत्मीय जनों से रिश्तों में दरार आ रही है ।अपनों से दूर हो के लिए व्हाट्सएप ,  इंस्टाग्राम  फेसबुक आदि में अजनबियों से रिश्ते कायम हो रहे हैं ।उंगलियाँ  टच में  रहती हैं । लेकिन  टच में हर कोई नहीं है । आज मानव की प्रकृति की तरह इकोलॉजी बदल गयी है ।आबादी के बढ़ने से  जल जमीं , जंगल का जमकर  दोहन कर रहा है ।  प्राकृतिक आपदाओं को बुला रहा है । जंगली जानवर शेर , बाघ , हाथी शहर , गांवों में तांडव कर रहे हैं । एक दूसरे की रोटी छीन रहे हैं । यह सब नकारात्मकता समाज में क्यों हो रही हैं ? इन सबका का मुख्य कारण मानव की  महात्त्वकाक्षाएँ हैं । ज्ञानी कबीर ने साबित दिल की बात की है । यानी दिलवाला , दिलदार जो दूसरों के दिलों में अपनी जगह बनाएँ । उनसे  करीबी संबंध  बनाए । यह करीबी संबंध प्रेम , त्याग  से बनते हैं । यह तत्व प्रेम , त्याग , परोपकार अध्यात्म , समाज के  उच्चतम  मानदंड हैं । मानव के हृदय को पवित्र करती है । एक स्वार्थी मानव का चेहरा देखें  तो चेहरे पर कषाय भाव झलकते हैं । अगर निस्वार्थी प्रेम से सराबोर ब्यक्ति का चेहरे  देखे तो तेज , आभायुक्त ऑरा से भरा दिखायी देता है ।  जिस मानव को सन्तोष , स्नेह , प्रेम , वात्सलय संस्कारित जीवन जीना आ गया । वही व्यक्ति समाज  में रिश्तों की कसौटी पर खरा है । मेरे  जीवन के खुद के अनुभव है । प्रेम से हम जग जीत लेते हैं । नफरत से दूरियाँ बढ़ाते हैं । इसलिए  प्यार जैसे ढाई अक्षर के लिए कहती हूँ 
प्यार की आग में जो जला है । उसकी सारी पीड़ा जल जाती है । कंचन रूप में निखरता है । जब सीता की अग्नि परीक्षा प्रभु राम ने समाज के खातिर  कर्तव्यपालन के ली थी । तो देवी  सीता के वियोग की पीड़ा से दग्ध  ईश रूप मानव राम ने  जल में  समाधि  ली तो वे जल में जल गए ।  सोना भी आग में जलकर कुंदन बनता है । प्यार तो कुल को तार देता है । अपने - पराए के भेद को मिटा के ऊपर उठ  जाता  है । प्रेम के गुण सभी सन्तों , महापुरुषों ने गाएँ हैं ।क्योंकि प्रेम संरसरा होती है । दलित शबरी के झूठे बैर राम ने खाए थे । प्रेम में   व्यापकता होती है । क्षेत्र , काल , देश की सीमाएँ नहीं होती हैं । जो अपनापन , आत्मीयता देता है ।  प्यार की नजर में हर प्राणी नेक , अच्छा दिखता है । प्रेम में क्रोध ,  लड़ाई , झगड़े का स्थान ही नहीं होता है । सद्भाव , शांति का साथ रहता है ।
प्रेम से टूट दिल , टूटे रिश्ते जुड़ जाते हैं । घर , परिवेश रिश्तों से महकने लगते हैं । संसार बसुधैव कुटूक्म नजर आता है । प्यार में मन की आस घटती नहीं है । एक होने चाह रहती है । दीपक पर बलि पतंगा की चढ़ती है । हर धर्म ने प्रेम को अवतार कहा है । सबने इसे इश्कि , प्रेम , स्नेह , अनुराग , मौहब्बत कहा है । यह संसार भी प्रेम के आधार पर टिक के टिकाऊ बना है । जब प्रेम निराधार होता है । तो परिवार टूट जाते हैं । सब रंगों से प्रेम का रंग गहरा होता है । जिस व्यक्ति ने नहीं आजमाया । वह प्रेम करके देख सकता है । मानव इस संसार में आया है तो प्रेम के संग जी के देखो ।  कितनी मानसिक शांति , चैन , सुखद अहसास मिलेगा  । अवर्णिनीय  है । प्रेम के दम पर सावित्री अपने पति सत्यवान को यम से वापस ले आयी थी । प्रेम की ज्योति से जग सच्चिदानंद लगता है ।
अंत में दोहों में मैं कहती हूँ : -

मन में जिसके  प्रेम बसा , पाया उसने ईश ।
मीरा , नानक , कबीर  पर  ,  बरसी ये  आशीष ।

 मन को मन से जोड़िए ,  तब होय मन कबीर ।
 मंजू  देखे ईश  को  ,   तन - मन होय फकीर ।
- डा मंजु गुप्ता 
 मुंबई - महाराष्ट्र
हर रिश्ता का अपना अलग_ अलग महत्व है। हर रिश्ता कुछ कहता है । हमें हर रिश्ते को मान _ सम्मान , प्यार, अपनत्व के साथ निभाना चाहिए । रिश्ते की बुनियाद सच्चाई और विश्वास पर रखी जानी चाहिए । एक दूसरे का सहयोग , सद्भाव, सहिष्णुता सब अच्छे रिश्ते के स्तंभ होते हैं जिसमें त्याग, प्यार का सीमेंट डालकर हम रिश्ते को और भी ज्यादा पक्का और मजबूत बना सकते हैं । अहम अच्छे से अच्छे रिश्ते में दरार डाल सकती है । इसलिए हमें हर वक्त  एक दूसरे को  प्यार,सहयोग,हर कुछ बांटने की भावना होनी चाहिए  तभी हमें भी  बदले में वैसा हीं मिलेगा ।अपनापन , प्यार, त्याग ये सब रिश्ते में अहम् भूमिका निभाते हैं । निस्वार्थ भाव से रिश्ता निभाएं तो बहुत बेहतर है ।
- डॉ पूनम देवा
पटना - बिहार
रिश्ते कई तरह के होते हैं- जैसे दोस्ती के ,रिश्तेदारों के ,खून के रिश्ते,कार्यालय के रिश्ते |हर मनुष्य के जीवन में इन रिश्तों की अहम भूमिका होती है|हर रिश्ते में सबसे महत्वपूर्ण विश्वास और पारदर्शिता की होनी चाहिए |प्यार और अपनापन का होना चाहिए |जिस रिश्ते में पारदर्शिता नहीं वह बनावटी लगने लगती है|दिखावे और मतलब के रिश्तों से अच्छा अकेले चलना ही बेहतर|पति पत्नी के रिश्ते में भी प्यार से ज़्यादा विश्वास और भरोसा हो तो वह रिश्ता ज़्यादा मज़बूत और कामयाब होता है जिसमें प्रेम के अंकुर अपने आप पनपते हैं |
गुरू शिष्य के रिश्ते भी आज के युग में व्यवसायिक हो गए है|गुरू और शिष्य के रिश्ते में त्याग और समर्पण की भावना होनी चाहिए |हमें हर रिश्ते को मान -सम्मान,इज़्ज़त से निभाना चाहिए |
                     - सविता गुप्ता 
                   राँची - झारखंड
कोई भी रिश्ता आगे बढ़ने या मजबूत होने के लिए सबसे आवश्यक है आपसी विश्वास यह कितना है ।इसके बाद बाकी चीजें स्वंय जुड़ जायेंगी विश्वास व्यवहार पैदा कर देता है और जीवन जीने के लिए या समाज परिवार के लिए आवश्यक सब कुछ जुट जाता है ।रिश्तों के बीच कभी ऊंच नीच अमीर गरीब जाति वर्ग क्षेत्र गांव शहर नहीं आना चाहिए अन्यथा रामायण में रामचंद्र जी के विविध क्षेत्रों से समय समय पर मित्रता के रिश्ते न बन पाते।
- शशांक मिश्र भारती 
शाहजहांपुर -उत्तर प्रदेश

" मेरी दृष्टि में " रिश्तों की आवश्यकता को समझना चाहिए । सभी रिश्तें महत्वपूर्ण होते है । जो रिश्तों की अहमियत समझते हैं वह रिश्तों को निभाना जानते है । बिना रिश्तों के जीवन सम्भव नहीं है । 
                                                      - बीजेन्द्र जैमिनी





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  1. निरन्तर अच्छी चर्चाएं लगभग एक प्रेरक ग्रन्थ भर का काम हो चुका है ।बधाई व शुभकामनाएं

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