क्या हमें अपने आसपास के पेड़- पौधे की सेवा अवश्य करनी चाहिए ?

हर इंसान को अपने आस- पास के किसी भी पेड़ - पौधे को सुखने नहीं देना चाहिए । खासकर गर्मी में अवश्य ध्यान देना चाहिए । तभी आस- पास का वातावरण हरियाली युक्त सम्भव हो सकता है । हरियाली से हमारे स्वास्थ्य पर अनुकूल प्रभाव पड़ता है । यही " आज की चर्चा " का विषय रखा गया है । अब आये विचारों को भी देखते हैं : -
 सेवा शब्द का मूल्य ही अपने आप में काफी महत्व रखता है। चाहे वह इंसानों की हो या पर्यावरण पेड़, पौधों की, पेड़ पौधे ही हमारा जीवन है।और पेड़-पौधे हमारी एक अमूल्य धरोहर है। इसे बचाना इसकी सेवा करना हर मानव का धर्म है। पेड़ों से हमें ऑक्सीजन मिलती है। आज के समय में पॉल्यूशन  चारों और फैला हुआ है।ऐसे में प्रकृति को बचाना हर मानव का धर्म है। यदि आज हम इसको अनदेखा करते हैं।तो आने वाले समय की स्थिति बहुत ही भयावह हो जाएगी और आने वाले समय में इसका परिणाम बहुत ही कष्टदाई हो जाएगा। ऐसे में हमें पर्यावरण की और दुर्लक्ष नहीं करना चाहिए। उसे बचाने का हर संभव प्रयास करना चाहिए। और आने वाली पीढ़ी को भी यह शिक्षा देनी चाहिए। कि पेड़ पौधे ही हमारा जीवन है। यदि पेड़ों का जीवन नष्ट हो गया तो, हमारा अस्तित्व भी नष्ट हो जाएगा। इसलिए हमें हमारे आसपास के पेड़ पौधों की सेवा अति आवश्यक रूप से करनी ही चाहिए।  हम इस दुनियां में आए हैं।तो हमे अपना थोड़ा बहुत योगदान देना अति आवश्यक है। प्रकृति ने हमें जीवन दिया है। और हम उसी से जीवित  हैं। ऐसे में हमें उनका संरक्षण और पालन पोषण करना अति आवश्यक है।
                  - वंदना पुणतांबेकर
                इंदौर - मध्यप्रदेश
जी हां बिल्कुल,,,आज हमारे देश का वातावरण लगातार प्रदूषित होता जा रहा है , जिसका सबसे बड़ा कारण पेड़ पौधों की कटाई हीं है । इसलिए यह बहुत जरूरी हो गया है हम सब के लिए कि जो भी हमारे आस_ पास बचे पेड़_ पौधे हैं उनकी हम सेवा करें, हिफाजत करें । वैसे भी कहा गया है कि सेवा "परमोधर्म " है । हमारे देश की ये परम्परा भी रही है कि,,नदी, वृक्ष सब पूजे जाते हैं । जिस पेड़_ पौधों पर हमारा वातावरण निर्भर करता है ,उसकी सेवा हमें करनी हीं चाहिए और इसके लिए दूसरे लोगों को भी जागृत करना चाहिए । पेड़ _ पौधे हमें सदा कुछ देते हीं है , बदलें में हमें अगर उनकी सेवा करनी हो तो यह हमारा प्रथम कर्तव्य होना चाहिए ।
- डॉ पूनम देवा 
पटना - बिहार
भारतीय संस्कृति में पेड़ों को इसलिए पूजा जाता है । क्योंकि यही हमारे पूर्वज , भाई - बहन , प्रभु हैं । प्रकृति हम पर परोपकार करके हमें जीने के लिए तरह - तरह के फल , अन्न आदि देती है ।  प्रकृति हमारे संग मित्रता का व्यवहार करती है । प्रदूषित पर्यावरण बचाने के लिए हमें अपने आस - पास के पौधों की सेवा अवश्य करनी चाहिए । क्योंकि इन पेड़ पौधों में इंसान की तरह चेतना होती है । यह गतिशील अपने भोजन बनाने , अपने कार्यों में रहते हैं । लेकिन यह चल नहीं सकते हैं । ये स्थावर होते हैं । मानवीय धर्म हमें सेवा करने  की बात कहता है। आज भौतिकवादी संसार में सुख सुविधाओं का अंबार लगा हुआ है । वहाँ विकास क्रम में  मशीनों से सब काम होते हैं । भला कौन अपने आस - पास के परिवेश में पौधों की सेवा , देखभाल करना पसंद करेगा । पर्यावरण प्रेमी , समाज सेवी या पौधों के प्रति जो सेवा भाव रखता होगा । वही इनकी सेवा करेगा । हरियाली आँखों को सुंदर लगती है ।  हमारे पूर्वजों ने वृक्षों - वनस्पतियों  पर प्रेम किया था , उनमें ईश दर्शन किए थे ,  उन्हें सहोदर मान कर स्नेह से सिंचन किया था  . शकुन्तला वृक्षों को सगे भाई मान कर पानी पिलाती थी .  आज भी भारतीय स्त्रियों का वट  सावित्री का व्रत पति की दीर्घायु की कामना करते हुए वट की पूजा करती हैं . पेड़ - पोधे वर्षा का कारण बन कर पर्यावरण की रक्षा करते हैं और कार्बन - डाई - आक्साइड जैसी विषैली गैस का शोषण कर  शुद्ध वायु आक्सीजन का निर्माण करती है . हमें आस -पास के पेड़ों को अंधाधुंध काटना नहीं चाहिए बल्कि इन  का संरक्षण करें .पेड़  हैं तो नदियाँ जीवित रहेंगी , नदियों के किनारे वृक्ष लगाएं . तभी नदियाँ पहले की तरह हो जाएंगी .मानवीय सभ्यता , संस्कृति नदियों के किनारे जन्मी है . 
मेरे घर के आस - पास आम , कटहल , गुलमोहर , नीम , जामुन , बाँस, नारियल , बादाम , सुपारी के हरे -भरे पेड़ हैं । सारे मौसमी फल हैं ।  मुझे पौधे लगाने , बाँटने का बहुत शौक है । इसलिए इनकी सेवा करना मुझे बहुत पसंद है । वाचमैन के साथ मैं इन पेड़ों का पोषण खुद रसोई के कचरे से खाद बनाकर इनमें डालती हूँ । पानी से सींचना मुझे भाता है । जिससे ये  खूब फलों से ये लद जाते हैं । फिर इन्हें बाँट के खाना भारतीय संस्कृतिबकी पहचान है । इन्हीं फलों की गुठलियों को बारिश में वाकिंग करते हुए ।दूसरे स्थानों में जहाँ वृक्ष नहीं मैं वहाँ पर बो देती हूँ । पूरे साल उनकी देखरेख करती हूँ । कुछ मेरी दोस्त इस काम में मेरी सहायता भी करती हैं ।  पिछले वर्ष ' टाटा विद्युत गार्डन ' में मार्निंग वॉक कर रहे थे । गर्मी चरम पर थी । पेड़ झुलस रहे थे । सभी दोस्तों ने , जो वहाँ पर घूमने के लिए आते थे । उन लोगों को  पानी डालने के लिये कहा । अगले दिन सब अपने साथ पानी की बोतल , बाल्टी से पानी डाल के बगीचे को हर - भरा करने में  इन पौधों को बचाने की मुहिम जुट गए । मेरे नेतृत्व में अखबारों आयी खबर इसी पेड़ बचाओ मुहीम की साक्षी है ।
वृक्षारोपण  करना हमारा सांस्कृतिक दायित्व है,  नहीं तो बिना वृक्षों के मानव का अस्तित्व ही नहीं रहेगा . तभी संसार  को भावी प्राकृतिक , दैवीय  विनाश लीला जैसे सूखा , अकाल , सुनामी , केटरीना , भूकंप आदि  से बचाया जा सकता है . प्रकृति के साथ संतुलन  बनाए  रखना होगा . भारत की कालजयी संस्कृति  सब के हित , '  सर्वे सुखानी भवन्तु  ' की बात करती है । मेरे को बागबानी का बहुत शौक  है , मैंने अपनी छत पर तरह - तरह के फूलों के , सब्जियों के , क्रोटोन्स , फर्न  ,  पान , अौषधीय पौधे आदि गमलों में उगाए हैं  .  हर सुबह वहाँ पर जाकर उनसे मुलाकत कर पानी- खाद आदि डाल  कर उनकी देख - रेख कर लेती हूँ।  फूल के प्रसव होने पर शकुंतला की तरह उनके जन्म पर आह्लादित हो  उत्सव  मना  कर खीर  बना के ईश का भोग लगा प्रसाद की तरह बाँट देती हूँ।  शाम को छत पर उनसे दुख - सुख बतियाने  जाती हूँ , आज शाम को छत पर गई तो  शाम के ठीक 5 बजे को खिलने वाला फूल चटक बेंजीनी रंग का  '  गुलाबांश  ' कई सारे अपने भाई -बहनों , कलियों के संग भीनी - भीनी  महक से हवा को महक रहा था। इसे 5 बजे का फूल भी कहते हैं । उसकी महक मुझे सम्मोहित कर रही थी।  ईश की स्वर्गिक छटा का  नूर बरस रहा था।  मेरी सृजनात्मकता को बढ़ावा देता है । हरी मिर्ची फूलों से लद गयी । मिर्ची बनने की प्रक्रिया को हर दिन वीडियो में कैद कर मैं बहुत आनन्दित होती हूँ ।मिर्ची का   धीरे - धीरे उसका  बालपन का बढ़के युवा हो जाना । लंबी हरी मिर्च हो जाना । मन प्रकृति की अद्भुत छटा को देख ईशमय हो जाता है । जब मेरे बच्चे छोटे थे ।तब मैंने उन्हें रंगों की प्रकृति की जानकारी इसी बगीचे को पाठशाला बना के दी थी ।  आज मेरी दोनों बेटियाँ डाक्टर बन के समाज सेवा कर रही हैं । पौधे लगाने का शौक मेरे से ही उनमें आया है । इसलिए हम भावी पीढ़ी की मार्गदर्शन करें । हर दिन प्रकृति के सान्निध्य में कौतूहल बनके मेरे सामने आता है ।कितने कीट -पतंगों को इन फूलों , पत्तो से भोजन की खुराक मिल रही थी । वर्तमान सन्दर्भ में विश्व का पर्यावरण त्राहिमाम कर रहा है . अगर विश्व का मानव अभी नहीं  चेता तो विश्व प्राकृतिक आपदाओं के दुष्परिणाम भुगतने होंगे . सभी विद्यालयों , कालिजों में विद्यार्थियों को प्रार्थना सभा , एसम्बलियों में जल पेड़  बचाने की , जल के सदुपयोग , स्वच्छ परिवेश , वृक्षारोपण की शपथ दिलवाने का संकल्प लेना  चाहिए . इससे नई पीढ़ी में इनके रक्षण का दायित्व , जज्बा आएगा . आस - पास के वृक्षों की देख - भाल का दायित्व निभाना होगा ।तभी परिवेश , समाज ,  देश में हरियाली -  खुशहाली आएगी . 
  - डॉ मंजु गुप्ता 
 मुंबई - महाराष्ट्र
हमारे आसपास हमें पेड़ पौधे लगाने चाहिए और आसपास जो पेड़ पौधे लगे हैं उन्हें पानी देना चाहिए क्योंकि सुंदर फूल और हरियाली देखकर हर किसी का मन स्वस्थ रहता है और प्रश्न भी होता है। आसपास पेड़ों की सेवा करने से हमारे अंदर एक नई ऊर्जा का संचार होता है और शुद्ध ऑक्सीजन प्राप्त होती है।हमें ऐसा करते देखकर आसपास के लोग और हमारे बच्चे सब के मन में सेवा की भावना भी उत्पन्न होती है वह हर व्यक्ति के प्रति सेवा भाव रखते हैं जो कि आज के समाज और परिवेश में बहुत जरूरी है। सभी के प्रति आदर भाव होता है प्रति व्यक्ति चाहता है कि उसका जीवन फूल जैसा सुंदर हो और उसमें आनंद की महक हो जब हम अपने हृदय से घृणा ईशा के गुणों को क्या देंगे क्षमा सहनशीलता परोपकार को अपनाएंगे तो तुलसीदास जी की पंक्ति परम सत्य को उजागर करती हैं।
"परहित सरिस धर्म नाहि भाई,
पर पीड़ा सम नहिं अधमाई।"
दूसरों के जीवन में फूल खिलाने का तो केवल व्यक्ति का जीवन आनंद से भर उठेगा अपितु वह स्वयं प्रसन्नता का अनुभव करेगा दूसरे को कष्ट में देखकर वह स्वयं की हानि करता है यह प्रकृति का नियम है जैसा बीज बोओगे वैसा ही फल प्राप्त होगा करेला भोकर आम पानी की आशा मूर्खता है रास्ते में कांटे होता है और क्षमा करके यदि हम उसका भला करते हैं तो अपनी भूल का एहसास करते हैं और हमारे हृदय में उसके प्रति सद्भाव और आदर उत्पन्न होता है।
तरुवर फल नहिं खात हैं
सरवर पियहि न पान।
कहि रहीम पर काज हित,
संपत्ति संचहि सुजान।।
- प्रीति मिश्रा 
जबलपुर - मध्य प्रदेश
अवश्य हमें हमारे आस पासके पेड़ पौधों की देखभाल करना चाहिए और हमें अपने घरों में रेड पर गार्डन में पौधे लगाना चाहिए । पेड़ पौधे की कमी से आक्सीजन की कमी होती चली जाएगी जिससे जीना दूभर हो जाएगा। ऐसे में पेड़ पौधे जीवन को बचाने में ही नहीं अपितु पर्यावरण को सुरक्षित रखने में भी अहम रोल अदा कर रहे हैं। अगर पेड़ पौधे कम हो जाएंगे तो पक्षियों का आश्रय स्थल कम होता चला जाएगा। यही कारण है कि वनों की कटाई के चलते जीव-जंतु कम होते चले जाएंगे। आहार श्रृंखला में भी पेड़ पौधों की भूमिका कम नहीं है। शाकाहारी जीव जंतु पेड़ पौधों को परोक्ष एवं प्रत्यक्ष रूप से खाते हैं। यदि पेड़ पौधे नहीं होंगे तो शाकाहारी जीव कम हो जाएंगे, जिसके चलते मांसाहारी जीवों पर कुप्रभाव पड़ेगा और आहार श्रृंखला कमजोर होती चली जाएगी। पेड़ पौधे बचाए जाएंगे तो ही जीव जंतु बचेंगे और उनके बचने से इंसान की ¨जदगी बचेगी और पर्यावरण भी बचेगा। हमें  पर्यावरण को बचाना ही चाहिए और दूसरों को भी प्रेरणा देना चाहिए । पेड़ पौधों को ना काटकर पेड़ पौधों का ध्यान रखने से पर्यावरण को बचाया जा सकता है. पेड़ पौधे की देखभाल ही पर्यावरण की देखभाल हैं.
हमें यह काम एक ज़िम्मेदार नागरिक होने के नाते करना चाहिए हम प्रकृति का ध्यान देंगे वह हमारा ध्यान देगी हमें माला माल कर देगी अपने बहुमूल्य ख़ज़ाने से पेड पौधों की देख भाल करना व उन्हें लगाना परवरिश करना हमारी ज़िम्मेदारी बनती है 
- अश्विन पाण्डेय
मुम्बई - महाराष्ट्र
अवश्य करनी चाहिए।पेड़-पौधे तो हमारा जीवन हैं और जिससे हमें जीवन मिल रहा है उसकी सेवा करना करना तो हमारा सबसे बड़ा कर्तव्य होना चाहिए।  पेड़-पौधे हमारे पर्यावरण को शुद्ध रखते हैं जिसका अच्छा प्रभाव हम सभी के जीवन और स्वास्थ्य पर पड़ता है। प्रकृति हमें सदा से देती आई है और दे रही है तो हम सबका भी कर्तव्य बनता है कि हम अपनी प्रकृति की नैसर्गिकता को बनाये रखें। अपने घर ही नहीं, आसपास को भी साफ रखें, आसपास लगे पेड़-पौधे सूखने न पायें, उनकी देखभाल करते रहें, नीम, करी पत्ते, तुलसी के पेड़-पौधे अवश्य लगायें।  प्रकृति तो मनुष्य के लिए औषधि का काम करती है। प्रकृति के निकट रहने वाले लोग निरोग और प्रसन्न रहते हैं। बच्चेहो या वृद्ध...प्रकृति और पेड़-पौधों से जुड़ कर बहुत प्रसन्न रहते हैं और बच्चों में इसे सुरक्षित रखने की भावना भी विकसित होती है।  हमारी संस्कृति में तो इन्हें पूज्य समझा जाता है, पीपल, तुलसी की पूजा जी जाती है। तो यह नितांत आवश्यक है कि हम अपने घर-बाहर, आसपास पेड़-पौधे लगायें भी, उनकी सेवा भी करें।
- डा० भारती वर्मा बौड़ाई
देहरादून - उत्तराखंड
हां हमें आसपास के पेड़ पौधों की सेवा अवश्य करनी चाहिए क्योंकि पेड़ पौधे ही तो हमारे परम मित्र है और पेड़ पौधों का सारा जीवन प्राणी मात्र के लिए ही समर्पित होता है ! छोटा सा पौधा जिसकी सेवा हम करते हैं तो धीरे-धीरे बढ़कर पेड़ और फिर बड़े वृक्ष का रूप धारण कर लेता है ! 
हमारे पूर्वजों ने वृक्षों का महत्व समझा था ऋषि मुनि ही नहीं साधारण जन ने भी पेड़ पौधों का पालन किया है क्योंकि वे समझते थे कि पेड़ पौधे हमारे लिए कितने हितकर है ! वृक्ष हमें ऑक्सीजन देते हैं वे वायुमंडल में आक्सीजन छोड़ते हैं एवं वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड को ग्रहण करते हैं वृक्षों की अथवा पेड़ पौधों की यही प्रक्रिया तो हमारे स्वास्थ्य के लिए हितकर है ! आज वायुमंडल में आसपास के वातावरण में  कितना प्रदुषण है!  गंदे नालों कारखानों से निकलती विषैली गैस से यह पेड़ पौधे ही तो हमारी रक्षा करते हैं फिर हमें भी तो पेड़ पौधों की सेवा करनी चाहिए और यदि करते भी हैं तो उसमें भी हमारी स्वार्थ की पूर्ति होती है ! पेड़ पौधों से हमें कितना लाभ होता है !वृक्ष हमें छाया प्रदान करते हैं , मिट्टी और पानी का भी संरक्षण करते हैं ,उनकी जड़े जमीन में नमी बनाए रखती है अर्थात जमीन की सतह में पानी के भरे रहने से जमीन गीली रहती है ! 
अपने आसपास में हरियाली बनाए रखना चाहिए आसपास के पेड़ पौधों की सेवा करनी चाहिए एवं अपने घर में भी फूल पत्ती वाले पौधे लगाने से आंखों को ठंडक मिलती है , पक्षी अपना नीड बना सकते हैं ,फूलों की रंगीनियां देख हमारा मन भी रंगीन और प्रफुल्ल रहता है ! आज पेड़ पौधों की सेवा कर उसे जीवन दान देना अति आवश्यक हो गया है क्योंकि उनकी बदौलत ही तो हम जीवित हैं !  आज पेड़ काट काट कर बिल्डिंगें खड़ी की जा रही है तब तो हमें और भी जरूरी हो जाता है कि हम पेड़ लगाएं और उनकी सेवा करें ! 
 वन संपदा हमारे लिए प्रकृति का श्रेष्ठ वरदान है ! कृषि प्रधान देश में तो वर्षा भी वन संपदा पर ही निर्भर है यानी कि पेड़ पौधे हमारे अस्तित्व के लिए अनिवार्य है  एवं पर्यावरण की समस्या का समाधान भी हमारे यही पेड़ है अतः वृक्षारोपण करना हमारा कर्तव्य बन गया है आसपास की हरियाली को कोई नष्ट करता है तो हमें उसका विरोध करना चाहिए ! 
अंत में मैं यही कहूंगी ---
 सांसे हो रही है कम 
आओ पेड़ लगाएं हम!
- चन्द्रिका व्यास
मुम्बई - महाराष्ट्र
अवश्य करनी चाहिए ।पेड़-पौधे हमारे जीवन का आधार हैं ।वो किसी से भी भेदभाव नहीं करते ।उनकी कोई जाति, धर्म, मजहब नहीं होता ।निस्वार्थ भाव से सबको अपना सर्वत्र दे देते हैं ।हम जगह जगह जाकर वृक्षारोपण कर रहे हैं, हरित क्रांति लाने में जुटे हैं तो फिर आसपास लगे पेड़ पौधों को अनदेखा कैसे कर सकते हैं ।ये तो समस्त मानव संसाधन के स्त्रोत हैं प्राणवायु आधार हैं ।हम सबको मिलकर वृक्षों की रक्षा करनी है फिर चाहे वो हमारे घर के अंदर हो या बाहर
- सुशीला शर्मा
जयपुर - राजस्थान
पौधे रोपना व उनकी सेवा करना हमारा परम धर्म है । प्राचीन काल से हरियाली की महत्ता को ऋषि मुनियों ने प्रतिपादित किया है । इस हेतु वन देवी की संकल्पना की गयी है । तुलसी, पीपल, बरगद, नीम, आम, अशोक आदि पौधों में देवी देवताओं का वास मानते हैं इन्हें समय-समय पर पूजा जाता है । ज्योतिष में भी इनके पूजन व सेवा से  पाप कटते हैं ऐसा कहा जाता है ।आजकल वैज्ञानिकों ने भी  हरे पौधे के महत्व को जाना है । जिन पौधों को हमारे पूर्वज अपने परिवार का अंग मानकर सहेजते  व पूजते थे उनको आजकल लोग पुनः लगा रहे हैं । शोध के आधार सिद्ध हुआ है कि जो व्यक्ति पेड़ पौधों की सेवा करता है उसे मानसिक रोग नहीं होते उनकी  याददाश्त भी तेज होती है ।पेड़ो के संरक्षण हेतु चिपको आंदोलन इसी कड़ी का एक रूप है । वातावरण की उष्णता को मिटाने की शक्ति व माहौल में सरसता उतपन्न करने की क्षमता केवल इन पौधों में होती है जो हमें जीवन दायनी ऑक्सीजन देते हैं वो भी निःशुल्क । अतः इन्हें अपने जीवन का एक आवश्यक अंग मानकर सहेजें व सेवा करें । कहा भी गया है एक पेड़ सौ पुत्र के समान होता है । नदी, तालाब के किनारे वृक्ष लगाने से अनन्त गुना पुण्य फल मिलता है ।
- छाया सक्सेना प्रभु
जबलपुर - मध्यप्रदेश
पेड़ -पौधे प्रकृति कीसुंदर ,सुखदायक संतानें मानी जा सकती हैं l इनके माध्यम से प्रकृति अपने अन्य पुत्रोँ ,मनुष्यों तथा अन्य सभी तरह के जीवों पर अपनी ममता के खजाने न्योछावर कर अनंत उपकार किया करती है l स्वयं पेड़ -पौधे भी अपनी प्रकृति माँ की तरह ही सभी जीव जन्तुओं का उपकार तो किया ही करते हैं l उनके सभी तरह के अभावों को भरने ,दूर करने के अक्षय साधन भी हैं l पेड़ -पौधे और वनस्पतियाँ हमें फल -फूल ,ओषधियाँ ,छाया ,अनंत विश्राम तो प्रदान किया ही करते हैं ,वे उस प्राण वायु (ऑक्सीजन )का अक्षय भंडार भी हैं कि जिसके अभाव में किसी प्राणी का एक पल के लिए जीवित रह पाना भी नितांत असंभव है l 
धरती पर विनाश का ताण्डव कभी उपस्थित न होने पाए ,इसी कारण प्राचीन भारत के वनों में आश्रम और तपोवन ,सुरक्षित अरण्यों की संस्कृति को बढ़ावा मिला l तब पेड़ -पौधे उगाना भी एक प्रकार का सांस्कृतिक कार्य माना गया l संतान पालन की तरह उनका पोषण और रक्षा की जाती थी l इसके विपरीतआज  हम कंक्रीट के जंगल उगाने यानि बस्तियाँ बसाने ,उद्योग धंधोको लगाने ,पेड़ पौधों की अंधाधुंध कटाई कर रहे हैं फलस्वरूप हम अपनी कुल्हाड़ी से अपने ही हाथ पैर काटने की दिशा में अपने आप को लूला -लंगड़ा बनाने की राह पर जा रहे हैं l हमारी संस्कृति में पेड़ -पौधे काटना एक भयंकर पाप माना जाता है और वृक्षा रोपण एक पुण्य का काम lइसके लिए एक -एक व्यक्ति को अपना योगदान देना पड़ेगा l अपने घर में ,मुहल्ले में ,नगर -ग्राम में पेड़ पौधे लगाने एवं संरक्षण का संकल्प लेना होगा l आज हमें भलीभांति जान लेना चाहिए की हमें पहले से उगे पेड़ -पौधों के संरक्षण में ही उसका हित निहित है l हम पेड़ -पौधों का सम्मान करें ,ये मानव जीवन की संजीवनी हैं l
- डाँ. छाया शर्मा
अजमेर - राजस्थान
पर्यावरण संरक्षण की शिक्षा बचपन से ही आरम्भ की जाए और लोगों के मन में विश्वास कायम किया जाए, जब एक अबोध बालक अपने आस-पास की नैसर्गिक सुन्दरता से अति प्रसन्न होता है, तो एक परिपक्व मस्तिष्क उसके विनाश की बात क्यों सोचता है इसलिए हमें यह प्रयास करना चाहिए कि हम लोगों को ज्यादा से ज्यादा प्राकृतिक सुन्दरता का अनुसरण करायें और इससे सम्बन्धित ज्ञान दें और उन्हें इस बात से परिचित करायें कि हम चारों ओर से पर्यावरण के द्वारा प्रदान किये गये सुरक्षा कवच से घिरे हैं तो हमें इस कवच में सुराख करने की कभी भी नहीं सोचनी चाहिए, अपितु उसे मजबूती प्रदान करनी चाहिए। हमारे आस पास के पेडपौधो की देखभाल से हमारा वातावरण खुशनुमा रहेगा ।कई प्रकार के पक्षी उन्हीं पेड़ पौधों की शाखाओं पर घोंसले बना कर आवास पाते हैं, उन पर उत्पन्न फल-फूल पाकर अपना जीवन-पालन किया करते हैं। पेड़-पौधों से ही वन भी आकार पाया करते हैं कि जिनमें कई तरह की पशु जातियाँ रहतीं और पनपती हैं, जीवन में सन्तुलन बनाए रखने के लिए इनका अस्तित्त्व परमावश्यक है। इसी प्रकार हमारे घरों-द्वारों की रक्षा करने और शोभा बढ़ाने वाली इमारती लकड़ी भी हमें वनों या पेड़-पौधों से ही प्राप्त हुआ करती है। सब से बड़ी बात तो यह है कि हमारे आस-पास उगे पेड़-पौधे हमें ताजी हवा, प्राण-वायु (ऑक्सीजन) प्रदान कर हमारे जीवन और हमारे पर्यावरण दोनों की रक्षा करते हैं। अनेक प्रकार के विषैले तत्त्व भी पेड-पौधों के कारण ही पर्यावरण में घुल कर उसे विषाक्त नहीं कर पाते। इन सारे तथ्यों के आलोक में सीधे-स्पष्ट शब्दों में कहा जा सकता है कि पेड़-पौधों को पर्यावरण के साथ सीधा सम्बन्ध जुड़ा हुआ है; बल्कि दोनों एक-दूसरे के कार्य कारण या कारक तत्त्व हैं। पेड़-पौधे प्रकृति-पुत्र कहे जाते हैं और वास्तव में मानव-शरीर भी प्राकृतिक तत्त्वों से ही बन तर पालन-पोषण, विकास आदि सब कुछ पाता है। इस दष्टि से पेड़-पौधे हम मानवों केभाई-बन्धु ही हैं। अपने अत्यन्त उपयोगी एवं महत्त्वपूर्ण भाई-बन्धुओं का असमय निधन तो कोई  नही चाहेगा। हमारे पेड़ पौधे असमय जान दे से हमें गवारा नहीं होगा न । 
तो क्या करे ? 
देख भाल करे बच्चों की तरह हम उनकी देख भाल करे वो हमें जीवन देते है । आक्सीजन न मिले तो हम जी नहीं पायेंगे , 
पेंड हमें जीवन देते है , हमारी नैतिक ज़िम्मेदारी है कि हम पेड़ पौधों की देख भाल करे  
- डॉ अलका पाण्डेय
मुम्बई - महाराष्ट्र
जी इस संसार में पर्यावरण का महत्वपूर्ण भाग पेड-पौधे होने से लगाना देखभाल करना और बचाना हम सबका दायित्व है ।कोई अकेला यह काम नहीं कर सकता और न ही मात्र सरकारी अभियान वातावरण में पेड़ पौधों का वातावरण में सन्तुलन बनाये रख सकते हैं ।कुछ किन्हीं कारणों से पौधे लगा नहीं पाते हैं पर देखभाल कर बचाकर सहयोग तो कर ही सकते हैं ।पर्यावरण का धरातल के जीवन के लिए वही महत्व है जो मां का अजन्मे बच्चे के लिए है अतः हम सब अपना धर्म कर्म समझकर अपने आसपास के पेड़ पौधों की सेवा करें ।इस भारतीय धर्म संस्कृति के अनुसार पुण्य तो मिलेगा ही ।विज्ञान और पर्यावरण भी सुरक्षित होकर आभार मानेंगे ।
- शशांक मिश्र भारती 
शाहजहांपुर - उत्तर प्रदेश
पेड़ पौधे को living thing माना गया है उसका जीवन मानव जीवन है ।हमारी संस्कृति में पेड़ पौधे पूजनीय है जो पूजनीय होते हैं वे सेवा के हकदार होते हैं ।आसपास के पेड़ पौधे का ख्याल रखना उन्हें हरा भरा रखना हम सभी  की जिम्मेदारी है क्योंकि वे हमें आक्सीजन , औषधि फल फूल लकड़ी हरियाली मिलती है पेड़ पौधे के कारण ही वर्षा भरपूर होती हैं। वे संवेदनशील भी है।चेन्नई की एक अम्मा को मां बनने का सौभाग्य प्राप्त नहीं हो सका घर से बाझं का दोष लगाकर निकाल दिया गया ।उस औरत ने पूरी तत्परता से पेड़ लगाने का काम शुरु किया। और अनगिनत पेड़ लगाया। उसने यह बयान दिया कि ये पेड़ हमारे‌पुत्र हैं ।उनकी सेवा। करना हम  सभी का विशेष कर्तव्य है  
- डाँ. कुमकुम वेदसेन 
मुम्बई - महाराष्ट्र
 आसपास के पेड़ अर्थात बनस्पति की सेवा अवश्य करना चाहिए, क्योंकि यह धरातल पर रहने वाले समस्त मानव एवं जीव जंतुओं के पोषण का आधार वनस्पति है ।पोषण के बिना मनुष्य का शरीर जिंदा नहीं रह पाएगा ।मनुष्य को जिंदा रहने के लिए पोषण की आवश्यकता होती है ।पोषण के लिए वनस्पति की आवश्यकता होती है ।मनुष्य को पोषण के अलावा और अनेक आवश्यकताओं की पूर्ति वनस्पति से ही होती है अतः पेड़ पौधों की पोषण, संरक्षण, सुरक्षा   ,संवर्धन एवं आवश्यकता के अनुसार सेवा करनी चाहिए ।वनस्पति  ही मानव का जीने का आधार है  वनस्पति के बिना मनुष्य का कोई अस्तित्व नहीं है। मनुष्य को वनस्पति अर्थात पेड़ पौधों की सेवा करना परम कर्तव्य है।
- उर्मिला सिदार
रायगढ़ - छत्तीसगढ़
जी हां, हमें अपने आसपास लगे पेड़- पौधों की सेवा, पुत्रवत करनी चाहिए; क्योंकि मात्र जिसके सहज सौंदर्य और हरीतिमा को देखकर हम अपने जीवन का तादात्म्य स्थापित कर लेते हैं; फिर इसकी उपयोगिता यथा- जीने के लिए प्राणवायु ऑक्सीजन, पर्यावरणीय लाभ, समशीतोष्ण जलवायु की प्राप्ति, पक्षियों के रक्षार्थ आश्रयस्थल इत्यादि की बात सोचें तो निसंदेह इनका समुचित रक्षण, रोपण एवं पोषण अत्यावश्यक है।  हम गांव, शहर, महानगर जहां पर रहते हैं ;यदि जगह कम है ,तो बड़े गमलों में बोनसाई पेड़- पौधे भी लगाए जा सकते हैं यथा- वट,पीपल, नीम, नींबू इत्यादि। शहर की कालोनियां एवं गांवों में तो इसके लिए भरपूर स्थान रहता ही है। मत्स्य पुराण में तो एक वृक्ष को लगाकर उसकी सेवा करना 10 सदगुणों से युक्त पुत्रों को तैयार करने के बराबर है। भारतीय संस्कृति के अमर ग्रंथ वेद ,उपनिषद, पुराणों में पेड़ों को देव- तुल्य माना गया है। वट वृक्ष के नीचे बुद्ध का बुद्धत्व, 
"माहेश्वरो वटों भूत्वा तिष्ठते"
( पद्म पुराण, मत्स्य पुराण) महादेव शिव जी के रूप में पूजा करते हैं।  पीपल के वृक्ष मे स्वयं कृष्ण का बास (जिसे इस कारण काटना प्रतिबंधित) है। इस प्रकार से ईश्वरीय आशीर्वाद पाने हेतु भी इनकी सेवा आवश्यक है । हमें खाने के लिए अन्न, फल देने वाले, हमारे रोगों के आयुर्वेदिक उपचार की जड़ तथा देवतुल्य अपनी प्राण प्रिय भारतभूमि को सुजला, सुफला, शस्यश्यामला के रूप में यदि देखना चाहते हैं; तो हर संभव जन-जन को इसकी सेवा के प्रति संकल्पित होना आवश्यक है।  क्योंकि यह सत्य है *व्लादीमिर*कजीना* ने बहुत पहले ही यह कह कर सबको सचेत कर दिया था---------      " यदि वृक्ष नहीं रहेंगे तो मनुष्य भी नहीं होगा"।
-  डॉ रेखा सक्सेना
मुरादाबाद - उत्तर प्रदेश
 सबसे बड़ा दर्द तो आज यही है , कि आज हम पेड़ों की जगह सीमेंट के जंगलों से घिर गए है ; जहाँ कृत्रिम सुन्दरता तो हैं पर जीवन की सुरम्यता नही , बस एक वीरानगी छाई है । न  सुंदर पंछियों का कलरव है, न पेड़ की शाखाओं की तरह झूलों पर बालाओं की हँसी की खिलखिलाहट , न पतझड़ है,न बसंत ,न बहार है, न रंग बिरंगे मादक खुशबूदार फूल , न गुनगुनाते भौंरे हैं, न रंग-बिरंगी सुन्दर तितलियाँ , न पक्षी हैं , न घोसले , चिड़िया के चोंच के  दानों के लिये  छोटे चूजों का मुंह खोल कर चूँ चूँ करना है , न गिलहरी न कोयल , न अमराई की छाँव में बच्चों और बुजुर्गों की जमघट । कुछ भी नहीं सब कुछ मशीनी है । यदि हमें जीवन चाहिए ; तो वह आॅक्सीजन और आनंद से ही मिलेगा । ऑक्सीजन और आनंद पेड़ों द्वारा  ही प्राप्त सकते हैं । हमें अपने आसपास के पेड़ों की न केवल सेवा बल्कि उनकी सुरक्षा भी करना चाहिए । इतना ही नहीं नए पेड़ लगाकर पर्यावरण को स्वच्छ करने में भी योगदान देना चाहिए । 
- वंदना दुबे 
  धार - मध्य प्रदेश
    हां बिल्कुल करनी चाहिए।ताकि हमें श्वास मिल सकें।हम अपने रक्त को शुद्ध करने के लिए ऑक्सीजन प्राप्त कर सकें।यह पेड़-पौधे ही ही हैं।जो हमें हमें जन्म से लेकर मृत्यु तक कुछ न कुछ देते ही रहते हैं।जैसे कड़कती घूप में ठंडी छाया देते हैं।भूख में विभिन्न रसों से भरपूर फल देते हैं।शक्ति एवं सदृड़ता के लिए मेवे देते हैं।हमें स्वस्थ रखने के लिए जड़ों से लेकर अंतिम पत्तों एवं टहनियों तक आयुर्वेदिक औषधियां देते हैं।इसलिए पेड़-पौधों की सुरक्षा यानि मानव जीवन की सुरक्षा है।
- इन्दु भूषण बाली 
जम्मू - जम्मू कश्मीर
सहयोग और सेवा ऐसे सद्कर्म हैं जो सामाजिक जीवन में महत्वपूर्ण भी हैं और आवश्यक भी। ये कार्य ऐसे हैं जिनका कार्य - क्षेत्र असीमित है। समस्त प्राणी, वनस्पति ,संपदा आदि जहाँ मन चाहे हमें अपने दैनिक जीवन में अपनी सामर्थ्य के अनुसार जरूरत मंदों की सेवा और सहयोग देना चाहिए। इसी परिप्रेक्ष्य में यदि हम आपने आसपास के पेड़-पौधों की सेवा उनकी सुरक्षा, उनका वांछित खयाल रखते हैं तो यह भी महत्वपूर्ण और नेक कार्य है और हमें अवश्य करना चाहिए। उनमें भी जीवन होता है। ये कार्य ऐसे हैं  जो दिल से किये जावें तो बहुत ही अच्छा होगा ,परंतू यदि औपचारिक भी किये जाते हैं तो उनसे बेहतर हैं,जो कुछ नहीं करते। सेवा और सहयोग के कार्य जहां पीड़ित को राहत देते हैं,वहीं हमें भी सुख,शांति और सुकून देते हैं। हमें जो ऊर्जा मिलती है वह हमें और सामर्थ्यवान बनाती है। हमारा मान-सम्मान बढ़ाती है।
अतः संक्षेप में कहा जावे तो हमें  हमेशा सहयोग और सेवा के लिये सदैव सजग ,तैयार और तत्पर रहना चाहिए। इसके लिये हमारे आसपास के या हमारी जानकारी में जो भी पीड़ित आये,अपनी सामर्थ्य से उनकी सेवा और मदद करने में रुचि और उत्साह दिखाना चाहिए। इसमें पशुपक्षी, पेड़पौधे भी हो सकते हैं।यह कार्य महती है,प्रशंसनीय है,वंदनीय है,प्रेरणास्पद है।
- नरेन्द्र श्रीवास्तव
 गाडरवारा - मध्यप्रदेश


" मेरी दृष्टि में " पेड़ - पौधे के बिना प्राकृतिक की कल्पना करना अधूरी है । यह रीढ की हड्डी की तरह प्राकृतिक का सतुलन है । इसलिए पेड़ - पौधे की सेवा हर स्थिति में करनी चाहिए । यह मानव द्वारा सबसे बड़ीं सेवा है ।
                                                  - बीजेन्द्र जैमिनी



Comments

Popular posts from this blog

वृद्धाश्रमों की आवश्यकता क्यों हो रही हैं ?

हिन्दी के प्रमुख लघुकथाकार ( ई - लघुकथा संकलन ) - सम्पादक : बीजेन्द्र जैमिनी

लघुकथा - 2023 ( ई - लघुकथा संकलन )