क्या सफलता कोई पड़ाव नहीं बल्कि निरंतर चलने वाली यात्रा है ?

जीवन में सफलताओं का अपना महत्व है । जिसे हम जीवन यात्रा भी कहँ सकते हैं । जीवन में बहुत कुछ होता है । परन्तु सफलताओं का संसार दुनियां में बहुत कुछ बोलता है । दुनियां में आज भी महान् व्यक्तियों की सफलताओं का बोलबाला है । यहीं " आज की चर्चा " का प्रमुख विषय है। आये विचारों को भी देखते हैं : -
कोई भी सफलता अन्तिम नहीं हो सकती ।वास्तव में एक पड़ाव है ।रास्ता उसके बाद भी लम्बा है इसलिए और अधिक करने व पाने के लिए निरन्तर सही दिशा में कर्म करते रहिए एक बाद एक सफलता कदम चूंमती रहेगी ।हो सकता है यह यात्रा लौकिक से अलौकिक का आधार बन जाये ।
- शशांक मिश्र भारती 
शाहजहांपुर - उत्तर प्रदेश
हां सफलता कोई पड़ाव नहीं निरंतर चलने वाली यात्रा है, मृत्यु पर ही रुकती है। उदाहरण
राइट बंधु ने जिस वायुयान में उड़ान भरी थी उससे अर्थ शताब्दी से पूर्व उसने उपन्यास में उन्होंने हवाई यात्रा की उड़ान का वर्णन किया था और राइट बंधुओं ने वायुयान का आविष्कार किया।
विक्टोरिया के युग में टी०वी०
का आविष्कार हुआ तो पहले फोनों टेलीफोटो का नाम दिया गया बाद में एडमिरल बर्ड ने प्रेरणा लेकर उत्तरी ध्रुव पर हवाई उड़ान भरने के लिए वायु यान बनाया इसी तरह विख्यात बेतार के तार का भी अविष्कार मारकोनी ने किया अनेक वैज्ञानिकों ने विभिन्न आविष्कार किए। आवश्यकता ही आविष्कार की जननी है यदि रुक जाते तो अविष्कार नहीं होते। समाज और देश का विकास के लिए जो भी व्यक्ति काम कर रहा है उसे सतत प्रयास करना पड़ेगा। लेखक यदि लिखना छोड़ दे संतुष्ट हो जाए तो क्या अच्छे लेख और साहित्य मिलेंगे। प्रकृति से भी हमें सतत चलने की प्रेरणा मिलती है। हमारी सूरज नदी को देखकर भी सीखना चाहिए कि क्या वह रुकती हैं रोज हमें नया उत्साह देते हैं और निरंतर चलने का ज्ञान मिलता है यदि सफलता में पड़ाव आ जाए तो मानव का आगे विकास संभव नहीं होता वह व्यक्ति उसी समय मृत्यु के समान हो जाता है। चलना ही जीवन का नाम है।
- प्रीति मिश्रा
 जबलपुर - मध्य प्रदेश
सफलता का कोई पैमाना नहीं होता ।ये तो निरंतर चलने की प्रक्रिया है ।यदि हमने ये मान लिया कि एक मुकाम पा लेना ही सफलता है तो हम कभी भी कामयाबी हासिल नहीं कर सकते क्योंकि उसे बरकरार रखना और बेहतरी के लिए नई नई खोज करना आवश्यक है वर्ना इस प्रतिस्पर्धा की दुनिया में हमारी छोटी सी सफलता कहीं भी लुप्त हो जाएगी । चरवैति चरवैति का सिद्धांत कहता है मनुष्य जितना चलेगा उतना पाएगा।मानव मस्तिष्क निरंतर आगे से आगे सोचता है ।खोजना, बनाना, तो उसका स्वभाव है वर्ना आज यदि चकमक पत्थर से आग निकालने को सफलता मान लेते तो अंतरिक्ष की यात्रा तय नहीं कर पाते ।आदिमानव का ही जीवन जी रहे होते ।इसलिए सफलता के लिए आजीवन डगर तय करना पड़ता है ।यहाँ किसी पड़ाव का कोई स्थान नहीं है ।
- सुशीला शर्मा
जयपुर - राजस्थान
क्या सफलता मानव का जीवन भी बिना पडा़ओं के सफल नह़ी हो पाता. पडा़व के आगे भी सफलता का सिलसिला जारी रहता ही है। पड़ाव लम्बी यात्रा का विश्राम बिंदु है, पूर्णविराम नहीं। यह वह संक्षिप्त अवधि है, जिसके दौरान सफलता के निरंतर प्रयासों के लिये योजनाबद्ध तरीकों पर विचार -विमर्श करते हैं। मंथन - मनन  करते हैं।
- डा. चंद्रा सायता
इंदौर - मध्यप्रदेश
हाँ जी सफलता एक दिन की नहीं निरन्तर चलने वाली यात्रा है क्यो की चलना ही जीवन है ..
हम रोज़ नई इच्छाओं को जन्म देते है । फिर उन्हें सफल करने में जुट जाते है .. यही जीवन है प्रवाह है ज़िंदा रखने की प्रकिया है जीवन में सफलता क्या है ? दुनिया का हर व्यक्ति किसी न किसी चीज़ में सफल अवश्य होता है। जिसको वो नकार नहीं सकता किन्तु मनुष्य हमेशा से इसी दुविधा में दिखाई देता है कि, वो जीवन में कैसे सफल होगा या वो जीवन में क्यों सफल नहीं हुआ ? सफलता और असफलता के बीच में बड़ी ही विडंबना होती है। जिसके बीच मनुष्य उलझ जाता है। अगर वो कोई कार्य करता है तो, वो सबसे पहले खुद में निश्चित करता है कि, इस कार्य से सफलता मिलेगी या असफलता मिलेगी। तभी वो अपने कार्य को आगे बढ़ाता है। किन्तु वो एक बार भी नहीं सोचता कि, ऐसा क्यों है ? हम प्रतिदिन जीवन में छोटे-बड़े कार्य करके भी सफलता प्राप्त करते है। लेकिन हम बस यही देखने में उलझे रहते है कहाँ हमको सफलता और असफलता प्राप्त हुई। इसी कारण हम प्रत्येक दिन की छोटी-छोटी प्राप्त सफलताओं को भूल जाते है। जैसे- "जब हम बिना आलार्म लगाए सो कर समय पर उठ जाते है। तो यह भी एक सफलता ही होती है। दैनिक जीवन में समय पर हुआ कोई भी कार्य, सही अर्थ में सफलता कहलाता है।" सफलता केवल उसे नहीं कहते, जिसके बल पर इतिहास रचा गया हो। प्रत्येक दिन मिलने वाले छोटी सफलता को भी कहते है। जो हमे जीवन में एक नया दिन प्रदान करती है एवं मृत्यु को एक दिन पीछे धकेलती है। इसलिए सफलता के भिन्न-भिन्न रूप हो सकते है सफलता छोटी-बड़ी हो सकती है। लेकिन प्रत्येक दिन व्यक्ति जीवन में सफल ज़रूर होता है।
यह न रुकने वाली क्रिया जो हमारे जीवन में नित्य नई सफलता लाती है । 
हर पल खुल कर जियो:
साथियो! ज़िंदगी बहुत छोटी, अनिश्चित और क्षण-भंगुर है। अत: इसका एक-एक पल अनमोल है। उसे यूं ही मत जाने दो। क्या पता, भगवान का दिया हुआ यह खूबसूरत उपहार दोबारा मिले ना मिले। इससे पहले कि देर हो जाए, जीवन का आनंद उठाना शुरू कर दीजिए। अपनी छोटी- छोटी सफलताओं पर इठलाइए, खुशियाँ मनाइए। हर उपलब्धि पर स्वयं को शाबासी दीजिए। संतुलन बनाए रखिए। अपने प्रियजनों और परिवार के लिए वक्त निकालिए। सप्ताह में एक दिन काम से छुट्टी लीजिए और अपने मनपसंद स्थान पर घूमने जाइए, मधुर संगीत सुनिए, अपने शौक को पूरा कीजिए। कामयाबी, ऊंचे ओहदे और बड़ी-बड़ी सफलताओं के नाम पर जीवन की महत्वपूर्ण खुशियों को नजर अंदाज मत कीजिए। प्रसिद्ध विचारक और लेखक ‘दीपक चोपड़ा’ ने एक जगह लिखा है “सफलता में अच्छी सेहत, जीवन के लिए ऊर्जा और उत्साह, परिपूर्ण रिश्ते, रचनात्मक स्वतंत्रता, भावनात्मक और मनोवैज्ञानिक स्थिरता, अच्छा होने का एहसास और मन की शांति भी शामिल है।” आखिर, संतुलन बनाने का नाम ही तो ज़िंदगी है। जो जितनी कुशलता से यह संतुलन बना लेता है, जीवन में वह उतना ही सफल और प्रसन्न रहता है। जब रंगों का उचित संतुलन होता है तभी एक खूबसूरत पेंटिंग बनती है। इसी तरह जीवन में भी संतुलन हो तो इसे अधिक खूबसूरत बनाया जा सकता है। यदि आप ऐसा करने में सफल होते हैं तो आपकी तमाम समस्याएं, समस्या नहीं रहेंगी। आपके अंदर मुस्कराते हुए उनका सामना करने की शक्ति आ जाएगी। जीवन खुशियों से भर जाएगा। आपको अधिक संतुष्टि और आत्म सम्मान की अनुभूति होगी।सफलता के साथ जीवन का भरपूर आन्नद उठाईयें 
जीवन चलने का नाम ...चलते रहे ...
- डॉ अलका पाण्डेय
मुम्बई - महाराष्ट्र
सफलता पड़ाव तो अवश्य है लेकिन क्षणिक। यह दर्शाता है कि निर्णय लेने की क्षमता का विकास हो रहा है । अगला कदम नई ऊंचाई देगा । यह बताता है कि आपने जीवन के उत्तम पथ को चुना है, जो उन्नति का पथ प्रशस्त करेगा । इसलिए
'वीर तुम बढ़े चलो, धीर तुम बढ़े चलो'
खुद-ब-खुद कदम गतिमान हो जाएंगे ।
- संगीता गोविल
पटना - बिहार
जी हाँ सफलता जीवन भर चलने वाली यात्रा क्योंकि जितना हम पाते हैं उससे अधिक पाने की चाह बलवती होने लगती है । और ऐसा होना भी चाहिए तभी नए- नए प्रयोग सम्भव होंगे तथा प्रतियोगी भी सामने आयेंगे जिससे कोई व्यक्ति या वस्तु अपने उत्कृष्ट रूप को पा सकेगी । वास्तविकता ये है कि सफलता के शिखर पर पहुँचना बहुत सरल होता है किंतु उस शीर्ष पर बने रहना बहुत मुश्किल होता है । अधिकांश लोग जैसे ही सफल होते हैं बस उन्हें ऐसा लगता है कि अब लक्ष्य पूरा हुआ  और ये जीवन फूलों की सेज बन गया है जिस पर आराम से सो जाओ । ऐसे कई  उदाहरण मिलेंगे जो एक दिन बहुत सफल थे पर आज गली की खाख छान रहे हैं , वे अपने पुराने मेडलों, फोटो को दिखाते हुए सरकार से मनुहार करते हैं कि उन्हें भरण पोषण भत्ता मिले क्योंकि उन्होंने इतने पुरस्कार देश के लिए जीते । ये तो एक उदाहरण मात्र है ,आप सोचिए ऐसा क्यों हुआ क्योंकि उन्होंने निरंतर सफलता हेतु कार्य नहीं किया , हम जिस भी क्षेत्र में हों हमें निरंतर संघर्ष करते रहना चाहिए । इसे  पड़ाव न समझ कर एक सीढ़ी समझना चाहिए जिस पर जितना चढेंगे उतनी स्वयं के प्रति दायित्व और जिम्मेदारी बढ़ती जायेगी ।अतः प्रयास करते रहें और सफल होते रहें । जो रुका वो झुका ।
- छाया सक्सेना प्रभु
जबलपुर - मध्यप्रदेश
सफलता  निरन्तर  चलने  वाली  एक यात्रा  है यह पड़ाव  हो ही  नही  सकता है । सबसे  पहले  सफलता  का  जुड़ाव मानव  जीवन  से है जीवन  मे  एक  गति  है  जीवन  चलने  का  एक  नाम है  तो  फिर  पड़ाव  की  गुंजाइश  ही  नही ।
सफलता  भिन्न  भिन्न  प्रकार  के होते  है।छोटी  छोटी  सफलता  जिससे  प्रतिदिन  एक  आनंद  मिलता  है यही  सफलता  मानव  को आगे  बढ़ने  की  उम्मीद  पैदा  करती है
सफलता  एक  प्रेरणा  बनकर  इंसान  को  आगे  बढ़ने के  लिए  प्रोत्साहित  करता है।
डाँ. कुमकुम  वेदसेन 
मुम्बई - महाराष्ट्र
 यह वाक्य सही है सफलता निरंतर चलने वाली यात्रा है कोई भी व्यक्ति चाहे अमीर हो या गरीब हो  चाहे अनपढ़ हो या पढ़ा लिखा हो, चाहे देश का हो या विदेश का हो, चाहे गांव का हो या शहर का  हो, हर व्यक्ति सफलता पाना चाहता है सफलता पाने के बाद प्रक्रिया  रुक जाएगी , ऐसी बात नहीं है ।एक सफलता पूरा होने के बाद, दूसरे सफलता के लिए प्रयास होते ही रहते हैं अतः सफलता मिलने से ही आदमी सुखी होता है। अतः हर आदमी में  सुखी की अपेक्षा बनी  हुए है।  सफलता निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है सफलता को विकास के रूप में भी देखा जाता है हर पल, हर क्षण ,हर व्यक्ति विकास करना चाहता है ।विकास कभी रुकता नहीं है अगर कभी रुक भी जाता है  तो उससे जल्दी से जल्दी निजात होने की प्रयास  मानव करता है इसलिए कहा जा सकता है कि सफलता निरंतर चलने वाली यात्रा है।
- उर्मिला सिदार
रायगढ़ - छत्तीसगढ़
जी हां सफलता एक पड़ाव नहीं है ! जीवन चलते रहने का ही नाम है हमारी जिंदगी को अपने जीवन काल में कई पड़ाव पार करने पड़ते हैं ! हर पड़ाव में वह किसी न किसी प्रकार का कार्य करता है और सफल भी होता है चाहे छोटी हो या बड़ी ! जीवन गतिमान है वह जब तक है उसकी आवश्यकता भी बढ़ती है और आवश्यकता की पूर्ति कभी नहीं होती ! उसे प्राप्त करने के लिए नित्य प्रति प्रयास करता है और सफल भी होता है किंतु पुनः उसका प्रयास दूसरी आवश्यकता की पूर्ति करने को बढ़ता है और यह चक्र चलते रहता है इसीलिए तो कहते हैं  "आवश्यकता ही आविष्कार की जननी है" ! इसीलिए  तो हम विज्ञान के क्षेत्र में  सफलता की सीढ़ी  चढ़ते जा रहे हैं! सफलता की आकांक्षा हम किसी भी क्षेत्र में रहकर करते हैं अथवा किसी भी उम्र में , किसी भी तरह से यदि वह अपने लक्ष्य को प्राप्त कर लेता है ! मतलब वह सफल हो गया किंतु वह रुकता नहीं क्योंकि सफलता पा लेने के बाद उसे अक्षुण बनाए रखने का प्रयास करते रहता है ! एक माता-पिता अपने बच्चों को पढ़ा लिखा कर संस्कारी बनाने में सफल हो जाते हैं वहीं वे रुकते नहीं अपनी परवरिश को आगे इसी तरह बनाए रखें उसके लिए जीवन के अंतिम पड़ाव तक प्रयास करते रहते हैं ! यदि ज्ञान प्राप्त करने में हमने सफलता प्राप्त कर ली किंतु उसी ज्ञान को हम दूसरे को बांटने में यूं कहे दूसरे तक पहुंचाने में सफल हो गए तो ही हमारा ज्ञान सार्थक है कहने का मतलब सफलता मिलने के बाद भी हम दूसरी सफलता कैसे मिले उसके लिए प्रयासरत रहते हैं !
 अंत में मैं कहूंगी समय अपनी गति निर्धारित करती है ठीक उसी तरह जीवन भी अपनी आवश्यकताओं के बीच सफलता को लेकर सदा गतिमान रहता है !
- चन्द्रिका व्यास
मुम्बई - महाराष्ट्र
    जी हां सफलता वह पड़ाव रहित यात्रा है।जो अंतिम सांस तक निरंतर चलती रहती है।चूंकि मानव वह प्राणि है, जिसके पास जितना होता है, उससे कहीं अधिक पाने की इच्छा होती है।  इसलिए मानव की मानसिकता है कि वह धरती तो छोड़ो आकाश व पताल तक की शोध यात्रा की जिज्ञासा को तृप्त करने के निरंतर चलता है।जिसपर संत स्वामी विवेकानंद जी महाराज जी ने भी प्रेरित किया है कि जब तक मंजिल ना मिले तब तक चलते रहो और यथार्थ यह है कि सफलता की कोई मंजिल अर्थात सीमा है ही नहीं।
- इंदु भूषण बाली
जम्मू - जम्मू कश्मीर
जीवन में सफलता की चाह सब ही करते हैं; पर अपनी उपलब्धियों के पुरुस्कार पाकर यानी कामयाबी की बुलंदियों तक पहुंचकर गौरवान्वित होकर बैठ जाना, ठीक नहीं ।सफलता  का मापदंड और राजमार्ग क्या रहा है?  जानना जरुरी है।उतावलेपन से शॉर्टकट तरीके से प्राप्त सफलता भ्रामक ,शांति- सुकून और  प्रसन्नता से रहित, अवसादी ,  कहीं मात्र दिखावा या स्वयं  को भरमाने वाली तो नहीं है। सफलता की प्रासंगिकता बौद्धिक, भावनात्मक, नैतिक तथा आध्यात्मिक उन्नति से युक्त होनी चाहिए। प्रश्न का जुड़ाव है- सफलता और जीवन की यात्रा।अतः जीवन का लक्ष्य चर्रैवेति चर्रैवेति है।तो हमें समझना होगा कि जब जीवन वृहत्तर और बहुआयामी है; तो फिर जीवन की पारिवारिक, शैक्षिक, आर्थिक, व्यवसायिक,   वैज्ञानिक, सामाजिक और राजनीतिक क्षेत्रों में भी हम मौलिकता, दैनिक जीवन की प्राथमिकताओं ,अपने भावनात्मक संतुलन के साथ स्वयं को सर्वांगीण सफलता के लिए नित्य कसौटी पर कसते रहें इस गति से चलते रहने में ही जीवन की सफलतम यात्रा है ।
डाॅ.कुबँर बेचैन की पंक्तियां इसको सार्थक करती हैं---
" एक ही ठाँव पर ठहरोगे तो थक जाओगे/ जिंदगी जंग है,इस जंग को जारी रखिए।"
- डॉ.रेखा सक्सेना
मुरादाबाद - उत्तर प्रदेश
जन्म होते ही जीवन प्रारंभ हो जाता है। जीवन बिना रुके,बिना थके आगे बढ़ता  जाता है, इसकी गणना आयु से मापी जा सकती है। सभी के जीवन की शैली, स्वभाव, स्वास्थ्य के साथ-साथ परिस्थितियां और  मनःस्थितियां भी अलग- अलग होती हैं। इसीलिए सबका जीवन संघर्ष भी अलग-अलग होता है। और ऐसा इसीलिए भी क्योंकि सभी की समझ, ज्ञान,विवेक और बुद्धि भी अलग - अलग होती है। जो मिलकर सामर्थ्यवान बनाती हैं।  अलग- अलग सामर्थ्य शक्ति होने की वजह से सभी में अलग अलग विशेषताएं और कमियां भी होती हैं। कोई किसी में निपुण होता है तो कोई किसी में। इसमें तात्कालिक  परिस्थितियां और मनःस्थितियां भी मुख्य कारक बनती हैं। ये विविधताएं सामर्थ्य शक्ति को प्रभावित करती हैं  जो  उपलब्धियों  को तय करती है और यही उपलब्धियां सफलता का द्योतक होती हैं। अतः जैसे-जैसे जीवन बढ़ता है,कर्म भी बढ़ता है। जो तात्कालिक स्थितियों के आधार पर सफलता  तय करता चलता है। अतः अस्थिर जीवन -कर्म में सफलता कोई पड़ाव नहीं बल्कि निरंतर चलने वाली यात्रा है।
- नरेन्द्र श्रीवास्तव
गाडरवारा - मध्यप्रदेश
हाँ !,  उन उद्यमी  मनुष्यों के लिये सफलता का कोई पड़ाव नहीं होता है ।  निरन्तर चलने वाली यात्रा है ।
हर मानव में कुछ न कुछ विलक्षणता , विशेषता गुण  होते  है । अगर उन्हें वह पहचान ले तो जीवनभर सफलता से  सपनों  को। साकार कर सकता है ।
कबीर ने कहा है :-
पकी खेती देखिके , गरब किया किसान ।
अजहूं झोला बहुत है , घर आ जब जान  ।
कहने का मतलब है जब फसल कट कर घर आ जाए । तभी किसान की सफलता है । बीच में ही बरसात जैसी विपत्ति  आ जाए तो फसल चौपट हो जाएगी । लेने के देने  पड़ जाएँगे ।
 यही बात मानव जीवन में दिखती है । जब तक हम बाधाओं को पार के लक्ष्य तक नहीं पहुँच पाते हैं । तभी मानव सफल है । मन  से विकलांग व्यक्ति कभी भी सफल नहीं हो सकता है । मानव को अपनी नकारात्मक  मानसिकता को नकारने होगा । सफलता का सफर कोई की व्यक्ति किसी भी उम्र कर सकता है । आत्मविश्वास , दृढ़ निश्चय , एकाग्रता , ईमानदारी जैसे मूल्यों को जो धारता है । वही व्यक्ति जीवन में सफल होते हैं । रामायण , महासभारत , गीता में जिसने लक्ष्य की ओर समर्पण था । वही जीवन में सफल हुए । मर्यादा पुरुषोत्तम राम का नाम ही सफल व्यक्तित्व का चरित्र चित्रण करता है । राम अपने 14 साल के वनवास में एक लक्ष्य  राक्षसों के विनाश के लिए निकले थे । लेकिन जब उनका एक लक्ष्य सफल हो गया तो वह वहीं रुके नहीं ।  फिर और लक्ष्य समाने आते गए ।  उनकी यह सफलता का महाकाव्य जीवन भर चरितार्थ होता रहा था । एक खिलाड़ी अपने खेल को  पहले स्कूल स्तर पर खेलता है । वही विजयी खिलाड़ी जिला स्तर पर फिर राष्ट्रीय स्तर के कई पड़ावों पर जीत के ओलंपिक तक जीतने की प्रक्रिया निरन्तर ताउम्र चलती रहती है । इसलिए सफलता का कोई पड़ाव नहीं होता है । वह निरन्तर चलने वाली प्रक्रिया है । हमेंब जज्बा , सही ग़लत क्या है, हमें हमेशा प्रयत्नशील   सफलता  हमारी मानसिकता , शारीरिक , मनोवैज्ञानिक , सामाजिकता को स्वास्थता प्रदान करती है । 
जिन्दगी का संघर्ष जितना अधिक होगा । परिणाम सफलता का  उतना ही शानदार , सुखद होगा । सफलता हम को प्रगतिशील , गतिशील , व्यापक सोच प्रदान कर  समाज के प्रेरणास्रोत  व्यक्तित्व बनते हैं । जब मेरी एक  किताब  देश - विश्व में आ जाती है । उसके बाद ही दूसरी किताब  का लक्ष्य सामने आ जाता है । किताबों की सफलता से मेरी  8 किताबें देश -  विश्व में आ गयी  हैं । 2 किताबें प्रेस में है । कलम का लेखन  जारी है । इस तरह से प्रकृति भी अपना अनवरत अपना काम कर रही है । ब्रह्मांड का कण - कण गतिमान है ।
राष्ट्र कवि दिनकर जी ने कहा :-
" प्रकृति नहीं डरकर झुकती है , कभी भाग्य के बल से । 
सदा हारती  वह मनुष्य के उद्यम से बल से । "
 स्वामी विवेकानन्द जी ने कहा :-
" उठो जागो  और बिना रुके लक्ष्य तक पहुँचो ।" 
गुलाब के सुगंध की   हवा जिन - पड़ावों से गुजरती है उनको महका देती है ।  अपना पता दे देती है ।माहौल  को खुशनुमा कर देती है । उसी तरह सफलता की सुगंध सभी पड़ावों को महकाती है । सफल व्यक्ति   समाज , देश , विश्व , मानव जाति  के लिये अनुकरणीय हो जाता है ।यूँ कह सकती हूँ नयी -नयी  मंजिलों को पाने वालों को रास्ते भी नए बनाने होते हैं । हजारों कदम चलने के लिये पहला कदम चलना जरूरी है । हमें चरैवेति - चैरेवती का सूत्र जीवन में अपनाना होगा । हमें दिशा में जाने के जाने के दृष्टिकोण को अपनाना होगा । सोच  ,  संकल्प , व्रत को धारणा होगा ।
अंत में दोहे में मैं कहती हूँ :-
 सपन  देख हो  आँख  खुली , भरे सपन में रंग ।
होय लक्ष्य  फिर सफल है ,  जगत  होय फिर दंग 
    - डॉ मंजु  गुप्ता 
 मुंबई - महाराष्ट्र
जी हां,, बिल्कुल सही,,बात है, हमारे जीवन की तरह हीं   सफ़लता का भी पड़ाव नहीं , अपितु निरन्तर जारी रहना हीं सही है। वैसे भी मनुष्य की एक प्रवृत्ति होती है आगे बढ़ने की,और निरन्तर कुछ और पाने की,, इसलिए इस कारण भी पड़ाव पर व्यक्ति रूकता नहीं हीं है। व्यक्ति के जीवन में अनेक लक्ष्य होते हैं, जिसकी प्राप्ति कर व्यक्ति ना हीं रूकता है और ना ही संतुष्ट हीं होता है फलत: पड़ाव का सवाल ही नहीं होता है । स्वभाविक है फिर अपनी लालशा और नया कुछ पाने की तलाश में व्यक्ति निरन्तर कुछ ना कुछ के लिए प्रयासरत रहता हीं है। इसलिए सही कहा गया है कि जीवन की धारा जैसे निरन्तर बहती रहती है बहाव है,उसी तरह सफ़लता का भी कोइ पड़ाव नहीं होना चाहिए ।
- डॉ पूनम देवा
पटना -  बिहार
सफलता जीवन का सबसे अहम हिस्सा है ।सफलता का अभिप्राय है अपने लक्ष्य को हासिल कर लेना ।एक लक्ष्य हासिल करते ही दूसरा लक्ष्य स्वत बन जाता है और जीवन आगे की ओर बढ़ने लगता है ।जो सफलता को पड़ाव मान लेते है उनकी उन्नति रुक जाती है ।अतः सफलता जीवन भर चलने वाली प्रक्रिया है ।जिसका कोई अंत नही ।
 - गोविन्द राज पुरोहित 
जोधपुर - राजस्थान

            " मेरी दृष्टि में " सफलताएँ ही इंसान की पहचान होती है । जो जीवन यात्रा में विभिन्न पड़ावों का बहुत बड़ा योगदान होती है । सफलताएँ के बिना जीवन यात्रा में योगदान शून्य के सामान माना जाता है । 
                                                         - बीजेन्द्र जैमिनी




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