क्या भारत में गांवों में सब से अधिक गरीबी है ?

जिन को तरक्की चाहिए । वे गांव से शहर की ओर भाग रहे हैं । विशेषकर वर्तमान में ऐसा ही रहा है । क्यों कि गांव में रोजगार खत्म होते जा रहे हैं । ऐसे में गांव की गरीबी स्पष्ट नज़र आती है । यहीं कुछ जैमिनी अकादमी द्वारा " आज की चर्चा " का प्रमुख विषय है। अब आये विचारों को देखते हैं : -
भारत की आत्मा गाँवों में बसती है ।यह कथन हम सब राजनैतिक नेताओं , अपने बड़े बुजुर्गों और किताबों में पढ़ कर बड़े हुएँ हैं । सच भी है गाँव की प्रकृति, सामाजिक, धार्मिक , मानवीयता, अपनापन, सौंधे रिश्ते और मिट्टी से जुड़ाव आज भी कायम है। आधुनिकता और वैश्वीकरण ने बहुत कुछ बदल तो दिया है पर गाँवो के भीतर जो सच्चा -पुराना गाँव बसा है वो वैसा ही है ।
अर्थशास्त्रियों के आँकड़ो को ना देखें तब भी यह कहना सबसे अधिक गरीबी गाँवों में है ।कहना मेरी दृष्टि से सही नहीं है। शहर में भी बड़ी -बड़ी इमारतों, चमकीली गाड़ियों और बड़े शानदार अंतर्राष्ट्रीय व्यापारिक केंद्रों के ठीक नाक के नीचे ऐसे लोग भी रहते हैं, बसते हैं, जीते हैं और मरते हैं ।गरीबी अपने मन की भावना है ।महिने के एक हजार कमाए या दस हजार अपने जीवनयापन को अपनी कम से कम जरूरतों को पूरा कर के आप संतुष्टि से रह सकते हैं। दूसरी ओर हर माह करोड़ो कमाने वाला भी खुद को गरीब मानता है। गरीबी की परिभाषाएं बदलती रसती हैं । शहर में भी दयनीय स्थिति में हजारों लोग रहते हैं  ।
  ...गाँवों में गरीबी  अधिक है । यह कहना अनुचित हे।
        - डा.नीना छिब्बर
          जोधपुर - राजस्थान
     भारत में वर्तमान परिदृश्य में नगरों,  महानगरों में बहुत तत्परता के साथ विकास की ओर अग्रसर हैं, कुछ गाँव-कस्बों में धीमी गति से कार्य चल रहा हैं, अधिकांशतः अभी भी वंचित हैं। जिसके परिपेक्ष्य में गरीबी की झलक दिखाई दे रही हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में कारखाने, उद्योग, अन्य विकल्प के साथ विकास हो तो उन्हें, उन्हीं के क्षेत्रों में रोजगार प्राप्त होगा, साथ ही साथ जीवन यापन करने में सुविधाऐं होगी। गांवों में गरीबी की महक झलकियां प्रत्यक्ष रूप से दिखाई दे रही हैं, आज भी उन्हें उनकी मूल भूत भविष्य की अनेकों कठिनाईयों का सामना करना पड़ रहा हैं और अंत में बुरी तरह से सामना करना पड़ सकता हैं, अमीर, अमीर ही हैं, उनके पास लक्ष्मी जी का आशीर्वाद! अगर हम गरीबों कों नैतिकता के आधार पर परिभाषित करेगें, तो समझ में आयेगा, उनका, खानपान, रीति-रिवाजों और चीजों की व्यवहारिकता की व्यवस्थाऐं। उन्हें व्यापक रुप से योजनाओं का लाभ भी पूर्ण रूप से नहीं मिल पा रहा हैं, जिससे गरीबी दूर हो सकें।
- आचार्य डाॅ.वीरेन्द्र सिंह गहरवार 'वीर' 
   बालाघाट - मध्यप्रदेश
भारत के लोगों की आत्मा गांवों में बसती है लेकिन आज भी देश के गांव में गरीबी सबसे अधिक है। गांव में 32% आबादी आज भी गरीबी रेखा से नीचे गुजर बसर कर रहे हैं। योजना आयोग ने भले ही देश में गरीबी कम होने का दावा कर रहा है। गांव के लोग आज भी बहुत ही मुश्किल से अपना जीवन यापन कर रहे हैं क्योंकि इन परिवारों की आय इतनी कम है कि रोजमर्रा की जरूरतों को भी बहुत ही मुश्किल से जुगाड़ कर पाते हैं। ग्रामीण विकास मंत्रालय के सामाजिक आर्थिक पैनल के एक नए अध्ययन में यह खुलासा हुआ है।योजना आयोग ने हाल में जारी अपनी आकलन रिपोर्ट में कहा था कि देश में ग्रामीण इलाकों में 21.6 करोड़ लोग गरीबी रेखा से नीचे आयोग के मुताबिक वर्ष 2005 से वर्ष 2011 12 के बीच गरीबी में 15 फ़ीसदी की कमी आई है और करीब 13.7 करोड़ लोग गरीबी से उभरे हैं।योजना आयोग के सदस्य अभिजीत सेन की अध्यक्षता वाली एसआईटी की रिपोर्ट में कहा गया है कि ग्रामीण इलाकों में 24. 8 करोड़ आज भी गरीबी रेखा से नीचे है।रिपोर्ट में इन लोगों की गई है यानी कि यह बेहद गरीबी में अपना जीवन यापन कर रहे हैं। नीति आयोग की एसडीजी की रिपोर्ट में देश में गरीबी का आंकलन जिस हिसाब से लिया गया है। उन पांच संकेतों में मनरेगा में रोजगार पाने वाले लोगों का प्रतिशत भी शामिल है। मनरेगा में सिर्फ ₹168 मजदूरी में क्या होता है ऊपर से सिर्फ 100 दिन का काम मिलता है यानी कि साल में 265 दिन हमारे पास काम नहीं है।हमारे पास इतना पैसा भी हाथ में नहीं होता है कि घर में किसी का इलाज ठीक से करा पाए मजबूरी में उधार लेते हैं और सैकड़ों का 10 से ₹15 हर महीने ब्याज देते हैं क्या कर सकते हैं। क्योंकि क्योंकि हम मजबूरी है। रोजगार की गारंटी देने वाली दुनिया की सबसे बड़ी योजना मनरेगा गांव के लोगों के लिए एक कमाई का जरिया है। अगर इसे मजबूत किया जाए तो गांव के लोग भी बेरोजगारी यह समस्या से निजात पा सकते हैं।
 नीति आयोग की सतत विकास लक्ष्य इंडेक्स 2019 की रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2030 तक गरीबी मुक्त भारत के अपने लक्ष्य में भारत 4 अंक नीचे लुढ़क गया है।देश के 22 राज्यों गरीबी दूर करने में आगे बढ़ने के बजाय काफी पीछे जा चुके हैं देश में गरीबी रेखा से भी नीचे बसर करने वाली आबादी पहुंच चुकी है। मनरेगा के मजदूर बहुत निराश हो जाते हैं। जब उन्हें मनरेगा में समय से मजदूरी भी नहीं मिलती। अब बिहार के शिवहर गांव का ही उदाहरण ले लिया जाए तो यह सबसे छोटा और सबसे नया जिला है मगर प्रति व्यक्ति आय के हिसाब से देखें तो यह बिहार का ही नहीं देश का सबसे पिछड़ा जिला मालूम होता है।
- अंकिता सिन्हा कवयित्री
जमशेदपुर - झारखंड
यदि आर्थिक पक्ष से बात करें तो भारत के गांवों में वास्तव में गरीबी है।नीति आयोग की सतत विकास लक्ष्य इंडेक्स (एसडीजी) 2019-20 की रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2030 तक 'गरीबी मुक्त भारत' के अपने लक्ष्य में भारत चार अंक और नीचे लुढ़क गया है, देश के 22 राज्य गरीबी दूर करने में आगे बढ़ने की बजाए काफी पीछे जा चुके हैं। देश में गरीबी रेखा से भी नीचे बसर करने वाली आबादी 21 फीसदी पहुंच चुकी है। 
गत वर्ष कोरोना के चलते बेरोजगारी बढ़ने से यह प्रतिशत बढ़ गया है। गांवों में आ‌र्थिक रुप से गरीबी भले ही हो लेकिन व्यवहार में सम्पन्नता है। उनके पास है भरपूर प्राकृतिक संपदा,शुद्ध ताजा पानी,ताजी हवा। संबंधों की संपदा, रिश्तों की मिठास। उनके पास है जीवन मूल्यों का खजाना। सांस्कृतिक धरोहर का पिटारा।लोक संस्कृति की सम्पन्नता।इन सबके साथ साथ आत्मनिर्भरता। यही है असली भारत।
इस घोर आर्थिक युग में धन के सामने किसी अन्य का कोई महत्व नहीं, इसीलिए इन सबका होना कुछ मायने नहीं रखता शायद। क्योंकि जीवनयापन के लिए धन का कोई विकल्प नहीं।
- डॉ.अनिल शर्मा 'अनिल'
धामपुर - उत्तर प्रदेश
भारत एक कृषि प्रधान देश है भारत के गांव में गरीबी अधिक नहीं है संसाधन की कमी है धन से मन से हर ग्रामीण अमीरों से ऊंचे हैं लेकिन संसाधन के अभाव के कारण देखने में गरीब लगते हैं ब्रांडेड नहीं हैं पर उनके पास तहजीब है मिट्टी से जुड़े हुए हैं हर भारतीय के लिए अन्न उपजाते  हैं कैसे हो सकते हैं वह गरीब।
चकाचौंध की दुनिया चकाचौंध का चश्मा गांव को देखकर उन्हें गरीब अवश्य कहता है पर सही मायने में गांव के लोग सही जिंदगी जी रहे हैं अपनी मिट्टी से जुड़े हुए हैं अगर वहां भी संसाधन उपलब्ध हो तो गांव शहरों से कम नहीं।
- कुमकुम वेद सेन
मुम्बई - महाराष्ट्र
भारत के कुछ राज्य के गांव में ही लोग गरीबी रेखा से नीचे मे हैं। जैसे;-उड़ीसा 48 प्रतिशत, छत्तीसगढ़ 40 प्रतिशत झारखंड 37 प्रतिशत अंत में गोवा भी से नीचे स्तर पर  है जहां गरीबी पर 5.09 फीसदी है। 
उड़ीसा में दक्षिण-पश्चिम इलाके में एक जिला नवरंगपुर के एक गांव है देश के सबसे गरीब गांव में गिने जाते हैं वहां के जनसंख्या मैं 56% आदिवासी है अपने मेहनत से पढ़ाई लिखाई करते हुए लगन से काजू की खेती करना शुरू किए जिससे अपने गांव की तस्वीर बदलने कामयाबी मिल रही है।
यहआयोग की ओर से जारी किया हुआ रिपोर्ट है। 28 -29 रु.और गांव में 22-23 रू खर्च करने वाले को गरीब नहीं कहा जा सकता है।
लेकिन विश्लेषकों का कहना है योजना आयोग की ओर से निर्धारित किए गए आंकड़े भ्रामक है।
अभी योजना आयोग के उपाध्यक्ष का कहना है. 2030  तक देश के गांव से गरीबी कम होने लगेगा जिस तरह से देश विकास की प्रगति की ओर  है।
लेखक का विचार:-- जैसे जैसे हमारे देश के लोग में जागरूकता, हुनर सीखने का मौका मिलते जाएगा काम धंधा, व्यापार यह सब विकास होने लगे गा  तो अपने से गरीबी दूर होगा।
- विजयेन्द्र मोहन
बोकारो - झारखंड
भारत विकास शील देश है। गरीबी तो पूरे भारत में है लेकिन भारत के गाँव में सब से अधिक गरीबी है। इस का एक कारण यह भी है कि भारत की अधिकांश आबादी गाँव में रहती है। इस समय भारत के गाँव गरीबी से जूझ रहे हैं। 
       भारत आर्थिक रूप में प्रगति कर रहा है लेकिन यह वृद्धि समाज को दो भागों में बांट रही है अमीर और गरीब। भारत में एक तिहाई आबादी गरीबी रेखा से नीचे रह रही है। इस के मुख्य कारण भ्रष्टाचार, शिक्षा की कमी,धन का आयोग वितरण, जनसंख्या वृद्धि, जाति वयवस्था, छोटे उद्योगों की कमी,गलत सरकारी नीतियाँ, बढ़ती मंहगाई ,लोगों की मानसिकता और सामाजिक परिस्थितियाँ आदि हैं। 
- कैलाश ठाकुर 
नंगल टाउनशिप -  पंजाब
वैसे तो अमीरी-गरीबी की असमानता सब जगह व्याप्त है। परन्तु इसमें कोई दो राय नहीं कि भारत के गाँवों में गरीबी की प्रतिशतता अधिक है।
इसका मूल कारण रोजगार की सीमितता तो है ही। साथ ही शिक्षा के साधनों का अभाव, ओछी राजनीति और नशे का बढ़ता प्रभाव दिन-प्रतिदिन गाँवों में गरीबी रेखा में वृद्धि कर रही है।
इस गरीबी और बेरोजगारी के कारण ग्रामीण शहर की ओर भागते हैं और अपना सारा जीवन संघर्षों के साथ व्यतीत करते हैं।
गाँवों में गरीबी को कम करना है तो रोजगार के अवसर बढ़ाये जायें, साथ ही यदि हमारे राजनीतिज्ञ, मानवता के भावों से युक्त होकर इस दिशा में काम करें तो निश्चित रूप से गरीब ग्रामीण के जीवन स्तर में सुखद वृद्धि होगी।
- सतेन्द्र शर्मा 'तरंग'
देहरादून - उत्तराखण्ड
 भारत गांव का देश है गांव में कृषि कार्य की जाती है कृषि से वस्तु का उत्पादन किया जाता है जिससे लोगों का पोषण होता है।पोषण करने  वाले लोग  कैसे गरीब हो सकते हैं यह मेरा अपना विचार है शोषण करने वाले को गरीबी कहा जाता है क्योंकि उसके पास भौतिक वस्तु रहते हुए भी उसकी मानसिकता में और और की संभावना बनी रहती है संतुष्ट होता ही नहीं है संतुष्ट वही व्यक्ति होता है जय स्वयं पोषण कर दूसरों का पोषण के लिए सहायक होता ह।  तो ऐसी कार्यक्रम गांव में देखने को मिलता है शहरों में ज्यादातर बड़े लोग होते हैं जो पैसा कमाते हैं लेकिन पोषण की वस्तु नहीं उत्पादन कर पाते। और धनवान कहलाते हैं भौतिक वस्तु से धनवान व्यक्ति सुखी होता है ऐसा नहीं है सुखी तो वही होता है जो समाधानीत होकर जीता है। मानसिकता की गरीब अमीरों में और भौतिकता की गरीब गरीबों में वर्तमान समाज में देखने के लिए मिलता है तो मानसिकता की गरीबी गांव में रहती है की भौतिकता की गरीबी गांव में रहती है इन दोनों का समीक्षा करने पर मानसिकता की गरीब शहरों में और वस्तु की गरीब गांव में होती है जो उनकी आवश्यकता से अधिक विलासिता के लिए नहीं होता आवश्यकता की पूर्ति जरूर हो जाती है अब इस स्थिति को गरीब कहें या अमीर हर व्यक्तिआकलन  कर सकता है।
- उर्मिला सिदार 
रायगढ़ - छत्तीसगढ़
भारत के गांवों में सबसे अधिक गरीबी नहीं है।  भारत के गांवों में रहने वाले न केवल आर्थिक रूप से संतुष्ट हैं, अपितु चरित्र के, मेहमाननवाजी के, अपनेपन के, सादगी के, सरलता के सबसे बड़े अमीर हैं। उनमें न कोई जलन है, न घृणा और न ही किसी प्रकार की लम्पटता।  गांव के लोगों से मिलने के बाद ही मालूम होगा कि वे किस प्रकार अमीर हैं।
- सुदर्शन खन्ना 
दिल्ली
सभी की आर्थिक स्थिति एक  सी नहीं होती ।भारतवर्ष में भी गांव में अधिकांश लोग गरीबी का कहर झेल रहे होते हैं। कभी प्राकृतिक आपदा तो कभी परिवार चलाने के लिए कृषकों को साहूकारों से या अन्य माध्यम से कर्ज लेना पड़ता है जिसको चुकाते चुकाते ही वे परेशान हो जाते हैं और कर्ज चुकने का नाम नहीं लेता। कुछ लोगों की तो बहुत अधिक दयनीय स्थिति हो जाती है।  प्रायः हर साल ही कभी सूखा, कभी बाढ़ ,कभी इल्ली, कभी तुषार कभी ओले कुछ ना कुछ प्राकृतिक बाधा ग्रामीणों को सहन करना पड़ती है। जिससे उबर ना बड़ा मुश्किल हो जाता है। यही कारण है कि भारतवर्ष के गांव में सबसे अधिक गरीबी है। आज के समय में तो कोई गांव में रहना ही नहीं चाहता। सभी को नौकरी की तलाश रहती है यदि उन्नत तरीके से कृषि कार्य किया जाए तो ग्रामीणों की स्थिति सुधर सकती है।
- गायत्री ठाकुर "सक्षम" 
नरसिंहपुर - मध्य प्रदेश
ऐसा होना संभावित है। गाँव के परिदृश्य देखकर तो ऐसा ही आभास होता है। उनके आवास, उनके पहिनने, ओढ़ने,बिछाने के कपड़े, घरेलू सामान देखकर बहुत दुख भी होता है और दया भी आती है। वे जिस तंगहाली में जी रहे होते हैं, यह देखकर उनकी सबसे अधिक गरीबी ही नजर आती है। गाँव के अधिकांश लोगों की ऐसी ही दीनहीन स्थिति होती है। शहरों में भी गरीब लोग हैं और अनेक मुश्किलों में जी रहे हैं, पर गाँव की तुलना में शहरी गरीब बेहतर हैं। इसकी एक वजह गाँवो में पर्याप्त रोजगार का न होना भी है और जो मजदूरी या चाकरी करते हैं, वे शोषित हैं या इसे यूँ माने कि उन्हें उनके श्रम से काम दाम दिया जाता है। इसके  
पीछे इनका अनपढ़ होना, हीनभावना , संकोची स्वभाव और बड़े लोगों के प्रति सम्मान भी है। शासन की योजनाओं का लाभ भी ये इन्हीं कारणों से नहीं ले पाते और शोषण का शिकार हो जाते हैं।
सार यही कि तुलनात्मक दृष्टि से गांवों में सबसे अधिक गरीबी भी है,भुखमरी भी है और शोषण भी है।
- नरेन्द्र श्रीवास्तव
गाडरवारा - मध्यप्रदेश
       भारत के गांवों में नहीं बल्कि शहरों में सबसे अधिक गरीब रहते हैं। चूंकि मैंने धन की चकाचौंध में शहरी धनवानों अर्थात पूंजीपतियों को गरीबी की दरिद्रता से जूझते हुए और गांवों की झुग्गी-झोपड़ियों में दिलों के बादशाहों को करीब से देखा है। 
       मैंने देखा है कि शहरों में तथाकथित शहरी धनवान कैसे दो वक्त की रोटी के लिए घनिष्ठ संबंधों की घनिष्ठता को ताक पर रखकर अपमानित करते हैं? जबकि गांवों में अतिथि को ईश्वर का रूप मानते हुए उसे सर-आंखों पर बैठाकर तीनों वक्त घी लगाकर खाना परोसते हैं। यही नहीं उन्हें अपने लहलहाते खेतों की सैर कराते हैं और उनकी मनभावन सेवा करते हुए नहीं थकते हैं।
       यह भारत के मासूम भारतीय गांववासियों का दुर्भाग्य है कि उपरोक्त शहरी बाबू जब गांवों में अतिथि बन कर आते हैं तो बड़ी-बड़ी हांकते हुए बड़े होने का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करते हैं और जब उनकी आतिथ्य की बारी आती है तो वह नंगे होने में तनिक भी देरी नहीं करते हुए बहानों का सहारा लेकर मासूम ग्रामीणों को शर्मसार करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ते हैं।
       अतः उपरोक्त तथ्यों के आधार पर मूल्यांकनकर्ता स्वयं मूल्यांकन कर निर्णय ले लें कि भारत में गरीब कहां और अमीर कहां रहते हैं?
- इन्दु भूषण बाली
जम्मू - जम्मू कश्मीर
हमारा देश कृषि प्रधान देश है! हमारे गांवों में रोजगार के नाम पर खेती है! जिस गांव की मिट्टी सोना उगलती हो वह गरीब कैसे हो सकता है!  सरकार  उन्हें हर सुविधा देने की पूरी कोशिश करती है! कई योजनाएं तैयार करती हैं किंतु भ्रष्टाचार  एवं प्रभावहीन प्रबंधन की वजह से सरकारी  योजनाएं सफल नहीं हो पाती! 
हां ! गांव में शिक्षा का विकास, खेती करने के नये तकनीकी संसाधनों का विकास  पानी आपूर्ति हो तो अच्छी फसल हो सकती है! 
सरकार की मनरेगा योजना भी गांव के लोगों के कमाई का जरीया है! 
गांव में लोग अपने पैतृक उद्योग और लघु उद्योग से भी अच्छी कमाई कर सकते हैं! दूध का धंधा ,लोहारी, बढ़ई , नाई, मिठाई,  गान की संस्कृति के अनुसार महिलाओं भी सिलाई बुनाई, आचार पापड़ बना मदद कर सकती हैं! गांव में ग्रामपंचायत सब देखते है! गांव की कमाई गांव में ही रहती है! सरकार ने गांव के विकास में पाठशाला, विद्यालय, बिजली की व्यवस्था की ओर भी ध्यान दिया है! मोदी जी ने इस कोरोना काल में गांव को आत्मनिर्भरता की राह दिखाई है! फिर कैसे गांव गरीब हो सकता है! 
गांव का आर्थिक-स्तर ऊंचा होगा तभी देश की अर्थव्यवस्था भी सुदृढ़ एवं सम्पन्न रहेगी! 
           - चंद्रिका व्यास
          मुंबई - महाराष्ट्र
जी बिल्कुल भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबी ज्यादा ही व्याप्त है। गरीबी की रेखा के नीचे ग्रामीण क्षेत्रों में 26रुपये प्रतिदिन पाने वाले व ₹5 प्रतिदिन पाने वाले गरीब व्यक्तियों की गरीबी की दशा भिन्न-भिन्न होती है ।अतः गरीब का कोई एक आर्थिक वर्ग नहीं है ।
परंतु शहरों की अपेक्षा गांव में गरीबी अधिक है यह नितांत सत्य है ।
गरीबी से तात्पर्य मुख्य रूप से रोटी कपड़ा और मकान जैसी आवश्यकता पूर्ति के अभाव से होता है अतः गरीबी रेखा निर्धारित करते समय रोटी कपड़ा और मकान के अलावा शिक्षा एवम स्वास्थ्य, पेयजल व रोजगार जैसी मूलभूत आवश्यकताओं को भी गरीबी की माप करते समय ध्यान में रखा जाना चाहिए , ऐसे में जिनसे आज गरीबी की रेखा से ऊपर वाले भी वंचित  हैं।
 गांव में गरीबी के कई कारण हैं , ग्रामीण गरीबी का मूल कारण कृषि के सामंती उत्पादन संबंधों का होना है ।
स्वतंत्रता के बाद भूमि सुधारों के लिए जो कदम उठाए गए वे अपर्याप्त हैं ,और बड़े किसानों का अधिकार होने से भूमिहीनों की संख्या बढ़ती जा रही है। सभी खेतिहर मजदूरों के परिवार काफी संख्या में छोटे व सीमांत किसान तथा भूमिहीन गैर कृषि क्षेत्रों में काम करने वाले श्रमिक परिवार गरीब है ।
इसका एक कारण और भी है कि गांव में लघु उद्योग एवम कुटीर उद्योग भी अभी अपर्याप्त है। इसकी वजह से गांव के लोग शहर की तरफ पलायन वाद को अपना रहे हैं ।
निश्चित ही अभी भारत के गांव में शहरों की अपेक्षा गरीबी ज्यादा है।
 - सुषमा दीक्षित शुक्ला
लखनऊ - उत्तर प्रदेश
"कभी आंसू तो कभी खुशी बेची, 
हम गरीबों ने बेकसी बेची, 
चंद सांसें खरीदने के लिए रोज थोड़ी सी जिंदगी बेची"। 
बात गरीबी की करें तो  भारत में गरीबी बहुत व्यापक है, देखा जाए  कुछ हद तक गरीबी का स्तर कम हो रहा है लेकिन लगता नहीं की यह आंकड़ा जल्दी कम होगा, 
क्योकीं अगर बात शहरों की करें तो  शहरों मे फिर कोई न कोई कार्य मिल जाता है जिससे गरीब अपना पेट भर सकता है लेकिन अगर बात गांव की की जाए उधर गरीब की हालत वद से वदतर होती जा रही है क्योकीं  गांव में कोई ऐसा कार्यलय नहीं है यहां पर मजदूरी भी आसानी से मिल सके, 
तो आईये आज इसी बात पर चर्चा करते है की क्या भारत के गावों मे़ सबसे ज्यादा गरीबी है? 
हां जी यह तो अटूट  सत्य है कि भारत के ज्यादातर गांव गरीबी  रेखा के भी नीचे के स्तर तक पहुंच चुके हैं, जिसका मूल कारण है मजदूरी तक न मिलना, किसी फैक्टृी का न होना इत्यादी, 
कुछ गांव अभी भी ऐसे हैं जिनमें गाड़ी, बिजली, पानी तक की सुविधा नहीं है वहां के बच्चे क्या तरक्की कर सकते हैं वो तो पढ़ाई से भी वंचित रह जाते हैं इसलिए जब तक गांव का युवक पढ़ा लिखा नहीं होगा तब तक गांव तरक्की नहीं कर सकता, 
 अनुमान है कि विश्व की सम्पूर्ण गरीब आवादी  का तिसरा हिस्सा भारत में है जिसमें ज्यादातर गांव आते हैं, 
अगर विहार कि बात करें यह भारत के सबसे  गरीब राज्यों में से एक है, 
देखा जाए भारत के गावों में लगभग ३७करोड़ लोग गरीब हैं, 
संयुक्त राष्टृ की रिपोर्ट के अनुसार भारत के गावों में गरीबी गहराई से जड़ें जमा चुकी है और इंडैक्स के  अनुसार भारत २०३० तक गरीबी हटाने  के लक्ष्य से काफी दूर है, 
लगता है गरीबी मुक्त भारत का सपना सही पथ पर नहीं है, 
लेकिन नीति आयोग के मुताविक केन्द्र सरकार गरीबी  उन्मूलन के लिए प्रतिवंद है और यह तभी संभव है जब केंद्र व  राज्य सरकार मिल कर कदम  उठाएं, 
अन्त मे यही कहुंगा यहां तक संभव हो सके राज्य और केन्द्र सरकार को कुछ ऐसे प्रयास करने चाहिए जिससे भारत के गांव भी तरक्की कर सकें ताकी गरीब भी अपना शौक पूरा कर सके, 
सच कहा है, 
मजबूरियां हावी हो जाएं, 
ये जरूरी नहीं
थोड़े बहुत शौक तो गरीब भी रखते हैं। 
सरकार को चाहिए हर गरीब के घर चुल्हा जले व हर गरीब पेट भर कर खाना खाए,  इसलिए कुछ ऐसे कारोबार बनाए जाएं जिससे गरीब को कम से कम मजदूरी तो मिल सके  क्योकीं गरीब से  सव्जी तक कोई नहीं  खरीदता, 
सच कहा है, 
"दोपहर तक बिक गया 
बाजार का हर एक झूठ, 
एक गरीब सच लेकर शाम तक बैठा रहा। 
- सुदर्शन कुमार शर्मा
जम्मू - जम्मू कश्मीर
यह सत्य है कि हामारे देश में गाँवों की संख्या ज्यादा है हर पैंतिस कीलो मीटर पर एक नया गाँव मिल जायेगा ।गाँव में रहने वाले ज्यादातर लोग अशिक्षित और गरीब होते हैं । उनकी आमदनी का जरिया खेती होती है । खेती की सफलता प्राकृतिक वर्षा पर निर्भर है । कमाई की कोई नयी योजना नहीं है ।कुछ किसान अच्छे पैसे वाले भी होते हैं लेकिन उससे गरीब या मध्यम श्रेणी के किसानों पर तो असर नहीं पड़ता । अब हम देखें कि बड़े शहरों की विशालकाय फैक्टरियाँ गाँव से आये कामदारों के बदौलत ही चलती हैं । हमलोगों की ऊँची -ऊँची इमारते गाँव से आये मजदूरों के मेहनत की वजह से खड़ी की गयी हैं ।कोरोना काल में मजदूरों की घर वापसी ने इस बात को स्पष्ट कर दिया कि शहरी जिंदगी भी गाँव के कामदारों के बिना नहीं चल सकती है ।दूसरी तरफ यह भी ध्यान देने योग्य है कि गाँववालों  के पास हुनर भी । वे हर छोटे काम को करने मेंभी नहीं हिचकिचाते । अतः मेरी दृष्टि से भारत के गाँवों मे सबसे अधिक गरीबी है । मैने देखा है किस तरह वो लम्बी -लम्बी दूरी पैदल तय कर लेते हैं ।गाँव में सभी के पास जीवन की आधार मूल सुविधायें नहीं है । सफर करते समय हम रोशनी तक दूर -दूर पर दे खते हैं ।
लेकिन हमारी सरकार प्रयास रत है ,सबको शिक्षीत  कर गरीबी को दूर किया जा सकेगा ।कई ग्रामीण बच्चे शहरों में ऊँते पदों पर आसीन हैं ।संसार का नीयम है सब कुछ मिलाके संसार चलता है ।
- कमला अग्रवाल
गाजियाबाद - उत्तर प्रदेश
   जी हां,भारत के दूर-दराज के गांव में अभी भी यथावत गरीबी बनी हुई है क्योंकि वहां कोई आसपास उद्योग धंधे, कल कारखाने फैक्टरियां आदि नहीं हैं जिससे लोगों को रोजगार उपलब्ध हो सके। यातायात के साधन न होना, उचित बिजली, शिक्षा, चिकित्सा व्यवस्था का उपलब्ध न होना आम बात है।  आज भी उनकी स्थिति बदतर है।
    गरीबी के कई कारण रहे हैं। स्वतंत्रता के बाद भी भूमि सुधारों के लिए जो कदम उठाए गए वह पर्याप्त नहीं हैं साथ ही भूमि पर बड़े किसानों का अधिकार होने के कारण भूमिहीनों की संख्या बढ़ती जा रही है-यह भी मूल कारण है। आय की असमानता बरकरार है।
      सरकार द्वारा गरीबी निवारण हेतु अनेक कार्यक्रम चलाकर पेपर पर अरबों रुपए खर्च किए जा रहे हैं पर इसका पूरा और समुचित लाभ गरीबों तक नहीं पहुंच पा रहा है। सरकार को उचित कदम उठाने की जरूरत है। गरीबों के लिए पर्याप्त भूमि,जल, शिक्षा, स्वास्थ्य, चिकित्सा, परिवहन सुविधा का विस्तार करने और किसानों का शोषण रोकने की सख्त जरूरत है। 
   सरकार को गरीबों के लिए आर्थिक नीतियां बनाकर गांव की गरीबी को दूर करने की जरूरत है और हमारे देश की मीडिया को भी इमानदारी पूर्वक अपने कर्तव्य का निर्वाहन करते हुए दूरदराज के गांवों की स्थिति पर प्रकाश डालने की जरूरत है ताकि सरकार जागरूकता के साथ उनके बदतर स्थिति पर ध्यान दे सके।
                        - सुनीता रानी राठौर
                          ग्रेटर नोएडा - उत्तर प्रदेश
भारत मुख्यतः गावों का देश है क्यूंकि भारत की आबादी का 70प्रतिशत आज भी गावों में बसता है ।शहरों में भले ही रोजगार के अधिक अवसर होंगे लेकिन समस्याएँ भी अत्यधिक हैं । पर दूसरी तरफ3गावों में रोजगार के अवसर कुछ कम भले ही होंगे परंतु यहां का जलवायु  खानपान और जीवन सादा और स्वास्थ्यवर्धक है ।आज युवा भले ही शहरों की तरफ पैसे के लिये दौड रहे हैं किन्तु ये उनके लिये मृग्तृश्णा से अधिक कुछ नहीं होता ।यदि शहर में एक युवा 50हजार सेलरी लेता है तो उसका खर्चा भी 40हजार होता है बचता है मात्र 10हजार।
    उधर गावं में यदि युवा स्वरोजगार से 25हजार कमाता है तो वो घर गावं में रहते हुए कहीं अधिक बचत कर लेता है । हम अन्त में कह सकते हैं कि भारत के गावं अति समृद्ध हैं गरीब नहीं । केवल जरुरत है आज युवा को अपना नजरिया बदलने की ।
   -  सुरेन्द्र मिन्हास 
बिलासपुर - हिमाचल प्रदेश
भारत के गाँव दिल से बहुत अमीर है l प्रेम पुजारी हैं, भोले भाले हैं l शहरों की चकाचोंध उन्हें भी आकर्षित करती है और वे पैतृक व्यवसाय छोड़कर गाँव से पलायन करते हैं l रोटी, कपड़ा और मकान जीवन की आवश्यकता है, जो भरपूर है l दूध, दही, छाछ, घी की कमी नहीं l फिर हम कैसे कह सकते हैं, गाँव में ग़रीबी है l हाँ, जब उनकी योजनाओं का लाभ उन तक नहीं पहुँच पाता है l उनके श्रम का शोषण होता है l
जीतना लाभ उनको मिलना चाहिए, नहीं मिल पाता है तब स्थिति दुःखद हो जाती है l वे अन्नदाता हैं, प्रथम सरकार का कर्तव्य कृषक की समस्याओं को सुलझाना है l हमारे देश का पहला आधार स्तम्भ कृषक ही हैंl
    - डॉ. छाया शर्मा
अजमेर - राजस्थान

" मेरी दृष्टि में " गांव का मतलब गरीबी बन कर रह गया है । आज भी शिक्षा का प्रसार गांव में बहुत कम है । मकानों की स्थिति भी अच्छी नहीं है । सुविधा नाम मात्र की है । सरकार के लिए सब कुछ कर पाना भी सम्भव नहीं है ।
- बीजेन्द्र जैमिनी

Comments

Popular posts from this blog

वृद्धाश्रमों की आवश्यकता क्यों हो रही हैं ?

हिन्दी के प्रमुख लघुकथाकार ( ई - लघुकथा संकलन ) - सम्पादक : बीजेन्द्र जैमिनी

लघुकथा - 2023 ( ई - लघुकथा संकलन )