क्या कभी किसी की सोच को बदला जा सकता है ?

कहते हैं कि सोच सभी की अपनी - अपनी होती है । जो पूर्व कर्म , संस्कार व परिवेश पर आधारित होती है । जिससे बदला जाना सम्भव नहीं है । फिर भी कर्म से बदलने की क्षमता को परखा जा सकता है । यही कुछ जैमिनी अकादमी द्वारा " आज की चर्चा " का प्रमुख विषय हैं ।अब आये विचारों को भी देखते हैं : -
हाँ! बदला तो जा सकता है। पर इतना आसान भी नहीं है किसी की सोच को बदलना।
सर्वप्रथम तो हमें स्वयं को देखना है कि क्या हम किसी की सोच को बदलने के अधिकारी हैं। अर्थात हमारी स्वयं की सोच और कर्म क्या ऐसे हैं कि हमारे व्यक्तित्व से कोई प्रभावित होकर हमारे विचारों का अनुसरण करे। 
इसके साथ ही यह भी आवश्यक है कि जिसकी सोच को बदलने के प्रयास हो रहे हैं, क्या वह आपके विचारों को मन से सुनने के लिए तैयार है? यदि नहीं तो" भैंस के आगे बीन बजाने" वाली कहावत ही चरितार्थ होगी और परिणाम शून्य ही आयेगा। 
बिन्दु और भी हो सकते हैं परन्तु सबसे महत्वपूर्ण बिन्दु यह है कि किसी की सोच को बदलने के पीछे हमारा उद्देश्य क्या है? यदि हमारा उद्देश्य "बहुजन हिताय, बहुजन  सुखाय" का भाव लिए हुए है तो हमारा प्रयास सार्थक होगा अन्यथा व्यक्तिगत लाभ अथवा स्वार्थ भाव से प्रेरित होकर किसी की सोच को बदलने की कोशिश में "मुँह की ही खानी पड़ती है"। 
सार यही है कि....... 
"जीत किसी के मन-मस्तिष्क पर मुश्किल नहीं है कोई। 
बशर्ते स्वयं आग में तपकर भूषण बना हो कोई।।"
उसके ही सुर में सुर मिलाता है यह जमाना 'तरंग' 
उदाहरण से पहले प्रश्न का उत्तर बना हो कोई।।" 
- सतेन्द्र शर्मा 'तरंग' 
देहरादून - उत्तराखण्ड
किसी परिपक्व  सोच को बदलना कुछ कठिन हो सकता है परंतु असंभव नहीं । इस विषय पर उस व्यक्ति से सामिप्य काफी हद तक मायने रखता है  ,जिसकी सोच को हम बदलना चाहते हैं -क्या वह हमारा नजदीकी रिश्तेदार है, परिवार का सदस्य है, पति ,बहन, भाई अथवा संतान है। किसी की सोच को बदलने के लिए दैनिक प्रेरणादाई व्यवहार अति आवश्यक है,जिसमें प्रेम ,स्नेह, दयालुता जैसे गुणों का समावेश भी आवश्यक है । एक पत्नी अपने पति की नकारात्मक सोच को सकारात्मक सोच में बदलने में कई बार सफल भी हो जाती है। मां-बाप अपनी संतान में बचपन से ही ऐसे गुणों का समावेश करने का प्रयास करते हैं जिससे भविष्य में किसी प्रकार के नकारात्मकता उनके व्यवहार में ना आए। हमारे इतिहास में ऐसे अनेकों उदाहरण है जहां विकृत मानसिक सोच को सुधारने का प्रयास किया गया है और सुधार भी हुआ है,लेकिन उसके लिए निरंतर दैनिक प्रयास  और अनुकूलित वातावरण अपेक्षित है। दैनिक व्यवहार से दूरस्थ किसी का व्यवहार ,सोच  बदलना मुश्किल अवश्य हो जाता है। 
- शीला सिंह 
बिलासपुर - हिमाचल प्रदेश
किसी की केवल सोच को ही नहीं, व्यवहार को भी बदला जा सकता है।धार्मिक, सामाजिक, सार्वजनिक जीवन में ऐसे बहुत उदाहरण है, जिनके सोच बदलने से क्रांतिकारी परिवर्तन हुए। हमारे देश की आजादी का आंदोलन इसका उत्कृष्ट उदाहरण है। पिछली सदी के सातवें दशक का जे पी आंदोलन भी उल्लेखनीय है। व्यक्तिगत उदाहरण में  हम मुंशीराम से स्वामी श्रद्धानंद बने,श्रेष्ठ विचारक का नाम नहीं भूल सकते।
राजनीति के क्षेत्र में होने वाले हृदय परिवर्तन को सोच परिवर्तन नाम नहीं देना चाहिए,वो तो अवसरवादिता है। इसलिए सोच परिवर्तन के मामले में राजनीतिक दल अपवाद है।
श्रेष्ठ विचारक, मीडियाकर्मी, मोटिवेटर्स,धर्म गुरु सोच परिवर्तन का कार्य ही तो करते हैं।यह सब सकारात्मक, सृजनात्मक सोच का विकास करते हैं।
इसके विपरीत आतंकी संगठन भी सोच परिवर्तन करके नकारात्मक,विध्वंसक सोच को बढ़ाने में लगे रहते हैं।
सोच, विचार को बदला जा सकता है।
- डॉ.अनिल शर्मा 'अनिल'
धामपुर- उत्तर प्रदेश
"कर्मो में हो ताकत
ज़माना बदल सकता है
विचारों में हो शुद्धता 
अन्य विचारों का पैमाना बदल सकता है "
 जी बिल्कुल अगर आपके कार्यो में विचारों में अनुभव व सात्विकता है तो आप निश्चित ही अन्य के विचारों पर प्रभाव डाल सकते हैं और सामने वाले इन्सान के विचार बदलने तक का हौंसला रखते हैं उदाहरण हेतु 
आज शहीद दिवस है सुखदेव, भगत सिंह, राजगुरु जैसे देश के जवानों का।
देखिए नाम आते ही हम सब में देशभक्ति स्वत: जाग जाती है तो नि:संदेह हम अपने विचारों से सोच से अन्य की सोच बदल सकते हैं। ।।
- ज्योति वधवा "रंजना "
बीकानेर - राजस्थान
     मानवता की विचारधारा दिग्भ्रमित हैं, जिसके परिपेक्ष्य में एक रुपी निर्णायक भूमिका अदा करने में विभिन्न प्रकार से परेशानियों का सामना करना पड़ता हैं, वर्तमान परिदृश्य में, धीरे-धीरे विचार तंत्रों में परिवर्तन की लहर तो आई हैं, किंतु  किंचितमात्र  लेकिन किसी की सोच को बदलना एक टैरी खिलवाड़ के जैसा हैं, यही यथार्थ का परिचयात्मक का बोध हैं, दूसरे की सोच बदलने की जगह, अपना अनमोल समय ब्यर्थ बर्बाद नहीं करते हुए, स्वयं अपने आपको बदलते हुए, अपनी विचारधाराओं को वृहद स्तर पर बदलने की आवश्यकता प्रतीत होती हैं ?
- आचार्य डाॅ.वीरेन्द्र सिंह गहरवार 'वीर' 
  बालाघाट - मध्यप्रदेश
किसी भी व्यक्ति की सोच को बिलकुल बदला जा सकता है।इंसान के जीवन में कई ऐसे पड़ाव आते हैं,कई ऐसे मोड़ आते हैं जब वह आत्म चिंतन करता है और खुद से संवाद करता है और समय रहते अपनी नकारात्मक सोच को सकारात्मक में तब्दील कर अपना जीवन सँवार लेता है।
ऐसा भी देखा गया है जब व्यक्ति अवसाद में रहता है,किसी घटना से आहत रहता है तब अपनी जीवन लीला ही समाप्त कर लेना चाहता है,लेकिन मनोवैज्ञानिक तरीक़े से या फिर अपनों के प्रेम भरे व्यवहार से उसकी सोच बदल जाती है।
कभी कभी तो ग़लतफ़हमी का शिकार हो कर किसी के प्रति घृणा भाव उत्पन्न हो जाता है लेकिन सच्चाई का पता चलने पर उसे पछतावा होता है।हाँ !सवेरे का भूला शाम को घर आ जाए ,तो इससे बढ़ कर कुछ भी नहीं ।परिपक्व व्यक्ति वहीं है जो अपनी ग़लत सोच को बदल कर गुरू से बड़ा या छोटा उनसे सीख कर आगे बढ़ता है।
- सविता गुप्ता
राँची - झारखंड
किसी के सोच को बदला नहीं जा सकता है। क्योंकि की सबकी अपनी अलग-अलग सोच होती है। कौन किस चीज को किस दृष्टिकोण से सोचता है यह वही जनता है। किसी की सोच को हम नहीं बदल सकते हैं। एक बच्चा भी अपनी तरह से सोचता है।और एक बूढ़ा भी अपनी तरह से सोचता है। हम उसकी सोच नहीं बदल सकते हैं। अपवाद स्वरूप किसी एक व्यक्ति या वस्तु के बारे में किसी के दृष्टिकोण को समझाया जा सकता है तो हो सकता उसकी सोच उस व्यक्ति या वस्तु के लिए बदल जाय। लेकिन सोच बदलना मुश्किल है।
- दिनेश चन्द्र प्रसाद "दीनेश" 
कलकत्ता - पं.बंगाल
सोच को बदला जा सकता है परंतु मनोवृति की जो आदत होती है उसे बदल पाना बेहद ही मुश्किल होता है ।हम कभी भी किसी की सोच को बदल सकते हैं जब तक हम सकारात्मक रूप से उसे ऊर्जा और अपनी संवेदनाओं  को उसके सामने प्रस्तुत करते हैं ।तो उसके सोच में एक नयापन और व्यवहार झलकता है जीवन की हर एक गतिविधियों को आगे ले जाने की प्रक्रिया में सोच का सकारात्मक होना बेहद ही लाभप्रद सिद्ध होता है। कभी किसी की सोच को बदल पाना इतना मुश्किल नहीं है परंतु उसकी आदत सोच बन जाए तो बेहद मुश्किल हो जाती है आज के परिवेश में किसी की सोच को बदल पाना अपने ऊर्जा ऊर्जा और सकारात्मक शब्दों से किया जा सकता है उदाहरण सहित अवसाद में भी बहुत सारे प्रेरणास्रोत लोगों की बातें कर सकते हैं ।अर्थात सोच का बदलना अति आवश्यक हो जाता है या प्रकृति का नियम भी है कि हम आसपास के गतिविधियों से निरंतर हम सीखते हैं और अपनी सोच को बदल कर आगे बढ़ने की कोशिश करते हैं हमारी सोच अगर एक जगह ठहर जाए तो जीवन की गतिविधियां रुक जाती है। सोच बदलना बेहद आवश्यक होना चाहिए ताकि जिंदगी की हर एक सफलताओं को प्राप्त कर सके। किसी की सोच को बदल पाना अपने लिए एक सकारात्मक ऊर्जा देती है। अगर वह व्यक्ति नकारात्मक पहलूँ से अपने जीवन की गतिविधियों को निरंतर कर रहा है तो उसके सोच को बदलना अति आवश्यक हो जाता है ।हम अपने कार्य और प्रगति से प्रेरणास्रोत क्षेत्र में आगे बढ़ कर सभी की सोच को बदलने की कोशिश जरूर कर सकते हैं। परंतु यह कह पाना कि यह कोशिश निरंतर सफलता प्राप्त करेगी थोड़ी सी मुश्किल होती है ।परंतु अपने हौसले से अपने कार्य से कर्म से किसी की सोच को बदल सकते हैं ।
- अंकिता सिन्हा कवयित्री
जमशेदपुर - झारखंड
हमारा मन बहुत चंचल होता है। भटकाव का खटका सदैव बना रहता है। इसीलिए ही तो हमारे माता-पिता, गुरू हमें अच्छी संगत करने और बुरी आदत वालों से बचने की सलाह दी जाती है। क्योंकि यह स्वभाविक रूप से सामान्यतः संभावित है कि कोई बात, कोई आदत, कोई कार्य निरंतर करते रहने से वह सोच और स्वभाव में ढलने में सहज हो जाती है। प्रवचन,भाषण, कथा,संवाद आदि का मूल आधार भी यही है कि सोच में उसे लाया जावे। 
अतः सार यही है कि किसी की सोच को बदला जा सकता है। हाँ, लेकिन इसमें कितना श्रम और समय लगेगा यह कहना कठिन है।
- नरेन्द्र श्रीवास्तव
गाडरवारा - मध्यप्रदेश
सोच दो प्रकार के होते हैं
(1) सकारात्मक सोच  (2) नकारात्मक सोच
सकारात्मक सोच तो अपने आप में सुलझी हुई सटीक सोच होती है पर जिनके मन में नकारात्मक सोच भरी हुई है उसे कोई नहीं सुलझा सकता।अगर हम कुछ राय भी देंगे तो नकारात्मक सोच धारी व्यक्ति उसे कभी स्वीकार नहीं करेगा।वह यही सोचेगा कि उसे नीचा दिखाया जा रहा है और करीब होते हुए भी हमसे दूर हो जाएगा।नकारात्मकता तभी दूर होगी जब स्वयं उस विचार का पोषक उसे सुधारने की कोशिश करेगा।इस प्रकार हम यह अनुभव करते हैं कि सोच व्यक्तिगत भाव है इसे कोई दूसरा नहीं सुधार सकता।इसे व्यक्ति स्वयं अपने अनुभवों के द्वारा ही सुधार सकता है।
- इन्दिरा तिवारी
रायपुर-छत्तीसगढ़
"लोगों की सोच से चलोगे तो 
अपने आप को छलोगे, 
अपनी सोच से चलोगे तो 
फूलों के समान खिलोगे"। 
इंसान के विचारों में हर वक्त बदलाव होता रहता है, 
कभी सोच साकारात्मक होती है कभी नकारात्मक हो, जाती है इसका मुख्य कारण है कि हम किस प्रकार का कार्य करते हैं 
हम जो देखते हैं सुनते हैं अनुभव करते हैं उसी से हमारी सोच का निर्माण होता है और जैसी हमारी सोच होती है वैसे ही हमारे कार्य होते हैं, 
तो आईये आज इसी बात पर चर्चा करते हैं कि क्या हम किसी की सोच को बदल सकते हैं, 
मेरा मानना है कि सोच को बदलने के लिए फीलींग को ू बदलना होगा क्योंकी कई फीलिंगंस के बाद एक सोच बनती है इसलिए अगर किसी की सोच को बदलना हो तो सबसे पहले उसकी फीलिंग को बदलना होगा क्योंकी फीलिंग को कंटृोल करोगे तो थाट्स इतनी जल्दी नहीं बने़गे, 
इसलिए जीवन में कुछ भी हासिल करने के लिए इंसान को अपनी सोच को बदलना होगा बहुत जरूरी है क्योंकी सोच बदलना ही सफलता के मार्ग का पहला कदम है जो इंसान अपनी सोच को  बदलने की कोशिश नहीं करता वो मुश्किलों के साथ ही जीवन जीता है। 
जिससे  मुश्किलें ज्यादा बढ़ जाती हैं, 
कहने का भाव अगर आप मन में कुछ भर कर जियोगे तो  मन भर कर जी नहीं पाओगे, मनुष्य की सोच ही संसार का सबसे  कठिन भाव है इसलिए हमें दुसरे की सोच में पाजिटिब विचारों को लाना होगा तभी जा कर किसी की सोच को बदला जा सकता है, क्योंकी सोच कईबार हमारे मन में हीन भावना ले आती है जब हम अपने से ऊपर के लोगों को देखते हैं तो अपने आप को नीचा समझ लेते हैं  तो सोचते हैं हम संसार मै कुछ भी नहीं हैं ऐसी सब बातों को मन से हटाने से हम किसी व्यक्ति के मन मै़ पाजिटिब विचार पैदा कर सकते हैं कि तुम जो कुछ हो अपने लिए व अपनों के लिए वहुमुल्य हो आप ही अपनों का संसार हो  ऐसी पाजिटिब बातों से हम दुसरे के ंन में बदलाब ला सकते हैं जिससे उसकी सोच को बदला जा सकता है। जब वो यह सारी बातों को ध्यान से सुनेगा तो वो अपनी सोच को तब्दील कर सकता है वरना किसी की सोच को बदलना इतना आसान नहीं है  जब इंसान एकदम से समस्या को समझेगा व अपने मानसिक अवरोधों को पहचानेगा तो वो  अपनी सोच को बदल सकता है। 
- सुदर्शन कुमार शर्मा
जम्मू - जम्मू कश्मीर
दूसरों की सोच व विचारों को बदलना बहुत कठिन है परंतु असंभव नहीं है। स्वभाव से मनुष्य यही समझता है कि वह ठीक है और दूसरे गलत। कहीं पढ़ा था कि "यदि आप किसी को अपना शत्रु बनाना चाहते हैं तो उसे कहिए कि वह गलत है।" हर व्यक्ति ज्यों ज्यों बड़ा होता है उसके मूल्य, जीवन दर्शन व विचार निश्चित हो जाते हैं। उसकी सोच उसके पारिवारिक समाजीकरण, सामाजिक परिपेक्ष्य अनुसार पनपती है। इसमें पारंपरिक मूल्यों का भी योगदान होता है। जैसे जैसे हम परिपक्व होते हैं हमारे विचार भी दृढ़ होते जाते हैं। परंतु आज के डिजिटल युग में टैक्नोलॉजी के बदलते आयामों के साथ हमारी जीवन शैली, हमारे दृष्टिकोण व सोच भी बदल रहे हैं। 
हर नई पीढ़ी को लगता है कि वे अपने बड़े बूढ़ों की सोच को नहीं बदल सकते। विशेषकर पुराने रीति रिवाजों को बदलना उनके लिए बहुत कठिन होता है। दूसरे की सोच को बदलना है भी बहुत कठिन।
फिर भी यदि आप किसी के विचारों से असहमत हैं तो उसका उपहास उड़ाए बिना तर्क तथा उदाहरण के साथ अपनी बात रखें, शुभ चिंतन करें और खुले मन से उनकी बात भी सुनें। तर्क शीलता व तथ्यों पर आधारित विचार विमर्श से दूसरे के विचारों को प्रभावित किया जा सकता है। इसके लिए वस्तुनिष्ठ  खुला मन व प्रभावशाली प्रतिपादन की कला चाहिए। यदि आपके तर्क ठोस तथ्यों से भरपूर है और दूसरे को पता है कि आप उसके शुभ चिंतक हैं तो वह किसी विषय के बारे मे अपनी सोच बदल सकता है। 
- डॉ नीलिमा डोगरा
नंगल - पंजाब
अपनी जीवन कभी बदल नहीं सकते। लेकिन जरूरत है अपनी सोच को बदलें।जीवन में संतुष्ट होने के लिए बदलाव के अनुरूप आपको बनना होगा। बदलने के लिए पहला कदम अपना नकारात्मक सोच बदलें।
यह सबसे बड़ा कठिन कदम होगा लेकिन दृढ निश्चय और सही मानसिकता के साथ आप हर चीज में जीत हासिल कर सकते हैं। इसके लिए इन बिंदु को अमल में लाएं;--
१) सही ढंग से समस्या को समझें। 
२) अपने मेंटल ब्लोकस  पहचानने।
३)उन विचारों और विश्वासों पर प्रश्न उठाएं जो आपको दुखी कर रहे हैं।
४) अपने एटीट्यूड को काम मे
लाए ।
५) खुद को ताकत दे।
६) कार्य योजना बनाएं।
७) योगा करें अच्छे से सोए और सही आहार लें।
लेखक का विचार:---सोच को बदला जा सकता है इसके लिए आत्मविश्वास बनाए रखने की जरूरत है।आपके चारों ओर आप को मोटिवेट करने वाला हमेशा हो तो आप कुछ अच्छा कर सकते हैं।खुद को बदलने का मतलब पहले फिजिकल तौर पर बदलाव लाएं।
- विजयेन्द्र मोहन
बोकारो - झारखंड
बिल्कुल बदला जा सकता है किसी दूसरे की सोच को भी और स्वयं की सोच को भी । सोच बदल कर ही डाकू से महर्षि वाल्मीकि बनने की जीवन यात्रा उनकी बदलती सोच का ही सुपरिणाम था  ,डाकू अंगुलिमाल या महात्मा बुद्ध हो या गोस्वामी तुलसीदास जी के जीवन में आये अकल्पनीय बदलाव उनकी  सोच बदलने के कारण ही हुए ।
उन्होंने स्वयं को स्वप्रेरणा से बदला या किसी और कि प्रेरणा से मगर सोच तो बिल्कुल बदली, और उनका यही बदलाव ऐतिहासिक बन गया ।
 आपके जीवन में कुछ भी चल रहा है, क्या आप जानते हैं कि आपका जीवन क्यों अटका हुआ है ।
ज्यादातर आपके जीवन का हर एक पहलू दूसरे पहलुओं को भी प्रभावित् करता है।  किसी  में बदलाव लाने की जरूरत हो उसकी सोच की बदलना हो  तो यह सब कुछ किया जा सकता है। बस थोड़ा अतिरिक्त काम होगा। जिस व्यक्ति में बदलाव चाहते हैं उस व्यक्ति के मानसिक अवरोधों को पहचाने, किस तरह की सोच उसका कुछ बेहतर करने से रोक रही है अवलोकन करें,,,उसके विचारों व विश्वासों पर प्रश्न उठाएं,, जो व्यक्ति को लगातार तंग कर रहे हैं उन विषयों का अवलोकन कर उन पर चर्चा करें,,, उसकी सोच को एक बेहतरीन सकारात्मक दिशा देने का प्रयास करें ,और धीरे-धीरे मोड़ने का प्रयत्न करें ।अपनी वाणी और विचार प्रवाह तथा सुंदर आचरण को प्रस्तुत करके माध्यम बनाकर एवम दूसरे उदाहरण प्रस्तुत करते हुए ,स्वयं को या किसी अन्य व्यक्ति की सोच को भी बदला जा सकता है,,, सारे समाज की सोच को भी बदला जा सकता है ।
जरूरत है तो बस जागरूकता की संकल्प शक्ति की ।
- सुषमा दीक्षित शुक्ला
लखनऊ - उत्तर प्रदेश
हां, किसी की सोच को बदलना संभव है। किसी के बारे में किसी की सोच उसके कर्म, व्यवहार या चरित्र को लेकर विकसित होती है। यह सोच घृणात्मक, नकारात्मक भी हो सकती है तथा आधारहीन हो सकती है। परन्तु किया गया ऐसा कर्म, व्यवहार या चरित्र जो उस विकसित सोच के विपरीत हो किसी की सोच को बदल सकता है।
- सुदर्शन खन्ना 
दिल्ली 
किसी भी मानव की सोच अपने आप में प्रचंड और शक्ति संपन्न होती है वह यदि जीवन में नित्य प्रति स्वाध्याय, आत्ममनन करता है तो वह अल्पशिक्षित एवं अभावग्रस्त परिस्थितियों में भी अपनी आदर्शवादी अंतः प्रेरणा से सोच की दिशा को बदल सकता है पर सकारात्मक चिंतन प्रक्रिया में ही यह संभव है। इससे सोच तो बदलती ही है परिस्थितियां परिवर्तित  एवम जीवन जगत में सुधार भी होता है। यह प्रत्यक्ष दिखाई देने वाला सत्य होता है।
 - डॉ. रेखा सक्सेना
मुरादाबाद - उत्तर प्रदेश
  जीवन एक साँचा है। जिसे मन चाहे साँचे में कभी भी ढाला जा सकता है। कहने का तात्पर्य यह है कि संतुष्ट होने के लिए अपनी सोचों को बदला जा सकता है। हालांकि यह बदलाव लोहे के चने चबाने के समान होता है। परंतु जीवन में असंभव भी कुछ नहीं होता। बस आत्मविश्वास एवं दृढ़ संकल्प की आवश्यकता होती है। अपनी सोच तो क्या समस्त कायाकल्प बदला जा सकता है।
       सर्वप्रथम हमें चाहिए कि हम उन विचारों और विश्वासों पर प्रश्नचिन्ह लगाएं जो हमें विचलित एवं कष्ट दे रहे हैं। उन कष्ट रूपी चुनौतियों का मूल्यांकन करें और उन चुनौतियों पर स्वयं चुनौती बन कर टूट पड़े। 
       मैंने अपने साधारण शोध में पाया है कि भ्रष्ट से भ्रष्ट न्यायाधीश, अधिवक्ता, न्यायमित्र, डाक्टर, विशेषज्ञ, अधिकारी, कर्मचारी, नेता अभिनेता सब के सब धराशाई हो जाते हैं। यही नहीं बल्कि सकारात्मक सोच बनने पर पागल को बुद्धिमान और विद्वान कहने में परिवार, समाज और न्यायालय भी समय नहीं लगता। इसलिए कहते भी हैं कि धैर्य अर्थात सब्र का फल मीठा होता है।
       अतः स्पष्ट शब्दों में कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी कि बदलने वाले अपनी सोच तो क्या पूरी सृष्टि की सोच बदलने का साहस रखते हैं और अपनी बुद्धिमत्ता का डंका बजाते हुए सर्वोच्च बर्फीली चोटियों पर तिरंगा फहराते हुए विश्व कीर्तिमान स्थापित कर देते हैं।
- इन्दु भूषण बाली
जम्मू - जम्मू कश्मीर
     किसी की सोच को बदलना न मुमकिन तो नही कठिन आवश्य है।सोच व्यक्तितव की परछाई होती है। किसी को सोच को बदलने का मतलब उसके व्यक्तित्व को बदलना। हम परिवार में रहते हुए एक दूसरे को प्रभावित करते हैं। एक दूसरे की सोच को काफी हद तक बदल लेते हैं लेकिन किसी की सोच को बदलना बहुत मुश्किल है। 
        आज भागदौड़ की जिंदगी में किसी दूसरे को बदलने में समय लगाने से अच्छा है खुद की सोच सकारात्मक बनाना। अगर हमारी सोच सकारात्मक है तो हमें सब ओर अच्छा ही दिखाई देगा।अगर हमारी ही सोच नकारात्मक है तो हमें किसी में भी कोई अच्छाई नजर नहीं आयेगी।किसी ने ठीक कहा है 
    "नजरें बदलो तो नजारे बदल जाएंगे "
- कैलाश ठाकुर 
नंगल टाउनशिप - पंजाब
अपना विचार बदलना आसान होता है पर दूसरों की सोच को बदल पाना इतना आसान नहीं परंतु प्रत्येक इंसान का विचार  समय के साथ बदलता है। जब इंसान के मन में यह बात बैठ जाएगी कि इस काम से हमें फायदे होगा या हमारे हित में हैं तब वह धीरे-धीरे खुद को बदलने के लिए मजबूर हो जाता है।
  पूरे समाज की सोच में भी बदलाव आ जाती है। पहले लड़कियों के प्रति  शिक्षा से संबंधित ,जल्द शादी करने से संबंधित जैसी अनेक बातें जो लोगों के हृदय में थी वह समय के साथ लोगों के विचार में परिवर्तन आया और लोगों की सोच में बदलाव आए और आज जितना लोग लड़कों को पढ़ा रहे हैं उसी तरह अपनी लड़कियों को पढ़ाने के लिए भी आगे आ रहे हैं। दहेज संबंधी सामाजिक कुरीतियां भी धीरे-धीरे खत्म होने लगी है। 
     लोगों के विचार में बदलाव आ रहे हैं। हां यह भी सही है कि अचानक किसी की सोच को बदलना नामुमकिन होता है पर समय के साथ अधिकांश समझदार लोग अपनी सोच में बदलाव लाते हैं। अगर हमारे पारिवारिक, सामाजिक और देश के हित में कार्य हो रहे हैं या होने चाहिए उसके अनुकूल लोगों का व्यवहार और विचार बदल जाता है और यही समय की मांग भी है इसी में सभी की भलाई छुपी रहती है।
   एक ही विचार पर अडिग रहे, समय और जरूरत के अनुसार हम अपने विचारों में बदलाव नहीं लाए तो हमारा जीवन कूपमंडूक की भांति या तालाब के जमे हुए बदबूदार पानी की तरह सड़ांध उत्पन्न करता रह जाएगा। समय और जरूरत के अनुसार कदम से कदम मिलाकर बढ़ते रहें और अपने विचारों को उसके अनुकूल ढालने का प्रयास करते रहें। आसपास के दूसरे लोगों की सोच भी अपने आप बदल जाएगी।
                    सुनीता रानी राठौर 
                 ग्रेटर नोएडा -  उत्तर प्रदेश
 अवश्य बदला जा सकता है। गलत दिशा में या नकारात्मक सोच को सकारात्मक सोच में जरूर बदला जा सकता है। क्योंकि मनुष्य अज्ञानता व नकारात्मक सोचता रहता है। अगर उसे सही की ज्ञान  दिया तो उसकी सोच जरूर बदल सकता है ।क्योंकि जो भी गलती करता है। ना समझ के कारण गलत करता है। अगर उसे सही समझ दिया जाए, तो वह सही कार्य कर सकता है। कोई भी कार्य करने के पहले मानसिकता में सोच विचार आता है। बिना विचार किए ना तो व्यवहार करते हैं, न तो कार्य करते हैं । अनुभवी व्यक्ति सही सोच विचार कर कार्य करता है। प्रेरित होकर मनुष्य अपने सोच में बदलाव ला सकता है। किसी की सोच को प्रेरित कर बदला जा सकता है।
 - उर्मिला सिदार 
रायगढ़ - छत्तीसगढ़
सोच कोई स्थायी वस्तु नहीं है वह हृदय का भाव है जो परिस्थिती और परिवेश के संग बदलता रहता है । लेकिन कभी -कभी इंसान की हट कट्टर सोच के रुप में बदल जाती है । अपनी सोच को वह इतना महत्व पूर्ण मान लेता है वह कट्टर विचार धारा का रुप ले लेती है जिसको बदलना मुश्किल होता है ।लेकिन जीत सकारात्मक विचारों की होती है ।उसी तरह जब पत्थर और पानी का  टकराव होता है तो प्रयास रत पानी अपना रास्ता बना ही लेता है । विचारों का मंथन मनमें चलता ही रहता है और मंथन के  परिणाम से हम सब अवगत है ।अमृत निकल कर बाहर आता है ।अमृत का स्पर्श क्षण भर के लिए भी हृदय से होता है तो जीर्ण -शीर्ण  विचार धारा टूट कर  बिखर जाती है । विचार समय -समय पर बदलते रहते हैं  ।उसमे परिवेश का बहुत बड़ा हाथ होता है ।
- कमला अग्रवाल
गाजियाबाद - उत्तर प्रदेश
परिवर्तन ही जीवन का नियम है तो हम अपनी और दूसरों की सोच में परिवर्तन क्यों नहीं कर सकते l हमारे विचारों में परिवर्तन किसी भी प्रकार के परिवर्तन का आधार है l अतः सोच को सही सकारात्मक दिशा देना अनिवार्य है और इस क्षेत्र में शिक्षा क्रान्तिकारी परिवर्तन लाने में सक्षम है l सोच बदलने के लिए -
1. खुद के बारे में जानना ही एक मात्र तरीका है l इसके लिए अपने मानसिक अवरोधों को पहचानकर उन्हें दूर करें l
2. इस पर विचार करें कि आप दूसरों से बेहतर क्यों हैं?
3. आत्मविश्वास और कड़ी मेहनत सोच में परिवर्तन का मूल मंत्र है l
4. हमेशा प्रातः अपने आप से बोलो l मैं सबसे अच्छा हूँ, मैं यह कर सकता हूँ, भगवान हमेशा मेरे साथ है l आज और अभी की तर्ज पर यह काम करके रहूँगा l
5. आशावादी बनकर हर मुश्किल में अवसर को देखें l
               चलते चलते ----
नियत और सोच अच्छी होनी चाहिए
बात तो कोई भी अच्छी कर सकता है l
    - डॉ. छाया शर्मा
अजमेर - राजस्थान
अवश्य बदला जा सकता है !समय और स्थिति हमारी सोच बदल देती है! आज डिजीटल के इस जमाने में हमारी सोच में नया मोड़ आया है !  सकारात्मक और नकारात्मक हम दोनों विचारों को साथ लिए  चलते हैं किंतु यह हमारी सोच है कि हम किसे प्राथमिकता देते हैं! पहले महिलाओं को घर तक सीमित रखा जाता था किंतु समय के अनुसार हमारी सोच में परिवर्तन आया!महिलायें आज कंधे से कंधा मिलाकर चल रही है! जाति भेद-भाव ,अपने काम करने के तरीके....पहले व्यवसाय  भी जाति के अनुसार ही होते थे जैसे चमड़े का व्यवसाय रोदा ही करते थे और उन्हें निम्न श्रेणी में रखा जाता था किंतु आज हमारी सोच बदल चुकी है सकारत्मकता लिए  है व्यवसाय किसी जातिबंध में नहीं है कोई भी अपना व्यवसाय स्वेक्षा  से कर सकता है! 
डाकू रत्नाकर की सोच बदली तभी तो वे वाल्मिकी ऋषि बने और रामायण रच डाली फिर इस डिजीटल  जमाने में तो समय के अनुसार हमारी सोच तो बदल ही सकती है! 
 -  चंद्रिका व्यास
 मुंबई - महाराष्ट्र
दूसरे की सोच को बदलना बहुत मुश्किल काम है लेकिन नामुमकिन नहीं है। कोई भी व्यक्ति अपनी सोच को उत्तम समझता है। परिस्थितियों के अनुसार उसकी सोच भी बन जाती है। उसे बदलने के लिए या गलत साबित करने के लिए प्रमाण की आवश्यकता होती है। इस प्रकार उसे अपने विचारों के प्रति जागरूक बना कर सही गलत का अनुभव कराया जा सकता है।  इस तरह विचारों में परिवर्तन मुमकिन है।
सकारात्मक सोच बनाना अच्छी बात है, लेकिन अपने विचारों के प्रति जागरूकता भी जरूरी है। एक बार चिंतन-मनन करके ही कार्य करना चाहिए।
- संगीता गोविल
पटना - बिहार
सोच विचार बिल्कुल परिवर्तनशील है या अनुभवी है परिस्थितियों से प्रेरित होती है और सोच को आसानी से बदली जा सकती है अंगुलिमाल डाकू पर बुद्ध के वचनों का ऐसा प्रभाव पड़ा युवा अपने पेशे को छोड़कर गौतम बुद्ध के शिष्य बन गए बुद्धम शरणम गच्छामि संघम शरणम गच्छामि का रास्ता अपना लिए। एक वाक्य एक शब्द विष भी है और दवा भी हैं दुआ भी है शब्द एक ही है पर सोच अलग-अलग है सोच को बदलने के लिए सही जानकारी सही व्यक्ति सही परिस्थिति और सही अनुभव की आवश्यकता है मन चंचल है और चंचल मन में विचार ए आती हैं निकलती हैं बनती हैं और उस पर  अमल करता है
सोच को बदलने के लिए दूसरी प्रक्रिया प्राणायाम है जिससे नकारात्मक विचार लुप्त होते हैं और सकारात्मक भाव विचार सोच पनपने लगते हैं
सोच को बदलने का तीसरा उपयोगी अस्त्र शास्त्र पुस्तक है पुस्तकों के माध्यम से विचार और सोच में बदलाव आते हैं कई ऐसे विचार जानकारी के अभाव में गलत ले लिए जाते हैं पर सही ज्ञान होने पर सोच बदल जाती है
सोच के बदलने का चौथा माध्यम परिवार है परवरिश है संस्कार हैं संस्कार के माध्यम से सोच में बदलाव भी होता है निर्माण भी होता है
- कुमकुम वेद सेन
मुम्बई - महाराष्ट्र

" मेरी दृष्टि में " सोच से ही भाग्य सामने आता है । फिर कर्म अपना काम करते हैं । यह कर्मों का चक्र भी कहा जा सकता है । जो सोच से शुरू होकर कर्म को पेश करता है ।
- बीजेन्द्र जैमिनी

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