साप्ताहिक कार्यक्रम : पिता

जैमिनी अकादमी द्वारा साप्ताहिक कार्यक्रम में इस बार " पिता " पर कविता का कार्यक्रम रखा है । जिसमें विभिन्न क्षेत्रों के कवियों ने भाग लिया है । विषय अनुकूल कविता के कवियों को सम्मानित करने का निर्णय लिया है ।
सम्मान भी जाने - माने कवि व लघुकथाकार आनन्द बिल्थरे रखा गया है । इन का जन्म 03 जुलाई 1935 को बालाघाट - मध्यप्रदेश में हुआ है । ये वन विभाग से सुपरिटेंडेंट पद से रिटायर है । इन की अब तक कोई पुस्तक प्रकाशित नहीं हुईं है। इन की पत्नी का निधन हो चुका है। पुत्र है । हिन्दी साहित्य में कवि व लघुकथाकार के रूप में बहुत बड़ी पहचान है । जैमिनी अकादमी ने इन्हें कई बार सम्मानित किया है। इन की मृत्यु 12 जनवरी 2021 की रात्रि तीन बजें हुई है । इन के नाम पर सम्मान देना गौरव की बात है । अब कविता के साथ सम्मान पत्र पेश है : -
पिता 
****

पिता सचमुच थे तुम सारी दुनिया में अनोखे निराले।
सामने होते थे लगता था तुम हो सारी खुशियां देनेवाले।।

अंगुली पकड़ चलाना दिल के कोने में है मिठ्ठा अहसास। 
दौड़ते गिरना स्वयं न उठाना स्वतः उठे थी दिले तलाश।। 

जग पथरीले को जीतने के लिए पिता का दिल था कठोर होना। 
याद आता है खराब वरताव पंरतु अब लगता है  सुहाना।।

जनक का हृदय कितना दयालु व होता है कितना धनवान। 
अच्छाई याद आती है उनकी जब हो जाता है उनका बिछुड़ना।। 

बच्चों के निर्माण के लिए दिन रात कितना तपता  पापा । 
निर्माण  मजबूत बनें ऐसा अहसान करता जाये पापा।।

 - हीरा सिंह कौशल 
 मंडी - हिमाचल प्रदेश
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पिता 
 ****

क्या हुआ ? 
पापा !  अगर 
मैं बेटा नहीं ,बेटी हूं आप की।
बेटे से ज्यादा ,प्यार दुलार किया। 
जब जीवन,हम पर न्योछार किया। 
    पढ़ा-लिखा काबिल कर
         कन्यादान किया ।
क्या विडंबना बेटी के जीवन की? 
हम पर तो है, अधिकार अभी तक। 
पर हमारा अधिकार ,आप पर पापा
पापा कुछ भी क्यों नहीं ?
जब बेटा-  बेटा,
 बेटा सब कुछ बेटा होता है तो
 बेटी भी बेटो से कम तो नहीं ?
बेटी भी बेटों से कम तो नहीं ?
 पापा!
क्या हुआ पापा?

- रंजना हरित 
बिजनौर - उत्तर प्रदेश
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पिता
****

संघर्ष के समय में हौसला इजाफा 
करने वाले हैं मेरे  पिता ।

परेशानियों से लड़ने को दो धारी 
तलवार है मेरे पिता।

बचपन में खुश करने वाले खिलौना थे
नींद लगे तो पेट पर सुलाने वाले बिछावन थे कभी गम ना होने देने वाले थे मेरे पिता।

परिवार के जिम्मेवारियों  से लदी 
गाड़ी के सारथी है मेरे पिता।

पिता जमीर है, पिता जागी़र है
जिसके पास है वह सबसे अमीर है।

कहने को सब ऊपर वाला देता है
पर प्रभु की  माया के रूप हे मेरे पिता
सौभाग्य से नाम भी है उनका *जगदीश*
मेरे पिता में ईश्वरीय रूप दिखाई पड़ती है।

- विजयेन्द्र मोहन
बोकारो - झारखंड
================

पिता:काश तुम एक बार फिर आ जाते
*******************************

 पिता---- जीवन के जलते महायज्ञ में
अपने विश्वामित्री मन की साधना करते 
संतान हित स्वयं आहुति बन जाते।। 
भौतिक सुखों की कामना के
उफनते महासागर में
पुरानी केवटिया कश्ती को
भी सुदूर क्षितिजों तक खेते--वापस
साहिल तक ले ही आते।।काश।। 

काँधे झुके पर सतर है सिर
आँखों में अश्कों के साथ
बिखरे सपनों की दिवंगत श्रद्धांजलि - - 
    जेबें खाली हो फिर भी
एक अगाध विश्वास 
   अनुभव के खजाने
साथ ले आते।। काश तुम।।

जीवन की धूप में छाया से पिता
नीम बरगद पीपल की तरह
     आँगन में संरक्षण संवर्धन
की बयारों के साथ 
अनुभवों के तिनकों
से सहारे बनते
आँधी तूफानों के चिन्ह ले आते।। काश।। 

तिमिराच्छन्न अंबर पर पिता
प्रातः स्मरणीय ध्रुव से
     अटल नक्षत्र बन आते
आकाशगंगा सी अंधी
        वीथिकाओं में  जीवन के
 समीकरण बैठा जाते।।
पिता काश तुम एक बार आ जाते।। 

- हेमलता मिश्र "मानवी" 
नागपुर - महाराष्ट्र 
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पिता कौन है
**********

"पिता वो जिनके गीत नहीं गाये जाते
पिता वो जिनके त्याग के किस्से नहीं सुनाये जाते"

पिता वो जो माँ के साथ प्रसव पीड़ा सहे
पिता वो जो अपनी पीड़ा किसी से न कहे

पिता वो जो अपने काम से काम रक्खे
पिता वो जो पाई-पाई का हिसाब रक्खे

पिता वो जो हमारी हर बात को बड़े धैर्य से सुने
पिता वो जो हमारे लिए हजारों सपने बुने

पिता वो जो हमारे लिए अपना बैंक-बैलेंस खाली करे
पिता वो जो उन सिक्कों से हमारा पिग्गी-बैंक भरे

पिता वो जो हमारे लिए अपने सपनों का बलिदान करे
पिता वो जो बेटे को विदा और बेटी का कन्यादान करे

पिता वो जो गुस्सैल होने का तमगा पाये
पिता वो जिनके आते ही पूरे घर में खामोशी छा जाये

पिता वो जो हमारी खातिर जीवनपर्यन्त चलता रहे
पिता ऐसा वृक्ष जो हर मौसम में फलता रहे

- संगीता राय
 पंचकूला - हरियाणा
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बापू अब सपने में आते 
******************

खुली आंखों से बाट निहारूँ,
 बापू अब सपने में आते ।
 मन ही मन में रोज पुकारूं ,
बापू अब सपने में आते ।
 स्वप्न  देश के वासी बापू ,
रस्ता भूल गए हैं घर की ।
 वरना उनका मन ना लगता,
 सूरत देखे बिन हम सबकी।
 सपने में वैसे ही मिलते ,
जैसे  कहीं गए ना  हो  ।
सूरत वही ,वही पहनावा ,
वही बोल वह नैना  हों ।
जगने पर गायब हो जाते,
 बापू अब सपने में आते।
 खुली आंख से बाट निहारु ,
बापू अब सपने में आते ।
 स्वप्नदोष वह कैसा होगा ,
जिसमें जा बापू हैं जा भटके ।
रोज चाहते होंगे  आना ,
 पर ना जाने क्यों है अटके ।
स्वप्न देश की रस्ता पूछूं,
 मुझको कौन बताएगा ।
सूरत प्यारे  बापू की वो,
मुझको कौन दिखाएगा।
 पहले देर कहीं जो होती,
 मंदिर में परसाद मानते।
 और बाद में बापू से ही ,
उसका पैसा तुरत मांगते ।
अब कितना परसाद चढ़ाऊं,
 क्या  बापू  आ जाएंगे ।
 जगती आंखों देख सकूंगी,
 क्या बापू मिल जाएंगे ।
 खुली आंख से बाट निहारु,
 बापू अब सपने में आते ।
मन ही मन में रोज पुकारूं,
 पर बापू सपने में आते ।

 - सुषमा दीक्षित शुक्ला
 लखनऊ - उत्तर प्रदेश
 ======================

पिता
*****

मां घर का गौरव तो पिता घर का अस्तित्व होता है। 

मां के पास आशु धारा तो पिता के पास संयम होता है। 

दोनों समय का भोजन मां बनाती है, 
तो जीवन भर के भोजन की व्यवस्था पिता सहज ही करता है। 

कभी लगी ठोकर चोट तो मुंह से ओ मां ही निकलता है। 

लेकिन रास्ता पार करते हुए कोई ट्रक आकर ब्रेक लगाए तो बाप रे इस मुंह से निकलता है।
छोटे-मोटे संकट पर के लिए मां है पर बड़े संकट आने पर पिता ही याद आता है।
पिता एक वटवृक्ष है उसकी शीतल छांव मां है उसमें परिवार का सुख रहता है।
मात-पिता का करो सम्मान कभी ना करना उनका अपमान।

- प्रीति मिश्रा 
जबलपुर - मध्य प्रदेश
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पिता की महत्ता
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मां ममता की मूरत है तो
पिता वात्सल्य का द्वार है
मां की आंखों में स्नेह
पिता में व्यवहार है।
मां प्रेम का रसपान कराती
पिता भविष्य देखता है
कभी कठोर अनुशासित लगता
संतान हित में काम करता है।
मां बच्चे का हाथ पकड़ती
पिता शक्ति प्रदान करे
हौले से मां बात है करती
पिता सदा कल्याण करे

प्रो डॉ दिवाकर दिनेश गौड़
गोधरा - गुजरात
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पिता महान 
*********

 बच्चों पर अपने सख्तियां करके 
 पिता उनका भविष्य ही  संवारते
पिता होते वो महान शख्सियत 
जो अपनो के लिए कुछ भी कर जाते

अपनी जिम्मेदारी निभाते रहते और
बात सभी की सुनते और सब सह जाते 
बीबी बच्चों को खुश रखने के लिए
सतत  निरंतर मेहनत वो करते जाते 

स्वयं के लिए कभी ना खर्चे पर
हमारी जरूरतें पूरी करते रहते
खुद भूखे रह जायें भले ही
बच्चो को भूखा रख नहीं सकते 

पर जो बात उन्हें गलत लगती तो
कुछ कहे बिना वे रह भी नहीं पाते 
बच्चो के सच्चे शुभचिंतक तो हैं
पर अपने भाव दिखा नहीं पाते 

माता यदि वंदनीय है तो 
पिता भी अपने कुछ कम नहीं
खुद को मिटाकर जो हमे बनाते
उनका ये एहसान भी कुछ कम नहीं 

- शुभा शुक्ला निशा
रायपुर - छत्तीसगढ़
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मेरे पिता
******

मुझे गढ़ने वाले 
मेरे कुंभकार पिता!
जीवन के हर मोड़ पर 
आप बहुत याद आते हो...!

चलते-चलते 
जब थकने लगते हैं पाँव 
ईश्वर के संसार से 
आकर मेरे पास बैठ जाते हो...!

बचपन की अठखेलियाँ
बचपन के किस्से-कहानियाँ 
नटखट शैतानियाँ मेरी 
सुना-सुना कर हँसाते हो...!

माँ के संग 
स्मृति के गलियारे से 
जब-जब मेरे मन के 
घर-आँगन में आते हो 
चम्पा/चमेली/गुलाब/हरसिंगार की 
सुगंध से सुवासित कर जाते हो.....!

घेर लेती हैं जब 
निराशाएँ चारों ओर से 
जकड़ लेता है अदृश्य 
कोहरा अपनी मजबूती से 
आकर आप ही उनसे छुड़ाते हो...!

धर्म/ज्ञान, संघर्ष 
चुनौतियाँ/आत्मविश्वास 
हर्ष/विषाद, मातृभाषा प्रेम 
सबकी परिभाषाएँ मैंने 
जानी/समझीं हैं खेल-खेल में आपसे...!

मेरे लिए तो आप 
ज्ञान के अथाह पुंज हो 
भगवद्गीता, उपनिषद, पुराण 
सांख्य,योग,न्याय, मीमांसा 
रामायण सभी कुछ आप हो.....!

देखा नहीं ईश्वर को 
बस ईश्वर के रूप में 
देखा/माना/समझा है आपको 
जीवन का, सृष्टि का 
आदि और अंत भी है आपसे....!

जो जन्मा नहीं 
उसकी मृत्यु भी नहीं 
जो अजर है, अमर है 
जो परम शक्ति अनुभूत
पर अदृश्य है 
वो परम,पुण्य शक्ति आप हो....!

यहीं थे, यहीं हो और 
अब भी मेरे आसपास हो 
मेरे पिता!कैसे कहूँ?
केवल आप ही मेरे सर्वशक्तिमान 
अभिमान/स्वाभिमान 
भीड़ भरे संसार में मेरी पहचान हो.....!!!!

- डॉ. भारती वर्मा बौड़ाई
देहरादून - उत्तराखंड
=================

पिता - एक फरिश्ता
****************

मां के आशीषों संग मेरा स्वर पिता के गीत भी गाता है। 
मां की शक्ति बसे जिसमें उस पिता की महत्ता बताता है।। 

मां गंगा तो पिता गंगा का किनारा है, 
मां सम्बल तो पिता सन्तान का सहारा है।
मां-पिता से संतान को जीवन उपहार मिला, 
मां जीवन है तो पिता जीवन-धारा है।। 

गगन से विशाल उसका व्यक्तित्व होता है, 
चुकाया न जाये जिसका ऋण वो पिता होता है। 
आस्तित्व में समाया मेरे एक निश्छल मन होता है, 
आस्तित्व मेरा जिसकी वजह से वो पिता होता है।। 

सन्तान के बचपन में जो मासूम बच्चा बन जाता है। 
सन्तान के यौवन के लिए अपनी जवानी जलाता है।। 

जिसके होने का महत्व कभी समझा नहीं जाता है, 
जिसके खोने का मलाल कभी दिल से नहीं जाता है। 
बैठकर कदमों में उसके पूजा किया करो नित, 
पिता ईश्वर से कम नहीं बस ईश्वर कहा नहीं जाता है।। 

कभी कुम्हार की थाप वो बन जाता है, 
स्वर्ण बने संतान सो आग में भी तपाता है। 
कभी शीतल जल जैसा स्नेह बरसाता है, 
ज्वाला जैसा कभी प्रचण्ड रूप भी दिखाता है।। 

जिम्मेदारियों को निभाते हुए एक इन्सान होता है। 
वह पिता है उसमें सदा समर्पण भाव बहता है।। 

सूखी रोटी खाकर मुझे पकवान खिलाता है, 
हौले हौले मुस्कराकर चिन्तायें छिपा जाता है। 
मेरे भविष्य के लिए अपना वर्तमान जलाता है, 
पिता एक मानव जिसमें ब्रह्म समाया रहता है।। 

लगन, मेहनत समर्पण रामायण सा पढ़ता है, 
संघर्ष, तपस्या, समर्थन महाभारत सा करता है। 
सुबह से शाम तक उसका जीवन त्याग करता है, 
पिता ही सच में पुरुषार्थ को चरितार्थ करता है।। 

घर की सारी चिन्ताओं का वो जवां चिन्तन होता है। 
परिवार रहता जिसके भरोसे पिता वो मंथन होता है।। 

सन्तान के सपनों के लिए वो मेहनत दिन रात करता है, 
सन्तान की बुलन्दियों की दुआयें जो चुपचाप करता है। 
उस पिता की चाहत का कोई पैमाना नहीं होता है, 
अपने हिस्से की ऊंचाई जो सन्तान के नाम करता है।। 

नित-नित नमन करूं उस पिता की श्रेष्ठता को। 
ईश्वर की कलाकृतियों का जो करिश्मा होता है।।
गगन भी छू ना पाये जिसकी विशालता को। 
रिश्ता पिता का उससे पर वो एक फरिश्ता होता है।। 

उसके हर निर्णय में सन्तान सुख का चाव रहता है।
सच में पिता मानव नहीं एक फरिश्ता होता है।। 

- सतेन्द्र शर्मा 'तरंग' 
देहरादून - उत्तराखण्ड
======================

पिता जी
*******

अब डर नहीं लगता
पिता जी साथ में हैं
मन ने घबराना त्याग दिया है
जब से उन्होंने स्वयं
ढांढस मेरा बधाया है
प्रथम पाठ वो
अंगुली पकड़ कर सिखा गए
दुनिया में चलने को
राह परिपक्व कर  गए
माँ के लाड़ प्यार में
मौन मुहर लगाते गए
बाजारों भाव खुद झेले
हमें सब कुछ दिलाते गए
अपनी सेहत दर किनार कर
हमें तंदुरुस्त बनाते गए
किसी ने कुछ भी कहा हो
वो हम पर भरोसा करते गए
जब हम जीवन की
पायदान चढ़ रहे थे
वो आधार और ढाल बन
हर पल संग खड़े रहे
पता भी न चला
कब पिता मेरे 
मुझे पिता बनता देख
सन्तुष्ट मानुष विशेष बन
मेरी छाया बन चलने लगे।

   - नरेश सिंह नयाल
देहरादून - उत्तराखंड
==================

पिता
****

सख़्त चट्टानों से कठोर बनकर,
शैल की तरह अडिग  रहकर।
मौसमों के थपेड़ों से बचा,
आश्रय देते तुम पिता बनकर।

जज़्बातों को उष्मा में घोलकर,
वाणी में तनिक निंबौरी मिलाकर।
रखते हो कुनबे को एक सूत्र में,
बोधि वृक्ष की छाया बनकर।

फलदार तरु वर बाँहें पसारे,
हर मर्ज़ की दवा पास तुम्हारे।
ऊपर से गंभीर दिल से अमीर,
आशीष से भर देते झोली हमारे।

अधरों पर स्मृत मुस्कान ओढ़कर,
जेब की परवाह भूलकर।
जोड़ -जोड़ कर तिनका -तिनका,
शीतलता  की छतरी बनकर।

झरते हैं नमकीन पानी गालों पर,
सुनहरी  यादें उमड़ते हैं, नयनों से होकर।
कोई लौटा दे वो बीते हुए पल फिर से,
पिता के झूले में झूलूँ फिर से ठुमककर।

- सविता गुप्ता 
राँची - झारखंड 
==================

पापा बताती हूँ मैं
*************

यादें बचपन की एक सुनाती हूँ मैं
 कितने प्यारे हैं पापा बताती हूँ मैंl 

जब वे गोदी में लेकर सुलाते रहे
मेरी बर्फी, इमरती है कहते रहे
सीने पर लिटा लोरी सुनाते रहे
 सोजा सोन चिरइया है गाते रहे l

एक सपना सुनहरा संजोये रहे
बागवाँ बगिया को सजाते रहे
बेटी जग में है रोशन नाम करे
जो न कर पाया उसको पूरा करेl

जो है माँगा दिया, खूब पढ़ाया हमें
आशीषों से है झोली को भर दिया
खुशियाँ और चाहत की मांगी दुआ
 ग़म न कियाऔर दिया ही दिया l

धड़कनों में हमारी है बसते पापा
यादों में है हमारे बसे हैं पापा
पापा हँसते हंसाते दुलारते रहे
भर भर झोली हम पर लुटाते रहे l
संस्कृति औ संस्कार  मेरे पापा
मनभावन भाव है मेरे पापा l

जीवन जीने का सूत्र बताते रहे
बनके पतवार नैया खिवाते रहे
हर कदम पर है आगे बढ़ाते गये
 बदलियाँ सी यादों में छाते रहे l
 
    - डॉ. छाया शर्मा
अजमेर - राजस्थान
====================

पिता
****

पिता के जीवन की सब सांसें,
होती हैं, बच्चों के हित।
पिता उन्हें देता आजीवन,
संरक्षण,निज प्रेम सहित।।
करता है बच्चों के मन की,
अपने मन को लेता मार।
जतलाता है क्रोध अधिकतर,
दिखलाता न अपना प्यार।।
सभी जरुरत पूरी करता,
लेना पड़ता भले उधार।
अपनी आवश्यकताएं अधूरी,
झेले हर मौसम की मार।।
मुझसे आगे हों संतानें,
एक पिता की ये ही चाह।
करता है जीवन भर कोशिश,
बने सुगम जीवन की राह।।
पिता देन ईश्वर की अनुपम,
धरती पर अपना भगवान।
इनकी नेह छत्रछाया से
वंचित हो न कोई इंसान।।

- डॉ.अनिल शर्मा 'अनिल'
धामपुर - उत्तर प्रदेश
=====================

पिता
****

पिता एक
कल्प
वृक्ष है
बच्चों के लिए
जिसके 
होते 
होती हैं पूरी
सभी जिद
आशा
आकांक्षा 
मिलती है
सीख
स्नेह 
संरक्षण 
संबल
मार्गदर्शन 
जीवनपथ पर
जो है बडा
कंटीला
पथरीला
सीखते है 
जीना
जिन्दगी को
पिता है 
तो दिखता है
हर सपना 
अपना 
पिता वारता है
अपना जीवन
अपने 
बच्चों के 
लिए
किसी की 
माँ से कम 
नही उसका 
बलिदान
वही तो है
धुरी समूचे
परिवार 
की.. 
.
- डा. प्रमोद शर्मा प्रेम 
नजीबाबाद - उत्तर प्रदेश
=================

मेरे पापा...!
**********

पिता का हाथ जरूरी है
पिता का साथ जरूरी है
शादी करके विदा हो चली
हुई पापा मैं पराई
सुनकर शब्द पराई
पापा आँख मेरी भर आई
लाड़ प्यार से पापा
काहे को मुझे पाला
हर जिद को मेरी 
काहे पूरी कर डाला
छोड़ गये दुनिया को पापा
मायका मेरा छूटा
हर रिश्ता लगे टूटा टूटा
बाँट देखते दरवाजे
लाली मेरी आई
कितने दिन हो गये पापा
ना आवाज़ किसी ने लगाई ॥
हर छुट्टी में मेरे पापा
हम घर अपने थे आते
फोन करके पापा मेरे
हमको थे बुलाते
सदा पुछते क्या खाओगे
बच्चों आज बताओ
देख आँगन मे अपने बच्चे
पापा थे भंरमाते ॥
मायका मेरा जब ना छूटा
जब मै विदा हुई
मायका उस दिन है छूटा
जब तुम विदा हुए
आती है तुम्हारी याद पापा
कितने बरस हुए साथ न हो पापा
अब क्या त्योहार क्या छुट्टी
तुम बिन जैसे सब रूठी
ना देता कोई आवाज़
कब आयेगी लाली
तुम बिन मेरा मायका
लगता खाली खाली
चला गया बगिया का माली
कौन करे रखवाली
तुमको आज बुलाती
पापा तुम्हारी लाली
मेरे पापा......!

 नीमा शर्मा हंसमुख
नजीबाबाद - उत्तर प्रदेश
===================

सदा करे सत्कार 
*************

पिता  पुत्र  के  बीच  में, सम्बन्धों  की  डोर ।
केवल एक विश्वास है, शेष नही कुछ और ।।

पति की छवि निहारती, दे आँचल की छाँव ।
पुत्र पिता की जूतियाँ, जब पहने निज पाँव ।।

पिता पुत्र से रूठकर, कभी न जाये दूर ।
जाये सच अपवाद है,  दोनों  ही बे  नूर ।।

पिता पुत्र के प्रश्न  का, उत्तर  दे  सौ  बार ।
पुत्र पिता की  बात का, सदा करे सत्कार ।।

कंधे पर चढ़कर चले, पुत्र पिता के साथ ।
पुत्री भी संग में चले,  पकड़ हाथ में हाथ ।।

- डॉ भूपेन्द्र कुमार 
धामपुर - उत्तर प्रदेश
====================

तारा हुआ पिता
************

जीवन की संध्या में आकुल हारा हारा हुआ पिता।
भीतर तक बिखरा रहता था पारा पारा हुआ पिता।।

धरती पर था तो सुरज सा हमको रोशन करता था।
अब जा बैठा अम्बर पर झीलमिल तारा हुआ पिता।।

घर में नज़रें खोज रही हैं शायद यहीं  छीपा होगा।
 दीवारों की ईंटों के संग मिट्टी गारा हुआ पिता। ।।
 
यादों में सावन भादों सी झड़ी लगाती हैं आंखें।
अब तो गंगा जी में जाकर सागर खारा हुआ पिता।।

- देवेंद्र दत्त तूफान 
पानीपत - हरियाणा
===================

पिता 
*****

एक ऐसा शब्द
जो देता है सदैव
स्फूर्ति संरक्षण और
सांत्वना, कि
बढ़ो, कुछ करो
चिन्ता की कोई
बात नहीं
मैं हूँ न
जी हां जन्मदाता का 
यह कहना संतान को
कुछ करने बनने
की शक्ति देता ।
संरक्षण
प्रेरणा के साथ प्राणशक्ति
दे देता ।
कहीं डगमगाहट
संकोच से पहले
हाथ थाम लेता ।
भाग्यशाली वह
जिनपर यह रहता
उनसे पूछिए
जिनसे बचपन में
छिन गया ।
केवल शब्द
सुन सुन कर रह गए
अन्दर बाहर
दशको तक
कई अभाव सहे।
महत्व और स्थान से
जिसकी तुलना न
वह शब्द
व्यक्ति परिवार के लिए
अस्तित्व व्यक्तित्व है
पिता ।

- शशांक मिश्र भारती 
शाहजहांपुर - उत्तर प्रदेश 
===================

पिता की व्यथा
************

पिता कह रहा है सुनो,पीर,दर्द की बात।
जीवन उसका फर्ज़ है,नहिं कोई सौगात।।

संतति के प्रति कर्म कर,रचता नव परिवेश।
धन-अर्जन का लक्ष्य ले,सहता अनगिन क्लेश।।

चाहत यह ऊँची उठे,उसकी हर संतान।
पिता त्याग का नाम है,भावुकता का मान।।

निर्धन पितु भी चाहता,सुख पाए औलाद।
वह ही घर की पौध को,हवा,नीर अरु खाद।।

भूखा रह,दुख को सहे,तो भी नहिं है पीर।
कष्ट,व्यथा की सह रहा,पिता नित्य शमशीर।।

है निर्धन कैसे करे,निज बेटी का ब्याह।
ताने सहता अनगिनत,पर निकले नहिं आह।।

धनलोलुप रिश्ता मिले,तो बढ़ जाता दर्द।
निज बेटी की ज़िन्दगी,हो जाती जब सर्द।।

पिता कहे किससे व्यथा,यहाँ सुनेगा कौन।
नहिं भावों का मान है,यहाँ सभी हैं मौन।।

पिता ईश का रूप है,है ग़म का प्रतिरूप।
दायित्वों की पूर्णता,संघर्षों की धूप।।

पिता-व्यथा सुन लें ज़रा,करें आज सब गौर।
मुश्किल का चलता सदा,संग पिता,नित दौर।।
            --प्रो. (डॉ)शरदनारायण खरे
               मंडला - मध्यप्रदेश
===============


मेरे पिता 
******
साथ हमारा तुम छोड़ गये,
बहुत तन्हा हमें तुम कर गये।
लगता जैसे कल की बात हो,
इतने बरस कैसे बीत गये।

नन्हे नन्हे कदम थे मेरे,
तुम्हारे कदम थम गये थे।
नन्ही अनजान सुकोमल काया,
सर से हट गया तुम्हारा साया।

हर शख्स में तुम्हारा अक्स ढूढ़ती,
पितृत्व प्यार की प्यास अधूरी रहती ।
पिता अपनी संतान को प्यार करते,
मेरी आँखें तो आकाश को ताकती।

तकलीफ जब बेइन्तहा हो जाती,
मेरी निगाह तुम्हारा पथ निहारा करती।
विपत्ति में स्मरण जब तुम्हारा करती,
भीतर एक ताकत सा महसूस करती।

मेरी सफलता की कामना करते थे,
उसे करने का अवसर ही न मिला ।
आशीर्वाद तुम्हारा सदा मेरे साथ था,
आगे बढ़ाने वाला वह हाथ न मिला ।

मैंने एक लक्ष्य निर्धारित किया है,
नन्हे कदम ने चलना शुरू किया है।
तुम्हारा आशीर्वाद का साथ रहा है,
गर्व कर सको तुम,हक तुम्हारा  है ।

                    -  रंजना वर्मा उन्मुक्त
                      रांची - झारखंड
=======================

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