जयशंकर प्रसाद की स्मृति में कवि सम्मेलन

जैमिनी अकादमी द्वारा साप्ताहिक कवि सम्मेलन इस बार " उपकार "  विषय पर  रखा गया है । जिसमें विभिन्न क्षेत्रों के कवियों ने भाग लिया है । विषय अनुकूल कविता के कवियों को सम्मानित करने का निर्णय लिया है । सम्मान साहित्यकार जयशंकर प्रसाद के नाम से रखा गया है ।
 जयशंकर प्रसाद जी का जन्म 30जनवरी 1889 को काशी के सरायगोवर्धन में हुआ। इनके पितामह बाबू शिवरतन साहू दान देने में प्रसिद्ध थे । जो कलाकारों का आदर करने के लिये विख्यात थे। इनका काशी में बड़ा सम्मान था और काशी की जनता काशी नरेश के बाद 'हर हर महादेव' से बाबू देवीप्रसाद का ही स्वागत करती थी। 
प्रसाद जी की प्रारंभिक शिक्षा काशी में क्वींस कालेज में हुई, किंतु बाद में घर पर इनकी शिक्षा का व्यापक प्रबंध किया गया, जहाँ संस्कृत, हिंदी, उर्दू, तथा फारसी का अध्ययन  किया। किशोरावस्था के पूर्व ही माता और बड़े भाई का देहावसान हो जाने के कारण 17 वर्ष की उम्र में ही प्रसाद जी पर आपदाओं का पहाड़ ही टूट पड़ा। कच्ची गृहस्थी, घर में सहारे के रूप में केवल विधवा भाभी, कुटुबिंयों, परिवार से संबद्ध अन्य लोगों का संपत्ति हड़पने का षड्यंत्र, इन सबका सामना करना पड़ा । घर के वातावरण के कारण साहित्य और कला के प्रति उनमें प्रारंभ से ही रुचि थी और कहा जाता है कि नौ वर्ष की उम्र में ही उन्होंने 'कलाधर' के नाम से व्रजभाषा में एक सवैया लिखकर 'रसमय सिद्ध' को दिखाया था। इन्होंने कविता, कहानी, नाटक, उपन्यास और आलोचनात्मक निबंध आदि विभिन्न विधाओं में रचनाएँ दी हैं ।इन  की काव्य रचनाएँ में कानन कुसुम, महाराणा का महत्व, झरना (1918), आंसू, लहर, कामायनी (1935) और प्रेम पथिक । प्रसाद की काव्य रचनाएँ दो वर्गो में विभक्त है 1912  में 'इंदु' में इनकी पहली कहानी 'ग्राम' प्रकाशित हुई। इन्होंने कुल 72 कहानियाँ लिखी हैं। इनके कहानी संग्रह हैं:छाया, प्रतिध्वनि, आकाशदीप, आंधी और इन्द्रजाल । इन्होंने तीन उपन्यास लिखे हैं। 'कंकाल', में नागरिक सभ्यता का अंतर यथार्थ उद्घाटित किया गया है। 'तितली' में ग्रामीण जीवन के सुधार के संकेत हैं।  'इरावती' ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर लिखा गया इनका अधूरा उपन्यास है । इन्होंने आठ ऐतिहासिक, तीन पौराणिक और दो भावात्मक, कुल 13 नाटकों की सर्जना किया है। 'कामना' और 'एक घूँट' को छोड़कर ये नाटक मूलत: इतिहास पर आधृत हैं। इनमें महाभारत से लेकर हर्ष के समय तक के इतिहास से सामग्री ली गई है। स्कंदगुप्त, चंद्रगुप्त, ध्रुवस्वामिनी, जन्मेजय का नाग यज्ञ, राज्यश्री, कामना, एक घूंट। इन्होंने प्रारंभ में समय समय पर 'इंदु' में विविध विषयों पर सामान्य निबंध लिखे। बाद में उन्होंने शोधपरक ऐतिहासिक निबंध, यथा: सम्राट् चंद्रगुप्त मौर्य, प्राचीन आर्यवर्त और उसका प्रथम सम्राट् आदि: भी लिखे हैं।  इनकी साहित्यिक मान्यताओं की विश्लेषणात्मक भूमिका प्रस्तुत करते हैं। इन को 'कामायनी' पर मंगलाप्रसाद पारितोषिक पुरस्कार रूप में प्राप्त हुआ था। कलम के जादूगर कहे जाने वाले की जीवनचर्या में व्यायाम, सात्विक खान पान और अपने विचारों के पक्के थे। ये शतरंज के भी अच्छे खिलाड़ी रहे है। 15 नवम्बर  1937 को काशी में ही इनका निधन हो गया। ये कुल 48 साल के थे।
रचना के साथ सम्मान भी : -
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उपकार
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प्रभु का उपकार हम सभी पर
जीवन हमें अनमोल दिया..
उपकार माता-पिता का..
ईश्वर तुल्य यहा हमारे माता-पिता..
हमें जीवन दिया संस्कार दिया..
चलना बोलना सिखाया..
पढ़ा लिखा कर हमें योग्य बनाया ...
हमें अच्छा मानव बनाया..
हम अच्छे नागरिक बन सकें..
अच्छी सकारात्मक सोच रखें..
आत्मविश्वास संयम धैर्य धीरज
दृढ़ संकल्प लक्ष्य ऊंचा रखें..
हम ऊंचे उठ सके आगे बढ़े..
अपने लक्ष्य को प्राप्त करें..
माता पिता गुरु का हम पर उपकार..
प्रभु का उपकार सारे जगत पर...
 हम माता पिता के उपकार का
ऋण कभी भी नहीं चुका सकते..
हे प्रभु सब पर तेरा उपकार है..!!

- आरती तिवारी सनत
 दिल्ली
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उपकार
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      उपकार किया प्रभु हरदम ही
      जब संकट मुझसे टकराया।
      जग - सागर की जीवन नैया 
      तट पर ही तो बस तू लाया। 
                संसार में सुख-दुख का आना 
                नित चलता ही तो रहता है। 
                तेरे ही उपकार से हर दिन 
                उत्साह का झरना बहता है। 
नील गगन से हरी धरा तक 
तेरे ही गुण गाती है। 
तेरे ही उपकार से प्रभु जी 
प्रकृति हरदम मुस्काती है। 
                  इस जग में आशा का दीपक 
                  तेरे प्रताप से जलता है। 
                  तेरे नाम से सुबह होती है 
                  तेरे नाम से ही दिन ढलता है। 

- गजेंद्र कुमार घोगरे 
वाशिम - महाराष्ट्र
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 उपकार
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 भारत संसृति, महिमा न्यारी
  सद्गुणों का भंडार बनी l
  परहित के लिए उपकार भरी
 सत चित आनंद रस राग भरी ll

परहित सम्पत्ति संचय है
चाहें अपना हो या पराया हो l
है नीर भरे दुःख के बादल
परमार्थ कारन जन्में हो ll

 प्रकृति देती, लेती कुछ नहीं
निःस्वार्थ समर्पण करती है l
प्रकृति नटी उपकार भरी
हम सबने जानी बूझी है ll

हड्डियाँ दान में हैं दे दी
ऋषि दधीचि की कथा सुनी l
माँ मदर टेरेसा बनकर है
दुःखियों की सेवा में है लगी ll

शिव शंकर ने है विष पिया
अमृत औरों में बाँट दिया l
करुणा निधि करुणा कर रोये l
आँखों में सागर लहराया ll

कुरीति, जर्जर रूढ़ी टूटें
निष्काम भावना कर्म करें l
इससे है बड़ा न धर्म कोई
दीन बंधु ईश्वर तुल्य बनें ll

मोहपाश बंधन, विच्छिन्न करें
कल्याण मार्ग पर बढ़ते चलें l
वसुधैव कुटुंब की भावना से
दिन प्रतिदिन आगे बढ़ते चलें ll

  - डॉ. छाया शर्मा
अजमेर - राजस्थान
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उपकार
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   कुदरत का खेल निराला 
  निराला रमणीय जग सारा 
  सारा सौंदर्य प्रभु की लीला 
लीला रचता सृष्टि का रचयेता !

रचयेता ब्रह्मा की पुत्री ले वीणा
   वीणा को झंकृत किया
किया "उपकार" जीवों को दे वाणी
      वाणी पा वसुधा ने 
  सरस्वती का आभार किया !

  मनुष्य जीवन मुझको देकर 
  देकर कर्म का आधार बनाया
 बनाया चौर्यासी योनि का युग और  
   और दिया मनुष्य अवतार 
         "उपकार " तेरा !

      तेरा करुं सदा स्मरण 
    स्मरण में रहे तेरा संस्मरण 
  संस्मरण तेरा करते-करते प्रभु
 प्रभु मिल जाए तेरे मोक्ष की नैया  !

     नैया हो भक्तों से भरी
     भरी हो प्रभु तेरी भक्ति 
     भक्ति से हो मेरी मुक्ति 
      मुक्ति कर मेरी प्रभु 
 प्रभु होगा मुझपर उपकार तेरा !!

          -  चंद्रिका व्यास
        मुंबई - महाराष्ट्र
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 उपकार
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बहुत ही प्यारा शब्द है उपकार,
जिसमें भरा रहता,ढेर सा प्यार।
दूसरों का भला करने का ही केवल,
होता उपकार  करने वाले का आधार।

उपकार से बढ़कर नहीं है कोई धर्म,
 सभी धर्मों के ऊपर है उपकार धर्म।
समय पर किसी की मदद करना ही,
 है दुनिया में सब धर्मो से बड़ा धर्म।

 मानव है सबसे प्रज्ञावान प्राणी,
 ईश्वर ने दी उसको मीठी वाणी।
 भर दिए हैं बहुत से गुण उसमें,
एक महान गुण उसमें है करणी।

 सीता के बचाव हेतु त्याग दिए,
अपने प्राण पक्षीराज जटायु ने।
कबूतर की रक्षा करने हेतु जांघ,
काटकर मांस दान किया राजा शिवि ने।

परहित सरिस धर्म नहिं भाई,
पर पीड़ा सम नहिं अधमाई।
रामचरितमानस में कह गए हैं,
रचयिता तुलसीदास गोसाईं।

उपकार है मानवों का श्रेष्ठ गुण,
सब को उसे अपनाना चाहिए।
जरूरतमंद की मदद करके "सक्षम",
उपकार धर्म को निभाना चाहिए।

 - गायत्री ठाकुर सक्षम
 नरसिंहपुर  - मध्य प्रदेश
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उपकार 
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मानव जन्म दुर्लभ है जान लो इन्सान 
करके उपकार तुम दुनिया में पाओ मान

      काम आए जो दूसरों के साथ रहे भगवान 
       हर प्राणी और घट घट में बसे है भगवान 

अपने लिए जीना ही नहीं है जिंदगी 
  मानवता की सेवा भी तो है बंदगी 

          खाली हाथ आए हैं, खाली हाथ जाना
           सीख लो सदा दूसरों के काम आना

साथ हमारे जाएँ गे जो करेगा कर्म 
दूसरे के काम आना मानवता का धर्म 

      पुन्य कार्य करो तो घर में है धाम 
      अच्छे कर्म से ही कमाता बंदा नाम

- कैलाश ठाकुर 
नंगल टाउनशिप - पंजाब
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उपकार
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उपकार का भार रहता हृदय पर,
बन जाता है एहसान जीवन भर।
झुका रहता है सर उनके समक्ष,
किये उपकार जो बुरे समय पर।

उपकार से देते सहृदयता का परिचय,
मानवता संवेदनशीलता का परिचय।
नहीं कहलाने योग्य होते वो इंसान,
सरस भावनाओं का न दे जो परिचय।

उपकार कर मिलती आत्म संतुष्टि,
मदद करने से मिलती आत्मतृप्ति।
दिया है प्रभु ने हमें अमूल्य जीवन,
दीन-दुखियों की मदद से मिले तृप्ति।

उपकार का ऋणी जीवन मां बाप का,
उपकार का ऋणी जीवन गुरुदेव का।
फल फूल रहा खुशहाल मेरा जीवन,
उपकार का ऋणी सगे संबंधियों का।
                   
                -  सुनीता रानी राठौर
                   ग्रेटर नोएडा - उत्तर प्रदेश
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उपकार
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कौन जाने वो क्या चाहता है,
मुझसे इस जहान में,
और क्या क्या करवाना चाहता है,
बस इतना तो ख्याल है उसे,
कि मुझसे उपकार और भी,
जीवन के रहते करवाना चाहता है,
इंसानियत की मिसाल बन,
परिस्थितियों में भी सक्षम बन,
बस यही तो वो चाहता है,
मेरा रब मुझसे ,
न जाने उपकार कितने,
और करवाना चाहता है,
सफर में बिन थके चलता चल,
जितना हो सके देता चल,
बांटने में समृद्धि है,
संपन्नता का दामन थामे चल,
जितना हो सके ,
बस उपकार करता ही चल।

-  नरेश सिंह नयाल
देहरादून -  उत्तराखंड
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उपकार
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पर्यावरण की पुकार है 
जागो मानव धरा, 
कर रही चित्कार है।
क्या नहीं दिया 
धरती ने हमें,
पर हम ने माना कब,
उसका उपकार है।
जल,जीवन हरा 
भरा रहे ये मन,
ऐसा करो कुछ चमत्कार हे मानव!
तुम सृष्टि ,तुमसे सृष्टि
ये ईश्वर का  ही तो
उपहार है।
रिमझिम बरसे बदरा
हरी -भरी धरती 
ने किया मानो,
सोलह शृंगार है।
कूके कोयल
अमवा पर आई मंजर
खट्टे -मीठे आमों का
इंतजार है।
ले प्रण, रखे हरा- भरा
ये सुन्दर उपवन।
प्रकृति की रक्षा करे सदा हम,ना भूले
कभी उसका ये प्यार भरा
उपहार,
 हम  सब पर 
उपकार है।

- डाॅ पूनम देवा
पटना - बिहार 
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उपकार
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हर दिवस उजाला है, होगा विकास ये आशा ।
विश्वास अनोखा है, जीवन की ये परिभाषा ।।

अनहोनी हो जाए, या शुभ घड़ियाँ आएँ ।
रुकना न कभी लोगों, सुख दुख आएँ - जाएँ ।।

जीना उसको आए, गम को जो पी पाए ।
मुश्किल में भी वो तो, उपकार ही कर जाए ।।

जिम्मेदारी सबकी,  उसकी ही पूँजी है ।
आवाज यही लोगों, इस जग में गूँजी है ।।

सबका विकास होवे , ऐसे ही कर्म करेंगे ।
दुखियों की पीड़ा को,  मिलजुल कर सतत हरेंगे ।।

- छाया सक्सेना प्रभु
जबलपुर  - मध्यप्रदेश
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उपकार
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उत्तम गुण उपकार है , रखिये अपने पास ।
साथ सभी के कीजिये , दूसर हो या खास ।।
पर उपकार सा पुन्य न , पर पीड़ा सम पाप ।
अपने ही सम समझिये , दुख की एक ही नाप ।।
तन मन धन सब देत है , उपकारी जो लोग ।
स्वर्ग लोक जाकर वहाँ , पाते है सब भोग ।।
करो कर्म उपकार के , द्रवहु  दीन दयाल ।
कृपासिन्धु करहि कृपा , हो जो मालामाल ।।
सज्जन सब उपकार रत , अपकारी जो लोग ।
संत लहै ही सुख शांति , दुर्जन को दुख भोग ।।

- राजेश तिवारी 'मक्खन '
झांसी - उत्तर प्रदेश
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उपकार
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मान कर किया कार्य कर्तव्य 
समझा उसे अपना मंतव्य 
सामने वाले ने जताया आभार 
मान लिया उसे सभीने एक उपकार ।।

निकला सूरज वक्त पर अपने 
भर कर उठे सभी आंखों में सपने 
सूरज ने समय पर सबको उठाया 
कर्तव्य अपना उसने निभाया 
हाथ जोड़ किया सभी ने नमस्कार
मान लिया सभी ने उसे एक उपकार ।।

ज्ञान अर्जित कर जाना संसार 
अज्ञान का मिटाया अंधकार 
बन गुरु जगत का किया उधार 
ज्ञान अमृत की बूंदों से की चमत्कार 
गुरुओं की महिमा ने दिया जग तार 
मान लिया सभी ने उसे एक उपकार ।।

मां धरती ने अपना कर्तव्य निभाया 
गोद में सभी को अपनी खिलाया
अन्न पानी से भर रखे भंडार 
जगत जननी बन रचाया संसार 
मां धरती की महिमा अपार 
मान लिया सभी ने उसे एक उपकार ।।

एक माने कर्तव्य , दूसरा माने उपकार 
यही रीत सदियों चले , रचता गया संसार ।।

- मोनिका सिंह
 डलहौजी - हिमाचल प्रदेश
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उपकार
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है प्रीत जहां की रीत सदा......
मैं गीत वहां का गाता हूं।
भारत के रहने वाला हूं
भारत की बात सुनाता हूं......
कोरनाकाल मे कोई दिहाड़ी मजबूरी में
भूखा ना सोया, न ठीठुरे तन सर्दी में
समाज सदा रखा ध्यान करते रहे उपकार
कल कारखाने के सरदार किया उपकार
अनिश्चित होने पर दिया गांव, घर जाने का खर्चा
दीया भरोसा करूंगा सदा उपकार
तुम ही से मै हूं, मेरे से हो तुम
करो एक दूसरे को उपकार ।
है प्रीत जहां की रीत सदा.....!
मैं गीत वहां का गाता हूं।
भारत के रहने वाला हूं
भारत की बात सुनाता हूं।

- विजयेन्द्र मोहन
बोकारो - झारखंड
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उपकार
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रोजगार जिसका छिन गया
उस गरीब की सुने न कोई पुकार
कैसे वापिस अब होगा
लिया बैंक से जो उधार
सुबह से शाम ठोकरें खा रहा
खून पसीना अपना बहा रहा
मुश्किल है परिवार का पेट पालना
भार कंधों पर बढ़ता ही जा रहा
आशियाना भी नहीं अपना
सब बैंक का उधार है
किश्त कैसे भरेंगे
जब नहीं रोजगार है
अब तो भगवान ही करेंगे उपकार
सुनेंगे गरीब की पुकार
डूब रही है नैया हमारी
हर कोई रहा हमें दुत्कार
दोस्तों से भी क्या मांगे
वो भी जब खुद हैं लाचार
बिना स्वार्थ के इस जहां में
कोई नहीं करता उपकार
अर्ज मेरी तू सुन ले दाता
सब पर तु कर दे उपकार
दीन दुखी कोई रहे न जग में
करूँ मैं बिनती बारम्बार

- रवींद्र कुमार शर्मा
बिलासपुर - हिमाचल प्रदेश
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उपकार
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अपकार का बदला भी उपकार से देता है
देवता होता है वो नर वो श्रेष्ठ होता है।
उपकार का बदला जो अपकार से देता है
राक्षस समान होता वो नर वो नेष्ठ होता है।

    सागर में फैंके हैं चीजें
    धरती पर खींचें हैं लकीरें
    पेड़ काट वे आग लगाते
   प्यार पाते चलाते शमशीरें
ईश्वर फिर भी प्रेम हृदय में बोता है
देवता होता है वो नर वो श्रेष्ठ होता है।

      संसार को तो प्रेम चलाता है
    जैसा बोए वैसा फल पाता है
  हिंसा फैलाता तो मिलती है घृणा
  प्रेम तो प्रेम को ही खींचता है
संत सब भूल सबको गले लगाता है
देवता होता है वो नर वो श्रेष्ठ होता है।
उपकार का बदला जो अपकार से देता है
राक्षस समान होता है वो नर वो नेष्ठ होता है।


- प्रो डॉ दिवाकर दिनेश गौड़
गोधरा - गुजरात
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उपकार 
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स्वस्थ रहें स्वयं हम 
नियम से रहें हम 
तब उपकार करें 
सबको बचाइये 

यही उपकार होगा 
हर जन स्वस्थ रहे 
स्वस्थ रह कर सभी 
कोरोना भगाइये

हाथ सदा धोयें हम 
गले नहीं मिले हम 
हाथ न मिलाए करें 
नमस्ते बताइये

देश प्रेम हिय रहे 
सदा प्रेम गंगा बहे 
सबके हृदय बीच 
ईश्वर बसाइये।

- डॉ. भारती वर्मा बौड़ाई
देहरादून - उत्तराखंड
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उपकार
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उपकार हेतु ही जन्म लिया ,
देखो ! प्रसून की महानता ।

काटों में खिलकर भी हंसता ,
कितनी पावन है उदारता । 

बन प्रसून खुशबू बिखरा दो ,
 पुष्प हृदय सी विशालता ।

 तालमेल काटो संग सीखो ,
मधुबन  जैसी  उदारता ।

पुष्प सिखाता परिवर्तन को,
 यही पुष्प की महानता ।

प्रेम सिखाता त्याग सिखाता,
 बनकर जग की सुंदरता ।

पुष्पों के  उपकार  निराले ,
सुख दुख में यह साथ निभाता ।

मृत शैया पर ये बिछ जाता,
 यह सुहाग की सेज सजाता।

 दुल्हन का गजरा बन जाता ,
देवों के सिर भक्त  चढाता ।

 राष्ट्र पताका  में जा बंधता 
 औषधियां तक यह बन जाता।

 यह परिवर्तन का द्योतक है,
 जीवन का संदेश सुनाता ।

राग सुनाता गीत सुनाता ,
बिखरा जग में सुंदरता ।

उपकार हेतु ही  जन्म लिया ,
देखो ! प्रसून की महानता ।

- सुषमा दीक्षित शुक्ला
लखनऊ - उत्तर प्रदेश
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ममता की पुकार 
**************

ममता मन की करुण पुकार थी ।
नभ मंडल जल थल पर खेल रही थी ।
सुन्दर मन उपकार लिये गीत 
सपनो के सजा रही थी ।

भीख माँग उदगार दिलों में चुभो रही थी ।
मन कहता अनमोल जीवन है ।
चला रही अबोध बाला ,
जीवनअद्भुत लीलाये थी ।

मैले गन्दे चिथड़े कपड़ों से अपने ।
उज्ज्वल तन को छिपा रही थी ।।
देख आँख गिद्ध दृष्टि पड़ती थी ।
आँखों से अंगारे बरसा रही थी ।।

बंद आँखों में सुंदर सपने सज़ा रही थी ।
 ममता की पुकार कह उठती थी ।।
वो मेरी मैया वो भैया दीदी कह दो ।
काल ने दी जीवन में ऐसी घात है !
उपकार चाहूँगी जीवन आधार बनो । 
हाथ पकड़ मोहे बिटिया बहना लो ।।
सेवा कर उपकार ना भूलूँगी ।
मोहे राह दिखा दो मानवता की ।।
वो मेरी मैया वो मेरे भैया 
ममता की पुकार बनी है । 

 - अनिता शरद झा 
रायपुर - छत्तीसगढ़ 
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उपकार
*****

देख जगत को गौर से ,कर रहा है पुकार,
संभल जाओ तुम अभी ,कर दो ये उपकार।

चीख औ पुकार है मचा,बचा लो आप जान,
ज़रूरी हो तब निकलो,घर से बातें मान।

कर रहे उपकार कई,अथक परिश्रम आज,
जान कि बाज़ी डाल कर,सेवा का यह काज।

फैली बीमारी अजब ,बच कर रहिए आप।
मास्क है ज़रूरी अभी,काम न आए जाप।

जो करते उपकार तो ,होता उसका नाम।
नेक बड़ा यह काज है,पा जाता वह धाम।।

- सविता गुप्ता 
राँची - झारखंड 
====================
उपकार
******

उपकार और परहित ही, मानव का हो आचार।
पीर पराई से हो द्रवित, करुणा हो मन में अपार।। 
दूर करे किसी की पीड़ा, सच्चा मानव कहलाता।
भरा जो मन दया भाव से, संतोष सदा वह पाता।। 

दृष्टि वो अनुपम होती है, जो दूसरे के दर्द को देखे। 
हृदय वही पवित्र है, दूजे पैरों की बिवाई जो देखे।। 
देख पराई पीड़ा को, नम हो जायें जिसके नयन। 
प्रभु की कृपा पाये वो, जो दूजी व्यथा को देखे।।

निज मन सदा संकल्प धरो, मधुर करो व्यवहार।
मानव बन प्रयत्न करो, निज लक्ष्य रहे परोपकार।। 
निस्वार्थ कर्म करो सदा, सहृदयता से पूर्ण हो हृदय। 
मानवता का पथ ही, मानव जीवन का है आधार।। 

- सतेन्द्र शर्मा 'तरंग' 
देहरादून - उत्तराखण्ड
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उपकार
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उपकार बड़ा जगत में,
करना सीख ले इंसान,
परहित में जो जी रहा,
वो है देव रूप भगवान।

पापी निशाचर जग में,
करते उल्टे सदा काम,
नरक के पापी कहाते,
जल्दी जाएंगे श्ममाान।

दधिच ऋषि को देखो,
अस्थि पिंजर दे दान,
वज्र बना इंद्रदेव का,
बहुत बड़ा बलिदान।

सगर,अंशुमान के तप,
गंगा धरा पर न आई,
भागीरथ की सेवा से,
गंगा धरती, पर आई।

स्वार्थहीन वो काम हैं,
जिनसे बनते बड़े काम,
उपकार वो धर्म कहो,
जिनसे होता बड़ा नाम।

उपकार दिल में भरा,
परिश्रम करे दिन रात,
ऐसे जन का प्रभु भी,
सदा देता आया साथ।।

- होशियार सिंह यादव
महेंद्रगढ़ - हरियाणा
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उपकार 
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कुदरत ने सिखाया है हँसना
हँसना  ही हमारा  है गहना।।

है सबसे बड़ा ‘ उपकार ‘ यही
ईश्वर में सिखाया है हँसना।।

हँस कर सब ग़म भूले जाते
सबका सबसे है यही कहना।।

अनजाने अपने बन जाते
हँसना मिल कर हँसते रहना।।

यदि देना कुछ उपहार  तुम्हें
बस प्यार लुटाते ही रहना।।

मेरा ‘ उदार’ मन कहता है
इतना उपकार सदा करना।।

- डॉ० दुर्गा सिन्हा’ उदार ‘
फ़रीदाबाद - हरियाणा
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उपकार
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कविता- प्रेरक जीवन
हर कर्म का फल भोगना,
यह रीत है संसार की।
फैलती सुगंध चहुं दिस,
सुकर्म की, उपकार की।।
उपकार, एक मानवीय गुण
यह सदा से ही रहा।
उपकार की खातिर यहां
अवतारों ने भी दुख सहा।।
मिलता सुखद परिणाम अंततः
उपकार के हर काम का।
देखिए जीवन चरित्र
श्रीकृष्ण का श्रीराम का।।
बुद्ध,नानक, गांधी आदि
सब रहे उपकारी जन।
प्रेरणा जन मन को देता,
उपकार हित इनका जीवन।।

- डॉ.अनिल शर्मा 'अनिल'
धामपुर - उत्तर प्रदेश
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उपकार
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मेरी माता तू हम पर ये उपकार कर
हो न नफरत कही भी चमत्कार कर|1

सब ही कहते है माँ शक्तिशाली है तू
आ सभी पापियों  का माँ संहार कर|2

कर कृपा अब दुखी  ना कोई भी रहे
अन्न धन से सभी के तू भण्डार  भर|3

जुल्म बढता ही जाता  है आ देख ले
रूप महा चण्डिका तू इख्तियार कर|4

जुल्म की सब घटाऐं मिटा करके तू 
जगत जननी माँ जग का उद्धार कर|5

नारी जाति कोअपनी सी शक्ति दे तू
विनती माँ प्रेम की अब स्वीकार कर|6

- डा. प्रमोद शर्मा प्रेम 
नजीबाबाद - उत्तर प्रदेश
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उपकार
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प्रभु करना तुम, मुझपे इतना उपकार
जब भी बोलूं, वाणी में, मेरी झलके प्यार
गमजदा हो कोई, उसका गम मैं भुला दूं
हंसा ना हो कई दिन से, उसको मैं हंसा दूं
प्रभु कभी न देना, किसी को गम की मार
प्रभु करना तुम, मुझपे इतना उपकार


 - नजीब जहां
 मुरादाबाद - उत्तर प्रदेश
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