कर्म का आधार क्या होना चाहिए ?

जीवन में प्रमुख  कर्म होता है । जिससे जीवन चलता है । जीवन के लिए कर्म एक आत्मा के समान है । जो जीवन के लिए सवोच्च है । परन्तु कर्म का आधार भी होता है । जो सस्कारों के विचार पर निर्भर होता है। यहीं कुछ जैमिनी अकादमी द्वारा " आज की चर्चा " का प्रमुख विषय है । अब आये विचारों को देखते हैं : - 
प्रत्येक व्यक्ति अपनी उन्नति के लिए कर्म करता है।यह स्वाभाविक भी है और आवश्यक भी। 
परन्तु अपनी उन्नति हेतु जो कर्म मनुष्य करता है उनका आधार सदैव सामाजिक एवं मानवीय सरोकारों से युक्त होना चाहिए। क्योंकि स्वस्थ समाज का विकास तभी संभव है जब समाज के प्रत्येक व्यक्ति के कर्मों का आधार सर्वहित हो। 
"मानव वही समझे जो, मानवता का मर्म, 
सदाशयता हो मन में, स्वभाव मधुर नर्म। 
समरसता की राह पर, बढ़ते जायें कदम, 
मानवता ही धर्म हो, मानवता ही कर्म।।"
वर्तमान युग की विडम्बना यही है कि हमारे विचार और कर्म स्वार्थ के धरातल पर खड़े होते हैं। स्वार्थपूर्ति हेतु आज का मनुष्य अपने कर्मों का आधार कपट, परहानि और मात्र आत्म-उन्नति को ही बनाता है।
जबकि मनुष्य को आत्मसंतोष तभी प्राप्त होता है जब उसके कर्मों का आधार स्वयं की उन्नति के साथ-साथ दूसरों की उन्नति का मार्ग प्रशस्त करना भी हो।
महर्षि दयानन्द जी ने भी कहा है कि.....
"सबकी उन्नति में ही अपनी उन्नति है"
इसीलिये कहता हूँ कि.......
👉यदि कर्म का आधार...... 
👉मेरी उन्नति, मेरा सम्मान, मेरी विजय है तो यह "एक सकारात्मक आधार" है।
👉बस मेरी उन्नति, बस मेरा सम्मान, बस मेरी विजय है तो यह "एक नकारात्मक आधार" है। 
👉बस मेरी ही उन्नति, बस मेरा ही सम्मान, बस मेरी ही विजय है तो यह "एक निकृष्टतम आधार" है।
- सतेन्द्र शर्मा 'तरंग' 
देहरादून - उत्तराखण्ड
घर परिवार समाज और राष्ट्र के प्रति अपने दायित्व  को सही ढंग से कर्तव्य परायणता  और नैतिकता के साथ मानवीय मूल्यों का ध्यान रखते हुए निभाना ही कर्म का आधार होना चाहिए। रूप रंग जातिभेद ऊंच-नीच आदि  को कर्म करते समय दूर ही रखना चाहिए अर्थात हमारा कर्म इन सब चीजों से प्रभावित न हो। श्री रामचरितमानस में तुलसीदास जी ने कहा भी है
"कर्म प्रधान विश्व करि राखा"
अतः बिना फल की प्रतीक्षा किए या उसके संबंध में सोचते हुए मानवीयता और प्रेम व्यवहार के साथ इंसान को अपने कर्म करने चाहिए।
- गायत्री ठाकुर "सक्षम" 
नरसिंहपुर - मध्य प्रदेश
कर्म का आधार,जीव के विचार होते हैं। पहले कोई भी कर्म विचार रुप में होता है।इस विचार के प्रेरक के रुप में हमारा परिवेश,आवश्यकता, खान-पान, जलवायु,रहन सहन और मनोदशा आदि प्रभावी रहते हैं। इसमें एक तथ्य और यह भी महत्वपूर्ण है कि कभी कभी हम बिना विचार, अचानक ऐसा कर्म कर बैठते हैं, जिसके बारे में कभी विचार ही नहीं था। इसका कारण, हमारे पूर्व कर्म होते हैं जिनके परिणाम के लिए कोई अदृश्य सत्ता हमसे वह कर्म करा बैठती है। अब आज के मूल विषय पर आते हैं। मेरे विचार से,कर्म का आधार सर्वे भवन्तु सुखिन: ही होना चाहिए। अनावश्यक किसी को हमसे कष्ट न हो,यह ही होना चाहिए।इस सबके साथ अपना हित साधन तो हर जीव की प्रवृत्ति होती ही है।
- डॉ.अनिल शर्मा 'अनिल'
धामपुर - उत्तर प्रदेश
कर्म का आधार धैर्य होना चाहिए और सच्चाई के साथ अपने कार्य को पूरी निष्ठा से करना चाहिए।
सच्चाई बहुत जरूरी चीज होती है सच्चा व्यक्ति नजर से नजर मिला कर बात कर सकता है और जिसके मन में बुराई या चोर बसा होता है वह कभी किसी से नजर मिला कर बात नहीं कर सकता है उसकी नजर हमेशा नीचे झुकी होती है क्योंकि मन सब कुछ जानता है ,  झूठे का भेद बताता है हम अपने मन को मार कर ही झूठ बोलते हैं।
आशावादी और सत्यवादी लोग हमेशा मुसीबत के समय भी सत्य के साथ खड़े रहते हैं और भगवान उनकी मदद करता है।
जीवन का कर्म फल को यहीं पर भोक्ता है उसका स्वर्ग नर्क यही है यह सब उसके कर्म के आधार पर होता है सच का रास्ता बहुत कठिन होता है और सच कड़वा भी होता है एक बार बुरा लगता है परंतु बाद में उस व्यक्ति को सब लोग समझ जाते हैं। एक विद्वान ने कहा है-
"संगति मनुष्य के लिए क्या नहीं करती वह उसकी मूर्खता को दूर कर विवेक जागृत करती है उसमें सत्य का सिंचन करती है"मानो तो जन्मजात बुद्धि प्राप्त होती है अच्छे बुरे का भेद नहीं कर पाता यह ज्ञान उसको महापुरुष और सत्संग से ही आता है। तुलसीदास जी ने लिखा है,"बिनु सत्संग विवेक न होई"महात्मा गांधी ने अपनी आत्मकथा में लिखा है कि सत्य की राह में चलने की प्रेरणा उन्हें हरिश्चंद्र नाटक को देखकर मिली बाद में उन्होंने पूरी कथा पड़ी।तुलसीदास जी रचित रामचरितमानस वे वेद व्यास रचित भगवद्गीता आपको जन जन के जीवन में सही मार्ग में चलने की प्रेरणा देती है।साहित्य न जाने कितने भटके को राह दिखाता है और यह कहना भी कठिन है संगत से जीवन समरता है और कुसंगति से विनाश एवं नष्ट होता है।
कबीर संगति साधु की, बैगि करियै जाई।
दुरमति दूरि गवाइइसौ, देसी सुमति बताई।।
- प्रीति मिश्रा 
जबलपुर - मध्य प्रदेश
     हमारी विकेन्द्रित में सफलता अर्जित करने कर्म को वशीभूत करने  आधारभूत की आवश्यकता प्रतीत होती हैं और अंतिम समय तक वही कर्मता प्रधान होते जाता हैं, जिसके परिपेक्ष्य में परिणाम सार्थक होते जाते हैं, लेकिन कर्म करना भी आवश्यक हैं,  जब तक हम किसी भी तरह का कोई कर्म ही नहीं करेंगे और फल की इच्छाएं करेंगे, तो कहा तक उचित प्रतीत होता हैं। वैसे भी मानव कर्म की जगह इच्छाशक्ति पर विकास पर विश्वास करता चला जा रहा हैं, जिसका प्रतिफल यह भी होता हैं, कि
अंतिम समय में दुष्परिणाम गंभीर होते  जाते हैं, फिर याद किया जाता हैं,  जैसा कर्म करोगे तो उसे वैसा ही फल भोगेगा यह चरित्रार्थ हैं? इसलिए जीवन में हमें क्या करना हैं, उसकी योजनाऐं होनी चाहिए ताकि अपने लक्ष्य की ओर अग्रसर हो सकें।
- आचार्य डाॅ.वीरेन्द्र सिंह गहरवार 'वीर' 
   बालाघाट - मध्यप्रदेश
कर्म का आधार .....परिश्रम .....सतत प्रयास ......होना चाहिए
अच्छे कर्म के लिए लक्ष्य निर्धारित और स्पष्ट होना चाहिए व कर्म के लिए सच्ची लगन आधार रूप में होना आवश्यक है
कर्म यदि सच्ची निष्ठा से हर संभव  प्रयास से किया गया हो तो सफलता को कोई रोक नहीं सकता
भगवान् भी उनकी सहायता करते जो अपनी सहायता स्वयं करते हैं अर्थात अपना कर्म स्वयं पूर्ण करके फिर फल की इच्छा करते हैं
- नंदिता बाली
सोलन - हिमाचल प्रदेश
  कर्म का आधार सर्व कल्याण की भावना से प्रेरित होनी चाहिए। अपने लिए तो कर्म सभी करते हैं  दूसरों के लिए जो करे वही कर्म कहा जाता है। जिससे समाज का कल्याण हो, देश का कल्याण हो,बहुजन हिताय बहुजन सुखाय की भावनाओं वाली क्रियाकलापों को ही कर्म का आधार बनाना चाहिए। वैसे कर्म तीन प्रकार के होते कर्म अकर्म और सुकर्म। कर्म तो सभी करते हैं। अकर्म वो होता है जिसका कोई मतलब नहीं निकलता। समय, परिश्रम और पैसा बेकार जाता है। सुकर्म वो होता है जिसका परिणाम दुनिया में हर किसी के लिए उपयोगी सिद्ध होता है। और वही सुकर्म सफल होता है जिसका आधार सर्व उन्नति की भावना  लिए हुए हो। कर्म का आधार शुभ भावना ,मानव कल्याण,जग हितैषी, दयालुता, भविषदर्शिता इत्यादि गुणों से परिपूर्ण होना चाहिए। ऐसे गुणों को अपने कर्मों का आधार बनाने वाले ही अपने कर्मों से दुनिया में अपना नाम अमर कर जाते हैं। इसलिए हमारे कर्म का आधार शुद्ध ,सात्विक, परोपकारी ,सुखमय एवं आनंदकारी होना चाहिए।
- दिनेश चन्द्र प्रसाद "दीनेश" 
कलकत्ता - पं. बंगाल
श्री कृष्ण ने गुरु के माध्यम से कर्म को चार भागों में बांटा है। गुड़ ही एकमात्र पैमाना है। मापदंड है। नाम से गुण होगा तो आलस्य निद्रा प्रसाद कर्म में न प्रवित्र होने का स्वभाव जानते हुए भी और कर्तव्य से मेरी भी थी ना हो पाने की व्यवस्था रहेगी। मनुष्य जैसा संकल्प लेने लगता है वैसा ही आचरण करता है और जैसा आचरण करता है फिर वैसा ही बन जाता है। जिन बातों का बार बार विचार करता है धीरे-धीरे वैसे ही इच्छा हो जाती है फिर उसी के अनुसार वार्ता आचरण कर्म और कर मानुष सारणी गति होती है। स्पष्ट है कि अच्छे आचरण एवं चरित्र के लिए अच्छे विचारों को लाना चाहिए। बुरे कर्मों को त्यागने से पहले बुरे विचारों को त्यागना चाहिए जो बुरे विचारों का त्याग नहीं करता वह कर्मों से छुटकारा नहीं पा सकता कर्म का आधार विचार है। कितने ही व्यक्ति दुराचार दुर्व्यवहार आदि को छोड़ना चाहते हैं। मघपाई, वेश्यागामी व्यस्तता के कारण दुखी होता है। वह व्यसन कुछ होना चाहता है। उपाय भी ढूंढता है सत्य पुरुषों के पास जाता भी है। छोड़ने की प्रतिज्ञा भी कर लेता है परंतु जो सावधानी दुराचारों के बराबर चिंतन और मनन का परित्याग करता है। उसका स्मरण ही नहीं आने देता।  विचार आते ही उसे काट देता है तो छुटकारा पा जाता है परंतु जो पूरे विचारों को लूटना छोड़ कर अच्छे विचारों उनका रस लेता रहता है वह कभी बुरे कर्मों से छुटकारा नहीं पा सकता वह बार-बार प्रतिज्ञा करता तोड़ ताड़ पछताता है।
- अंकिता सिन्हा कवयित्री
जमशेदपुर - झारखंड
कर्म का आधार हो स्पष्ट लक्ष्य और उस पर योजनाबद्ध तरीके सत्य की राह पर चलते हुए पूर्ण ईमानदारी से धैर्यपूर्वक कार्य करना। इस प्रकार से कर्म करने से हम अपने लक्ष्य पर पहुंचने वाली राह में आती बाधाओं को पार करते हुए सफलतापूर्वक लक्ष्य प्राप्त कर सकेंगे।
- सुदर्शन खन्ना 
 दिल्ली 
 हम कौन से ऐसे कर्म करें जो उच्चश्रेणी में गिने जाए तभी वह सार्थक कर्म होगें ।खाना ,अपना दैनिक कर्म करना , सोना ये तो पशु -पक्षी भी कर लेते हैं । मानव का कर्म सत्यऔर धर्म की  स्थापना के लिए होना चाहिए  । समाज में न्याय व्यवस्था स्थापित हो  ऐसे कर्म करने चाहिए । परस्पर प्रेम  और सहयोग की भावना पनपे , हमें  ऐसे  कर्म करने चाहिए ।यह सब एक के किए नहीं होगा ।कोई कार्य जब समूह में बढ़ता है तभी सफल होता है ।कर्म हर क्षेत्र की उन्नति के लिए होना चाहिए । कर्म शुभ होने चाहिए ।
- कमला अग्रवाल
गाजियाबाद - उत्तर प्रदेश
कर्म का आधार अपने दायित्वों का शुचिता से निर्वहन होना चाहिए। स्वयं, परिवार, समाज और राष्ट्र के लिए आपके जो प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से दायित्व हैं, उनका मन,वचन और कर्म के साथ, सच्ची लगन,निष्ठा और निष्पक्ष रहकर, सामर्थ्य के अनुरूप निभाना चाहिए। यही कर्म है। यही सत्कर्म है। यही आदर्श है। सामाजिक जीवन की सुख-समृद्धि का सरल,सरस और सहज पथ यही है।  इसमें कमियाँ ही अशांति और अवरोध का कारण बनती हैं।
- नरेन्द्र श्रीवास्तव
गाडरवारा - मध्यप्रदेश
कर्म का आधार स्वयं पर विश्वास होना चाहिए। मन पर अगाध नियंत्रण होना चाहिए। मन के हारे हार है मन के जीते जीत। आत्मविश्वास ही सफलता की कुंजी है। कदमों के तले फूल हो या काँटे कदम लड़खड़ाने नहीं चाहिए। स्वयं पर इतना व्यापक विश्वास हो कि कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन से आगे अहम् परिपूर्णः की भावना से हर कार्य सफलता प्राप्त करे।
        सूरजमुखी सूर्योदय के साथ उमग कर सूर्य के साथ ही उसी दिशा में झुक जाता है--इतना ही समर्पण भाव आपके भीतर हो अपने कर्म के लिए। एक कथा है--एक बार गुरुजी ने शिष्यों से कहा बाँस की टोकरी में नदी से पानी भर ला के मेरी कुटिया धो लें।पानी बह जाता - - सब थक हार के बैठ गए। एक शिष्य को स्वयं पर अगाध विश्वास था। वह टोकरी भर कर लाता ही रहा। एक समय ऐसा आया कि लगातार पानी रहने से बाँस फूल गये और शिष्य ने उस पानी से कुटिया धो कर कर्म के प्रति अपने अथाह विश्वास को  सिद्ध किया।
- हेमलता मिश्र "मानवी" 
नागपुर - महाराष्ट्र 
       गीता का उपदेश सिखलाता है कि कर्मों के आधार की सूची में मानवता और राष्ट्रभक्ति नामक कर्म सर्वोत्तम, सर्वश्रेष्ठ और सर्वोपरि होता है। जिस पर राष्ट्र ही नहीं बल्कि अंतरराष्ट्रीय मानवता भी गर्व करती है। जो जीवनकाल में और जीवन उपरांत भी जारी रहता है। अर्थात युगों-युगों तक पूज्यनीय होता है।
       अतः जीवन के संघर्षों में परिस्थितियां कैसी भी रहें कर्मवीरों को अपने दायित्वों का निर्वहन करने में मौलिक अधिकारों से अधिक मौलिक कर्तव्यों का पालन करते हुए मानवता और राष्ट्रभक्ति को हमेशा प्राथमिक आधार बनाएं।
- इन्दु भूषण बाली
जम्मू - जम्मू कश्मीर
बिना किसी कारण के कर्म संभव नहीं है l यह कार्य -कारण का सिद्धांत भौतिक जगत में ही लागू नहीं होता अपितु हमारे विचारों, शब्दों और कार्यो के साथ साथ उन कर्मों पर भी लागू होते हैं जिनके द्वारा हमारे निर्देशों की पालना की जाती है l
गीता में कहा है -जैसा कर्म करेगा वैसा फल देगा भगवान.... अतः हमारे कर्मों का आधार मानव जीवन को सत्यम, शिवम और सुंदरम का उपासक बनाना होना चाहिए l चाहें कर्म हम विचारों के माध्यम से, शब्दों के माध्यम से, क्रिया या आदेश के माध्यम से क्यों न करें l चौरासी लाख योनियों में से मानव जीवन में ही हम अपने भावी भाग्य को कर्म के आधार पर बदल सकते है l मानस 
में कहा है-
बड़े भाग मानुष तन पावा
सुर दुर्लभ सद ग्रंथहि गावा l
हमारे कर्म के आधार --
1. देवीय शक्तियाँ हैं -वेद दर्शन, सांख्य दर्शन, मीमांसा दर्शन आधारभूत प्रदर्शक हैं l
2. गुरुवाणी का आधार -गुरु ब्रह्मा, गुरु विष्णु..... गुरु ब्रह्मा, विष्णु,महेश के रूप में हमारे कर्मों के नियंता हैं l गीता की व्याख्याएँ ही हमारे कर्मों का आधार हैं l
3. धर्म शास्त्र -वह दर्शन है जिसमें कर्म के कारण और प्रभाव एक दूसरे से नैतिक क्षेत्र में अविभाजित रूप से जुड़े हैं तथा भौतिक रूप से भी कल्पित हैं कि अच्छे कर्म के लिए पुरस्कार और बुरे कर्म के लिए दण्ड परिणाम रूप में आधारित है l कर्म फल तो व्यक्ति को भोगना ही पड़ता है l इस जन्म में नहीं तो अगले जन्म में ही सही l इसे प्रारब्ध कहा गया है l
4. उपनिषद में लिखा है -हम अपने कर्म ईश्वर को समर्पित कर देते हैं तो हमारे कर्म क़ानून के अधीन नहीं होंगे l
5. प्रत्येक कर्म का आधार उसका नैतिक /अनैतिक पक्ष होता है l व्यक्ति की आत्मा की आवाज़ पर व्यक्ति के कर्म आधारित होते हैं l
6. हमारी संकल्प शक्ति कर्म का प्रमुख आधार है l और संकल्प ही हमारी चेतना का निर्माण एवं वृति को प्रभावित करते हैं l
कर्म प्रधान विश्व रचि रखा...
         चलते चलते ----
मनुष्य के सभी कर्म किसी एक या अधिक आधारों पर आधारित होते हैं l मौका या अवसर, प्रकृति, मजबूरी, आदत, जूनून और इच्छाl l
   - डॉ. छाया शर्मा
अजमेर - राजस्थान
कर्म का आधार है "विचार" -क्योंकि जैसे हमारे विचार होंगे वैसे हमारे कर्म होंगे।अच्छे विचार होंगे तो अच्छे कर्म होंगे और बुरे विचार होंगे तो बुरे कर्म होंगे।और इन्हीं कर्मों से हमारा प्रारब्ध बनता है।अशुभ कर्मों का फल अशुभ  होता है इससे दुर्भाग्य  बनता है । शुभ कर्मों का फल शुभ दायी होता है और    सौभाग्य का निर्माण होता है।जीवन में दुःख आने पर हम व्यर्थ ही ईश्वर को दोष देते हैं जब कि भाग्य के निर्माता हम स्वयं हैं और सबका आधार है  विचार।
एक बात और महत्वपूर्ण है अपनी बुद्धि को नियंत्रित कर सोच समझ कर जब कर्म किये जायेंगे तभी सफलता मिलेगी।कभी कभी देखा जाता है कि हम विचार कुछ और करते हैं कर्म कुछ अलग कर जाते हैं ऐसी डाँवाडोल की स्थिति में जब कार्य किये जायेंगे सफलता कभी नहीं मिलेगी अतः अपने  अच्छे विचारों पर अडिग रहें और कर्म करें सफलता अवश्य मिलेगी।
अगर आपको मेरे विचार अच्छे लगे हों तो लाइक अवश्य कीजियेगा और अपने सुझाव दीजिएगा।
- इन्दिरा तिवारी
रायपुर - छत्तीसगढ़
 कर्म का आधार उत्तम विचार होना चाहिए। अच्छे विचार से इंसान अच्छे कर्म की ओर प्रवृत्त होता है। अच्छे विचार अच्छी संगत व संस्कार से आते हैं।अच्छी सोच व विचार द्वारा हम संकल्पवद्ध रहते हैं कि श्रेष्ठ गुणों को हासिल करें।
 बुरे कर्म, आचरण और दुराचार से दूर रहें। मन में जैसा विचार होता है उसी के अनुसार इच्छा जागृत होती है उसी के अनुसार बात व्यवहार, आचरण,कर्म, कर्मानुसारिणी गति होती है।
    अच्छे कर्म, अच्छे विचार से ही प्राणी धन्य धान्य संपन्न ,समृद्ध व सम्राट बनता है। अच्छी संगत, अच्छी इच्छा और उत्तम साधनों का सहारा लेकर इच्छित वस्तु की प्राप्ति होती है या मंजिल तक पहुंचने में कामयाबी हासिल होती है।
   अतः अच्छे आचरण, अच्छे चरित्र के लिए अच्छे विचार का होना जरूरी होता है।अच्छे विचार हीं हमें सत्कर्मों की ओर बढ़ने के लिए प्रेरित करते हैं। बुरे विचार मन को अशांत और गलत दिशा की ओर ले जाते हैैं। 
   कर्म का आधार उत्तम विचार होना चाहिए ताकि हमारे हृदय में सात्विकता उत्पन्न हो और हम सत्कर्म की ओर प्रवृत्त रहें।
              -  सुनीता रानी राठौर
           ग्रेटर नोएडा - उत्तर प्रदेश
आज की चर्चा के विषय के अनुरूप मेरी यह राय है की कर्म का आधार हमारे मानस पटल पर पनपते हुए विचार हैं और विचारों का जन्म वातावरण के अनुरूप होता है एक बच्चे को घर ,परिवार, समाज में जैसा वातावरण मिलता है ,वैसे उसके मानस पटल पर विचार पैदा हो जाते हैं, उन्हीं विचारों के आधार पर वह वैसे ही कर्म करने की चेष्टा रचना शुरू कर देता है । 
अच्छा वातावरण अच्छे विचारों को जन्म देते हैं और अच्छे विचार अच्छे कर्म की ओर प्रवृत्त करते हैं । अतः हमारे विचार ही हमारे किसी भी कर्म का आधार हो सकते हैं। सत्संग में बैठा हुआ व्यक्ति सत्वृत्ति का पक्षधर होता है , परोपकार की भावना की ओर ज्यादा सोचता है, वैसे ही कर्म करता है। उसी प्रकार जुर्म, हिंसा एवं नकारात्मक वातावरण मनुष्य के मानस पटल पर वैसे ही विचार पैदा करते हैं और वह वैसे ही कर्म करने का पक्षधर बन जाता है । अतः परिस्थिति ,विचार, व्यवहार, वातावरण विचारों को जन्म देते हैं जो कर्म का आधार बनते हैं। 
- शीला सिंह 
बिलासपुर - हिमाचल प्रदेश
कर्म ही जीवन है समय परिस्थिति आवश्यकता के आधार पर कर्म की सीमा उद्देश्य लक्ष्य बदलता रहता है लेकिन यह बात तो निश्चित है कि कर्म का आधार भावना है धर्म है मानवता एक धर्म है और इस धर्म के आधार पर हम अपने कर्म को करते रहते हैं मानवता को भी कई अर्थों में परिभाषित किया गया है मानवता का सही अर्थ मानव की भावनाएं कभी भावनाएं हमारी उत्साहित होते हैं कभी हतोत्साहित होती हैं लेकिन हमें कर्म करना है और कर्म का एक लक्ष्य बनाना है तो लक्ष्य को पूरा करना एक महा कर्म कहलाता है भावना में सुख-दुख कर्तव्य जिम्मेदारी अधिकार इत्यादि सभी आ जाते हैं हमारे ख्याल से धर्म और भावना कर्म का आधार बनाना उचित होगा
- कुमकुम वेद सेन
मुम्बई - महाराष्ट्र
भगवान श्री कृष्ण ने गुणों के माध्यम से कर्म को चार भागों में बांटा है। गुण ही एकमात्र पैमाना है मापदंड है।
१)तामसिक गुण होगा तो आलस, निद्रा, प्रमाद होने का स्वभाव होगा जानते हुए भी अकर्तव्य से निवृत्ति ना होने की विवशता रहेगी ऐसे लोगों को शुद्र की श्रेणी में रखा गया है।
२)तामसी गुण न्यून होने पर राजसी गुणों की प्रधानता तथा सात्विक गुण के साथ साधक की क्षमता वैश्य श्रेणी की हो जाती है। वही साधक क्षेत्रीय श्रेणी में आ जाएंगे।
३) सात्विक गुण कार्यरत रह जाने पर मन इंद्रियों पर नियंत्रण एकाग्रता सरलता ध्यान समाधि ईश्ववरीय निर्देश आस्तिकता इत्यादि ब्रह्म श्रेणी में कहलाएंगे।
४) जो साधक ब्रह्म में स्थित हो जाता है जो उस अंतिम सीमा में वह स्वयं ना ब्राह्मण रहता है न क्षत्रिय न वैश्य शुद्र किंतु दूसरों के मार्गदर्शन हेतू वही  ब्राह्मण है।
लेखक का विचार:-कर्म एक ही है:-नियत कर्म ,आराधना अवस्था भेद से इसी कर्म को ऊंची नीची चार श्रेणियों में बांटा गया है।
- विजयेन्द्र मोहन
बोकारो - झारखंड
सभी कर्मों का कोई न कोई उद्देश्य अथवा लक्ष्य होता है । अतः किसी भी कर्म के लिए लक्ष्य अच्छा होना चाहिए अर्थात् किसी को हानि पहुंचाने के लिए न हो । 
किसी भी लक्ष्य की प्राप्ति के लिए प्रण के साथ बुलंद हौसले से कर्म करना होता है । साथ ही साथ प्रत्येक व्यक्ति की शारीरिक, मानसिक और आर्थिक क्षमता भी अलग-अलग होती है ।
अतः हम शारीरिक, बौद्धिक और आर्थिक  क्षमता को कर्म का आधार मान सकते हैं ।
- पूनम झा
कोटा - राजस्थान 

   कर्म का आधार मन स्वस्थ और अस्वस्थ होना चाहिए मन स्वस्थ से समझ कर काम किया जाता है और शरीर स्वस्थ से श्रम किया जाता है दोनों ही कर्म है एक मानसिक कर्म और  एक शाररिक कर्म कर्म का आधार समझदारी के साथ श्रम है अगर समझ नहीं होता है तो हमारा कर्म गलत हो जाता है और अगर समझ होती है तो हमारा कर्म सफल हो जाता है अतः का आधार मूलतः  समझ अर्थात ज्ञान है। यही ज्ञान के प्रकाश में हमारा कर्म का आधार ज्ञान से सफल होता है।
 - उर्मिला सिदार 
रायगढ़ - छत्तीसगढ़
"मिटाने से मिटते नहीं, 
यह भाग्य के लेख, 
कर्म अच्छे तू करता चल, 
फिर ईश्वर कि महिमा देख"
देखा जाए मनुष्य जन्म से नहीं कर्म से ही बड़ा होता है, 
जैसे ही प्राणी जन्म लेता है वो कर्म परायण बन जाता है हम जो भी करते हैं हमारे कर्म बन जाते हैं मसलन खाना , पीना उठना  वैठना  वोलना इत्यादी कहने का भाव हम सभी कर्म अपनी पांच इन्द्रियों द्वारा ही करते हैं जिनमें आंखे, कान, नाक मुख व त्वचा इत्यादी आते हैं
तो आईये आज इसी बात पर चर्चा करते हैं कि  कर्म का आधार क्या होना चाहिए? 
मेरा मानना है कि विचार ही कर्मों का अधार होना चाहिए, 
मनुष्य जैसा संकल्प करने लगता है वैसा ही आचऱण करता है फिर वैसा ही बन जाता है, 
उसके मन में जैसे विचार  बार बार आते हैं वैसी ही उसकी इच्छा हो जाती है और फिर उसी के अनुसार वार्ता, आचरण, कर्म और कर्म की गति होती है, 
इसलिए अच्छे आचरण व चरित्र के लिए अच्छे विचारों को लाना चाहिए व बुरे कर्मों को त्यागना चाहिए, 
जो बुरे विचारों को त्याग नहीं सकता वह कर्मों से छुटकारा पा नहीं सकता इसलिए कर्म का अधार  विचार है, 
मनुष्य को चाहिए कि वो बुरे विचारों को अपने पास फटकने न दे
हम जो देखते हैं जो सुनते हैं जो खाते हैं कहने का भाव शरीर द्वारा हम जो भी कर्म करते हैं वोही हमारे संस्कार बन जाते हैं और जैसे हमें संस्कार मिलते हैं वैसे ही हमारे कर्म बन जाते हैं, 
अन्त में यही कहुंगा अच्छे कर्मों के लिए अच्छे विचारों को  लाना चाहिए, अच्छे शास्त्रों का अभ्यास अच्छे परूषों का संग कहने से अच्छे विचार बनते हैं और बुरे लोगों के संग से बुरे विचार बनते हैं व बुरे कर्म पनपने लगते हैं जिससे प्राणी का पतन हो जाता है दुसरी जगह अच्छे कर्म अच्छे आचरण रखने से व्यक्ति सम्राट धन धान्य  का सहारा लेकर मनचाही वस्तु पा लेता है
इसलिए हर प्राणी को अच्छे कर्म ही करने चाहिए, 
कर्म एक क्रिया है चाहे वो शारीरिक हो या मानसिक पर्त्येक क्रिया का परिणाम होता है और प्रकृति के अनुसार मानव को अपने सभी किए गए गलत कार्यों का भुगतान भुगतना पड़ता है
इसलिए अच्छे कर्मों के लिए अच्छे विचारों को लाना ही  जरूरी है कहने का भाव  विचार ही कर्मों का आधार है
जिससे हम अच्छे इंसान बन सकते हैं, 
सच कहा है, 
"इंसानियत दिल में  होती है हैसियत में नहीं, 
उपर वाला कर्म देखता है वसीयत नहीं। 
- सुदर्शन कुमार शर्मा
जम्मू - जम्मू कश्मीर
जीवन में कर्म तो करते रहना है ...किंतु हमारे कर्म ही हमें राह दिखाते हैं ...किये कर्म का फलकहते हैं धर्म के अनुसार कर्म का फल भोगना होता है ! हमें हमेशा अच्छे कर्म करने चाहिए !इसके लिए जिस कार्य को करने का हम निर्णय लेते हैं उस कार्य को करने में हमारी मंशा अच्छी होनी चाहिए !यदि हमारे विचार अच्छे हैं तो हमारी मंशा भी सही रहेगी ! 
बहुत ही मुश्किल से मनुष्य का जन्म मिलता है ! हमारे अच्छे कर्म ही हमें मोक्ष दिलाते हैं ! हमें कर्म मात्र अपने आत्मिक सत्य के आधार पर करना चाहिए !तृष्णा का त्याग और आंतरशुद्धि से ही हम कर्म करना चाहिए !
दूसरे के हित में किया कर्म सदा हमें सुख देता है ! माता पिता की सेवा के लिए किया हुआ कर्म धर्म के अनुसार ही फल देता है !सद आचरण , विचार हमारे कर्म के आधार हैं ! 
         - चंद्रिका व्यास
      मुंबई - महाराष्ट्र
कर्म का आधार विचार होते हैं। मनुष्य जैसा संकल्प करने लगता है वैसा ही आचरण करता है ,और जैसा आचरण करता है फिर वैसा ही बन जाता है ।
जिन बातों का बार-बार विचार करता है फिर उसी के अनुसार वार्ता और आचरण तथा कर्म एवं क्रमानुसार गति होती है ।
स्पष्ट है कि अच्छे आचरण और चरित्र के लिए अच्छे विचार लाने चाहिए ।
बुरे कर्मों को त्यागने से पहले बुरे विचारों को त्यागना होगा ।
जो बुरे विचारों को नहीं त्याग  पाता वह बुरे कर्मों से छुटकारा नहीं पा सकता ।
जाहिर है कि कर्म का आधार विचार है ।
श्री कृष्ण ने गुणों के माध्यम से कर्मों को 3 भागों में बांटा है रजोगुण तमो गुण सद्गुण ।
कर्मों का आधार जो है निश्चित रूप से विचार है।
- सुषमा दीक्षित शुक्ला
लखनऊ - उत्तर प्रदेश


" मेरी दृष्टि में " कर्म का आधार अपनी सोच पर निर्भर करता  है । जो सस्कारों से सोच उत्पन्न होती है । यही कर्म का आधार बनता है । बाकी तो कर्म से कर्म मिलता है ।
- बीजेन्द्र जैमिनी

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