बोलते समय शब्दों पर नियन्त्रण क्यों आवश्यक है ?

बोलते समय हम अपने ऊपर नियन्त्रण रखना चाहिए । नहीं तो कोई ना कोई नुकसान होने में देर नहीं होती है । इसलिए बोलते समय शब्दों पर नियन्त्रण रखना चाहिए । यही कुछ जैमिनी अकादमी द्वारा " आज की चर्चा " का प्रमुख विषय है । अब आये विचारों को देखते हैं : -
कबीरदास जी का दोहा किसने नहीं पढ़ा होगा......
"ऐसी बानी बोलिए, मन का आपा खोय।
औरन को शीतल करै, आपहु शीतल होय।।"
परन्तु व्यवहार में इस दोहे के अर्थ को कितने व्यक्ति अपनाते हैं?
मनोवैज्ञानिक कहते हैं कि मनुष्य को क्रोध आना, भावातिरेक हो जाना एक स्वाभाविक बात है। इन अवस्थाओं में मनुष्य अपने शब्दों पर नियन्त्रण खो देता है। परन्तु क्रोध अथवा भावों के आवेग को नियन्त्रित करना मनुष्य के मस्तिष्क की क्षमता में आता है। उस क्षमता का उपयोग कर,  क्रोध अथवा भावों के प्रवाह में भी मनुष्य अपने शब्दों को नियन्त्रित कर सकता है।
शब्दों पर नियन्त्रण क्यों आवश्यक है? इसके सन्दर्भ में भी सबको ज्ञात है कि......
"जुबां से निकले शब्दों से ही सिर पर ताज सज सकता है और शब्द ही मनुष्य को बेइज्जत करा सकते हैं।"
मनुष्य को यदि अपनी प्रतिष्ठा के प्रति न्याय करना है तो उसे सदैव अपने शब्दों पर नियन्त्रण करना अनिवार्य है। 
सबसे महत्वपूर्ण बात.... "मनुष्य को कभी वे शब्द नहीं बोलने चाहिएं जो स्वयं को कष्ट देते हों।"
इसीलिए कहता हूँ कि....... 
"स्वमन को जा जीत, काम जरूरी है सदा। 
कर तू जग से प्रीत, नहिं पीड़ा मन दे किसी।।" 
"मीठी वाणी बोल, व्यवहार रख सहज सरल। 
शब्दों के हैं मोल, रख तू शेष कर्म भले।।" 
- सतेन्द्र शर्मा 'तरंग'
देहरादून - उत्तराखण्ड
बहुत अच्छा प्रश्न, बोलते समय शब्दों पर नियंत्रण रखना अत्यावश्यक है। एक एक शब्द सोच समझकर बोलना चाहिए। किसी व्यक्ति को बुरा ना लगे, कोई अपने को अपमानित महसूस ना करें ,किसी के दिल को चोट न पहुंचे। इस तरह प्रेम पूर्वक सोच समझकर शब्दों को मुख से बाहर निकालना चाहिए। अच्छे शब्दों से दुश्मन भी मित्र बन जाता है और कटु शब्दों से दोस्त भी दुश्मन बन जाता है। बड़े-बड़े असंभव कार्य भी मीठे शब्दों से संपन्न हो जाते हैं जबकि कटु शब्दों से बनते काम भी बिगड़ जाते हैं ।अतः वाणी पर नियंत्रण बहुत जरूरी है
- गायत्री ठाकुर "सक्षम"
नरसिंहपुर - मध्य प्रदेश
     समय परिवर्तन शील हैं, वाक शक्ति पर नियंत्रण अति आवश्यक हैं। वर्तमान परिदृश्य में इलेक्ट्रॉनिक्स उपकरण के बीच जीवन व्यतीत हो रहा हैं, कौन से शब्दावली के उपयोग का अर्थ का अनर्थ हो जायें और फिर पछताने के सिवाय कुछ नहीं भी शेष नहीं रहें। इसलिए कहा जाता हैं,कि सोच समझ कर वाणी का प्रयोग करें।जिसकी वाणी नियंत्रित नहीं, उसे असहाय परिस्थितियों का सामना करना पड़ता हैं लेकिन अनेकों की वाक्यांशों में दम भी रहता हैं और अनेकों को अपने में केन्द्रित भी कर देते हैं, यानें सरस्वती का आशीर्वाद रहता हैं और प्रभावशाली ढ़ंग से प्रभावित किये बिना नहीं रहते।
- आचार्य डाॅ.वीरेन्द्र सिंह गहरवार 'वीर' 
  बालाघाट - मध्यप्रदेश
जी ,बोलते समय शब्दों पर नियंत्रण बहुत आवश्यक है, क्योंकि शब्द शब्द में गहरा अंतर पाया जाता है। हर शब्द  का अपना स्वभाव है, अपनी प्रवृत्ति  है  । कुछ शब्द ह्रदय को आघात पहुंचाते हैं तो कुछ मरहम का काम करते हैं। शब्द कभी दुख पहुंचाते हैं तो कभी प्रसन्नता का भाव पैदा करते हैं। कहा भी गया है कि शब्दों को तोल तोल कर बोलना चाहिए क्योंकि एक बार जीव्हा से जो शब्द निकल गया वह वापस नहीं आ सकता।  अधिकांशत यह भी देखा गया है की गलत शब्द -व्याख्या से हम अनजाने शत्रुओं को जन्म दे देते हैं इसलिए शब्द प्रवृत्ति का अवश्य ध्यान रखा जाए। 
शब्द  शब्द में है गहरा अंतर, 
अपनी प्रवृत्ति, अपना स्वभाव। 
जो  शब्द करें  ह्रदय  में  घाव, 
वही शब्द मरहम, ठंडी छांव॥ 
 अतः बोलते समय यह समझ बहुत जरूरी है कि क्या कहा जाए क्या नहीं ।किसी की शान के खिलाफ शब्द व्याख्या त्याज्य है। किसी का अपमान करना,नीचा दिखाना, उपहास, मजाक उड़ाना मानवीय गुणों में शामिल नहीं है।एक सभ्य व्यक्ति सदैव सोच समझकर शब्दों का प्रयोग करता है और शब्दों की हमारे जीवन में क्या महत्ता है,भलीभांति समझता है। इसलिए बोलते समय शब्दों पर नियंत्रण आवश्यक है। 
- शीला सिंह 
बिलासपुर - हिमाचल प्रदेश
वाणी पर नियंत्रण रखकर आप सफलता की बुलंदियों को छू सकते हैं। अपने जीवन में वाणी के महत्व को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। इसे वश में करने से व्यक्ति बहुत ऊंचा  उठ सकता है। इसके विपरीत अनियंत्रित वाले व्यक्ति को अमूमन जीवन में सफलता नहीं मिलती है। जो व्यक्ति सैदव मीठा बोलता है उसके इष्ट -मित्रों का दायरा अधिक होता है और लोग के सहयोग व समर्थन के कारण अधिक शक्तिशाली बनकर उभरता है। अतः बोलते समय शब्दों पर नियंत्रण होने से आप अधिक शक्तिशाली बनकर उभरते हैं।
लेखक का विचार:-- मधुरता से कही गई बात हर प्रकार से कल्याणकारी होती है, वाणी में मधुरता होगी,कर्तव्य परोपकार होगा तो वे सभी के लिए  वंदनीय होगें।
- विजयेन्द्र मोहन
बोकारो - झारखंड
कहते हैं ना कि जीभ में हड्डी नहीं है किंतु अपने इसी लचीलेपन से वह हड्डी को तोडने की ताकत रखती है अतः जब भी हम किसी से बात करते हैं तो वाणी में विवेक का होना जरूरी है ! विवेक शीलता हमें विनम्रता और विनय सिखाती है ! जीवन में वाणी की महत्वता बहुत है इसलिए हमें सोच समझकर बोलना चाहिए ! वादविवाद के समय तो मुंह पर मौन की अंगुली रख लेनी चाहिए !
तुलसीदास जी ने भी कहा है 
मीठी वाणी मंत्र के समान है...
तुलसी मीठे वचन से,सुख उपजत चहुँ ओर..वशीकरण यह मंत्र है
तज दे वचन कठोर ! 
कठोर और कर्कश वाणी कोई पसंद नहीं करता ! अधिक बोलने से वादविवाद बढ़ता ही है समस्याएं सुलझती नहीं ! यदि हम समस्या का समाधान चाहते हैं तो हमें हमारी जिह्या पर नियंत्रण रखना होगा !
हमारे बुजु्र्ग ऐसे ही नहीं कहते..
"न बोलने में नौ गुण "
              - चंद्रिका व्यास
            मुंबई - महाराष्ट्र
शब्द,अस्त्र शस्त्र से भी अधिक प्रभावी होते हैं। इसी शब्द प्रभाव से अच्छे वचन आशीर्वाद के रुप में और बुरे वचन श्राप के रुप में परिणत होते हैं। 
महाभारत काल तक श्राप और आशीर्वाद के शब्दों का प्रभाव बहुत देखा जा सकता है। कलयुग में इनके प्रभाव में परिवर्तन आ गया, क्योंकि इनके प्रयोग में छल कपट आ गया। धर्म,शिक्षा और राजनीति जैसे क्षेत्र भी इससे अछूते नहीं रहे। छदम् व्यवहार में वृद्धि इसके प्रभाव में कमी लाई।
फिर भी इसका असर तो होता है किसी के शब्द दिल में उतरते हैं तो बहुत सुखद अहसास होता है और किसी के शब्द दिल को चीर जाते हैं। इनके कारण कोई दिल में उतरता है तो कोई दिल से उतर जाता है।
बोलते समय शब्दों का प्रयोग करने के लिए एक सूत्र अपनाने से कभी समस्या न होगी।
वह सूत्र है,' सत्यं ब्रूयात,प्रियं ब्रूयात,न ब्रूयात सत्यं अप्रियं।'
- डॉ.अनिल शर्मा 'अनिल'
धामपुर - उत्तर प्रदेश
   बोलते समय शब्दों पर नियंत्रण क्यों आवश्यक है।
  वाणी, समय और पानी एक बार निकल जाए तो पुनः उसी रूप में दुबारा कभी नहीं दिखते हैं। जैसे आग और पानी अपनी राह स्वयं बना लेते हैं वैसे ही वाणी द्वारा हम उन्नति और अवन्नति की राह स्वयं बना लेते हैं । मनुष्य को  सोच के बोलना का वरदान ईश्वर ने दिया है।
। हमारे शब्द और उनके उच्चारण में जो उतार चढ़ाव हम लाते हैं वो हमारे मनोभावों को दिखा देता है इसीलिए बोलते समय शब्दों पर नियंत्रण अति आवश्यक है। 
यह सच है कि तलवार का घाव तो भर.जाता है पर मर्म पर लगा शाब्दिक घाव ताउम्र टीस देता रहता है। वाणी पर विश्व के साहित्य में अनेकों कथा ,कहानियाँ, दोहे ,सुक्तियाँ मुहावरे बने है । सधी हुई भाषा बिगडे़ काम बना देती है और कर्कश और असभ्य भाषा बनी बात को बिगाड़ देती है । शब्दों पर नियंत्रण हमारा सबसे बड़ा गुण है जिसे साधने के लिए तप करना पड़ता है आत्मनियंत्रण और मौन का। यह शाश्वत सत्य है कि बोलते समय जो वाणी पर नियंत्रण रखते हैं वो अमर हो जाते हैं अर्थात उनके ना होने पर भी लोग यशोगान करते हैं ।
   -  डा.नीना छिब्बर
       जोधपुर - राजस्थान
       हां! बोलते समय शब्दों पर नियन्त्रण आवश्यक होता है। चूंकि शब्दों के बाण के घाव अमिट होते हैं। जो समय की मरहम से भी नहीं भरते। जबकि सर्वविदित है कि दूसरे घाव समय असमय भर ही जाते हैं।
       जैसे गंजे को गंजा, काने को काना, लूले-लंगड़े को लूला-लंगड़ा और पागल को पागल कहना बड़ा एवं दण्डनीय अपराध है। यह संवैधानिक ही नहीं बल्कि सामाजिक और प्राकृतिक न्याय का भी उल्लंघन है। जिसे ईश्वर भी माफ नहीं करते। 
       काश! इस सभ्य सांस्कृतिक विरासत की रक्षा करना भारतीय न्यायाधीशों को भी आता। तो मेरे जैसे न्यायिक पीड़ित न्यायालयों के चक्कर काट-काट कर परेशान नहीं होते।
- इन्दु भूषण बाली
जम्मू - जम्मू कश्मीर
 "बातन पीछे पाइए ,बातन पीछे पाँव।" अर्थात जिस मनुष्य में बात व्यवहार करने की शैली अच्छी होती है उसे सम्मान मिलता है। आदर सत्कार मिलता है और जिसे बात व्यवहार करने की शैली ठीक नहीं होती  उसे अपमानित होना पड़ता है। कभी-कभी ऐसे भी स्थिति आती है कि उसके प्राणभी चले जाते है।
 प्राचीन काल की ऐसे ही घटनाएं
 सुनने को मिलता है। हर मनुष्य सम्मान के साथ जीना चाहता है। कोई अपमानित होकर जीना नहीं चाहता अतः मनुष्य को किसी से बोलते या व्यवहार करते समय अब निवाड़ी की संतुलन बनाए रखते हुए साथ-साथ शब्दों का भी उपयोग सही होना चाहिए। शब्द भी स्पष्ट और वाणी की ध्वनि मधुर हो ।ऐसा मनुष्य बोलते समय सामने वालों का मन जीत कर प्रशंसा का पात्र बनता है और वाणी में नियंत्रण ना हो और शब्द भी सार्थक न हो तो ,सामने वाला व्यक्ति के व्यवहार से नाखुश हो निंदा करेगा ।अतः मनुष्य को ऐसी वाणी बोलनी चाहिए जिससे सामने वाले को प्रिय लगे और सामने वाला व्यक्ति व्यवहार से खुश होकर विश्वास, सम्मान ,स्नेह से व्यवहार करने वाले को देख पाए। और यही कहते बनता है कि मनुष्य को खुश होने के लिए वाणी में नियंत्रण करना आवश्यक है क्योंकि हर व्यक्ति दुखी होना नहीं चाहता खुश होना चाहता है अतः हम किसी भी व्यक्ति को अच्छा व्यवहार करके वाणी में मिठास करके खुश दे पाते हैं इसीलिए आवश्यक है की वाणी में नियंत्रण और माधुर्य हो।
 - उर्मिला सिदार
 रायगढ़ - छत्तीसगढ़
बोलते समय शब्दों पर नियंत्रण इसलिए आवश्यक है कि कहीं कोई गलत शब्द मुँह से न निकल जाये। जो दूसरों को तकलीफ पहुचाये। क्योंकि कहा गया है कि "तीर कमान से और बात जुबान से निकल जाने पर वापस नहीं लिया जा सकता। इसलिए ये दोनों काम बहुत सोच समझ के किया जाता है। बिना सोचे समझे बोलने पर अर्थ का अनर्थ हो जाता है। बना काम बिगड़ जाता है। देहातों में एक कहावत है कि शब्दों के नियंत्रण से ही  पान खाने को मिलता है अनियंत्रण से जूता खाने को मिलता है। इसलिए शब्दों पर नियंत्रण आवश्यक है। ये भी कहा गया है कि ऐसी बानी बोलिये मन का आपा खोय,औरों को भी शीतल करे आप भी शीतल होय। यानी शब्द ऐसे बोलने चाहिए कि सामने वाला आपका मुरीद हो जाय।आपका गुलाम बन जाय। इसलिए ही कहा गया है कि सत्य कड़वा हो नहीं बोलना चाहिए। महाभारत में तो शब्दों के नियंत्रण वाली ही बात अधिक है। द्रौपदी और दुर्योधन वाला प्रसंग इसका अच्छा उदाहरण है। हालांकि द्रौपदी सही बात ही बोली थी कि अंधा का पुत्र अंधा लेकिन यही बात दोनों के लिए भारी पड़ गई। ऐसे और बहुत से उदाहरण है जो ये साबित करते हैं कि आप जो भी बोले शब्दों पर नियंत्रण रख कर ही बोले जिससे सामने वाले को बुरा न लगे और आप भी किसी संकट में न पड़े। कभी -कभी शब्दों का चोट बहुत गहरा होता है। जो शायद कभी नहीं भरता है। इसलिए बोलते समय शब्दों पर नियंत्रण आवश्यक है।
- दिनेश चंद्र प्रसाद "दीनेश" 
कलकत्ता - पं. बंगाल
कहा गया है कि, ऐसी वाणी बोलिए मन का आपा खोए , औरन को शीतल करे, आप हू शीतल होए। बस हमें सदैव अपनी वाणी पर नियंत्रण रखनी चाहिए। हमारे शब्दों से  किसी को चोट नहीं लगनी चाहिए। सदा हमें तौल मौल कर हीं बोलनी चाहिए। हमारे  शब्द किसी को चुभे नहीं इसका हमें सदैव ध्यान रखने की जरूरत है। इसीलिए बोलते समय शब्दों पर नियंत्रण अतिआवश्यक है। गलत शब्दों के प्रयोग से रिश्ते टूट सकते हैं, और यदि हम सही शब्दों का प्रयोग करें तो हमारा रिश्ता अटूट हो सकता है। शब्दों के तीर जैसे किसी को घायल करने में सक्षम हैं, ठीक उसी प्रकार शब्द  हमारे मरहम का काम  भी करते हैं। मुंह से निकले शब्द कभी वापस नहीं हो सकते हैं इसीलिए बोलते समय शब्दों पर नियंत्रण अतिआवश्यक है।
- डाॅ पूनम देवा
पटना - बिहार
बोलते समय शब्दों पर नियंत्रण की अत्यंत आवश्यकता होती है, ताकि हमारे कथन से कोई अनावश्यक,  विवादास्पद, अप्रिय या किसी के मान- सम्मान को ठोस पहुंचने वाले शब्द या भाव न निकल जावें।  कभी- कभी हम अति उत्साह या आवेग में अनजाने में भी हम ऐसे शब्द धारा प्रवाह में बोल जाते हैं, जिनको हम स्वयं नहीं बोलना चाहते थे। कभी- कभी ऐसा भी हो जाता है कि हमारा आशय कुछ होता है और अर्थ कुछ और निकाल लिया जाता है। कभी- कभी समान नाम होने की वजह से भी गलतियां हो जातीं हैं। सार यह कि हालांकि ऐसी गलतियां होना स्वभाविक होता है और हरेक से हो सकती हैं किंतु  विरोध रखने वाले इसे राई का पहाड़ बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ते और वे ऐसे अवसर का चिर पर्यंत तक मजा लेते या सजा देते रहना चाहते हैं। 
   ऐसी गलती हो जाने पर जितने जल्दी हो सके, सार्वजनिक रूप से क्षमा मांग लेनी चाहिए और इसके लिए कभी भी नहीं झिझकना चाहिए। 
  सार यही कि हमें  बोलने में  शब्दों पर नियंत्रण रखना अत्यंत आवश्यक है। कहा भी गमया है कि बोलने के पहले सोचने की आदत होना चाहिए।  
 -  नरेन्द्र श्रीवास्तव
गाडरवारा - मध्यप्रदेश
बोलते समय शब्दों पर नियंत्रण इस लिए आवश्यक है क्यूंकि शब्द बाण से निकले उस तीर की तरह होते हैं जो एक बार निकल जाए तो वापिस लौटकर नहीं आ सकता
अक्सर यह देखने में आता है की आवेश में या गुस्से में लोग अपने आपे से  बाहर होते हैं और कुछ ऐसा कह जाते हैं जो वो कहना नहीं चाहते ......ऐसे लोगों को ..जिन्हे अपने कथन पर नियंत्रण नहीं होता है ....कुछ नहीं बोलना चाहिए...कम से कम तब तक जब तक वो अपनी भावनाओं पर काबू नहीं पा लेते
कुछ कहने केपहले सोचना चाहिए की जो हम बोलने जा रहे हैं उसका प्रभाव क्या होगा और ये भी सोचना चाहिए की क्या ऐसा कहना उचित होगा अथवा अनुचित
ठंडे दिमाग से सोच समझ कर कहे गए शब्द कभी अप्रिय स्थिति उत्पन्न नहीं होने देते
- नंदिता बाली
सोलन - हिमाचल प्रदेश
बोलते समय शब्दों पर नियंत्रण इसलिए आवश्यक है क्योंकि शब्द तोले जाते हैं, टटोले जाते हैं, खंगाले जाते हैं, शब्द हंसाते हैं, शब्द मनाते हैं, शब्द रूलाते हैं, शब्द गुदगुदाते हैं, शब्द चुभते हैं, शब्द बिकते हैं, शब्द रूठते हैं, शब्द घाव देते हैं, शब्द ताव देते हैं, शब्द लड़ते हैं, शब्द झगड़वाते हैं, शब्द बिगाड़ते हैं, अतएव बोलते समय शब्दों से खेले नहीं, बिन सोचे बोले नहीं, शब्दों को मान दें, शब्दों को सम्मान दें, शब्दों पर ध्यान दें, शब्दों को पहचान दें, शब्दों में धार होती है, शब्दों की महिमा अपार होती है। 
- सुदर्शन खन्ना 
 दिल्ली
"बोली एक अमोल है जो कोई बोलै जानि।
 हिय तराजू तौलिए तब मुख बाहर आनि।।"-- (कबीर)
 शब्दों से गुँथी वाणी हमारे व्यक्तित्व की परिचायक होती है। शब्द क्या बोले जाते हैं, क्या कहे जाते हैं ,यह बहुत महत्व रखता है ।जो बोला जाता है, वह कितना सारपूर्ण है और कितना निस्सार, यह महत्वपूर्ण बात है।
     यह सर्व विदित है कि द्रौपदी द्वारा दुर्योधन को कहे गए कड़वे शब्दों के बोल----- "अंधे की औलाद अंधी" में उसके मन में ऐसा विष बीज बोया जो महाभारत जैसा महासंग्राम का कारण ही बन गया ।अतः किसी भी बात को बिना सोचे समझे बोलने से हमें भयंकर स्थितियों का सामना करना पड़ सकता है। भगवान कृष्ण ने वाणी के तप को महत्वपूर्ण बताया। कबीर, तुलसी सभी ने यह माना कि हमारे आत्मिक विकारों यथा क्रोध, मान, माया, लोभ सब का नियंत्रण करने वाली वाणी से बोले गए शब्द ही हैं। इसलिए शब्द को ब्रह्म भी कहा गया है। अतः " अनुद्वेग  करं वाक्य"--- कड़वे वचन नहीं बोलो। "सत्यं"--- सत्य बोलो। "प्रियहितं च यत"-- प्रिय और हितकारी बोलो।
 अनुशासित, मर्यादित शब्दों से संयुक्त वाणी  हमारी मनुष्यता की परिचायक है।
 - डॉ. रेखा सक्सेना
मुरादाबाद - उत्तर प्रदेश
शब्द  मिश्री भी हैं और औजार भी ।शब्द की मिठास यदि मन में घुल जाये तो याद करके जीवन पर्यन्त हम  सुख महसूस करते हैं ।जब हमारी  सबके साथ मित्रता रहती है तब हमारे  दुश्मन भी  कम होते हैं जब बैरी नहीं हैं तो दुख भी कम होगा  । शब्दों में इतनी ताकत है कि वो शस्त्र  का भी काम करते हैं ।द्रौपदी के मुँह से निकला शब्द 'अंधा का पुत्र अंधा ' महाभारत के युद्ध  का कारण बना ।एक बार जुबान से निकला तीर कमान की तरह होता है ,वापस नहीं आता है ।अतः जीवन को अच्छी तरह जीने वाले व्यर्थ और कड़ुआ नहीं बोलते ।अपने हर शब्दों को विचार कर बोलना चाहिए ।
- कमला अग्रवाल
गाजियाबाद - उत्तर प्रदेश
सोच समझ के शब्दों का उच्चारण क्या बोलने में ही कहने और सुनने वाले का ही बहुत छिपा हुआ है। परंतु वही बात कटोरवा कटु शब्दों में बोली जाए तो एक पड़े अनस का कारण बन जाता है। आज के समय में जब कठोर वाणी के कारण रोडवेज जैसे अनेक अपराध बढ़ गए हैं। ऐसे समय में वाणी संयम बहुत ही जरूरी है।
इंसान अपनी वाणी पर नियंत्रण सफलता की बुलंदियों को छू सकता है। हमारे जीवन में वाणी के महत्व को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। इस को बस में करने से व्यक्ति बहुत ऊंचा उठता है इसके विपरीत अनियंत्रित वाणी वाले व्यक्ति को अमूमन जीवन में सफलता नहीं मिल पाते हैं। जब व्यक्ति अपने वाणी से किसी को ठेस नहीं लगता और सदैव मीठा बोलता है। उसके इष्ट मित्रों का दौरा अधिक होता है और लोगों के सहयोग व समर्थन के कारण व अधिक शक्तिशाली बनता है। इसके विपरीत कटु वचन बोलने वाला जीवन में अकेला पड़ जाता है। सामाजिक प्राणी होने के नाते मनुष्य के लिए वाचक का अत्यंत महत्व है। मधुर से से कही गई बात हर प्रकार के कल्याणकारी होती है परंतु वही बात काट और शब्दों में बोली जाए तो उसका अनर्थ निकाल लिया जाता है। इंसल्ट विकास तभी संभव है जब वह अपनी वाणी पर नियंत्रण रखें क्योंकि एक शब्द गलत बोल देने के बाद बना हुआ काम भी बिगड़ जाता है। 
- अंकिता सिन्हा कवयित्री
 जमशेदपुर - झारखंड
           बोलते समय शब्दो पर नियन्त्रण बहुत जरूरी है। सोच समझ कर बोलने से ही कहने और सुनने वाला का हित छुपा होता है। बात को कठोर और कटु शब्दों से बोला जाए तो बड़े अनर्थ का कारण बन जाती है। 
"ऐसी वाणी बोलिए, तन मन शीतल होये " के अनुसार शब्दों का चयन हमेशा सावधानी से करें। 
         "पहले तोलो,फिर बोलो"कहावत इस बात की पुष्टि करती है कि बोलते समय शब्दो पर नियन्त्रण होना चाहिए। शब्दों की कोमलता,शब्दों की मधुरता, विचारों की सुन्दरता और ह्रदय की विशालता जीवन के सफर को खुशियों से भर देती है। मधुर शब्द बोलने वाला मिर्च के व्यापार में भी खूब तरक्की कर लेता है। कर्कश बोलने वाला शहद भी मुश्किल से बेच पाता है। हमारी बोल- वाणी ही हमारे रिशतों का आधार है। शब्दों को सोच समझ कर तोल कर बोलने वाला सम्मान पाता है। 
- कैलाश ठाकुर 
नंगल टाउनशिप - पंजाब
नियंत्रण हर क्षेत्र में आवश्यक होता है । जहाँ तक शब्दों पर नियंत्रण की बात है तो कहा ही जाता है कि 'तोल मोल कर बोल' । क्योंकि शब्द से ही हमारे ज्ञान, संस्कार और व्यवहार का पता लगता है । शब्द या भाषा हमारे व्यक्तित्व को उजागर करता है । हाजिर जवाबी होना किसी व्यक्ति की विशिष्ट विशेषता कही जाती तो किन्तु यहीं यदि सही शब्द का प्रयोग नहीं किया जाता है तो व्यक्ति को अशिष्ट कहा जाता है । 
        बोलते समय हमेशा ये ध्यान रखने की बात है कि हमारे शब्द ऐसे हो जिससे सही बात कह भी दिया जाए और किसी का अपमान या ठेस भी न पहुंचे । किन्तु इसका मतलब ये भी नहीं है कि जहाँ बोलना हो वहाँ बोले ही नहीं ।
चूंकि शब्द हमारे व्यक्तित्व का परिचायक है, इसलिए शब्द पर हमेशा नियंत्रण रखना चाहिए। 
          - पूनम झा
            कोटा - राजस्थान 
ऐसी वाणी बोलिए, मन का आपा खोए।
अपना शीतल करें, औरन को सुख होए।।
धीरे धीरे रे मन, धीरे सब कुछ होए।
माली सींचे सौ घड़ा ,ऋतु आए फल होए।।
कबीर दास जी के इस दोहे में विनम्रता के गुणों के बारे में कहा गया है कि वाणी ऐसी एक चीज है, जो तलवार से भी ज्यादा तेज है अगर किसी को एक बार गलत शब्द के दिए तो वह हम वापस नहीं ले सकते और संबंधों में हमेशा के लिए गांठ पड़ जाती है विनम्रता तो मनुष्य का कहना है विनम्र स्वभाव से सभी के दिल को जीता जा सकता है प्रेम से हम दुनिया को भी अपने वश में कर सकते हैं। जो सज्जन पुरुष या विनम्र व्यक्ति होते हैं उनका कहना है कि फलों से लदा हुआ वृक्ष विनम्रता के कारण ही झुका रहता है और अपने फल से सबको आनंदित करता है उसका काम सिर्फ देना ही रहता है लेना नहीं आशावादी व्यक्ति हमेशा विनम्र रहता है। थोथा चना धन-धन बसता है जिनके पास ज्ञान से परिपूर्ण नहीं होते वही मनुष्य ज्ञानी होने का ढोंग करते हैं और अपने गुणों के कारण ही समाज में अराजकता को फैलाते हैं अधजल गगरी छलकत जाए आदि मुहावरे हैं इसलिए मनुष्य को अपने जीवन में विनम्रता लानी चाहिए विनम्रता से ही सज्जनता आती है रहीम दास जी के और कबीर दास जी के अन्य दोहों के माध्यम से समाज में हमें यह बात समझाई गई है कि वाणी को संयमित रखना चाहिए और तोलमोल कर बोलना चाहिए विनम्र व्यक्ति ही सर्वत्र पूजा जाता है।
- प्रीति मिश्रा 
जबलपुर - मध्य प्रदेश
ऐसी वाणी बोलिए मन का आपा खोय ।
औरन को शीतल करे आपहु शीतल होय ।
जी बिल्कुल सोच समझकर शब्दों का उच्चारण या बोलने में ही कहने और सुनने वाले का हित भाव छिपा हुआ है ।परंतु वही बात कठोर व कटु शब्दों में बोली जाए तो एक बड़े अनर्थ का कारण बन जाते हैं ।
आज के समय में जब कठोर वाणी के कारण रोड रेज जैसे अनेक अपराध बढ़ रहे हैं  ,  ऐसे समय में वाणी का संयम बहुत ही जरूरी है ।
- सुषमा दीक्षित शुक्ला
लखनऊ - उत्तर प्रदेश
शब्दों की बोली लगती है गोली
शब्दों की बोली बनती है मधुमास।
सारा संसार शब्दों का ही तो ताना-बाना है कभी झीनी झीनी है कभी पतली पतली है कभी तीर जैसी है कभी फूल जैसी है कभी औषधि जैसी है कभी दुआ जैसी है यह संसार वाणी का ही संसार है शब्दों का ही संसार है
जीव की सहायता से शब्दों को बोले जाते हैं वह जीव ही शरीर का एक ऐसा हिस्सा है जो असंतुलित है कहीं से जुड़ा हुआ नहीं है कोई हड्डियां नहीं है लेकिन बोली जीवा से अवश्य बोली जाती है पर उत्पन्न होती है मन मस्तिष्क से भावनाओं से विचारों से इसलिए आवश्यक है कि शब्दों पर नियंत्रण रखें तोल मोल कर शब्दों का प्रतिनिधित्व करें।
मन लायक शब्द सुनने को नहीं मिलते हैं तो मन दुखी हो जाता है हम रूठ जाते हैं गुस्सा करते हैं और जो नहीं बोलना चाहिए उसे भी बोल देते हैं बस थोड़ा सा शब्दों का बदलाव कर दिया गया तो सारे नकारात्मक भाव सकारात्मक में बदल जाते हैं इसलिए यह आवश्यक है शब्दों को बोलने के पहले उसको तोल मोल कर ले और नियंत्रित स्वर में प्रस्तुत करें
- कुमकुम वेद सेन
मुम्बई - महाराष्ट्र
"दबे होठों को बनाया सहारा अपना, 
सुना है कम बोलने से बहुत से 
मसले सलझ जाते हैं"
शब्द ही हैं जो दोस्त को दुश्मन और दुश्मन को दोस्त बनाने की काविलियत रखते हैं इसलिए इंसान को कम बोलना चाहिए और सोच समझ कर बोलना चाहिए क्योंकी बात जवान से और तीर कमान से जब एक बार  निकल जाते है्ं फिर लौट कर नहीं आते इसलिए हमेशा कुछ कहने से पहले हमें सोच लेना चाहिए कि जो मैं कहने जा रहा हुं वो दुसरे व्यक्ति को कैसा लगेगा क्योंकी सोच कर बोलने से हम प्रिय भी लगते हैं और सही निर्णय भी ले सकते हैं व सुनने वाला भी ध्यान से सुनता है, 
तो आईये आज की चर्चा   इसी बात पे करते हैं  कि बोलते समय शब्दों पर निंयत्रण क्यों जरूरी है? 
मेरा मानना है कि जो कुछ भी हम बोलते हैं हम अपने आप को एक्सप्रेस  करते हैं कि हमारी बातचीत का ढंग कैसा है हमारे  विचार कैसे हैं जिस से सुनने बाले व्यक्ति पर हमारी बातचीत का गहरा प्रभाव पड़ता है क्योंकी वाणी एक अमुल्य रत्न है इसे हमेशा हृदय के तराजू में तोल कर बोलना चाहिए बोलने से पहले यह सोचना जरूरी है कि जो मैं कहने जा रहा हुं उससे  सुनने बाले को ठेस तो नहीं  पहुंचेगी, 
सच कहा है, 
"लफ्जों का इस्तेमाल हिफाजत से करिये ये परवरिश का बेहतरीन सवूत है, 
यही नहीं वाणी को नियंत्रण में रखकर आप सफलता की बुलंदियों को छू सकते हो इसलिए बोलते समय कभी भी कठोर शब्दों का इस्तेमाल मत करिए,
सच कहा है, 
मधुर वचन हैं औषधी कटुक वचन हैं तीर श्रवण द्वारा सांचरे साले सकल शरीर, 
कहने का भाव मधुर भाषा मरहम का कार्य करती है और कड़वी भाषा जख्म का इतना अंतर होने पर हम को खुद ही अनुमान लगाना चाहिए कि हमें कैसी भाषा का इस्तेमाल करना चाहिए, 
श्री मदभागवद्त गीता में तीन प्रकार के तप वताए गए हैं जिनमें शरीरक तप, मानसिक तप व  वाचिक तप भी है और वाचिक तप में  कम बोलना व सत्य वचन बोलना  तप कहलाता है, 
इसलिए हमारी वाणी  के महत्व को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता इसको वश में रखने से ही इन्सान बहुत उंचा उठ सकता है व मधुरता से कही गई बात हर प्रकार कल्याणकारी होती है, 
अन्त में यही कहुंगा कि अगर यदि हम सदा मधुर, सार्थक, और चमत्कार पूर्ण वचन नहीं बोल सकते तो कम से कम वाणी में सयंम का हमारा प्रयास होना चाहिए, 
कहते भी हैं
कुल्हाड़े से काटा गया वृक्ष फिर उग आता है  मगर वाणी से कहे गए कटु भाव के जख्म कभी नहीं भरते, 
याद रखें
जिन लोगों के मुख पर प्रसन्नता , हृदय में दया होगी व वाणी में मधुरता होगी और कर्तव्य में  परोपकार होगा वो सभी के लिए वंदनीय होते हैं
व तीखे शव्द दिल में ऐसा घाव पैदा करते हैं जो वाद में नशतर बन जाते हैं, 
इसलिए हर प्राणी को बोलते समय शब्दों पर नियंत्रण रखना जरूरी  है। 
- सुदर्शन कुमार शर्मा
जम्मू - जम्मू कश्मीर
बोलते समय वाणी पर संयम होना चाहिए l शब्दों को हिय तराजू तोल कर मुख से निकालना चाहिए l वाणी अनमोल है अतः मधुर बोले अन्यथा बड़े बड़े युद्ध होते देखें हैं जिसका सबसे बड़ा उदाहरण महाभारत का युद्ध है l
बोली के बल पर ही अपने पराये और पराये भी अपने हो जाते हैं l
प्रेम पाना है तो वाणी पर संयम आवश्यक है l
    - डॉ. छाया शर्मा
अजमेर -  राजस्थान

" मेरी दृष्टि में " शब्दों का अर्थ अपने आप में एक पूरी दुनियां है । जो जगह और समय के अनुसार अर्थ भी बदल जाते हैं । शब्दों की दुनियां कवि से अधिक कोई नहीं पहचान पाया है !
- बीजेन्द्र जैमिनी 

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