क्या मर्यादा का पालने करने से व्यक्ति महान बनता है ?

मर्यादा में रह कर इंसान अपनी विशेष पहचान बनता है । जो समाज व देश में ख्याति प्राप्त करता है । ऐसा इतिहास में भी देखा जा सकता है ।जैसे आयोध्या के श्री राम ऐसा ही कुछ जैमिनी अकादमी द्वारा " आज की चर्चा " का प्रमुख विषय है । अब आये विचारों को देखते हैं : - 
मर्यादा यानी एक सीमा रेखा !सीमा रेखा से बाहर जाने पर नियम भंग तो होगा ही... किसी भी चीज में अतिशयोक्ति ठीक नहीं और यह नियम मनुष्य या प्राणी मात्र ही नहीं अपितु हर वस्तु विशेष के लिए भी प्रतिस्पारित है!  बचपन से ही हमें मर्यादा में रहने की शिक्षा दी जाती है!  मर्यादा कोई कानून अथवा पाप पुण्य की परिभाषा पर आधारित आचार संहिता भी नहीं * पारस्परिक संबंधों में कलह क्लेश की स्थिति पैदा होने से रोकने , कार्य को सुचारू रूप से चलाने , तथा समाज में तालमेल सामंजस्य स्नेह और व्यवस्था बनाए रखने के लिए अत्यंत आवश्यक है! 
 सभी के लिए मर्यादा का पालन करना सहज नहीं है !  मर्यादा भंग होने से ही अनुशासन टूटता है एवं  प्रशासन भी बिखर जाता है ऐसे वक्त पर विद्वान और समझदार व्यक्ति  मर्यादा में चलकर  दूसरे के लिए प्रेरणाश्रोत बन अपने कर्तव्य का पालन करते हैं वे ही महान कहलाते हैं! 
मर्यादा की रेखा को लाँघने का परिणाम विनाश ही होता है...  लक्ष्मण रेखा इसका उदाहरण और प्रतीक  है !
मर्यादा में रहनेवाले ही महान कहलाते हैं! भगवान श्री राम ने स्वयं कष्ट सहकर भी कभी मर्यादा का उल्लंघन नहीं किया इसीलिए  तो मर्यादा पुरुषोत्तम कहलाये !
मर्यादा में रहकर ही महात्मा गांधी ने स्वतंत्रता पर विजय हासिल कर अपनी महानता का परिचय दे महान कहलाये! 
मर्यादा में रह हम अपराध कमकर सच्चा सुख और शांति ले सकते है! 
            - चंद्रिका व्यास
         खारघर नवी मुंबई - महाराष्ट्र
मर्यादा सभ्य समाज द्वारा बनाए गए नियम हैं जिनको लांघने से समाज में छीछालेदारी होती है, बदनामी होती है।  मर्यादा की सीमा में रह कर जीवन आचरण करने से समाज में प्रतिष्ठा स्थापित होती है।  मर्यादा पालन करने वाला व्यक्ति चरित्रवान कहलाया जाता है और चरित्रवान व्यक्ति महान ही होता है।
- सुदर्शन खन्ना
दिल्ली
बेशक इसमें कोई दो राय नहीं कि मर्यादा का पालन करने से व्यक्ति महान बनता है ।
यह नितांत सत्य है कि जिसने अपना जीवन दूसरों की भलाई में लगाया ,अपने कर्तव्यों का पालन किया उसने यह अपने जीवन का उपयोग किया ।
जब मर्यादा पालन की बात आती है तो सर्वप्रथम मर्यादा पुरुषोत्तम राम से बड़ा संसार में इसका कोई दूसरा उदाहरण नहीं है और शायद होगा भी नही।
श्रीराम ने अपना सारा जीवन मर्यादा पालन में ही लगा दिया इस कथा से लगभग सभी भारतीय तो परिचित होंगे इसी कारण श्री राम आज विश्व भर में पूजे जाते हैं।
 हर व्यक्ति के लिए मर्यादा पालन अत्यंत जरूरी है ।
मर्यादा शब्द तो केवल साडे तीन अक्षर का है लेकिन मर्यादा का पालन करना उतना सरल नहीं है।
 प्राकृतिक नियमानुसार हर चीज मर्यादा में होती है ।
जहां मर्यादा का उल्लंघन होता है वहीं मनुष्य को संकटों का सामना करना पड़ता है ।
यद्यपि मर्यादा कोई कानून नहीं है और पाप पुण्य की परिभाषा पर आधारित कोई आचार संगीता भी नहीं ,परंतु पारस्परिक संबंधों में कलह क्लेश की स्थिति पैदा होने से रोकने ,कार्य को सुचारू रूप से चलाने तथा समाज में तालमेल सामंजस्य और व्यवस्था बनाए रखने के लिए मर्यादा का पालन अति आवश्यक है ।
सच तो यह है कि अगर मर्यादा बनी रहे तो कानून और दंड संहिता की जरूरत ही ना पड़े,डॉक्टर व गोलियों की जरूरत ही ना पड़े ,आपसी नफरत ,भेदभाव, मनमुटाव, लड़ाई झगड़े ही मिट जाएं ।
जिस समाज में , संस्था में मर्यादा भंग होती है वह आलोचना का शिकार बनते हैं और अंत में पश्चाताप के सिवा कुछ नहीं लगता ।
परंतु जो लोग मर्यादा का पालन करते हैं वे महान बन जाते हैं इसमें कोई दो राय नहीं।
- सुषमा दीक्षित शुक्ला
लखनऊ - उत्तर प्रदेश
क्या मर्यादा का पालन करने से व्यक्ति महान बनता है ?
निःसंदेह, मर्यादा का मानव जीवन में विशेष महत्व है। मर्यादा रहित जीवन पशुओं के समान होता है। मर्यादा का अर्थ है --हर स्थिति में नैतिकता पूर्ण व्यवहार करना तथा  उचित व विवेक पूर्ण निर्णय  करना। यदि व्यक्ति जीवन में अनियंत्रित है, अथवा मर्यादा हीन है तो वह पशु से बेहतर नहीं है। पशुओं में मर्यादा नहीं होती है लेकिन प्रकृति मर्यादा से पूर्ण होती है। यदि प्रकृति मर्यादा का उल्लंघन करती है तो महाविनाश की स्थिति आ जाती है। सूर्य अपनी मर्यादा में रहकर ऊष्मा व प्रकाश देता है ।समुद्र अपनी मर्यादा में रहता है,  अपने दायरे में सीमित रहता है और जब कभी मर्यादा तोड़ता है तो महाविनाश की स्थिति पैदा होती है। इन सभी बातों से यह निष्कर्ष निकलता है कि मानव  जीवन में मर्यादा का बहुत महत्व है। मर्यादा का पालन करने से व्यक्ति महान होता है।  भगवान श्री  राम को हम मर्यादा पुरुषोत्तम के रूप में जानते हैं वह मर्यादा का पालन करने में सभी से आगे थे और इसलिए हजारों वर्ष व्यतीत होने के बाद भी हम उनका स्मरण करते हैं,  उनसे मर्यादा की सीमा को सीखते हैं। 
-  डॉ अरविंद श्रीवास्तव 'असीम'
 दतिया - मध्य प्रदेश
विरासत में मिले संस्कार हमें मर्यादित व्यक्ति बनाता है। मर्यादा में रहते हुए श्रेष्ठ कर्मों के द्वारा व्यक्ति महान बनता है। मर्यादित व्यक्ति अनैतिक कार्यों से सदैव बचता है। वैसा कोई कार्य नहीं करता जिससे दूसरे के दिल को ठेस पहुंचे।
     मर्यादित व्यक्ति धीर, गंभीर, शांत और विवेकशील होता है। विवेकशीलता का परिचय देते हुए,रिश्तो का सम्मान करते हुए हर कदम पर मर्यादा का ध्यान रखता है जिसके कारण वह सब के दिलों में राज करता है। भगवान श्री राम अपने इन्हीं सद्गुणों के कारण मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम की उपाधि से विभूषित हुए।
  धैर्य,संयम, सहनशक्ति, सामंजस्य स्थापित करने की क्षमता जैसे सद्गुणों के कारण ही व्यक्ति मर्यादा का पालन करने में सक्षम हो पाता है।
   इसमें कोई दो मत नहीं है कि मर्यादा का पालन करने वाला ही व्यक्ति महान बनता है क्योंकि वह सदैव उचित- अनुचित, नैतिक -अनैतिक, सत्य- असत्य और दूसरे की भावनाओं को ध्यान में रखते हुए विवेकपूर्ण निर्णय के साथ श्रेष्ठ कर्मों को करते हुए अपने व्यक्तित्व को संपूर्ण बनाता है। इसी कारण मर्यादा का पालन करने से व्यक्ति महान बनता है।
                        - सुनीता रानी राठौर
                       ग्रेटर नोएडा - उत्तर प्रदेश
मर्यादित आचरण मानव जाति का वह आभूषण है जिसके श्रृंगार से मनुष्य को वह तेजस्व प्राप्त होता है कि उसकी आभा से व्यक्तित्व की कीर्ति पताका जग में फहराती है। मर्यादित आचरण के बिना धन और ज्ञान भी व्यर्थ हो जाते हैं। 
मर्यादा का अर्थ ही है.....स्वयं की, परिवार, समाज और देश की प्रतिष्ठा के अनुकूल कर्म करना। 
जो व्यक्ति मानवीय सीमाओं का मान रखते हुए सत्मार्ग पर चलकर अपने सत्कर्मों द्वारा प्रतिष्ठा को स्थापित करता है और बिना स्वयं का लाभ-हानि देखे हुए सदैव मर्यादा का पालन करता है तो निश्चित रूप से वह महानता की ओर अग्रसर होता है।
मर्यादा के प्रतिमान पुरुषोत्तम श्रीराम हमारे जीवन का वह अनुपम हिस्सा हैं जो जीवन के प्रत्येक कदम पर हमें मर्यादित आचरण की शिक्षा देते हैं। 
इतिहास में अनेक उदाहरण हैं जो मर्यादा का पालन करने से महान बने हैं। साथ ही ऐसे भी उदाहरण हैं जिनके पास यश, धन, ज्ञान सब कुछ होते हुए भी उनके अमर्यादित आचरण के कारण उन्हें साधारण स्थान ही प्राप्त हुआ। 
- सतेन्द्र शर्मा 'तरंग' 
देहरादून - उत्तराखण्ड
मर्यादा कर्मभूमि की सीमा रेखा है अपनी सीमा में रहना मान सम्मान बनती है लेकिन जैसे ही आप सीमा रेखा को या मर्यादा को तोड़ देते हैं तो किसी न किसी प्रकार से अपमानित होना ही पड़ता है नियम भाग होने से तकलीफ भी बहुत होती है दुख भी बहुत होता है और कुछ भी अनैतिक होने की संभावना बनी रहती है पाप और पुण्य इसकी रेखा में नहीं आता है हर धर्म समाज परिवार की एक मर्यादा है और मर्यादा को निभाने वाले व्यक्ति सज्जन कहलाते हैं महान माना जाता है चाहे उम्र कोई भी हो यह कोई लिखित संविधान नहीं है नियम नहीं है यह प्रतिदिन का पारिवारिक सामाजिक निर्देश संकेत और आदेश है जिसके पालन से सफलता भी मिलती है एक उदाहरण लेते हैं शिक्षण संस्थान है वहां की मर्यादा है हर विषय का एक पीरियड होता है उसे निर्धारित समय में विषय की पढ़ाई होती है सभी शिक्षक और विद्यार्थी एक जगह इकट्ठे रहते हैं तो सीमा हुआ और इस सीमा में किया गया कार्य सफल माना जाता है अगर हम ऐतिहासिक उदाहरण ले तो सीता जी को लक्ष्मण रेखा की गई थी जिसका उन्होंने उल्लंघन किया जिससे कि इतना बड़ा विनाश हुआ तो मर्यादा एक सीमा रेखा है उसको निभाना सफलता का परिचायक है और महानता का परिचायक है
- कुमकुम वेद सेन
मुम्बई - महाराष्ट्र
मनुष्य अपने कर्मों से महान बनता है। कर्महीन मनुष्य जीवन भर भाग्य के पीछे दौड़ता है,हासिल कुछ भी नहीं होता है। कर्तव्य परायणता मनुष्य को बुलंदियों और ऊंचाइयों के शिखर तक पहुंचाती है।
मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम ने अपने कर्तव्य पालन के लिए वह जंगल में  14 वर्षों तक दर दर भटकते रहने के बाद रामचंद्र से मर्यादा पुरुषोत्तम बने।
 धर्म की व्यापकता पर जोर दिये और
धर्म को कठोरता पूर्वक पालन करने के लिए चुने श्रद्धा एवं विश्वास पूर्वक कटिबंध होने के लिए शिक्षा दिए।
लेखक का विचार:--रामचंद्र ने कर्तव्य निभाने पर पुरुषोत्तम राम कहलाए। देश में जो भी शासन करते हैं वो रामचंद्र के तरह अनुसरण करें निश्चित रूप से राम राम- राज्य स्थापित हो सकता है।
- विजयेन्द्र मोहन
बोकारो - झारखंड
    .जीवन में मर्यादा का महत्व कितना है यह तो हम सब बचपन से कथा कहानियों में सुनते -सुनते बड़े हुएँ हैं ।मर्यादाएं समाज ,देश और व्यक्तिगत भी होती हैं ।मर्यादा का अर्थ है कि समाज और नैतिकता के जो मूल नियम बने हैं उन को समझ कर,निजि और समाजिक क्षेत्रों में अपनाना। मर्यादा में रहने का अर्थ है कि उचित व सही 
कामों की ओर अपना जीवन चलाना।  जो मनुष्य सीमाओं को नहीं लांघता है। हर रिश्ते की मर्यादा को समझ कर व्यवहार करता है । उसका उत्थान निश्चित है । सभी उसका मान -सम्मान करते हैं । वो अन्य से उत्तम है यानि  महान ही है।  हमारे महाग्रंथ , वेद ,सुक्तियाँ, कहावतें, लोकोक्तियाँ सभी मर्यादा का पाठ हमे पढ़ाते हैं। अति विनाश लाता है ऐसे उदाहरण रामायण ,महाभारत, गुरुग्रंथ साहब जैसे सभी में हैं । लक्ष्मणरेखा भी इसी का प्रतीक है ।
मर्यादा सभी को आत्मिक शांति और सुकून देती है ।
हम बेहतर उदाहरण पेश करें। ऐसा सब सोच लें तो 
आधुनिक युग में बढ़ते घिनौने अपराध कम हो सकते हैं ।
- ड़ा.नीना छिब्बर
   जोधपुर - राजस्थान
कोई भी व्यक्ति मर्यादा का पालन करने से ही महान बनता है। भगवान राम मर्यादा का पालन करने से ही मर्यादा पुरुषोत्तम कहलाये और महान बने। हर बात में उन्होंने मर्यादा का पालन किया और महान बने। आज भी जब कोई व्यक्ति मर्यादा का पालन करता है चाहे वो नेता हो या अभिनेता या आम पब्लिक तबतक वो साधारण ही रहता है जबतक कि वो मर्यादा का पालन नहीं करता। मर्यादा का पालन नहीं करने वाले कभी भी किसी को कुछ बोलते रहते हैं या कोई न कोई गलत हरकत करते रहते हैं। और समाज में मर्यादाहीन कहलाते हैं। मर्यादा का पालन मतलब साधारण रूप में न रहकर मर्यादा में रहना औरों से कुछ अलग करना। जिससे सब उसकी प्रशंसा करें लोग उसकी नकल करना चाहें। उसके बताएं राहों पर चलने की कोशिश करें। अपना जीवन मर्यादा में ही रहकर बिताए। घर परिवार समाज देश विदेश सबके साथ मर्यादित व्यवहार करे। जिसे सभी पसंद करें। लोगों का भला हो । इस तरह मर्यादित व्यवहार से लोग महान बन जाते हैं।
- दिनेश चन्द्र प्रसाद "दीनेश" 
कलकत्ता - पं. बंगाल
मनुष्य की महानता कोई सामयिक वस्तु नहीं है कि आज है,कल रहेगी। पत्न तथा परिवर्तन से मुक्त उच्चता ही वास्तविक महानता है।महानता के शिखर पर पहुँचने के लिए मनुष्य को अपने जीवन को एक सांचे में ढालना होता है ।जो अपने जीवन को सुघड़,सुन्दर और सुदृढ़ नहीं बना सकता, वह कितना भी प्रतिभावान और धनवान हो,महानता की कोटि में नहीं पहुंच सकता।मनुष्य जो स्वरूप समाज के सामने रखता है, उसका आचरण भी वैसा ही होना चाहिए। अगर निजी आचरण में यथावत नहीं तो कभी भी महान नहीं बन सकता।
        हर परिवार, समाज और देश की मर्यादाएं भिन्न भिन्न हो सकती हैं। मनुष्य अपने कर्म से महान बनता है। जो भी मनुष्य सजग और सचेत है,उस में निरन्तर आगे बढ़ने की इच्छा रहती है। आगे बढ़ने का प्रयत्न ही वास्तविक कर्मशीलता है। ऊपर उठने के लिए परिश्रम, पुरुषार्थ, त्याग और तपस्या करनी पढ़ती है।
       जीवन में आगे बढ़ने, प्रगति करना कोई आकस्मिक घटना नहीं और न ही कोई  स्वाभाविक प्रक्रिया है जिस के प्रवाह में कोई भी आगे बढ़ जाएगा।स्पष्टता, समता,शिक्षा, सुघड़ता, अनुशासन, परिश्रम, पुरुषार्थ आदि मर्यादा में हो तो इनका पालन करते हुए महान बन सकता है। 
- कैलाश ठाकुर 
नंगल टाउनशिप - पंजाब
"मर्यादा भंग करने से अपने साथ अपनों का मुल्य भी गिर जाता है, 
जैसे शुन्य संख्या के पीछे मुल्यवान है, 
परंतु आगे लगते ही अपने साथ वाली संख्या का मुल्य भी गिरा देती है"। 
मर्यादा की बात करें तो मर्यादा पालन करना इंसान के लिए अनिवार्य है 
क्योंकी मर्यादा को भंग करने से या नियमों की अनदेखी करने से इंसान के जीवन में अनेकों प्रकार की समस्याएं उतपन्न होती हैं,  जिसके कारण जीवन निर्वाह कठिन हो जाता है
तो आईये आज की चर्चा इसी बात पर करते हैं कि क्या मर्यादा पालन  से व्यक्ति महान बनता है? 
मेरा मानना है कि यह बिल्कुल सत्य है मर्यादा पालन से व्यक्ति महान बनता है जब श्री रामचन्द्रजी ने मर्यादा का पालन किया तो उसके बाद ही उन्हे इतनी बढ़ी मर्यादा पूरूषोतम की उपादि मिली यानी मर्यादा पूरूषोतम कहलाए, 
यही नही जीवन निर्वाह के नियमों को संतुलन में रखने वाली निधारित रेखा को मर्यादा कहा जाता है जिस से जीवन में किसी प्रकार का असंतुलन न हो ऐसे नियमों की निधारित रेखा को ही मर्यादा कहा जाता है फिर क्यों न व्यक्ति महान होगा जब वो हर कार्य नियमों के अनुसार ही करेगा, 
जब जब किसी भी व्यक्ति ने मर्यादा को भंग किया तब तब ही उसे कष्ट सहना पढ़े व वो अकेला पड़ गया
अक्सर देखा गया है कि जो लोग नियमों का पालन करते हैं उनका जीवन सुख व सुखमय होता है, 
जब मनुष्य अपने जीवन को मर्यादित बना लेता है तो उसका जीवन काल  मर्यादित हो जाता है और वो सुख शान्ति अनुभव करता है
देखा जाए मनुष्य  क्रियाशील प्राणी है इसलिए इसे सारे कार्य  मर्यादा में रह कर ही करने चाहिए,  ताकि किसी भी कार्य में रूकाबट न आए व नियमपूर्बक हो, 
प्राकृतिक नियम के अनुसार हर चीज की मर्यादा होती है जब हम तनिक भी इससे भटक जाते है ंतो हमें संकट का सामना करना पड़ता है, 
देखा जाए मनुष्य अपने कर्मों से महान बनता है खासकर  आदर्श और मर्यादा से ही व्यक्ति महान बनता है, 
मर्यादा पूरूषोतम भगवान श्री राम ने अपने कर्तव्यों को कभी नहीं भूलाया तभी तो उनका नाम अजर  अमर है और वो एक महान पूरूष ही नहीं बल्कि भगवान के रूप में माने जाते हैं, 
अन्त में यही कहुंगा कि मर्यादा का पालन करने से व्यक्ति महान ही नहीं बन सकता व भगवान तक की उपादि धारण कर सकता है, 
चाहे मर्यादा रिश्तों में हो नियमों हो या कार्यों में हो इसको निभाना चाहिए, मर्यादा रखना जिन्दगी में बन्धन नहीं बल्कि व्यवस्थित रूप से जीने की कला है
जब जब कोई भी  अपनी मर्यादा से बाहर गया तब तब उसको  हानि ही हुई, 
सच कहा है, 
बोलने  में मर्यादा मत छोड़ना
गालियां देना तो कायरों का काम है। 
- सुदर्शन कुमार शर्मा
जम्मू - जम्मू कश्मीर
जीवन के विभिन्न संदर्भो में रहन-सहन, व्यवहार, आचार- विचार की सीमा के अतिक्रमण का दुस्साहस ना करके आदर्शवादी जीवन जीना ही मर्यादा का पालन है। मर्यादित आचरण से व्यक्ति महान चरित्रवान पद का अधिकारी होता है। अमर्यादित आचरण व्यक्ति को उच्छश्रृंखल बनाता है जैसे एक नदी का पानी जब बाढ़ के रूप में अमर्यादित होकर सर्वत्र फैलता है तब भयंकर तबाही मचाता है। जनधन हानि का त्राहि-त्राहि रूप दर्शनीय होता है ; जबकि वही पानी जब मर्यादा में बहता है तो जन उपयोगी सिंचाई से लेकर अनेक कार्यों में उपयोगी होता है। इसी प्रकार मर्यादा मनुष्य को विशेष रूप से उपयोगी बनाकर महान बना देती है। भगवान राम के जीवन का प्रत्येक  प्रसंग मर्यादित था ऐसे महान आदर्श अनुकरणीय व्यक्तित्व सबके लिए सदाचार- संस्कार की छत्रछाया में पल्लवित्त होता है। जो सबके लिए हितकारी होता है ।
     मर्यादित आचरण व्यक्ति को विषम परिस्थितियो में दिग्भ्रमित नहीं कर सकता बल्कि जीवन को जीना सिखाता है। मर्यादा पालन जीवन को दिव्य और महान बनाता है ।
  -  डाॅ.रेखा सक्सेना
मुरादाबाद - उत्तर प्रदेश
मर्यादा का पालन करने से ही मर्यादा पुरुषोत्तम श्री रामचंद्र आज विश्व भर में पूजे जाते हैं। मर्यादा शब्द तो केवल साढ़े तीन अक्षर का है किंतु मर्यादा का पालन करना उतना सरल नहीं है। प्राकृतिक नियम के अनुसार हर चीज की मर्यादा होती है और जहां मर्यादा का उल्लंघन होता है। वह मनुष्य को संकटों का सामना करना ही पड़ता है। देखा गया है कि जब भी मनुष्य जरा सा मर्यादा से बाहर जाता है तब उसे संकट का सामना करना ही पड़ता है। उदाहरणार्थ यदि किसी व्यक्ति की खुराक आधा शेर है और वह स्वादिष्ट भोजन के लोग बस कुछ अधिक हा लेता है तो वह निर्विवाद है कि उसे अपच गैस आदि जैसी पीड़ा को सहना ही पड़ेगा यह नियम केवल मनुष्य का प्राणी मात्र के लिए ही नहीं किंतु संसार की हर वस्तु के लिए यद्यपि मर्यादा कोई कानून नहीं और पप्पू की परिभाषा पर आधारित कोई अचार संगीता भी नहीं परंतु परस्पर संबंधों में कलह क्लेश की स्थिति पैदा होने से रोकने कार्य को सुचारू रूप से चलाने तथा समाज में तालमेल सामंजस्य और व्यवस्था बनाए रखने के लिए आवश्यक है। इसलिए मर्यादा का पालन हमेशा करना चाहिए। यदि हरिश्चंद्र रायपुर तहसील सहानुभूति पर या कर्तव्य पूर्वक पूर्वक व्यवहार नहीं करते तो फिर वह रेखा से नीचे वालों को मैं आधा भंग करने पर मजबूर करते हैं। इसी प्रकार अनुज ओं का यह कर्तव्य है इस शब्द संयम का पालन करें और मर्यादा की लकीर के अंदर है। आज विश्व भर में हम ऐसा देख रहे हैं कि मर्यादा ना रहने पर हड़ताल करना नारे लगाना बड़ों को अपमानित करना उनकी आज्ञा का उल्लंघन करना और स्वास्थ्य को लेकर अपनी मांग शान का झंडा बुलंद करके शोरगुल कर समूचे देश व समाज में अशांति का माहौल उत्पन्न करना आम हो चला है। ऐसा ही कुछ हाल छोटे स्तर पर परिवारों दफ्तरों या संस्थानों का भी होता है। देखे तो आज का समय बिल्कुल इससे मिलता-जुलता है।
- अंकिता सिन्हा कवयित्री
जमशेदपुर -  झारखंड
मर्यादा यानि प्रतिष्ठा,गौरव,मान। इसके अनुकूल व्यवहार करने यानि मर्यादित आचरण से व्यक्ति महान बनता है। प्रभु श्रीराम इसी आचरण के कारण मर्यादा पुरुषोत्तम कहलाए। मर्यादित व्यवहार हमेशा सम्मान पाता है। 
सबसे सम्मानजनक,प्रीति पूर्ण ,परिस्थिति अनुकूल, जनहित का ध्यान रखते हुए व्यवहार करना। महर्षि दयानंद ने आर्य समाज के सातवें नियम में कहा है- सबसे प्रीतिपूर्वक, धर्मानुसार, यथायोग्य वर्तना चाहिये।
यही है मर्यादित व्यवहार। इसमें लेकिन,यदि, किंतु, परंतु लगाने की कोई गुंजाइश ही नहीं बचती। यथायोग्य शब्द ने सब कुछ स्पष्ट कर दिया है।
अब मर्यादा का पालन करते हुए महान बनने का अवसर मिलता ही है,और मिलेगा भी। संसार के किसी भी महान व्यक्ति का आचरण अमर्यादित नहीं हो सकता। जिसने ऐसा किया
उसकी प्रतिष्ठा,महानता नष्ट हो गयी।
- डॉ.अनिल शर्मा 'अनिल'
धामपुर - उत्तर प्रदेश
मर्यादा का पालन करने वाला मनुष्य निस्संदेह महान होता है क्यूंकि मर्यादा मतलब अनुशासन ......अनुशासित व्यक्ति कभी भी अप्रिय और अशोभनीय कार्य नहीं करता और उसका येगुण उसे आम व्यक्तियों से अलग करता है और महान बनाता है
समाज एक मर्यादा में बंधा होता है व उसके आचरण का सीधा प्रभाव उसके व्यक्तित्व पर पड़ता है .....अच्छा बुरा ......पापी सदाचारी .....मर्यादित और अमर्यादित ...सब व्यक्ति की पहचान बनाते हैं
मर्यादा पालन में कई बार त्याग भी करना पड़ता .है .....और इसी प्रकार व्यक्ति महान बन जाता है
- नंदिता बाली
सोलन - हिमाचल प्रदेश
क्या मर्यादा का पालन करने से व्यक्ति महान बनता है।
  मर्यादा का पालन करने से व्यक्ति महान बनता है।  मर्यादा का अर्थ है मानवीयता की सीमा में रहना। मानवीय आचरण से ही व्यक्ति महान बनता है। भौतिक वस्तु शरीरश्रम से प्राप्त होता है।
 व्यवहार आचरण के पालन से ही मिलता है।  अतः मनुष्य निश्चित मर्यादा में रहकर कार्य व्यवहार करने से  महान बनता है।
- उर्मिला सिदार 
रायगढ़ - छत्तीसगढ़
मर्यादा मानव नियमों में निहित है इस  सृष्टि में हर वस्तु यदि मर्यादित है तो उसे अनुशासित माना जाता है। मर्यादा मनुष्य को जीवन के मूल गुणों से अवगत कराती है । मर्यादा में रहकर यदि हम अपना जीवन जीते हैं, तो सफलता के मार्ग की ओर अग्रसर हो कर सफलता प्राप्त करते हैं, और औरों के लिए प्रेरणा भी बनते हैं। इस विषय को लेकर प्रकृति हमारी सबसे बड़ी प्रेरणा स्रोत है। प्रकृति में सब कुछ मर्यादित ,अनुशासित, समय के अनुकूल होता है । समय पर फल फूल खिलते हैं ,फल लगते हैं। अंकुर फूटते हैं ,वर्ष भर की सारी ऋतुऐं  मर्यादा अनुसार अपनी भूमिका निभाती है। 
कलकल बहती नदियां किनारों के भीतर मर्यादित भाव से बहती हैं। किनारों को तोड़कर यदि पानी बहना लगे तो वह नदी नहीं बल्कि बाढ़ का रूप ले लेती है । इसी प्रकार मानव जीवन में मर्यादित, अनुशासित भावों का विशेष महत्व है । जहां मर्यादा का उल्लंघन होता है वहां मनुष्य को दुख झेलना पड़ता है । कहा भी गया है-- "अति हर चीज की बुरी होती है"  अतः मर्यादा में रहकर जीवन जीना सुखकर एवं श्रेयकर होता है यद्यपि मर्यादा में रहना सरल कार्य नहीं है किंतु मर्यादा में रहने के लिए प्रयास करना अच्छे नतीजे प्रदान करता है। 
 मर्यादा का पालन करने से मनुष्य में श्रेष्ठ गुणों का समावेश होता है आत्म संतुष्टि पाकर वह मन ही मन स्वंय को महान भी मानता है। हमारे इतिहास में मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम इसका सबसे बड़ा उदाहरण है । मर्यादा पालन के पीछे कष्टों को भी झेलना पड़ता है लेकिन महानता का गुण अवश्य मिलता है। 
- शीला सिंह 
बिलासपुर - हिमाचल प्रदेश
मर्यादा में रहे स्वयं,
सारे गुणों की खान।
रिश्तों की कीमत नहीं,
करे आप अपमान। 
मर्यादा मैं रहने वाला व्यक्ति हमेशा ऊंचाइयों को प्राप्त कर सकता है। यह हमें साधु संत और जितने भी महापुरुष हुए हैं उन्होंने यही शिक्षा दी है उनके जीवन को हम देखें तो वह सुबह से उठने से लेकर रात तक हो गए नियमों में बंधे रहते हैं जो व्यक्ति नियमों में नहीं पता रहता और मर्यादित नहीं रहता वह कभी किसी क्षेत्र और अपने जीवन में तरक्की नहीं कर सकता।
हमें मर्यादा में बंधे रहने की शिक्षा हमारे वेद शास्त्र भी देते हैं।
अपने देश समाज और स्वयं की उन्नति करिए।
- प्रीति मिश्रा 
जबलपुर - मध्य प्रदेश
       यह कटु सत्य है कि मर्यादा का पालन करने से व्यक्ति महान बनता है। जिसके परम पूज्य उदाहरण श्री रामचन्द्र जी हैं। जिन्हें मात्र महान ही नहीं बल्कि मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीरामचन्द्र कहते हुए ईश्वर का स्वरूप और विष्णु अवतार माना गया है।
       परंतु उक्त परम सत्य को भी झूठलाया नहीं जा सकता है कि उन्होंने मर्यादा के पालन में अपना सम्पूर्ण दाम्पत्य सुख त्याग दिया। जिससे पूजनीय माता सीता को महारानी होते हुए भी अज्ञात वनों की खाक छाननी पड़ी। यही नहीं उन्हें अग्निपरीक्षा के बावजूद रामराज्य की राज्यसभा में अपनी पवित्रता का प्रमाण देने के धरती में समाना पड़ा।
       दूसरी ओर भगवान श्री कृष्ण जी ने जीवन भर रासलीलाएं रचाईं और अथाह प्रेम-प्रसंगों की रीत चलाई, 365 रानियों का कीर्तिमान स्थापित किया, प्रेम का उदाहरण स्थापित करते हुए राधा-कृष्ण नामक मंदिर भी बने। 
       जबकि सर्वविदित है कि भगवान श्री कृष्ण जी की धर्मपत्नी का नाम रुक्मिणी था। सत्य तो यह भी है कि प्रेमिकाओं को भगाकर ले जाने का और भारतीय संस्कृति की मर्यादा भंग करने का श्रेय भी श्रीकृष्ण जी को ही जाता है। जिन्होंने ऐसे कई विचित्र आलोचनात्मक कीर्तिमान स्थापित किए और सभी प्रकार के सुखों को भोगा। 
       श्रीकृष्ण जी के विचित्र अकल्पनीय, असहनीय और अविश्वसनीय कीर्तिमानों में से अर्जुन द्वारा अपनी बहन सुभद्रा का अपहरण करवाना भी एक है। जिसकी कोख से विश्व के सबसे कम आयु के महायोद्धा अभिमन्यु ने जन्म लिया था।
       अतः उपरोक्त ईश्वरीय उदाहरणों से मतिभ्रम अवश्य होती है कि महान होने के लिए किस विधि को अपनाया जाए?
- इन्दु भूषण बाली
जम्मू  - जम्मू कश्मीर
निश्चित रूप से मर्यादा का पालन करने से व्यक्ति का चरित्र श्रेष्ठतम बन जाता है और वह महान व्यक्तियों के समतुल्य माना जाता है। भगवान श्री रामचंद्र को मर्यादा पुरुषोत्तम कहा जाता है क्योंकि उन्होंने हमेशा मर्यादाओं का पालन किया। मर्यादा पालन संस्कारों की ऊंचाइयों को प्रदर्शित करता है। हर किसी  से यह संभव नहीं होता। विशिष्ट संस्कारी लोग ही मर्यादाओं का पालन कर पाते हैं। इसीलिए वे महान कहलाते हैं।
- गायत्री ठाकुर "सक्षम"
नरसिंहपुर - मध्य प्रदेश
मर्यादा का पालन करने वाला व्यक्ति महान होता है ।मर्यादा शब्द का अर्थ आचरण से है ।हमारी  धार्मिक पुस्तकों में जीवन जीने के तरीके लिखे हुए हैं उनका पालन करने वालामर्यादित जीवन जीता है । सत्यबोलना ,परनिंदा न करना ,बड़ो का सम्मान ,हिंसा नकरना , हर जीव के लिए संवेदन शील होना , स्त्रियों का सम्मान करना ये सब मर्यादा के लक्षण है । जीवन की सार्थकता इसी में है हम मर्यादा निभाने के  लिए तत्पर रहें । प्रभु राम मर्यादा पुरुषोत्म कहलाये ।उनका जीवन हम सब के लिए उदाहरण है । इसको न स्वीकार करने वाला व्यक्ति साधारण मनुष्य भी नहीं है । यह सद्गुणों युगों तक मानवता की रक्षा करेगा ।हमसब को मर्यादा को अंगीकार करना चाहिए ।
- कमला अग्रवाल
गाजियाबाद - उत्तर प्रदेश

" मेरी दृष्टि में " मर्यादा सभी में होनी चाहिए । तभी समाज व देश में राम राज्य की कल्पना हो सकती है । ये सब मर्यादा का पालने करने से सम्भव है । 
- बीजेन्द्र जैमिनी 

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