क्या कोरोना की वजह से बढ गई है निजी वाहनों की मांग ?


कोरोना की वजह से सभी की जिन्दगी बदल गई है । जो लोग बसों , रेलवे , टम्पू आदि का उपयोग प्रतिदिन का रहा है । वे लोग मजबूरन निजी वाहनों का उपयोग करने के लिए बाध्य हो गये हैं । सभी को अपने - अपने निजी वाहन की जरूरत महसूस होने लगी है । और वे सब अपनी सुविधा के अनुसार वाहन खरीदने के तैयार हो गये है । इसलिए वाहनों की मांग बढने लग गई है । यहीं " आज की चर्चा " का प्रमुख विषय है । अब आये विचारों को देखते हैं : -
करो ना वायरस के संक्रमण का भय  अभी सबके मन में  है ।अब सभी व्यक्ति सार्वजनिक बस ,टेंपो, ट्रेन आदि में बैठने से भयभीत हैं ।क्योंकि उन्हें डर है कि जिस  सीट पर हम बैठेंगे उस पर कोई पहले को रोंना वायरस संक्रमित व्यक्ति बैठकर सफर कर रहा होगा  । इस समय सार्वजनिक वाहन में बैठकर जाना सुरक्षित नहीं है कोरोना संक्रमण  काल के  में सब पर्सनल वाहन से आना जाना जरूरी समझने लगे हैं  ।
जिसकी कैपेसिटी है  वो अपना निजी वाहन खरीद रहे हैं । या किस्तों पर लेकर अपने लिए वाहन का सुरक्षित इंतजाम कर रहे हैं क्योंकि जान है तो जहान है।
      यह सच है कि अब निजी वाहन  की बिक्री पहले की अपेक्षा ज्यादा बढ़ गई है अपने निजी वाहन से ज्यादा आना-जाना सुरक्षित है । क्योंकि अभी कोरोना संक्रमण काल  मालूम  नहीं कितना लंबा चलेगा ।
जिस बात का डर था वही बात हो रही है कि  गांव में करोना वायरस  का संक्रमण हो जाता है तो आसानी से रोकना असंभव है इसीलिए सभी व्यक्ति निजी वाहन से आ जाना पसंद कर रहे हैं।
 त था निजी वाहन की बिक्री मैं बढ़ोतरी हुई है ।
         - रंजना हरित            
 बिजनौर - उत्तर प्रदेश
           कोरोना की बजह से      लॉकडाउन के दौरान  सार्वजनिक परिवहन पूरी तरह से बंद रहा। रेलगाड़ियां का चलना, बसों के द्वारा यात्रा करने पर पूरी तरह से रोक लगी रही। तत्पश्चात  लॉक डाउन  के खुलने  के बाद कुछ रेलगाड़ियों और कुछ राज्यों में बसों का चलना प्रारंभ हुआ लेकिन ऐसी स्थिति में सभी को सोशल डिस्टेंसिंग बनाए रखने की सलाह दी गई ।सार्वजनिक परिवहन से यात्रा करने में सोशल डिस्टेंसिग बनाये रखना आसान नहीं होता है  और ऐसी स्थिति  से लोग बचना चाहते हैं। लोगों को सोशल डिस्टेंसिंग बनाए रखने के लिए निजी बाहनों के उपयोग की सलाह दी जाती है ।ऐसी स्थिति में निजी परिवहन का महत्व बढ़ जाता है।यही कारण है कि  लोग छोटी या कम कीमत वाली कारें वर्तमान समय में  बडी संख्या में खरीद रहे हैं ।कई ग्राहक सर्वेक्षण इस बात को स्पष्ट करते हैं कि वर्तमान समय में लोगों का झुकाव निजी परिवहन की तरफ हुआ है ।कई कंपनियों का यह सर्वेक्षण है कि छोटी कारों की जबर्दस्त मांग बढने  बाली है अथवा मध्यम वर्गीय लोग  ऐसी कार लेना पसंद करेंगे जो इस्तेमाल की गई हो और उनके द्वारा अपनी यात्रा अथवा आवागमन के कार्य  को पूरा कर सकने  के लिए उपयुक्त हो। निस्संदेह,   देश में निजी वाहनों की मांग तेजी से बढ़ रही है। 
- अरविंद श्रीवास्तव 'असीम ' 
दतिया  - मध्य प्रदेश
सुरक्षा और सतर्कता को ध्यान में रखते हुए निजी वाहनों और टैक्सी प्राइवेट कैब की मांग अवश्य बढ़ गई है।
सामूहिक तौर पर यात्रा करने में एक जगह से दूसरी जगह जाने में असुरक्षित महसूस करने लगे हैं वैसी परिस्थिति में इंसान या तो निजी वाहनों का उपयोग करता है या किराए पर क्या बुला लेता है
सरकारी बस की सुविधा बड़े-बड़े शहरों में उपलब्ध है लेकिन उसमें उस प्रकार की भीड़ नहीं है जैसे पहले हुआ करती थी अभी तक बड़े-बड़े शहरों में जैसे मुंबई में लोकल ट्रेन की शुरुआत नहीं हुई है इसलिए आवागमन कि जो भागदौड़ है वह बंद है आवश्यकता पड़ने पर हर इंसान या तो निजी वाहन का प्रयोग कर रहा है या किराए पर कब बुला रहा है यद्यपि के डीजल और पेट्रोल का दाम भी बढ़ते जा रहा है फिर भी सुरक्षा के दृष्टिकोण से इंसान निजी वाहनों का प्रयोग कर रहा है इससे सोशल डिस्टेंसिंग बना हुआ है सरकारी गाइडलाइन का पालन किया जा रहा है और खुद को सुरक्षित रखने का प्रयास भी हो रहा है
कोरोनावायरस तो इंसान की जिंदगी को बेड़ियों मैं ज कर दिया है सीनियर सिटीजन तो घर से बाहर कदम रखने में ही घबराते हैं और बच्चों को बाहर निकालने में भय है तो सिर्फ युवा और प्रौढ़ वर्ग ही यातायात की सुविधा को उपभोग कर रहा है मानसिक रूप से इंसान के दिल और दिमाग में कोरोनावायरस का भय बना हुआ है जिससे हर नियमों का पालन करने के लिए तैयार है
- कुमकुम वेद सेन
मुम्बई - महाराष्ट्र
हाल के कुछ महीने पहले तक असंतुलित प्रदूषण और बिगड़ते प्रकृति के चक्र को देखते हुए पूरे संसार के सामने  पर्यवरण नियंत्रण एक जटिल प्रश्न बना हुआ था। 
मग़र आज कि स्थिति में यही से एक रास्ता निकलता हुआ दिख रहा है। कोविड 19 के बढ़ते संक्रमण के खतरे के चलते आज लोंगो में निजी वाहनों की आवश्यकता महसूस होने लगी है। सार्वजनिक वाहन में यात्रा करना पहले जितना आसान नही रह गया है। लोगों में कोरोना संक्रमण से बचने की सावधानी भी एक अलग तरह के भय से भरी हुयी है। 
आज लंबी दूरी की यात्रा भी तमाम तरह के जोखिम से भरा हुआ। इसके मद्देनजर भी छोटी चार पहिया वाहनों की मांग बढ़ने लगी। फिलहाल उद्योग जगत भी इस मांग को देखते हुए "आपदा में अवसर" के संकल्प के साथ स्वदेशी विकल्पों की तरफ ग्राहकों का ध्यान आकर्षित करने के लिये, कईं तरह की योजनाओं के साथ प्रतिदिन लोक लुभावन प्रस्ताव प्रस्तुत कर रहे है।
विदेशों की बात करे तो वहाँ शहर के बीच की दूरी तय करने के लिए सायकिल और इलेक्ट्रिक स्कूटर को ज्यादा तवज्जो मिल रही है। इससे संक्रमण के साथ पर्यावरण चक्र में संतुलन की संभावना भी पूर्णतः संभलती दिख रही है। आज हमारे देश मे भी लोग इन्ही विकल्पों को आजमाने के पक्ष में है। जिससे खुद के बचाव के साथ ही प्रकृति संरक्षित करने का सुनहरा अवसर दिखायी दे रहा है।
- प्रतिमा त्रिपाठी
राँची - झारखंड
हाँ कोरोना के वायरस से बचने के लिए सभी लोगों को सामाजिक दूरी का पालन  करना है तो विशेषज्ञ भी मान रहे हैं कि बसों या मेट्रो में सफर करना कोरोना के संकट में  जोखिम भरा है । 
इसलिए लोग साइकिल व इलेक्ट्रिक स्कूटर  ,कार आदि का इस्तमासल कर रहे हैं । साइकिल तो पर्यावरण की मित्र है । यह लोगों के बजट और स्वास्थ्य के फायदेमंद है । कोरोना से बचाने में भी सहायक है स्वदेशी अपनाने को पूरा करने में भी सहायक है । प्रदूषण रोकने में साइकिल कारगर है ।
सरकारी वाहनों जैसे बस के सफर के लिये  लंबा  इंतजार करना पड़ता है । इससे तो अच्छा खुद का वाहन ही है ।जब चाहो  जिधर ले जाओ ।  समय भी कम लगेगा । मुम्बई की लाइफ लाइन लोकल अभी तक पटरी पर नहीं आयी है   । लोगों  की आवाजाही ठप्प पड़ी है ।
मुम्बई की लाइफ लाइन लोकल एक दिन में ढाई हजार लोकल 80 लाख लोगों को   यात्रा कराती है। मुम्बई देश की  आर्थिक राजधानी होने से देश की अर्थ व्यवस्था को रफ्तार देती  है । लॉकडाउन  से अब अनलॉक -1 तक यह रफ्तार ठप्प पड़ी  है ।  मुम्बई की बेस्ट बसे इतनी बड़ी आबादी के लिए कम है । बसों  के लिए लोगों को घण्टों तक प्रतीक्षा करनी पड़ती है ।  कोरोना वायरस की वैश्विक महामारी होने की वजह से 24 मार्च 2020 को राष्ट्रव्यापी पहला लॉकडाउन घोषित हुआ था और 1 जून 2020 को  सरकार ने लॉकडाउन 5 को नहीं किया  बल्कि  अनलॉक - 1 चरण का श्री गणेश हुआ । लॉकल के शुरू नहीं होने से जनता को परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है । लाकडाउन 1 से  तारीख 18 जून को  88 दिन हो जाएँगे सोसाइटियों में सफाई कर्मचारी लॉकल के नहीं चलने से  काम पर नहीं आ पा रहे हैं । 
- डॉ मंजु गुप्ता
 मुम्बई - महाराष्ट्र
करोना की वजह से निजी वाहनों की मांग बढ़ गई है लोग वायरस के संक्रमण के डर के कारण यह चाहते हैं कि कहीं भी जाना हो तो हम अपनी गाड़ी से जाएं या कोई गाड़ी बुक करके जाए जिससे संक्रमण का खतरा कुछ काम रहेगा और सोशल डिस्टेंसिंग को भी फॉलो कर सकेंगे।
लो बस या ऑटो में बैठने से डर रहे हैं कि जिंदगी रहेगी तो हम सब कुछ कर सकेंगे थोड़ी दूर भी जहां लोग गाड़ी में या किसी के साथ बैठ कर चले जाते थे अब वे पैदल जाने को ज्यादा अच्छा समझ रहे हैं मजदूर भी एक जगह से दूसरी जगह काम करने जहां पब्लिक ट्रांसपोर्ट में बैठकर जाते थे अब वैसा पैदल या साइकिल से जा रहे हैं।
लोगों के जीवन और रहन-सहन के तरीके में काफी बदलाव आ गया है आप लोग पुराने तौर-तरीकों को अपनाने लगे हैं। बार-बार हाथ धोना और साफ सफाई का विशेष ध्यान देने लगे हैं।
जब तक जरूरी ना हो तो घर से बाहर ना निकले लेकिन क्या करें काम तो सब को करना पड़ता है अपने काम के लिए घर से बाहर सभी को निकलना पड़ता है इसलिए आप जितना कम पब्लिक प्लेस में जाएंगे और पब्लिक आते हो या बस को इस्तेमाल कम करेंगे या नहीं करना चाहिए। लेकिन एक से दूसरे स्थान सभी लोगजाने के लिए निजी वाहनों को हायर नहीं कर सकते क्योंकि सब की नौकरी चली गई है और निजी वाहन वाले भी बहुत पैसे मांगते हैं सरकार को चाहिए या राज्य सरकारों को भी अपने निजी वाहनों का एक्शन से दूसरे स्थान जाने का रेट फिक्स कर लेना चाहिए जिससे वह  मन माने ना कर सके लोगों को सुविधा भी हो जाए क्योंकि कई लोग परोपकार करते हैं और कई लोग कालाबाजारी भी करने लगते हैं इस समस्या में आप सभी लोग एक दूसरे का सहयोग करिए मानवता ही सच्चा धर्म है।
- प्रीति मिश्रा 
जबलपुर - मध्य प्रदेश
समय-समय की बात है! जहां अभी तक यह कहा जाता था कि पर्यावरण संरक्षण, प्रदूषण नियन्त्रण और यातायात नियन्त्रण आदि के लिए नागरिक अधिकाधिक रूप से सार्वजनिक वाहनों का प्रयोग करें। वहीं अब विशेषज्ञ भी मान रहे हैं कि इस कोरोना काल में सार्वजनिक वाहन का प्रयोग खतरनाक है और निजी वाहनों को प्राथमिकता देनी चाहिए।
यूरोपीय देशों में कोरोना के कारण आवश्यक सार्वजनिक दूरी बनाए रखने हेतु कम दूरी के लिए मेट्रो के स्थान पर साइकिल को प्राथमिकता दी जा रही है। भारत में तो छोटे शहरों में पहले से ही अधिकांश लोग साइकिल का प्रयोग करते हैं। महानगरों में भी लोग मेट्रो, बसों के स्थान पर निजी वाहनों के प्रयोग को बढ़ावा दे रहे हैं। भारत के महानगरों में लोग साइकिल के स्थान पर इलैक्ट्रिक अथवा पेट्रोल से चलने वाले दोपहिया वाहनों को ज्यादा सुविधाजनक समझते हैं, इसीलिए वर्तमान में निजी वाहनों की मांग बढ़ रही है। 
- सत्येन्द्र शर्मा 'तरंग'
देहरादून - उत्तराखण्ड
कुछ समय पहले हम सभी प्रदूषण से बचने के लिए अपने वाहनों को एक दूसरे के साथ शेयर कर रहे थे ।आज स्थिती यह है कि पूरा परिवार एक सवारी में नहीं बैठ सकता है ।कारण कोरोना का संक्रमण है ,दो व्यक्तियों के बीच एक मीटर की दूरी आवश्यक है ।
यहाँ तक कि रिक्शे ,आटो ,टैक्सी में बैठने से लोग डर रहे हैं ॥।परिणाम स्वरुप ,जबसे लाॅक डाउन खुला है ग्राहकों ने सुरक्षा पर विचार करना शुरु किया ,निजी वाहनों की माँग बढ़ी है ।
- कमला अग्रवाल
गाजियाबाद - उत्तर प्रदेश
कोरोना संक्रमण की वजह से निजी वाहनों की मांग काफी बढ़ गई है l सरकार द्वारा निर्देशित गाइड लाइन की पालना करने पर निर्धारित प्रक्रिया अपनाते हुए लॉक डाउन में आ -जा सकते हैं l मानसिक वेदना के क्षणों में हर व्यक्ति हर हाल में अपने घर पहुँचना चाहते हैं लेकिन जान है तो जहांन है l बिना संक्रमण के अपने गन्तव्य पर पहुँचना पहली प्राथमिकता है इसी के चलते निजी वाहनों की मांग बढ़ने से किराया भी बढ़ गया l किराया बढ़ना मनुष्य की इच्छाओं पर भारी नहीं हो सकता l वह सुरक्षित अपनों के मध्य पहुँचना चाहता है अतः निजी वाहनों में भी चालकों के लिए मास्क हो, हैंड ग्लव्स, सेनेटाइजर आदि की व्यवस्था सुनिश्चित होनी चाहिए l साथ ही साथ सोशल डिशटेन्सिंग की पालना भी अवश्य होनी चाहिए l समय समय पर डोर, गियर स्टेरिंग आदि को सेनेटाइज करते रहें l रास्ते में रुकना संभव नहीं, व्यक्ति पराधीन नहीं रहता कम समय में पहुंचता है इससे निजी वाहनों की मांग बढ़ रही है l यात्रा से पूर्व यदि अनुमति की आवश्यकता हो तो तदनुसार पालना /अनुमति प्राप्त कर यात्रा करे l ड्राईवर के अलावा दो से ज्यादा यात्री सफ़ऱ नहीं करें l इन बातों का विशेष ध्यान रखें l 
1. क्या यात्रा नितांत आवश्यक है या तफरी के लिए जा रहें हैं तथा जहाँ आप जा रहें हैं वहाँ कोरोना का कितना प्रभाव है साथ ही उन राज्यों की जानकारी पूर्व में ही ले लें l आपात स्थिति न हो तो यात्रा से दूरी बनाए रखें l स्वस्थ भोजन, पानी की व्यवस्था करें, रास्ते में कुछ नहीं मिलने वाला l 
2. स्वास्थ्य का ध्यान रखें l निकलने से पहले चेकअप करा लेवें l सोशल डिस्टेंसिग का ध्यान रखें, आवश्यक dvaiyan, मास्क, ग्लव्स आदि साथ रखें l बाहरी व्यक्ति को दूर रखें तथा स्वयं भी दूर रहें l 
        चलते चलते ---
1. डर हमको भी लगता है, रास्ते के सन्नाटे से l 
लेकिन इस सफ़ऱ पर ए दिल जाना तो होगा ही l 
2. इस कोरोना काल में जिंदगी यूँ हुई बसर तन्हा l 
काफिला साथ है और सफ़ऱ 
तन्हा l
- डॉ. छाया शर्मा
अजमेर - राजस्थान
      जी हां! यह सत्य है कि कोरोना की वजह से निजी वाहनों की मांग बढ़ गई है‌। किंतु इतना ही सत्य यह भी है कि गाड़ियां सड़कों पर कम उतर रही हैं। जिनके कई कारण हैं।
      जैसे सरकारी एवं निजी बसें लाॅकडाऊन की वजह से बंद कर दी गई हैं। तो एक मात्र विकल्प निजी वाहन ही बचता है। इसलिए निजी वाहन परम आवश्यकता की सूची में आ गया। क्योंकि प्रतिदिन दूसरों की गाड़ी मांगना या लिफ्ट मांगना एक ओर अच्छा नहीं लगता दूसरी ओर दूसरे को भी बुरा लगता है। इस वजह से भी निजी वाहनों की मांग बढ़ी है।
      मांग बढ़ने का एक महत्वपूर्ण कारण यह भी है कि दो गज का सामाजिक अंतर भी रखना है। जिसके लिए बसों का किराया भी बढ़ने के आसार हैं। जो जनसाधारण की रीढ़ की हड्डी को तोड़ने में समक्ष होगा। किंतु विवशता है जिस पर जोर नहीं चलता। 
      जबकि निजी गाड़ी में यह झंझट नहीं है। क्योंकि उसमें परिवारिक सदस्य ही बैठने हैं। जिनसे फासला इतना आवश्यक नहीं जितना दूसरों से होता है। इस वजह से भी निजी वाहनों की मांग में बढ़ोतरी हुई है।
      निजी गाड़ी सुख सुविधा से परिपूर्ण और सुरक्षित होने के साथ-साथ सस्ती भी पड़ती है। 
      हां अकेले होने पर कुछ सीमा तक निजी गाड़ी महंगी भी पड़ती है। एक दूसरे के घर में भी आना-जाना बहुत ही कम हो चुका है। जिस वजह से निजी वाहन सड़कों पर कम उतर रहे हैैं।
- इन्दु भूषण बाली
जम्मू - जम्मू कश्मीर
कोरोना वायरस की वजह से बढ़ गई है निजी वाहनों की मांग के स्थान पर यह कहना चाहूंगा कि जो सक्षम लोग पहले अपने वाहनों को छोड़कर मैट्रो में सफर करने लगे थे या ओला जैसी सेवाओं का लाभ उठाने लगे थे वे पुनः अपने वाहनों में ही सफर कर रहे हैं।  किन्तु इसे निजी वाहनों की मांग कहना सही नहीं होगा।  कोरोना वायरस से व्यक्तिगत आर्थिक स्थिति बिगड़ जाने से लोग नये वाहनों की खरीद में दिलचस्पी नहीं दिखा रहे उन्हें तो केवल इस बात की फिक्र है कि उनके पास भविष्य की किसी भी जरूरत के लिए पैसा जुड़ा रहे।  मध्यम वर्गीय या निम्न वर्गीय परिवारों की स्थिति तो जैसे पहले थी वैसी ही अब है।  बल्कि सार्वजनिक परिवहन की कमी और मैट्रो सेवाओं के न चल पाने के कारण उन्हें ज्यादा परेशानी है परन्तु इस परेशानी के हल के लिए वे निजी वाहन खरीदने की सोच भी नहीं सकते। ओला जैसी सेवाएं हालांकि अपनी तरफ से लोगों को आश्वस्त करने में पूरा जोर लगा रही हैं कि उनसे जुड़ी सभी गाड़ियों का हर सफर के बाद अच्छी तरह से सैनेटाइजेशन किया जाता है पर लोगों के मन में जो भय व्याप्त हो चुका है वह किसी सैनेटाइज़र से नहीं जा रहा है।  प्राइवेट वाहनों चाहे उसमें रिक्शा या ई-रिक्शा या तिपहिया भी हो उन्हें अनेक पाबंदियों के चलते पूर्ववत की तरह सवारियां भी नहीं मिल रही हैं।  एक-एक पैसे की अहमियत जानने वाला गरीब तबका बसों में ही सफर कर रहा है।  उसे कोरोना से सुरक्षा के साथ-साथ अपनी जेब का भी ख्याल है।  ई-रिक्शा जैसे वाहनों में जहां पहले सवारी संबंधी पाबंदियां थीं वे अब हटा ली गई हैं और उन्हें भी भर-भर के जाते हुए देखा जा सकता है। इनमें सफर करने वाले कैसे सोचें निजी वाहनों के बारे में? बस समझिए कि गैराजों में खड़ी कारें सड़कें नापने के लिए फिर से निकल रही हैं। यदि नई कारें बिक भी रही हैं तो वह कोरोना वायरस के कारण नहीं अपितु अन्य और पूर्ववत् कारणों से बिक रही हैं। यह कहना कि कोरोना वायरस की वजह से बढ़ गई है निजी वाहनों की मांग दमदार नहीं लगता। - सुदर्शन खन्ना
 दिल्ली
यह प्रश्न आज के हमारे युवक की चाहत की मांग है। कोरोना वायरस से यातायात में जो पाबंदी लगी है इसे देखते हुए हर नवयुवक की चाहत है अपना अपना निजी वाहन की। 
कोरोना वायरस के कारण दुनिया पूरी बदल जाएगी। बीते कुछ महीनों से कोरोना की मार से जूझ रही है पूरी दुनिया ।आज के मुकाबले में कुछ सालों के बाद दुनिया कहां खड़ी रहेगी कहना नामुमकिन है।
कोरोना महामारी रिस्पांस दूसरे सामाजिक और पर्यावरणीय संकटों को लाने वाला जरिया का विस्तार ही है। एक तरह की वैल्यू के ऊपर दूसरे को प्राथमिकता देने से जुड़ा हुआ है। इसके कारण इकोनामी पर तगड़ी चोट की है। भारतीय अर्थव्यवस्था पर तगडी  चोट की है। दुनिया के 15 सबसे  बड़ी अर्थव्यवस्था में एक भारत भी है।OICD सभी 15 देश के अर्थव्यवस्था के अध्ययन करने के बाद भारत के बारे में यह बताया कि 1920 -1921 मे भारत के अर्थव्यवस्था के विकास की गति का पूर्वानुमान 1.1% घटाकर 5.1%कर दिया गया है।
भारत-चीन के सरहद पर तकरार के कारण चीनी सामान का देश मे बहिष्कार के कारण अपने औद्योगिक क्षेत्र को बढ़ावा देना और आत्मनिर्भरता के ओर अग्रसर होना देश के लिए शुभ संकेत है।
अभी भारतीय लोग वर्तमान के लिए सोचते हैं।जैसे:- नौकरी,धंधा, व्यवसाय,शिक्षा, रिश्तेदार इत्यादि का क्या होगा।
यातायात ना के बराबर है इसलिए युवक अपना अपना निजी वाहन की आवश्यकता महसूस कर रहे हैं। अभी जिनके पास 5 सीटर निजी वाहन है उन्हें भी एक ड्राइवर और पीछे में एक व्यक्ति ही बैठने की अनुरिमति है।इसलिए भारतिय सभ्य परिवार में निजी वाहन की आवश्यकता महसूस कर रहे हैं। लेकिन तेल के दर आसमान छूँ रहा है। इसलिए विद्युत चालक वाहन का जनता इंतजार में है।
अभी-अभी दो ऑटोमोबाइल सेक्टर मारुति मोटर्स और टाटा मोटर्स अपना अपना सर्वे कराया है उससे ज्ञात हुआ है निजी वाहन की आवश्यकता है,लेकिन इलेक्ट्रॉनिक वाहन के प्रतीक्षा में जनता है।
उम्मीद किया जा रहा है इस महामारी के बाद हमारा देश आत्मनिर्भर और अर्थव्यवस्था दोनो  मजबूत  हो जाएगा।
लेखक का विचार;- विद्युत चालक वाहन की मांग मांग है जिससे पर्यावरण का रक्षा होगा।भारतिय अर्थव्यवस्था और आत्मनिर्भरता भी सुधरेगा।
- विजयेंद्र मोहन
बोकारो - झारखण्ड
कोरोना संक्रमण ने जहाँ अनुशासन की परिभाषा बदली है वहीं लोगों द्वारा सरकारी परिवहन की उपयोगिता में भी ग्रहण लगा दिया है। दूरी बनाने की प्रक्रिया में लोग निजी वाहन को प्राथमिकता दे रहे हैं ।
  हाँ। अब यातायात के लिए लोग खुद के वाहन का उपयोग करना चाहते हैं। इससे दूसरे अनजान लोगों से दूरी बनी रहेगी। खर्च में इजाफा होगा, लेकिन वह भी वहन करने को तैयार हैं। पेट्रोल, डीजल के दाम भी बढ़ गए हैं। इससे उनकी आकांक्षा पर कोई प्रभाव नहीं दिख रहा । कोरोना का डर उससे कहीं ज्यादा है ।
- संगीता गोविल 
पटना - बिहार 
देश मे अथवा दुनिया में कोई भी त्रासदी आ जाये लोगो का जीवन प्रभावित होने तो लाजमी है परंतु लोगो का जीवन वहीं ठहर जाना ये मुमकिन नही है ना ! हां ये जरूर है कि उनका जीवन जीने का नजरिया जरूर बदल जाता है । जिसमे बहुत सी सावधानियों के साथ जिंदगी के हर पल को जोड़ दिया जाता है ।
ऐसा ही विश्व भर में कोरोना महामारी के फैल जाने के बाद हुआ है । जिसमे लोगो ने मास्क ओर सेनेटाइजर को पूरी तरह अपनी जिंदगी में उतार लिया है । चलती जिंदगी में रोजमर्रा की जरूरतें पूरा करने के लिए व आने जाने में वाहन की जरूरत तो होती ही है परंतु ऐसे समय मे जब कोरोना अपने चरम पर है , लोग प्राइवेट पब्लिक वाहनो तथा परिवहन निगमो के वाहनों में सफर करने से कतरा रहे है । जिसके लिए लोग एक लंबा सफर भी अपने निजी वाहन से करने को तैयार है और एक बड़ी संख्या में जनता लगातार निजी वाहन खरीदने में लगे है । ताकि रोजमर्रा की जिंदगी को भली भांति अंजाम दिया जा सके । यही वजह है कि आज दिन प्रतिदिन दो पहिंया व चार पहिंया वाहनों की मांग लगातार बढ़ती जा रही है ।
 - परीक्षीत गुप्ता
बिजनौर - उत्तरप्रदेश
सार्वजनिक वाहन बंद होने के कारण, आवाजाही के लिए एकमात्र विकल्प निजी वाहन ही रह गया है। इन निजी वाहनों का उपयोग बढ़ने से, सड़कों पर निजी वाहन अधिक दिखाई दे रहे हैं। कुछ राज्यों में निजी वाहनों को लाने ले, जाने के लिए छूट है जबकि सार्वजनिक परिवहन बंद है। ऐसे में निजी वाहनों का उपयोग बढ़ना स्वभाविक है। इस उपयोग को हम बिक्री से नहीं जोड़ रहे, क्योंकि हालात सामान्य न होने के कारण अभी परिवहन व्यवस्था भी सामान्य नहीं है। पर्यटन, भ्रमण विवाह शादी, रिश्तेदारी में आने जाने में लोग अभी सावधानी बरत रहे हैं। इसलिए निजी वाहन भी अधिक मात्रा में सड़कों पर नहीं है। रोजगार प्रभावित होने के कारण आर्थिक सुदृढ़ता भी समाज में कम हो रही है, तो ऐसे में मांग को बिक्री से जोड़कर देखना या आकलन करना उचित नहीं लगता। बिक्री पर निश्चित रूप से प्रभाव पड़ा  है। अप्रैल- मई में बिक्री न के बराबर हुई। कुछ वाहन शादी में देने लेने के लिए  जरुर बिके,बिक रहे हैं। लेकिन मांग या बिक्री बढ़ी हो,ऐसा नहीं लगता।
- डॉ.अनिल शर्मा 'अनिल'
धामपुर - उत्तर प्रदेश
कोरोना जैसी महामारी ने अर्थव्यवस्था पर काफी प्रभाव डाला है जिससे कुछ व्योपार तो बन्द ही हो  गए परन्तु कुछ व्यापार अच्छे चल निकले जैसे निजी वाहनों की बिक्री आदि
क्योकि जन जीवन अब धीरे धीरे रफ़्तार लेगा और लोग जो रिक्शे,बस,टैक्सी से काम पर आते जाते थे अब वो अपनी सुरक्षा के लिए निजी वाहन ही लेंगे क्योकि यह महामारी छुआछुत की है अगर कोई संक्रमित व्यक्ति टैक्सी ,रिक्शा,बस आदि मे अनजाने से बैठ भी जाता है तो वो सभी संक्रमित होंगे जो इस का उपयोग करेंगे इस डर से सभी कोशिश करेंगे कि वो इस घटना से बचे जिससे वो निजी वाहन ही लेंगे। देखने में तो यहां तक आया है कि जो लोग घर के आस पास ही काम करते हैं वह साईकिलों को प्राथमिकता दे रहे हैं अतः कोरोना के चलते निजी वाहनों की बिक्री  सम्भवतः ‌बढी है।
- ज्योति वधवा "रंजना"
बीकानेर - राजस्थान
     भारतीय इतिहास में प्रथम बार अघोषित कोरोना महामारी के कारण जीवन शैली की दिनचर्या परिवर्तित हो चुकी हैं। अर्थव्यवस्था के साथ-साथ वाहन व्यवस्था अत्यंत प्रभावित हो चुका हैं। वर्तमान में आमतौर पर आमजन को अपने गंतव्य स्थलों तक आवागमन करने में भी काफी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा हैं। भविष्य में भी पूर्णतः आवागमन पूर्ववत हो सकेगा, यह भी कहा नहीं जा सकता हैं। ऐसी परिस्थितियों में आमजनों को नीजि वाहनों के सहारे ही अपनी इच्छानुसार जीवन यापन करने की आवश्यकता पड़ी। जिनके पास वाहनों की व्यवस्था नहीं थी, उन्हें वाहनों की खरीददारी करने पड़ी। जिसके कारण वाहनों की बिक्री ज्यादातर होते जा रही हैं। इसके विपरीत असीमित विवाह का समय चल रहा हैं, जिसके कारण नीजि वाहनों की मांग दिनोंदिन बढ़ती जा रही हैं।
- आचार्य डाॅ.वीरेन्द्र सिंह गहरवार 'वीर'
  बालाघाट - मध्यप्रदेश
जरुरी है लोग अब बसों और ट्रेनो  में सफर करने से डरने लगे हैं ,
रिक्शा , ओला , ऊबर , से जाते है पर कोरोन का डर तो है ही 
यही कारण है की लोग निजी वाहन अधिक इस्तेमाल कर रहे हैं । 
गाइडलाइन के मुताबिक, इमरजेंसी सेवाओं के लिए निजी वाहनों को उपयोग किया जा सकता है। इसके साथ ही आवश्यक वस्तुओं की खरीद के लिए भी वाहन का इस्तेमाल कर सकते है। इस दौरान दो पहिया वाहनों पर सिर्फ ड्राइवर को ही निकलने की इजाजत होगी और कोई पीछे की सीट पर नहीं बैठ सकता। इसके साथ ही ड्राइवर को मुंह पर मास्क लगाना अनिवार्य होगा।
कार में सिर्फ दो लोगों को अनुमति
इसके अलावा चार पहिया वाहनों में सिर्फ दो व्यक्तियों के सफर करने की अनुमति रहेगी। कार में ड्राइवर के अलावा पिछली सीट पर एक व्यक्ति बैठ सकता है। इसके साथ ही दोनों को मुंह पर मास्क लगाना जरूरी होगा नई गाइडलाइन के मुताबिक, कार्यस्थल तक जाने और वापस लौटने के लिए निजी यात्रा की छूट रहेगी। बता दें कि केन्द्र सरकार ने सभी राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों को नई गाइडलाइन को सख्ताई से पालन कराने का आदेश दिया है। इसके अलावा लॉकडाउन का उल्लंघन करने पर कानूनी कार्रवाई की जा सकती है।
लॉकडाउन के नियमों में ढील की वजह से बिजली की मांग साल 2019 के स्तर तक पहुंच गई है. निजी वाहनों का इस्तेमाल होना शुरू हो गया है, इससे ईंधन की खपत बढ़ेगी. लोगों का मनोरंजन व लग्जरी पर खर्च कम होगा, जिससे बैंकों में जमा पैसे का स्तर बढ़ेगा."
कोविड-19 महामारी से बचने के लिए लॉकडाउन खुलने के बाद बड़ी संख्या में लोग सार्वजनिक परिवहन साधनों को छोड़कर निजी वाहनों को अपनायेंगे जिससे शहरों जाम और प्रदूषण की समस्या गहरा सकती है। पर्यावरण के क्षेत्र में काम करने वाले संस्थान ‘टेरी’ ने एक सर्वेक्षण रिपोर्ट में बताया है कि मेट्रो में सफर करने वाले 36 फीसदी और बसों में सफर करने वाले 41 फीसदी लोगों ने यातायात के दूसरे साधनों की ओर रुख करने की बात कही है। इनमें अधिकतर निजी कार या दुपहिया वाहनों को विकल्प के रूप में अपनाने की सोच रहे हैं जबकि कुछ लोग ऑटो रिक्शा या टैक्सी में ही यात्रा करने की सोच रहे हैं। मुंबई में लोकल ट्रेनों में यात्रा करने वाले लोगों ने भी दूसरे साधन अपनाने की बात कही है।
जब तक सामान्य  स्थिति नही होती लोक सार्वजनिक वाहनों से बचेंगे जो सक्षम है वो निजी वाहनों का उपयोग ही करेंगे 
इससे यातायात बाधित होगा प्रदुषण फैलेगा , अतरिक्त आर्थिक बोझ भी बढेगा , 
- डॉ अलका पाण्डेय
 मुम्बई - महाराष्ट्र
बिल्कुल सही बात है।लोग कोरोना के डर से सार्वजनिक परिवहन का उपयोग करने से डर रहे हैं।और ये काफी हद तक ठीक भी है।लेकिन एक बात और बोलना चाहता हु मैं की लोग फालतू आना जाना करने से बच रहे हैं।और ये बिल्कुल सही कर रहे हैं।हम इसको निजी वाहनों तक सीमित ना रखें बल्कि हर चीज में बरकरार रखें। बाहर का खाना पीना और आना जाना कम से कम रखें।साफ सफाई का विशेष ध्यान रखें। बहुत बड़ी मजबूरी में ही बाहर निकलें।
बाकी ये बिल्कुल सही है कि निजी वाहनों का उपयोग बढ़ रहा है और बढ़ना भी चाहिए।
- रोहन जैन
देहरादून - उत्तराखंड
कोरोना की वजह से निजी वाहनों की मांग बढ़ गई है। इसका एक बड़ा कारण है कि कई शहरों में बसों का अभी तक परिचालन शुरू नही हो सका है। झारखंड में बसों को चलाने की सरकार द्वारा अनुमति नही दी गई है, क्योंकि कोरोना के मामले यहां बहुत ही तेजी से बढ़ रहे हैं। झारखंड के अलावे देश के लगभग सभी राज्यो में कोरोना के बढ़ रहे केश के कारण लोग चिंतित हैं और निजी वाहनों से ही
सफर करने मे अपने को सुरक्षित महसूस करते हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार दुनियाभर में कोरोना के 95 लाख मरीजों की संख्या पार कर गई है, जबकि मृतकों की संख्या 4.86 लाख तक पहुंच गई है। भारत मे भी बहुत तेजी से संक्रमण के केश बढ़ रहे हैं। कोरोना के बढ़ते खतरों के कारण कई राज्यों में फिर से पाबंदिया लगाई जा रही है। तमिलनाडु सरकार ने गुरुवार को ही अंतर जिला सार्वजनिक परिवहन पर रोक लगा दी है। इसके साथ ही कर्नाटक सरकार ने चेतावनी दी है कि यदि इसी तरह मामले बढ़ते गए तो सम्पूर्ण लॉकडाउन लगाने ही पड़ेंगे। वहीं यूपी, हरियाणा, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश सहित कई राज्यों में समीक्षा की जा रही है। कई राज्य छोटे छोटे कस्बो में भी लॉकडाउन कर रहे हैं। कोरोना महामारी में घर परिवार चलाने के लिए काम करना भी जरूरी है। इसके साथ ही  कोरोना से भी अपने आप को सुरक्षित रखना है। इस परस्थिति में परिवहन के लिए सबसे सुरक्षित निजी वाहन ही है।
- अंकिता सिन्हा साहित्यकार
जमशेदपुर - झारखंड
कोरोना काल मे सामाजिक जीवन की रूपरेखा में बहुत बड़ा परिवर्तन आया है। परिवहन के साधन पर इस का गहरा असर पड़ा है। दिल्ली में मेट्रो अभी बंद है। पब्लिक ट्रांसपोर्ट में भी उचित दूरी को पालन करना ज़रूरी रखा गया है।रिक्शा हो या ग्रामीण सेवा सभी में सवारियों की लिमिट रखी गई है। जिसके कारण काम पर जाने वाले लोगों को बहुत परेशानी का सामना करना पड़ रहा है।टैक्सी और ऑटो के लिए भी नियत संख्या तय की गई है। ऐसे में निजी वाहन ही एक विकल्प बचता है क्योंकि अब पहले की तरह कार पूलिंग भी नहीं हो सकती। इसलिए निजी वाहनों की मांग बढ़ना लाज़िमी है।
- सीमा मोंगा
रोहिणी - दिल्ली
कोविड-19 संक्रमण को लेकर जनता काफी सजग है। सार्वजनिक वाहनों में सफर करने पर वायरस संक्रमण का डर बना रहता है। बस और मेट्रो में सफर करना जोखिम भरा है जिसकी वजह से निजी वाहनों की मांग बढ़ रही है।
       कोरोना से जंग और सुरक्षित सफर के लिए साइकिल भी उम्दा सवारी बनती जा रही है। साइकिल आम आदमी की सेहत और जेब के लिए कारगर साबित होता है। यही कारण है कि यूके जैसे बड़े देश में साइकिल की मांग 200 फ़ीसदी तक बढ़ गई है।
 उच्च वर्ग के लोग पहले भी निजी वाहनों को तवज्जो देते थे। मध्यम व निम्न वर्ग के लोग अपनी जेब का ख्याल रखते हुए सार्वजनिक वाहनों का इस्तेमाल करते थे परंतु वर्तमान में बढ़ते संक्रमण को देखकर कमजोर तबके के लोग भी सस्ते पर गुणवत्ता वाले वाहनों को खरीद कर उसका किफायती इस्तेमाल करने पर विचार कर रहे हैं। इसलिए कम रेट वाली कारों की बिक्री भी ज्यादा बढ़ने लगी है।
     आर्थिक गतिविधियों के नरम रहने और लोगों की क्रय शक्ति प्रभावित होने से लोग निजी परिवहन के लिए छोटी या कम कीमत वाली कार या दूसरी वाहन खरीदना पसंद करेंगे और ग्राहकों की संख्या भी बढ़ेगी।
     नि:संदेह दो गज की दूरी के निर्देश का पालन और संक्रमित होने के डर से लोग सार्वजनिक वाहनों की जगह निजी वाहनों को ज्यादा अहमियत और वरियता दे रहे हैं। इसी वजह से निजी वाहनों की मांग भी बढ़ रही है।
                          - सुनीता रानी राठौर
                        ग्रेटर नोएडा - उत्तर प्रदेश
 जी हां करुणा के वजह से निजी वाहनों की मांग बढ़ने लगी है। करो ना भीड जगह में संक्रमित होकर विकसित हो रही है लोगों को अपने युवक उपार्जन हेतु अगर दूर जाना पड़ रहा है इस स्थिति में बस ट्रेन या अन्य साधनों जहां लोगों का भी होता है वहां से निजात पाने के लिए लोगों को एक ही स्थान से दूसरे स्थान जाने के लिए निजी वाहनों का उपयोग करने पर ध्यान जा रहा है । जिससे निजी वाहनों की मांग बढ़ रही है । एक तरफ अधिक व्यय भार बढ़ रही है दूसरी तरफ आवश्यकता की कमी की पूर्ति ना हो पाने से मध्यम वर्गों में आर्थिक भार का दबाव से समस्याएं बढ़ रही है। वायु प्रदूषण का मुख्य कारण औद्योगिक करण है और अपनी सीधा के लिए वाहनों की अतिरिक्त आवश्यकताएं बढ़ गई है जो ट्रेन और बस में इसकी पूर्ति होता था वह आज निजी वाहनों से होने लगी है। जिसके कारण उद्योगों में वृद्धि हो रही है जिससे जल और वायु प्रदूषण का भार बढ़ने की संभावना बनी हुई है। अगर निजी वाहन की व्यवस्था नहीं करते हैं तो भीड मैं करुणा की मार इस तरह वर्तमान स्थिति को देखें तो एक समस्या ठीक करने के चक्कर में दूसरी समस्या आ रही है अतः इन समस्याओं को सोच समझकर अनुसंधान कार पहल करना होगा ताकि भविष्य में करो ना और मानव की अन्य समस्याओं का हल निकल जाए भविष्य में एक जागृत होकर नई सोच और समाधान आत्मक विकास का उदय समाज में हो सके। इस कार्य में पूरे भारत के लोगों को चिंतन और भागीदारी करने की आवश्यकता है तभी भारत अपनी संस्कृति की मर्यादा रखकर आगे बढ़ सकता है वर्तमान में सभी लोग समस्या से गुजर रहे हैं इस समस्या का निदान कैसे हो इस पर सभी की मानसिकता चिंतन में लगे हैं अतः चिंता नहीं चिंतन करने की आवश्यकता है सभी समस्याओं का हल हो सकता है।
- उर्मिला सिदार
रायगढ़ - छत्तीसगढ़
कोरोना वायरस के चलते प्रशासन द्वारा निर्धारित गाइड लाइन के अनुसार आवागमन में  काफी मुस्किले खड़ी हो गई  हैं! कोरोना वायरस के संक्रमण से बचने के लिए सोशल डिस्टेन्सिंग का भी ध्यान रखना है अतः लोग प्रायवेट टैक्सी ओला, उबर मे जाना पसंद करते हैं अथवा निजी वाहन में! 
दो पहिये (स्कूटर, साइकल)  अथवा कार में! 
सरकारी बस या लोकल ट्रेन में जाने में डरते हैं किंतु यह सब बातें उनके लिए है जो सक्षम है बाकी साधारण जनता तो उसी बस और लोकल ट्रेन में निर्धारित गाइड लाइन के तहत सफर करती है! सभी कोरोना से भयभीत हैं अतः कुछ हद्द तक नियमो का पालन करना तो सीख ही गई है! कोरोना काल में अच्छे अच्छे लोगों की आर्थिक स्तर गिर गया है! उसमे निजी वाहन का उपयोग बहुत कम लोग ही आसपास सामान लाने के लिए अवश्य करेंगे किंतु दूर का सफर जब पेट्रोल डीजल के भाव भी बढे़ हैं एक बार सोचेगा अवश्य!
अतः मेरे हिसाब से या तो जरुरी है तभी निकलना चाहिए! बुजुर्ग घर पर ही रहे! 
यदि निजी वाहन अथवा प्राइवेट वाहन में  जाने में सक्षम है तो वह तो जायेगा ही किंतु ट्रैफिक भी बढे़गी और पोलुशन भी! यदि हम नियम का पालन करें तो अवश्य कोरोना से बच सकते हैं!
- चन्द्रिका व्यास
मुम्बई - महाराष्ट्र
जब सब कुछ बन्द हैं रेल बस सेवा ठप पढी हैं लाॅकडाउन के समय ओर अब जब धिरे धिरे हर क्षेत्र में कुछ कुछ समान्य होते दिख रहा हैं तो एक सबसे बढी परेशानी आवागमन को लेकर हो रही हैं। ऐसे में जीन्हें जरूरत हैं पढ रही हैं तो उनहें निजी वाहानों का ही प्रयोग करना पढ रहा हैं। कोई दूसरा विकल्प न होने से अब निजी वाहनों की मांग बढना सव्भाविक ही नजर आता हैं।
- कुन्दन पाटिल
 देवास - मध्यप्रदेश
कोरोना वायरस में सोशल डिस्टेंस रखना बहुत जरूरी है ।इसी कारण से लोग खुद अपने वाहन से अवागमन पसंद कर रहे हैं क्योंकि यह इस वक्त की सबसे बड़ी मांग है । भीड़_ भाड़ से बचना है इसलिए निजी वाहन ज्यादा सुरक्षित है आज इस कोरोना बीमारी से। इसलिए जिनके पास नहीं है वे वाहन की खरीदारी कर रहे हैं।अन्य सारे संसाधन जो भी हैं आवागमन हेतु उनमें सबसे सुरक्षित निजी वाहन है इसीलिए इसका उपयोग लोग ज्यादा कर रहे हैं । हालांकि डीज़ल, पेट्रोल की कीमतों में बेतहाशा वृद्धि होती जा रही है , फिर भी लोग निजी वाहन ज्यादा उपयोग में ला रहे हैं क्योंकि  " जान है तो जहान है "।यह भी अक्षरशः सत्य है।
- डॉ पूनम देवा
पटना - बिहार
मैं स्वयं आटो सेक्टर में काम करता हूॅं‌। मुझे नहीं लगता कि प्राइवेट गाड़ियों की मांग बढ़ी है। चुकी मैं जिस कम्पनी में काम करता हूॅं‌ उसमें मोटरसाइकिल और कार के कल पुर्जे बनते हैं। फिलहाल तो इतनी ही मांग है कि सप्ताह में दो दिन सप्लाई दे दिया और छुट्टी जब गाडियां बनेगी ही कम तो बिकेगी कितनी। आर्थिक विश्लेषण करने वाले हवा में कागज उछालते रहे। ऊपर से दिन प्रतिदिन डीजल और पेट्रोल की कीमत बढ़ते जा रहे हैं तो लोग इस वजह से भी कम खरीदेंगे। मुझे लगता है अब सार्वजनिक वाहनों पर लोगों का ध्यान अधिक है।
- भुवनेश्वर चौरसिया "भुनेश"
गुड़गांव -  हरियाणा
जीवन अद्भुत है। यह अकेला नहीं है। एक-दूसरे के सहयोग और सद्भाव के बिना जिन्दगी चलना कठिन है। हमारी इतनी आवश्यकताएं हैं कि हमें सहारे की जरूरत पड़ती है। 
कोरोना आपदा की वजह से अनेक मुश्किलें आ पड़ी हैं। नियम-कानून,दिशा-निर्देश और सुरक्षा व सावधानी के लिए अनेक चीजों पर रोक लगी हुई है।  इसी संदर्भ में कहा जावे तो बस, रेल भी नहीं चल रही हैं या जो चल रही हैं, वे सीमित हैं। जबकि जीवन जीने के लिए आवश्यकताएं यथावत हैं। व्यक्तिगत , पारिवारिक या सामाजिक ऐसे काम आ रहे हैं कि जिनके लिए अपने शहर या गाँव से दूर जाना पड़ रहा है तब बस या रेल सुविधा न मिल पाने की वजह से निजी वाहनों से जाना पड रहा है। यही एक निदान है, जो मजबूरी भले ही हो जरूरी के लिए जरिया बना है। इसलिए कह सकते हैं कि कोरोना की वजह से निजी वाहनों की मांग बढ़ गई है और यह स्थिति तब तक बनी रहने की संभावना है जब तक बस,रेल पहले की तरह सतत चालू नहीं हो जाती। क्योंकि निजी वाहन से आना-जाना भले ही सुविधा जनक हो ,अपेक्षाकृत महंगा होता है जो हरेक के वश का नहीं। 
- नरेन्द्र श्रीवास्तव
 गाडरवारा - मध्यप्रदेश

" मेरी दृष्टि में " कोरोना के लॉकडाउन ने वाहनों की आवश्यकता को बहुत बढा दिया है । जिसके पास पैसा नहीं है वह किस्तों में खरीद रहे हैं । सरकारी वाहनों का उपयोग करना बहुत मुश्किल हो गया है । सुविधा कम परेशानी ज्यादा ।
                                                      - बीजेन्द्र जैमिनी
सम्मान पत्र 

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