हाथियों की हत्या की परम्परा कब तक जारी रहेंगी ?

          हथनी की पीड़ा दायक हत्या ने सभी को हिला दिया है । कानून भी है सरकार भी है प्रशासन भी है । परन्तु इन सब का खौफ किसी में नहीं है । हाथियों की हत्या करना एक परम्परा सा बन गये है ।यही " आज की चर्चा " का प्रमुख विषय है । अब देखते हैं आये विचारों को : -                     
एक मादा गर्भवती हाथी की मृत्यु ने अन्तर्मन को झकझोर दिया और इस घटना से अनुमान लगाया जा सकता है कि जो लोग उस हाथी की मृत्यु के जिम्मेदार हैं वे मानसिक रूप से कितने विक्षिप्त होंगे । 
वर्षों से मनुष्य के लालची मन ने अनगिनत हाथियों की हत्या की है। मंहगे हाथीदांत के लालच की वजह से हाथियों की हत्या होना एक परम्परागत व्यवसाय बन गया है। इस अमानवीय, अपराधिक परम्परा को अपनाने वाले मनुष्यों के चेहरे समय के साथ बदलते रहते हैं परन्तु हाथियों की हत्या जैसे दुष्कर्म वर्षों से होते आ रहे हैं। वीरप्पन तो मात्र एक उदाहरण है जो हाथियों के हत्यारे को रूप में जाना जाता है परन्तु अनेकानेक मनुष्य लगातार बिना किसी ईश्वरीय अथवा कानूनी भय के हाथियों की हत्या को अंजाम देते रहते हैं। 
ताजा घटना से तो प्रतीत होता है कि मनुष्य की परपीड़क प्रवृति इसके लिए उत्तरदायी है। परपीड़ा से प्रसन्न होने वाले कुत्सित मानसिकता के मनुष्यों की इस संसार में कमी नहीं है।
निष्कर्षत: यही कहा जा सकता है कि कड़े कानूनों का धरातल पर अनुपालन ही हाथियों की हत्या की परम्परा को नियन्त्रित कर सकता है क्योंकि नर-भक्षी मनुष्यों की आत्मा मृतप्राय होती है। 
- सत्येन्द्र शर्मा 'तरंग' 
देहरादून - उत्तराखण्ड
संभवतः गर्भवती हथिनी की दर्दनाक हत्या से उपजा यह विषय परम्परा की श्रेणी में नहीं आना चाहिए।  अभी तक हाथी अपने दांतों के कारण भी शिकारियों द्वारा गैर-कानूनी तरीके से मारे जाते हैं। धनलोलुप शिकारियों की निगाह तो केवल हाथी के दांत पर रहती है, इसके लिए वे हाथी के साथ क्रूरता की किसी भी हद तक जा सकते हैं। आज का विषय संभवतः उस दर्दनाक घटना संबंधी है जिसमें एक गर्भवती हथिनी को बारूद भरा अनानास खिला दिया गया जिससे वह अजन्मे बच्चे संग इन्सान की ओर आंसू भरी आंखों से देखते हुए संसार से विदा हो गई। एक ऐसा जघन्य कृत्य जिसने सम्पूर्ण विश्व को हिलाकर रख दिया, एक विश्वव्यापी भूकम्प ला कर रख दिया, एक ज्वालामुखी फट गया हो जैसे, समुद्र में तूफान आ गया हो जैसे, इन्सानियत क्रन्दन कर उठी हो जैसे।  हथिनी को विस्फोटक भरा अनानास खिला देना और उसे मरते हुए देखने में आनन्द लेना तो एक जघन्य कृत्य है, बर्बरता पूर्ण कृत्य, नितान्त अक्षम्य।  ऐसा कृत्य जिसके समक्ष क्रूरता भी शरमा जाए। यह विश्वास की हत्या है, स्नेह की हत्या है, प्रेम की हत्या है। क्या ऐसा कृत्य करने वाले वास्तव में इन्सान की औलाद हैं?  किस संस्कृति और किन संस्कारों से सींचे गए हैं।  उनके मां-बाप, सगे-संबंधी भी उनके इस कृत्य को जानकर रुदन करते होंगे। ऐसे जघन्य कृत्य की कभी भी पुनरावृति न हो, इस प्रकार का दण्ड दिया जाना चाहिए।  बाकी जब तक इन्सान धन के मद में चूर रहेगा और हाथी-दांत से बनी सजावट की वस्तुएं धनाढ्यों के महलों की शोभा बढ़ाती रहेंगी, हाथी-दांतों के लिए हाथियों की हत्या की परम्परा कभी समाप्त नहीं होगी। 
- सुदर्शन खन्ना
 दिल्ली
हमारा देश कितना विचित्र है । यहाँ धरती को माता कहते हैं । गंगा नदी को गंगा मईया कह के बुलाते हैं । नारी को शक्ति कहते हैं । नन्ही छोटी बेटियों को " कंजका " के रूप में पूजा जाता है । गाय को माता समान माना एवं पूजा जाता है । बन्दर को हनुमान माना जाता है । बदलते दौर में आदमी आज इतना आप - मतलबी हो गया है कि मान मर्यादा , नैतिक मूल्यों को ताक पर रख दिया है । स्वार्थ की चादर ओढ़ ली है । लगभग तीन दिन पहले केरल के मल्लपुरम जिले में एक गर्भवती हाथिनी की हत्या का मामला प्रकाश में आया है । बहुत ही दर्दनाक मामला है । बेशक पशु क्रुरता निवारण अधिनियम 1960 के तहत पशु बलि , पशु हत्या , गौ हत्या आदि को अपराधिक श्रेणी में रखा जाता है । अपराध साबित होने पर सजा का प्रावधान भी है । हाथी हत्या के पीछे हाथी दांत महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं  । हाथी दांत से व्यावहारिक  , सजावटी और बहुमूल्य वस्तुएं निर्मित की जाती हैं । चुड़ियाँ  , कंगन, आभूषण रखने के बाॅक्स , मनुष्यों के नकली दांत आदि बनाए जाते हैं । यही वो कारण हैं जिनकी वजह से " हाथी मेरे साथी " मौत का शिकार होते हैं । उनके अंगों -प्रत्यंगों की तस्करी होती रहेगी । ये परम्परा तब तक चलती रहेगी जब तक हाथी दांत का विकल्प तलाश ना लिया जाए ।
- अनिल शर्मा नील 
 बिलासपुर - हिमाचल प्रदेश
मनुष्य के अत्याचार बहुत बढ़ गए थे इसीलिए इतनी बड़ी महामारी आई फिर भी उन्हें अक्ल नहीं आई वह जानवरों के साथ अत्याचार करते रहते हैं जबकि हमारी संस्कृति हमें पेड़ और जानवरों को भगवान की तरह पूजना सिखाती हैं हाथियों को हम गजानन भगवान श्री गणेश का मुख भी हैं और हम उन्हें का दर्शन शुभ मानते हैं केरला में भी हाथी मुझसे बहुत काम लिया जाता है वहां के एक गांव की घटना आई थी कि कुछ लोगों ने उस गांव के अनानास में पटाखा डालकर एक हथिनी को खिला दिया बेचारी गर्भवती थी वह पानी में चली गई तालाब में 3 दिनों तक तड़पती रही फिर जाकर उसकी मृत्यु हो गई और उसे निकालने के लिए भी जो हाथी गए थे मैं देख कर ऐसा लग रहा था कि वह उसे उठा रहे हैं और न्यूज़ में ऐसा भी सुना गया कि उस गांव के लोग ऐसे हैं वह लोग जानवरों की हत्या करते हैं स्त्रियों पर अत्याचार करते हैं बेटियों की हत्या करते हैं इतनी बड़ी महामारी आने के बाद भी लोगों को आ कल नहीं आ रही है कि अपनी सिने पर्यावरण के साथ छेड़छाड़ का नतीजा भोग रहा है जाने लोग कैसे हैं उनके मानवता मर गई है वे लोग किसी पर भी दया नहीं करते ऐसे लोग समाज और देश दोनों के लिए हानिकारक है इनके खिलाफ कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए।
आज विश्व पर्यावरण के दिन सरकार को और हम सभी मनुष्यों को एक प्रण लेना चाहिए कि जो भी मनुष्य इस तरह की हत्या या काम करता है उसे समाज से अलग-थलग कर देना चाहिए तभी लोगों के अंदर कुछ डर रहेगा और वह इस तरह का घिनौना कार्य नहीं करेंगे
जियो और जीने दो का सिद्धांत अपनाना चाहिए
- प्रीति मिश्रा 
जबलपुर - मध्य प्रदेश
विषय बड़ा ही दर्दनाक है किसी भी जानवर की हत्या करना मेरी समस्या बहुत दर्दनाक है वर्तमान में हथिनी जो गर्भवती थी उसे किसी मानव ने अनानास में बम रखकर खिला दिया और वाह हथिनी चटपटा चटपटा कर पानी में कूद गए और अपने बचाव के लिए हर संभव प्रयास करती रही पर परिस्थिति को संभाला नहीं जा सका और हथनी की मौत हो गई एक हथिनी नहीं मरी वह अपने साथ अपने पेट में लिए उस बच्चे का भी जान गवा दी सोचिए एक और सरकारी नियम बने हैं कि भ्रूण हत्या अपराध है और दूसरी ओर गंदी मानसिकता वाले लोग इस प्रकार की हरकतें कर रहे हैं यह एक अपराधी कर्मकांड है वह दंड सजा जुर्माना का हकदार बनेगा आज जैसा कि दूरदर्शन के न्यूज़ से यह पता चला है कि दो ऐसे युवा लड़के थे जो इस तरह का अपराध किए हैं उनकी मानसिकता पर एक प्रश्न चिन्ह लग जा क्या उनकी परवरिश में हत्या करना सर्वोपरि माना गया है मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण से जब इसका विश्लेषण करती हूं तो ऐसे व्यक्तित्व को नकारात्मक व्यक्तित्व की श्रेणी में रखा जाता है जिसकी पहचान यह होती है कि वह दूसरे को दर्द देकर स्वयं को खुश रखना जानता है बचपन से ही परवरिश में उसको यह नकारात्मक विद्या की शिक्षा मिली है मारो पीटो गिराओ हत्या करो और कब्जा करो अपनाओ उसकी परवरिश का यह भाषा है उन दोनों व्यक्तियों को गिरफ्तार कर लिया गया है अब उस पर मुकदमा चलाया जाएगा क्योंकि वन संरक्षण पशु संरक्षण पक्षी संरक्षण फर्म मानव का दायित्व है इसके विरोध में किए गए कोई भी कदम अपराधी हो जाएंगे पूर्व घटना याद करिए हिरण के मारने पर फिल्मी जगत के एक अभिनेता को जेल की सलाखों के पीछे रखा गया था और वर्षों वर्षों तक उसके खिलाफ मुकदमा चलता रहा और वह पेनाल्टी के रूप में उन्हें काफी राशि भी देनी पड़ी साथी साथ हिरासत में भी रहना पड़ा चुकी वह इंसान फिल्मी जगत के अभिनेता थे तो सुर्खियों में ज्यादा ही बने रहे यह सामान्य व्यक्ति है फिर भी मीडिया वाले इसे नहीं छोड़ेंगे
हमारे ख्याल से हाथियों की हत्या कोई परंपरा नहीं है या योजनाबद्ध तरीके से किया गया अपराध है जिसके पीछे व्यक्ति का व्यक्तिगत निराशा तनाव असफलता छुपा रहता है मनोवैज्ञानिक तौर पर इंसान का मानसिक संतुलन बिगड़ा रहता है जिसे वह खुद भी नहीं समझ पाता है उसे लगता है सामान्य जीवन इसी तरह का है चुकी कोई एक घटना ऐसी होती नहीं है और वह अपनी नजरों से ऐसी ही घटनाओं को सिर्फ देखता है 
कभी-कभी ऐसी घटनाएं अकस्मात भी होती हैं पर इस घटना को अकस्मात नहीं कहा जा सकता क्योंकि बड़े ही योजनाबद्ध तरीके से अनानास में उसे डालकर यह खिलाया गया है यह तो सरासर दोनों व्यक्तियों की अपराधी कर्म है जो कड़ी से कड़ी सजा के हकदार बनेंगे
- डॉ. कुमकुम वेदसेन
मुम्बई - महाराष्ट्र
मूक  पशुओं  की  हत्या, फीमेल  के  साथ  दरिंदगी, प्रकृति  का  दोहन  आदि  लगातार  होने  वाली  घटनाओं  को  देख  कर  ऐसा  लगता  है  कि  मानव, खूंखार  जानवरों  से  भी  अधिक  खतरनाक  हो  गया  है  ।  उसने  अपनी  संवेदनाएं .....भावनाएं........  अहसास   आदि  को  कफ़न  से  ढक  दिया  है  ।  ऐसी  हरकतें  देखकर  महसूस  होता  है  कि  वह  हार्ट  लेस  है । 
       इंसान  की  इंसानियत  जैसे  रसातल  में  चली  गई  है  ।  हम   यह  भी  जानते   हैं  कि  हमारी  इस  सोच  और  हैवानियत  का  अंजाम  विनाश  ही  है  ।  सोए  हुओं  को  जगाया  जा  सकता  है , जागे  हुओं  को  नहीं  । 
      इस  संबंध  में  कठोर  कदम  उठाने  की  बेहद  आवश्यकता  है  ।  कठोर  सजा  का  प्रावधान  होना  चाहिए  । 
      स्कूलों  में , कालेजों  में, मीडिया  और  संचार  के साधनों  द्वारा  संवेदनाएं  जागृत  करने  का  प्रयास  किया  जाना  चाहिये  ।  पाठ्यक्रमों  में  भी  ऐसे  विषय  शामिल  किए  जाने  चाहिए  । 
       लेखकों  को  अपनी  कलम  की  ताकत  दिखानी  होगी  ।  क्योंकि  कलम  युग  परिवर्तन  की  ताकत  रखती  है  । ऐसे  कई  उदाहरण  हमारे  इतिहास  में  भरे  पड़े  हैं ।
तुलसीदास जी  ने  कहा-
" दया  धरम  को  मूल  है, पाप  मूल  अभिमान  ।  तुलसी  दया  न  छांड़िये,  जब  लगि  घट  में  प्राण ।।"
       - बसन्ती पंवार 
      जोधपुर  - राजस्थान 
ईश्वर द्वारा रचित यह सृष्टि अनुपम तो है ही, विचित्र भी है। जीवित हों या मृतप्राय, स्थिर हों चलित, जलचर,थलचर हों या नभचर। सभी संघर्षरत हैं। असुरक्षित हैं और अनिश्चितता में हैं। जीवन का सकारात्मक पक्ष जितना भी सुंदर,सरस,सुखद और सुकून देय हो, नकारात्मक पक्ष उतना ही भयावह ,कठोर और वीभत्स है। खुंखार जलीय या थलीव जीव पेट भरने या अपनी सुरक्षा की आड़ में जो हिंसा करते हैं, वह विचलित करने वाली होती है। इसी परिप्रेक्ष्य में मनुष्य की बात करें तो सृष्टि में सबसे ज्ञानी, समझदार और श्रेष्ठ मनुष्य योनि मानी गई है। इस संदर्भ में मनुष्य का सकारात्मक पक्ष जितना विशेषताओं से परिपूरित है,खुशनुमा,शांत और सौहार्दमय है, नकारात्मक पक्ष उतना ही क्रूर और घृणित है। अपने स्वार्थ के लिए वह जो अनुचित और अप्रिय कार्य करता है, वह निंदनीय तो है ही,अक्षम्य भी है। इस कड़ी में आज के विषय को लेकर ही चर्चा की जावे तो मूक पशुओं के साथ ऐसे मनुष्यों के द्वारा जो निर्ममता की जाती है तो उनके विरुद्ध सख्त वैधानिक और सामाजिक कार्यवाही होना निहायत आवश्यक है। इसके लिए सभी को सहयोग भी करना चाहिए। अपराधी और अक्षम्य वे लोग भी हैं जो ऐसे दुष्टों के बचाव में आ जाते हैं। हाल ही का हथिनी की हत्या का मामला अत्यंत घृणित अपराध जनक है। इस प्रकरण में   अपराधियों को कड़ी सजा मिलनी ही चाहिए। जब तक ऐसे अपराधियों को कठोर यातनाएं और सजा नहीं मिलेंगी तब तक ऐसे घृणित और निर्मम कृत्य होते रहेंगे।
- नरेन्द्र श्रीवास्तव
गाडरवारा - मध्यप्रदेश
 पिछले दिनों केरल के मल्लपुरम में गर्भवती हथिनी को पटाखे भरा अनानास खिलाकर की गई  निर्मम हत्या के परिप्रेक्ष्य में बहुत महत्वपूर्ण है। भारत में हाथियों की संख्या 10 वर्ष पूर्व एक लाख थी। जो नए आंकड़ों के मुताबिक अब मात्र 27,000 रह गयी है। दस वर्षों में तीन चौथाई संख्या घट गयी। घटने की यही दर रही तो आगामी दो तीन वर्षों में ही इकाई में आ सकती है यह गिनती। यह भी एक तथ्य है कि हाथियों की सर्वाधिक हत्याएं केरल राज्य में हुई है,जो एक साक्षर राज्य है। हाल ही में आयी एक रिपोर्ट के मुताबिक औसतन तीन दिन में एक हाथी की हत्या केरल राज्य में हो जाती है। इसके पीछे हाथी दांत के तस्कर गिरोहों का हाथ होता है।
यह सिलसिला रूकेगा तभी, जब दोषियों को सरे-आम सजा मिले। इसके लिए सुरक्षाबलों को शूट एट साइट का अधिकार देना होगा। जब सख्त सजा मिलेगी,तभी भय होगा तस्करों के मन में।तभी हत्याओं के इस सिलसिले से निजात मिल सकती है।
- डॉ.अनिल शर्मा 'अनिल'
धामपुर - उत्तर प्रदेश
               हमारा देश सारी दुनिया में एक अहिंसक देश के रूप में जाना जाता है ।हमारे देश में पेड़- पौधों, नदियों से लेकर जानवरों तक की पूजा की जाती है। एक ऐसे देश में जहाँ  प्रकृति को देवी के रूप में और पत्थरों को भगवान के रूप में पूजा जाता है वहां  उस देश के लिए यह बड़े शर्म की बात है कि  हाथी जैसी शाकाहारी पशु को बड़ी निर्ममता से अपने छोटे-मोटे लाभ के लिए मार दिया जाता है ।इस मामले में यह उल्लेखनीय है कि हाथियों की हत्या उसके  दांत से बनने वाले  आभूषणों तथा सजावट के सामान के लिए मुख्य रूप से  की जाती   है और इसलिए हमारे देश में लगभग 100 हाथियों की हत्या प्रतिदिन की जाती है। यह एक परेशान कर देने वाला आंकड़ा है कि चंद रुपयों की खातिर  निरपराध पशु वध किया जाता है। आज के विषय के संदर्भ में यह कहा जा सकता है कि विगत में  हाथियों की हत्या  देश में की जाती रही है और आगे भी जारी रहेगी जब तक इस मामले में सरकार कोई सख्त कानून देश में लागू नहीं करती है।हाथी  दांत से बने सामानों पर रोक लगना चाहिए । इसके  लिए भी देश में एक सख्त कानून की आवश्यकता है।  
- डॉ अरविंद श्रीवास्तव 'असीम' 
दतिया - मध्य प्रदेश
आज से पहले भ्रुण हत्या से परेशान थे " बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ" अभियान चलाये जा रहे थे पर बेशर्म लोग तब भी बाज नहीं आ रहे थे ।अब यह दिल दहला देने वाली घटना हथिनी को पटाखों भरा अनानास खिलाना ।
क्या हो गया इंसान को ? कहां खो गई इंसानियत? क्यूं दर्द नहीं होता  उसे किसी को दर्द देते ? कब तक चलेगी ‌इस तरह हाथियों की निर्मम हत्या और केवल हाथियों की ही क्यूं सभी बेजुबान जानवरों की हत्या का बढ़ता सिलसिला व कारोबार।
    हमारे संविधान में हर प्रकार से  इंसानो की व जानवरों की सुरक्षा की धाराएं हैं और उनको हानि पहुंचाने पर दण्ड देने की धाराएं भी है परन्तु लगता है कि वो धाराएं उन लोगों के लिए काफी नहीं है इस प्रकार बढ़ती जानवरों की हत्या के लिए कठोर दण्ड का प्रावधान होना चाहिए जिससे अन्य व्यक्ति उस प्रकार का जघन्य अपराध न करे । उसके साथ जानवरों को लेकर ऐसे पाठ्यक्रम बनाये जाएं जो हर आयु के बालकों के लिए उनकी पुस्तकों में जोड़ें जाएं जिससे जानवरों के प्रति संवेदनशील व्यवहार ‌करना बालक के साथ साथ भटक चुका युवा वर्ग भी सीख पाए।
    जानवरों सम्बंधी सोशल मीडिया पर अधिक से अधिक सहयोग व मदद के व्यवहार सम्बंधित प्रचार किया जाए जिससे हर वर्ग हर प्राणि उनके साथ प्यार का व्यवहार करें।
- ज्योति वधवा"रंजना"
 बीकानेर - राजस्थान
     हृदय को झनझोड़ करने वाली जो हथिनी गर्भवती की घटना घटित हुई, इससे समझ लीजिये मानव तंत्र कितना निर्दयी हो चुका हैं, जिसकी मुक्तकंठ से आलोचना के लिए शब्द कोष नहीं हैं। आज वैसे ही देश वर्तमान परिस्थितियों से झुंज रहा हैं और यह घटना घटित हो गयी। पूर्व से मानव मांसाहारी प्रवृत्ति का रहते हुए चला आ रहा हैं, शिकार खेलना मानसिकता बन चुकी हैं। एक समय था, जब घंघोर जंगल हुआ करता था, जंगली जानवरों से वैसे ही डरता था, जैसे-जैसे जंगलों का विनाश होता गया, वैसे-वैसे पशु-पक्षियों को दर-दर भटक रहें। उनकी सुरक्षा हेतु वन नियमों के तहत सुरक्षा सुविधाएं की ओर ध्यानाकर्षण किया जाता रहा, किन्तु आज परिवर्तित समय में मानव का दुश्मन हैं, तो पशु-पक्षियों की हत्याएं करना उनके लिए आम बात हो चुकी और हत्याएं कर उनकी तस्करी करने में जीवन यापन कर, विशाल रुपयों की कमाई कर रहा हैं। तस्करों, शिकारियों से जानवर डर कर भागते हुए जंगलों में भटक रहें हैं। जिस तरह से सर्कसों में जानवरों को प्रतिबंधित कर दिया गया हैं, उसी तरह से हाथियों, शेर, हिरण, मोर आदि जानवरों के शिकारों, हत्याओं पर शिकारियों, हत्यारों पर प्रतिबंधित करने की अत्यंत नितांत आवश्यकता प्रतीत होती हैं। नहीं तो वह दिन दूर नहीं जब जंगलों से जानवरों का नामों-निशान मिट जायेगा, मात्र इतिहास के पन्नों में पढ़ा जायेगा। आज आवश्यकता इस बात की हैं, कि  शिकारियों, हत्यारों से मिले हुए जासूसों को भी उनके साथ ही कड़ाई से कड़ाई कार्यवाही करने पर शासन-तंत्र को गंभीरता पूर्वक सोचना होगा? साथ ही साथ पुनः नये तरीके से जंगलों में रह रहे जानवरों की सूची तैयार कर, उनमें नंबर, नामों के साथ चिंहांकित कर अंकित करने की आवश्यकता प्रतीत होती हैं। पूर्ण जंगलों को तारों से सुरक्षित कर, सुरक्षा कर्मी की व्यवस्था तथा सी.सी.कैमरा लगाकर व्यवस्थित करवाया जा सकता हैं?
- आचार्य डाॅ.वीरेन्द्र सिंह गहरवार 'वीर' 
बालाघाट  - मध्यप्रदेश
पशु-पक्षी हम मनुष्यों के लिए ईश्वर के द्वारा प्रदत्त एक अमूल्य देन हैं। आज का मानव कब समझेगा इस बात को कि सृजन हमारा स्वभाव होना चाहिए और यही यथोचित भी है। 
बचपन से सुनती आ रही हूँ, हाथी दांत की तस्करी के बारे में। तमाम फिल्में बनीं इस विषय पर। हाथी को लक्ष्मी का स्वरूप माना जाता है। एक ओर तो मनुष्य को लक्ष्मी की लालसा है दूसरी तरफ ऐसा कृत्य? किसी जीव की हत्या एक जघन्य अपराध है और इसे अब समाप्त करना ही होगा। इसके लिए भी सरकार को कुछ कठोर नियम बनाने पडेंगे वरना एक दिन ऐसा आएगा जब हम गणेश के स्वरूप, लक्ष्मी के द्योतक गजराज की याद में "गज दिवस " मनाएंगे और अपने बच्चों को उसकी तस्वीर दिखाएँगे कि देखो बच्चों एक मूक प्राणी ऐसा भी था।यदि मेरी बात सही लगे तो अपनी सहमति जताएं,ताकि इस विषय पर कोई ठोस कदम उठाया जा सके।
                  - डॉ ममता सरूनाथ
                      नोएडा - उत्तर प्रदेश
हाथियों की हत्या की परम्परा कब तक जारी रहेगी सवाल झकझोरने वाला है पर कभी आदमी का लालच व कभी कुत्सित मानसिकता इनको मौत की तरफ असमय ढकेलती रहती है हाल ही घटना ने तो तय कर दिया है कि आदमीयत मरनासन्न है जब तक वन्य प्रणियो की अकारण हत्या करने पर दण्ड का प्रावधान मृत्युदण्ड जैसा कडा न हो तब तक इसके रूकने की कल्पना करना बेमानी बात है तथा जब तक हम यह नही समझेंगे कि सभी प्राणी .पौधे प्रकृति का अंग है और अंग कटने पर जो दर्द हम महसूस करते है वही प्रकृति को भी महसूस होता होगा यदि हम यह महसूस नही कर सकते तो यह वीभत्स परम्परा रूकना संभव नही दिखता - प्रमोद कुमार प्रेम 
नजीबाबाद - उत्तर प्रदेश
हथनी की हत्या पर देशभर में गुस्सा है। ऐसी घटना से मानवता शर्मसार हो गई है। हथनी के हत्यारों को मौत की सजा भी कम होगी ?  इस तरह की घटनाओं को अंजाम देने वालों को जब तक मौत की सजा का कानून नहीं बनता तब तक हाथियों की हत्या की परंपरा जारी रहेगा।  केरल के पलक्कड़ में पटाखों से भरा अनानस खिलाकर एक गर्भवती हथनी की हत्या करने  के मामले को लेकर भारत सरकार से लेकर प्रिंट, सोशल, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया तक मे आक्रोश देखने को मिल रहा है। जहां आम से लेकर खास लोगों ने कठोर कार्यवाई की मांग की है। वहीं भारत सरकार ने भी स्पष्ट कर दिया है कि दोषियों को किसी भी हाल में नहीं बख्शा जाएगा। केंद्रीय पर्यावरण मंत्री जावेद जावेडकर ने पटाखों से भरा अनानांस खिलाकर एक गर्ववती हथनी की हत्या करने के मामले पर कड़ी नाराजगी जताई है। कहा कि पटाखे खिलाना और हत्या करना भारतीय संस्कृति नही है। उन्होंने साफ तौर पर कहा कि दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्यवाई की जाएगी। इस घटना को लेकर भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान विराट कोहली भी आक्रोश में है। देश के मशहूर उद्योगपति रतन टाटा भी आहत हैं। वो यकीन नहीं कर पा रहे हैं कि कोई इतना भी क्रूर हो सकता है। साथ ही एक भावुक ट्विटर कर इंसाफ की मांग की है। रतन टाटा ने लिखा है कि मैं यह जानकर दुखी और हैरान हूं कि लोगों के एक समूह ने एक निर्दोष और शिथिल गर्भवती हथनी को अनानांस खिलाकर मार डाला। 
धिक्कार है मानव तेरे घृणित कर्म कृत्यों पे
प्रहार किये पटाखों से गर्भवती माँ हथनी पे
कहऱ सुनामी से इंसान कहा बचेंगे धरा जमीं
अहम भुख  है भरोसा नही हवशी इंसानों  पे
बलशाली कहने को आतुर तुक्ष जीव हे मानव
दया ना आई तुझे बेजुबां जीव की मार्मिकता पे
हाथी मेरे साथी दोस्ती की मिशाल घायलावस्था
चीख आवाज़ बहती नदी आँखें नम हालातों पे
शर्मसार करें मानवता को जो तुक्ष प्राणी है जग मे
बलात्कारी मानव दुहराते कथा नारी चीरहरण पे
प्रेम दया का सीख देती खामोशी लुप्त हूई इक माँ
अभिमान की परत अनोखी मानसक्रूरता आखों पे
शब्द लिखूँ या लिखूँ मानव की भाव दरिंदगी रूप
निःशब्द कलम मौन है धिक्कार है ऐसे जीवन पे
आखिरी सांस कहती होगीं खेलों ना हमसे और प्रकृति से
इंसानियत बचीं नही अब दया नही इंसान हैवानियत पे
जीवों का सम्मान करों तुम वफ़ादारी को नमन करों
प्रेम बिछाओ नफरतों की जंजीरों में लगे हृदय तालों पें ..
वही सेड आर्टिस्ट सुदर्शन पटनायक ने ट्वीट किया - मानवता एक बार फिर नाकाम हुई। मानवता पर शर्म शर्म और शर्म। हाथी बचाएं। पटनायक ने ओडिसा के पूरी के बीच पर रेत से बनाई गई हथनी और उसके बच्चे की तस्वीर की पोस्ट की है। हालांकि केरल के मुख्यमंत्री विजयन ने बताया कि पुलिस और वन विभाग ने हथनी की हत्या में तीन संदिग्धों की तलाश शुरू कर दी जाए। इस घटना। को लेकर चर्चाओं का माहौल गर्म है। हर तरफ इस घटना की लोग निंदा ही नही कर रहे हैं बल्कि हथनी के हत्यारों को मौत की सजा की मांग कर रहे है, जिससे भविष्य में हथनी की हत्याओं की परंपरा पर रोक लग सके और मानवता शर्मशार होने से बची रहे।
- अंकिता सिन्हा 
जमशेदपुर - झारखंड
देश में हथिनी की मौत को हत्या बताते हुए कहा जाता है कि मल्ल्म  पुरम ऐसी घटनाओं के लिए कुख्यात है भारत के सबसे हिंसक जिलों में एक है| क्योंकि वहां पर तो सड़कों पर जहर फेंक दिया जाता है| जिसे खाकर पक्षी और कुत्ते इत्यादि एक ही बार में मर जाते हैं|
 लगभग 600 हाथी मंदिरों में टांगे तोड़ कर या  भूखा रखकर या निजी मालिकों द्वारा  डुबा  कर या जंग लगी   कीलें खिलाकर मार दिए जाते हैं |डॉक्टर पीएस  ईसा ने बीबीसी हिंदी से कहा कि   पालतू हाथियों की गिनती में कुल 500 हाथी पाए गए थे  2017 में 17 हाथियों की मौत हुई 2018 में 34 और साल 2019 में 14 हाथियों की मौत हुई| और रिपोर्ट यह कहती है किस सन 2007 से 2018 के बीच  क्रूरता की वजह से 14 हाथियों की मौत हुई| मेनका गांधी ने एक आरोप लगाते हुए कहा त्रिचूर के   मंदिर में एक युवा हाथी को बंधक बनाकर पीटा जा रहा था उसकी टांगों को चार दिशाओं में बांधकर खींचा जा रहा था शिकायत करने पर भी कोई कार्रवाई नहीं की गई थी| ऐसा लगता है कि हाथियों के संरक्षण के नाम पर दिखावा ही शेष बचा है 
यह भी कहा जा सकता है कि अपने को संरक्षण वादी कहने वाले लोगों का मूल उद्देश्य मंदिर के उत्सवों को रोकना है| इसलिए यह स्पष्ट दृष्टिगोचर होता है कि हाथियों की संख्या में कमी आई है और अब पलक्कड़ जिले में विस्फोटक से भरा अनानास खाने से गर्भवती हथिनी की मौत एक दुर्लभ और शर्मनाक  घटना है| हम चाहते हैं कि पलक्कड़ की घटना की गंभीरता से जांच हो और अब आगे ऐसी घटनाओं को सहन नहीं किया जाएगा|
 यह ज्ञात हुआ है कि   हथिनी की उम्र 14 15 वर्ष रही होगी घायल होने के बाद वह इतनी पीड़ा में थी कि 3 दिन तक वह  नदी में खड़ी रही लेकिन  हथिनी का दर्द तस्वीरों में कैद नहीं हो सका| आखिरकार  हथिनी  ने 27 मई को नदी में खड़े-खड़े दम तोड़ दिया|
  ऐसी हिंसा मनुष्य की हैवानियत की परिचायक है| पहले तो दांतो के लिए  हाथियों को मारा जाता था |फिर उत्यासवों के लिए उन्हें पीड़ा   पहुंचाई जाती थी| लेकिन यह अनानास वाली घटना ने तो पूरी मानव जाति को कलंकित किया है सरकार को चाहिए कि वह इस पर कड़ी कार्रवाई करें और हत्यारों को कड़ी से कड़ी सजा दे तथा वन विभाग कर्मचारियों से भी निवेदन है कि वे अपने दायित्व को भली  प्रकार निभाए| 
 -चंद्रकांता अग्निहोत्री
पंचकुला - हरियाणा
 विषय रोचक एवं ज्वलंत है। 27 मई को वायनाड जहां से राहुल गांधी सांसद हैं वहां पर गर्भवती मादा हाथी का मौत पर फूटा पूरे देश का गुस्सा।
गर्भवती हथिनी को अनानास में विस्फोटक मिलाकर खिला दिया गया। हथिनी दर्द से छटपटा  कर पानी में चली गई वहां सूड डुबाय रखी लेकिन 3 दिन के बाद  मृत्यु हो गई। इस बात की देश को जानकारी मिली तो पूरा देश विद्रोह की स्थिति में है। मांग कर रही है आरोपियों को कड़ी से कड़ी सजा दिया जाए।
श्रीलंका में कोई भी आदमी वाइल्ड एनिमल जो बेजुबान होते हैं उसके साथ छेड़छाड़ करने पर कड़ी सजा देने की प्रावधान है। 
इस तरह का नियम हमारे देश में भी होना चाहिए।
मानव जाति अपने फायदा के लिए पर्यावरण और बेजुबान जीव के साथ जो अन्याय कर रहे हैं अगर बंद हो जाए तो हम मानव जाति स्वस्थ रहेंगे।
अभी-अभी लॉक डाउन होने से पर्यावरण में परिवर्तन दिखाई पड़ा है,नदी के जल भी स्वच्छ हौ गया।
बढ़ती हुई जनसंख्या के कारण हम लोग जंगल की ओर जा रहे हैं । जहां वेजुबान के रहने की जगह है उसे हम लोग अपनी सुविधा के लिए प्रयोग कर रहे हैं। जनसंख्या नियंत्रण होना जरूरी है।
जब तक जनसंख्या नियंत्रण नहीं होगा बेजुबान जीव को हत्या होते रहेगी।
लेखक का विचार है।
- विजेंयेद्र मोहन
बोकारो - झारखंड
"दूसरों का मर्म जब तक खुद का न मान लेंगे तब तक शायद ऐसे कृत्य न हों ऐसा मान लेना भी केवल अतिश्योक्ति ही होगी।"आज हम न जाने कहाँ जा रहे हाथियों तक कि निर्मम हत्या हम केवल अपनी एक झूठी हंसी के लिए करने में जरा भी नहीं झिझक रहे हैं।वो भी ऐसी चीज का सहारा लेकर जिसके लिए हम खुद थोड़ी देर न मिलने पर तड़पने लगते हैं।खाने की चीजों के साथ कुछ इस कदर निर्ममता के साथ छलावा तो एक घृणा का कृत्य है।कैसा आभास हुआ होगा उस हथिनी को जब उसने इंसान के दिये फल को पहले तो उसकी दया और महानता मानकर लिया होगा।परन्तु जब उसे अपने साथ उस पेट में पल रहे शिशु हाथी की भी मौत का संकेत मिला होगा तो शायद इंसान और इंसानियत पर से भरोसा उठ गया होगा।
         सिर्फ यही एक कारण या घटना नहीं है।हाथियों की हत्या उनके दांतों के लिए भी अक्सर होती रहती है।जिसमें मानव की लालसा और लालच भावना चरम पर होती है।उसे इससे फर्क नहीं पड़ता कि हाथियों पर क्या बीतती होगी जब वह गोलियों का शिकार होता होगा।या किसी अन्य तरीके से मारा जाता होगा।उसे तो बस धन का लालच होता है कि चार पैसे ज्यादा कमा लूंगा हाथी दांत से।
        अर्थात हाथियों की हत्या का रुकना तभी सम्भव है जब हम मानवता को अपना लें तथा उसे ही अपना धर्म भी बना लें।जीने का अधिकार प्रत्येक प्राणी को है तथा किसी को भी नुकसान पहुंचाना किसी के लिए भी उचित नहीं है।
- नरेश सिंह नयाल
देहरादून - उत्तराखंड
यह कोई परम्परा नहीं हैं यह तो गैर कानुनी गैर सामाजिक गैर  प्राकृतिक कृत्य हैं जीसकी जीतनी निन्दा की जाय कम हैं ऐसे पापियों को तो हाथी के पैर के निचे ही कुचलवा देना चिहिये यह ऐसा घिनौना कर्म हैं जो कताई क्षमा एव दया योग्य नही हैं अब सवाल उठता हैं कानुन क्या कहता हैं तो कानुन में मात्र इस की 3 वर्ष की सजा का प्रावधान बताया गया हैं यदी ऐसे घिनौने कृत्य रोकना हैं तो कानुन में सन्सोधन होना चाहिये ओर ऐसा कृत्य करने वालो को उम्र कैद की सजा होनी चाहिये यह कृत्य दिल दहला देने वाला हैं ओर इसकी सजा भी ऐसे ही दर्द नाक होनी चाहिये तभी इस हत्या की संख्ला को रोका जा सकता हैं।
- कुन्दन पाटिल 
देवास - मध्यप्रदेश
हाथियों की हत्या का सिलसिला कई सालों से लगातार चल रहा है। जब तक पशु संरक्षण कानूनों का अंधा परिचालन चल रहा है निरीह प्राणी इसी तरह मारे जाते रहेंगे। 
यदि आप केरल में घूमेंगे तब आपको बहुत से ऐसे हाथी नजर आएंगे जिनकी सूंड कटी होती है
 दरअसल केरल में और अन्य कई जंगली खाईनुमा जगहों पर लोग चर्च  और अन्य धार्मिक स्थलों के चारों तरफ आरा मशीन की आरे की पट्टी लगा देते हैं ताकि यदि कोई हाथी घुसने की कोशिश करें तब उसे चोट लग जाए और वह नुकसान न पहुंचा पाए लेकिन ये तरीका ठीक नहीं है। 
बहुत सी जगहों पर जाति विशेष के लोग जगह जगह जंगल में जमीनों पर पहाड़ों पर धार्मिक चिन्ह लगाते हैं फिर उसको हाथी से बचाने के लिए उसमें भी आरा मशीन के आरे का पूरा पट्टा लगा देते हैं 
     एक बार टीवी पर केरल के फॉरेस्ट विभाग के डायरेक्टर का बयान देख कर मुझे बहुत हैरानी हुई।। उन्होंने कहा कि पिछले 20 साल में केरल में एक भी हाथी की प्राकृतिक मौत नहीं हुई फिर भी पिछले 20 सालों में कई सौ से ज्यादा हाथी अप्राकृतिक तरीके से मारे गए हैं। हाथी मरा भी हो तो सवा लाख का यह कहावत सटीक है इसलिए भी हाथियों को मारा जाता है। हाथी दांत की तस्करी एक बड़ा कारण है हाथियों के प्रति दरिंदगी का। 
   केरल में गर्भवती हथिनी और उसके अजन्मे बच्चे की मौत ने दुनिया की मानवता की बदरंग तस्वीर उभार दी है। वैसे यह दरिंदगी वर्षो से चल रही है लेकिन इस घटना ने इंसान को झिंझोड दिया है। जरूरत है कि पशु संरक्षण और जंगल के कानूनों में व्यापक बदलाव किये जायें। जंगली हिरण के शिकार के केस में कुछ बड़े बड़े नामचीन कलाकारों ने कितना भुगता है फिर एक निरीह प्राणी की मौत के जिम्मेदार अपराधियों को भयंकर दंड दिया जाना चाहिए और पशुओं के लिए कष्टदायक प्रथाओं तरीक़ों का पुरजोर विरोध और समाप्ति का एलान होना चाहिए।इस चर्चा में मेरा किसी जाति या धर्म या राजनीति के प्रति इशारा नहीं है यदि किसी को ऐसा प्रतीत हो तो क्षमस्व मगर मानवता की रक्षा के लिए कुछ तरीकों में बदलाव अपेक्षित तो हैं ही। 
   - हेमलता मिश्र "मानवी" 
नागपुर - महाराष्ट्र
निजी स्वार्थों को पूरा करने के लिए  लोग एक ओर शराब , सुल्फा, गांजा , अफीम , चरस आदि की तस्करी कर रहे है तो दूसरी ओर  वन्य जीवों की खाल उनके सिर, दांत आदि की तस्करी करने पर आमदा है । जो दोनो ही ओर से संभ्य समाज को कलंकित करते हुए नरक के अंधेरे कुएं में धकेल रहा है । आज जानवरों की तस्करी इस तरह बढ़ गई है कि सरेआम केवल निजी स्वार्थो को पूरा करने पर उतारू इंसान ने जानवरो पर तरह तरह के अत्याचार करने शुरू कर दिए है । और उनका शिकार कर कुछ को खा लिया जाता है तो कुछ की तस्करी कर करोड़ो की रकम बनाई जाती है ।
केरल में अनार के बीच बम रखकर की गई  गर्भवती हथनी की हत्या ने आज पूरे देश मे मानव जाति को क्रूर व निर्दयी साबित करते हुए जानवरों पर हो रहे अत्याचारों की पोल खोल दी है ।
एक रिपोर्ट के अनुसार साल 2017 में 17 हाथियों की मौत हुई जबकि साल 2018 में 34 और साल 2019 में 14 हाथियों की मौत हुई , ये आंकड़े उस रिपोर्ट से है जो साल 2019 में केरल  हाई कोर्ट में पेश की गई थी । रिपोर्ट में ये भी कहा गया था कि साल 2007 से 2018 के बीच क्रूरता की वजह से कुल 14 हाथियों की मौत हुई । हाथियों पर मानव क्रूरता का यह पहला केस नही है बल्कि लोगो की यह क्रूरता आज से लगभग 104 पहले से चलती आ रही है । आज तक समाज मे इंसान को फांसी देनी की बात सुनी होगी परंतु क्या कभी ऐसा सुना है कि हाथी को भी फांसी की सजा दी गई हो ?  सुनने में ही थोड़ा अटपटा लगता है परंतु सत्य है  ! अमेरिका में लोगो की भारी भीड़ ने एक हाथी को फांसी देने की मांग कर ली थी , और मूर्ख जनता के आगे शासन प्रशासन ने घुटने टेक दिए और एक निर्दोष हाथी को 13 सितंबर 1916 को अमेरिका के टेनेसी राज्य में लगभग दो हजार से भी ज्यादा लोगो के सामने मैरी नाम के एक हाथी को फांसी के फंदे पर लटका दिया था ।
दरअसल अमेरिका के टेनिसी राज्य में एक सर्कस में चार्ली स्पार्क्स  का एक व्यक्ति फेमस शो करता था । इस शो में कई जानवरों सहित मैंरी नामक एक हाथी भी था , जिसके महावत ने किन्ही कारणों से सर्कस छोड़ दिया था । जिसके बाद दूसरे महावत को रखा गया परंतु वह उस हाथी को समझने व कंट्रोल करने में सक्षम नही था । और एक दिन शहर के बीचों-बीच परेड निकाली गई। इस दौरान रास्ते में मैरी को कुछ खाने की चीज दिखी, जिसके लिए वह तेजी से आगे बढ़ने लगा अब नए महावत ने हाथी को रोकने की भरपूर कोशिश की। लेकिन हाथी नहीं रूका और इस दौरान महावत ने उसके कान के पीछे भाला घोंप दिया जिससे गुस्से में आकर हाथी ने उसे नीचे पटक दिया और उसे अपने पैरों के नीचे कुचल दिया । जिसके लिए अमेरिका की जनता सड़को पर नजर आई थी और मैरी नामक हाथी को फांसी दिलवाकर ही जनता ने शांति प्राप्त की थी ।
- परीक्षीत गुप्ता
बिजनौर - उत्तरप्रदेश
हमारी भारतीय सनातन संस्कृति में पशु-पक्षी जीव -जंतु पेड़ -पौधों की बहुत ही अधिक मान्यताएं है।यह सभी इस धरती पर पूज्यनीय हैं।गणपति जी की सूंड हाथी की है।तो वह  पूजनीय है, श्री लक्ष्मी जी के दोनों और हाथियों का होना शुभ माना जाता है सनातन धर्म में यह हमारे सदैव पूजनीय रहे हैं। गाय की भी हमारे यहां पूजा की जाती है।राजा महाराजाओं की सवारियां और उनके वैभव की शान हाथियों की सवारी रही है। ऐसे में हमारी संस्कृति और सनातन धर्म को जो लोग आघात पहुंचा रहे हैं। या पहुंचाते हैं ।ऐसे लोगों को कठिन से कठिन सजा मिलनी चाहिए। इस धरती पर देवताओं का सदा ही वास रहा है। इस धरती पर जीव- जंतु पेड़- पौधे पशु  पक्षियों और मानवों को  समान रूप से जीवन जीने का अधिकार है. ऐसे में यदि किसी के अधिकारों को छीनने  का किसी को कोई हक नहीं है.एक गर्भवती हथनी की साजिश द्वारा हत्या करना तथा उसे इस तरह प्रताड़ित करना क्या हमारी सनातन संस्कृति में शोभनीय है या कोई असामाजिक तत्व ही हैं. जो हमारी संस्कृति का हनन करने पर तुले हैं. पिछले दिनों साधुओं की हत्या यह कोई अचानक हुआ हादसा नहीं है. यह सब सोची समझी साजिश है. ऐसे असमाजिक तत्वों को कड़ी से कड़ी सजा मिलनी ही चाहिए. मुक जानवरों पर अत्याचार यह कहां की बात हैं. क्या मिला होगा जो इन लोगों ने इतनी घिनौनी हरकत की है। जिन लोगों ने इतनी घिनौनी हरकत की है। उन्हें भगवान सात जन्मो तक माफ नहीं करेंगे। उन्हें पकड़कर इस अपराध की कड़ी से कड़ी सजा मिलनी ही चाहिए।
         - वंदना पुणतांबेकर
               इंदौर - मध्यप्रदेश
हाथियों की हत्या की परंपरा भारत संग विश्व में सदियों पुरानी है ।  मेनका गाँधी ने  मल्लापुरम में गर्भवती हथनी की हत्या पर आग बबूला हुई हैं । उन्होंने कहा है ," केरल में हर तीसरे दिन क्रूरता से  एक हाथी को मार दिया जाता है ।"
 अगर इसी तरह से गणेश अवतार हाथी की हत्या होती रहेगी तो हाथियों की प्रजाति खत्म हो जाएगी ।
इसलिए जानवरों पर हो रहे अत्याचारों को रोकने के लिए भारत सरकार ने 1972 में भारतीय वन्य जीव संरक्षण अधिनियम बनाए हैं ।जिसका लक्ष्य वन्य जीवों के अवैध शिकार , मांस और खाल के व्यापार पर रोक लगाना है और  व्यक्ति किसी जानवर  की हत्या करता है उस व्यक्ति को 2 साल की सजा का प्रवाधान भी है ।
हाथी के दाँत खाने के ओर और दिखाने के अलग होते हैं । हाथी के दाँत बहुत कीमती होते हैं । इसलिए इनके दाँतों के लिए हाथियों को मारा जाता है ।
हाथियों के झुंड का आक्रामक रूप भयानक होता है ।
हाल ही में अल्मोड़ा वन प्रभाग की चौकियों को हाथियों ने तहस - नहस किया है ।
केरल में हैवानियत के मजाक ने गर्भवती हथिनी की अनानास 
में पटाखे रख कर हत्या की । केरल में हर साल  इस तरह 500 से 600 हाथियों की हत्या की जाती है । एके दशक से हाथियों की संख्या 10 लाख से घटकर 27 हजार हुई है। केरल हर तीसरे दिन 1 हाथी को मारा जाता है ।
 - डॉ मंजु गुप्ता 
 मुंबई - महाराष्ट्र
यह एक सोचने वाला प्रश्न है कि आख़िर कब तक इन मासूम बेज़ुबान जानवरों पर अत्याचार होता रहेगा? यह कभी बंद होगा भी या नहीं? और अगर होगा भी तो कैसे? आज इस पर विचार करना बहुत ज़रूरी है। आख़िर इन मासूमों ने किसी का क्या बिगाड़ा है?
ऐसे बहुत से प्रश्न हैं जो आज प्रत्येक व्यक्ति के मस्तिष्क में कौतुहल मचाए हुए हैं। क्योंकि अभी हाल ही में केरल के साइलेंट वैली फ़ॉरेस्ट में एक गर्भवती जंगली हथिनी मानव क्रूरता का शिकार हो गई। यहां हथिनी के मुंह में पटाखे से भरा अनानास फट गया। उसके सारे मसूड़े बुरी तरह फट गए, आखिरकार एक बेजुबान हथिनी की मौत फिर हो गई। यूँ पटाखे खिलाकर जानवर को मार देना हमारी भारतीय संस्कृति में नहीं आता। हमारी संस्कृति ने तो इनको पूजना सिखाया है, इनका मान करना सिखाया है।
ऐसे और भी आँकड़े सामने आए हैं जो बहुत चौंकाने वाले हैं! जो हाथी विशेषज्ञ और केरल फॉरेस्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट के पूर्व निदेशक डॉ. पीएस ईसा ने बीबीसी हिंदी से कहे हैं, “'पालतू हाथियों की गिनती में कुल 507 हाथी पाए गए थे जिनमें 410 नर और 97 मादा हैं। साल 2017 में 17 हाथियों की मौत हुई जबकि साल 2018 में 34 और साल 2019 में 14 हाथियों की मौत हुई।”
ऐसे ही और भी ख़बरें सुनने में आती रहती हैं कि पालतू हाथियों को भूखा रखा जाता है, उनके पैरों में कीलें चुभाई जाती हैं जो बहुत शर्मनाक हैं भारत के लिए! 
अगर इस पर तुरंत कार्यवाही नहीं की गई तो वह दिन दूर नहीं जब हम हाथी देखने मात्र से वंचित रह जाएँगे। हमारे बच्चे सिर्फ़ कहानी की किताबों में ही देख सकेंगें। सरकार को इस पर कड़े नियमों के साथ काम करना पड़ेगा, तब कहीं जाकर इन ज़ालिमों पर लगाम लगाई जा सकती है।
-  नूतन गर्ग
दिल्ली
मल्लापुरम की घटना ने केरल में होने वाली पशु तस्करी की ओर ध्यान आकर्षित किया है। यह कोई नई बात नही है। वहां जंगली जानवरों के साथ बहुत ही बर्बरता पूर्ण व्यवहार होता रहा है। आज विनायकी की हत्या कोई पहली हत्या नही है।और ये सिलसिला रुकने वाला भी नहीं है। वहां सी. पी.आई की सरकार है।उनका इस बात का कोई मलाल नहीं है कि इस घटना में कौन दोषी है और उनके खिलाफ क्या कार्यवाही की जाएगी। हथिनी विनायकी जो गर्भवती थी,फारेस्ट डिपार्टमेंट उसकी देखभाल और इलाज क्यों नहीं कर पाया। गत बीते वर्षो में हाथियों की संख्या काफी कम हुई है वहाँ।जिसका सीधा मतलब तस्करी से है जो फारेस्ट डिपार्टमेंट की सांठगांठ से ही संभव है। इस के लिए राज्य सरकारों पर केंद्र को लगाम लगाने की जरूरत है।और राज्य सरकारों को इन सब अपराधों को रोकने के लिए तुरंत बडे कदम उठाने चाहिए। वरना ऐसी घटनाएं तो होती ही रहेगी। आज प्रकृति का संतुलन बिगड़ रहा है। इन जीव जंतुओं को मार कर थोड़ा धन ही तो कमा लेंगे। लेकिन इनकी आहे तुम्हारी नस्लें ही खत्म कर देगी।
हाय रे!मानव तुझे क्यों न शर्म आई
एक निरीह मातंगी पर यूँ बर्बरता दिखाई
तेरी थोड़ी सी ठिठोली से, 
सगर्भ कुंजरी ने जान गवांई।
भूखी थी वो, तुझ से क्या चाहती थी,
थोड़ा-सा भोजन और प्यार चाहती थी।
फल में विस्फोटक सामग्री सजा ,
इक बेजुबान हामिला की, दिल्लगी उड़ा,
मूक फलवती, अपने शिशु की क्षुधा खातिर
खुद को कहाँ रोक पाई।
तेरी इस ठिठोली से,
बेबस माँ और शिशु दोनों ने जान गवांई।
देख करनी तेरी, खुदा भी है परेशान
तुझे अपने कर्मों का, करना पड़ेगा भुगतान 
ये रोज़-रोज़ जो आपदाएं आ रही है न
न मालूम कितने बेगुनाहों की आहें,
तुझ तक वापस आ रही है।
जो बोया है.......वही तो तू कटेगा
देना होगा तुझे........हर हिसाब
ऊपर वाला अब.... करने बैठा है इंसाफ।।
- सीमा मोंगा
रोहिणी -  दिल्ली
 मेरे विचार से हाथियों की हत्या की परंपरा हमारे देश में नहीं है। ऐसा कोई रीति रिवाज नहीं, जहां उनकी बलि दी जाती हो। हां, कुछ लालची, स्वार्थी तत्व हाथी दांत की स्मगलिंग के लालच में उनकी हत्या करते रहते हैं। वैसे ही केरल की वर्तमान  घटना गर्भवती हथिनी की मौत भी शरारती तत्वों के द्वारा की गई, जो घोर निंदनीय और अक्षम्य अपराध है ।
      हां, ये भी सही है कि मनुष्य अपने फायदे के लिए वन्यजीवों को संकट में डाल रहा है। सरकार द्वारा नए-नए परियोजनाओं को पूर्ण करने हेतु वनों की तीव्रता से कटाई हो रही है। प्राकृतिक जंगलों के सर्वनाश के कारण हाथी और दूसरे वन्यजीव ग्रामीण बस्ती तक भटकते हुए पहुंच जाते हैं, फसलों को बर्बाद करते हैं। इसलिए वन्यजीवों को भगाने हेतु ग्रामीण तरह-तरह का प्रयोग पटाखे फोड़ने, आग जलाने का उपक्रम करते रहते हैं। इसी दरमियान वन्यजीव कभी गलती से ट्रेन से कट जाते हैं, कभी बिजली के खंभों से टकराकर दर्दनाक मौत के शिकार हो जाते हैैं। ऐसे ही उपक्रमों का शिकार केरल में गर्भवती हथिनी भी हो गई जो बहुत ही दुखदाई है, मानवता को शर्मसार करने वाली घटना है।
 देश के तमाम संरक्षित वन क्षेत्रों में हाथी और दूसरे वन्यजीवों को बचाने हेतु परियोजनाओं पर हर साल करोड़ों रुपया पानी की तरह बहाया जा रहा है। जाहिर है कि ऐसी स्थिति में वन्यजीवों की हादसे में होने वाली दर्दनाक हर मौत ऐसी परियोजना पर एक बड़ा सवालिया निशान छोड़ती है।
      जब तक मनुष्य लालच में स्वार्थवश अंधा बन कर वनों का नुकसान करता रहेगा, हाथी दांत बेच कर पैसा कमाने का स्वार्थ पालता रहेगा तब तक निर्दोष हाथियों की किसी ना किसी रूप में हत्याएं होती रहेंगी।
                                  - सुनीता रानी राठौर
                              ग्रेटर नोएडा - उत्तर प्रदेश
महात्मा गाँधी के अनुसार किसी देश की महानता का अंदाजा लगाना हो तो यह देखिए कि वहाँ के लोग जानवरों के साथ कैसा बर्ताव करते हैं? यदि उक्त विचार को पैमाना मान लिया जाये तो क्या हम भारत को महान देश कह सकते हैं l 
हाल ही में, केरल में कुछ इंसानों ने भूखी गर्भवती हथिनी को जलते हुए पटाखे से भरा अन्नानास खिला दिया जिससे तङप तङप कर उसकी मृत्यु हो गई l इससे यह साबित हो गया कि इंसान इंसान की योनि में पैदा होकर भी जानवरों जैसा व्यवहार कर सकता है l केरल भारत का सबसे बड़ा साक्षर राज्य जहाँ 90% से ज्यादा पढ़े लिखे लोग और अमानवीय व्यवहार कर बनें जानवर लेकिन जानवर भी क्रूरता नहीं करते, केवल अस्तित्व पर खतरा होने की अवस्था में उग्र होते हैं l यद्यपि केरल पुलिस ने अज्ञात लोगों के खिलाफ मामला दर्ज कर लिया है लेकिन प्रश्न यह उठता है कि कुछ महीने की जेल और कुछ हजार का जुर्माना इस मादा हथिनी और उस अजन्में बच्चे को न्याय दिला पायेगा l 
            ऐरावत के इस देश में हिकारत भरी इस घटना ने इंसानियत को पूरी तरह शर्मसार कर दिया है l आज आदि देव गणपति के प्रतीक और राष्ट्रीय धरोहर पशु "गजराज "के अस्तित्व पर भीषण संकट है l कारण हाथी दाँत का एक अवैध कारोबार, सजावट व श्रंगार के सामान का निर्माण होना है l पिछले 26वर्षो से प्रतिबंध के बावजूद यह कारोबार थम नहीं रहा l कुख्यात तस्कर वीरप्पन के मारे जाने के बाद आशा बँधी थी कि अब हाथियों के शिकार में कमी आएगी लेकिन वही "ढाक के पात "वाली कहावत चरितार्थ हुई l यह कैसी विडंबना है कि सरकार जानते समझते हुए भी मौन है l मानव और हाथी द्व्न्द का मुख्य कारण वनों पर बढ़ता मानवीय दवाब, वनों की सघनता में कमी आना, ऐसी परिस्थति में अस्तित्व के लिए मानव एवम हाथी आपस में प्रतियोगी हो गये हैं l इसके लिए मानव आबादी को अधिकाधिक दूर रखें l जंगलों की सघनता बढ़ाये l भोजन एवम पर्याप्त जल स्रोत का विकास हाथियों के लिए किया जाये तथा वन्य जीव संरक्षण अधिनियम की सख्ती व ईमानदारी से पालना सुनिश्चित की जाये l "आत्ममान :प्रतिकूलानि परेशां न समाचरेत "इस भावना से प्राणी मात्र से ऐसा व्यवहार करें जैसा हम उनसे चाहते हैं l प्राणी मात्र के प्रति अहिंसा का भाव रखें l स्वार्थ और जीव के स्वाद के लिए न तो हाथियों की हिंसा करवाए और न ही करें, हत्या से उतपन्न वस्तुओं का उपयोग भी न करें l 
         चलते चलते 
भगवान महावीर का सम्पूर्ण जीवन "जियो और जीने दो "का अभ्युदय करता है l महावीर बनना जीवन की सार्थकता का प्रतीक है l उनकी शिक्षाओं का हमारे जीवन और विशेषतः व्यवहारिक जीवन में समावेश करें लेकिन दुःखद पहलू यह है कि जयंतियाँ आज आयोजनात्मक होती हैं, प्रयोजनात्मक नहीं हो पा रही हैं l हम भगवान को पूजते हैं, जीवन में धारण नहीं करते l "अहिंसा परमोधर्म :"का अंगीकार ही आज की चर्चा को सार्थक बना सकता है l 
      कोरोना संक्रमण काल में तो अहिंसा, अपरिग्रह और अनेकांत हमारे प्राण रक्षक बनकर उभर गये हैं l आज वर्तमान में जीने का अभ्यास जरूरी है l न अतीत की स्मृति, न भविष्य की चिंता जो आज को जीना सीख गया उसने मनुष्य जीवन की सार्थकता को प्राप्त कर लिया l ऐसे मनुष्यों से बना समाज ही संतुलित,  स्वस्थ्य व समतामूलक हो सकता है l
- डॉ. छाया शर्मा
अजमेर - राजस्थान
 हाथियों की हत्या की परंपरा जब तक मनुष्य में चेतना का विकास नहीं होगा तब तक हाथियों ही नहीं और अन्य जानवरों की हत्या की परंपरा चलती रहेगी अभी तक मनुष्य को यह समझ नहीं आया है कि यह सभी जीव जंतु पशु पक्षी पेड़ पौधे यह सब हमारे सहयोगी हैं इनके बिना हमारा कोई अस्तित्व नहीं है ऐसा उनके जब तक समझ में नहीं आएगा ऐसा ही अपराध होता ही रहेगा मनुष्य अभी तक प्रकृति की व्यवस्था को नहीं समझ पाया है तभी तो वह प्रकृति के साथ अपराध करता है जिसका परिणाम प्रकृति अनेक स्वरूपों में देती है अभी जो परोना का स्वरूप मनुष्य के विनाश का कारण है मनुष्य नहीं समझ पा रहा है की प्रगति में हर चीज हमारी सुख और सुविधा के अर्थ में है अतः हमें भी  उनकी  सुख सुविधा प्रति ध्यान देना होगा ना की निर्दोष जानवरों को मारना होगा। पूरा अस्तित्व एक व्यवस्था है इस व्यवस्था को समझना पाने के कारण ही मनुष्य  दुखी है और सुविधा में ही सुख  ढुढने के कारण प्रकृति का  विनाश कर रहा है यही विनाश मानव समाज के लिए यह समस्या के रूप में देखने के लिए मिलता है। अतः हाथियों की हत्या की परंपरा जब तक मनुष्य को समझदारी नहीं होगी तब तक हर प्रलोभन आस्था से यह परंपरा चलता रहेगा। अतः मनुष्य को चेतना का विकास होना अति आवश्यक है।
- उर्मिला सिदार
रायगढ़ - छत्तीसगढ़
      मानव मानवता की धरोहर माना जाता है। चूंकि मानव में परमात्मा का अंश होता। उसके पास मस्तिष्क होता है। जिससे वह पशु वृत्ति से भिन्न हो जाता है।
     किन्तु यहां वहां पशुओं को मारने से गम्भीर प्रश्र पैदा हो गए हैं कि मानव पशु वृत्ति कब त्यागेगा? पशुता कब छोड़ेगा?
      अक्सर देखने में आता है कि इंसान पशुओं को यूज एंड थ्रौ कर रहा है।गाए का दूध पीता और उसके बाद उसे व उसके बछड़ों को अवारा छोड़ देता है। जिससे कहीं भूख से या दुर्घटना से मृत्यु होती देखी जाती है।
     हाथियों को भी अपने लालच के कारण मारा जा रहा है।जिसे रोकना अति आवश्यक है
- इन्दु भूषण बाली
जम्मू - जम्मू कश्मीर
हाथियों की हत्या की परंपरा आखिर कब तक जारी रहेगी। केरला की दर्दनाक ,शर्मनाक घटना से आत्मा इस कदर आहत हुई कि निशब्द हूँ ।
मेरे जेहन में ,हाथी मेरे साथी, फिल्म का एक गीत बार-बार घूम रहा है कि ,जानवर कोई इंसान को मारे ।कहते हैं दुनिया में पापी उसे सारे, इक जानवर की जान आज इंसानों ने ली है चुप क्यूँ है संसार ???? नफरत की दुनिया को छोड़कर ,प्यार की दुनिया में खुश रहना मेरे यार!!!!!
 इंसानों और वाइल्डलाइफ के बीच बढ़ते संघर्ष की वजह स्पष्ट है ,जंगलों का कम होना ,ऐसा इसलिए है क्योंकि हमारे जमीन के इस्तेमाल को लेकर विशेष नीति नहीं है दो तरह के खतरे हैं पहला शिकार दूसरा इस तरह के हथियारों का इस्तेमाल ।मौजूदा कानून स्थिति से निपटने के लिए काफी है मगर समस्या यही है कि कानून से ठीक से लागू नहीं किया जा रहा ,और एक समस्या यह है कि हम किस तरह जंगली जानवरों की जमीन पर कब्जा कर रहे हैं। इंसानों के दबाव की वजह से उनके आशियाने उजड़ रहे हैं ।जलवायु परिवर्तन भी स्थानीय समुदायों और जानवरों पर काफी बुरा असर डाल रहा है।सभी को सामाजिक न्याय की जरूरत है  वो चाहे इंसान हों या जानवर ।उन्हें सुविधाएं देकर जंगलों से दूर किया जा सकता है इंसानो को भी सुरक्षित रहने की जरूरत है और जानवरों को भी। इसे लैंडस्केप प्लानिंग कहते हैं ,जो कि हो नहीं रही ।
गर्भवती हथिनी की मौत पर इंसानों को शर्मसार होना चाहिए। केरला के बारे में सुना है अनानास या मीट में हल्के विस्फोटक पैक करके जानवर को खेतों में आने से रोकना केरल के स्थानीय इलाकों में काफी प्रचलित है। इसे मलयालम में  ,पन्नी पड़कम ,कहा जाता है जिसका मतलब होता है पिग क्रैकर ये जंगली सूअरों के लिए होता है, हाथियों के लिए  नही।
केरला मे विस्फोट से भरा अन्नानास को हथिनी दे दिया गया।बिचारी गर्भवती थी अपने गर्भस्थ के लिए कुछ खाने को खेतों में आई थी कि  इंसानो द्वारा रखे विस्फोटक से भरा  अनन्नास  खा लिया और  पेट मे पड़ी जलन से पानी पीने  नदी की तरफ चलती चली गई  ।रास्ते मे दिखे इंसानो को कोई चोट तक नही पहुचायी बिचारी ने ।बस नदी मे ही खड़े-खड़े उसने दम तोड़ दी। यह कहां का न्याय है कौन सी इंसानियत है ??आखिरकार सरकार लैंडस्कैपिंग पर क्यों नहीं ध्यान दे रही ।
उससे भी बड़ी वजह तो यह है कि हम इंसान बढ़ते जा रहे हैं और पशुओं के घरों पर यानी जंगलों पर कब्जे कर रहे हैं और जब वह  भूख से व्याकुल होकर खेतों में आते हैं तो उनकी हत्या कर दी  जाती है।        
 आखिर यह सब कब तक चलेगा, कब तक निर्दोष जानवरों की हत्या होती रहेगी ?
कब तक इंसान बेगुनाह पशुओं के खून से अपने हाथ रंगता रहेगा?
- सुषमा दिक्षित शुक्ला
लखनऊ - उत्तर प्रदेश
सबसे पहले तो मैं यह कहूंगी की हाथियों की हत्या कोई हमारी परम्परा नहीं  है! हाथी तो हमारे यहां पूजनीय हैं ! हमारा संस्कार हमें ऐसे धन्य अपराध की सोच से भी परे है! 
हां आजकल हानियों की तस्करी होती है! हाथी दांत के लिये तो पहले भी इनको मारा जाता था! केरल में  पलक्कड में  हथिनी के साथ जो गर्भ से थीजधन्यअपराध
हुआ है वह अमानवीय था! 
केरल में हानियों से बहुत काम लिया जाता है  !
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है और वह समूह में अपने परिवार और समाज के साथ रहना पसंद करता है ठीक हाथी भी दल बनाकर रहने वाला जानवर है और पूरा जीवन सामुदायिक भावना के साथ रहते हैं! चाहे जन्म हो या मृत्यु हो हाथी कभी अपने समूह का साथ नही छोड़ता  ! इतना शक्तिशाली होकर भी सामने से कभी वार नहीं  करता जब तक उन्हें  छेडा़  न जाए वह तो जानवर है  किंतु मानव जिसमे  हम कहते हैं मानवीयता के गुण होते हैं दया, करुणा होती है ऐसे जधन्य कृत देखकर तो जानवर की श्रेणी से तुलना करना भी जानवर को गाली देने जैसा है! 
अपने स्वार्थ के लिए हाथी जहर देकर मारते हैं, बिजली का करंट, ट्रेन से कटकर और अभी बम से मौत! इतनी करुण घटना के मध्य केरल सरकार घृणा का अभियान चला रही है हथिनी की हत्या को राजनीति की ओट में धार्मिक रंग दे रही है! 
हमने जंगल साफ कर उनके घर उजाड़ दिए, भूख जब हमसे सहन नहीं  होती तो क्या जानवर को नही लगती हमने सब कुछ तो उनसे छीन लिया अब मौत तो अपनी इच्छा से न दो! 
इतने बड़े धन्य अपराध के लिए  दोषी को कठोर से कठोर दण्ड दिया जाए! 
केन्द्रीय सरकार को वन्य जीवों की सुरक्षा के लिए कठोर नियम का प्रावधान प्रस्तावित करना चाहिए  !
जानवरों की हत्या को लेकर देश भर में जागरुकता बढी़ है और यह बरकरार रहनी चाहिए  !जानवरों के प्रति संवेदना को जाये और बनाये रखने के लिए  पाठ्यक्रम मे हमें  विषय रखना चाहिए  ताकि बच्चों  का जानवरों के प्रति प्रेम और सहानुभूति की भावना बनी रहे!
- चन्द्रिका व्यास
मुम्बई - महाराष्ट्र
सबसे पहले तो मैं ये कहना चाहूंगा कि किसी भी बेजुबान जानवर की हत्या किसी भी दृष्टिकोण से ठीक नहीं है। चाहे वह मजाक में क्या गया हो अथवा सोच-समझकर। जब यह खबर सुना तो मन द्रवित हो उठा बेचारी हथिनी ने उनका क्या बिगाड़ा था जो अनानास के साथ पटाखा खिलाकर असभ्यता का परिचय दिया। हथिनी के साथ साथ उसका बच्चा भी कालकल्वित हो गया। जानवर पालना यदि इंसानों का शौक है तो उसकी रक्षा करना कर्तव्य होना चाहिए। इस तरह से बेजुबानों की हत्या कब रूकेगी इसका अंदाजा लगाना बहुत मुश्किल काम है। वैसे सजगता बहुत जरूरी है कि यदि किसी बेजुबान के साथ ऐसा होता है। चाहे वह बिल्ली, कुत्ता, खच्चर,गदहा,गाय, बैल या फिर हाथी घोड़ा तो उसे रोकने का प्रयत्न करना चाहिए। वैसे तो जीव जंतुओं अथवा जानवरों की रक्षा के लिए मेनिका गांधी की संस्था पिपल फाॅर एनिमल काम करती है। पर हथिनी के हत्या पर कहीं कोई विशेष प्रतिक्रिया देखने सुनने को नहीं मिली लेकिन संवेदना का ऐसा दौर चला कि शोशल मीडिया इस खबर से अटी पड़ी थी। जबकि जरूरत है काम करने की प्रचार करने की नहीं।
मैं भगवान से प्रार्थना करता हूॅं‌ कि ऐसा जघन्य अपराध फिर न दोहराएं जाएं। खबर यह भी है कि केरल सरकार ने संबंधित व्यक्ति को गिरफतार कर लिया है। मुझे विश्वास है हथिनी को न्याय अवश्य मिलेगा।
- भुवनेश्वर चौरसिया "भुनेश"
 गुड़गांव - हरियाणा
हाथियों को मारने की घटना मानवता को शर्मसार करने वाली हैं।  धरती पर जितना अधिपत्य मनुष्यो का है ,उतना ही जानवरों का भी अधिकार हैं। हमारी हिंदू धर्म में परंपरा रही पेड़-पौधों, जानवर ,जलचर और पक्षियों के साथ मिलकर रहना और रक्षा करना। हाथी को लोग गणेश भगवान का स्वरूप मानकर पूजा भी करते हैं। एक हथनी को अनानास में बम डालकर खिलाना सच मे हैवानियत की हद है। वो हथनी गर्भवती थी ऐसे में वो बेजुबान कितना कष्ट झेली होगी। सोचकर भी दिल दहल जाता हैं। बम धमाके के बाद तीन दिनों तक पानी मे रहकर जलन शांत करने की कोशिश करती रही। अंत मे वो जलन झेल नहीं सकी और मौत हो गई। वो तीन दिन की छटपटाहट , बेचैनी कितना कष्टदायक रहा होगा। कुछ मनुष्य क्यों असंवेदनहींन हो गए है, जो इन बेजुबानों को भी ढंग से जीने नहीं देते। ऐसे मनुष्य के नाम पर कलंक के समान हैं।
        - प्रेमलता सिंह 
पटना - बिहार
“हथिनी “ ही क्यों न जाने कितने बेज़ुबान जानवरों को बेमौत मारते हैं कुछ संवेदनहीन लोग! जब मानव जंगल ख़त्म कर देगा पेड ही काटडाले जायेगे , मैदानों की जगह क्रकरीट के जंगल बनाये जायेगे तो जानवर कहाँ जायेगा,वह मानव  बस्ती में आयेंगे भोजन तलाश करने ..,
देखे एक रिपोर्ट 
खेती -बाड़ी में भोजन तलाश रहे हाथी गांवों और घरों में घुस रहे हैं। अब धान खरीदी केन्द्रों के आसपास में धमक रहे हैं। सोमवार रात दो दंतैल हाथी धान खाने के लिए लहंगर धान खरीदी केन्द्र तक पहुंच गए। वहीं तेरह हाथियों का दूसरा दल जोबा में भी घुस गया। इधर, मंगलवार को सुबह ट्रैक्टर से धान बेचने जा रहे लोगों पर हाथी ने हमला कर दिया। ट्रैक्टर छोड़कर भागकर मंदिर में छुपा तब कहीं जान बची।
जानकारी के अनुसार सोमवार रात करीब 8 बजे दो हाथी लहंगर धान खरीदी केन्द्र में आ धमके। यहां ग्रामीण पहले से सतर्क थे। हाथियों के आने की खबर गांव में तेजी से फैल गई। सैकड़ों की संख्या में ग्रामीण मशालें जलाकर और फटाखे फोड़कर धान खरीदी केन्द्र से हाथियों को भगाया। यहां हाथी ज्यादा क्षति नहीं पहुंचा पाए। धान खाने के लिए हाथियों का दल रोज किसी न किसी गांव में घुस रहे हैं। रविवार रात को यही दो दंतैल खड़सा और मोहकम में घुसे थे। क्या करेगा हाथी जब आप उसे खाना नहीं देंगे उसके अधिकार क्षेत्र पर क़ब्ज़ा कर लेंगे ! बहुत चिंता का विषय है पर्यावरण को बचाये ये चेतावनी है वर्ना गाँव तो क्या , भूख से बेहाल जानवर शहरों में भी आ जायेगे भोजन की तलाश में 
“केरल में हाथी की बेदर्द हत्या पर गंभीर है सरकार, जल्द पकड़ा जाएगा दोषी- प्रकाश जावड़ेकर ... सुरेंद्र कुमार ने कहा कि हाथी की मौत 27 मई को मलप्पुरम जिले में वेल्लियार नदी में हुई। उन्होंने कहा कि पोस्टमार्टम से पता चला है कि वह गर्भवती थी। उन्होंने कहा, "वन अधिकारियों को अपराधी को पकड़ने के लिए निर्देशित दिया गया है।
हथिनी की निर्मम हत्या कर दी गई है। कुछ लोगों ने एक अनानस के अंदर विस्फोटक डालकर हाथी को खाने के लिए दे दिया है। विस्फोटक हथिनी के मुंह के अंदर फट गया, जिससे उसकी मौत हो गई। हिंदू धर्म, सनातन संस्कृति में हाथी का क्या महत्व है? यह पूरा देश जानता है। हाथी भगवान इंद्र का वाहन है, हाथी को लक्ष्मी का प्रतीक माना जाता है।  हाथी को बारिश करने वाले बादलों का रूप बताया जाता है। इसीलए कहा जा रहा है कि केरल में जो हुआ वो  सिर्फ एक हाथी की नहीं बल्कि सनातन संस्कृति और धार्मिक भावनाओं की हत्या है।
- आश्विनी पाण्डेय
मुम्बई - महाराष्ट्र
     आज हाथियों की संख्या घटते जा रही है। हाथी के दाँत कीमती होने से इन्हें मारा जा  रहा है। दाँत की तस्करी बढी है। जैसा कि आप सभी को ज्ञात है कि वीरप्पन नाम का एक तस्कर कर्नाटका के जंगल मे लगभग चार हजार हाथियों को उनके दाँत की तस्करी के लिए मार डाला। 
     हाथी के बचाव के लिए तरह तरह के नियम और कानून बनाए गए हैं। हाथी के मारने की चर्चा दो तीन दिन पहले सुर्खियों में आई है। केरल में एक गर्ववती हथिनी को अनानास में पटाखा भरके खिला दिया गया जिससे हथिनी की मौत हो गई। ऐसी बात फैली हुई है। हलाकि सच्चाई ये भी आ रही है कि केरल में किसान जंगली सूअर से अपनी उपज बचाने के लिए अनानास मे पटाखा लगाकर खेत मे लगाते हैं। हथिनी उधर से गुजर रही थी और वह अनानास खा गई जिससे उसकी मौत हो गई। जो भी हो ,हथनी और उसके पेट मे पल रहे बच्चे की मौत बहुत ही दुखद है। हथिनी के मौत पर हाय तौबा मचानेवाले अगर उन सैकड़ों मजदूरों के लिए भी  हाय तौबा मचाते जो पैदल चलते हुए अपनी जान गवां दिए तो माना जाता कि उनकी संवेदनशीलता हथिनी और मनुष्य दोनों के साथ है।
- रंजना सिंह 
पटना - बिहार
जब तक सरकार सोई रहेगी ,तब तक यह जघन्य अपराध होता ही रहेगा । पहले हाथियों को  मौत पर सरकार ने क्या कदम उठाए । क्या सरकार को पता नही  की गङ्गा व अन्य नदियों के माध्यम से जनवरो  की तस्करी हो रही है । उसके लिए सरकार ने क्या किया ?कोई कानून या कार्यवाही की?
     यह तो सामने आ गए इसलिए आज इस पर लिखा या लिखवाया जा रहा है । जो केस सामने आए बिना भी रफ दफा हो जाते है उनमें सरकार कोई कार्यवाही करने की मांग करती है क्या ?
      काजीरंगा पार्क के बीच से रेलवे लाइन निकती हुई है । रोज उसमे कट कर हाथी मर रहे है ।अब तक सरकार ने उस विषय में अब क्या किया ? आज इस हथनी पर ही क्यो चर्चा हो रही ? जो हाथी हड्डियों ,दांत व अन्य व्यापारों के लिए मार दिए जाते है उनके ऊपर कोई कार्यवाही होती है क्या ? सब सियासी मुद्दे है ।जिन पर बवाल मच जाता है उस पर कार्यवाही हो जाती है अन्यथा सब चलता है ।।
- सुशीला जोशी
मुजफ्फरनगर - उत्तर प्रदेश
हाथी हों या कोई और जानवर, किसी की भी हत्या अमानवीय कार्य है। हाथियों के कीमती दाँत ही उनके जीवन के काल बन गए हैं ।ये हत्याएं होती रही हैं और होती रहेगीं। क्योंकि कुछ लोगों की जीविका का साधन यही है ।
 सवाल उठता है कि वो अपनी जीविका कैसे चलाएं, अगर जानवर का शिकार न करें तो। सामने से कानून की वजह से नहीं मारते, लेकिन चोरी-छुपे तो हमेशा शिकार होते रहते हैं । जंगली जानवर हैं तो बाँध कर नहीं रखे जा सकते । ये शिकारी निश्चित तौर पर किसी-न-किसी वन विभाग के सरकारी कर्मचारी से साँठ-गाँठ बनाते हैं तभी इतनी बड़ी निर्मम हत्या को अंजाम देते हैं । यह हमारे सरकारी महकमे की लापरवाही या लालच है, जो इनके रक्षक बन कर भक्षण करते हैं ।
      हमने अनेकों कहानियाँ सुनी हैं , जिसमें आदमियों और जानवरों के बीच का प्रेम संबंध मिसाल बना है। इसे आधार बना कर कई फिल्में भी बनाई गई। लेकिन  फिर वही 'ढाक के तीन पात' रहा । किसी भी तरीके से ये हत्याएँ रोकी नहीं जा सकीं। आज ये हंगामा गर्भवती हथिनी की हत्या के कारण हुई वो भी विस्फोटक डाल कर खिलाए गए अन्नानास के द्वारा। यह बहुत ही विभत्स घटना है । जैसा कहा जा रहा है कि किसान अपनी फसल जानवरों से बचने के लिए इस तरह की तरकीबें इस्तेमाल करते हैं , तो फिर गिरफ्तारी किसकी हुई और क्यों हुई? किसान की यह विधि क्या सही है? इससे भी तो जानवरों की हत्या होती है। दूसरा कोई तरीका भी तो हो सकता है।
 इस तरह यह कारीबड़े पैमाने पर बड़े गिरोह के द्वारा किया जा रहा है। इसे रोकने के लिए सख्त नियमों के पालन की आवश्यकता है। साथ ही मनुष्य और जानवर के बीच के सम्बन्धों को भी मानवता, पर्यावरण और विज्ञान के मूल्यों के आधार पर समझना होगा, तभी लङके प्रति कोमलता हमारी सोच में समा पाएगी।
- संगीता गोविल
पटना - बिहार
जंगलों के पास के गाँव मेंअक्सर हाथियों के झुंड के झुंड भोजन की तलाश में आते हैं और मारे जाते है वन विभाग भी कुछ ठोस कदम नहीं उठा पा रहे है । 
मानवता को किया शर्मसार .  
बता दें कि केरल में एक स्थानीय युवक द्वारा हाथी को पटाखे से भरा अनानास खिलाया। उसे खाने के बाद 27 मई को हाथी की मौत हो गई थी और वन अधिकारियों ने कहा कि इसके निचले जबड़े में चोट लगने के बाद ये वेल्लियार नदी में खड़ा हो गया। हाथी को उसके मुँह में फल फटने के बाद दर्द से राहत के लिए नदी में उसके मुँह और धड़ को पानी में खड़ा देखा गया। मन्नारक्कड़ वन रेंज अधिकारी ने बुधवार को कहा कि इस घटना पर वन्य जीवन संरक्षण अधिनियम की संबंधित धाराओं के तहत अज्ञात लोगों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गई है।
दरिदों तो मासूम बच्चियों की हत्या कर अपनी दानवता का परिचय देते आ रहे है ! 
उन्हें एक बेज़ुबान हथिनी को मारने में बड़ा आनंद आता है मौज मनाते हैं लोग जब सामने वाला तड़पता है ये हँसते हैं नाचते है ,इन्हें तो सिधा फाँसी हो यह मूंह में बारुद भर ही मारा जाऐ , ताकी औरलोगो को सबक़ मिले क़ानून का डर हो की उन्होंने क्या किया अपनी मस्ती में भूखे की जान ले ली !
इस तरह की वारदातों को अंजाम देने वालों के खिलाफ भारतीय वन्यजीव संरक्षण अधिनियम (Indian Wildlife Protection Act) के तहत कार्रवाई की जाती है. साथ ही हाथी और समकक्ष जानवरों की हत्या करने वाले आरोपियों पर इंडियन पैनल कोड की धारा 429 के तहत कार्रवाई की जाती 
क़ानून तो है पर सजा कितनों को मिली कोई पूछे .... सब बरी हो जाते है । 
फेंग्शुई हाथी है सौभाग्य का साथी, मुख्यद्वार पर रखने से समृद्धि, सौभाग्य एवं सफलता को करता है आमंत्रित हाथी जंगल का राजा भले ही न हो, लेकिन इसका मान और महत्व किसी भी तरह राजा से कम नहीं। हाथी पुरातन समय में राजाओं की सवारी होता था। यह आज भी धार्मिक जलसों की शोभा बढ़ाता है।
जयपुर में , कोरोना महामारी के दौरान हाथी गांव में हाथियों को पर्याप्त खुराक व चिकित्सा सुविधा नहीं मिलने का हवाला देते हुए जनहित याचिका दायर हुई है। जिस पर न्यायालय ने मुख्य सचिव, जयपुर कलेक्टर और प्रधान मुख्य वन संरक्षक को नोटिस जारी कर 12 जून तक जवाब मांगा है। कुछ लोग लगे हैं जानवरों की सुरक्षा के लिऐ 
मेरी कविता जो इसी पर लिखी है...
बेज़ुबान हथिनी की मौत पर 
प्रश्न चिन्ह .... 
बेज़ुबान गर्भवती हथिनी को मार दिया!
मानव तुमने कैसा भंयकर जुलम किया !!
खाने में ज़हर मिला कर कैसा प्रहार किया !
इंसानियत को मस्ती की मौज में शर्मसार किया !!
हाथी हमारी देश की शान है वफ़ादारी की मिशाल है ! 
तुमने प्यार से धोका देकर 
प्रकृति को ललकारा है ! !
कैसी है तुम्हारी परवरिश , प्रश्न चिन्ह है आकर खड़ा !
निहत्थी माँ पर वार करते , हँसते , तुम्हें आई न लज्जा !!
आँखों में चमक थी भूख से बेहाल , उदर में बच्चे की फ़िक्र !
तुम मानव नही ख़ूँख़ार दानव
मिले सजा यही न्याय का चक्र !!
सिख लो जानवरों से वफ़ादारी !
कुछ माह बाप की कर लो चाकरी !!
वो भी आज शर्मसार है तुम्हारी 
करतूतों पर !
धिक्कार रहा है मन तुम्हारे जैसे सपूतों पर !!
- डॉ अलका पाण्डेय
मुम्बई - महाराष्ट्र

       " मेरी दृष्टि में " लोगों में जागरूकता की कमी है । जिस की वजह से हाथियों की हत्या रूकने का नाम नहीं है । इसके साथ - साथ कानून का सख्ती के साथ पालन होना चाहिए । जो अधिकारी लापरवाही बरतें हुये पाया जाऐं । उस को सीधे जेल होनी चाहिए यानि अपराधी माना जाना चाहिए । तभी कुछ इस परम्परा को तोडा जा सकता है ।
                                                        - बीजेन्द्र जैमिनी
                                     
                                  सम्मान पत्र   




Comments

  1. @ डा0 ममता सरूनाथ - मार्मिक अपील। गागर में सागर जैसा।

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  2. Bilkul shi baat Khi aapne Mamta Sarunath di

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  3. I support ur thinking mamta sarunath

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  4. Bahut khoob kaha aap ne mamta sarunath

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  5. नूतन गर्ग (२४) आपने जो अपने विचारों की अभिव्यक्ति संख्याओं के साथ की है मै आपको इस के लिए बहुत बधाई देता हूं और आशा करता हूं कि आपने जो विकृत मानसिकता के लोगों को उजागर किया है इससे उनकी अंतरात्मा को ज़रूर कहीं न कहीं एक नई दिशा का उदय होगा। मेरी आपके इस प्रयास की समस्त शुभकानाएं।

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    Replies
    1. हार्दिक आभार सर 🙏

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  6. Bhut khoon likha hai Mamta Sarunath ji ne❤

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  7. आदरणीय ममता सुरुनाथ जी आपके विचार से मैं सहमत हु की मुक दर्शक बने रहने से कुछ भी नही होगा कदम बढ़ाने से ही कुछ हो पायेगा । जीव हत्या अपराध है और इसे हमे रोकना है ।

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  8. Completely agree with Mamta Sarunathji🙏🙏🙏

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  9. आदरणीय नूतन जी को अटल रतन सम्मान मिलने पर बहुत बहुत बधाई जी हार्दिक शुभकामनाएं 🙏

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  10. आदरणीय मुख्यमंत्री श्री योगी आदित्यनाथ योगी जी को उनके जन्मदिवस पर अनेकानेक हार्दिक शुभकामनाएं 🙏🇮🇳🙏 वन्दे मातरम् 🙏

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  11. ममता जी सरुनाथ ,,,लाजवाब सृजन

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  12. ममता जी
    उत्तम रचना। गज दिवस ना मनाना पड़े इसलिये जीव हत्या निषेध दिवस तो बना ही देना चाहिए..!

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  13. @ डा0 ममता सरूनाथ -उत्कृष्ट सृजन

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