स्वदेशी उत्पादन में आत्मनिर्भरता का मूल मंत्र क्या है ?

आत्मनिर्भर भारत अभियान में स्वदेशी उत्पादन का बहुत महत्व है । जिसमें स्थानीय रोजगार की अहम भूमिका है ।स्थनीय रोजगार से आत्मनिर्भर भारत की यात्रा का मूल मन्त्र ही स्वदेशी उत्पादन है । यही " आज की चर्चा " का मुख्य विषय है । अब आये विचारों को देखते हैं : -
     बहुत बढ़िया और चिंतन मनन योग्य विषय है। 
     स्वदेशी उत्पादन में आत्मनिर्भरता का मूल मंत्र है पैतृक व्यवसाय। दादा से पिता को और पिता से इस पीढी को हस्तांतरित प्रैक्टिकल ज्ञान ही उन्हें फिर से स्थापित कर सकता है।
        विशेषकर खेती से संबंधित कार्य अनेकानेक स्वरूप से उनके लिए सहयोगी सिद्ध हो सकते हैं। बढई लुहार कार्य से लेकर डवरा बख्खर अर्थात हल बैल कार्य और तीफन बुआई आदि के जरिए वे कम से कम एक व्यस्त आत्मनिर्भरता पा सकते हैं। आज गाँव में इतना कार्य है कि जो एकरों एकर भूमि पड़ती पड़ी है यदि उसी पर युवा वर्ग हाथ आजमाए तो आत्मविश्वास और आत्मनिर्भरता स्वागत के लिए तैयार है।
       कस्बों और शहरों में तो मिठाई दुकान से लेकर किराना राशन इलेक्ट्रॉनिक इलेक्ट्रिक और डिजिटल टेक्नोलॉजी तक के पैतृक व्यवसाय चल रहे हैं। युवा वर्ग सारी जिम्मेदारी संभाल लें और थोड़े में सीमित संसाधनों में जीने की आदत डाल लें तो जीवन आसान होगा। वैसे भी पुरानी भौतिकतावादी जीवन शैली खर्चे बहुत सीमित हो गए हैं। उन्ही के संग जीना सीख लें। मोची दर्जी नाई आज भी कस्बों गांवों में जरूरी हैं। कुटीर उद्योग आज भी वक्त की जरूरत हैं। अचार बडियाँ पापड़ की स्वाद लोलुपता कम नहीं हुई है। विदेशी पिज्जा मैगी के बजाय पूरण की रोटी और सिवैंया के साथ रुचिकर वस्तुओं को खाने खिलाने का माहौल बनेगा तो न जाने कितने घरेलू शैफ आत्मनिर्भर हो जाएंगे
      तात्पर्य यही कि 
चलो लौटें दादी नानी की सीखों की ओर
चलो थामे दादा नाना की मेहनत का छोर
बनें आत्मनिर्भर ले आएं सोन चिरैया की भोर
अपना के पैतृक गुण चलो
बढें स्वदेशी की ओर।।
आमीन
- हेमलता मिश्र "मानवी " 
नागपुर - महाराष्ट्र
आधुनिकता की दौड़ में आदमी विदेशी वस्तुओं का उपयोग कर रहा है । इन विदेशी वस्तुओं की गारंटी - वारंटी नहीं है । सिर्फ तड़क भड़क ही है । सस्ते के लालच में बार बार रोने को विवश हो जाता है । स्वदेशी वस्तुएं बेशक महंगी होती है लेकिन उनकी डियूरेबलिटी , गारंटी और वारंटी भी होती है ।  स्वदेशी वस्तुओंं का उत्पादन अपने स्तर पर बढाने के लिए कई कदम उठाने की आवश्यकता है । निर्माताओं को संबंधित उपकरण व कच्चा माल सस्ती ब्याज दर पर समय पर उपलब्ध करवाया जाना चाहिए । निर्मित माल को बाजार तक पहुँचाने व उचित दाम की व्यवस्था करना जरुरी है  । प्रचार प्रसार की व्यवस्था की जाए । नुमाइश व प्रदर्शनी लगाई जानी चाहिए । लोगों को स्वदेशी वस्तुओं के गुण - विशेषता  , डियूरेबलिटी  और गारंटी - वारंटी से अवगत करवाया जाना चाहिए । बेहतरीन उत्पादकों को सम्मानित किया जाना चाहिए । 
- अनिल शर्मा नील 
   बिलासपुर - हिमाचल प्रदेश
आत्मनिर्भरता हमें सुख और संतोष देने के साथ-साथ सशक्त भी करती है। स्वदेशी उत्पादन में आत्मनिर्भरता का मूल मंत्र 5 स्तंभों पर आधारित है-- अर्थव्यवस्था, बुनियादी ढांचा, प्रणाली, जीवंत लोकतंत्र और मांग।
 स्वदेशी उत्पादन यानी स्थानीय उत्पादों को प्राथमिकता देकर आत्मनिर्भर बना जा सकता है।खादी ग्रामोद्योग के उत्पाद की अच्छी बिक्री को देख कर हम अपना आत्मविश्वास बढ़ा सकते हैं। स्वदेशी उत्पाद से हर हाथ को काम मिलेगा।
    लॉकडाउन के कारण करीब 10 करोड़ प्रवासी कामगार गांव लौट गए हैं। उनका रिवर्स माइग्रेशन हुआ। उनके लिए काम जुटाना चुनौती है। ऐसे दौर में अर्थकेंद्रित स्वदेशी उत्पादों से ज्यादा से ज्यादा रोजगार मुहैया करा सकते हैं।
   जहां स्वदेशी का विकल्प ना हो वहां विदेशी चुने। स्वतंत्रता संग्राम के समय सर्वप्रथम गांधी जी ने विदेशी सामानों का बहिष्कार कर स्वदेशी अपनाकर आत्मनिर्भरता की ओर कदम बढ़ा कर देशवासियों का मनोबल ऊंचा उठाया था। नमक बनाना हो या खादी वस्त्र स्वदेशी उत्पाद को प्राथमिकता दिया था। आज गेहूं, चावल तथा अन्य खाद्य पदार्थ से हमारे गोदाम भरे हैं। यह बात संकट की घड़ी में आत्मविश्वास बढ़ाती है। आर्थिक व सैन्य रूप से भी जिस दिन देश आत्मनिर्भर हो जाएगा उस दिन दुनिया भारत का लोहा मानना शुरू कर देगी।
 आज विकट घड़ी में हमारे देश में प्रतिदिन दो लाख पीपी किट और दो लाख N -95 मास्क का निर्माण हो रहा है। हमारे देशवासियों ने इस आपदा को अवसर में बदल कर इस चुनौती को स्वीकार कर आत्मनिर्भर बनने का सफल प्रयास किया है। बाबा रामदेव का पतंजलि ब्रांड हर तरह का स्वदेशी उत्पाद बनाने में अहम योगदान दे रहा है। आत्मनिर्भरता, स्वावलंबन और स्वदेशी उत्पाद के मूल मंत्र को सरकार द्वारा दिए गए पैकेज से बढ़ावा मिल सकता है। 
    आंकड़े बताते हैं कि 2.5 लाख करोड़ के एक एफएमसीजी बाजार में स्वदेशी की भागीदारी एक चौथाई है। सॉफ्ट ड्रिंक हो या कंप्यूटर हार्डवेयर बाजार 100 फीसदी कब्जा विदेशी कंपनियों का है। आज जो ग्लोबल बने हैं वह भी कभी लोकल ही थे लेकिन उन ब्रांडो को वहां के लोगों का पूरा समर्थन मिला और वे लोकल आत्मविश्वास से लबालब हो ग्लोबल ब्रांड बन गए।
    हमें भी इन तथ्यों को समझते हुए स्वदेशी उत्पाद को बढ़ावा देकर आत्मनिर्भर बनना है। सरकार भी इसके लिए पूरी ताकत से मुहिम चला रही है। अंतरराष्ट्रीय स्थिति को देखकर समय की मांग भी है कि हम आत्मनिर्भर बने। संकल्प शक्ति के बल पर ही भारत को आत्मनिर्भर बनाया जा सकता है।
                              -  सुनीता रानी राठौर
                           ग्रेटर नोएडा  - उत्तर प्रदेश
" पराधीन सपनेहु सुख नाही 
   दरिद्र सम दुःख माहि "आत्मनिर्भरता का मूल मंत्र है l भारत के तीन स्तम्भों -राजनैतिक नेतृत्व, हित धारकों और नीति निर्माताओं को मजबूत करने से 
है l आत्मनिर्भरता का लक्ष्य हासिल करना आसान नहीं है l इस मंत्र को साकार करने के लिए आयात पर निर्भर ऊर्जा, इलेक्ट्रॉनिक, खाद्य तेल, ड्युरेबल्स और खनिज क्षेत्रों की पहचान करनेमें निहित है l 
       ऑपरेशन फ्लड के चलते 1970 का भारत देश आज दुग्ध उत्पादन में आत्मनिर्भर बन गया l उस समय बड़े पैमाने पर दूध के आयात पर निर्भर और घरेलू दुग्ध उत्पादक, संकट की स्थिति में थे l
डॉ. वर्गीज कुरियन की श्वेत क्रांति का परिणाम यह हुआ कि आज भारत दुग्ध उत्पादन में आत्म निर्भर है l ये उल्लेखनीय कार्य हमारे अपने लोगों ने किया l "आत्मनिर्भर भारत " नारे का यही उद्देश्य है कि क्या हम श्वेत क्रांति जैसी क्रांतियों का सृजन कैसे कर सकते हैं l आज हमारे पास सभी संसाधन व कौशल हैं और इससे भी ऊपर फिर लोकतान्त्रिक व्यवस्था है ऐसे में सब कुछ भारत की जन शक्ति पर निर्भर है कि वह भारतीय ब्रांड में अपना आत्म विश्वास दिखाये l 
       आत्मनिर्भरता की दिशा में भी प्रयास प्रारम्भ हुए l वर्ष 15में गुजरात का थमाना गाँव पहली बार सौर सहकारिता के साथ आया था वह आज किसानों के लिए व्यावहारिक व्यवसाय का मॉडल बन गया l अपनी आवश्यकता पूर्ति के बाद बिजली राज्य विद्युत बोर्ड को बेचकर अतिरिक्त आय की जाती है l इसी प्रकार ऊर्जा और उर्वरकों में अरबों डॉलर के आयात का समाधान पशु अवशिष्ट से बायोगैस तथा उर्वरकों की उपलब्धता गुजरात के ही जकरियापुरा गाँव ने दिया l भले ही मवेशी दुधारू हो या नहीं l यह व्यवसाय अतिरिक्त आय का साधन बन रहा है l 
       माननीय प्रधानमंत्री का मंत्र "वोकल फॉर लोकल और लोकल फॉर ग्लोबल "देश को आत्मनिर्भर बनाने के लिए लोगों को अधिक से अधिक स्वदेशी वस्तुओं के इस्तेमाल पर जोर देना है और गर्व से उसका प्रचार करना भी है l यही मंत्र हमारे स्थानीय ब्रांड के लिए वैश्विक उपस्थिति के महत्त्व को सामने लायेगा l विभिन्न उत्पादों के लिए भारत पूरी दुनियाँ में सबसे बडा और सबसे तेजी से बढ़ता व्यापार है l उपभोक्ता केवल राष्ट्रीयता नहीं उत्कृष्टता और मूल्य भी देखते हैं l अतः हमें घरेलू बाज़ार में लीडर बनने के लिए ब्रांड की तकनीकी विशेषज्ञता, गुणवत्ता, किफायती मूल्य पर निर्माण करना होगा l किसी भी व्यवसाय में उसका ब्रांड सबसे बड़ी मूलयवान सम्पत्ति होती है और यह बहुराष्ट्रीय रणनीति का अंग है l 
स्पर्धा की दौड़ में टिके रहने के लिए भारतीय ब्रांड में बेहतर उत्पादों और उत्तम सेवाओं के रूप में एक काउंटर रणनीति सुनिश्चित करनी होगी और भारत के सभी क्षेत्रों में आत्म निर्भरता को वास्तविक बनाना होगा l 
            भारत ग्रामीण अर्थव्यवस्था वाला राष्ट्र है l आज भी इस देश में कुटीर व लघु उद्योगों का यदि सही तरीके से सुधार व क्रियान्वयन कर दिया जाये तो ये देश की अर्थ व्यवस्था की नींव विराट हो उठेगी l 
               चलते चलते --
सुगंध का प्रसार हवा के रुख का मोहताज होता है l 
पर अच्छाई सभी दिशाओं में फैलती है ll 
                --चाणक्य 
यही सिद्धांत आत्मनिर्भर भारत के लिए मूल मंत्र होगा l
- डॉ. छाया शर्मा
अजमेर - राजस्थान
अभी कुछ दिन पहले प्रधानमंत्री मोदी जी ने   राष्ट्र को संबोधित करते हुए देश को विकास की ओरअग्रसर होने के लिए सुझाव दिया था |उन्होंनेआत्मनिर्भर होने की बात की थी |लेकिन उनकी बात को समझने की अपेक्षा कई लोगों नेउनकी हंसी उड़ाई लेकिन कुछ लोगों का मानना यह है कि आत्मनिर्भर होनाअसंभव नहीं अब प्रश्न यह उठता है कि अरबों डॉलर के माल का आयात करने वाला भारत    कभी अपने आत्मनिर्भर होने के स्वप्न को साकार कर सकता है ?
इसका उत्तर आयात पर निर्भर है |तभी हमारा देश सन 1970 के दशक में   भारत बड़े पैमाने पर दूध केआयात पर निर्भर था |लेकिन आज भारतदूध के उत्पादन में  आत्मनिर्भर बन गया है|  एक बात तय है कि आज हमारे पास सभी संसाधन और कौशल हैं| सबसे अच्छी बात यह है |कि  हम स्थिर लोकतांत्रिक ,व्यवस्था से जुड़े हैं| बल्कि निश्चय है कि हमें भारत में सभी क्षेत्रों मेंआत्मनिर्भरता को वास्तविक बनाना होगा| सब  कुछ भारत की जनता पर निर्भर करता है |आज हर   भारतीय संकल्प ले कि वह  भारतीय ब्रांड में ही अपना   आत्मविश्वास दिखाएंगे |   आज हम  कई दिशाओं में आत्मनिर्भर हो चुके हैं   गुजरात का थामना गांव आज किसानों के लिए एक व्यावहारिक व्यवसाय मॉडल बन गया है |यहां सौर ऊर्जा का प्रयोग  अपनी ऊर्जा आवश्यकताओं को  पूरा करने के लिए होता है और शेष ऊर्जा   विद्युत बोर्ड को बेच दी जाती है इसी तरह का एक और अनुकरणीय उदाहरण है कि गुजरात में  एक छोटी लेकिन प्रभावी बायोगैस  इकाई पशु अपशिष्ट को बायोगैस में परिवर्तित करते हैं बचे हुए गारे  को भी  उर्वरक में बदल दिया जाता है  इस तरह से लोगों का प्रयास देश को आत्मनिर्भर बनाने में सहयोगी होगा  |इसके लिए आवश्यक है कि हम संकल्प लें कि हमें न केवल स्वदेशी उत्पाद खरीदने हैं बल्कि उनका पूरी दुनिया में प्रचार भी करना है |यह भी स्पष्ट हो जाना चाहिए कि उपभोक्ता ब्रांड  नहीं बल्किलाभ भी खरीदते हैं वे  उत्कृष्टता भी देखते हैं इसलिए स्वदेशी उत्पादन को तकनीकी विशेषज्ञता ,बेहतर गुणवत्ता और किफायती मूल्य पर निर्मित करना होगा |अगर यह सब कुछ बेहतर हो गया  तोब्रांड के मूल्यांकन को सराहना भी मिलती है| देखा जाए तो यहबहुराष्ट्रीय रणनीति है और यह केवल एक सोच ही नहीं|
- चन्द्रकान्ता अग्निहोत्री
पंचकुला - हरियाणा
इतिहास गवाह है चरखा आंदोलन नमक आंदोलन अंग्रेजी सरकार को छक्के छुड़ा दिए थे और देश आजाद हुआ।
फिर से यदि जन जन यह संकल्पित हो जाए तो वह दिन दूर नहीं जब भारत पूर्णत आत्मनिर्भर रहेगा,
एक कहावत  है बाहर की बिरयानी से अच्छा है घर रोटी दाल।
सभी नागरिकों को स्वदेशी टूथपेस्ट साबुन तेल शैम्पू मशाला प्रसाधनों , चाकलेट अन्य बिजली के उपकरण मोबाइल इलेक्ट्रॉनिक सामानों का खरीदारी या क्रय-विक्रय पर पाबंदी कर दे धीरे-धीरे मोदीजी का सपना पूरा होने लगेगा।
आत्मनिर्भरता का मूल मंत्र यही है लोकल बनो वोकल रहो । अपने देश का सामान इस्तेमाल करो और प्रचार करो।
- कुमकुम वेदसेन
मुम्बई - महाराष्ट्र
विदेशी  उत्पादों  का  प्रचार-प्रसार  इतना  हो  रहा  है  कि  लोग-बाग  भ्रमित  हो  रहे  हैं  ।  क्या  खरीदें  और  क्या  नहीं  ।  कभी  ये  तो  कभी  वो  फिर  सबकी  पसंद  अलग-अलग  ।  उनसे  होने  वाले  दुष्प्रभाव  ।  
       बाहर  से  आने  के  कारण  दाम  भी  दुगने  । 'खून-पसीने  की  गाढ़ी  कमाई, फैशन  में  गमाई ' वाली  स्थिति  से  रूबरू  होना  जैसे  आज  की  आवश्यकता  बन  गया  है  । 
      स्वदेश  में  ही  जब   उत्पादन  होगा  तो  भारतीय  मुद्रा  की  बचत  होगी  ।  अपने  द्वारा  निर्मित  वस्तुओं  के  उपभोग  से  आत्मिक  संतुष्टि  महसूस  होती  है  । 
      इससे  लोगों  को  रोजगार  उपलब्ध  होगा  जिससे  धीरे-धीरे  आत्मनिर्भरता  बढ़ेगी ।  स्वयं  काम  करने  से  आत्मविश्वास  भी  जागृत  होगा और  गर्व  की  अनुभूति  होगी  । 
      प्राचीन  समय  तथा  संस्कृति  पर  यदि  दृष्टिपात  करें  तो  तो  ज्ञात  होगा  कि  समृद्धि  तो  स्वदेशी  उत्पादन  में  ही  छिपी  हुई  है  क्योंकि  कहा  भी है-- "अपने  हाथ  जगन्नाथ "
       - बसन्ती पंवार  
       जोधपुर  - राजस्थान 
स्वदेशी उत्पादन में आत्मनिर्भरता का मूल मंत्र यही है कि अपनेमाल का उत्पादन स्वयं करें और उपयोग खुद करें! 
स्वदेशी के विचार को व्यक्तिगत स्तर से लेकर परिवार तक आंतरिक रुप से अपनाना है! 
उद्योग को राष्ट्रवाद और आत्म निर्भरता बढ़ाने की भावना के साथ काम करना चाहिए! 
गांधी जी ने तो वर्षो पहले विदेशी कपडो़ का बहिष्कार कर स्वदेशी खादी कपड़े  का निर्माण कर आत्मनिर्भरता का मूल मंत्र बताया था! हमारे ही देश का उत्पादित माल खरा है तो उसकी डिमांड बढ़ती है और वही हमारा ब्रांड बन जाता है! हम यदि अपने देश में  ही माल उत्पादित करते हैं तो वह हमे सस्ता पड़ता है हम विदेशों से क्यों आयात करें! 
 हमारे ही देश का एक भाग कच्छ जहां सदा सूखा रहा पानी केअभाव में जमीन बंजर होने से खेती नहीं  होती थी! लोग रोजी रोटी के लिए बाहर मजदूरी करते थे इसपर भूकंप की मार किंतु आज स्थिति एकदम विपरीत है !नर्मदा  का पानी मिलते ही वे अपनी मेहनत और संघर्ष से आत्मनिर्भर बन गए  हैं  !किसान खेतीहर भरपूर अनाज उगा रहा है! दूध, गोबर से खाद गोबर गैस आदि से एक्सट्रा इनकम भी हो जाती है! वहां की हस्तकला बहुत ही सुंदर  है सभी औरते अपनी कला से आय प्राप्तकर आत्म निर्भर है! आज उन्हें बाहर काम के लिए नहीं जाना पड़ता आज वे पूर्ण रुप से आत्मनिर्भर हैं! 
आज कोरोना ने हमे पुनः आत्मनिर्भरता का बोध कराया है!  हमारी जीवनशैली बदल गई है!हमारी आवश्यकताओं की सीमा रेखा बांध ली है, सात्विक और पौष्टिक आहार  लेने लगे, कहने का तात्पर्य है हम बाहरी सामान के बिना भी रह सकते हैं  !आज हर गांव आत्मनिर्भर  हो तो आज मजदूरों को आपादकाल में यह तकलीफ ना होती! 
आज प्रधानमंत्री जी ने भी इस सबक को ध्यान में  रखते हुए आत्म निर्भर पैकेज दिया है! 
कोरोना में  लॉकडाउन के चलते अर्थव्यवस्था का ग्राफ नीचे आया है वह स्वदेशी उत्पादन काआववाहन लेकर आया है! 
सकारात्मक सोच और आत्म विश्वास के साथ स्वदेशी उत्पादन कर आत्मनिर्भरता के साथ आगे बढ़े  हम कामयाब होंगे! 
कोरोना के साथ फिलहाल जीना है नियम का पालन करें!
- चन्द्रिका व्यास
मुम्बई - महाराष्ट्र
स्वदेशी उत्पादन में आत्मनिर्भरता का एक ही मूलमंत्र है और वो है स्तर से कोई समझौता नहीं करना।ज्यादातर होता ये है है कि स्वदेशी के हल्ले में देशी कम्पनियों को अपने स्तरहीन उत्पादों को खपाने का मौका मिल जाता है।और अंत मे जनता ही बेवकूफ सिद्ध होती है।भारतीयों की देश भक्ति पर कभी कोई संदेह नही रहा लेकिन देशभक्ति और स्वदेशी की आड़ में अगर कोई ये सोचे कि वो अपना कबाड़ खपा देगा तो वह बहुत बड़ा मूर्ख है।भारतीय मोबाइल कंपनियों ने चीन से मोबाइल आयात करवाये और अपना स्वदेशी का ठप्पा लगा कर बेचा।मूर्ख तो हम ही बने ना।
क्यों ये देशी कंपनियां अपने स्तर नही सुधारती।जरा सोचिए जब ये अपने ही देश मे विदेशी समान का मुकाबला नही कर सकती तो भारत से बाहर जा कर क्या टक्कर दे पाएंगी?
स्वदेशी की आड़ में आखिर ग्राहक गुणवत्ता से समझौता क्यों करेगा?
आप क्या समझ रहे ये देशी कंपनियां हमे नही लूट रहीं? ये विदेशी कम्पनियों से ज्यादा चमड़ी उधेड़ रही हैं जनता की।और उस पर घटिया उत्पाद।
मोबाइल कम्पनी को ले लीजिए
Airtel जैसी कंपनी वोडाफोन से कम लूट रही है क्या? बाबा रामदेव से स्वदेशी का एक अच्छा विकल्प प्रस्तुत किया लेकिन उनके दाम भी देख लीजिए।विदेशी कंपनियों से ज्यादा ही उधेड़ रहे हैं जनता को।
हमारा दुर्भाग्य ही ये ही है कि जनता को केवल बेवकूफ से कुछ समझा नही जाता।
अंत मे बस इतना ही बोलूंगा की स्वदेशी कम्पनियां पहले खुद को प्रतियोगिता में लाएं।अपना स्तर बढ़ाये।दाम कम करें ।फिर जनता के सामने स्वदेशी का ढोल पीटे।
- रोहन जैन
देहरादून - उत्तराखंड
स्वदेशी उत्पादन में आत्मनिर्भरता का मूल मंत्र है कि हम अपने प्रयोग और उपयोग की वस्तुएँ नजदीकी तथा भारतीय मूल के उत्पादकों से ही खरीदें।अर्थात 'वोकल फ़ॉर लोकल' तभी सार्थक होगा जब  मैं अपनी जुबानी अपने मोहल्ले के बाहर वाली दुकान का प्रचार करते हुए अपने मित्रों और अन्य मोहल्ले वालों से भी वहीं से सामान लेने को कहूँगा।अच्छी बात है।उसे भी रोजगार मिलेगा और मेरा भी काम चलेगा।
       अब प्रश्न यह उठता है कि क्या उसके पास किफ़ायती दामों में सारा सामान उपलब्ध होगा जो मैं कहीं और से जाकर एक ही साथ ले आता था।यदि है तो मुझे वहीँ से सामान लेने में कोई हर्ज नहीं।परन्तु अगर मुझे ज्यादा सामान के लिए किसी और पर निर्भर होना पड़े तो मुश्किल है।इस दशा में मेरे कदम फिर से बाहर की ओर निकलने लगेंगे।यही लागू होता है अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी।ऐसे में पहले सरकार को आत्मनिर्भरता के साधन जुटाने होंगे तभी जाकर यह कारगर हो सकता है।
        यदि मुझे काम करने के अच्छे पैसे मेरे घर के नजदीक ही मिल जाएंगे तो मैं बाहर का रुख क्यों करूंगा।अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी हमें यदि साधन आसानी से उपलब्ध होने लगेंगे तो फिर हमारा फोकस अपने ही देश में कार्य करने में होगा।
    अर्थात पहले छोटे लेवल पर संसाधन जुटाने से करनी होगी।देश में ही बनी हुई चीजों का इस्तेमाल करके आगे बढ़ना होगा।
- नरेश सिंह नयाल
देहरादून - उत्तराखंड
स्वदेशी सामान्य मूल मंत्र यह है कि हम लोग अपने देश का बनाया हुआ सामान इस्तेमाल करेंगे तो हमारे देश को आर्थिक रूप से लाभ होगा हमारी मुद्रा बाहर विदेशों की कंपनियों में नहीं जाएगी चीनी सामान का बहिष्कार करना चाहिए क्योंकि उसी के कारण यह बीमारी हमारे देश में महामारी के रूप में आई और उसे संपूर्ण विश्व ही परेशान है और वह सामान के कारण वायरस दे । इसलिए हमें कोई भी सामान इसका नहीं लेना चाहिए उसका विरोध करना चाहिए जब हमें आजादी मिली थी सन 1947 में  गांधी जी ने और सुभाष चंद्र बोस ने स्वदेशी सामान्य का इस्तेमाल करने की सलाह दी थी विदेशी सामानों की होली चलाई थी। बहिष्कार करने से ही हमें आजादी मिली थी। हमारे देश में बहुत आयुर्वेदिक आ जाना है  उन लोगों ने अपनाया । और हमें विदेशी सामानों के मोह दिया वह अपना पुराना हमारे देश में भेज देते थे और हमारे देश से मुद्रा कमाते थे कुछ आर्थिक स्थिति में तोड़ना चाहिए हम अपने आसपास देखें हम उसके सामानों के बिना भी गुजारा कर सकते हैं हमें स्वदेशी सामान ही अपनाना चाहिए इस संकट की घड़ी में हमें अपने भाई बंधु की मदद करनी चाहिए और अपने देश के मजदूरों को रोजगार देना चाहिए।
थोड़ा खाओ स्वस्थ रहो।
- प्रीति मिश्रा
जबलपुर-  मध्य प्रदेश
संकल्प शक्ति के बल पर ही भारत को आत्मनिर्भर बनाया जा सकता है। बहुत दिनों से हम सुनते आए हैं कि 21वीं सदी भारत की होगी। हमने कोरोना संकट से पहले और कोरोना संकट के बाद की स्थितियों को नजदीक से देखा और समझा है। कोरोना संकट के बाद की स्थिति हमें एक ही बात सिखाती है कि हमारा एक ही मार्ग होना चाहिए आत्मनिर्भर भारत। हमारे शास्त्रों में भी यही बात कही गई है और देश के लोगों को इसे समझना होगा। इतनी बड़ी आपदा एक संकेत, एक संदेश और एक अवसर लेकर आई है। हमें निश्चित रूप से इस अवसर को भुनाना होगा।
देश में कोरोना संकट के दौरान अपने पांचवे संबोधन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आत्मनिर्भर भारत का नारा दिया। प्रधानमंत्री के इस नारे के पीछे स्वदेशी चीजें अपनाने का मूल मंत्र छिपा है। पीएम ने कहा कि कोरोना संकट ने हमें मुसीबत में डालने के साथ ही एक अवसर भी दिया है और हमें इस अवसर को भुनाने के लिए पूरी तरह तैयार होना होगा। उन्होंने कहा कि सरकार 20 लाख करोड़ के आर्थिक पैकेज के जरिए देश के लोगों को एक बड़ी ताकत देने जा रही है मगर देश के लोगों को भी भारत को आत्मनिर्भर बनाने की मुहिम में जीजान से जुटना होगा।
कोरोना संकट के कारण जब पूरे देश में लॉकडाउन घोषित हुआ तो ऐसे समय में हमें लोकल ने ही मदद की है और उसी ने हमारा जीवन बचाया है। इसलिए हमें लोकल उत्पादों को बढ़ावा देने के लिए आगे आना होगा और इसे अपना जीवन मंत्र बनाना होगा। उन्होंने इस बाबत अपील करते हुए यह भी कहा कि जब तक हम लोकल के लिए वोकल नहीं बनेंगे तब तक हमारे लोकल प्रोडक्ट को बढ़ावा नहीं मिलेगा। इसलिए हर देशवासी का यह दायित्व है कि वह लोकल चीजों को बढ़ावा दे।
जो ब्रांड आज ग्लोबल बन गए हैं, वह भी कभी लोकल ही थे। लेकिन उन ब्रांडों को वहां के लोगों का पूरा समर्थन मिला और उन्होंने उन उत्पादों का उपयोग करने में खुद को गौरवान्वित समझा और यही कारण है कि वह लोकल उत्पाद भी ग्लोबल ब्रांड बन गए। हमें भी इस चीज को समझना होगा और अपने लोकल उत्पादों को मजबूत ब्रांड बनाने के लिए आगे आना होगा
तभी हम आत्मनिर्भर बन सकते हैं कुटीर उघौग को बढ़ावा देने के लिये और स्वदेशी वस्तुओं का उपयोग करना होगा  तभी हम आत्मनिर्भर बनेगे , 
हमें स्वनिर्भर हो कर व्यवसाय करना होगा सरकार ने इतने बड़े पैकेज की घोषणा कर दी है उसे अमल में लाये तभी कम बन सकता है । 
आत्मनिर्भर बनने का भारत का सपना साकार हो सकता है । 
- अश्विनी पाण्डेय
मुम्बई - महाराष्ट्र
स्वदेशी उत्पादन में मूलमंत्र यही है है कि हम अपने देश का बना हुआ हर चीज या वस्तु का उपयोग करते हुए देश की आर्थिक व्यवस्था को भी बनाये रखते है। इससे हमारे छोटे उद्योगो का उत्पादन बढ़ता है और रोजगार के अवसर भी बढ़ते है। साथ जो मजा स्वदेशी सामानों में है वो विदेसी सामानों में नही है। आज हमारे देश मे सभी वस्तुओं का उत्पादन हो रहा है।आज हमारा देश विदेशी वस्तुओ का मोहताज नही है। यह हम पहले से ही मानते है कि जो स्वाद और रंग स्वदेशी चीजो में है वो विदेशी चीजो में नही है। तो हम गर्व से कह सकते है कि स्वदेशी उत्पादन में असली मूलमंत्र यही है कि अपनी चीज अपनी है और अपने देश की है।
- राम नारायण साहू "राज"
रायपुर - छत्तीसगढ़
स्वदेशी उत्पादन में आत्मनिर्भरता का मूलमंत्र छिपा है । इस कथन में कोई दो राय नही है । आज जिस तरह हम चींनी उत्पादों पर निर्भर हो गए है और सुबह उठने से लेकर रात सोने तक चीनी उत्पादों का इस्तेमाल कर रहे है । यही वजह है कि आज चीन हमे आंखे दिखाने में लगा है । अन्यथा आज जिस तरह विश्व मे चीन की फजीहत हो रही है और विश्व मे जिस तरह चीन अलग थलग पड़ा है , इसकी मुख्य वजह चीनी उत्पादों का विश्व भर के बाजारों में राज करना है ।
स्वदेशी उत्पादों से न केवल हम चीनी उत्पादों से मुक्त होंगे बल्कि इनकी देश में खपत व अन्य देशों में निर्यात की मात्रा अपने देश में बेरोजगारी में कमी लाएगी । जिसका सीधा सा असर हमारी जीडीपी पर पड़ेंगा और देश की स्थिति सीधे तौर पर निखरती नजर आयेगी ।
- परीक्षीत गुप्ता
बिजनौर - उत्तरप्रदेश
स्वदेशी उत्पाद के लिए मूल मंत्र के लिए हमे सोचने की आवश्यकता ही नहीं बस ज़रा ‌पीछे मुड़कर गांधी जी, सुभाष चन्द्र बोस,नेहरू आदि के सुझाव वो किए कामों पर उन चरखों, मशीनों पर नजर डालने की आवश्यकता है जो हम सभी पाश्चात्य सभ्यता की मेली चादर ओढ़ अनदेखा कर गए। उस आंधी में शामिल हो गए थे जो निरन्तर चल रही थी फ़ैशन की दुनिया में और हर व्यक्ति अपने रूतबे को ऊंची पहचान दिलाने का तरीका बस विदेशी चीजों के इस्तेमाल ही समझ चुका था ।
 आत्मनिर्भरता का मुल मंत्र बस यही है
   घर की ओर लौट कर
अपने हाथों ‌की कीमत जान
विदेशी ‌वस्तुओं का कर बहिष्कार
आत्मनिर्भरता को दे‌ पहचान
पाश्चात्य की चलती आंधी से
कोने कोने में जमा धूल
की परतें ‌अब ना जमने देना
ले फिर से मां का आंचल 
घर को संवार देना
खादी के फुलों की खुशबू फैला
सनातन धर्म को महका लेना
- ज्योति वधवा"रंजना" 
 बीकानेर - राजस्थान
 स्वदेशी उत्पाद में  आत्मनिर्भरता का मूल मंत्र "समझ से समाधान" और "श्रम से समृद्धि "है। मनुष्य समझ के बिना समाधान नहीं और श्रम के बिना धन  की प्राप्ति नहीं होती अर्थात समृद्धि के भाव में नहीं जी पाता बिना समृद्धि के मनुष्य अभाव में ही जीना होता है। अतः हर मनुष्य समझदारी और समृद्धि के साथ देना चाहता है यही भारत का मुख्य आत्मनिर्भरता का मूल मंत्र है। समझदारी से  समाधान ,समाधान  से सुख और श्रम से समृद्धि, समृद्धि से शांति ,मिलने से ही मनुष्य संतुष्टि के साथ इस संसार में जी पाता है ।यही संतुष्टि के साथ ही है आत्मनिर्भरता के साथ जीना है। स्वदेशी का मतलब है अपने ही देश में अपनी जनता की आवश्यकताओं की पूर्ति हो जाए यह तभी संभव है जब हर व्यक्ति समझदारी से श्रम करके उत्पादन करेगा और उत्पादित वस्तुओं को उपयोग हेतु उस वस्तु की कला और उपयोगिता मूल्य को पहचान कर वस्तु का निर्माण उद्योग के रूप में करेगा।  वास्तु की कला मूल्य का तात्पर्य वस्तु का निर्माण के समय उसकी बनावट पैकिंग उसकी सुंदरता पर है और वस्तु की उपयोगिता मूल्य का तात्पर्य वस्तु की गुणवत्ता से है अर्थात जो भी वस्तु उपयोग के लिए निर्मित की जाती है तो उस वस्तु की दो बातों पर उस वक्त की गुणवत्ता टिकी रहती है एक उसकी सुंदरता और दूसरी उसकी गुणवत्ता अगर कोई भी वस्तु सुंदर भी है और उसकी गुणवत्ता से भरा हुआ है ऐसी वस्तु लोगों के लिए आकर्षित और उपयोगी होता है ।आत्मनिर्भरता का अर्थ है कि हर मानव की मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति और साथ-साथ महत्वाकांक्षा की पूर्ति जो दूरदर्शन दूर गमन दूध श्रवण के रूप में उपयोग करते हैं इसकी पूर्ति अपने ही देश में समझदारी के साथ श्रम से समृद्धि अर्थात आवश्यकता से अधिक वस्तुओं का निर्माण कर लोगों की आवश्यकता की पूर्ति निरंतर होता रहे ऐसी सरकार और जनता को समझदारी के साथ कार्य योजना बनाना होगा सभी सभी की आवश्यकता की पूर्ति हो पाएगी भारत समाधान से सुख आश्रम से समृद्धि के भाव में जिएगा तो शांति का वातावरण भारत में बना रहेगा अतः हर व्यक्ति में समस्या समाधान समाधान शिशु आश्रम से समृद्धि समृद्धि शांति मानव समाज में बना रहेगा तभी भारत को आत्मनिर्भर भारत कहा जाएगा दूसरे देशों पर आश्रित होना नहीं पड़ेगा हमारे देश की धरती साधन संपन्न है।भारत में संसाधन की कमी नहीं है। इस संसाधनों को कैसे उपयोग व्यवस्था के अर्थ में करना है इस पर विचार चिंतन करने की आवश्यकता है। चिंतन समाधान के लिए होता है समाधान सुख संतुष्टि के लिए जिस दिन भारत की जनता सुख शांति के साथ जीता हुआ प्रमाणित करेगा उसी दिन भारत आत्मनिर्भर भारत कहलायेगा यह दिन समझदारी के साथ श्रम से ही संभव है ।इस पर हर जनता को गहराई से चिंतन करने की आवश्यकता ह।ै अतः कहा जा सकता है स्वदेशी उत्पाद का आधार ग्रामीण उत्पादन से उत्पाद और भारत के आत्मनिर्भरता का मूल मंत्र का आधार "समझ से समाधान: "श्रम से समृद्धि "है। स्वदेश की ओर लोटो ,श्रम और सेवा से नाता जोड़ो और आत्मनिर्भर बनो ,यही समय की पुकार है।
- उर्मिला सिदार
रायगढ़ - छत्तीसगढ़
     भारतीय संस्कृति में स्वदेशी उत्पादन का अत्यंत महत्वपूर्ण योगदान था। अपनी संस्कृति की अलग ही पहचान थी, जहाँ  इच्छानुसार विशेष रोजगार परिवारों को मिलता गया, जो जीविकोपार्जन के लिए उपयुक्त था। खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में उनसे बनी वस्तुओं को विदेशी जन मुककंठ से सराहना करते थे तथा अपने साथ लेकर भी जाते थे। शनै:-शनैः परिस्थियों में बदलाव होता गया , आधुनिकता की अंधी दौड़ में रफ्तार से भागने लगे, स्वदेशी उत्पादन का अमूल्य घटता गया, विदेशी उत्पादकों के ऊपर आत्मनिर्भरता की ओर अग्रसर होते गये। छोटी वस्तुओं से बड़ी वस्तुओं को तत्परता के साथ खरीदने लगे। विदेशियों की आय में बढ़ोत्तरी होते गयी। जिसके कारण जनजीवन के साथ ही साथ जीवन यापन में गिरावटें आती गयी और बेरोजगारों का प्रतिशत धीरे-धीरे भारत में बढ़ता जा रहा था और  हतोत्साहित होते जा रहे थे । जब-जब सत्ता परिवर्तित होती हैं, तब-तब उपयुक्त विचारों का जन्म भी हुआ हैं, यह इतिहास के पन्नों में अंकित हुआ हैं। इसी श्रंखला में आखिरकार स्वदेशी उत्पादकों की ओर ध्यानाकर्षण करवाया गया, आत्मविश्वास के साथ आत्मनिर्भरता की ओर जनसमूहों को मूल मंत्र की ओर आकर्षित कर बेरोजगारों को रोजगार मिलता गया,  जिसके परिणामस्वरूप विदेशियों की आय का स्तर गिरता जा रहा हैं और आक्रोश में मदहोश हो गया हैं। आज वर्तमान में आने वाली पीढ़ियों को अपनी विरासत समझ में आते जा रही हैं। ताकि नये-नये संसाधन से उत्पन्न कर उत्पादन किया जा सकें?
- आचार्य डाॅ.वीरेन्द्र सिंह गहरवार 'वीर'
  बालाघाट - मध्यप्रदेश
     स्वदेशी उत्पादन का हाल यह है कि मछली पैदा करने की प्रार्थना करो तो उसमें 'जांज' का फंडा उत्पन्न हो जाता है। जिसे विडम्बना न कहें तो और क्या कहें। क्या जांच उत्पादन से भारत आत्मनिर्भर बनेंगा? क्या मूल मुद्दे से हटने पर आत्मनिर्भरता आएगी?
      जांच पड़ताल की समय सीमा पहले एक सप्ताह, फिर एक माह, और फिर वर्ष पर वर्ष गुजर जाता है और पूरा  जीवन जांच में व्यतीत हो जाता। किन्तु जांच पूरी नहीं होती और विकास धरा का धरा रह जाता है।
     स्वदेशी उत्पादन के लिए विदेशी भ्रष्ट सिस्टम को तिलांजलि देनी अनिवार्य होनी चाहिए। स्वदेशी उपजाऊ भावनाओं और संवेदनाओं की जड़ों को भारत, भारतीय और भारतीयता की पवित्रता से सींचने की अति आवश्यकता है।
    जबकि इसके लिए भारत के लोकप्रिय शिरोमणि प्रधानमंत्री नरेन्द्र दामोदर दास मोदी जी ने 'लोकल के लिए वोकल' बनने का आह्वान किया है और प्रत्येक स्थान या विपत्ति में साथ खड़े होने का विश्वास भी दिलाया है। जो भारत भारतीय और भारतीयता को आत्मनिर्भर बनाने का सबसे सरल मूल मंत्र है।
     यही नहीं उन्होंने ने इसके लिए 20 लाख करोड़ रुपए का पैकेज उपलब्ध कराने की घोषणा भी कर रखी है। जो निस्संदेह स्वतंत्र भारत में पहला इतना बड़ा पैकेज है।
जिससे भारत भारतीय और भारतीयता की आत्मनिर्भरता तय है।
- इन्दु भूषण बाली
जम्मू - जम्मू कश्मीर
स्वदेशी उत्पादन में आत्मनिर्भरता का मूल मंत्र है ‘पूर्ण सहयोग’।  कोरोना आपदा से पूर्व जिस आधुनिक जीवन शैली को हम अपना चुके थे उस पर लाॅकडाऊन के दौरान अंकुश लगे।  समय बीता, अनलाॅक-1 आरम्भ हुआ।  देश की आर्थिक स्थिति को मजबूत करने के लिए स्वदेशी उत्पादन पर जोर दिया जा रहा है, आत्मनिर्भरता पर जोर दिया जा रहा है।  पर हम यह कैसे भूल जायें कि भ्रष्टाचार के मकड़जाल में उलझा भारतीय उत्पादक स्वतंत्र कैसे हो? चीनी उत्पादों का बहिष्कार करने का मुहिम चल पड़ी है। हम चीन में बनने वाले माल से कहीं बेहतर और सस्ता माल बना सकते हैं बशर्ते भ्रष्टाचार का नामोनिशान मिट जाए।  भारतीय उत्पादों में कमी निकालना आसान है, उनके अधिक मूल्यों के बारे में समीक्षा करना आसान है पर यदि यह सोचा जाए कि भारतीय उत्पादकों को भ्रष्टाचार का सामना करना पड़े, उस पर अनेक सरकारी दबाव और असहयोग हो, सिर्फ भाषणों में उसकी मदद करने की बातें हों तो समझ में आये।  हम बात करते हैं कि हमारे पारम्परिक उद्योगों को बढ़ावा मिले।  हाथकरघा व हस्तशिल्प को बढ़ावा देने की बात की जाती है।  एक जानकारी के अनुसार दिल्ली में बहुत से बुनकर हैं जो खुद भी बेकार हो रहे हैं और न ही उनकी पीढ़ी इस कला को अपनाने को तैयार है क्योंकि सरकारी अड़चनें हैं। मास्टर प्लान उनकी राह में आड़े आता है। सरकारी उद्यमों से यार्न खरीदना महंगा पड़ता है जबकि बाहरी स्रोतों से सस्ता उपलब्ध होता है। सरकारी उद्यमों से नहीं लेते तो उन्हें छूट नहीं दी जाती। यह तो मात्र एक उदाहरण है। भारतीय उत्पादक को कदम कदम पर रिश्वत देनी पड़ती है।  वो अपनी जेब से तो देगा नहीं, उसकी भरपाई के लिए वह उसे अपने उत्पादों की लागत में जोड़ेगा जिससे उत्पाद का मूल्य बढ़ जायेगा पर क्योंकि बाजार में स्पर्धा है तो उसे गुणवत्ता गिरानी पड़ेगी जिससे मूल्य कम हो सकें। देशवासी फिर से चीनी या आयातित उत्पादों की ओर आकृष्ट होंगे जो सस्ते होने के साथ गुणवत्ता में भी बेहतर होते हैं। अनेक वस्तुओं के आयात पर डम्पिंग ड्यूटी लगाई जाती है।  पर यह नहीं हो पाता कि भारतीय उत्पादकों और देश को एक भ्रष्टाचारमुक्त वातावरण दिया जाये। इस स्थिति में कोरोना से भी भयंकर वायरस भ्रष्टाचार को समूल नष्ट करना होगा। फिर देखिए स्वदेशी उत्पादन में आत्मनिर्भरता कैसे नहीं आती।  भारतीय उत्पाद न केवल देश में अपितु विदेशों में भी लोकप्रिय होंगे। हमारे पास कौशल की कमी नहीं है। हमारे लाखों छात्र भारत छोड़कर विदेशों में क्यों बसना पसंद करते हैं, ज़रा सोचिए।  स्वदेशी उत्पादन में आत्मनिर्भरता का मूल मंत्र केवल ‘भ्रष्टाचारमुक्त सहयोग’ है, और कुछ नहीं। 
- सुदर्शन खन्ना
दिल्ली
लाकडाऊन इसके कारण जो वैश्विक अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचा है...इसका असर अगले डेढ़-दो वर्षों तक दिखेगा...क्योंकि मार्च-अप्रैल-मई और अब संभवत: पूरा जून भी तैयार और कच्चे माल के मान से निर्माण-उत्पादन, निर्यात-आयात, बिक्री-खरीदी, भंडारण और निष्कारण जैसे बिंदुओं की दृष्टि से शून्य रहा है और रहेगा...ऐसे में यह तीन-चार माह की तालाबंदी देश-विदेश की अर्थव्यवस्था को लंबे समय तक पंगु बनाकर लडख़ड़ाकर चलने को मजबूर कर चुकी है...तभी तो अमेरिका से लेकर अन्य तमाम कोरोना प्रभावित देशों में बड़े-बड़े आर्थिक एवं बेलाउट पैकेज के जरिए आर्थिक मंदी को निष्प्रभावी करने के भरसक प्रयास समय पूर्व ही प्रारंभ कर दिए थे... अमेरिका, चीन, यूरोप आदि देशों में हजारों-लाखों में नौकरियां गंवाते लोग, कंपनियों में छंटनी का खेल वैश्विक अर्थव्यवस्था को वेंटीलेटर पर होने का संकेत कर रही है...ऐसे में विश्व के सामने 'कोढ़ में खाज , की भांति कोरोनाकाल ने रोगरूपी महामारी के साथ वैश्विक महामंदी का दुराह यक्ष प्रश्न खड़ा कर दिया है...इससे विकसित, विकासशील यहां तक कि तीसरी-चौथी दुनिया की तमाम छोटी-बड़ी अर्थव्यवस्था प्रभावित हुए बिना नहीं रहेगी...हालांकि कोरोनाकाल का यह पक्ष भी नहीं भूलना चाहिए कि इस महामारी ने महामंदी के जरिए अनेक तरह के भीमकाय अवसरों को देश-दुनिया के सामने लाकर खड़ा कर दिया है...जरूरत है समय के मान से आर्थिक नीतियों, निवेश कार्यक्रमों, गरीबी मिटाने, रोजगार बढ़ाने, उत्पादन-निर्यात के साथ-साथ निर्यात-खपत के बीच संतुलन बनाकर जो देश अपनी अर्थव्यवस्था को पोषण देने का आत्मविश्वास के साथ निर्णय लेगा, चुनौतियों का सामना अवसर मानकर करेगा, वही अपने को आगे बढ़ा पाएगा...
भारत के संदर्भ में कोरोनाकाल जितनी बड़ी चुनौती है, उतना ही बड़ा अवसर भी है...क्योंकि भारत विकासशील राष्ट्रों की श्रेणी के बावजूद बड़ी अर्थव्यवस्था में शामिल था और रहेगा...अत: कोरोनाकाल का संकटपूर्ण दौर भारत के लिए अर्थव्यवस्था के मान से एक कदम पीछे लेकर दो कदम आगे बढ़ जाने का स्वर्णिम अवसर है...क्योंकि भारत ने कोरोना जैसे मिलते-जुलते कितने ही संकटों से सामना करते हुए अर्थव्यवस्था को नया आयाम देने का समय-समय पर इतिहास रचा है...2008 की वैश्विक महामंदी को दुनिया के लिए 1931 की वैश्विक आर्थिक महामंदी के समान बताया जा रहा था...उस दौर में अमेरिका में 1500 से अधिक बैंकें दिवालियां हुई थी... चीन में डेढ़ वर्षों तक बड़े उद्योगों-कंपनियों में हड़तालें चली...लेकिन भारत की अर्थव्यवस्था निष्प्रभावी रही...यही तो हमारी वास्तविक ताकत है...क्योंकि भारत के पास आज सर्वाधिक युवा शक्ति है...जनसंख्या के रूप में विश्व की सर्वाधिक युवा आबादी वाला राष्ट्र भारत है...यहां की कार्यक्षमता एवं रोग-प्रतिरोधक क्षमता का लोहा तो कोरोनाकाल में देखने को मिल ही चुका है...जब अमेरिका-चीन और यूरोपीय देशों के भारी-भरकम चिकित्सकीय संसाधनों की उपलब्धता के बावजूद हजारों मौतें हुई...वहीं भारत ने कोरोना से लड़ते हुए अपनी रोग प्रतिरोधक क्षमता का परिचय दिया...अभी तक भारत में सवा लाख कोरोना संक्रमित मामले हैं...और इसके उलट आधे से अधिक लोग कोरोना को हराकर स्वस्थ होकर घर पहुंच चुके हैं...अत: यही बात हमारे उद्योगों, कंपनियों, निर्माण इकाइयों, कृषकों, दूध उत्पादकों, कारोबारियों, श्रमिकों, मजदूरों के लिए प्रेरणा संकल्प है कि वे भी तालाबंदी के प्रभावों को जल्द से जल्द परास्त करके एक कदम पीछे खींचकर दोगुने छलांग को तैयार हैं..
कोरोनाकाल के गर्भ से उपजे इस आत्मनिर्भर भारत अभियान के समक्ष संभावनाएं तो असीम हैं...जिनके लिए सरकार ने रणनीति प्रस्तुत कर दी है...ताकि अर्थव्यवस्था गतिमान हो सके..,लेकिन चुनौतियां भी कम नहीं हैं...जब तक केंद्र सरकार व राज्यों का देशी उत्पाद, देशी तकनीक एवं देशी हाथों से आकार लिए प्रत्येक प्रकल्प के लिए वृहद योजना एवं विश्वास निर्मित नहीं होगा..,तब तक स्वदेशी की बात करना सिर्फ जुगाली ही माना जाएगा...केंद्र की मोदी सरकार ने महात्मा गांधी के खादी ग्रामोद्योग की वास्तविक चिंता की तो उसके नतीजे आसमानी हैं...2004 से 2014 तक 6.48 और 6.62 फीसदी कारोबार करने वाली खादी 2015 से 2019 के बीच क्रमश: 25.52 और 34.68 फीसदी वार्षिक वृद्धि दर हासिल कर रही है...5000 करोड़ का कारोबार खादी के नाम है...जब इस सर्वाधिक महंगे देशी ब्रांड को इतना हाथोंहाथ प्रतिसाद मिला तो भारत के अन्य उत्पादों को सरकार का सहयोग-संरक्षण क्यों नहीं मिल सकता...खादी की भांति अन्य उत्पादों को भी प्राथमिकता में रखना होगा...तभी ये भारतीय लोकल ब्रांड (स्थानीय) ग्लोबल हो सकेंगे...इसके लिए देशी पर्यटन को भी व्यापक बढ़ावा मिले...जब अंतरिक्ष तकनीकें, मिसाइल, पनडुब्बी, सामरिक हथियार स्वदेशी हो सकते हैं तो घूमने-फिरने से लेकर खानपान और रहन-सहन और व्यवहार तक को स्वदेशी बनाना होगा...
भाषण देकर दूर से पैकेज का माया जाल फैला कर काम नहीं चलेगा अपना अस्तित्व और अपनी शाक्ति का ही नही अपने कौशल का भी लोहा विश्व में स्थापित करना है तो आत्मनिर्भर बनना है कहते है कोंशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती ! 
और भारत के लोग कर्मणता वाले है , हर काम करने को तैयार 
सरकार कुछ हाथ बढ़ा कर सहारा दे भारत की जनता उन्हें वो कर  दिखायेगी जो शायद उन्होने सोचा भी न हो । 
आत्मनिर्भर बनने के लिये सबने मिल कर सहयोग करना होगा सरकर आर्थिक मददत करे उत्पादन करनेवाले उत्पादन करे व उपभोक्ता उसे उपयोग करें जब सब मिलेंगे अपने अपने मोर्चे इमानदारी से सम्भाल लेंगे तो भी फिर हमें आत्मनिर्भर बनने से कोई रोक नहीं सकता विश्व भी हमारी ताक़त का क़ायल हो जायेगा । 
बातें कम काम ज्यादा , करना होगा !
- डॉ अलका पाण्डेय
मुम्बई - महाराष्ट्र
स्वदेश उत्पादन से ही आत्मनिर्भरता संभव
स्वेदशी उत्पादन अपने आपको, राज्य को और देश को मजबूत बनाने में बहुत ही सार्थक भूमिका निभाता है। इससे देश की अर्थव्यवस्था मजबूत होती है। अभी कोरोना काल चल रहा है, जिससे पूरी दुनियाभर में तबाही मची हुई है। विश्व मे 3 लाख से भी अधिक लोग मर चुके हैं। विश्व का सुपर पावर देश अमेरिका सबसे अधिक प्रभावित हुआ। इस परिस्थिति में अमेरिका जैसे महाशक्तिसाली देस को भी भारत से सहयोग मांगना पड़ा। वो है कोरोना की दवा। भारत मलेरिया आदि की दवा का उपयोग कर कोरोना मरीज़ों की जान बचा रहा है। भारत ने इसकी दवा को अमेरिका सहित कई देशों को निर्यात किया। यह दवा स्वदेशी ही है। भारत आज की तारीख में स्वदेशी निर्माण में बहुत आगे निकल चुका है। भारत के 
पास आज लड़ाकू स्वदेशी विमान है जो युद्ध मे दुश्मन को धूल चटा सकता है। जैमिनी अकादमी द्वारा " आज की चर्चा " का विषय है कि स्वदेशी उत्पादन में आत्मनिर्भरता का मूल मंत्र क्या है ? इसका जबाव में दो उदाहरण पहले ही दिया है, जिसमे इस कोरोना काल में भारत ने अपने यहां बने स्वदेशी दवा अमेरिका सहित कई देशों को निर्यात किया। इसके साथ ही स्वदेशी लड़ाकू विमान बना लिया। यह देश की आत्मनिर्भरता की तरफ उठा सार्थक कदम है। स्वदेशी उत्पादन में जहां तक आत्मनिर्भरता का मूल मंत्र की बात है तो अभी प्रधानमंत्री 20 लाख करोड़ का पैकेज दिया है उसमें स्वदेशी उत्पादन को बढ़ावा देने  वाला ही है। इस पैकेज में लघु उधोग, कुटीर उधोग, सूक्ष्म उद्योग को मजबूत बनाने पर बल दिया गया है। इसमे किसानों के लिए भी राहत दी गई है जिससे देश मे फसलों का पैदावार अच्छा हो। स्वदेशी उत्पादन में योग गुरू रामदेव बाबा पतंजलि के उत्पाद को भी। दुनियां के देशों ने लोहा माना है। भारत चीनी उत्पादन में भी मजबूत है। प्रधानमंत्री मोदी ने 20 लाख का राहत पैकेज देकर स्वदेशी उत्पादन को मजबूत बनाकर आत्मनिर्भरता का मूल मंत्र दिया है। इससे देश की अर्थव्यवस्था को मजबूती मिलेगी। इसके साथ ही देश के युवा, वर्ग, किसान और मजदूर वर्ग आत्मनिर्भर होंगे।
- अंकिता सिन्हा लेखिका
जमशेदपुर - झारखंड
स्वदेशी उत्पादन में आत्मनिर्भरता का मूल मंत्र:- हमारे प्रधानमंत्री मोदी जी एक स्लोगन दिए हैं *लोकल लो, वोकल बनो*यानि
स्वदेशी उत्पाद खरीदें उसके उपयोग करो एवं प्रचार करो।
* स्वदेशी अपनाएं देश बचाएं*
अगर सभी भारतीय 90 दिन तक कोई भी विदेशी सामान नहीं ख़रीदे तो भारत दुनिया का दूसरा सबसे अमीर देश बन सकता है सिर्फ 90 दिन में भारत ₹2 रुपया $1 के बराबर हो जाएगा।
आपको याद होगा पिछले दीपावली में चीन के लाइट हमारे भारतीय लोग नहीं खरीदें। एक अभियान की तरह सभी के मन में बैठ गया था जिससे 20% चीन का सामान बर्बाद हुआ इस पर चीन बोखला गया था। मेरे प्रिय जनता को समझना होगा फर्क पड़ता है क्योंकि हमारी आबादी बहुत बड़ा है। हम लोग संकल्प ले विदेशी सामान नहीं कर देंगे।
# समय आ गया है अब, मेरे भाइयों जागो#
यह महामारी आकर संकेत दे दिया है, स्वदेशी वस्तु को अपनाओ। अपना,समाज,देश का आर्थिक उन्नति करो।
मैं एक स्टोरी पड़े थे उसका कुछ अंश प्रस्तुत कर रहे है। मिस्टर मिखयेल ग्रोवेचेव के ऐटोबायोग्राफी पुस्तक में वर्णन था उनका विद्यार्थी जीवन यूरोप में गुजरा था उनके दो जापानी मित्र थे। उस समय दूसरे विश्व युद्ध समाप्त हुआ था और जापान पूरे के पूरे तहस-नहस हो गया था। इसलिए दो विद्यार्थी आए थे पढ़ने के लिए वह लिखने के लिए अपने देश से पेंसिल लेकर आए थे पेंसिल का लीड बहुत कमजोर था जल्द ही टूट जाता था उसे बार-बार शार्पनिंग करना पड़ता था। जापानी के अन्य मित्र सुझाव दिए क्यों नहीं तुम इंग्लैंड का बना हुआ पेंसिल इस्तेमाल कर प्रयोग करते हो। इस पर दोनों के आंख में आंसू आ गया। और उसका प्रतिक्रिया यह हुआ कि आत्मविश्वास के साथ बोला मैं अपने देश के हर वस्तु को प्रयोग करेगें। उसने अपने मित्र को बोला एक दिन मेरे देश के हर वस्तु पूरे विश्व में छा जाएगा। यह है हर नागरिक आत्मविश्वास के चलते आज जापान आगे है।
इस कहानी से ही सीख मिलता है आत्मविश्वास के साथ स्वदेशी अपनाओ और देश के विकास के पथ पर ले चलो।
- विजेंयद्र मोहन
बोकारो - झारखंड
स्वदेशी का मंत्र आजादी के समय भी कारगर साबित हुवा था ओर आज भी हो सकता हैं जब जब देश पर कोई संकट आता हैं स्वदेशी का ही मंत्र काम आता हैं इसी लिये कहता हुँ कल भी आज भी कल भी केवल ओर केवल स्वदेशी उत्पादन का उपयोग देश को सबल प्रदान करता हैं स्थानिय रोजगार बढाता हैं जीससे बाजार में तरलता रहती हैं हर हाथ में पैसा होता हैं कुछ स्वदेशी वस्तुऐं विदेशी वस्तुओं से मंहगी हो सकती हैं पर उपयोगीता एव टिकाउपन स्वदेशी की ही ज्यादा हैं भारत में बेरोजगारी की बढी समस्या को लघु उदयोगों से दुर किया जा सकता हैं ओर अधिक रोजगार पैदा हो सकते हैं भारत अत्मनिर्भर हो सकता हैं।
- कुन्दन पाटिल
 देवास - मध्यप्रदेश
स्वदेशी उत्पादन में आत्मनिर्भरता का मूल मंत्र है स्वदेशी उत्पादन और उन उत्पादों का प्रयोग। यह तभी संभव है जब प्रत्येक व्यक्ति स्वदेशी उत्पादों का उपयोग करें और स्वयं भी कोई स्वदेशी उत्पाद के कार्य में लगा हो। स्वदेशी उत्पाद के प्रयोग से देश का धन बाहर नहीं जाएगा। स्थानीय लोगों को रोजगार के साधन उपलब्ध होंगे। स्वदेशी वस्तुओं का प्रयोग देश को आत्मनिर्भर बनाएगा। इसका आर्थिक के साथ साथ एक दूसरा पहलू भी है मानसिक लाभ। मानसिक रुप से भी सबलता होगी कि हम किसी विदेशी उत्पाद पर निर्भर नहीं। इससे हमारे परंपरागत उत्पादन कार्यों को सीखने में और उनको करने में बच्चे भी रुचि लेने लगेंगे। अपने उत्पादन कार्य को अपनाने से पीछे कोई नहीं हटेगा क्योंकि उसके उत्पाद की खपत बाजार में आसानी से होगी। हर उत्पादक के हाथ में उसके उत्पादन की बिक्री का धन होगा। इससे बड़ी आत्मनिर्भरता भला और क्या होगी ? आजादी के आंदोलन में स्वदेशी के प्रभाव को देश ने पहले महसूस किया ही है। अब एक बार फिर वक्त ने अंगड़ाई ली है। तो देश को आत्मनिर्भर बनाने के लिए बढ़ावा दे स्वदेशी उत्पादों को।
 - डॉ.अनिल शर्मा 'अनिल'
धामपुर - उत्तर प्रदेश
कोरोना कि मार से  पूरे विश्व का व्यापार  चौपट हुआ है ।इसी प्रलय में सृजन अंकुर भी  छिपा है । महात्मा गांधी जी ने 1942 में विदेशी कपड़ों की ह थी । स्वदेशी को अपनाया था । 
 भारत के लोग पाश्चात्य  की संस्कृति से इतना प्रभावित हुआ कि विदेशी हर सामग्री को अपनाने लगा । 
भारत जब सोने की चिड़िया था , तब सारा उत्पादन भारत में ही होता था । आत्मनिर्भर भारत था । 
 स्वदेशी तकनीक ही भारत को आत्मनिर्भरता की ओर ले  जाएगी । हमारे प्रधानमंत्री मोदी जी ने यह लक्ष्य आत्मनिर्भर भारत बनाने का भारतवासियों को दिया है , जिससे देश की अर्थव्यवस्था मजबूत  होगी । देश के  नवनिर्माण , विकास  , स्वदेशी उत्पादन के लिए स्वदेशी प्रद्योगिकी ही आत्मनिर्भरता का मूलमंत्र है ।
  5 साल से मोदी सरकार ने  देश को आत्मनिर्भर भारत बनाने की कोशिश दिखाई देती है ।  भारत का खादी ग्रामोद्योग  का  उत्पाद की बिक्री भी बड़े पैमाने पर होती है ।अब इस इच्छाशक्ति से देश की अर्थव्यवस्था पटरी पर आएगी । 
  कोरोना काल में भारत मॉस्क , मेडिकल किटस , वेंटिलेटर आदि में आत्मनिर्भर हुआ है।
आत्मनिर्भर के लिए प्रधानमंत्री मोदी जी ने भारतवासियों को  लोकल चीजों  से वोकल और वोकल से ग्लोबल बनने का साहस भरा है । जो भारत को आत्मनिर्भर बनने की ओर इशारा करता है ।
इसके लिए सरकार को बुनियादी ढाँचे की जैसे बिजली , पानी , जमीन में सुधार की आवश्यकता है । तभी भारत के करोड़ों गरीब , वंचित , मजदूर , श्रमिक फिर से स्थानीय कामों के लिए खड़े ही सकेंगे । 
- डॉ मंजु गुप्ता 
 मुंबई - महाराष्ट्र
स्वदेशी उत्पान में आत्मनिर्भरता का मूल मंत्र है। स्वयं के द्वारा उत्पादित अथवा अपने देश में निर्मित चीजों का अत्यधिक उपयोग। ऐसा करने से हमारे घरेलू उद्योग को बढ़ावा मिलता है। जैसे जहां उपलब्ध हो भरसक प्रयास करना चाहिए कि अपने यहां के स्थानीय विक्रेता से आम उपभोक्ता वस्तुओं की खरीददारी करें।दूध फल अनाज इत्यादि यदि उपलब्ध हो तो सीधे उत्पादन से जुड़े लोगों से खरीदें। डिजिटल मार्केटिंग का बहिष्कार करना चाहिए। ये विदेशों की देन है। चुकी जब डिजिटल माध्यम से वस्तुएं खरीदेंते हैं।तब उत्पादन का अधिक लाभांश वे कम्पनियां ले जाती है जो इस देश की नहीं है। इससे हमारे स्थानीय व्यापारी का नुक़सान होता है। जितना अधिक अपने देश के फुटकर विक्रेता से जुड़ेंगे यकीन मानिए देश का पैसा देश में ही रहेगा जिससे हमारे देश की अधिक उन्नति होगी। हमें यह भी प्रयास करना चाहिए कि कुछ वस्तुएं जिनके बारे में हम जानते हैं। उन्हें स्वयं ही निर्मित या उत्पादित करें। महात्मा गांधी जी ने अपने देश को कपड़ा उत्पादन के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने के उद्देश्य से सूत कातने का उपक्रम शुरू किया था। जिससे खादी ग्रामोद्योग को बढ़ावा मिला। कभी ऐसा भी समय था जब हम दूसरे देशों से आयातित कपड़े पहनते थे। शुद्ध खादी का कपड़ा बहुत ही आरामदायक होता है।इसे सभी मौसम में पहना जा सकता है। कभी नमक का उत्पादन भी नहीं होता था। नमक के लिए महात्मा गांधी जी ने नमक सत्याग्रह आंदोलन की शुरुआत की थी।जमीन के ऊपर उगे "उसर" धरती पर जो कहीं कहीं सफेद पाउडर नुमा देखा होगा उससे सर्वप्रथम नमक बनाया गया था। उसके बाद समुद्र के खारे पानी पर जो झाग होता था उससे भी सबसे पहले गुजरात में नमक उत्पादन की शुरुआत हुई थी। ठीक ऐसे ही हम अपने हिस्से का यदि सक्षम हैं तो खाने पीने की चीजों का उत्पादन करें तो विदेश से आयातित चीजों पर अधिक निर्भर नहीं रहना पड़ेगा।
इससे हमारे खान पान में बदलाव आएगा। पहले की अपेक्षा अधिक स्वस्थ होंगे। स्वदेशी अपनाएं आओ मिलकर अपने देश को आत्मनिर्भर बनाएं।
- भुवनेश्वर चौरसिया "भुनेश"
गुड़गांव - हरियाणा
कोरोना  काल ने देश दुनिया की अर्थव्यवस्था को बुरी तरह से डामाडोल कर दिया है इसमें कोई दो राय नहीं है ।यूरोपीय देशों और अमेरिका  के साथ ही चीन में बड़ा निवेश कर चुकी बाहरी कंपनियां आर्थिक महामंदी के दौर से गुजर रहे हैं ।भारत के संदर्भ में कोरोनाकाल जितनी बड़ी चुनौती  है उतना ही बड़ा अवसर भी, क्योंकि भारत विकासशील देशों की श्रेणी के बावजूद बड़ी अर्थव्यवस्था में शामिल था और रहेगा भी ।आत्मनिर्भर भारत अभियान का मूल मंत्र तो सिर्फ स्वदेशी ही है ,क्योंकि जब स्वदेशी को पूरा पूरा मान सम्मान और अपनत्व का भाव मिलेगा तो भारत की अर्थव्यवस्था का पंख लगाकर उड़ान भरने से कोई  रोक नहीं सकता ।
आत्मनिर्भर भारत अभियान के इस आर्थिक पैकेज का पूरा केंद्रबिंदु स्वदेशी  ही है अर्थात विश्व में भारत की जो शाश्वत पहचान रही है उसके पुनर्जागरण का यह अध्याय है जिसका कोरोना काल निमित्त मात्र बना है। जिससे भारत में स्थानीय उत्पादों को वैश्विक उत्पाद बनाने की रणनीति शामिल है , क्योंकि यह आर्थिक पैकेज भारत के उन  ग्रामीण उद्योग, कुटीर इकाइयों, हस्तशिल्प, हथकरघा जैसे असंख्य हाथों से उस हुनर को नया आयाम देने का प्रयास है। यानी भारत का उस देसी कला, देसी उत्पाद और हर उस देसी सामग्री को राष्ट्रीय ही नहीं अंतरराष्ट्रीय बनाने का उसका इंटरनेशनल ब्रांड तक पहुंच बनाने एवं बढ़ाने की नीति का ही हिस्सा है, जिसको आत्मसात कर गर्व करने उसका प्रचार करके उसे हर स्थिति में बढ़ावा देने की पहल है।जो अपने घर से यानी भारत  से ही भारतीयों को भारतीय उत्पादों के लिए करनी होगी ,फिर वे कृषि कृषक से जुड़े खाद्य पदार्थ हों,फल फूल हो या फिर पहनने के कपड़े , उपयोग में आने वाले उत्पाद जूते जैकेट से लेकर गेहूं तक या फिर इलेक्ट्रिक, इलेक्ट्रॉनिक उत्पाद, शैक्षणिक गतिविधियां, उपचार की तकनीकी या फिर पर्यटन का क्षेत्र हो ।
 खरीदी बिक्री की देशी तकनीक हो।20 लाख करोड़ रुपये के  आर्थिक पैकेज का इस्तेमाल   भारत को आत्मनिर्भर बनाने के लिए होगा जिससे भारत का रूप ही बदल जाएगा ।
खादी की भांति अन्य उत्पादों को प्राथमिकता में रखना होगा ।भारत विकासशील देशों की श्रेणी के बावजूद अर्थव्यवस्था में शामिल था और रहेगा भी । यह संकट पूर्ण दौर भारत के लिए अर्थव्यवस्था के मान से एक कदम पीछे ले कर दो कदम आगे बढ़ जाने का अवसर है ,क्योंकि भारत ने कोरोनावायरस  जैसे मिलते जुलते संकटों के दौर का सामना करते हुए अर्थव्यवस्था को नया आयाम देने का समय समय पर इतिहास रचा है ।चीन और अमेरिका में इससे पहले भी बैंक दिवालिया हो चुकी थी ,लेकिन भारत की अर्थव्यवस्था  निष्प्रभावी रही थी। यही तो हमारी वास्तविक ताकत है, क्योंकि भारत के पास आज सर्वाधिक युवा शक्ति है ।यहां की कार्य क्षमता एवं रोग प्रतिरोधक क्षमता का लोहा तो लोग देख चुके है । 
अतः देशी उत्पादों को अब  प्राथमिकता में रखना होगा।तभी स्थानीय ब्रांड ग्लोबल हो सकेंगे, इसलिए देसी पर्यटन को भी व्यापक बढ़ावा मिले ,जब अंतरिक्ष तकनीकें, मिसाइलें, पनडुब्बी ,सामरिक हथियार भी स्वदेशी हो।
घूमने फिरने से लेकर खान-पान, रहन-सहन और व्यवहार तक को स्वदेशी बनाना होगा यही मूल मंत्र स्वदेशी उत्पादन में  भारत की आत्मनिर्भरता का ,पूर्णता  का, स्वतन्त्रता का ।
-  सुषमा दीक्षित शुक्ला
लखनऊ - उत्तर प्रदेश

" मेरी दृष्टि में " सभी को आत्मनिर्भर होने के लिए बहुत कुछ करना आवश्यक है । स्वदेशी और आत्मनिर्भर दोंनो अलग - अलग सोच है । फिर भी एक दिशा में चल कर बहुत कुछ हासिल किया जा सकता है । सर्वप्रथम सभी के लिए रोजगार हासिल होना चाहिए । तभी कुछ सफलता हासिल हो सकती हैं ।
                                                        - बीजेन्द्र जैमिनी 
सम्मान पत्र 





आदरणीय भाई बीजेन्द्र जी  
नमन 
आज तो बर्थ डे बॉय बीजेन्द्र भाई का विशेष दिन है , जन्मदिन के पावन पर्व पर हार्दिक शुभकामनाएँ ।  खूब फलो - फूलो ।
  संकल्पों से खूब उन्नति , शिखर छुओ । 

    जन्मदिन की खुश्बू 
भेजूँ जन्मदिन पर अनुभूति उपहार  ,
करूँ शुभकामनाओं का इजहार।
हो आशाओं की मंजिल बुलंद  ,
करे सारे सपनों  को साकार ।
लबों पर  छाए ऐसी  मुस्कान ,
जैसे अपनों का बरसता प्यार ।
जीवन के दुर्गम  पथ पर तुम को ,
 मिले  सदा सफलता सदाबहार ।
दुआओं की दौलत से ' मंजू ',
उतार बुरी  बलाएँ बार -  बार।
- डॉ मंजु गुप्ता 
वाशी -  नवी मुम्बई 

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