क्या गांव की ओर चल पड़े हैं भारतीय उद्योग ?

भारतीय अर्थव्यवस्था में काफी बदलाव आ रहे हैं । रोजगार का भी नज़रिया बदल रहा है । फिर भी वर्तमान में अर्थव्यवस्था में गांव को प्राथमिकता दी जाने लगीं है बाकी तो भविष्य के गर्भ में क्या है । किसी को भी कुछ नहीं पता है । यहीं " आज की चर्चा " का प्रमुख विषय है । अब देखते हैं आये विचारों को : -
आज का प्रश्न बहुत विचित्र है । गाँवो में उद्योग  पनपाने के लिए इतनी चुनैतियाँ है कि उनमें से कुछ का तो हल ही नही है , और जो बची  उनमें प्रतिदिन का खर्च उत्पाद मूल्य से कई गुना हो जाता है । इसीलिए अधिकतर उद्योग नगरों ,शहरों  या कस्बो के सुविधा पूर्ण जगहों में स्थापित किये जाते है । 
     गाँव का  मुख्य उद्योग खेती है जिसे वह चुनौतियों के साथ भी करते रहते है । 
     हैंडलूम , मक्खीपालन , मत्स्यपालन , देशी शराब आदि उद्योग तो गाँवो में पनप सकते है लेकिन बर्तन ,कांच का समान , चीनी   या कोई और इस उद्योग जिसमें बड़ी बड़ी मशीनों की आवश्यकता पड़ती हो उनका गाँवो में  स्थापित करना बहुत चुनौतीपूर्ण है । इसलिए उद्योग कहीं भी हो ,आज की स्थिति में उनपर काले बादल मंडरा रहे है ।
      लॉक डाउन के दौरान मजदूरों की जो दुर्गति हुई है ,जितने संकटो के सामना उन्होंने किया है उसे देखते हुए नही लगता कि अब किसी राज्य का मजदूर किसी अन्य राज्य में जा कर मजदूरी करने की हिम्मत भी करेगा ।
      हाँ , अब की स्थिति में गाँवो शायद कुटीर उद्योग जैसे उद्योग पनप सकते है ।
- सुशीला जोशी
मुजफ्फरनगर - उत्तर प्रदेश
लॉक डाउन में सबसे ज्यादा तकलीफ प्रवासी मज़दूरों को हुई है।लाखों मज़दूर अपने काम धंधे  को बंद देखकर वापस अपने गांव लौट गए हैं या जा रहे हैं।अब गाँव मे सिर्फ खेती बाड़ी या छोटी मोटी मज़दूरी से इनका परिवार समेत कैसे गुजरा होगा। 
आज कोरोना वायरस से जो विश्व व्यापी क्षति हुई है उससे चीन की साख बहुत खराब हुई है। जिसने चीन के निर्यात पर बुरा असर डाला है। अब विश्व को भारत एक विकल्प के रूप में नज़र आ रहा है। सरकार भी इसके लिए नीतियां बना रही है कि मज़दूरों को अपने क्षेत्र में काम मिल जाए। तो इडके लिए भारतीय उद्योगों को गाँव का रूख अपनाना होगा और वहाँ नए नए उद्योग लगाने होंगे।
- सीमा मोंगा
रोहिणी -  दिल्ली
अभी यह कहना जल्दबाजी होगा कि उद्योग गांव की ओर चल चुके हैं। लाॅकडाउन की वजह से जो मजदूर गांव लौटे हैं। इसमें कोई शक नहीं कि वे अपने गांव में काम धंधे की तलाश नहीं करेंगे। यदि उन मजदूरों की जगह पर स्वयं को रखकर देखेंगे तब ज्यादा समझ सकेंगे। गांव में भी स्वरोजगार की कमी नहीं है। जो गांव दुनिया भर के लोगों का पेट पालने में सहायक है। वहां कृषि आधारित उद्योग स्वत: फल फूल रहे हैं। अभी गांव तक उद्योग की पहुंच नहीं है। लेकिन उद्योग से जुड़े उत्पाद जिस तरह गांव में उपलब्ध है जैसे साबुन तेल कपड़े इत्यादि ठीक उसी तरह गांव में उत्पादित सब्जी फल दूध और खाने पीने की अन्य वस्तुएं। तो वहां उद्योग पहले से ही पहुंचा हुआ है।बस सरकार को चाहिए कि ग्रामीण कुटिर उद्योग को बढ़ावा देने के लिए ग्रामीण विकास से जुड़े विभाग अधिक ध्यान दें। तब गरीबों की भी उन्नति होगी। गांव के लोग किसी न किसी उद्योग से पहले से ही जुड़े हुए हैं। ज्यादा सोचने समझने की बजाय अधिक ध्यान देने की सख्त जरूरत है।पलायन रूकेगा तो शहरों में भी भीड़ कम होंगे। फायदा ही होगा नुकसान कुछ नहीं।
- भुवनेश्वर चौरसिया "भुनेश"
गुड़गांव - हरियाणा
श्रमिकों के पास हुनर और मेहनत की कीमती दौलत है ,वे ही उद्योग जगत के खेवनहारहैं।गाँव की ओर जाते श्रमिक ,इस  बात के द्योतक हैं कि बड़े शहरों में फैले उद्योग सिमटने की ओर बढ़ रहे हैं ।निवेशकों के सामने भी समस्यायें हैं कि बंद उद्योगों में वे वेतन की पूर्ती कैसे करें ।कच्चे माल को लाने में भी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है ।कोरोना काल में हमने T.V.पर देखा और समाचार पत्रों में पढ़ा कि कामगारों कि कितनी दुर्दशा हुई ।पेट भरने के लिए उन्हें रोटी नहीं नसीब हुई ।पेट की भूख केआगे हौंसलों ने जबाब दे दिया ।स्टेशन पर भोजन सामाग्री लूटने का दृश्य तो हृदय को चीर देने वाला था ।जब मशीनों का संचालक ही न रहेगा ,मशीनें स्वयं तो नहीं चलेंगी ।निर्माण कर्ता ही जब गाँव कीओर  पलायन कर रहा है शहरी उद्योगों  को तो क्षति होगी ही ।अब बहुतेरे श्रमिक स्वरोजगार को अपनायेंगे ।सच्चाई तो यही है कि अब उद्योग जगत में कामगारों काआभाव होगा । अब श्रमिक स्वयं को अपने गाँव में महफूज़ समझेगें ।उद्योग जगत की तरफ लौटने में उनको वक्त लगेगा ।
- कमला अग्रवाल
गाजियाबाद - उत्तर प्रदेश
अगर सही मायनो में देखा जाये तो यह सही है।गांवों की ओर लौटने का मतलब है अपनी जड़ों की तरफ लौटना।अपने कुटीर उद्योगों को मजबूत करना।स्वरोजगार सृजन करना।आत्मनिर्भर बन ना।
आज हम लोग नौकरी करने में गर्व का अनुभव करते हैं।जबकि ऐसा नही होना चाहिए।अगर हम खुद रोजगार ढूढ़ेगे तो हमारा ही भला होगा।लेकिन अगर हम उद्योग लगाएंगे तो हम कई लोगो को रोजगार दे सकने की स्थिति में होंगे।हम खुद भी बेहतर अवस्था मे होंगे। हमारी अर्थव्यवस्था कृषि आधारित है।हमे अगर तरक्की पानी है तो हमे यह आधारभूत संरचना मजबूत करनी चाहिए।
- रोहन जैन
देहरादून - उत्तराखंड
अभी कुछ नहीं कहाँ जा सकता ! लाकडाऊन खलने पर परिस्थितियों पर आधारित होगा !पर यह तय है की अब मज़दूर नये सिरे से सोचेगा उसे क्या करना है , जो स्वाभिमानी होगा वह अपने ही गाँव में छोटा मोटा उघौग करेगा, खेती होगी तो खेती करेगा पर वापस नही आयेगा । 
और कुछ लोग हैं जो समय परिस्थितियों के अनुसार चेंज हो जायेगे वो वापस भी आ सकते है ।
स्थिति अभी स्पस्ट नहीं है लाकडाऊन ख़त्म , ज़िंदगी पटरी पर आये , तभी कुछ कहाँ जा सकता है ! 
पर एक बात सच्च है लोग अब सर्विस कम व्यवसाय की तरफ़ ज़्यादा ध्यान देंगे,इतनी नौकरियों चली गई है , घर बैठे नवजवान , अब अपना व्यवसाय करना चाहते है ।चाहे वो शहर में हो या गाँव में !
नौकरियों से मन भर गया , कोरोना व लाकडाऊन ने बहुत कुछ इंसान को दिखा दिया व समझा दिया । 
लोगो को परख भी गयें कौन अपना कौन पराया। 
कितने नये रिश्ते बने कितने पूराने रिश्ते टूट गये , यही दौरा था , जब अपने रिश्ते दारो की परख भी हुई ,  जो एक फ़ोन कर के हाल चाल  न ले ,वो वक्त पर क्या मददत करेंगे , सारे रिश्तों की पोल खुल गई । 
प्रधानमंत्री जी का इतना बड़ा पैकेज सच्च में यदि वह लोगों को लोन मिलने लगा तो लोग गाँव हो या शहर हो जहां रहेंगे अपना ही उघौग करेंगे , 
कम कमा कर भी ख़ुश रहेंगे 
पर ज़िल्लत की ज़िंदगी से तौबा करेंगे । 
- अश्विनी पाण्डेय
मुम्बई - महाराष्ट्र
कोरोना संक्रमण काल ने आदमी को बहुत कुछ सीखा दिया । हकीकत को आइने में अपना अक्स दिखा दिया । विकास और रोजगार के दावों का चीरहरण करके रख दिया है । मजदूरों - श्रमिकों के अम्फान ने भारत को एक बार फिर से सोचने के लिए विवश कर दिया । सुनहरे कल के सपने को गाँव की पृष्ठभूमि से जोड़ने के लिए मोड़ दिया । लघु - कुटीर उद्योगों को विकसित किया जा सकता है । पुश्तैनी काम धन्धों में भविष्य की तलाश करना लाजमी हो गया है । खेती - बाड़ी , बागवानी , फ्लाॅरीकल्चर , मौन पालन ,  भवन - निर्माण  , फर्नीचर , मूर्ति - निर्माण , हस्तशिल्प , चरखा  , हथकरघा , दुग्ध उत्पाद  , आचार - मुरब्बा  , चटनी - जूस , सिलाई - कढाई  , ब्यूटीपार्लर , मोबाइल रिपेयर , बढई - मोची जैसे कार्यों को रोजगार का जरिया बनाना होगा । एक समय था जब रेडियो  , ब्लैक एंड़ व्हाइट टेलीविजन , एसटीडी आदि रोजगार के माध्यम हुआ करते थे पर आज ... क्या है ? लघु - कुटीर उद्योगों में भी भविष्य सुरक्षित नजर नहीं आता । आनलाइन सर्विस ने इंसोरेंस , दुकानदारी आदि को खत्म कर दिया । वर्तमान में विकसित टेक्नोलोजी प्राचीन व्यवसायों को ठेंगा दिखाती है । इसलिए महंगाई के इस दौर में सर्वाइव करना दूभर है  ।  बात यदि उद्योग की करें तो यह सम्भव नहीं है । चूँकि भारत में अधिकांश आबादी गाँवों में बसती है और उद्योग के लिए खुली जगह की आवश्यकता होती है इसलिए विस्थापन का बहुत ज्यादा दंश झेलना पड़ेगा । यह भी सही नहीं कि उद्योग गाँव की ओर चल पड़े हैं  ।
- अनिल शर्मा नील 
 बिलासपुर - हिमाचल प्रदेश
जिस प्रकार शहरों में कोरोना से लगातार मौत का तांडव जारी है । और जिससे शायद ही कोई शहर अछूता रहा हो अथवा डर के साये में न हो या फिर फैक्ट्री, कारखानों की बंदी की मार न झेल रहा हो । न केवल इसी दृष्टि से बल्कि आज शहरों में जगह के अभाव व बढ़ती दुर्घटनाओं के चलते भी लोग गांव की ओर उद्योग धंधों का रुख करने के इच्छुक है ।
वही इसकी दूसरी बड़ी वजह  करोड़ो की संख्या में प्रवासी मजदूरों का अपने घर गांव को लौट जाना है । जिनकी कमी के चलते शहरों में खुले कारखानो व फैक्ट्रियों के खुलने का कोई औचित्य नही है । जिसकी एक बड़ी मार अर्थव्यवस्था पर पड़ रही है । वही एक बड़ी चिंता उद्योग जगत के लोगो के चेरे पर देखने को मिल रही है कि यदि ये कामगार प्रवासी श्रमिक काम पर नही लौटे तो न केवल उद्योग धंधों बल्कि उद्योग जगत का क्या होगा । वैसे भी प्रवासी मजदूरों पर हुए अत्याचारों और उनकी अनदेखी व लापरवाही के चलते अब उनका अन्य राज्यो में काम करने आने का मन प्रतीत नही होता है । 
जिसके चलते उद्योग धंधों का गांव की ओर रुख करना स्वाभाविक है । जिससे न केवल मजदूरों की कमी के चलते शहरो में बंद पड़े उद्योग धंधों को गांव में रफ़्तार मिल सकेगी बल्कि रोजगार की कमी से जूझ रहे कामगारों को भी काम मिल सकेगा । वहीं ये अर्थव्यवस्था को भी एक मजबूती देने वाली बात साबित होगी ।
- परीक्षीत गुप्ता
बिजनौर - उत्तरप्रदेश
वर्तमान स्थिति में यह प्रश्न उठना स्वाभाविक है।  भारतीय उद्योग गांव की ओर तभी चल सकेंगे जब वे अपना प्रारूप बदलेंगे और कृषि आधारित उद्योगों की स्थापना करेंगे। उद्योगों का पलायन दूर-दूर तक दृष्टिगोचर नहीं होता।  हां, यह कहा जा सकता है कि राज्य सरकारें अपने अपने राज्यों में वापिस लौट कर आए श्रमिकों के हित में, उन्हें रोजगार उपलब्ध कराने के लिए नये उद्योगों की स्थापना के लिए लोगों को आमंत्रित करें जो वहां उद्योग लगाने में रुचि दिखाएं।  गांवों में यदि उद्योग लगाए जाते हैं तो वहां की भौगोलिक स्थिति, मूलभूत संरचनाओं, परिवहन, तकनीकी आवश्यकताओं की पूर्ति, सुरक्षा मानकों, बिजली, पानी की स्थिति का आकलन करना आवश्यक होगा। वर्तमान में जो भारी उद्योग गांवों में चल रहे हैं वे तो चल ही रहे हैं। परम्परागत उद्योग जिसके लिए ग्रामीण श्रमिकों की आवश्यकता होती है उनकी स्थिति बहुत अच्छी नहीं है। शहरों में स्थापित उद्योगों में जो ग्रामीण श्रमिक कार्य करते हैं वे शहरी परिवेश में ढल चुके होते हैं और शहरों की भव्यता उन्हें भाती है। समाचार मिल रहे हैं कि प्रवासी श्रमिकों की एक तादाद पुनः शहरों की ओर लौट रही है। ऐसी स्थिति से तो यही अंदाज़ लगाया जा सकता है कि अधिकतर शहरी उद्योग गांवों की ओर पलायन नहीं करेंगे।
 - सुदर्शन खन्ना
दिल्ली
यह एक आशावादी दृष्टिकोण है यद्यपि कि वर्तमान समय में आदरणीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने नागरिकों के नाम संदेश में इस तथ्य के चर्चा की थी आत्मनिर्भर बनने की लोकल सामानों का प्रयोग करना और वोकल होने की सलाह दी गई थी उन्होंने नागरिकों को विजन दिया है इस विजन को एक मिशन के रूप में अपनाना और उस पर योजनाबद्ध रूप से कार्य करना सरकार और पूंजीपतियों इन्वेस्टर सभी की जिम्मेदारी बनती है
बड़े-बड़े शहरों से करीब-करीब 50% मजदूर श्रमिक वापस गांव चले गए हैं अभी भी लॉक डाउन की स्थिति बनी हुई है लेकिन अनलॉक वन होने से कुछ कारखानों को खोलने की इजाजत मिली है लेकिन कारखाना चलेगा कैसे कारखाना में काम करने वाले श्रमिक तो घर जा चुके हैं अब कारखाने मालिक सभी को पैसा देकर वापस बुलाना चाह रहे हैं पर जहां तक श्रमिकों की बात है उनकी अपनी मानसिकता भी बदली है उनका अपना विचार है कि अब हमारे गांव में ही पूंजीपति लोग आकर कल कारखाना को स्थापित करें और गांव का विकास करें आर्थिक पूंजी भी कम लगेगी और आसानी से उन्हें श्रमिक भी मिल जाएंगे श्रमिकों को भी परेशानियां नहीं होंगी।
अब यहां पर दो नीति उभर कर सामने आ रही है पहला पूंजीपति गांव की ओर प्रस्थान करें और गांव के विकास में अपना सहयोग दें दूसरा सरकार सरकार उन पूंजीपति इन्वेस्टर को आमंत्रण भेजें इस आश्वासन के साथ की बिजली पानी श्रमिक आवागमन इत्यादि की सुविधा उन्हें उपलब्ध कराई जाएगी साथ ही साथ सुरक्षा भी प्रदान की जाएगी कानूनी सुरक्षा बहुत ही आवश्यक है चुकी कुछ ऐसे राज्य हैं जहां कानूनी सुरक्षा नगण्य है जब तक सरकार इस बात का पहल नहीं करेगी तब तक मोदी जी का विजन मिशन का रूप नहीं ले सकता है इसलिए इस दिशा में सिर्फ आर्थिक सहायता की घोषणा करना ही पर्याप्त नहीं है जिस आर्थिक घोषणा से तो कितने लोगों की मन में लड्डू फूटने लगे हैं फंड आएगा और उसका बंदरबांट किया जाएगा हकीकत यही है कि सरकार अपनी नीति को सही ढंग से लागू करने के लिए अपने इर्द-गिर्द के वातावरण में भ्रष्टाचार शब्द का ब्लॉक करें तभी विजन मिशन में परिवर्तित हो सकेगा।
- कुमकुम वेद सेन
मुम्बई - महाराष्ट्र
हमारा  भारत  गांवों  का  देश  कहलाता  है  और  गांवों  से  ही  हमें  अनाज  मिलता  है  ।
      गांव  का  खुला  व  प्रदूषण  रहित  वातावरण  होता  है  ।  लोग-बाग  मेहनती  और  दिखावे  से  दूर  रहते  हैं  ।
       छोटे-मोटे  उद्योग  तो  घर  में  ही  प्रारम्भ  किए  जा  सकते हैं  ।  वहां  बड़े  उद्योगों  के  लिए  भूमि  भी  आसानी  से  उपलब्ध  हो  सकती  है  ।  साथ  कच्चा  माल  भी । 
       कोरोना  महामारी  के  चलते  मजदूरों  का  पलायन  और  उनकी  दयनीय  स्थिति  ने  उनके  जीवन  तथा  सोच  में  कई  परिवर्तन  किये  हैं  । 
       जब  तक  कोरोना  का  पूरी  तरह  पलायन  नहीं  हो  जाता  तब  तक  यह  नहीं  कहा जा  सकता  है  कि  भारतीय  उद्योगों  की  मंजिल  कौनसी  है  ।  अभी  तो  शुरुआत  है, प्राथमिकता  तो  पेट पूजा  है  । 
      शीघ्र  ही  चाहे  गांव  हो  या  शहर, उद्योग  गतिमान  हो  ही  जाएंगे  ।  उम्मीद  पर  दुनिया  कायम  है । बस  आवश्यकता  है  धैर्य  की.......।
       - बसन्ती पंवार 
        जोधपुर - राजस्थान 
भारतीय उद्योग गाँव की ओर जिस दिन चल पड़े उस दिन भारत देश दुनिया के सर्वोच्च शिखर पर होगा वर्तमान में ये परिवर्तन संभव है क्योंकि उद्योगों को चलाने वाले मज़दूरों की बड़ी संख्या गाँव में पलायन कर गयी है अगर पुनरावृत्ति के डर से ये भीड़ शहरों में न आई तो अवश्य उद्योग धंधों को गाँव में चलाया जा सकता है लघु कुटीर उद्योग धंधों को चलाने के लिए सरकार पुरज़ोर कोशिश कर रही है बैंकों से लोन देने के लिए अपनी गारंटी योजना का प्रयोग कर रही है ऐसे में एम एस एम ई में रजिस्ट्रेशन कराने वाले स्वावलंबी अपना उद्योग लगाने में पीछे नहीं रहेंगे । छोटे बड़े सभी प्रकार के उद्योग धंधों को सरकार ने जैसा सोचा है ऐसा हो गया तो निश्चित ही भारतीय उद्योग गाँवों में स्थापित होंगे इससे पलायन रूकेगा और जनमानस में स्थिरता आएगी । कोरोना महामारी बहुत से मार्ग बदल कर नई दिशा दे गई है अगर भविष्य में पुनः ऐसी मुश्किल का सामना करना पड़ा तो निश्चित तौर पर कहा जा सकता है क्षति का प्रतिशत बहुत कम होगा । ये केवल उद्योगों को बढ़ावा देने का विकल्प ही नही इससे प्रदूषण जैसी भयानक समस्या का समाधान भी होगा । इस स्वर्णिम अवसर को स्वावलंबी व्यक्तियों को अपने हाथ से नही जाने देना चाहिए और सरकार को भी प्रोत्साहित करना चाहिए विशेष प्रोत्साहन दे कर उद्योगों को गाँव स्तर पर बढ़ावा देना चाहिए ।इस समय तो स्वत: ही लोग गाँव में रहने के लिए प्रयास कर रहे हैं वह अवश्य ही अपना कारोबार भी वहीं शुरू कर सकते हैं और ऐसा होगा भी ।
- डॉ भूपेन्द्र कुमार 
 बिजनौर - उत्तर प्रदेश
'भारत गांवों में बसता है' इस वाक्य को स्वीकार करते हुए गांवों में रोजगार की स्थिति पर दृष्टि जाती है तो भारतीय ग्रामीणों की दुर्दशा पर दुख होता है। रोजगार की अनुपलब्धता के कारण ही गांवों की श्रम शक्ति शहरों की ओर प्रस्थान करती रही है। कोरोना के कारण यही शक्ति वर्तमान में अपने गांव वापिस आ गयी है। उद्योगों को चलाने के लिए मानव शक्ति का होना अनिवार्य है और जब शहरों में कामगार नहीं मिलेंगे तो उद्योगों को गांव की ओर रुख करना आवश्यक हो जायेगा। 
अत: कहा जा सकता है कि यदि कामगार कुछ समय तक अपने गांव में ही रहें तो कामगारों की तलाश में मजबूरीवश ही सही उद्योगों को गांवों की ओर आना पड़ेगा और इस प्रकार गांवों में उद्योगों की स्थापना होने से रोजगार की संख्या में वृद्धि होगी और गांव के लोगों को अपने घर पर रहते हुए ही रोजगार मिलने से कोरोना काल जैसी त्रासदियों से भविष्य में कभी सामना नहीं करना पड़ेगा। 
- सत्येन्द्र शर्मा 'तरंग' 
देहरादून - उत्तराखण्ड
     ग्रामीण क्षेत्रों में उद्योगों का पूर्व से ही जन्म हुआ हैं। उद्योग कैसा भी हो बीड़ी, माचिस, अगरबत्ती,  देश-कवेलू, ईट्टा,  मिट्टियों,  लड़कियों, तांबा, पीतल, कांसा  से बने विभिन्न प्रकार की कलाकृतियां, बर्तन, खेल-खिलौने, अन्य प्रतिमाओं आदि? ग्रामीणों की देन हैं।  ग्राम समुदायों के रहवासियों को बनाने  भगवान की देन हैं।  समय बीतता गया, आमजन शहरों की ओर अग्रसर होने लगे, जहाँ सभी प्रकार के छोटे-बड़े उद्योग की श्रेणी में विभाजित हो गये। बड़े-बड़े कारख़ाना बनने लगे, वही ग्रामीण क्षेत्रों के कारीगर बनाकर, बेचा करते थे, अब उन्हें रोजगार मिलता गया। उद्योगों के विस्तार तहत ग्रामीण क्षेत्रों में खेती किसानी की जमीनें, उद्योगपतियों  क्रय करने लगे। जिसके कारण जनजीवन, शहर तथा रोड़ों का विकास होता गया और भारी मात्रा में प्रदूषण फैलता गया। जिसके कारण जीवन शैली की दिनचर्या परिवर्तित होने लगी। आवागमन में आमजनों को परेशानियों का सामना करना पड़ता था। अंततः भारतीय संस्कृति की रक्षा के लिए उद्योग गाँव की ओर अग्रेषित होने लगे। ग्रामीण क्षेत्रों के ग्रामीणों को सर्वसुविधानुसार राहत के साथ-साथ, सभी प्रकार  शक्कर, कागज, चमड़ा, प्लास्टिक, लोहा, स्टील, आदि उद्योग में रोजगार मिल गया, गाँवों का उदय हुआ।
- आचार्य डाॅ.वीरेन्द्र सिंह गहरवार 'वीर' 
 बालाघाट - मध्यप्रदेश
अभी यह कहना जल्दबाजी होगी कि भारतीय उद्योग गांव की ओर चल दिए हैं। यह सच है कि इस महामारी के कारण बड़े-बड़े शहरों में, औद्योगिक राजधानी मुंबई, और देश की राजधानी दिल्ली में काम करने वाले श्रमिकों ने अपने अपने गांव की ओर पलायन करना शुरू कर दिया है, तथा बहुत बड़ी संख्या में इन लोगों ने इन महानगरों को छोड़ दिया है। इस कारण महानगरों में उद्योगों पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं क्योंकि श्रमिकों की पर्याप्त संख्या अब उद्योगों के पास उपलब्ध नहीं है।परंतु यह भी सच है कि अपने अपने गांव को लौटे यह श्रमिक अब भविष्य में इन महानगरों की ओर जाने से पहले कई बार विचार विमर्श करेंगे, तथा जहां तक संभव है अब यह लोग अपने घर में रहकर अपने जीविकोपार्जन के लिए कुछ ना कुछ कार्य प्रारंभ करेंगे। अतः यह कहा जा सकता है कि छोटी-छोटी उद्योगों की इकाइयां अब गांव में प्रारंभ हो सकती हैं और और गांव के श्रमिक भी अब स्वयं को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में एक कदम बढ़ा चुके हैं। कुछ दिनों बाद हम बदलते भारत की तस्वीर को बहुत स्पष्ट रूप से देख सकेंगे जिसमें गांव अपनी मजबूत भूमिका के साथ इस देश के आर्थिक विकास में सहयोग करते हुए दिखाई देंगे।
- कपिल जैन
नजीबाबाद - उत्तर प्रदेश
कोरोना काल में भूख से विचलित होकर मजदूर अपने गाँव की ओर लौट चले । सरकार द्वारा कोई व्यवस्था नहीं होने पर पैदल ही निकल लिए । इन सबके कारण ज्यादा संक्रमण फैला और मौतें भी ज्यादा हुईं। इसके बाबजूद उनका कथन है कि आधी रोटी खाएंगे लेकिन गांव में ही रहेंगे । 
लेकिन गाँव में उतनी बड़ी संख्या को रोजगार उपलब्ध कराना सम्भव नहीं है। जो लोग शहर में रह चुके हैं , वहां की जिंदगी के आदि हो गए है, उन्हें गाँव की जिंदगी रास नहीं आएगी। बच्चों की पढ़ाई-लिखाई, वहाँ का वातावरण सभी कुछ उनके ज़ेहन में बस गया है। गाँव में छोटे-छोटे खेत हैं, कुटीर उद्योग हैं उनसे अपनी ही पूर्ति मुश्किल से हो पाती है, तो अतिरिक्त भार कैसे वहन कर सकेगा ?
आमदनी का दूसरा जरिया भी नहीं है। आज अगर सरकार बड़ा उद्योग लगाने का निर्णय लेती है, तो उसमें काफी लंबा समय लगेगा। तब तक के लिये उन्हें वापस जाना ही पड़ेगा ।
 सरकार को भी इस तरफ सोचना होगा । हमारे गाँवों को भी सम्पन्न बनाने का प्रयत्न करना होगा । भविष्य अब गाँव की तरक्की का है ।
- संगीता गोविल
पटना - बिहार
वर्तमान हालात में महानगरों से जिस तरह से कामगारों का उल्टी दिशा में पलायन हुआ, वह स्थिति बहुत ही चिंताजनक है। अगर इस स्थिति से बाहर निकालने हेतु सरकार गांव की ओर भारतीय उद्योगों को मोड़ने का प्रयास करती है तो ग्रामीण युवाओं के लिए एक आशा की किरण साबित होगी। इसी के मद्देनजर सरकार ने भी आत्मनिर्भर भारत अभियान के अंतर्गत आने वाली योजनाओं को जारी रखने का फैसला लिया है। वैसे कल की घोषणा के अनुसार 1 साल तक कोई नई परियोजनाएं नहीं शुरू की जाएगी गरीबों की मदद योजना और आत्मनिर्भर भारत अभियान को छोड़कर।
     हां, निजी तौर पर उद्योगपति भी अपना कदम गांव की ओर बढ़ा सकते हैं पर वे भी आर्थिक संकट के दौर से गुजर रहे हैं। अगर भारतीय उद्योग गांव की ओर कदम बढ़ाती है तो यह सुनहरा क्रांतिकारी प्रयास होगा। ग्रामीण ऊर्जावान पढ़े-लिखे युवाओं को अपने कृषि उद्योग के साथ-साथ रोजगार प्राप्त होगा। गंभीर पलायन की समस्या का समाधान होगा। 
    सरकार उद्योगों के लिए जरूरी सरकारी और सामाजिक इंफ्रास्ट्रक्चर विकसित करती है तो गांव वालों के लिए लाभदायक व मददगार साबित होगा। ग्रामीण युवाओं को रोजगार भी मिलेगा और वे परिवार के साथ भी रह पाएंगे। 
भारत के गांव और वहां रहने वाले किसानों की स्थिति ज्यादातर अच्छी नहीं है। उन्हें भूमिहीन बनाने के भी कई तरह के प्रयास चल रहे हैं। ग्रामीण बाजार पर कब्जे के कई रोचक दृश्य उपलब्ध हैं। ग्रामीणों का इसमें कितना भला होगा कितना बुरा यह निर्णय कर पाना कठिन है।
     भारत की 70% आबादी गांव में बसती है। अगर गांव में उद्योगों का विस्तार हो तो सोने पर सुहागा होगा। हमारा देश समृद्ध और विकसित बनेगा। लोकल लेवल पर लोगों को रोजगार मिलेगा और पलायन पर अंकुश लगेगा।
                              - सुनीता रानी राठौर
                            ग्रेटर नोएडा - उत्तर प्रदेश
कोरोना काल में मजदूरों ने जो वेदना देखी है उससे वे अभी बाहर नहीं आए हैं अतः फिलहाल कुछ कहा नहीं जा सकता! मजदूर ना होने से शहर के कारखाने तो बंद हैं बहुत कम जगह काम हो रहा है! 
भक्त ही नहीं है तो मंदिर तो बंद ही होंगे! सोच सकारात्मक रखें भक्त भी आयेंगे जरूर और मंदिर भी खुलेंगे! 
हां आत्मनिर्भर की बात जो हमारे आदरणीय मोदी जी ने कहिये और मदद के लिए आर्थिक पैकेज भी दिया है तो हो सकता है 50-60% मजदूर अपने पैतृक उद्योग, लघु उद्योग को अपना सकते हैं  जैसे -: किसानी करना(खेती) ,लोहारी, बढ़ई, नाई, मिठाई का धंधा, आटा चक्की, सब्जी भाजी के धंधे को विकसित करना, ईंट बनाना ,गृह उद्योग में महिलाएं भी लोगों को शुद्ध चटखारे आचार, पापड़ ,बड़ी,बना सकती हैं जिसकी डिमांड हमेशा रहती है! सिलाई बुनाई कढ़ाई बहुत सी ग्रामीण हस्त कलाएं है जो सभी जगह और विदेशों में  भी पसंद की जाती है ऐसे बहुत से काम हैं! गांव में पंचायत भी है जो न्याय करती है! 
शहर में अब मजदूर आते भी हैं तो अपनी सुरक्षा की कुछ शर्तो पर ही आयेंगे! 
गांव का आर्थिक स्तर ऊंचा होगा तो देश की अर्थव्यवस्था भी संपन्न रहेगी! 
फिलहाल इस मुद्दे को कुछ समय दे सकारात्मक सोच के साथ आगे बढ़ना चाहिए ! फिलहाल पापी पेट का सवाल है और साथ ही कोरोना से बचना है जिसके कारण सभी प्रश्न खडे़ हुए हैं! 
कोरोना से बचने के उपाय  का पालन करते हुए आगे बढ़ मंजिल अवश्य मिलेगी!
- चन्द्रिका व्यास
मुम्बई - महाराष्ट्र
अभी स्पष्टतया तो नहीं कहा जा सकता है कि भारतीय उद्योग गाँव की ओर चल पड़े हैं, किन्तु वर्तमान परिस्थितियों में इसकी संभावना अवश्य व्यक्त की जा सकती है। जिस प्रकार से हमारे श्रमिक वर्ग का शहर से अपने गाँव की तरफ पलायन हुआ है, उन्होंने जितनी परेशानियों का सामना किया है, इन सबसे उनका अन्तर्मन तो अवश्य ही घायल हुआ है जो उन्हें वापस शहर की तरफ आने से निश्चित तौर पर रोकेगा। और फिर लघुउद्योगों के प्रोत्साहन के लिए हमारे माननीय प्रधानमंत्री जी की कुछ सकारात्मक घोषणाएँ भी इन आहत श्रमिक वर्ग को अपने क्षेत्र में ही रहकर अपना उद्योग आरंभ करने के लिए अवश्य ही उत्साहित करेंगी। और स्वभावतः कर्मठ और लगनशील हमारे ये श्रमिक वर्ग यदि अपने आरंभिक प्रयासों में सफल हो गए तब हम अवश्य कह सकेंगे कि हमारे भारतीय उद्योग अब गाँव की ओर चल पड़े हैं। और ये हमारे कृषि प्रधान देश के लिए एक शुभसंकेत ही होगा कि हमारे किसान और मजदूर अपने गाँव में रहते हुए ही सफलतापूर्वक अपना जीवनयापन करेंगे। इसके परिणामस्वरूप भविष्य में गाँवों की स्थितियों में भी बहुत सारे सुधार होंगे जो हमारे देश को एक अत्यंत ही प्रगतिशील राष्ट्र के रूप में स्थापित करने में सहायक होंगे।
- रूणा रश्मि "दीप्त"
राँची - झारखंड
            राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी ने कहा, "जब तक हम ग्रामीण जीवन को पुरातन हस्तशिल्प के संबंध में पुनः जागृत नहींकरेंगे तब तक गाँवो काविकास और  पुनर्निर्माण नहीं कर सकेंगे, बिना लघु और कुटीर उद्योगों के ग्रामीण किसान मृत है l वह केवल भूमि की उपज से स्वयं को नहीं पाल सकता, उसे सहायक उद्योग चाहिए l 
            देश में बेरोजगारी निरंतर बढ़ती जा रही थी ऐसे में kovid-19 के चलते "कोढ़ में खाज "वाली कहावत चरितार्थ हो गई इस स्थिति में हर हाथ को काम देने के लिए ग्रामोद्योग का विकास उपयुक्त रणनीति हो सकता है l जब ग्रामवासी अपने घरों के आसपास पारम्परिक रीतियों अथवा जाति विशेष के कौशल का उपयोग करते हुए स्थानीय कच्चे माल, पूंजी, तकनीकी उपयोग पर आधारित उत्पादन को जीविकोर्पार्जन के रूप में अपनाते है तो यह ग्रामोद्योग कहलाते हैं l जैसे -खनिज आधारित उद्योग, चमड़ा व रसायन उद्योग, वस्त्र उद्योग इनका स्थान आर्थिक विकास की दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण है l 
.           आज भारत के गाँव आदर्श गाँव बन गये हैं l सड़क, पानी, बिजली, पूंजी, श्रमिक सब कुछ उपलब्ध है ऐसे में ग्रामीण युवकों को तथा पलायन करके आये श्रमिकों को वापस जाने की आवश्यकता नहीं है l गाँव में ही उद्योग लगाने के लिए लोन व तकनीकी सुविधा मिल रही है  
      प्रधानमंत्री ग्राम स्वरोजगार योजना के तहत आज गाँव में ही उद्योग धंधे प्रगति के रास्ते चल पड़े हैं l प्रधानमंत्री रोजगार सृजन कार्यक्रम योजना पूर्णतया भारत सरकार द्वारा प्रायोजित महत्वपूर्ण योजना है जो कि प्रदेश में जिला उद्योग केंद्र, खादी व ग्रामीण उद्योग आयोग तथा खादी बोर्ड, तीन एजेंसियां मिलकर संचालित करती हैं तथा केंद्र स्तर पर नोडल एजेन्सी K. V. I. C. होती है l 
         चयनित उद्यमियों को बैंक लोन जिसमें सामान्य वर्ग के लिए 10% तथा आरक्षित वर्ग के लिए 5% निजी अंशदान देना होता है l ग्रामीण स्तर पर मोमबत्ती उद्योग, अगरबत्ती उद्योग डेरी उद्योग, डोर टू डोर सब्जी उद्योग तथा अन्य परम्परागत उद्योग लाभदायक हैं l कोरोना संक्रमण के भय से बचने के लिए श्रमिक वर्ग को मितव्यता बरत कर शहरों के पीछे नहीं भागना है वरन ग्रामीण उद्योगों में ही अपना श्रम लगाना चाहिए l राजस्थान सरकार ने प्रदेश में देशी गो वंश की डेरी स्थापित करने के लिए "कामधेनु "योजना चलाई है जिसमें बेरोजगारों व किसानों को 90% लोन दिया जा रहा है और समय पर चुकारा करने पर 30% की सब्सिडी दी जायेगी l श्रम की पूजा अपने आँगन में ही कीजिए l  
                   चलते चलते --
1. नयी नयी दुनियाँ बसा लेने की कमजोर चाहत ने 
    पुराने घर की दहलीजों को हम सूना छोड़ आये 
     आ, अब घर लौट चले, आ अब घर लौट चलें l 
2. आ, लौट के आजा मेरे मीत, तुझे मेरे गीत बुलाते हैं
- डॉ. छाया शर्मा
अजमेर - राजस्थान
   गाँव की ओर मजदूर चल पड़े हैं पर उद्योगों का शहर से गांव की ओर पलायन अभी बाकी है।उद्योग निवेशक लगाते हैं और निवेशक शहर मे रहते हैं। जब तक निवेशक अपना निवेश शहर से हटकर गाँव मे नही करेंगे तब तक गाँव मे उद्योग फल फूल नही सकते हैं।
     आजादी के सत्तर साल बाद भी गांव मे मुख्यतः खेती ही हो रही है और इसके अतिरिक्त कम रोजगार पैदा करने वाले कुछ छोटे मोटे उद्योग गाँव मे चल रहे हैं। इन उद्योगों से स्वरोजगार और आत्मनिर्भरता का सपना पूरा नहीं हो सकता है। हमारे देश मे अभी तक भूमि सुधार कार्यक्रम   लम्बित है। तीस प्रतिशत से ऊपर की जनसंख्या भूमिहीन है। वह दो वक्त की रोटी भी अपनी खेती से पैदा नही कर सकता है क्योंकि खेत उसके पास है ही नहीं। अलबत्ता अगर कृषि को उद्योग का दर्जा दिया जाए तो शायद बहुसंख्यक को दो वक्त की रोटी सुनिश्चित की जा सकती है। पर यह काम सरकार के लिए कठिन है। वास्तव मे गाँव की ओर पलायन कर रहे मजदूरों को उनकी स्थिति पर छोड़ दिया गया है। जिस तरह से शहर मे काम करते हुए मजदूरों के लिए कुछ भी सुनिश्चित नहीं था उस तरह से गाँव मे भी उनके लिए कुछ भी निश्चित तौर पर होना अभी नामुमकिन प्रतीत होता है। लाकडाउन ने मजदूरों की स्थिति का पोल खोल कर रख दिया है चाहे वह उनका कार्यस्थल शहर ही क्यों न हो। उद्योग मजदूरों का श्रम खरीदता है और मजदूर अपना श्रम बेचता है। जब उद्योग ही नही रहेंगे तो श्रम कौन खरीदेगा ?
- रंजना सिंह
  पटना - बिहार
     भारतीय उद्योगों का भविष्य कागजों में अत्यंत सुनहरा और धरातल पर धराशाई है। जिसका मूल कारण भ्रष्टाचार और ईर्ष्या है।
     भ्रष्टाचार जो उद्योग को अंकुरित होने से पहले ही मसल देता है। जो राष्ट्र का परम शत्रु है। जिसके कारण आज भी हम वीटो पावर से वंचित हैं। इसी प्रकार ईर्ष्या भाई की भाई से, ईर्ष्या अपने अस्तित्व के बचाव से, ईर्ष्या समाज में सामाजिक आर्थिक उन्नति एवं विकास की चर्चित है। जिसमें भारत, भारतीय एवं भारतीयता दम तोड़ रही है। जिससे बेरोजगारी चरम सीमा पर पहुंच गई है।
     विचारणीय है कि भारत का युवा वर्ग विश्व का सशक्त स्तम्भ है और विश्व में किसी भी स्पर्धा में सर्वोपरि है। फिर उद्योगों में पिछड़ापन क्यों है? जो गंभीर प्रश्न चिन्ह है।
     मैंने देखा है कि उच्च शिक्षा प्राप्त युवा उद्योगिक इकाईयों के लिए ऋण लेकर राष्ट्र की सेवा हेतु आगे आए और भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गए। 
     सब्सिडी की छीना-झपटी किसे मालूम नहीं है। सरकारी अधिकारी/कर्मचारी उस सब्सिडी से अपना हिस्सा तब तक मांगते हैं, जब तक उद्यमी भिखारी नहीं बन जाता। उस पर ऋण देने में बंदरबांट भी उद्यमियों और उद्योगों को नष्ट करने में अग्रिम भूमिका निभाते हैं।
     एक कारण अशिक्षित शिक्षकों द्वारा प्रक्षिक्षण देना भी है। उद्योगों की सफलता हेतु प्रशिक्षण एक महत्वपूर्ण कड़ी है। जिसके आधार पर उद्यमी और उद्योग का भविष्य टिका होता है।
     अतः प्रधानमंत्री जी द्वारा दिए गए 'लोकल फार वोकल' मंत्र की सफलता के लिए भ्रष्ट व्यवस्था और भ्रष्टाचार पर लगाम, प्रशिक्षण कार्यक्रम में श्रेष्ठता और निष्ठा, प्रत्येक कर्मचारी/अधिकारी की कार्य प्रणाली एवं कार्य क्षमता की पारदर्शिता को अनिवार्य किया जाना चाहिए।   
     फिर उद्यमी और उद्योग चाहे शहर से गांव की ओर जाएं या गांवों से शहरों की ओर आएंं, मेरा दावा है कि वह फूलेंगे और फलेंगे अवश्य।
- इन्दु भूषण बाली
जम्मू - जम्मू कश्मीर
              भारत गांवों का देश है। भारत की अधिकांश जनसंख्या गांवों में निवास करती हैं। वर्तमान समय में शहर में बहुत सारी सुविधाएं उद्योग के हिसाब से उपलब्ध नहीं हो पा रही है जैसे उद्योग के लिए पर्याप्त भूमि, जल व्यवस्था तथा शहरों में बढती आबादी  का घनत्व भी एक समस्या है । विशेष रूप से लघु उद्योगों को शहरों में उतना अधिक बढ़ावा नहीं मिल पा रहा है जितना पूर्व में मिल जाता था। दूसरी बात यह भी है की गांवों का मुख्य व्यापार अभी तक कृषि कार्य था लेकिन इस कार्य में निरंतर बढ़ता जाने वाला घाटा ,  फसल की उत्पादन     लागत में वृद्धि,उत्पादन में गिरावट तथा उत्पादित वस्तुओं की कम कीमत मिल पाना बहुत बड़ी समस्या बन चुका है। ऐसी स्थिति में अधिकांश लघु उद्योग जिसमें शहद उत्पादन, केंचुआ पालन, दुग्ध व्यवसाय एवं  कढ़ाई- बुनाई, कताई की ओर ग्रामीण लोगों तथा कृषकों  का झुकाव बढ रहा है। इन सारी  स्थितियों को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि वर्तमान समय में लघु उद्योग गांव की ओर चल पड़े है  और वह समय भी दूर मालूम नहीं पड़ता है जब शहरों से सटे हुए गांवों में बड़े-बड़े उद्योग भी स्थापित होना शुरू हो जाएंगे।
- डॉ अरविंद श्रीवास्तव 'असीम' 
दतिया - मध्य प्रदेश
भारत में वैश्विक बिमारी कोरोना के प्रकोप से स्थिति बिगड़ रही है मजदूर वर्ग  ना काम न पैसा ना रहने का ठिकाना परेशान गाँव को पलायन कर रहे हैं। भारत में औपचारिक अर्थव्यस्था की और जाने का बड़ा मौका लेकर आया कोविड़ 19  मजदूर बड़ी संख्या में अपने घर लौट रहे है कोविड़ 19 को फैलाने से रोकने के लिए की गई सख्ती और लॉक डाउन ने मजदूरो का संकट बढा  दिया है लेकिन ये संकट मजदूरो का नही उद्योग जगत का भी चिन्तन का विषय है। ग्रामीण गाँव मे पहुंच कर अपनी जीविका चलाने के लिए लघु उद्योगों की मदद ले रहा है सरकार द्वारा चलायी जा रही योजनाओं का लाभ उठा सकते है बैकों द्वारा जानकारी का लाभ उठा सकते है सरकार द्वारा मुद्रा लोन ले सकते है । छोटे छोटे कुटीर उद्योग कृषि सहायक कुटीर उद्योग मुर्गी पालन  मिट्टी के बर्तन बनाना बनाना लकड़ी का फर्नीचर बनाना गाय बकरी पालन अचार बनाना पापड़ बनाना सिलाई उद्योग छपाई  रंगाई खाद बनाना अनेक उद्योग खादी उद्योग गाँव की और पलायन कर रहे और अब वह अपने उद्योग लगाकर गाँव मे रहना चाहते है  कोरोना संकट को झेल २हे मजदूर गाँव मे रहकर अपने उद्योग मे पुंजी लगाकर जीविका का उपार्जन करेगें लग रहा है भारतीय उद्योग गाँव की और चल पड़े है।
- नीमा शर्मा हंसमुख
नजीबाबाद - उत्तर प्रदेश
 वर्तमान परिस्थिति को देखते हुए यही संभावना व्यक्त किया जा रहा है कि गांव की ओर चल पड़े हैं भारतीय उद्योग। अगर गांव की ओर नहीं चल पड़े हैं तो भविष्य में गांव की ओर चलना होगा क्योंकि मूल व्यवस्था मानव का गांव से ही शुरू होती है। गांव में उत्पादन और कुटीर उद्योग आज भी मौजूद हैं गांव के लोग स्वतंत्र होकर एक दूसरे के लिए उपयोगी और पूरा को प्रमाणित कर सुकून की जिंदगी जी रहे हैं गांव में मुर्दों के साथ समृद्धि भाव से जी रहे हैं जो लोग अधिक महत्व पहुंची हैं और कुछ लोगों के पास उत्पादन व्यवस्था नहीं है ऐसे ही लोग अधिक आय के स्रोत बनाने के लिए शहरों और विदेशों की ओर पलायन करते हैं। अभी वर्तमान में करो ना की मां ने लोगों को समझा दिया है कि लोग अपने ही जन्मस्थली में रहकर अपनी आवश्यकता की पूर्ति करें और अपने परिवार के साथ रहकर एक-दूसरे की सहयोग कर सुकून के साथ जिंदगी जिए। अभी करो ना महामारी मानव को सोचने पर मजबूर कर दिया है कि भविष्य में लोगों की जिंदगी जीने की शैली कैसी होना चाहिए। करुणा महामारी लोगों को समस्या से ग्रसित कर समाधान की ओर जाने के लिए इंगित कर रहा है गांव में उद्योग और कुटीर उद्योग छोटे रूप में करके लोग इत्मीनान के साथ जी सकता है जिस वस्तु की आवश्यकता अधिक है उसकी पूर्ति फैक्ट्री लगाकर बड़े पैमाने में शहरों में किया जा सकता है फैक्ट्री आवश्यकता और प्रकृति को प्रदूषित रहित पर्यावरण को ध्यान में रखकर उद्योग लगाने की आवश्यकता है वर्तमान में लोग अपनी खेती बाड़ी और छोटे कुटीर उद्योग को छोड़कर अधिक आय कमाने के लिए चक्कर में चक्कर में अन्यत्र पलायन कर रहे थे इसका परिणाम करो ना महामारी से लोग कितने लगे हैं कि अभी आए के चक्कर में क्या-क्या झेलना पड़ता है। इस बीमारी ने लोगों की जीवन शैली पर सकारात्मक प्रभाव डाला है जो लोगों के भविष्य के लिए एक अच्छा विकास का अवसर दिया है। लोगों को सकारात्मक सोच और ग्रामीण व राज्य व्यवस्था की ओर प्रेरित किया है अतः यही कहते बनता है कि जो लोग अब शहरों से पलायन से गांव की ओर पलायन कर अपनी भविष्य की सुकून की मंजिल ढूंढ रहे हैं।
- उर्मिला सिदार
रायगढ़ - छत्तीसगढ़
क्या गाँव की ओर चल पडे हैं भारतीय उधोग जहाँ तक इसका प्रश्न है तो तय बात है कि प्रभाव पडेगा और इसका कारण है कि कोरोना काल में जब बेहद परेशानियों से मजदूर कामगार गुजरा तब उसे अपने गाँव में ही आसरा मिला और अभी जो समय चल रहा है वह भी कम परेशान करने वाला नही है कोरोना से पीडितो की संख्या रोज ही बढ रही है ऐसे वापस शहर की ओर काम की तलाश मे जाने का निर्णय बहुत आसान नही है बहुत ही कम संख्या मे लोग ऐसा कर पायेंगे और इसमें सन्देह नही कि गाँव मे ही या कही आस पास ही आजीविका तलाशने का प्रयास रहेगा .......। 
- प्रमोद कुमार प्रेम 
नजीबाबाद - उत्तर प्रदेश
कोरोना महामारी के कारण हुए तीसरे लॉकडाउन की समाप्ति के पांच दिन पहले अपने राष्ट्र के नाम संबोधन में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ‘आत्मनिर्भर भारत’ का अभियान शुरू करते हुए 20 लाख करोड़ रुपए के आर्थिक पैकेज की घोषणा की। प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि आर्थिक पैकेज आत्मनिर्भर अभियान की अहम कड़ी के रूप में कार्य करेगा। ये आर्थिक पैकेज, आत्मनिर्भर भारत अभियान की अहम कड़ी के तौर पर काम करेगा। हाल में सरकार ने कोरोना संकट से जुड़ी जो आर्थिक घोषणाएं की थीं, जो रिजर्व बैंक के फैसले थे, और आज जिस आर्थिक पैकेज का ऐलान हो रहा है, उसे जोड़ दें तो ये करीब-करीब 20 लाख करोड़ रुपए का है। ये पैकेज भारत की जीडीपी का करीब-करीब 10 प्रतिशत है। 20 लाख करोड़ रुपए का ये पैकेज, 2020 में देश की विकास यात्रा को, आत्मनिर्भर भारत अभियान को एक नई गति देगा।
ये आर्थिक पैकेज देश के उस श्रमिक के लिए है, देश के उस किसान के लिए है जो हर स्थिति, हर मौसम में देशवासियों के लिए दिन-रात परिश्रम कर रहा है। ये आर्थिक पैकेज हमारे देश के मध्यम वर्ग के लिए है, जो ईमानदारी से टैक्स देता है, देश के विकास में अपना योगदान देता है। ये आर्थिक पैकेज भारतीय उद्योग जगत के लिए है जो भारत के आर्थिक सामथ्र्य को बुलंदी देने के लिए संकल्पित है। कल से शुरू करके, आने वाले कुछ दिनों तक, वित्त मंत्री द्वारा ‘आत्मर्निर भारत अभियान’ से प्रेरित इस आर्थिक पैकेज की विस्तार से जानकारी दी जाएगी। संकट के समय में, लोकल ने ही हमें बचाया है। समय ने हमें सिखाया है कि लोकल को हमें अपना जीवन मंत्र बनाना ही होगा। आपको आज जो ग्लोबल ब्रांड्स लगते हैं वो भी कभी ऐसे ही बिल्कुल लोकल थे। आज से हर भारतवासी को अपने लोकल के लिए वोकल बनना है, न सिर्फ लोकल प्रॉडक्ट खरीदने हैं, बल्कि उनका गर्व से प्रचार भी करना है। मुझे पूरा विश्वास है कि हमारा देश ऐसा कर सकता है।
अतीत में जाएं तो पायेंगे कि स्वदेशी के सिद्धांत को समझाते हुए महात्मा गांधी ने कहा था ‘अगर हम स्वदेशी के सिद्धांत का पालन करें, तो हमारा और आपका यह कर्त्तव्य होगा कि हम उन बेरोजगार पड़ोसियों को ढूंढे, जो हमारी आवश्यकता की वस्तुएं, हमें दे सकते हों और यदि वे इन वस्तुओं को बनाना न जानते हों तो उन्हें उसकी प्रक्रिया सिखायें। ऐसा हो तो भारत का हर एक गांव लगभग एक स्वाश्रयी और स्वयंपूर्ण इकाई बन जाए।
दूसरे गांव के साथ वह उन चंद वस्तुओं का आदान-प्रदान जरूर करेगा, जिन्हें वह खुद अपनी सीमा में पैदा नहीं कर सकता... भगवद्गीता का एक श्लोक है, जिसमें कहा गया है कि सामान्य जन श्रेष्ठ जनों का अनुकरण करते हैं। स्वदेशी व्रत लेने पर कुछ समय तक असुविधाएं तो भोगनी पड़ेंगी, लेकिन उन असुविधाओं के बावजूद यदि समाज के विचारशील व्यक्ति स्वदेशी का व्रत अपना लें, तो हम उन अनेक बुराइयों का निवारण कर सकते हैं जिनसे हम पीडि़त हैं। मैं कानून द्वारा किए जाने वाले हस्तक्षेप को, वह जीवन के किसी भी विभाग में क्यों न किया जाय, बिल्कुल नापसन्द करती हूँ । उसके समर्थन में ज्यादा-से-ज्यादा यही कही जा सकता है कि दूसरी बुराई की तुलना में वह कम बुरी है।’ अंतरराष्ट्रीय स्थितियों को देखते हुए समय की मांग है कि हम हर क्षेत्र में आत्मनिर्भर बने।और अपने मूल स्थानों में ही रोज़गार कर नई सम्भावनाऐ पैदा करे , एक मिशाल आने वाली पीढ़ी को दे और हम भी आत्मनिर्भर बने व भारत को भी आत्मनिर्भर बनाऐ 
हमारे हाथ , हमाराऔजार , हमारे काम हम अपने मन के मालिक , न नौकरी जाने की चिंता न भूखे मरने का डर , चार परिवारों को काम देकर , संतुष्टी का जीवन , खुशहाली ही खुशहाली ..
डॉ अलका पाण्डेय
मुम्बई - महाराष्ट्र
कोरोना काल मे भारतीय उद्योग गांव कि ओर चल पड़े हैं। भारत सरकार ने भी ग्रामीण क्षेत्रों में कुटीर उधोग, सूक्ष्म उद्योग, लघु उद्योग को बढ़ावा दिया है। इसके साथ ही कृषि पर भी जोर दिया है। अभी पिछले महीनें केन्द्र की मोदी सरकार ने देश की अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के लिए 20 लाख करोड़ का पैमेज दिया है, जिसमें ग्रामीण क्षेत्रों में उधोग को मजबूती प्रदान करने पर जोर दिया है। 1965 में भारत पाकिस्तान युद्ध के समय तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री   ने जय जवान जय किसान का नारा दिया था। यह भारत मे नारा एक जवान के श्रम को किसान के जैसे दर्शाता है। उस समय देश की सैन्य शक्ति के साथ किसानों को मजबूती प्रदान करना था। ठीक उसी तरह देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी भारतीय उद्योग को गांव की तरफ मोड़ दिया है। इससे गांव में रहनेवाले युवाओं को रोजगार के साथ काम करने का मौका मिलेगा। साथ ही किसानों की उपज भी अच्छी होगी। क्योंकि 20 लाख करोड़ के पैकेज में किसानों स्वावलंबी बनाने का प्रयास किया गया है। जहां तक सेना की बात है तो आज भारतीय सेना इतनी मजबूत है कि किसी भी महाशक्ति वाले देश को कड़ी टक्कर देने में सक्षम है। जैमिनी अकादमीद्वारा पेश आज शनिवार की चर्चा में सवाल पूछा गया है कि क्या गांव की ओर चल पड़े हैं भारतीय उद्योग ? तो सही मायने में भारतीय उद्योग गांव की ओर चल पड़े हैं। कोरोना काल मे लॉकडाउन में जब ढील दी गई थी तब ग्रामीण क्षेत्रों में ही रोजी रोजगार व उद्योग धंधों को शुरू करने की अनुमति दी गई थी। वैसे भी पहले से ही ग्रामीण इलाकों में लघु उद्योग, सूक्ष्म उद्योग और कुटीर उद्योग की प्राथमिकता मिलती रही है। अब सरकार ने बड़े उद्योग को भी गांव की ओर बढ़ावा देना शुरू कर दिया है।
- अंकिता सिन्हा लिखिका
जमशेदपुर - झारखंड
यह समय की पुकार है, पहले श्रम शक्ति जाते थे पूंजीपतियों के पास रोजगार के लिए। उन्हें रोजगार मिलता था लेकिन शोषण होता था।लेकिन इस कोरोना महामारी ने श्रम शक्ति को अपने पैतृक संपत्ति  के ओर लौटा दिया। इतने दिनों में श्रम शक्ति को समझ में आ गई ,अगर पूंजीपति को हमारी जरूरत है तो मेरे इलाका में आकर पूंजी लगाएं जिससे मेरा इलाका मे सब सुख सुविधा हो जायगा साथ ही साथ उन्हें कम पूंजी लगाना पड़ेगा। यह बात पूंजीपतियों को भी समझ में आ गया कि अब श्रम शक्ति की बात  मानना होगा और भारतीय उद्योग उद्योग अपना रुख गांव की ओर कर रहे हैं।
सरकार ने श्रम शक्ति को आत्मनिर्भर बनाने के लिए एमएसएमई के घोषणा की है इसमें बिना गारंटी का ऐलान किया है। इसमें लघु, सुछ्म,कुटीर मध्यम ऊधोग को लाभ मिलेगा और भारत आत्मनिर्भर बनेगा ।एक योजना है,25 लाख से 1 करोड़ निवेश करने वाले 5 करोड़ तक व्यापार कर सकता है।
प्रथम वर्ष मूलधन वापस नहीं करना है। इस तरह से हमारे श्रम शक्ति को प्रोत्साहन किया जा रहा है जिससे भारत आत्मनिर्भर होना निश्चित है।
चीन अपने व्यापार को इस तरह से आगे बढ़ाया है । जनसंख्या रोधक नियम लाया । यही हैउसका मूल सिद्धांत हर घर में छोटे-छोटे उद्योग को विकसित कराया और उसका मार्केटिंग पूरे दुनिया में किया आज कहीं भी जाएं चीन का बनाया हुआ माल मिलता है।
यही सिद्धांत हमारी सरकार ने अपनाई और पूंजीपतियों को भी रास्ता दिखाएं है,की हमारे देश का आत्मा गांव में बसा हुआ है। इसे उन्नत करें तो देश उन्नत होगा।
लेखक का विचार है:- यह सिद्धांत अपनाने पर देश आत्मनिर्भर होगा। अतः भारतीय उद्योग गांव की ओर जायगा अब सरकार की जिम्मेवारी है कि उद्योगपति को इन्फ्रास्ट्रक्चर डिवेलप करके दे ताकि हमारा देश आत्मनिर्भर बने।
- विजेंयेद्र मोहन
बोकारो - झारखण्ड
विषय लाजमी है और हाल- फिलहाल के लिए उचित भी कह सकते हैं।परंतु मेरी नजर में इस वक़्त कुछ भी कहना उचित नहीं होगा।यह एक शंशय मात्र है।भारतीय उद्योग गाँव की ओर नहीं चल पड़े हैं बल्कि भारत और भारतीय असल भारतीय राष्ट्र की धरातल पर जा पहुँचे हैं।मगर इसका यह अर्थ लगाना कि भारतीय उद्योग गांव की ओर चल पड़े हैं एक सपना मात्र है।आइए कुछ देखते हैं और असल परिस्थितियों और स्थितियों को भांपने का प्रयास करते हैं।
      आज क्यों सब गाँव लौट गए हैं इसको जानने से पहले कुछ समय पीछे चलते हैं और यह देखते हैं कि ये गांव से शहर की ओर गए क्यों थे?एक मात्र उत्तर मिलेगा कि अच्छी आय के साधनों की तलाश में,कुछ अच्छा करने की इच्छा से और अच्छी सुविधाएं पाने की लालसा से।तो क्या गाँव इनको व्व सब कुछ देने लायक हो चुके हैं जिनके लिए बाहर का रुख किया था।शायद नहीं।ये वापस लौटना क्षणिक मात्र है।जैसे ही हालात सही होंगे इनमें से सभी नहीं तो लगभग 90 प्रतिशत पुनः शहर की ओर लौटेंगे।क्योंकि कल-कारखाने बंद हैं नष्ट नहीं हुए हैं,सुविधाओं में ठहराव आया है वो खो नहीं गई हैं और दूसरी तरफ अभी भी गांवों में हालात वैसे ही हैं।बस कागजों में काफी कुछ हो चुका है।लेकिन आज वो पढ़ नहीं रहा है बल्कि उसके बीच रहकर उसका अवलोकन कर रहा है।
       हाँ! सकारात्मकता आ सकती है जब प्रदेश की सरकारें अपनी कार्यशैली को तेजकर उन युवाओं को बदलाव के दर्शन करा दे।ये सबसे अच्छा समय है कि सरकार इनको बाँधकर रख सकती है अपनी योजनाओं के आधार पर।रोजगार के अवसरों को बढ़ाकर तथा कल-कारखानों की ऊँची-ऊँची चिमनियों से धुंए को निकलता दिखा कर।तब शायद हम कह पाएंगे कि "भारतीय उद्योग गाँव की ओर चल पड़े हैं" वरना केवल भारतीय गाँव की तरफ गया है अभी उद्योग और रोजगार के अवसर अब भी शहरों में ही हैं।
- नरेश सिंह नयाल
देहरादून - उत्तराखंड
भारतीय उघोग यदी गांव की ओर रुख करते हैं तो यह गांवो का स्वर्णीय युग कहा जा सकता हैं पर क्या यह सम्भव हैं? हा! लघु ओर कुटीर उदयोगों को गांव की ओर रूख करते हैं तो यकीनन कम मजदुरी पर अछ्छे मेहनती मजदूर मिल सकते हैं। जमीन भी शहरो से कम दाम पर मिल सकते हैं। अतः मेरे मत से भारतीय उघोगो को गावो की ओर रूख कर गावों से होते पलायन को भी रोकना चाहिये सब को फायदा हैं 
- कुन्दन पाटिल 
देवास - मध्य प्रदेश
जी, हां भारतीय उद्योग गांव की ओर चल पड़े हैं। वह भारतीय कुटीर उद्योग जो चले गए थे शहरों में,अब वही गांव की ओर लौटने लगे हैं। बड़े उद्योग जहां थे, वहीं पर है,रहेंगे ।उद्योगों में लगे श्रमिक जरूर अपने गांवों की ओर चले गए हैं और उनके साथ ही चला गया है वह हुनर जो इन उद्योगों में सहायक था। कुशल श्रमिक जहां रहेगा,वहीं काम करेगा,अपना कुटीर उद्योग शुरू कर देगा।जबकि अकुशल श्रमिक फिर लौटेगा,रोजगार के लिए उसी शहर की ओर, जहां से वह वापस हुआ है। गांव की ओर लौटा कुटीर उद्योग जैसे पापड़,अचार बनाना,हाथ के पंखे बनाना,चटाई बनाना, लकड़ी का फर्नीचर बनाना,मूढ़े बनाना,मूंज और नारियल की रस्सी बनाना,शहतूत और बांस की टोकरियां व जबड़े बुनना,बांस की चिक बनाना आदि अब भी उसी तरह चलता रहेगा,जैसा पहले था। इसके गांव की ओर लौटने का एक लाभ यह होगा कि लागत मूल्य घटेगा, लेकिन ट्रांसपोर्ट खर्च बढ़ेगा। कच्चा माल आसानी से मिलेगा, किंतु उत्पादन की खपत तो शहर में ही होगी। कुटीर उद्योग गांवों की ओर जाने से इनकी आर्थिक दशा तो सुधरेगी ही।
- डॉ.अनिल शर्मा 'अनिल'
धामपुर - उत्तर प्रदेश
अभी ऐसा कहना जल्दबाजी होगी। हाँ,मगर आशा की किरण जरूर जगी है। गाँव में भूमि और श्रमिक सहजता से मिलेंगे और शिक्षित,मेहनती,योग्य प्रतिभाएं भी। बस, अनुभव और दिशावर्धन की महत्वपूर्ण आवश्यकता होगी। यदि,ऐसा समन्वय हुआ तो उद्योग लगेंगे भी और समृद्ध भी होंगे। तत्समय के परिणाम सुखद और चौंकाने वाले होंगे। बस,बुरी नजर भर न लगे।
- नरेन्द्र श्रीवास्तव
 गाडरवारा - मध्यप्रदेश
गांव की ओर चल पड़े हैं भारतीय उद्योग ,ये बात  काफी हद तक सटीक है ।
 औपनिवेशिक काल के दौरान भारतीय कुटीर उद्योगों में तेजी से गिरावट आई थी क्योंकि अंग्रेजी सरकार ने बिल्कुल ही भारतीय उद्योगों की कमर तोड़ दी थी जिसकी वजह से परंपरागत कारीगरों ने अन्य व्यवसाय अपना लिया था । किंतु स्वदेशी आंदोलन के प्रभाव से पुनः कुटीर उद्योगों को बल मिला और वर्तमान में कोरोना काल में तो  कुटीर  उद्योग आधुनिक तकनीकी की समानांतर भूमिका निभाने जा रहे हैं ।अब इन में कुशलता एवं परिश्रम के अतिरिक्त छोटे पैमानों पर मशीनों का भी उपयोग किया जाने लगा है। भारत में कुटीर उद्योगों में गुजरात में दूध पर आधारित उद्योग व  हैंडलूम राजस्थान में पत्थर काटना, कालीन बनाना और हस्तशिल्प उद्योग शामिल है ।इसी प्रकार हैंडलूम, मलमल, रेशमी वस्त्र उद्योग भी  कुटीर उद्योग में आते हैं ।
ग्रामीण पृष्ठभूमि के युवा अब आजीविका का रास्ता अपने गांव की ओर तलाश रहे हैं क्योंकि युवाओं में हाल के दिनों में खेती के प्रति आकर्षण बढ़ा है ,लेकिन ऐसे युवाओं की संख्या अभी भी बहुत ज्यादा नहीं है ।
उत्तर प्रदेश ,राजस्थान, हरियाणा जैसे राज्य में कई किसानों ने सफलता के झंडे गाड़े हैं । ये युवा उनसे प्रेरित हुए हैं ।
प्राइवेट सेक्टर में नौकरियों की स्थिति पिछले कुछ वर्षों से खराब हुई है कुछ पदों को छोड़ा जाए तो मध्यम और नीचे स्तर पर वेतन बहुत ही कम है ।जाहिर है उतने वेतन से महानगरों में रह पाना मुश्किल है ।ऐसे में जिनके पास गांव में खेती बारी है वह ऐसे सफल किसानों से प्रेरित होकर गांव की तरफ जाना चाहते हैं। जिनमें थोड़ा  धैर्य  होगा और कुछ पूंजी भी होगी वह निश्चित तौर पर सफल होंगे ।
कुछ अर्थशास्त्री मानते हैं कि जिन्होंने  कृषि क्षेत्रों में सफलता हासिल की है वह खाद्यान्न की वजह से नहीं बल्कि फल, सब्जी, फूल व औषधीय पौधों के उत्पादन की ओर झुके हैं ।इस क्षेत्र में अभी भी बहुत संभावनाएं हैं ।भारत सरकार के वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय की संस्था  एपीडा की ओर से क्षेत्रीय किसानों को प्रोत्साहित किया जा रहा है।कोरोना 
 काल में भारत गांव की ओर उद्योगों को तलाश रहा है एवं सरकार भी बढ़ावा दे रही है  हम ऐसा कह सकते हैं  ।
- सुषमा दिक्षित शुक्ला
लखनऊ - उत्तर प्रदेश
बीजेंद्र भैया जी! ऐसा नहीं है यह चंद दिनों के लिए ऐसा लग रहा है कोरोना के कारण लेकिन जो भी मजदूर भाई इधर से उधर प्रस्थान कर गए हैं वह बहुत जल्द ही लौट कर आएंगे। कोरोना की जब दवा आ गई तब सब कुछ नॉर्मल हो जाएगा। धीरे-धीरे जब सब कुछ हमारे भारत में ठीक हो जाएगा तब जो लोग गांव में वापस चले गए हैं वह भी लौट के आएँगे और फिर से पहले जैसे हालात होंगे कुछ समय अवश्य लगेगा लेकिन ऐसा नहीं है कि वह लोग वहीं पर रहेंगे । कई बार क्रोध में हम बहुत कुछ कह देते हैं लेकिन पेट की आग और मजबूरियाँ हमें फिर से वही पर ले आती हैं। हमें अपने ही कहे हुए शब्दों को भुलाना पड़ता है। पहले जैसे सुंदर और सही हालात होंगे। हमारी सरकार बहुत सहायता कर रही है माना कि छोटी सी चूक हो गई थी लेकिन आगे- आगे अच्छा समय आएगा फिर से भारतीय उद्योग जैसे थे वैसे चलेंगे । चंद दिनों की बात है कष्ट का समय है यह निकल जाएगा। अभी जो हमें दु:ख का समय लग रहा है वह जैसे एक माँ प्रसव के समय जो दु:ख झेलती है वह बच्चे को जन्म देने के बाद सब कुछ भूल जाती है उसी प्रकार हमारे उद्योग फिर से चलेंगे। शहरों में चहल- पहल होगी। सब कुछ सामान्य हो जाएगा..बस धैर्य की बात है। 
 - संतोष गर्ग
मोहाली - चंडीगढ़

" मेरी दृष्टि में " गांवों में अर्थव्यवस्था की परिकल्पना बहुत अच्छी सोच साबित हो सकती है । परन्तु गांवों में अच्छे वातावरण के साथ - साथ सुविधाओं को उपलब्ध कराना सबसे बड़ी चुनौती है । सरकार को बहुत महेनत के साथ लोगों में विश्वास हासिल करना है । तभी गांवों में अर्थव्यवस्था को तैयारी किया जा सकेगा ।
                                                         - बीजेन्द्र जैमिनी
सम्मान पत्र

By Bangkok - Thailand



Comments

  1. जैमिनी अकादमी द्वारा आदरणीय कमला अग्रवाल जी को भारत रत्न सम्मान मिलने पर हार्दिक बधाई शुभकामनाएं 👏👏👏👏🙏🌹🙏

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  2. आदरणीय बीजेंद्र जैमिनी जी आपको सम्मान पत्र मिलने पर हार्दिक बधाई मंगल भावनाएं 🙏💐🙏

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