लॉकडाउन की पाबंदियां हटाना समय की मांग या जरूरत ?

कोरोना वायरस ने दुनियां को हीला कर रख दिया है ।भारत सरकार ने लॉकडाउन के माध्यम से बीमारी से बचाने के प्रयास किये है ।कुछ सुविधाएं देकर लॉकडाउन समाप्त हो गया है। यह समय की मांग है या जरूरत है । यहीं " आज की चर्चा " का प्रमुख विषय है । अब आये विचारों को देखते हैं : -
 इसमें कोई सन्देह नहीं है गरीब कामगार मजदूर सरकार की तमाम कोशिशो के बावजूद परेशान है बहुत लोगो तक पूरा लाभ नही पहुच सका हैं जिसका कारण विशाल जनसंख्या है परन्तु इस बात का खतरा भी कम नही है कि लोगो ने यदि सुरक्षा उपायो पर ध्यान नही दिया तो परिणाम भयावह हो सकते है क्योकि अभी तक यह देखने मे आया है कि बहुत से लोगो ने कोरोना संकट के मद्देनजर लागू लॉक डाउन के निर्देशो का पालन करने मे लापरवाही बरती है तमाम चीजों जैसे आर्थिक हालात  और मजदूरों व कामगारों की परेशानियों को देखते हुए सरकार ने अनलॉक करने का निर्णय किया परन्तु हम सभी को पूर्ण सुरक्षा उपायो पर ध्यान देते हुए आगे बढना होगा यह बहुत आवश्यक है लॉक डाउन बहुत अधिक समय तक रखना देशहित मे नही है और न रखना संभव है इस समय लॉक डाउन की पाबंदिया हटाना समय की माँग है परन्तु सुरक्षा उपायो का पालन भी सख्ती के साथ किया जाना चाहिए लापरवाही करने वाले को पहचान पक कडा दण्ड दिया जाना बहुत आवश्यक है । 
- प्रमोद कुमार प्रेम 
नजीबाबाद - उत्तर प्रदेश
अनलॉक का पहला दिन  ही बता रहा है पिंजड़े में कैद पक्षी को खुला आसमान की तलाश होती है । ऐसे  आज इंसान ऐसे ही  पाबन्दी हटा  आजादी  समय की मांग भी है और जरूरत भी  है ।
जीवन  जीने के लिए अर्थ की जरूरत होती है । बिना काम किये इसकी प्राप्ति नहीं कर सकते हैं ।  तीन महीने हो गए  लोगों को घर में रहते हुए । हर किसी को काम पर जाना है ।  घर  बैठ के काम नहीं चल सकता है । 
आर्थिक जरूरतों के लिए बाहर निकलना ही पड़ेगा । 
पाबंदी यानी लॉकडाउन अनलॉक हो गया । हमें कोरोना से बचना होगा , ये चुनोती है हमें फिर से खड़ा होना है । हालात खराब जरूर हैं । हमें संयम , धैर्य पर समस्याओं को समाधान करना होगा । 
  भारत सरकार के सभी  नियमों का पालन करना होगा कोरोना खत्म नहीं हुआ है । सोशल डिस्टसिंग , मॉस्क पहनना जरूरी है । 
सआड़कों पर लोगों की , गाड़ियों की आवाजाही शुरू हो गयी है । ई  - रिक्शा , ऑटो की पाबन्दियाँ भी हठी हैं । की महीनों से मिठाइयों की दुकाने बंद थी । अब   लोगों को 3 महीने बाद  नाश्ता , मिठाइयाँ आदि खरीद के घर ले जारहे हैं । सड़कों पर साइकिल बहार आयी है । ऐसा लगा मुझे मेरा जमाना वापिस आ गया है ।
 सरकारी , प्राइवेट दफ्तर खुल के गतिविधियाँ का श्रीगणेश हो गया ।  कुछ राज्यों को छोड़ के देश अब अनलॉक हो गया है  
जिंदगी को रफ्तार मिल रही है । धार्मिक स्थल अभी नहीं खुले हैं । हमें सतर्क , सजग , जिम्मेदारी निभानी होगी ।
देश की भी  हमारी भी जरूरत है लॉक डाउन की पाबन्दियों को हटाना । 
- डॉ मंजु गुप्ता 
 मुंबई - महाराष्ट्र
लाकडाऊन की पाबंदियाँ हटाना जरुरत है लोगों को काम चाहिऐ पैसा चाहिऐ उसके बिना कब तक रह सकेंगे , पाबंदियाँ हटेगी तभी काम होगा ! 
लॉकडाउन की पाबंदियां हटाने का सिलसिला कायम करना समय की मांग और जरूरत थी। कोरोना संक्रमण की दृष्टि से संवेदनशील इलाकों को छोड़कर लॉकडाउन से मुक्त होने की जो प्रक्रिया शुरू होने जा रही है वह वैसे तो आठ जून से और तेज होगी, लेकिन यह बहुत कुछ राज्य सरकारों और एवं उनके प्रशासन पर निर्भर करेगी। यह अच्छा है कि लॉकडाउन शिथिल करने संबंधी अधिकार राज्यों को दे दिए गए हैं, लेकिन वे अपने इस अधिकार का इस्तेमाल करते समय यह ध्यान रखें तो बेहतर कि आर्थिक-व्यापारिक गतिविधियों को आगे बढ़ाने की सख्त जरूरत है और इसमें सफलता तब मिलेगी जब आवाजाही पर अनावश्यक अंकुश नहीं लगेगा। इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि केंद्र सरकार ने आवाजाही को प्रोत्साहित करने के कदम पहले भी उठाए थे, लेकिन वे राज्यों की अड़ंगेबाजी का शिकार हो गए।
राज्यों ने हवाई और रेल यात्रा शुरू करने के केंद्र सरकार के फैसले पर तो अनिच्छा प्रकट की ही, बस सेवाएं शुरू करने में भी मुश्किल से दिलचस्पी दिखाई। परिणाम यह हुआ कि कारोबारी गतिविधियां अपेक्षा के अनुरूप आगे नहीं बढ़ सकीं। कम से कम अब तो राज्य सरकारों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि कारोबारी गतिविधियों को न केवल बल मिले, बल्कि उन्हेंं गति देने में आ रही बाधाएं प्राथमिकता के आधार पर दूर हों। इन बाधाओं को दूर करने में राज्यों को अतिरिक्त दिलचस्पी दिखानी चाहिए।
राज्यों ने हवाई और रेल यात्रा शुरू करने के केंद्र सरकार के फैसले पर तो अनिच्छा प्रकट की ही, बस सेवाएं शुरू करने में भी मुश्किल से दिलचस्पी दिखाई। परिणाम यह हुआ कि कारोबारी गतिविधियां अपेक्षा के अनुरूप आगे नहीं बढ़ सकीं। कम से कम अब तो राज्य सरकारों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि कारोबारी गतिविधियों को न केवल बल मिले, बल्कि उन्हेंं गति देने में आ रही बाधाएं प्राथमिकता के आधार पर दूर हों। इन बाधाओं को दूर करने में राज्यों को अतिरिक्त दिलचस्पी दिखानी चाहिए।
नि:संदेह लॉकडाउन से बाहर आने के कदम उठाए जाने का इंतजार ही किया जा रहा था, लेकिन इन कदमों के आधार पर ऐसी कोई व्याख्या नहीं होनी चाहिए कि कोरोना संक्रमण का खतरा कम हो गया है या फिर टल गया है। सच यही है कि खतरा अभी बरकरार है। कोरोना संक्रमण के मामले यही बता रहे हैं कि अभी इस खतरे के साये में ही गुजर-बसर करना होगा। कोरोना के साथ जिंदगी जीने का मतलब यही है कि संक्रमण से बचे रहने के हर संभव उपायों के साथ काम-काज निपटाए जाएं। इन उपायों और खासकर 
यह ठीक नहीं कि कोरोना संक्रमित मरीजों की संख्या बढ़ते जाने के बाद भी एक-दूसरे से शारीरिक दूरी बनाए रखने और मास्क लगाने को लेकर लोग उतने सतर्क नहीं जितना उन्हेंं होना चाहिए। राज्यों को भी इसे लेकर विशेष ध्यान देना होगा कि उनका प्रशासन शारीरिक दूरी के नियम का पालन कराने के नाम पर कारोबारी गतिविधियों को बल देने वाली आवाजाही को नियंत्रित न करने लगे। इसके नतीजे अच्छे नहीं होंगे-न तो कारोबार जगत के लिए और न ही आम जनता के लिए। 
यदि जनता चाहती है की लाकडाऊन की पाबंदियाँ हटाई जाऐ तो हमें सहने सारे निर्देंशो का पालन करना है अपनी सुरक्षा दृष्टि से व समाज परिवार की सुरक्षा दृष्टि से बहुत जरुरी है । 
- अश्विनी पाण्डेय
मुम्बई - महाराष्ट्र
लोकडाउन की पाबंदियों से हर कोई ऊब चुका था । जिसे बढ़ाने के चलते आने वाले समय मे सड़को पर प्रदर्शन भी देखे जा सकते थे । जिसे तूल देने में विपक्ष कोई कसर नही छोड़ता । वही लोकडाउन की पाबंदियों में लगभग 90 प्रतिशत छूट देने का दूसरा कारण ये भी है कि अब जनता के पास न खाने को कुछ बचा था और न लगाने को और जिस मर्ज की कोई दवाई ही न हो उसके भय से कब तक जनता को घरों में कैद किया जा सकता है ।
और सबसे मुख्य कारण की बात अगर करें तो देश के आर्थिक हालात डाबडोल हो चुके है । इसीलिए यदि देश की गतिविधियों को यूं ही बरकरार चलना है तो उसके लिए धन की आवश्यकता है और सरकार के पास पैसा तभी आएगा जब देश में गतिविधियों को शुचारु रूप से शुरू किया जाएगा । इसीलिए ये कहा जा सकता है कि ये न केवल समय की मांग थी बल्कि सरकार की जरूरत भी थी ।
- परीक्षीत गुप्ता
बिजनौर - उत्तरप्रदेश
कोई भी मांग तभी होती है, जब उसकी जरुरत होती है । लाक डाउन की पाबंदियों को हटाना जब समय की जरुरत बन गया,थोड़ी थोड़ी मांग भी होने लगी। लगभग ढाई महीने के लाकडाउन ने अर्थव्यवस्था को चरमरा दिया। सबकुछ ठप्प हो गया। सरकार के राजस्व में कमी आ गयी और खर्च बढ़ ही गया,राहत कार्यों के कारण। तो लाकडाउन की पाबंदियों को हटाना बन गया जरुरत। इस बीच सबसे पहले हटी, बड़ा राजस्व देने वाले शराब के कारोबार से पाबंदी। फिर ध्यान गया अन्य ओर तो ट्रांसपोर्ट से पाबंदी हटी। अब रोजगार,मजदूरी के संकट से जूझ रहे जनमानस की बढ़ती अकुलाहट को सरकार ने भांप लिया और लाकडाउन की पाबंदियों को हटाया। इसे हम समय की जरुरत मानते हैं।  इस राहत से लघु व्यापारियों, मजदूरों के चेहरों पर राहत की खुशी नजर आयी है।आटो,रिक्शा और सवारी ढोने वालों को उम्मीद की किरण नजर आयी है। राज्य परिवहन निगम की बसें और कुछ ट्रेन चलाते जाने से सरकार के राजस्व में वृद्धि होगी ही इससे। यह जरुरत कितनी लाभकारी या नुकसानदायक ? इस पर अलग से विचार किया जा सकता है। 
 -  डॉ.अनिल शर्मा 'अनिल'
धामपुर - उत्तर प्रदेश
लॉक डाउन को हटाने का जो निर्णय सरकारों को लेना पड़ा, वह उनकी मजबूरी बन गई है। लोक् डाउन के खुलने से लोगो का आवागमन शुरू हो गया हैं। लोग आफिस जा रहे हैं। दुकाने खुल गई हैं। बाज़ारो में सड़कों पर भीड़ है। लेकिन क्या सामाजिक दूरी का पालन किया जा रहा है। शायद नहीं। सिर्फ मास्क लगाकर और हाथ धोने से कार्य नहीं बनेगा। सामाजिक दूरी का पालन हर हाल में करना पड़ेगा। जहां पहले पांच छः सौ मरीज रोज़ आ रहे थे, आज देश में आठ हजार रोज़ नए केस आ रहे हैं। और आज का आंकड़ा कोरोना के मरीजो का लगभग दो लाख को छूने जा रहा है। सरकारो के पास पैसा नहीं है, लोगों को तनख्वाह देने के लिए। और काम करने के लिए। राज्य सरकारें केंद्र सरकार के आगे हाथ फैलाने को मजबूर हैं।आर बी आई ने पहले ही 20 लाख करोड़ का पैकेज का ऐलान किया है।लोग बेकरी और भुखमरी से बेहाल हो चुके हैं।सबको काम चाहिए।और काम करने के लॉक डाउन खोलना जरूरी हो गया है।
- सीमा मोंगा
रोहिणी -  दिल्ली
लाॅकडाउन की पाबंदियां समय की मांग भी हैं ओर जरूरत भी लाॅकडाउन शुरूवात में तो अछ्छा लगा की चलो 21 दिन का हैं 21 दिन में कोरोना समाप्त हो जायेगा ओर हम पुनः अपनी पुरानी दुनिया में आ जायेगे पर हुआ इसका उलटा 21दिन का लाॅकडाउन 69 दिन तक खिच गया ओर नित्य नई सम्साओं का जन्म होने लगा इन सम्साओं को दूर करने के लिये लाॅकडाउन खोलना बहुत जरूरी हो गया यह समय की मांग भी हैं ओर हम सब की जरूरत भी।
- कुन्दन पाटिल
 देवास - मध्य प्रदेश
     लाँकडाऊन में आमजनों को घरों में कैद कर दिया गया था। जिसके कारण जनजीवन प्रभावित तो हुआ। साथ ही आवश्यकतानुसार तात्कालिक जीवन यापन वस्तुएं घर सेवा में प्राप्त तो होती गई, किन्तु यह तो आंशिक रूप से व्यवस्थाएं थी। व्यवस्थाएं तो जब अनियंत्रित हो गई जब राज्य के अधीनस्थ उद्योगों को बंद करना पड़ा था, वहां कार्यरत मजदूरों को अपने-अपने गृह राज्यों में पहुँचने के लिए निकलते गये, किन्तु अव्यवस्था के बीच जीवन को पुनः जीवित अवस्था में पहुँचाने के लिए तरह-तरह की अनेकों कठिनाईयों का सामना करना पड़ा, लेकिन तब तक काफी देर हो चुकी थी। जिसके कारण शासन-प्रशासन को लाँकडाऊन स्थितियों से निपटने पुनर्विचार करने की आवश्यकता पड़ने लगी, फिर क्रमशः स्थितियों को नियंत्रित करने के लिए आंशिक रूप से कारोबारों को पुनः जीवित अवस्था में  प्रारंभ कर राहत दिया गया। यह भी स्थितियों को पूर्णतः निर्णायक नहीं था। अंततः अनलाॅक का निर्णय निर्णय लिया गया। वर्तमान में भी पूर्ववत स्वंतत्र रुप से बस, रेल सेवाऐ प्रारंभ नहीं करने से आमजन को काफी तकलीफ़ों का सामना करना पड़ रहा हैं। कई व्यक्तियों को अपने मुख्यालयों से दूरअंचलों में सेवाऐं देने के लिए निकलते थें। आज भी अधिकांशतः लोग को विपरित परिस्थितियों का सामना करना पड़ रहा हैं। आज आवश्यकता प्रतीत होती हैं, स्वतंत्र रुप से लाँकडाऊन को, समय की मांग को देखते हुए समस्त पाबंदियों को पूर्ण रूप से हटाना होगा ताकि पूर्ववत जनजीवन यथावत हो सकें?
- आचार्य डाॅ.वीरेन्द्र सिंह गहरवार 'वीर' 
 बालाघाट - मध्यप्रदेश
            हमारी विकास दर बीते साल बड़ी गिरावट  का सामना करती रही और यह 4.7 फ़ीसदी पर सिमट कर रह गई थी ।कुछ वर्ष पहले तक हमारी विकास दर दुनिया में सबसे तेज थी लेकिन आज वह स्थिति नहीं है।हमारे देश में  उत्पादन,  निर्यात, निवेश आदि सभी पर लॉक डाउन की पावंदियों  के कारण बहुत बड़ा असर पड़ा है। परिवहन सेवाएं, मनोरंजन और सिनेमा ,रेस्तरां और होटल ,पेय पदार्थ आदि सभी की मांग में गिरावट आई है। इन सभी चीजों को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि  लॉक डाउन की  पाबंदियां  हटाना वर्तमान समय की बहुत बड़ी जरूरत है इससे बेरोजगारी का बढ़ता हुआ ग्राफ भी रुक सकेगा तथा देश के आर्थिक हालात फिर से अपनी पटरी पर आ जाएंगे।
 - डॉ अरविंद श्रीवास्तव 'असीम' 
दतिया - मध्य प्रदेश
 लाभ डाउन की पाबंदियां हटाना ज्यादातर जरूरत है साथ साथ समय की मांग भी है अभी वर्तमान समय में ऐसी परिस्थितियां आ गई है कि अगर लाभ डाउन नहीं हटाया जा रहा है तो जो मूलभूत आवश्यकताएं हैं उसकी पूर्ति में बाधाएं आ रही है और अगर लाख डाउन हटा दिया जा रहा है तो लाख डाउन का पालन ना होने से करो ना महामारी का और विस्तार बढ़ रहा है ऐसी स्थिति को देखते हुए जरूरतमंद लोगों के लिए लाभ डाउन का पाबंदी हटाना जरूरी हो गया है क्योंकि लाभ डाउन नहीं हटाने से उनकी रोज की दिनचर्या में परेशानी आ रही है मनुष्य की आवश्यकता की पूर्ति वस्तु से होती है और वस्तुओं श्रम से मिलता है चाहे वह शारीरिक श्रम हो चाहे वह नौकरी के एवज में मानसिक श्रम हो तभी मानव अपने मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति कर सकता है अतः कहा जा सकता है कि अभी विषम परिस्थिति के समय में लोगों को पाबंद - जरूरत भी है और यही समय की मांग भी है समय की मांग के अनुसार है जरूरत की पूर्ति करने में मनुष्य जुटे हुए हैं  पाबंदियां हटाना समय की मांग भी है और जरूरत भी है लेकिन इसके साथ साथ लाभ डाउन का पालन करते हुए सावधानी के साथ कार्य करना होगा नहीं तो और मुसीबत मे फंसना होगा।
 लाख डाउन का पालन करते हुए अपने जरूरत भी पूरी करना है और करो ना को दूर भगाना है और स्वयं को नियंत्रित रह कर लोगों में जागरूकता फैलाना है तभी हम वर्तमान समस्या से निजात पा सकते हैं।
- उर्मिला सिदार
रायगढ़ - छत्तीसगढ़
लाकडाऊन में रह जीवन तो नहीं चल सकता काम तो करना ही है बिना काम के न देश न समाज न घर कुछ नहीं चलता तो जरुरी है पाबंदियाँ हटाना व रोज़गार के लिऐ लोगों का बहार निकलना । 
ये सब कुछ पहली बार हो रहा है, एकदम पहली बार. जब एक ऐसी महामारी से पूरी दुनिया जूझ रही जिसमें एक विषाणु ने मनुष्य को अपना वाहन बना पूरी मनुष्य प्रजाति को ही संकट में डाल एक दूसरे से अलग कर दिया है.
कोरोना ने दुनिया की गति धीमी भर नहीं की है, रोक दी है. भारत जैसे देश में तो वर्तमान पीढ़ी ने शायद ही कभी ये सब कल्पना की हो कि एक ऐसा भी वक्त आएगा जब हम महीनों घरों में कैद रहेंगे, अपना जीवन बचाने के लिए.
महीनों एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति से हाथ तक न मिलायेगा. पूरे देश का चप्पा-चप्पा सड़कें वीरान हो जाएंगी, रेल पटरियों पर खड़ी हो जाएंगी, वायुयान जमीन धर लेंगे, मॉल की बत्तियां महीनों नहीं जलेंगी, होटल-रेस्टोरेंट में महीनों टेबल के उपर टेबल उलटकर रख दिया जाएगा.
जी हां, ये लॉकडाउन है और ये लॉकडाउन कब तक चलना है इस पर अनिश्चितता ही है अभी. फिलहाल हम लॉकडाउन में है । 
ऐसे में पूरी दुनिया खुद को तरह-तरह के रचनात्मक कार्यों में व्यस्त रख खुद को मानसिक और शारीरिक रूप से सक्रिय और सकारात्मक रखने की कोशिश में है.
कोई वर्षों बाद रसोई में गया है तो कोई पहली बार किसी वाद्ययंत्र पर उंगली फेर रहा है. कोई अपने अंदर छुपी प्रतिभा को टटोल रहा तो कोई इस वक्त का सदुपयोग एकांत की साधना में शांति की खोज के लिए कर रहा है.सब लगे थे अपने अपने तरीक़े से समय पास करने में 
पर लाकडाऊन में पाबंदियाँ हटाई जा रही है यह समय की माँग है व्यवसाय की माँग है । 
हमें निर्देशों के साथ बहार जानी है काम करना है कब तक लाकडाऊन में बैठकर रहेंगे 
पेट है तो काम तो करना ही पड़ेगा । 
- डॉ अलका पाण्डेय
मुम्बई - महाराष्ट्र
हम यदि जमीनी आंकड़ों और हकीकतों को जरा सा टटोलें तो लगता है कि लॉकडाउन की पाबंदियां हटाना समय की मांग हो चुकी है।क्योंकि लॉकडाउन से केवल अर्थव्यवस्था ही नहीं बल्कि आम जीवन भी बहुत अधिक प्रभावित हो चुका है।जनमानस अपनी दैनिक गतिविधियों जैसे ऑफिस या अन्य स्थानों पर जाने से पिछले दो माह से वंचित है।अगर वो जाना भी चाहे तो उसके मन में केवल वैश्विक महामारी कोविड-19 ही नहीं बल्कि कहीं न कहीं प्रशासन को लेकर भी सवाल उठते हैं।क्या जाने देंगे?कब तक लौटना होगा?पास बनने में कितना समय लगेगा? आदि।इन सभी प्रश्नों के उत्तरों ने उस पर मानसिक तनाव की स्थिति पैदा के दी है।
      इन सबको देखते हुए लगता है कि छूट देना जरूरत से ज्यादा मांग बन चुकी है।जब इसी के संग जीना है तो हमें धीरे-धीरे उसकी तैयारी भी करनी होगी।उन तैयारियों में अपनी सहभागिता भी निभानी होगी।अर्थात खुद ही समझदार और जिम्मेदार बनकर निर्देशों का पालन करें और अपनी दिनचर्या में पूरे एतिहात के साथ शामिल हो जाएं।
    समय जब बलवान होता है तक उससे भागने से अच्छा है कि पूरी दृढ़ता और मजबूती के साथ उसका सामना करें और फिर से समय परिवर्तन के नजदीक पहुँचें।
- नरेश सिंह नयाल
देहरादून - उत्तराखंड
सरकार ने पिछले 25 मार्च से चल रहे लॉकडाउन से बहुत सारी पाबन्दियों को हटा दिया है। यह समय की मांग के साथ जरूरत भी है। क्योंकि देश का अर्थव्यवस्था चरमरा गई है। उधोग-धंधे बंद हो  गए थे, जिसके कारण करोड़ो की संख्या में मजदूर बेरोजगार हो गए। उनके समक्ष रोजी रोटी की समस्या उत्पन्न हो गई है। सरकार यदि लॉकडाउन से पाबन्दियों को नही हटाती तो कोरोना से पहले लोग भुखमरी से मर जाते। लॉकडाउन के दौरान भी लोग भुखमरी के शिकार हुए हैं। अपने घर पहुचने के लिए मजदूरों ने 22 सौ किलोमीटर तक कि पैदल रास्ता तय किया है। उन्हें न तो भूख की चिंता थी और ना ही प्यास की। बस दिमाग मे एक ही बात थी कि किसी भी तरह उनको अपने गांव अपने परिवार के पास पहुँचना है, जिसमे लोग सफल भी हुए और कितनों ने रास्ते मे ही दम तोड़ दिया। कोरोना काल का मंजर बहुत ही डरावना था है और भविष्य में भी पीछा छोड़ने वाला नही है। इन परिस्थितियों में लॉकडाउन से पाबंदियां हटाना समय की मांग के साथ साथ जरूरत भी है। एक बात और है भले ही सरकार ने लॉकडाउन से पाबन्दियों को हटा दिया है पर कोरोना का प्रभाव और भी बढ़ गया है। पिछले 15 दिनों में कोरोना के नए केश प्रति घंटे के अनुसार 247 बढ़ रहे हैं। तीन दिन में 24 हजार  नए मरीज मिले हैं।  देश मे कोरोना संक्रमितों की संख्या 1, 82,143 पहुँच गई है, जबकि 5,164 मरे हैं। जबकि 86,984 लोग स्वस्थ हुए हैं। कोरोना के हर रोज सवा लाख टेस्ट हो रहा है। सरकार ने भले हीपाबन्दियों पर ढील दी है पर सख्ती में कोई कमी नही की है। बाजार खोल दिए गए है। आज से 200 ट्रेनें चलनी शुरू कर दी गई है। रोजगार के साथ निर्माण कार्य शुरू हो गए हैं। लोगों का आवागमन शुरू हो गया है। अब लोगों को और भी  सतर्क रहने की आवश्यकता है। सोशल डिस्टेंसिंग का पालन, मास्क पहनना और साबुन से हाथ धोते रहना जरूरी है। तभी कोरोना को मात दिया जा सकता है।
- अंकिता सिन्हा 
 जमशेदपुर  - झारखंड
लोक डाउन के पाबंदियां चरणबद्ध तरीके से कम करने की  समय की जरूरत है। जिससे अर्थव्यवस्था धीरे-धीरे पटरी पर आए। अभी हमारे देश के जीडीपी निचले स्तर पर आ गया है। इसको सुधारने की आवश्यकता है। अभी देश में करुणा का खतरा कम  नहीं हुआ है। देशवासियों से अनुरोध है की कठिन तपस्या और कठिनाई के बाद देश ने जिस तरह से हालात संभाला है उसे बिगड़ने नहीं देना है साथ ही साथ आर्थिक विकास की ओर ध्यान देना भी उचित है। आर्थिक विकास में बोकारो भी एक कड़ी बना, आज पहली बार चीन को 30000 टन इस्पात भेज रहा है। अगले सप्ताह में 45000 टन इस्पात वियतनाम को भेजेगा। मैं बोकारो में हूं इसलिए जानकारी हासिल हुआ है और इसके माध्यम से दे रहा हूं। इस तरह से हर क्षेत्र में आर्डर मिल रहा है। अमेरिका और यूरोप से 7500 करोड़ रुपए का मास का ऑर्डर मिला है। गारमेंट निर्यातको का कहना है लॉक डाउन के कारण  60%प्रतिशत गिरावट दर्ज की गई है लेकिन अब अमेरिका का बाजार खुलने से ऑनलाइन बिक्री शुरू हो गई है और हम जल्द ही भरपाई कर लेंगे।
इंजीनियरिंग एक्सपोर्ट प्रमोशन काउंसिल के अनुसार 50% एशियाई है नए ऑर्डर मिल रहे हैं।
उद्योग संगठन की तैयारी चीन के उत्पादों का विकल्प देने को तैयार है।
लोक डाउन चरणबद्ध खुलने का समय की मांग भी है जरूरत भी हमें नए भारत का निर्माण करना है। मैं उनसे हमें ही सीख मिला है एक कर्मठ भारत हौसला बुलंद भारत बनकर उभरे। अब हमें जल्द ही विश्व गुरु बनाने का संकल्प लिए है ।
        - विजेंयद्र मोहन
बोकारो - झारखंड
लाॅकडाउन  की  पाबंदियां  समय  की  मांग  और  जरूरत  दोनों  के  कारण  जरूरी  हो  गया  । 
      लंबे  समय  तक  चले  लाॅकडाउन  ने  जीवन  को  एक  प्रकार  से  बोझिल  और  तनावग्रस्त  भी  बना  दिया  । अनेक  प्रकार  की  चिन्ताएं  जिनमें  आर्थिक  समस्या  अग्रणी  है  । 
        भारत  में  सभी  स्तर  के  लोग  रहते  हैं  ।  लाॅकडाउन  की  वजह  से  गरीब  और  दिहाड़ी  मजदूर  सबसे  अधिक  प्रभावित  हुए  । 
        कोरोना  अपनी  जड़ें  जमा  चुका  है  ।  यह  वायरस  इतनी  जल्दी  जाने  वाला  भी  नहीं  है  ।  और  रोजी- रोटी  भी  जरूरी  है  तथा  कोरोना  से  बचाव  भी । 
       प्रत्येक  क्षेत्र  में  देश  का  नुकसान  हुआ  है  । अतः कोरोना  के  साथ  जीते  हुए  लाॅकडाउन  के  नियमों  का पालन  करते हुए,  स्वयं  को  संक्रमित  होने  से  बचाना  है । किसी  भी  स्थिति  में  इसकी  चेन  को  जुड़ने  नहीं  देना  है ।
      इसे  तो  एक  दिन  समाप्त  होना  ही  है  ।  कहते  हैं  ना  कि   ' दर्द  जब  हद  से  गुजरता  है  तो  दवा  बन  जाता  है  ।' 
       पाबंदियां  हटी  हैं  तो  इसका  नाजायज़  फायदा  नहीं  उठाएं  । 
        - बसन्ती पंवार 
       जोधपुर  - राजस्थान 
लॉकडाउन की पाबंदियां हटाना समय की मांग भी होता और जरूरत भी। हमारा देश विशाल है। अनेकता में एकता है। यहां सभी वर्ग के लोग हैं। अनेक बहुत अमीर हैं तो अनेक बहुत गरीब भी हैं। कोई भी हो,पाबंदियों में अधिक दिनों तक न रखा जा सकता , न रह सकते। मजबूरयां बढ़ेंगी तो विवशता बढ़ेगी। फिर जिजीविषा के लिए व्यथित  और पीड़ित के लिए ' मरता क्या न करता ' बात लागू होने में देर नहीं लगती। सभी समझ रहे हैं, कोरोना संकट बड़ा नहीं, बहुत बड़ा और भयंकर है परंतु जीने के लिए घर में बंद रहकर काम नहीं चलने वाला। आय बहुत जरूरी है। पैसा आयेगा तभी घरेलू जरूरतें पूरी की जा सकेंगी और यह तभी संभव है जब कमाई के लिए कुछ किया जावे। पहले करते आये हैं, वह या नया। इसीलिए लॉकडाउन की पाबंदियां बोझिल लगना शुरू होने लगीं हैं। जिनका हटना निहायत जरूरी भी है और महत्त्वपूर्ण भी। 
- नरेन्द्र श्रीवास्तव
 गाडरवारा - मध्यप्रदेश
लॉक डाऊन की पाबंदियां हटाना समय की मांग भी है और जरुरत भी है । देश में लॉक डाऊन 04 तक उद्योगपति, व्यवसाई, किसान,श्रमिक,सहित सभी वर्ग त्राहि त्राहि कर रहे हैं । देश की केंद्र वा राज्य सरकारें भी आर्थिक गतिविधियां ठप्प होने से राजस्व में भरी कमी रही है । सरकारों के लिये जहां लॉक डाऊन की पाबंदियां हटाना मजबूरी है वहीं लोग भी लॉक डाऊन की सख्ती के कारण अत्यधिक मुसीबत झेल रहे थे । उन्हें कमाई का कोई साधन दिखाई नहीं दे रहा है ऐसे में लॉक डाऊन की पाबंदियां हटाने से इस वर्ग को रोजगार के कुछ अवसर पैदा होंगे ।श्रमिक वर्ग के परिवारों को फाके से भी छुटकारा मिलेगा ।
        - सुरेन्द्र मिन्हास 
बिलासपुर - हिमाचल प्रदेश 
लॉक डाउन की पाबंदियां हटाना समय की मांग और जरूरत दोनों है क्योंकि समय आएगा तो जरूरत भी पूरी होगी। आम आदमी सभी जरूरी सामानों के न मिलने से परेशान है। यही नही सभी वर्ग के लोग किसी न किसी चीज के लिए परेशान है। अभी वक्त के अनुसार समय और जरूरत दोनों की बहुत आवश्यकता है। अतः लॉक डाउन की पाबंदी हटाकर समय और जरूरत को पूरा जाना जरूरी है। तभी हम अपनी सभी प्रकार के परेशनियों से उभरकर आगे बढ़ सकते है। 
- राम नारायण साहू "राज"
रायपुर - छत्तीसगढ़
वुहानी शैतान को नियंत्रित करने के लिए लाॅकडाउन का अस्त्र चलाया गया । देश में  लाॅकडाउन 22 मार्च से ही शुरू हो गया था । चार चरणों में लाॅकडाउन चला । चरण दर चरण इसके स्वरूप में बदलाव किया गया । ढील का समय बढता गया । पहली जून से अनलाॅक - 01 शुरू हुआ । लाॅकडाउन की वजह से स्कूल - कालेज  , दुकानें - माॅल , होटल - रेस्टोरेन्ट  , मंदिर - सिनेमा , कम्पनियां - फैक्टरियां  , बस - ट्रक  , रेल - जहाज सब बंद कर दिए गए । सामाजिक - धार्मिक आयोजनों पर पाबंदी । विवाह एवं मरण पर लोगों की संख्या निर्धारित कर दी गई । सिर्फ जीवन यापन के लिए आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति  होती रही  । उत्पादन ठप्प  ... मजदूर बेरोजगार ... । आय के स्त्रोत बंद ... व्यय जारी ... । अर्थव्यवस्था चौपट  ... शेयर मार्केट - नेफ्टी धड़ाम ... । मजदूरों का पलायन शुरू  ... फंसे छात्रों - पर्यटकों की घर वापसी आरम्भ ... । वापसी के लिए किराया भाड़ा । इन्फैक्टिड व्यक्तियों का क्वारंटाइन का खर्चा  । वापसी अभियान से कोरोना के मामले बढ रहे हैं । शहर से गाँवों की ओर वायरस का संक्रमण फैलने लगा है । संक्रमण जब बढ रहा है तो पाबंदी हटाना उचित नहीं है । यह एक चिंतनीय पहलू है । सरकार ने जनता कर्फ्यू के बाद यदि एक सप्ताह का समय देकर मजदूरों , फंसे हुए छात्रों व अन्य लोगों को घर - वापसी के लिए मोहलत दी होती तो उस समय वायरस का संक्रमण इतना नहीं फैला हुआ था । घर - वापसी के लिए ऐसी मोहलत उस समय शत प्रतिशत सुरक्षित थी और सभी परेशानियों - दिक्कतों , दायित्वों - जिम्मेवारियों  , व्यय - खर्चे  आदि से भी छुटकारा होना था । यही नहीं , संक्रमण बढने का खतरा भी कम होना था । अब जब संक्रमण बढ गया है तो अनलाॅक करना तर्कसंगत नहीं । ऐसे में लाॅकडाउन की पाबंदियां हटाना ना तो समय की मांग है और ना ही जरूरत , बल्कि मजबूरी है । लोग और अधिक बोझ ना बन जाए इसलिए पाबंदी हटाई जा रही है । इस  विपति काल में लोग सावधानी बरतते हुए स्वयं ही अपना बचाव करें और अपना काम - धन्धा भी शुरू करें । 
- अनिल शर्मा नील 
   बिलासपुर - हिमाचल प्रदेश
लाक डाउन लगाना  व समय की मांग पर ढीला करना ,मानवीय जरूरत के दो ऐसे पहलू हैं जिसमे से किसी को नजर अंदाज नही किया जा सकता और यह सामंजस्य समय के अनुसार बनाना भी जरूरी था ।
जिसका कुछ तो सकारात्मक परिणाम ही मिला है वरना जो संक्रमण के मामले लाखों में ही पहुंचे हैं वह अब तक बिना लॉक डाउन के शायद करोड़ों में पहुंच चुके होते ।इस बीच बीमारी से निपटने की तैयारी का भी मौका मिल गया ।रही बात अब लॉक डाउन से बाहर आने की तो वह समय की मांग थी और देश की आर्थिक गतिविधियों को आगे बढ़ाने की जरूरत भी थी ।संक्रमण की दृष्टि से संवेदनशील इलाकों को छोड़कर लाक डाउन से मुक्त होने की जो प्रक्रिया शुरू हुई है वह वैसे तो 8 जून को और तेज होगी लेकिन बहुत कुछ राज्य सरकारों और उनके प्रशासन पर निर्भर करेगा फिलहाल लॉक डाउन की पाबंदियां हटाने का सिलसिला कायम करना समय की मांग और जरूरत थी।इसे शिथिल करने संबंधी अधिकार राज्यों को दे दिए गए हैं ,लेकिन वे अपने इस अधिकार का इस्तेमाल करते समय यह ध्यान रखें तो बेहतर होगा कि आर्थिक एवं व्यापारिक गतिविधियों को आगे बढ़ाने की सख्त जरूरत है। इसमें सफलता  तब मिलेगी जब आवाजाही पर अनावश्यक अंकुश नहीं लगेगा ।इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती  कि केंद्र सरकार ने आवाजाही को प्रोत्साहित करने में पहले ही कदम उठाए थे लेकिन राज्यों की दखलन्दाजी के शिकार हो गए। राज्यों में तो हवाई और रेल यात्रा शुरू करने के केंद्र सरकार के फैसले पर भी  अनिच्छा प्रकट की थी ,बस सेवाएं शुरू करने में भी मुश्किल से दिलचस्पी दिखाई। नतीजा यह हुआ कि कारोबारी गतिविधियां अपेक्षा के अनुरूप आगे नहीं बढ़ सकी ।
कम से कम अब राज्य सरकार यह सुनिश्चित करेगी कि कैसे कारोबारी गतिविधियों को बल मिले बल्कि उसकी गति में जो बाधाएं आ रही हैं वह प्राथमिकता के आधार पर दूर हो सके इन बाधाओं को दूर करने में राज्य को अतिरिक्त दिलचस्पी दिखानी होगी ।
कुल मिलाकर हम कर सकते हैं कि लॉक डाउन से बाहर आना समय की मांग भी थी और जरूरत भी ।
- सुषमा दिक्षित शुक्ला
लखनऊ - उत्तर प्रदेश
लाकडाउन से पाबन्दियां हटाना निहायत ही आवश्यक है और जरूरत सिर्फ देश या जनता की नहीं अपितु हर उस वर्ग की है जो दो हाथों के साथ एक पेट भी रखता है और अगर पेट को लम्बे समय तक अपनी भूख मिटाने को ना मिले तो वही दोनों हाथ पाप करने को नहीं कतराते देश में श्रमिकों के हालात इसका जीता जागता उदाहरण है कि पेट की भूख के लिए देश के कई मजदूर जान से हाथ गंवा बैठे और घरों का देश का बिगड़ता अर्थव्यवस्था का गणित भी अब और लाकडाउन की इजाजत नहीं देता
अतः लाकडाउन में पाबन्दियां हटाना हर क्षेत्र की मांग है और अति आवश्यक।
- ज्योति वधवा"रंजना"
बीकानेर - राजस्थान
 मेरे विचार से लॉकडाउन की पाबंदियां हटाना समय की मांग तो नहीं कह सकते पर जरूरत कह सकते हैं। जिस तीव्रता से हमारे देश में वायरस संक्रमितों की संख्या बढ़ रही है। विश्व में भारत सातवें पायदान पर आ गया है। ऐसे वक्त में लॉकडाउन को सख्ती से लागू करने की आवश्यकता है ताकि बीमारी ज्यादा न फैले परन्तु आर्थिक गतिविधियों और यातायात के साधनों  को सुचारू करने हेतु लॉकडाउन की पाबंदियां हटाने की जरूरत महसूस होने लगी। पर हालात तो अभी बदतर ही हैं। 
    यही कारण है कि आज अपने ऊपर कोई जिम्मेदारी नहीं लेना चाह रहा है। केंद्र ने राज्य सरकार के ऊपर छोड़ दिया। राज्य सरकारों ने डीएम के ऊपर और डीएम यानी जिला प्रशासन ने वायरस फैलने के डर से बॉर्डर सील कर दिया है। पहले दिल्ली हरियाणा बॉर्डर और यूपी बॉर्डर को सील किया गया अब दिल्ली सरकार के डीएम अपनी सीमा सील कर रहे हैं। क्या पेचीदा बेतुकी अनलॉकडाउन है? जनता इन राज्यों के डीएम के चक्कर में बेवकूफ बन रोड पर तपती गर्मी में परेशान हो रही है।   
    आर्थिक गतिविधियों को आगे बढ़ाने की सख्त जरूरत है।अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने हेतु कंपनियों और कारखानों को खोलना अनिवार्य है। लघु उद्योगों को भी चालू करना जरूरी है ताकि आम लोगों को रोजगार प्राप्त हो सके। आमदनी का स्रोत बना रहे। भूखमरी के कगार पर जनता ना आए।
 इन सभी मुद्दों को ध्यान में रखकर ही लॉकडाउन की पाबंदियां हटाई गई परंतु सरकार और जनता दोनों को बहुत ही सजग और सतर्क रहने की आवश्यकता है कि हमारा देश अमेरिका जैसी हालात में ना पहुंचे। इसमें कोई संदेह नहीं कि यहां सोशल डिस्टेंसिंग की धज्जियां उड़ रही है। जनता लापरवाह है। अधिकांश जगह पर नियम का पालन नहीं दिखता। कहीं हमें भारी नुकसान का सामना ना करना पड़ जाए क्योंकि यहां धार्मिक स्थल भी  7 जून से खोले जा रहे हैं जो कि इतने अनिवार्य नहीं थे पुलिस कहां-कहां सख्ती बरतेगी?
 अतः हमारे विचार से जरूरत को ध्यान में रखते हुए जरूरी चीजों पर से ही पाबंदी हटाई जाए तो जनता और सरकार के हित में फैसले होंगे। लॉकडाउन की पाबंदियां हटाना समय की मांग तो नहीं पर जरूरत अवश्य है।
                           -  सुनीता रानी राठौर
                          ग्रेटर नोएडा - उत्तर प्रदेश
लॉ कडाउन  की पाबंदियां हटाना न तो समय की मांग है। और न  हीं जरूरत   -
इस समय  कीमत है जान  कीजान है तो जहान है ।
    परंतु क्या किया जाए? पेट पालने के लिए दो रोटी का भी सवाल है ।इंसान खुद समझदार हैं उसे समझदारी से कार्य करना चाहिए । कोरोना संक्रमण से बचना चाहिए अगर कोरोना दो वर्ष तक नहीं गया  तो किया लॉक डाउन चलता रहेगा । एक तरफ अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचाते हुए  लॉक डाउन सफल हो रहा है दूसरी तरफ कुछ जनता लॉ क डाउन  की धज्जियां उड़ाते हुए सोशल डिस्टेंसिंग का मजाक समझते हुए   कोरो ना संक्रमण को  बढ़ावा देने पर तुले हुए हैं  । 24 घंटे में 8000 तक संख्या बढ़ना क्या यह समय की मांग है या जरूरत ? जरूरत नहीं    मजबूरी है लॉ क डाउन तो अब मजाक बना कर छोड़ दिया था जनता ने 
 मोदी जी ने बार-बार हाथ जोड़कर विनती की है पर जब कोई ना माने तो लॉ क डाउन कैसा ?
 सभी  सही से लॉक डाउन का पालन करते  दूसरे राज्यों से प्रवासियों को न ही भगाते   ।
वही    पर उनके खाने रहने की व्यवस्था करते तो तीसरे या चौथे लॉक डाउन की आवश्यकता भी नहीं पड़ी होती और हमारा देश कोरो ना संक्रमित देशों की सूची में निचले पायदान पर ही रहता ।
 कोरोना वायरस के सक्रिय मामले इस समय                    93 322 अस्पताल से छुट्टी ठीक   91819      और                        मृत्यु 5394 
    लोक डाउन की पाबंदियां हटाकर केंद्र सरकार ने  गेंद राज्य सरकार के पाले में राज्य ने जिलाधिकारी पर जिला अधिकारी ने नगरपालिका पर नगर पालिका ने दुकानदारों पर दुकानदारों ने जनता  पर और लोग स्वयं जागरूक या जिम्मेदार बने ।
लॉक डाउन में रहकर जो पाबंदियां थी  या शिक्षा ग्रहण की नियमों का पालन करें तभी कोरो ना संक्रमण से बचा जा सकता है
- रंजना   हरित       
        बिजनौर - उत्तर प्रदेश
लॉकडाउन की पाबंदिया हटाना समय की मांग  भी है और जरुरत भी है! लॉक डाउन में सारी गति विधियां बंद हो गई! लोग मानसिक तनाव  से पीड़ित होने लगे! समाज में  हर श्रेणी के लोग रहते हैं! काम धंधे बंद होने से दिहाड़ी मजदूर तो भूखो मरने लगे! उनके लिए तो एक एक दिन भारी पड रहा था ! अराजकता का माहौल बन रहा था! 
लोगों में एक भय का वातावरण सा छा गया! काम धंधे रुक जाने से आर्थिक समस्याएं भी आने लगी !
 छोटे से लेकर बड़े धंधे जो एक दूसरे से जुड़े हैं और हम उनसे जुड़े है यानी हमारे आय का श्रोत और जिजीविषा  परस्पर एक दूसरे के लिंक में  है या यूं कहें एक दूसरे के सहारे हैं  !
 लॉकडाउन से पाबंदी  हटाने से कुछ अंश तक रोजगार चलने लगेगा! आय के श्रौत खुलने से लोग अपनी कुछ हद्द तक अपनी जरुरते  पूरी कर सकते हैं !
कम से कम फिलहाल हमारा फोकस जीवन जीने के लिए रोटी कपडा और रहने के लिए  ठौर मिल जाए यह इसलिए आज की आवश्यकता अभी की स्थिति को देखते हुए यही इंगित करती है! वैसे भी कोरोना ने हमे बहुत कुछ सीखा दिया है !हमारी आवश्यकताएं कम हो गई  है! 
सरकार भी आर्थिक तंगी में  फंसी है अतः उसे भी लॉकडाउन में  लगी पाबंदियों को हटाना जरूरी लग रहा है! यह केवल हमारे देश में ही नहीं समस्त विश्व के लिए भी यह कदम समस्या का समाधान है !
कोरोना जोंक की तरह चिपक गया है हमारी मजबूरी है उसके साथ ही रहकर जीवन चलाना है अतः हमें  अपनी जिम्मेदारी स्वयं उठानी  होगी!  यदि पाबंदिया हटाई है तो उसका फायदा अवश्य लें किंतु कोरोना दानव से अपनी जान को बचाते हुए चूंकि जान है तो जहान है! 
कोरोना से बचने के नियमों का पालन करें!
- चन्द्रिका व्यास 
मुम्बई - महाराष्ट्र
लॉक डाउन की पाबंदियों में छूट देने व हटाने के बीच तस्वीरों को देखें तो लगता है संक्रमित मरीजों की बाढ़ सी आ गई हो l इससे निकट भविष्य में कोरोना महामारी की विभीषिका का अंदाजा लगा पाना  मुश्किल नहीं है l बेंगलूर स्थित निमहंस में न्यूरोबायोरोलॉजी चीफ डॉक्टर वी. रवि के अनुसार देश में संक्रमण रफ़्तार सिर्फ लॉक डाउन की वजह से ही धीमी थी, उन्होंने आशंका व्यक्त की है कि लॉक डाउन हटाने में जल्दबाजी से आने वाले दिन भारत के लिए बदतर हो सकते हैं l 
      लॉक डाउन की पाबंदी हटाना समय की मांग और जरूरत भी थी l एक्सपर्ट का कहना है कि जब संक्रमण की रफ़्तार कम थी तभी मजदूरों को घर जाने की अनुमति दे दी गई होती तो मौजूदा हालत से बचा जा सकता था l महानगरों से लौटते प्रवासी कोने कोने से संक्रमण ला रहे हैं l इससे कस्बे व ग्रामीण इलाके प्रभावित हो रहे हैं, ऐसे पाबंदियाँ हटाना उचित नहीं है l 
आर्थिक दृष्टिकोण से देखें तो लॉक डाउन हटाना समय की मांग और आवश्यक भी होगा l लेकिन पाबंदियों में छूट के साथ ही साथ लगातार टेस्टिंग व कॉन्टेक्ट ट्रेसिंग को भी बढ़ाना आवश्यक हो गया है l जब अनलॉक -1 में पाबंदियाँ हटाकर छूट का दायरा बढ़ाया जा रहा है तो आम लोगों को भी सरकार का साथ देना होगा और खुद को भी सरकार का साथ देना होगा l  स्वयं को एक दूसरे के सम्पर्क में आने से रोकना होगा l 
         अनलॉक -1 का पहला चरण 8,जून से लागू होगा l जिसमें धीरे धीरे सभी गतिविधियों में छूट देने का भरोसा दिलाया गया है जिसमें धार्मिक स्थलों के साथ सभी मॉल, होटल तथा इससे जुडी अन्य सेवाएं शुरू की जा रही हैं l पाबंदियाँ हटने से कछुआ रूपी मानव आज बडा खुश है कि उसे आजादी मिल गई लेकिन उसे ये ख़बर नहीं कि हमारी सुरक्षा हट गई l बाकि आप समझदार हैं l 
    केंद्र व राज्य सरकार ने लॉक डाउन में पाबंदियों को हटाकर कोरोना को बेलिबास कर दिया है l अर्थात हमें समझना होगा कि इससे बचने का सबसे सुरक्षित तरीका घर में ही रहना है जो निकला वह कभी भी कोरोना के हत्थे चढ़ सकता है l सरकारें उसकी कोई गारंटी नहीं लेती l गाइड लाइन की पालना आप को स्वयं को करनी है l सरकार ने पाबंदियों में छूट देकर यह नहीं बताया कि किस किस कोरोना फेस्टिवल में कितने लोग इकठ्ठे हो सकेंगे l जैसे -सिनेमा हॉल, रेस्टोरेंट आदि में कितने व्यक्ति एक साथ होंगे l 
       बेचारे कितने ही लोग कोरोना संक्रमण से निजी मौत की शिकार हो गए l उनकी शव यात्रा या जनाजा तक नहीं निकले l परिजन अंतिम दर्शन तक नहीं कर पाए l उनकी शहादत पर लॉक डाउन में छूट देकर कोरोना फेस्टिवल मनाने की तैयारी कर रहे हैं इसमें आमजनता को पूरा आनंद लेने की छूट दे देनी 
चाहिए lखूब पान, बीड़ी, गुटखा खाओ, सिनेमा देखो, दारू पियों, मौज मस्ती करो l बाकि आपको कुछ नहीं करना है जो कुछ करना है वह तो अब कोरोना अपनेआप कर लेगा l 
               चलते चलते -
महत्वकांक्षाओ में विकृत और परिष्कृत रूप में से परिष्कृत रूप का चयन कर लॉक डाउन में दी गई छूट को मजबूरियों में दी गई ढील के रूप में लेकर सदुपयोग करेंगे तो सार्थक उपादेयता होगी वरना संक्रमण तो बढ़ना ही है l 
मेरी माँ को 
यह लॉक डाउन समझ नहीं आता 
कहती है 
चलो मिलकर देश की नज़र उतारें 
फिर देखना सब ठीक हो जायेगा 
यह महामारी का दौर भी यूँ ही बीत जायेगा 
देखना
मेरी माँ का विश्वास जीत जायेगा l
- डॉ. छाया शर्मा
अजमेर - राजस्थान
देखते-देखते लाॅकडाउन के चार चरण पूरे हो गएऔर देश की अर्थव्यवस्था भी चरमरा उठी है, ऐसे में लाॅकडाउन की पाबंदियां हटाना समय की मांग और जरूरत दोनों ही है। लेकिन अब जबकि अनलाॅक की घोषणा हो चुकी है तो चुनौती और बढ गई है यदि हम सभी ने अनुशासित ढंग से अपने रोजमर्रा के कार्य को नहीं किया, डॉक्टर्स के बताए गए नियमों का पालन नहीं किया तो स्थिति बहुत ही भयावह हो जाएगी। खासकर जहाँ संयुक्त परिवार है एक घर में दर्जनों लोग रहते हैं और जहाँ लोग सुबह-शाम चौपाल पर बैठकर जबतक एक साथ एक ही बीडी में से थोड़ा थोड़ा कश न लगा लें उनका मानो दिन पूरा नहीं होता अधूरा रहता है  ये हालात सिर्फ गाँव ही नहीं शहरों के भी हैं यहाँ भी हमारे सभ्य समाज के कुछ सभ्य नागरिकों ने शराब के ठेके खुलने पर अपनी सभ्यता का परिचय दिया था।कहना नहीँ चाहिए लेकिन कलमकार हूँ यथार्थ बयान करना काम है इसलिए लिख रही हूँ कि यदि नियमों का पालन नहीं किया गया तो शायद अबकी लाॅकडाउन या क्वारन्टाइन की जरूरत भी नहीं पडेगी स्थिति इतनी भयावह होगी।
                        -  डॉ ममता सरूनाथ
                           नोएडा - उत्तर प्रदेश
लाॅकडाउन हटाना न तो समय की मांग है और न जरूरत। मुझे तो लगता है यह एक शडयंत्र है। यदि सब दिन लाॅकडाउन लगा रहा तो आम आदमी सहित सरकार को भी भारी भड़कम नुकसान हो सकता है। चुकी आम आदमी की आमदनी से सरकार को टैक्स के रूप में मोटा रकम मिलता है। जिसके बुते सरकार चलती है। कोरोना पीड़ित सरकार तो नहीं है। बल्कि अत्यधिक शिकार आम जनता है। दुर्भाग्य यह कि आम आदमी ने इतना भी अपने लिए बचाकर नहीं रखा कि कुछ समय के लिए घर में बैठ कर खाया जाय और अपने जानमाल की सुरक्षा की जाय। अब जो लोग पीड़ित हैं उनके इलाज का खर्च सरकार को उठाना पड़ रहा है। तो एक तरह से इसे सरकार की मजबूरी भी कह सकते हैं। छोटी सी बात यह कि जब न कमाने वाले परिवार के सदस्यों पर जब परिवार के लोग एक पैसा खर्च नहीं करना चाहते ये तो सरकार है। यदि जरूरत रहती तो लाॅकडाउन लगाया ही नहीं जाता।यह सिर्फ मजबूरी है।बस अब अपने जानमाल की सुरक्षा हम लोगों को स्वयं ही निर्धारित करना पड़ेगा। इसलिए अपनी सुरक्षा और कोरोनावायरस से बचाव के उपकरण अपने साथ रखना होगा जैसे मास्क, सेनिटाइजर इत्यादि।
- भुवनेश्वर चौरसिया "भुनेश" 
गुड़गांव - हरियाणा
लाॅकडाऊन की पाबंदियां हटाना समय की मांग के साथ-साथ जरूरत भी बन चुकी है।  एक दीर्घकाल की अवधि वाले युगावसान के पश्चात् नवयुग का उदय हो रहा है।  जब कोई व्यक्ति महाप्रयाण करता है और उसे चिताग्नि दे दी जाती है तो साथ गये परिजन वहीं पर मुख-हस्त प्रक्षालन कर स्वयं को शुद्ध करने की कवायद करते हैं।  मान्यताओं और परम्पराओं के अनुसार परिजनों पर कुछ दिनों के लिए पाबन्दियां लगा दी जाती हैं।  एक निश्चित समय के बाद उन पाबन्दियों को यह मान कर हटा दिया जाता है कि उन पाबन्दियों की आवश्यकता नहीं रही और परिजन सामान्य जीवन व्यतीत कर सकते हैं। कोरोना ने सम्पूर्ण विश्व में संक्रमण का आतंक फैलाया।  अनगिनत जीवन लील लिये।  सुरक्षित रहने के लिए लाॅकडाऊन जैसे उपाय किये गये।  उपाय अपनाकर सुरक्षा सुनिश्चित की गई।  उपायों का यही अपनाना जीवनशैली बनता जा रहा है। अब समय आ गया है कि इन पाबंदियों को हटाया जाये क्योंकि ऐसा करना समय की मांग के साथ-साथ जरूरत भी बन चुकी है।  नवजात शिशु को उचित समय आने तक अत्यन्त सुरक्षित वातावरण में रखा जाता है।  फिर धीरे-धीरे स्वच्छन्दता प्रदान की जाती है पर साथ ही साथ आयु के अनुसार सुरक्षा के उपाय अपनाये जाते हैं।  अब मनुष्य यह जान चुका है कि उसे किस प्रकार रहना है, कैसी जीवन शैली व्यतीत करनी है।  रुकी हुई गाड़ी को चलाने का समय आ गया है।  लाॅकडाऊन की पाबंदियां हटाना समय की मांग के साथ-साथ जरूरत भी बन चुकी है।  शिशु को बड़े होने के बाद पालने से बाहर आना ही होगा। 
- सुदर्शन खन्ना
दिल्ली
लॉक डाउन हटना ना तो समय की मांग है ना ही लोगों की जरूरत। इस समय कोरोना जिस तेजी से बढ़ रहा है वो बहुत खतरनाक है।और देशों में अनलॉक तब हुआ जब वह केस कम हो रहे थे।हमारे यहां तब हो रहा है जब केस लगातार बढ़ रहे हैं।ऐसे तो लॉक डाउन लगाना ही गलत था।शुरू से ही बोल देते की मास्क लगाओ।डिस्टेंस बना के रखो।हाथ धोते रहो। ये community ट्रांसफर हो रहा है।अब स्थिति ज्यादा खतरनाक हो चुकी है।उत्तराखंड में तो मुख्यमंत्री जी ने सुबह 7 से शाम 7 बजे तक खोलने का आदेश दे दिया।जबकि एक केंद्रीय मंत्री के पूरे परिवार को कोरोना हो गया है।और वो शुक्रवार को मुख्यमंत्री के साथ मीटिंग में थे। अब मुख्यमंत्री जी खुद कोरेन्टीन हो गए। जिस समय देश मे 2 लाख केस हो चुके हैं और रोज कोरोना केस नए रिकॉर्ड तोड़ रहे हैं।तब हम लॉक डाउन खोल रहे हैं।
और मजे की बात देखिए जनता खुद लोक डाउन चाह रही है। लेकिन सरकार को आफत आ रही खोलने की। और देशों में जनता नही चाहती पाबंदियों में रहना।लेकिन वहां की सरकारें नही खोल रही।
में फिर कहता हूं कि लॉक डाउन खोलने की कोई जरूरत नही है अभी।न ये समय की मांग है ना जनता की न अर्थव्यवस्था की।
शराब की दुकान खोलने कहाँ की मांग थी जी?
- रोहन जैन
देहरादून - उत्तराखंड
     इस विषय पर मेरा विचार है कि लॉक डाउन की पाबंदियां हटाना जरूरत के साथ-साथ मांग बन गई है इसके कुछ कारण मेरे दिमाग में आते रहते हैं
पहला कारण है आर्थिक मंदी । सरकार लॉक डाउन के माध्यम से देश के गति शीलता को शिथिल अवश्य कर दिए लेकिन इस शिथिलता से आय के स्रोत बिल्कुल बंद हो गए सरकारी आर्थिक मंदी के साथ-साथ देश में रहने वाले नागरिकों का व्यवसाय व्यापार काम धंधा सभी स्थगित हो गए जिसके कारण जनसंख्या का 80% लोग आर्थिक मंदी से परेशान होने लगा शुरू शुरू में ऐसा समझ में आ रहा था कि थोड़े दिनों की बात है इस संक्रमण से परिवार और समाज को बचाव के माध्यम से सुरक्षित कर लिया जाएगा काफी हद तक सुरक्षा भी मिली है लेकिन संक्रमण धीरे धीरे फैलता जा रहा है और आगे कितना खेलेगा यह समझना बहुत मुश्किल है
एक और संक्रमण का मार और दूसरी ओर आर्थिक मंदी।
यह तो वही बात हुई कि जिंदगी के संघर्षों में एक और खाई है और दूसरी ओर नाला है दोनों को बचाकर जीवन को आगे चलाना है।
दूसरा कारण है समाजिक बिखराव बड़े-बड़े शहरों में काम कर लो अपने काम को छोड़कर वापस गांव चले गए क्योंकि शहर की यह जिंदगी सुरक्षित नहीं महसूस हो रही थी यद्यपि की गांव में भी उच्च कोटि का सुरक्षा नहीं है लेकिन आत्म संतोष अवश्य है।
तीसरा कारण मनोवैज्ञानिक है लॉक डाउन की सीमा अवधि पहले 15 दिनों की थी उसके बाद फिर 15 दिन हुए उसके बाद 1 महीने की लगाई गई अब आगे अनुमान है नागरिकों का कि यह लॉक डाउन की सीमा दी पुणे बढ़ाई जाएगी जिससे मानसिक तौर पर काफी तनाव में लोग आ गए हैं ऐसा महसूस हो रहा है अब जिंदगी को पुनः पटरी पर लाना मुश्किल सा हो जाएगा और कुछ लोग छिपे तौर पर कुछ लोग सरकारी नियमों का उल्लंघन करते हुए गुप्त रूप से अपनी क्रियाकलापों को चालू कर दिए थे।
इसके अतिरिक्त शुरुआत के समय से अभी वर्तमान स्थिति मजबूत हुई है चिकित्सा के क्षेत्र में लोगों में आत्मविश्वास पैदा हुआ है की संक्रमण से निजात पाया जा सकता है सही तरीके से चिकित्सा करने पर स्वस्थ भी हो जाएंगे समाचार सोशल मीडिया के माध्यम से बार-बार यह बात कही जा रही है कि संक्रमण से बच कर रहना है नियमों का पालन करना है यदि संक्रमण हो जाता है तो उसकी चिकित्सा की सुविधा उपलब्ध है अपने प्रति रोग प्रतिरोधक क्षमता को प्रतिदिन के खानपान और घरेलू काढ़ा के माध्यम से बढ़ाते रहें कभी न कभी यह शुरुआत तो करनी ही थी जिंदगी को सामान्य करने के लिए।
हमारे माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने मन की बात में इस बात की घोषणा की है पूरे देश में 7 राज्यों को छोड़कर अन्य राज्यों में लॉक डाउन को अनलॉक वन किया जा रहा है जिसमें जरूरी आवश्यकताएं की दुकानें ऑफिस खोले जाएंगे लेकिन रात का समय बिल्कुल लॉक डाउन रहेगा
उन्होंने समय की मांग और जरूरत के अनुसार धीरे धीरे नियमों को थोड़ी थोड़ी छूट दी है लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि हम संक्रमण से बिल्कुल छूट गए हैं यह समय और भी खतरनाक समय है क्योंकि मानसिक तौर पर इंसान रिलैक्स अपने आप को महसूस कर रहा है पर फिर य बात कही जा रही है नियमों को तोड़ना नहीं है उससे आपको खतरा है आपके परिवार को खतरा है अगर खुद की सुरक्षा चाहते हैं परिवार की सुरक्षा चाहते हैं तो सरकार द्वारा बनाए गए नियमों का अवश्य पालन करें और अपनी व्यवसाय व्यापार ऑफिस के कार्य को शुरू करें पहला नियम मास्क लगाकर घर से बाहर निकले दूसरा नियम सैनिटाइजर के माध्यम से हमेशा हाथों को साफ करते रहे तीसरा सोशल डिस्टेंस ई का हमेशा ख्याल रखें
आता लॉक डाउन पर लगाई गई पाबंदी हमारे ख्याल से समय की मांग और जरूरत दोनों ही थी
- कुमकुम वेद सेन
मुम्बई - महाराष्ट्र
न मांग न जरूरत अगर कुछ है तो विवशता । क्योकि सरकार अच्छी तरह से समझ  गयी है कि उसने देश को कई साल पीछे धकेल दिया है  जिसे पटरी पर लाना उसके वश में नही । अगर लॉक डाउन खोल दिया गया तो लोग खुद हाथ पैर मार कर जीने की कोशिश तो करेंगे । दूसरा WHO  से जो पैसा  रिलीज किया गया है, कम से कम , आधा झूठ ही सही , उसे खाने और खर्च करने का बहाना तो मिलेगा । 
     अब तकसरकार देश सेवी बनी रही ण कोरोना के टैस्ट और इलाज  की आड़ में कुछ बिजनेस तो करने को मिलेगा । कुछ कमाई अनुदान से होगी और कुछ कमाई जनता को मूर्ख बना कर होगी । इसका अर्थ यह हुआ कि चवन्नी पाई झाड़ में ,जनता जाए भाड़ में । उसकी अपनी ऐश पक्की । 
       प्रधनमंत्री साहब ने आत्म निर्भर बनने की बात की और जो नीति बनाई उसके अनुसार तो भारत आत्म निर्भर हो ही गया क्योंकि उन्होंने अपना जिम्मा राज्य सरकार को सौप दिया ,राज्य सरकार ने डी. एम. साहब पर ,डी. एम. ने नगर पालिका पर ,नगर पालिका ने दुकानदारों पर ,दुकानदारों ने लोगो पर और लोगों ने भगवान के भरोसे छोड़ दिया । इस तरह कोरोना से लड़ने के लिए देश आत्मनिर्भर हो गया ।।
     अब लॉक डाउन खुले या न खुले क्या फर्क पड़ता है ।
- सुशीला जोशी
मुजफ्फरनगर - उत्तर प्रदेश
     आवश्यकता आविष्कार की जननी है। यह कहावत युगों-युगों से प्रचलित है। जो लाॅकडाउन की पाबंदियां हटाने पर पूरी तरह स्टीक बैठ रही है।
     लाॅकडाउन आवश्यक था। क्योंकि कोरोना विषाणु के फैलाव को रोकने का एक मात्र उपाय यही था। जिसे लगाकर सरकार ने एक सीमा तक लक्ष्य की पूर्ति भी की है। किन्तु सम्पूर्ण सफलता प्राप्त करने में सफल नहीं हुई।
‌  अब समय की मांग कहें या जरूरत, परंतु लाॅकडाउन की पाबंदियां हटाना अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने का एक मात्र उपाय है। इसके साथ-साथ कोरोना विषाणु से सावधानीपूर्वक युद्ध कर उसे मात देने का संघर्ष भी जारी रखा जाना अनिवार्य है।
     अन्यथा स्पष्ट है कि कोरोना विषाणु से मरने से पहले हम भूखे मर जाएंगे। इसलिए काम-धंधे आरंभ करना समय की मांग और जरूरत भी है।
     इसके अलावा एक महत्वपूर्ण बात सामने‌ यह आई है कि रोगियों के स्वस्थ होने की संख्या अधिक और मृत्युदर कम हुई है। जो सकारत्मक दृष्टिकोण से देखें तो कोरोना विषाणु को मात देने वाले भारतीय अद्वितीय योद्धा हैं। जिसे सौभाग्यशाली मानना हमारा अधिकार और कर्त्तव्य है।
- इन्दु भूषण बाली
जम्मू - जम्मू कश्मीर
लाॅकडाउन की समाप्ति और अनलाॅक-1 की शुरुआत। दो माह से अधिक के लाॅकडाउन की पाबन्दियों को हटाना समय की मांग नजर आती है क्योंकि यदि लाॅकडाउन में ढील नहीं दी जाती तो असंख्य परिवार भुखमरी के शिकार होते और जब रोटी के लिए पैसे पास में नहीं होते तो अपराध भी बढ़ते। दैनिक श्रमिकों और छोटे-मोटे काम करने वालों की हालत तो किसी से छुपी ही नहीं है। साथ ही मध्यम वर्ग भी अब हताशा का शिकार होने लगा है। कहा भी गया है कि खाली दिमाग शैतान का घर होता है इसलिए अब समय की मांग है कि लोग फिर से अपने काम-काज में व्यस्त हो जायें क्योंकि दुनिया अधिक समय तक ठहर नहीं सकती। अब समय आ गया है कि कोरोना से लड़ने हेतु सावधानियों के साथ ही हमें जीवन जीना है।
- सत्येन्द्र शर्मा 'तरंग'
देहरादून - उत्तराखण्ड
विश्वव्यापी संक्रमण कोरोना से बचाव के लिए लॉक डाउन की नीति को अपनाया गया था। एक के बाद एक चार लॉक डाउन लगाए गए। इस दौरान सब को घर में बंद रहना पड़ा था। सभी प्रकार की व्यापारिक और आर्थिक गतिविधियां बंद रही थी। इस कारण आर्थिक ढांचा अस्त-व्यस्त हो गया।
बिगड़ती हुई आर्थिक दशा को देखते हुए और लोगों की इच्छा पर सरकार को कुछ आवश्यक छूट देनी पड़ी। यह समय की मांग भी थी और जरूरत भी। ना चाहते हुए भी सरकार को पाबंदियां दिया हटानी पड़ी। टीवी चैनलों में दिखाया गया कि कई देशों में लॉक डाउन से प्रभावित लोग स्टोर रूम से खाने-पीने का सामान उड़ा ले गए। जिसके हाथ में जो सामान आया लोग उसे  लेकर भाग गए। यह लॉक डाउन मैं लोगों  की विकट स्थिति को दर्शाता है।
निर्माण कार्य रुक जाने और आर्थिक हालात बिगड़ जाने के कारण लोगों की सामाजिक व आर्थिक स्थिति बहुत खराब हो गई। इसके चलते स्थिति कोई विकराल रूप धारण ना कर ले इसलिए सावधानी के साथ थोड़ी छूट देने की जरूरत अनुभव की गई।
केंद्र सरकार और राज्य सरकारों ने सोच विचार करके कई क्षेत्रों में पाबंदियां हटाई है। समय और जरूरत को देखते हुए ऐसा करना उचित था। परंतु कोरोना को केंद्र सरकार या राज्य सरकार नहीं बल्कि जनता हरा सकती है। इस छूट को सावधानी व समझदारी के साथ उपयोग किए जाने की सख्त आवश्यकता है। अन्यथा फिर जो स्थिति बनेगी उससे पार पाना अत्यंत कठिन हो जाएगा।
- केवल सिंह भारती
डलहौजी - हिमाचल प्रदेश
लॉक डाउन की पाबंदियां हटाना। समय की मांग और जरूरत दोनो था। देश मे गरीबों व मध्यमवर्गीय लोगों की संख्या ज्यादा है। लॉक डाउन होने के कारण भुखमरी की समस्या उत्पन्न हो गया था।
लॉकडाउन की पाबंदी हटाने से मरीज की संख्या में बढ़ोतरी होगी। भारत की स्थिति बद- से- बदतर होने की संभावना है। हमारे देश मे स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी है ऐसे में कोरोना से बहुत लोगों की मौत हो सकती हैं। सरकार लॉक डाउन लगाने से पहले गरीबों के लिए सरकार सोची नहीं और जनता कर्फ्यू लगा दिया। जबकि मरीज अब बहुत तेजी से बढ़ रहा है ऐसे में लोककडौन में छूट देना मुसीबत  को बढ़ावा देना है।
30 जनवरी को पहला कोरोना केस आया था। उस समय भारत सरकार को चाहिए था कि विदेशों से आनेवाले लोगों का जांच करवाते तो  आज ये भयावह स्थिति नहीं होता। सरकार की एक गलती का खामियाजा आज पूरा देश भुगत रहा है ।
      - प्रेमलता सिंह
पटना- बिहार

" मेरी दृष्टि में " लॉकडाउन एक ऐसा प्रयास रहा है । जिससे लोगों को बहुत अधिक समस्याओं का सामना करना पड़ा है । खासकर प्रवासी मजदूरों के लिए बहुत बड़ा संकट खड़ा हो गया ।
                                                        - बीजेन्द्र जैमिनी
सम्मान पत्र







Comments

  1. आदरणीया ममता सरूनाथ जी बेहतरीन चर्चा की आपने आज के हालात को दर्शाया है्

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  2. आदरणीय ममता सुरुनाथ जी बेहतरीन चर्चा की है आपने आज के हालात को ले कर

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  3. Nice mamtaa ma.m .. nilce line ..
    Aap hmaare Life ke best teacher main se . Hindi
    ki best teacher ho .. aur aap aik axchaa marag darsk... Bhi ho ...

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  4. Nice thought by Mamta Sarunath Ji.....

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  5. Very nice and thoughtful @dr.mamta sarunath

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  6. Shi kha Mamta Di Aapne log agar sachet aur sajag na rahe to sarkar Kya bhgwan bhi kuch nhi kr skte ham Hamesha sarkar ko doshi banakar khud jeet nhi sakte Ye aatm chintan ka samay hai

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    1. Pranam di ,aapne jo bhi likha hai bilkul sahi likha hai.Dr.Mamta Sarunath

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  7. Dr Mamta Sarunath,
    बिलकुल सही कहा आपने व यथार्थ चित्रण किया है, अब हरेक को अपनी सुरक्षा की जिम्मेदारी को समझना होगा!

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  8. डाक्टर ममता जी को अटल रतन सम्मान मिलने हेतु बहुत-बहुत बधाई हार्दिक शुभ मंगलकामनाएं 👏👏👏👏👏🙏🌹🙏:-संतोष गर्ग

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