क्या जिदंगी का श्रृंगार है सावन ?

सावन में चारों ओर हरा भरा ऩजर आता है । जिससे धरती का श्रृंगार भी कहाँ जाता है  यही हरियाली सभी जीवों को जीवन देती है । यहीं हरियाली प्राकृतिक वातावरण को जिदंगी का श्रृंगार बना देती है । यही " आज की चर्चा " का प्रमुख विषय है । अब आये विचारों को देखते हैं : -
सावन के महीने में प्रकृति, पृथ्वी को वर्षा की बूंदों से निहाल कर देती है और सावन की बारिशों से चहुं ओर हरियाली ही हरियाली छा जाती है। सावन में जिस धरती का प्रकृति तरह-तरह से श्रृंगार करती है उस पर बसने वाली मानव जाति की जिन्दगी तो स्वयं ही श्रृंगारित हो जाती है। 
सावन में प्रकृति द्वारा सज्जित धरा की अनुपम छटा तो मन को सुख देती ही है, जिन्दगी के लिए अति आवश्यक अनमोल पानी से भी धरा का कोना-कोना आच्छादित हो जाता है। ग्रीष्म ऋतु के पश्चात इस माह में बारिश का होना मानवीय जिन्दगी के लिए 'तपते लोहे पर शीतल फुहारों के गिरने के समान' है। सावन मास हमारे मन-मस्तिष्क को शीतलता प्रदान करते हुए हमारी जिन्दगी का प्राकृतिक श्रृंगार करता है। 
सावन में भगवान शिव की उपासना हमारे लिए अत्यन्त फलदायक है। सावन के सोमवार के व्रत हमारे तन-मन का आध्यात्मिक श्रृंगार करते हैं। 
सावन में ही, मानवीय रिश्तों में सबसे पवित्र भाई-बहन के रिश्ते को मजबूती देने वाला त्यौहार, 'रक्षा-बन्धन' आता है। इस प्रकार सावन में आने वाले रक्षाबंधन जैसे, रिश्तों की प्रगाढ़ता दर्शाने वाले, त्यौहार हमारा आत्मिक श्रृंगार करते हैं। 
सावन में एक अलग तरह की मादकता है जो हृदय में प्रेम को जगाती है। प्रेम, मानव हृदय की सबसे सुखद अनुभूति है। प्रेम से ही मानवीय जीवन को पूर्ण तृप्ति मिलती है। यह प्रेम की भावनायें सावन में प्रबल हो जाती हैं। सावन में हृदय में उत्पन्न इन भावनाओं की पराकाष्ठा जिन्दगी को साहित्यिक श्रृंगार से सराबोर करती है। 
निष्कर्षत: इसमें कोई दो राय नहीं कि विभिन्न आयामों को स्वयं में समेटे हुए 'सावन' मानवीय जिन्दगी का श्रृंगार है।
- सत्येन्द्र शर्मा 'तरंग' 
देहरादून - उत्तराखण्ड
जिंदगी का श्रृंगार है सावन
सच ही कहा है किसी ने
 सावन का महीना पवन करे सोर 
जियरारे झुमें ऐसे जैसे बनमा नाचे मोर
सावन का महीना एक ऐसा महीना है जो बाकी ग्यारह महीनों को सज़ा देता है ।
कहते हैं सावन का महीना श्री भगवान शिव का होता है और शिव तो भोले भंडारी है कुंवारी लड़कियों को मनभावन पति मिलने का अवसर इसी महीने में मिलता है सज-धज कर व्रत रखना सुंन्दर सुन्दर वस्त्र धारण करना और भगवान शिव व मां पार्वती का भी श्रृंगार किया जाता है। सुहागिनों को भी यह महीना मदमस्त बना देता है अधिकतर प्रेमाख्यानों में सावन के महीने में प्रकृति की सुंदरता का बखान किया गया है । अतः स्पष्ट है कि। सावन का महीना न केवल इंसानों बल्कि प्रकृति पर भी सौलह श्रृंगार कर देने वाला है।
 सावन के झूले में ‌सावरियां
संग रास रचाऊं
कर सौलह श्रृंगार
पिया जो मोरा गांव गयो है
कैसे कटे फिर रात
पवन निगोरी जिया जलाए
रिमझिम रिमझिम आग लगाए
बिखरे गेसू, रूठी मेंहदी
रूठ गए श्रृंगार
सावन को महीनो आयो
आयो ना प्रियतम मोरा
राह तकत मोरे नैन सूखे
आग लगाए निगोरा।
- ज्योति वधवा "रंजना"
बीकानेर - राजस्थान
 
     भारतीय संस्कृति में सावन मास वर्षा ऋतु एक महत्वपूर्ण पर्व माना जाता हैं। जिसमें आमजन भक्ति भाव से शिव आराधना का केन्द्र बिन्दु बन जाता हैं। विष्णु जी चतुर्मास विश्राम में। वैसे विभिन्न पर्वों में भी ॠतुओं का अपना एक अलग महत्व हैं। शरद ऋतु विष्णु जी का माना जाता हैं, जिसमें कार्तिक मास दीपावली-होली तथा अन्य,  गीष्म काल ब्रम्हा जी का माना जाता हैं, जिसमें अक्षय तृतीया, भीषण गर्मी का प्रकोप तथा अन्य। सावन मास में शिव के साथ-साथ  हरियाली अमावस्या, नाग पंचमी तथा अन्य त्यौहारों को पूजित जाता हैं। सावन मास जीवन का वह आस्था श्रृंगार हैं, जहाँ प्रति दिन परस्पर मेल मिलाप से नव संचार की जागृति होती हैं। सावन मास पर फिल्मांकन और मधुर गीतों की प्रस्तुति प्रस्तुत कर रसावादन किया हैं। साज श्रृंगारों में, जिन्दगी के सौपानों में महिला-झुण्डों को अपनी मधुर वाणी में गीतों के रागों  में सावन मास के झुलों में आनंद की अनुभूति हुई हैं। बच्चों को भी प्रेरित करने में पंसग सामने आये हैं । सावन के झुले ग्रामों, कस्बों के बाजारों में अपनी अलग पहचान हुआ करती हैं? सावन-भादों एक दुसरे के पूरक हैं, अपनी अलग पहचान हुआ करती हैं?
- आचार्य डाॅ.वीरेन्द्र सिंह गहरवार 'वीर'
  बालाघाट - मध्यप्रदेश
सावन महिने में तो पूरी सृष्टी श्रृंगार करती है धरा हरित चुन्नर पर रंगबिरगे फूलों को सजा हर्षित होती है , नदीयाँ , पहाण में झरने सब पानी से भर झर झर दुधियां रंग से लबालब हो मधुर रागनी सुनाते है ! पुरा वातावरण ही अदभूत सौन्दर्य बिखेरता है । 
सावन के महीने में खूब बारिश होती है। बारिश के कारण पेड़-पौधे भी हरे-भरे हो जाते हैं। प्रकृति के इस बदलते रंग के साथ-साथ महिलाओं का श्रृंगार भी बदल जाता है। इस महीने में महिलाएं हरे रंग के वस्त्र और हरे रंग की चूड़ियां पहनती हैं। लेकिन क्या आपने गौर किया है कि सावन के महीने में औरतें आखिर हरे रंग की चूड़ियां ही क्यों पहनती हैं।
दरअसल, सावन का मतलब रोमांस, रोमांस का मतलब श्रृंगार और श्रृंगार का मतलब महिलाएं , सावन में हरा रंग पहनकर न सिर्फ हम प्रकृति के प्रति अपना आभार व्यक्त करते हैं बल्कि यह रंग हमारे भाग्य को भी प्रभावित करता है। इस खास महीने लड़कियां हरे रंग की चुड़ियां क्यों पहनती हैं, आइए जानते हैं। मान्यता है की यह रंग प्रकृति का होता है और इस रंग की चूड़ियां तथा कपड़े पहनकर हम प्रकृति के प्रति अपना आभार व्यक्त करते हैं। यह भी माना जाता है इस माह में हरे रंग की चूड़ियां पहनने के पीछे किस्मत कनेक्शन भी होता है।
जिस प्रकार से लाल रंग एक सुहागन स्त्री के जीवन में सौभाग्य का प्रतीक माना जाता है। उसी प्रकार से हरा रंग भी उसके वैवाहिक जीवन में खुशहाली का प्रतीक माना जाता है। माना जाता है इस माह में यदि स्त्री हरे रंग की चूड़ियां पहनती हैं तो उसको भगवान शिव का आशीष मिलता है और उसके पति की उम्र भी लंबी होती है।
कैरियर या व्यापार में सफलता
ज्योतिष के अनुसार कुंडली में बुद्ध ग्रह मानव के व्यवसाय तथा कैरियर से जुड़ा होता है। बुद्ध का रंग हरा होता है। अतः जो इस रंग को धारण करता है वह अपने कैरियर तथा व्यापार में सफलता हासिल करता है।
सावन का माह भगवान शिव का माह कहा जाता है। भगवान शिव हमेशा प्रकृति के करीब रहें हैं इसलिए ही उनको हरा रंग बहुत प्रिय है। सावन के माह में चारों और हरियाली भी होती ही है। अतः मान्यता है इस माह में हरा रंग किसी भी रूप में धारण करने से मानव का सौभाग्य बढ़ता है और उसको भगवान शिव की कृपा भी प्राप्त होती है।
सावन के महीने में ही महिलाएं हरे रंग को पहनती भी हैं और हरे रंग को अपने हाथों पर भी रचाती हैं। सावन की मेंहदी के बिना सावन की पूजा अधूरी मानी जाती है। इस साल लॉकडाउन और कोविड-19 की वजह से लोग घर पर ही सावन की मेंहदी लगाएंगे।और पूजा पाठ भी घर पर ही करेंगे ,कई लोग आनलाईन सावन के गीतों का काव्यपाठ व फ़ैशन शो रख रहे है 
बहार जा नहीं सकते सावन आनलाईन ही मना रहे है ।
सावन माह बहुत पावन व पवित्र माह है , इस माह बहुत से त्यौहार आते हैं हर दिन उत्सवव व पकवान और सजने संवरने का रहता है । 
देखा जाए तो सावन ज़िंदगी का श्रृगार है । 
प्रकृति भी शृगांर करती है प्रेम बरसाती है । 
चारों तरफ़ आनंद ही आनंनद व अनुपम सौन्दर्य बिखरा ....
- डॉ अलका पाण्डेय
 मुम्बई - महाराष्ट्र
सावन का पावन महीना बाबा भोलेनाथ का माना जाता है। यह महीना स्त्रियों के लिए भी महत्वपूर्ण होता है। जिंदगी का श्रंगार है सावन कहा जाय तो कोई गलत नही होगा। सुहागिन महिलाओं के लिए सोलह श्रंगार कर हरे रंग का वस्त्र व चूड़ियां शोभाग्य और खुशहाली का प्रतीक माना जाता है। सावन का महीना बहुत ही प्यारा होता है। देश की महिलाएं हरा रंग की चूड़ियां पहनती हैं, जिसका खाश महत्व होता है। सावन प्रकृति से जुड़ने का खास महीना माना जाता है। महिलाएं हरी रंग की सुहाग की चीजे व चूड़ियां पहनकर प्रकृति से जोडकर अपने शोभाग्य को मजबूत करती हैं। शास्त्रों के अनुसार सावन में हरी चूड़ियां पहनने से बुध मजबूत होता है और जीवन का उतार चढ़ाव मजबूत होता है। इससे भगवान खुश होते हैं, क्योंकि सावन महीने में प्रकृति से भगवान शिव का एक विशेष लगाव होता है। हरि रंग की चूड़ियां पहनने से भगवान विष्णु भी खुश होते हैं और शोभाग्य में वृद्धि होती है। पति-पत्नी के संबंध मजबूत होते हैं। महिलाएं सावन में फूलों से भी श्रंगार करती हैं। सावन के महीने में हर सोमवारी के एक विशेष ही महत्व होता है। शिवालयों में भगवान शिवजी का फूलों से श्रंगार किया जाता है। सुहागिन महिलाएं सोलह श्रंगार कर हरे रंग का वस्त्र व चूड़ियां पहनकर भगवान शिवजी की पूजा करती है और उनसे अखंड शोभाग्यवती होने का आशीर्वाद मांगती हैं। कुँवारी युवतियां सावन में व्रत रखकर शिवजी की पूजा करती है ताकि भगवान उनको सुंदर वर दें। सावन का महीना सिर्फ महिलाओं के लिए ही नही बल्कि पुरुषों के लिए भी पावन होता है। पुरूष भी भगवान शिवजी की पूजा करते हैं और परिवार की खुशी के लिए प्राथना करते हैं। इसलिए कहा जाता है कि जिंदगी का। श्रंगार है सावन।
- अंकिता सिन्हा साहित्यकार
जमशेदपुर - झारखंड
क्या जिंदगी का श्रृंगार है सावन? इस पर विचार करते हुए मन में आया कि इसका उत्तर इस बात पर निर्भर है कि जिंदगी को क्या समझते या मानते है हम। जिंदगी जंग या संघर्ष है तो उसका श्रृंगार होगा जीत का जश्न। जिंदगी जुआ है तो श्रृंगार होगी वह बाजी जिसमें जीत मिले। जिंदगी एक पहेली हैं तो श्रृंगार होगा उसका हल। जिंदगी इम्तेहान है तो उसका श्रृंगार होगा रिजल्ट। जिंदगी तूफान है तो श्रृंगार होगा उसके बाद हालात को संवारना। जिंदगी नाटक है तो श्रृंगार होगा नाटक का खुशहाल सुखांत होना। 
जिंदगी सहज प्रक्रिया है तो श्रृंगार होगा सरल व्यवहार। मैं तो जिंदगी को गीत मानता हूं,जिसका श्रृंगार है गुनगुनाहट। अब यदि आप इसको प्रकृति माने तो श्रृंगार है बसंत ऋतु। सावन को जिंदगी का श्रृंगार नहीं मान रहा मन। बारिश में भी तन से टपकता पसीना,भारी उमस,कीट पतंगों का जोर, मक्खी मच्छरों की भरमार,जगह जगह पानी भराव,कीचड़,नमी,
बुखार जैसी बीमारियां। हां सावन के त्यौहार हरियाली तीज,नाग पंचमी, जाहरवीर नौमी और रक्षाबंधन बहुत सुंदर त्यौहार है। फिर भी जिंदगी का श्रृंगार तो नहीं माना जा सकता सावन।
- डॉ.अनिल शर्मा 'अनिल'
धामपुर - उत्तर प्रदेश
जी हां जिंदगी का श्रृंगार सावन है ।  सावन के चार महीने धरती माँ को पानी से तृप्त करते हैं । धरा हरे भरे वस्त्रों से सुशोभित हो के परम सुन्दरी दिखती  है । ऐसे ही मानव जीवन  सावन में जल  की कमी नहीं होती है । जल ही जीवन है । देश में जहाँ पानी की कमी लोग पानी पूरे सालभर का संचय करती है । जो जिंदगी को सँवारता है।
सावन के महीने में हरियाली तीज का पर्व भी आता है ।
भारत में हर त्योहार मौज  मस्ती से भरा होता है । सावन शुक्ल की तीज भारत में हर्षोल्लास के साथ मनाया जाती है ।सावन की फुहारें लिए सावन की हरियाली तीज आती है । हराभरा पर्व भारत के हर राज्य में मनाया जाता है ।
प्रकृति में चहुँ ओर हरियाली मादकता  लिए नजर आती है ।वर्षा से धरती नहाती है और हरियाली के नववस्त्रों से अपना श्रृंगार करती है । वर्षा का जल तरलता , ठंडक,  समरसता , जीवन देने  का प्रतीक है । इसलिए शिवजी को सावन पसंद हैं । इसलिए सावन में शिव पूजन का महत्त्व और अधिक बढ़ जाता है । 
विवाहित महिला  मिट्टी की गौर बनाके पूजा करती हैं । सुख  सौभाग्य से दाम्पत्य जीवन खिला रहे की कामना करती हैं । इसलिए इस तीज का व्रत रखती है ।
माँ पार्वती ने इस व्रत को रखा था ।स्त्रियाँ समूह में एक दूसरे घरों में जाकर  सुबह से शाम तक गीत गा के झूला झूल के अपनी खुशियाँ व्यक्त करती हैं । हर घर आँगन , बरामदों झूले डाले जाते हैं ।  अगर  शादीशुदा लड़की की पहली तीज पर ससुराल में हैं ।तो पीहर वाले सिंधारा ससुराल में भिजवाते हैं ।जिसमें सुहाग श्रृंगार सारे समान होते हैं । जिसमें मेहंदी , कांच की चूड़ियाँ मुख्य होती है । मेहंदी सुहाग  , प्रेम की निशानी है । काँच की चूड़ियाँ  बड़ी नाजूक होती  है ।उसे बहुत सँभाल के पहनते हैं । टूटे नहीं ।उसी तरह से अपने जीवन साथी की देख रेख भी बड़े सँभाल के करनी पड़ती है । कभी रूठे नहीं ।
कुआँरी लड़कियाँ भी सावन  तीज का व्रत बढ़िया वर पाने के लिए रखती है ।  मंदिर में लाल  , हरे रंग के लहरिया पहन सुहागिनें  पति के दीर्घायु की कामना करती हैं । लहरियां पानी की लहरों का प्रतीक है । मेवाड़ के राजपरिवार की देन लहरिया है ।
महिला, नारियों का यह लोकपर्व  झूले झूल  , झूल के गा के मनाती हैं । उत्तर भारत में तीज की रौनक देखती ही बनती है ।बिना घेवर के यह त्योहार अधूरा है । श्रावणी तीज का उत्साह , उमंग में हर स्त्री में नजर आता  है ।कई लोक गीत गा के लड़कियां  किशोरी , महिलाएं झूला झूल के प्रेम की पींग की उमंगों से आसमान छूती नजर आती हैं । जैसे नीम की निबोरी सावन जल्दी आना ***
अम्मा मेरी छोटी  , छोटी बुंदिया पड़ने लगी ***
नीम की डालों पर झूले पड़े ***शिव शंकर चले कैलाश *
नवविवाहित जोड़े ,स्त्री  फूलों से सोलह श्रृंगार करके ईश ठाकुर से अपने परिवार की खुशहाली की कामना कर पूजा  करते हैं ।सभी के जीवन में मोहब्बत  , प्रेम , आशिकी के रंग खिले । यही सावन की तीज का संदेशहैं। 
 - डॉ मंजु गुप्ता
 मुम्बई - महाराष्ट्र
सावन निश्चित ही जिन्दगी का श्रृंगार है।इसमें केवल मानव जाति ही नहीं बल्कि प्रकृति भी अपने पूरे यौवन पर होती है।चारों तरफ हरे भरे पेड़ पौधों के साथ साथ फूल भी खुले रहते हैं।जलवायु अपने चरम पर होती है और बारिश हमेशा धरती को भिगोती रहती है।जिसके कारण प्रकृति का निखार और भी बड़ जाता है।
      जब प्रकृति अपने यौवन पर रहती है तो मानव जीवन भी झूम उठता है इस मौसम में।एक ओर जहां लोग भोले शंकर को पूजने के लिए व्रत रखते हैं उसकी अराधना के लिए शिव तीर्थ जाया करते हैं।वहीं दूसरी तरफ लोग कावड़ लेकर भी पवित्र स्थानों को गंगा जल लेने निकलते हैं।ऐसे में पूरी प्रकृति और मानव जीवन में त्यौहारों और खुशियों का अंबार रहता है।लोग एक दूसरे से मिलने जाते हैं।अर्थात जीवन में रंगत बनी रहती है।
   ऐसे में आजकल तो यही आवश्यक है कि हम किस पल को कैसे देखते हैं।फिलहाल सावन तो जिन्दगी का  श्रृंगार है।
- नरेश सिंह नयाल
देहरादून - उत्तराखंड
सावन का महीना चारों ओर हरियाली लाता है। जो पेड़-पौधे सुख गए होते हैं उनमें भी जीवन का संचार होता है। तो जीवन प्रकृति से ही बना है। उसकी मादकता का असर जिन्दगी पर भी होता है।
 पर्वों की शुरुआत सावन से ही होती है।इस माह की हरीतिमा सभी को श्रृंगार करने पर विवश कर देती है। खुद ही मन पर श्रृंगार रस का प्रभाव छा जाता है।
- संगीता गोविल
पटना - बिहार
मनुष्य के जीवन मे वृक्ष का उतना ही महत्व है जैसे जीवन मे सासों का चलना। धरती पर जीवन की उतपति के साथ ही पेड़ पौधों का अभिर्भाव भी हुआ। या यूं कहले की वृक्ष भी मनुष्य जीवन की तरह साथ ही आये। वृक्ष की उपादेयता इतना आवश्यक है कि इसके बिना जीवन की संकल्पना हम सोच भी नही सकते। क्योंकि मनुष्य और जीवो का सम्पूर्ण जीवन चक्र इनके सहयोग से ही जीवंत हो पाता। जब मनुष्य को प्रथम बार क्षुधा के भरण का ज्ञान हुआ वृक्ष अपना फल दिए। जब उन्हें खुद को ढकने का बोध हुआ वृक्ष अपनी छाल और पत्ते दिए। वृक्षो के धरा पर आमद के ही कारण बारिश का होना तय है। वृक्ष स्वास्घ्य के लिए अनुपम औषधीय देते है। कहने का आशय मनुष्य के भरण पोषण से लेकर सिर पर छत भी वृक्षो की सदासयता के कारण सम्भव हो पाया। और आज इस तकनीक युग मे भी वृक्ष हमारे लिए ईश्वर से कम नही है। प्रदूषण से बचाव से लेकर हमारी सांसों को सुरक्षित रखने हेतु ऑक्सीजन भी इन्ही वृक्षो द्वारा प्रप्त किया जाता है। इसलिए मनुष्य जीवन और स्वास्थ्य के लिए वृक्ष की उपयोगिता सर्वदा बनी रहेगी।
वृक्ष लगाए जीवन बचाये।
- प्रतिमा त्रिपाठी
राँची - झारखण्ड
जिंदगी का श्रृंगार कहिए अथवा जिंदगी को जीने के प्रति मिलने वाला नया नाजिया कहिए । दरसल सावन में बरसती फुहार को देखते हुए यदि कुछ समय के लिए अकेले बैठा जाये तो कुछ ही पल में नये नये सवालो से नये नये जवाबो से जिंदगी भर जाती है , जिनसे  अपनी जिंदगी को बेहतर तरीके से सजाने व खुशनुमा बनाने के तौर तरीके हांसिल कर सकते है । सावन में अधिक काम भी न होने के चलते हम इन तरीकों को अपनी जिंदगी में भी उतारने का प्रयास कर सकते है । दरअसल तपिसभरी गर्मी के बाद धरती पर पड़ती फुहार हर किसी के मन को प्रभावित करती है । वहीं चारो ओर हरयाली फल, फूल से लदी पेड़ो की डालिया इंसान के मन को प्रफुल्लित कर देती है । वहीं पक्षियों का चहचहाना , तालाबो , झरनों का कानो में पड़ता कल कल निनाद । ऐसे ही जिंदगी का  श्रृंगार करता है सावन ।
- परीक्षीत गुप्ता
बिजनौर - उत्तरप्रदेश
हां यह बात हंड्रेड परसेंट राइट है कि सावन ही श्रृंगार है क्योंकि सावन आते ही धरती मां हरे रंग की चादर ओढ़ लेती है चारों ओर रंग बिरंगे फूल खिल जाते हैं वातावरण हरियाली का हो जाता है जिससे हम अपने आप प्रसन्न हो जाते हैं हमारी मां चारों तरफ सजी बजे नजर आती है इसी तरह सावन के महीने में हम महिलाएं भी अपने मायके को जाते हैं और त्योहार को मनाते हैं सावन में हरियाली तीज में हम झूला झूलते हैं हरे रंग की साड़ी चूड़ी बिंदी लगाकर अपने आप को सजाते हैं प्रकृति के पास हम खुद को महसूस करते हैं और उसी रंग में ढल ढल जाते हैं।
इसीलिए सावन को मनभावन कहा गया है इस मौसम में हल्की-हल्की बारिश तीज त्यौहार लोकगीत ,कजरी  गाएं जाते हैं मंदिरों में भी पूजा पाठ भगवान शिव की आराधना होती है और घरों में भी हम सावन सोमवार का व्रत रहते हैं सारी प्रकृति भी ऐसा लगता है कि शिव मय हो गई है।
ओम नमः शिवाय
- प्रीति मिश्रा 
जबलपुर -  मध्य प्रदेश
ग्रीष्म ऋतु के तपिश और अकुलाहट के बाद मेघो के आवज सुनकर आसमान के ओर देख कर किसान प्रफुल्लित हो  जाते हैं। भारत कृषि प्रधान देश है। सावन महीने शिव की महीना कहा जाता है।इस महान महीने में धरती के सोलह सिंगार का आभास कराता है। सावन पवित्र महीना इच्छाओं की पूर्ति करता है। बरसात में वातावरण काफी सुहावना हो जाता है। प्रत्येक प्राणी का मन प्रफुल्लित हो जाता है। महादेव शिव को सावन मास अतिप्रिय है।
पुराणों के अनुसार जगत के पालनहार भगवान महादेव क्षीर मंथन के समय विष  के ग्रहण कर लिए, इसलिए उन्हें  नीलकंठ से भी जाना जाता है। जब उनका कंठ नीला होने लगा और उनका तन का ताप बढ़ने लगा जिसे शांत करने के लिए देवों ने शीतलता प्रदान की लेकिन इससे शिव का तपन शांत नहीं हुई।स्वंय आशुतोष भगवान शिव ने शीतलता पाने के लिए चंद्रमा को अपने सिर पर धारण किए।देवराज इंद्र ने आदिदेव के ताप को शांत करने के लिए घनघोर वर्षा की।जिससे महादेव के शांति और शीतलता मिली। अतः हर वर्ष इस महीने में शिवजी को प्रसन्न व शीतलता प्रदान करने के लिए जलाअभिषेक,दूध,शहद से किया जाता है।इस माह में प्रकृति भी विष उष्णता को शांत करने के लिए जलाभिषेक करते हैं।
यह पवित्र माह मैं प्रसन्नचित्त रहने का है:- हमारे किसान भाई काम में जुट जाते हैं नौजवान  बच्चों मौसम के आनंद में व्यस्त हो जाते हैं। विवाहित महिला अपने पति को आकर्षित करने के लिए सोलह श्रृंगार करते हैं। कुमारी कन्या अपने जीवनसाथी पाने के  चाहत में सोलह श्रृंगार करके भगवान शिव को पूजते हैं। पुरानी मान्यता है मां पार्वती इसी महीने में तपस्या करके भगवान शिव को पूजे हैं और उनके अर्धांगिनी बनी। इसलिए कुमारी कन्या भी इस माह  को महत्व देती है।
सोलह सिंगार है क्या इसका वर्णन कर रहा हूं।
1) मांगटीका :-जो विवाहिता महिला जब भी श्रृंगार करें तो मांगटीका अवश्य धारण करें क्योंकि पतिदेव द्वारा प्रदान किए सिंदूर का रक्षक है।
2) बिंदिया:- आकर्षण का केंद्र है, इसे इस तरह उपयोग किया जाता है की मांगटीका का एक छोर स्पर्श करते रहे बिंदिया को, ईश्वरीय ऊर्जा के रूप में हमारे संचित संस्कार का केंद्र है।
3) काजल:- स्त्री के आंखों की उपमा मछली और हिरन से की जाती है।इनकी चंचलता को किसी की नजर ना लगे।
4) नथुनी:- नाक में पहने जाने वाला आभूषण है इसके पहनने से रक्त संचार को ग्रीवा भाग में स्थिर करता है यह एक सुहागन का प्रतीक है।
5) सिंदूर:- भारतीय वेद के अनुसार शरीर में सिर के हिस्से मैं सूर्य का निवास होता है,इसलिए प्रथम बार कोई पुरुष जिस किसी स्त्री को अपनी संगिनी बनाता है तो माथे पर सिंदूर प्रदान करता है इसलिए जीवन में इसकी निरंतरता बनी रहे।सिंदूर के बिना समस्त प्रकार का सिंगार अधूरे माने जाते हैं।
6) मंगलसूत्र;- कंधे और सिर के बीच का भाग मे अनेक प्रकार की नाड़ियों से घिरा रहता है। गले में पड़ने वाला मंगलसूत्र उन नाडि़यों को व्यवस्थित करता है जिस से हरचीज  मंगलमय होता रहे ।
 7) कर्णफूल:- कान की नसें स्त्री की नाभि से लेकर पैर के तलवे तक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। कान और नाक में छेद ना होने पर स्त्री को प्रसव पीड़ा सहन करना अत्यंत कठिन हो जाती है
8) मेहंदी:- इसे विशेष अवसरों पर लगाई जाती है।मेहंदी हार्मोन को तो प्रभावित करती है। रक्त संचार को भी नियंत्रण में रखती है। मान्यता है जिसकी मेहंदी जितनी रंग लाती है उतना ही पति एवं उसके घर परिवार से प्रेम मिलता है। साथ ही साथ पुरुषों को अपनी ओर आकर्षण का केंद्र बन जाती है।
9) चूड़ियां कंगन:- यह चंचलता को दर्शाती है।कंगन मातृत्व की ललक उत्पन्न करता है।कंगन दुल्हनों का श्रृंगार है चूड़ी और कंगन स्त्रियों के अलावा पुरुषों का भी दिल चुराते हैं।
10)गजरा:- बालों के सवार के उसमें गजरा सजाना जितना खूबसूरत है उसके पीछे कारण फूलों का सुगंध मन तरोताजा और वातावरण को ठंडा रखती है।
11)वाजूबंद:- यह मुगल काल का देन है। महंगाई होने के कारण इसका चलन बहुत कम हो गया है। लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में और दक्षिण भारत में अभी भी चलन है। सिर्फ  धातु  के रूपरेखा मैं परिवर्तन हो गया है।
12) अंगूठी:- अंगूठी के बीच ऐसे अनमोल रत्न जडा रहता है जिससे अपना चेहरा दुल्हन जब चाहे देख सकती है।
13) कमरबंद:- काम में उत्साह और शरीर में स्फूर्ति का संचार बनाए रखती है।
14)पायल:- दुल्हन अपने घर की लक्ष्मी होती है उसका संचालन और सुगामन बहुत शुभ माना जाता है पायल मूल रूप से चांदी की होती है। चांदी चंद्रमा की धातु है,इसमें घुंघरू की आवाज से पूरे परिवार में शांति बनाए रखता है। इसलिए पायलों की छन-छन बहुत सुंदर माना जाता है।
15) बिछिया:- पांव का अंतिम आभूषण के रूप में बिछिया पहनी जाती है दोनों पांव के बीच में 3 अंगुलियों में पहले का रिवाज है वास्तव में सारे सिंगार बिछिया और टीका के बीच होता है  आत्मा का कारक सूर्य और मन का कारक चंद्रमा दोनों की कृपा जीवन भर निरंतर बनी रहे।
16) परिधान:- अंतिम और सबसे महत्वपूर्ण है। शरीर के अनुसार इसका पसंद औरत लोग करते हैं। क्योंकि स्त्री एक जीवन को जन्म देती है इसलिए जब तक संतुलित नहीं होगी तो परिवार को कैसे खुशहाल रखे गी।
 इसलिए नारी को सजना सवरना काफी जरूरी है ।
लेखक का विचार:- श्रृंगार से मन प्रफुल्लित होता है।सावन महीने आते ही ग्रीष्म काल की छटपटाहट से शांति मिलता है। सावन महीना भगवान शिव का है। जब महादेव खुश हो जाते हैं, तो मनुष्य का होना स्वभाविक है। 
क्योंकि भारत एक कृषि प्रधान देश है किसान भाई खेती में जुट जाते हैं, अन्नदाता है, जब पेट में अन्न है तो खुश होना स्वभाविक है। औरतें और अल्हड़ नवयुवती इस मौसम में झूला का आनंद लेते हैं विवाहित महिलाएं अपने पति के बाट जोह ती है। जो महिलाएं  अपने मायके में रहती है  उसके पति श्रृंगार का सामान लेकर  साथ में है  हरी हरी चूड़ियां  लेकर  मिलने आते हैं । यह हमारे बिहार झारखंड में अनिवार्य है। अल्हड़ युवती भविष्य की कल्पना में खो जाती है।
- विजेंयेद्र मोहन
बोकारो - झारखण्ड
सावन का महीना शिव भक्ति का महीना माना जाता है ।देवी गौरा  पार्वती की पूजा सभी सुहागने करती हैं ।इस महीने में इन्द्र देव भी प्रसन्न रहते हैं ,वे वर्षा के देवता माने जाते हैं ।रति कामदेव  जन मानस के हृदय में प्रेम का अंकुर बोते  हैं ।अगर प्रकृति से, हम जोड़ के देखें तो सावन में जिन्दगी का श्रंगार मिलेगा ।इस महीने में प्रकृति अपनी प्राकृतिक सम्पदा उडेल कर बाकी ,11महीनों के लिए हमें ऊर्जा  प्रदान  करती है । चारों  तरफ बिखरी इन्द्र धनुषी छटा ,हवाओं का शोर,इठलाती नदियाँ ,कल-कल करते झरने सब मस्तिषक को शान्ती प्रदान करते हैं ।हम सब को ऊर्जा देने वाला महीना जिन्दगी का श्रंगार ही तो है ।
- कमला अग्रवाल
गाजियाबाद - उत्तर प्रदेश
सावन के महीने में चारों ओर हरियाली के सुंदर दृश्य में  प्रकृति द्वारा प्रदत्त हरे परिधान में मानों हमारी वसुधा भी लिपटी हुई हो ऐसा प्रतीत होता है।सावन एक पावन मास के रूप में जाना और माना जाता है। अनगिनत व्रत, त्यौहार, पूजा-अर्चना इस मास की विशेषता है। गर्मी की उमस और झुलस के बाद सावन की फुहारों से व्यक्ति का मन खिल उठता है।सावन में स्त्रियों का सोलह श्रृंगार का पावन पर्व तीज या हरियाली तीज की बड़ी धूम रहती है।हरी चूड़ियां हरे परिधान,और झूले सब का विशेष महत्व दिखता है। कवि की कल्पनाओं में श्रृंगार रस की कविताएं काफ़ी हद तक सावन पर हीं रची जाती हैं। वातावरण बरखा के जल से निर्मल और स्वच्छ हो जाते हैं जिसके कारण भी प्रकृति की सुंदरता और भी बढ़ जाती है। बारहों महीने में सावन का महीना सबसे खास होता है और ये भी सच है कि जिंदगी का श्रृंगार हरियाला सावन हीं है ।
- डॉ पूनम देवा
पटना - बिहार
आया सावन झुमके, आया सावन 
जिंदगी का श्रंगार सावन है जो मानव जीवन में आल्हाद लेकर आता है l सावन प्रकृति रूपी नायिका का सोलह श्रंगार कर उसे आल्हादित करता है l प्रकृति में चारों तरफ हरियाली छा जाती है l हरा रंग प्रसन्नता और सुख समृद्धि का प्रतीक है l जब ग्रीष्म के ताप से धरती, प्रकृति और प्राणी जगत व्याकुल हो उठता है तब सावन की एक बूंद को तरसती धरा की प्यास बुझाने सावन आता है l धरा के गर्भ से नवांकुरित पौधे प्रस्फुटित होते हैं l कृषक हल चलाते हैं मेघ मल्हार गाते है l प्रकृति और मानव, पशु पक्षी चहक उठते हैं l महिलायें सोलह श्रंगार कर शिव पूजन कर आध्यात्मिकता के रंग में रंग जाती हैं l भारतीय संस्कृति में जीवन तथा संस्कृति का सहज अलंकार सावन है l ये उल्लास और आशीर्वादात्मक पर्व के रूप में उजागर होता है l प्रकृति के उपादान एवं उपकरण समाट्म भावना से अभिभूत होकर मानव जीवन को कल्याणकारी और आनंदपरक भव्य रूप प्रदान करते हैं l प्रकृति के विभिन्न तत्व आल्हाद आधारित चेतना द्वारा सांस्कृतिक सौंदर्य का प्रतिनिधित्व करते हैं l भारतीय संस्कृति का स्वरूप मूलतः आध्यात्मिक चेतना पर निर्भर है l 
        सावन की फुहार के साथ हिंडोले सज जाते हैं l छोटी तीज, बड़ी तीज, सातुड़ी तीज मनाकर महिलाएं मेहँदी लगा, व्रत आदि करती हैं l ग्रामीण आंचल में तो आज भी रस्सी बांध लकड़ी की पटली लगा महिलाएं झूला झूलती गाती है -मल्हार l 
    अरी बहना झूला तो झूले नंदलाल झुलावै प्यारी राधिका... तो कही, 
झूला तो झूले रानी राधिका जी... 
      काली घटा घिरती देख मन आल्हादित होने लगता है l 
     जिनके पिया परदेस बसत हैं उन विरहणियों का हाल -सावन की इक इक बूंद उनके ह्रदय में तीर की चुभन उतपन्न कर कष्ट पहुंचाती है और पिया की याद में उनकी अँखियाँ भी सावन बन जाती हैं l वे अपनी व्यथा कजरी गीत के माध्यम से व्यक्त करती हैं. 
नव विवाहिताएँ मायके में छूट गये रिश्तों की उपेक्षा की वेदना प्रकट करती हैं, उन्हें बचपन याद आ जाता है l 
घिर घिर आवे बदरिया हो रामा 
कैसे मैं खेलूँ कजरिया हो रामा 
रतिया अँधेरी मोहे डरावे
सूनी डगरिया मोहे न भावे 
उठी रे जिया में दरदिया हो रामा 
       भाई -बहिन का पवित्र त्यौहार -रक्षा बंधन भी श्रावण मास में मनाया जाता हैl शहरों में यह आनंद, उल्लास खो गया है l 
चलते चलते ----
बदरा छाये कि झूले पड़ गये 
मेले लग गये, धूम मच गई 
आया सावन झुमके, मुरली बजेगी जरूर, आया सावन 
2. सावन महीना मेरा जिया जले
कैसे बताऊं मन की बात 
आये न मेरे बालमा l
- डॉ. छाया शर्मा
अजमेर - राजस्थान
इस विषय में तीन पहलू पर चर्चा होनी है पहला पहलू ज़िंदगी दूसरा पहलू श्रृंगार और तीसरा  सावन
जिंदगी के कई रस है
जिसमें श्रृंगार रस की प्रधानता मानी गई है
श्रृंगार में प्रकृति का श्रृंगार पर्यावरण का श्रृंगार और प्रकृति और पर्यावरण में पलने वाले मानव जाति का श्रृंगार।
प्रकृति और पर्यावरण को खूबसूरत आकर्षक और लाभदायक बनाने के लिए चार ऋतु हैं
जिसमें हर ऋतु की प्रधानता है सभी ऋतु एक दूसरे के ऊपर निर्भर करते हैं सावन का महीना पृथ्वी के धरती के तपन को वर्षा की बूंद से शीतल बनाती है
सावन महीना में वर्षा के कारण सभी और पेड़-पौधे हरी-भरी हो जाते हैं चारों ओर हरियाली छा जाती हैरिमझिम रिमझिम वर्षा की बूंदों से मौसम सुहावना हो जाता है सूरी की गर्मी से जनजीवन को राहत मिलती है इन हरियाली को देखने के बाद मन भी खुशहाल हो जाता है हरा रंग खुशहाली का प्रतीक है
प्रकृति का यह सौंदर्य बहुत अनुपम है हर गम को लोग भूल जाते हैं इस हरियाली को देखकर गांव में किसान बादल की आवाज से ही प्रशन हो जाते हैं वर्षा होगी धरती की तपन कम होगी और से फसलों की रोपन प्रक्रिया चलेगी। किसान आकाश में छाए हुए बादल को देकर खेतों में ही घूमने लगते हैं और गाते फिरते हैं
उमड़ घुमड़ कर आए बदरा
यह स्वाभाविक घटना है कि मौसम सुहाना होता है तो दिल दिल भी दीवाना होता है और उस पर श्रृंगार अपने आप में मनमोहक बन जाती है
सावन का महीना प्रकृति को सौंदर्य युक्त बना देता है ठीक उसी प्रकार जिंदगी में महिलाएं भी सावन का आनंद श्रृंगार से उठाती हैं
बच्चों का श्रृंगार झूला झूलना पानी में खेलना
लड़कियों का श्रृंगार मेहंदी हाथों में लगाना हरि चूड़ियां पहन हरे हरे कपड़ों से शरीर को सजाना शिव की आराधना करना
भाई के लिए रक्षाबंधन का त्योहार मनाना
जो पति पत्नी एक दूसरे से अलग रहते हैं वे सावन महीने में जरूर अपनी पत्नी के पास या पत्नी अपने पति के पास जाने का बहाना खुशी रहती हैं कई जी तो में इसका संकेत भी मिलता है सावन आयो पिया घर आए सावन आयो पिया घर आए इस तरह से कई तरह के जानो में सावन महीने का श्रृंगार पति घर आ है उसका इंतजार की झलक मिलती है
अंत मे कहना चाहूंगी कि जिंदगी सावन और सिंगारका एक समन्वय है सिंगार के बिना जिंदगी नहीं श्रृंगार में प्रेम रस भक्ति रस श्रृंगार रस सभी भावनाएं मिली हुई हैं इसलिए जिंदगी में सावन और श्रृंगार का अनोखा समन्वय है
जिंदगी को हरा भरा खुशहाल रखने के लिए श्रृंगार रस अर्थात सावन का होना बहुत जरुरी है
- कुमकुम वेद सेन
मुम्बई - महाराष्ट्र
सारे रस, श्रृंगार छिपे हैं सावन में
खुशियों के भंडार भरे हैं सावन में
जीवन के नीरस क्षणों को पुष्पित कर
नवयौवन का आभास भरे हैं सावन में।।
सावन माह के आते ही तपती धरती पर जब वर्षा की बूंदे पड़ती है तो उसकी अतृप्त प्यास बुझती है तो धरती का कण कण प्रफुल्लित हो उठता है। धरती की सूनी देह पर प्रेम रस बरसता है तो वह भी धानी चुनर ओढ़ कर सज धज कर श्रृंगार करती है। तब उसकी छटा देखते ही बनती है।
   धरती के प्रसन्न होने पर इस पर रहने वाले सभी प्राणी भी जीवन का आनंद पाते हैं।भारत में सावन में गाँव गाँव झूले झूले जाते हैं। तीज का त्योहार भी सावन में आता है। औरतें मेहदी लगाकर,पूरे श्रृंगार के साथ गीत गाती हैं। प्रेयसी अपने प्रीतम संग आंनद मनाती है। कृष्ण की रासलीला तो जग प्रसिद्ध है।
 सावन खुशियों का त्योहार है।
सावन जिंदगी का आधार है।
- सीमा मोंगा
रोहिणी - दिल्ली
 आज का चर्चा का विषय बहुत सुंदर सम्मानीय चर्चा है। अवश्य, सावन का माह श्रृंगार का माह है। केवल मनुष्य का श्रृंगार ही नहीं, अपितु वसुंधरा का भी श्रृंगार माह है। हरी हरी वादियों से लदी प्रकृति की छटा श्रावण मास में देखने लायक होता है। सावन का आगमन पावस ऋतु में होता है। जो पूरी धरा का प्यास बुझाती है।
 धरा में वासित पदार्थ, पेड़ पौधे, जीव जंतु ,पशु पक्षी ,मनुष्य सभी सावन महीने की फुहार से तृप्त हो विकास करते हैं खुशियांली मनाते हैं। प्रकृति का वातावरण खुशियों से झूम उठता है। जहां भी देखो हरियाली की छटा मन को मोह लेता है। नदी ,नाला, पोुखर, ताल, झरने ,झील जल से लबालब हो अपना खुशी जाहिर करते हैं। झर झर करती हुई झरने, कल कल करती हुई नदियां, उफान से गरजती सागर,
 सरसराती ठंडी हवाएं, फूलों से लदी वादियां सुमन की सौरभ, चमन की छटायें, काली काली घटाएं ,मेघों का गर्जन, बिजली की चमक, शीतल पवन से झूमती डालियाँ ,पत्तों की सरसराहट, दादूरो का मंत्र उच्चारण, झींगुरों की रजनी संगीत, घोंघा की सिटी आना,  मछली का मचलना, बगुला का ध्यान ,क्षियों का कलरव ,आसमान में सारंगों की कतारें, कलियों का खिलना ,भौरों का गुंजन, तितलियों का झूमना, पतंगा का उड़ना ,बाड़ी में लताओं में सब्जी फलों का झूलना, खेत खार में ग्रामीण महिलाओं का लोक संगीत की झंकार, किसानों की धोती ,बंडी ,पागा का श्रृंगार श्रावण मास में देखते ही बनता है। सावन माह समृद्ध धरा का श्रृंगार माह है। इस माह में महिलाएं भी प्रकृति से प्रेरित होकर हरी परिधान और हरी चूड़ियों से सोलह श्रृंगार कर समृद्ध होने के भाव व्यक्त करती हैं पूर्णविराम हमारा छत्तीसगढ़ को धान का कटोरा कहते हैं। छत्तीसगढ़ राज्य कृषि प्रधान राज्य है। सावन माह किसानों और मजदूरों का विशेष सुकून और खुशहाली का माह है। छत्तीसगढ़ में सावन मास में हरियाली का त्यौहार जो कृषि से संबंधित त्यौहार है बड़ी धूमधाम से मनाते हैं यहां लोग संस्कृति के अंतर्गत भोजली जगाने की परंपरा है महिलाएं भोजली सिर में रखकर गाते हुए बाजे के साथ श्रावण पूर्णिमा के दिन भोजली की विसर्जन करती हैं। उसी दिन रक्षाबंधन का भी त्यौहार मनाया जाता है और सावन पूर्णिमा के दिन सावन सोमवार का व्रत का भी पूर्णाहुति होता है शिवभक्त कीर्तन भजन बम भोले का नारा लगाते हुए क्यों के प्रति श्रद्धा व्यक्त करते हैं। कुल मिलाकर सावन का महीना बड़ा मनोहारी दृश्य होता है। धरा के समस्त वासी श्रृंगार कर सावन माह को धन्यवाद देते  हुए समृद्ध का भाव व्यक्त करते हैं। वास्तव में सावन का महीना अनोखी निराली और मनभावन माह का होता है। अंतिम में यही कहते बनता है की जिंदगी का श्रृंगार है सावन।
- उर्मिलेश सिदार
रायगढ़ - छत्तीसगढ़
     रस के बिना निरस है जीवन। इसलिए जिस प्रकार जीवन को रंगीन बनाने के लिए रंगों का प्रयोग किया जाता है। उसी प्रकार जिंदगी को जीने के लिए श्रृंगार की आवश्यकता होती है।
      सर्वविदित है कि नारी श्रृंगार प्रिय है। उसके 16 श्रृंगार विश्व विख्यात हैं। जिनका महत्व सावन में और अधिक बढ़ जाता है। 
      पुराणिक मान्यताओं के अनुसार सावन माह में ही समुद्र मंथन हुआ था। जिसमें हलाहल विष निकला था। जिसे शिवजी ने अपने कंठ में धारण कर लिया था। जिसके कारण उनका कंठ नीला पड़ गया था। तब से शिवजी को नीलकंठ महादेव भी पुकारते हैं।
      कहते हैं शिवजी सावन माह में ही मृत्युलोक पर आए और अपने ससुराल गये। जहां उनका जलाभिषेक किया गया था।जो शिवजी को अति प्रिय है।
      इस माह भोलेशंकर को एवं अपने पति को प्रसन्न करने के लिए भी औरतें 16 श्रृंगार करती हैं। जिसके लिए सावन माह अति उत्तम माना जाता है।
     उल्लेखनीय है कि पति-पत्नी के सुखद-सम्बंधों को ही जिंदगी माना गया है और पत्नी जिस माह 16 श्रृंगारों में रुचि रखे उसे जिंदगी के श्रृंगार के अलावा कोई और संज्ञा दी ही नहीं जा सकती। इसलिए सत्य में सावन जिंदगी का श्रृंगार है।
- इन्दु भूषण बाली
जम्मू - जम्मू कश्मीर
अक्षरशः सत्य कथन ‘ज़िंदगी का शृंगार है सावन’।  सावन के महीने में ऐसा लगता है कि सोलह शृंगार कर प्रकृति देव पूजन को चल पड़ी हो।  हर छोटा-बड़ा पेड़ पौधा हरियाली से छाया होता है बिल्कुल वैसे जैसे प्रकृति ने हरी चुनरिया ओढ़ ली हो और हरी-हरी चूड़ियां खनक रही हों।  सावन में लहलहाते पेड़-पौधे मानो नृत्य कर रहे हों।  हर्षातिरेक में परिन्दे वृक्षों पर अठखेलियां करते हुए चहकते हैं।  वर्षा की पहली बूंदें तो चातक पक्षी के लिए वरदान बन कर आती हैं।  किंवदंती है कि चातक केवल उसी जल को पीता है जो स्वाति नक्षत्र में बरसता हुआ उसके मुख में गिरता है।  वह पड़ा हुआ जल नहीं पीता। वह छटा भी देखते बनती है जब मोर पंख फैलाये मनभावन नृत्य करते हैं। सावन में चारों तरफ ऐसे जीवन्त दृश्य देखकर प्रतीत होता है मानो सावन से शृंगार कर ज़िंदगी स्वयं जीवन्त हो उठी हो। श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को शंकर-पार्वती का विवाह रचाया गया। ललनाएं बेसब्री से सावन में हरियाली तीज की प्रतीक्षा करती हैं।  सावन आते ही सुहागिनें मेहंदी रचा, चूड़ियों से सज, साड़ी पहन पूरा साज शृंगार करती हैं।  पेड़ों पर झूले डलते हैं और लोकगीत गाए जाते हैं। सोलह शृंगार के लिए आवश्यक हैं शादी का जोड़ा, गजरा, बिंदी, सिंदूर, काजल, मेंहदी, चूड़ियां, मंगलसूत्र, कर्णफूल, बाजूबंद, कमरबंद, मांगटीका, अंगूठी, पायल, बिछिया और इत्र।  हरियाली से सजी संवरी प्रकृति और सोलह शृंगार से सजी ललनाएं मनोरम दृश्य उत्पन्न करती हैं। चारों ओर ज़िदगी खिलखिलाती प्रतीत होती है। अतः यह कहने में कोई अतिश्योक्ति नहीं होती कि ज़िंदगी का शृंगार है सावन।  
- सुदर्शन खन्ना
 दिल्ली
सावन मास में प्रकृति सोलह श्रृंगार संग यौवन के चरम मादक रूप में प्रस्तुत होती है । प्रकृति सर्वत्र हरी-भरी खुशहाल और मनभावन प्रतीत होती है।हरियाली खुशहाली और समृद्धि का द्योतक है।
      ग्रीष्म ऋतु की तपिश और अकुलाहट के बाद मेघो से धरती पर उमड़ती बरखा बहार जीव जगत को प्रकृति का अनुपम उपहार है। वन-उपवन में हरियाली, फल-फूल से लदे पेड़-पौधों की डालियां, मयूर का पंख फैलाकर सुंदर नृत्य पेश करना, नदी तालाब और झरनों का कल-कल निनाद इत्यादि धरती के सोलह श्रृंगार का आभास कराती है।
    सावन महीना जहां भगवान शंकर जी की पूजा-पाठ के लिए जाना जाता है वहीं इस महीने महिलाएं भी बनाव-श्रृंगार का खास ख्याल रखती हैं। हाथों में मेहंदी सजाने का विशेष महत्व है। सोलह श्रृंगार के साथ श्रावणी पूजन करते हुए महिलाएं काफी खूबसूरत और नफ़ासत लगती हैं। सजी-धजी अनुपम रूप में महिलाएं और कांवर लिए हुए पुरुष भोलेनाथ को प्रसन्न करते हैं। यह महीना इच्छा और आशाओं की पूर्ति का महीना है।
     श्रृंगार करना सौभाग्य का प्रतीक माना जाता है। श्रृंगार खूबसूरती ही नहीं भाग्य को भी बढ़ाता है।
   प्रकृति का हरा-भरा प्रश्नचित्त सुहावना रूप, सजी-धजी महिलाओं का अद्भुत रूप और कांवरधारी पुरुषों का भक्ति-भाव देख कर यूं लगता है कि धरती ने सोलह श्रृंगार कर अद्भुत रूप में खुद को सजा रखा है। वास्तव में जिंदगी का श्रृंगार है सावन।
                            - सुनीता रानी राठौर
                            ग्रेटर नोएडा - उत्तर प्रदेश
सावन पर्व है धरती के सिंगार का प्रकृति के नव श्रृंगार ।
 फुहारों के रूप में भक्ति और श्रृंगार मिश्रित अमृत बरसता है। इस महीने में सावन की फुहारें जीवन में नया रंग भर देती हैं।
 चारों तरफ हरित श्रृंगार कुदरत का करिश्मा सा नजर आता है। भक्तों को अपने आराध्य भोलेनाथ का श्रृंगार करना सुहाता है ,तो नारियों को हरियाली तीज के अवसर पर सजना सवरना उनके सौंदर्य में चार चांद लगाता हुआ  सावन श्रृंगार की सौगात लेकर आता है । इस बहाने सखियां सज धज कर झूले झूलती हैं , नव युवतियों के मन की उमंगे हिलोरे लेती हुई अनायास ही खुशी महसूस कराता है ये सावन ।
सावन के अंत में रक्षाबंधन पर्व पर भाई-बहन के पवित्र प्रेम का श्रृंगार सावन की ही तो देन है।
 लेकिन अपना अपना नजरिया है और अपने अपने हालात भी।
 किसी का सावन जिंदगी का श्रृंगार बन जाता है ,,,,तो किसी को तड़पाता है ,,,,रुलाता है ,,,विरही हृदय तो सावन को जिंदगी का श्रृंगार मानने से रहा।
 लेकिन एक दूसरा वर्ग भी है सावन  को  श्रृंगार  नजर आने वालों का ।
जब मानव मन प्रसन्न होता है तब जब उसका तन मन पर होता है तब वर्षा सुंदरी उसके मन को अनायास ही पुष्पित पल्लवित करती हुई प्रेम के आगोश में खींच लेती है ।
चारों तरफ हरियाली ,,,,सुहावना भीगा भीगा मौसम ,,मन की ध्वनि तरंगों में अनंगो का जागरण जो कि प्राकृतिक  है एवं शाश्वत सत्य भी ,,इस सावन के महीने मे प्रस्फुटित होता है ,, सावन तो प्रेमियों के प्यार का श्रंगार बन जाता है  ।
मन हिलोरे लेता है तो आत्मा नृत्य करती है ।सावन अपने असली रूप में और भी अधिक लुभावना तब लगता है जब प्रियतम प्रेयसी मिलते हैं ।तब सावन जिंदगी का श्रृंगार बन जाता है,,,,यौवन का  का निखार बन जाता है ।
बस फर्क है तो हालातों का नजरिए का ,,,,कि किसी को सावन श्रृंगार नजर आता है तो किसी को सावन रुलाता है,,तड़पाता है ,,दर्द दे जाता है ।
- सुषमा दीक्षित शुक्ला
लखनऊ - उत्तर प्रदेश

" मेरी दृष्टि में " सावन का प्रभाव प्राकृतिक के सभी जीव - जन्तुओं पर देखा जा सकता है । सभी जीवों का जीवन अपने आप में खुश नजर आता है । यही सावन जिदंगी का श्रृंगार साबित होता है । सावन के बिना प्राकृतिक अधूरी है ।
                                                    - बीजेन्द्र जैमिनी 
सम्मान पत्र 


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