परिचर्चा " एक टोकरी भर मिट्टी " लघुकथा है तो क्यों है ?

            
किसी श्रीमान जमींदार के महल के पास एक गरीब अनाथ विधवा की झोपड़ी थी। जमींदार साहब को अपने महल का हाता उस झोपड़ी तक बढ़ाने की इच्छा हुई। विधवा से बहुतेरा कहा कि अपनी झोपड़ी हटा ले। पर वह तो कई जमाने से वहीं बसी थी।
उसका प्रिय पति और इकलौता पुत्र भी उसी झोपड़ी में मर गया था। पतोहू भी एक पांच बरस की कन्या को छोड़कर चल बसी थी। अब यही उसकी पोती इस वृद्धकाल में एकमात्र आधार थी। जब कभी उसे अपनी पूर्वस्थिति की याद आ जाती तो मारे दु:ख के फूट- फूट कर रोने लगती थी। और जबसे उसने अपने श्रीमान पड़ोसी की इच्छा का हाल सुना, तब से वह मृतप्राय हो गई थी।
उस झोपड़ी में उसका मन ऐसा लग गया था कि बिना मरे वहां से वह निकलना ही नहीं चाहती थी। श्रीमान के सब प्रयत्न निष्फल हुए। तब वे अपनी जमींदारी चाल चलने लगे। बाल की खाल निकालने वाले वकीलों की थैली गरम कर उन्होंने अदालत में उस झोपड़ी पर अपना कब्जा कर लिया और विधवा को वहां से निकाल दिया। बेचारी अनाथ तो थी ही, पास- पड़ोस में कहीं जाकर रहने लगी।
एक दिन श्रीमान उस झोपड़ी के आसपास टहल रहे थे और लोगों को काम बतला रहे थे कि इतने में वह विधवा हाथ में एक टोकरी लेकर वहां पहुंची। श्रीमान ने उसको देखते ही अपने नौकरों से कहा कि उसे यहां से हटा दो। पर वह गिड़गिड़ाकर बोली, 'महाराज, अब तो यह झोपड़ी तुम्हारी ही हो गई है। मैं उसे लेने नहीं आई हूं। महाराज क्षमा करें तो एक बिनती है।'
जमींदार साहब के सिर हिलाने पर उसने कहा, 'जब से यह झोपड़ी छूटी है तब से मेरी पोती ने खाना- पीना छोड़ दिया है। मैंने बहुत समझाया पर वह एक नहीं मानती। यही कहा करती है कि अपने घर चल, वहीं रोटी खाऊंगी। अब मैंने यह सोचा है कि इस झोपड़ी में से एक टोकरी भर मिट्टी लेकर उसी का चूल्हा बनाकर रोटी पकाऊंगी। इससे भरोसा है कि वह रोटी खाने लगेगी। महाराज, कृपा करके आज्ञा दीजिए तो इस टोकरी में मिट्टी ले जाऊं।' श्रीमान ने आज्ञा दे दी।
विधवा झोपड़ी के भीतर गई। वहां जाते ही उसे पुरानी बातों का स्मरण हुआ और उसकी आंखों से आंसू की धारा बहने लगी। अपने आन्तरिक दु:ख को किसी तरह सम्हालकर उसने अपनी टोकरी मिट्टी से भर ली और हाथ से उठा कर बाहर ले आई। फिर हाथ जोड़कर श्रीमान से प्रार्थना करने लगी, 'महाराज, कृपा करके इस टोकरी को जरा हाथ लगाइये जिससे कि मैं उसे अपने सिर पर धर लूं।'
जमींदार साहब पहले तो बहुत नाराज हुए, पर जब वह बार- बार हाथ जोडऩे लगी और पैरों पर गिरने लगी तो उनके भी मन में कुछ दया आ गई। किसी नौकर से न कहकर आप ही स्वयं टोकरी उठाने आगे बढ़े। ज्योंही टोकरी को हाथ लगाकर ऊपर उठाने लगे त्यों ही देखा कि यह काम उनकी शक्ति के बाहर है। फिर तो उन्होंने अपनी सब ताकत लगाकर टोकरी को उठाना चाहा, पर जिस स्थान पर टोकरी रखी थी वहां से वह एक हाथ- भर भी ऊंची न हुई। तब लज्जित होकर कहने लगे, 'नहीं यह टोकरी हमसे न उठाई जाएगी।'
यह सुनकर विधवा ने कहा, 'महाराज! नाराज न हों। आप से तो एक टोकरी भर मिट्टी नहीं उठाई जाती और इस झोपड़ी में तो हजारों टोकरियां मिट्टी पड़ी हैं। उसका भार आप जन्म भर क्यों कर उठा सकेंगे? आप ही इस बात पर विचार कीजिए!'
जमींदार साहब धन- मद से गर्वित हो अपना कर्तव्य भूल गये थे, पर विधवा के उक्त वचन सुनते ही उनकी आंखें खुल गईं। कृतकर्म का पश्चाताप कर उन्होंने विधवा से क्षमा मांगी और उसकी झोपड़ी वापस दे दी। ****
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                          परिचर्चा
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 माधवराव सप्रे की हिन्दी साहित्य की प्रथम कथा " एक टोकरी भर मिट्टी "  लघुकथा है तो क्यों है ?
इस कथा पर भारतीय लघुकथा विकास मंच , पानीपत - हरियाणा ने परिचर्चा का आयोजन किया है जिससे निम्नलिखित ने भाग लिया है : -
                                 
लघुकथा साहित्य की एक स्वतंत्र विधा है। इसके माध्यम से हम हमारे जीवन में घुस आई विसंगतियों को जन साधारण तक पहुंचा सकते हैं। वर्तमान व्यवस्था में जो जटिलताएं परिलक्षित होती हैं उनसे आम आदमी को परिचित कराया जा सकता है। यह अपने संक्षिप्त स्वरूप में ही जीवन को समेट लेती है। यह विसंगतियों की कोख से पैदा होती है इसमें कल्पना को यथार्थ नहीं बनाया जाता अपितु यथार्थ को कहानी का स्वरूप दिया जाता है। लघु कथा में प्रति शब्द और पंक्ति का महत्व है इसमें शीर्षक का भी महत्व होता है जो लघु कथा के मर्म को समझा देता है कि शीर्षक के इर्द-गिर्द निरंतर घटना प्रवाह कथा को सफल बनाता है।
माधवराव सप्रे की लघुकथा 'एक टोकरी भर मिट्टी' सशक्त लघुकथा इसलिए है क्योंकि यह छोटी  और सारगर्भित 
है। इसमें नुकीला और पैनापन है जो सीने को भेदता है। यह उन लोगों पर व्यंग है जो अपने पैसे और रुतबे के कारण  गरीबों का शोषण करते हैं, अत्याचार करते हैं। यही नहीं, वे घमंड में इतना चूर हो जाते हैं  उन्हें कि न तो गलत दिखाई देता है न ही सुनाई देता है। वे भूल जाते हैं कि गरीबों की आह या दुखी व्यक्ति की आह उन्हें मिट्टी में भी मिला सकती है। जब जमींदार से मिट्टी भरी टोकरी नहीं उठती है तो वह अंदर से डर जाता है। उसे महसूस होने लगता है कि टोकरी भर मिट्टी उसे मिट्टी में मिला देगी, और उसका हृदय परिवर्तित हो जाता है।
- प्रज्ञा गुप्ता 
 बाँसवाड़ा - राजस्थान
आदरणीय माधवराव राव सप्रे जी की प्रथम कथा "एक टोकरी भर मिट्टी" निश्चित रूप से लघुकथा ही है। हालांकि सप्रे जी ने लघुकथा 120वर्षों के पूर्व लिखी है। 
  समय के साथ, इन वर्षों में लघुकथा लेखन का स्वरूप, कथ्य,संवाद,प्रस्तुतिकरण बदल गया है। 
   किन्तु हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि श्री सप्रे जी ने कथा लिखने का साहस,उस समय किया जबकि विभिन्न मूर्धन्य व नामवर साहित्यकार,सोच भी नहीं सकते थे।
   पहले सामाजिक परिस्थितियां भिन्न थी।जमींदारी प्रथा का आलम था  आज कहाँ जमींदार और जमींदारी प्रथा रह गयी है?
   वृद्धा की पीढियाँ उसी मिट्टी के झोपड़ी में मर खप गयी।परंतु उसकी पतोहू ,उसी मिट्टी से बने भोजन को ही ग्रहण कर जीवित रहना चाहती है। 
   कथाकार की सोच अद्भुत है।वृद्धा द्वारा कहा गया शब्द "एक टोकरी मिट्टी नहीं उठा सकते हैं तो इस झोपड़ी में हजारों टोकरी मिट्टी है,उसका भार आप जीवन भर कैसे उठा पाओगे?
   लाजवाब। नमन ऐसे हिन्दी साहित्य को अक्षुण्ण रखने वाले साहित्यकार सप्रे जी को।
- डॉ मधुकर राव लारोकर 
नागपुर - महाराष्ट्र
"एक टोकरी भर मिट्टी" ,भले ही लघुकथा रूप में प्रकाशित न हुई हो पर  यह लघुकथा के कई  गुणों को अपने मे समेटे हुए है। मृत्युपर्यन्त अपनी जमीन से जुड़े रहने की वृद्ध महिला की  उत्कृष्ट अभिलाषा पर केंद्रित इस रचना का कथानक,संवाद शैली इसे एक लघुकथा की तरह ही पेश करते  हैं । इसमे दो कालों का वर्णन होने पर भी यह कालखण्ड दोष से मुक्त है।जहां तक इसमे अतिरिक्त विस्तार का प्रश्न है तो जब पात्र/पात्रों की  मनोदशा का वर्णन हो तब लघुकथा में भी कथानक विस्तार  मांगता है,इस तथ्य पर यह रचना लघुकथा की कसौटी पर खरी उतरती है।जिस रचना में कथा हो ,लघुता हो ,कुछ ही पलों में भावों को  सम्प्रेषित कर पाठक को चिंतन और दुविधा में डाल  देने की क्षमता हो उसे लघुकथा ही कहा जाएगा।यह रचना, समय के लंबे अंतराल के कारण (लगभग 120  वर्ष )आज  की स्थिति में कुछ दुविधा उत्पन्न कर सकती है,पर श्री माधवराव सप्रे आज होते तो निश्चित तौर पर इसे आज की समकालीन लघुकथा के फ्रेम में लिखते।
- सन्तोष सुपेकर
उज्जैन - मध्यप्रदेश
"एक टोकरी भर मिट्टी" माधवराव सप्रे जी की एक उत्कृष्ट लघुकथा है। जिसमें लघुकथा के सभी गुण विद्यमान है। लघु कथानक,संक्षिप्त और संदेशप्रद शैली,पात्र चित्रण, संवाद आदि की कसौटी पर यह एक सशक्त लघुकथा है।लघुकथा जो सीधे तीर की तरह मन तक प्रभाव छोड़ने में सक्षम हो,वह गुण इसमें विद्यमान है।
जब एक टोकरी मिट्टी का बोझ न उठा तो हजारों टोकरी मिट्टी का बोझ जीवन भर कैसे उठेगा,यह पंक्ति सीधे हृदय में उतर जाती है।सप्रे जी ने सीधे सीधे बोध कथा की तरह उपदेश नहीं दिया है, संकेत में समझा दिया कि किसी की जमीन हड़पने वाला चैन नहीं पाता। कुल मिलाकर एक टोकरी मिट्टी लघुकथा एक सफल लघुकथा है, जिसमें लेखक अपने उद्देश्य में पूर्ण सफल रहा है।
- डॉ.अनिल शर्मा 'अनिल'
धामपुर -  उत्तर प्रदेश
प्रस्तुत कथा " एक टोकरी भर मिट्टी" लघुकथा की श्रेणी  में रखा जा सकता है, क्योंकि कहानी एक बुढ़िया की झोपड़ी से शुरू होती है, और उसी पर आकर खत्म होती है। जिस झोपड़ी से उसे बहुत लगाव था। उसे अपनी सूझ - बूझ से हासिल कर लेती है। कहानी का सार यही है और इसी के आस पास कथा बुनी गई है। कथा के अंत में बुढ़िया के कहे वाक्य - "आपसे तो एक टोकरी मिट्टी  उठाई नहीं जाती और इस झोपड़ी में हजारों टोकरी मिट्टी पड़ी है।"जमींदार के साथ ही साथ पाठक को भी झकझोर देती है। यही लघुकथा की सफलता का मूलमंत्र है।
- कल्याणी झा 
रांची - झारखंड
माधवराव सप्रे की प्रथम लघुकथा  " एक टोकरी भर मिट्टी " अमीरों द्वारा गरीबों का शोषण  , चतुर चालाक व्यक्ति द्वारा धन बल बाहू बल से दूसरों की जमीन जायदाद हडफना, अपनी जमीन - मिट्टी से भू- स्वामी का लगाव होना , कोर्ट में वकीलों द्वारा बाल की खाल निकाल कर धन कमाना  , यहाँ तक कि गरीब के बच्चों का अपनी झोपड़ पट्टी से लगाव होना, अमीरों द्वारा गरीबों की हडपी जमीन बेशक न फब्बे जैसे मुद्दों  को इंगित करती यह कथा किसी एक काल की नहीं बल्कि सार्वकालिक है।  विषय वस्तु , पात्र,  वार्तालाप, शैली सामाजिक ढांचे को सुस्पष्ट करती है  । अतःयह लघुकथा के मानकों को पूरा करती है  ।
- अनिल शर्मा नील 
  बिलासपुर - हिमाचल प्रदेश
अक्सर लघुकथा के संदर्भ में एक प्रश्न लघुकथारों के समक्ष सिर उठाता है ? कौन सी लघुकथा प्रथम लघुकथा मानी जाती है?
    इस विमर्श में यद्यपि सभी लघुकथाकार एकमत नहीं हैं किंतु फिर भी 120 वर्ष पूर्व श्री माधवराव सप्रे की लघु कहानी  "एक टोकरी भर मिट्टी" को अधिकांश लघुकथाकार  साहित्य की लघुकथा विधा में शामिल मानते हैं। मैं भी इस बात का समर्थन करती हूं।
    पक्ष में कहना चाहूंगी कि 120 वर्ष पूर्व जब लघुकथा का नामोनिशान न था,कोई कहानी लिखी जाती है और वह वर्तमान में सुस्थापित विधा के नियमों की चौखटे में जड़ जाती है, तो इसे लघुकथा मानने से कैसे इंकार किया जा सकता है? 
   कालखंड मात्र  के दोष को नकारा जा सकता हे, क्योंकि इसे पाठक द्वारा प्रमुखता के साथ अनुभव भी नहीं किया जाता है।किसी भी साहित्यिक वर्ग का मत देशकाल व परिस्थितियों के आधार पर गुरू - गंभीर होता है।
- डा. च़ंद्रा सायता
इन्दौर - मध्यप्रदेश
। । एक टोकरी भर मिट्टी । ।
आ. माधवराव सप्रे जी को सादर नमन।
* पात्रों को आदर सूचक व विशेष शब्द  जैसे श्रीमान , साहब , प्रिय, गरीब , अनाथ , विधवा, इकलौता का उपयोग किया गया । जिससे पात्र वर्णन स्पष्ट हो सके।
* किसी श्रीमान जमींदार से लेकर एक टोकरी लेकर वहाँ  पहुँची तक लेखक ने वर्णनात्मक का उपयोग किया है जो लघुकथा के दृष्टिकोण से कहाँ  तक उचित है?
*  " महाराज , अब तो झोपड़ी तुम्हारी ही हो गई " से लघुकथा का दर्द झलकता है जो लघुकथा को सार्थक आयाम प्रदान करता है।
* लेखक ने जमींदार के लिए तीन शब्दों का उपयोग किया है - जमींदार साहब , श्रीमान जमींदार  व महाराज का उपयोग किया है अत: लघुकथा में भ्रमपूर्ण स्थिति नही बना चाहिए ।
* जब से यह झोपड़ी छूटी है तब से मेरी पोती ने खाना - पीना छोड़ दिया है ।मैंने बहुत समझाया पर वह एक नही मानती । यही कहा करती है कि -" अपने घर चल , वहीं रोटी खाऊँगी । "
इसमें बुढ़िया का जवाब में लेखक सटीकता नही दिखा पायें ।
* जमींदार टोकरी नही उठा पाना । लेखक ने अतिशयोक्ति की है।
* लेकिन लघुकथा में समाज के दर्द की कल्पनाशीलता, वर्णनात्मक व दयाभाव का गुण निहित है । जो लघुकथा को विशेष आकार व आयाम देता है।
* लघुकथा अपने लक्ष्य को भेदने में सफल होती हेै।
  - डॉ . विनोद नायक 
 नागपुर - महाराष्ट्र
प्रस्तुत कथा माधव राव सप्रे जी की " एक टोकरी भर मिट्टी" लघुकथा की विधा   में रखा जा सकता है, क्योंकि कथा में समाज में जो घटित हुआ है उस घटना को लेखक के मन ने झकझोरा है , उसी अभिव्यक्ति प्रतिबम्बित हुई है ।
यह लघुकथा सर्वकालिक है क्योंकि 120 साल पहले भी  समाज में रहनेवाले जमींदारों  , अमीर वर्ग का  वंचितों , गरीबों के अन्याय ,  शोषण सच उजागर होता है । आज भी यह मानसिकता समाज में पैठ बनाए हुए है  
लोगों की मानसिकता को दर्शाता है .
 भाषाशैली सरल , सहज प्रवाहमयी है। कथा के पात्र भी ज्यादा नहीं है। लघुकथा को भाषा और किरदारों के अनुरूप है. लघुकथा की सफलता भाषा,शैली पर भी होता है । लेखक की शब्द योजना , शब्द चयन वाक्य गठन के चातुर्य को दर्शाता है ।
कथा के आखिर में दिया पंच  को बुढ़िया के कहे वाक्य - "आपसे तो एक टोकरी भर मिट्टी  उठाई नहीं जाती और इस झोपड़ी में हजारों टोकरी मिट्टी पड़ी है।"जमींदार के साथ ही साथ हर पाठक के हृदय  को झकझोर देता है। जमीदार का हृदय परिवर्तन कर देता है  यही लघुकथा की सफलता का मूलमंत्र है। बुढ़िया अपनी बुद्धिमत्ता से अपनी विरासत  की झोंपड़ी को अपनी यादों में बसी अपनी झोंपड़ी को वापस प्राप्त कर लेती है ।
यह कथा मैंने दूरदर्शन पर भी देखी है ।
पाठक को यह लघुकथा शुरू से लेकर अंत तक बाँधे रखती है । यह प्रवाह भी लघुकथा का विशेष तत्व होता है । लघुकथा कि कसौटी पर खरी उतरती है।
- डॉ मंजु गुप्ता 
 मुंबई - महाराष्ट्र
'एक टोकरी भर मिट्टी 'माधवराव सप्रे की 120 वर्षों पूर्व लिखी गई लघु कहानी है ।  जिसे लघुकथाकारोंने इस कहानी को लघुकथा के मानक पर कसा है ।इसके कथानक में लघुकथा के सभी तत्व मौजूद हैं ।कथा में अनावश्यक विस्तार का विस्फोट नहीं है। वृद्धा के द्वारा कहे  कथा की अंतिम वाक्य कथा की चरमबिंदू है।वहीं जमींदार का हृदय परिवर्तन समाज को नई दिशा-निर्देश करती है। वस्तुतः 120 वर्ष पूर्व माधवराव सप्रे ने सामंतवाद पर करार प्रहार करने का साहसिक कदम उठाए जो की कथा में प्रत्यक्षबस दृष्टिगोचर होता है।अर्थात यह कथा  क्षणभर की अभिव्यक्ति की सशक्त लघुकथा है ।इसके कथानक पंच लाईन पर आधारित है ।शीषर्क कथा को सार्थकता प्रदान करती है ।यानि कि यह  लघुकथा की  कसौटी पर खरी उतरती है । हालांकि कि प्रथम लघुकथा की श्रेणी को लेकर मतभेद हैं ।किन्तु एक टोकरी भर मिट्टी 'लघुकथा की शास्त्रीये पक्ष पर बिल्कुल सही है सो इसे प्रथम लघुकथा मानने संकोच नहीं होनी चाहिए ऐसा मेरा मानना है ।
- डाॅ पुष्पा जमुआर
पटना - बिहार 
श्री माधवराव सप्रे की लघुकथा "एक टोकरी भर मिट्टी" लघुकथा के मापदंडों पर खरी उतरती है। इसमें लेखक ने लघुकथा की महत्वपूर्ण आवश्यकता एक सामाजिक विसंगति पर कठोर प्रहार करते हुए एक जमींदार के अंहकार की निरंकुशता और गरीब निस्सहाय विधवा की विवशता का स्पष्ट रूप से चित्रण किया है।
लघुकथा में सामाजिक, पारिवारिक, सांस्कृतिक तथा राजनीतिक विसंगतियों पर सूक्ष्मता से ठोस कटाक्ष करते हुए अंत में उस विसंगति का प्रत्युत्तर भी होता है। अंत में श्रीमान पड़ोसी (जमींदार) की आंखे खुलना इस लघुकथा की विसंगति का सच्चा प्रत्युत्तर है। 
शब्दों की मितव्ययिता लघुकथा का प्रमुख गुण है। 'एक टोकरी भर मिट्टी' में विधवा का विगत पारिवारिक चित्रण एवं वर्तमान स्थिति का विवरण लेखक द्वारा कुछ विस्तृत कर दिया गया है लेकिन लघुकथा की गहराई तक पहुंचने और अनाथ विधवा की मानसिक स्थिति और झोपड़ी के प्रति उसके मोह को समझने के लिए यह आवश्यक था। इससे लघुकथा की परम्परा के निर्वहन में कोई विशेष बाधा नहीं आती है।
जमींदार के धन-मद से अंहकार युक्त चरित्र को मात्र एक टोकरी मिट्टी के माध्यम से जिस प्रकार गरीब विधवा ने आईना दिखाया, उससे इस लघुकथा की सार्थकता सिद्ध होती है। 
निष्कर्षत: एक विसंगति को प्रस्तुत करते हुए यह लघुकथा कथानक, शिल्प और चरमोत्कर्ष (अंत) की उत्कृष्टता के साथ सीमित पात्रों की अनिवार्यता का ध्यान रखते हुए अपने कथ्य अर्थात एक संदेश देने की भूमिका का सफल निर्वहन करते हुए एक सार्थक लघुकथा है। 
- सत्येन्द्र शर्मा 'तरंग' 
देहरादून - उत्तराखण्ड
प्रस्तुत कथा "एक टोकरी मिट्टी" को लघुकथा मे रखा जा सकता है ।क्योंकि एक सो  बीस वर्ष पहले समाज मे घटित उस घटना को प्रतिबब्मित किया है । जिसने मन को झकझोरा है ।जिसमे अमीरों द्वारा धन, बल बाहू बल से गरीबों का शोषण ,करना उस समय भी प्रचलित था ।जमीदारों का गरीब जनता की जमीन हड़प  लेना एक आम बात थी । समाज मे होनें वाली  ये घटना उस समय की मानसिकता को दर्शाती जो मानसिकता आज भी समाज  मे गहरी पैठ बनाये हुए है ।इस कहानी को सर्वकालिक कहां जा सकता है ।लघुकथा में  विसंगतियों को दर्शाया  जाता है जो हमारे  समाज  मे  हर जीवन के अन्दर तक घुस आयी हो ।अपने संक्षिप्त रुप मे ही  लघुकथा जीवन को समेट कर कल्पना का नही अपितु यथार्थ का संदेश देती है । माधव राव स्प्रे की ये कथा  भी लघुकथा ही मानी जायेगी।समय के साथ ये जरूर है कि लेखन की शैली ,कथ्य  स्वरुप बदल गया है। फिर भी यह नही भूला जा सकता कि स्प्रे जी  ने उस समय मे समाज मे होने वाली विसंगति को कथा  मे उठानें का साहस किया है । आज  के परिपेक्ष्य को देखते हुए  यह लघुकथा के सारे मापदंडों पर खरी उतरती है ।कथा का अन्तिम वाक्य जब बुढिया जमीदार को कहती है "आप जीवन भर हजारों टोकरी मिट्टी कैसे उठा पायेगें"जमीदार को बदलनें पर मजबूर कर देती है और पाठक के मन मे गहरी छाप छोड़ देती है ।
लघुकथा कि भाषा ,सरल सहज है।भाषा शैली भी एक अच्छी लघुकथा के अनुरूप है ।और सामाजिक ढांचे को सुस्पष्ट करती हुई पाठक को शुरू से अंत तक बांधें रखती है ।लघुकथा कि हर मानकों पर करी उतरती है ।
- बबिता कंसल 
दिल्ली
1901 इ. में छत्तीसगढ़ मित्र में यह कहानी छापी गयी थी।
   बाद दिनों में हिंदी साहित्य में लघुकथा को जाना जाने लगा ,तब यह बात उठी कि क्या यह हिंदी साहित्य की प्रथम लघुकथा है?
कमलगोयनका जी ने इसे प्रस्तुत किया।बाद दिनों में बलराम जी एवम डा.अशोक भाटिया जी ने भी स्वीकारा।
प्रख्यात आलोचक,लघुकथाकार श्री बलराम अग्रवाल जी ने भी इस बात का समर्थन किया।
   वादविवाद उठते रहे।परंतु यह अटल सत्य है कि उन दिनों के जमींदार घरानों के अत्याचार की साफ छबि झलक कर आयी है।
   हाँ,यह अलग बात है कि विधवा द्बारा कही गयी अंतिम पंच लाइन से जमींदार साहब का ह्रदय परिवर्तित हो जाता है।
    एक गर्म ब की विवशता को मिट्टी के माध्यम से जमींदार के मन बदलाव की बात को सशक्त, सरल और कम शब्दों में कहा गया।इसलिए भी यह एक लघुकथा कही जाने लगी।
   लघुकथा के नियम तो बाद में बने।तब यह एक लघुकहानी के रूप में साहित्य प्रेमियों के बीच आयी।सब ने इस विषय को सराहा।
    आज के परिपेक्ष्य में देखा जाये तो यह लघुकथा के सारे मापदंडों पर खरी उतरती है।
   पंच लाइन भी है ,और समाज को बदलने का जज्बा भी।
मेरे अपना मत है कि समय,काल आदि के आधार पर इसे लघुकथा मान लेने में कोई संकोच या अभिमत नहीं होना चा हिये।
- महेश राजा
महासमुंद - छत्तीसगढ़

" मेरी दृष्टि में "  एक टोकरी भर मिट्टी कथा में आकार व विषय वस्तु की दृष्टि से लघुकथा है । इससे मै पूर्ण रूप से सतुष्ट हूँ । इस का जो विरोध कर रहे हैं सिर्फ लघुकथा के ठेकेदार है । वे रोज नये - नये नियम बनते रहते है । उन नियम का पालन , अपनी लघुकथा में भी नही करते हैं । वे नियम किस के लिए है ? मेरा निवेदन यह है कि जिस - जिस ने लघुकथा के नियम बनाये हैं उन सब की लघुकथाओं को , उन के नियम पर ही समीक्षा की जानी चाहिए । अन्त में " एक टोकरी भर मिट्टी " लघुकथा की कसौटी पर खरी उतरती है । बाकी लघुकथा के ठेकेदारों से बचना चाहिए ।
                                               - बीजेन्द्र जैमिनी


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