क्या गैगस्टर के खिलाफ एनकाउंटर कारगर उपाय है ?

आजकल गैगस्टर गली - गली , शहर - शहर में नंजर आते है । ये पुलिसवालों से भी  नहीं डरते हैं । इससे स्पष्ट होता है कि साधारण जनता का  क्या हाल होता है । फिर भी गैगस्टरों के खिलाफ एनकाउंटर होते रहते हैं । पुलिस के ऊपर फर्जी एनकाउंटर का इल्जाम लगता रहता है । गैगस्टर और एनकाउंटर का सिरसिला बहुत पुराना है । फिर भी कोई समाधान ढूंढने में सफलता नहीं मिली है । यही " आज की चर्चा " का प्रमुख विषय है । अब आये विचारों को देखते हैं : -
किसी भी गैंगस्टर के ख़िलाफ़ एनकाउंटर बहुत कारगर उपाय नही है क्योंकि एनकाउंटर एक ऐसी स्थिति है जिसमें अध्याय तो बंद हो जाता है पर कहानी तो निश्चित रूप से अधूरी रह जाती है । परन्तु एनकाउंटर मजबूरी में करना पड़ता है अपराधी भागने की कोशिश करते हुए पुन: अपराध को अंजाम देने लगता है जिसकी जवाबी कार्रवाई में घटना घट जाती है । फिर भी ये अवश्य कहा जा सकता है कि एनकाउंटर के द्वारा अपराधी को तो मारा जा सकता है पर अपराध समाप्त नहीं किया जा सकता । क़ानून व्यवस्था की न्याय में देरी इसके लिए ज़िम्मेदार है ऐसा देखा जा सकता है कि अपराधियों को बीस साल तक जेल में बंद रखा जाता है और मुक़दमा चलता रहता है कोई ख़ास ध्यान नहीं दिया जाता अपराधी जेल से ही अपना नेटवर्क चलाता रहता है जेल के बाहर जेल से ही बड़ी बड़ी कार्रवाई को अंजाम देते रहते हैं । इस लम्बी प्रक्रिया से क्षुब्ध होकर ईमानदार अफ़सर एनकाउंटर जैसी गतिविधियों को अंजाम दे देते हैं । पूर्व आईपीएस अधिकारी एसआर दारापुरी का कहना है, "अधिकतर एनकाउंटर फर्जी होते हैं, ये एक सत्य है और बहुत कम एनकाउंटर ही सही होते हैं. जब कोई भी सरकार इस तरह का अभियान चलाती है तो बड़े अपराधी छुप जाते है और छोटे अपराधी ही पुलिस की पकड़ में आते हैं. इसलिए वास्तव में अपराध कम नहीं होता और पुलिस का अभियान सुस्त पड़ते ही बड़े अपराधी सक्रिय हो जाते हैं." इस आधार पर कहा जा सकता है कि बचे हुए अपराधी फिर अपराध करते हैं जिससे कोई विशेष लाभ एनकाउंटर से नहीं मिलता है बस सरकारें कुछ अभियान चलाकर अपराध का ग्राफ़ नीचा दिखाने के लिए प्रयोग करती हैं जिससे अपराधियों के एनकाउंटर होते हैं परन्तु ये कितना कारगर उपाय है कुछ भी निश्चित नही कहा सकता है ।
- डॉ भूपेन्द्र कुमार धामपुर
 बिजनौर - उत्तर प्रदेश
कोढ़ में मवाद आने लगे तब अंग काटने से बेहतर होता है कि खाज आने के समय ही इलाज किया जाये। परन्तु अफसोस यही है कि हमारी लोकतान्त्रिक व्यवस्था में अलोकतांत्रिक शक्तियों के फलने-फूलने के तमाम साधन हैं। यही अपराधिक शक्तियाँ, जिन्हें गैंगस्टर कहा जाता है, जब व्यवस्था के लिए सिरदर्द बन जाती हैं तो उनके खिलाफ एनकाउंटर का उपाय प्रयोग में लाया जाता है। 
क्या यह विचारणीय नही है कि गैंगस्टर के एनकाउंटर की स्थिति तक पहुंचने के लिए कौन जिम्मेदार है? क्यों हमारी न्याय प्रणाली में इतने छिद्र हैं कि अनेक अपराधों में न्यायालय से सजा पाया हुआ गैंगस्टर समाज में खुलेआम घूमते हुए अपने आतंक की दुकान बेखौफ चलाता रहता है? जो दुर्दांत गैंगस्टर वर्षों तक अपने घृणित कृत्यों से समाज को शारीरिक, मानसिक और आर्थिक रूप से ऐसे जख्म देता है जो पीड़ित के मन-मस्तिष्क में जीवन भर रिसते हैं, ऐसे गैंगस्टर को एनकाउंटर के माध्यम से इतनी आसान मौत क्यों? अपराधी को और उसके सरपरस्तों को तो एड़ीयां रगड़-रगड़ कर मरने वाली सजा मिलनी चाहिए। 
कितनी विडम्बना है कि ये गैंगस्टर कुछ लोगों अथवा कुछ राजनीतिक पार्टियों के हितों की रक्षा करते हुए जमीं से लेकर आसमां तक गैरकानूनी तरीके से अपनी सत्ता कायम कर लेते है। क्या इस अपराधिक यात्रा के प्रारम्भ अथवा मध्य में उनके अपराधों की सजा देकर उन्हें रोकने की शक्ति हमारी लोकतांत्रिक व्यवस्था में नहीं है, जो अन्तत: एनकाउंटर जैसी स्थिति उत्पन्न होती है। साथ ही एनकाउंटर केवल गैंगस्टर का ही क्यों, उनका भी तो हो, जिनकी सरपरस्ती से एक गैंगस्टर वर्षों तक आम जनता पर अपने आतंक का कहर बरसाता रहा। एनकाउंटर तो उस व्यवस्था का भी होना चाहिए जिसमें गैंगस्टर को पनपने से रोकने की शक्ति नहीं है। एक गैंगस्टर के एनकाउंटर से वे ताकतें तो बच जाती हैं जिनका काम ही एक के बाद एक गैंगस्टर पैदा करने का है। करते रहो गैंगस्टरों के एनकाउंटर और बचाते रहो उनके आकाओं को ताकि वे एक की जगह चार गैंगस्टर पैदा कर सकें। 
- सत्येन्द्र शर्मा 'तरंग' 
देहरादून - उत्तराखण्ड
     भारतीय संविधान में वर्तमान परिदृश्य को देखते हुए संशोधित करने की आवश्यकता प्रतीत होती हैं। आज बढ़ते हुए अपराधियों को वृहद स्तर पर विभिन्न प्रकार के कार्यों में लिप्त हो के परिप्रेक्ष्य में तत्काल निर्णय लेकर अपराधित्व को रोकना होगा? जब तक कारगर कदम नहीं उठाये जायेंगे तब तक अपराधियों की संख्याओं में रिकॉर्ड तौड़ बढ़ोत्तरी होती जायेगी। आज सबसे बड़ा संरक्षण तत्व विद्यमान जिसके कारण उनके हौसले बुलंदियों की ओर अग्रसर हैं। अपराधी बनता नहीं, अपनी संरक्षण के लिए बनायें जा रहे हैं। सबसे पहले उस बीज को ही नष्ट कर दिया जायें, जो पनाह दे रहे हैं? आज स्व. विकास दुबे जैसे पर्दे के पीछे अनगिनत पनप रहे हैं। कोई सामने आकर अपराधों को अंजाम देता हैं, कोई सामने नहीं आता? हैदराबाद और कानपुर में जो घटित हुआ प्रत्यक्ष रूप से दिखाई तो दे दिया,  लेकिन वह राज उदाहरण बनकर रह गया? दामिनी प्रकरण में भी सत्यता थी, फिर भी उसे लंबित रखते हुए, न्याय में विलम्ब हुआ और राष्ट्रपति तक दया याचिका दायर होती रही।  किसी भी तरह की अपराधित्व  घटनाएं घटित होती हैं, तो विचारणीय निष्पक्ष रूप से कार्यवाही करना सर्वोपरि होगा। गैगस्टर के खिलाफ एनकाउन्टर कारगर उपाय पर वृहद स्तर पर सर्वोदली बैठक आयोजित करना चाहिए, ताकि जो संरक्षित कर रहे हैं, उनके मन के विचारों को भी सुना जा सके?
- आचार्य डाॅ.वीरेन्द्र सिंह गहरवार 'वीर'
  बालाघाट - मध्यप्रदेश
      एनकाउंटर कितना भी कारगर हो। परंतु संवैधानिक दृष्टि से अवैध ही माना जाएगा। खून का बदला खून और हत्या के बदले हत्या सुशासन नहीं कहलाता।
      कहते हैं कानून के हाथ लम्बे होते हैं। क्योंकि सरकार के पास कार्रवाई हेतु कई तंत्र होते हैं। जिनकी बारीकियों से गुजरना ही असहनीय यातनिक दण्ड होता है। वातानुकूलित कमरों में सोने वाले गैंगस्टर को हवालात में बंद रखना एक-एक क्षण भारी पड़ता है। जबकि एनकाऊंटर में मारा गया गैंगस्टर पल भर में कष्टों से मुक्ति पा जाता है।उसे पता ही नहीं चलता कि वह कब मर गया?
      गैंगस्टर का कष्ट तो उसे निचली अदालत द्वारा फांसी के दण्ड का आदेश देने से आरंभ होता है। जिसमें उसे पुनर्विचार याचिका दायर करने का अधिकार भी दिया जाता है। जिससे उसे प्रत्येक फांसी के आदेश पर फांसी के फंदे पर लटकाने का दर्द अनुभव होता। जिसकी कल्पना मात्र से भय उत्पन्न होता है।
      उस असहनीय काल्पनिक भय से गैंगस्टर उच्चतम न्यायालय की अंतिम न्यायिक प्रक्रिया के अधिकार में जितनी बार उसे मृत्यु दण्ड का आदेश मिलता है। वह उतनी बार मृत्यु का कष्ट झेलता है।
      उसके बाद क्षमा याचिका दायर कर महामहिम राष्ट्रपति से क्षमा की भीख मांगने पर विवश हो जाता। उस समय उसकी समस्त हेकड़ी निकल चुकी होती है। वह गैंगस्टर से भिखारी बन चुका होता है। खाने में दी गई बिरयानी भी उससे विष तुल्य निगली नहीं जाती।
      कटु सत्य तो यह है कि वह मरने से पहले कई मौतों का कष्ट झेल चुका होता है और जिंदा शव बन चुका होता। मानसिक तनाव से जो पीड़ा उसे मिलती है सो अलग है और एक दिन उसे बताया जाता है कि तेरी दया याचिका निरस्त हो गई है। उस समय उसे जो झटका लगता है। वह वास्तविक फांसी से कहीं अधिक कष्टदायक होता है। वह जमीन पर गिर जाता है। उसके शारीरिक अंगों में इतनी ऊर्जा नहीं होती कि वह स्वयं उठ सके और फांसी का फंदा अपने गले में डाल सके‌‌।
      अतः एनकाउंटर वाला गैंगस्टर इन समस्त अद्वितीय अकल्पनीय अविश्वसनीय असहनीय पीड़ाओं से पल भर में मुक्ति पा जाता है। इसलिए न्यायिक दण्ड की तुलना में गैंगस्टर के खिलाफ एनकाऊंटर किसी भी दृष्टिकोण से कारगर उपाय नहीं है।
- इन्दु भूषण बाली
जम्मू - जम्मू कश्मीर
जब आठ पुलिस वालो का हत्यारा मारा जाता है ऐसे में एनकाउन्टर पर सवाल लगाने वालो पर ही सवालिया निशान लग जाता है । जब एक गली का गुङे को नेताओ, माफिया आदि का संरक्षण प्राप्त होता है और वह एक दुदांत अपराधी बनता है, जब आम जनता का शोषण होता है और अपराधी की रिपोर्ट की जाती है लेकिन बङे बङे नेता और धननासेठ अपराधी की जमानत दिलवाने पहुंच जाते है ।
जब बङे बङे  राजनैतिक दल अपने स्वार्थ की पूर्ति के लिए वकीलो की फौज अपराधी के लिए खङा कर देते है ।
सवाल तो तब उठना चाहिए ।
तब पत्रकारों से लेकर पुलिस प्रशासन सभी मौन रहते है ।
पुलिस वालो की भी मजबूरी है ।
नेता जी की बात नहीं मानी तो बेचारा पुलिस वाला कानपुर से  चंबल मे स्थानांतरित कर दिया जाता है ।
यहाँ तक कुछ खाकी वर्दी धारी  पर इतना दबाव बनाया कि वह आत्म हत्या तक कर लेते हैं ।
प्रश्न चिन्ह तब क्यो नही लगाते  ????
 विकास दुबे जैसे अपराधियों का एनकाउन्टर ही एक मात्र उपाय है ।
यदि विकास दुबे जिन्दा होता और जेल मे होता तो अभी तक वकीलो की जमात उसके लिए आ धमकती और फिर दाव पेच से उसको छुङा लिया जाता । 
जब तक राजनैतिक दल अपने फायदे के लिए अपराधियों को संरक्षण देते रहेगे ।
तब तक ऐसे ही एनकाउन्टर होने चाहिए ।
और हाँ किसी  को अपराधी के  एनकाउन्टर पर प्रश्न चिन्ह लगाने का कोई अधिकार नहीं है ।
- संगीता राजपूत " श्यामा "
कानपुर - उत्तर प्रदेश
जब अपराधी बेकाबू हो जाता है तब पुलिस को एनकाउंटर करना निहायत ही जरूरी हो जाता है, ताकि समाज मे रहनेवालों को एक शांत वातावरण दिया जा सके और कानून का राज स्थापित किया जा सके। गैंगस्टर के खिलाफ एनकाउंटर कारगर उपाय है। उत्तरप्रदेश के कानपुर के पास गैंगस्टर विकास दुबे को पुलिस ने एनकाउंटर कर मार गिराया। यह घटना शनिवार की सुबह 6.30 बजे की तब घाटी जब विकास दुबे को यूपी पुलिस उज्जैन महाकाल मंदिर से गिरफ्तार कर कानपुर ला रही थी। कानपुर पहुचने से पहले जिस गाड़ी से विकास दुबे को लाया जा रहा था वह गाड़ी अनियंत्रित होकर पलट गई। इसी दौरान विकास दुबे पुलिस इंस्पेक्टर की रिवाल्वर छीनकर भाग रहा था। पुलिस ने उसका एनकाउंटर कर दिया। यह एनकाउंटर सही है या फर्जी जांच का विषय है। पर एक दुर्दांत अपराधी के साथ ऐसा ही होना चाहिए। विकास दुबे जैसे गैंगस्टर के मारे जाने से उसके पिता और पत्नी ने कहा कि जो हुआ ठीक हुआ। इससे स्पस्ट होता है कि विकास दुबे के आपराधिक जीवन से उसके परिवार वाले भी दुखी थे। गैंगस्टर के खिलाफ एनकाउंटर की यह पहली घटना नही है। देश मे हमेशा से गैंगस्टर के खिलाफ एनकाउंटर होते रहा है। विकास दुबे जैसे अपराधी अपने आपको कानून और सरकार से जब ऊपर समझने लगते हैं तो उनका ऐसा ही परिणाम होता है। उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री आदित्य योगीनाथ जो कहते हैं उसे करके दिखाते हैं। योगी खुलकर कहते हैं कि जो किसी की हत्या कर देगा। बहन बेटियों की सरेआम इज्जत लूटेगा उसकी तो पूजा नही की जा सकती। जो जिस भाषा मे समझेगा उसको उसी की भाषा मे समझा दिया जाएगा। हर हाल में कानून का राज चलेगा। 
योगी के इसी तरह के एक्शन से अपराधी भूमिगत हैं। यूपी में विकास दुबे जैसे एक गैंगस्टर के एनकाउंटर से पूरे राज्य में अपराधियों को साफ संदेश चला गया है कि गलती की तो परिणाम भुगतने को तैयार रहो। इसलिए गैंगस्टर के खिलाफ एनकाउंटर कारगर उपाय है।
- अंकिता सिन्हा साहित्यकार
जमशेदपुर - झारखड
ये जो गैगस्टर हैं इन्होने कई मासुम लोगों की जान लि होगी कईयों की सुपारी (अपराधियों की भाषा) ली होगी और उनहें बढी ही बैरहमी से मार दिया होगा जो इन्हें पैसा देगा जो इनहें सवरक्षण देगा उन के राहों के ये काटे हटाने का काम करते हैं कुल मिलाकर समाज में दहसत पैदा करना डर कायम रखना इनका मुल मकसद रहता हैं और वै इस काम में कामयाब भी रहे हैं इनके नाम से सरिफ इन्सान इनसे पन्गा नही लेता जो हिम्मत जुटाता हैं उनको जलिल किया जाता हैं सरे आम मार दिया जाता हैं यह बात तो मानना पढेगी की इनहें नेताओं का पुंजीपतियों का बाहुबलियों का सवरक्षण प्राप्त हैं ओर ये दोनों एक दुसरे की ताकत भी हैं या कहे एक दुजे बिन अधुरे हैं कोई इनकें खिलाप गवाही नही देता ऐसे में एक मात्र रास्ता बचता हैं एनकाउंटर ही कारगर उपाय हैं एक एक कर एनकाउंटर करते जाईये इनकी ताकत अपने आप घटती जायेगी ओर समाज में इन का डर फय भी समाप्त हो जायेगा तो मेरे मत से एनकाउंटर ही एक मात्र कारगर उपाय हैं ।
- कुन्दन पाटिल
 देवास - मध्यप्रदेश
एनकाउंटर ही कारगर उपाय है गेंगेस्टर के खिलाफ। इसका मतलब यह नहीं कि न्याय प्रणाली फेल हो गयी। लेकिन कानूनी दांव पेंच के खेल में ऐसे अपराधी अधिकतर बच निकलते हैं। आम आदमी,आम नागरिक गेंगेस्टर के एनकाउंटर में मारे जाने पर खुश होता है, 
जबकि वोटों के सौदागर उसे जाति धर्म और वर्ग से जोड़कर भावनाओं का दोहन करने का अवसर नहीं चूकते। प्रशासन अपने काम में चूक नहीं करता उसे चूक के लिए मजबूर करते हैं सत्ताधारी लोग। अपराधी को संरक्षण,अपराधी का हौंसला बढ़ा देता है ,और फिर होता है उनका नंगा नाच।समाज के लोग मुंह नहीं खोल पाते भयवश और अपराधी क्रूर होता जाता है।उसके परिवार के लोग भी उससे छुटकारे की विनती मन ही मन करते हैं।हद तब होती है जब वह अपने रुतबे के सामने प्रशासन को भी कुछ नहीं समझता। उसके प्रति ही आक्रामक हो जाता है और तब बन जाता है एनकाउंटर का कारण। बस इतनी सी बात है और उपाय भी क्या बचता है।जीवन बचाने के लिए,शरीर के सड़, गल रहे हिस्से को काटना, कटवाना ही पड़ता है।
- डॉ.अनिल शर्मा 'अनिल'
धामपुर - उत्तर प्रदेश
एनकाउंटर ही कारगर उपाय है गेंगेस्टर के खिलाफ। इसका मतलब यह नहीं कि न्याय प्रणाली फेल हो गयी। लेकिन कानूनी दांव पेंच के खेल में ऐसे अपराधी अधिकतर बच निकलते हैं। आम आदमी,आम नागरिक गेंगेस्टर के एनकाउंटर में मारे जाने पर खुश होता है, 
जबकि वोटों के सौदागर उसे जाति धर्म और वर्ग से जोड़कर भावनाओं का दोहन करने का अवसर नहीं चूकते। प्रशासन अपने काम में चूक नहीं करता उसे चूक के लिए मजबूर करते हैं सत्ताधारी लोग। अपराधी को संरक्षण,अपराधी का हौंसला बढ़ा देता है ,और फिर होता है उनका नंगा नाच।समाज के लोग मुंह नहीं खोल पाते भयवश और अपराधी क्रूर होता जाता है।उसके परिवार के लोग भी उससे छुटकारे की विनती मन ही मन करते हैं।हद तब होती है जब वह अपने रुतबे के सामने प्रशासन को भी कुछ नहीं समझता। उसके प्रति ही आक्रामक हो जाता है और तब बन जाता है एनकाउंटर का कारण। बस इतनी सी बात है और उपाय भी क्या बचता है।जीवन बचाने के लिए,शरीर के सड़, गल रहे हिस्से को काटना, कटवाना ही पड़ता है।
- डॉ.अनिल शर्मा 'अनिल'
धामपुर - उत्तर प्रदेश
विकास दुबे जैसे लोग संरक्षण मिलने पर ही गली से निकल कर ताज बन जाते हैं। शुरुआत छोटे-मोटे कारनामे से ही होती है। नेता लोगों का साथ मिलता है पैसों के लालच में।खून-खराबा की शुरुआत यहीं से होती है। उनके माध्यम से पुलिस में सेंध लगती है। अगर कभी गलती से दिमाग दुनिया से बाहर निकलना भी चाहता है तो संलिप्तता इतनी हो चुकी होती है कि बाहर मौत ही नजर आती है। 
  जब एक गिरोह तैयार हो जाता तो फिर आका का *आका* बन जाता है। अंत विकास की तरह हीं होती है। या तो नेता मरवाएगा या दूसरा कोई *डॉन*। अंततः तो मौत लिखी होती है।
  इसलिए गलत कामों की शुरुआत ही नहीं करनी चाहिए।
- संगीता गोविल
पटना - बिहार
गैंगस्टर के खिलाफ एनकाउंटर का जो खेल खेला गया है।यह साजिश और चालाकी के तहत किया गया है। इतने बड़े कांड के पीछे  छुपे आकाओ का ही काम है। इसमें कोई शक वाली बात नही है कि यह एक अपराधी अब आकाओ के गले का दर्द बन गया था इसलिए इसको मरबा दिया है ताकि इनकी पोल खुलने से बच जाए। ऐसा इत्तफाक सिर्फ बड़े लोगो के साथ ही होता ही कि सही वक्त गाड़ी पलट जाती है और दुबे भागने लगता है ।और पुलिस वाले धड़धड़ाते गोली बरसा देते है इसी का नाम ही एनकाउंटर है। पुलिस वाले भी आकाओ के गुलाम होते है आदेश मिलते ही और अपनी सवासी पाने के लिए गोली चला देते है।
- राम नारायण साहू "राज"
रायपुर - छत्तीसगढ़
छोटे-मोटे अपराधी से गैंगस्टर बनने तक के सफर में वह बहुत कुछ करता है बहुत व्यक्तयों के संपर्क में आता है किसी भी व्यक्ति के जीवन मे यह बहुत महत्वपूर्ण कि उसकी संगति कैसी रही बच्चों की गलतियों को नजर अन्दाज करने का नतीजा बहुत गंभीर हो सकता है न केवल माता पिता बल्कि समाज के बडे व समझदार लोग भी गलत काम करने पर बच्चों को डाँटते फटकारते थे और माँ बाप भी ऐसे लोगों का आदर करते थे पर आज यह सब बाते बिल्कुल नदारद है समाज को इन सब बातों पर ध्यान देना होगा माँ दादा दादी सभी बच्चों को प्रेरक प्रसंग सुनाते थे जिसके लिए अब कोई समय नही है यह चरित्र निर्माण मे प्रभावी भूमिका निभाता था अपराधिक प्रवृत्ति मे वृद्धि का यह भी एक कारण है कि बच्चे क्या देख और पढ रहे है जैसा कि अपराधियों के बारे में पढ़ने से पता लगता है या देखने से मीडिया पर देखने से पता लगता है बच्चों की आदतों पर शुरू से ही ध्यान दिया जाना चाहिए  पहली बात तो यह है  इससे पहले पहले कोई छोटा अपराधी इतना बड़ा गैंगस्टर बन जाए उसे उसके सफर से पहले ही लगाम लगा देनी चाहिए और ऐसी व्यवस्था करनी चाहिए कि जिससे वह अपराध का रास्ता छोड़कर मुख्यधारा में लौट आए परंतु यदि ऐसा ना हो तो कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए ऐसे लोगों का एवं एनकाउंटर करना एक बहुत ही प्रभावी उपाय है और निश्चित रूप से ऐसे दुर्दांत अपराधियों का एनकाउंटर किया ही जाना चाहिए जिससे दूसरे इस तरह के अपराधियों को भी सबक मिले व कानून व्यवस्था ठीक रह सके...... !
- प्रमोद कुमार प्रेम
नजीबाबाद - उत्तर प्रदेश
यदि अपने प्रदेश और देश मे शांति व्यवस्था को कायम रखना है तो बार बार आपराधिक प्रवत्तियों में संलिप्त पाए जाने वाले अपराधियों , गैंगस्टरों को चीर निंद्रा में सुलाना आवश्यक है । आपराधिक प्रवत्तियों में संलिप्त व्यक्ति किसी का अपना नही होता , वह अपने फायदे के लिए किसी को भी नुकसान पहुंचा सकता है और ऐसा व्यक्ति समाज को गंदा करने के अलावा कुछ नही करता । ज्यादा दिन जीने के कारण ही ऐसे लोग दाऊद इब्राहिम , विकास दुबे और अन्य आतंकवादियों की तरह बन जाते है । जो केवल ओर केवल अपराध और अपराधियों को ही जन्म देते है ।
हां ये बात और है कि उनका एनकाउंटर कब होना चाहिए , यदि विकास दुबे जैसे लोग जो राजनीतिक पार्टियों और राजनेताओं की शय पर बचते फिरते है और अपराध करते रहते है , को एनकाउंटर में तब तक मारना उचित नही होगा जब तक उससे ऐसे सफेदपोशाक वालो के नाम नही उगलवा लिए जाते जो ऐसे अपराधी व्यक्तियों को पालते पोषते है । क्योंकि केवल एक विकासदुबे को मारने से कुछ हांसिल नही होगा । यहां बहुत विकास दुबे है साहब । आज ज़रूरत है कि हर उस सफेदपोश धारी को सलाखों के पीछे करना होगा जो लोग अपनी कुर्सी की पॉवर का नाजायज फायदा उठाकर विकास दुबे बनाने में लगे है ।
- परीक्षीत गुप्ता
बिजनौर - उत्तरप्रदेश
 आज के युग के अनुसार गैंगस्टर के खिलाफ एनकाउंटर कारगर उपाय ठीक है। हमारे संविधान 70 साल पुराना है उस समय जो माहौल था उस पर सोच समझकर बनाया गया था। दुनिया के सर्वोच्च संविधान माना गया है।
लेकिन आज के युग में परिवर्तन की आवश्यकता है। क्योंकि राजनीति इस तरह से करवट बदलती रही है। कभी जाति -धर्म भाई -भतीजा। गैंगस्टर ,उग्रवाद, आतंकवाद ,के मदद से सत्ता पर काबिज होते है।यह हर राजनीतिक पार्टी का मुख्य उद्देश्य हो गया है। इसलिए एनकाउंटर आज के युग में जायज है।
अब देखें "विकास दुबे कानपुर वाला" किस रूतबे से अपना परिचय देता है। क्योंकि हर राजनीतिक पार्टी और प्रशासन को सहयोग मिला हुआ है।जब उसे समझ में आ गया हमें पकड़ कर कोट मे ले जाएंगे और वहां पर बेल मिलना निश्चित है। तब उसने उज्जैन में अपने को सरेंडर किया उसने कबूल किया उसकी मदद करने के लिए पुलिस चौकी शामिल है। इससे साफ पता चलता है पुलिस और प्रशासन सहयोग कर रही हैं। उज्जैन से कानपुर के रास्ते में भीती नाम की जगह पर एनकाउंटर करके मार गिराया गया।
वह सिर्फ 48 वर्ष का व्यक्ति है और उस पर 60 मुकदमे दर्ज है।सभी मैं बेल मिला हुआ है। यानी न्यायालय को भी मैनेज की हुए है।
विकास दुबे का एनकाउंटर किसी दबाव में किया गया है क्योंकि इसमें कई लोगों का राज़फास होने की आशंका थी।जिसमें  लगभग सभी पार्टियां के नेता शामिल है। साथ मे विकास दुबे और पुलिस का गठजोड़ भी है।
लेखक का विचार:- संविधान का आर्टिकल 21 मैं लिखा हुआ है हर एक को जीने का अधिकार देता है। अपराधी भी क्यों ना हो। इसलिए इस युग के अनुसार संविधान में संशोधन की आवश्यकता है।परिवर्तन का समय है परिवर्तन होगा तो क्राइम होने से बचेगा। राजनीति में भी क्रिमिनल को बढ़ावा नहीं होगा अभी क्या है, हमारे अनुसार से ज्यादा नेता क्रिमिनल है या उस से गठजोड़ में है। इसे रोकना चाहिए। भ्रष्टाचार इन्हीं लोग  का देन है।
- विजेंयेद्र मोहन
बोकारो - झारखण्ड
सदियों से मृत्यु दण्ड देने के साथ एक तर्क यह भी जुडा है कि अपराधी की सजा को देखकर अन्य लोग अपराध करने से डरेंगे, परन्तु प्रश्न उठता है कि क्या गैंगस्टर के खिलाफ एन काउंटर /मृत्यु दण्ड देने से अपराध की घटनाओं में वाकई कमी आ जाती है? जबकि आज भी भारत सहित विश्व के अधिकांश देशों में मृत्यु दण्ड देने की व्यवस्था के पीछे यही "अपराध निवारण "की अवधारणा काम कर रही है l दूसरी ओर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मानवाधिकारवादियों द्वारा इस मुद्दे पर व्यापक प्रतिरोध जारी है l 
     यह एक मानवीय सिद्धांत है कि हम जीवन दे नहीं सकते तोकिसी का  जीवन लेने का भी अधिकार  हमारे पास नहीं हैl अपराधी सुधारने में समाज की विफलता तथा क़ानून की अक्षमता ही सिद्ध हो चुकी है l जघन्य हत्याकांड अपराधी को मृत्यु दण्ड /एन काउंटर न करने का अर्थ है समाज के लाखों शांति प्रिय नागरिकों के जीवन में असुरक्षा की भावना में वृद्धि l यदि मृत्यु दण्ड का भय समाप्त हो जाये तो पेशेवर हत्यारों के मन से क़ानून तथा सजा का भय भी स्वतः समाप्त हो जायेगा l  
      तुलसीदास जी ने मानस में लिखा है -"भय बिनु होय न प्रीत "अर्थात भय दिखाकर ही दण्ड विधान के आधार पर ही व्यक्ति को सुधारा जा सकता है l जब राक्षस उत्पात मचाते है तो ऋषि मुनियों की सुरक्षा हेतु श्री राम और लक्ष्मण जाते है और एन काउंटर करते हैं राक्षसों को l अतः यह तो ठीक है कि गैंगस्टर के खिलाफ एन काउंटर कारगर उपाय है पर इनको संरक्षण देना तो बहुत बडा अपराध है l 
      राजनीती अपराधीकरण की समस्या वर्तमान में प्रजातांत्रिक स्वरूप को विद्रूपित करने में सफल रही है वहीं हमारी न्यायिक व्यवस्था अत्यंत ढीली नज़र आती है l लम्बे समय तक लंबित रहती है l यहाँ भी परिवर्तन की आवश्यकता है l यदि भविष्य में इसी प्रकार राजनीतिक अपराधीकरण को बल मिलता रहा तो तो निःसंदेह भारतीय संसद और विधान परिषदें जनता के प्रतिनिधियों की नहीं बल्कि अपराधियों की पोशिका बन कर रह जाएंगी l अभी न जाने कितने विकास सामने आने हैं l आज वह अभिमन्यु है कहाँ, जो इस कौरवी घेरे को तोड़ दे l स्वेट मार्डन ने भी कहा -आज विश्व को ऐसे व्यक्तियों की आवश्यकता है जो क्षुद्र स्वार्थो के लिए अपनी आत्मा का सौदा नहीं करते... "
          चलते चलते -----
1. जम गई है पीर पर्वत -सी निकलनी चाहिए l 
इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए ll 
2. छोटे से सवाल का, जुल्म के फैले जाल का, जवाब दो 
दुनियाँ वालों जवाबदो l
- डॉ. छाया शर्मा
अजमेर - राजस्थान 
एक सामान्य नागरिक होने के नाते इस विषय में केवल इतना ही कहूंगा कि जब कोई दुर्दांत अपराधी पुलिस एनकाउंटर में मारा जाता है तो सभी पीड़ितों और शांतिप्रय नागरिकों को राहत का अनुभव होता है। जब भी कोई जघन्य अपराध होता है तो सामान्य नागरिक अकस्मात् क्रोध से भर उठता है और पुलिस तथा प्रशासन पर सवाल उठाता है।  उस समय वह यही चाहता है कि अपराधी को सरेआम फांसी पर लटका दिया जाये, गोली मार दी जाये।  निर्भया काण्ड में सामान्य नागरिक का यह आक्रोश देखा जा सकता था। समस्त जनता चाहती थी कि अपराधियों को देखते ही मार दिया जाये। जब तक हम पुलिस महकमे में नहीं होंगे हमें उनकी कार्यविधि के बारे में मालूम नहीं हो सकता। जहां अनेक राजनीतिक दलों और कानून तथा संविधान से जुड़े लोगों की बात है उन्हें एनकाउंटर इतना सरल नहीं प्रतीत होगा जबकि आम जन को यही लगता है कि गैंगस्टर के खिलाफ एनकाउंटर कारगर उपाय है। 
- सुदर्शन खन्ना
 दिल्ली
गैंगस्टर एक अपराधी कहलाता है अपराध की सजा मिलने के कई तरीके हैं यदि न्यायालय द्वारा यह सजा सुनाई जाती है तो उसे कारावास या आजीवन कारावास का दंड भुगतना पड़ता है लेकिन यह प्रक्रिया होने में इतनी देर हो जाती है की उस समय तक वह अपराधी प्रवृत्ति का व्यक्ति अन्य कई अपराध कर बैठता है तो कहीं ना कहीं न्यायंई प्रक्रिया में देर होने के कारण अपराधी गैंगस्टर का रूप ले लेता है
कोई भी गैंगस्टर पैदाइशी नहीं होता है समाज परिवार के कटु अनुभव अत्याचार भ्रष्टाचार के पश्चात जब न्याय नहीं मिलने लगता है तो धीरे धीरे कर वह उस दुनिया में प्रवेश कर जाता है इतनी निराशा उसके जीवन में हो जाती है की वह विद्रोही प्रविष्टि का बन जाता है क्रोध में बदला लेने की भावना के उद्देश्य से अपराध की दुनिया में अपना कदम मजबूत बना लेता है आगे चलकर ऐसा फसने लगता है कि उसे फिर उस दुनिया से बाहर निकलने का कोई रास्ता नहीं होता है या तो स्वयं सरेंडर करें या एनकाउंटर में मार दिया जाए
अपराधी के अपराध की सजा एनकाउंटर भी है पर एनकाउंटर ही है ऐसा नहीं हो सकता।
वर्तमान समय में हमारे देश में भ्रष्टाचार अत्याचार की दुनिया बहुत बड़ी हो गई है जिसे न्यायालय से अब सुलझाया नहीं जा सकता परिस्थिति को देखते हुए एनकाउंटर होना भी आवश्यक है ताकि भावी पीढ़ी ऐसे कार्य को करने में एक बार सोचे अवश्य किक इस दुनिया में हम कदम रखने जा रहे हैं
यदि प्रारंभ में ही अपराधी प्रवृत्ति पर रोक लगाया गया होता तो शायद एनकाउंटर का मौका नहीं आ सकता लेकिन जिस समय अपराध पर रोक लगाने की बात होती है उस समय कुछ ऐसे हस्तियां हैं जो उनका सपोर्ट करते हैं और उन्हें उस दुनिया में जाने के लिए प्रोत्साहित भी करते हैं आप खुद सोच से क्या अपराध का निराकरण अपराध से हो सकता है कम हो सकता है पर खत्म नहीं हो सकता क्योंकि इंसान का मन हमेशा विद्रोह और बदले के लिए उत्तेजित होता रहता है और युवा पीढ़ी में ही अधिकतर देखने को मिलता है क्योंकि उस समय उनका हार्मोन अल पावर बहुत ही शक्तिशाली होता है परिपक्वता का अभाव होता है परिणाम की चिंता नहीं करते हैं उनका भी परिवार है उससे कुछ हानि होने वाला है उसकी परवाह नहीं करते हैं और चंद खुशियों के लिए अपराध की दुनिया में प्रवेश कर जाते हैं यह नादानी से उन्हें रोका जा सकता है।
इसलिए गैंगस्टर के खिलाफ एनकाउंटर एकमात्र कारगर उपाय नहीं है पर यदि सीमा से ज्यादा हो जाए तो एनकाउंटर होना भी आवश्यक है।
- कुमकुम वेद सेन
मुम्बई - महाराष्ट्र
अगर वास्तव नें बुराई को जड़ से खत्म करना है गैंगस्टर के खिलाफ एनकाउंटर कारगर  उपाय नहीं है ।गैंगस्टर स्वयं नहीं बनते ,पावर और पैसा इनके फलने -फूलने में मदद करता है ।
इनका भी अपना परिवार होता है ।जब तक इनको अपने
 सुरक्षा का विश्वास नहीं होता ,गैंगस्टर नहीं तैयार होते हैं ।धीरे -धीरे इनका दायरा बढ़ता जाता है ,रिश्तेदार फिर सहयोगी पैसे और पावर के लालच में जुड़ते जाते हैं ।वैसे भी कानून दंड देने का अधिकारी है । एनकांउटर से बहुत सी बातें सामने आने से रह जाती हैं ।सच्चाई का खुलासा नहीं हो पाता है ।एक गैंग खत्म होता है उसके बचे -खुचे लोग दूसरा गैंग तैयार करते हैं ,कुछ दिन की शांती फिर वही पुरानी शुरुआत ।मेरे विचार से यह हमारे न्याय प्रक्रिया को कमजोर करता है ।
- कमला अग्रवाल
गाजियाबाद - उत्तर प्रदेश
बिल्कुल नहीं, लेकिन आज हमारी न्यायपालिका और उसकी सदियों पुरानी कानूनी व्यवस्था,  और प्रक्रिया सब में बहुत लूप है। जिसके कारण बहुत बार सही न्याय नहीं मिल पाता है और कभी कोई कुख्यात अपराधी छूट जाता है तो कभी इतनी लंबी कानूनी कार्रवाई साल दर साल चलती रहती है कि लोग उचित न्याय के लिए तरस जाते हैं।अभी कुछ हीं दिनों पहले निर्भया के दोषियों को फांसी की सजा देने में हम सब ने वकील और क़ानूनी दांव-पेंच का साक्षात उदाहरण देखा बारह वर्षों की लंबी जंग के बाद निर्भया की मृत आत्मा और उनके माता-पिता के अथक प्रयासों का फल मिला जबकि वह केस बिल्कुल साफ और सच्चाई बयां कर रही थी । इसीलिए हैदराबाद में लेडी डाक्टर के दोषियों का भी एनकाउंटर कर त्वरित इंसाफ कर दिया गया।ये हम सभी को पता है कि दोषियों को सज़ा देने का हक़ सिर्फ न्यायालय के अधीन है परन्तु आज बहुत से लोगों में अब ऐसी आक्रोश देखी जा रही है। बहुत बार ऐसा होता है कि पुलिसकर्मी अपनी जान पर खेलकर  ऐसे कुख्यात मुजरिमों को पकड़ते हैं परन्तु साक्ष्य और पैसों के बल पर और  ग़लत गवाही और ऊंची पैरवी के जरीए  वह अपराधी छूट जाता है और पुनः ग़लत काम के साथ हीं उस जांबाज पुलिसकर्मी से अपनी दुश्मनी में कुछ भी कर बैठता है क्योंकि उस अपराधी में भय लेशमात्र भी नहीं होता क्योंकि उसे पता है कि अपनी सेटिंग से वह अगर पकड़ा भी गया तो पुनः बेल आउट हो बाहर आ जाएगा। पुलिसकर्मी के हाथ कानून और अपने कर्तव्य के दायरे से बंधे हुए होते हैं। इसलिए मेरे विचार से ऐसी एनकाउंटर की नौबत कभी ना आए ऐसी शसक्त हमारी न्यायपालिका हो और हमारा कानून भी जिसके डर से अपराधी पहले  दस बार इसके परिणाम से डरें  और अपराध की दुनिया में क़दम रखने से पहले सौ बार सोचे ।
- डॉ पूनम देवा
पटना -  बिहार
 गैंगस्टर के खिलाफ एनकाउंटर को न्यायिक स्तर और मानवीय आधार पर कारगर उपाय नहीं ठहराया जा सकता। अगर इसे उचित ठहरा दिया गया तब पुलिस की ज्यादतियां देखने को मिलेंगी। वे निरंकुश होकर आगे के पचड़े में न पड़ने के डर से, सबूत मिटाने के ख्याल से, और मामले को वहीं खत्म करने के उद्देश्य से एनकाउंटर का आसान रास्ता चुनेंगे जो आगे चलकर समाज के लिए बहुत ही अहितकर साबित होगा।
पुलिस वाले अपना खूंन्दस, गुस्सा निकालने हेतु निर्दोष को भी दोषी साबित कर एनकाउंटर द्वारा मार कर वाहवाही लूटने के प्रयास में रहेंगे।
    हमारे देश का अपना संविधान है जहां न्याय प्रक्रिया का सर्वोच्च स्थान है। हर अपराधी को अदालत में अपनी बात रखने का, अपने को निर्दोष साबित करने का मौका दिया जाता है। हां,यह भी सच्चाई है कि बड़े-बड़े अपराधी नेताओं से मिलीभगत के कारण रिहा हो जाते हैं। पुलिस इतनी मशक्कत के बाद पकड़ती है और अपराधी के डर के कारण कोई गवाह उपस्थित न होने के कारण वे अदालत से छूट जाते हैं जिसकी वजह से पुलिस वालों का मनोबल टूटता है। इस वजह से भी पुलिस वाले एनकाउंटर का रास्ता अख्तियार करते हैं।
   पर मेरे विचार से मानवीय आधार और न्याय की दृष्टि से यह रास्ता कदापि सही नहीं है। इससे बहुत सारे राज भी दफन हो जाते हैं और उस अपराध में लिप्त बड़ी मछलियों के नाम भी उजागर नहीं हो पाते। एनकाउंटर कारगर उपाय नहीं है।
                         -  सुनीता रानी राठौर
                         ग्रेटर नोएडा - उत्तर प्रदेश
कोई भी अपराधी प्रवृत्ति लेकर पैदा नहीं  होता! आलसी और कामचोर व्यक्ति शॉर्टकट से सफलता प्राप्त कर लेना चाहते हैं चाहे उन्हें गलत मार्ग ही क्यों न अपनाना पड़े! चोरी लूटपाट, खून खराबा कुछ भी करने को तैयार रहते हैं! यहीं से उनके अपराध का आरंभ होता है! 
राजनीति संरक्षण से ही घिनौने कार्य को शरण मिलती है और वह फलता फूलता है! 
उनके गुनाह की जड़ धीरे धीरे इतनी गहरी पकड़ ले लेती है कि आशीर्वाद देने वाला नेता भी उसकी जकड़ में आ जाता है! 
भष्मासुर बने इस राक्षस से अपनी जान बचाने के लिए ही एन्काउंटर का सहारा लेना पड़ता है! 
वैसे भी हमारे संविधान में किसी को फांसी देने का प्रावधान नहीं है! न्याय शीघ्र मिलता नहीं  !वकील अपने पेशे को देखता है, चप्पल घीस जाती है अंत में  अपराधी बाहर होता है और पुनः आतंक मचाता है! हमारे जवान पुलिस के हाथ बंधे रहते हैं नेताओं के आड़ में  ! 
आगे वही अपराधी नेता बन देश को डूबाता है अथवा खतरनाक गेंगस्टर बन एक नए आतंक को जन्म देता है! 
अतः मैं एन्काउंटर के पक्ष में हूं ताकि खौफ बना रहे! और आतंक को बढ़ावा  न मिले! संविधान के कुछ जटिल नियम एवं कानून में बदलाव लाना होगा! 
- चंद्रिका व्यास
 मुंबई - महाराष्ट्र
किसी भी दुर्दांत अपराधी का एनकाउंटर पुलिस द्वारा पहले से सुनियोजित प्रक्रिया के तहत नहीं होता, ना ही यह कारगर उपाय है अपराध मुक्त समाज का ।
सजा देने का अधिकार तो न्याय प्रणाली को ही होना चाहिए ।
मगर जब अचानक ऐसे हालात बन जाते हैं  कि पुलिस और अपराधी के बीच टकराव होता है, अपराधी उसकी अभिरक्षा से भागने की कोशिश करता है या उसके ऊपर आक्रमण करता है तो पुलिस का यह नैतिक दायित्व बन जाता है कि वह सेल्फ डिफेंस के तहत उसका एनकाउंटर कर सकता है ।
लेकिन अगर यह फेक इनकाउंटर है  तो कतई अन्याय है  गलत है, क्योंकि सघन जांच-पड़ताल के बाद साक्ष्यों के आधार पर दंड देना का अधिकार  केवल न्याय प्रणाली को  ही है ना कि पुलिस को ।
मगर सेल्फ डिफेंस के तहत पुलिस  अपराधी का एनकाउंटर कर सकती है ।
हालांकि इन काउंटर में अपराधी की मृत्यु हो जाने से अपराध से जुड़े की रहस्य भी मर जाते है ।
अपराधी की पूरी दलील सुने बिना, पूरी जांच-पड़ताल के बिना उसके साथ अपराध में संलिप्त अन्य कई अपराधी दंड पाने से बच जाते हैं और इस तरह अपराध की चेन नही टूट पाती ।
हाँ यदि वास्तव मे ऐसे  हालात पुलिस के सामने  बनते हैं की सेल्फ डिफेंस  के लिए  पुलिस  अपराधी को शूट कर सकती है और करना भी चाहिए ।
 पुलिस क्या हर किसी को सेल्फ डिफेंस में दोषी को शूट करने का अधिकार है ।
लेकिन फेक इनकाउंटर तो समाज के प्रति अत्याचार है ऐसे मे कई अपराधी दण्ड पाने से बच  जाते हैं।
- सुषमा दिक्षित शुक्ला
लखनऊ - उत्तर प्रदेश
भारत की न्यायिक व्यवस्था कुछ ऐसी है कि चाहे सौ गुनहगार छूट जाएं, पर एक बेगुनाह को सजा न हो । बस, इसी बात का फायदा उठा कर सालों-साल केस चलते हैं और इतनी लंबी अवधि में उसमें भ्रष्टाचार का घुल जाना कोई नई बात नहीं। गवाह, यहाँ तक की न्याय भी बिकने के उदाहरण देखे हैं।  दूसरी बात जजों की कमी जिसकी वजह से विलंब बढ़ जाता है और अपराध की भयावहता को लोग भूलने लगते हैं। 
इन सब बातों तथा अपराधी के प्रति जन आक्रोश को देखकर तो लगता है -हाँ, अपराधियों के सफाए के लिए  एनकाउन्टर कारगार उपाय है। 
अब यदि एनकाउन्टर या मुठभेड़ की बात की जाए तो अपराधी से बचने आत्मरक्षा के लिए पुलिस द्वारा गोली चलाते वक्त अपराधी का मारा जाना ; यह इक्का दुक्का मामले में हो सकता है किन्तु आजकल फर्जी एनकाउन्टर का ट्रेंड चल पड़ा है । यह पुलिस भी जानती है कि उसे किसी अपराधी का न्याय करने का अधिकार नहीं है वर्ना सारे न्यायाधीशों और वकीलों से स्तीफा लेकर न्यायालय पर लगाना पड़ जाएं। इसलिए फर्जी एनकाउन्टर कर एक कहानी गढ़ी जाती है । राजनेताओं की संलिप्तता और मीडिया की चाटुकारिता इस गलत प्रथा पर मौन रहकर इसे बढ़ावा देतीं हैं। यह सर्व विदित है कि पुलिस सत्ता के इशारे पर काम करती है, वर्ना अपराधी को सीधे छाती पर गोली मारने की बजाय उसके पैरों पर गोली मार कर उसे जीवित गिरफ्तार किया जा सकता है। 
अपराध की भयावहता को देखते हुए प्रथम दृष्ट्या तो लगता है उसका एनकाउन्टर हो जाना ही ठीक है किन्तु यह भी विचारणीय है कि बिना राजनीति एवं पुलिस संरक्षण के इतना बड़ा अपराधी अकेला अपराध नहीं कर सकता। 
अतः एनकाउन्टर से किसी एक अपराधी को तो खत्म किया जा सकता है पर अप्रत्यक्ष रूप से जो मछलियाँ उसे संरक्षण देती आईं हैं उनका क्या ? 
- वंदना दुबे
धार - मध्यप्रदेश


" मेरी दृष्टि मे " गैगस्टरों की परिभाषा तैयार होनी चाहिए । जिससे एनकाउंटर को बल मिल सकें । पुलिस के पास कारगर अधिकार होने चाहिए । तभी साधारण जनता को गैगस्टरों से मुक्ति मिल सकती है 
                                                    - बीजेन्द्र जैमिनी
सम्मान पत्र 

Comments

  1. मैं आज इसमें पर्सनल बात बता रहीं हूं ।मेरे पति भी एक बार एक राजनीति से ताल्लुक रखने वाले व्यक्ति जो अपराधी था उसे पकड़ा था और वो व्यक्ति जेल से धमकी देता था कि एस० पी० साहब आपका एक हीं बेटा है सावधान रहिएगा।आप सब समझ सकते हैं उस समय मैं किस बैचैनी में अपने बेटे को रोज नए नए रास्ते से स्कूल से लौटने के समय वापस घर लाती थी रोजाना बेटे के साथ साए के साथ रहती थी बहुत टेंशन के साथ वो समय बीता है ।उस समय किडनैप काफ़ी होता भी था ।खैर ऊपरवाले की कृपा से समय बीत गया और आज तक हम सब सुरक्षित हैं । लेकिन ये भी एक कटु सत्य है ।क्षमा🙏 इस पटल पर देने का मन किया जब कल से विकास दुबे का टापिक आ रहा है ।
    - डॉ. पूनम देवा
    पटना - बिहार
    ( WhatsApp ग्रुप से साभार )

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