क्या रिश्तों में विश्वास सबसे बड़ी पूंजी होती है ?

रिश्तों में विश्वास बहुत जरूर है । विश्वास के बिना रिश्तों में झगड़ा ही झगड़ा होता है । फिर रिश्तों का महत्व खत्म हो जाता है । विश्वास के बिना " महाभारत " जैसे हालात बन जाते हैं । यही " आज की चर्चा " का प्रमुख विषय है। अब आये विचारों को देखते हैं : -
कोई भी रिश्ता हो उसकी उम्र विश्वास पर टिकी होती है
और विश्वास जितनी मजबूती देता है उतना ही स्वंय कच्चे धागे की तरह होता है और कहा भी है
"विश्वास पर ‌दुनिया टिकी है'
जब विश्वास दुनिया चला सकता है तो रिश्तों की तो जान ही विश्वास होता है
विश्वास वो बीज है जो कई फसले पैदा कर दे परन्तु यही विश्वास यदि डगमगा जाए तो वही फसलें खा़ख हो जाए।
 समसामयिक परिस्थितियों को देखते हुए यह भी एक उदाहरण है कि
हमारे प्रधानमंत्री मोदी जी विदेशों में जाकर किस प्रकार विश्वास और अपने अच्छे व्यवहार के कारण दोस्ती की नींव को और मजबूत कर रहे हैं और आज इस फैली महामारी को भी हम हमारी जागरूकता और विश्वास से हरा सकते हैं।
रिश्तों को बनाना बहुत आसान है
निभाना उतना ही मुश्किल
परन्तु विश्वास अगर है मजबूत तो 
रिश्तों का मुस्कुराना
लाज़िमी हो जाता है।
- ज्योति वधवा"रंजना"
बीकानेर - राजस्थान
     प्राचीन काल से रिश्ते चले आ रहे हैं। वैवाहिक जीवन के हो या दोस्ती के।  संबंधों में मिठास बहुत बड़ी  शक्ति होती हैं। जब रिश्तों में दरारें पड़ जाती हैं, तो विचारणीय प्रश्न उठता हैं, इतिहास उठाकर देख लीजिए रिश्तों की कहानियाँ?  जो कहा से कहा पहुँचा देती हैं। रिश्ते विश्वास पर आधारित हैं, जो जीविकोपार्जन की सबसे बड़ी पूंजी होती हैं। जब किसी राष्ट्र की तानाशाही पूर्ण रूप से व्यवहारिक सामने प्रगट होती हैं, तो रिश्ते ही सामने आकर, रिश्तों को मजबूती प्रदान करने में सार्थक भूमिका अदा की जाती हैं।  आज कुछ रिश्तों में राजनीतिकरणों का समावेश होने के परिप्रेक्ष्य में तत्काल निर्णय लेने की आवश्यकता प्रतीत होती हैं?
रिश्तों की दिखावटी सहानुभूति के आधार पर ही समझ में आता है कि कोई जानबूझकर रिश्तों में दखलांजी प्रस्तुत कर रसावादन प्राप्त कर भटक रहें हैं?
- आचार्य डाॅ.वीरेन्द्र सिंह गहरवार 'वीर' 
  बालाघाट - मध्यप्रदेश
दिखने में है यह प्रश्न सरल, उत्तर है पर इसका बहुत विरल।  विश्वास पर दुनिया कायम है। निःसंदेह रिश्तों में विश्वास सबसे बड़ी पूंजी होती है। जीवन में विश्वास एक सेतु का कार्य करता है। विश्वास ही तो है जब खेल-खेल में उछाल कर पकड़ा जाता शिशु अपने मां-बाप पर करता है कि वह गिरेगा नहीं, गरीब बालक अपने निर्धन मां-बाप पर करता है कि उसे रोटी मिल जायेगी, मां-बाप और शिशु के मध्य जन्मदाता का रिश्ता है। विश्वास का यह रिश्ता जन्मते ही मजबूत होता है।  विश्वास ही तो है जब विद्यार्थी अपने शिक्षक द्वारा दी गई शिक्षा को ग्रहण करते समय करता है, विद्यार्थी और शिक्षक के मध्य सच्चे गुरु का रिश्ता है। विश्वास का यह रिश्ता समय के साथ मजबूत होता जाता है। विश्वास ही तो है जब एक मरीज इलाज करवाते समय डाॅक्टर पर करता है। विश्वास का यह रिश्ता अनुभव के आधार पर पनपता है। समय के साथ पनपते विश्वास रिश्ते का एक उदाहरण है पंछियों का मनुष्य पर विश्वास जब वह उसके कंधे पर आकर बैठ जाता है यह विश्वास लिये कि उसे कोई हानि नहीं पहुंचेगी। जब कोई ग्राहक किसी दुकानदार के पास बार-बार जाता है और एक रिश्ता बन जाता है तो यह भी इस विश्वास पर आधारित होता है कि दुकानदार उससे सच्चा सौदा करेगा।  रिश्तों में विश्वास का एक बेहतरीन उदाहरण है मां और बेटी के बीच का रिश्ता। बेटी को मां पर पूरा विश्वास होता है और विश्वास का यह रिश्ता आजन्म मजबूत रहता हैै। रिश्ते अनगिनत परन्तु विश्वास एक ही सेतु है जो टूट गया तो समझो रिश्ता टूट गया। अतः यह निर्विवाद सत्य है कि रिश्तों में विश्वास सबसे बड़ी पूंजी होती है।
- सुदर्शन खन्ना
 दिल्ली
जी हाँ जी रिश्ते टिकते ही तभी है, जब उनमें प्रेम व विश्वास होता है , कहावत है की मुझे अपने से ज़्यादा तुम पर भरोसा है । कि वह इंसान सामने वाले पर कितनाविश्वास कर रहा है ! 
हर रिश्ते की बुनियाद प्रेम विश्वास पर ही टिकी हैं और जहां विश्वास नहीं भरोसा नहीं वहाँ कोई रिश्ता ठहरता नही । 
दिखावे की बात अलग पर वह सिर्फ़ और सिर्फ़ औपचारिकता भर है समाज व परिवार में ...
कहते हैं दुनियाँ का दौलत मंद वह इंसान जिसके पास भरोसे वाले विश्वसनीय दोस्त है , वहीं दुनियाँ का सबसे अमीर इंसान है 
विश्वास पर ही जीवन की नींव टिकी है जहां विश्वासघात है वहाँ मौत का मंजर होता है ! 
रिश्तो की डोर बहुत नाज़ुक होती है उन्हें प्रेम विश्वास से पाल कर विराट वृक्ष बनाना पड़ता है , बहुत देख भाल व स्नेह की जरुरत है , हम देखते है आजकल परिवार में विघटन , उसका कारण ही अविश्वास का होना है भरोसा टूटना प्रेम का अभाव जहां प्रेम है वहाँ विश्वास भी है । पति पत्नी के नाज़ुक रिश्ते सिर्फ़ और सिर्फ़ विश्वास व प्रेम पर टिकते हैं चहां भरोसा ख़त्म बात तलाक़ तक पहूंच जाती है । 
विश्वास ज़माना पड़ता है बोलने से कहने से नहीं होता । विश्वास बहुत अनमोल है लाखों खर्च कर नहीं मिलता जिसको मिलता वह सबसे भाग्यशाली हैं । 
विश्वास दोनों तरफ़ हो तो ही चलता है कोई एक विश्वासघात करता रहे और दूसरा भरोसा तो भी सम्बध नही चलते बहुत 
तकलीफ़ भोगते हैं और बेइज़्ज़ हो कर टूटते है । 
रिश्तेतो की खुबसूरती विश्वास है और महक प्रेम दोनों का मेल रिश्तों को निखारता है । 
विश्वास ही रिश्तो की मज़बूत डोर है 
- डॉ अलका पाण्डेय
 मुम्बई - महाराष्ट्र
विश्वासो फलदायक:।
विश्वास, फलदायक होता ही है।
विश्वास किसी भी प्रकार के रिश्तों की पूंजी है।इससे इंकार नहीं किया जा सकता।विश्वास के बल पर शबरी राम को पाती है। भक्त भगवान तक को पा जाते हैं। विश्वास के कारण ही पराए भी अपने बन जाते हैं और विश्वास टूटने पर अपने भी गैर बन जाते हैं।एक दूसरे से अनजान,दो प्राणी विश्वास के बल पर ही जीवन साथी बन जाते हैं। विश्वास के साथ श्रद्धा भी हो तो आनंद के क्या कहने। अलौकिक आनंद अनुभव होगा। विश्वास के साथ श्रद्धा का ही प्रभाव था, जिसने पांडवों को कृष्ण और कौरवों को अठारह अक्षौहिणी सेना मांगने को प्रेरित किया। विश्वास ही वह पूंजी है जिसके बल पर रिश्तों की इमारत खड़ी होती है। वो रिश्ते  खून के हो,आर्थिक हो, सामाजिक हो , राष्ट्रीय हो या फिर अंतरराष्ट्रीय। बिना विश्वास के ये ज्यादा नहीं चल पाते। अधिकांश विवादों की जड़ में कारण अविश्वास ही होता है। अविश्वास यानि संशय। कहा भी गया है 'संशयात्मा विनश्यति'। इसी बात से विश्वास के महत्व को समझा जा सकता है।
- डॉ.अनिल शर्मा 'अनिल'
धामपुर - उत्तर प्रदेश
निसंदेह रिश्तों में सबसे बड़ी पूंजी विश्वास ही होता है।विश्वास वाह महत्वपूर्ण कड़ी है जो रिश्ते में दो या अधिक रिश्तेदारों को बीच में जोड़कर रखती है।बड़ी मुश्किल से बनता है और बहुत समय भी लेता है बनने में पर जब बन जाता है तो सुख प्रदान करता है।रिश्तों को मजबूत बनाता है।विश्वास के पटल पर ही रिश्तों का अरमान बनता है और विकसित भी होता है।इसी पर ये परवान चड़ा करते हैं।
          यदि विश्वास की परिपाटी पर रिश्तों की जीवनी लिखी जाए तो रिश्तेदार हमेशा खुश रहते हैं।वो रिश्ते जीवन में अच्छी तरह से फलते फूलते हैं।हमें रिश्ते बनाने में जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए पर जिनसे बनाना हो उन पर पहले विश्वास करना चाहिए तभी रिश्ते को आगे बढाना चाहिए।रिश्तों में विश्वास उस गौंद के प्रकार से कार्य करता है जिसका साथ जब तक होता है तभी तक चीजें जुड़ी रहती हैं और करीब भी रहती हैं।जिस दिन उसकी पकड़ कमजोर हुई उस दिन सब अलग अलग तथा दूर दूर हो जाता है।
    अर्थात रिश्तों में विश्वास ही सबसे बड़ी पूंजी होती है।
- नरेश सिंह नयाल
देहरादून - उत्तराखंड
क्या रिश्तो में विश्वास सबसे बड़ी पूँजी होती है इसमें कोई सँदेह नहीं है प्रत्येक रिश्ता विश्वास पर ही टिका होता है और यह काँच जैसा है जिसे टूटने में बिल्कुल देर नहीं लगती अतः रिश्तो में परस्पर सम्मान और ईमानदारी एक दूसरे का ध्यान रखना बहुत आवश्यक है वास्तव में यह सामाजिक मूल्य ही भारतीय संस्कृति की नींव है और यदि यह  नींव दरकती है तो फिर संबंधों को नष्ट होने में देर नहीं लगती विश्वास टूटने के बाद उसे पुन: बनाने में बहुत वक्त लगता है और उसके बावजूद भी रिश्ते पहले जैसे नहीं रह जाते अतः इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए कि हम एक दूसरे के प्रति कोई ऐसा कार्य करें जिससे विश्वास को ठेस पहुंचे और हमारे पारिवारिक और सामाजिक रिश्तो में कोई खटास पैदा हो निसंदेह विश्वास किसी भी रिश्ते की नींव है और इस नींव का मजबूत होना बहुत ही आवश्यक है 
- प्रमोद कुमार प्रेम 
नजीबाबाद - उत्तर प्रदेश
रिश्ते प्रेम और विश्वास से परिपूरित होते हैं। इनमें पारस्परिक सहयोग और सद्भाव निहित होता है। इस रिश्ते में कितनी भी आत्मीयता हो, कितनी भी गहराई हो, कितना भी  अपनापन हो, मर्यादित रहना बहुत आवश्यक होता है। यह समझदारी, निष्ठा और निःश्छलता का परिचायक तो होता ही है, अभिन्नता की कसौटी भी होता है। संबंधों की मधुरता और दृढ़ता   इसी पर टिकी होती है। इसीसे संबंधों में शुचिता भी समाहित होती है। इन सबका समन्वय ही रिश्ते की पूँजी होती है। जिसका मूल आधार विश्वास होता है। अतः कह सकते हैं कि विश्वास रिश्तों में सबसे बड़ी पूँजी होती है। यह  नैतिक जिम्मेदारी है जो त्याग और तपस्या से निभायी जाती है। जरा सा लोभ, जरा सा स्वार्थ विश्वास को डगमगा कर संबंधों को चकनाचूर कर देता है।  विश्वास तोड़ना गंभीर और अक्षम्य अपराध है। 
- नरेन्द्र श्रीवास्तव
 गाडरवारा - मध्यप्रदेश
हम सब अनेकों  रिश्तों में बँधे है  ये रिश्ते हैं भाई बहन के ,भाई -भाई के पड़ोसी के ,मित्र के सभी रिश्ते विश्वास की नींव पर टिके हैं ।भाई -बहन एक दूसरे पर विश्वास रहता है संकट आने पर एक दूसरे के काम देगें ।पड़ोसी दूसरे पड़ोसी पर विश्वास करते हैं । हमारे पड़ोस मे एक फैमिली रहती है वो हर इतवार घूमने जाते थे ,फैमलि बड़ी थी सब अलग -अलग निकल जाते ।उनके घर की चाबी हमारे पास रहती ,जो पहले आता चाभी ले लेता । कहने का अर्थ है विश्वास का रिश्ता हर रिश्ते के साथ जुड़ा है ।सत्य तो यह है दुनिया ही विश्वास पर चलती है ।हमारे भारत में तो विश्वास की जड़े बहुत गहरी हैं ।अब ले लिजिए हम अपनी कमाई बैंको में जमा करते हैं । वहाँ भी हमारा रिश्ता कस्टमर का होता है बीच में विश्वास की डोर होती है । विश्वास शब्द स्वयं मे    बहुत सम्मानीय है ।मैं तो विश्वास शब्द पर ही विश्वास करती हूँ ।
- कमला अग्रवाल
गाजियाबाद - उत्तर प्रदेश
निःसंदेह रिश्तों में विश्वास सबसे बड़ी पूंजी होती है। विश्वास रुपी धागे में रिश्ते की सुंदर माला गुंथी  रहती है। विश्वास, प्रेम और स्नेह से रिश्तों को मजबूती मिलती है। निजी स्वार्थ रिश्तों के लिए अहितकर साबित होता है। इंसानियत और विश्वास के माध्यम से हम मित्रता या पारिवारिक रिश्तों को बनाए रखते हैं। इसके खातिर एक दूसरे के निजी जीवन और निजत्व का सम्मान करना जरुरी होता है। सीमा से ज्यादा एक्सपेक्टेशन खटास पैदा करता है।
 आज विश्वास के अभाव में रिश्तों की बलि चढ़ रही है। रिश्ते की मर्यादा का भी ध्यान रखें। रिश्तों का सुख और आनंद तभी है जब दोनों ही पक्ष अपनी निष्ठा और लगन से एक दूसरे के प्रति जिम्मेदारियों को निभायें। 
   यह अटल सत्य है कि प्रेम और विश्वास रुपी पहिये पर रिश्ते सुचारू रूप से चलते हैं। रिश्ते को बिखरने से बचाना है तो विश्वास कायम रखें। कर्म क्षेत्र में रिश्तो की मर्यादा न टूटे, विश्वास बनी रहे---सफल रिश्ते का यही मूल मंत्र है। सबसे बड़ी पूंजी होती है रिश्तों में विश्वास।
                            - सुनीता रानी राठौर
                        ग्रेटर नोएडा -उत्तर प्रदेश
बेशक रिश्तों में विश्वास और निस्वार्थ बने हुए अपने रिश्ते ही लोगो की जमा पूंजी होते है । आज का परिवेश देख चारो ओर जब नजर जाती है तो बस हर घर में घृणा भाव ही भरा मिलता है । आज इंसान , इंसान को पसंद नही करता है , है ना कमाल की बात । आज रिश्ते लालच वश बने हुए है । लोग यूज़ एंड थ्रो वाली कहावत एक दूसरे के साथ चरितार्थ करते नजर आते है । इंसान को आज ये समझने की जरूरत है कि इस पृथ्वी से बड़े बड़े राजा महाराजा चले गए है , फिर उनका क्या अस्तित्व है । इस पृथ्वी पर इंसान को केवल कुछ समय के लिए एक रोल अदा करने के लिए भेजा गया है । अब यह हमारे ऊपर निर्भर करता है कि हम अपने रोल को कितने शानदार तरीके से निभाते है । आज इंसान जर , जोरू और जमीन के खातिर ही जिंदा है और इन्हें के कारण मर भी रहा है परंतु सब कुछ जनता हुआ इंसान आखिरकार ये भूल ही जाता है कि इनमें से कुछ भी तो साथ नही जाना है । ये सब माया यहीं रह जानी है । हमारे साथ तो हमारे बनाये हुए रिश्तों की शुभकामनाएं , आशीर्वाद और किये हुए कर्मो का लेखा जोखा जाना है । यही रिश्ते होते है , जिनमे बंधे लोगो की शुभकामनाएं हमे मरणोपरांत आत्मीय शान्ति व उच्चस्थान प्राप्त कराती है ।
- परीक्षीत गुप्ता
बिजनौर - उत्तप्रदेश
कोई भी रिश्ता विश्वास के दम पर ही टिका रहता है। विश्वास वो नींव है जिसपर रिश्तों की इमारत खड़ी होती है। जितना मजबूत आपका विश्वास होता है उतना ही गहरा रिश्ता बनता है। यह जीवन विश्वास की डोर से बंधा हुआ है।
यह हमारा ईश्वर के प्रति विश्वास ही है कि जिसे हमने कभी देखा नहीं, उसकी आवाज़ भी नहीं सुनी, फिर भी रोज़ प्रार्थना में उसी के नाम का दिया जलाते हैं और शीश झुकाते है क्योंकि ये हमारा ईश्वर के प्रति विश्वास ही है जो हमें उससे जोड़ता है।
मित्रता भी तो विश्वास का ही नाम है। दोस्ती या प्यार में लोग जान तक लगा देते हैं। दो अंजान लोग जब विवाह के बंधन में बंधते है तो एक विश्वास से एक दूसरे का हाथ थाम कर जिंदगी पूरी निभा देते हैं। दुनिया में हर रिश्ता चाहे वो खून का हो या न हो। जिस रिश्ते में विश्वास नहीं, वह खोखला हो जाता है।
 विश्वास रिश्तों की प्राणवायु है। हर विश्वास  में आस छुपी है।
हर आस में ही सांस है।
बाकी कुछ नहीं खास है।
- सीमा मोंगा
रोहिणी - दिल्ली
100% सच है रिश्ते में विश्वास सबसे बड़ी पूंजी है।यह अनमोल है। रिश्ते ऐसा हो कि शब्दों की जरूरत ना पड़े........। निजी जीवन का सबसे महत्वपूर्ण रिश्ता पति-पत्नी का होता है।इस रिश्ते से दोनों परिवार,मित्र,सगे-सम्वन्धी पिरोए होते है।
पति -पत्नी का रिश्ता सिर्फ प्रेम और विश्वास इन दो पहियों पर चलता है,अगर एक पहिया डगमगाया तो  रिश्ते का पतन तय है। इसका मूल मंत्र है की :- यह अनोखे रिश्ते अपने-अपने  प्रेम और विश्वास से सिचिए।
यहां पर मैं एक उदाहरण पेश कर रहा हूं:- तुलसीदास ने रामचरित्र मानस में एक दोहा में वर्णन किए थे उसका भावार्थ यह है:-राम-सीता के दांपत्य के बारे में। दोनों के बीच न शब्द ना कोई बात सिर्फ भाव से ही एक दूसरे को समझ जाते है। सीता मॉ बिना राम के कहे,उनके  भाव देख कर ही समझ गई की वे केवट को कुछ भेट देने के लिए कोई वस्तु ढूंढ रहे हैं और सीता मां ने अपनी उगंली से अंगूठी उतार कर दे दी।
निजी संबंधों में प्रेम और विश्वास ऐसा हो कि शब्दों के बगैर भी बात हो जाए। वह रिश्ता सफल भी और सूखी भी है।
हर इंसान के पास एक संपत्ति बहुत बड़ी है,वह परिवार। परिवार और रिश्ते हमारी सबसे बड़ी पूंजी है कर्तव्य निष्ठा धर्म के डोर से परिवार को बांधकर रखना है।
 परमात्मा ने हमें इसी को सहजने
 की जिम्मेदारी दी है।परिवार और रिश्तो की एक सुंदर माला है। इसका हर मोती मूल्यवान है,अगर एक मोती टूटा तो माला की सुंदरता नष्ट हो जाएगी।
लेखक के विचार:- रिश्ते हमारी संपत्ति भी है जिम्मेदारी भी रिश्तो में होगा सिर्फ प्यार ही प्यार।ये सद्गुण उन कटीले राहों के दौरान ही प्रकट होते हैं ऐसे समय मैं अपने को धैर्य, समझदारी, विचारशील, और स्वीकृति के गुण के अवसर समझे।
 दूसरे व्यक्ति से बदलने की अपेक्षा रखने के बजाय अपना श्रेष्ठ प्रदर्शन करें।
- विजयेंद्र मोहन
बोकारो - झारखण्ड
मेरे विचार से तो "विश्वास " एक ऐसा विशेषण है जो लगभग हर चीज का आधार होता है। रिश्तों में तो विश्वास एक अहम रोल निभाता हीं है ,इसमें कोई शक नहीं। विश्वास__ रिश्तों में शीशा सरीखा पारदर्शी हो तो वह रिश्ता बहुत ज्यादा मजबूत और टिकाऊ होता है ।एक बार अगर विश्वास का हनन हो जाए तो रिश्ते में तुरंत हीं शीशे की तरह दरार आ जाती है और वह ता उम्र बढ़ता हीं जाता है और  कभी तो  चटके शीशे की तरह बेकार भी हो जाता है। इसलिए रिश्तों में विश्वास एक आधारशिला होती है जिसपर हमारा रिश्ता ‌टिका होता है । अतः ये ये कहना अक्षरशः सही है कि रिश्तों में विश्वास व्यक्ति की सबसे बड़ी पूंजी होती है । 
- डॉ पूनम देवा
पटना - बिहार
इस वाक्य में से" क्या "शब्द हटा देना चाहिए। रिश्ते जिस के पास हैं, साथ हैं, वो तो सबसे धनी है और उह से ज्यादा खुशकिस्मत कोई नहीं है।  हम सब अपने रिश्तों को लेकर बहुत ही सजग रहते हैं क्योंकि कुछ रिश्ते तो काँच की तरह नाजुक होते हैं और कुछ अटल पहाड़ की तरह। दोनों तरह के रिश्तों में विश्वास पहली और मूलभूत आवशयकता है । मनुष्य तो दरो दीवार, पेड़ पौधों और पशु-पक्षियों से भी अटूट रिश्ता बना लेता है।फिर मानलो रिश्ते तो अमूल्य हैं ही।  मैं यह मानती हूँ कि पृथ्वी के हर प्राणी को साथी चाहिए, यानि रिश्ता चाहिए। अकेले में तो हम ना सुख का आनंद ले सकते हैं ना दुख को झेल सकते हैं ।
       जब जीवन ही रिश्तों पर टिका है तो उस जीवन में विश्वास भी फूल में सुगंध समान है।  रिश्ते में यदि एक दूसरे के प्रति ठोस विश्वास हो तो जीवन की कोई कठिनाई बड़ी नहीं और कोई सुख छोटा नहीं है । विश्वास अति महत्वपूर्ण तत्व है । रिश्ते बनाना आसाध है पर निभाना कठिन है ।"  इक आग का दरिया है और ड़ूब के जाना है।" इस आग के दरिया में विश्वास की पतवार ही पार लगा सकती है।
  मौलिक और स्वरचित है।
    - ड़ा.नीना छिब्बर 
जोधपुर - राजस्थान
'विश्वास' रिश्तों की सबसे बड़ी पूंजी ही नहीं होती बल्कि रिश्तों के स्थायित्व की नींव है विश्वास। जिस रिश्ते में विश्वास नहीं है या समाप्त हो गया है वह संबंध रिश्ता नहीं रह जायेगा और उसका खोखलापन शीघ्र ही उजागर भी हो जाता है। 
मनुष्य अपने जीवन में अनेक रिश्तों से बंधा होता है। रिश्तों की गरिमा बनाये रखने के लिए उसे स्वयं के मन-मस्तिष्क में स्वाभाविक रूप से व्याप्त मानवीय दुर्बलताओं पर नियन्त्रण करना अति आवश्यक है। स्वार्थ की भावना रिश्तों के लिए अत्यन्त घातक है क्योंकि स्वार्थी व्यक्ति कुटिल हो जाता है और अपने स्वार्थों की पूर्ति हेतु सर्वप्रथम विश्वास को ही खंडित करता है। विश्वास की समाप्ति के साथ ही कोई भी रिश्ता मात्र एक धोखा ही होगा। 
"स्नेह, विनम्रता, विश्वास पोषक हैं, 
रिश्तों को जिंदा रखने के लिए। 
निंदा, स्वार्थ, कुटिलता कारक हैं, 
रिश्तों को शर्मिन्दा करने के लिए। 
होते हैं बहुत कमजोर वो रिश्ते, 
जिनमें विश्वास की पूंजी ना हो। 
ठोस नींव जरूरी है विश्वास की, 
रिश्तों का सम्मान बनाये रखने के लिए।।"
वर्तमान भौतिक युग में मनुष्य की सोच केवल स्वयं की उन्नति तक सीमित रह गयी है। इसी सोच के वशीभूत होकर आज के अधिकांश मनुष्य विश्वास शब्द की महत्ता को भूल गये हैं और 'मन में कुछ और, मुंह में कुछ और' वाली कहावत के साथ रिश्ते निभाए जा रहे हैं। 
परन्तु इसका एक दूसरा पहलू यह भी है कि आज भी अनेक मनुष्य विषम परिस्थितियों में भी रिश्तों में विश्वास की मर्यादा को बनाये रखते हैं क्योंकि वे जानते हैं कि रिश्तों के स्थायित्व के लिए विश्वास सबसे बड़ी पूंजी है।
यह विश्वास रूपी पूंजी की मात्रा दिन-प्रतिदिन बढ़ती रहे इसके लिए रिश्ते के दोनों पक्षों के मन में निष्कपटता, त्याग, समर्पण, प्रेम और आदर के भावों का होना अनिवार्य है। 
"विश्वास की नींव पर रिश्तों का महल खड़ा होना चाहिए, 
रिश्तों में एक-दूजे की भावनाओं का सम्मान होना चाहिए। 
जरूरी है खुली किताब की तरह पढ़ा जाये हर रिश्ते को, 
समर्पण, विश्वास के भावों से हर रिश्ता भरा होना चाहिए।। 
- सत्येन्द्र शर्मा 'तरंग' 
देहरादून - उत्तराखण्ड
      कहते हैं कि विश्वास पर दुनिया खड़ी है। दुनिया का कोई भी कार्य विश्वास के बिना अधूरा है। लेकिन आजकल रिश्तों में विश्वास कम होने की कगार पर है। उसका मूल कारण धन की लालसा है। क्योंकि लोग रिश्तों से ज्यादा धन को महत्व दे रहे हैं। जिससे रिश्तों में विश्वास की जगह अविश्वास पैदा होने लगा है।
      उल्लेखनीय है कि राजा दशरथ ने महारानी कैकेई को दो वर यह विश्वास रख कर दिए थे कि वो उनकी प्रिय पत्नी है और ज्यादा से ज्यादा किस धन/बस्तु की मांग करेगी? लेकिन यह सब बातें गलत प्रमाणित हो गईं, जब कैकेई ने दशरथ के विश्वास को तोड़ा। जिससे दशरथ जी को अपने प्राण तक त्यागने पड़े। काश कैकेई ने दशरथ के विश्वास को ठेस नहीं पहुंचाई होती तो राजा दशरथ कुछ वर्ष और जी लेते। 
          अब वह धन किस काम का रह गया? जिसके लिए कैकेई ने अपने दोनों वरों के अनुसार रामजी को बनवास और अपने पुत्र भरत के लिए राज मांगा था। लेकिन उस विश्वासघात के कारण कैकेई ने ना मात्र पति खोया अपितु अपना पुत्र भी गंवाया। यदि उसने रिश्ते पर विश्वास रखा होता तो कैकेई का नाम भी कलंकित होने के स्थान पर आदरणीय होता।
        इसी प्रकार देवकी को यशोदा पर पूरा विश्वास था। जिसे निभाते हुए यशोदा ने अद्वितीय उदाहरण प्रस्तुत किया था। जिससे यशोदा की यशगाथा आज तक प्रचलित है। जबकि कंस का धन केवल नष्ट ही नहीं हुआ बल्कि उसका नाम भी कलंकित हुआ। जिसका अर्थ यही हुआ कि रिश्तों में विश्वास ही बहुत बड़ी पूंजी है। जिसे इतिहास ही नहीं बल्कि भविष्य भी नतमस्तक करता है।
‌       इसलिए विश्वास रिश्तों की वह पूंजी है, जो पीढ़ी दर पीढ़ी चलती है।
- सुदर्शन कुमार शर्मा
जम्मू - जम्मू कश्मीर
     कोई समय होता था जिंदगी में बड़े से बड़े फैसले विश्वास के आधार पर ही हो जाते थे। तब रिश्तों में विश्वास सब से बड़े पूंजी होती थी।हमारे बड़े-बूढ़े इसी विश्वास के सहारे ब्याह शादियों के रिश्ते जोड़ लेते थे ।धोखाधड़ी का सवाल ही पैदा नहीं होता था। 
       लेकिन अब हमारे नैतिक मूल्यों में गिरावट के कारण, समय और परिस्थिति के बदलते परिवेश और पदार्थवादी युग के कारण बंदे का बंदे से विश्वास उठ गया है। धन -दौलत के लालच में पड़कर मनुष्य सभी का विश्वास तोड़ रहा है ।आज भाई,भाई पर,पति अपनी पत्नी पर,माता-पिता अपने बच्चों पर,पड़ोसियों पर, नौकरों पर और रिशतेदारों पर भी विश्वास नहीं करते ,विशेष कर लड़कियों के मामले में। बेटियां तो आज कल घर में भी महफ़ूज नहीं किसी दूसरे पर विश्वास करना तो दूर की कौड़ी। 
        विश्वास की डोर बहुत पेतली हो गई है लेकिन दूसरी ओर विश्वास पर ही दुनिया कायम है। आओ,सब मिलकर इस डोर को मजबूत करें। जिस से आपसी भाईचारा बढ़े और सुन्दर सामाज का नवनिर्माण हो ।धन दौलत से रिश्ते नहीं खरीदे जाते। यहां आदमी की जरूरत है, वहां आदमी ही काम आएगा, पैसा नहीं। 
- कैलाश ठाकुर 
नंगल टाउनशिप - पंजाब 
रिश्तों की सबसे बड़ी पूजी विश्वास ही होता है ,नीव मकान की कितनी भी मजबूत क्यों ना हो विश्वास की परतें पतली हो तो रिश्तों का चादर फट जाता है और तुरपाई करने से दरारें आ जाती है बेशुमार दौलत हो और रिश्तों मे अपने पन का एहसास ना हो विश्वास ना हो बो रिश्ता खोखला होता है जीवनशैली की इक छोर निंरतर चलती है और जीवंत शरीर मे विश्वास उम्मीद के कोपलों का सृजनात्मक सहयोग हो तो जीवन गतिविधियों मे गतिमान हो उच्चतम स्तर पर होता है।रिश्तों की कच्ची मिट्टी को विश्वास की डोर ही बाँधती है और परिपक्वता की कढाई मे भूनकर सुखद सुनहरे रंगों मे विराजमान होती है।मानवीय संवेदनाओं के तथाकथित मूलयांकन पर विश्वास सबसे अग्रसर पथ पर अपने रिश्तेदारों क बीज सुमनों की बौछार करती है।मानसिक शांति और सहृदयता को सरलीकरण से विश्वास रिश्तों को इक डोर में मिश्रित करके जिंदगी के आयाम स्वस्थ अभिव्यक्ति स्थापित करने मे सार्थक सिद्ध होती है।सभ्यता संस्कृति की धरोहर आश ,विश्वास जीवन के कठिनाइयों मे रक्षक साबित होते है पथनिर्मान के लिए सैद्धांतिक रूप से रिश्तों मे विश्वास सम्मलित होती हैं।अतः विश्वास की डोर रिश्तों को जीवन को मंजिल तय करने में सार्थक होती है।विश्वास रिश्तों की पूजीं है जो अनमोलप्रीत है इसका कोई मोल नही।जग मे साहित्यिक क्षेत्र मे रिश्तों मे विश्वास, उम्मीद की धागों को बाँध कर मानव सपनों की उडा़न उड सकते है।वो रिश्ता निराधार होते है।जहां विश्वास का बसेरा ना हो ।धन्यवाद
- अंकिता सिन्हा 
जमशेदपुर - झारखंड
      सनद रहे विश्वास ही विश्वासघात की जननी होता है। दूसरे शब्दों में विश्वास पर धरती टिकी है। धरती पर आस्था है और आस्था जीवन है। जीवन संसारिक रिश्तों से संभव है।
      बात रिश्तों की करें तो रिश्ते अनेक प्रकार के होते हैं। जिनमें प्राकृतिक और अप्राकृतिक रिश्ते प्रमुख हैं। जैसे माता-पिता, बहन-भाई, दादी-दादा, नानी-नाना, बेटी-बेटा, धरा एवं राष्ट्र का रिश्ता प्राकृतिक होता है। जिन्हें जन्मजात अर्थात पैदाइशी रिश्ते माना जाता है। जिन्हें प्राकृतिक मान्यता होती है। जो छोड़े तो जा सकते हैं, किन्तु तोड़े नहीं जा सकते।
      ऐसे ही अप्राकृतिक रिश्ते बनाए जाते हैं। जिन्हें समाज समाजिक मान्यता देता है।जैसे गुरू-शिष्य, अड़ोसी-पड़ोसी, पति-पत्नी, दामाद-बहू, सास-ससुर, ज्येष्ठ-ज्येष्ठानी, देवर-भाभी, साली-साला, मित्र, किरायेदार, मकानमालिक, विधायक-मतदाता, सांसद-मतदाता, इत्यादि अनेक प्रकार के रिश्ते होते हैं। जिन्हें आवश्यकता अनुसार जोड़ा, तोड़ा व छोड़ा जा सकता है। 
      उल्लेखनीय है कि रिश्ते प्राकृतिक हों या अप्राकृतिक परंतु जीवन को दीर्घ सार्थक व सुखद बनाने के लिए 'विश्वास' अति आवश्यक ही नहीं बल्कि आधार माना जाता है। विशेषकर पति-पत्नी और मित्रता का रिश्ता मात्र और मात्र विश्वास के कच्चे धागे से बंधा होता है। जिसपर रहीम जी अपने शब्दों में कहते हैं कि:-
रहिमन धागा प्रेम का,मत तोरो चटकाय,
टूटे पे फिर ना जुरे, जुरे गाँठ परी जाए।
      अर्थात प्रेम का रिश्ता अत्यंत कच्चा/सूक्ष्म होता है‌। जिसे झटका देकर तोड़ना उचित नहीं होता‌। क्योंकि यदि प्रेम का धागा एक बार टूट जाता है, तो फिर इसे मिलाना कठिन होता है और यदि मिल भी जाए तो टूटे हुए धागों के बीच में गाँठ पड़ जाती है।
      इसलिए भारतीय सभ्यता और संस्कृति में विवाहिक पति-पत्नी का रिश्ता एक रिश्ता नहीं बल्कि संस्कार माना गया है। जिसमें वर-वधु को सात जन्मों की कसमें लेनी पड़ती हैं कि सात जन्मों तक वे साथ निभायेंगे‌। क्योंकि विवाह हिन्दू संस्कृति में जीवन का एक पवित्र मील का पत्थर माना गया है। जिसमें अग्नि से पवित्र कुछ नहीं होता और अग्नि के समक्ष ली गई शास्त्रों के मंत्रोच्चारण द्वारा शपथ दोनों के लिए महत्वपूर्ण मानी जाती है। जिसे विवाह-बंधन कहते हैं और बंधनों का विच्छेद नहीं होता‌। यही कारण है कि हिंदू धर्म में डायवोर्स और तलाक शब्द को ही घृणा की दृष्टि से देखा और माना जाता है। यूं भी डायवोर्स और तलाक शब्द भारतीय ना होकर पश्चिम संस्कृति के प्रतीक हैं। जिन्हें अपनाना भारत और भारतीयता की विवशता है।
      अतः रिश्तों में विश्वास कितनी बड़ी पूंजी होती है? यह उन निर्दोष बच्चों से बढ़कर कोई नहीं जानता, जिन बच्चों के माता-पिता अविश्वास या अन्य संसारिक कारणों के कारण अलग हो जाते हैं। इसके आलावा वह शिष्य अथवा गुरू एवं राष्ट्र के मतदाता जानते हैं। जिनके साथ विश्वासघात होता है। अर्थात रिश्तों में ही नहीं बल्कि संवैधानिक दृष्टि से भी 'विश्वास' की पूंजी से बढ़कर संसार में कोई पूंजी नहीं है।
- इन्दु भूषण बाली
जम्मू - जम्मू कश्मीर
रिश्ते में विश्वास ही सबसे बड़ी पूंजी है ।हर रिश्ते में विश्वास होना बहुत आवश्यक है रिश्ते तो नाजुक डोर से बंधे रहते हैं यह या तो यूं कहा जा सकता है कि रेशम की कच्ची डोरी से बंधे रहते हैं विश्वास टूट जाए तो रिश्ता खत्म हो जाता है अगर हम उस रिश्ते को निभाते हैं तो वह अधिक समय तक टिक नहीं पाता।
कथनी और करनी रिश्ते को टिकाए रखने के लिए हमें अपनी कथनी और करनी को एक ही रखना चाहिए बहुत सारे व्यक्ति होते हैं जो उद्देश्य दूसरों के लिए दे देते हैं पर खुद अमल नहीं करते खुद क्या कहते हैं और क्या करते हैं यह उनका कोई भरोसा नहीं रहता उनकी बातों का भी कोई कभी विश्वास नहीं कर सकता। विश्वास एक ऐसी पूंजी है जिसको अर्जित करने के लिए हमें बहुत अधिक समय देना पड़ता है और होने एक पल में ही खो जाता है। इसलिए इसको बनाए रखना चाहिए।हम सभी ने बचपन में यह कहानी तो सुनी थी कि एक बच्चा रोज चलाता था शेर आया शेर आया उसकी बातों का विश्वास करके सभी जंगल में चले जाते थे एक दिन सही में शेर आया और वह चिल्लाता रह गया और कोई नहीं आया उस कहानी की तरह अपना हाल मत करिए और एक दूसरे और इंसानियत पर विश्वास बनाए रखना।
- प्रीति मिश्रा 
जबलपुर - मध्य प्रदेश
रिश्तों में विश्वास सबसे बड़ी पूँजी होती है ये बात प्रत्यक्ष भी देखी जा सकती है रक्षाबंधन का त्योहार इस बात का जीता जागता उदाहरण है ।
हम ध्यान से देखें तो यह देखने में आता ही है कि हर व्यक्ति अपने आस पास के लोगों से निरपेक्ष विश्वास तथा सम्मान कि चाहना रखता है इसी आधार पर रिश्ता भी जोड़ता है । हर व्यक्ति चाहता है कि उसके आस पास के लोग उस पास विश्वास करें क्योंकि उनसे वह रिश्ता क़ायम करता है । वह चाहता है कि सभी उसका सही मूल्यांकन करें और किये ही रहे|  जिस व्यक्ति की जिस तरह की मान्यताएं रहती हैं वह व्यक्ति उसी तरह से विश्वास तथा सम्मान का अनुभव करता है रिश्ते को मज़बूत बनाने का प्रयास भी करता है । जैसे अगर मैं अपने आप को ज्ञानी मानता हूँ तो मेरी अपने आस पास के लोगों से अपेक्षा रहती है कि वे मुझे ज्ञानी ही समझें ।जो लोग मुझे ज्ञानी की तरह देखते हैं उनके साथ मैं आराम महसूस करता हूँ परस्परता में विश्वास का तथा सम्मान का अनुभव करता हूँ और जो लोग नहीं समझते उनके साथ उतना आराम महसूस नहीं करता इसी आधार पर रिश्ता बनता या टूटता है । यहाँ पर मूल मुद्दा तो यही है कि रिश्तों में विश्वास का महत्व है तथा इसी आधार पर रिश्तों में सम्मान की चाहना होती है, और यह व्यक्ति मैं नित्य ही बनी रहती है क्योंकि वह विश्वास को सींचता रहता है । ऐसा एक भी पल नहीं जब व्यक्ति विश्वास के बिना रिश्तों को मज़बूत बना सके या जीवित रख सके । 
- डॉ भूपेन्द्र कुमार धामपुर 
बिजनौर - उत्तर प्रदेश
 विश्वास मानव मूल्यों में से एक मूल्य है जो सबसे श्रेष्ठ और जीने का आधार है बिना विश्वास के जीना मृतप्राय के समान है विश्वास मूल्य  सभी संबंधों को बांध के रखता है अगर विश्वास में कमजोरी होती है तो वहां संबंधों में तनाव आता है हर मनुष्य अपने संबंधों में भावों के साथ जीना चाहता है समस्या या तनावग्रस्त हो करके जीना नहीं चाहता। बिना विश्वास के मनुष्य एक कदम भी जिंदगी नहीं जी पाएगा वह कहीं ना कहीं विश्वास होता है तभी संबंध बनाता है अतः विश्वास से ही विश्वास जीता जाता है इसीलिए विश्वास मनुष्य को सुख शांति अमन चैन से जीने का सबसे श्रेष्ठ और जीने का आधार मूल्य होता है बिना विश्वास का आदमी कभी सफल नहीं हो सकता विश्वास का अर्थ है विश्व के प्रति और स्वस्थ होना अर्थात विश्व में जड़ चैतन्य स्वरूप में जो भी वस्तुएं हैं इन पर विश्वास करना दूसरा अर्थ है विश्वास का अर्थ है विवेक के साथ वास करना अर्थात हर मनुष्य में विदेश अर्थात ज्ञान के साथी इस धरातल पर वास करता है वही व्यक्ति विवेकशील होकर के अपने संबंध को मजबूत बनाए रखने में कामयाब होता है और इसका प्रमाण समझदारी ईमानदारी  जिम्मेदारी भागीदारी करते हुए संबंधों में हवाओं के साथ  जीते हुए अपने संबंधों को अटूट बनाए रखता है यही चार स्तंभ है मनुष्य के संबंध को अटूट बनाए रखने के लिए यह चारों स्तंभों में कोई भी स्तंभा अधूरा रह जाता है तो संबंध में स्पष्ट पता नहीं हो पाती और यही मधुर संबंधों कड़वाहट में बदल जाती है अतः समस्त मानव जाति को  इस 4 स्तंभ के साथ अपने संबंध अर्थात रिश्ते को बनाए रखना चाहिए तभी मनुष्य संतुष्टि के साथ इस संसार में जी पाएगा जितना भी सारा धन रहता है लेकिन संबंध हमारा खराब रहता है तो हमें संतुष्टि नहीं मिल पाती है धान हमको आत्म संतुष्टि नहीं सिर्फ शारीरिक सुविधा देती है अतः हमारे रिश्ते विश्वास पर टिकी होती है अतः हाल स्पष्ट जिंदगी से ही विश्वास तक पहुंचते हैं विश्वास पहुंच तक पहुंचना है हमारा संतुष्टि होता है अतः पुनः संपूर्ण मानव जाति से निवेदन है इस संसार में समझदारी गुरु मूल्य है बाकी तीनों मूल्य लघुमूल्य है गुरु मूल्य में लघु मूल्य समाया रहता है अतः समझदार होना सबको जरूरी है और सब है समझदार हैं उनको आने वाली पीढ़ी को कैसे समझदारी दे पाए इसके लिए हर पल हर क्षण अपने तन मन धन को सहरसा खुश होकर अर्पित करना चाहिए यथाशक्ति के अनुसार यही मानवीयता है यही मानव का मानत्व है। हटा विश्वास मूल्य है मनुष्य का सबसे बड़ी पूंजी है और यही पूंजी से हर व्यक्ति जो चाहता है को प्राप्त कर सकता है अतः हम पर विश्वास बनाए रखते हुए पूरे संसार पर भी विश्वास बनाए रखें यही मेरा कहना है।
- उर्मिला सिदार
रायगढ़ - छत्तीसगढ़
विश्वास और भरोसा हर रिश्ते की बुनियाद है जिसके ऊपर परिवार जैसा माहौल बनाया जाता है इस पारिवारिक माहौल में अनेक रिश्ते मिलते हैं चलिए माता पिता से ही रिश्ता शुरू करते हैं माता पिता का रिश्ता अपने बच्चों के साथ बच्चों का रिश्ता अपने माता पिता के साथ एक विश्वास का रिश्ता होता है बच्चे भी पूर्णता विश्वसनीय रहते हैं कि मां बाप के साथ रहने पर किसी भी प्रकार की समस्या नहीं होगी माता-पिता को भी यह भरोसा होता है मेरे साथ में मेरा बच्चा है और यह विश्वास तो है इस डोर को मजबूत बना देती है
अब आगे बढ़ते हैं पति पत्नी का रिश्ता दोनों अनजान परिवार के 2 सदस्य हैं और विवाह के बंधन के बाद दोनों का एक दूसरे के प्रति जो विश्वास भावना पैदा होता है उसी भावना उसी विश्वास पर एक अच्छे वातावरण और परिवार का गठन होता है
अब और आगे बढ़ते हैं भाई बहन का रिश्ता यह भी उतना ही विश्वास का रिश्ता है भरोसे का रिश्ता है भाई अगर छोटा है या बड़ा है बहन सुरक्षित है बहन छोटी हो या बड़ी हो उसे महसूस होता है मेरा भाई मेरे साथ है
अब आगे बढ़ते हैं शिक्षक और शिष्य का रिश्ता एक बच्चा स्कूल से जब घर आता है वह अपने टीचर पर इतना विश्वास करता है कि उसके कहे गए सारी बातों का अनुपालन घर में करता है उसकी पढ़ाई हुई विषयों को उसे दिमाग में उतार लेता है अगर कहीं पर उसमें सुधार माता-पिता करेंगे तो बच्चे को विश्वास नहीं होता कि उसकी टीचर कहीं गलत भी हो सकती है सोच लीजिए कितना बड़ा विश्वास है अपने शिक्षक अपने गुरु के ऊपर
इन रिश्तो से जब आगे बढ़ते हैं तो पारिवारिक रिश्ता आता है मामा चाचा बुआ मौसी इत्यादि का रिश्ता और विश्वास के कारण ही परिवार की रूपरेखा जो बहुत बड़ी हो जाती है और हमेशा एक दूसरे के लिए सहायता करने के उद्देश्य से खड़े रहते हैं यह विश्वास का रिश्ता है
विश्वास के इस जखीरे में दो प्रकार के विश्वास देखने को मिलते हैं पहला विश्वास आत्मविश्वास और दूसरा विश्वास सामने वाले पर विश्वास करना
इन वातावरण के अलग भी कुछ और वातावरण है जैसे मार्केट पड़ोसी दोनों का आधार विश्वास ही है वैसे दुकान में हम जाते हैं जहां पर मुझे विश्वास होता है यहां के सामान बिल्कुल अच्छे होंगे क्वालिटी में कोई भी धोखा नहीं होगा
उस पड़ोसी पर विश्वास करते हैं जो हमेशा हमारे लिए मददगार होंगे
विश्वास एक भावना है जिसे बनाना पड़ता है पैदा करना पड़ता है जिसमें स्वार्थ की भावना नहीं होनी चाहिए कभी-कभी विश्वास का दूसरा रूप विश्वासघात भी देखने को मिलता है तो उसमें कहीं ना कहीं खुद की कमी पर ही विचार करना चाहिए
मित्र दोस्त अच्छे दोस्त बनना अच्छे मित्र बनना यह बहुत बड़ा भरोसा और विश्वास है
विश्वास की इस दुनिया में कितनी बार त्याग बलिदान सहनशीलता धैर्य जैसे गुणों को उपयोग में लाना पड़ता है कभी यह रिश्ता जो है वह मजबूत बनता है
वर्तमान समय में पारिवारिक रूप रेखा देखकर यह स्पष्ट हो जाता है की इस इंसान के पास विश्वास रूपए धन सबसे अधिक है
रहिमन धागा प्रेम का मत तोड़ो चटकाय टूटे तो फिर ना जुड़े जुड़े गांठ पड़ जाए
यह रिश्तो के विश्वास पर रहिमन
कवि के द्वारा कहीं गई है
- कुमकुम वेद सेन
मुम्बई - महाराष्ट्र
         जीवन  का  दूसरा  नाम  विश्वास, इसके  बगैर  तो एक  दिन  भी  नहीं  चलता  ।  प्रतिदिन  के  क्रियाकलापों  को  देखें  तो  हमें  पता  चलेगा कि  हमने  किस - किस  पर  विश्वास  किया  और  अपने   कार्यों  को  अंजाम  दिया  । 
          रिश्ते  जो  कि  हमारे  जीवन  का  आधार  हैं,  उनकी  इमारत  तो  विश्वास  की  नींव  पर  ही  टिकी  है  ।  विश्वास  के  बिना  रिश्ते  कैसे  हो  सकते  हैं,  इसकी  कल्पना  सहज  ही  की  जा  सकती  है  । 
          रिश्तों  में  विश्वास  तो  नमक  की  तरह  है,  जरा सा  कम  हुआ  नहीं  कि  बेस्वाद  हो  जाते  हैं  लेकिन  अब-
          रिश्ते 
          पल-पल
          स्वाद  बदलने 
          लगे  हैं .....
          पता  नहीं 
          ये  क्या-क्या 
          खाना  चाहते  हैं .....
          अब  स्वार्थ  की  पूंजी  रिश्तों  में  विश्वास  की  पूंजी  पर  भारी  पड़  रही  है  ।  शब्दों  के  तीर  रिश्तों  को  घायल  करने  पर  तुले  हैं,  इस  सच्चाई  को  भी  अनदेखा  नहीं  किया  जा सकता है  ।
          आभासी  रिश्तों  में 
          वास्तविक  रिश्तों  की 
          तलाश  है .....
          जैसे  विशाल  
          फैले  हुए  तपते 
          रेगिस्तान  में  
          भटकते  मृग  को 
          जल  की  तलाश .......
          रिश्ते  अपनत्व  के 
          एक  मृगतृष्णा........
          फिर  भी  विश्वास  की  पूंजी  को  अक्षुण्ण  रखते  हुए ,  विश्वास  से  सब  रिश्तों  का  मन   जीतकर ,  विश्वास  को  लेना  भी  है  और  देना  भी । 
                    - बसन्ती  पंवार 
                    जोधपुर  -  राजस्थान 
रिश्ते सामाजिक संबंधों का आधार है! रिश्तों की डोर अत्यधिक नाजुक होती है! यह हम पर निर्भर करता है कि उस नाजुक डोर को हम किस तरह संभाल कर रखते हैं! 
रहीम ने अपने दोहे में कहा है --:
रहिमन धागा प्रेम का, 
मत तोड़ो चटकाय 
तोडे़ से फिर ना जुड़े 
जुड़े गांठ पड़ि जाय! 
रिश्तों में विश्वास और समर्पण का  भाव होना चाहिए! रिश्तों में विश्वास कब आता है जब हमारे रिश्तों में पारदर्शिता होती है! हमें अपनी बातें आपस में शेयर करनी चाहिए! किसी भी मानसिक तनाव के बिना अपनी बात खुलकर साफ साफ कहनी चाहिए कोई भी बात छुपानी नहीं चाहिए खासकर पति-पत्नी के संबंध में एवं संयुक्त परिवार में पारदर्शिता होनी चाहिए ! 
रिश्तों में प्यार का अहसास होना चाहिए! सुख दुःख  में एक दूसरे के काम आये, उसे समय दे ! संघर्ष के समय रिश्ता कंधे का सहारा बन खड़ा हो अपना कीमती समय निकाल कर दे, धूप में ठंडी छांव का एहसास दे अर्थात दुख-सुख में सदा साथ दे!पति-पत्नी के रिश्ते ऐसे ही मजबूत होते हैं और विश्वास की डोर से बंधते है और यही विश्वास हमारी पूंजी बन हमारे रिश्ते की ताकत बन जाती है! 
रिश्तों में समझ होनी चाहिए! भाई बहन का रिश्ता, माता पिता का रिश्ता सभी की अपनी मर्यादा होती है! सभी रिश्तों को हमे दिल से निभाना चाहिए!  रिश्तों में अपने पन का अहसास जरुरी है तभी तो हम उनका विश्वास जीत सकते हैं! रिश्ते में सामंजस्यता होनी चाहिए! 
अतं में कहूंगी रिश्ते में विश्वास सबसे बड़ी पूंजी है किंतु इस पूंजी की हिफाजत हमें स्वयं ही करनी है! 
- चंद्रिका व्यास
 मुंबई - महाराष्ट्र
कोई भी रिश्ता प्रेम और विश्वास इन दो पहियों पर चलता है ,एक भी पहिया डगमगाया तो रिश्ते का पतन तय है ।
रिश्ता ऐसा हो कि शब्दों की जरूरत ना पड़े ,,,,,।
रिश्तो की लम्बी बागडोर में सारे रिश्ते पिरोए होते हैं, अगर विश्वास रूपी  धागा टूट जाए तो रिश्ते बिखरने में देर नहीं लगती।
 इसी सिलसिले में मेरी एक नज़्म है ,,,
संबंध की संजीदगी में,
 मासूमियत ही नूर लाती। होशियारी की अधिकता ,
ख़ाक़ में रिश्ते मिलाती ।
 अगर रिश्ते को सहेज कर रखना है तो अपना विश्वास सुदृढ़ बनाएं।
 आज के दौर में दो तरह के रिश्तो की धारा बह रही है एक असंतुष्ट दूसरी अशांत ।
कहीं संसाधनों को जुटाने में रिश्ते दाँव पर लग रहे हैं तो कहीं विश्वास के अभाव में रिश्तो की बलि चढ़ रही है ।
जब रिश्तोमें आपस में कोई बातचीत नहीं होती तो समझो रिश्तो के मध्य कोई अनदेखी दीवार खड़ी है और यहीं से प्रेम के कम होने और भरोसे के डिगने का काम शुरू होता है ,क्योंकि रिश्तो को सदैव प्रेम से अभिसिंचित करना चाहिए ।
रिश्तो का गाम्भीर्य  और माधुर्य  का आकलन भावों को देखकर भी महसूस किया जा सकता है। बस नजर पारखी होनी चाहिए।
 रामचरितमानस में राम सीता का दांपत्य ऐसा ही था न शब्द थे ना कोई बात ,बस भाव से ही एक दूसरे को समझ जाते थे ।
वनवास में जब राम सीता और लक्ष्मण को केवट ने गंगा के पार उतारा तो राम के पास उसे देने के लिए कुछ भी नहीं था  वे इधर उधर देख रहे थे ।
तुलसीदासजी ने लिखा है
पिय हिय की सिया जान निहारी। मनि मुदरी मन मुदित उतारी । अर्थात सीता ने बिना राम के कहे उनके हाव भाव देखकर समझ लिया कि केवट को देने के लिए वे इधर उधर देख रहे हैं और सीताजी ने अपनी उंगली से अंगूठी उतार कर दे दी ।
रिश्तो में  प्रेम ऐसा हो कि शब्दों के बगैर भी बात हो जाए ,,,,वही रिश्ता सफल है और सुखी भी।
 रिश्ते हमारी संपत्ति हैं और जिम्मेदारी भी।
 रिश्ते  कमाने पड़ते हैं  ,,,निभाने पड़ते हैं।
 विश्वास और प्रेम के जरिए  अर्जित किये जाते हैं रिश्ते ,,,,।
इसके लिए कोई भी कीमत चुकानी चाहिए ।
जो इसका मूल्य समझ जाए वह संसार को समझ जाएगा ।
कर्तव्य और हमारे बीच की एक डोर से परिवार और रिश्ते भी होते हैं ,,,परमात्मा ने हमें इन को सहेजने की जिम्मेदारी दी है ।
हर आदमी इसी बोझ से झुका होता है और यही आवश्यक भी है। 
कमजोर आदमी तो टूटकर रिश्तो की मर्यादा ही भूल जाता है।
 परंतु रिश्ते जिस विश्वास की डोर में घुसे थे वह माला इसीलिए टूट जाती है रिश्तो में  जब तक विश्वास होता है तभी तक जीवित रहते हैं ।विश्वास  खत्म रिश्ता खत्म ।रिश्ते जब व्यावसायिक हो जाते है तो टूटते देर नही लगती ।
अतःरिश्तो की डोर भी परमात्मा के हाथों में सौपनी चाहिए।
 अतः रिश्तों  के प्रति अपनी जिम्मेदारी के भाव को गंभीरता से समझना चाहिए ।
 रिश्तो में सुख और आनंद की प्राप्ति  तभी होती है जब दोनों पक्ष एक दूसरे के प्रति जिम्मेदारी निभाते हैं ,,,,तथा प्रेम के धागे में विश्वास के मोती पिरो कर माला को धारण करते हैं तब रिश्तों की डोर कोई नही तोड़ सकता ।
- सुषमा दीक्षित शुक्ला
लखनऊ - उत्तर प्रदेश
हां रिश्तों में विश्वास सबसे बडी पूंजी है। बिना विश्वास के कोई भी रिश्ता नहीं बन सकता और यदि बन भी जाता है तो वह ज्यादा दिन तक नहीं रह पाता है। जैसे मछली के जीवित रहने के लिए पानी का होना आवश्यक है। उसी प्रकार रिश्तों को हमेशा के लिए बनाएं रखने के लिए विश्वास का होना जरूरी है। यदि किसी रिश्ते से हमारा विश्वास उठ जाएं तो उस रिश्ते में पहले की तरह एकता नहीं रहती है। बस फिर इंसान को वह रिश्ते ना चाहते हुए भी निभाना पडता है। 
         - नीरू देवी
         करनाल - हरियाणा


" मेरी दृष्टि में " विश्वास तो रिश्ते क्या , जीवन की मह्त्वपूर्ण पूंजी होते है । जहाँ विश्वास है वहां सब कुछ है । बिना विश्वास के जीवन नरकं के समान है।
                                           - बीजेन्द्र जैमिनी 
सम्मान पत्र 



Comments

Popular posts from this blog

वृद्धाश्रमों की आवश्यकता क्यों हो रही हैं ?

हिन्दी के प्रमुख लघुकथाकार ( ई - लघुकथा संकलन ) - सम्पादक : बीजेन्द्र जैमिनी

लघुकथा - 2023 ( ई - लघुकथा संकलन )