वरिष्ठ लघुकथाकार जगदीश कश्यप की स्मृति में लघुकथा उत्सव

  वरिष्ठ लघुकथाकार जगदीश कश्यप की स्मृति में भारतीय लघुकथा विकास मंच , पानीपत - हरियाणा ने "  लघुकथा उत्सव " का आयोजन ऑनलाइन रखा गया । 
            जगदीश कश्यप का जन्म एक दिसम्बर 1949 को गाजियाबाद - उत्तर प्रदेश में हुआ । जिन की शिक्षा स्नातक के साथ - साथ आई टी आई है । जिनके लघुकथा संग्रह कोहरे से गुजरते हुए , कदम - कदम पर हादसे आदि प्रमुख है ।लघुकथा पत्रिका " मिनीयुग " का 1973 से अनियमित रूप से सम्पादन के साथ - साथ  विरासत , बीसवीं सदी की चर्चित हिन्दी लघुकथाएं  का सम्पादन किया है । 17 अगस्त 2004 को स्वर्गवास हो गया ।
स्मृति शेष : -




स्मृति में " लघुकथा उत्सव " के आयोजन में विभिन्न राज्यों के लघुकथाकारों ने भाग लिया । जो 45 से अधिक लघुकथाकार  हैं । उत्सव में 11 को सम्मानित किया गया है । जो इस प्रकार हैं :-

 सम्मानित -01                                                    

                             श्रद्धा के फूल                 
                              ========                 

मा को आज पूजा के समय उदास देख प्रविण को मालूम हुआ , शायद आज मा को एक भी फूल पूजा के लिए नही मिला, रोज कोई ना कोई सुबह सुबह ही फूल तोड़ लेते है ।
उसने मा से कहा, मा कोई बात नही मै आपको एक फूल वासनिक अनटी के घर से लाकर देता हू परन्तु मा मुझे यही नही पता अभी तक जासवनत के फूल 
कैसे होते है कहकर प्रविन ने अनटी के घर जाकर कहा , अनटी अनटी जी एक फूल हो तो दिजिये ना, क्योंकि आज मममी को एक भी फूल नसीब नही हुआ, 
हा बेटा कोई बात नही जरुर हम लोग तो वैसे भी पूजा पाठ तो करते नही है चलो मै आज आपको सुन्दर सा फूल  देती हू , मममी को कहना यह श्रद्धा का फूल है अनटी ने दिया है ।
प्रविण खुश होकर एक फूल लाकर मममी को लाकर दे देता है, मममी यह फूल वासनिक अनटी ने दिया है , म यही जासवनत का फूल है ना? 
सरला जी मन ही मन प्रसन्न हो रही थी , फूल  चाहे कोई भी हो , फूल तो फूल हि होता है । फिर वासनिक दी दी ने बडे प्यार से फूल भेजा है । यही मेरे लिए प्रसन्नता की बात है । प्रविण देख रहा था , अब मा को बडा सकून मिला है । ***
                    - जयप्रकाश सूर्य वंशी
                         नागपुर - महाराष्ट्र

सम्मानित - 02                                                      

                           चाय हाज़िर है                   
                            ========                   

  हनीमून से लौटते ही रागिनी ने अपनी मम्मी को फोन किया और फफक फफक कर रोने लगी ।मम्मी ने धैर्य बंधाते हुए कहा, "बेटा, धीरे-धीरे दिल लग जाएगा ।हाँ शुरू शुरू में थोड़ी उदासी महसूस होती है ।फिर घर में सब इतने अच्छे हैं ।गौरव तो  लाखों में एक है ।मैं तेरी बूआ की बेटियों को फोन करती हूँ, आकर मिल जाएँ गी 
                  अरे ,रागिनी तुम तो बहुत भाग्यशाली हो,इतने सुन्दर जीना जी----अमीर घर---जीना जी का इतना बड़ा बिजनैस, नौकर-चाकर, सभी सुख सुविधाएं ।" रागिनी को मिलने आई अंजना और मीता ने कहा ।अभी बातें हो ही रही थी कि गौरव भी पहुँच गया ।
                "अभी रागिनी ने मुझे फोन पर बताया कि तुम लोग आने वाली हो,तभी मीटिंग कैंसल करके घर की ओर चल पड़ा ।"गौरव ने बताया ।चलो, तुम बहनें बातें करो, मैं अपने हाथों से चाय बनाकर लाता हूँ ।अंजना और मीता एक साथ बोलीं ,नहीं नहीं जीजा जी हम बनाती हैं ।लेकिन गौरव ने एक नहीं सुनी ।चाय बनाने किचन में चला गया ।
           अंजना बोली, "रागिनी तेरी किस्मत पर रशक होता है, क्या पति मिला है ।जीजू के आने से पहले अब फटाफट हनीमून की चटपटी बातें भी सुना दो ।रागिनी की आंखें भर आईं।रागिनी कुछ कहती, उस से पहले ही मीता हँसते हुए बोली, "मून क्या इस की किस्मत में तो पूरा ब्रह्माण्ड है, खिदमतगार पति-----।
          रागिनी के दिल में आया कि चिल्ला चिल्ला कर बोले,"यह खिदमतगार अपराधी है ।शादी के बाद जो स्त्रीत्व के लिए पूर्णता चाहिए, उस से यह शून्य है । मेरे साथ छल हुआ है, अमीरी के आवरण में किसी को और कुछ दिखाई नहीं देता ।दूसरे ही पल उस को गौरव की विनती याद आई,मुझे सिर्फ छः महीने का समय दो ।" रागिनी इन सोचों में गुम थी कि गौरव चाय की टरे लेकर आया और बोला, "देवियों चाय हाज़िर है ।"
                     - कैलाश ठाकुर                      
                नंगल  (रोपड़) -पंजाब                

 सम्मानित - 03                                                       

                                 संतान                           
                                 ====                           

- ऐई! काहे काट रहा है?  
-  काटे नय, तो का करें दादा। यहाँ हमको अपना घर बनाना है। और ई गछवा बाधा डाल रहा है। 
वह नौजवान पेड़ की डाली पर कुल्हाड़ी चलाते हुए बोला। 
उसी गाँव के किसान शिवराज ने उसे देखकर मना किया। लेकिन उसे समझ नहीं आया कि गाछ काटे बिना वह माटी की दीवार उठाए तो कैसे। 
- नय काट रे! रोक दे ई काज। चल हमरे संग।
साथ चलते हुए वह शिवराज के मकान के पास जा पहुँचा। एकदम हैरान हो गया। ऐसा पक्का मकान और ई गछवा....? सामने पक्की दीवार के बीच में से एक करंज का पेड़ ऊपर तक जाकर खिलखिला रहा था। 
वह अंदर गया। अंदर डालियों पर कपड़े, थैले। मकई, लहसून के सूखे पीले पड़ गए पौधे भी लटके थे। अगली बार फिर फसल देने को उतावले। 
उसके मन में उपजे प्रश्न को बुजुर्ग शिवराज ने झट लपक लिया। 
- हमीन किसान सब गछवा को अपने बच्चा मानते हैं रे! बच्चा को कोय काटता है भला। उसका तो रच्छा किया जाता है ना। सुना नय का, एक गाछ सौ बेटा समान। ***
                          - अनिता रश्मि                         
                         रांची - झारखण्ड                      

     सम्मानित - 04                                                       

                             मेरे मालिक               
                              ======                

वो शायद कहीं से बहुत परेशान होकर आया था तो खेत में छिपने लगा।दादा जी तब आंगन में बैठे रोज की तरह अपना हुक्का पी रहे थे।उन्होंने उस पिल्ले को आड़ में छिपते देख लिया था पर कुछ नहीं किया।तभी कुछ बच्चों का झुंड आया और उसे है ढूंढने लगा।सब आपस में बातें कर रहे थे कि यहीं होगा कहीं झाड़ियों में देखो।दादा जी की नजर उन पर गई तो वो माजरा समझ गए।उन्होंने हुक्का छोड़ा और बच्चों को डांटकर वहां से भगा दिया।जब पिल्ले को देखा तो वह कांप रहा था और उसकी आंखों में डर था। जिसके कारण वह सहम रहा था।जब दादा जी ने उसके उपर हाथ फेरा तो उसने पूंछ हिला दी।मानो सहमति दे रहा हो।
     अब वह दादा जी के पीछे पीछे घर में ही आ गया।छोटा होने के कारण घर के बच्चों के साथ खेलने लगा।वह पहले ही दिन से दादा जी के कमरे के नीचे वाले कोने में सोता था।दादा जी ने भी उसके लिए बोरा डलवा दिया।मानो बच्चे का बिस्तर लगवा दिया।वो चाहे कितना ही खाना खा ले पर जब तक दादा जी की खाने के बाद अंतिम निवाला उसे नहीं मिलता, तब तक मानो उसका खाना पूरा नहीं होता था। यही सिलसिला चलता रहा और वो भी घर के अन्य बच्चों के साथ बड़ा होता चला गया।
      दादा जी जब भी इधर उधर जाते वो उदास हो जाता और रोज शाम को दादा जी के कमरे से गर्दन बाहर निकाल लेता।घर के सभी लोग उसका खूब ख्याल रखते।पर लाली,जो अब उसका नाम रख दिया था तो दादा जी का लाडला हो गया।
       दादा जी जब भी बाहर से घर लौटते तो डर होने पर वो भौंकने लगा जाता।मानो उनके आने की खबर परिवार को से रहा हो।दादा जी भी जो भी खाने का सामान बच्चों के लिए लाते एक हिस्सा लाली का भी होता था उसमें।
         अब एक दिन अचानक दादा जी की तबीयत खराब हो गईं।घर में अफरा तफरी मच गई।लाली भी उदास हो गया और दादा जी की चारपाई के पैरों में बैठ गया।धीरे धीरे तबीयत और बिगड़ी और एक दिन वो चल बसे।
          अब लाली रोता रोज शाम को वहीं बैठ जाता।उसने खाना भी बन्द कर दिया।घरवालों ने भी सारे जतन कर लिए पर लाली पर कोई असर नहीं हुआ।अंततः लाली भी स्वर्गीय दादा जी के पास चले गया।उस समय भी उसकी आंखें खुली थी और वो दादा जी की तस्वीर की तरफ देख रहा था।मानो कह रहा हो "वहां मेरे मालिक अकेले होंगे यहां तो आप लोग बहुत हैं।इसलिए मैं उनके पास ही उनकी देख रेख के लिए जा रहा हूं।अपने मालिक की चरणों में रहूंगा वहीं।" ****
                           -  नरेश सिंह नयाल                           
                             देहरादून -उत्तराखंड                          

 सम्मानित - 05                                                       

                                  आदत                          
                                  ====                          

 आजकल रोज सुबह साधना जल्दी काम निपटा कर पूजा करने बैठ जाती. उसकी इस आदत को सास निर्मला ने देखा तो वह आश्चर्यचकित रह गई. इस नए जमाने की बहू नौकरी की भाग-दौड़ में कहां पूजा पाठ वह भी सुबह-सुबह निर्मला को घर का यह दिव्य वातावरण किसी स्वप्न की तरह लग रहा था. तभी बिट्टू की आवाज सुनाई दी... "मां भूख लगी है.., नाश्ता दो वर्ना स्कूल की बस आ जाएगी. साधना ने कहां.., तुम्हारा नाश्ता टेबल पर लगा दिया है. पहले जल्दी से आरती लो फिर देखती हूं.., कहते हुए वह आरती करने लगी. बिट्टू भी मां की आज्ञा का पालन कर दौड़कर मां के पास पहुंचा.  हाथ में गुड खोपरे  का प्रसाद खाकर भगवान का आशीर्वाद लेकर वह दादी मां को  प्रणाम कर नाश्ता करने लगा. विस्मय नेत्रों से दादी ने जुग-जुग जियो का आशीर्वाद दिया और साधना से पूछा..," बेटी यह सब देखकर सुनकर बहुत भला लग रहा है, यह बदलाव तो बहुत ही अच्छा है. पर क्यों..? इस पर साधना ने उत्तर दिया,माँ जी हर धर्म के लोग अपने मजहब के नियमानुसार कर्म करते हैं.और हम हिंदू लोग ही अपने धर्म संस्कृति को भूलते जा रहे हैं. शुरुआत तो घर से ही करनी होगी ना अन्यथा आज जो समय है. क्या हमारे बच्चों का भविष्य बिना अपने धर्म संस्कृति को बचाए बगैर सुरक्षित हो सकता है क्या..? इस सबकी बिट्टू को आदत हमें ही डालनी पड़ेगी.वर्ना वह संस्कार विहीन हो जाएगा. साधना की बातें सुन निर्मला का सीना गर्व से फूल गया और वह बिट्टू की आशीर्वाद देकर मुस्कुरा  उठी। ****
                             - वन्दना  पुणतांबेकर                        
                          इंदौर - मध्यप्रदेश                       

   सम्मानित -06                                                          

                           उधार की चमक                         
                            =========                          

पूर्णिमा की रात थी। सारे आकाश में चंद्रमा की रोशनी फैल रही थी। तारों की रोशनी फीकी पड़ रही थी।
 चंद्रमा ने गर्वित हो, तारों से कहा-" क्यों, यह उदासी क्यों, चमको न ,देखो मैं तुम सब पर भारी पड़ रहा हूं। "
एक तारा बोला- " भैया हम जितना चमक रहे हैं, उससे ज्यादा नहीं चमक सकते।हम किसी से रोशनी लेकर ज्यादा चमकने पर विश्वास नहीं करते। अपनी रोशनी पर ही विश्वास करते हैं।" इस तरह की बातों में ही रात बीत गई। 
पन्द्रह दिन बाद अमावस्या की रात आई। अब आकाश में तारे ही चमक रहे थे। चंद्रमा का दूर-दूर तक पता नहीं था।
उस मैंने तारे की चमक सबसे तेज थी।
                         - डॉ.अनिल शर्मा 'अनिल'                      
                         धामपुर - उत्तर प्रदेश                       

 सम्मनित - 07                                                            

                            प्रगतिशील सोच                      
                             ==========                     

नेहा पहली बार किसी कवि सम्मेलन मे भाग ले रही थी । उसने ख़ासतौर पर इस अवसर के लिए अपनी प्रगतिशील सोच पर कविता लिखी । जब उसने सुनाई तो सारा हाल तालियों से गूँज उठा । उसे बहुत से लोगो का समर्थन भी मिला जो उसकी सोच के क़ायल हो गए जिनमें ज़्यादातर पुरूष थे । कुछ पुरूषों से उसकी अच्छी दोस्ती हो गई क्योंकि उसकी नज़र मे पुरूष और औरत की दोस्ती भी हो सकती है । कुछ समय बाद नेहा को महसूस होने लगा कि उसके पुरूष मित्र उसके खुले विचारों का ग़लत मतलब निकालने लग गए है । आख़िर एक दिन उसे साफ़ शब्दों मे अपने पुरूष मित्रों से कहा कि दोस्ती का मतलब ये क़तई नही है कि उसकी आड़ मे आप शारीरिक सम्बन्धों तक पहुँच जाए । मेरी सोच औरतों की प्रगति से है मेरे संस्कार आज भी विशुद्ध भारतीय है । धीरे धीरे उसने महसूस किया कि अब केवल कुछ ही पुरूष उसके दोस्त है और वो सही मायने मे प्रगतिशील सोच के है । वह सोचने लगी समाज मे औरतें कितनी आगे निकल गई है परन्तु उनके प्रति भाव कुछ लोगो के ही बदले है ज़्यादातर तो वहीं के वहीं खड़े है ●●●●
                              - नीलम नारंग                              
                            हिसार - हरियाणा                          
          
     सम्मानित - 08                                                       

                               पँच टकिया                         
                                ======                            

मेरी फटी पैंट की चिथड़ी पॉकिट से झाँकते हुए पँच टकिए ने 
हाथ जोड़कर रुआँसें स्वर में 
बड़ी दुकान के मोटे सेठ से अनुरोध किया, "सेठजी! इससे पहले कि मैं किसी रोकड़िए के हाथ लगकर उसके खजाने में खो जाऊँ......ले ले मुझे और मेरे बदले में खिला दो मेरे मालिक को कुछ। यह मेरा मालिक तीन दिन से भूखा है........। 
बार - बार सम्हालता है मुझे...... टटोलकर संतोष की साँस लेता है....ऐसा ही रहा तो जल्दी ही
यह भूख से हारकर गिर जायेगा....मर जाएगा और मैं इसके बाद किसी के हाथ लग जाऊँगा। शायद मुझे पाने वाला रखेगा मुझे सहेज कर, सुन्दर सी मखमली पॉकिट में भी पर.......
पर इसके जैसा नहीं समझेगा मेरी औकात को...मेरे वजूद को।
इससे पहले कि मैं औकात विहीन होकर खो जाऊँ पैसों के बीच कहीं,......ले ले मुझे और एक बार.....बस एक बार मेरे इस मित्र का भूख मिटा दे........नहीं देख सकता मैं इसको मरते हुए.....l"
सेठ की आँखों में उमड़ी दया को लखकर पँच टकिया धीरे से फिसला और सहर्ष सेठ की मुट्ठी में समा गया।****
                    - डॉ अवधेश कुमार अवध                   
                          गुवाहाटी - असम                       

सम्मानित - 09                                                        

                               छोटे कदम                             
                               ======                             

--"रवि! तैयार हो गए क्या ? चलो दुकान खोलने का समय हो रहा है । जल्दी करो ।" बनवारी जी पैर जूता में डालते हुए कह रहे थे ।
-"......." कोई आवाज नहीं ।
बनवारी जी के दो पुत्र हैं । एक गांव के ही सरकारी स्कूल में शिक्षक हैं । दूसरा पुत्र किसी तरह बी.ए. कर चुका है और वह चाहता है कि शहर में बड़ी दुकान खोले । जबकि बनवारी जी चाहते हैं कि कुछ दिन उनके साथ दुकान पर बैठे और दुकानदारी के तौर-तरीके पहले सीख ले । किन्तु रवि को गांव के इस दुकान पर बैठना भी अपमानजनक लगता था । 
आंगन में बैठी आनंदी देवी ( बनवारी जी की पत्नी ) अपने दस महीने के पोते को चलाने की कोशिश कर रही थी । बच्चा खटिया पकड़-पकड़ कर चलने लगा । 
--"दादी माँ! देखिए बाबू कितना छोटा-छोटा कदम बढ़ा रहा है ।" वहीं खेलती हुई छः वर्ष की उनकी पोती बोली ।
--"अरे हाँ रे गुड़िया ! बड़े-बड़े कदम बढ़ाने के लिए इसी तरह पहले छोटे-छोटे कदम उठाने पड़ते हैं ।" आनंदी देवी रवि की तरफ देखते हुए बोली । 
रवि जो मुंह लटकाये हुए कुर्सी पर बैठा था । ये सुनकर, बही-खाते का थैला उठाकर बनवारी जी के पीछे-पीछे चल दिया । ***
                              -पूनम झा                           
                           कोटा - राजस्थान                           

 सम्मानित - 10                                                       

                             मानवतावादी                       
                              ========                          

  सीमा पर युद्ध हुआ। देश के बीस वीर सैनिकों ने अपने प्राणों की आहुतियां दीं। सभी देशवासी शोकाकुल थे। उस घर में भी दुःख और आक्रोश का माहौल खिंचा हुआ था। सभी की भृकुटियां तनी थीं और वे मुट्ठियाँ भींच रहे थे। 
   तभी एक बड़ी खबर टीवी स्क्रीन पर फ़्लैश हुई - विरोधी देश के चालीस सैनिक ढ़ेर किये गए। 
   बदले की आग बुझी और घर में खुशियाँ मनाई जाने लगीं। 
  मगर घर का छोटा बच्चा गहरे गम में डूब गया। पिता ने यह देखा तो पूछा, "बेटा, ख़ुशी का समाचार आया है। तुम्हें दुःख किस बात का है ? "
   बेटे ने आँसुओं में डूबते हुए कहा, "पापा, पहले तो बीस मरे थे। अब तो मिलाकर साठ मर गए न !" ****
                             - ज्ञानदेव मुकेश                           
                               पटना - बिहार                             

 सम्मानित - 11                                                        

                        बेटी बनाम बेटा                  
             ==========        
              
तीसरी बेटी के विवाह की बात करने केशव मिश्रा स्कूटी भगाये जा रहे थे।दो बेटियों को कम उम्र में शादी कर निबटा चुके थे। तीसरी बेटी मैथिली बला की जिद्दी निकली,'बी.ए के पहले शादी नहीं करुंगीं घर से भाग जाऊंगी धमकी तक दे डाली'। बी.एड कर शिक्षिका की नौकरी कर रही है। इसके स्थान पर यदि आज एक बेटा होता तो इतनी भाग दौड नहीं करनी पडती।सहसा एक भयंकर आवाज हुई और मिश्रा जी जमीन पर गिर पडे,और बायें हाथ पर स्कुटी गिरी, समझ में नहीं आया कि क्या हुआ? थोडी सी आँखें खुली, तो कई जोडी आँखें घूरती नजर आई,फिर अचेत हो गये। जब होश आया तो अपने आप को अस्पताल में पाया। पत्नी बगल में बैठी थी पता चला दुर्घटना हो गई थी। बायें हाथ में प्लास्टर चढा था। एक नजर में वह भाँप गये प्राईवेट अस्पताल में है। मन में मैथिली पर क्रोधित हुए प्लास्टर तो सरकारी अस्पताल में भी हो सकता था।  पत्नी से कहा,
"पुजाघर में महादेव की प्रतिमा के पीछे एक छोटा बक्सा है उसमें पैसा है चुकता करो,और घर ले चलो..।"
घर आकर भगवान को दंडवत किया। पैसा गिनना चाहा, पता नहीं कितना लूटा अस्पताल वालों ने? आश्चर्य?पैसा तो जस का तस पडा है, फिर अस्पताल का बिल किसने भरा?पत्नी को पुछा उन्होंने मैथिली को बुलाया। मैथिली ने कहा,
"मैने अपने सेविंग से बिल भरा है। मैने आपका और माँ का मेडीक्लेम करवाया है जिससे पैसा वापस मिल जायेगा। कुछ वेतन से कटेगा। बाबुजी मैं सब कर सकती हूँ सब संभाल भी सकती हूँ बस बेटा नहीं बन सकती..!"
मिश्रा जी हाथ जोडे महादेव के समक्ष खडे रह गये आँखों से पक्षाताप के अश्रु अविरल बह रहे थे..।****
                    -   डॉ.विभा रजंन कनक                     
                                दिल्ली                             


इनके अतिरिक्त महेश राजा , विजय कुमार , जगदीप कौर , मीरा जैन , अनिल शर्मा नील , बसन्ती पंवार , बबिता कंसल , भारती वर्मा , गीता चौबे , डॉ. मधुकर रावलारोकर  , रेणु झा , डॉ. मजुं गुप्ता , मनोज सेवलकर , डॉ. साधना तोमर , डॉ. वंदना गुप्ता , अविनाश अग्निहोत्री , संगीता शर्मा , रंजना वर्मा उन्मुक्त , अर्चना मिश्र , अजय गोयल , मीरा जगनानी , डॉ. विनीता राहुरीकर , नीना छिब्बर , कुमार जितेन्द्र जीत , रशीद गौरी , कल्याणी झा , अलका पाण्डेय , अलका जैन , डॉ. पूनम देवा , चन्द्रिका व्यास , प्रियंका श्रीवास्तव शुभ्र , हीरा सिंह कौशल , हेमलता मिश्र आदि ने अपनी - अपनी लघुकथा पेश की है । सभी का शुक्रिया किया जाता है ।






Comments

  1. सुंदर आयोजन के लिए हार्दिक 🎊 🌷 🌷 🌷 🌷 🌷 🌷 बधाई एवं शुभकामनाएं जी 🙏 🙏 🙏 🙏

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  2. सराहनीय प्रयास के लिए साधुवाद । इस तरह के आयोजनों के लिए अग्रिम शुभकामनाएँ

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