क्या चीन का चालों का जबाब है तिब्बत ?

चीन की चालों का जबाब तिब्बत के रूप में देना चाहिए ।  इससे चीन को भी अपने नुकसान का भी एहसास होने लगेगा । भारत से भीड़ने का अर्थ क्या है । जब तक भारत , चीन के आगे तिब्बत को खड़ा नहीं करेगा तो चीन अपनी चालों को बन्द नहीं कर सकता है । यही " आज की चर्चा " का प्रमुख विषय है । अब आये विचारों को देखते हैं : -
भारत और चीन के बीच तनाव अभी भी ज्यों का त्यों बना हुआ है। बावजूद इसके कि चीन गलवान घाटी में कुछ पीछे हटा है, चीन पर विश्वास नहीं किया जा सकता। चीन ने अपनी विस्तारवादी नीति के अनुसार तिब्बत में अपना अधिपत्य स्थापित किया हुआ है जिससे साफ जाहिर है कि चीन तिब्बत में लोकतांत्रिक मूल्यों की धज्जियाँ उड़ा रहा है। तिब्बत की निर्वासित सरकार के मुखिया दलाई लामा भारत में रहकर चीन से तिब्बत की स्वतंत्रता के लिए कार्य कर रहे हैं। तिब्बत की निर्वासित तिब्बती सरकार "सेन्ट्रल तिब्बत एडमिनिस्ट्रेशन (CTA) ने कहा है कि भारत को चीन के खिलाफ अपनी सीमाओं में अतिक्रमण के साथ-साथ तिब्बत को भी एक मुद्दे के रूप में सम्मिलित करना चाहिए। 
भारत ने चीन को मुंहतोड़ जवाब देने के लिए शौर्य से भरी अपनी सेना को पूरी आजादी देने के साथ ही कूटनीतिक कदम भी अख्तियार करते हुए हांगकांग में चीन के नये सुरक्षा कानूनों पर प्रश्नचिन्ह खड़े किये हैं। इसी प्रकार तिब्बत में चीन का आधिपत्य भी एक प्रमुख मुद्दा है। 
वास्तविकता यह है कि तिब्बत में चीन अपनी सैन्य शक्ति के कारण गैर-लोकतान्त्रिक रूप से अपनी ताकत की धमक दिखा रहा है और उसकी यह नियत अन्य पड़ोसी देशों के प्रति भी स्पष्ट दिखाई पड़ती है। 
अब समय आ जाये है कि तिब्बत के मामले को भारत अपनी नीतियों में अहम् मुद्दे के तौर पर सम्मिलित करे और विश्व के समक्ष तिब्बत में चीन की तानाशाही से भरी चालों को विश्व-पटल पर प्रमुखता से प्रस्तुत करे। इससे चीन और अधिक बेनकाब होगा और जो विश्व इस समय उसके खिलाफ लामबंद हो रहा है, उसको चीन की कुटिल चालों का जवाब देने में भारत के साथ खड़े होने का मार्ग प्रशस्त होगा। 
- सत्येन्द्र शर्मा 'तरंग' 
देहरादून - उत्तराखण्ड
चीन की चालों का जवाब  तिब्बत है। तिब्बत के लोग  भारत की तरफ मदद की आस लगाए बैठे हैं। चीन के आतंक से तिब्बती लोग हमेशा ही ख़ौफ में रहते हैं। लद्दाख के गलवान घाटी में भारत के दबाव के कारण सीमा से पीछे हटने पर चीन बाध्य हो गया। उसे डर हो गया कि भारत से टकराना बहुत महंगा पड़ सकता है। क्योंकि भारत के समर्थन में अमेरिका ने चीन की घेराबंदी शुरू कर दी। जापान खुलकर भारत के समर्थन में आ गया। साथ मे आस्ट्रेलिया, इजरायल, रूस सहित कई देश भारत के पक्ष में खड़े हो गए।
दुनिया ने देख लिया कि भारत जल्दी किसी भी देश के साथ गलत नही करता। पर उसके साथ गलत और जबर्दस्ती करने वालों को छोड़ता भी नही है। ।दुनियां भर में कोरोना संक्रमण फैलाने वाले चीन आज विश्व मे पाकिस्तान को छोड़कर सभी देशों का दुश्मन बन बैठा है। सबको पता है कि चीन जमीन का भूखा देश है। इसका भारत से ही नही बल्कि सभी पड़ोसी देश से सीमा विवाद है। 28 लाख किलोमीटर स्क्वायर जमीन वाले देश तिब्बत पर कब्जा किया हुआ है। चीन के आतंक से तिब्बत जूझ रहा है। 
चीन का मॉउ एक लालची नेता था। उसने 1950 में तिब्बत पर हमला किया। 1951 में दलाईलामा की ताजपोशी हुई थी। चीन की क्रूरता से डर कर दलाईलामा भारत आ कर रहने लगे। चीन का तिब्बती लोगों पर अत्याचार बढ़ते गया। चीन ने तिब्बत की सभ्यता को खत्म करने के लिए 10 लाख लीगों को मरवा दिया। आज भी तिब्बती पर चीनी आतंक जारी है। तिब्बत के एक नागरिक की हिंदी में जारी वीडियो खूब वायरल हो रही है। उस वीडियो में तिब्बती ने भारत के लोगो से चीनी समान का बहिष्कार करने और चीन का मोबाइल एप बंद करने की अपील की है। इसके साथ ही बताया है कि चीन किस तरह धोखे से नकली समान दूसरे देशों में बेचता है। तिब्बत की आजादी भारत ही दिला सकता है, ऐसी आशा वहाँ के लोगों में है। इसलिए चीन की चालों का जवाब तिब्बत है।
- अंकिता सिन्हा साहित्यकार
जमशेदपुर - झारखंड
     चीन एक अवसर वादी देश हैं, वह सम्पूर्ण विश्व में एक छत्र राज करना चाहता हैं, जब उसकी वस्तुओं का पूर्ण रूपेण परित्याग होता देखा, तो युद्ध नीतियों को पारदर्शिता पूर्वक कूटनीति चालों को कर दिया हैं,  जिसका परिणाम देख, अपनी सैन्य बलों को पीछे करता दिखाई दे रहा, हो सकता हैं, बाद में सैन्य व्यवस्था को शक्तिशाली बनाकर, प्रयत्नशील होकर आक्रमण करें। जिस तरह से अमेरिका, नेपाल, तिब्बत, जापान आदि राष्ट्रों की नीतियों देख सोचने पर मजबूर हो गया हैं। चीन की सीमा तिब्बत? तिब्बतियों ने अगर पूर्णतः जंग छेड़ दी, तो चीन की चालें नाकामयाब हो जायेगी और अत्यंत आर्थिक व्यवस्था के साथ-साथ जन धन की हानियां सम्भावित आंकड़ों में चारों ओर प्रकृति की क्षति हो जायेगी।
क्योंकि चीन की समस्त नीतियों से तिब्बतियों को जानकारियां हैं। तिब्बतियों की अपनी अलग पहचान, युद्ध नीतियाँ हैं और अनेकों राष्ट्रों की अलग-अलग सीमा नियंत्रण रेखाएं, युद्ध नीतियाँ हैं?
-आचार्य डाॅ.वीरेन्द्र सिंह गहरवार 'वीर' 
   बालाघाट - मध्यप्रदेश
भारत कूटनीतिक चाल चलते हुए तिब्बत के मसले को उठा ले तो अमरिका से तो उसे समर्थन मिलेगा ही साथ ही दुनिया के लगभग सभी देश साथ देंगे। भारत का यह कदम चीन की चालों को निरस्त करने के लिए अपने आप में एक बड़े दबाव का काम कर सकता है। भारत में घुसने को बेकरार चीन के पैरों को इससे न केवल रोका जा सकेगा बल्कि तिब्बत पर उसके अमानवीय व्यवहार के प्रकाश मंे आने से उसकी फजीहत होगी। चीन ने धोखे से तिब्बत पर कब्जा कर लिया था। अब भारत के पास सही अवसर है कि तिब्बत का मसला उठाकर चीन की नापाक चालों का जवाब दे। भारत द्वारा तिब्बत के मुद्दे को विश्व पटल पर लाकर चीन पर करारी चोट करनी चाहिए और दबाव में लाना चाहिए। दरअसल तिब्बत का मसला जब भी विश्व स्तर पर उठा है तो चीन बौखलाया है और उसे अंदरूनी मामले की संज्ञा देता है। चीन कभी नहीं चाहता कि तिब्बत का मसला उठाया जाए। इस सिलसिले में उसने सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य होने का पूरा लाभ उठाया है। तिब्बत पर अन्य देशों की आवाज को भी नहीं उठने दिया।  पर इस समय स्थिति ऐसी है कि भारत को तिब्बत के मामले में पूरा समर्थन मिल सकता है और चीन को बेनकाब किया जा सकता है। यूं भी चीन इस बात से बौखलाया हुआ है कि क्यों हमने दलाई लामा और उनके समर्थकों को भारत में शरण दे रखी है।  समूचे विश्व के संदर्भ में चीन के इरादे ठीक नहीं हैं।  विस्तारवादी चीन पूरी दुनिया में फैलना चाहता है।  अतः ये स्वर्णिम अवसर है कि चीन की चालों का जवाब तिब्बत से दिया जाये।
 - सुदर्शन खन्ना 
दिल्ली
भारत को योजना बंद्ध तरिके से काम करना होगा दूरदृष्टि रख कर , आज मौक़ा है चीन के विरुध है अमेरीक और कई देश हमें चाहिए की उनका विश्वास जीते
व तिब्बत के मसले पर सबका समर्थन पाये ,  
भारत के लिए यह मौक़ा है अपनी हर बात का बदला चीन से लेने के लिए, 
चीन को भारत में घुसने से रोका जा सकता है , चीन को दुनियाँ के सामने शर्मीदा होना पड़ेगा । 
चीन का कहना है कि इस इलाके पर सदियों से उसकी संप्रभुता रही है जबकि बहुत से तिब्बती लोग अपनी वफादारी अपने निर्वासित आध्यात्मिक नेता दलाई लामा के प्रति रखते हैं.
दलाई लामा को उनके अनुयायी एक जीवित ईश्वर के तौर पर देखते हैं तो चीन उन्हें एक अलगाववादी ख़तरा मानता है.
इतिहास गवाह है कि चीन पर जिसने भी विश्वास किया, वह उसके मजबूत जाल में उलझ कर रह गया और अपना सर्वस्व खो बैठा है। इसका सबसे ताजा उदाहरण तिब्बत और पाकिस्तान के रूप में देखा जा सकता है। तिब्बत को तो वह हड़प कर ही चुका है। पाकिस्तान को सब्जबाग दिखा कर अक्साई चिन जिस पर पाकिस्तान का भारतीय क्षेत्र पर नाजायज कब्जा चल रहा है, का काफी बड़ा हिस्सा और ग्वादर पोर्ट तक गलियारे के रूप में बलोच और सिंध के कुछ भाग पर कब्जा जमा ही चुका है। अब अधिक देर नहीं है जब चीन पाकिस्तान के एक बड़े हिस्से पर अपना हक जताएगा और फिर उसके एक बड़े हिस्से बलूचिस्तान और सिंध के हिस्से अपने कब्जे में ले लेगा। केवल पंजाब ही पाकिस्तान के वजूद के रूप में दुनिया के नक्शे पर रह जाएगा। 
पुरानी कहावत है कि दुश्मन का दुश्मन दोस्त होता है. और यह कहावत भारत और चीन पर सटीक बैठती हैं. भारत के दुश्मन अजहर मसूद के मामले में जिस प्रकार चीन हर समय वीटो नामक अंगूठे का इस्तेमाल करता रहा है, ठीक उसी तरह अब भारत भी चीन की उसी दुखती रग पर पांव रख रहा है जिससे चीन अंदर ही खौल रहा है. परंतु करे क्या, कुछ नहीं बन पड़ा तो दे डाली धमकी. भारतीय राजदूत विजय गोखले को समन भेजा और कह दिया कि भारत तिब्बती धर्मगुरु दलाई लामा का सहारा लेकर ऐसा कुछ न करे, जो चीन के हित के खिलाफ हो. व इसके अलावा संवेदनशील मुद्दों को बेवजह तूल न दिया जाए.
लेकिन चीन का कहना है, "सात सौ साल से भी ज़्यादा समय से तिब्बत पर चीन की संप्रभुता रही है और तिब्बत कभी भी एक स्वतंत्र देश नहीं रहा है. दुनिया के किसी भी देश ने कभी भी तिब्बत को एक स्वतंत्र देश के रूप में मान्यता नहीं दी है."
समूचा विश्व अब चीन के असली व धोखा धड़ी करने वाले चेहरे को पहचान गया है । 
यह मौक़ा है भारत के पास चीन की चालों का जवाब दे कर अपने कई बदले लेने का च
- डॉ अलका पाण्डेय
 मुम्बई - महाराष्ट्र
धोखेबाज चीन के चालो की जवाब तथा  उसका नापाक इरादा पर तिब्बत, हांगकांग के उपर भारत -चीन (ड्रैगन) को घेंरेगे।
भारत - चीन के बीच लद्दाख में 3 महीने से तनाव है।अधिकारीयों से यह जानकारी हासिल हुआ है की कई दौर के बातचीत के बाद भी स्थिति में कोई  बदलाव नहीं है। भारत 24 घंटे ड्रोन से सीमा पर निगरानी कर रहा है।इनके धोखे के बाद भारत सतर्क है।
भारत चीन के सामने तिब्बत का मुद्दा उठा सकता है। इस बीच सेंट्रल तिब्बतन एडमिनिस्ट्रेशन( CTA) के राष्ट्रपति ने कहा है कि भारत को चीन के साथ मौजूदा तनाव में तिब्बत को भी मुद्दा के तौर पर शामिल करना चाहिए।" भारत का सीमा इनसे नहीं तिब्बत से लगती है।"
भारत ने चीन को घेरने के लिए अब कूटनीतिक हथियार भी उठा लिया और अब तक हांगकांग में चीन के नए सुरक्षा कानून पर चुप्पी साधने वाला भारत ने जिनेवा में संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद में हांगकांग पर सवाल उठाया।
समाचार के अनुसार LAC से पीछे हटी चीन सेना।चीन ने बताया तनाव घटाने के लिए उठाया गया कदम।
लेखक का विचार:- भारत कूटनीतिक तरीके से तिब्बत और हांगकांग का प्रश्न उठा कर पूरे विश्व में चीन को शर्मिंदा करेगा।
समाचार से जानकारी मिल रही है,पुरे दुनिया से आर्थिक नुकसान चीन को मिल रहा है।
- विजेंयेद्र मोहन
बोकारो - झारखंड
निश्चित ही चीन की चालों का जवाब है तिब्बत।भारतीय सरकार को इस समय तिब्बत को लेकर भी अपने नियमों और कानूनों में उचित संशोधन कर लेने चाहिए।अभी अगर कर दिए तो ज्यादा उचित होगा क्योंकि माहौल हमारे पक्ष में है।वरना तिब्बत के मामले में अन्य देश भी चीन का साथ दे सकते हैं पर इस समय अगर हो गया सही फैसला तो सब कुछ हमारे पक्ष में लग रहा है।
         चीन की आदत है कि कुछ समय शांत रहकर फिर से कोई न कोई मुद्दा उठा देता है।यदि अभी हम शांत रहे तो कुछ समय पश्चात चीन तिब्बत को लेकर अपना धावा बोल देगा।अभी गलवान घाटी है तो आने वाले समय में तिब्बत होगा।उसकी पटखनी उसी को देनी है तो ये समय सबसे उचित है।इसका फायदा यह होगा कि चीन की वर्तमान हरकतें देखकर बाकी मुल्क भी शांत रहेंगे।
       अर्थात तिब्बत पर बात ही नहीं बल्कि उचित कानून बनाकर हम स्पष्ट कर सकते हैं कि तिब्बत को लेकर हमारी मनसा क्या है।
- नरेश सिंह नयाल
देहरादून - उत्तराखंड
तिब्बत पर चीन का एकतरह से अतिक्रमण हैं पर अपनी ताकत ओर कुटील चालबाजी क बल पर  उसने कई देशों से तिब्बत को चीन का हिस्सा मानने पर विवष कर दिया कई देशों ने तब तिब्बत को चीन का हिस्सा भी मान कर हस्ताक्षर भी कर दिये थे पर यह सब मजबुरी वंश किया गया हैं।अब समय आ गया हैं की चीन को उसकी असली लक्ष्म रेखा के अन्दर किया जाय उसकी विस्तार वादी नीति को रोका भी जाय ओर  चीन को उसकी असली देश की सिमा में सिमटा जाय विश्व शक्ती बनने के मार्ग को अवरूद्ध किया जाय ओर यही सब तभी होता होगा जब विश्व एक मत से चीन को उसकी ओकात दिखाकर हमेशा हमेशा के लिये उसका गरूर नस्ट करेगा ओर ईन सब के लिये चीन के किये गये अन्य देशों के अतिक्रमण को हटाना एव उन देशों को ससम्मान लोटाना होगा ऐसा करने से चीन को लम्बा झटका लगेगा ओर फिर वह कभी किसी देश पर अतिक्रमण करने की नही सोचेगा सुरवात तिब्बत से किजा सकती है।
- कुन्दन पाटिल
 देवास - मध्यप्रदेश
     चीन की चालों का ही नहीं बल्कि 1962 के युद्ध का भी आधार तिब्बत ही है। चूंकि दलाई लामा को भारत में शरण देना चीन को फूटी आंख नहीं भाया था। जबकि चीन भूल गया कि भारत की संस्कृति शरणागत के लिए शीश कटवाने से भी पीछे नहीं हटती। चीन ने त्रेता युग की रामायण को याद किया होता। तो उसे पता होता कि श्रीराम प्रभु को मानने वालों का मानना है कि रघुकुल रीत सदा चली आवे, प्राण जाएं पर वचन न जावे।
     चीन इस बात से भी बेखबर रहा कि भारत द्वापर युग में भी मित्रता का अर्थ समझने और समझाने में समर्थ था और युद्ध कौशल में श्रीकृष्ण जी का नेतृत्व और सुदर्शन चक्र को विश्व में कौन नहीं जानता। प्रेम की बन्सी की धुन पर कालिया नाग को नचवाना भारत भारतीय और भारतीयता पूर्वजों की धरोहर है।
     चीन को माननीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र दामोदर दास मोदी जी ने भलीभांति परिचित करवाया है कि भारतीय सभ्यता और संस्कृति उस समय और भी निखर जाती है। जब उसकी मानवता को चुनौतीपूर्ण कसौटी पर खरा उतरना होता है।
     जैसे 1962 से लेकर अब तक चीन कई धूर्त अमानवीय चालें चल चुका है। जिसके लिए उसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर गिद्ध और चील की संज्ञा दी गई और भारत को सराहा गया‌। जो चीन और चीनियों के मूंह पर करारा थप्पड़ है। 
     सर्वविदित है कि आज भी चीन को तिब्बत सहित गलवान घाटी की कायराना चालों पर मूंह की खानी पड़ी है और जहां चीन को अपनी कायरतापूर्ण चालों के कारण अंतरराष्ट्रीय मंच पर शर्मशार होना पड़ा है वहीं भारत का सम्मान बढ़ा है और भारतीय तिरंगा गर्व से ऊंचा लहराया जा रहा है।
- इन्दु भूषण बाली
जम्मू - जम्मू कश्मीर
सभी जानते हैं कि ब्रिटिश शासन के अन्त के बाद भारत ,चीन और तिब्बत तीनों स्वतंत्र देश थे ।कम्युनिस्टों ने तिब्बत पर हमला शुरु किया ,हमारे अपनों की भूलके कारण  चीन तिब्बत पर अपना कब्जा दिखाता है ।भारत और तिब्बत की जनता को संतुंष्ट करने के लिए उसने पंचशील समझौते पर हस्ताक्षर किए ।उुसके अनुसार तिब्बत और भारत के लोग सांस्कृतिक ,व्यापारिक संबन्धों के लिए आजाद थे । भारत को इन मामलों पर बोलने का पूरा अधिकार था ।
 चीन ने तिब्बत को  धीरे -धीरे अपना बताकर पंचशील के सिद्धातों को रौंद दिया ।अब इस वक्त ,कोरोना के कारण दुनिया चीन से नाराज है और  भारत के साथ है ,तो हमारे नेताओं को पंचशील पर चीन का अतिक्रमण दुनिया के सामने रखना चाहिए । तिब्बत की स्वतंत्रता का मुद्दा उठा कर ,हम चीन को जबाब दे सकते हैं ।हम सब के लिए यह सुनहरा मौका है ।
- कमला अग्रवाल
गाजियाबाद - उत्तर प्रदेश
चीन में तिब्बत का दर्जा एक स्वायत्तशाली क्षेत्र के तौर पर है।
इस इलाके पर सदियों से उसकी प्रभुता रही है।तिब्बत के लोग अपनी वफादारी अपने ने निर्वासित आध्यात्मिक नेता दलाई लामा के प्रति रखते हैं।
दलाई लामा उनके निवाई उन्हें जीवित ईश्वर के रूप में देखते हैं तो चीन उन्हें एक अलगाववादी का खतरा मानता है। बत का इतिहास बेहद उत्तल पुथल भरा रहा है।वहां पर कभी मंगोल कभी चीन के ताकतवर राजवंशों ने हुकूमत की है।19 59 चीन के खिलाफ हुए नाकाम विद्रोह के बाद 14वें दलाई लामा को तिब्बत छोड़कर भारत की शरण लेनी पड़ी।
भारत कूटनीतिक चाल चलते हुए यदि तिब्बत के मसले को उठा लेता है तो अमेरिका का समर्थन मिलेगा और साथ-साथ रूस अन्य देशों का भी समर्थन उसे मिल जाएगा तिब्बत के मसले के हल होने के साथ-साथ भारत चीन की विवाद सीमा का भी समाधान मिल जाएगा। वह हमारी रणनीति की भूल थी और जल्दबाजी में क्या हुआ फैसला था कि हमने तिब्बत को अपने हाथ से जाने दिया और बिल्कुल साफ साफ कह देना चाहिए था कि तिब्बत पर अवैध अवैध कब्जा स्वीकार नहीं है हमने सिक्किम को अपने देश में मिला लिया था। लेकिन सीमा विवाद बड़े ना इस कारण से हम ने तिब्बत पर चीन की प्रभुता को मान लिया था इसीलिए उसकी मनमानी बढ़ने लग गई और वह सीमा पर अपना विस्तार करने लगा। अब भारत को मौका मिला है और उससे इस विवाद को हल करने के लिए ठोस कदम उठा लेना चाहिए
वक्त अच्छा है मौका देख कर काम करने को ही कुशल राजनीतिक कदम कहते हैं। चीन की संपूर्ण विश्व में किरकिरी हो रही है भारत के लिए यह बढ़िया अवसर है।
आगे तो वही होगा जो राम चाहेंगे।
स्वस्थ रहें अपना ध्यान दें
वंदे मातरम जय हिंदी
जय हिंद।
- प्रीति मिश्रा 
जबलपुर  -मध्य प्रदेश
चीन ने पूरी दुनिया में कोरोनावायरस फैलाकर सभी देशों के अर्थव्यवस्था का भट्ठा बैठा दिया है और खुद अपनी दुनियादारी चमका रहा है और विस्तारवादी नीति भी अपना रहा है।
   तिब्बत की राजधानी ल्हासा को चीन ने कब्जा कर रखा है। चीन के कब्जे के बाद से काफी संख्या में तिब्बती लोग और वहां के धर्मगुरु दलाई लामा भी भारत में शरण लिए हुए हैं। दुनिया में जहां भी तिब्बत के लोग शरण लिए हुए हैं, तिब्बत की आजादी की मांग बुलंद करते रहते हैं। 
    शांतिप्रिय राष्ट्र तिब्बत पर जबरदस्ती कब्जे का मामला संयुक्त राष्ट्र में भी नहीं उठ सका परंतु कुछ दिनों पहले अमेरिका ने तिब्बत को अलग देश का दर्जा देने की मांग उठाई है और कहा है कि चीन तिब्बती बौद्ध धर्म गुरु पंचेन लामा को रिहा करे। चीन की रणनीति को काटने के लिए अमेरिका ताइवान, हांगकांग और तिब्बत को लेकर दखल देना शुरू कर दिया है।
   तिब्बत को जॉन ऑफ पीस बनाना होगा। दोनों सीमाएं आर्मी फ्री होनी चाहिए। तभी शांति होगी।भारत और चीन के बीच तिब्बत है और जब तक तिब्बत का मुद्दा हल नहीं होता तब तक तनाव की स्थिति बनी रहेगी।
इस वक्त दुनिया के चक्रव्यूह में चीन फंसा हुआ है। शक्तिशाली देशों के साथ मिलकर तिब्बत को आजादी भी दिलवा सकते हैं और चीन को कमजोर कर उसके विस्तारवादी नीति को ध्वस्त भी कर सकते हैं। चीन के चालों का जवाब भी होगा तिब्बत की आजादी।
                             - सुनीता रानी राठौर
                          ग्रेटर नोएडा - उत्तर प्रदेश
भारत को अब चीन को चीन की ही भाषा में जवाब देना होगा। जिस तरह से उसने छल से तिब्बत को हथिया लिया उसी तरह उसे भी घेरना होगा । भारत के नायक कूटनीति और राजनीति में कुशल हैं । वे जरूर रणनीति को अपनाएंगे और जैसे को तैसा जवाब देने में सक्षम हैं ।
 चीन के कब्जे में तिब्बत का जाना हमारी राजनीतिक कमजोरी थी। लेकिन आज उनसे उनका छिनना भी जरूरी है। अभी जब चीन के राष्ट्रपति ने भारत की यात्रा की थी तो उन्होंने अरुणाचल प्रदेश को भी तिब्बत का हिस्सा कहा। 
उन्हें इस गलती का जवाब भी मिलना चाहिए। आज परिस्थिति चीन के विरुद्ध बनी हुई है। उसने सभी को अपना दुश्मन बना लिया है। सारे एप्प्स पर प्रतिबंध लगा देने से चीन आर्थिक संकट से भी घिर गया है। यही सही वक्त है उसे घेर कर उसके भ्रम को तोड़ने का ।
- संगीता गोविल
पटना - बिहार

" मेरी दृष्टि में " भारत सरकार को चाहिए कि दलाईलामा को भारतरत्न सम्मान देकर अपनी कुटनीति का परिचय देना चाहिए । इससे चीन तिलमिला जाऐगा । अगर चीन अक्लमंद होगा तो भारत को नहीं छेड़गा ।
                                                    -  बीजेन्द्र जैमिनी 
सम्मान पत्र 




Comments

Popular posts from this blog

वृद्धाश्रमों की आवश्यकता क्यों हो रही हैं ?

हिन्दी के प्रमुख लघुकथाकार ( ई - लघुकथा संकलन ) - सम्पादक : बीजेन्द्र जैमिनी

लघुकथा - 2023 ( ई - लघुकथा संकलन )