क्या अग्रिम जमानत बन रही है अपराधियों की ढाल ?

अपराधियों को पकड़ना सबसे बड़ा और मुश्किल कार्य पुलिस करती है । जब पुलिस को पता चलता है कि अपराधी की तो अग्रिम जमानत हो गई है । फिर पुलिस की मनौव्वल टूट जाता है। परन्तु न्यायालय का अपमान भी तो नहीं किया जा सकता है ।यही कुछ " आज की चर्चा " का प्रमुख विषय है । अब आये विचारों को देखते हैं : -
आज अपराधों की संख्या बढ रही है! अपराधी बड़े से बड़ा अपराध कर अग्रिम जमानत ले लेता है और यहीं से उसके दूसरे अपराध का जन्म होता है! जमानत से छूटने पर उसे पूर्ण विश्वास हो जाता है कि उसका बाल भी बांका हो नहीं सकता चूंकि उसने अपनी स्वतंत्र शौक के लिए वकील को रुपये देकर खरीद जो लिया है! 
अपराध छोटे से छोटा क्यों ना हो सजा तुरंत मिलनी चाहिए वरना गुड्डा गर्दी , चोरी चौपाटी करने वालों को जमानत की शह मिलते ही अपराध की प्रवृति मर्डर, बलात्कार जैसे जधन्य अपराध को जन्म देती है! निर्भया  जैसे कांड इसी तरह लंबे समय तक पनपते हैं! अपराधी अपराध कर जानता है मुझे इसकी सजा मिलेगी अतःअग्रिम जमानत ले वकील की कृपा से खुले सांड की तरह फिरता है! वकील अपने पेशे के कारण किसी भी पक्ष को बचाकर नामी वकील बनता है (तगडी़ फीस लेकर) न्याय प्रणाली संविधान के नियमों से बंधा है यानीकि संविधान के नियमों का पालन करता  है! सौ  अपराधी छूट जाए किंतु एक निर्पराध  को दंडित नहीं  होना चाहिए चाहे अपराधी सांड के जैसे पुनः अपराध क्यों न करता हो! इसमें न्याय प्रणाली क्या कर सकती है उसके हाथ बंधे हैं! पीड़ित को न्याय मिलते मिलते चप्पल घीस जाती है !
अंत में कहूंगी न्याय प्रणाली में सुधार का होना और इसके लिए संविधान के नियमों में बदलाव का होना जरुरी है! वरना वकील तो रुपये और नाम के लिए अपने क्लायंट का ही (अपराध का) बचाव करेगी! 
- चंद्रिका व्यास
 मुंबई - महाराष्ट्र
गुनाह के उपर पर्दा डालने के लिए अग्रिम  जमानत एक अच्छा तरीका  है ।अपराधी बाहर रह कर अपने खिलाफ , सभी सबूतों को  नष्ट कर देता है और गवाहों को डरा धमका कर या रुपयों का लालच देकर न्याय प्रक्रिया को 
 बाधित करता है ।किसी बड़े अहोदे पर आसीन परिवार वाले भी इनके कुकर्मों को छिपाते हैं ।उचित न्याय के लिए अग्रिम जमानत ठीक नहीं है ।
- कमला अग्रवाल
गाजियाबाद - उत्तर प्रदेश
अग्रिम ज़मानत निर्दोष लोगों के लिए राहत देती है परन्तु जब यह अग्रिम ज़मानत किसी अपराधी को मिलती है तो वह विभिन्न हथकंडे अपना कर स्वयं को निर्दोष साबित करने की पुरज़ोर कोशिश करता है और विपक्ष को दोषी साबित कर देता है । दरअसल अग्रिम ज़मानत का प्रावधान 
भारत के आपराधिक कानून के अन्तर्गत, गैर जमानती अपराध के आरोप में गिरफ्तार होने की आशंका में कोई भी व्यक्ति अग्रिम जमानत का आवेदन कर सकता है। अदालत सुनवाई के बाद सशर्त अग्रिम जमानत दे सकती है। यह जमानत पुलिस की जांच होने तक जारी रहती है। अग्रिम जमानत का यह प्रावधान भारतीय दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा ४३८ में दिया गया है। भारतीय विधि आयोग ने अपने ४१वें प्रतिवेदन में इस प्राविधान को दण्ड प्रक्रिया संहिता में सम्मिलित करने की अनुशंसा (सिफारिस) की थी। अग्रिम जमानत का आवेदन करने पर अभियोग लगाने वाले को इस प्रकार की जमानत की अर्जी के बारे में सूचना दी जाती है ताकि वह चाहे तो न्यायालय में इस अग्रिम जमानत का विरोध कर सके । परन्तु ऐसा नही होता है इसलिए अग्रिम ज़मानत का प्रावधान २०१० में समाप्त भी किया गया था इस पर पुनर्विचार करने की याचिका दायर हुई और विचार के लिए सुरक्षित कर लिया गया । राजनीतिक रसूख़दार लोगों, अपराधी, और सत्ताधारी लोगों ने अग्रिम ज़मानत के चलते डर को दर किनार कर दिया है वैसे सच ये ही है कि अग्रिम ज़मानत अपराधियों की ढाल का ही काम करती है । 
डॉ भूपेन्द्र कुमार धामपुर 
बिजनौर - उत्तर प्रदेश
न्यायतंत्र में एक बात प्रमुखता से कही जाती है कि "भले ही कई दोषी छूट जायें परन्तु एक निर्दोष को सजा नहीं मिलनी चाहिए"। संभवत: इसी को ध्यान में रखते हुए अग्रिम जमानत का प्राविधान किया गया होगा। कोई भी नियम, व्यवस्था के सुचारू रूप से क्रियान्वयन हेतु बनाया जाता है परन्तु अपराधियों द्वारा उसका दुरुपयोग करना बड़ी आसान बात हो गयी है। 
शातिर अपराधी भ्रष्ट तन्त्र के साये में अग्रिम जमानत को ढाल की तरह प्रयोग करते हैं और न्याय प्रणाली के अनेक छिद्रों के माध्यम से अग्रिम जमानत प्राप्त कर जमानत अवधि में धन-बल एवं बाहु-बल के द्वारा मुख्य गवाहों और परिस्थितियों का रुख अपनी ओर करने में सफल हो जाते हैं। 
यह तो कानून के जानकार ही भली-भांति बता सकते हैं कि अग्रिम जमानत किन अपराधों में दी जाती है परन्तु एक साधारण नागरिक की हैसियत से मैं यह कह सकता हूं कि एक निर्दोष के लिए अग्रिम जमानत वरदान है तो यही शातिर अपराधी के लिए ढाल का काम करती है। 
- सत्येन्द्र शर्मा 'तरंग' 
देहरादून - उत्तराखण्ड
अग्रिम जमानत अपराधियों की ढाल बन रही है। संगीन से संगीन आपराधिक घटनाओं का अंजाम देने के बाद अपराधी अग्रिम जमानत के लिए कोर्ट में अर्जी डाल देते हैं। 
हालांकि अग्रिम जमानत का प्रावधान उचित कारण को देखते हुए किया गया था। कारण की कभी कभी निर्दोष लोगों के खिलाफ भी केश कर दिया जाता है। आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 438 के तहत किसी आरोपी के लिए प्रत्याशित जमानत (अग्रिम जमानत) कोर्ट से मांगना एक प्रावधान है। अग्रिम जमानत लेने के लिए जिला एवं सत्र न्यायाधीश की अदालत व उच्च न्यायालय में आवेदन करना पड़ता है। इसमे आपराधिक संहिता की धारा 438 का हवाला देना पड़ता है। साथ ही आरोपी को अग्रिम जमानत के लिए उचित कारण देना पड़ता है कि कोर्ट उसे अग्रिम जमानत किस आधार पर देगी। लेकिन अग्रिम जमानत अब अपराधियों की ढाल बनते जा रही है। यह अभी की बात नही है। इससे पहले भी अपराधी अग्रिम जमानत का फायदा उठाते रहे है। अब टी अपराधी गोलीकांड, हत्या, चोरी, डकैती, बलात्कार जैसे घटनाओं का अंजाम देकर जोर्ट में अग्रिम जमानत के लिए अर्जी देते हैं। इस स्थिति में अब अपराधियों की ढाल बन गया है अग्रिम जमानत
भारतय संविधान की अनोखी प्रक्रिया अग्रिम जमानत है। इससे अपराधियों के हौसलों को नयी उडान मिल रही है। अपराध करते वक्त निरतंर निडरता के भाव पक्ष को अपराधी समक्ष कर रहा। देश की 135करोड़ की आबादी मे कोई सुरक्षित नही है। सडकों पर दहशत का माहौल है। बेहद ही खौफनाक मंजर है। ऐसे मे अपराधी के मन में हौसले और मजबूत हो रहे है। जमानत लेकर अपराधी तानाशाही कर रहे। यह दोमत नही कि अपराध जगत के तानाशाह को छूट मिल जायेगी। आज कोरोनाकाल के समय भी वैश्विक अर्थव्यवस्था पर हृदय पीडा़ से भर उठता है। चारों तरफ नफरतों के बाजारों मे चालाकी से अपराध को अंजाम दिया जा रहा।मार्मिकता से हत्याकांड हो रहे।गोली बारूद मानो जीवनशैली के साथ जूड चूके है। आकडों के माने तो मृत्युदर निंरतर अपने चरम सीमाएं लाघ रही जहन अपराध को अपराधी कर रहे और अग्रिम जमानत याचिका दायर कर के आजादी से अपने बाहर की दुनिया मे दहशतगर्दी मचा रहें।अतः अपराधियों की ढाल बेशक अग्रिम जमानत है। यह विचारणीय प्रश्न भी है।और संवेदनशील भी ।
धन्यवाद
- अंकिता सिन्हा साहित्यकार
जमशेदपुर - झारखंड
     भारत में भय नहीं रहा, कभी भी किसी भी तरह का अपराध कीजिये और आशीर्वाद प्राप्त कीजिये। इस तरह से अपराधित्व प्रवृत्तियों की संख्याओं में रिकॉर्ड तौड़ बढ़ोत्तियां   हो रही हैं। पूर्व राजाओं-महाराजाओं का शासन काल देख लीजिए, वहां कानून व्यवस्था इतनी दुरुस्त थी, कि अपराधी, अपराध करने को डरता था। रात्रि में आमतौर पर आमजन घरों के दरवाजे खुला कर सोया करते थे। स्वयं राजा-महाराजा भेष बदल कर रात्रि नगर का भ्रमण कर स्थितियों का अवलोकन कर, दूसरे दिन अपने सहयोगियों को वस्तुस्थितिओं से अवगत कराते हुए निष्पक्ष निर्णय लेते थे। आज पूर्ण रूपेण परिस्थितियाँ विपरित हो चुकी हैं। आज राजा दूसरों के भरोसे पर रहता और स्वयं अपनी सुरक्षा के बीच रहते हुए। अपराधियों को वृहद स्तर पर विभिन्न प्रकार के कार्यों में लिप्त हो रहे,  अपराधियों को संरक्षण प्रदान करते हुए वोटों के माध्यम से अपनी तैयारियां शुरू करता हैं और इसी का ही परिणाम हैं, कि न्याय व्यवस्थाओं में अपराधियों को तत्काल प्रभाव से अग्रिम जमानत पर रिहा कर दिया जाता हैं? अग्रिम जमानत मिलने पश्चात विजय जुलूस निकाल कर, उसका जगहों-जगहों पर बहुत-बहुत शुभकामनाएँ और बधाई दी  जाती हैं। उसे पूर्ण रूपेण संरक्षित करते हुए, उंचाई की ओर अग्रसरित  किया जाता हैं। "भाई तुम संधर्ष करों, हम तुम्हारे साथ हैं?" यह नारा चरितार्थ हो रहा हैं। अपराधियों को जड़ से मिटाना हैं, अग्रिम जमानत की जटिलताओं को तत्काल प्रभाव से खत्म करने की आवश्यकता प्रतीत होती हैं। लेकिन अग्रिम जमानत के सिद्धहस्त वकीलों की रोजी-रोटी भी मार खायेगी? परंतु निरंतर बढ़ते अपराधियों को अंकुश लगाने के अग्रिम जमानत ढाल को समाप्त करने की आवश्यकता प्रतीत होती हैं। अग्रिम जमानत पर रिहा होने के उपरान्त स्वतंत्र रुप से पुनः क्रियाशील रहता हैं? जब तक अपराधियों का निर्णय नहीं हो जाता, तब तक जेल में रखने की आवश्यकता हैं, इससे कुछ हद तक तो अपराधियों की संख्याओं को कम तथा कानून व्यवस्था सुदृढ़ होगी। जिस तरह से कोरोना महामारी के दौरान लाँकडाऊन लगाकर जन जीवन को स्वतंत्र पूर्वक कानून स्थितियों को नियंत्रित किया गया था, वैसी ही व्यवस्था दीर्घकालिक योजनाओं क्रियान्वित किया जाना चाहिये?
- आचार्य डाॅ.वीरेन्द्र सिंह गहरवार 'वीर'
  बालाघाट - मध्यप्रदेश
 अग्रिम जमानत किसी विशेष परिस्थिति पर ही दी जाती है।
 लेकिन वर्तमान में अग्रिम जमानत का अधिकाधिक उपयोग किया जा रहा है इससे पता चलता है कि अपराधी को और अपराध करने की छोड़ दी जा रही है ऐसा लगता है यह ज्यादातर पैसे वाले अपराधियों में देखा जाता है पैसे की बगल में अन्याय को भी न्याय में बदल कर अपराधी अपराध कर सुखचैन से समाज में घूमता है और अगर कहीं उसकी निंदा हुई तो फिर अपराध में जुड़ जाता है इससे यही कहते बनता है की अग्रिम जमानत बन रही है अपराधियों की ढाल अर्थात अपराधी इस नियम का गलत उपयोग कर समाज में और अराजकता फैलाने में अपना योगदान करते हैं। जिससे समाज में अनेक प्रकार की वार्ताएं होती रहती है। आजकल अपराध मामूली कार्य हो गया है क्योंकि इसके बदले में अग्रिम जमानत जो बनी हुई है। इसका दुरुपयोग कर अपराधी गिरफ्तारी से बच रहा है जिसका बुरा असर समाज में फैलने लगता है। अग्रिम जमानत से अपराधी बच तो जाता है लेकिन लोगों की भावनाओं से उपेक्षित जिंदगी जीता है ।लोग उसकी उपेक्षा करते हैं ऐसा जिंदगी  जीता हुआ  अपराधी अपना शान  समझता है। इंसानियत खत्म हो जाती है । अपराधी अग्रिम जमानत से बच तो जाता है ,लेकिन समाज में मृतप्राय की समान जीता है।
- उर्मिला सिदार
रायगढ़ - छत्तीसगढ़
अग्रिम जमानत का अर्थ है कि अगर किसी आरोपी को पहले से आभास है कि वो किसी मामले में गिरफ्तार हो सकता है तो वो गिरफ्तारी से बचने के लिए सीआरपीसी की धारा 438 के तहत अग्रिम जमानत की अर्जी कोर्ट में लगा सकता है। कोर्ट अगर अग्रिम जमानत दे देता है तो अगले आदेश तक आरोपी व्यक्ति को इस मामले में गिरफ्तार नहीं किया जा सकता ।  कानून के इसी प्रावधान का लाभ उठा कर दुर्दांत से दुर्दांत अपराधी ढाल बना लेते हैं.  और ऐसा करने में वे अकेले नहीं होते बल्कि उन्हें संरक्षण देने वाले और उनके द्वारा नियुक्त कानून ज्ञाता होते हैं. इसी प्रावधान का जोड़ तोड़ कर लाभ उठा कर निर्मम कांड करने के बाद भी अपराधी कानून की गिरफ़्त से बाहर रहता है. तो यह कहने में कोई अतिश्योक्ति न होगी कि अग्रिम जमानत अपराधियों की ढाल बनती जा रही है. 
- सुदर्शन खन्ना
 दिल्ली
अग्रीम ज़मानत का मतलब है कि अगर किसी को यह आभास होता है कि उसकी गिरफ़्तारी होनी है तो वह अपने बचाव के तहत 438 धारा के तहत अग्रीम ज़मानत ले सकता है !
और तत्काल गिरफ़्तारी से बच जाता है .,
अग्रीम ज़मानत केवल असाधारण परिस्थितियों में दी जानी चाहिए, लेकिन आजकल अग्रिम जमानत नियमित रूप से दी जाने लगी। ऐसा कर दोषी को ढाल मिल रही है, जो नहीं होना चाहिए।
बडे आराम से अग्रीम ज़मानत लेकर अपराधी घुमा करते है जो बहुत और ख़तरनाक है !
अपराधियों को तो अग्रीम ज़मानत देना ही नहीं चाहिए !
अग्रीम ज़मानत  अपराधियों के लिए अमानत बन जाता 
अपराध करने के पहले ज़मानत ले लो , आराम से अपराध करो गिरफ़्तारी तो होनी नहीं है !
आराम से अपराधिकतत्व संविधान की आँख में धूल झोंककर कर घूमते हैं ! 
अग्रीम जमानत बहुत असाधारण परिस्थितियों में दी जानी होती है और नियमित रूप से नहीं। इसका उद्देश्य निर्दोष व्यक्तियों को उत्पीड़न और असुविधा से बचाना है, न कि दोषी व्यक्तियों और अपराधियों को जांच एजेंसी द्वारा हिरासत में पूछताछ से बचाना है।
हमारे क़ानून में निर्दोष को सजा न हो वाली भावना सर्वोपरि है 
अग्रिम जमानत को निश्चित अवधि तक सीमित नहीं किया जाता ! लेकिन अगर अग्रिम जमानत की अवधि को सीमित करने के लिए कोई विशेष या अजीब हालात हैं तो अदालत आवश्यकतानुसार कदम उठा सकती हैं।
अग्रीम ज़मानत अपराधियों के लिए ढाल का काम करती है 
मेरे हिसाब से अग्रीम ज़मानत होनी चाहिए पर केस देख कर 
कई बार लोगो को झूठे केस में भी फँसाया जाता है , सास ससुर 
देवर ,ननद को कई बार दहेज के या उत्पीडन के झूठे केस में फँसाने की कोशीश की जाती है 
इस समय अग्रीम ज़मानत राहत देती है बेक़सूरों को ! 
- डॉ अलका पाण्डेय
 मुम्बई - महाराष्ट्र
बिल्कुल सही बात है।अग्रिम जमानत ले लेने से उनका हौसला बढ़ जाता है और वे मुखर हो जाते हैं।जिसमे जज की कोई गलती नही है क्योंकि वे कानून के अनुसार ऐसा करते है।इसमें होना ये चाहिए कि कानून में जो भी प्रक्रियागत खामियां हैं उनको शीघ्र अतिशीघ्र कानून बना कर दूर किया जाए।माननीय सुप्रीम कोर्ट को भी इस परेशानी से अवगत कराया जाए।तब ही इसका निराकरण होने की कुछ उम्मीद बनती है।सतज में सबसे बड़ा यक्ष प्रश्न है कि भ्रष्टाचार को कैसे खत्म किया जाए।पुलिस न्यायपालिका और कार्यपालिका में जिस तरह भ्रष्टाचार ने अपनी मजबूत जड़े जमा ली हैं उसको देखते हुए अग्रिम जमानत ले लेने की समस्या कोई बड़ी समस्या नही है बल्कि इसका ही एक फल है।
- रोहन जैन
देहरादून - उत्तराखंड
न्यायालय का यह प्रावधान बिल्कुल गलत है । यधपि किसी व्यक्ति पर कोई आरोप है , तो वह पुलिस कस्टडी में होना चाहिए । ताकि कानून अपने तरीके से उससे पूछताछ कर सके । न्यायालय का आरोपितों के गिरफ्तार होने से पहले ही उन्हें आजादी घूमने का लाइसेंस दे देना समाज में दबे कुचले लोगो के न केवल मन को ठेंस पहुंचाता है बल्कि ऐसे लोगो का कानून ओर न्याय पर से भरोसा ही उठ जाता है ।
अक्सर समाज मे कानून और न्याय के पढ़े जाने वाले कसीदों में वाक्य अक्सर से सुने जा सकते है कि कानून और पुलिस उसी की है जिसकी जेब मे पैसा है । है ना कमाल की बात । ऐसा भी नही वे कि हर बार पुलिस ही गलत हो कुछ यंग पुलिस मैन कुछ करना चाहते परंतु सिस्टम के आगे वो भी मजबूर हो जाते है । जिन्हें सीनियर अधिकारियों का सामना करना पड़ता , फिर नेताओ का और न्यायालय के सरकारी कागज देख कर तो साहब मुजरिम की पर यकीन करने को जी चाहने लगता है कि वाकई ये भाईसाहब बेकसूर है । पीड़ित कहीं ओर गुलछर्रे उड़ा कर भले मानुष पर रेप का आरोप लगा रही है , जो व्यक्ति मरा है वह जरूर खेलते कूदते गिरने से चोट लगकर घायल हो गया होगा और मौत हो गई होगी । वेवजह भले मानुष पर मर्डर का आरोप लगा रहा है क्योंकि न्यायालय को थोड़ा ही सही पर यकीन तो है । तभी तो उसे खुले घूमने ओर सबूत मिटाने व नए अपराध करने के लिए खुला छोड़ दिया है ।।
- परीक्षीत गुप्ता
बिजनौर -  उत्तरप्रदेश
मेरे विचार से यह उचित है,अग्रिम जमानत बन गई है ढाल। 
पिछले महीने जून  में सामाचार से जानकारी मिली है की पंजाब एंड हरियाणा हाई कोर्ट ने भी इस  बात पर कुछ चर्चा करके टिपणी किए हैं:- अग्रिम जमानत बन रहा है अपराधियों की ढाल, केवल  असाधारण परिस्थितियों में ही मिले।
 बेल या जमानत क्या है।
बेल यार ज़मानत कितने प्रकार के होते हैं। तीन प्रकार के होते हैं:-1) जमानतीये अपराध।2) आज़मानतीय अपराध 3) अग्रिम बेल। यह भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता की धारा -2 के अनुसार है।
कोर्ट से कैसे बेले ले :-
जब कोई व्यक्ति यह समझता है की मुझे झूठे केस में फसाया जा रहा है,और हो सकता है गिरफ्तार भी किया जाए।तब कोर्ट में आवेदन देकर, अग्रिम जमानत के लिए आवेदन कर सकता है। ऐसे में न्यायालय निर्देश देती है उस व्यक्ति को पहले जमानत दे देते हैं जिससे आरोपी व्यक्ति को इस मामले में गिरफ्तार नहीं किया जा सकता है।
लेखक का विचार:- न्यायालय समझ बूझ कर अग्रिम जमानत दे। भारतीय संविधान  बहुत लचीलापन है इसमें कुछ कठोर होने की आवश्यकता है ।
- विजयेंद्र मोहन
बोकारो - झारखण्ड
अग्रिम जमानत हमेशा ही एक ढाल सिद्ध हुई है।यदि अपराधियों के परिपेक्ष में देखें तो यह ढाल ही नहीं बल्कि वरदान सी सिद्ध होती नजर आती है।क्योंकि जब उसको किसी अपराध के लिए पकड़ा जाता है या पकड़ने की तैयारी होती है तो उसका वकील अग्रिम जमानत के लिए पर्चा दाखिल कर देता है।तब तक उसे और मौका मिल जाता है अपने जुर्म के सबूत के साथ खेलकर अपने पक्ष में करने का।इतना ही नहीं कई मौकों पर तो यहां तक भी देखा गया है कि अग्रिम जमानत मिलते ही वह अपने खिलाफ सबूत को मिटा भी देता है।
        अग्रिम जमानत एक प्रकार से अपराधी को अदालत में अपने बचाव के लिए और अधिक जुर्म करने का मौका ही देती है। सबूत मिटाने के चक्कर में वो कई घिनौने जुर्म फिर से दोहरा देता है ताकि अदालत उसे  बरी कर दे।इस प्रकार अपराधियों को अग्रिम जमानत उन्हें ढाल प्रदान करना है।जिससे कि वे कुछ और जुर्म कर सकें।
- नरेश सिंह नयाल
देहरादून - उत्तराखंड
क्या अग्रिम जमानत अपराधियों की ढाल बन रही है जहाँ तक इस बात का प्रश्न है तो इसे काफी हद तक इस बात को सही कहा जा सकता है परंतु 100% नहीं है अग्रिम जमानत प्राप्त करके अपराधी उसे  प्राप्त समय का उपयोग अपराध के साक्ष्यों को मिटाने और अपने पक्ष को मदबूत करने के लिए साधन एकत्रित करने में करता है और ऐसे रास्ते तलाशता है जिससे उसे कम से कम सजा मिल सके और कानून ही उसका मददगार सिद्ध हो सके इस प्रकार वह कानून का ही उपयोग करके अपनी परेशानियों को कम करता है और यदि वह इसमें कामयाब रहता है तो फिर समाज एवं व्यवस्था के लिए और अधिक परेशानी का कारण भी बनता अतः यह कहा जा सकता है की अग्रिम जमानत अपराधियों के लिए एक सुरक्षा कवच या ढाल का काम बहुत हद तक करती है वास्तव मे इस देश की सारी समस्याओं का प्रमुख कारण बडी जनसंख्या है न्यायालयों मे भी वादियों की भारी भीड है और न्याय मिलने में भी काफी समय लगता है इसका निदान बहुत आवश्यक है
- प्रमोद कुमार प्रेम 
नजीबाबाद - उत्तर प्रदेश
यह बात हंड्रेड परसेंट सच है अपराधी को जब यह बोध होने लगता है कि उसे उस अपराध की सजा मिलेगी तो वह कोर्ट में पहले से ही जमानत की याचिका दर्ज कर देता है और अपने लिए पहले से जमानत लेने की व्यवस्था कर लेता है इस तरह अपराधी के अंदर अपराध करने से सजा मिलने का कोई डर ही नहीं रहता वह खुलेआम समाज में घूमते रहते हैं इसलिए आज के समाज में लूट , बलात्कार जैसे मामलेके अपराधियों को डर नहीं रहता है।आसानी से बच जाएंगे कुल मिलाकर कोट और पूरी शासन व्यवस्था पैसे वालों की है। वे लोग अपने दौलत के बल पर कुछ भी कर सकते हैं गरीब जनता की कोई कहीं सुनवाई नहीं है वे लोग करोड़ों का घोटाला करके विदेश भाग सकते हैं और जमानत पर छूटे रहते हैं। इसीलिए आम आदमी का कानूनी व्यवस्था से विश्वास उठ गया है और वह अपराधियों को अपराध करते देखकर भी सजा दिलाने की या गवाही देने की हिम्मत नहीं करते हैं। यह कानूनी व्यवस्था में सदियों से यही चलता आ रहा है। अपराधियों के अंदर कानून का कोई डर ही नहीं है।
क्योंकि उन्हें पता है कि वकील उन्हें सजा से बचा लेंगे ,हमारा कानून बहुत ही लचीला है। सबूत और गवाह दोनों ही दिखते हैं भगवान जाने क्या होगा। कब एक नया सूरज उदय होगा।
- प्रीति मिश्रा 
जबलपुर - मध्य प्रदेश
      जमानत की आवश्यकता अपराध की श्रेणी में फंस चुके या अपराधिक षड्यंत्र में फंसाये जा चुके व्यक्ति को ही पड़ती है। जिसका निर्णय माननीय विद्वान न्यायाधीश महोदय ने अपनी योग्यता अनुसार करना होता है। क्योंकि अपराधिक प्रवृत्ति को पहचानना न्यायाधीश की चतुराई एवं बुद्धिमत्ता पर निर्भर करता है‌। चूंकि अपराधी या तथाकथित अपराधी का सम्पूर्ण भविष्य न्यायाधीश द्वारा किए निर्णय पर आधारित होता है और न्यायपालिका एवं न्यायाधीश की गरिमा भी दांव पर लगी होती है।
      कहते भी हैं कि कोई भी अपराधी मां की कोख से जन्म नहीं लेता। बल्कि उसे अपराधी वक्त, हालात एवं विवशता इत्यादि बनाते हैं। ऐसे में न्यायाधीश का न्याय दिशा-निर्देश का काम करता है कि उक्त भुक्तभोगी समाज के किस रास्ते पर जाए? अर्थात अपराध की दुनिया अपनाए या अपराध को रोकने की भूमिका निभाए‌। जिसमें अग्रिम जमानत की भूमिका एहम होती है‌। जिसके अंतर्गत अपराधिक माफिया की साजिशों को नंगा करने के लिए अग्रिम जमानत अति आवश्यक होती है। 
      हालांकि इसके बावजूद इसमें कोई दोराय नहींं कि अपराधी अग्रिम जमानत का दुरुपयोग कर रहे हैं। किन्तु यह भी आवश्यक नहींं है कि अग्रिम जमानत प्रायः अपराधियों की ढाल ही बने।
- इन्दु भूषण बाली
जम्मू - जम्मू कश्मीर
अपराध की दुनिया में अग्रिम जमानत अपराधियों के लिए एक डाल अवश्य बन गई है प्रायर वे अपराधी जिन्हें इस बात का संदेह बना रहता है कि अपराध के बाद उन्हें सजा अवश्य मिलेगी वह अपने को सुरक्षित रखने के लिए अग्रिम जमानत की व्यवस्था पहले से कर चुके होते हैं और अग्रिम जमानत होने के बाद अपराध करने के बाद वह स्वयं को बहुत दिनों तक सुरक्षित रखे रहते हैं
अग्रिम जमानत अपराधियों को अपराध का बढ़ावा तो दे ही रहा है लेकिन दूसरा पक्ष यह भी है कि कभी-कभी यह भी देखा गया है बिना अपराध के भी कूटनीति के तहत एक दूसरे को अपराध की दुनिया में फंसाने के लिए तैयार रहते हैं ऐसी हालत में यह अग्रिम जमानत एक सकारात्मक कदम होता है लेकिन सही मायने में जो अपराध करने के उद्देश्य से जीवन जी रहा है और अपराधी बना हुआ है उसके लिए यह बिल्कुल ही नकारात्मक है
यही कारण है कि आज समाज में लूट चोरी अत्याचार बलात्कार ठगी की दुनिया बहुत बड़ी हो गई है यह भी दुनिया दो तरह की है एक तो वैसे है जो अपनी आर्थिक समस्याओं को सुलझाने के लिए ऐसे कदम उठाते हैं और एक दुनिया वह है जो इतने महत्वाकांक्षी होते हैं कि अपराध के माध्यम से अपनी महत्वाकांक्षा को पूरा करना चाहते हैं तो दोनों दृष्टि से यह अपराधी है हीरा का चोर चाहे खीरा का चोर चोर चोर ही होता है एक पैसे का गमन चाहे लाख का गबन यह दोनों अपराधी होता है तो अपराध की दुनिया में अग्रिम जमानत अपराधियों का ढाल बना हुआ है यद्यपि के यह सुरक्षा की दृष्टि से यह नियम बनाया गया था पर इस नियम का रूप बदलकर आज की दुनिया में प्रयोग हो रहा है
अपराध करने के बाद जमानत पर छूटे रहते हैं अभी देखिए निर्भया केस में बलात्कार के बाद भी जमानत हुआ और छोटे हैं वह व्यक्ति जो नाबालिक है वह ऐसा कार्य कर सकता है तो वह नाबालिग कैसे कहलाया कहीं न कहीं हमारे कानून व्यवस्था में और शक्ति की आवश्यकता है और जमानत पर छूटा रहा और उसे रिपोर्ट होम में भेज दिया गया
न्यायपालिका को न्याय के लिए सत्य का रा अपनाना अवश्य है तभी अपराध की दुनिया का दर्द कम होगा
- कुमकुम वेद सेन
मुम्बई - महाराष्ट्र
अपराधी हर वो तरीका अपनाता है जिसके द्वारा वह अपराध करने के बावजूद बच जाए ।यह अग्रिम जमानत अपराधियों के लिए ढाल का काम करता है ।जिसका उपयोग आजकल हर अपराधी अपने बचाव हेतु करते हैं । पकड़े जाएंगे और फिर जेल जाना पड़ेगा ये हर अपराधी जानता हीं है ।फलत:  आजकल ऐसी नौबत ना आए पकड़े जाने के बाद,, इसीलिए अपराधी अग्रिम जमानत करवा कर खुद को कुछ और दिन आजाद का जश्न मनाते हैं । अग्रिम जमानत एक कानूनी प्रक्रिया है जो हर अपराधी को आसानी से नहीं मिलता है , लेकिन पैरवी , पैसा और रौब "कुछ खास लोगों के संरक्षण "के बल पर वो अग्रिम जमानत पा हीं लेते हैं । 
- डॉ पूनम देवा
पटना - बिहार

" मेरी दृष्टि में " अपराधियों की अग्रिम  जमानत की परिभाषा को पुनः तैयार करना चाहिए । जिसमें अपराध स्पष्ट नजर आता हो , उस केस में अग्रिम जमानत नहीं होनी चाहिए । वकीलों को तथ्य छुपाने के लिए दण्ड आदि जैसी व्यवस्था होनी चाहिए ।
                                        - बीजेन्द्र जैमिनी 
सम्मान पत्र 

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