चरित्र से कर्म बनता है, तो जाने चरित्र क्या है ? चरित्र से तात्पर्य है- आचरण, चाल- चलन और हमारे क्रियाकलाप ।यह सच है हमारे नैतिक गुण, आदतें ,स्वभाव ही विचारों में दिखाई देते हैं, जैसे- हमारी दयालुता, ईमानदारी, सत्यता ,परोपकारिता जैसी सद्गुण जब हमारे कर्मों में झलकते हैं तो हमारे यही सुकर्म हमें चरित्रवान की उपाधि दिलाते हैं ।फिर अच्छे कर्म ही हमारे भाग्य में सहायक भी होते हैं। जब हम अच्छे कार्य करते हैं तो वैसा ही फल भगवान देता है। दीन दुखी प्राणियों की सेवा, सहायता उनका संरक्षण, दान- पुण्य जैसी चारित्रिक क्रियाएं कर्म प्रधानता के परिणाम स्वरुप हमें चरित्रवान और भाग्यवान बनाती हैं। कहा भी गया है -"जैसा कर्म करोगे, वैसा फल देगा भगवान" यह गीता का ज्ञान ।अन्यथा प्रारब्ध का फल तो हर एक को भोगना ही पड़ता है। इसीलिए सबको अच्छे कर्म करते हुए चरित्र निर्माण करना चाहिए। महापुरुषों का चरित्र इसलिए ही अनुकरणीय माना जाता है। यह भी सत्य है---
कर्म प्रधान विश्व रचि राखा ।
जो जस करे सो फल चाखा।।
- डॉ. रेखा सक्सेना
मुरादाबाद - उत्तर प्रदेश
जीवन में चरित्र सबसे बड़ा प्रबल होता है अच्छा बनना अपने ऊपर निर्भर करता है, कभी-कभी अच्छा चरित्र बनाते-बनाते विपरीत दिशा में पहुंच जाते है, जिसका परिणाम अप्रगति मय हो जाता है जिससे अकर्म बनता है,कर्म से बनता है भाग्य, हम प्रतिदिन अच्छा कर्म करेंगे, तब ही निर्भर करता है, भाग्य बनाना। अगर कर्म और भाग्य ही परिस्थिति वश बदल जाए, तो हम कह सकते है, पूर्व जन्म का प्रतिफल है। जरुरी नहीं प्रतिदिन पूजा-पाठ करना और दूसरों की बुराई कर रहे हो, घंटी हिला-हिला कर परिश्रम कर रहे हो, कोई मतलब नहीं कर्म और भाग्य की परिभ्रमण पर भी ध्यानाकर्षण केन्द्रित करना चाहिए।
- आचार्य डाॅ.वीरेन्द्र सिंह गहरवार "वीर"
बालाघाट - मध्यप्रदेश
कस्तूरी शुचि-कर्म है,महके सदा चरित्र। ज्योति-पुंज बन भाग्य का,खींचे अनुपम चित्र।।
सत्य है , हमारा अपना चरित्र ही कर्म निर्माण करता है और इस कर्म से ही अपना भाग्य बनता है।हमें जो जन्म मिला है वो पिछले कर्मों के आधार पर ही निर्धारित है।एक शिशु का किसी कुल में जन्म लेना राजा के ,रंक के सब भाग्य पर ही आश्रित है। वर्तमान का कर्म नहीं होता ,वह तो पिछला कर्म और चरित्र ही था जो भाग्य विधाता को निर्णय करवाता है ।
आना-जाना ज़िंदगी,सच्चा मानव धर्म।
धरती पर छूटे सभी,साथ चलेगा कर्म।।
साथ चलेगा कर्म,सदा यह भाग्यविधाता।
व्यर्थ नहीं यह देह,कर्म कर कहते दाता।।
जन्म-मृत्यु का चक्र,हर्ष-दुख का है गाना।
पार चक्र है मोक्ष, नहीं फिर आना-जाना।।
- वर्तिका अग्रवाल 'वरदा'
वाराणसी - उत्तर प्रदेश
कहा गया है, धन गया तो कुछ नहीं गया। स्वास्थ्य गया तो कुछ गया, किंतु चरित्र गया तो सब कुछ गया। यानी चरित्र जीवन की सबसे बड़ी पूंजी होती है। शिक्षा का मूल उद्देश्य चरित्र निर्माण ही होता है। चरित्र से कर्म बनता है।सच्चरित्र से सद्कर्म होते हैं और दुश्चरित्र से दुष्कर्म। इन्हीं कर्म के आधार पर भाग्य निर्धारित होता है और भाग्य से सुख-दुख मिलते हैं। अत: हमें सबसे पहले अपने चरित्र निर्माण को प्राथमिकता देना है ताकि हमारे कर्म अच्छे रहें। अच्छे कर्म होंगे तो भाग्य भी संवरेगा।भाग्य संवरेगा तो हमारी सुख-समृद्धि होगी, हमारे कष्टों को क्षरण होगा, निवारण होगा। यही जीवन का सार है।
- नरेन्द्र श्रीवास्तव
गाडरवारा - मध्यप्रदेश
चरित्र मानव की अनमोल धरोहर है उत्तम चरित्र से ही कर्म हम करते हैं।मानव के व्यक्तित्व की पहचान उसके चारित्रिक गुणों से ही होती है। चरित्र में प्रेम,दया, सहानुभूति, परोपकार,सेवा, सद्भावना,संयम,करूणा, ईमानदारी, विश्वसनीयता का गुण होना आवश्यक है।ये गुण अगर मौजूद हैं तो समझिए मानव का चरित्र श्रेषट है उससे कर्म बनता है। कर्म को फलीभूत करने सफलता हासिल करने में हमारे चरित्र की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। चरित्र अगर दागदार है तो कर्म भी बुरे होंगे,दुषचरित्र मानव का व्यक्तित्व भी निकृष्ट दर्जै का होगा।सोच, लियाकत भी गिरे स्तर की होगी।जो कि उसके व्यक्तित्व का सूचक है। सद्चरित्र मानव कर्म बढ़िया करता है कर्म में सफलता प्राप्त करता है। समाज में मान-सम्मान में वृद्धि होती है।पद- प्रतिष्ठा प्राप्त करता है। सबके मुख से कर्मों की प्रशंसा बयां की जाती है।जिसे अनमोल अमानत माना जाता है।दूसरी ओर कर्म से ही भाग्य बनता है। कर्म सही हों तो सफलता मिलेगी ही अच्छे कर्म का फल अच्छा ही मिलेगा।जैसा बीज बोओगे वैसा ही फल मिलेगा। इसलिए कर्म से ही भाग्य को बनाया जाता है।हम कर्म न करें सिर पे हाथ धरकर बैठें रहें तो भाग्य साथ नहीं देता। भाग्य बनाने में कर्म की महत्वपूर्ण भूमिका रहती है। हमें कर्मवीर बनना चाहिए,अच्छे आचरण करना चाहिए। संस्कारी बनना चाहिए। चरित्र उत्तम व आदर्श स्थापित करने वाला हो। चरित्र से कर्म बनता है चरित्र को सही रखिए।गलत संस्कार में न पढ़िए। हमेशा चरित्र को निर्मल, उज्जवल बनाकर रखें। भाग्य को बनाने में कर्मवीर बने।मेहनत करें, मनोयोग से पूरी ताकत व ऊर्जा के साथ एकाग्रचित्त होकर तभी सफलता के शिखर को हम छू सकते हैं। अपना लक्ष्य हासिल कर सकते हैं।
उत्तम चरित्र है श्रेषट नागरिक की पहचान।
श्रेषट कर्म से बनता भाग्य,मानव बने महान।
चरित्रवान की प्रशंसा होती करते सभी गुणगान।
भाग्यवान सफलता कर ,पाता पद-प्रतिष्ठा, कीर्तिमान।
गढ़ता नित नये आयाम, छू लेता बुलंदियों का आसमान।
कमाता नाम, मिलता पहचान,जन- जन करते हैं बखान।
- डॉ. माधुरी त्रिपाठी
रायगढ़ - छत्तीसगढ़
किसी भी व्यक्ति का जैसा चरित्र होता है उसी के अनुसार वह कर्म करता है या उसका कर्म बन जाता है. जैसे कोई पढ़ा लिखा समझदार आदमी कोई गलत कार्य करने के बारे में सौ बार सोचेगा.और यानी चरित्र के अनुसार ही वह कर्म करेगा. और जैसा कर्म करेगा वैसा तो फल मिलेगा और भाग्य भी वैसा ही बनेगा. इसलिए कहा जाता है कि मनुष्य अपने भाग्य का निर्माता स्वयं होता है. इसलिए यह बात सत्य होता है कि चरित्र से बनता है कर्म और कर्म से बनता है भाग्य. इस बात को और सत्य करता है विद्यार्थी जीवन. कर्म कर यानी अच्छी तरह से पढ़ाई कर उच्च से उच्च सम्मानित पद प्राप्त कर लेते हैं. चरित्रवान ही गुणवान और प्रतिष्ठावान होते हैं.
- दिनेश चंद्र प्रसाद "दीनेश "
कलकत्ता - प. बंगाल
चरित्र से बनता है कर्म ,कर्म से बनता है भाग्य.... चरित्र, कर्म, और भाग्य तीनों का अच्छा भाईचारा है। मनुष्य का स्वभाव, उसके विचार ही उसका चरित्र है। हमें हमारे विचारों पर नियंत्रण रखना चाहिए। हमारा स्वभाव, विचार यानी हमारा चरित्र निर्मल और पाक है तो हमारे कर्म भी अच्छे होंगे। कर्मठ व्यक्ति हमेशा अपने मेहनत,परिश्रम को ही आगे रखता है। उसका कर्म ही उसका भाग्य होता है किंतु आलसी व्यक्ति बिना मेहनत किए अपने भाग्य को ही कोसता है। मेहनत से ही अपने कर्म का फल मिलता है एवं उसी मेहनत के फल की प्राप्ती को वह अपना भाग्य बनाता है। इस तरह चरित्र से कर्म एवं कर्म से भाग्य बनता है ।
- चंद्रिका व्यास
मुंबई - महाराष्ट्र
चरित्र से बनता है कर्म, कर्म से बनता है भाग्य। यह कथन हमें जीवन का सर्वोच्च मार्गदर्शन देता है। व्यक्ति का चरित्र उसकी असली पहचान है क्योंकि सत्य, नैतिकता और दृढ़ता से परिपूर्ण जब चरित्र सशक्त होता है, तो उसके कर्म स्वाभाविक रूप से सही, साहसी और प्रेरक बनते हैं। ऐसे कर्म न केवल व्यक्ति के जीवन को ऊँचाइयों पर ले जाते हैं, बल्कि समाज और राष्ट्र के लिए भी उज्ज्वल उदाहरण स्थापित करते हैं। भाग्य केवल बाहरी परिस्थितियों का परिणाम नहीं है; यह चरित्र और कर्मों का प्रतिफल है। जो व्यक्ति अपने चरित्र को संवारता है और सत्कर्म करता है, उसका भाग्य स्वयं सकारात्मक ऊर्जा और अवसरों से संवारा जाता है। संक्षेप में, यह कथन हमें स्वयं के विकास और समाज सेवा दोनों की प्रेरणा देता है। यह हमें स्मरण कराता है कि भाग्य मात्र परिश्रम और संघर्ष से महान नहीं होता है, बल्कि अखंड चरित्र और सत्य कर्मों से बनता है।
- डॉ. इंदु भूषण बाली
ज्यौड़ियॉं (जम्मू) - जम्मू और कश्मीर
यह सत्य है कि हमारी सोच से ही हमारे चरित्र का निर्माण होता है और चरित्र निर्धारित करता है हम किस प्रकार का कर्म करना चाहेंगे। हमारा कर्म हमारे भाग्य का निर्माण करता है। भूतकाल में किए गए कर्म हमारा वर्तमान निर्धारित करते हैं व वर्तमान के कर्म हमारे भविष्य का निर्माण करते हैं। हमारा कर्म बनता है हमारी सोच, हमारे द्वारा प्रयोग किये गये शब्दों व हमारे कर्मों द्वारा। यदि हम किसी के प्रति ग़लत अथवा नकारात्मक सोच रखते हैं जैसी ईष्या, द्वेष आदि तो वह भी हमारा कर्म बनाता है।बेशक़ हम यह सोचें कि कोई तो नहीं जानता कि हम क्या सोच रहे हैं परंतु यह सच है कि हमारी सोच भी हमारे चरित्र, कर्म, भाग्य व स्वास्थ्य को शत प्रतिशत प्रभावित करती है। अतः महत्वपूर्ण है कि अपने कर्म के साथ-साथ हम अपनी सोच पर भी सोच का अंकुश बनाए रखें।अच्छे कर्मों द्वारा अच्छा स्वास्थ्य, चरित्र, कर्म व अच्छा भाग्य सुनिश्चित करें।
- रेनू चौहान
नई दिल्ली
कर्म चरित्र ही इंसानियत की पहचान है ! चरित्र निर्माण जो जन्म लेते गुरु से मिलती है और सबसे पहले गुरु माता पिता है जो अपने बच्चो को सन्मार्ग की ओर चलने प्रेरित करते बच्चो को गुरु का महत्व बताते , आगे चलकर अपने विवेक बुद्धि सत्य कर्म की ओर प्रेरित कर आत्मनिर्भर बनने की कला सिखाते है जो उनके कर्म पर आधारित हो कहते है मिट्टी माँ काली की पूजा काल में लाल फूल खिलते हिंदुस्तान बच्चों हँसता हुआ सबेरा हिंदुस्तान का लहराता जल यमुना काल में “ का आज भी कर्म प्रधान महात्मा गांधी नेहरू की कृति विचारों को भुलाया नहीं जा सकता जी अपने जीवन के अंतिम काल में कहते हम लाए है तूफ़ान किश्ती सभाल के इस देश को रखना मेरे बच्चों सम्भाल के हमारे पुरौधा मनीषी चरित्र निर्माण में कर्म प्रधान शिक्षा ही अमूल्य धरोहर है जिससे आपकी पहचान भाग्य कर्म से बनाती है ! "आदउ राम तपो वन दी गमनम" रामायण उद्देश्य धर्म कर्म चरित्र की रक्षा करना।सत्य और न्याय के महत्व को दर्शाया।सहनशीलता और त्याग राम के महत्वपूर्ण स्रोत है।रामायण नैतिक शिक्षा का एक महत्वपूर्ण स्रोत है, जो हमें जीवन के सही मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करता है।
- अनिता शरद झा
रायपुर - छत्तीसगढ़
यह कथन मानव जीवन के तीन सबसे महत्वपूर्ण स्तंभों—चरित्र, कर्म और भाग्य—की परस्पर श्रृंखला को स्पष्ट करते है।
1. चरित्र —
जड़ें जिस प्रकार वृक्ष की मजबूती उसकी जड़ों पर टिकी होती है, उसी प्रकार मनुष्य का सारा व्यक्तित्व उसके चरित्र से जन्म लेता है।
चरित्र में हमारे मूल्य, विचार, आदर्श और संस्कार शामिल हैं। यदि चरित्र निर्मल है, तो विचार सही होंगे और वही विचार आगे अच्छे कर्मों का आधार बनेंगे।
2. कर्म — शाखाएँ और फल
हमारे कर्म ही हमें पहचान देते हैं। चरित्र जैसा होगा, कर्म स्वतः वैसा ही बनेगा—
ईमानदार चरित्र से ईमानदार कर्म, साहसी चरित्र से वीर कर्म और निष्ठावान चरित्र से श्रेष्ठ कर्म जन्म लेते हैं। कर्म ही वह सेतु है जो आंतरिक दुनिया (चरित्र) को बाहरी दुनिया (परिणाम) से जोड़ता है।
3. भाग्य — परिणाम
अक्सर लोग भाग्य की शिकायत करते हैं, परंतु यह पंक्ति बताती है कि भाग्य कोई बाहरी शक्ति नहीं, बल्कि हमारे कर्मों का परिष्कृत प्रतिफल है। जब कर्म सही हों, तो समय भले देर करे, परिणाम अवश्य मिलता है।
इसलिए भाग्य को बदलने का एकमात्र रास्ता है—अपने कर्मों को उत्कृष्ट बनाना।
यह सूत्र हमें सिखाता है कि जीवन की वास्तविक शक्ति हमारे हाथों में ही है।
चरित्र → कर्म → भाग्य
यह एक सतत प्रवाह है।
यदि चरित्र को संस्कारों से दृढ़ किया जाए, कर्म को सत्यता और परिश्रम से सींचा जाए, तो भाग्य अवश्य उज्ज्वल होता है।
-डाॅ.छाया शर्मा
अजमेर - राजस्थान
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