वी. शांताराम स्मृति सम्मान - 2025
मनुष्य का जीवन वास्तव में एक बूँद की तरह क्षणभंगुर, सीमित और नाजुक है। बूँद छोटी होती है, कोमल होती है, और उसका अस्तित्व भी बहुत ज्यादा नहीं—कभी ओस बनकर चमक जाती है, कभी पानी बनकर मिट्टी में खो जाती है। इसी प्रकार मानव जीवन भी अस्थायी है—एक श्वास पर टिके हुए। यह नाजुकता हमें विनम्र बनाती है, कृतज्ञ बनाती है और सिखाती है कि समय सीमित है, इसलिए सद्गुणों का संचय करें। परन्तु इसके विपरीत, अहंकार सागर जैसा होता है—गहरा, उथल-पुथल भरा, असीम और अनेक बार विनाशकारी। सागर की तरह अहंकार भी व्यक्ति को अपने भीतर डुबो देता है। जितना बढ़ता है, उतना ही विवेक को निगल जाता है। जिसके पास अहंकार होता है, वह अपनी सीमाओं को भूल जाता है। वह यह मानने लगता है कि उसका समय, उसकी शक्ति और उसका अस्तित्व असीम है। और यही भ्रम उसे गलतियों, संघर्षों और दूरियों की ओर ले जाता है। यह कथन हमें स्मरण दिलाता है कि जीवन की छोटी-सी बूँद को सार्थक बनाना है तो अहंकार के सागर को शांत करना होगा। मनुष्य की महानता उसके कद में नहीं, उसके कृतित्व और विनम्रता में है। जैसे बूँद अपनी नमी से धरती को हरा-भरा कर देती है, वैसे ही अहंकार-मुक्त मनुष्य समाज को शीतलता, शांति और जीवन प्रदान करता है।
- डाॅ. छाया शर्मा
अजमेर - राजस्थान
एक प्रसिद्ध शायर ब्रह्म स्वरूप बेदिल ने कहा है- क्या भरोसा है जिंदगानी का आदमी बुलबुला है पानी का।सच यह पानी का बुलबुला ही तो है, जो न जाने कब फूट जाए। इस बुलबुले पर अहंकार करना मानव की नासमझी है। जो अहंकार करता है, वह नहीं जानता कि यह वह खारा सागर है, जिसमें देखने को तो अपार जलराशि है किंतु वह किसी मानव की प्यास नहीं बुझा सकता। वैसे हर मानव यह सब बातें जानता है, समझता है, बस मानता ही नहीं। जानने समझने से अधिक आवश्यक है उसे मानना। यदि इस बात को मान ले तो फिर इस बूंद सामान जीवन को सहजता से जिया जा सकता है। अहंकार के वशीभूत किसी का अपमान करना किसी को छोटा समझना और हेय दृष्टि से देखना निरर्थक है, इसलिए सदा अहंकार से बचना चाहिए और यह ध्यान रखना चाहिए कि जिंदगी रुपी पानी का बुलबुला कभी भी फूट सकता है।
- डॉ.अनिल शर्मा 'अनिल'
धामपुर - उत्तर प्रदेश
इंसान का जीवन बूँद के समान होता है ! बूँद कहती हमसे ही जल है जीवन है धरती की काया माया है !संसार का जीवन वास्तव में बूँद के समान होता है, छोटा अस्थायी होता है, लेकिन अंहकार सागर जैसा होता है, जो कि विशाल और अनंत होता है। प्रकृति की बूँद कहती अनेक नदियों नालों झरना झिरियाँ समाहित विशाल सागर समाहित हूँ पहाड़ों बादलों से कहती हूँ अब की बार तुम बरस ही जाना !वर्षा की बुन्दो में रास रंग मनुहार लिए तड़फ़ाया हैं भीषण गर्मी नेआस अब यहीं हैं !धरती की प्यास बुझा दो ! मन उपवन हरियाली में !! वर्षा की बूँदों से प्रेम रास संग मल्हार सुना दो ! तुम बरखा की रानी हो !!मैं शीतलता का मधुर एहसास हूँ तपती धूप भूमि की प्यास बुझा दो कृषकों का मन हर्षा दो जहाँ पानी की हर बूँद कहती हमसे ही जल है जीवन है धरती की काया माया है । परंतु अंहकार सागर जैसा होता, जो कि विशाल और अनंत होता है।लेकिन यह हमें वास्तविक सुख से वंचित करता है। अंहकार हमें अनंत दुःख की ओर ले जाता है, क्योंकि यह कभी भी संतुष्ट नहीं होता है।अंहकार हमें वास्तविकता से दूर करता है अहम मय जीवन अपने आसपास के लोगों संसार से अलग करता है। इंसान का जीवन अस्थायी होता है, इसलिए हमें इसे समझदारी से जीना चाहिए। सान का जीवन सादगी और नम्रता से भरा होना चाहिए, जिससे हम वास्तविक सुख प्राप्त कर सकें ।सान का जीवन संबंधों से भरा होना चाहिए, ।जिससे हम अपने आसपास के लोगों के साथ जुड़ सकें और उनके साथ सुख-दुःख साझा कर सकें।सोच की इकाई गंतव्य तक पहुँचा सकें । अपनी राहे सुगम तथ्य पूर्ण बना परम संतुष्टि का लक्ष्य प्राप्त करे! उड़ते बादलों को देख आस हर बूँद से मन आगंन में बरस अरमानो की नगरी में चाहत का बसेरा बना ,गिले शिकवे से दूर कर मन की व्याकुलता में शहद की मिठास घोल जाऊँ !पथिक राह की सरल सुगम बना,अंधेरो में रोशनी कर आहत दिलों में ममता जगाए!जड़ होते अहसासों को जीवन स्पंदन शीतलता का आभास कराए बूँद एहसास सागर जैसा अहंकार हो !
- अनिता शरद झा
रायपुर - छत्तीसगढ़
इंसान का जीवन बूँद के समान होता है। कबीरदास जी ने भी कहा है :-" पानी केरा बुदबुदा अस मानस की जात। देखत ही छुप जायेगा, ज्यों तारा परभात।।" जीवन को क्षणभंगुर भी माना गया है।आशय यही है कि जीवन का आकलन आयु से किया जाता है और आयु में अनिश्चितता का भाव रहता है। जीवन कब खत्म हो जाए, यह कह पाना असंभव ही है। इसलिए जीवन में बैर भाव को भूलकर सदैव प्रेमभाव से मिलजुलकर रहने की सीख दी जाती है और कटुता को बुरा माना गया है। जहां तक अहंकार की बात है, इसे प्रेम भाव का मुख्य शत्रु माना गया है। इसका क्षेत्र इतना विशाल होता है कि फिर जीवन का जैसे कोई अस्तित्व ही नहीं रह जाता। जीवन जहां बूँद के समान कहा जाता है, वहीं अहंकार को सागर जैसा कहा जाता है। कहाँ सागर और कहाँ बूँद? अर्थात अहंकार के आगे जीवन बौना...बिल्कुल बौना। यानी छोटे से जीवन यदि अहंकार आ गया तो फिर जीवन का कोई मूल्य नहीं, कोई अर्थ नहीं ।कुछ भी नहीं। इसीलिए जीवन में अहंकार नहीं आना चाहिए वरना वह पूरा जीवन अपने आगोश में समाहित कर लेगा। क्योंकि अहंकार ऐसा दुर्गुण है जो न संस्कारों को महत्व देता है, न नैतिकता को। उसके सामने सब कुछ तुच्छ। वही सब कुछ। ऐसा जीवन किस काम का? जिस प्रकार :-
बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर।
पंथी को छाया नहीं,फल लागे अति दूर।
- नरेन्द्र श्रीवास्तव
गाडरवारा - मध्यप्रदेश
ये सच है कि इंसान का जीवन बूंद के समान है अर्थात बहुत छोटा है व क्षणभंगुर है ! इतने छोटे से जीवन को हमें ठीक ढंग से जीना चाहिए , सद्भाव , सहयोग व आपसी सामंजस्य से ! छोटे से जीवन को इसलिए ठीक से जीना चाहिए क्योंकि यदि अहंकार प्रवेश कर गया , तौ उसके हानिकारक प्रभाव होते हैं ! कुछ लोगों का अहंकार इतना बड़ा हो जाता है कि वे उसके मद में डूबकर , सही गलत की पहचान भूल जाते हैं ! छोटे से जीवन और मरण मैं केवल एक सांस का फर्क है , तौ क्यों न अहंकार जैसे हानिकारक अवगुण को त्याग , अच्छा , जीवन जिया जाए !!
- नंदिता बाली
सोलन - हिमाचल प्रदेश
जीवन भी एक तरह से दो रुपों में बता हुआ है। सोचता कुछ है और करता कुछ है। जिसकी प्रतिदिन की क्रियाकलाप की योजना घर से प्रारंभ होती है, जब घर से बाहर जाता है, उसकी काम करने का तौर तरीका बिल्कुल बदल जाता है। याने इंसान का जीवन बूंद के समान होता है, परन्तु अंहकार सागर जैसा होता है। परिस्थितियां सब कुछ पल-पल में करवा देती है। हम दोष किसी को नहीं दे सकते। अपने विवेक के ऊपर निर्भर करता जरुर है। हम न्यायाधीश तो नहीं है, लेकिन न्यायाधीश भी अपने निर्णय में भी असफल जरुर होता है। सत्यता की पहचान करना अत्यन्त कठिन होता है। कर्मवीर बनकर अंहकार को रोक नहीं पाते, यही हमारे विनाश की ओर अग्रसर हो जाता है। पानी भी सर्व प्रथम बूंद से प्रारंभ करता है, अन्तत: विशाल रूप धारण कर लेता है, जो अंहकार परिदृश्य हो ही जाता है.....
- आचार्य डाॅ.वीरेन्द्र सिंह गहरवार "वीर"
बालाघाट - मध्यप्रदेश
इंसान का जीवन बूंद के समान होता है, परंतु अहंकार सागर जैसा होता है.... बहुत ही खूबसूरत बात कही है... सागर और जीवन में यही तो फर्क है, जीवन क्षणिक, क्षणभंगूर है और नश्वर है जबकि अहंकार का सागर विशाल....ईश्वर प्रदत्त हमारा यह जीवन बूंद की तरह है यानी क्षणिक है नश्वर है, क्षणभंगूर है ,यह बात हम सभी जानते हैं । इस खूबसूरत जीवन को हम अच्छे कर्म की ओर मोड़ दें तो हमारा जीवन सफल हो जाएगा। और हमारा कर्म ही हमारे अंतिम समय में साथ आएगा...फिर किस बात का अभिमान करते हैं। सागर अपने विशाल स्वरुप की वजह से दंभी होता है वह किसी के बस में नहीं होता। अहंकार भी वही है। इसीलिए तो अहंकार के आते ही इंसान भी बुद्धिहीन , दिशाहीन हो जाता है। सागर की तरह अहंकार की लहर उठती है तब वह अपना सर्वस्व खो विनाश की ओर बढ़ता है। अहंकार रावण का भी नहीं रहा किंतु जीवन के अंतिम चंद क्षणों में अपने ज्ञान को भुलकर (अहंकार को) नम्र हो राम के सम्मुख झूकते ही उसका जीवन सहज हो जाता है ,फिर क्यों हम अपने अहंकार की विशालता दिखाते हैं।
- चंद्रिका व्यास
मुंबई - महाराष्ट्र
यह सत्य है की जीवन नश्वर है एक बूंद की तरह जब की अंहकार की भावना असीमित और अथाह होती है जो किसी सागर से भी अधिक होती है,यह सब कुछ जानते हुए भी इंसान एक पानी का बुलवला है कभी भी खत्म हो सकता है लेकिन फिर भी इंसान का अंहकार सातवें आसमान तक होता है, अगर हम आज की चर्चा पर बात करें की इंसान का जीवन बूुद के समान होता है लेकिन अंहकार सागर जैसा होता है तो इसमें कोई शक की बात नहीं की जिंदगी का कोई भरोसा नहीं कभी भी कुछ भी हो सकता है फिर भी इंसान इतना घमंडी हो गया है की उसको इंसान ,इंसान ही नहीं दिखता, माना की जीवन बहुत अनमोल है लेकिन यह नश्वर भी है और किसी भी समय नष्ट हो सकता है लेकिन अंहकार ने इंसान को अंधा बना दिया है वो अपने आप को महान समझ कर दुसरों को नीचा दिखाने में कोई गुंजाइश नहीं रखता और यही इंसान के पतन का कारण बन सकता है, अंहकार रावण ,कंस ,दुर्योधन जैसों का नहीं चला तो आम आदमी का क्या होगा, देखा जाए अंहकार की वजह से संबंध खराब होते हैं तथा इंसानियत खत्म हो जाती है हमें चाहिए अंहकार को त्यागकर और विनम्रता को अपनाकर जीवन जीने में ही बुदिमता है लेकिन मनुष्य अपने सीमित अस्तित्व के बावजूद एक बहुत बड़ा घमंडी भाव रखता है जो उसकी बड़ी भूल है,अन्त में यही कहुंगा की इंसान को कभी घमंड नहीं करना चाहिए ताकि कम से कम इंसानियत जिंदा रह सके।
- डॉ सुदर्शन कुमार शर्मा
जम्मू - जम्मू व कश्मीर
बूंद-बूंद से सागर बनता है. बूंद सागर का एक छोटा-सा हिस्सा होती है, इंसान का जीवन बूंद के समान होता है लेकिन अहंकार सागर के समान! वह यह भूल जाता है कि बूंद सागर का केवल एक छोटा-सा हिस्सा होती है और विनम्रता से सागर में समा जाती है. कितनी बड़ी विडंबना है कि इंसान के अहंकार का किस्सा बहुत ही बड़ा है, इतना बड़ा अहंकार का पर्वत भला सागर में कैसे समा सकता है! इसलिए खुद को बूंद समझ कर विनम्र रहना चाहिए. बूंद को बूंद बनकर तैरते रहने दो, अहंकार के मद में डूबने मत दो.
- लीला तिवानी
सम्प्रति -ऑस्ट्रेलिया
मानव की काया क्षणभंगुर है। पंचतत्व से निर्मित काया पानी के बुलबुले के समान है।मानव जीवन बूंद के समान होता है।जब तक सांसें चलती रहती है तब तक आस है नहीं तो वो लाश है।बड़े भाग्य से मानश तन हमें मिला है।हम इसके लिए ईश्वर को शुक्रिया अदा करते हैं। नेक कर्म करके जीवन को सार्थक करना चाहिए।यही कर्मों का लेखा-जोखा ही तो साथ जाता है।बाकी सब कुछ यहां छूट जाता है। जीवन भर की पसीने की गाढ़ी कमाई,धन- दौलत, गहने - जेवर, गाड़ी - बंगला माया-मोह धरा का धरा रह जाता है। फिर भी ये संज्ञान में रहते हुए मानव अहंकार से चूर रहता है। अहंकार अथाह सागर जैसा होता है।तेरी- मेरी, छल-छिद्र की भावना विद्यमान रहती है।रूप,रंग,धन- दौलत,शोहरत,बल, बुद्धि का अहंकार व्याप्त रहता है।जबकि ये पल भर में लुप्त हो जाता है। अहंकार के कारण रावण का अंत हुआ।घमंड चूर हो गया। अहंकार के कारण कौरवों का नाश हुआ। अहंकार से धूमिल होती है। भविष्य अंधकारमय हो जाता है। अहंकार की आग में जलकर मानव ध्वस्त हो जाता है। अहंकार सबसे बड़ा अभिशाप है।ये दुर्गुण है जिसके कारण मानव अपने पतन का कारण स्वयं है। अहंकार के सागर में डूबकर मानव उबर नहीं पाया। डूबकर मर जाता है।इसी में ही उसके जीवन का इतिश्री हो जाता है। इंसान को को अपना जीवन पूजा-अर्चना, धर्म - कर्म, दान-पुण्य,प्रेम,दया,करूणा, परोपकार,संयम, सद्भावनाओं के साथ व्यतीत करनी चाहिए। अहंकार को त्यागना चाहिए तभी मानव का कल्याण होगा।
- डॉ. माधुरी त्रिपाठी
रायगढ़ - छत्तीसगढ़
" मेरी दृष्टि में " बूंद और अहंकार एक दूसरे के विपरीत चलने वाली दिशा में काम करते हैं। परन्तु अंहकार का अंत कभी अच्छा नहीं होता है। फिर भी सोच सभी की अपनी - अपनी होती है। चलनें का नाम जिंदगी है।
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