चंद्रकांत देवताले स्मृति सम्मान -2025
आजकल की दौड़ धूप में ज्यादातर लोग व्यस्त नजर आते हैं लेकिन फिर भी संतुष्ट नहीं होते हमेशा परेशान दिखते हैं जबकि हमें अपने आप को व्यस्त नहीं बल्कि व्यवस्थित रखना चाहिए ताकि हमारा जीवन सुखमय व आनंदमय ढंग से गुजर सके तो आईये आज की चर्चा इसी बात पर करते हैं कि खुद को व्यस्त नहीं बल्कि व्यवस्थित किजिए फिर जीवन एक दम स्वर्ग नजर आयेगा, मेरा मानना है कि जीवन को स्वर्ग बनाने के लिए व्यस्त नहीं बल्कि व्यवस्थित रखना जरूरी है क्योंकि व्यवस्थित जीवन में तनाव कम होता है हर कार्य नियमपूर्वक होता है और सफलता मिलने के भरपूर मौके मिलते हैं दुसरी तरफ व्यस्त जीवन में हमेशा जल्दबाजी दिखती है जो तनाव पैदा करती है जिससे जीवन में कामयाबी मिलना मुश्किल लगता है जबकि व्यवस्थित जीवन में संतुलन और स्पष्टता मिलती है तथा मानसिक शांति मिलती है जिससे चिंता और तनाव कम रहता है और जीवन एकदम स्वर्ग नजर आता है यही नहीं व्यवस्था से हर कार्य नियमानुसार होता है जिससे लक्ष्य को पूर्ण किया जा सकता है और जीवन उदेश्य पूर्ण लगता है तथा जीवन में सकारात्मकता आती है जिससे खुशी मिलती है और हर कार्य मलगता है जबकि व्यस्त रहने से तनाव, चिंता जल्दबाजी जन्म लेती हैं जिनसे मानसिक और शारीरिक रोग जन्म लेते हैं इंसान चाह कर भी सुखी नहीं रह सकता और जीवनशैली से जीवन का संतुलन खो देता है जिससे गलतियाँ होने की संभावना बढ़ जाती है कहने का भाव लगातार व्यस्त रहने से इंसान अपनी जिंदगी में असंतुष्ट रहता है जिससे जीवन का आनंद नहीं ले पाता और अपना भरपूर जीवन परेशानी में खो देता है,इसलिए हमें खुद को व्यस्त नहीं बल्कि व्यवस्थित रखना चाहिए ताकि हमारी जिंदगी नियमित रूप से आगे की तरफ बढ़त जारी रखे जिससे जीवन के हर पल का आनंद महसूस होता रहे और हमें हमारा जीवन हंसता खेलता एक दम स्वर्ग सा नजर आये।
- डॉ सुदर्शन कुमार शर्मा
जम्मू - जम्मू व कश्मीर
ख़ुद को व्यस्त नही व्यवस्थित कीजिए ! जब आप ख़ुद को व्यस्त व्यवस्थित रँखेंगे तभी आप अपने आप और दूसरों को संतुष्ट रख सकते है ! जिसके लिए दैनिक जीवन में नियमित दिनचर्या सुचारू रूप से अपने कर्मक्षेत्र में आगे बढ़ अपने लक्ष्य तक पहुँच सकते हैं । फिर जीवन एक दम स्वर्ग नजर आयेगा !व्यवस्थित जीवन के कई फायदे हैं:व्यवस्थित जीवन तनाव को कम करते समय का सदुपयोग करना सिखाते है । सकारात्मक सोच के साथ जीवन में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित रहते है सुखद अनुभूति अनुपम उपलब्धियों के साथ जिसका का अर्थ है ख़ुशियों बटाना लेना -देना और देखना । तो आइए, अपने जीवन को व्यवस्थित करें और जीवन को स्वर्ग बनाएं! आने वाली पीढ़ियों की सोच सेवा कर्म से सुदृढ़ सुगम सरल बनाए जीवन जीने के लिए उत्साह के रंग भरें !
- अनिता शरद झा
रायपुर - छत्तीसगढ़
रोज सुबह उठने से लेकर रात सोने तक इतनी ऊहापोह है कि समय कब निकल जाता है पता ही नहीं लगता। इस सब के बावजूद जीवन में विविधता भी है और विचित्रता भी। कुछ लोग सुबह से ही व्यस्त नजर आते हैं और कुछ लोग जाने-अनजानों के साथ गप्पे हांकते हुए भी। हमारी जहाँ नजर जाएगी, वहाँ कुछ लोग तो अवश्य ही खड़े मिलेंगे। दूकान हो, खेल का मैदान हो, अस्पताल हो, स्टेशन हो, दो राहे हों चौराहे हों, सब जगह लोग ही लोग।यानी कि जरूरतें भी हैं और शौक भी।जन्म है तो जीवन है। जीवन है तो जरूरतें हैं। जरूरतों में संघर्ष है। संघर्ष में ऊहापोह है। ऐसा सब के साथ है। सब की यही कहानी है। यही सत्य है, अनवरत है। इन कहानियों में जो मूल है वह संघर्ष है। प्रतिस्पर्धा है। खींचतान है। यह खींचतान कम हो सकती है,हल भी हो सकती है। इसके लिए समझदार बनना होगा। उदार बनना होगा।विनम्र होना होगा। खुद के अलावा औरों का ख्याल रखना भी सीखना होगा। अपनों का भी,परायों का भी। " हमारी सीमा वहीं तक है, जहाँ से दूसरे की शुरू होती है।" हमें यह समझना होगा,सीखना होगा और निर्वहन भी करना होगा। यही सामाजिक व्यवस्था है। यही नीतिगत है। ऐसा सभी करें तो कहना ही क्या। कोई समस्या ही नहीं। परंतु ऐसा होता नहीं है। समस्या तब शुरू होती हैं जब कोई इस नीति को तोड़ता है और यहीं से संघर्ष शुरू हो जाता है। अत: सार यही कि और कथन भी उनके लिए ही कि " खुद को व्यस्त नहीं, व्यवस्थित कीजिए। फिर जीवन एक दम स्वर्ग नजर आएगा। "
- नरेन्द्र श्रीवास्तव
गाडरवारा - मध्यप्रदेश
यह हकीकत है... जिस कार्य को करने का हमारा लक्ष है उसे बिना समझे, बिना किसी मतलब के, बिना समय प्रबंधन के, बिना अपने कार्य की भूमिका बांधें अर्थात दिशाहीन होकर, बेकार की दौड़ धूप कर समय जाया कर स्वयं को व्यस्त रखने से अच्छा है हम स्वयं को व्यवस्थित करें, ताकि बिना किसी मानसिक तनाव के, समय गंवाए बिना कार्य सुखपूर्वक संपन्न हो जाये। किसी भी कार्य को पूर्ण अंजाम देने के लिए हमें व्यवस्थित होना चाहिए अर्थात पहले हमें उसकी भूमिका (प्लानिंग) बांधना चाहिए, समय प्रबंधन की ओर भी ध्यान देना चाहिए, बजट, ऐसी छोटी मोटी कई बातों का ध्यान देना चाहिए। कार्य कुशलता ही असली व्यवस्था है। इन सब बातों का ध्यान रखते हुए जब हमारा कार्ये सफलता पूर्वक संपन्न होता है तब हम शांति से चैन की सांस लेते हुए स्वर्ग सा आनंद महसूस करते हैं।
- चंद्रिका व्यास
मुंबई - महाराष्ट्र
सही समय पर सही परिचर्चा, खुद को हमेशा व्यस्त न कर के व्यवस्थित ढंग से हर काम करें तो जीवन में जीते जी स्वर्ग का आनंद मिलेगा. फालतू के कामों में व्यस्त न रख कर के व्यवस्थित रूप से अगर काम किया जाय तो हर कार्य सुचारू रूप से संपन्न हो जाता है और सफलता भी मिलती है. जब आपका हर कार्य आपका व्यवस्थित रूप से होता है तो आपका समय भी बचता है. और मन प्रसन्न रहता है. और जब मन प्रसन्न रहता है तो वही स्वर्गिक सुख का आनंद प्राप्त होता है. स्वर्गिक सुख क्या है? स्वर्गिक सुख वहीं है जब हमारा हर अच्छा कार्य सफ़लता पूर्वक होता रहे. तो हर दम खुश रहेंगे. जब सब खुशी हो तो शांति वहीं है और जहाँ शांति है वहाँ ही स्वर्ग नजर आएगा.
- दिनेश चंद्र प्रसाद " दीनेश "
कलकत्ता - प. बंगाल
यह निःसंदेह सत्य है कि हर व्यक्ति को चाहिए कि वहअपनी जीवन-जिन्दगी में प्रतिदिन व्यस्तता के साथ-साथ उस कार्य को व्यवस्थित तरीके से करे क्योंकि वही कार्य आगे के लिए स्वयं सहज और सभी को देखने में भी सुंदर लगे । अन्य लोग भी उसकी इस व्यस्त पर व्यवस्थित कार्यप्रणाली की प्रशंसा करें । देखा जाए तो यही स्वर्गिक आनंद की अनुभूति का नज़ारा होता है।उदाहरण के लिए रोजमर्रा के लिए काम आने वाली वस्तुओं को काम करने के उपरांत उस स्थान पर ही रखें जहां कार्य करने में इसकी आवश्यकता होती है। फैलाकर ना रखें जिससे कि उसको पुनः खोजने में परेशानी हो बच्चों से लेकर बड़ों तक को इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए परिवार, समाज, राष्ट्र सभी स्तरों पर हमें हर कार्य के प्रति व्यस्त व्यवस्थित होना आवश्यक है तभी सब कुछ स्वयं एवम दूसरों को भी सर्वप्रिय दिखेगा और लगेगा।
- डाॅ.रेखा सक्सेना
मुरादाबाद - उत्तर प्रदेश
जीवन उड़ते पक्षी जैसा है, जिस तरह पक्षी को कोई बोलता नहीं परन्तु स्वयं अपने आपको व्यस्त करते हुए अपने लक्ष्य के प्रति अग्रसर होता रहता है, इसी प्रकार मानव को खुद को व्यस्त नहीं व्यवस्थित कीजिए, फिर जीवन एक दम स्वर्ग नज़र आयेगा, लेकिन वर्तमान परिदृश्य में मानव खुद को असंगत में व्यवस्थित करता है,.जिसका परिणाम स्वरूप अपने आपको क्रियाशील नहीं बना पाता, जब अपने अवगुणों का पता चलता है तो काफी विलम्ब हो गया होता है, जब तक हम स्वयं व्यवस्थित नहीं होगे, तब.तक दूसरों को ज्ञानेश्वर नहीं बना पायेगेॅ। जीवन को स्वर्ग बनाना अपने ऊपर निर्भर करता है.....
- आचार्य डाॅ.वीरेन्द्र सिंह गहरवार "वीर"
बालाघाट- मध्यप्रदेश
जब तक जीवन है व्यस्तताएं चलती ही रहेंगी लेकिन हम चाहें तो खुद को व्यवस्थित कर सकते हैं. जब खुद को व्यस्त नहीं व्यवस्थित करेंगे तो जीवन एकदम स्वर्ग नजर आएगा क्योंकि उस समय हमारे मन में शांति और संतोष का वास होता है. शांति और संतोष ही तो स्वर्ग की विशेषता होती है! तब हम जीवन में स्वर्ग का नजारा प्रस्तुत कर सकते हैं. इसलिए खुद को व्यस्त नहीं व्यवस्थित कीजिए. यकीन मानिए तब जीवन एक दम स्वर्ग नज़र आएगा.
- लीला तिवानी
सम्प्रति - ऑस्ट्रेलिया
सही कहा व्यस्तता से अधिक व्यवस्थित रहना आवश्यक है। अव्यवस्थित रहना व्यस्त तो कर सकता है लेकिन समय को नष्ट करता है।जबकि व्यवस्थित रहना समय की बचत करता है। यह समय अमूल्य होता है,इसकी बर्बादी करना स्वयं का ही नुकसान करना है। बहुत सुंदर ढंग से व्यवस्थित दिनचर्या और रहन सहन हमें उस आनंद की अनुभूति कराता है जिसे अलौकिक या स्वर्गिक आनन्द कहा जाता है। व्यवस्थित रहे तो कोई भी परेशानी, चिंता, दुविधा,अभाव होना नामुमकिन है। सबकुछ आनंददायक रहता है। इससे जीवन स्वर्ग नजर आना स्वाभाविक है।
- डॉ.अनिल शर्मा 'अनिल'
धामपुर - उत्तर प्रदेश
अक्सर लोग व्यस्त रहने को सफलता समझ लेते हैं।पर व्यस्तता केवल भाग-दौड़ है—जहाँ समय कम पड़ता है, मन थकता है और जीवन बोझ-सा लगने लगता है। इसके विपरीत, व्यवस्थित होना मतलब—कौन सा कार्य पहले और कौन सा बाद में करना है। किस काम को कितना समय देना उचित है,किन चीज़ों को छोड़ देना ही बेहतर है । व्यवस्था शांति देती है,व्यस्तता केवल थकान। जब जीवन संतुलित हो जाता है तो कार्य अपने समय पर पूर्ण होने लगते हैं। मन हल्का हो जाता है। संबंधों में सहजता आ जाती है।और व्यक्ति को अपने जीवन का सुर मिल जाता है फिर सचमुच, जीवन स्वर्ग जैसा अनुभव होने लगता है— बिना कहीं भागे, बिना खोए, अपनी धड़कनों के साथ जीया गया जीवन। व्यस्त व्यक्ति बाहर से सफल दिखता है।व्यवस्थित व्यक्ति भीतर से शांत और आनंदित होता है। और वास्तविक स्वर्ग तो मन की शांति में ही है।
- डाॅ. छाया शर्मा
अजमेर - राजस्थान
जीवन अनमोल है और अमूल्य जीवन की व्यस्तता और व्यवस्था में उतना ही अंतर है जितना अंधाधुंध दौड़ और सार्थक यात्रा में होता है। आज अधिकांश लोग “व्यस्त” हैं। वे दिन भर भागते हैं और अनेकों कार्य करते हैं परंतु परिणाम थकान, तनाव और असंतोष ही रहते हैं। क्योंकि व्यस्त व्यक्ति दिशाहीन होता है, जबकि व्यवस्थित व्यक्ति उद्देश्यवान होता है। जब हम स्वयं को विचारों में, कर्मों में और समय में व्यवस्थित करते हैं, तब हमारे भीतर का संतुलन जाग्रत होता है। वही संतुलन शांति, आनंद और आत्मसंतुष्टि का मार्ग खोलता है। ऐसे में न तो परिस्थितियाँ बोझ लगती हैं, न लोग बाधा लगते हैं। क्योंकि सब कुछ नियोजित और सामंजस्यपूर्ण हो जाता है। व्यवस्थित जीवन का अर्थ प्रत्येक कार्य को समय और प्राथमिकता देना है। मन को अनुशासन में रखना और आत्मा को सकारात्मक ऊर्जा से भरना है जो व्यक्ति स्वयं को व्यवस्थित कर लेता है, वह बाहरी अव्यवस्थाओं में भी सौंदर्य खोज लेता है। ऐसा व्यक्ति परिस्थितियों पर नहीं, परिस्थितियाँ उस पर निर्भर करती हैं। तभी जीवन स्वर्ग जैसा लगने लगता है। क्योंकि स्वर्ग कोई स्थान नहीं बल्कि एक मानसिक अवस्था है। अतः व्यस्तता हमें थकाती है पर व्यवस्था हमें उन्नत और विकासशील बनाती है। इसलिए जो स्वयं को व्यवस्थित करता है, वही सच्चे अर्थों में “जीवन जीता है” न कि केवल “जीवन बिताता है।”
- डॉ. इंदु भूषण बाली
ज्यौड़ियॉं (जम्मू) - जम्मू और कश्मीर
बहुत ऐसे इंसान हैं, जो व्यस्त तो रहते , लेकिन व्यवस्थित नहीं रह पाते।हमें सर्वप्रथम व्यवस्थित रहना होगा। व्यवस्थित में ही लाभ एवं आनंद है।जब हमारी व्यवस्था सुदृढ़ होगी,तब हम अवश्य सफल होंगे।सही व्यवस्था बनती है _परिश्रम और संघर्ष से। हमें इन दोनों सिद्धांतों से सफलता एवं नाम अवश्य होंगे।लोग मेरा गुणगान करेंगे।यदि इन सिद्धांतों का पालन करेंगे तो निश्चित रूप से हमारा जीवन सफल होकर स्वर्ग नज़र आएगा।
- दुर्गेश मोहन
पटना - बिहार
" मेरी दृष्टि में " जीवन को ख़ुद ही व्यस्त के साथ - साथ व्यवस्थित भी करना पड़ता है। तभी जीवन में तरक्की की ऊंचाई छूने को मिलती हैं। ऐसे जीवन को स्वर्ग कहते हैं। यही से जीवन की सफलता हासिल होती है। बाकि जीवन तो सभी का चलता रहता है।
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