दिनेश चंद्र सेन स्मृति सम्मान - 2025
अज्ञानी को राजनैतिक रूप धारण करने नहीं आ पाता है- और अज्ञान के साथ अहंकार भी जुड़ा होता है (ज्ञान अहंकार नहीं होने देता है) : अब अहंकार हो तो कमतर समझ पाना मुश्किल हो जाता है : अब कमतर नहीं है तो क्रोध होना स्वाभाविक हो जाता है। इसलिए कहा जाता है कि, अज्ञान की शक्ति क्रोध होता है- (क्रोध पुल्लिंग है)वैसे भी सहनशक्ति कम होने से भी व्यक्ति क्रोधित होता है और क्रोध आने से स्वयं का विवेक नष्ट होता है तथा अविवेकी व्यक्ति और अपना अहित ज़्यादा करता है और दूसरे का कम। अज्ञानी को उसके क्रोध के दौरान अन्य स्वार्थी के द्वारा मोहरा बना लिया जाता है -आग में पेट्रोल डालने की भूमिका निभा स्वार्थ सिद्ध भी किया जाता है- मौन और ध्यान का गहरा सम्बन्ध है। ध्यान में, मौन स्थिरता का प्रवेश द्वार बन जाता है—एक ऐसी अवस्था जहाँ मन विकर्षणों और आसक्तियों से मुक्त हो जाता है। ध्यान में ज्ञानी को अपनी आत्मा से ही ऐसे प्रश्न पूछने के लिए प्रोत्साहित करता है:
-अपनी सभी भूमिकाओं के पीछे वह कौन है?
-मानव के लिए वास्तव में क्या मायने रखता है?
-मानव अपने कार्यों को अपने मूल्यों के साथ कैसे जोड़ सकता है?
आत्म-चिन्तन के साथ मौन रहने पर, मानव अपने अनसुलझे भावनाओं को समझने, कठिन परिस्थितियों में स्पष्टता पाने तथा अपने आन्तरिक ज्ञान से जुड़ने में सक्षम होता जाता है। और इसलिए मानवोत्थान के लिए प्रयासरत ज्ञानी मौन को अपनी शक्ति बनाता है- कहा गया है -,’क्षमा शोभती उस भुजंग को, जिसके पास गरल हो…’
- विभा रानी श्रीवास्तव
बेंगलूरु - कर्नाटक
क्रोध और मौन दोनों एक-दूसरे के विपरीत भाव हैं। क्रोध नकारात्मकता का प्रतीक है जो विध्वंसक परिणाम देता है जबकि मौन सकारात्मकता का प्रतीक है जो हमेशा बचाव की ओर ले जाता है। इसे आध्यात्म की दृष्टि से देखें तो यह कहना सही होगा कि अज्ञान की शक्ति क्रोध होती है और ज्ञान की शक्ति मौन होती है। इसे यूँ समझें कि क्रोध का आवेग इतना प्रबल होता है कि सबसे पहले वह हमारे विवेक पर प्रहार करता है, जिससे हम अपना आपा खो बैठते हैं और तत्समय सोचने और समझने की सामर्थ्य खो देते हैं। हमें किसी की समझाइश भी नहीं सुहाती और अपनी ही जिद एवं मनमानी से जिसे जो चाहे कह देते हैं, कभी-कभी तो तोड़-फोड़ तक कर देते हैं । फिर जब आवेग शांत होता है तब पश्चाताप ही हाथ रह जाता है। इसलिए क्रोध को अज्ञानता की श्रेणी में रखा गया है। इसके विपरीत क्रोध आने की स्थिति में, संयत रहते हुए मौन रहने पर हम तत्समय की स्थिति टाल देते हैं और संभावित नुकसान से बचाव कर लेते हैं। ऐसा करना समझदारी कहलाता है और यह ज्ञान की शक्ति का प्रतीक होता है। सार यह है कि हमें कभी भी क्रोध नहीं करना चाहिए।
- नरेन्द्र श्रीवास्तव
गाडरवारा - मध्यप्रदेश
क्रोध तभी आता है जब व्यक्ति किसी बात को नहीं जान पाता है , और न ही समझ पाता है , व अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर देता है , क्रोध के रूप में! आधी अधूरी जानकारी गलतफहमियों को जन्म देती है , वो अज्ञानवश , क्रोधित होकर मनुष्य को कई भयंकर परिस्थितियों से गुजरना पड़ता है !! जिसको ज्ञान होता है , वो सब कुछ समझता है , मौन उसका हथियार होता है , व शक्ति भी ! अज्ञानी क्रोध को शक्ति मानकर , अपनी प्रतिक्रिया देता है , जबकि ज्ञानी बोलता है , पर मौन द्वारा , समझकर , स्थिति से निपटता है !!
- नंदिता बाली
सोलन - हिमाचल प्रदेश
अज्ञान की कोई सीमा नहीं होती है, वह सीरफिरा होता है, उसकी सोच पल में मासा, पल में तोला कहावत चरित्रार्थ होती है। उसके व्यवहार, आचरण और शब्दों में उतार-चढ़ाव हमेशा देखने को मिलता रहता है, ऐसे सरकु माईसन से हमेशा दूरी बनाए हुए रहते है याने अज्ञान की शक्ति क्रोध होती है, यह सब घर के संस्कारों पर निर्भर करता है, वैसा ही व्यवहारिक बनता है। ज्ञान वीर जो होता है, सोच-सोच कर नपे-तुले शब्द को बोलता है और समय आने उपरान्त कम शब्दों में जवाब देता है, जो स्पष्ट वादिता की झलक दिखाई देती हैं ज्ञान की शक्ति मौन होती है, मौन का जवाब मौन से मिलता है, जिस तरह मौमबत्ती आहिस्ता-आहिस्ता जलती हुई, प्रकाश देते हुए और अंत में एक ही जगह पिगलकर बैठ जाती है, उसी प्रकार से ज्ञान वीर की पहचान भी अलग ही परिदृश्य होती है.....
-आचार्य डाॅ.वीरेन्द्र सिंह गहरवार "वीर"
बालाघाट - मध्यप्रदेश
क्रोध अज्ञान शक्ति पर विजय हासिल कर ले तो ज्ञान शक्ति मौन हो जाएगी ! पर यह भी सत्य है क्रोध अज्ञानता मौन कई बार कुंठा को प्रकट करता है इंसान क्रोधित होता है जानते हुए भी अज्ञानता जीवन का अंधकार है ज्ञान उजाला लेकर जीवन में आता है ,जानते हुए भी स्वभाव वश इंसान ग़लतियाँ करता है ! उसे चारित्रिक दोष मान मौन रह अपनी बात को मनवा लेता है ! समय चक्र अपनी धुरी पर घूमता है ! विषम परिस्थितियों हालातों से गुजरता है !तब उसे एहसास होता है , क्रोध का वजह ,ग़लत निर्णय था । जिसे आने वाली पीढ़ियाँ भुगंतेगीं , क्यो ना समय रहते सुधार कर आने वाली पीढ़ियों को ज्ञान की शक्ति मौन दे !अज्ञानता को दूर भगाने प्रयास करे , सृष्टि की रचना में यदि किसी एक क्षेत्र में विकलाँगता होती है !दूसरी शक्ति को सृष्टि मौन रह प्रभावशाली बनाती है ! ये बाते सभी सजीव निर्जीव सभी बातों पर आधारित होती हैं ! इस दुनिया के वही माली होते है जिसका शासन चलता है जिसके स्वभाव में क्रोध नही होता सामंजस्य की राह पकड़ा हल निकलता है !सारी दुनिया तुम्हारी दीवानी सभी उसकी बात मानते जानते हैं!जैसे सूर्य चमत्कृत आभा देता नया सबेरा ख़ुशियाँ लाती है! घंटा नाद संग तुम्हें जगाता कर्म ज्ञान की शिक्षा देता अज्ञानता से हमें बचाता सत्य अहिंसा राह दिखाता सेवा समर्पण भाव जगाता मानस मन संतुष्टि देता । कृतज्ञ समाहित भाव जगाते ! चंद्रमा की शीतलता वो भाव जगात है क्रोध को शांत कर सही निर्णय लेने मार्ग प्रशस्त करती है !पुरषोत्तम राम को व्यवहारिकता क्रोध का ज्ञान था और रावण को ज्ञान का अभिमान था ! अज्ञान की शक्ति क्रोध होती है रावण ! ज्ञान की शक्ति मौन होती हैं राम !
- अनिता शरद झा
रायपुर - छत्तीसगढ़
बात तो ठीक ही है ।क्रोध व्यक्ति को विवेकहीन बना देता है और फिर यह स्थिति अहंकार और अज्ञान के वो पट खोल देती है जो अज्ञान के अंधकार की ओर खुलता है। इसके विपरीत मौन , आत्मसाक्षात्कार और आत्मचिंतन के पट खोलता,जो ज्ञान के मार्ग को प्रशस्त करता है। मौन की शक्ति ज्ञान की वृद्धि करती है और क्रोध की शक्ति अज्ञानता की ओर खींचती है। कितने ही उदाहरण हैं जब क्रोध और अज्ञानतावश कितनी ही जन धन हानि हुई है। इसलिए जितना हो सके क्रोध को नियंत्रित करना चाहिए।
- डॉ.अनिल शर्मा 'अनिल '
धामपुर - उत्तर प्रदेश
अज्ञानता में ना कोई महत्ता है और ना कोई शक्ति। इसीलिए अज्ञानता को क्रोध व बड़बोलेपन से अपनी झूठी शक्ति का एहसास कराना पड़ता है।अज्ञान व्यक्ति सोचता है क्रोध से मैं अपनी बुद्धिमत्ता, अपना महत्व व अपने आप को सही साबित कर सकता हूँ । ज्ञानी व्यक्ति कई बार यह जानते हुए भी कि उसके सामने वाला व्यक्ति सही नहीं है , उस से बहस करने की बजाय मौन रहना पसंद करता है क्योंकि वह समझता है कि बहस व क्रोध से मैं ना कुछ साबित कर पाऊँगा, ना सामने वाले मूर्ख -अज्ञानी व्यक्ति की सोच व विचार ही बदल पाऊँगा। इसलिए अपनी ऊर्जा, समय और अपनी मानसिक शान्ति को ध्यान में रखते हुए वह मौन रहना पसंद करता है।मौन की अपनी शक्ति व अपना महत्व है।कम बोलने वाले व्यक्ति मूर्ख होते हैं, यह सोच सरासर ग़लत है। क्रोध, बहस व लड़ाई-झगड़ा न करने के लिए मज़बूत इच्छाशक्ति की आवश्यकता होती है, वो भी ज्ञान से प्ही राप्त होती है।
- रेनू चौहान
दिल्ली
मैं तो कहता हूँ कि क्रोधाग्नि प्रज्वलित होनी चाहिए, जब किसी पीड़ित की पीड़ा की ध्वनि आकाश और पाताल तक गूँज रही हो। ऐसे समय में मौन धारण करना, चाहे वह विद्वानों का ही क्यों न हो, केवल एक नैतिक असफलता और कायरता का संकेत होता है। जब किसी निर्दोष या पीड़ित की जान पर संकट छाया हो और अन्याय का पहाड़ उनकी छाती पर भारी हो, तब मौन रहना विद्वता का लक्षण नहीं, बल्कि सत्य और न्याय से विमुख होने का परिणाम है। सच्चा ज्ञान केवल पुस्तकों या विचारों में नहीं, बल्कि कर्म में और साहसिक निर्णयों में प्रकट होता है। सच्चा विद्वान वही है जो पीड़ितों की आवाज़ को सुन सके, उनकी पीड़ा को गहराई से अनुभव कर सके और उसके लिए स्पष्ट और दृढ़ कदम उठाने का साहस रखे। मौन तब तक गुण है जब वह विवेक और संतुलन के कारण अपनाया गया हो, लेकिन जब वह भय, स्वार्थ या असंवेदनशीलता से जन्म ले, तो वह विद्वता नहीं रह जाती, बल्कि नैतिक पलायन और कायरता का प्रतीक बन जाती है। इस दृष्टि से देखा जाए तो, क्रोध और आक्रोश की ऊर्जा भी एक सकारात्मक शक्ति बन जाती है यह अन्याय और पीड़ा के सामने सत्य और न्याय के लिए उठ खड़े होने की प्रेरणा देता है। इसलिए, न्याय और मानवता की रक्षा में कभी मौन को अंधकार की आड़ नहीं बनने देना चाहिए।
- डॉ. इंदु भूषण बाली
ज्यौड़ियॉं (जम्मू) -जम्मू और कश्मीर
अज्ञान की शक्ति सच में क्रोध होती है। जब इंसान को किसी बात की समझ नहीं होती, तो वो झुंझलाने लगता है, गुस्सा करने लगता है। उसे लगता है कि सामने वाला उसे नीचा दिखा रहा है या गलत साबित कर रहा है। असल में वो अपने भीतर की कमजोरी छिपा रहा होता है। क्रोध अक्सर वही करता है जिसे अपनी बात का पक्का आधार नहीं होता। वहीं, जब इंसान के पास ज्ञान होता है, तो उसे हर बात पर बोलने या साबित करने की जरूरत नहीं पड़ती। वो जानता है कि सच क्या है, इसलिए वह शांत रहता है। मौन उसका जवाब बन जाता है। मौन में एक गहराई होती है, जैसे सागर ऊपर से तो शांत दिखता है, पर उसके अंदर बहुत कुछ होता है। कह सकते हैं कि अज्ञान चिल्लाता है, और ज्ञान मुस्कुराता है। क्योंकि जिसे खुद पर भरोसा हो, उसे किसी को कुछ साबित करने की ज़रूरत नहीं होती।
- सीमा रानी
पटना - बिहार
इसमें कोई दो राय नहीं है, यही सत्य है। क्रोध एक मानसिक वेदना है। हमारी इंन्द्रियों में क्रोध का भी समावेश रहता है, और वैसे भी जीवधारियों में क्रोध का अंश तो रहता ही है चाहे मनुष्य हो अथवा प्राणी। क्रोध नकारात्मक भाव लिए रहता है। क्रोध के समय हमारा संयम, विवेक, ज्ञान, प्रेम कुछ नहीं दिखाई देता। क्रोध में सामने कौन है दिखाई नहीं देता, वाणी असंतुलित हो जाती है एवं मानसिक असंतुलन की वजह से अज्ञानी हो जाता है । क्रोध ना आए इसके लिए हमें मौन रहना चाहिए ज्ञान की शक्ति को जागृत करना चाहिए अर्थात थोड़ा समय देना चाहिए। क्रोध हमें अज्ञानी बना देता है। वहीं ज्ञान की शक्ति मौन होती है । ज्ञान हमें विनम्र बनाता है और विनम्रता आने से बिगड़ी बात बढ़ती नहीं है। विनम्र होने से धैर्य और संयमता अपने आप आ जाते हैं। अतः हमें क्रोध आता है तो कुछ समय के लिए मौन हो जाना चाहिए। चूंकि मौन ही ज्ञान की शक्ति है।
- चंद्रिका व्यास
मुंबई - महाराष्ट्र
यह सच है कि अज्ञानी व्यक्ति अपनी शक्ति का प्रदर्शन क्रोध में ही करता है क्योंकि उसमें मानवीय गुणों की कमी होती है। बल्कि लोभ, मद ,मोह,असहनशीलता ,असत्यता,हिंसा, अहंकार, घृणा ,द्वेष इत्यादि बुराइयों से युक्त होता है। उसकी आत्मा शुद्ध नहीं होती ।नास्तिक भी होता है ।परिवार समाज राष्ट्र में अपना आधिपत्य क्रोध की शक्ति दिखाकर करता है। उसमें विवेक तो होता ही नहीं है। इसके विपरीत ज्ञानी व्यक्ति मानवीय गुण सत्य, अहिंसा ,दया, धैर्य, क्षमाशीलता, सद्भावना से युक्त मन को स्थिर और दृढ़ रखकर विवेक से काम करता है ।इन गुणों के फलस्वरुप स्वाभाविक रूप से उसके व्यवहार में मौन दर्शनीय होता है यही उसकी शक्ति है जो उसे प्रदर्शन से कोसों दूर रखती है।
- डाॅ. रेखा सक्सेना
मुरादाबाद - उत्तर प्रदेश
जब व्यक्ति किसी विषय को समझ नहीं पाता, जब उसके जब तर्क और भाव दोनों अस्थिर हो जाते हैं, तब उसका पहला शस्त्र क्रोध बनता है। क्रोध अज्ञान का फल है, क्योंकि जो व्यक्ति सच्चाई को जानता है, वह झगड़ता नहीं, समझता है।अज्ञान के कारण मनुष्य अपनी ही असमर्थता को छिपाने के लिए आवेश में आ जाता है —वह आवाज़ ऊँची करता है, दूसरों को दोष देता है, और स्वयं की भूल को देखने में असमर्थ रहता है। यही अज्ञान की शक्ति है — क्रोध, जो विनाश का मार्ग प्रशस्त करता है। महाभारत में दुर्योधन का उदाहरण इसका प्रमाण है — ज्ञान से दूर और अहंकार से भरा हुआ वह क्रोध का प्रतीक बन गया। इसके विपरीत, जब व्यक्ति सच्चा ज्ञान प्राप्त करता है, तब उसका मन शांत हो जाता है। वह जानता है कि प्रत्येक स्थिति में प्रतिक्रिया नहीं, बल्कि प्रतिक्रिया का चयन ही उसकी शक्ति है। ऐसा व्यक्ति क्रोध नहीं करता, वह मौन हो जाता है —पर यह मौन कायरता नहीं, बल्कि समझ का प्रतीक है। यह मौन भीतर की दृढ़ता, सहनशीलता और संतुलन का परिचायक है। गौतम बुद्ध, महावीर, और कबीर जैसे महापुरुषों का जीवन इस सत्य को प्रत्यक्ष सिद्ध करता है — उन्होंने मौन और धैर्य के माध्यम से मानवता को ज्ञान का मार्ग दिखाया। जहाँ अज्ञान व्यक्ति को दूसरों से लड़ाता है, वहीं ज्ञान व्यक्ति को स्वयं से मिलाता है। अज्ञान की शक्ति बाहर प्रहार करती है, ज्ञान की शक्ति भीतर प्रकाश फैलाती है। इसलिए कहा गया है — "अज्ञानी बोलता है क्रोध में, ज्ञानी बोलता है मौन में।"
- डाॅ. छाया शर्मा
अजमेर - राजस्थान
" मेरी दृष्टि में " ज्ञान पर बहुत कुछ निर्भर करता है। ज्ञान की शक्ति से मौन भी होता है। जिससे जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में सफलता प्राप्त कर सकते हैं। बिना ज्ञान के इंसान का कोध्र बढ़ता है। कोध्र में सफलता दूर - दूर तक नज़र नहीं आती है।
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