मेजर हरिपाल सिंह अहलूवालिया स्मृति सम्मान - 2025
बिलकुल सीधी सी बात है, “उधार का ब्याज हमेशा देना होता है” मतलब ये कि चाहे उधार पैसे का हो, एहसान का हो या किसी की भावनाओं का, उसका हिसाब कभी न कभी देना ही पड़ता है। दुनिया गोल है, जो करते हैं, वही किसी न किसी रूप में लौटकर आता है।और “सब्र कर, हिसाब हर चीज़ का होता है”,ये तो ज़िंदगी का सच्चा नियम है। वक्त थोड़ा लेट ज़रूर हो जाता है, पर किसी का हक छूटता नहीं। जो मेहनत करता है, उसे फल भी मिलता है, और जो छल करता है, उसे जवाब भी मिलता है,बस वक्त लगता है। कहने का मतलब यह है कि ज़िंदगी में जल्दीबाज़ी कभी नहीं करनी चाहिए ना ही दूसरों का हक मारना चाहिए। वक्त बड़ा गज़ब का हिसाबदार है, ना कमी छोड़ता है, ना ज़्यादा लिखता है।
- सीमा रानी
पटना - बिहार
उधार का ब्याज तो हमेशा ही चुकाना पड़ता है क्योंकि उधार मिलता ही है ब्याज के दम पर. यदि ब्याज न दिया जाए तो उधार मिले ही नहीं. ब्याज के लालच में ही लोग उधार देते हैं. चाहे कोई बैंक हो कोई सरकार हो या कोई व्यक्ति या संस्था हो. बिना कुछ दिए ब्याज नहीं मिलता है. उधार का ब्याज देना ही पड़ता है. कभी-कभी तो बाप का लिया उधार बेटों या बेटा को चुकाना पड़ता है. जो नहीं देते हैं उनका हिसाब जरूर होता है आज नहीं तो कल उनका हिसाब होना ही है. भले उनको समझ में आए ना आए. लोग कहते हैं हमने तो कुछ किया नहीं फिर हमारे साथ ऐसा क्यों हो गया. ऐसा इसलिए हो गया कि आपने कभी लिए गए उधार का ब्याज नहीं चुकाया होगा.इसलिए कहा गया है कि उधार का ब्याज हमेशा देना होता है, सब्र कर हिसाब हर चीज़ का होता है.
- दिनेश चंद्र प्रसाद " दीनेश "
कलकत्ता - प. बंगाल
उधार का ब्याज हमेशा देना, होता है ! इस सच्चाई को हमें अपने जीवन में समझना चाहिए। कहने को इंसान बड़ी बड़ी बाते करता है !पर जैसे ही पैसे नियत की बात होती इंसान पलायनवाद को सोच बना कहता है ! हमें तो इंसान से अधिक मूलधन से ज्यादा ब्याज प्यारा होता है ! जब हम किसी से उधार लेते हैं, तो हमें उसे वापस करना होता है, और अगर हम ऐसा नहीं करते हैं, तो हमें इसके परिणाम भुगतने पड़ते हैं।सब्र कर हिसाब हर चीज का होता है, ! यह भी एक महत्वपूर्ण बात है। हमें अपने कार्यों के परिणामों को स्वीकार करना चाहिए और उन्हें सुधारने के लिए प्रयास करना चाहिए। अगर हम अपने कार्यों के लिए जिम्मेदारी लेते हैं ! और उन्हें सुधारने के लिए प्रयास करते हैं, तो हम अपने जीवन में सकारात्मक परिवर्तन ला सकते हैं। यह संदेश हमें अपने जीवन में जिम्मेदारी लेने और अपने कार्यों के परिणामों को स्वीकार करने के महत्व को समझने में मदद करता है।सब्र कर हिसाब हर चीज का होता है !उठो, जागो और तब तक मत रुको जब तक लक्ष्य की प्राप्ति ना हो जाए।ख़ुद को कमज़ोर समझना सबसे बड़ा पाप है। तुम्हें कोई पढ़ा नहीं सकता, कोई आध्यात्मिक नहीं बना सकता सत्य को हज़ार तरीकों से बताया जा सकता है, फिर भी हर एक सत्य ही होगा। उधार का ब्याज हमेशा देना ही होता है जीवन में सब्र कर कहती थी हिसाब इसी जीवन में होता हैं
- अनिता शरद झा
रायपुर - छत्तीसगढ़
“उधार का ब्याज हमेशा देना होता है, सब्र कर, हिसाब हर चीज़ का होता है” पर मेरी राय इस प्रकार है कि यह कथन जीवन में अनुशासन, न्याय और धैर्य की महत्ता को उजागर करता है। इसका अर्थ केवल आर्थिक या वित्तीय संदर्भ तक सीमित नहीं है, बल्कि यह सामाजिक और नैतिक मूल्यों पर भी लागू होता है। क्योंकि उधार का ब्याज हमेशा देना होता है कि यह हमें जिम्मेदारी और ईमानदारी की सीख देता है। चाहे वित्तीय हो या व्यक्तिगत संबंधों में, किसी भी तरह का “उधार” लिया जाए, उसका उचित मूल्य चुकाना नैतिक दायित्व है। यह जीवन में विश्वास और पारस्परिक सम्मान बनाए रखने का आधार है। सच यह भी है कि सब्र कर, यह भाग जीवन का अत्यंत महत्वपूर्ण मूल्य है। जीवन में जल्दबाजी अक्सर नुकसान देती है। सब्र करने का अर्थ है परिस्थिति को समझना, सही समय का इंतजार करना और बिना आवेग के निर्णय लेना। सत्य है कि हिसाब हर चीज़ का होता है आज नहीं तो कल। परन्तु यह न्याय और परिणामों की अनिवार्यता की ओर संकेत करता है। कर्म, प्रयास या देनदारी कि सबका एक नतीजा होता है। यह विचार हमें सतर्क और जिम्मेदार बनाता है कि कोई भी कार्य अनजाने में नहीं रह जाता। संक्षेप में, यह कथन जीवन में संतुलन, नैतिकता और धैर्य के महत्व को दर्शाता है। यदि हम इसे अपने व्यवहार में उतारें, तो न केवल व्यक्तिगत बल्कि सामाजिक जीवन में भी स्थिरता और सम्मान बना रहता है।
- डॉ इंदु भूषण बाली
ज्यौड़ियॉं (जम्मू) - जम्मू और कश्मीर
हिसाब चाहे धन का हो या कर्म का हिसाब तो सभी का होता है और मिलता है। जब हमने किसी से उधार लिया है तो यह नियम है कि समय पर हमें मूलधन के साथ ब्याज भी देना पड़ता है यानी लिए गए पैसे के अलावा अतिरिक्त राशि देनी पड़ती है..न्याय के अनुसार । ठीक उसी तरह हमारे द्वारा किए गए अच्छे ,बुरे कोई भी कर्म हो ईश्वर के पास उसका हिसाब तो देना पड़ता है। किसी गरीब की मजबूरी का फायदा उठा अधिक ब्याज पर दिया हुआ पैसा, अहित और बेईमानी का होता है उसका भुगतान तो हमें यहीं किसी ना किसी रूप में चुकाना होता है। मनुष्य को यह ध्यान रहना चाहिए कि किसी की मदद करते समय ,अथवा उसके दुर्व्यवहार का फल और हिसाब यहीं मिलता है।
- चंद्रिका व्यास
मुंबई - महाराष्ट्र
जीवन में परिस्थितियाँ आती है जब आय सीमित व्यय ज्यादातर होने लगता है, इच्छा शक्ति पर नियंत्रण नहीं रहता, परिवारों की व्यवस्था, अन्य व्ययों के परिवेश में मजबूरन उधार लेना होता है, एक समय ऐसा आता है जब मूल उधार समय सीमा में भुगतान नहीं कर पाता, फिर प्रारंभ होता है ब्याज पर ब्याज और चक्रवर्ती ब्याज.....? फिर इसकी सीमा नहीं होती, अन्तत: सब कुछ रहने उपरान्त पतन.....? याने उधार का ब्याज हमेशा देना होता है, सब्र कर हिसाब हर चीज का होता है। यह सच है एक कहावत चरित्रार्थ होती है जितनी चादर, उतना पैर फैलाना होता है। जीवन में सब्र का महत्वपूर्ण योगदान रहता है, जिसनें सब्र कर लिया उसका जीवन सफल हो गया ।
- आचार्य डाॅ.वीरेन्द्र सिंह गहरवार "वीर"
बालाघाट - मध्यप्रदेश
जीवन अपने आप में एक बड़ा साहूकार है। यहाँ कोई लेन-देन केवल रुपयों में नहीं होता—एक शब्द, एक व्यवहार, एक भाव, एक वादा, एक चोट, एक उपकार—सब दर्ज होता है। हम अक्सर सोचते हैं कि जो बीत गया, वह समाप्त हो गया; पर जीवन की गाथा कभी अधूरी नहीं रहती। हर कर्म, हर संबंध और हर भावना, समय की कोठरी में दर्ज हो जाती है। “उधार का ब्याज” केवल आर्थिक उधार नहीं है।यदि किसी ने आपका मन दुखाया है, वह भी एक उधार है—जीवन कभी न कभी उसका हिसाब सामने रख देता है।यदि आपने किसी को बिना स्वार्थ सँभाला है, वह भी उधार है—समय उसे लौटाता है, अक्सर दोगुना कर।यदि आपने किसी के आँसू पोछे हैं, तो उसकी दुआ भी ब्याज बनकर वापस आती है।और यदि आपने किसी पर अन्याय किया है, तो उसका दर्द भी देर से सही—पर लौटकर आता है।सब्र इस जीवन-लेन-देन की सबसे बड़ी कुंजी है।क्योंकि समय कभी तुरंत न्याय नहीं देता — समय पहले चरित्र की परीक्षा लेता है, सहनशीलता की परख करता है, और उसके बाद धीरे-धीरे न्याय को परोसता है। दुनिया में एक भी ऐसा पल नहीं, जहाँ कर्म बेमानी हो।कभी किसी की मजबूरी को अपनी जीत मत समझिए।किसी का मौन उसकी हार नहीं, उसका सब्र होता है।और सब्र—सबसे बड़ा निवेश है। क्योंकि जीवन की किताब में कोई पन्ना फटता नहीं, बस क्रम बदलता है — और हिसाब पूरा होता है। इसलिए अच्छा कीजिए, अच्छा सोचिए, और अच्छा रखिए। दूसरों के साथ नहीं—अपने साथ भी। क्योंकि अंत में— “उधार का ब्याज देना भी पड़ता है” और“सब्र से किया गया इंतज़ार—न्याय बनकर लौटता है।”
- डाॅ.छाया शर्मा
अजमेर - राजस्थान
मनुष्य को कभी भी किसी से कोई चीज उधार नहीं लेना चाहिए,नहीं तो ब्याज के साथ चूकता करना पड़ता है।हमें किसी भी क्षेत्र में सफलता के लिए सब्र रखना पड़ता है।हर चीज के लिए सब्र रखना ज़रूरी होता है।इसलिए कोई काम नकद करना चाहिए। हमें सब्र हमेशा करना चाहिए।सब्र का परिणाम सदैव मीठा होता है।इंसान को चाहिए,वह नकद कार्य करे और धैर्य रखे।अगर मनुष्य इन दोनों नियम को जिन्दगी में उतार लेता है, तो सफल हो जाता और उसका जीवन सार्थक हो जाता है।
- दुर्गेश मोहन
पटना - बिहार
बिना ब्याज के उधार नहीं मिल सकता. चाहे कोई ब्याज की बात करे-न-करे, किसी और तरीके से ब्याज तो देना ही होता है. जो ब्याज नहीं भी मांगता, उसको तो ज्यादा ब्याज देना पड़ता है और सबसे ज्यादा उस ब्याज का असर और बोझ मन पर बहुत होता है. अगर उधार का ब्याज नहीं मिलता है तो सब्र कर क्योंकि हर चीज़ का हिसाब होता ही है. इसलिए सब्र कर, देर-सवेर ब्याज का हिसाब भी मिलेगा, क्योंकि येन-केन-प्रकारेण हिसाब सबको देना ही पड़ता है.
- लीला तिवानी
सम्प्रति - ऑस्ट्रेलिया
उधार का ब्याज हमेशा देना होता है ।सब्र कर हिसाब हर चीज का होता है ।यह बात एकदम सत्य है और हर पहलू पर एकदम सटीक उतरता है।चाहे वो धन दौलत से संबंधित हो या फिर अपने व्यवहार से। उधार का मतलब ही होता है जो अपना न हो जो किसी से कुछ क्षण के लिए लिया गया हो।तो यह भी निश्चित है कि इस पर ब्याज भी होगा ही।एक कपटी व्यक्ति जितना भी किसी को कपट ले ,हड़प ले, किंतु ईश्वर की अदालत से वह बच नहीं सकता, स्वयं को छिपा नहीं सकता।उसे अपने कपट को भुगतना ही पड़ेगा। सब्र का फल मीठा होता है और इसका बहुत ही ख़ूबसूरती से ईश्वर हिसाब करता है। अतः हम सभी में धैर्य होना ही चाहिए।सब्र रखने से बिगड़ने वाले काम भी बन जाते हैं।
- वर्तिका अग्रवाल ' वरदा '
वाराणसी - उत्तर प्रदेश
यह बात बिल्कुल ठीक है कि कोई भी व्यक्ति जब कोई रुपया पैसा किसी से उधार लेता है तो उसे रूपया उधार पर ब्याज चुकाने के रूप में मिलता है वह भी निश्चित समयावधि के लिए। पहले हर महीने ब्याज चुकता करो और फिर साथ में असल भी देना पड़ता है। यह तो उधार की शर्तें होती हैं जब तक असल नहीं दोगे ब्याज बढ़ता ही जाएगा । जिस महीने उसका असल चुका दोगे तो ब्याज देना भी समाप्त हो जाएगा। इसी प्रकार मनुष्य के जीवन में कर्मों के लेखे- जोखे का हिसाब होता है ।अतः अच्छे बुरे किये को धैर्यपूर्वक सहन बर्दाश्त करना भी समझना चाहिए ।यदि अच्छे कर्म करोगे तो भगवान उन्हें ब्याज सहित आपको सुखी जीवन प्रदान करेगा और यदि बुरा करोगे तो उसे बुरे रूप में झेलना तो पड़ेगा ही। इसी आशय को ध्यान में रखते हुए शास्त्रों में भी कहा गया है कि दान- पुण्य की खेती सदा हरी भरी रहती है।
- डाॅ.रेखा सक्सेना
मुरादाबाद - उत्तर प्रदेश
" मेरी दृष्टि में " ब्याज में बहुत कुछ छुपा होता है। परन्तु इंसान को सब्र करना चाहिए। क्यों कि हिसाब हर चीज का होता है। फिर भी इंसान का ब्याज बहुत कुछ बोलता है। ब्याज, ब्याज ही होता है। इसलिए उधार से बचना चाहिए। कहते हैं कि हर इंसान जीवन में कभी ना कभी उधार अवश्य लेता है। बिना उधार के जीवन को चलाना असम्भव होता है।
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