तारापद रॉय स्मृति सम्मान - 2025
कर्म तो जीवन का आधार माना जाता है। यानि ये भी कहा जा सकता है कि जन्म दर जन्म का निचोड़ भी कहा जाता है। कर्म एक सत्य पर आधारित सोच का परिणाम है। जिससे मृत्यु की अन्तिम विदाई भी तय होती है। मृत्यु कैसे होगी यही कुछ जैमिनी अकादमी की चर्चा परिचर्चा का प्रमुख विषय है। अब आयें विचारों में से कुछ विचार पेश करते हैं :-
कर्म तय करते है मृत्यु अंतिम बिदाई है ! प्रकृति जीवन का यथार्थ सत्य है जो आया हो जाएगा ! राजा रंक फ़कीर ,हमारे कर्म ही हमारे जीवन की यथार्थ सच्चाई को बया करते है ! जिसको समझ बुझ कर आगे बढ़ना है !क्षणिक आवेश ही मार्ग अवरुद्ध करने में बाधक होती है जिसे जानकर भी इंसान बुद्धिजीवी होते हुए किंकर्तव्यविमूढ़ हो कदम मृत्यु को स्वीकार कर विमूढ़ बना इंसान होता है ! इसी लिए कहते है -हर किसी की किस्मत में नही होती आसान बिदाई ! कर्म ही हमारे जीवन को आधार आकार देते हैं !और हमारे भविष्य को निर्धारित करते हैं। मृत्यु एक अनिवार्य सत्य है। बिदाई की कठिनाई बिदाई हमेशा कठिन होती है, खासकर जब मृत्यु किसी प्रियजन की होती है।जीवन मूल्य में प्रेमका संबंध ही सबसे महत्वपूर्ण हैं।, कर्म और निष्ठा से किया गया काम ही जीवन को सार्थक बनाता है। पेड़ों की झुरमुठ से पक्षी के, करलव से गाव हमारा गूँज उठा है ।मधुर मन गाँव की माटी गाँव की यादें हैं ।मिट्टी पर पड़ती पानी की बूँदे हैं सोंधि ख़ुश्बू मन संचार जागती हैं ।रबड़ी दूध आम हरयाली साग संग हैं स्वाद संवाद दादी नानी के नुस्ख़े से ,भूख बढ़ प्यार कोई सेवा यथार्थ साथ सतकर्म नहीं है! जिसके लिए इंसान हद से गुज़र जाता है !हर किसी इंसान के लिए बिदाई आसान नहीं है !पारिवारिक वृक्षारोंपण करना हैं पूर्वजों सीख पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढ़ाना हैं ।यही निष्ठा कर्म प्रतिफल हैं हमारा सत्कर्म आस्था और विश्वास जगाना हैं इसीलिए हम कहते है । कर्म तय करते है मृत्यु अंतिम बिदाई है ! प्रकृति जीवन का यथार्थ सत्य है जो आया हो जाएगा !
- अनिता शरद झा
रायपुर - छत्तीसगढ़
जैसा कर्म करेगा वैसा फल मिलता है, तथागत सत्य है। कर्म तय करते हैं मृत्यु की अन्तिम विदाई, हर किसी की किस्मत में नहीं होती आसान विदाई! हम जीवन में भविष्य काल के बारे में सोचते नहीं है। न हीं पूर्व काल देखते है। मात्र वर्तमान की सोचकर जीते है। ऐसे कम जन होते है, जो हर पल सोच-सोच कर जीते है, उन्हीं की मृत्यु आसान होती है। जो अकर्म करते हुए जीते है, उन्हें अनेकों प्रकार के कष्ट सहने होते है, अकाल मृत्यु प्रत्यक्ष उदाहरण है। कभी-कभी अच्छे कर्म करते-करते अकर्म भी हो जाते है, जिसका परिणाम हमेशा संकट मय हो जाता है।
- आचार्य डाॅ.वीरेन्द्र सिंह गहरवार "वीर"
बालाघाट - मध्यप्रदेश
कर्मों का संगीत बड़ा अनोखा है कर्म ही दुश्मन और मीत बनाते हैं. किसी के भले के लिए बोया गया नेकी का बीज हमारे आँगन में प्रीत के गीत गाता है. जैसे कर्म करते हैं, वैसा ही फल मिलना तय है. "बोया पेड़ बबूल का तो आम कहाँ से होय" एक कहावत है, जिसका अर्थ है कि अगर आप गलत काम करते हैं तो आपको अच्छा फल नहीं मिल सकता है. यह कहावत बताती है कि कर्म के अनुसार ही फल मिलता है, और बुरे कर्मों का परिणाम बुरा ही होता है. बबूल के बीज की बात केवल एक रूपक है जो अच्छे कर्मों और परिणामों के संबंध को दर्शाती है. अच्छे कर्मों से मृत्यु की अंतिम विदाई भी आसान हो जाती है, वरना मृत्यु की अंतिम विदाई अत्यंत दर्दनाक भी देखी गई है. सबकी किस्मत में नहीं होती आसान विदाई, इसलिए मृत्यु की अंतिम विदाई आसान करने के लिए अच्छे कर्म करना आवश्यक है. अच्छे कर्म ही अगले जन्म के लिए एक उत्कृष्ट निवेश के समान भी हैं!
- लीला तिवानी
सम्प्रति - ऑस्ट्रेलिया
कर्म प्रधान विश्व रचि राखा। जो जस करहिं हो तब फल चाखा।। कर्मभोग चक्र में ही तो हम इस संसार में बार बार जन्म और मृत्यु के चक्कर में फंसे रहते हैं। पुनरपि जन्मं पुनरपि मरणं, कर्मों के अनुसार ही मृत्यु का,जीवन का निर्धारण होता है और विदाई का स्वरूप भी। कोई हंसते-हंसते चल देता है और मृत्यु की कामना करते हुए दुख भोगता है। कर्मबंधन ही संसार के कारोबार के मूल में है। इसलिए कर्म हमेशा अच्छे ही करने चाहिए।
- डॉ.अनिल शर्मा 'अनिल'
धामपुर - उत्तर प्रदेश
हमारे कर्म ही हैं जो अंतिम समय का सफर , व उसकी गुणवत्ता तय करते हैं ! जिसके जैसे कर्म होते हैं , वैसा ही उसे फल मिलता हैं! यदि व्यक्ति ने अपनी जिंदगी में लोगों की भलाई की है , उनकी जरूरत के समय सहायता की है , नेक कार्य किए हैं , तौ निश्चय ही उस व्यक्ति को अच्छा फल मिलता है , वो फलस्वरूप व्यक्ति की अंतिम विदाई सुगम होती है !! हर व्यक्ति आसान विदाई चाहता है , पर अफसोस की यह बाजार मैं उपलब्ध बिकाऊ वस्तु नहीं , जिसे लोग पैसे से खरीद सकें !! ऐसा क्यों होता है ?.. इस प्रश्न का उत्तर किसी के पास नहीं !! ईश्वर के पास , वक्त की ऐसाअदृश्य तराजू होता है , जिसमें सबके , अच्छे बुरे कर्म तुलते हैं , व उनका फल भी उन्हीं कर्मों के अनुसार मिलता है !! इसलिए अपना भविष्य , वो अपनी अंतिम विदाई सुधारने हेतु हमें अच्छे कर्म ही करने चहिए !!
- नंदिता बाली
सोलन - हिमाचल प्रदेश
मनुष्य का कर्म ही उसके जीवन की पहचान बनाता है। मृत्यु तो प्रकृति का अटल सत्य है, परंतु अंतिम विदाई की सरलता और सम्मान उसी को प्राप्त होते हैं जिसने जीवन भर सत्य, न्याय, करुणा और मानवता के लिए अपने कर्मों को समर्पित किया हो। चूंकि हर किसी को सहज, सम्मानपूर्ण और शांति से भरी विदाई नहीं मिलती है। क्योंकि ऐसा सौभाग्य भाग्य नहीं, बल्कि कर्मों की उज्ज्वल विरासत से मिलता है। उल्लेखनीय है कि जो व्यक्ति जीवन भर संघर्षों का सामना करते हुए भी सत्य के मार्ग पर चलता है, राष्ट्र और समाज के लिए समर्पित रहता है, उसकी अंतिम विदाई साधारण नहीं होती है सत्य तो यह है कि वह एक आदर्श की विदाई, एक कर्मयोगी की विदाई होती है और एक प्रेरणा की विदाई बनकर आने वाली पीढ़ियों के लिए मार्गदर्शन छोड़ जाती है। अतः कर्म ही वह दीपक है जो मृत्यु के अंधकार से भी आगे प्रकाश फैलाता है।
- डॉ इंदु भूषण बाली
ज्यौड़ियॉं (जम्मू ) -जम्मू और कश्मीर
कर्म तय करते हैं मृत्यु की अंतिम विदाई, हर किसी की किस्मत में नहीं होती आसान विदाई... यही बातें हम अपने पूर्वजों के समय से सुनते आ रहे हैं... राजा दशरथ द्वारा श्रवण कुमार की मृत्यु ... एक पाप, वह भी अनजाने में ! निर्दोष होते हुए भी श्रवण कुमार की माता-पिता ने उनकी मृत्यु के समय एक भी पुत्रों का न होने का श्राप दिया। राजा दशरथ की दुखी आत्मा भटकती रही। वह तो त्रेतायुग यानी प्रभु राम का युग था। किंतु इस कलयुग में हम ऐसी आध्यात्म की बात सोचते हैं तो क्या यह उचित है...? सुनते ही डर लगता है। यह सतयुग नहीं कलयुग है... यहां ऐसा कौन है जिसने पाप ना किया हो...? झूठ बोलने का, किसी को प्रताड़ित करने का, अनैतिक कार्य,मारपीट,लूटना ,गंदी प्रवृत्ति, बड़े -बुढों का अपमान, नारी को कलुषित करना यह सभी पाप है जो इसी जन्म में किए हैं...क्या उसे अपना पुनर्जन्म याद है कि उसने पाप किया है या पुण्य ?नहीं! यह जरूरी नहीं है, हां! कुछ हद्द तक हम अपने कर्म का भुगतान इसी जन्म में भुगतते हैं। यह सच है अंतिम घड़ी में मृत्यु बहुत ही कठोर हो जाती है...हमारी जिंदगी का एक एक ब्योरा याद दिलाती है।इसका यह मतलब नहीं है कि हमारे कर्म हमें मुक्ति नहीं दे रहे। मेरे भैया कैंसर से पीड़ित हैं, तकलीफ है किंतु मोक्ष की प्राप्ती नहीं हुई है। उन्होंने जो धर्म कर्म किया है उसकी गिनती नहीं है। गरीब उन्हें अन्नदाता कहते हैं। पूण्य आत्मा है फिर भी...इस जन्म के पाप नहीं है ,तो क्या पूर्व जन्म के पाप से पीड़ित कहेंगे,....मृत्यु किसी की अपनी नहीं होती...जब आनी होगी आएगी... बाकि तो डोर ईश्वर के हाथ है ...
- चंद्रिका व्यास
मुंबई - महाराष्ट्र
कहा जाता है कि मनुष्य के कर्म ही उसकी मृत्यु की अंतिम विदाई का स्वरूप तय करते हैं। मृत्यु तो सभी को आनी है, पर हर किसी को सम्मानपूर्ण और सहज विदाई नहीं मिलती। जिस व्यक्ति ने जीवनभर स्नेह, सेवा, आदर और मानवीयता के बीज बोए होते हैं, उसकी विदाई आँसुओं, प्रेम और श्रद्धा के साथ होती है। वहीं जिसने अपने कर्मों से कड़वाहट, दूरी या पीड़ा को जन्म दिया हो, उसकी अंतिम यात्रा अक्सर अकेली, उपेक्षित या तनावभरी हो जाती है। वास्तव में विदाई की कठिनाई या सरलता जीवन में किए गए आचरणों का ही प्रतिबिंब होती है। शरीर भले न रहे, पर कर्म स्मृतियों में जीवित रहते हैं और यही स्मृतियाँ तय करती हैं कि व्यक्ति की अंतिम यात्रा कितनी गरिमामयी होगी। इसलिए कहा जाता है कि मृत्यु की नहीं, बल्कि जीवन के कर्मों की तैयारी करनी चाहिए, क्योंकि वही विदाई को अर्थ और सम्मान देते हैं।
- डाॅ.छाया शर्मा
अजमेर - राजस्थान
कर्म किए जा फल की इच्छा मत करना इंसान जैसे कर्म करेगा वैसा फल देंगे भगवान यह है गीता का ज्ञान, अगर कर्मों की बात की जाए तो कर्म ही मनुष्य का वर्तमान व भविष्य बनाते हैं कर्म ही तय करते हैं की हम अपने जीवन को उज्ज्वल बना सकते हैं या अन्धकार की तरफ ले जाते हैं कहने का भाव व्यक्ति के जीवन से लेकर मृत्यु तक हमारे कर्म ही सब कुछ तय करते हैं तो आईये आज की चर्चा इसी बात पर करते हैं की कर्म ही तय करते हैं मृत्यु की अंतिम विदाई ,हर किसी की किस्मत में नहीं होती आसान विदाई,यह अटूट सत्य है कि कर्म ही तय करते हैं मनुष्य की अंतिम यात्रा कैसी होगी क्योंकि यह कथन कर्म के सिदांत को दर्शाता है जिसके अनुसार जीवन भर के कर्म ही उसकी मृत्यु की यात्रा और आगे के जीवन को तय करते हैं क्योंकि आत्मा अपने साथ कर्मों को लेकर जाती है और यही कर्म अगले जन्म में उसका स्वरूप तय करते हैं या मोक्ष की तरफ ले जाते हैं यह भी सच है की हर किसी की किस्मत में नहीं होती आसान विदाई कहने का भाव जीवन के अंत तक पहुंचने का रास्ता इतना आसान नहीं है कभी कभी विदाई का समय कठिन और दर्दनाक भी हो सकता है, कहने का मतलब व्यक्ति के कर्म ही तय करते हैं उसकी अंतिम विदाई की यात्रा कैसी होगी या बीच का जीवन कैसा गुजरेगा, क्योंकि बचपन और जवानी के समय व्यक्ति को महसूस नहीं होता की वो क्या कर रहा है लेकिन अंतिम समय में उसे अपने किये हुए कर्म याद आते हैं ,खासकर जब मनुष्य तकलीफ में होता है या लम्वी बिमारी या किसी हादसे का शिकार होता है तो उसे अपना एक एक कर्म याद आता है कि उसमे जीवन में क्या खोया है और क्या पाया है, इसलिए हमें जीवन में आने वाली हर चुनौती के लिए सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाना जरूरी है क्योंकि यही जीवन को बेहतर बना सकता है देखा जाए कर्म और मेहनत ही जीवन को प्रभावित करते हैं और अपनी मेहनत से हम अपनी किस्मत को कुछ हद तक बदल सकते हैं,कर्म ही तय करते हैं कि मृत्यु की अंतिम विदाई कैसी होगी क्योंकि हमारे कर्म और संस्कार ही अपने साथ जाते हैं यही नहीं हमारे कर्म और संस्कार हमारे वर्तमान और भविष्य का दर्पण होते हैं।
- डॉ सुदर्शन कुमार शर्मा
जम्मू - जम्मू व कश्मीर
मनुष्य की मृत्यु की अंतिम विदाई कर्म तय करते हैं इस विषय में स्पष्टत: नहीं कहा जा सकता क्योंकि अक्सर देखा जाता है कि कभी-कभी मनुष्य बहुत अच्छे कर्म करने के उपरांत भी अंतिम समय में बहुत अधिक कष्ट लम्बे समय तक तनमन से पूरी तरह असहनीय पीड़ा भोगता हुआ इस संसार से विदा होता है इस बारे में लोग कहने लगते हैं कि पूर्व जन्म के कर्म खराब रहे होंगे इसलिए इसको अंतिम समय में इतना कष्ट हो रहा है और यह भी देखा गया है कि कभी-कभी बहुत खराब कर्म दुराचारी दुष्ट व्यक्ति अचानक ही इस संसार से बिना कष्ट भोगे अचानक विदा हो जाते हैं । कर्मों से जन्म मृत्यु का निर्धारण का उदाहरण श्रवण कुमार की मृत्यु से दुखी उसके माता-पिता ने दशरथ को भी अन्तिम समय में जो शाप दिया था कि जैसे हम पुत्र वियोग में मर रहे हैं वैसे तुम भी मरोगे, और हुआ भी। ऐसे ही नारद को बंदर का मुख बनाने के बाद जो अपमान सहकर उन्होंनें जो श्राप विष्णु जी को दिया वही पत्नी वियोग का शाप रामचंद्र जी के द्वारा सीता वियोग सहना सर्व विदित है । तो इन सब बातों से स्पष्ट होता भी है कि हां पूर्व जन्म के हमारे जो कर्म होते हैं वह शापित होकर हमें इस जन्म में अवश्य भोगने होते हैं और अंत समय में वह सब मनुष्य को याद आते हैं पर वह किसी अन्य से उसका बखान नहीं कर पाता ।उस कृत्य के फल को वह स्वयं ही जानता है जो कि अदृश्य होता है। कष्टप्रद मृत्यु की विदाई किसी को प्रिय नहीं होती। अतः मनुष्य को सदैव सबके साथ सद आचरण, सुकर्म, धर्मवान रहते हुए जीवन व्यतीत करना चाहिए अंत तो होना ही है यदि अच्छे से हो तो फिर स्वर्ग की प्राप्ति या फिर प्रभु के चरणों में परिणति अवश्यंभावी है ।
- डॉ.रेखा सक्सेना
मुरादाबाद - उत्तर प्रदेश
" मेरी दृष्टि में " मौत हर किसी की आसान नहीं होती है। जो कर्म के स्तर से प्रभावित होती है। फिर भी मौत तो मौत होती है। मौत से पहले का कुछ समय बहुत कुछ बोलता है कि मौत को किस - किस पीड़ा से गुजरना पड़ता है। इस सच्चाई से भागा नहीं जा सकता है।
हमारे धर्म ग्रंथों में चाहे वे वेद, पुराण और रामायण हो या अन्य वांड्ग्मय सभी का निष्कर्ष है कि "जो जस करइ सो तस फल चाखा " लोक में भी प्रचलित है कि जो जैसा करेगा, वैसा भरेगा।
ReplyDelete- डॉ। अवधेश कुमार चंसौलिया
ग्वालियर - मध्यप्रदेश
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