ऋत्विक घटक स्मृति सम्मान - 2025
आज का युग भौतिक सुख-सुविधाओं और धन की चकाचौंध में इतना डूब गया है कि मनुष्यता की ऊष्मा ठंडी पड़ती जा रही है। लोग पैसे से प्रेम इसलिए करते हैं क्योंकि वह सुविधा, प्रतिष्ठा और शक्ति का प्रतीक बन गया है; परन्तु मनुष्य से घृणा इसलिए करने लगे हैं क्योंकि मनुष्य अब उन्हें लाभ-हानि के तराजू में तौलता है। यह स्थिति न केवल नैतिक पतन का संकेत है, बल्कि मानवीय मूल्यों के क्षरण का भी प्रमाण है। जब तक समाज में व्यक्ति का मूल्य उसकी मानवता से नहीं, बल्कि उसकी आर्थिक स्थिति से आँका जाएगा, तब तक सच्चा प्रेम, संवेदना और करुणा केवल शब्दों तक सीमित रहेंगे। धन आवश्यक है, परन्तु धन के पीछे दौड़ते-दौड़ते यदि हम मनुष्य को ही भूल जाएँ, तो यह सभ्यता का नहीं, पतन का मार्ग है। अतः आवश्यक है कि हम धन के प्रति नहीं बल्कि धर्म, मानवीयता और मौलिक कर्तव्यों के प्रति प्रेम करना सीखें। तभी मनुष्यता पुनः धन पर विजय प्राप्त कर सकेगी।
- डॉ. इंदु भूषण बाली
ज्यौड़ियॉं (जम्मू) -जम्मू और कश्मीर
लोग पैसे से तो प्यार करते हैं ... इस कथन में मैं व्यक्तिगत रूप से संशोधन करना चाहती हूं , कि लोग पैसे से ही प्यार करते हैं !! पैसा आजकल की दुनियां मे सब कुछ है... दिन भी और ईमान भी !! आजकल की दुनियां में इंसान की कोई कीमत नहीं रही , पैसा है जहां , लोग हैं वहां !! जिसके पास पैसा है , उसी इंसान की कद्र होती है , सम्मान होता है , लोग उन्हीं लोगों के आस पास मंडराते हैं , व उनका दायां हाथ बनकर रहते हैं !! ऐसे सच्चे, ईमानदार , स्वाभिमानी, सज्जन व्यक्ति को कोई नहीं चाहता, जिसके पास पैसा नहीं !! कैसी विडंबना है आज के जीवन की , जिसमें इंसान का नाम, रुतबा , शोहरत , सब , पैसे से तोला जाता है !! अच्छे इंसान से सब नफ़रत करते हैं , जिसके पास पैसा नहीं !! पैसा बोलता है, पैसा तोलता है !!
- नंदिता बाली
सोलन - हिमाचल प्रदेश
पैसा चीज ही ऐसी है, प्यार क्यों नहीं करेंगे भला, करेंगे ही।इस संसार में बिना पैसे के कुछ होता है क्या? प्रकृति प्रदत्त सुविधाएं भी अब जैसे पानी बिना पैसे नहीं मिलता।जीवन की कल्पना बिन पैसे नहीं कर सकते। पैसा जीवन के लिए ऐसे ही जरुरी है जैसे आक्सीजन।अब बात रही इंसान से नफ़रत की तो इंसान से नफ़रत नहीं उसके कामों से नफ़रत होती है। उसकी हरकतों से ही नफरत होती है। अब यह भी जरूरी है कि पैसे से प्यार के चक्कर में इंसान से नफ़रत न करें। इंसान को भी पैसे से कम महत्त्व न दें बल्कि अधिक महत्त्व दें। इंसान हैं तो पैसा काम आएगा,वह कमाएगा भी और लगाएगा भी। हो पैसे से भी प्यार और इंसान से भी प्यार,तभी बहुत सुखी रहेगा संसार।
- डॉ.अनिल शर्मा 'अनिल'
धामपुर - उत्तर प्रदेश
आज के समय की सबसे बड़ी विडंबना यही है कि लोग पैसे से तो प्यार करते हैं, पर इंसान से नफरत करते हैं। मानो मानवीय संबंधों की गर्माहट अब नोटों की ठंडक में जम सी गई हो। पहले लोग दिल से जुड़ते थे, अब लाभ देखकर रिश्ते बनाते हैं। मित्रता भी अब सुविधा का सौदा बन चुकी है और सेवा में भी स्वार्थ की गंध आ गई है। किसी गरीब या बीमार को देखकर हमारी संवेदनाएँ नहीं, हमारी जेब पहले सोचती है। पैसा साधन होना चाहिए था, साध्य बन गया है। इससे घर तो बनते हैं, पर परिवार नहीं; वस्तुएँ खरीदी जाती हैं, पर स्नेह नहीं। समाज में अब “क्या है” से ज़्यादा “कितना है” पूछा जाता है। यह स्थिति चिंताजनक है क्योंकि जहाँ धन का आकर्षण बढ़ता है, वहाँ मनुष्यता घटती है। फिर भी उम्मीद बाकी है—क्योंकि आज भी कई लोग ऐसे हैं जो दूसरों की मदद कर अपने हृदय में इंसानियत को जिंदा रखे हुए हैं। ज़रूरत इस बात की है कि हम पैसे को अपना मालिक न बनाएँ, बल्कि उसे मानव सेवा का माध्यम बनाकर जीवन को सार्थक करें। तभी यह दुनिया फिर से रिश्तों की गर्मी और प्रेम की रोशनी से जगमगा उठेगी। सच यह है कि पैसा बुरा नहीं, पर उसके प्रति अत्यधिक मोह मानवता को बंजर बना देता है। जब धन का प्रेम सेवा में बदलता है, तो वही समाज को ऊँचाई देता है। पर जब धन का प्रेम स्वार्थ में बदलता है, तो इंसानियत मर जाती है। इसलिए हमें यह याद रखना चाहिए —“धन कमाना गलत नहीं, पर धन को भगवान बना लेना सबसे बड़ा पतन है।”
- डाॅ.छाया शर्मा
अजमेर - राजस्थान
आज के समय में पैसों का स्थान सर्वोपरी हो गया है। जिसके पास पैसा होता है, उसकी इज्जत अपने-आप बढ़ जाती है। दूसरे हम सबकी यह धारणा बन गई है कि पैसों से सब कुछ भले ही नहीं, परंतु बहुत कुछ खरीदा जा सकता है। इसलिए पैसों से सब प्यार करने लगे है और पैसों की चाहत में दीवाने हो गए हैं। क्योंकि पैसों की कोई सीमा नहीं है, जितने ज्यादा होंगे, उनकी सामर्थ्य बढ़ती जाएगी। इसके विपरीत इंसान से नफरत बढ़ती जा रही है । वह इसलिए कि हम हर इंसान को अपने रास्ते का पत्थर समझने लगे हैं। हम नहीं चाहते कि हमारे और पैसों के बीच कोई तीसरा हो। इस व्यवहारिकता में एक बात और दिखाई देती है वह यह कि अब हम सामान्य रूप में लोगों की आवभगत में पैसे खर्च नहीं करना चाहते। हम इसे फालतू का खर्च समझते हैं। इसीलिए हम परिचितों से दूरी बनाकर ही रहते हैं। हम खर्च तब ही करते हैं जब हमें हमारी प्रतिष्ठा को दिखलाना होता है, यानी हम जब कोई कार्यक्रम का आयोजन करते हैं तब हम पैसों को पानी की तरह बहाने में तनिक भी नहीं झिझकते। सार यह कि आज के समय लोग पैसों को ही महत्व देते हैं और हर वक्त पैसों की ही सोच लेकर कोई कार्य करने में रुचि रखते हैं। इसे ही पैसों से प्यार करना हुआ और जिसमें कोई खर्च करने की स्थिति बनती है, लोग उससे बचकर निकलना चाहते हैं। यह इंसान से नफरत करना हुआ।
- नरेन्द्र श्रीवास्तव
गाडरवारा - मध्यप्रदेश
आज का इंसान माया के हाथों की मात्र कठपुतली रह गया है।जब जैसे माया नचाती है,वह नाचता है। उसके लिए रिश्ते- नाते- संबंध किसी का कोई अर्थ नहीं रह गया है।वह पैसे के लिए कुछ भी कर सकता है। धोखा-छल-कपट-हिंसा सब इसी पैसे की लालच के अंतर्गत ही आते हैं। हाँ, किंतु यह भी एक सच है कि जिसने मानवता को जिया,वह परहित में ही जीवन व्यतीत करता है और उसके लिए पैसा भी सेवा में ही समर्पित है।
- वर्तिका अग्रवाल 'वरदा'
वाराणसी - उत्तर प्रदेश
सही सार्थक और सारगर्भित विषय चुनने के लिए हार्दिक बधाई। कलियुग की रीत के अनुसार मनुष्य पैसे को अधिक प्रेम करता है और मनुष्य से नफ़रत करता है। पैसा तो कर्म से कमाया जा सकता है लेकिन आदमी कमाने के लिए सदियां लग जातीं हैं। न जाने पैसे ने मनुष्य को अन्धा बना दिया है जिससे वह मानवीय संवेदना भूलता जा रहा है। और मानव से नफ़रत करने से परहेज़ करनें लगा है । यही कारण है कि आज पढ़ कर कितना भी विद्वान बन जाए कितने भी शोध ग्रन्थ लिख दें लेकिन यदि वह धनवान नहीं है तों उसे मान सम्मान नहीं मिल सकता। इसे मानव में तनाव की स्थिति यथावत बनी है। कितना ही विद्वान व्यक्ति यदि धनवान की सभा में जाते है तों उसकी विद्ववता का भद्दा मज़ाक उड़ाया जाता है। आज यह चिन्तन का विषय है कि धन के आगे विद्वान बौनै हो कर रह गये है।।
- मदन हिमाचली
नौणी ( सोलन ) - हिमाचल प्रदेश
लोग पैसों से तो प्यार करते हैं परंतु इंसान से नफ़रत करते हैं... यह सत्य है कि हम पैसों से प्यार करते हैं किंतु इंसान से भी प्यार करते हैं। यह प्यार नफ़रत में तब बदलता है जब हम अपनी उनकी , परिवार की इच्छाएं पूर्ण नहीं कर सकते। प्यार एक आंतरिक भावना है किंतु उसको जोड़ने का काम पैसा ही करता है। प्यार से क्षुधा शांत नहीं हो सकती उसके लिए हमें पैसे चाहिए। पैसा हमें ताकत देता है ,समाज में इज्जत देता है एवं हमारे सपने पूरे करता है। पैसा बुरा नहीं होता पैसे का गलत इस्तेमाल बुरा होता है जो इंसानों को रिश्ते और भावनाओं से दूर कर देता है , वर्ना पैसे से तो हम सारी खुशियां परिवार को दे उनका प्यार पा सकते हैं ।
- चंद्रिका व्यास
मुंबई - महाराष्ट्र
जीवन एक परिदृश्य है, जहाँ पैसे का महत्वपूर्ण योगदान है, आपके पास अगर अपार धन सम्पदा है, आगे पीछे तो घुमेंगे ही साथ ही विशिष्ट समारोह में धन ही लुटाते नजर आयेगें, आरामदायक वाहनों में देख लीजिए, क्या गजब का पैसा है, ऐसा प्रतीत होता है कि हम है तो कोई नहीं। पैसे के बदोलत दे दा कर दूसरी की भूमि हड़प लीजिए, आलीशान मकान बना लीजिए, बोलने वाला कौन, हम है तो कोई नहीं, लोग पैसे से तो इतना प्यार करते हैं, परन्तु इंसान से नफ़रत करते हुए दिखाई देते है। अगर इंसान पैदल या साईकिल से आता जाता है, तो उसे हीनभावना से देखा जाता है, अगर धौके से देख लिया नमस्कार तो छोड़ो, अनदेखा कर लेते है, याने इतना नफ़रत किस बात का समझ ही नहीं आता है.....
- आचार्य डाॅ.वीरेन्द्र सिंह गहरवार "वीर"
बालाघाट - मध्यप्रदेश
लोग पैसे से तो प्यार करते है परंतु इंसान से नफ़रत करते है । लोग पैसे को इंसानी गुणवत्ता से से ज्यादा महत्व देते हैं। पैसे हमें हमारे लिए महत्वपूर्ण इसलिए है ! इंसान जब दुनिया में आता है तो सबसे जरूरी पेट भूख प्यास को शांत करना जो उसे मेहनत से मिलती हैं ! उसके लिए इंसान किसी भी हद तक गिर हासिल सकता है भूख प्यास में उसे किसी भी स्तिथि का ज्ञान नही होता उसे पैसे कहाँ से और कैसे मिलेंगे उसे अपने अपने परिजनों का ध्यान आर्थिक सुरक्षा जीवन को सुचारु रूप से चलाने में सज्ञान ले मदद करते हैं। पेट अग्नि शांत होती तब अच्छे बुरे का ज्ञान होता है अपनी नियत नीति व्यवहार सुधार जीवन व्यापन में लगता है ! वंही इंसान के मन भावना में स्वार्थ प्रलोभन होता है ।लोग पैसे को इंसानों से ज्यादा महत्व देते हैं, इससे रिश्तों आचार व्यवहार सोच भावनात्मक दूरी बढ़ जाती है । पैसे की महत्ता के कारण रिश्तों में दरार आ सकती है और लोगों के बीच अविश्वास बढ़ सकता है।जहाँ आत्मिक संतुलन की आवश्यकता होती है भावनात्मक संबंध इंसानियत को मजबूत बना इंसान अपने जीवन को सुखी अर्थपूर्ण बना सकता हैं।नियत नीति को सुघड़ बना इंसान से नफ़रत करना भूल जाता है ! आज के समय इतने अधिक सुचारूप से जीवन चलने चलाने हर क्षेत्र में विचार,वीडियो रील की सार्थकता जरूरत को समझे अनावश्यक चीजों को अपने जीवन से हटाए , इंसान पैसे की गरिमा का सही आँकलन कर इंसानी जीवन की सोच निर्मल रख आने वाली पीढ़ी को सुधार सकता है ! मानव मानवता से प्रेम करे । जीवन की राहे सफल बनाए ।
- अनिता शरद झा
रायपुर - छत्तीसगढ़
आजकल ये बात सत्य हो रहा है कि लोग पैसे से प्यार करते हैं परंतु इंसान से नफरत करते हैं. आजकल लोगों के लिए सबकुछ पैसा ही है. इंसान और इंसानियत कोई मायने नहीं रखती है. नाते रिश्तेदार भी पैसा ही देखते हैं. लोग रात दिन पैसे के चक्कर में रहते हैं. किस विधि से पैसा आए चाहे उसके लिए इंसानियत का खून भी करना पड़े लोग करने को तैयार रहते हैं. जिनके पास पैसा अधिक है वो इंसान को तो कुछ समझते ही नहीं है. लेकिन जहां पैसा काम नहीं आता है वहां इंसान ही काम आता है. फिर भी लोग पैसे से प्यार करते हैं और इंसान से नफरत करते हैं.
- दिनेश चंद्र प्रसाद " दीनेश "
कलकत्ता - प. बंगाल
यह सच है कि लोग पैसे से तो प्यार करते हैं लेकिन इंसान से नफरत करते हैं आज के युग में भौतिक सुख सुविधाओं को पूरा करने के लिए मनुष्य को पैसे की आवश्यकता होने के कारण उसे पैसे से प्यार बहुत होता है वह सोचता है कि इंसान इंसान के काम नहीं आएगा पैसा ही काम आएगा और मैं जब अधिक पैसे वाला हो जाऊंगा तो कहीं मेरे अपने ही लोग मुझसे नफरत न करने लगे इसलिए ऐसा सोच करके वह अपने रिश्ते नाते तथा गैर मनुष्यों से भी दूरी बनाए रखना पसंद करता है ।यहां तक सबसे नफरत भी करने लगता है पर मनुष्य ऐसा करते समय यह भूल जाता है कि एक समय तक तो पैसा काम आता है परंतु बुढ़ापे में ना पैसा काम आता है और कुछ साधन ही काम नहीं आते हैं सिर्फ अपनी सहायता करने वाले सेवा करने वाले मनुष्य ही चाहें वह रिश्तेदार हैं चाहे वह आपके परिचित हो, वह ही काम आते हैं। इसीलिए लाइफ में बैलेंस बनाकर रखना चाहिए ।
- डॉ.रेखा सक्सेना
मुरादाबाद - उत्तर प्रदेश
" मेरी दृष्टि में " इंसान पैसे का इस्तेमाल तो अवश्य करता है। परन्तु पैसा, जिस इंसान से आता है। उस से नफ़रत करता है। यह इंसान की विडंबना कहें या सोच का परिणाम ? फिर यह सब कुछ इंसान ही करता है। जब इंसान का इस्तेमाल करते रहते है। तो वह बहुत अच्छा है। जब जरूरत खत्म हो जाती है तो वह इंसान सबसे बुरा हो जाता है।
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