कैलाश वाजपेयी स्मृति सम्मान -2025
मां का दर्जा सबसे ऊंचा होता है व मां ही एक ऐसी होती है , जो बिना किसी आशा के , बिना किसी स्वार्थ के , बिना सोचे समझे , अपने बच्चे से प्यार करती है ! सर्दी हो या गर्मी , धूप हो या छांव , चाहे समय हो या न हो , सदा अपने बच्चों को प्यार करती है , वो चिंता करती है ! देती ही देती है , कुछ नहीं लेती !! लुटा देती है अपने जीवन के अनमोल पल , अनमोल रिश्ते , अपनी बच्चों की सलामती के लिए !! बाकी सब रिश्ते स्वार्थी होते हैं , हर चीज के बदले कुछ चाहते हैं , मिल भाव करते हैं !! ये अलग बात है कि अपवाद हर जगह होते है , पर यहां हम आम व्यक्ति की बात कर रहे हैं !
- नंदिता बाली
सोलन - हिमाचल प्रदेश
अगर हम सच्चे व निस्वार्थ प्रेम की बात करें तो सच में प्रेम किसी आवश्यकता या मलिकाना हक पर आधारित नहीं होता बल्कि यह एक स्वतंत्रता ,करूणा और आनंद की एक अवस्था है जो सिर्फ मां के प्रेम में से ही पाई जा सकती है लेकिन अधिकांश लोग प्रेम नहीं बल्कि आवश्यकता को प्रेम समझ लेते हैं,लेकिन सच्चा प्रेम तब होता है जबकि जरूरत न हो केवल देने की भावना हो लेकिन ऐसा प्रेम सिर्फ मां ही दे सकती है,तो आईये आज की चर्चा इसी बात पर करते हैं कि निस्वार्थ प्रेम करने वाली सिर्फ मां होती है बाकी सब लेन देन के भक्त होते हैं,यह अटूट सत्य पर आधारित व परखी हुई बात है कि मां का प्रेम वह महान उमड़ता हुआ दिव्य प्रवाह है जो मानवता में सदा सदा के लिए प्रवाहित रहता है देखा गया है कि निस्वार्थ प्रेम वह प्रेम है जिसमें सभी के प्रति सम्मान, दया और करूणा दिखाई देती हो और बदले में कुछ भी लेने की भावना न हो ऐसा प्रेम केवल मां का प्रेम ही हो सकता है मां का प्रेम ही एक ऐसा प्रेम है जो निस्वार्थ यानि बिना शर्त बाला होता है क्योंकि मां बिना किसी अपेक्षा के अपने बच्चों को सब कुछ देती है तथा दिल से प्यार व ख्याल रख कर अपने त्याग का आनंद लेती है और उसका प्यार मार्गदर्शन से भरपूर होता है, जो बच्चों पर गहरा प्रभाव डालता है, अपने बच्चों की खुशी के लिए मां का त्याग सर्वश्रेष्ठ माना गया है मां का प्यार ही बिना स्वार्थ और अपेक्षा के बिना होता है जिसको दुनिया का शक्तिशाली प्यार माना जाता है बाकि तो सब लेन देन के पीछे पडे रहते हैं अन्त में यही कहुंगा कि मां ही निस्वार्थ प्रेम का प्रतीक है जो सुरक्षा और मार्गदर्शन से भरपूर होता है और यही प्रेम गहरा और पावित्र माना जाता है क्योंकि मां का प्रेम हर हाल में बना रहता है जो बिना शर्त के होता है चाहे खुशी हो या गम मां हमेशा बच्चे को गले लगाती है सच कहा है तूने तो रूला के रख दिया ऐ जिंदगी, जा कर पूछ मेरी मां से कितना लाडला था मैं, कहने का मतलब मां का प्रेम किसी आम प्रेम के लेन देन जैसा नहीं होता बल्कि यह एक निस्वार्थ और अटूट बंधन है जबकि अन्य प्रेम अक्सर लेन देन पर आधारित होते हैं तभी तो कहा है, मां की गोद ही वो जन्नत है यहां हर गम का दर्द मरहम देता है।
- डॉ सुदर्शन कुमार शर्मा
जम्मू - जम्मू व कश्मीर
नि:स्वार्थ प्रेम करने वाली सिर्फ मां होती है बाकि तो सब लेन-देन के भक्त होते हैं.... इसमें कोई दो राय नहीं! मां के निस्वार्थ प्रेम की श्रेष्ठता को आंका नहीं जा सकता।मां का प्यार इतना गहरा होता है कि वह नौ महीने पेट में ही उसकी नाल से जुड़ जाता है। प्यार भी कैसा....? यदि बच्चे के जन्म के समय तकलीफ आने पर मां यही कहती हैं मेरी चिंता ना करें पहले मेरे बच्चे को बचायें। मां का प्यार नि:स्वार्थ होता है... पहले वह अपने बच्चे का सुख देखती है। खुद गीले में सोकर उसे सूखे में सुलाती है। बच्चे का पेट भरा देख उसका पेट भर जाता है। मां की ममता, प्रेम अनमोल है। मां अपनी संतान से भी अपने लिए प्रेम के अलावा किसी प्रकार की अपेक्षा नहीं रखती।मां कभी कोई उम्मीद नहीं रखती किंतु अन्य रिश्ते प्यार के साथ उम्मीद और अपेक्षाएं लिए रहते हैं। मां के प्रेम से ईश्वर भी वंचित नहीं रहे हैं। संतान बड़े होने पर अपना फायदा देखती है... मां साथ रहेगी तो हमारे बच्चों का, घर का ध्यान रखेगी। मां बुढ़ी होकर भी नि:स्वार्थ उनके बच्चों को भी वही प्यार और ममता देती है। मां तो मां होती है और ईश्वर भी मां का प्यार दुलार पाने के लिए जन्म ले उसकी गोद में आने से अपने आप को रोक नहीं सकते।
- चंद्रिका व्यास
मुंबई - महाराष्ट्र
सच यही है कि निस्वार्थ प्रेम करने वाली सिर्फ माँ ही होती है। माँ के प्रेम में समर्पण भी होता है और सुरक्षा भी। उनके प्रेम में सेवा भाव भी होता है और विश्वास भी है। इसलिए माँ के रहते बच्चे निश्चिंत रहते हैं, निर्भीक रहते हैं। माँ के विषय में जितना कहा जाये, कम ही रहेगा। बच्चों के लिए माँ सब कुछ सहने तत्पर रहती है। इसलिए माँ के प्रेम के आगे अन्य के प्रेम बौने ही लगते हैं। या यूँ कहें कि माँ का प्रेम अतुलनीय है। एक माँ का प्रेम ही है, जो बदले में कुछ नहीं चाहता। बिल्कुल विशुद्ध, निश्चल,निश्छल, निस्वार्थ,असीम। बाकी के प्रेम में स्वार्थ निहित हो सकता है, अपेक्षाएं हो सकती हैं।सीमाएं हो सकती हैं।अत: माँ वंदनीय है।
- नरेन्द्र श्रीवास्तव
गाडरवारा - मध्यप्रदेश
यह अक्षरशः सत्य है माँ की ममता का कोई मोल तो क्या तोड़ भी नहीं है! इस सम्पूर्ण सृष्टि में चाहे पशु, पक्षी हों या मनुष्य सभी में केवल और केवल माँ ही ऐसी है जो अपनी संतति से निःस्वार्थ भाव से प्रेम करती है. माँ का सृजन-पालन-पोषण-प्रेम पूर्णतः निःस्वार्थ होता है. इसके साथ यह भी सत्य है कि माँ की ममता के साथ पिता का प्यार भी निःस्वार्थ होता है, जब कि पिता प्यार को व्यक्त नहीं करता, पर वटवृक्ष की तरह छत्रछाया में रखता है, बिना कहे भी बच्चे की हर जरूरत पूरी करने का पूरा प्रयास करता है. पिता के मौन प्यार की तरह उसकी महत्ता भी मौन होती है, जब कि माँ की ममता मुखर होती है. माँ की ममता के साथ माँ की डांट भी स्नेहिल और बच्चे के हित के लिए होती है. अन्य संबंधी और संगी-साथी सभी अपने स्वार्थ के वशीभूत होकर ही प्रेम करते हैं. माँ देती-ही-देती है लेती कुछ नहीं, जब कि बाकी सब लेन-देन के भक्त थोड़ा देकर अधिक लेने की अपेक्षा वाले होते हैं. यहाँ कुछ अपवाद भी हैं कि कुछ रिश्ते, संबंधी और संगी-साथी इतने निःस्वार्थ प्रेम करने वाले होते हैं कि उनके निःस्वार्थ प्रेम के आगे माँ की ममता भी फीकी पड़ जाती है. सब संस्कारों की महिमा है. कुछ अपवाद होते हुए भी माँ की ममता अनमोल और निःस्वार्थ प्रेम से सराबोर होती है.
- लीला तिवानी
सम्प्रति - ऑस्ट्रेलिया
माँ की शक्ति अपरम्पार होती है, जो निस्वार्थ प्रेम करने वालीं सिर्फ मां होती है। बाकि तो सब लेन-देन के भक्त होते है। बच्चें को जन्म से निरन्तर तक उसके अनेकों क्रियाकलाप तक उसके दुख-सुख में निस्वार्थ भाव से प्रेम करती है। जिसके बदले मां को अनन्त सहानुभूति होती है। दुख उस समय होता है, जब बड़े होकर विपरीत दिशा में पहुंच जाते है, तब उनके अहंकारिता के परिप्रेक्ष्य में उन्हें वृद्धाश्रम में अंतिम समय बिताना होता है। यह तो कटु सत्य है, हमनें पूर्व में अपनों को दुख दिया होगा उसका का फल मिला होगा। जिसका अंतिम सुखद हो, यह समझिए, हमनें पूर्व जन्म में कोई अच्छा कर्म किया होगा, उसी का प्रतिफल हमें मिला है। परिस्थितियाँ बताकर नहीं आती है, जब अपने अति सब कुछ है, सब आपके आगे पीछे घुमते नजर आते है, जब आपके पास कुछ न हो सब साथ छोड़ देते है। नदी में बाढ़ आती है, हम समझ जाते है, जल किस ओर जाएगा। लेकिन मानव ऐसा प्राणी है। जिसे समझना बहुत कठिन है। मानव, मानव का दुश्मन है.....
- आचार्य डाॅ.वीरेन्द्र सिंह गहरवार "वीर"
बालाघाट - मध्यप्रदेश
यूँ तो प्रत्येक बच्चा माँ-बाप का ही अंश होता है परंतु माँ का अधिक। नौ महीने पेट में रखने वाली माँ को पूरे संसार में यदि कोई सब से प्रिय है तो वह है उसका अपना बच्चा।अपनी जान से भी अधिक। उसके लिए अपनी नींद, भूख, आराम, सूखा बिस्तर वह सब कुछ निछावर कर सकती है। दिन रात उसकी सेवा करना, प्रेम से पालना-पोसना, उसके बिना बोले उसकी हर आवश्यकता, हर इच्छा को पूरा करना, दिन-रात उसके मंगल की कामना करना, यदि उसे कुछ हो जाए तो दुनिया के सारे देवी-देवताओं को मनाना, यह केवल एक माँ ही कर सकती है। अपने बच्चे के लिए वो पूरे संसार से लड़ सकती है। इसमें कोई स्वार्थ नहीं केवल यह इच्छा होती है कि मेरा बच्चा जहाँ भी रहे स्वस्थ व सानंद रहे । परंतु यह भी सच है जीवन के, संसार के सारे सम्बंध, रिश्ते, दोस्त, पड़ोसी अकारण ही हमारे जीवन में नहीं आते। अपितु हमारे कर्मों के अंतरगत ही हमारे उनसे संबंध बनते हैं । इन सारे सम्बन्धों का आधार लेन-देन, आदान-प्रदान , कर्मों का फल आदि ही होता है। अपेक्षाएं व इच्छाएँ भी कर्मों के निहित होती हैं। इसलिए किसी भी बात का बुरा मानने की अपेक्षा उसे अपने ही कर्म का उत्तर व परिणाम मान कर प्रसन्नता पूर्वक अपने कर्तव्यों व संबंधों का निर्वाह करना चाहिए।
- रेनू चौहान
नई दिल्ली
निस्संदेह, मां वह दिव्य चेतना है जो जन्म से लेकर मृत्यु तक हमारे चारों ओर अपने स्नेह का अदृश्य सुरक्षा कवच फैलाए रखती है। वह सृष्टि में एकमात्र ऐसी आत्मा है, जिसका प्रेम लेन-देन, स्वार्थ या अपेक्षा से परे होता है। उसका स्नेह न किसी वचन पर आधारित है, न किसी प्रतिफल की आकांक्षा पर टिका है। उल्लेखनीय है कि मां का प्रेम वह निश्छल ऊर्जा है जो जीवन की हर कठिन घड़ी में हमें संभालती है। उसके आशीष के बिना मनुष्य अधूरा है, क्योंकि उसकी करुणा ही हमारी आत्मा की जड़ में बसती है। परंतु इस सत्य का दूसरा पक्ष यह है कि यदि हम इस निस्वार्थ प्रेम को अपने जीवन, समाज और राष्ट्र के व्यवहार में उतार लें, तो संसार सचमुच एक परिवार बन सकता है जहाँ न कोई पराया और न ही कोई शत्रु होगा। क्योंकि मां केवल जननी नहीं है, वह मानवता की मूर्त व्याख्या है जो हमें बिना शर्त प्रेम, सेवा और त्याग की भाषा सिखाती है। अतः मातृशक्ति को प्रणाम करते हुए हम कह सकते हैं कि मात्र मां का रिश्ता ही निस्वार्थ, निछल और सर्वोच्च है जहां मोक्ष की प्राप्ति होती है और उसकी गोद में खेलने के लिए देवता भी तरसते हैं।
- डॉ. इंदु भूषण बाली
ज्यौड़ियॉं (जम्मू) -जम्मू और कश्मीर
अक्षरशः सत्य है निस्वार्थ प्रेम करने वाली सिर्फ मां होती है।मां सृष्टि की सृजन हार होती है। मां नौ माह कोख में औअथाह दर्द सहकर पालती है। तत्पश्चात प्रसव पीड़ा सहती है,और शिशु को जन्म देती है।अमृत तुल्य दूध स्तनपान कराती है।खुद गीले में होती बच्चे को सुखे में सुलाती है।हर सुख-दुख बच्चे का बिन कहे समझ जाती है।मां की गोद बच्चे की प्रथम पाठशाला होती है।मां बच्चे का पालन-पोषण भली-भांति करती है। संस्कार, शिष्टाचार देती है।श्रेषट गुणों का सृजन करती है।मां बच्चे को पढाती- दिखाती श्रेषट जिम्मेदार नागरिक बनाती है।मां का प्रेम निश्छल होता है।मन निर्मल होता है।प्रेम अथाह सागर ममत्व भरा हुआ होता है। मां ममता की मूरत होती है। मां सब कुछ अपने बच्चे के लिए लुटाती है। मां का कर्ज कोई नहीं चुका सकता।तभी तो कहते हैं मां दुनिया की अनमोल धरोहर है।दूसरी ओर बाकी सब लेन- देन के भक्त होते हैं। जिन्हें बस पाने की चाहत होती है। हमेशा आस बनाये रखतै हैं।जिनसे सहायता मांगो,तो उसके बदले में अपेक्षाएं निहित होती है। रिश्ते-नाते सभी मतलब के साथी होते हैं। लेन-देन पर ही संबंध टिका रहता है। सुख-दुख के साथी हम नहीं कह सकते।हर कोई अपेक्षा का शिकारी बने रहते हैं।मदद के नाम पर ठेंगा दिखाते हैं। थोड़ा कभी कुछ कर दिया तो बदले में बड़ी उम्मीद करते हैं । स्वार्थ में ही ये जीते हैं। सचमुच में ये सब लेन- देन के भक्त होते हैं।
- डॉ. माधुरी त्रिपाठी
रायगढ़ - छत्तीसगढ़
सही बात है इस ऋण बंधु संसार में यदि कोई नि:स्वार्थ भाव से प्रेम करता है। तो वह केवल मां है। इसके अलावा तो सब लेनदेन के चक्कर हैं। वह मां जो 9 महीने गर्भ में शिशु पालती है। क्या-क्या कष्ट नहीं झेलती। भले ही उसे 9 महीने पेट में बच्चे को पालते हुए। बाकि पूरे घर गृहस्थी का काम भी करना होता है। कई बार तो पूरे परिवार के लिए बच्चा गर्भ में होते हुए दो जून की रोटी का प्रबंध करती है। 24 घंटे एक गुड़िया की भांति, एक मशीन की भांति वह चलती फिरती नजर आती है। घर में सबसे पहले उठना और सबसे बाद सोना। सारे परिवार को खिलाना और सब के बाद खाना। यदि न भी बचा हो, तब भी खाली पेट सो जाना। बच्चों को मामूली सी खरोंच पर आहत होना, तड़प उठना। स्वयं गिले में सोना, बच्चे को सूखे पर सुलाना। बच्चा या परिवार भूखा हो तो, उनकी रोटी के लिए सब कुछ और अथक मेहनत करना। कभी कुछ खाने को बचा भी न हो तो भूखे पेट सो जाना। यह केवल एक मां ही कर सकती है। किसी और के बस की बात नहीं। बाकि तो हिसाब करते हैं। वे ताने देने लग जाते हैं, कि मैंने आपके लिए यह सब कुछ किया हुआ है। लेकिन कभी मां, अपने मुंह से कुछ भी नहीं कहती। भले ही उसने बच्चों को पालने के लिए, परिवार के पोषण के लिए कितनी ही मेहनत और तपस्या क्यों न की हो। मां के चरणों में पूरी दुनियां न्योछावर। मां के प्यार के आगे, दुनियां का प्यार कुछ भी नहीं है। मां तुझे कोटिश: वंदन, तुझे कोटिश: नमन। सौ जन्म लेने पर भी मां के ऋण से उऋण नहीं हो सकता, तू रवि।
- डॉ. रवीन्द्र कुमार ठाकुर
बिलासपुर - हिमाचल प्रदेश
यह बात पूरी तरह सत्य है कि मां ही एक ऐसी होती है जो निस्वार्थ भाव से प्रेम करती है। संसार में पशु- पक्षी का मातृत्व भी इससे अछूता नहीं है ।वह अपने बच्चों को उड़ने और चलने लायक बनने तक उनका दाना दाना खिलालाकर पोषण देने तक पीछा नहीं छोड़ती। फिर हम मनुष्यों की तो बात ही ऐसी ही है। वास्तव में मां का प्यार और सेवा अतुलनीय होता है क्योंकि परिवार में वह ही एक मात्र ऐसी सदस्य होती है जो अपने निस्वार्थ भाव से पालन पोषण मार्गदर्शन और सबको भावनात्मक समर्थन देती है। साथ में नैतिक और सांस्कारिक शिक्षा भी प्रदान करती है। मां का सच्चा प्यार ही उसका त्याग होता है ।मां के बिना जीवन में भटकाव होता है ।सुबह से रात तक बिना कुछ प्राप्ति के सब की सेवा कार्य में जुटे रहना ही केवल एक मां ही कर सकती है। इसके बदले में उसे कुछ भी नहीं चाहिए होता है। मां का प्यार निःस्वार्थ होता है ,जो हर मुश्किल में साथ देता है ।बाकी रिश्ते नाते अपेक्षाओं से जुड़े रहते हैं। निस्वार्थता से कोसों दूर रहते हैं। अतः शास्त्रों में भी मां को और जन्मभूमि को स्वर्ग से भी बड़ा स्थान दिया गया है, जो कि अक्षरतःसत्य है। "मातृ देवो भव"।
- डाॅ .रेखा सक्सेना
मुरादाबाद - उत्तर प्रदेश
" मेरी दृष्टि में " निस्वार्थ आज़ के समय में कुछ भी नज़र नहीं आता है। सभी अपने - अपने स्वार्थ से बंधे होते हैं। स्वार्थ से आगे बढ़ने की कोशिश कभी नहीं करते हैं। यही समय की देन है। बाकि चर्चा में बहुत कुछ आ गया है।
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